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रत्नसागर. बेटे। श्रीजिन हर्ख सरू ॥ (स०)॥ ४ ॥ गांव गडालै चरण नमंता । तूगे कल्पतरु ( स० ) पाठक श्रीविद्याहेम गणीनें । नदय रतन करू । (स०)॥५॥ इति दादाजी स्तवनम् ॥ ॥
॥2॥ ॥ ॥ (पुनः) देशीकी चाल में॥ ॥ - ॥ ॥ (दादा चिरंजीवो सेवक जन सुखदाई दरशण सदा देवो। दादौ दीनदयाल सदा दाता। दादो समस्यां आपै सुखसाता। दादौ जगना यक जगगुरु भ्राता (दा० )॥१॥ दादो परचा जगसगलै पूरै । दादौ सेवकना संकट चूरै । दादौ पुरित हरै सहुनी दूरै ॥ (दा.) ।। २॥ दादा अलगांथी जात्री आवै । दादौ देखीने ते सुख पावै । ह्मांरा दादाजीनी जोम कोई नाव (दा०)॥३॥ दादौ राज नगर मांहे राजै । जिहां मुजश नगारा नितवाजे । दादौ गेगालां सेहर गजै ॥४॥ (दा०) दादा घस केशर सूकम घोली। हाथे लेई सोवन कचोली। पूजो दादाजीने मिल २ टोली (दा०)॥५॥ दादौ आरतियां आरति टाले । दादौ सेवगजननें प्रति पालै । दादौ जिनशासन नित जवालै (दा०)॥६॥ दादौ महिमावंत महाराजा । दादौ राजै खरतर गडराजा । दादौ समस्यां सफल करै काजा (दा०)॥७॥ दादौ कुसल सुरिंद बहुगुण धारी । दादो परतिख सुर तरु अवतारी । जाऊं दादाजीनी हुं बलिहारी (दा०)॥८॥ दादौ श्री जिन चंद सुरिंद पाटै । दादौ गाजै गुणियण गहगाटै । जसु थान सोहै जगथिर थाटै (दा०)॥९॥दादा महिर निजर मुफ परिकरिये । दा दा आरतिपीमा मुख हरियै । दादा जिम जग जय कमलावरियै ( दा० ) ॥१०॥दादा सेवगर्ने सांनिध करज्यो । दादा समणनें दूरै हरज्यो। जि णचंदना मन वंचित फलज्यो (दा० ) ॥११॥ इति दादाजी स्तवनं ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ (आषाढै नैरं आवै इस चालमें )। गाजै जिन कुशल गमा लै । सेवकनां संकट टालहो गा॥१॥ पतिख गुरु परचा पूर। सेव कनी चिंता चूरै हो ( गा० )॥२॥ उतरी नितरी विगजै । विचमें थि रथुन विराजै हो (गा)॥६॥ फूलरे यात्री मिल आवै। दादौ जी