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रत्नसागर. न पांचेनला। करता त्रिनुवन परकासरे (गो०) २७ ॥ चवदश तप वि धसुं करै । चवदह पूरब होय धाररे। इम अनेक फल तपतणा । कहितां वलि नावै पाररे ( गो० २८)॥ मन वचने काया करी । तप कर जेनर नार रे। इग्यारै वरश एकादशी । करतां लहै नवपाररे (गो० २९)॥आठम तप आराधतां। जीव न फिरै संसाररे । अनंत नवांना पापथी। बूटै जीव निर धाररे (गो० ३०) ॥ तप हुंती पापी तरया। निसतरीयो अरजुन मालरे दृढपहारि तपसें तिरयो । चनहत्याना बूटा जालरे (गो० ३१)॥ तपना फल सूत्रे कया। पञ्चक्खाण तणा दश नेदरे । अवर नेद पिणले घणा। करतां दै त्रय वेदरे ( गो० ३२ )॥ कलशः ॥ * ॥ पञ्चक्खाण दश विध फल प्ररूप्या महावीर जिण देवए । जे करै नवियण तप अखंमित तासु सुरपय सेवए । संवत्त निधिगुण अश्व शशि वलि पोशसुद दशमी दिने। पदम रंग वाचक सीसगणिवर रामचंद्र तपविधि नणे (गो० ३३ )॥ ॥ इति दश पञ्चक्खाण वृध स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ १० पच्चक्खाण तपविधिः॥ ॥ * ॥ यह दश १० पच्चक्खाणके स्तवनमें । खुलासा दश पञ्चक्खा णके नेद (और ) बेला । तेला। पांचम । आठम । चौदश । ( इत्यादिक) तपस्या करनेके फल । जगवंत श्री महाबीर स्वामीके । बचन माफक । नत्तम पुरुषोनें रचना करी है । ( इसीसें ) धर्मरागी पुरुष । इसी स्तवनकों पढके । तपश्या करनेमें आदरवंत होताहै । और कोईकै दश पञ्चख्खाण तप करनेकी इछा हो ( तो ) पहलै दिन, । नवकारसी, दूशरे दिन पोर सी ( इसी तरै ) स्तवन मुजब १० पञ्चक्खाण तप । दश दिवशे सेवन करे। सदा स्तवन सुणे । गुरूको संयोग न हो ( तो ) आपपढे । अंतमें पू जाकरावे । शक्ती माफक नद्यापन करै ( इसी तपस्याके प्रसाद ) खोटी ग तिकों दूर करकै । अही गतिके बंध बांधै । महा ऐश्वर्यवंत होय । जाग्य वंत होय ॥ * ॥ इति दश पञ्चक्खाण तप बिधिः ॥ ॥
||2||अथ वीश स्थानक स्तवन लि०॥ ॥ ... ॥ ॥ श्रीसिघाचल भेटिये ( एदेशी )॥ वीश थानक तपसेवीयै।