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શુક્
रत्नसागर.
न आख्यो ( मोरी अम्मा) डुकर मारग जननी दाखीयो ॥ १२ ॥ सुख अभिलाषी हे अम्मा । न आखी। ( मोरी अम्मा ) | कायरमारग जननी दाखीयो ॥ १३ ॥ एजग स्वारथी हे अम्मा । नही परमारथि । (मोरी अम्मा)
खारे परदास मुरायो ॥ १४ ॥ में इम जाएयो हे अम्मा । बी खायो । ( मोरी अम्मा ) । एधन जोवन श्राऊ थिर नही ॥ १५ ॥ अनुमति दीजै हे अम्मा । ढीलन कीजै । ( मोरी ) । जोखिए जाइसु फिर
वै नही ॥ १६ ॥ अनुमति प्रापी हो अम्मा । जीव सुखपायो ॥ ( मो० ) संजम लीधोरे मनमां गह गह्यो ॥ १७ ॥ बद्ध २ पारणें हे अम्मा । विग य निवारण || ( मो० ) ॥ बीरबख्याएयो सुरनर आगलै ॥ १८ ॥ सुख सं जम पालै हे अम्मा । दूषण टालै ॥ ( मो० ) ॥ अंग इग्यारह अरथ रू काज ॥ १९ ॥ संजम पाल्यो हे अम्मा । नव पख वाम || मो० ॥ मास संथारै हो सरबारथ सिद्धि लह्यो ॥ २० ॥ * ॥ इति श्रीधन्नारुषि सिज्ञाय संपूर्णम् ॥ ॥
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॥ ॥ अथ कर्म सिशाय लिख्यते ॥
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॥ देव दानव तीर्थकर गणधर । हरिहर नरंवर सबला । कर्म प्र माणें सुख दुख पाम्यां । सबल हुवा महा निबलारे प्राणी । कर्म्म समो नही कोई ॥ १ ॥ यादी सरजीनें कर्म्म प्रटारया । बरस दिवस रह्या भूखा । बीरनें वारे बरस दुख दीधा । उपना ब्राह्मणी कूखै रे ॥ प्रा०॥२ क० ॥ साठ सहस सुत मारया एकदिन । जोध जुवान नर जैसा । सगर हवो महापुत्रनो दुखियो । कर्म्म तथा फल भैसारे ॥ प्रा० ॥ ३ क० ॥ बत्तीस सहस देसांरो साहिब । चक्री सनत कुमार । सोले रोग शरीर में नपना । कर्म कीयो तनु बाररे ॥ प्रा० ॥ ४ क० ॥ कर्म्म हवाल कीया हरीचंदनें बेची सुतारा राणी । बार बरस जगमाथै आयो । नीच तर्फे घर पाणी रे प्रा० ॥ ५० ॥ दधिवाहन राजानी बेटी । चावी चंदनबाला। चौपदज्युं चौहटा में बेची । कर्म्म तथा ए चालारे ॥ प्रा० ॥ ६ क० ॥ संजूम नामें आ ठमो चक्री । कर्मे सायर नाख्यो । सोलै सहस जह ऊना देखें । पिण किणही नविराख्योरे ॥ प्रा० ॥ ७० ॥ नह्मदत्त नामें बारमो चक्री । क
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