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राग रागण्यां स्तवन.
४७५ ॥॥राग केरवो॥ ॥ ॥ॐ॥ रसना सफल नई। में तो गुन गाये महाराज ॥रसना०॥(एआं कणी) ॥ परम आनंद प्रगट नयो मेरे । जब देखे जिनराज ॥ रसना ॥ १ ॥ अति नज्वल जश सुन जिनजीको । संच्यो सुकृत समाज॥ नाक नमन करतां प्रनुजीकुं । सारया आतम काज ॥ रसना० ॥२॥ पदपंकज प्रनुके फरसतही । दूर गई दुःख दाऊ । कहत दमाकल्याण सुपाठक । अब मोहि अविचल राज॥ रसना॥३॥ इति ॥ ॥
॥॥राग केदारो ॥ ॥ॐ॥गोमी गाइयै मन रंग ॥गो । एक ध्याने एक तानें ॥ कर केदा रो संग ॥ गोमी० ॥१॥ जात्रा कीजै अमृत पीजै । नीर वहेरी गंग ॥ रोग शोग कलेश नासे । आलस नावे अंग ॥गो० ॥ २ ॥पोढतां प्रनु नाम लीजै । आणी मन नजरंग ॥ अनय तेहने कंघ मांहे । कदिय न होवे चित्त नंग॥गो० ॥३॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥2॥ ॥ ॥ हारे हुं तो मोह्योरे लाल । जिनमुखमाने मटके ॥ टेक ॥ नयण रसाला ने वयण सुखाला । चित्तहुँ लीधुं चटके ॥ प्रनुजी केरीन क्ति करतां । करम तणी कस तटके ॥ हारे० ॥१॥ मुझ मन लोनी जमरतणी परें । जिनगुण कमलें अटके । रत्न चिंतामणि मुंकी राचे । क हो कोण काच तणे कटके ॥ हारे० ॥ २ ॥ ए जिण थुणतां क्रोधादिक सह । आस पासथी हटके ॥ केवलनाणी बह सुखदाणी । कुमति कुग तिने पटके ॥ हां रे० ॥ ३ ॥ए जिनने जे दिलमां न आणे । तेतो चूल्या नटके॥ नाव नक्तिशुं नेलग करतां । वंचित सुखमे सटके ॥ हारे० ॥४॥ मूरत संभव जिनेश्वर केरी । जोतां हश्९ हटके । नित्य लान कहे प्रनु ए . मोहोटो । गुण गाऊं हुं लटके ॥ हारे॥५॥
॥१॥ ॥॥राग काफी॥॥ ॥ * ॥ प्रनुजीसें लागो मारो नेह सखीरी । अब कैसे कर बूटेरी ॥ प्र० ॥ टेक ॥ धिग धिग जगमें वाको जीयो । आपणा प्रनुजीसें रूसेरी ॥