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रत्नसागर. सबही अपने स्वारथके है । परमारथ नहिं प्रीत ॥ स्वारथ विणसे सगो न होसी । मित्ता मनमें चिंत ॥ ज० ॥२॥ न चलैगो आप इकेलो । तुंही सुं सुविदीत ॥ कोनहिं तेरो तुं नहीं किसको । एह अनादी रीत ॥ ज० ॥ ३ ॥ तातें एक नगवान नजनकी । राखो मनमें नीत ॥ ग्यान सार कहे येह धन्याश्री । गायो आतम गीत ॥ ज०॥इति ॥॥
॥ ॥ बधाई॥॥ ॥ ॥ बाजत रंग बधाई नगरमें ॥बा०॥ जय जयकार नयो जि नशासन । वीर जिणंदकी हाइ॥न ॥बा०॥१॥ सब सखियन मिल मंगल गावै । मोतीअन चौक पुराइ॥न०॥ बा० ॥ २ ॥ केशर चंदन जरीय कचोली । साहिब ज्योति सवाइ ॥न०॥ बा० ॥ ३॥ हरखचंद प्रनु दरशन देखत । आवत नैन जराइ॥न॥बा० ॥४॥ ॥
॥ ॥ राग केरवो ॥8 ॥ ॥जलांजी मेरो नेम चल्यो गिरनार । एकेली जानसें । मेरो०॥ राजुल कनी अरज करे ।। ( नलांजी मेरी ) अरज सुनो महाराज ॥ एके ली०॥ १ ॥ तोरण आय चले रथ फेरी। (नलांजी नवांतो ) पशुवनकी सुनी ने पोकार ॥ एकेली० ॥ २॥ सहसावनकी कुंजगजिनमें। (जलांजी
वांतो)पंच महाव्रत धार ॥ एकेली०॥३॥ हरखचंद प्रनु राजुल बिनवे । (जलांजी मेरो) होजो मुक्तिमें वास ॥ एके०॥॥
॥ श्रीसुपाश जिनराज ॥ए देशी॥॥ ॥ ॥ आदीसर जिनराज । त्रिनुवनके महाराज ॥ आजहो आयो रे में शरणे प्रनुजी तुम तणे जी ॥ १ ॥ नखस्यो ग्यान अंकूर । प्रगव्यो पुण्य पडूर । आजहो जागीरे मुझ भनमें तुमनी सेवना जी ॥ २ ॥ लगन लागी परपूर । दोष गये सब दूर । आजहो गेडु रे नहीं तुम प द सेवा सुखकरूजी ॥३॥ नानिराय कुल चंद । मरुदेवीके नंद । आज हो राखो रे प्रनु मुझकुं निज चरणे सदा जी ॥ ४ ॥ अमृत धर्म सुजाण । शीश दमा कल्याण । आज हो रागें रे प्रनु आगे आ विनती करेजी ॥५॥ इति आदिजिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥