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रत्नसागर. आ॥ २॥ ऊंचा चणाव्या मंदिर मालियारे । दे दे धरतीमें ऊंडी नीवरे एक दिन अणजाण्युं की चालबुरे । मुख दुःख सहशे आपणो जीवरे आ०॥३॥ चक्रवर्ति हरिबल राणो केशवोरे । जो जो वली इंद्र मुरांनो नाथरे।। ऊगी कगीने नवेही आथम्यारे । जो जो कोइ अचरज वाली वा तरे॥ आ०॥४॥ अथिर संसार तजी मुनी नीसरयारे। करता मुनि नव ला विहाररे । जारंग पंखीनी दीधी नेपमारे । न धरे ममता नेह लगाररे ॥ आ०॥५॥ चारित्र पाले रूमी रीत°रे । देवे मुनि अपनो उपदेशरे । तीको मुनिवर सिधासी मोहनेंरे। जश लेई इह लोक परलोकरे ॥ आ० ॥ ॥६॥शब्द रूप देखी समता धरोरे । मकरो मुनि लण्यानुं अजिमानरे । कृषि चोथमल सूत्र देखिनेंरे । जोम कीधी जालोर मकाररे ॥आऊ ॥७॥
॥ ॥ पंचतीर्थी चैत्यवंदन ॥॥ ॥ ॥ आज देव अरिहंत नमुं। समरूं तारूं नाम । ज्यां ज्यां प्रति मा जिनतणी । त्यां त्यां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शेठेजय श्रीआदिदेव । नेम नमुं गिरनार । तारंगे श्री अजित नाथ । आबू रिखान जुहार ॥२॥ अष्टा पद गिरि ऊपरें । जिनचोवीशी जोय ॥ मणिमय मूरति मानशुं । जरतें जरावी सोय ॥३॥ समेत शिखर तीरथ वडुं । ज्यां वीशे जिन पाय । वै नारकगिरि ऊपरें । श्री वीर जिनेश्वर राय ॥४॥ मांझवगढनो राजियो। नामें देव सुपाश । रिखन कहै जिन समरतां । पोहोचै मननी आश ॥ ५ ॥
॥ॐ ॥ दूज तिथीको चैत्य वंदन ॥3॥ ॥ * ॥ इविध धर्म जिणें नपदिश्यो । चोथा अभिनंदन । बीजै ज न्म्या ते प्रनु । जवपुःख निकंदन ॥ १॥ इविध ध्यान तुझे परिहरो। आदरो दोयध्यान । एम प्रकाश्युं सुमति जिन । ते चविया बीज दिन । ॥२॥ दोय बंधन राग द्वेष । तेहने जवि ताजियें । मुझ परे शीतल जिन क है। बीज दिन शिव नजियें ॥३॥जीवा जीव पदार्थहैं। करोनाण सुजाण वीज दिनें वासुपूज्य परें। लहो केवल नाण ॥४॥ निश्चय नय व्यवहार दोय । एकांत न ग्रहीयें। अर जिन बीज दिने चवी । एमजिन पागल क हीयें ॥५॥ वर्तमान चौवीशीये । एम जिन कल्याण । बीजदिनें केई या