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रत्नसागर. मनोहर ! काया कंचन वानी हो ॥ (रि०)॥ २ ॥ नानिराय मरुदेवीको नंदन । वापरजीया कुरवानी हो ॥ (रि०) ॥३॥ युगला धरम निवारण स्वामी । प्रजुगे पर नपगारी हो ॥ (रि०)॥४॥ केवल पाय प्रजु मुक्ति सिधाए । आवागमन निवारी हो ॥ (रि०)॥५॥ आनंद घन प्रनु एती वीनती। तुमपर जानं बलिहारी हो ॥ (रि०)॥६॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ॐ॥ पुनः॥*॥ ॥ ॥ सुण मन हो न हार नटरैरे ॥ (मु०)॥चित कल न विचारत है नर । नही रवनेरे॥ (सु०)॥१॥ऊपर वाज पारधी नींचे। चिमियां कैसे वचैरे॥ (सु०)॥२॥ होनहार वस मस्यौहै पारधी । शर सींचांण मरैरे। (सु०)॥३॥ होत पदारथ जावी अश्या । क्युं जगचाह धरैरे॥ (मु०) ॥४॥नदय करमगत देख जगत की। जिनवर क्युं न नजैरे ॥ (मु०)॥५॥
॥ * ॥ पुनः ॥2॥ ॥ ॥ सहियोरी मिलचालो अनु पूजन काज ॥ (स० )॥ समवशरन विच आप विराजै। वीरनाथ महाराज ॥ (स०) ॥ १ ॥ श्रेणक रूप चेलणा राणी । नक्ति करत है आज ॥ (स०)॥२॥ निज निज द्रव्य लीय पुरके जन । नमंग नमंग सुन साज ॥ (स.)॥३॥ वे प्रनु दीन दयाल जगतके। हितकर धर्म जिहाज ॥ (स०)॥ इति पदम् ॥ ॥ .. ॥॥ (राग केहरवो) (२)॥ * ॥
॥ ॥ मनवा जिणंद गुण गायरे ॥ (म०)॥ याजिनजीके दरस सरस तें। मुखदोहग मिट जायरे॥(म.)॥१॥ मुगुरु वचन परतीत मानले ।
आतमसुं लय लायरे॥ (म०)॥२॥जव २ में तो कुं सुखदाई । आनंद बंबित पायरे ॥ (म०)॥३॥इति पदम् ॥ ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥ चालो देखोरी मधुवनको राव (चा०) वामानंदन पाशजिने सर। शिरपररे वाके चवर ढोलाय ॥ (चा०)॥१॥ तारण तरण जिनेसर लखके । नेटै सहु नवि चित सुख पाय ॥ (चाल)॥२॥ गंगा दरश नमाहोलागो। कबफरसुं वाके मन वच काय ॥ ( चा० )॥ इति पदम् ॥