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राग रागण्यांका स्तवन - ॥ * ॥ (राग घाटो) (२) ॥
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॥ ॐ ॥ मेरो मन वशकर जीनो। जिनवर प्रजुपाश ( मे० ) ॥ १ ॥ अखीयां कमल पांखमीयां । मुख सुंदर जास । ( मे० ) ॥ २ ॥ काने कुम ल दोय फलकै। शशि सूरज सम नास ( मे० ) ॥ नीलवरण तन सोहै । त्रिवन परकास ॥ (० ) || ३ || प्रभु तुम शरण रहीनें । समरुं सासोसा स ॥ ( मे० ) ॥ ४ ॥ लालचंद अरज सुणीनें । पूरो बंबित आश ॥ ( ० ) ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥
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॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
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( रा० ) ॥ १ ॥
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( रा ० ) ॥ २ ॥
॥ * ॥ राखुरे हमारा घटमें। जिनराज नाम तेरा ॥ via मेरा | ग्यानका अंधेरा | जागा नया जेरा ॥ सूरति तेरी रागे । देख्यां विभाव त्यागे । अध्यात्म रूप जागे मुद्रा प्रमोदकारी । रुपसजू तिहारी । लागत मोहि प्यारी ॥ ( रा० ) ॥ ३ ॥ त्रैलोक्यनाथ तुम ही । हम है अनाथ गुन ही । करिये सनाथ हम ही ॥ ( रा० ) ॥ ४ ॥ प्रभुजी तिहारी साखै । जिन हर्ष सूरि जाखै । या ही राखै ॥ ( रा ० ) ॥ ५ ॥ ॥ इति पदम् ॥
दिलमां
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॥ * ॥ राग ठुमरी जंगलो ॥ * ॥
॥ * ॥ सुणो सुजाण नेमजी हां रे में खमी पुकारूं नेम तूही तूही तूंही । ( सु० ) ॥ परज करत हुँ मै पइयां परतहुं । इतनी अरज मेरी मांनो सुजाण (नेमजी हां० ) ॥ १ ॥ विन अवगुणं क्युं तजो मेरे साहिब महिर निजर मोपे आणो सुजाण (नेमजी ) ॥ २ ॥ हरख चंद नेमी राजेसर । हुं जव २ की चेरी सुजांण ( नेमजी ० ) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥
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रा ० ) ॥ जागे
॥ * ॥ तेरै दरसको चाह लग्यो । सखी स्याम वरण वत लाजारे ( ते ० ) । वनमैं जाय प्रजु दिक्षा लीनी । हमकुं लार लगा जारे ( ते ० ) ॥ १ ॥ जाय चढे प्रभु गिरनार ऊपर । अब कैसें विसराज़ारे ( ते ० ) ॥ २ ॥ चैन विजै कहै धन २ राजुल । प्रभू चरणां चित लायजारे ( ते ० ) ॥ ३ ॥ इति