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नंदीश्वर पूजा, आरती.
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तारक चेतो रमतु त्वदंत । उत्तम मे विभवोन्वितः ॥ ॐ श्री श्री ० ॥५०॥ ॥ काव्यं ॥ हेनविजन वायुविदिशि रतिकार। सानुनि जिन सद्मनि ततः जीवन श्रीषादि स्वरूप । मनुभव तपस्यतु यतः ॥ ॐ श्री श्री० ॥ ५१ ॥ ॥ * ॥ काव्यं ॥ हेनविजन तत्सम रतिकरनाम । तत्रैवास्ति गुणोत्करः ॥ हे जिनपति चैत्यालय ऋषनादिदेव । ममैधी श्री सुखकरः ॥ १ ॥ ी श्री ० ॥ ५२ ॥ ॥
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॥ कलश ॥ युगवराः श्रीकरा दुःखकश्मलहरा नृरिसूरीश्वराः सुचितराए । धर्मरुचिकारका नवसमुद्रतारका धीर्य गांभीर्य गुणसागराए || दीपनंदीश्वरे, पंचप्रिजिनगृहे, शषनप्रमुखाः सतां बंधुराए। जैनचंद्राः सदा, त्रिभुवने सु कृतिनो, जयतु मद मान वन सिंधुराए ॥ ५३ ॥ इति श्रीनंदीश्वर मंगल ५२ चैत्यपूजनविधिः ॥ ॥ 1111
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॥ * ॥ अथ नंदीश्वरद्वीपतपस्याविधिः ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ प्रथम दीवालीसें तपश्या अंगीकारकरे ॥ प्रतिक्रमणादि पूजा देववंदन पर्यंत सर्वकृत्यकरकै गुणनो करै ॥ यथा ॥
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॥ ॥ श्रीरुषनादि वर्धमानांताशास्वता जिन सर्वज्ञायनमः ॥ इसको २००० गुणनोकरै । तपकरे । पीछे बारे मास अमावसको अमावस १२ नृपवास करे । फेर दूसरी दीवाली आवे जब तेलोकरे । नंदीश्वर ५२ जिना लयकी थापना करके जूदा २ काव्य पूजापढके || जल चंदनादि अष्टप्रकार सें पूजाकरे । सब फल धजा दीपक बावन चैत्ये चढावै ॥ इसीतरे उद्यापन सा हमी वलकरे ॥ इति ॥ ॥ 1111
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॥ ॥ अथ नंदीश्वर दीपकी भारती लि० ॥ ॥ * ॥ जीया चतुर सुजाण । नवपदके गुण गायरे ॥ (ए चाल ) ॥ * ॥ जीया अष्टपद्वीप | मंगल आरती गायरे । परमानंद पद एहीज जपतां । अजरामर सुख पायरे ॥ जी० ॥ १ ॥ रुषज्ञानन चंद्रानन वारिषेण । बध मांन पद नायरे ॥ जी० ॥ एच्यारे जिन सास्वत सोहै । समरण मंगल था यरे ॥ जी० ॥ २ ॥ अष्टप्रकारी पूज मनोहर । मनशुद्ध कर मन जायरे ॥ जी० ॥ जन्मजरा दुःख दूर करणते । कीजै एह उपायरे ॥ जी० ॥ ३ ॥ पंच