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* श्री जिनार्चन विधिः * ॥
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॥ॐ॥अर्हत्कल्पानुसारें सदैव जिन पूजन विधि किंचित्मात्र लिखते हे ॥ जगवंतके मंदिर ( वा ) घर देरासरके विषे । चोटीकू वांधकै शुध वस्त्र पहरके, उत्तरासंग जिनोपवीत मुखकोससहित । एकांतके विषे पूर्व दिश, उत्तरदिश तरफ, वेठके परमेश्वरकी पूजा करै ॥ प्रथम जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अदत, नैवेद्य, फल, आदि चीजांकू मंत्रों से पवित्र करै ( यथा ) ॥न आपो अप्य काया एकेंद्रिय जीव निर्वद्या है पूजाया निर्व्यथाः संतु । निरपायाः संतु । सन्तयः संतु । नमस्तु संघट्टण हिंसापापमर्हदर्चने। इस मंत्रसें जल मंत्रणा ॥ ॥न वनस्पतयो वनस्पतिका या जीवा एकेंद्रिया निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः संतु । निरपायाः संतु ।स जतयः संतु । नमेस्तु संघट्टन हिंसा पापमर्हदर्चने ॥ इति पत्र पुष्प फल धूप चंदनादि अनिमंत्रण मंत्र ॥॥ अग्नयो अग्निकाया जीवा एकेंद्रिया नि रखद्या अर्हत्पूजायां निर्व्यथाः संतु । निरपायाः संतु । सन्तयः संतु । नमे स्तु संघटन हिंसा पापमर्हदर्चने ॥ इति वन्हि दीपाद्यनिमंत्रणं ॥ फेर बास चूर्ण फूल गंधादिक हाथमे लेके मंत्र पढे ॥ न त्रसरूपोहं संसारिजीवः सुवासनः सुमेधा एक चित्तो निरवद्यार्हदर्चनै निर्व्यथोचूयासं । निःपापोनूया सं । मत्संश्रिता अन्यपि संसारिजीवा निरवद्यार्हदर्चने निर्व्यथा नूयासुः निरुपद्रवा नूयासुः॥ इस मंत्रसे केशर मंत्रके अपणे तिलक करे ॥ ॥ पुष्पसें अपने मस्तककी पूजा करे ( फेर ) पुष्प अदत आदि हाथमें लेके मंत्र पढे ॥ तन्मंत्रो यथा ॥ पृथिव्यप्तेजो वायु वनस्पति त्रसकाया