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रत्नसागर.
णी ॥ १ ॥ ( चाल ) पुढवी दगरे वाऊ तेऊ वणस्स | पण थावररे वादर हम दसे । प्रत्येकजरे वणस्स इग्यारह थया । बावीसेरे पत्तग अ पत्तया । (उल्लालो ) पत्त अपत्तग वखाण्या विगल तिय बहनालए। जल थल खचर नुयंग डुइपण इंद्रिय तिरि अमालए। वम्मादि साते न रक पुढवी नारकी तिहां सात जे । ते चवद नेदै करी जाणो पतय अ पजत्त जे ॥ २ ॥ ( चाल ) पनरह बिधरे सुर गिए परमाहम्मिया । किज विखियारे त्रिविध करम ते निम्मिया । जंनिय दूसरे नव लोगांतिक जाणियै सोलह विधरे व्यंतर देव वखाणियै । ( नल्लालो ) वखाणियै दसविध जुवन पतिना तार रवि शशि रिषि गहा । चर थिर दसेविध जोइसी सुर वखाएया जिणवर जहा । बारह बिमानक पण अणुत्तर नवग्रीवेके नव भएया। पत पत्ता अधिक सतसंख्यागिया ।॥ ( ढाल २ ) मेघ आगम सही ए० ॥ पंचनरत वलि ऐवत पंच पंच विदेहवर भूमिका ए । खेत्र ए पनरह करम भूमि जाणीयै प्रसिकसि मसिहि आजीविकाए । हेमवत खेत्र वलि तिम हरिवर्ष रम्यक ऐरण्यवत सहीए । मेरुपिण पाखती चारि २ खेत्र दस कुरु अकरम भूमीकहीए ॥ ४ ॥ हिमगिरि सिहरीय दाढ चीयारि व वण समुद्रमांहि विस्तरीए । सात २ अंतर दोय पाम्रै दीप बप्पन्न अन्तर धरीए । दोइसे नेद दुइ प्रागला जांणि मणुय पत्त प्रपत्तयाए । एक सौ एक समुमिद तीनसे तीनमा थयाए ॥ ५ ॥ ( ढाल ३ ) ॥ ( हिव जनम्या जगगुरु० ) ए० ॥ पणस्य त्रेसविविध जीवसहू बे एह ever आदिक दस गुणित करीजे तेह | पणसहस बसै वलि त्रीस अ धिकते जाणि । ते रागै दोसे दुगुणा करी वखाण ।। ६ ।। हुइ सहस इ ग्यारह दुइसय साठि प्रमाण । ए प्रवचनवाणी जाणी हितर आपण । मनवच काया करि त्रिगुणाकरित्रिक । तेतीस सहस सत सातमसी निःसंक ॥ ७ ॥ वलि करण करावण अनुमति त्रिगुणा किव । इक्लक्ख सहसरंग तिसय चालीस प्रसिद्ध । अतीत अनागत वर्तमान वलिकाल जे थइयविराधना तिणी त्रिगुण संजाल ॥ ८ ॥ तीन लाख सहस च्यार वेसे अधिक तेथाय । अरिहंत प्रमुख बह साखे बगुणा जाय। इम लाख