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७६२ , रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. कृपासैं । लहै सदा आनंदोरे ॥ धा०॥७॥ क्षी परमा० । सहसकूट जि नेद्राय दीपं यजामहेः। ॥ ॥ ॥8॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ (६) अदत पूजा ॥४॥ ॥ ॥ ( दूहा )॥पत्रिम धातकीखममैं । जरते जिनवर सार । अ तीत चौवीशी एकहुं । सांगलजो सुविचार ॥१॥ नऊल तंउल लेयनैं । मंगलकर अविसार । निरमलगुण प्रगटैसही । पूजन जग जरतार ॥ २ ॥ (ढाल) पास जिणंदा प्रनू मेरे मनवसीया ॥पा० ॥ (एचाल)॥ * ॥
॥ ॥ अतीत चौवीसी सेवो नवि रसिया ॥ अ०। से० ॥ पछिम धात की जरतै सोहै। एजिनराज सकल मन वसिआ॥ स । अ० ॥ वृषजनाथ महाराज विराजै। श्रीप्रियमित्र अधिकगुणं रसिया।अ०॥ः॥१॥शांति जिनेसर जग नपगारी । समुद्रनाथ सेवोजविरसिया । से। अजित जिनेसर जग जयकारी । श्रीअव्यक्त सकल सुख रसिया। स०अ० ॥२॥कलासित जिनजनके दीपक । सरब जीत जिन अधिक दरसा ॥ अ०। प्रबुध जिने सर नवमो कहिये । दशमो प्रबजित अधिक नलसिआ। अ०॥अ० ॥३॥ श्रीसोधरम जिनेसर वंदो । तमोधि दीपए नाम दरसिया । नां० । वज्रशे न श्रीबुघ जिनेसर । प्रबंधनाथ जगके उख घसिया । ज०॥ अ० ॥ ४ ॥ अजित प्रमुख पर्खयोपम बंदो । अकोप जिनंद सब पाप तरसिया । सः निष्टित जिन मृगनान सुसेवो । देवेंद्रनाथ मुझमनमैं वसिया । म० । अ०। ॥५॥प्रयहित जिन वंदु नपगारी । चौवीशम शिवनाथ रसिआ। ना। पश्चिम जरते धातकी खेमे । वर्तमान अनागत रसिया । अ० ॥ अ० ॥ ॥ ६ ॥ इण विधजो नविपूज करतहै । तमु मन वंचित मेघ वरसिया। मे । तीन चौवीशी एनितवंदो । सुमतिसदा ए ग्यांन दरसिया । ग्यां । अ०॥७॥ॐ जी परमा० सहस अदतं यजामहेः॥६॥ ॥
॥ ॥ अथ (७) नैवेद्य, फल पूजा॥ ॥
* ॥ ( दूहाः )॥सातमी पूजा साचवै । फल नैवेद्य सुखकार । न त्तम फल पूजा करो। पावो सुक्ख अविकार ॥ १ ॥ पुरकरप्रीपे वंदिय । अतीत चौवीशी जेह । शास्त्रथकी सुजो सदा । अनुपम गुणके गेह