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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.. तेपन जाणीयै । माह सुद चवदश बार मंगल मन आणीय ॥१७॥ गणतां गुणतां एह सदा सुख पामसै । घर घर मंगल माल हुवै जिननामसैं ॥१८॥ ॥ इति श्रीसुमति ममणजीकृत पंचपरमेष्टी पूजा संपूर्ण ॥ ॥ ॥ ॥॥अथ श्री सिद्ध गिरि निनाणुं प्रकारी पूजा लि०॥॥
॥ ॥ प्रथम ध्वज पूजा ॥ * ॥ ॥श्रीषनायनमः ॥ दूहा ॥ षनादिक जिनवरनमी । प्रणमी सजुरुपाय । पुमरीक गिररायनी। पूजकरुं सुखदाय॥१॥ सजल शिखर गिरवर सरस । फरस्यां पाप पुलाय । कनकाचल सहुशिरतिलो । वंद्यां सहु उःखजाय ॥२॥ नाम लियां सुख संपजै । घर बैठां सुन्न नाव । सफल जन्म जात्रा करै । जव जल तारन नाव ॥३॥ नव नव जमता मानवी । पामे पुःख अनंत । घुमरंगिर बेटे तिके । तुरत लहै नव अंत ॥ ४॥ कल्पवृदा चिंतामणी । जंत्रमंत्र जग जोय। ए महिमा सहुकारमी । गिरवर सम नहिंकोय ॥५॥ प्रथम ध्वजा लेईकरी । चाढो गिरवर शृंग। विजय सदा जगमें हुवै । दिन दिन अधिक सुरंग ॥६॥8॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ढाल ॥ चित हरखधरी। अनुन्नवरंगे बीसपरमपदसेविये ॥ ॥ एचाल ॥ गिरराज जयो श्रीसिद्धाचल तीरथ रयणे पूजिये । महाराज जयो श्रीरिसहेसर नविजन नावै पूजीयै ॥ वर मोहन ध्वज पूजा करियै। चितचोखे जगमै जसंचरियै । जिनराज सरण नवि अनुसरियै ॥ गि० १॥ इहां पुमरीक गण धर आया । तिणपुमरीक नाम कहाया चै । सिपत्र नमी सुख पायावै ॥ गि०॥ २॥ विमलाचल गुण मणि दारयो । सुरगिर महागिरि गुण नरियो । वलि पुन्यरासि मन धरियो । गि० ॥३॥ वलि श्रीपत परबत सुखकारी । वलि इंद्र प्रकास ते चितधारी। सास्वत ए गिरवर बलिहारी ॥ गि०॥ ४॥ दृढसक्ति मुक्तिनिलो कहिये । अरु पुष्पदंत मन सरदहियै । महापद्म सुठाम सदा कहियै ॥ गि०॥५॥बलि पृथ्वीपीठ सुन्नद्र वारु । कैलास गिरि कहियै सुखकारु । पातालमूल नविहेतारु॥ गि० ॥६॥ वलि अकरम नामें एह जाणो । सर्व कांमद वलि मनमें आयो। गिर गुण गातां मन हुल साणो॥गि०॥७॥ए इकवीस गिरंद नामा । ध्यावो अवि