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श्रीसिधगिरी निन्नाणू प्रकारी पूजा. ७४१ जन तुमे सुखकामा। कहै सुमति सदा ए अनिरामागि०॥वाइति।काव्यं॥ देवा सुरेंद्र नर नागर मर्चितेभ्यः। पापः प्रणासकर भव्य मनोहरेभ्यः । घंटा ध्वजादि परिवार विनूषितेभ्य ॥ नित्यंनमो सिघ गिरींद्र जिनालयेभ्यः॥१॥ उक्षी श्री परमात्मने अनंतानंत ज्ञानसक्तये जन्म जरामृत्यु निवारणाय श्री विमलाचल तीर्थ स्थित जिनेंद्राय ध्वजां यजा महे स्वाहा ॥ पचरंगी धजा चढावै ॥ इति ध्वज पूजा॥8॥
॥ ॥ अथ दूसरी जल पूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ निर्मल जल कलसा जरी। पूजो श्रीजिनराय । पूजत अनुन्नव गुणलहै । पाप पंक मल जाय ॥१॥॥ ढाल ॥आज आयोरेन्बाह जीवडा नाच जिणंद आगै॥ ॥आज हरख धरी गिरवर पूजन करियैरे॥ प्रा०॥ कलस अठोत्तर सो मनरंगानिरमल जल जरिये अतिचंग ॥ प्रा०॥ गंगादिक तीरथना जाण । अवर सुजल पूजो जग जाण ॥ आ० ॥इणपर न्हवण करो जिनराज । नवियण सारो वंचित काज॥आ० ॥णगिर ऊपर
षन जिणंद । समवसरया नवियण सुखकंद ॥०॥२॥महियल मोटो 'ए गिरि जाण । नवियण नेटो सुखनी खाण ॥ आ०॥कंकर २ साधु अनंत सिघ थया नाष्यो जगवंत ॥ आ०॥३॥ हिव सुणज्यो सगलो अधिकार । चित थिर राखी करो गुण धार ॥ ० ॥ मन तन नलस सुणतां एह । तत खिणपावै करमनो नेह ॥०॥पातिक टाली पूजो देव । जिम मुख पावो नित्य अह ॥०॥महियल.मोटो ए गिरराय । श्री मुख नाखे श्री जिन राय ॥ आ०॥५॥ प्रथम अजित सोलम प्रनु ध्यांन । करके पूजो गिरराजा न ॥ आ० ॥ इणपर सुमति कहै हित आण। जिनपद सेव्यां कोड कल्याण ॥श्रा०॥६॥ काव्यं ॥ देवा सुरेंद्र नर नागर मर्चितेभ्यः, पापः प्रणा सकर नव्य मनो हरेभ्यः । घंटाध्वजादि परिवार विनूषितेभ्यः । नित्यं नमोसिद्ध गिरींद्र जिनालयेभ्यः॥ १ ॥क्षी श्री परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्री विमलाचल तीर्थाय जलं यजा महे स्वाहा।। शति जल पूजा॥२॥ ॥
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