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रत्नसागर. नीर । नीर ऊररररररर ॥ नेम ॥३॥ शिवराज कहे नेम राजुलें रे। कर्म रूपी फाड्या चीर । चीर चररररररर ॥ नेम० ॥ ४॥ इति॥ ॥॥
॥ पुनः होरी राग टप्पो॥॥ ॥ ॥ गिरिराजकू हमारी वंदनारे । जिनराजकू हमारी वंदनारे ॥ जव पुःख वारण शिवमुख कारण । देखत जव नहीं फंदनारे। गिरि०॥ ॥१॥ नाजिराया मरु देवीको नंदन । प्रणमुं रुषन जिनंदनारे॥ गिरि० ॥२॥निशि वासर प्रनु ध्यान तुमारो । जिम चातक दिल चंदनारे ॥ ॥ गिरि०॥३॥ चतुर कुशल कहे शरण तुमारो। सिधगिरि कर्मनिकंद नारे॥ गिरि०॥ जिन ॥४॥ ॥॥... ॥ ॥
॥ॐ॥ पुनः राग होरी॥ * ॥... ॥ ॥ दरशन कीयो आज सिखरगिरिको ॥ दर० ॥ देख्यो मधु बन शीता नालो। ताको नीर वहेछे अति नीको ॥द० ॥ १ ॥ वीश को शथी. दरशन दीगे। नागो नरम सकल जियको ॥द०॥२॥ वीशे टुंके वीश गोमटमी । तामें चरण जिनेसरको ॥द०॥३॥ अब जिनवरके शरणें आयो। रसतो पायो मुगति पदको ॥द०॥४॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ पुनः होरी ॥ * ॥ ॥ ॥ सिघ गिरि जीको दरशन करले ॥ संघ यात्रा । संघयात्रा करनेसें पाप कटत है। सिच० ॥ (आंकणी) कोटि अनंता इन गिरि सिधा । ताकुं शीश नमय ले ॥संघ०॥ ॥१॥रिखन जिनेश्वरजीको दरशन । शुध आतम पावन करले ॥ संघ० ॥ २ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । जव नवका दुःखहरले । संघ० ॥३॥ इति ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ पुनः होरी ॥ ॥ * ॥ मेरो चेतन खेले होरे । असी होरी । आज बरजोर रही। मेरो० ॥ मन कर मोज प्रेमकर पाणी। करुणा केशर घोरी॥ प्रेसी०॥१॥दया मिठाई तप बहु मेवा। समरस विमल कटोरी ॥ ऐसी० ॥२॥ गुरुके बचन वारी मृदंग वजतहे । दे मफ झान कटोरी ॥ ऐसी० ॥३॥ दान कहे सुमता सखीयनसें । चरण रहो जुग जुग जोरी ॥ ऐसी०॥४॥इति ॥॥