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२४ जिनचे स्त० थुई,चौमाशी देववंदन. मरु देवी सर हंस ॥ ललना ॥ षनदेव नित वदियें । ज्ञान विमल अवतं साललना॥॥५॥ इति श्रीषन जिन स्त॥१॥ ॥ ॥
॥ पी जय वीयराय अ| कह । एक खमासमण देई । इना श्री अजितनाथजी आराधनाथ चैत्यवंदन करुं ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्री अजित नाथ चैत्य वंदन॥॥
*॥ शुदि वैशाखनी तेरशें । चविया विजयंत । माह शुदि आठमे जनमिया । बीजा श्री अजित । माहशुदि नवमें थया । पोषी इग्यार स । नज्वल नज्वल केवली । थया अन्य कृपारस । वैशाख शुक्ल पंचमी दिने ए। पंचम गति लह्याजेह । धीर विमल कविरायनो । नय प्रणमे धरी नेह ॥२॥ इति ॥ परी नमोत्थुणं अरिहंत चे कही । एक नवकारको कावसग्ग करके । थुईकी गाथा कहै (इसी तरै सब ठिकाणे विध करवो)॥
॥ॐ॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥१॥ * ॥ अजित जिन पतीनो। देह कंचन जरीनो। नविकजन नगीनो जेहथी मोहलीनो । हुँ तुज पदलीनो । जम जलमांहे मीनो । नवि होय ते दीनो । ताहरे ध्याने पीनो ॥१॥ इति अजित नाथ थोय ॥२॥
॥ ॥ अथ श्री संनवनाथ चैत्य वंदन ॥ * ॥ ॥ ॥ सत्तम ग्रैवेयक थकी । चविया श्री संत्रव । फागुण शुदि आ उम दिने । शुदि चनदसी अनिनव ॥ १ ॥ मृगशिर मासें जनमीया । त णी पूनम संजम। कार्तिक वदी पंचमी दिने । लहे केवल निरूपम । पंच मी चैत्रनी कजली ए । शिव पोहोता जिनराज । ज्ञान विमल प्रनु प्रणम तां। सीफे सगला काज ॥३॥इति चैत्य वंदनं ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ ॥ जिन संभववारु । लगने अश्वधारु । जवजलनिधि तारु । काम गद तीव्र दारु । सुरतरु परिवारू । दूसमाकाल मारू । शिव सुख किरता रु। तेहना ध्यान सारु॥१॥ इति थोय समाप्त ॥३॥ ॥ ॥