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रत्नसागर.
॥ ॥ अथ अनुभव पद मिगरी जि० ॥ ॐ ॥
॥ ॥ साहब अदालत पर बैठ । श्रीपारश प्रवीण चैन उत्तम चला ए है । शील है सिरदार और दान है दरोगा जाकै दयारूपी वारण सत्त श्रावण पर आए है । ग्यान है चपरासी ताको लग्यो है मोहोस ताकी मालजामनी में श्री जिनवरजी लिखाये है। रोसकी रसुम और कमीसन लगे. कर्मन मोहको म्याद इस तार लटकाए है ॥ १ ॥ बैठके लिखेगा जब जी की जुबानबंदी तबके कुछ स्वाल जबाब सत्तगुरने बताए है। बोम का रसाजी पायो पकमयो अरिहंतजीको अनुभवपद पायवैकी निगरी करा य लाए है। अब तो दरकास मैनें करी है तुमारे पास साहब जिनराज अरज मेरी सुजीजीयै ॥ अष्टकर्म आ जाम करत है कारसाजी साह ब बुलाय इसके पिसे मान कीजीये ॥ २ ॥ में तो हूँ गरीब मेरी करेगा नुकीली कोन | पारश प्रवीण मेरी मिसल प्राज कीजीये । हारुं तो हाजर हजूर हीमें रह्यां करूँ । जीतूं तो लगाय जुगल चरनमें लीजीयै । अवतो फरीयाद नाथ करी है तुमारेपास मेरी दाद दीजिये तो रावरी बाई है । मुनसबकी बात और मामलत अदालतकी अबतोमें फिलमान अरजी लगाई है। झूठ मूठ कारसाजी करत है पांच तीन साचो मत जैन जा की अधिकाई है । मेरे ही पांच लोक मोहीकों झूठावत है ॥ जातेमें ग्वाही श्री जिनराजकी लिखाई है । बोन कारसाजी पायो पकड्यो रिहंत जीको अनुभव पद पायवैकी मिगरी कराय लाए है ॥ ॥ इति अनुवपद पाकी मिगरी संपूर्णम् ॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ उपदेशरूप लावणी ॥ * ॥
॥ * ॥ सुकृत की बात तेरे हाथ । रतीनां रही रे ॥ रतीनां० ॥ पुदग में मान्यो सुख । कलपना कहीरे ॥ सुकृत• ॥ जुग मांहे जैन निज सार | संघातें प्रावे ॥ संघा० ॥ इसकुं तज कर कयुं बेठो | विषय गुण गावे । अमृतकुं लगो ढोल । विसन विषखावे ॥ विसन० ॥ मुग तिको मारग मेट | नवटमें जावे । थारी तु जिंदगानी मांहे । विकल बुद्धि नईरे ॥ विकल० ॥ पुदगल० ॥ १ ॥ थारे धन दोलत जंकार जरया हे