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सीमंधर जिन चैत्य स्तवन.
१२९ नो कानसग्ग करी । मंगल निमित्तें लोगस्स कहै । जे साधु श्रावक आत्मा र्थीहुवे । ते ए हेतु समजी । विधि पूर्वक नपयोग सुं पमिक्कमणो करै। ते लीलायें नवसमुद्र तरै । सिधि संपदा वरै॥ ॥आवश्यक वृत्त्यादेः। प्र तिक्रमण हेतवः। निबघा नाषयोघृत्य । साधु श्राघादि हेतवे ॥१॥ वा चकामृत धर्माणां । शिष्यणात्म हितेना ।कमाकल्याण गणिना ।वीका नेर पुरे मुदा ॥२॥ इति प्रतिक्रमण हेतवः संपूर्णम् ॥ ॥
॥ ॥ श्री सीमंधरजिनचैत्यवंदन ॥॥ ॥ जयजय त्रिनुवन आदिनाथ पंचमगति गामी ॥ जयजय करुणा शांतिदांत विजन हितकामी ॥ जयजय इंद नरिंदवृंद सेवत सिरनामी। जयजय अतिशय नंतवंत अंतर गति जामी ॥१॥ पूर्व विदेह विराजताए। श्री सीमंधर स्वामि । त्रिकरण सुध त्रिहुंकालमें । नित प्रति करूं प्रणाम ॥२॥ इति॥ ॥
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॥ ॥ ॥ * ॥ अथ सीमंधरजिनस्तवन॥७॥ ॥ पूर्वविदेह पुखलावती । जयोजगापतीरे । श्रीसीमंधरस्वामि प्रहसमनित नमुरे॥१॥ जगत्रय नाव प्रकाशता। नविप्रतिवो धतारे। नपगारी अरिहंत ॥ प्रह० ॥२॥धन्यनयरी धन्यते नरा । धन्यते धरारे ॥ बिचरै जिहां जिन राज। प्र०॥३॥धन्य दिवश धन्य तेघमी । देखKांखमीरे । जतिवडल जगवंत । प्रह° ॥४॥ महरनिजर अवधारजो। पतितन्धारजोरे। जिनहरख घणे ससनेह । प्रहसम नितन मुंरे॥५॥ ॥ इति पदम् ॥
॥ॐ॥ पुनः॥ * ॥ ॥श्रीसीमंधरसाहिबा । वीनतमी अवधारलालरे । परम पुरुष परमेसरू। आतम परम आधारलालरे०॥ श्री० ॥१॥ केवल ग्यान दिवाकरू । नांगे सादिअनंत लालरे नासक लोकालोकको । ग्यायक गेयअनंतलालरे॥श्री० ॥२॥ इंद्रचंद्रचक्कीसरू । सुरनर रहे कर जोम लालरे । पदपंकज सेवे सदा । अणहुंतें इककोम लालरे॥श्री०॥३॥ चरणकमल पिंजरवसे । मुऊ मन हंस नितमेवलालरे । चरणसरण मोहि आसरो । नवर देवाधिदेवलालरे॥