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श्री शांतिपूजाविधि. शांति शुध आती होय। जब तो गुरूकेसाथे, अपनें मनमें साते स्मरण 'शांतिगुणे (ओर) नहि आवे सो सर्वसंघ नवकार मंत्र गुणता रहै ॥ साते स्मरण (तथा)शांति गुणें जहांतक अखंम ऊपरले गेटे कलशेमें धारा देता रहै । जीककोई न करै । कोई आपसमें अन्य संसारी कथा न करै ॥ साते स्मरणादि संपूर्ण सर्व गुणचूके (पीछे ) तीन तीन नवकार गुणके कलश धरै (पीने ) नीचेका कलशमेंसें । जिन प्रतिमाकों निकालके अहीतरे अंग लूणा करके केशर पुष्पादिकसें पूजा करै ॥ नगवानकी अही अंगीरचना करावे । नानाप्रकारका नेवेद्यफल चढाके। आरती उतारै। मंगलदीप करे ॥ पीने शांतिजल सर्बसंघ लगावे । घरमें लेजाके गंटे। शांतिपूजाकी मोली गुरूकेपास लेके राखमी बांधे ॥ ( इससे ) संपूर्ण संघमें नगरमें, देशमें, मरी आदिक सर्व रोग दोष दूर होके शांति होय । अनेक प्रकारसें रुघी वृधी सुख शौजाग्यकों प्राप्त होय ॥ (पीओ) जो आधा बलिवाकुल परातमें रखा हुवा है । सो लेके पूर्ववत् स्नात्रिया गुरूकेसाथ मंदरऊपर जाके दश दिग्पालकों विसर्जन करावै ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ दशदिग्पाल विसर्जन करनेकी विधि पूर्ववत् जाणनी इतना विशेष है (कि) आगह २ के ठिकाणे गढ २ कहै ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ (यथा) नमो इंद्राय। पूर्वदिग् अधिष्टाय काय । ऐरावण वाहनाय । सहस्र नेत्राय । वज्रायुधाय । सपरिकराय । अस्मिन् जंबुप्रीपे अमुक नगरे । अमुक मंदरे । अमुक महोडवे । सर्वोपद्रवाबलिरद २ गड गड स्वाहा ॥ पूर्वदिशकीतरफ ॥न इंद्रायनमः॥१॥ ( अग्निकूणे )॥3 नमो अग्निमूर्तये । शक्तिहस्ताय सायुः । सवा० । सप० । अस्मि० अमु० । सर्वोपद्रवाबलिरक २ । गढ २ स्वाहाः॥ इति ॥ (दक्षिणदिशे)॥ नमो यमाय । दक्षिण दिगधिष्टायकाय । महिषवाहनाय । दंग आयुधाय । कृष्ण मुर्तये । सायु०। सप० । अस्मिन्छ । सर्वोपद्रवाबलिरव २ गड २ स्वाहाः ॥३॥ इति ॥ (नेश्तकूणे)॥ नमो नैश्ताय । खमगहस्ताय । सायु सवाहनाय । सप० । अस्मि । अमु० । सर्वोपद्रवाबलिरद २ गत २ स्वा हाः॥ ४॥ इति ॥ ( पश्चिमदिशे), नमो वरुणाय । पश्चिमदिगधिष्टा