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. ११ गणधर, नवकार, सर्व तपग्रहण विधि. ४३५ ॥ यह (११) गणधर । नगवंत श्रीमहाबीर स्वामी के पास अर्थ शुणकै । सर्ब सूत्रके रचना करने वाले नए । ( इसी में ) सर्व नव्यजी व । परम मङ्गल जानकै । यह तपस्या करै । शुध नावसे गणधरपद आ राधन करै । गोतमरास सुणें । पूर्ण होनेसें । गणधर महाराजकी पूजा करै । आचार्यादिककी भक्ती करै । ( यथाशक्ति ) परमान्न भोजनसें सा हमी बहल करै ॥ इति एकादश गणधर तपविधिः॥॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नवकार तपविधि लि०॥ ॥ ॥॥शुन दिन गुरूके पास नवकार तप ग्रहण करै । जिस पदका जितना हरफ होय । इतनाई नपवास करै। नसी पदको (२०००) गुणनो करै । ( सो लिखते हैं)॥
१॥णमो अरिहंताणं । नपवास ॥७॥ २॥ णमो सिघाणं । नपवास ॥५॥ ३॥ णमो आयरियाणं । नपवास ॥७॥ ४॥ णमो नवशायाणं । नपवास ॥७॥ ५॥णमो लोए सबसाहूणं । नपवास ॥९॥ ६॥ एसो पंच णमुक्कारो। नपवास ॥८॥ ७॥ सबपावप्पणासणो। नपवास ॥८॥ ८॥ मङ्गलाणंच सबसि । नपवास ॥८॥
९॥ पढमहवइ मङ्गलं । नपवास ॥९॥ ॥॥ ऐसें नवकार मंत्रका । ६८ नपवास करै । (किंकप्पत्तर रेअ याण०) इत्यादि नवकार मंत्रका फलगर्षित स्तवन सुणे (सो) पूर्व लिख्यो है । तप पूर्ण होनेसें । यथाशक्ति नवपदको नबव करै। (यह) नवकार मंत्र १४ पूर्वको सार नूत है । जो नव्यजीव शुधनावसे सेवन करेंगे (सो) अनेक सुखकों प्राप्त होंगे। इति नवकार तपविधि संपूर्ण ॥ ॥ ॥ अथ सबै तपस्या प्रथम गुरुके पास ग्रहण
. करै (सो) विधि लि०॥ ॥ ॥ * ॥ ( प्रथम ) ५ साथिया करें । ( नमंत० ) यह गाथा