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रत्नसागर. जा करै हाय हायरे॥सु०॥जस्म हुसी इण आगोरे लाल । राम कर अन्यायरे ॥ सु०॥४॥राघव बिन बांग्यो हुवैरे लाल । सुपनेंही मन कोयरे॥सु०॥ तोमुफ अगनि प्रजालज्योरे लाल । नहीं तो पाणी होयरे सु०॥५॥इम कहि पैठी आगमेरे लाल । तुरत अगनि थयो नीररे॥सु०॥ जाणे द्रह जलसुं नरयोरे लाल । फीलै धरम सुधीररे ॥ सु० ॥ ६ ॥ देव कुशम बरषा करैरे लाल । एह सती सिरदाररे॥ सु० ॥ शीता धीजै ऊतरी रेलाल । साख नरैसंसाररे॥सु०॥७॥रलियायत सहुको थयारे लाल। सगलै थया नगरंगरे ॥ सु० ॥ लखमण राम खुसी थयारे लाल। शीता शील सुरंगरे॥सु०॥८॥ जगमांहें जस जेहनोरे लाल । अविचल शील कहायरे॥सु०॥ कहै जिन हरष सती तणारे लाल । नित प्रणमी जै पा यरे ॥ सु०॥९॥इति शीतासती सिशाय समाप्तम् ॥8॥ ॥ॐ॥
॥ॐ॥ अथ अनाथी कृषि सिशाय लि० ॥ॐ॥ __॥श्रेणिक रय वामी चढ्यो । पेखियो मुनी एकंत । बर रूप कां तै मोहियो । राय पूरे कहै रे बिरतंत ॥ १॥ श्रेणिकराय हुरे अनाथीनि ग्रंथ । तिणमें लीधोरे साधूजीनो पंथ ॥ (श्रे०)॥ इण कोसंबी नगरी वसें । मुमपिता परघल धन्न । परवार पूरै परवरयो । हुं तेहनोरे पुत्र रतन ॥श्रे०॥२॥इक दिवस मुफ वेदना। ऊपनी ते न खमाय । मात पिता सहु झूरी रह्या । तोही पिणरे समाधि न थाय ॥ श्रे० ॥३॥ गोरमी गुणमन नरमी । नरमी अबला नार । कोरमी पीमामें सही । नही कीधीरे मोरमी सार॥श्रे०॥४॥बहु राज बैद्य बुलाया। कीधला कोमिन पाय । बावना चंदन लेपिया। पिण तोहीरे दाह नविजाय ॥श्रे० ॥५॥ बेदना जो मुफ उपसमें । तो ले, संजम नार । इम चिंतवतां वेदन गई बत लीधोरे हरष अपार ॥श्रे०॥६॥ जग मांहि को केहनो नही । तेन णी हुँरे अनाथ । बीत रागनो धरम बाहरो। कोइ नहीरे मुगतिनो साथ श्रे॥७॥ करजोमी राजा गुणस्तवै । धन धनतूं अनगार । श्रेणिक सम कित तिहां लहै । बांदी पुंहचैरे नगरमकार ॥ श्रे०॥८॥ मुनिवर अनाथी