________________
वारै व्रतकी पूजा
६८१
॥ ॥
11 11
॥ ॐ ॥
दारो | प्र० ॥ २॥ इम नानाविध कुशम घटा करि । नाव विमल जलकारो तोजहियै प्रविजन ध्रुव करिनें। अचिरथकी नवपारो । प्रजुः ॥ ३ ॥ व्रत धर फूल कलाप रुचिर ग्रहि । पूज तजे जगतारो । कपूर कहत जिन चर सरण लाहि । करम सबल दल मारो | प्रभु० ॥ ४ ॥ इति ॥ काव्यं ॥ गंधामलादि गुण लक्षण लक्षिते । पुष्पोत्करै रखिल गुंजित चंचरीकैः ॥ संसेवये द्विविध जाति समुद्भवैर्या। जैनेश्वरं व्रजतिसोह्य चिराच्छिवना ॥ १ ॥ ॐ श्री परमात्मने अनंतानंत जन्म० श्रीमति दिशि परमाण व्रत उपदेशकाय पुष्पंयजामहेस्वाहाः इति दिशि परमाण व्रत सातमी पूजा ॥ ४ ॥ * ॥ ॥* ॥ थाग्मी अष्टमंगलीक नोगोपयोग व्रतपूजा ॥ ॥ ॥ ॥ जगनायक पदकमलमें । धरियै करि मनरंग | जोग ने नप जोगनो। एसहुबत गिरिशृंग ॥ १ ॥ ॥ सिधचक्रपद वंदोरे | विकासि ए चाल ॥ ॥ सकलसचित्तनें द्रव्यविकृती । बाहन बलि तंबोल । वसन कुशम दल पानहि तिमवलि | सयण विजेवण घोलेरे। नविका । इण व्रतमें मनमंको। शिवसुख रयण करंमोरे । नविका । इ० ॥ १ ॥ ब्रह्मचार्य दिशि न्हाण जत्त इम । नियम चतुर्दश माल । प्रतिदिन नाव हृदयधरि करियै । एहनी सार संजालरे । नवि० इण० ॥ २ ॥ तिमही न करोत्तर त्रिंशत। अ खिल विपुल महिकंदो । कालखीण सहु द्रव्य प्रजाएयो । फल निशिनो जन दोरे | ज० ॥ ० ॥ ३ ॥ विविध अप्पोल डुप्पोल विनेदै । प्रशना रंत्र विशाल । इंगालादिक करण करावण । कर्मादान कुचालरे । ज० ॥ ४ ॥ इ० ॥ एवंमै ते शिवसुखमं । खं कुगति दुकाल । सहजानंद शस्यसुख ai | प्रवदै त्रिजगपालरे । ० । इ० ॥ ५ ॥ इण व्रतकरि चितमंदिर मरियै । तरियै नवजलपार । अनभव चंद्र सुधा ऊडमं । कुशलकला निर धाररे । न० इ० ॥ ५ ॥ इति०
॥ *॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ मंगलपूजा अष्टमी । करमदलन प्रसिधार । करिये श्रीजिनराजकी । वरियै शर्म अगार ॥ १ ॥ राग ठुमरी ॥ * ॥ तुमविन दीनानाथ दयानिधि कोनखबरले मेरीरे । तु० । ए चाल ॥ न
රදි