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६८० रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. नि करमतणी हरै। दायक शिवसुख चंग ॥१॥ राग देसाख ॥ प्यारी निववरणी न जाय । प्यारी । थारै मुखमारी हो वारीराज । प्या॥ ए चाल ॥ ऐसी विधि पूजन नाई दिलधार । धूप धूम धनसार धार करि। ऐसी० । टेर॥ या नवनीम वारिसागरमें । तरस तरंमक तरल विचार । धूप० ॥१॥ चंदन देवदारु बलि अंबर । मृगमद गंधवटी घनसार । धूप० ॥ २ ॥ ऐसें सुरनिद्रव्य बहुमेली। तिणमें सेव्हारस नविसार । धूप० ॥ ३ ॥ म णियुत कंचन धूपदानमै । बिमलानलथी करि सुप्रचार । धूप० ॥ ४ ॥ क पूर करत नुतिया जिन पूजा । नविजन गणकी तारणहार । धूप० ॥ ५ ॥ काव्यं ॥ नानासुगंध वसुनिर्मित सारधूपं । चाकर्षितं भ्रमरबंद मतिर्हियेन ॥ श्रघाश्रये विधि निवेश्य बिशालनक्त्या । धूपे जिनाधिपतिनं शिवदं मुदावै ॥१॥नशी श्री परमात्मने अनंतानंत श्रीमजिज परिग्रह प्रमाण व्रत उपदेशकाय धूपं यजामहेस्वाहाः इति परिग्रह प्रमाण ब्रत बही पूजा ॥६॥ ॥ ॥अथ सातमी दिशपरिमाण व्रते पुष्प पूजा ॥१॥
॥ ॥ दूहा ॥ बहो व्रत दिशमानको । गमनागमन निवार । अकुश लता सवि नपशमै । श्रेयसंपजै सार ॥१॥रागगरबो। सिघाचलममण स्वा मीरे ॥ ए चाल ॥ * ॥ श्रीशिवमुख संपति वरियैरे । नवनय उखवार ण करियै रे । करिदिशि परिमाण जेचरियै । रसीला नाव विमल दिल धरियैरे। वाल्हा परियै तो समरस नरियै । र० ॥१॥अध ऊर्धनें तीरन वखाणोरे। दिश विदिशनें तेम प्रमाणोरे। ए ने संकट जलधिनोराणो॥रसी० ॥२॥ एमां गमनागमन निवारैरे । ओ7 कुमति पुरति जरतारोरे । इकच की लह्यो उखन्नारो। रसी० ॥३॥ ए व्रत शिवसाधन चंमोरे। तुमे नविजन एहन खमोरे । कहै कुशलकत्ता नितमंमो । रसी० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ नवियण पूजा सातमी । कीजे नक्ति विशाल । ससुरनि नाना जातना । विमल कुशम जरथाल ॥१॥ * ॥रागधन्याशरी ॥ कबहुमें नीके नाथन ध्यायो॥क एचाल। प्रनुजीकी फूलै पूजन सारो।प्र०॥टेर॥श्रीजिन जीके चरणकमलमें । अलि समता गुणधारो। प्रनु०॥१॥ चंपक कुंद गुलाब केवमा । पारधिनाग कलारो । जासु दमण वासंति मोगरा । पारुल लाल में