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________________ धूलेवानाथ बडी लावणी. ४९७ ए फीरंगाण | नंठां जर साथ लीये कोकवाण । तवां बहु लोक कहे महा राज | नही इह कारन कृत्य काज ॥ ३ ॥ ए तोबह जाजल देव कहाय । रहे नहीं लाज तिहांरिय कांय । तवां फिर बोले सदाशिव नूप। ग्रहुं सब माल अब चढी चूप ॥ ४ ॥ इसो कहि प्रावत पुष्ट करूर । कीयो नजराणह नाथ हजूर । रख्यो नहीं नाथ तवां नजराण। यो मन चक्कित मान गिलाण ॥ ५ ॥ तवां मन चिंत जंकारी बुलाय । मीठे वच बोल सबे ललचाय । लई संग प्राय मुकाम मकार । कियो तब कूच लई सब लार ॥ ६ ॥ करे तब गाम पुकार पुकार । जंकारि सबेय प्रकार पुकार । करो अब बाहर नाथ दयाल । गयो कहां गरीब निवाज । चढो व वाहर राखण नाज ॥ ७ ॥ * ॥ || * || FET || | || ॥ * ॥ न समें कोक शेठको । वहा तारण काज । गये अधि ष्ठायक नाथजी । नेरुं गए वहां गाज ॥ १ ॥ सुणो अरज पृथ्वीनाथजी । सहेर धूलेव मकार । किमो प्रकारज पुष्टनें। शीघ्र चलो जन तार ॥ २ ॥ आए तुरत महाराजजी । करवा जन संभाल । दो घोने दोनुं चढे । नेरुं अरु प्रतिपाल ॥ ३ ॥ लि कोप पें कियो । दश दिशि फोज हजार मार मार चौतरफ। नई लगाई त्यार ॥ ४ ॥ ॥ ॥ ॥ *॥ ॥ ॥ भुजंगप्रयात बंद ॥ ॥ ॥ * ॥ कुकू कुकू कुकू वहे कोक बाणं । सणहाँ सणां तीर तरकस्स वाणं । धुबाके धमाके वहे नाल गोला । जिसा कर्कसा जम्मरा नयण मोला ॥ १ ॥ कितें अंग शस्त्ररा घाव लागे । कितें मारथें कंपते दूर जागे । कितें दंतपें तिरण लेवें वराका । कितें थरथरे त्रास होवें निराका ॥ २ ॥ किते रसुवा इलला पुकारे । किते दीन होके खुदायें संचारै । किते नाथपें केशरां खून माने । किते नाथकुं जागती जोत जाने ॥ ३ ॥ सदाशीवने घाव लग्गो टारे । पुनी जान जशवंत दोनुं संहारे । बनो को प जानी सबे फोज नाजी । हुइ केशरी नाथकी जीत बाजी ॥ ४ ॥ स दाशीवने प्राखडी टक लीनो । सवापांचशे रुकमरो खून दीनो । इसो नाथ धूलेवरो मर्द गाजी । सदा केशरा नाथरी जीत बाजी ॥ ५ ॥ ॥ ६३
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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