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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ॐ॥अथ कलश पूजा (राग धन्यासरी)॥8॥ ॥ॐ ॥ नवितूं जण गुण जिनके सब दिन । तेजतरण मुखराजै । (ते) कवितशतक आठ थुणत सक्रस्तव । थुय २ रंगै हमगजै। (नवि०१ ) अ रणहल पुर शांति शिव सुख दाई । नवनिधि सिधआवाजै । सतरसुपूज सुबि ‘ध श्रावक की । नणीमें गति हितकाजै (ज०२) श्रीजिनचंद्रसूरि खर तरपति । धरम वचन तमु राजै । संवत सोल अढार श्रावणधुरि । पंचमि दिवस समाजै (०३) दयाकलशगुरु अमरमाणिक्यवर । तासुपसायै सु विध हुइ गाजै ॥ कहे साधु कीरत करत जिन संस्तव । सब लीला सुख साजै (नवि० ४)॥ ॥ इति सतरनेदी पूजा समाप्ता॥ ॥
॥ ॥अथ प्रारतीकरण विधि लि०॥॥ ॥ ॥ पूजाकियां पीछे। सब कपमा । पाघ प्रमुख पहरकै ॥ उत्तरास "ण करै। पीठे प्रनू सन्मुख । अन्तर पट करी । आपकै निलाडे कुंकूको ति
लक करै । पीने पट दूरि करि । रकेबीमें साथियो करे । मांहि रूपाना 'यो । चावल सुपारी धरे । पी आरती दीपकसुं संजोयनें प्रचुके सन्मुख दक्षिण आवर्तसुं । वाजिब सव बाजतां । आरती करै । मुखै पढे ॥१॥
॥ ॥अथ प्रारती लि० ॥॥
॥ जैजै आरती शांति तुझारी । तोरा चरण कमलकी में जाऊं ब लिहारी ॥ (जैजै०)१॥ विश्वसेन अचिराजीके नंदा । शांतिनाथ मुख पूनमचंदा ॥ (जैजै०२)॥ चालीस धनुष सोवनमें काया। मृगलंगण प्रनु चरण सुहाया॥ (जै०)॥३॥ चक्रवर्ति प्रनु पंचम सोहै । सोलम जिन वर सुर नर मोहै ॥ (जै०) ४॥ मंगल आरती नोरहि कीजै । जन्म जन्म को लाहो लीजै ॥ (जै०)॥ करजोमी सेवक गुण गावै । सो नर नारी अमरपद पावै (जै०) ५॥ ॥ इति श्री आरती संपूर्णम् ॥ * ॥
॥॥अथ श्रीसिद्धचक्रजीकी बमी पूजा॥॥ ॥ ॥ नवपद जीकी महिमा संयुक्त पूजा लिखिय है ॥ * ॥ (दूहा) ॥ ॥ परम मंत्र प्रणमीकरी । तासधरी नर ध्यान । अरिहंतपद पूजा क रो। निज २ सक्ति प्रमाण ॥१॥ ॥ (काव्य) नप्पन्न सन्नाण महो