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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
करे | पंचवर्णा सुगंधी फूलांकी वर्षा करे । नाना प्रकारका वाजित्र वजावे केवल ग्यान कल्याणककी मीठा स्वरमें पांच पूजा गावे ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ शांतिपूजा विधि लि० ॥
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॥ * ॥ शुभ दिन शुभ महुर्ते जिन मंदरमें समोसरणपर जिन प्रति मा स्थापन करावे (आगे) पंच परमेष्टी पट्ट स्थापन करे ( तथा ) जम वानके दहिर्णेपासे दश दिग्पाल पट्ट (और) वामपासे नवग्रह पट्ट स्थापन करे ( पीछे ) एक मोटा, एक बोटा, तांबे, पीतल, मट्टी प्रादिकका हंगा ऊपर खमी सपेद मिट्टी पोतके, चार चार केशर कुंकुका साथिया करें ॥ पीछे ऊंची नींची दोय टिंवची काठकी धरावे । नींची टिवचीपर मोटा हंगा धरे। ऊंचीपर छोटा हंमा धरे । छोटा हंमाके तले एक छिद्र करे | दोनुं मट काके जीतर साथिया करे ।। वमा मटकाकी टिवचीके नीचे । चावलका सा थिया करके | ऊपर नालेर रुपियो थापनाको घरे || दोनुं मटका ऊपर मोली सुत्रवटके पंचरंगी खजली | एकेक खू २१ इकीस पोकर । चारुं खुणे ८४ खजली पोके तणी बांधे ॥ नालेरके आकार मोली सुत्रको दमो नीचला मोटा हंगामें लटकतो रखके। ऊपरकी मोली बोटा हंमाके बिद्रमें पोकर, ऊपर जो चोखुंणी तणी बांधी हे । जिसके बीच में गांठ देवे (पीछे) जो संघ संमुदायकी तरफसें शांतिपूजा होय ( जबतो ) मंदरको कलश लेवे (और) एकजनकी तरफसें होय । ( तब ) शांतिकारकके गृह सेती सधवत्री, जिसका । माता, पिता, सासू, सुसरा, चारेमाईत जीता होय जिस स्त्रीकुं वा वस्त्र आभूषण पहरायके, कलशके मांह, कुंकु केशरको साथियो करके चावल, सुपारी, पंचरत्नकी पोटली धरके । मुखपर नालेर १ ढकणें माफक लगाय, कसुंबल कपको मोली सेती बांधे । ऊपर चार साथि याकर पूर्वोक्त खीके मस्तकपर रखके । गीतगान पूर्वक नानाप्रकार वाजित्रादि नवसहित जिनमंदर में जावे ॥ समवसरण के सन्मुख चावलांको साथियो करके । ऊपर कलश थापन करे | ( पीछे ) पांच दश जणा द्रव्ये नावे अपना अंग शुद्ध करे ॥ गुरूकेपासे केशर मंत्रायके तिलक करे ॥ दहि हाथके मोली कांकणमोरा मंत्रायके बांधे ॥ नँ परमेष्टी नमस्कारं० ॥