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श्री दादाजी स्तवन
८०१ . ॥॥अथ श्री दादाजीस्तवन ॥
॥ ॥ सजुरु करुणानिधान राखोलाज मेरी ॥टेरे॥ जैजै जिन कुशल सूरि । समरत हाजर हजूर । महकत जिम जसकपूर । महमाजगतेरी ॥स. ॥१॥ जापर तुमहोदयाल । जिनमें करदो निहाल । संकटकों चूरदेव । दोलतकी ढेरी ॥स०॥२॥ तुमहो सुरतरु समान । वंछित फल देवोदान। सेवगकों दीनजान । मेटोनवफेरी ॥स०॥३॥ सरण आयेकी राखोलाज। बंजित सब पूरोकाज । हरखचंद सरण आए। कीरति सुण तेरी ॥स०॥४॥ इति पदम् ॥१॥
॥अथ श्रीजिन कुशल मूरिजीको बंद लि०॥॥ ॥ ॥ समरु माता सरसती । कुमारी करजोग । कवि माता कवियण तणा । पूरै वंचित कोम॥१॥ कुशल करण जग कुशल गुरु। दायक वंगित
देव । अहनिसि तो नेलग करें । सुर नर सारै सेव ॥२॥ पुर पट्टण गांमें प्रगट । जग सगलै जस वास । पुरावदी तो पालियै । वसैसु दादो वास ॥६॥ (बंद मोतीदांम)॥दादो वास दियै दौलत्त । वधै नत्र गया सेवक वित्त । वधारै मांम दिसो दिसवान । धरै इक चित्त जिके गुरुध्यान ॥ ॥४॥ पूनम पूनम पूजै पाय । नवा नवा नैवज वार निपाय । चंपावलि केतकि फूल चरच । अनोपम श्रीफल लेई अरच ॥ ५॥ लहै घरि सुंदर लानि अह । सऊती सोल वधंती नेह । लहै घर नारी लोयण वांण । ल है घरपूत सपूत सुजाण ॥६॥लहै नलगांम सुगंम नृवाल । लहै ढिग मीत नला ढींचाल । लहै घर मंदिर घोडा जोमि । लहै नट सेव करै कर जोडि ॥७॥ लहै घर मेंगल मद्द मसत्त । लहै घर चीर अनोपम संत्त । लहै घर साजण हल्ला किलोल । लहै नितलीला गका गेल ॥ ८॥ लहै घरकुरला कूर कपूर । लहै घरजीमण मोतीचूर । लहै मनवंबित मोग वि शाल । लहै घर साल कचोला थाल ॥९॥ धुरै नित गीत तणा गह गट्ट । जणे नित जय २ चारण नट्ट । फलै पूत सपूतां बांकि फलंति । विगेहा वाल्हा वेग मिलंति ॥१०॥ अनेकानेक विरुद्द अपार । दीगे इक का व्हां तूं दातार । जीहां सहस्स हुवै जो मुक्ख । कहुं इक जीहां केई रु