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रत्नसागर.
पहिलो दीजै । रिधि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४५ ॥ धनमाता जिण नयरे धरियो । धन्य पिता जिए कुल अवतरियो । धन्य सुगुरु जिए दीखियो ए । विनयवंत विद्यानंकार । तसुगुण पुहवि नलम्नड़ पार । वमजिम सा खा विस्तरोए । गोयम स्वामिनो रास जणीजै । चनविहसंघ रलियायत कीजै । रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४६ ॥ कुंकुम चंदन बको दिरावो । माणक मोतियां चोक पुरावो । रयण सिंघासण वैसणो ए । तिहां बैठी गुरु देसना देसी । नविक जीवना काज सरेसी । नित नित मंगल नदय करो ॥ ४७ ॥ इति गोतमरास संपूर्णम् ॥ इति षट् रासः ॥
॥ ॥ * ॥ राग प्रजाती जेकरे । प्रहनगमते सूर । नूखा जोजन संप जै । कुरला करे कपूर ॥ १ ॥ अंगूठे अमृत बसे । लब्धितणा नंगार । जे गुरु गोतम समरियै । मनवंबित दातार ॥ २ ॥ पुंरीक गोयम मुहा । गणधर गुण संपन्न । प्रहऊठीनें प्रणमतां । चवदेसे बावन्न ॥ ३ ॥ खंति खमं गुणकलियं । सुविणियं सबलधि संपणं । वीरस्स पढमसीसं । गोयमसा मी नमसामी ॥ ४ ॥ सर्वारिष्ट प्रणासाय । सर्वानीष्टार्थदायने । सर्वलब्धि निधानाय । गोतमस्वामिने नमः ॥ ५ ॥
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॥ ॐ ॥ अथ स्तुति संग्रह ॥
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॥ ॐ ॥ पंच विदेह विषै विहरंता । वीस जिनेसर जग जयवंता । चरणकमल त नामुं सीस । ग्रहनिसि समरूं ते जगदीस ॥ १ ॥ पंचमे रु पासै जलकंता । सोहै बीस महा गजदंता । तिए ऊपरि बै जिल्वर वी स। ते जिवर पण निसि दीस ॥ २ ॥ गणहर कहिय दुवालसमंग | थानकवीस जण्या तिहां चंग । तिणकपरि जे प्राणै रंग । तेनर पा सुक्ख जंग || ३ || जिणसास देवी चनवीस । पूरै मुऊमन तणीजगी स। संघतणा जेविघन निवारै । ति प्रण जन मन वंबित सारै ॥ ४ ॥ ॥ ॐ ॥ इति वीसविहरमाणस्तुतिः ॥ २ ॥
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॥ ॐ ॥ अथ श्रीपार्श्वजिन स्तुति ॥ *
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॥ ॐ ॥ सम दमोत्तम वस्तु महापणं । सकल केवल निर्मल सदगुणं । नगर जेसलमेर विनूषणं । जति पार्श्वजिनं गतदूषणं ॥ १ ॥ सुर नरेश्वर