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... रत्नसागर. ४९॥ अति सरस आहार वर्जन ब्रह्म॥
५० ॥अति आहार करण वर्जन ब्रह्म॥ . ५१॥ अंग विजूषा वर्जन ब्रह्म
५२॥ अणशण तपोरूप चारित्रेभ्योनमः॥ ५३॥ कणोदरी तपो रूप चा०॥ ५४ ॥ वित्ति संखेव तपो रूप चा०॥ ५५॥ रस त्याग तपो रूप चा०॥.. ५६ ॥ कायकिलेस तपो रूप चा०॥ ५७ ॥ संलेखणा तपो रूप चा०॥ ५८॥ प्रायवित्त तपो रूप चा०॥ ५९॥ विनय तपो रूप चा०॥ ६०॥ वेयावच्च तपो रूप चा०॥ .. ६१॥ सिज्काय तपो रूप चा०॥ ६२॥ध्यानतपो रूप चारित्रेभ्योनमः ॥ .. ६३॥ नपसर्ग तपो रूप चा०॥ ६४॥ अनंत ग्यान संयुक्त चा०॥ ६५॥ अनंत दर्शन संयुक्त चा०॥ ६६ ॥ अनंत चारित्र संयुक्त चा०॥ ६७॥ क्रोध निग्रह करण चा०॥ ६८॥ मान निग्रह करण चा०॥ ६९॥ माया निग्रह करण चा०॥ ७०॥ लोन निग्रह करण चारित्रेभ्यो नमः ॥ ..
॥९॥ इस रीतसे (७०) नमस्कार करै । (खमा होके)। अन्नत्थू ससि एणं० (इत्यादि कहै ) (७०) लोगस्सका कानसग्ग करिके। एक लोगस्स कहै (पी) पूर्वोक्त करणी सब करै । इति अष्टम दिवस विधिः ॥ ॥
_* ॥ नवम दिवश विधि लि० ॥ ॥ ॥(क्षी णमो तवस्स ) इस पदको (२) हसार गुणनो करै।