________________
५०८
रत्नसागर.
| तेणें ॥ पशुबंधन सर्व तोमीया ॥ शु० ॥ ते सर्व गया वनमांहे || तेणें ॥ २ ॥ रूपचंद रंगें मख्या ॥ शु० ॥ प्रनु दीधुं वरसीदान ॥ तेणें ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ ढाल आग्मी ॥
॥ ॥ * ॥ राजिमती धरणी ढख्या ॥ मोरा वहालाजी || अवगुण वि दीनानाथ || हाथ नकाल्यो जी ॥ प्रांगण यावी पाठा वया || मोरा छत्री कुलमां लगावी लाज ॥ हाथ० ॥ १ ॥ तमें पशु तणी करुणा करी ॥ मोरा० ॥ तमने माणसनी नहिं मेर ॥ हाथ० ॥ आठ जव थया एकता ॥ मोरा० ॥ कीधा तुमशुं रंग रोल ॥ हाथ० ॥ २ ॥ नवमे नवें तमें नेमजी ॥ मोरा ० ॥ मुऊने कां मेली जान ॥ हाथ० ॥ मारी आशा अं बर जेवी ॥ मोरा० ॥ तमें केम नपामी कंत ॥ हाथ० ॥ ३ ॥ में कूमा कलंक चढाविया ॥ मोरा० ॥ जाख्या अण दीठा आत || हाथ० ॥ में पंखी घाल्या पांजरे ॥ मोरा० ॥ वली जलमां नाखी जाल ॥ हाथ० ॥ ॥ ४ ॥ में साधुने संतापीया । मोरा । में माय विबोड्या बाल ॥ हाथ० ॥ में कीमी दर नघामियां ॥ मोरा० ॥ मरमना बोल्या बोल ॥ हाथ० ॥ ५ ॥
O
गल पाणी में जरया || मोरा० ॥ में गुरुनें दीधी गाल ॥ हाथ० ॥ में कठिण करम कीधा हशे ॥ मोरा• ॥ ते आावी लागा पाप || हाथ० ॥ ॥ ६ ॥ इम करतां राजुल आविया ॥ मोरा० ॥ श्रीनेमीशरनी पास || हाथ ॥ रूपचंद रंगें मख्या ॥ मोरा० ॥ राजुल लियो संयम जार ॥ हाथ० ॥ ॥ * ॥ ढाल नवमी ॥
॥
॥ ॥ ॥ श्रीनेम राजीमती एकठा || साहेलमीयां ॥ जइ चढिया श्रीगिर नार । जिनगुण वेलमियां । प्रठेथी राजुल आवियां ॥ सा० ॥ संजम वती राजकुमार ॥ जिन० ॥ १ ॥ श्राज्ञा ने राजुल एकजी ॥ सा० ॥ गिरनार नपर गुफामांहे ॥ जिन० ॥ वाटें जातां वर्षा थई ॥ सा० ॥ जीजाणां रा जुलनांचीर || जि० ॥ २ ॥ गुफा मांहे जइ शुकव्या ॥ सा० ॥ लागुं ते काचुं नीर ॥ जिन० ॥ प्रति सुकुमाल सोहामणं ॥ सा० ॥ राणी राजीम तीनुं शरीर ॥ जिन० ॥ ३ ॥ रहनेमि तपस्या करे ॥ सा० ॥ देखि राजिमती निचोवे चीर ॥ जिन० ॥ प्रगट थई ते बोलीयो ॥ सा० ॥ जानी म