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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
न सुकारियै । ( अजित ० एक० ) ॥ २ ॥ चिरसंचित धन पुरित तिमिर हर । तुम जिन तिमिरारियै । ( अजित ० ) कहै शिवचंद्र अजित प्र मेरे एह अरज न विसारियै । ( अजित० ) ३ ॥ ( काव्यं ) सलिल चं० ॥ ॥ * ॥ ० श्री मदजित जिनेंद्राय । वसुद्रव्यं यजा० ॥ ॥ इति श्री अजित जिनेंद्रास्याष्टविध पूजा ॥ २ ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ ( ३ ) श्रीसंनवजिन पूजा ॥ *
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॥ * ॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ जय जितारि संभव सदा । श्रीसंभव जिन राज। सकल लोक जिए जीतजीय । जीतो मोह समाज ॥ १ ॥ ॥ (राग) गंधवटी घनसार केसर मृगमदारस जेलीयै (ए चाल ) ॥ ॐ ॥ अपरिमित वर शिखर सागर धार संभवकार ए । जिनराज संभव पाय वं दो हो नवजल पार ए । वलि जलधिजात सुजात कुंजर कुंन जंजन जानियें । तसु जनक नाम समान नामा नये जिनवर ानियें ॥ १ ॥ जसु चरणपंकज मधुर मधुरस पान लय लागी रह्यो । मिलकर सुरा सुर खचर व्यंतर नमर नितचित कमह्या ॥ जसु चरणकमले प्लवगलांबन कनक सुवर
काय । सहु नुवन नायक सुमति दायक जननि सेना जायए ॥ २ ॥ जसु मधुर वाणी जगबखाणी तीस शर ( ३५ ) गुणधारिणी ॥ संसार सागर जय जराजर पतित पारन्तारिणी । स्याद्वाद पक्ष कुठार धारा कुम ति मद तरु दारिणी । प्रजुवाणी नित शिवचंद्र गणिकै हुवो मंगल कारिणी ॥ ३ ॥ (काव्यं ) ॥ सलिल चंदन ॥ नँ ी श्री प० श्रीमत्संजव जिनेंद्राय वसुद्रव्यंय० ॥ ॥ इति तृतीय श्री संभव जिन पूजा ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ अथ ( ४ ) श्रीश्रभिनंदन पूजा जि० ॥ * ॥
॥*॥ (दोधक) ॥ ॥ श्रीचतुर्थ जिनवर सदा | पूजो नवि चितला य। जगति युगति संकट हरण | करण तीन सुध थाय ॥ १ ॥ * ॥ राग सोरठी।) कुंद किरण शशि कजलो रे देवा० । (ए चाल ) ॥ ॐ ॥ संवर नंदन जिनवरू रे (वाल्हा ) अभिनंदन हित कामीरे । जग दभिनंदन जय करूरे । ( वा० ) पुरित निकंदन स्वामीरे ॥ १ ॥ लोकालोक प्रका सतारे (वा० ) । करता अविचल धामीरे । अव्याबाध अरूपिता रे ।