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धम्मकहाणुआगो
(धर्मकथानुयोठा ]
संकलनअनुयोग प्रवर्तक मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' पण्डित दलसुरवभाई मालवणिया
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WAJ
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जैनागम अनुयोग ग्रन्थमाला नं. १
अहम्
धम्मकहाणुओगो
धर्मकथानुयोग
मूलमात्र
(अंगादि जिनागमों के मूलपाठ में प्ररूपित धर्मकथाओं का वर्गीकृत संकलन)
संकलन अनुयोग प्रवर्तक मुनि कन्हैयालाल "कमल"
पण्डित दलसुख मालवणिया
प्रकाशक आगम अनुयोग ट्रस्ट
अहमदाबाद-१३
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प्रकाशक : आगम अनुयोग ट्रस्ट १५, स्थानकवासी सोसायटी, नारायणपुरा क्रोसिंग अहमदाबाद-३८००१३ (गुजरात)
प्रेरक : श्री विनयमुनिजी 'वागीम'
प्रथम संस्करण वीर सम्वत् २५०९ मौन एकादशी विक्रम सम्वत् २०३९
संशोधित मूल्य : रु. ५००/
मुद्रक : प्रथम स्कन्ध राजरतन प्रेस, अहमदाबाद शेष स्कन्ध नईदुनिया प्रिंटरी, ६०/१, बाब लाभचन्द छजलानी मार्ग, इन्दौर-४५२००९ (म.प्र.) फोन नं. ५००० एवं २१४००
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Jainagama Anuyoga Series-1
DHAMMAKAHĀNUOGO
(A Catagorised Collection of all stories from the Jaina Canon)
Compiled by Anuyoga pravartaka Muni Kanhaiyalal 'Kamal'
Dalsukh Malvania
Āgama Anuyoga Trust
AHMEDABAD - 13
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Published by Agama Anuyoga Trust 15, Sthanakavasi Society, Naranpura, AHMEDABAD-380 013
NEW PRICE : Rs. 500/
Printed by Part 1–by Rajaratan Press, AHMEDABAD Rest-by Naidunia Printery, INDORE
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समप्पणं - अब्भत्थणा य
वंदामि वंदणिज्जे ठाणयवासीण पढमआयरिए । आगमसज्झाययरे कंठट्ठियआगमे पायं ॥१॥ अत्तारामम्मि ठिए सिरि-'अत्तारामजी'ति णामघरे । सुयपुरिसे सुयभत्ते दिवंगए तिविहजोएणं ॥२॥ जुम्म तेसि आयरियाणं संपइ सयवरिसउस्सवं पप्प । करकमलकोसमझे पुणे पुण्णोदएण अहं ॥३॥ मणि-'कमलों'पारोक्खं भत्तिब्भरनिब्भरंगलट्ठीओ। धम्मकहाणऽणुओगं एवं पणओ समप्पेमि ॥४॥ जुम्म । किचधम्मकहाणं एवं विविहजिणागमवरट्ठियाण खलु । संकलणं एत्थ कयं अप्पसुएणं, न मे किंची ॥१॥
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अब्भत्थणाउरिं निरूवियाणं आयरियाणं भदतपवराणं । दिव्वाण दिव्वलोयट्ठियाण पुज्जाण ताणाणं ॥१॥ उवओगप्पा संपयकालाणं समणसुविहियाण वरो। सज्झायसीलविसए देउ सया पेरणं, भदं ॥२।। जुम्मं ॥
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प्रकाशकीय
आगम अनुयोग ट्रस्ट की स्थापना एवं उसके प्रकाशन :
चार अनुयोगों में विभाजित जैनागमों की नामावली से प्रायः सभी स्वाध्यायशील सुपरिचित हैं। उन्हें यह जानकार प्रसन्नता होगी की समस्त जैनागमों में से संकलित तथा वर्गीकृत प्रत्येक अनुयोग का सानुवाद प्रकाशन हो रहा है।
अनुयोग प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालालजी "कमल" कुछ वर्षों पहले अहमदाबाद आये थे । उनके आगमन का उद्देश्य विद्वानों से सम्पर्क साधने का था। सम्पर्क में आने पर यह ज्ञात हुआ कि वे कई वर्षों से चारों अनुयोगों के विभाजन, संकलन एवं वर्गीकरण के भगीरथ कार्य में लगे हुये हैं और सांडेराव-राजस्थान से हिन्दी अनुवाद सहित गणितानुयोग का प्रकाशन भी हुआ है। किन्तु उसका प्रतियां अब अनुपलब्ध हैं।
गणितानुयोग के प्रकाशन को कई विद्वानों ने उपयोगी बताया और शेष अनुयोगों के प्रकाशन की आवश्यकता भी बतायी। धर्मप्रेमी सहयोगी बन्धुओं से अनुयोगों के प्रकाशन के सम्बन्ध में विचार-विमर्श किया। सभी ने सहर्ष सहयोग देने का आश्वासन दिया।
"सांडेराव-राजस्थान से प्रकाशित होने वाले अनुयोग प्रकाशन जिज्ञासु जगत् के लिए अधिक से अधिक उपयोगी बनें तथा उनका व्यापक प्रचार प्रसार हो" इस भावना से आगम अनुयोग ट्रस्ट की स्थापना अहमदाबाद में की गई। प्रस्तुत प्रकाशन:
कुछ विद्वानों का प्रारम्भ में यह सुझाव रहा कि चारों अनुयोगों का सर्वप्रथम मूलमात्र का संस्करण प्रकाशित किया जावें। हिन्दी तथा गुजराती अनुवाद के संस्करण क्रमश: प्रकाशित किये जावें। तदनुसार धर्मकथानुयोग का प्रस्तुत संस्करण प्रकाशित किया गया है। किन्तु कुछ आगम प्रेमी बन्धुओं का यह विचार रहा कि मूलमात्र का संस्करण केवल विद्वानों के लिए उपयोगी रहता है और अनुवाद सहित संस्करण जिज्ञासुओं के लिए अधिक उपयोगी रहता है।
यह विचार ट्रस्टी महानुभावों को अधिक उपयुक्त लगा। अत: हिन्दी अनुवाद सहित धर्मकथानुयोग का तथा हिन्दी अनुवाद सहित गणितानुयोग का द्वितीय संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। आभार प्रदर्शन :
अनुयोग प्रकाशन परिषद् सांडेराव-राजस्थान के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने अनुयोगों के प्रकाशन की सहर्ष अनुमति प्रदान करके और प्रकाशन के प्रारम्भ में सहयोग प्रदान करके उदारता प्रदर्शित की। इसके लिए उन सभी बन्धुओं का चिरकृतज्ञ हूं।
श्री हिम्मतभाई अनुयोग प्रकाशनों की प्रकाशन व्यवस्था संभालकर श्रुत-सेवा का महान् कार्य कर रहे हैं वे मेरे मित्र हैं उनके सक्रिय सहयोग के लिए मैं सदैव आभारी हूं। .
नईदुनिया प्रिन्टरी, इन्दौर के प्रबन्धक श्री छजलानी बन्धु, व्यवस्थापक श्री हीरालालजी झांझरी, श्री महेन्द्र डांगी आदि के श्रमपूर्ण सहयोग से ही धर्मकथानुयोग का मुद्रण कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न हो सका है अत: वे धन्यवाद के पात्र हैं।
प्रूफ रीडिंग आदि का महत्वपूर्ण कार्य श्री रमेशभाई मालवणिया ने हादिक लगन से करके एक प्रशंसनीय कार्य किया है।
बम्बई निवासी पं. श्री जगदीशचन्द्र जी ने इस ग्रन्थ की महत्वपूर्ण अंग्रेजी प्रस्तावना लिखी हैं । अत: मैं उनका आभारी हूँ। नये प्रकाशन:
धर्मकथानुयोग का हिन्दी अनुवाद सहित प्रथम संस्करण तथा गणितानुयोग का हिन्दी अनुवाद सहित द्वितीय संस्करण आगरा में मुद्रित हो रहे हैं। अग्रिम ग्राहकों एवं अर्थ सहयोगियों को अनुवाद सहित संस्करण ही अर्पित एवं प्रेषित किये जायेंगे । नये आयोजन
___ धर्मकथानुयोग और गणितानुयोग का गुजराती भाषा में अनुवाद योग्य विद्वान् कर रहे हैं। कार्य सम्पूर्ण होने पर ही मुद्रण के लिये दिये जा सकेंगे।
For Private &Personal-Use Only
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( ६ )
प्रकाशनों में देरी के दो कारण :
१. प्रेसों में बिजली की कटौती । श्रमिक आन्दोलन । प्राकृत भाषा के कम्पोज की कठिनाइयां आदि ।
२. मुनिश्री का प्रतिकूल स्वास्थ्य ।
इन कारणों से आपकी उत्सुकता के अनुरूप प्रकाशन प्रेषित करने में हम असमर्थ हैं । अतः क्षमाप्रार्थी हैं।
कार्य के अनुरूप धैर्य आवश्यक है :
अनुयोगों के संकलन एवं वर्गीकरण का कार्य कितना कठिन है। पाठकों को यह समझाना भी मेरे लिए बड़ा कठिन है । क्योंकि यह अनुभव का विषय है ।
समस्त जैनागमों में से प्रत्येक अनुयोग के सूत्रों का संकलन करना तथा उनका वर्गीकरण करना श्रमसाध्य कार्य है। साथ ही"धेयांसि ग्रह विघ्नानि" अच्छे कार्यों में अनेक विघ्न आते हैं। फिर भी श्रद्धा एवं धैर्यपूर्वक मुनिवी इस कार्य में लगे हुए हैं। आशा है पाठक वर्ग की ज्ञान-पिपासा एक न एक दिन अवश्य परिपूर्ण होगी ।
अन्त में इस महान् ज्ञान यज्ञ में जिन्होंने श्रद्धा समन्धित संविभाग किया है उन सबका हृदय से आभारी हूँ ।
स्वाध्यायियों के लिए अनमोल अवसर
अनुयोग प्रवर्तक पं. रत्न मुनि कन्हैयालालजी म. 'आम' के सान्निध्य में आयोजित
गणितानुयोग -- जैनागमों में वर्णित भूगोल खगोल का वर्णन ।
द्रव्यानुयोग - जैनागमों में वर्णित कर्म, लेश्या, जीव, अजीव का वर्गीकृत वर्णन ।
चरणानुयोग जैनागमों में वर्णित श्रावक एवं साधु का अचार पांच समिति आदि का वर्णन ।
धर्मकयानुयोग जैनागमों में वर्णित धर्मकथाओं का वर्गीकृत संकलन ।
मूल एवं हिन्दी अनुवाद |
मूल एवं गुजराती अनुवाद |
विनीत,
बलदेवभाई डोसाभाई पटेल
अध्यक्ष
आगम अनुयोग ट्रस्ट अहमदाबाद
चारों अनुयोगों का सेट प्राप्त करने हेतु ५००/- पाँचसौ रुपये प्रदानकर अग्रिम ग्राहक अवश्य बनिये ।
मन्त्री, आगम अनुयोग ट्रष्ट
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॥ अहम् ॥ अनुयोग की व्याख्या और ऐतिहासिक पर्यवेक्षण
अनुयोग का तात्पर्य है-शब्दों का अभिधेय के साथ योग-संबंध, बता देना, अथवा प्राकृत शब्द "अणुजोग" में "अणु" का अर्थ सूत्र है क्योंकि व्याख्या की अपेक्षा से सूत्र 'अणु' होता है, उस अणु-सूत्र का अभिधेय के साथ योग करना 'अणुजोग' है।
तात्पर्य यह है कि जैन आगमों की व्याख्या को अणुजोग (अनुयोग) कहा जाता है।
अनुयोगद्वार सूत्र में अनुयोग किस पद्धति से करना? यह विस्तार से निर्दिष्ट है और उसका निरूपण विस्तार से 'महावीर विद्यालय द्वारा प्रकाशित' नंदि-अनुयोगद्वार सूत्र की प्रस्तावना में किया गया है अतएव यहाँ विस्तार से लिखना आवश्यक नहीं है। जिज्ञासु वहीं से देख लें।
धर्मकथानुयोग आदि अनुयोग चार प्रकार के हैं यह बात सर्वप्रथम आवश्यक नियुक्ति से ज्ञात होती है और उसका स्पष्टीकरण सर्वप्रथम विशेषावश्यक भाष्य में किया गया है।
वेदों की व्याख्या के विषय में प्रश्न उपस्थित हुआ था कि उनकी व्याख्या ऐतिहासिक दृष्टि से, आध्यात्मिक दृष्टि से या केवल क्रियाकाण्ड की दृष्टि से की जाय ?
प्रश्न इसलिए उपस्थित हुआ था कि वेदों को मीमांसकों ने अपौरुषेय अर्थात् नित्य माना है अतएव उनका तात्पर्य यह है कि जिन इन्द्रादि का, जिन घटनाओं का और जिन जातियों का उल्लेख वेदों में आता है-उनका संबंध किसी काल से जोड़ने पर वेदों को नित्य मानने में बाधा उपस्थित होगी, अतएव माना गया कि वेदों को व्याख्या इतिहास परक न की जाय ।
मीमांसकों ने वेदों की व्याख्या केवल विधिवादपरक करना माना है अर्थात् किस समय क्या करना उपयुक्त है, वेद इसी का उपदेश देते हैं।
अध्यात्मवादियों ने वेदों की व्याख्या अध्यात्मपरक और आज के वैज्ञानिक युग में उनकी व्याख्यायें इतिहासपरक की जाने लगी है। जैनागमों को श्री नन्दीसूत्र में ध्रुव और नित्य कहा हैयथा
इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं ण कयाइ णाऽऽसी ण कयाइ ण भवति। ण कयाइ ण भविस्सइ। भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे, णिअए, सासए, अक्खए, अव्वए, अव्वट्ठिए, णिच्चे।
यही पाठ समवायांग सूत्र में भी उपलब्ध है। __ नंदी की टीका में श्री मलयगिरि ने आगमान्तर्गत इतिहास से संबद्ध व्यक्तियों के विषय में आगमों की नित्यता के साथ संगति बिठाने का कोई प्रयत्न नहीं किया है और चूर्णिकार ने भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।
समवायांग मूल में जहाँ आगमों को नित्य बताया गया है वहाँ उसकी टीका में भी श्री अभयदेव सूरि ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, अतः इस विषय में ऐसा समझना चाहिए कि जैनागमों को जो ध्रुव एवं नित्य आदि कहा है वह भरत-ऐरावतादि क्षेत्रों की अपेक्षा से नहीं किन्तु पंच महाविदेह क्षेत्रों की अपेक्षा से कहा है क्योंकि वहाँ यहाँ के समान अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी आदि काल विभाग नहीं है अपितु वहाँ सदा समान काल रहता है।
अंग आगमों में अशाश्वत ग्राम नगर व्यक्ति आदि के नामों में तो परिवर्तन होता रहता है किन्तु जीवादि शाश्वत पदार्थों के नाम ध्रुव हैं अतः वे सदा अपरिवर्तित रहते हैं। उनकी अपेक्षा से ही पंच महाविदेहों में गणिपिटक नित्य है।
अनुयोगों के अनुसार व्याख्या करने पर नयों का भी प्रयोग करना आवश्यक माना जाता था किन्तु अनुयोगों का पार्थक्य होने पर वह वैकल्पिक हो गया अर्थात् अनुयोगों का पार्थक्य होने पर किसी एक अनुयोग द्वारा, किसी एक सूत्र की व्याख्या की जाने पर शेष तीन अनुयोगों का प्रयोग नहीं होता था और नयों का प्रयोग भी श्रोता की बुद्धि-शक्ति देखकर किया जाता था। १. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २७५० ला० द. २. नंदिसुत्तं-११८, महावीर विद्यालय, बम्बई। ३. समवाय २२७, सुत्तागमे ।
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(4)
अनुयोगों का पार्थक्य कब से हुआ ? इसका स्पष्टीकरण निर्युक्ति में है ।
प्राचीनकाल में नय विचारणा किस सूत्र में है और किस में नहीं है— इसकी चर्चा करते हुए आवश्यक नियुक्ति में कहा है-
तात्पर्य यह है कि दृष्टिवाद नामक अंग के सूत्रों की व्याख्या करते समय सातों नयों से विचार किया जाता था किन्तु कालिक श्रुतों की व्याख्या में सातों नयों की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी और केवल तीन नयों से काम लिया जाता था ।
"एते हि दिट्ठियाते परूवणा सुत्त अत्थकथना य 1 इहपुण अणभुवगमो, अधिकारो तीहि उस्सणं ॥
इस नियुक्ति की व्याख्या करते हुए भाष्यकार जिनभद्र ने स्पष्टीकरण किया है कि लोक में तीन नय प्रायः उपयोगी है और उनका ही उपयोग कालिक श्रुत की व्याख्या में करना चाहिए ।
वे तीन हैं- १. नैगम, २ संग्रह, ३. व्यवहार । २
एक और कालिकश्रुत की व्याख्या में सातों नयों की आवश्यकता नहीं है-- ऐसा कहा और पुनः कहा कि तीन नयों का प्रयोग किया जा सकता है इसकी संगति बताते हुए नियुक्तिकार ने इस प्रकार स्पष्टीकरण किया है ।
" सूत्र और अर्थ किसी न किसी नय के अन्तर्गत आ जाता है । कोई भी ऐसा सूत्र नहीं है जो नय विहीन हो । अतएव श्रोता की प्रज्ञा को देखकर नयविशारद नयों का प्रयोग कर सकता है वह चाहे तो सातों नयों का प्रयोग भी कर सकता है।
नयों का प्रयोग करके सूत्रों की व्याख्या करना जरूरी मानकर भी यह स्पष्ट किया गया कि कालिक श्रुत में नयों का प्रयोग करना आवश्यक नहीं है--इस बात का स्पष्टीकरण करने के लिए आवश्यक निर्युक्ति में कहा गया है कि कालिक श्रुत मूढ़नयिक है अर्थात् उसमें नयों का समवतार होता नहीं है साथ ही यह स्पष्ट किया गया है कि अनुयोग का जब तक पृथक्करण नहीं था तब तक प्रत्येक सूत्र की व्याख्या में चारों अनुयोगों का प्रयोग होता था । किन्तु अनुयोग का पृथक्करण होने पर चारों का प्रयोग नहीं किया गया।
१,
अनुयोग का पृथक्करण किस रूप में हुआ ? इसका स्पष्टीकरण यह है कि अनुयोग चार प्रकार का है-१. चरणानुयोग २. धम्माणुयोग (धम्मकहाणुयोग ) ३. संखाणुयोग ( गणितानुयोग ) ४. द्रव्यानुयोग । *
अनुयोगों का पृथककरण किस आचार्य ने किया उसकी चर्चा करते हुए आवश्यक नियुक्ति में स्पष्टीकरण है कि आर्यवश जो तधरों में अपश्चिम थे उनके शिष्य आरक्षितसूरि ने यह पृथक्करण किया है-
"दिदिएहि महाणुभावेहि रहि ।
जुगमासज्ज विभतो अणुओगो तो कभी चउड़ा ।।
महाभाग आयरक्षित ने जो देवेन्द्रों द्वारा वंदित थे। समय को देखकर अनुयोगों का चार विभाग में पृथक्करण किया । किस रूप में वह पृथक्करण किया गया इसका स्पष्टीकरण मूल भाष्यकार जिनभद्र ने किया है
क - आवश्यक, निर्युक्ति गाथा. ५४५ । ख - विशेषावश्यक भाष्य- २७५०-२७५४ । विशेषावश्यक भाष्य गाथा-२७४७ ।
२.
३. क - आवश्यक नियुक्ति गाथा ५४४ ।
ख- विशेषावश्यक भाष्य गाथा, २७४८-२७४९ । ४. क- आवश्यक नियुक्ति गाथा, ५४५ ।
ख- विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २७५० । ५. विशेषावश्यक भाष्य गाथा २७५२ । ६. आवश्यक नियुक्ति गाथा ७६९ । ७. आवश्यक निर्युक्ति गाथा ७७४ ।
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"कालियसुयं च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती । सव्वो य दिळुिवाओ, चउत्थओ होई अणुओगो ॥" "जं च महाकप्पसुयं, जाणि य सेसाणि छेयसत्ताणि ।
चरणकरणाणुओगोत्ति, कालियत्ये उवगयाणि ॥"२ सूर्यप्रज्ञप्ति का गणितानुयोग में और दृष्टिवाद का द्रव्यानुयोग में समावेश होता है। कथानुयोग में कथावाले आगमों का समावेश स्वयं ज्ञेय होने से उनके नाम नहीं दिये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में सभी जैन आगमों में से कथाओं का संकलन किया गया है और उसका नाम 'धम्मकहाणुओग" दिया गया है । अनुक्रमणिका को देखने से पता चल जाएगा कि प्रथम तीर्थकर भ० ऋषभदेव से लेकर भ० महावोर तक के श्रमण, श्रमणी, उपासक, उपासिकाओं का क्रमश: संकलन किया गया है, और अन्य तीर्थकों की कथाओं का भी समावेश इसमें किया गया है।
वाचक को सर्वप्रथम आगमों को सभी कथाओं का संग्रह प्रस्तुत संकलन में उपलब्ध होगा, जिन्हें कथाओं में रस है उनके लिए प्रस्तुत कथानुयोग में आगमों की सम्पूर्ण कथा सामग्री उपलब्ध हो जायगी ।
पं० दलसुख मालवणिया
अहमदाबाद
१. क-मूलभाष्य गाथा १२४ ।
ख-विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २७७६ । २. क-आवश्यक नियुक्ति गाथा, ७७७ ।
ख-विशेषावश्यक भाष्य गाथा, २७७७ ।
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(१०)
संकलनकर्ता का संकल्प :
पं. जगदीशचन्द्र जैन शोधनिबन्धों के सिद्धहस्त लेखक हैं । उनके अनेक निबंध-ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं । जिनका वाचन करके अनेक स्वाध्यायशील पाठकों ने अपने ज्ञानकोष को समृद्ध किया है। धर्मकथानुयोग की भूमिका उन्होंने अंग्रेजी में लिखी है। उसमें धर्मकथाओं के सभी पहलुओं का समीक्षात्मक चिन्तन मनन प्रस्तुत किया है। फिर भी यहाँ लिखने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है स्वाध्यायशील साधक हेय, ज्ञेय उपादेय को त्रिपदी के त्रिनेत्र से इन धर्मकथाओंके आलोक में अपने आदर्श जीवन का स्वयं प्रत्यक्ष दर्शन कर सकेंगे।
- धर्मकथाओं के पाठक तथा श्रोता दो वर्गों में विभाजित हैं--एक वर्ग है श्रद्धालु साधकों का और दुसरा वर्ग है चिन्तनमननशील विद्वज्जनों का। - प्रथम वर्ग तर्क-वितर्क से सदा विरक्त रहता है। वह वर्ग श्रमण या श्रमणियों का हो तथा श्रावक या श्राविकाओं का हो। यह वर्ग धर्मकथाओं को मर्वज्ञ भाषित मानता है।
उनका आदर्श मंत्र है:-"तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहि पवेइयं," जिन भगवान् ने जो कहा है वही सत्य है एवं संशयरहित है।
द्वितीय वर्ग; धर्मकथा के प्रमुख आदर्श भाव को ही महत्व देता है। उस वर्ग की दृष्टि में धर्मकथा के पात्र, पात्रों के नाम और उनके साथ घटित होने वाली घटनाएँ कल्पित हों या वास्तविक । पात्रों के आचरण उनके आदर्श जीवन के अनुरूप हों या प्रतिरूप, उनकी महत्वाकांक्षायें धार्मिक सिद्धान्तों के अविरुद्ध हो या विरुद्ध । उक्त वर्ग के व्यक्ति इन बातों पर ध्यान देना उचित ही नहीं मानते हैं। उनका सिद्धान्त है--"विवेगे धम्ममाहिए"। "धर्म विवेक में कहा गया है।
कथा का भाव धर्म आराधना के लिए या आसक्ति की समाप्ति के लिए कितना प्रेरक है? धर्मकथाओं के कौन-कौन से अंश हेय, ज्ञेय या उपादेय हैं ?
साधक स्वयं यह सोचे कि इन धर्मकथाओं से मैंने क्या ग्रहण किया है। और इनसे मेरे जीवन में कितना परिवर्तन आया है?
मैंने प्रमत्तभाव का कितना परित्याग किया है और अप्रमत्त भाव को कितना अपनाया है ? विषय कषायों से विरक्त होकर संयम में मैं कितना अनुरक्त हुआ हुँ ? उक्त वर्ग प्रभात से पूर्व प्रमाद छोड़कर धर्म जागरण के लिए स्वयं को इस प्रकार संबोधित करता रहता है
यथा--कि मे कडं किं च किच्च सेसं,
कि सक्कणिज्जं न समायरामि । कि मे परो पासइ कि व अप्पा, कि वाहं खलियं न विवज्जयामि ॥
धर्मकथानयोग की संकलन पद्धतिधर्मकथानुयोग के आगम : १. ज्ञाताधर्मकथा
२. उपासकदशा ३. अन्तकृद्दशा
४. अनुत्तरोपपातिकदशा ५. विपाकश्रुत
६. राजप्रश्नीय ७. निरयावलिका-कल्पिका
८. कल्पावतंसिका ९. पुष्पिका
१०. पुष्पचूलिका ११. वृष्णिदशा। उपरोक्त ग्यारह आगमों में केवल धर्मकथानुयोग है ।
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(११)
१. आचारांग
२. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग
४. समवायांग ५. भगवती सूत्र
६. औपपातिक ७. उत्तराध्ययन
८. दशवकालिक ९. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
१०. कल्पसूत्र। इन १० आगमों में कहीं-कहीं धर्मकथानुयोग के अध्ययन, शतक, उद्देशक तथा गद्य-पद्य पाठ हैं। शेष आगमों में धर्मकथानुयोग नहीं है।
प्रारम्भ में यह संकल्प रहा कि इन सब आगमों के मूलपाठ शुद्ध करने के लिए प्रयत्न किया जाय । बाद में धर्मकथाओं का संकलन एवं वर्गीकरण किया जाय ।।
इस कार्य के लिए विभिन्न प्रकाशन संस्थाओं से प्रकाशित एक-एक आगम की पांच-पांच प्रतियाँ एकत्रित की गई और सर्वप्रथम मूलपाठ मिलाने का कार्य प्रारम्भ किया गया।
इस कार्य में नीचे लिखी समस्याएँ सामने आईं :
१. प्रत्येक आगम की विभिन्न प्रतियों के सूत्रांक विभिन्न थे। किस प्रति के सूत्रांक सही हैं और किसके गलत हैं ? इसका निर्णय करना अत्यन्त कठिन प्रतीत हुआ क्योंकि सूत्रांक देने का मानक कहीं से प्राप्त नहीं हुआ है।
२. वाचनान्तर के पाठों में से किस वाचना के पाठ को प्रमुख स्थान देना और किस वाचना के पाठ को गौण मानकर कहाँ स्थान देना? मेरे जैसे अल्पज्ञ के लिए यह निर्णय करना असंभव सा हो गया।
३. प्रत्येक आगम की विभिन्न प्रतियों में संक्षिप्त वाचना सूचक 'जाव' आदि वाक्य असमान लगे हुए हैं।
४. किसी प्रति में 'जाव' आदि वाक्य उचित आवश्यक स्थान पर भी नहीं हैं और किसी प्रति में अनुचित अनावश्यक स्थान पर भी जाव आदि वाक्य हैं।
५. संक्षिप्त वाचना सूचक वाक्यों के अनुसार कितना पाठ किस आगम से लेना-इसका निर्णय करने में इतना समय व्यतीत हो जाता है कि कार्य से मन विरत होने लगता है। क्योंकि समय और श्रम लगने पर भी कार्य नगण्य हो पाता है।
६. आगमों की प्रतियों में अनेक जगह एक-एक वाक्यांश के आगे (०) शून्य सूचक बिन्दु लगे अनेक पाठ मिलते हैं।
शुन्य बिन्दु से कितना पाठ किस प्रति से लेकर उसकी पूर्ति करना, कितना श्रम साध्य है? क्योंकि पूरे पाठवाली प्रतियाँ अनुपलब्ध हैं।
किसी प्रति में शून्य बिन्दु है और किसी में नहीं है-ऐसा पाठ देखकर दुविधा हो जाती है।
७. किसी प्रति में एक पाठ मिलता है तो किसी प्रति में उसी पाठ का पाठान्तर मिलता है। प्रस्तुत संकलन में पाठ लेना या पाठान्तर लेना- यह भी कठिन समस्या है।
८. किसी प्रति में कुछ गाथाएँ या कुछ गद्यपाठ अधिक मिलता है तो किसी प्रति में कम मिलता है।
९. संक्षिप्त वाचना सूचक “जाव" आदि प्रायः कथा के आधे वाक्य के आगे लगे हुए होते हैं और 'जाव' आदि के आगे भी कथा का आधा वाक्य रहता है। इससे कथा का क्रम टूट जाता है इसलिए संक्षिप्त वाचना सूचक वाक्यों का इस प्रकार प्रयोग होजिससे कथा का क्रम न टूटे, अनुवाद भी रोचक हो और पाठक को धर्मकथा का पूर्वापर सम्बन्ध समझने में सुविधा हो ।
एक ओर इन सब समस्याओं को सुलझाकर मूलपाठ को व्यवस्थित करने का कार्य द्रौपदी के चीर की तरह लम्बा लम्बा होता गया।
__दूसरी ओर गुरुदेवों का वियोग, संकलन एवं वर्गीकरण के कार्य में सक्रिय सहयोग देने वाले सहयोगियों का अभाव । लम्बेलम्बे विहार, प्रतिदिन व्याख्यान देना और दर्शनार्थियों का आवागमन बना रहने से अनुयोग लेखन कार्य योग्य समय का अभाव होता गया। इस प्रकार बहुत लम्बे समय तक अनुयोग लेखन अवरुद्ध-सा रहा।
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अहमदाबाद में अनुयोग ट्रस्ट :
आगम अनुयोग प्रकाशन परिषद् सांडेराव राजस्थान की ओर से गणितानुयोग का प्रकाशन सम्पन्न होने के बाद पं० दलसुखभाई मालवणिया एवं अमृतभाई भोजक आदि विद्वानों से सम्पर्क साधने के लिए अहमदाबाद आना पड़ा।
धर्मकथानुयोग के संकलन के सम्बन्ध में विद्वानों से कई दिनों तक विचार-विमर्श होता रहा।
पं० दलसुखभाई मालवणिया का मन्तव्य यह था कि 'सभी आगमों के मूलपाठ व्यवस्थित करने का कार्य अनेक वर्षों तक निरन्तर करते रहने पर भी यथेष्ट पद्धति के अनुसार सम्पन्न नहीं हो सकेगा। क्योंकि योग्य विद्वानों का पर्याप्त सहयोग मिलने की सम्भावना नहीं है।
मेरा भी स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है। मोतिया बन रहा है, रक्तचाप भी रहता है । इसलिए पर्याप्त श्रम करने में तथा पर्याप्त समय देने में सर्वथा असमर्थ हूँ।
यदि अल्प समय में धर्मकथानुयोग का संकलन एवं वर्गीकरण करना चाहें तो सुत्तागमे तथा अंगसुत्ताणि के कटिंग बनाकर कर सकते हैं। दोनों प्रकाशनों की प्रतियाँ सुलभ हैं।'
__ मैंने कहा- 'सुत्तागमे के सम्पादक श्री पुप्फभिक्खु ने अपनी मान्यता से विपरीत पाठों को सुत्तागमे में स्थान नहीं दिया है। किन्तु यही एक ऐसा संस्करण है जिसमें पूरे बत्तीस आगम केवल दो पुस्तकों में उपलब्ध हैं।
अंगसुत्ताणि की तीन पुस्तकें हैं । सम्पादकों की निर्धारित नीति के अनुसार इग्यारह अंग आगमों के मूल पाठ हैं।
अन्यान्य प्रकाशनों से प्रकाशित आगमों के मूल पाठों से इन संस्करणों के मूलपाठ अक्षरशः नहीं मिलते हैं'--यह सब कुछ होते हुए भी धर्मकथानुयोग का संकलन सुत्तागमे एवं अंगसुत्ताणि के कटिंग बनाकर ही किया गया है।
धर्मकथानुयोग का संक्षिप्त परिचय :
इंग्लिश में लिखी हुई भूमिका में लेखक ने इस धर्मकथानुयोग का विस्तृत परिचय दिया है किन्तु हिन्दी भाषी पाठकों को इस मूल मात्र संस्करण का विषयबोध सरलतापूर्वक हो इसलिए हिन्दो में भी संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
धर्मकथानुयोग के छह स्कन्ध है पृष्ठ ६४६ ।' विषय
प्रारम्भ पृष्ठ
स्कन्ध
समाप्त पृष्ठ
स्कन्ध पृष्ठ
१४४
~
१७६२२३९
पहला स्कन्ध दूसरा स्कन्ध तीसरा स्कन्ध चौथा स्कन्ध पाँचवाँ स्कन्ध छठा स्कन्ध
उत्तमपुरुषकथानक श्रमण कथानक श्रमणी कथानक श्रमणोपासक कथानक निन्हव कथानक प्रकीर्णक कथानक
०
३७८४ ४१९
४१८ ५०२
१ . पहला स्कन्ध राजरत्न प्रेस, अहमदाबाद में मुद्रित हुआ है । इसकी पृष्ठ संख्या १४४ है। __ ख. दूसरे स्कन्ध से छठे स्कन्ध पर्यन्त नईदुनिया प्रिंटरी, इन्दौर में छपे हैं । इनकी पृष्ठ संख्या ५०२ है।
ग. छहों स्कन्धों की संयुक्त पृष्ठ संख्या ६४६ है। २, ३,४ पृष्ठ १७६, २४० और ३७८ सर्वथा रिक्त हैं।
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(१३)
अध्ययन संख्या
सूत्र संख्या
६४० ६५६
स्कन्ध संख्या प्रथम स्कन्ध द्वितीय स्कन्ध तृतीय स्कन्ध चतुर्थ स्कन्ध पंचम स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध
२९५
३६१
अध्ययन
अध्ययन
११४
२४२५ पहले स्कन्ध के इग्यारह अध्ययनों का विषय निर्देश:
प्रारम्भ पृष्ठांक समाप्त पृष्ठांक अध्ययन पृष्ठ पहला
अध्ययन कुलकरों का संक्षिप्त वर्णन दूसरा
अध्ययन ऋषभ चरित्र तीसरा
अध्ययन मल्ली भगवति चरित्र चौथा
अध्ययन अरिष्ठनेमि चरित्र पाँचवाँ
पार्श्व चरित्र छठा
अध्ययन महावीर चरित्र सातवाँ
पद्म चरित्र आठवाँ
अध्ययन तीर्थकर सामान्य नौंवाँ
अध्ययन .. भरत चक्रवर्ती चरित्र दसवाँ अध्ययन चक्रवर्ती सामान्य
१३८ इग्यारहवाँ अध्ययन बलदेव-वासुदेव आदि सामान्य दूसरे स्कन्ध के सैतालीस अध्ययनों का विषय-निर्देश :-- (क) पहले अध्ययन में भ० विमलनाथ के तीर्थ में हुए श्रमणों के कथानक पृ० ३ से ११ पर्यन्त । (ख) दूसरे और तीसरे अध्ययन में भ० मुनिसुव्रत के तीर्थ में हुए श्रमणों के कथानक पृ० १२ से १६ पर्यन्त । (ग) चौथे अध्ययन से बारहवें अध्ययन पर्यन्त भ० अरिष्टनेमि के तीर्थ में हुए श्रमणों के कथानक पृ० १७ से ४८ पर्यन्त । (घ) तेरहवें और चौदहवें अध्ययन में भ० पार्श्वनाथ के तीर्थ में हुए श्रमणों के कथानक पृ० ४९ से ५५ पर्यन्त । (ङ) पन्द्रहवें अध्ययन से सैतालीसवें अध्ययन पर्यन्त भ. महावीर के तीर्थ में हुए श्रमणों के कथानक पृ० ५५ से १७५ पर्यन्त । तीसरे स्कन्ध के नो अध्ययनों का विषय-निर्देश :-- (क) पहले और दूसरे अध्ययन में भ० अरिष्टनेमि के तीर्थ में हुई श्रमणियों के कथानक पृ० १७९ से २११ पर्यन्त । (ख) तृतीय अध्ययन में पोट्टिला श्रमणी का कथानक पृ० २११ से २१८ पर्यन्त । (ग) चौथे अध्ययन से सातवें अध्ययन पर्यन्त भ० पार्श्वनाथ के तीर्थ में हुई श्रमणियों के कथानक पृ० २१९ से २३३ पर्यन्त (घ) आठवें और नोवें अध्ययन में भ० महावीर के तीर्थ में हुई श्रमणियों के कथानक पृ० २३३ से २३९ पर्यन्त ।
१४२
१४४
१. यह सूत्र संख्या संकलनकर्ता ने अपनी ओर से दी है। २. जैनागमों में तीर्थकरों से सम्बन्धित विकीर्ण सूत्रों का संकलन एवं वर्गीकरण। ३. जैनागमों में चक्रवतियों से सम्बन्धित विकीर्ण सूत्रों का संकलन एवं वर्गीकरण । ४. जैनागमों में बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवों आदि से सम्बन्धित सूत्रों का संकलन एवं वर्गीकरण।
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(१४) चौथे स्कन्ध के तेवीस अध्ययनों का विषय-निर्देश :-- (क) पहले और दूसरे अध्ययन में भ० पार्श्वनाथ के तीर्थ में हुए श्रमणोंपासकों के कथानक १०२४३ से २८८ पर्यन्त । (ख) तीसरे अध्ययन से तेवीसवें अध्ययन पर्यन्त भ. महावीर के तीर्थ में हुए श्रमणोपासकों के और श्रमणोपासिकाओं के
कथानक पृ० २८९ से ३७७ पर्यन्त । पांचवें स्कन्ध के तीन अध्ययनों का विषय-निर्देश :-- पहले अध्ययन में सात प्रवचन निन्हवों के कथानक । पृ० ३८१ । दूसरे अध्ययन में जमाली निन्हव का कथानक । पृ० ३८१ से ३९२ पर्यन्त । तीसरे अध्ययन में गोशालक का कथानक पृ० ३९३ से ४१८ पर्यन्त । छठे स्कन्ध के तेवीस अध्ययनों का विषय-निर्देश :(क) पहले अध्ययन में श्रेणिक और चेलणा के श्रृंगार को भोग वैभव को देखकर साधु-साध्वियों के "निहाणा" करने का
कथानक । पृ० ४२१ से ४२३ पर्यन्त । (ख) दूसरे तीसरे और चौथे अध्ययन में रथमुसल और महाशिला कंटक युद्ध का कथानक । पृ० ४२४ से ४३६ पर्यन्त । (ग) पाँचवें अध्ययन में विजय चोर का कथानक । पृ० ४३६ से ४४४ पर्यन्त । (घ) छठे से नोवें अध्ययन पर्यन्त चार रूपक । पृ० ४४४ से ४५९ पर्यन्त । (ङ) दसवें अध्ययन से गुन्नीसवें अध्ययन पर्यन्त, मृगापुत्र आदि के कथानक । पृ० ४५९ से ४९६ पर्यन्त । (च) बीसवें अध्ययन में पूरण बाल तपस्वी का कथानक । पृ० ४९६ से ५०१ पर्यन्त ।
(छ) इक्कीसवें अध्ययन में देवताओं द्वारा मन से किये गये प्रश्न और भ० महावीर द्वारा मन से दिये गए उत्तर। पृ० ५०२। प्रस्तुत संकलन एवं वर्गीकरण :
पूर्वोक्त समस्याएँ अल्प समय में असमाहित रहीं अतः धर्मकथानुयोग का संकलन एवं वर्गीकरण यथेष्ट आयोजन के अनुरूप अशक्य रहा। फिर भी यह प्रथम प्रयास पूर्ण सफल है।
प्रस्तुत संकलन-वर्गीकरण से जिज्ञासुओं को एक पुस्तक में जैनागमों की सभी धर्मकथाएँ और उनसे सम्बन्धित विकीर्ण सामग्री संकलित एवं वर्गीकृत उपलब्ध हो रही हैं।
इस धर्मकथानुयोग में कुछ धर्मकथाएँ हैं, कुछ धर्मकथाओं के कथांश हैं, कुछ रूपक हैं, कुछ संवाद हैं, कुछ प्रश्नोत्तर हैं, और कुछ उदाहरण हैं--इस प्रकार यह एक श्रीदामगंड के रूप में अनुपम है। धर्मकथाओं पर भक्तिवाद का अमित प्रभाव :
प्रारम्भ में इन धर्मकथाओं का प्रस्तुतिकरण जिस रूप में हुआ था। उसी रूप में ये धर्मकथाएँ आज हमारे सामने हैं ?
निर्विकल्प रूप में यह मानना उचित प्रतीत नहीं होता। क्योंकि अनेक शताब्दियों से वीतराग दर्शन पर भक्तिवाद का असीम प्रभाव चला आ रहा है। वह सहसा समाप्त होने वाला नहीं है । इन धर्मकथाओं भक्तिवाद इतना व्यापक है कि इनका मूल स्वरूप कैसा था? यह भी समझ में नहीं आता। पाठकों का कर्तव्य :
धर्मकथानुयोग के संकलन एवं वर्गीकरण का यह प्रथम प्रयास है-स्वाध्याय शील साधक इस दृष्टि से ही इसका स्वाध्याय करें।
यदि आप आगमों के अभ्यासी हैं? पूर्वापर का अनुसन्धान आपकी स्मृति में सदैव बना रहता है ? तो आप इस संकलन में संशोधन के लिए अपने मौलिक मन्तव्य अनुयोग ट्रस्ट अहमदाबाद के पते पर अवश्य भेजें। उचित संशोधनों पर अवश्य विचार किया जाएगा।
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(१५) बहुश्रुतों से सविनय प्रार्थना है--वे वर्गीकरण में रही हुई असावधानियाँ कहाँ-कहाँ हैं ? और उनका संशोधन किस प्रकार किया जाय? यह सूचित करने की कृपा करें।
आपके इस सहयोग के लिए संकलनकर्ता सदैव कृतज्ञ रहेंगे। अविस्ममरणीय सहयोग :
__पं० मुनिश्री मिश्रीमलजी म० "मुमुक्षु" तथा सेवाभावी मुनि श्री चांदमलजी ने राजस्थान में विचरण करते हुए भी मेरे स्वास्थ्य के लिए शुभ-कामना की है और अनुयोग का कार्य शीघ्र पूर्ण करने के लिए सदा उत्साहित किया है एवं प्रेरणा दी है।
पं० मुनिश्री रोशनलालजी "सिद्धान्तशास्त्री ने अहमदाबाद और हैदराबाद में संयुक्त चातुर्मास करके प्रत्येक सेवा कार्य में तथा शासन सेवा के व्याख्यानादि कार्यों में सहयोगी बनकर अगुयोग संकलन के कार्य में अनुकरणीय योगदान किया है।
अन्तेवासी श्री विनयमुनि "व.गीश" ने अनुयोग संकलन एवं वर्गीकरण के प्रत्येक कार्य में विवेकपूर्वक सक्रिय सहयोग देकर तथा मेरे स्वास्थ्य लाभ के लिए सतत जागरुक रह कर अनिर्वचनीय आत्म-समर्पण किया है।
__ श्री मुक्तिप्रभाजी श्री दिव्यप्रभाजी एवं उनकी सभी शिष्याओं ने दादर में हुई शल्यचिकित्सा के समय आत्मीय भाव से सेवा-सुश्रूषा करके तथा बालकेश्वर बम्बई और नासिक रोड़ में हुए चातुर्मास में अनुयोग संकलन एवं वर्गीकरण से सम्बन्धित अनेक कार्यों में चिन्तन मननपूर्वक लेखन दि कार्य कर के अविस्मरणीय सहयोग किया है।
पं० श्री दलसुखभाई मालवणिया ने धर्मकथानुयोग के संकलन एवं वर्गीकरण के कार्य का दिशा-निर्देशन करके तथा सुत्तागमे और अंगसुत्ताणि के कटिंगों को क्रमबद्ध करके महान् योगदान किया है।
पं० श्री अमृतभाई भोजक ने अनेक संदिग्ध पाठों को संशोधित करने का श्रम करके श्रुतसेवा का अपूर्व लाभ लिया है। श्री रमेशभाई मालवणिया ने समय-समय पर आवश्यक कार्यों की सफलता के लिए उत्साहपूर्वक प्रयत्न किया है।
श्री लालभाई दलपतभाई विद्या मन्दिर के प्रबन्धकों ने आवश्यक आगमादिग्रन्थ उदारतापूर्वक अवलोकनार्थ प्रदान करके श्रुतसेवा का महान् पुण्योपार्जन किया है।
वैरागिन उषाबेन ने वर्णानुक्रम के कार्ड लिखने का कार्य विद्युत् गति से करके तथा कांदाबाड़ी जैन चिकित्सालय में हुई शल्यचिकित्सा के समय स्वास्थ्य समृद्धि के लिए अनुकूल व्यवस्थाएँ करके आदर्श सेवा कार्य किया है।
इन सब मुनिजनों, महासतियों एवं विद्वानों आदि के हार्दिक सश्रम योगदान से ही यह धर्मकथानुयोग सम्पन्न हुआ है। अतः इन सबका मैं आजीवन आभारी हूँ।
अनुयोगप्रवर्तक मुनि कन्हैयालाल "कमल"
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धर्मकथानुयोग को सांकेतिक शब्द-सूचि
अ.
पडि. पण्ण.
अणु. अणुत्त. आया. आया. सु. आव.
पण्ण. प.
पा. पुप्फि . प्रव. भा.
उ.
उत्त. उत्तर.
अध्ययन अनुत्तरौपपातिक सूत्र अनुत्तरोपपातिक सूत्र आचारांग सूत्र आचारांग श्रुतस्कंध आवश्यक सूत्र उद्देशक उत्तराध्ययन सूत्र उत्तराध्ययन सूत्र उपासकदशांग सूत्र उपांग औपपातिक सूत्र अन्तकृद्दशा सूत्र अन्तकृद्दशा वर्ग कल्पसूत्र कल्पावतंसिका (कप्पवडंसिया)
उवा.
भग. भग. स. महा. प. रायप.
उवं.
ओव. अंत. अंत. व.
पद, पर्व प्रतिपत्ति प्रज्ञापना प्रज्ञापना पद पाहुड (प्राभृत) पुफिया (पुष्पिता) प्रवचन सारोद्धारः भाग भगवती सूत्र भगवती सूत्र शतक महावीरचरियं पर्व राजप्रश्नीय सूत्र वर्ग, वक्षस्कार वहिदशा सूत्र विपाक सूत्र श्रुतस्कंध विशेषावश्यक भाष्य शतक समवाय, शतक समवायांग सूत्र समवायांग-समवाय सप्ततिशतस्थानप्रकरणम् सप्ततिशतस्थानप्रकरणम् संवरद्वार सुयखंध (श्रुतस्कंध) सत्र सूत्रकृतांग श्रुतस्कंध सूर्यप्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्मकथांग
वण्हि . विवाग सु. विसे.
कप्प.
कप्पव. गा.
गाथा चूर्णि
सम. सम. स.
जीवा. जम्बु. जम्बू. व. ठाणं
सत्त.स्था. सप्त. स्था. संव.
ठा.
णाया.
जीवाभिगम सूत्र जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति जम्बूद्वीप वक्षस्कार स्थानांग सूत्र स्थानांग सूत्र ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दशवकालिक सूत्र दशाश्रुतस्कंध सूत्र द्वार नियुक्ति निरयावलिका सूत्र
दस.
दसा सुय.
सुत्त. स. सूय. सु. सुरि. ज्ञाता
द्वा.
निर.
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INTRODUCTION
Dr. Jagdishchandra Jain India has been a land of tales (katha) from time immemorial. Folk-lore which contains elements from nature such as magic, sorcery, spirits, ghosts, animals and birds, incorporating traditional beliefs, practices, legends and the tales of the common, uneducated people, transmitted orally, is the earliest form of stories throughout the world. Folk-lore has given rise to short narratives which might be called story germs.
The stories are divided into various categories: stories pertaining to righteousness (dharma), attainment of wealth (artha) or desire for sensual enjoyments (kāma). The dharmakathā is further divided into four types: pleasant or catching (āksepini), unpleasant or distracting (viksepiņi), leading to knowledge or enlightenment (samvega-janani) and leading to detachment or renunciation (nirveda-janani). Jain authors though have dealt with artha and kāma stories as well, they have given prominence to stories pertaining to dharma. We come across kathakas or story-tellers associated with jesters, ballad singers and bards, who assembled at a city-garden or a sacred shrine and entertained people by telling fascinating tales and anecdotes. In order to make their narratives fascinating, the story-tellers repeated them, exaggerated them and dramatised them.
Innumerable tales and stories have been composed by Indian writers from ancient times, out of which the Brhatkathā, a great store-house of Indian tales and possessed of wonderful meaning (abdhutārtha) by celebrated Guņádhya, has been lost to us. It is stated that listening to stories is a meritorious deed and it leads to happiness as it causes the emerging of suppressed emotions. The author of the Vetāla-pañcavimśatikā (25, p.222) has stated that that the narrator or the listener of even a part of stories narrated in his work, becomes free from sins and is not afflicted by evil. Later on this goal was achieved by composing didectic narrations in Prakrit and Sanskrit literature.
Jain writers employed all types of media such as fables, fairy tales, parables, riddles, similies, illustrations, examples and so on from the rich store house of popular folk-tales. Jain ascetics in order to preach their sermons, travelled from country to country, engaging themselves in religious discussions, thereby propagating their creed. Since the monks were drawn from different section of society, they were well-acquainted with local popular tales and anecdotes, related to workers, artisans, tradesmen, witch-doctors, fortune-tellers, beggars, mendicants and so on. These folk-tales were simple and endoweed with secular elements, therefore were devoid of any moral teaching. As they were free from any sectional or religious touch, they could be accomodated by any religious teacher according to his requirement. It is to be noted that such tales and stories had been in existence among the people before they found entry into literature and according to scholars they found their place first of all in Prakrit literature. Gradually as the folk-tales and anecdotes were transformed into the tales of marality, the narrative literature started growing fast. For example, the stories from the Nāyādhammakahāo, believed to be narrated by Mahavira himself, are tinged with religious and moral preaching. The story of two eggs of a peahen (Mayūri-andaņāyam) supports the fact that the monks and nuns must not entertain any doubt about the usefulness of self-restraint. Another story of two turtles
1. Read the description of Punnabhadda shrine situated in Campā, Ovãiya 2. 2. Winternitz, A History of Indian Literature, III, 1,302
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(Kummanāyam) goes to illustrate that monks and nuns most not yield to worldly temptations. In this way canonical and post-canonical literature is full of stories coloured with religious teaching.
The present work the Dhammakahāņuoga is divided into six Sections: (i) Narratives of the Excellent Men (Uttamapurisa-kahanagāni), (ii) of the Ascetics (Samanakahānagāni), (iii) of the Female Ascetics (Samani-kahanagāni), (iv) of the devotees of the ascetics (Samanovāsagakahānagāni), (v) of the Schisms (ninhava-kahānagāņi) and (vi) Miscellaneous Narratives (Painnaya-kahānagāņi). All these narratives have been collected from the Angas, the Upangas, the Chedasūtras and the Mülasütras.' The canonical literature of the Svetāmbaras consists of twelve Angas, twelve Upangas, ten Prakirnakas, Six Chedasūtras, four Mülasūtras and Nandi and Anuyoga. This literature is valuable since it consists of the teachings of Mahavira and his disciples. It has undergone various modifications as it has passed through different versions from time to time. The first exposition of the canonical literature was organised in Pataliputra (Patna) after about 160 years of Mahavira's death (about 367 B.C.), the second one in Mathura after about 827-840 years of Mahavira's death (about 300-313 A.D.) and the final one in Valabhi after about 980-993 years of Mahavira's death (453-466 A.D.). In the last meeting an attempt was made to reconcile the different readings of the two earlier meetings of the monks. However, as far as the antiquity of the canonical literature is concerned, each agama is to be determined by the nature of its contents. This literature is composed in Ardhamāgadhi, the dialect spoken in Magadha (modern Bihar).
The style of ancient canonical texts is simple and straight which is a distinctive feature of ancient literature. The author goes on narrating the topic in a natural unaffected style with abundant repetition of words, phrases and sentences. He tells his narrative slowly and leisurely so that the mind of the listener is not distracted and he gains confidence. In order to make his account serious the narrator adds set 'descriptions' in-between his narration. This style is also noticed in the Pali canon of the Buddhists. Commenting on the style of the Pali ancient texts, Winternitz has rightly observed that these continual repetitions served the double purpose impressing the instructions more deeply on the memory and of making them rhetorically more effective.?
Here we find that the narratives are presented in a steriotyped pattern with the same framework. In the narratives of the ten lay disciples of Mahavira, described in the Uväsagadasão, there is a homogeneity of description. A heavenly deity causes trouble to householder Kamadeva but he is not disturbed and remains steadfast in his vows. The same thing happens with other lay disciples. There is so much similarity in the framework of the description that only a catch-phrase is given by way of allusion to the earlier stories. Further, being questioned about the contents of the second part of the Nāyādhammakahāo, by his pupil Jambu, venerable Suhamma narrates the account of Kali and instructs him that the accounts of the remaining chapters of the remaining
1. They include (i) Ayāra, Suyagada, Thānā, Samavāya, Bhagavati. Nāyādhammakahão, Uvāsaga, Antagada, Anuttarovavaiya, and Vivagasaya--all Angas, (ii) Ovaiya, Rayapaseniya, Niryavaliyao, Pupphiao, and Vanhidasão --all Uparigas, (iii) Dasāsuyakkhandha (the eighth chapter of this text is known as Kalpasūtra)-the only Chedasūtra, (iv) Uttarajjhayana--the only Mülasutra. 2. History of Indian Literature, II, 68. Pointing out the efficacy of repetition, Axel Olric has said, "It is necessary not only to build tension, but to fill out the body of the narrative; Alan Dundes, The Story of Folk-lore, 1965, p. 131
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sections should be understood on the same pattern. The same thing is noticed in the Antagadadasão. The accounts narrated in the first four divisions of the text, barring a few, have been described on the same pattern, the model being the story of prince Goyama. The last four divisions contain the accounts of the wives of Krsna Väsudeva and the king Sreņika Bimbasāra and some lay disciples. The accounts have been presented in a steriotyped pattern and an allusion is made to the earlier stories. These accounts are monotonous and it appears that the gaps have been filled in somehow.
These steriotyped patterns are often presented merely with a skeleton and the rest is left to be filled in with a set of words and phrases, ending with the word Vāva' (yāvat). For instance, the Oväiya, the first Upānga, gives full description of the city of Campā, shrine Puņnabhadda and a forest. Now if some other city, or a shrine or a forest is to be described in some other canonical text, the description is to be inserted from this canon.
Such descriptions, known as vannaa (varņaka) when given in full are characterised by long compounds and belong to the earlier portions of the Jain canon. These descriptions are related to a king, a queen, a merchant, a caravan leader, a rich householder, a warrior, a pious man, dreams, pregnancy-whim, birth, wedding, marriage gifts, monk's visit to a town, listening to his sermons, seeking permission of parents to enter the ascetic order, renunciation ceremony, practising penence and so on, and are always described in exactly the same words.?
Prakrit Jain narrative literature is also rich with motifs which reflect a state of culture through which it has passed. The study of these motifs is helpful in tracing the common origin of world-wide story literature. Traditional beliefs such as the fruit of past deeds, recollection of previous birth, claiming the reward of the penitential acts (nidana), the kindness rewarded and cruelty punished, good luck and bad luck, omens, superstitions, cure by spells and incantations, the pregnancy-whim of eating the flesh from one's own husband's belly and its satisfaction by artificial means, flying of horses, abandonment of born children, washing forehead of maidservants, smelling of head and so on, not only reveal a prehistory of tale-types but also add to the beauty of narrative. These motifs are recorded not only in Sanskrit and Apabhramsa but also in medieval literature of Indian languages such as Jyotirisvara's Varnaratnākara (14th century A.D.), Varnasamuccaya (edited by B.J. Sandesara) and others. 1. Such descriptions of steriotyped pattern are compared with certain phrases and descriptions of situations occuring again and again exactly in the same words in the Avadana-Sataka of the Buddhists. One such longest steriotyped piece can be seen in the description of the simile with which the Buddha utters the prophecy that somebody will become a Buddha, Winternitz, ibid, 280f. 2. The following descriptions can be noted: (i) The conception etc. of prince Goyama described in the Antagada (1. 1-10) is to be inserted from that of Mahabbala in the Bhagavati (11. 11), Dhammakahānuoga, II, 20 (ii) The departure of prince Goyama to visit Aristanemi, narrated in the Antagada (1.1-10) is to be inserted from that of Megha in the Näyä (1), Dhamma, p.21 (iii) The performance of austerities of the householder Makăi, described in the Antagada is to be inserted from that of Khandaga in the Bhagavati (2.1), Dhamma, 92 (iv) Listening to the sermons of Tirtharikara Vimala in the Bhagavati (11.11) is to be inserted from that of Jamali in the Bhagavati (9.33), Dhamma, 10 (v) The initiation of Aimuttakumära mentioned in the Bhagavati (5.4) is to be inserted from that of a similar description elsewhere, Dhamma, 67 (vi) The description of the city of Rāyagiha and the shrine Gunasilaya in the Näyā (1) is to be inserted from a similar description elsewhere, Dhamma, 68 3. See Jagdishchandra Jain, Prakrit Narrative Literature. 1981, ch. II pp. 41-85
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SECTION ONE
Narratives of the EXCELLENT MEN (Uttamapurisa Kahāṇagāni)
In the Jain tradition there have been twenty-four Tirtharikaras (bridge builders).' They are enumarated as follows: Usabha, Ajiya, Sambhava, Abhinandana, Sumati, Paumappabha, (Suppabha in Bhagavati), Supāsa, Candappabha (Sasi in Bhagavati), Pupphadanta, Siyala, Sejjamsa, Vāsupujja, Vimala, Ananta, Dhamma, Santi, Kunthu, Ara, Malli, Munisuvvaya, Nami, Nemi, Pasa, Vaddhamana or Mahāvira. Out of them, Ara is called Nandyāvarta, (arahato Nandiāvatasa Pratima) in the Mathura inscriptions. The stupa in which the standing figure of the Arhat belongs, was supposed to have been the work of divine gods (deva-nirmita). No symboles are recorded on Jain images in Mathura inscriptions, they are mentioned only in later Jain works. It is to be noted that the yakşas or yakşiņis, known as śāsana-devatā or guardian deities, are associated with each Tirtharikara. We are told of Jinasekhara yakşa, who is said to have projected a pearl image of himself with the image of Usabha on his crest. Similarly the image of Pāsa is noticed on the head of goddess Padmavati.
1. The life History of Usabha Usabha or Usaha (Vrsabha), the first Tirtharkara of the Jains, was born in the descending age (osappini) in the house of king Nābhi by his queen Marudevi. As he was born in Kosalat he was known as Kosaliya. He is called the first king, the first Jina, the first omniscient being (kevali), the first Tirtharikara and the first sovereign of Religion of the earth (dhammavaracāuranta-cakkavatti). Immediately after the Tirthankara was born, alarmed by the shaking of their thrones, several groups of the disākumari goddesses appeared in the birth-house of Usabha. First of all, appear the eight disākumaris of the under-world (ahologiya), each of them accompanied by numerous retinue of dignitaries, officials, troups etc. They paid their reverential homage to the Tirthankara and his mother and praised the latter by a hymn. Then they effected the 'world-wide storm' (samvattaga-vāya) by their magic power, with the help of which they cleared the ground around the birth-house of grass-blades, leaves, fragments of wood and dirt and then remained singing and rejoicing by the side of the mother and child. Then appear a group of eight disākumāris living in the upper-world (uddhalogiya) and greeted the mother and the child exactly in the same manner as the first group. They created clouds (abbhavaddala) by their magic power, effecting a rain of scented water falling from them,
1. Twenty-four Buddhas are referred to in the Digha II, Mahāpadāna Sutta. Makkhali Gosāla is considered as twenty-fourth Tirthankara of the Ajivika sect. 2. See W. Schubring, The Doctrine of the Jainas, p.49 3. Kuvalayamala, 120, 15-17 4. The Avasyaka Cūrņi (337) identifies Kosala with Aojjhā (Ayodhyā). In the Vividha tirthakalpa (24), Aujjhā, Avajjhā, Kosala, Viniya, Säkeya, Ikkhāgabhūmi and Ramapuri are identical. 5. They are enumerated as follows: (a) bhogamkarā bhogavai subhoga bhogamālini toyadhārā vicittá pupphamala anindiyā
The identical list is given in the Vasudevahindi, 159, 22-23 and the Avasyaka Cūrni, 136. In the Thāna (8.643) the names given are different:
bhogankarā bhogavai subhoga bhogamāliņi suvacchā vacchamittă ya vārisenā Balāhaga 6. They are: (b) mehamkarā mehavai sumehā mehamalini suvacchă vacchamitta ya vārisenā Balāhaga
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pacifying the dust. They also caused a rain of flowers to fall from flower-clouds (pupphavaddala), likewise created by them and then remained singing and rejoicing. After that arrived successively the four groups of eight diśākumaris, each residing on the eastern,' southern?, western and northern“Rucaka region.
cont.
The same is noted in the Vasudevahindi, 159, 28-29 and the Avasyaka Cūrni, 137 except that they mention suvatthā and vatthamitta in place of suvaccha and vacchamittă respectively. The names in the Thana (8.643) are noted differently in the following manner: meghamkarā meghavai sumeghā meghamālini toyadhāra vicittà ya pupphamālā anindiya
Here, while comparing the names of the eight disākumāris residing in the under-world, stated in the previous gāthā (a), we notice that the second line of (a) and the second line of (b) have been exchanged. But as the names toyadhārā, vicitra, värisenä, and Balahagā positively are cloud-names, they belong to the first half of (b) and not to the serpent-names (bhoga) of the first half of (a), therefore the Thānā version should be treated as the correct one. See Alsdorf, Further contribution of the History of Jaina Cosmography, New Indian Antiquary April June 1947. 1. The eight disākumāris residing on the eastern Rucaka are enumerated as follows: Nanduttarā ya nandā āņandā nandivaddhaņā vijayā ya vejayanti jayanti aparājiya These names are also noted in the Vasudevahindi, (=VH) 160, 1-2, Avaśyaka Cürni. (=Ava Cu), 138 and the Trişaştisalākāpuruşacarita, (=TSP) 1.2.288 As pointed out by Alsdorf, Buddhist works such as Mahāvastu (=MV: Senart's edition, Vol III, pp 305-310,316) and the Lalitavistara (=LV; Lefmann's ed., pp. 387-391) also provide a list of these goddesses as follows: MV/LV: Nandottara nandisena nandini nandivardhini Jayanti vijayanti ca siddharthā aparajita (for different readings see Alsdorf, ibid, 114) 2. The eight disakumāris residing in the southern side of Rucaka are as follows: samahārā suppainnā suppabuddha jasoharā lacchimai sesavai cittagutta vasundhara The Vasudevahindi, 160, 5-6 notes suppasiddha in place of suppabuddhā; Ava Cū, 138 has the same list as Jambuddivapannatti (=Jambu); TSP, (12.291) notes supradattā instead of suppainnā, The MV/LV provide the following names: Laksmimati yasamati yasaprāptā yasodharā suutthita suprabhātā suprabuddhā sukhāvahā (for different readings see Alsdorf, ibid, 115) 3. The eight disakumāris residing in the western side of Rucaka are named as follows: ilādevi su rādevi puhavi paumavai eganasa navamiyā bhadda siya ya atthama The same list is noted in Thana (8.643), VH, 160, 8-9, Ava Cu, 138 and TSP, 1.2.294 The MV/LV provide the following names: alambusā misrakesi pundarikā tathārunā ekānamsā navamikā sitā krsnā ca draupadi (for other readings see Alsdorf, ibid, 115) 4. The eight disakumaris on the northern side of Rucaka are as follows: alambusā missakesi pundariya ya vāruņi hasā savvappabhā ceva hiri siri ceva utturāo The VH, 160, 12-13 gives the identical list except that it mentions pundarigini in place of pundariyā; Thānā (8.643) gives pondarigi for pundariyā, āsā for hāsā and savvagā for savvappabhā. The list given in Ava Cū, 138 and TSP, 1.2.297 is identical with that of Jambu. The list given by MV/LV is as follows: ilādevi suradevi prthivi padumā vati upasthitā mahārajā āśā sraddhā hiri siri (for other readings see Alsdorf, ibid, 115) It is to be noted that the Angavijjā, a non-canonical work of the 4th century A.D. provides an important list of goddesses, including sri prthivi, ekanāsā, navamikā, nāgi, diśa, buddhi, hri, sri, laksmi, kirti, medha, smrti, dhrti, dhi, ila, sita, vidyā, vijjatā, candralekha, utkośā, ahodevi, devi, devakanyā, airika, bhagavati, alambusā, misrakesi, apalā, anāditā, airāni, timisrakesi, tidhini, sālimālini, citrarathā, citralekha and so on. (51, 205f; 9.69). Out of these goddesses some of them appear to be of foreign origin and interestingly, Motichandra has identified apalā with Greek goddess Pallas Athene, anädita with Avestic goddess Anahita, airāņi with the Roman goddess Irene, timisrakeši with the numph Themis and sālimālini with Moon-goddess Selene (Introduction, 42).
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They greeted the mother and the child like their predecessors and ranged themselves singing and rejoicing. They carried in their hands mirrors, vases, fans, and flying-whisks respectively. Then appeared the four disākumāris, residing at the intermediate points of Ruyaga (vidisiruyaga-vatthavvão)', singing and rejoicing, carrying lamps in their hands. They were followed by the last group of four disākumāris, residing in the central Ruyaga (majjhimaruyaga-vāsi)?. They cut off the naval-cord and buried it in the earth. Then one plantain arbour each to the east, south and the north of the bath-house was created by magic power. Each arbour contained a hall (cāusālā), in whose centre there was a lion-throne. They carried the mother and the child first to the southern arbour, made them seated on the lion-throne and then anointed and massaged them with precious oils and fragrant essences. Then they carried them on the lionthrone in the eastern arbour and gave them threefold bath with scented water (gandhodaya) flower-water (pupphodaya) and pure water (suddhodaya). Then they dressed them and put on all kinds of ornaments on their body. Then both of them carried to the throne in the northern arbour. The abhioga gods are called and ordered to fetch gosisa sandalwood from the Cullahimavanta. When this was done, the four disākumāris stirring fire by rubbing two pieces
cont.
For the list of dikkumāris also see VH, appendix IV, under Number 39. Alsdorf in his above-mentioned article on Jaina Cosmography and Mythology, has made the following important observations: (a) The list of 32 deities, eight each of the four quarters, mentioned in the Jain and Buddhist traditions is corrupt to some extent. In the Buddhist tradition they are represented as Buddhist protective charms for the journey to the four quarters. (b) Out of 32 names 20 are still completely identical. (c) The antiquity of the list cannot be doubted as it goes back to the set of memorial stanzas, quoted in the shāņā. (d) Väruni by her very name refers to the west and the Jainas seem to be wrong in placing her in the north. The line in which she appears, therefore belongs to where it is found almost identical form in MV/LV and has been exchanged by mistake for the line ilādevi suradevi etc. in footnote 4 mentioned above. (e) Jinasena in his Harivamsapurāna (JHP) has enumerated the names of the goddesses thrice (5.705-717; 8. 106113; 38-31-35). It is remarkable that the names given here are identical with Buddhist names, as opposed to the Jambu, belonging to Svetämbara tradition. This tradition seems to be independent of and anterior to the canonical tradition maintained in the Jambu. (f) The list of above goddesses as a whole seems to be a motely collection of divergent names with no underlying relation to the nature of goddesses or to the four quarters: (i) some of them such as nandā etc. indicate the names of tithis (a lunar day). (ii) nanda, ekānamśā, vijaya and aparajitā are surnames of Durgā, (iii) alambusa is a wellknown nymph, (iv) Sri, sraddha, asa, and hri are four daughters of Indra, (v) Vijaya, vaijayanta, jayanta and aparajita are the four vimānas of the highest celestial regions of the Jainas, and so on, ibid, 116-119. 1. They are: città cittakannagă saterä sodāmini The Thāna (4.1.259), the VH. 160,16 and the Ava Cu, 138 have identical names. The JHP (38.36) gives Kanakaciträ in place of citrakanakā; TSP gives seyamsā in place of saterā; Haribhadra in his Ava commentary gives sudāmiņi, TSP sautramani and JHP sutramani in place of sodāmiņi, Saterā and sovamani have been mentioned as chief queens of Dharanendra; Nāyā, II, 3.2-6; VH 305.25. 2. They are: Ruya ruāsia ceva srūä ruyagāvai The Thänā (4.1.259; 6.507) gives 6 disäkumāris as follows: Ruva, rüvamsā surūvä ruvavai rāvakantā rūvappabhā The VH (160,19) has the following: ruyargā nuyamsā surūvā rūyagāvati The Ava Cu (139) has the following: ruyä ruyamsä suruyā ruyagāvati. The TSP has rüpā rüpāśikā capi surüpă rūpakāvati; and the JHP (38.37) the following: rucakaprabhā rucaka rucakābhā rucakojjvala
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of sticks, (aranim ghattenti ghattittā saraenam aranim mahinti mahittā aggim padenti),' kindled a blazing flame and performed agnihoma (putting oblation into fire) and bhutikarma' (Then of the ashes of this fire they made a protective amulet (rakkhapottaliya)" and hang it round the child's neck. Then they beat together at his ear two balls of stone wishing him that his life may last as long as the rocks (pavvayāue). Finally, the four disākumāris carried the mother and the child back to the birth-house from where they had brought them.
The birth-consecration does not stop here. The throne of Sakka (šakra), the king of divine gods, the Indra of Saudharma heaven, shakes; he descends from his throne, kneels down, praises the new-born jina and commands ābhioga god Palaka to build a fantastic Jāna-vimana (travelling vimāna) described in great detail.' Then Sakka accompanied by his large retinue mounts the vimāna and flies to the birth-house. He greets the mother and the child with similar words uttered by disākumāris. Then employing the sleeping spell (osovani) he puts the mother to sleep, creates double of the child and puts it at her side. Then he creates five sakkas out of himself: one carries the child, one holds the umbrella over him, one each go at his two sides carrying fly-whisks and one carries vajra (thunder-bolt) in his hand. Thus all the divine gods take him to the pandaga grove on the summit of Mt. Meru where Sakka sits down facing east on the consecration-throne, placed on the consecration-rock (abhiseya-silā). This is followed by the arrival of the rest of the Indras of all celestial regions and class of gods with their retinues. Then the abhioga gods collect all the material for a gorgeous abhişeka of a Tirthankara. They create by magic power 1008 jars of gold, silver etc., 1008 each of vases (bhrngāra),mirrors (ātamsa) etc. Water and all kinds of lotuses are brought from the ocean ksiroda and puşkaroda and water and soil from the holy places Magadha, Varadāma and Prabhäsa; water and soil from the banks of the Ganga and Sindhu rivers; flowers, garlands, herbs and fragrant soil from the Cullahimavanta, and so on. Thus the great abhişeka ceremony was performed to the accompaniment of rejoicing of the gods. Finally, Sakka carries back the Jina to the birth-house and lay him down by his mother's side. The Sakka commands Kubera perform a shower of treasures. Finally Sakka issues a proclamation saying that if anybody thought of ill (asubham mane pahārei) towards the Tirtharkara his head would split into hundred pieces.
1. arani means 'turning round' The Vedic Aryans used to kindle fire in this manner by creating friction. 2. It has been mentioned in the Katyāyana Srautasūtra, Monier William, Sanskrit-English Dictionary. 3. It is besmearing the body with consecrated ashes as a protective charm. Some time the damp earth was applied or a piece of thread tied in place of ashes, Nišitha Sū, 13.17-27; Bhasya 4287-4291. The rite is performed at a birth, marriage etc., Grhyasūtras, Monier William, ibid. 4. Also see Ava Cü, 140. Raksāpattolikā or a cluster of amulets has been referred in the Bhavisya Purana. Raksävidhi for a child is described in the Caraka, Sarirasthāna, 1.8.51, pp 729ff, Haridatta Shastri, Lahore, 1940. 5. He is also called vajjapāņi (wielding a thunderbolt), purandara (destroyer of strongholds), satakkatu (having hundredfold power), sahassakkha (thousand-eyed), maghavam (bountiful) and pākasāsana (instructor of the ignorant); also sūlapāni (having a spear in hand). and vasaha-vähana (riding a bull) in the Jambu, 55.115; 2.33; Dhammtakahānuoga, p. 10,24 6. Pālaka is the name only of a yānavimana and not of its master, VH, 160,30 7. The description of jänavimăna of Suriyabha god reurs verbatim in the Rāyapaseniya. 8. Jambu, 5.112-123; Dhammakahānuoga, 16-19
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The birth-ceremony of Usabha or Rṣabhadeva has been described by Jinasena in his Adipurana (AP) in the 13th parva and in the JHP in the 8th sarga and by other Digambra authors. In this version, though dikkumaris (same as disākumaris) are mentioned in the JHP(8.106-116), the role played by Sakra is more important. Sakra does not fly to the birth-house of Jina in a vimana but mounts on his mighty elephant Airavata (8.142-144) and performs the whole abhişeka himself, while the other divine gods are mere spectators.' To this account is added the celebration of descending from heaven (svargavataraṇa) which forms the 12th chapter of the AP. Here against the Svetämbara version, a large number of dikkumaris are sent by Sakra to attend upon the mother six months before the Tirthankara enters the womb. They perform various duties, including purification of mother's womb.' by various materials brought with them. They acted as attendants and guardians to the mother and made her happy and cheerful in all possible ways.
It is significant that the tradition of descending of divine gods from heaven at the time of birth of a Tirthankara is common with Buddhists. It is said that when Bodhisattva, after descending from heaven, enters into the mother's womb, light is caused throughout the world and the ten thousand regions of the world (lokadhätu) shake. During the course of concepton the child and the mother both are protected by four divine gods in all the four quarters. No sooner Bodhisattva is born unsoild by phlegm and blood, he is held by divine gods. The child and the mother are washed by a stream of cold and hot water falling from heaven. During the course of delivery of the child 5000 apsaras appear each with divine ointments (divyānulepana), divine jars full of scented water (divyagandhodaka-paripūrṇa-ghata), divine garments for the child (divyadāraka-civara) and splendorous music coming out from divine musical instruments.' It is stated that in order to dispel the doubts of gods, Buddha rises in the air, then stands beside his 'throne' looking towards the East and remains standing thus for a week, without blinking his eyes. Further, in his Sumangalaviläsini (1, 45ff), the commentary of Brahmajäla-sutta, Dighanikāya I, Buddhaghosa has stated that while going out begging for alms, soft winds clean the ground before Buddha, clouds lay the dust with a light shower of rain and then spread themselves above him like a canopy, rough places become even, and lotus flowers spring forth under his footsteps, rays of six different colours shine forth from his body and so on.?
1. This represents the older version in the opinion of Alsdorf. He contends that the agreement of the story of Sakra's janmābhiseka forming the base of Jambu with the Digambara version in the most characteristic points such as exchange of the child for a double created by Sakra while the mother is put to sleep, performing the abhiseka on Mt. Meru shows that this tradition goes back at least to the time before the separation of the Digambara and Svetambara order, ibid, 112.
2. This tradition is supported by Buddhist legends. Compare the description with the Lalitavistara (2.6) where heavenly gods create a jewelled palace in the womb of the mother of Bodhisattva so that he shall not be defiled during the period of conception. Here he has a beautiful soft seat and his body radiates in glorious beauty, Winternitz Ibid. II. 250.
3. See AP, 12.166-255
4. Majjhima N., Acchariyadhamma Sutta; Nidānakathā, Section II. Compare the list of 34 miracles (atisaya) enumerated in the Samavaya, 34; Dhammakahaṇuoga, I, 102-103; amṛtavarṣā (shower of nector), the sky decorated with wheel, umbrella, and fly-whisks etc. are mentioned (Dhamma, I, 66,82).
5. See L. V., 96
6. Winternitz, ibid, 188
7. ibid, 197
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It is the noteworthy in this connection that there are several occasions in the AP which indicate the influence of Brahmanic tradition on Jinasena. While describing the birth-consecration (jātakarma-utsava) of Rşabha in the AP the author designates him as creator of the universe (jagatām srastā), Vāmadeva (name of Siva), of tawny colour (pisanga), having eight forms (astamurti; five elements, mind, egotism and matter) and the last of ten incarnations (daśavataracarama). Needless to point out that these designations are applicable to God Siva in the Brahmanic tradition. Besides, the consecrations (samskāra) beginning from the conception until death of an individual are in agreement with the corresponding Brahmanical rites. We also have a reference to fire worship here customary with the Vedic Brāhmaṇas (see chapter 38-40).).
It is significant to note that the Jambu though provides a detailed description of Usabha's birth-consecration, makes no reference with regard to his childhood, youth, education, marriage, coronation and so on?. Immediately after the heavenly gods return to their respective places after celebrating the birth-consecration, we have brief instructions imparted by Usabha while leading household life. The instructions are extremely brief and simply make a mention of 74 arts of men, 64 of women, 100 arts and handicrafts (sippa) and 3 karmas (any kind of work without wages, such as grass-cutting etc. That is all. Then straight away we come to renunciation (pavvajjā) when the Tirthankara giving up worldly pleasures such as gold, silver, treasury, army, wives of the female: apartment and so on, and enters the monastic order. An excellent palanquin is brought in which he was made to sit. He was applauded by people wishing him victory and good luck in surmounting the difficult path accepted by him. Thus passing through the streets of Vinită, surrounded by train of gods and men he reached the park known as Siddhārthavana. There he himself took off all his ornaments from his body and pulled his hair with four handfuls (cauhim mutthihim". Then after fasting for two days and a half, he put on divine robe (devadūsa) and became a mendicant. He put on the robe for more than a year and then went about naked (samvacchara-sähiyam civaradhāri hotthā, tena param acelaye). Then neglecting his body, never caring for food and drink, he roamed about from place to place, engrossed in meditation for a number of years. In course of time he arrived at the Sagadamuha park, situated outside the town Purimatăla and after fasting for three days and a half, attained the highest knowledge, kevqla (omniscience) under the excellent nyagrodha tree. Now he was known as omniscient (kevali), knowing all (savvannu) and seeing all (savvadarisi). 1. 14.26,37,44,47,51 2. VH provides a very sketchy account of his marriage (162,8), progeny (162,9-11) and coronation (162, 12-163,15); also see Ava Cū, 152-53,153 and 153-54 for the same. 3. See also VH 163,7-11) and Ava Cu (156). The VH has the following five sippas: potter (kumbhakāra), blacksmith (lohakara), weaver (kuvinda), carpenter (vardhaki) and barber (snõpita). The Ava Cu. has provided somewhat different names. There are other dissimilarities in the biographical account of Usabha in both these texts. 4. Compare the account in VH (163, 16-23) and Ava Cū (157). The Näyā (Mallināyam, p.118, Vaidya ed., p.118 mentions pañcamutthiloyam. It is said that at Indra's request, Usabha abstained from the fifth mutthi (TŠP, 1,3, 69-71, Schubring, The Doctrine. 250n. 5. The same steriotyped expression is used in the case of Malli (p.47), Aritthanemi (49), Pasa (52), Mahavira (70), Prince Megha (II, 80-84) and others. Here the dialogues between the person who was to join the ascetic order and the parents or guardians, (see almost the common dialogues between Gajasukumāla and Devaki, II, 28; Thāvaccaputta and Krsna Vasudeva, II, 36; Meghakumāra and Dharini, II, 80-8; Räjimati and her mother, Uttaradhyayana, 20, p 279a, Com by Nemicandra), the palanquin carrying the aspirant to the teacher, pulling out hair (pañcamuti hiloya) are brought into prominence. 6. It is stated in the Ava Cu, 181 that after Usabha's attainement of omniscience, his hair, moustaches, short hair on the body and nails were removed but his twisted locks of hair were allowed to remain.
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Like the birth-consecration, the nirvāņa-consecration was also celebrated by heavenly gods. The heavenly gods descended to the Mt. Aștāpada and waited upon the Tirtharkara. A pyre (ciigā) was prepared out of gosisa sandlwood, the Tirtharkara was given a bath of ksirodaka water, his body was anointed with gosisa sandalwood paste and then he was elegantly dressed with beautiful cloth and ornamented properly. Then the body was placed in a specially prepared palanquin which was put on pyre and was set fire to. After the body was burnt and the fire extinguished, the bones (sakaha) were shared by heavenly gods, the upper sothern portion was given to one, the upper left to another, the lower southern to the third and lower left to the fourth, and whatever remained was shared by other gods. Then the memorial mounds (ceiathubha) were built in memory of the Tirtharkara. After returning to their respective places the heavenly gods preserved the bones and worshipped them.'
This is a brief biographical sketch of Usabha, the first and foremost Tirtharkara of the Jains. The emphasis here seems to be on the celebration of the birth-consecration (janmakalyāṇaka) which is said to be attended by divine gods and goddesses. Obviously, we know very little about the happenings of his life. The author is silent even on some important events of life such as what made him relinquish the worldly life and join the ascetic order? Whether he followed the religious preachings of his predecessors or founded the religion of his own? He must have travelled from place to place and initiated people into his faith, but no such reference is made. Then why did he choose the mountain Astāpada (Kailas), supposed to be the abode of Brāhmaṇic God Siva, for practising penance and attaining nirvana? These are some of the points which need further research.
These descriptions consist of supernatural events, obviously, to make the hero exceptionally great and super-human. Such is not the case only with a Tirtharikara of the Jains, but also with Buddha, Jesus Christ, Judah or Jarthustra and others. It is also remarkable that the description of one Tirtharikara is equally applicable to other Tirtharikaras. It has been stated, for example, the description of birth-consecration of Malli could be inserted from that of Usabha from the Jambu . At another place we are told to insert the description of birth-consecration of Usabha from that of Mahavira. It is also noteworthy that the pattern of the classical canonical biography of Tirtharkaras as stated in the Jambu, is not followed by other writers such as that of Kalpasūtra, a chapter of the Dasāsuyakkhandha, while dealing with the biography of the Tirtharkaras.
Another significant point in this connection is of erecting stūpas on the relics of a Tirtahrkara in the Jain tradition. It is mentioned with the Svetāmbaras and not with the Digambaras, though the ancient Jain stüpa at Mathura which was common to both the sects, is
1. Jambu, 2. 30-33; Āva Cu, 222-23 has the same description. In VH, 185. 1-19, Indra was given the bones, the kings the other parts of the body, and some people and the Brāhmaṇas preserved fire. If anybody suffered from bodily pain he was said to be cured by the application of ashes. The fire was conserved by adding sandalwood to it. The relics of Buddha were shared by various persons on which the memorial stupas were erected in Vaiśāli, Kapilavastu, Pāvā, Kuśinārā and other places. 2. jaha usahassa jammaņussavam, navaram mihiläe Kumbhassa Pabhāvaie abhilāvo samjoeyavvo-jáva Nandisaravaradive mahima, Naya, 8.94; Dhammakahanuoga, 1,28 3. See Ava Cu, 136. Also see the description of the parts of the body of Mahavira (Oväiya, 16; Dhammakahānuoga, 1,80-81); compare with that of Usabha and Vajjajangha in the VH. 162, 1-7 and 175,29-176-6 respectively.
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mentioned in Harisena's Kathakosa and Rajamalla's Jambusvamicarita. We know that the erecting of stupas on the relics of Buddha was a common practice among Buddhists. But this practice does not seem to be quite old. Though the mention of Buddha's relics and the erection of stupas is referred to in the Buddhist canonical text, the Mahāparinivvāna Sutta of the Digha Nikaya, Winternitz holds that the final redaction of this Sutta is of comparatively late date.' As a matter of fact, the cult of stupas does not seem to be in vogue till the time of Aśoka. Later in the Nidanakatha (Section III), a non-canonical work, we are told that the first lay-disciple of Buddha received a few hairs from the Buddha, over which a shrine was erected. We also have a reference here to the erection of non-blinking shrine (animisacetiya).
2. The Life History of Malli
We come to Malli, the nineteenth Tirtaharikara of the Jains. There is nothing special about her except that she was a female, according to Svetämbaras, and a male according to Digambaras. It appears that the Svetämbaras are not very happy about Malli being a Tirthankara. According to them, as she practised duplicity (maya) in her previous life, she was born as a female Tirthankara. It is stated that in the birth of prince Mahabala, after joining the ascetic order together with six associates, though all of them decided to practise certain accepted austerities, the ascetic Mahabala, in order to acquire more merit, practised more austerities than the rest. According to religious precepts, although it was a meritorious deed, yet it was considered a sort of double dealing on the part of Mahabala. Consequently, Mahabala has to be born as a woman, supposed to be lower in grade than a man. It is also noteworthy that the Tirthankara hood of a female is considered one of the ten wonders (accharia) of the world. (Thānā, 10). The commentator Abhayadevasüri, commenting on the Mallinaya, the 8th chapter of the Naya, has stated: Though Malli is a feminine, she is hailed by a masculine word arahā (p.114). In the text of Naya (p.117), the divine gods hail her as Bhagavan loga-näha. Then the author of Lokaprakāśa (32.1007) has stated that only a male is entitled to be a Tirthankara. The Kalpasūtra has provided us with the life history of Mahavira, Parsva, Nemi and Rṣabha, and not of Malli.
3. The Life
History of Aritthanemi
The life-history of Arişṭanemi or Nemi, the twenty-second Tirthankara is extremely sketchy. It is important as this legend is related to the story of Krsna Vasudeva in Jain tradition. Aristanemi was Kṛṣṇa Vasudeva's cousin. The biographical account of Aristanemi is given in the Kalpasūtra of Bhadrabähu, Later, Kṛṣṇa Vasudeva left Mathura and migrated to Western India where the city of Dvaraka was made a centre of activities of the yadavas. Gradually, Jain monks also made the western India a centre of their activities. It is significant to note that out of 63 Great Men (salakäpurusa) of the Jains, 27 (i.c. 9 Baladeva, 9 Vasudeva and 9 Prativasudeva) are related to Krsna only, which indicates the dominance of Krsna mythology in the world history of the Jains. According to Jacobi, the formation of the Jain Harivamsapurana goes back
1. Winternitz, ibid,41
2. The Samavaya and the Cauppannamahāpurisacariya of Silanka enumerate only 54 Mahāpuruşa excluding 9 Baladevas. Bhadreśvara in his Kahavali, however, adds 9 Narada making the number 72.
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to the 3rd century B.C., although the whole mythology concerning the Krsna legend was given its final shape about the beginning of the Christain era.' It was round about this time or a little later that the works like the Vasudevahindi, dealing with Harivamsa by Sanghadasagani Vácaka, were composed. The Vasudevahindi has dealt with the origin of the Harivamsa clan (356, 27-358,6; 111, 1-7;77, 12-18) and it is interesting that its origin is also counted among the ten wonders of the world (Thānā, 10). Later, Jinasena (783 A.D.) in his Harivamsapuraṇa, also known as Aristanemipuranasangraha, deals with the legends of Krsna Vasudeva and Balarama in a Jain setting. Then Maladhäri Hemacandra (1123 A.D.) in his Bhavabhāvanā narrates the biographical account of Neminatha in detail. It is noteworthy that in the present work while describing the life-history of Aristanemi, only his renunciation (pavvajjā) and attainment of omniscience (kevalanana) are mentioned, and nothing else. It is only in the Uttaradhyayana (22) that his betrothal with Rajimati, daughter of king Ugrasena of Mathura, finds a mention. Later on, commentators like Nemicandra added a good deal of material related to the legend of Aristanemi and Kṛṣṇa Vasudeva in their commentaries.
4. The Life - History of Pasa (Pārsva)
Historical Jainism begins with Pasa, the twenty-third Tirthankara of the Jains. He is the immediate predecessor of Mahavira, who flourished some 250 years before the latter. He was known as purisādāniya (distinguished), lokapujita (honoured by people), sambuddha (enlightened), sarvajña (omniscient), dharma-tirthankara (prophet of the law) and Jina (victor)'. He lived thirty years as a householder and after leading an ascetic life for seventy years, attained liberation at Mt. Sammeya (Parasnath Hill, in the district of Hazaribagh on the Bengal-Bihar border). It is stated in the Acaranga (2.3. 401, p.389) that the parents of Mahavira were the adherents of Pasa. We come across a number of Pärsva's desciples (pāsāvaccijja Pārśvāpatya) referred to in the Jain canon. Many of them are said to have given up the caujjāmadhamma (the doctrine of fourfold restraint)* and accepted the Pañcamahavvaya (the five great vows) enunciated by Mahavira. The Uttaradhyayana (23) refers to an important conference between Kesi, representative of Parsva and Gautama Indrabhūti, representative of Mahavira, held in Srävasti. A number of questions were discussed in this conference and ultimately Kesi is said to have accepted the five vows preached by Mahavira. Besides, on the basis of the study of Buddhist texts, Jacobi has shown the existence of the niggantha (unattached) order founded by Pārsva
1. ZDMG, 42, 1888, p.494, after The Vasudevahindi, 26f
2. Aslo see Gunabhadra's Uttarapurāna (70.200.211); TSP (8.2.15-20); Mahapurana (lxxxii) by Puspadanta 3. Uttarā, 23.1
4. According to the Thāṇā (4.266), except the first and the last Tirthankaras, all the rest are said to have preached the doctrine of cāujjamadhamma;
(i) to abstain from committing all kinds of violence (savvão pāṇativāyāo veramaṇam,
(ii) to abstain from all kinds of telling lies (savvão musāvāyāo veramaṇam),
(iii) to abstain from accepting all kinds of things which are not given (savvão adiņņādānão veramaṇam), (iv) to abstain from all kinds of external possession (savvão bahiddhādāṇao veramanam). To these fourfold vows was added the vow of bambhacera (to abstain from indulgence in sex) by Mahavira. However, the commentator Abhayadeva explains the word bahiddhādāņa (bahirdhādāṇa) as 'accepting (adana) from outside' which corresponds to Mahavira's both the fourth and the fifth vow, according to him.
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before Mahavira which indicates that Jainism was prevalent before the 8th century B.C. and Mahāvira was no more than a reformer of the order.'
We know very little regarding the details of the doctrine enunciated by Pārsva, except that he made fourfold restraint binding on his followers. It is noteworthy that the rules of conduct preached by Kesi in the Rāyapaseniya (Su 149) tally verbatim with those practised by the disciples of Mahāvira as recorded in the Ovāiya (Sū 16, p.61). It is stated that Pārsva is merely a copy of Mahavira's biography with the exception that he was born in Vārāṇasi and died on the Mt. Sammeya.?
Like Ariştanami, the biographical account of Pārsva also is very sketchy, nevertheless, the following points can be noted about him: 1. His order was divided into four gana, i.e. monks, nuns, laymen and laywomen. 2. Women were allowed to join the order of nuns. 3. The ascetics belonging to Pārsva order were allowed to wear an under and upper garment, whereas Mahavira's ascetics went about naked (acelao). 4. Pārsva seems to have preached his religion to the non-Aryan tribes in the region of BengalBihar border. The worship of Manasā, the serpent deity, is quite popular among these tribes. This worship is performed during the four months of rainy season (cāturmāsa) this season also has a special significance for Jains. The Pārasnāth Hill, the place of attainment of nirvāna of Parsva, is called Maranga Buru (Bad-pahadi or mountain-deity) by Santhalas which is still worshipped in the region by offering the deity a buffalo. A large number of idols of Parsva in this and the surrounding region indicates that his cult was popular in this area.
5. The Life - History of Mahavira Mahavira or Vardhamana, the last and the twenty-fourth Tirthankar of the Jains, was a senior contemporary of Buddha. He became the leader of the Jain sangha after Parsva. He was born in Kundapura or Khattiyakundaggama, a suburb of Vaisāli. He belonged to the nāyā (nātr) tribe of which his father Siddhartha of Käsyapa gotra was a chief. His mother Trisalā of Vasistha gotra hailed from the Licchavis. She was sister of Cetaka, the head of tribal confederacy. According to another legend, Mahāvira was originally conceived by a Brāhmaṇa lady called Devanandā, wife of Rşabhadatta, but it is said that god Indra reflecting that no great man, including a Tirtharkara, are ever born in low, miserly, beggarly or Brāhmana families, commanded his chief Harinegamesi or Negamesi to transform the embryo from the womb of Devānandā to that of Trisalā (naigamesāpahṛta).
the Licchavis. Kasyapa gotra was a chile belonged to the was
1. Jain Sutras, 45, xiv-xxi 2. Jinacarita, 149f after Schubring, the Doctrine, 29 3. Uttara, 23.29 4. S.C.Roy, the Mundas and their Country, 51f 5. na eyam bhūyam, na eyam bhavvam, na eyam bhavissam, jam nam arahantā vā cakkavatti va, baladevā vā, vasudevā vā, antakulesu vā, pantakulesu vā, tucchakulesu vā, dariddakulesu vā, kivinakulesu vā, bhikkhayakulesu vā, māhanakulesu vä, āyāimsu vā, āyāinti vā, dyāissanti vā; Kalpsūtra 2; Dhammakahānuoga, 1,57 n; also see Nidānakatha. 1,65 6. Also known as Nayagāmesa, Naigamarși, Hari or Hāri, one of the most ancient deities of the Jains. His various
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Mahavira or Vira is an attribute given to him for his heroic deeds. His parents called him Vardhamana (the prosperous one) As he was a member of the naya tribe he was called Nayaputta (nātrputra). He was born in Vaisāli therefore he was known Vaisaliya and also Videhadinna after the name of his native country Videha. Like other Tirthankaras not much is known about Mahavira. We are told little about his childhood, youth, education and household life; whatever is described is on the whole in a steriotyped form. Like other Tirthankaras, he too is depicted as a super-human endowed with miraculous power. These miraculous powers and exaltedness on the part of Mahavira may be considered a later insertion by posterior writers.
It has been stated that Mahavira was endowed with three types of knowledge even when he was already in the womb, yet he was sent to school when eight years old. The occasion was celebrated with great rejoicing. We are told that under the guise of an old Brahmana, Indra led the child to school. After reaching the school Vardhamāna put various questions to the teacher which it is said that the latter was unable to answer. Thereupon Vardhamana is said to have occupied the teacher's seat and explained the answers to him. However, we are told that Vardhamana completed studying the school-curriculum comprising the study of the Rgveda, the Yajurveda, the Samaveda, the Atharvaveda, Itihāsa (Purāna), Nighantu; six Vedangas containing sankhāna (Arithmetic), sikkhā (phonetics), kappa (ritual), văgarana (grammer) chanda (metre), Nirutta (exegesis), Joisa (astrolgy) and also Sasthitantra, a treatise on the Samkhya school.3
It is not certain whether or not Mahavira entered into matrimonical alliance. There are contradictory statements regarding his marriage both by the Svetāmbaras and the Digambaras. In the second section of the Acārānga (II. 3.400) which is said to be the later part of the work,
cont. figures have been discovered at Mathura (in the Mathura inscriptions he is called Bhagavā nemeso), Angai Kheda, Shahbad, Kausambi and Ahicchatrā. These figures possess the head of a bull; the right hand of the deity is raised with a mark of safety and the left hand carries a child. The figures are in a sitting posture, Kasturchand Jain; 'Jain Devlok ka Astamgata Nakshatra, Prächya Pratibhä, Vol III, No.1, Jan., 1975, pp69-77, Bhopal, after the Vasudevahindi, np733f. In Vedic literature he is depicted with the head of a deer, and in the Mahabharata he is called ajamukha. A.K.Coomaraswamy, Yaksas, 12. Naigamesăpahrta is mentioned in the Suśruta-Samhită, Sarirasthầna. 10.61 (Ghanekar Bhasker Govind, Lahore, 1936; 1941) as a disease of pregancy caused by bodily wind, also known as nāgodara or upasuskaka which suspends the embroys growth, The Vasudeva, 159nf 1. It stands comparison with Buddha. His worship and deification is foreign in the earliest texts of the Tripitaka, though it stands at its height in the Buddhist Sanskrit literature, espcially the Mahāyāna literature, Winternitz, ibid, 162. In the Mahavastu, which is a text of the Lokottaravadins, the Buddhas are depicted as 'exalted above the world' (lokottara). they adapt themselves to the worldly life only externally. Similarly, in the Lalitavistara which corresponds to Mahayānistic ideas, the life and work of Buddha on earth is termed "the sport" (lalita) of a supernatural being. 2. Compare the Bodhisattva's first day at the school described in the Lalitavistara (x): With a following of 1000 boys, with tremendous pomp with all the gods participating and with 8000 divine maidens, scattering flowers before him, the little Bodhisattva makes his entry into the writing school. The poor school master cannot bear the glory of Bodhisattva and falls to the ground. A god raises him and calms him by saying that the Bodhisattva, though omniscient and having no need to learn anything, yet following the course of the world, has come to school, after Winternitz, ibid, 251. 3. It should be taken as a steriotyped description; some of these works did not exist at the time of Mahavira.
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nd rugged le passing the inhabi
and in the Kalpasūtra (5.109) only the name of Jasoyā (Yasodā) of Kodinna gotra as Mahāvira's wife is mentioned. Further, it is state that she had a daughter named Anojjā or Piyadamsaņa. The name of Mahavira's daughter's husband is neither referred to in the Acārānga nor in the Kalpasūtra, but we learn from the A vasyaka tradition that it was Jamali.
Mahavira renounced the wordly life at the age of thirty. It has been stated that for a period of one month and a year (samvaccharam sahiyam māsam)' he went about with a robe and then roamed about naked. He preached severe asceticism for over a period of twelve years and wandered naked and homeless. He travelled on foot from place to place unmindful of hunger and thirst, cold and heat and rough and rugged pathways. It is stated that for more than two years he neither drank nor used cold water. While passing the region of the country of Ladha (in West Bengal), he had to undergo severe hardships. The inhabitants of this country were violent by nature. They had an aversion for ascetics and often harassed them if ever they passed through their land. They hit them with sticks, fists or lances, cut their flesh, tore their hair, threw dust on their bodies and set their dogs upon them. Looking at Mahāvira's nude body, the children ran away in fright and people drove him out of village.
After twelve long years of hard ascetic life Mahāvira attained omniscience (kevalajñāna) at the age of forty-two and lived thereafter for thirty years to preach religious sermons. According to the Kalpasūtra, since the time Mahavira renounced his household life, he spent forty-two rainy seasons in the following places: First rainy season in Atthiyagama Next three rainy seasons in Campā and Pitthicampa Next twelve rainy seasons in Vesāli and Vāņiyagama Next fourteen rainy seasons in Rājagiha and Nalanda Next six rainy seasons in Mithila Next two rainy seasons in Bhaddiya Next one rainy season in Alabhiyā Next one rainy season in Paniyabhūmi* Next one rainy season in Sävatthi the last rainy season in Pāvās
This roughly corresponds to modern Bihar, a part of North-West of Bengal and a part of Eastern Uttar Pradesh. This indicates that during the life time of Mahavira Jainsm did not seem to have spread roughly beyond the boundaries of Anga-Magadha where the Teacher Principally dwelt and preached. There is a tradition according to which Mahāvira is said to have visited Viibhaya, the capital of Sindhu-Sovira in order to ordain king Uddāyana. Though this
1. The same expression is used in the case of Usabha, see Infra, Dhammakahānuoga, 1,20 2. Kalpasūtra (5.117); also Acäranga (II, Cülikā 3). In this connection Aparajitasuri in his commentary on the Bhagavati-Aradhana (421, pp 611-15) has quoted the Svetambara canonical literature in support of Mahavira's moving about naked. Quoting the statement "varisam civarādhari tena paramacelago jino" from the Bhāvanā, the 24th section of the Acäranga, he has pointed out certain contradictions and difference of views in this connection, See Jagdishchandra Jain, Life in Ancient India, revised edition. Ch.I; Nathuram Premi, Jain Sahitya aur Itihās p.64 3. The account seems to be somewhat exaggarared; It is provided in the first section of the Acaranga. 4. Situated in Vajjabhumi in the country of Ladha, Kalpasūtra, 5.123 Com. 5. Ibid, Sū, 5.122
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tradition is referred to in the Bhagavati (13.6) and also in the Āva Cū (II, 171f), it appears to be a later insertion with the idea of popularising Jainism in far-off countries and to bid the support of the royal families. This view is supported by a statement of the Brhatkalpasūtra (1.50). During his sojourn in Sāketa, restricting the movement of the Jain monks and nuns, Mahāvira declared that they should not travel in the east beyond Anga-Magadha, in the south beyond Kaušāmbi, in the west beyond Sthūņā and in the north beyond Kuņālā (Uttar Kosala). He affirmed that these were the Aryan countries where their religious practices can remain intact.
Mahavira attained liberation at the age of 72. During this period he travelled from place to place preaching non-violence and truth. Ultimately he arrived at Pāvā, he cut asunder the ties of birth, old age and death and attained nirvāna in the year in 527 B.C. The occasion was celebrated by the eighteen confederate kings of Kāśi and Kosala and the nine Mallakis and nine Licchavis by observing fast and lightening the lamp throughout. It is stated by Jinasena that the divine gods celebrated this happy occasion by lightening a row of lamp in the city and it was from this time that the people started solemnising the festival of Dipālikā (Diväli) every year (Harivamsapurana 66. 19-21).
Life - History of Sovereign King Bharaha Cakravartin, or a ruler of cakra, is a sovereign of the world. There are twelve cakravartins: 1 Bharaha, 2 Sagara, 3 Maghavam, 4 Sanakkumāra, 5 Santi, 6 Kunthu, 7 Ara, 8 Subhūma, 9 Mahāpauma, 10 Hariseņa, 11 Jaya (sena) and 12 Bambhadatta. As indicated, like the twentyfour Tirthařkaras, the twelve Cakravartins are also counted among sixty-three Excellent Men. Like most of the Tirtharkaras they have a long span of life and have enormous physcial size. The Cakravartins are endowed with nine divine treasures (navanidhi), eight kākini jewels and fourteen imperial crown treasures (ratna). Barring a few the rest of the Cakravartins are said to have attained liberation at Mt. Sammeya. Out of twelve Cakravartins, Santi, Kunthu and Ara became Tirtharikaras. The VH gives an account of the nine Cakravartins, out of whom Maghavam and Jaya are just mentioned only once. Usabha, the first Tirthankara, is called dhammacakkavatti or the religious Cakravartin as mentioned earlier.
Sovereign King Bharata and Naravāhanadatta It is interesting to make a comparision between Bharata as depicted in the Jambu and Naravāhanadatta, the hero of the Bșhatkathā of Guņādhya, who attained the status of a vidyādhara-cakravartin as represented in the Kathāsaritsāgara (Kss), a Kashmirian version of the Brhatkathā. Here is a brief account of the Universal Conquest of Bharta:
1. Samavāya 12; Thāna, 10.718; Ava Niryukti, 374 2. They are: naisarpa, pāņduka, pirgala, sarvaratna, mahāpadma, kāla, mahākāla, mānavaka and sankha (Thānā, 673,602.). The nine divine treasures belonging to Kubera in the Brahmanic tradition are padma, mahāpadma, sankha, makara, kacchapa, mukunda, nanda, nila and kharva, Monier William's Sanskrit-English Dictionary 3. See Thänä, 633 4. They are (a) cakra (the wheel), chatra (the parasol), câmara (the flying-whisk), danda (the rod), asi (the sword), mani (the gem) and käkini (the cowrie); (b) senapati (the general), gāhāpati (the steward), vardhaki(the architect), purohita (the household priest), stri (the wife), aśva (the horse) and hasti (the elephant), ibid, 558; Samavāya, 14; also see The Vasudevahindi, 36n
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When Bharta was ruling in the city of Vinita there appeared the cakra-jewel in his armoury hall.' Directed by this jewel, with the ambition of conquering the region of Bharta, by travelling through the holy places of Magadha, Varadāma and Prabhasa, he arrived at the bank of the Sindhu river. He crossed the river with the help of the carma-jewel which served him as a ship. Then advanced by the north-east he arrived at Mt. Veyaddha and entered the cave Timsă? which was guarded by god Kṛtamāla.' The cakra-jewel proceeded in the direction of the cave. He struck the door of the cave with the danda-jewel and it opened automatically. Then the sovereign king mounted the hasti-jewel and entered the cave with his mani-jewel which dispelled the darkness like the sun. There he came across the people of Avada-cilāya (Apătakirata) who caused a tempest to rage over for seven days which Bharata resisted by means of his chatra-jewel. Having conquered the enemy, Bharta marched to the Mt. Culla-Himavanta and arrived at Mt. Rṣabhakūja' where on a stone-slab he inscribed his name with the käkini-jewel, stating "I am Bharata, the first sovereign king of the continent of the whole of Bharata region." Then he proceeded towards the Mt. Vaitadhya', sent an arrow to the vidyadhara-lords Nami and Vinami, making an anouncement of his arrival. Then there ensued a terrible fight between the two armies. Ultimately, the vidyadhara-lords surrendered, offering the sovereign king the stri-jewel, Subhadra. Thereupon they were assigned the two sides of the Vaitadhya, in the northern and southern halves of Bharata. Then having crossed the Ganga river he arrived at the Khandappavāya cave and received nine objects of priceless value (navanidhi). Then attended by fourteen imperial crown treasures, he returned to Vinita where the consecration ceremony was held with great pomp, with Subhadra as his consort. The sovereign king Bharata ruled the entire continent of the Bharata region for a long time. It is stated that once after his bath, King Bharata entered his mirror-house (ayamsa-ghara) and while looking at his body he attained omniscience. He achieved salvation at the Mt. Aṣṭāpada."
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Vidyadhara-Cakravartin Naravahanadatta
The emperor Naravahanadatta was told by a hermit named Vamadeva that there were certain jewels in the inner cave of his hermitage and if he could manage to obtain them, he would have an easy victory over Mandaradeva, the lord of the vidyadharas. The emperor
1. Bharata while marching on the conquest, was already in possession of the fourteen jewels, whereas Naravahanadatta, first attained sovereignty over the vidyadharas and then come into possession of the seven jewels.
2. Timisă also in the Thana and VH; Tamisra in JHP and Tamisrä in TSP. Alsdorf has drawn similarity between Timisa and Trisirsa (name of Siva). According to him, Timisa has developed from Trisisa by misreading or a similar misunderstanding. Zur Geschichte der Jaina-Kosmographie und Mythologie, ZDMG,92 (1938), p.488; The Vasudevahindi, 36n
3. Devamaya in the KSS
4. Rṣabaha in KSS. This mountain plays an important role in the Bṛhatkatha where the Vidyadhara-Cakravartins are Crowned. Alsdorf, ibid, p.489
5.
edyardha in KSS
6. It is said that once he noticed his finger devoid of ring which looked ugly and it made him renounced the worldly pleasures, Uttara, Com., 18,232a
7. For similarity in accounts of other Cakravartina, particularly, of Santi, Kunthu and Ara see VH Keumati lambha.
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entered the cave where he was encountered with various obstacles. Ultimately, he succeeded in obtaining the following jewels: (a) mahāhasti-ratna (the great elephant-jewel), (b) khadga-ratna, (the sword-jewel), (c) candrikā-ratna (the moonlight-jewel), (d) kāmini-ratna, (the wife-jewel), (e) vidya-ratna (the jewel of charms), (f) sarasă (lake) and candana (sandalwood tree). Then he proceeded to conquer Mandaradeva on the northern side of Kailās. he reached his camp on the Mt. Govindaküta. Then passing through various regions he arrived at the foot of Kailās and encamped on the bank of Mandakini. Thereupon appeared Mandaradeva asking the emperor not to advance over the Mt. Kailas, the abode of Siva, but pass on to the other side of the mountain by the cave known as Trisirsa which was guarded by king Devamāya. A fierce battle ensued on the mountain between the two armies when Devamāya was taken captive. According to Devamāya, pleased with the austeriries of certain Rşabaha', God Siva tore asunder Kailās and made a cave-like opening for Rşabaha to pass over to the northern side of the mountain. Thereupon at the request of Kailas, God Siva appointed guards of the cave. He declared: The cave shall be open at both ends by the one who had obtained the jewels and was an emperor of the vidyadharas.
Devamāya further told Naravähanadatta that since he had conquered him (Devamaya), now he was the sole emperor of both the sides of Kailas, and that since he had passed over the Trisirsa cave, he was in a position to conquer the rest of his enemies. Naraváhanadatta, while encamping at the mouth of the cave, saw that the underground passage was deep and there was darkness without any light either of the sun or the moon. He mounted his chariot and entered into the cave assisted by glorious jewels. He dispelled the darkness by the candrikā-ratna and conquered the guards of the cave, the deadly poisonous snake by candana, the elephants of the quarters by hasti-ratna, the guhyakas by khadga-ratna and over powered other obstructions with the help of other jewels. Thus having conquered the northern and southern mouth of the cave, he marched against Mandaradeva. Then followed a fierce fight between the two armies in which Naraváhanadatta came out successful. Thus the emperor conquered the northern and the southern territories (vedyardha) and acquired the high dignity of an emperor over all the vidyadharas of both divisions. Then he was told to proceed to the Mt. Kailās, which is supposed to be a sacred place for the celebration of the coronation festival in honour of the Cakravartins. The ceremony was held with great pomp, with the consort Madanamanjukā, occupying half of the throne.?
Here we come across much similarity between Jain consmography and the pertinent description of the Himalaya mountain recorded in the KSS. As there has been no common source known to us for the above narration, it has been surmised that Jain mythology seems to have been influenced by the Brhatkathā of Guņādhya.
1. He is the first Cakravartin of the vidhyadharas and can be compared with Rşabha of the Jains, who is said to be the master of magic arts. 2. KSS, 109, 1-152; 110 3. Alsdorf, ibid, 479, 491
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SECTION TWO
Narratives of the Ascetics (Samaṇa-kahanagani)
1. The Ascetic Gajasukumäla
Gajasukumāla was the eighth and the last son of Devaki, the mother of Kṛṣṇa Vasudeva. According to the Jain legend, the god Harinegamesi made Sulasă, the wife of Naga of Bhaddilapura and Devaki preganant at the same time. Both of them delivered simaltaneously, Sulasă giving birth to dead children and Deveki to live children. Later Harinegamesi transferred the seven living sons of Devaki to Sulasă. Thereupon Kṛṣṇa Vasudeva evoked Harinegamesi and by his favour Devaki gave birth to Gajasukumala, his younger brother.
Once Krsna Vasudeva along with Gajasukumäla, mounting his elephant, proceeded to pay homage to Aritțhanemi. On the way he happened to see the beautiful daughter of Brahmaṇa Somila. Thinking that she could be a suitable match for his younger brother, he brought her to his palace and kept her in the female apartment. In the meantime, Gajasukumāla, inspired by religious sermons of Ariṭṭhanemi, renounced the world and became an ascetic. When Somila. learnt that the prince had abandoned his daughter and become a recluse, he was very furious. He proceeded to the crematorium of Mahakala where Gajasukumala was practising penance. He looked around, took moist earth from the ground, prepared an earthen boundary wall on Gajasukumala's head and put burning coal into it. Having done this the Brahmana returned quitely. It is stated that the ascetic Gajasukumala bore the unbearable pain without having any ill feeling towards the oppressor. While undergoing the agony the ascetic achieved the supreme state of perfection and attained liberation.' Somila died a premature death. His body was removed by Panas (outcasts) and after the body was removed the place was purified by water.
2. The Ascetic Thavaccaputta
After listening to the sermons of Aritthanemi when Thävaccaputta, a merchant's son resolved to join the Teacher's order, his mother approached Kṛṣṇa Vasudeva, the ruler of Bärävai (Dvarakā). She requested him to lend her the royal umbrella, crown and fly-whisk so that the renunciation ceremony of her son could be solemnised. Kṛṣṇa Vasudeva told her not to worry as he himself was going to initiate the ceremony on behalf of the royalty. Then he made a royal declaration that whosoever wished to enter the monastic order, would be looked after by the royal authority. After becoming a recluse, Thavaccaputte observed the rules of conduct, and roamed about from place to place delivering his sermons.
At that time in the town of Sogandhiya there lived a mendicant named Suka with his one thousand followers. The mendicant was well-versed in the four Vedas, the Sasthitantra and the Samkhya system. He was an adherent of Samkhya philosophy and parctised five kinds of restraints (yama) and observances (niyama), considering purification as the basis of his cult. He
1. Gajasukumala's account is recorded in the Bhagavati-Aradhana with other ascetic heroes, who by undergoing severe penance, died and said to have achieved the highest goal of emancipation.
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formulee ng earth and water whiluca and bhāva-sauca. The preached him his
propounded the doctrine of charity, purity and bathing at holy places. He wore clothes dyed with red-clay and carried triple staves (tidanda), water-pot (kundi), umbrella (chatra), teapoy (channālaya), hook (ankusa), copper ring (pavittaya), and sweeping duster (kesariyā). In the same town there lived a rich man named Sudarsana. Suka preached him his religion, expounding the doctrine of dravya-sauca and bhāva-sauca. The former was to be practised by employing earth and water, while the latter by Kusa grass and citing mantras (magic formulae). Sudarsana became the follower of Suka. Once the mendicant Suka had a meeting with Thāvaccāputta and had a long discussion with him. Thāvaccaputta while criticising the Samkhya view of life, propounded his cult based on purity of conduct (vinaya). Suka put him a number of querries. He asked him: Are you one, two or many, or whole, imperishable or firm? Thāvaccāputta replied: I am one from substantial point of view (dravyārthika), two as I am endowed with knowledge (jnana) and vision (darśana), whole from the point of view of space (pradeśa) and imperishable and firm from the point of view of consciousness (upayoga).
Suka along with his adherents was admitted into the religion of Thāvaccāputta. Once the mendicant Suka happened to visit the town of Selagapura which was reigned by king Selaga. After imparting religious instructions to the king, he converted him to monkhood. The ascetic Selaga started practising penance. In course of time, on account of living on coarse, tasteless, cold and stale food, he suffered intensly from burning itch and billions fever. The monk was treated by physicians with proper medicines, pills, herbs, drugs, wholesome diet and alcohol. The monk Selaga was cured but he became addicted to delicious food and drink. Consequently, he showed his carelessness and negligence towards his conduct. Later, he was enlightened and by observing the rules of asceticism, achieved liberation at the Mt. Pundarika.
3. The Ascetic Rahanemi This important dialogue noted in early Jain canonical literature seems to be unique. In this narrative a woman being coveted by a man, tempted by her nude beauty, not only controls her passions, but by her determined will puts the man on the right path. Aritthanemi was going to be married to princess Räjimati but learning from his charioteer that numerous animals were going to be slaughtered for his marriage feast, he returned and joined the ascetic order. hearing this Rūjimati also felt disgusted with the wordly pleasures; she tore off her well-combed (kuccaphanaga-sāhiye) lovely black hair and entered the order of a nun. One day while practising penance on the Mt. Revaya, caught by heavy rains, she took refuge in a cave. Thinking that she was alone, she took off her wet clothes. Now Rahanemi, Aritthanemi's elder brother, who also turned to be a monk, happened to be in the same cave. Seeing Räjimati in her nude beauty he could not control himself and proposed to her to enjoy pleasures. He spoke to her: O dear good-looking beautiful lady, I am Rahanemi, avail of me, you shall have no cause for any trouble. Come, let us enjoy pleasures. Human life is very difficult to obtain. Afterwards we shall follow the path of the Jinas." But the virtuous nun resisted his attempt and preserving the presence of her mind, admonished the monk saying: "Fie upon you, O kşatriya (jaso-kāmi),
1. Jaso-kamino khattiyā, bhannati, Daśavaikālika Curņi, See Alsdorf, 'vántam āpātum', Sunitikumar Chatterji Jubilee vol, p.21, Poona, 1955
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who wants to abandon his vows and re-enter worldly life (väntum icchasi aveum); It would be better for you to die. I am the daughter of a Bhoja king and you are an Andhakavṛṣṇi. Being born in noble families let us not become like gandhana snake, let us practise self-control. If you fall in love with every woman you see, you will be wavering like a plant being blown about by
the wind.
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Thus listening to the well-said words of the nun, Rahanemi returned to his religion like an elephant, quickened by the goad, He was protected in thoughts, words and deeds; subduing his senses and keeping his vows, he practised asceticism throughout. After practising severe austerities, having completely annihilating their karmas, both attained the sublimity of perfection.
4. The Royal Sage Nami
The present discourse between Indra and the royal sage Nami is a beautiful example of ascetic poetry. The ascetic poetry comprised the doctrines of renunciation and contempt of the world, of self-sacrifice and love for all beings. It contained legends of saints, fables, parables, fairy-tales and moral stories, illustrating the philosophy and ethics of the ascetics by means of examples.2
When King Nami after relinquishing his kingdom of Mithila, retired from wordly life, Indra in the disguise of a Brahmana put him to test by a series of questions:
Indra: Here is fire and storm and this palace of yours is on fire. O revered Sir (bhayavamp, why do you not look after your queens?
Nami: We live happily for we possess nothing. If Mithila is on fire, nothing of ours burns." A monk who has abandoned his wife and children and has no occupation, there is nothing pleasant or unpleasant to him.
Indra: Construct a rampart, gates and battlements, moat (usulaga) and sataghnis then you join
ascetic order.
Nami: Having made faith (śraddha) his city, penance (tapa) and self-control (samvara) the gatebolts, patience (ksanti) its perfect rampart, which is impregnable in three restraints (guptis); making zeal (parakrama) his bow, carefulness in walking (iriya) as string, content (dhii) its middle part (which is grasped in the hand), he should bind his bow with truth (satya), fastening with the arrow of penance (tapa), pierce the mail of karmanthus a sage free from fight (i.e. exempt from fighting because his defences are so strong) is replaced from existence.
Indra: O king, there are kings who do not acknowledge you; first of all, you bring them under your subjugation, then you join the order.
1. ibid, p.28
2. See Winternitz, 'Ascetic Literature in Ancient India', Some Problems of Indian Lit., New Delhi, 1978
3. Alsdorf takes 'bhaya-vat' in the sense of fearful or frightened, Namipavvajjā, p.11, Indological Studies in Honor of W. Norman Brown, New Haven, 1962
4. Compare a similar declaration in the Mahabharata (Santi Parva, 12.178) and the Sona Jātaka (529),5, pp 337-38 5. It was ornamented with bells and was bright and hollow; it was flung by hand, Hopkins, Journal of American Oriental Society, 13, p.300
6. Translation by Alsdorf, ibid, pp 15-6
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Nami: Fight but yourself! When the self is conquered, everything is conquered. He who
conquered his self which is (so) difficult to conquer, will obtain happiness. Indra: How strange! Wonderful enjoyments you are giving up, O king, unreal pleasures you
seek -- you are foiled by imagination.? Nami: A thorn are pleasures, poison are pleasures, pleasures are like a venomous snake; those
who seek pleasures go to hell unpleasantly. Down (to hell) one goes through anger, deep down one goes through pride, delusion is an obstruction to decent) rebirth, from greed there is danger in both worlds.
5. The Ascetic Meghakumara Meghakumara was the son of king Sreņika of Rājagļha. He was so named as his mother had a pregnancy-longing to enjoy the rain clouds out of season. When he was born there was a great rejoicing in the state. When he grew up he learnt seventy-two arts. He married eight beautiful princesses.
Once Mahāvira arrived in Rājagrha. Meghakumāra was delighted to learn about his arrival. He visited him and after listening to his religious sermons, was inspired to relinquish the wordly pleasures. He returned to his parents and expressed his desire to enter the ascetic order of Mahāvira. On hearing her son's proposal the mother got a shock and fell unconscious. After regaining her consciousness she tried to dissuade him from the path of renunciation. She explained the difficulties in accepting the path of asceticism. When all her attempts failed to hold him back, the parents requested him to enjoy the pleasures of royalty at least for a day. After the ceremony, a barber was called forth for hair-cut, the prince was given a bath, his body anointed with sandalwood paste, then he was richly dressed and ornamented. Then he was made to sit on a palanquin and applauded with the cries of congratulations, was led to the shrine where revered Mahāvira was sojourning.
. He shearing heress she oting them to enjoy air-cut,
Meghakumara accepted the vows of a monk in the presence of the Teacher and started practising penance, spending his time in reading holy scriptures and engaging himself in meditation. Now in the hall of residence of the monks, there were numerous resting places (seija) for the use of monks. The resting place of ascetic Meghakumāra was located near the entrance of the hall. Here as his fellow-monks, engaged in their religious duties, used to come and go, Meghakumara was disturbed and could not sleep well. While walking up and down, the ascetics collided with his head or stomach. Under the circumstances, Meghakumāra said to himself: "As long as I occupied the status of a prince, people respected me, honoured me and sought my consultation in various matters, but now nobody bothers about me. Therefore, it would be better if after obtaining the permission of the Teacher, I return to the household life."
With these ideas in mind, ascetic Meghakumára approached Mahavira and sought his permission to return to household life. Thereupon Mahāvira narrated him a story of his previous birth: "In his previous life he was reborn as an elephant and was roaming about in jungle. Once a hare came running and took refuge below his foot which was lifted up (pae ukkhitte). At this time, having pity on the hare, he kept on lifting his foot and bore physical and
1-2-3 Translation by Alsdorf, ibid, pp 15-6 4. The chapter is known as Ukkhitta.
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mental agony patiently." On hearing this story of his previous birth, ascetic Meghakumāra was enlightened and re-established himself in his monkhood. He started practising severe penance, as a result of which his body was emaciated, as if containing no flesh or blood. It was with great exertion that the ascetic could walk or sit, and when he tried to get up his bones cracked like a dried leaf or a piece of wood. He attained the highest state of perfection and achieved liberation at the Mt. Vipula.
6. The Ascetic Arjunaka In the reign of king Srenika, there lived a garland-maker, named Arjunaka in the city of Rajagsha, Bandhumati was his wife. He had a big flower-garden outside the city which looked beautiful with flowers. Not far from the garden there was a shrine dedicated to the yakşā called Mudgarapāņi (equipped with iron mace). He was a family-deity of the gardener. Arjunaka got up in the morning, took his flower-basket and proceeded to the garden. He plucked flowers, offered puja to the deity and maintained his livelihood by selling flowers on the city road.
Once a festival was going to be celebrated in the town. The gardener went out with his wife to his flower-garden. After gathering flowers both proceeded to worship the deity. When both were engaged in worship, there appeared a gang of six debauched persons, who were hiding behind the doors. No sooner they got an opportunity, they fastened the gardner tightly and raped his wife.
The gardener stood as a helpless spectator. He reflected in his mind, "Look, I have been a faithful devotee of this deity from my childhood. Had he possessed power, he could not have been indifferent seeing the act of debauchery. He appears to be simply a log of wood."
It is said that realising the inner feelings of his devotee, the deity entered the body of the gardener and unfastened his ties. Then holding his mace he proceeded towards the city. First of all, he killed the six gangsters and the garderner's wife. Then he killed numerous citizens and started roaming about freely in the city.
rdenekanavira. How and got angry a result he
At this time a pious layman named Sudarsana was going along to pay homage to Mahavira. As soon as the deity happened to see him he attacked him with his iron mace. But it is said that as Sudarsana was a virtuous man, no harm could be done to him. In the meantime, the deity left the body of the gardener and went away. The gardener accepted the vows of a Jain ascetic under the guidance of Mahavira. However, when the ascetic roamed about in the city for collecting alms, people recognised him and got angry with him talking that it was he who was responsible for the death of their kiths and kins. As a result he was not treated gently by the citizens and often had to remain without food and drink. He had to bear the agony with equanity of mind. In course of time he died without fo and achieved the sublimity of perfection.
1. Compare 'extreme emaciation of Dhanya's body, Anuttarovavāiya, 3.1; Dhammakahānuoga, II, .00-102
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7. The Ascetic Harikesabala Harikesā, who was born in an outcaste tribe (svapāka-kula), became a monk of highest virtue. He observed the rules of asceticism, had control over his senses and was careful while walking, begging and speaking etc.
Once he approached the sacrificial enclosure (yajña-vāta) of a Brāhmaṇa teacher for begging alms. Seeing the ascetic coming dressed in dirty clothes, the Brāhmaṇas, proud of their superiority of caste, abused him, humiliated him and asked him to go away. The ascetic undisturbed in his mind by their abuses, spoke as follows:
"I am a monk, practising chastity and self-restraint, devoid of any attachment whatsoever for worldly pleasures. I do not accept food specially prepared for me. If you have something already prepared for others, it may be offered to me."
The Brahmanas replied, "This food is prepared only for Brāhmaṇas, who would be arriving soon, therefore it cannot be offered to you. O you ascetic, you get away, why are you standing here?"
The monk retorted, “The Brāhmaṇa possessed of anger, deceit, violence, falsehood and is owning what is not given to him, is deprived of superiority of caste and learning.
On hearing such words from the ascetic, the Brāhmaṇa teachers got annoyed. They retaliated, “O you shameless creature, you are talking impulisively in the presence of our teachers. Let all the food be destroyed rather than to be granted to you."
Saying this words the pupils started hitting the ascetic with sticks and pieces of wood; they caught hold of him by neck and drove him away.
It is said that at this time a deity appeared on the scene. He struck the Brāhmana boys so hard that their bodies were shattered and they started vomitting blood. Thereupon the Brahmanas requested the sage again and again for pardon. The ascetic explained them the true meaning of sacrifice as follows:
"O Brähmaņas, the executors of sacrifice, why are you wasting your time in search of external purity by means of water? In your performance you are using grass, sacrificial pole, wood and fire in vain, you are washing your body with water every morning and evening without any purpose, and out of sheer ignorance you are killing animals. But you do not realise that these actions of yours add to your further sins." He exhorted them saying, “the real fire was penance (tava), the real fire-place was life (jiva), the real laddle (suya) was right exertion (joga), the real cowdung was body (sarira), the real fire-wood was karma, the real oblation was selfcontrol (samjama), right exertion (yoga) and tranquility (sānti), the sacred pond was law (dharma), and the real bathing place was celibacy (brahmacarya).”
The Uttarādhyayana contains numerous beautiful dialogues related to ascetic poetry. Obviously such dialogues cannot be included under dharmakathānuyoga unless dharmakathā stands for the sermons delivered by Mahavira. Similar to the aforesaid dialogue a splendid dialogue is recorded in chapter XIV of the Uttarādhyayana where the ascetic ideal of life is
1. Compare the story in the Matanga Jätaka (497)
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praised as opposed to the Brāhmaṇic ideals.' In the end, the parents and both the sons join the ascetic order. There is a similar thought-provoking dialogue in chapter XXV where the Jain sage Jayaghosa goes to the house of a Brāhmana named Vijayaghoșa for begging alms. On being turned out from the house of the Brahmana, Jayaghosa characterises the qualities of a true Brahmana in the following words:
"The one who has succeeded in overcoming love, hatred and fear, who is virtuous, practises austerities, has control over his senses, does not indulge in violence, does not speak untruth, does not take anything which is not given to him and who is not defiled by sensual pleasures, is called a Brāhmana."
8. The Ascetic Skandhaka Once a Brāhmaṇa mendicant named Khandaya (Skandhaka) of Katyayana gotra, a disciple of Gaddabhāli, was sojurning in Srāvasti. The mendicant was well-versed in the four Vedas, Itihasa-Purana, the fifth Veda, and Nighantu, the sixth Veda; six Vedārgas comprising sankhāna (mathematics), sikkhā (phonetics), kappa (rituals), vāgarana (grammer), chanda (metre), nirutta (exegesis), joisa (astronomy) and also the Satthitanta, an authoritative treatise on Samkhya philosophy.
In the same town there lived a layman named Pingalaka, a follower of Mahavira (vesāliyasāvaka). He approached the mendicant Skandhaka and asked him questions about finiteness and infiniteness of the world, the soul, liberation (siddhi), liberated souls (siddha) and wise (pandita) and unwise (bāla) death. We are told that the mendicant could not reply the said questions and thought of visiting Mahavira, who was moving about in the town of Kayangalā. The mendicant took his ritualistic paraphernalia such as triple staves, water-pot, rosary (kañcaniyā), earthen bowl (karodiyā), seat (bhisiyā), sweeping duster, teapoy, hook, copper ring and the forearm armament (ganettiyā). He wore clothes dyed with red-clay and put on umbrella over his head and set off to pay homage to Māhavira.
A long dialogue is recorded between Skandhaka and Mahāvira. Mahāvira propounded his doctrine of manysidedness of truth, explaining that from certain aspect, the world may be considered as limited (sa-ante) and from other aspect unlimited (ananta). He further explained the importance of four points of views: dravya (substance), ksetra (existence), käla (time) and bhāva (phenomenon). In other words, from the point of view of substance and existence the world is limited and from the point of view time and phenomenon it is unlimited.
In the end inspired by the teachings of Mahāvira, the mendicant Skandhaka was initiated into his order. He led a spiritual career and undertaking the vowed sallekhanā (fast unto death)
1. A similar dialogue between father and son is noted in the Mahabharata (XII.175) in which the father presents the point of view of a Brāhmana and the son that of an ascetic. Almost every verse uttered by the son here could just as well occur in a Buddhist or Jain text. Compare XII.174,177-179 of the Mahābhārata with the Uttarā (14-21-23) and XII. 174,13 with the Buddhist Dhammapada, 47f. A similar dialogue occurs in the Jätaka, No.509; Winternitz, History of Indian Lit., 1,417n 2. The following fourteen subjects of study (vijjatthana) are mentioned in the Uttara Com., 3,56a: the four Vedas, six Vedangas, Mimāmsā, Nyaya, Purāna and Dharmasastra. 3. Identified with Kankjol in Santhal Pargana in Bihar.
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died at the Mt. Vipula. He was reborn in heaven. He is entitled to achieve liberation in near future.
9. The Ascetic Jinapalita In the city of Campā there lived two brothers Jinapalita and Jinarakṣita, the sons of the merchant Makandi. Both had made a voyage across the Lavana ocean several times. But as they were not satisfied, they undertook another voyage. This time as they were going along, there appeared an untimely storm as a result of which the sky was covered with clouds and the sound of thunder was produced followed by flesh of lightening. The vessel hit by violent tides of the high sea whirled around and broke. The passengers aboard the ship were terribly frightened and started crying. The merchandise and all personnel manning the ship were drowned into the sea.
Luckily the two brothers got hold of a large wooden plank and with that arrived in a fairy land of Ratnadvipa. There lived a presiding deity of the island. As soon as she learnt about the arrival of the new comers she appeared there and warned them to live in her palace enjoying pleasures with her, otherwise she said she would cut them to pieces with her sword. Both agreed to obey the command of the deity.
After some time as the deity had to go out, she instructed them to enjoy their stay in that island during her absence and never to go to the southern portion of the palace, where there was a danger to be swallowed by a dreadful cobra. But after the deity left the palace, both decided to visit the southern garden.
When they reached there, they noticed a foul smell emitting from there. They covered their nose with a piece of cloth and proceeded further. Here they noticed a place of execution with a large heap of bones and skeletons. A man was seen groaning with pain hanging on the gallows. He told them to be very careful of the deity as it was her usual practice to enjoy pleasures with the new comer and then execute him after her lust was gratified. He told them if they wanted to get rid of the wicked deity they could seek the help of the yakşa named Sailaka.
They approached the yakşa and invoked him for assistance. The yaksa got ready to rescue them provided they remained firm and steadfast, undisturbed by the temptations offered by the deity. After they agreed to obey him, the yakṣa assumed the form of a horse, made them ride on his back and galloped towards the city of Campā with speed.
In the meantime, when the deity returned to her palace, not finding the new comers there, she got furious and rushed towards them. Seeing them going on a horseback, she scolded them and threatened them with dire consequences. When she found that her words did not produce any effect, she started coaxing and cajoling them, trying to seduce them by means of amorous gestures, When she found that that too was not a successful device, she resorted to creating dissention amongest them. She praised one and despised the other. This produced the desired effect and as a result Jinarakṣita felt prey to the deity being fascinated by her charming words and coquetish glances. Knowing that his mind was tottering and shacky the yaksa immediately threw him down into the sea. The wicked deity caught hold of him and cut him to pieces with her sword. On the other hand, Jinapālita, who remained steady and restrained, unaffected by
d as a result Jinar. She praised one and t a successful devicebem by means
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the allurement created by the deity, reached home safely. Finally he accepted the vows of a monk, practised penance and achieved liberation.
10. The Ascetic Dhanya (the Nandi-fruit narrative) In the city of Campā there lived a rich merchant Dhanya by name. Once he said to himself that in order to earn wealth he should make a journey to Ahicchatrā (Ramnagar in Barelly district in Uttar Pradesh). He loaded his carts and waggons with various merchandise and made an announcement, saying that in order to earn wealth he proposed to make a voyage to Ahicchatrā, and if any tradesman or recluse was interested in accompanying him he was most welcome. He also reported that he would be furnished with an umbrella, shoes, a water-pot and food and drink, if needed and every care would be taken in case one fell sick or due to infirmity was unable to walk.
Then an auspicious day and time was chosen, relatives and friends were called for dinner, their permission was obtained for undertaking the journey, and the merchant Dhanya, with loaded carts of merchandise, accompanied by numerous merchants set out for his destination.
After travelling a little distance, he came across a forest. He told his fellow-travellers “O travellers, this forest is full of trees, leaves, flowers and fruits. Amongst them you will notice a beautiful tree called nandiphal, providing a cool shadow. You should never be tempted to taste its fruits nor take rest under its shadow. If it is not possible for you to control yourself, and you are induced to eat the fruits, you are bound to perish.
But some travellers, not heeding his warning, being tempted by the fruits, proceed towards the trees. They plucked the fruits, ate them and died instantaneously. On the other hand, who listened to the warning of their leader, avoided the fruits, remained healthy and were able to reach their destination safe and sound.
The merchant Dhanya arrived safely at Ahicchatra. He offered gifts to the king and was exempted from paying taxes. After disposing his merchandise and making profit he returned to Campā. In course of time, after listening to the religious discourse of an ascetic, he renounced the worldly pleasures and joined the order of monks. He practised penance and was released from pleasure and pain and achieved salvation.
11. The Ascetic Dhanya In the city of Rājagrha there lived a merchant named Dhanya with his wife Bhadrā. He had five sons and a daughter named Sumsumā. The father engaged a servant,named Cilāya to take care of his daughter. The servant played with her and made her play with other children. Since Cilāya was a quarrelsome boy, the children's parents made a complaint against him as a result of which he was dismissed from service.
Cilaya wandered as a vagabond from place to place. One day, he was introduced to Vijaya, the leader of five hundred robbers of Sihaguhā, and he joined his gang. He was appointed as a body-guard of Vijaya and always guarded him with a sword in his hand. When the leader went
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out for his robbery campaign, the body-guard Cilaya was put in charge of the village robbers. The robber-leader taught him various useful spells and incantations pertaining to robbery. In course of time, Vijaya died and Cilāya was consecrated in his place with great pomp. Once after consultation with his colleagues, Cilāya proposed to commit dacoity in the house of his previous master Dhanya. Receiving instructions from their leader, the robbers wore wet leather, clad in male coats, tightened the leather strap on hand, put on a chain around their neck and displayed other special marks. Thus getting ready with arms, weapons, arrows and quivers, with their shanks armed with hanging bells, they set out to their destination amidst the tumult of musical instruments and beating of drums. When they reached the city-gate, the ring-leader recited the spell which caused the door open. Then they entered the house of Dhanya in order to commit robbery. Dhanya was terribly frightened and he fled with his five sons, living his daughter Sumsumā behind. The robbers seized huge amount of wealth from his house, abducted Sumsumā and returned to the forest.
Next morning, Dhanya approached the city-police with a large amount of gifts and lodged complaint about the robbery in his house. The police officers clad in male coats, set out in serach of the offenders. In order to catch them they rushed to the forest. When the robbers came to know that they were being followed by police, they abandoned the wealth, and their leader Cilaya entered into the think forest, carrying Sumsumā with him. After a while when he was unable to carry her further, he behaded her and took her head away with him.
Now after a long hunt, Dhanya and his five sons were very tired. They were unable to get anything to eat in the forest. Having a pity on his sons, the father offered his own flesh and blood to his sons so that they could satisfy their hunger and thirst and return to the city safely. But how the sons could accept such an offer from their revered father? In return, each of them offered his own flesh and blood to their loving father, suggesting that his life was more valuable than theirs. In the end, at the suggestion of their father, they agreed to feed upon the flesh and blood of Sumsuma's corpse. Then all of them returned home.
In course of time, after listening to the religious discourse of Mahāvira Dhanya joined the ascetic order and after practising penance, got rid of pleasant and unpleasant karmas and achieved salvation.
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SECTION THREE
The Narratives of the Female Ascetics (Samaņi-kahäņagāni) Before we actually come to the narratives of female ascetics, who have attained nirvāna, let us examine the position of women in Jain religion.
First of all, if a man is entitled to attain the highest goal of life, why should a woman be deprived of the same? Mahāvira does not seem to have made a distinction of caste, colour, creed or sex in his teachings and has declared that whosoever practises right faith, right knowledge and right conduct, is entitled to attain the summum bonum.
We come across two different traditions amongst Jains, one represented by the Digambara sect, another by the Svetāmbara one. In the Digambara (sky-clad) tradition, as the very name indicates, nudity is an absolute prerequisite for monkhood, and as it was not considered virtuous that nuns, like monks, should move about naked, thus women were denied the right of achieving the highest goal of life, i.e nirvāņa. One can say that the right of attaining nirvāna was not denied to women because they were inferior to their brothers, but because of nudity, which everyone assumed, applied more rigidly to women than to men. Digambaras believed that a woman lacks the admantine body necessary to attain liberation, hence she is entitled to attain this goal only when she is reborn as a man.' Svetāmbaras (white-clad) do not consider nudity as an absolute prerequisite for monkhood, they assert the optional nature of this practise, of course they disapprove attachment to clothing.
It may be mentioned that before the bifurcation of Jainism into Digambaras and Svetāmbaras in the first century A.D. there seemed to be no hard and fast rules regarding wearing clothes for monks. Some wore clothes and others moved about naked. As a matter of fact, emphasis was laid down on self-purification rather than the external symbols such as clothes etc.
A point that arises about woman is that inspite of sanctioning the highest goal of perfection to them, why have they been condemned by Jain writers? A monk has been instructed to keep at a distance from women if he wanted to accomplish his goal of perfection. It is stated that as a pot filled with lac catches fire in no time so a monk is lost through the association of a woman. It has been stated in canonical literature, “A monk of three years standing could become a teacher of a nun of thirty years standing, and that a monk of five years standing could become a teacher of a nun of sixty years standing." It seems Jains were alive to such wholesome criticism.
1. It is to be noted that Virasena (9th century A.D.) a Digambara, in his commentary of Satkhandagama (Sūtra 2) has supported the view of salvation to women. According to him, she is entitled to have fouteen gunasthanas (stages of purification) in her internal state (bhāvastri): katham punastāsu caturdaśa gunasthānāniti cet? na bhāvastrivisista manusya gatau tat sattvāvirodhāt, after Prakrit Sahitya ka Itihas, p.279. Then Sākatāyana (8th century A.D.), a renowned grammarian and the head of the Yāpaniya Sangha, in his Strinirvana-kevalibhuktiPrakarana (with his self-composed commentary) has advocated the achievement of salvation to women in the same birth, Ed. Muni Jambuvijaya, Bhavnagar, 1974 2. Vya Bhā, 7.15-16;7.407. For more or less a similar statement see Cullavagga, 10,1,2, p.374
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30 In the Vasudevahindi we come across a Jain monk condemning Sāmadattā for her treacherous deeds towards her benefactor. Dhammilla, the hero of the tale, questioned the monk, "O revered one, are all women of such a nature as Samadattā? There must have been some nobleminded and virtuous women too." Thereupon the monk narrated the story of another woman Dharini, who remained virtuous for twelve long years without her husband. It has been argued that if a woman is a progenitor of great men like the Tirthankaras and other Excellent Men, how could she be despised and looked down upon? When Aristanemi made up his mind to renounce the worldly pleasures and join the ascetic order, his parents tried to dissuade him from his resolve of becoming a monk. They cited examples of Rsabha and other Tirtharkaras who enjoyed a married life, raised children, gave charity to poor, ruled over the earth for the welfare of the subjects, and then at last, in their ripe age, relinquish the world. That indicates that the Jains could not simply overlook the important role played by women in our social structure. It is true that the ascetic philosophy could not afford to favour women, as in that case it would have been difficult for monks to stick to their vows of celibacy. Here we are going to have narratives of female ascetics who are said to have succeeded in achieving their goal of nirvana.
arried life, fai monk. They ciascetic order, hiristanemi made e
1. The Female Ascetic Draupadi Draupadi was daughter of king Drupada of Kampilyapura? by his wife Cūlani. When she became of marriagable age, her father convened a svayamvara (self-choice) marriage for her. The festival was attended by numerous kings, princes and distinguished personalities arriving from far off places. They were received with great pomp and rejoicing and arrangements were made for their entertainment. Then with the beat of drum the commencement of the ceremony was proclaimed, requesting the guests to assemble in the svayamvara-hall, especially built for the purpose on the bank of the Gangā. It was cleaned and sprinkled with perfumed water and was odorous with flowers of various colours, black alowood, olibanum and other fragrant substances. The seats were arranged for the visitors, marked with their names. All were waiting for princess Draupadi to arrive. In the meantime the princess was given bath, she performed lustratory rites, wore festive clean garments, paid homage to the deity by offering pūjā. After that she was gayly dressed and adorned with ornaments. Then accompanied by her maidservants, riding in a beautiful chariot, she stepped into the hall. She was holding a pretty charming garland, made of fragrant flowers, emitting excellent smell. She was moving about in the hall in the company of her play-nurse, holding a bright mirror in her hand. The play-nurse was pointing out with her right hand the family, the valour, the gotra, the power, the beauty, the learning, the grandeur, the youth and the character of kings and princes who were present there and whose refleaction was cast in the mirror. All of them were enamoured of princes' charm and beauty, each jealous of the other, and every single individual hoped to win her. At last she
1. See Jagdishchandra Jain, Prakrit Narrative Lit., pp. 115ff 2. Kampil in farrukhabad district in Uttar Pradesh. Makandi in Jinasena's Harivamsa purāna, 45.121 3. Bhogavati in Jinasena's Harivamsapurāna, ibid 4. In the Mahabharata, Dhrstadyumna, the brother of Draupadi, accompanied her.
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arrived to the place where the five Pandava brothers were seated and put the garland around their neck and chose them as their husbands.
It seems the idea of polyandrous marriage was not appreciated by Jains, like Brahmaņas. They made Draupadi herself responsible for such an unsanctified marriage which resulted of her impious deeds in previous life. It has been stated that in her previous birth of Nāgasirī, a Brahmana woman, she had offered poisonous food to a monk, Dharmaruci. Noticing that numerous ants were dying after tasting that food, the monk himself swallowed the food and preferred to die. Nagasiri was stricken and was driven out of the house. Irr her following birth she was reborn as a merchant's daughter, named Sukumäliyā. She got married, but her husband unable to bear the touch of her body, deserted her. She became a nun and started practising penance. Once when she was roaming about as a nun, she happened to see a courtesan, attended by her five wooers, one was making her sit on his lap, another holding an umbrella over her, one was dressing her with a crown of flowers, another was busy in decorating her feet with red-dye and another was waving the fly-whisks over her. On seeing this the nun was greatly excited and she claimed the reward of the penitential acts (nidāna) in her following birth. As a result of this nidāna she was born as Draupadi.?
2. The Female Ascetic Pottila In the town of Teyalipura there lived a king named Kanakaratha. Teyaliputra was his minister; he was well-versed in four types of political wisdom, i.e. conciliation, bribery, punishment and discord. One day while he was going out for horse-riding, he happened to see a beautiful daughter of a goldsmith. He felt enamoured of her beauty and thought of marrying her. The minister approached the goldsmith and told him what he had thought about. He inquired about the price he had to pay for marrying his daughter. The goldsmith was happy to know the minster's offer. He told him that it was more than enough that a minister wanted to marry his daughter therefore he need not worry about the payment.
In course of time, Pottilā was given a bath and richly dressed and adorned. She was made to sit in a palanquin and the goldsmith, accompanied by his friends and relatives reached the house of the minister. There the bride and the bridegroom were made to sit on a board, they
1. It seems Jinasena does not approve Draupadi's marriage with five persons. He advocates that she was married only to Arjuna; she was considered a daughter-in-law of Yudhişthira and Bhima and Nakula and Sahadeva considered her to be their mother (45.150). His explanation is that when Drupadi was putting garland around Arjuna's neck, blown away by the force of wind, it fell on the body of his four brothers, therefore she was, in fact, married only to one man and not to four (45.135-36). In the Mahābhārata, Arjuna is said to have declared in the presence of his mother and brothers that though he had won Draupadi for himself alone, but in accordance with the ancient custom of the family, she must become the wife of all'five brothers. Later on to justify the marriage to five husbands, various legends were invented: (i) A maiden who could not obtain a husband, cried five times 'give me a husband'. God Siva granted her request promising her five husbands in a future birth. This maiden was reborn as Draupadi; (ii) Pandavas when coming home announced to their mother that they had brought 'the alms', which they had collected while gone for begging. The mother replied, enjoy it altogether'; (iii) Indra, as a punishment for having offended Siva, is reborn on earth in five parts and an incarnation of Lakşmi is destined to be his wife. See Winternitz, History of Indian Lit., I 337n 2. The Jain version of Draupadi's story is a corruption of Mahābhārata legend of Draupadi's marriage with five Pandavas, Winternitz, History of Indian Lit. 11,448
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were given a bath by white and yellow water pitchers, oblation was offered to the fire and the wedding ceremony was performed with great rejoicing.
After marriage both passed their time in enjoying worldly pleasures. After some time as the luck would have it, Pottilä lost her husband's love and her husband started hating her and did not even like to hear her name. Pottila was worried and greatly upset. She spent her time in giving charity to mendicants and ascetics while performing religious duties.
One day a nun, named Suvrata arrived in her house for bigging alms. Potțilā welcomed her and after giving her alms, talked to her about her husband's displeasure. She bowed to the nun submitting that as learned and experienced she was, she might be able to advise her in the matter. She continued that she would be obliged to her if the revered nun suggested some charm, incantation, powder, medicine or application so that she could regain her husband's love. On hearing this the nun closed her ears with both hands, saying that it was most sinful for her even to listen to such talks.
After some time Pottilä joined the nun's order. In the meantime, king Kanakaratha died and the prince Kanakadhvaja succeeded to the throne. For some time the minister Teyaliputra was in the good books of the king and was consulted in every important state affair. But later, some differences arose between them, as a result of which the minister got scared and said to himself that some day the king might put him to death. The minister came home but nobody showed him any respect. Thereupon he tried to end his life employing various means, but could not succeed. Now, as had been stipulated earlier, his wife Pottilä, who was reborn as a heavenly god, descended from her abode and preached him the teachings of Jina. On hearing those teachings Teyaliputra was enlightened. He joined the ascetic order and in course of time achieved liberation.
3. The Female Ascetic Subhadrā
In the city of Varanasi there lived a merchant named Bhadra with his wife Subhadra. As she had no issue she used to brood over and was constantly thinking of those mothers who were blessed with children.
Once a nun arrived in the town and happened to visit Subhadra's house. After entertaining the nun, Subhadra asked her if she was in a position to prescribe her some spell, magical incantation, medicine or herb so that she could give birth to a child. The nun preached her religious sermons instead, as a result of which Subhadra accepted the vows of a Jain laywoman. Later in order to join the ascetic order, she went to her husband and asked his permission. The husband tried to disuade her from her resolve by giving various arguments, but it was of no effect. Ultimately, the friends and relatives were invited for dinner, Subhadra was given bath, lustratory rites were performed and she was led to nun Suvrata to be initiated.
After Subhadra became a nun, she became fond of children. She fondled them, nursed them and dressed them nicely. Subhadra was reprimanded for her behaviour but it was in vain. Subhadra said to herself, "When she was a householder, she was free to do things and nobody interferred in her work, but now the nuns criticised her and disapproved her actions." With these ideas in her mind, she relinquished the order and returned to the household life.
In course of time she died and was reborn as Soma, the daughter of a Brahmaṇa. Within few
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years she gave birth to thirty-two children. She was greatly harassed and tormented by them and thought how nice it would have been if she were sterile. She accepted the vows of a Jain laywoman. Later she became a nun and achieved the highest end of life by practising austerities.
4. The Female Ascetic Jayanti In the city of Kausāmbi there ruled the king Udayana, who was a son of king Satanika by his queen Mrgavati and the grandson of Sahasranika. Jayanti, a devotee of Jain monks, was the daughter of Sahasranika, the sister of Satānika and the aunt (father's sister) of Udayana. During the era of Mahavira, Jayanti gave refuge to Jain monks and Jain devotees, therefore she was known as the first sayyātari (sejjatari).
Once Mahavira arrived in Kausambi and sojourned in the shrine of Candovatarana. As soon as king Udayana heard the news of Mahavira's arrival he was extremely happy and ordered his attendants to clean, to sweep and to sprinkle the city. Jayanti, a devotee of sramaņas, too felt delighted to learn of Mahavira's arrival. She immediately approached queen. Mrgāvati and conveyed the news to her, telling her that even to hear the name of such revered teacher causes happiness, delight and pleasure, not only in this life but also in future lives. Therefore a personal homage must be paid to such a personality, she said Mrgavati too felt joyous and ordered her attendants to prepare for the pilgrimage to Mahavira.
Mrgavati and Jayanti had their baths, made offering to the house-deity, performed auspicious and expiatory rites, properly dressed and adorned with ornaments, and accompained by other queens and female attendants, set out to pay homage to revered Teacher. They waited upon the Tirthankara and after paying due reverence, listened to his religious discourses. Then king Udayana and his mother queen Mrgāvati returned home. Jayanti who stayed behind, put her querries to Mahavira: Jayanti: Revered Sir, how does the soul become burdensome? Teacher: By taking recourse to violence, telling lies, stealing, indulging in sensual activities,
possesiveness, anger, egoism, deceit, greed, desire, aversion, quarrel, accusation,
pleasure (rati) or displeasure (arati), etc. Jayanti: O revered one, sleepiness is good or keeping awake is good? Teacher: Jayanti, sleepiness is good for some, whereas keeping awake is also good for others.
It is good to sleep for those who are on unrighteous path so that they are unable to inflict pain on others and do not get mixed up with wicked deeds. But it is good to keep awake for those who are on the righteous path. If such persons keep awake and remain vigilant they can be of immense service to others and show righteous path to
many. Jayanti: O revered sir, which is better? Strength of weakness? which has a better quality?
Strenuousness or laziness? Teacher: Jayanti, it is good to possess strength or strenuousness for those who are morally
respectable and virtuous, whereas it is good to be weak and lazy for those who are
irreligious and wicked. After being satisfied with the answers given by Mahāvira, Jayanti was initiated into Mahavira's order and was entrusted to the care of Candanā, the head of the nuns. In course of time, Jayanti practised penance and after cutting asunder the ties of karmas, achieved nirvana.
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SECTION FOUR
Narratives of the Devoties of the Ascetics (Samaşovasaga-kahanagani)
1. The Narrative of Paesi When the heavenly god Sūriyabha presented himself to pay homage to Mahavira, the latter narrated the glory of the god to his pupil Goyama. He told him about his previous life in the birth of king Paesi of Seyaviya. Paesi's charioteer Citta was well-versed in four types of political wisdom. Once the king sent his minister to king Jitasatru of Srāvasti with presents to be delivered to him. At that time the monk Kesi, the desciple of Parsva, was sojourning in the town. The minister happened to visit him and being inspired by his sermons, invited the monk to visit Seyaviya.
Paesi, the ruler of Seyaviyā, was harsh and cruel having no respect for virtuous people. He used to harass his subjects by charging them heavy taxes. When Kesi arrived in Seyaviyā, Citta persuaded the king to visit the monk.
An interesting dialogue is recorded here between the king Paesi and the monk Kesi, the subject of the dialogue being the existence of soul different from body. In the opinion of King Paesi the soul does not exist as a separate entity different from the body. In support of his view, he cited an example of a thief, sentenced to death, whose body was cut off and torn to pieces, but there was no trace of soul anywhere.
The monk Kesi refuted his argument by citing a counter-illustration of a hall which is well-protected from all sides with its doors tightly closed so that there was not the least chance for the air to enter. Now if somebody entered into the hall with a drum and a stick, and after closing the doors tightly, beat the drum, would the sound be heard outside the hall? Yes, it would be heard, though there had been no hole in the hall for the sound to pass out. In the same way, O Paesi, the movement of the soul is free and it is difficult to obstruct it. It passes through the earth, rock or mountain without being hindered. Therefore soul is different from body and is invisible.
Further, explaining the nature of soul, Kesi stated that it remained of the size of the body it dwelt in. Though soul was non-material but at the same time it was subject to contraction and expansion in its mundane state. But king Paesi argued that under those conditions soul would lose weight when transformed from a large body to a smaller one and that process might result in destruction of soul. The monk Kesi explained that soul contained a special quality whereby there was neither gain (guru) nor loss (laghu) in the inherent nature of a soul when it underwent transformation. This quality of soul is known as agurulaghu. This is further illustrated by the example of a piece of cloth, which retains its original form whether it is folded or spread out.
The king Paesi was converted and became a Jain adherent. He started devoting his time in practising meditation and austerity. But his queen did not like that leaving her alone he should devote his time to such things, therefore she poisoned him. But the king who had accepted the vows of a monk, did not cultivate any ill-feeling against his wife. After his death he was reborn as a heavenly god and eventually will attain nirvāna.'
1. See P.S.Jaini, ibid, pp 57-59
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nd chirping of a in the four cohen-house in
cikitsalayas, constructores in the animals
and a mast, a kitch hers of
2. The Narrative of Nanda Maniyara In the city of Rajagpha there lived a jeweller (maniyāra) named Nanda. He had accepted the vows of a Jain layman from Mahavira. Later, as he fell in a bad company he neglected his religious duties. Once in summer time he had undertaken a fast and was staying in his fastinghall. At that time he suffered from extreme hunger and thirst which upset him. He thought of constructing a pond for the public use so that the travellers and others could quench their thirst and pause there.
Next morning, he got up and in order to obtain the king's permission for digging the pond approached him with gifts. After obtaining permission, near the Mt. Vaibhāra, at the sight approved by architects, he got a beautiful pond constructed. The pond looked charming with coloured flowers and chattering and chirping of acquatic animals and birds. In order to make it more attractive, he planted a grove of trees in the four corners of the pond. Then a picture - gallery (cittasabhā) was constructed on the east, a kitchen-house (mahanasasālá) on the south, a hospital (cikitsālaya) on the west and a barber's shop (alankāriya-sabhā) in the north. When the pond was ready various people such as travellers, wayfarers, manual workers, orphans, beggars and mendicants arrived there and reposed themselves. They were also provided with many other facilities. By this charitable deed the jeweller Nanda became known all over and people started talking about his selfless service. Nanda was very happy to hear people talking about his glorious deeds. But this applaud proved to be unfavourable as now he was not able to observe his vows so carefully as before.
After some time Nanda fell ill and suffered from various diseases. When the physicians could not cure him he made a public declaration that whosoever would cure him, would be honoured with as much wealth as he desired. Many tried their luck but no one was able to cure him.
Nanda died and as he was too much attached to his pond, he was reborn there as a frog. At that time Mahāvira was sojourning in the shrine of Gunasila in Rajagrha. The frog is said to have realised his guilt of his previous life so he thought of paying homage to Mahāvira. He was toddling to the shrine slowly and slowly when he got crushed under the hoof of a horse. His entrails were thrown out and he was unable to go further. At this time, with all his strength he tried to recite the sacred formula 'namotthu nam arahantānam' (salutations to the arhantas) and died. After death the frog was reborn as a heavenly god.
. By this here and savellers,
3. The Jain Adherent Ananda Ananda was a rich householder of Vaniyagama owning huge land and a large number of cattle. He possessed forty million measures of gold buried in a safe place and another forty thousand put out on interest.
Once when venerable ascetic Mahavira arrived in the town, Ananda thought of making a pilgrimage to him. He bathed and adorned himself with fine clothing and ornaments and
1. A similar story is narrated in Samantabhadra's Ratnakarandasravakācāra (4.30)
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surrounded by his large retinue, approached Mahavira. Mahavira interpreted the law to him, and Ananda having accepted the five gross vows of a layman, became his disciple. After returning home, Ananda explained the efficaciousness of the vows to his wife and convinced her of their importance. Thus both husband and wife became devotees of the niggantha ascetics.
One day he called his son and told him that he was not to consult him any more on worldly matters. Thus deputing his son he devoted himself fully in his religious commitments. He walked into the fasting-hall, swept the ground, spread a bed of grass and sat down to meditate. Thus confirming to the scriptures he observe eleven pratimas (stages of renunciation for a layman) and carried out his fast. In course of time, he renounced all food and drink and patiently waited for his end.
Ananda during the course of his austerities, gained supernatural sight (avadhijnana) with Which he could view an area of five hundred yojanas (one yojana = 8 or 9 miles) across the earth, as well as upwards to the first heaven and downwards to the first hell. Now it so happened that Goyama, the first gandhara (the chief disciple) happened to visit the town. When he heard about the great austerities of Ananda, he decided to meet him. He proceeded to the place where Ananda was dwelling. But as Ananda was feeling extremely weak and ematiated and was unable to go forward towards the venerable ganadhara, he requested him to come near him. Ananda told him about his attainment of supernatural sight and that he could view things upto five hundred yojanas. But Goyama would not believe such a claim was possible on the part of a householder. He approached venerable Mahavira, who was sojourning in the town then and asked him if the claim of Ananda was right. Mahavira replied in affirmative and Goyama had to undergo expiation for doubting the statement of Ananda.
Ananda died after undertaking sallekhana (fast unto death) for one month and was reborn as a heavenly god. Eventually he would achieve salvation.
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SECTION FIVE
Naratives of the Schisms (Nighava-kahanagani)
The Narrative of Gosala, the Ajivika-Tirthankara
Gosala Mankhaliputta was born in the settlement Saravana in the cow-shed of a Brahmana named Gobahula. Gosala's father was called mankhali, mankha' being a mendicant, who went begging alms from place to place exhibiting the picture which he carried in his hand. Once along with his pregnant wife Bhadda he came to Saravana settlement and took refuge in the cow-shed where his wife bore him a son. Since the child was born in a cow-shed (gosälä) he was named as Gosala. Gosäla grew up and having learnt the profession of a mankha went about begging. Once he arrived in a weaver's shed in Nalanda where Mahavira was sojourning during the monsoon. Gosala is said to have observed divine phenomena in the presence of Mahavira and paid extraordinary respects to him. Gosala is said to have expressed his desire to become Mahavira's desciple and the permission was granted. They travelled together.
Once while travelling they came across the ascetic Vesayana who was practising penance with upraised arms and upturned face in the glaring sun. Gosala made fun of him which annoyed the ascetic who hit him with his magic power (tejolesya). Thereupon using his own magic power, Mahavira saved him. At the request of Gosāla, Mahavira explained the way to attain the magic power. Over a period of time arose a difference of opinion between them and Gosäla separated from Mahavira. Gosäla is said to have followed Mahävira's path of asceticism and after six months acquired the magical power. Gosala then professed himself as a Jina and became the head of the Ajivika sect. The centre of activities of this sect. was Sāvatthi, where lived Hälähala, a potter woman, a lay disciple of the Ajivikas. Once Gosala in the twenty-fourth year of his ascetic life, was staying in her shed and at the same time Mahavira was also sojourning in the same town. When Mahavira heard about Gosala's account of his life, he denied his claim to Jinahood.. On hearing this Gosala was enraged. He called Ananda, a disciple of Mahavira, and told him that if his teacher came in his way, he would destroy him by his miraculous power. Ananda reported this to Mahavira. The latter admitted the validity of Gosala's claim and said that it was capable of destroying sixteen janapadas such as Anga, Vanga, Magadha etc. but added that it could have no effect on an Arhat because his own miraculous power was still greater. In the meantime Gosala approached Mahavira and explained to him in detail his theories and enumerated his own seven births. Thereupon Mahavira compared him with a thief who imagines himself to be concealed though he is not, and thinks that he would not be recognised. On hearing these words Gosala was enraged and he started calling Mahavira bad names and he destroyed two of his disciples by his miraculous power when they tried to oppose him. Then he turned to Mahavira himself declaring that as a result of his magic power he would die of bilious fever within
1. The mankha mendicants were of four types: (i) they begged alms by showing pictures (mankha) without speaking (ii) they did not show pictures but recited verses, (iii) they neither showed pictures nor recited verses but spoke something (iv) they showed pictures and expalined the meaning of the verses they recited, Brh Bhā Pi, 200
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six months. Mahavira retorted that he would live for another sixteen years, whereas Gosāla's magic power would rebound on him and he would perish within seven days. The rumour of this dispute spread far and wide.
Now Mahavira told his followers to worry Gosala with questions and querries. Thereafter Gosala returned to Hālāhala's workshop where in the delirium of fever he is said to have given himself up to drinking, singing, dancing, soliciting Hālähalā and sprinkling himself with cold muddy water. Knowing that his end was approaching he is said to have called his elderly monks and asked them to tie his left foot with a chord and express contempt by spitting thrice into his mouth and then carry him around the city and bury him with every mark of dishonour and publicly proclaiming shame. On the other hand, though Mahāvira did fall ill due to the effects of Gosāla's magic power, he was able to cure himself by taking medicine. It is stated that Gosala was reborn in heaven and eventually he would attain salvation.
It seems from the Jain and Buddhist records that the Ājivika was an important sect which exercised considerable influence in Indian social and religious life. It is to be noted that the contents of the Ditthivāya recorded in the Nandi refer to eighty-eight Sūtras, out of which twenty-two are said to have followed the Ajivika tradition, and twenty-two those of the Terasiyas, the disciples of Gosāla, according to the commentator Abhayadeva. In the opinion of H. Jacobi, as Mahāvira and Gosāla practised austerities together for quite some time, the former seems to have been influenced by the doctrines of the latter. Unfortunately, no independent authentic records of Gosala's doctrines have come forth so far for which we have to depend solely on the Jain and the Buddhist sources. In the Buddhist sources, Gosāla, the leader of the Ajivikas, is spoken of as the successor of Nanda Vacca and Kisa Samkicca and of his sect Acelaka Paribbajakas, as a long established order of monks. The order of the Ajivikas is thrice mentioned in the edicts of Emperor Asoka, whose grandson Dasaratha gave them some cavedwellings at the Nagarjuna and Barabar Hills. Varāhamihira (about 550 A.D.) mentions this sect as one of the seven sects of his time.
1. As Svetāmbaras find it difficult to justify this episode, they have classified the whole occurance as an extraordinary happening (ascarya), an unheard of calamity (upasarga), and an event so astonishing that it could happen only once in billion of years. In the Digambara tradition, the ascetic surrounding of a Tirthankara is dominated by peace and good feelings. In this tradition, in the period of hundāvasarpiņi there may occur certain extraordinary events such as a calamity befalling a Tirtharkara, P.S.Jaini, ibid, p.25n 2. Vame pade sumbena bandhanti (Bhagavati, 15; Dhammakahānuoga, V, 410). The same expression is used in the case of the mendicant Moriyaputta Tämali (Bhagavati, 3.1; Dhammakahānuoga, II. 63 3. A.F.R.Hoernle, Appendix to Uvasagadasão, Vols I & II, Calcutta, 1888-1890 4. Su 57 5. Samavaya . Com., 22, p.38 a. However, according to the Kalpsutra (8, p.228a), the Terasiyas were the descendants of Mahāgiri. For variants of twenty-two Sutra see Nandisuttam Anuogadāraim, p.44, notel, Ed. by Muni Punyavijaya. 6. Jain Sutra, XLV, intro., XXIX-XXX: (i) the expression sabbe sattā sabbe pānä sabbe bhūtā sabbe jiva is common to both, (ii) the division of animals into ekendriya, dvindriya etc. is common in Jain texts and also accepted by Gosala, (iii) the doctrine of six lesyas of the Jains clearly resemble Gosala's division of mankind into six classes, (iv) Similarity of various rules of conduct in both. A.L.Basham has found out a number of Ajivika terms and concepts common with Jain and Buddhist texts, History and Doctrine of the Ajivikas, pp 240ff. However, it seems both these sects exerted influence on each other, see N.N.Bhattacharya, Jain Philosophy Historical Outline, pp 177f.
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SECTION SIX
The Miscellaneous Narratives (Paiņnaya-kahāņagāņi)
1. The Narrative of Peahen Eggs Once upon a time two young merchant boys of Campā went for an outing. There they noticed in a grove that a peahen had laid eggs. On hearing the footsteps of the young boys, the peahen got frightened and flew away and perched on a tree. When the young boys entered the grove they noticed two beautiful eggs. Facinated by their beauty they brought them home and kept them along with other eggs for hatching.
In order to ensure that a young beautiful peacock would emerge out of the egg, the first boy often shook and moved it to and fro in order to hear its sound inside the shell. Because of this repeated shaking the egg lost its life and no young peacock emerged out of the egg. The second boy was sure that a young peacock would emerge out of the egg so he never moved it or shock it to hear its sound, but let it grow in its natural way. In the course of time, a young beautiful peacock was seem emerging out of the egg. The boy took proper care of the young peacock and later entrusted it to a peacock tamer to teach him dancing. Very soon the peacock became a skilled dancer.
2. The Narratives of Two Turtles In the depths of a pool in the Ganga at Varanasi there lived two turtles. And in the nearby grove resided two vultures greedy of flesh.
Once two turtles came out of the pool in search of food. At the same time the two vultures were also hovering around the area. They noticed the turtles moving around and pounced on them. Seeing the vultures approaching them both the turtles withdraw themselves under their shell and remained still. Thereupon both the vultures came closer to them and started shaking them and piercing them with their talons. But the turtles remained still and did not move. The vultures tried to hit them a couple of times and became tired, left them and retired to their place.
Now thinking that the vultures had gone away, one of the turtles put its one leg out of its shell. Seeing this, one of the vultures, sitting at a distance, pounced upon the turtle, seized its leg and crushed it with teeth. The vulture also gulped down the other parts of its body.
Then the two vultures went near the other turtle. They moved, shook and turned it to end fro. When nothing came out, seeing the turtle motionless, they left it and went away. Knowing that the vultures have moved far away, the turtle slowly took out his neck and looked around. On seeing no one around it took out its four legs slowly and moved fast to its pool where it lived happily with its kith and kin.
3. The Narrative of Rohiņi Once upon a time there lived a merchant named Dhanya in Rājagrha. He had four sons. One day Dhanya called his four daughters-in-law, named Ujjhikā, Bhogavaiyā, Rakkhiya and
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Rohini, and entrusted them with five grains of rice each, telling them that he would call for them after some time.
Ujjhiyā (meaning throwing away) threw away the grains thinking that her father-in-law had plenty of them in his store-house. Bhogavaiya (one who eats) swallowed them. Rakkhiyā (one who preserves) put them carefully in her casket and preserved them. But Rohini (one who cultivates) planted them and reaped a rich harvest year after year.
After lapse of four years Dhanya called his daughters-in-law and asked for the five grains of rice. On hearing from each one of them what they had done with the grains he entrusted Ujjhikā with the job of cleaining and sweeping the house, and Bhogavaiya with the kitchen work. He rewarded Rakkhiya by appointing her as the head of the treasury and Rohini was made the mistress of the house.
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ERRATA
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footnote
Line Read
For 10 aksepini aksepiņi 37 morality marality 1 Puņnabhadda Punnabhadda 1 must most 5 Samaņaka- Sam anaka
häņagani hānagāni 6 Samanoia- Samanovasaga
Saga 13 Pāšaliputra Pataliputra
Thāņa Thāņā - Aniagada Antagada
. footnote
3 f.n 2(1)
f.n2. (11)
„, f.n (vi)
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18 Nandis na nandisenā ,, nandivard- nandivaradhapi
hini 25 Lakşmimati Laksmimati ,, yaśaprāpt. yasaprăptă suuthità
suutthita 28 paumāvai paumavai ► egaņāsā
eganāsa navamiya navāmijā , siya
siya ,, afihamā atthama ,, TSP
TSP 31 pundarikā pundarika „ ekānamšā ekanamsā 35 pundariya pundarīyā
Thāņa Thānā 36 pundariya pundariya ,, TSP
TSP 39 mahārajā mahārajā ., śraddha
sraddha 41 Angavijjā Angavijja 42 Lakşmi Laksmi 43 alambuşă alambuśã ,. Mišrakesi miśrakesi 44 añadita anāditā ,, airani
airāni, -, timiśra kesi timisrakesi ,, tidhini
tidhini ,, citraratha citrāratha 46 airāņi airāni, 47 nymph numph 13 were carried carried 14 gosisa gosisa
- ekānamsa ekānama 19 alambusā alambusā 22 cittakannagă cittakannagā 23 seyamsa seyamsa 24 sutrāmaņi sutrāmani
7 Dhammaka- Dhammaka
hāņuoga hānuoga 8 Aristanemi Aristanemi ,, Antagada Antagada 9 Nāyā Naya 16 Gunasilaya Gunasilaya
4 Abhinandana Abhinandana 21 disākumā:i disakumari 22 , 25 samvaļaga samvattaga 8 subhogā subhoga
bhogamāliņi bhogamālini 9 Thāņā Thāņa 11 subhogā subhoga 13 mehamāliņi mehamālini 2 Vasudevahi- Vasudevahind:
ndi ,, Cüini Cūrni 4 Thānā Thāna 5 meghamāliņi meghamājini ,, anindiyā anindiya 7 gặt há
gặpha 10 add, p. 119 after 1947 14 Trişastišalakå Trişaştisalaka
TSP TSP
ton 5(a)
,, fin 6(b)
, f.n
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________________
capi
Line Read For
25 soyāmaņi soyāmani 28 Rüya
Ruya .. tūāsiya ruāsia ,, surūä stūā ,, rüyagāvai ruyagával 30 Rüvā
Rūva, 34 ruyamsa ruyamsa 35 capi I ghattila ghattitā », pädenti pādenti 2 bhūtikarma. bhutikarma 3 rakkhapott: rakkhapottaliya
aliya 9 Jāņa Jāpa 19 abhioga abhioga 21 kşiroda ksiroda 23 Ganga Gangā
5 Gphyasūtras Grhyasūtras 13 Sūriyābha Sūriyabha ,, recurs reurs 8 Svetāmbaras Svetāmbaras 2 Sakra's Sakra's , janmābhişeka janmābhiseka 4 abhişeka abhiseka
5 Svetämbara Svetāmbara 22 mutthihim matthihim 5 lohakāra lohakara 8 mutthiloyam mutthiloyam 10 Pasa
Pasa 13 Krsna Krşņa 3 kşīroda ksiroda 7 southern sothero 24 Zarthustra Jarthustra 27 Jambu Jambu 28 Mahāvira3 Mahavira
I Kathākoša Kathākosa 26 Pārsva
Parsva 31 Aristanemi Aristanemi 32 Yadavs Yadavas 35 Krsna Krsna 2 Samavāya Samava ya Silanka
Silanka
Page Line Read
For 12
12 Rājimai Rajimati 12 26 27, 29 Mahavira Mahavira 12 fn 2 Also
Aslo TSP TSP 6 pāņāti panati 9 Arisganemi Aristan imi 17 (cāturmāsa), (cãturmāsa) 19 Bad-pahadi Bad-pahadi 23 Vardhamana Vardhamana
, Tirthankara Tirthankar 27 Kundapura Kundapura 29 Cetaka Cetaka 33 Harīņega Harinega » Negamesi Negamesi 5 eyam
eyam 9 Nayagameşa Nayagāmesa 14
3 jñātrputra Jñārputra 4 Tirthankaras Tirthankaras 16 Rgveda Rgveda 17 Purāņa Purāna 17 Nighantu Nighantu 18 astrology astroley 19 Samkhya Samkhya
22 Açãrānga Acārānga f.n
2 Angai Kheda Angai Kheda 5 Astamgata Astamgata 7 Yakşas
Yaksas » Samhita Samhita 8 Sarira. Sarira 9 embroy's embroys 1 Yasodā Yasodā .: Kodinna Kodinna 2 stated state ,, Piyadamsana Piyadamsaņa 3 Acāsānga Acārānga 6 samvac- samvac
charam 10 Lädha
Ladha 32 Anga Anga 4 varisam varisam ,,cīvaradhāri civarādhari
charam
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Page
For
Pāge 25
29 f.n
Line Read For ,, jiņo
jino 8 Ladha Lādha 1 Bhagavati Bhagavati 5 Anga Anga 10 nirvāņa nirvāna .18 Maghavam Maghavam
., Sanakkumāra Sanakkumāra 23 ratna
ratna I Bharata Bharta 5 Timisa Timsä 17 Vaitadhya Vajtadhya 4 TSP
TSP 5 He
he 6 Govindakūta Govindakūta 30 mañjukā manjukā 35 Gunadhya Gunadhya 16 Mahakala Mahakala 30 Thāvacca- Thavaccaputta
puita 32 Suka Suka 6 Kuśa Kusa 9 Sâmkhya Sāmkhya 18 bilious
billions 28 Hearing hearing 1 väntum vāntum ,, āpātum āpătum 24 sataghnish sataghnis 27 sejja
8 Srenika Srenika 1 100-102 00-102 2 Harikeśa Harikesā 20 these
this 33 santi
sānti 1 Mātanga Matanga 14 vāgarana vāgarana • grammar grammer ,, sankhāņa sankhāna 15 Satthitanta Satthitanta 20 Kayangalā Kayangalā 22 kancaniya kañcaniyā 23 ganettiya
ganettiya 28 kşetra
ksetra
Line Read 32 vow of vowed 7 Vedāngas Vedangas
Mimāmsā Mimāmsā ,. Purāna Purana 5 Lavana Lavana 38 yakşa
yaksa 17 nandiphala nandiphal, 20 proceeded proceed 24 Ahicchatrā Ahicchatra 28 salvation salvation 11 leaving living 18 thick
think 19 beheaded behaded 1 Satkhandā. Sarkhandāgama
gama 2 gunasthāna gupasthāpa 3 katham katham , gunasthāna gunasthāna 5 Strinirväņa Strinirvana 6 Prakarana Prakarana 1 Vasudeva- Vasudevahindi
hindi 5 Dhäriņi Dhārivi 6 Tirthankaras Tirthankaras
7 Aristanemi Aristanemi 11 relinquished relinquish 16 nirvana nirvana 18 Kämpilya- Kampilyapura
pura ,, Cūrni Cūrni 29 gaily
gayly 35 princess princes 2 Farrukhabad farrukhabad 3 Harivamsa- Harivamsa
purāņa purapa 4 Dhrstadyu- Dhrstadyumna
mna 3 Draupadi Drupadi 10 Pāņdavas Pandavas 13 1, 337n 1 337n 25 Värānasi Vārānasi
sejja
23 f.n
31 f.n
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________________
Page
Page 36
, f.n
,, f.n
Line Read For
6 Mrgāvati Mrgāvati 10 Cardova Candovatarana
tarana 16 said. said 18 Mrgavati Mrgavati ,, Javanti Jayanti 35 Strength or Strength of .. Which which 8 Kesi
Kesi 1 The Jain ibid
Path of Purification 1977 13 mahānasa mahanasasālā
sālā 14 alankāriya alankāriya 33 Vāņiyagama Vāpiyagama 1 Ratnakar- Ratpakaranda
anda 9 observed observe 13 which Which
Line Read
For 15 gañadbara gandhara 9 mankha mankha 2 speaking, speaking 12 Gosāla Gosala 22 Samkicca Samkicca 23 Paribbājakas Paribbajakas 3 area
ascetic 6 sumbena sumbena 8 Uvāsaga- Uvasagadasão
dasão 10 Samavaya Samavaya a 11 Sutra
Sutra » note 1 note 1 12 pāņā
Pana 22 withdrew withdraw 30 and
end 35 Rohini Rohini 1 Rohiņi Rohini 5 Robini
Rohini
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१
२
३
धर्मानुयोग-विषय-सूची प्रथम स्कंध
उत्तम पुरुष कथानक मंगलसूत्र
कुलकर
ऋषभ जिन चरित्र
१
कल्याणक नक्षत्र
२
गर्भोत्पत्ति
३
जन्म कल्याणक
४
अधोलोकवासी दिशाकुमारीकृत जन्म-महिमा ५ ऊर्ध्वलोकवासी दिशाकुमारीकृत जन्म-महिमा
पर्वतवासीदिशामारीत जन्म-महिमा मध्यमरुचकपर्वतवासी दिशाकुमारीकृत नाभिनालकर्तन
७
८ दिशाकुमारीकृत माता-पुत्र का मज्जनादि कृत्य ९ देवेन्द्र शक्र का तीर्थंकरके जन्म नगर में गमन ईशानेन्द्र कृत- जन्म - महिमा
१०
१९ असुरेन्द्र बमर कृत जन्म-महिमा
असुरेन्द्रबलि आदि कृत जन्म-महिमा अच्युत - देवेन्द्र कृत तीर्थंकराभिषेक ईशानेन्द्रादि कृत तीर्थकराभिषेक देवेन्द्र शक्र कृत तीर्थंकराभिषेक
भ. ऋषभद्वारा लेखनादि कलाओं का उपदेश.
भ. ऋषभदेव की प्रव्रज्या
भ. ऋषभदेव का अचेलकत्व और उपसर्ग-सहन
भ. ऋषभदेव का अनगार-स्वरूप
भ. ऋषभदेव के प्रतिबन्ध का अभाव
भ. ऋषभदेव का विहार
भ. ऋषभदेव को केवलज्ञान
भ. ऋषभदेव का तीर्थ प्रवर्तन
भ. ऋषभदेव की गणधरादि संपदा
भ. ऋषभदेव के काल में होने वाले सिद्ध
भ. ऋषभदेव के अणगारों का वर्णक
अन्तकृत् भूमि
भ. ऋषभदेव के संघयणादि, कुमारवासादि और निर्वाण
शादि देवेन्द्र कृत निर्वाण महिमा
मल्लीभगवति - चरित्र
विषय-सूची
१ महबल राजा और उसके छ बाल मिश्र
२ महबल आदि की प्रव्रज्या
१-६४०
१-६४०
१-४
५-१७
१८- १४१
१८
१९
२०
२१-२५
२६-२७
२८-३२
३३
३४-३५
३६-६६
६७-७३
७४
७५-७९
८०-९६
९७-९९
१०० १०७
१०८
१०९-१११
११२-११३
११४
११५
११६
११७-११८
११९
१२०-१२१
१२२
१२३
१२४
१२५-१२६
१२७-१४१
१४२-२४१
१४२-१४५
१४६
geste
१-१४४
१-१४४
३
३-४
५-२५ ५
६-७
७
७-८
९
९-१०
१०-१४
१४-१५
१५
१५
१६-१७
१८ १८-१९
१९
o
१९-२०
२०
२०-२१
२१
२१ २१-२२
२२
२२
२३
२३
२३
२३
२३-२५
२६-४८
२६
२६
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सूत्रांक
पृष्ठांक
१४८ १४९ १५० १५१-१५३ १५४-१५७ १५८-१६० १६१-१६५
२८-२९ २९-३०
३०
१६७
३१-३२
३२
३२-३३
२०
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ३ महबल की तप सम्बन्धी माया ४ तीर्थकर नामकर्म-उपार्जन के हेतु ५ महबल आदि का विविध तपाचरण ६ महबल आदि का पुनर्जन्म ७ भगवती मल्ली का गर्भ में आगमन ८ भ. मल्ली तीर्थकर का जन्म ९ भ. मल्ली द्वारा मोहनघर का निर्माण करवाना १० प्रतिबुद्धि राजा और पद्मावतीदेवी द्वारा नाग-यज्ञ ११ भ. मल्ली के श्री दामगण्ड (पुष्पहार) की प्रशंसा १२ भ. मल्ली के रूप की प्रशंसा १३ प्रतिबुद्धिराजा के दूत का मिथिला में आगमन १४ अर्हन्नक वणिक की समुद्रयात्रा १५ ताल-पिशाचादि के उत्पातों का प्रादुर्भाव १६ अर्हन्नक को पिशाच का उपसर्ग १७ अर्हन्नक की धार्मिक दृढता १८ देव का पिशाच रूप-संहरण और स्ववृत्तांत कथन
अर्हन्नक का मिथिला में आगमन
अर्हन्नक का चम्पा में आगमन २१ भ. मल्ली के रूप की प्रशंसा २२ चन्द्रच्छाय राजा के दूत का मिथिला में आगमन २३ रुक्मी राजा २४ सुबाहु (कन्या) का स्नान २५ भ. मल्ली के स्नान की प्रशंसा २६ चन्द्रच्छाया राजा के दूत का मिथिला-गमन २७ शंख राजा २८ भ. मल्ली के कुंडल-यगल का संधिविघटन २९ सुवर्णकारों को देशनिकाले का दण्ड ३० सुवर्णकारों का वाराणसी में आगमन ३१ भ. मल्ली के रूप की प्रशंसा. शंख राजा के दूत का मिथिला में आगमन ३२ अदीन शत्रु राजा ३३. मल्लदिन्न का चित्रसभा कराना ३४ चित्रकार द्वारा भ. मल्ली के समान रूप का चित्रण ३५ चित्रकार को देश निष्कासन का दण्ड ३६ चित्रकार का हस्तिनापुर में आगमन ३७ अदीनशत्रु राजा को भ. मल्ली के चित्र का दर्शन कराना ३८ अदीनशत्रु राजा के दूत का मिथिला में आगमन
जितशत्रु राजा ४० चोखा परिवाजिका ४१ भ. मल्ली द्वारा चोखा के मत का निरसन ४२ चोखा परिवाजिक का कम्पिलपुर में आगमन ४३ चोखा परिब्राजिका कथित कूपमण्डूक का दृष्टान्त ४४ भ. मल्ली के रूप की प्रशंसा
१६९-१७१ १७२-१७३ १७४ १७५-१७६ १७७ १७८ १७९-१८० १८१ ૨૮૨ १८३ १८४-१८५ १८६ १८७ १८८ १८९
३४ ३४-३५
३५
marmri yuru2
१९२-१९३
१९७-१९९
३८ ३८-३९
२०१
२०३-२०४ २०५
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३९-४० .
२०७-२०८ २०९-२१०
४०
४०-४१
२१२
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५
६
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
४५ जितशत्रु राजा का मिथिला में आगमन ४६ दूत का संदेश निवेदन
४७
कुम्भराजा द्वारा दूत का असत्कार
४८ जितशत्रु प्रमुख राजाओं से कुम्भ राजा का युद्ध भ. मल्ली ने चिंता का कारण पूछा
४९
५० कुम्भराजा ने चिन्ता का कारण कहा
५१
भ. मल्ली ने उपाय कहा
५२
भ. मल्ली ने जितशत्रु प्रमुख राजाओं को बोध दिया ५३ जितशत्रु प्रमुख राजाओं को जातिस्मरण ज्ञान
५४
भ. मल्ली और जितशत्रु प्रमुख राजाओं का प्रव्रज्या संकल्प
५५
भ. मल्ली का निष्क्रमण महोत्सव
५६
भ. मल्ली को केवलज्ञान
५७ जितशत्रु प्रमुख राजाओं की प्रव्रज्या
५८
भ. मल्ली की शिष्य सम्पदा ५९ भ. मल्ली का निर्वाण
भ. अरिष्ट नेमि चरित्र
१
कल्याणक
२ गर्भ में आगमन और स्वप्नदर्शन
३ जन्मादि
४ प्रव्रज्या
५ केवलज्ञान
६ गणधरादि-सम्पदा
७ अन्तकृतभूमि
८ कुमारवास आदि और निर्वाण
भ. पार्श्वनाथ चरित्र
१
कल्याणक
२ गर्भ में आगमन
३ जन्मादि
४ प्रव्रज्या
५ उपसर्ग -सहन
६ केवलज्ञान
७
८
९ आगारवासादि और निर्वाण
गणधरादि-सम्पदा अन्तकृत भूमी
भ. महावीर - चरित्र
१ पूर्वभव में पोट्टिल
२ कल्याणक
३ देवानन्दा के गर्भ में आगमन
४ गर्भ में तीन ज्ञान
५ गर्भ-साहरण
(३)
सूत्रांक
२१३
२१४
२१५
२१६-२१८
२१९
२२०
२२१
२२२-२२५
२२६-२२७
२२८
२२९-२३७
२३८
२३९
२४०
२४१
२४२-२५२
२४२
२४३
२४४
२४५
२४६
२४७-२५०
२५१
२५२
२५३-२६६
२५३ २५४-२५५
२५६
२५७-२५८
२५९
२६०
२६१-२६४ २६५
२६६
२६७-३७४
२६७
२६८
२६९
२७०
२७१-२७२
पृष्ठांक
४१
४१
४१ ४१-४२
४२
४२
४३
४३
૪૪
४४
४४-४७
४७
४७
४७-४८
४८
४८-५०
४८
४८
४९
४९
४९
४९-५० ५०
५०
५१-५३ ५१
५१
५१
५१-५२
५२
5555
५२
५२-५३ ५३
५३
५४-८८
1252 205
५४
५४
५४-५६ ५७ ५७-५८
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(४)
सूत्रांक
पृष्ठांक
२७३ २७४ २७५
२७६
२७७-२७९
६-६७
२८०
२८१
२८२
२८३ २८४
२८५
६८
६८-६९ ६९-७०
२८६ २८७-२९१ २९२ २९३-२२४ २९५
७०-७१
م
له
له
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ६ जन्मकल्याणक काल ७ जन्म-काल में देवकृत उद्योत ८ देवकृत अमृतादि की वर्षा ९ देवकृत तीर्थकर जन्माभिषेक १० सिद्धार्थकृत जन्मोत्सव ११ वर्द्धमान नामकरण १२ बालसंवर्धन १३ यौवन १४ तीन नाम १५ माता-पिता की देवगति १६ भ. वर्धमान के स्वजन १७ अभिनिष्क्रमण का अभिप्राय और संवत्सरदान १८ देवेन्द्र शऋकृत देवछंदक मज्जनादि और शिविका की रचन १९ अभिनिष्क्रमण २० पंचमुष्टिलोच करना २१ सामायक चारित्र ग्रहण करना २२ मनःपर्यवज्ञान की उत्पत्ति २३ तेरह मास के अनन्तर अचेलकत्व २४ अणगार स्वरूप की प्रशंसा २५ प्रतिबंध का अभाव २६ भ. महावीर का अभिग्रह २७ भ. महावीर का विहार २८ परीषह-विजय २९ दस स्वप्नों का फल ३० स्वप्नफल
भगवान का दीर्घ तप
भगवान् की चर्या ३२ भगवान् की शय्या ३३ भगवान् के परीषह-उपसर्ग ३४ भगवान् का चिकित्सा-निषेध ३५ भगवान् की आहार चर्या ३६ केवलज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति ३७ देवताओं का आगमन ३९ भवनवासी देवों का आगमन ३९ वाणव्यन्तर देवों का आगमन
ज्योतिष्क देवों का आगमन ४१ वैमानिक देवों का आगमन ४२ अप्सराओं का आगमन ४३ भ. महावीर का वर्णक ८४ भ. महावीर के अन्तेवासी अनेक श्रमण-भगवन्त
२९७ २९८ २९९
الل
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الله
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३०२ ३०३-३०४
७३-७४
७४-७५ ७५-७७
७५-७६
३०६-३२६ ३०६-३१३ ३१४-३१८ ३१९-३२१ ३२२ ३२३-३२६ ३२७ ३२८ ३२९-३३०
७६-७७ ७७
७७
७८
७८
७८-७९
४०
३३२ ३३३-३३४
७९-८० ८० ८०-८२ ८२-८४
३४०-३५१
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सूत्रांक
पृष्ठांक
३५२
८५
३५४ ३५५-३५८
८५
८५-८६
३६२-३६४
८७-८८
३७१
३७२
३७३ ३७४ ३७५-४०४
८९-९२
३७५
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ४५ भ. महावीर ने एक आसन पर बैठे हुए चौपन प्रश्नों के समाधान कहे ४६ भ. महावीर कृत पर्युषण ४७ वर्षाबास-गणना ४८ निर्वाण समय देवों का उद्योत करना ४९ भ. महावीर की आयुकाल गणना और अन्तिम उपदेश ५० गौतमस्वामी को केवल ज्ञान ५१ गणराजाओं द्वारा कृत उद्योत
निर्वाण के अनन्तर भस्मराशि-ग्रह और उसका प्रभाव ५३ निर्वाण के अनन्तर संयम का दुराराधन
भ. महावीर की श्रमणादि सम्पदा ५५ भ. महावीर के अनुत्तरदेवलोकगामी शिष्य
भ. महावीर की अन्तकृत भूमी ५७ भ. महावीर से दीक्षित राजा ५८ भ. महावीर के तीर्थ में तीर्थंकर-कर्म बांधने वाले
५९ भ. महावीर के तीर्थं में प्रवचन-निन्हव ७ भ. महापद्म-चरित्र
१ श्रेणिक का नरक गमन २ आगामी उत्सर्पिणी में नरक से निकलकर श्रेणिक का कुलकर-गृह में जन्म ३ महापद्म नामकरण ४ राज्याभिषेक
द्वितीय नाम-देवसेन ६ तृतीयनाम-विमलवाहन ७ भ. महापद्म की प्रव्रज्या ८ उपसर्ग सहन करना
प्रतिबंध का अभाव
केवल ज्ञान और केवल दर्शन ११ भ. महावीर और भ. महापद्म की देशना में साम्य
गणधरादि की समान सम्पद। आयु की समानता
अरहन्त महापद्म से आठ राजा दीक्षित होंगे ८ तीर्थकरों का सामान्य (संक्षिप्त) कथन
१ अढाई द्वीप में अर्हन्तादि वंशों की उत्पत्ति २ अढाई द्वीप में अर्हन्तादि की उत्पत्ति ३ जम्बूद्वीप के भरत-ऐरवत क्षेत्रों में उत्तम पुरुष ४ धातकी खण्ड में उत्तम पुरुष ५ पुष्करवर द्वीपार्ध में उत्तम पुरुष ६ जम्बूद्वीप के महाविदेह में अर्हन्तादि की उत्पत्ति ७ जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में (इस अवसर्पिणी में हुए) तीर्थंकर ८ जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में भावी तीर्थंकर ९ जम्बूद्वीप में होने वाले तीर्थंकर १० जम्बूद्वीप के तीर्थकरों की उत्कृष्ट संख्या
३७८ ३७९-३८० ३८१-३८२
३८३
३८४
३८५
९०-९१
३८६ ३८७-३८८ ३८९-४०१ ४०२ ४०३ ४०४ ४०५-४९३ ४०५-४०९ ४१०-४१५
९२
९२
९२-११३
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४१७-४१८ ४१९-४२० ४२१-४२२ ४२३ ४२४
९३-९४
९
४२५ ४२६
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सूत्रांक
पृष्ठांक
४२७
४२८
४२९
४३१
४३२
४३४
pm MY MY MY MY
M Vorro900
४३५ ४३६
९६-९७ ९७ ९७
४३७ ४३८
९८-९९
१००
४४३
१००
१०१
४४५
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ११ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में (इसी अवसर्पिणी में हुए) तीर्थंकरों के नाम १२ (इस अवसर्पिणी में हुए तीर्थंकरों के) पिता १३ (इस अवसर्पिणी में हुए तीर्थंकरों की) मातायें १४ (इस अवसर्पिणी में हुए तीर्थंकरों के) पूर्वभव (के नाम) १५ पूर्वभव का श्रुतज्ञान १६ पूर्वभव की पदवियां १७ तीर्थकरों के वर्ण १८ तीर्थंकरों के (देह) की ऊंचाई १९ (तीर्थंकरों का) गृहस्थावास (काल) २० (तीर्थंकरों का) कुमारकाल २१ (तीर्थकरों का) गृहवास २२ (तीर्थंकरों का) सर्वायु २३ भ. चन्द्रप्रभ का छद्मस्थ काल २४ कल्याणक २५ शिविका और शिवि का वाहक
दीक्षानगर २७ दीक्षाकाल में एक (वस्त्र) दृष्य २८ सह दीक्षितों की संख्या २९ दीक्षा के पूर्व किया हुआ तप ३० सर्व प्रथम भिक्षा देने वाले ३१ प्रथम भिक्षा का काल ३२ चैत्यवृक्ष ३३ प्रथम शिष्य ३४ प्रथम शिष्या ३५ केवलज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति का काल ३६ तीर्थंकरों के अतिशय ३७ चातुर्यामधर्म (चार महाव्रत) के उपदेशक ३८ कृष्णादि भावी तीर्थकर चातुर्यामधर्म के उपदेशक होंगे ३९ आगामी उत्सर्पिणी के तीर्थंकरों के नाम ४० पूर्व भव के नाम ४१ तीर्थंकरों के माता-पिता आदि ४२ तीर्थकरों के उपदेश की दुर्गमता एवं सुगमता ४३ श्रमण-सम्पदा ४४ श्रमणी-सम्पदा ४५ श्राविका-सम्पदा ४६ लब्धि सम्पन्न-सम्पदा ४७ वैक्रिय लब्धि-सम्पन्न-श्रमण-सम्पदा ४८ चौदह पूर्वधारी श्रमण-सम्पदा ४९ अवधिज्ञानी श्रमण-सम्पदा
मनःपर्यवज्ञानी-सम्पदा ५१ तीर्थंकरों की जिन-सम्पदा
४४८ ४४९
४५१
४५२-४५३ ४५४
१०१ १०१ १०१ १०१-१०२ १०२ १०२ १०२-१०३ १०३ १०४ १०४ १०४ १०४ १०४ १०५ १०५
४५५
४५७
४५८
४५९ ४६० ४६१
४६२ ४६३ ४६४
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४६५
१०६-१०७
१०७
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(७)
सूत्रांक ४६९
४७०
पृष्ठांक १०८ १०८ १०८-११० ११०-१११ १११ १११-११२ ११२
४७२
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११२
११२ ११२-११३
४७७-४७९ ४८०-४८१ ४९३ ४९४-५८५ ४९४
११४-१३८ ११४ ११४ ११४-११५
४९५
४९६-४९७ ४९८-५०१
५०२
११६
११७
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ५२ अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले श्रमणों की सम्पदा ५३ तीर्थंकरों का अन्तर काल ५४ ऋषभादि तीर्थंकरों से पर्युषण-कल्प-स्थापन-समय-निरूपण ५५ गण और गणधर ५६ भ. महावीर के गणधरों से प्राप्त वाचनावाले श्रमणों की संख्या ५७ भ. महावीर के गणधरों का गृहवास काल ५८ मण्डितपुत्र गणधर का श्रमणपर्याय काल ५९ भ. महावीर के गणधरों का सर्वायु ६० राजगृह में भ. महावीर का आगमन ६१ इन्द्रभूती गौतम
____ आश्चर्य (दस) भरत चक्रवर्ती-चरित्र १ भरतचक्रवर्ती का वर्णक २ राजा का वर्णक (द्वितीय वर्णक) ३ चक्ररत्न की उत्पत्ति ४ चक्ररत्न का अष्टाह्निका महोत्सव ५ चक्ररत्न का मागधतीर्थ की ओर प्रयाण
अभिषिक्त-हस्तिरत्न-आरूढ-भरत का चक्ररत्नानुगमन ७ मागधतीर्थ में भरत ने अष्टमभक्त पौषध किया ८ अश्वरथारूढ भरत का लवण समुद्र-स्पर्श ९ भरत द्वारा चलाये हुए बाण का मागधतीर्थाधिपति देव के भवन में गिरना १० नामांकित बाण को देखकर मागधतीर्थाधिपति का भरत के सन्मुख आना ११ भरत के अष्ठम भक्त का पारणा और मागधतीर्थाधिपदेव का प्रसन्न होकर अष्टाह्निक महोत्सव
का आदेश देना १२ चक्ररत्न का वरदाम तीर्थ की ओर प्रयाण १३ भरत का वरदाम तीर्थ की ओर गमन । १४ भरत का प्रभास तीर्थदेव पर विजय प्राप्त करना १५ भरत का सिन्धुदेवीकृत भेंट ग्रहण १६ भरत का वैताढ्यगिरिकुमार देवकृत भेंट ग्रहण करना १७ भरत का तिमिसगुफाधिप-कृतमालदेव द्वारा अर्पित भेंट ग्रहण करना १८ नौकारूप चर्मरत्न द्वारा ससैन्य सुसेण-सेनापति के साथ भरत का सिन्धु नदी पार करना १९ सुसेण सेनापति द्वारा सिंहल आदि देशों पर विजय प्राप्त करना
विजय प्राप्त कर आये हुए सुसेण सेनापति द्वारा भरत के सन्मुख भेंट अर्पण करना
सुसेण सेनापति कृत तिमिसगुफा-द्वार का उद्घाटन २२ मणिरत्न सहित भरत का तिमिसगुफा-द्वार की ओर प्रयाण
काकिणी रत्न सहित भरत का तिमिसगुफा में प्रवेश २४ तिमिसगुफा के मध्यभाग में उन्मग्न-जलानिमग्न-जला महानदियां
उन्मग्न-जला और निमग्न-जला महानदियों में वर्धकी रत्न द्वारा सेतु का निर्माण तथा ससैन्य भरत का (नदियों को) पार करना १ क-पृष्ठ ११३ पर सूत्रांक ४८२ से ४९२ पर्यन्त इसी शीर्षक के अन्तर्गत समझें ।
ख. पृष्ठ १११ पर सूत्रांक ४७३ का सारा मूलपाठ पृष्ठ ११३ पर सूत्रांक ४८४ में आ गया है।
५०३-५०४ ५०५ ५०६-५०७ ५०८ ५०९-५११
११७
११७ ११८
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११८ ११९-१२० १२०
५१४-५१६ ५१७ ५१८-५१९ ५२० ५२१ ५२२-५२३ ५२४ ५२५ ५२६-५२७ ५२८-५२९ ५३०
१२१ १२१ १२२ १२२
२०
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सूत्रांक
पृष्ठांक
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५३४-५३७ ५३८-५४१ ५४२
१२४-१२६ १२६ १२७ १२७ १२७ १२८ १२८-१२९ १२९
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५४५-५४८ ५४९-५५० ५५१ ५५२-५५३
३५
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५५९-५६० ५६१-५६८
१३० १३०-१३१ १३१-१३३ १३३-१३४
५७०-५७१ ५७२-५७३
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २६ तिमिसगुफा के उत्तर द्वार के कपाटों द्वारा स्वयमेव मार्गदान २७ उत्तरार्ध भरत में सुसेन सेनापति कृत आपात-चिलात-पराजय २८ आपात-चिलातों की प्रार्थना से भरत की सेना पर नागकुमार देव कृत महामेघ वर्षा २९ भरत द्वारा छत्र रत्न से आच्छादन ३० गाथापतिरत्न कृत भरत-सेना की सप्त दिवशीय व्यवस्था ३१ हजारों देवों ने नागकुमार को भरत की शरण में जाने के लिए कहा ३२ नागकुमार के कहने से चिलात भरत की शरण में गये ३३ क्षुद्र हिमवान् गिरिकुमार देव पर विजय प्राप्त किया ३४ भरत चक्रवर्ती ने काकिणी रत्न से ऋषभकूट पर्वत के पूर्वी किनारे पर अपना नाम लिखा
चक्र का अनुगमन करते हुए भरत का वैताढ्यगिरि के उत्तरापार्श्व की ओर गमन ३६ विद्याधरों के राजा नमि-विनमि ने भरत को स्त्री रत्न आदि समर्पित किये ३७ भरत को गंगादेवी ने दो स्वर्ण-सिंहासन समर्पित किये ३८ खण्डप्रपातगुफा में नृत्यमालदेव ने भरत को पारितोषिक दिया ३९ भरत ने सुसेन सेनापति का सत्कार किया ४० जिस मार्ग से भरत का आगमन हआ उसी मार्ग से वह वापिस गया ४१ नवनिधियों की उत्पत्ति ४२ विनिता राजधानी की ओर लौटना । ४३ भरतने देवादिका सत्कार किया और उनका विसर्जन किया ४४ भरत का राज्याभिषेक संकल्प ४५ देवों द्वारा अभिषेक मण्डप की रचना ४६ सिंहासन की रचना ४७ भरत ने अभिषेक मण्डप में प्रवेश किया ४८ भरत का महाराज्याभिषेक ४९ नगर में द्वादश वर्षीय महोत्सव की घोषणा ५० प्रासाद प्रवेश ५१ रत्नमहानिधियों का उत्पत्ति स्थान ५२ भरत का शासन ५३ भरत को आदर्श घर में केवलज्ञान ५४ भरत का अष्टापदगमन और वहाँ निर्वाण चक्रवर्ती-सामान्य १ अढाईद्वीप में चक्रवर्ती-विजय २ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में बारह चक्रवतियों के और उनके माता-पिता तथा स्त्री रत्नों के नाम ३ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले चक्रवर्तियों के नाम ४ जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले चक्रवर्ती आदि की संख्या ५ जम्बूद्वीप में चक्रवर्ती आदि ६ तीन तीर्थकर चक्रवर्ती हुये ७ सुभूम और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नरक में गये ८ दस चक्रवर्ती मुक्त हुए ९ सगर चक्रवर्ती मुक्त हुआ १० हरिषेण चक्रवर्ती मुक्त हुआ ११ भरतादिके शरीर की ऊंचाई
५७४
१३४-१३५ १३५ १३५
५७५-५७६ ५७७
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५७९-५८० ५८१ ५८२
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५८४-५८५ ५८६-६१४ ५८६-५९१ ५९२-५९४ ५९५-५९६ ५९७
१३७-१३८ १३८-१४१ १३८-१३९
१३९ १३९
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६०१-६०२ ६०३ ६०४ ६०५
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(९)
सूत्रांक
पृष्ठांक १४० १४०-१४१
६०८-६०९ ६१०-६११ ६१२
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची .१२ चक्रवर्ती का हार १३ चक्रवर्ती के ग्राम-पुर-पट्टण की संख्या १४ निधि-रत्न १५ चक्रवर्ती के चौदह रत्न १६ काकिणी रत्न की आकृति १७ जम्बूद्वीप में एकेन्द्रिय रत्नों की संख्या और उनके परिभोग का निरूपण
१८ जम्बूद्वीप में पंचेन्द्रिय रत्नों की संख्या और उनके परिभोग का निरूपण ११ बलदेव-वासुदेव सामान्य
१ बलदेव-वासुदेवों के माता-पिता आदि २ जम्बद्वीप में आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले बलदेव-वासुदेव सम्बन्धी विविध प्ररूपण ३ बलदेवों की ऊँचाई और सर्वायु ४ वासुदेव प्रकीर्णक
६१४
१४१ १४१ १४१ १४१ १४२-१४४ १४२-१४३
६१५-६४० ६१५-६२२ ६२३-६२५ ६२६-६३१ ६३२-६४०
१४३-१४४ १४४
१-१७५
१-४९
१-२
३-४
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१८-१९ २०-२१ २२-२४ २५-२७
२८
द्वितीय स्कंध . श्रमण-कथानक
अध्ययन १-४८ भ. विमलनाथ के तीर्थ में महब्बल श्रमण १ वाणिज्य ग्राम में भ. महावीर का आगमन २ सुदर्शन सेठ ने धर्म-श्रवण किया । ३ सुदर्शन सेठ ने काल के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे ४ सुदर्शन सेठ ने पल्योपमादि के क्षय और अपचय आदि के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे ५ भ. महावीर ने सुदर्शन सेठ के पूर्व भव के वर्णन में महब्बल की कथा कही ६ प्रभावतीदेवी ने स्वप्न में सिंह देखा ७ बलराजा ने स्वप्न-फल कहा ८ स्वप्न-लक्षण पाठकों ने स्वप्न-फल कहा ९ बलराजा ने प्रभावती देवी को पुनः स्वप्न-फल कहा १० बल राजा को महब्बल के जन्म की सूचना दी. ११ जन्म महोत्सव १२ महब्बल का नामकरण और अन्य संस्कार १३ शिक्षाग्रहण और पाणिग्रहण १४ धर्मघोष अणगार का आगमन १५ महब्बल ने धर्म-श्रवण किया १६ महब्बल ने प्रव्रज्या ग्रहण करने की इच्छा प्रगट की १७ महब्बल की प्रव्रज्या. देवभव. और सुदर्शन के रूप में जन्म
१८ सुदर्शन को जातिस्मरण ज्ञान और प्रव्रज्या ग्रहण २ भ. मुनिसुव्रत के तीर्थ में कार्तिक शेठ आदि के कथानक
१ भ. महावीर के समवसरण में शक्र की नृत्य विधि २ शक्र का पूर्व-भव के सम्बन्ध में प्रश्न ३ शक्र पूर्वभव में कार्तिक श्रेष्ठी था ४ भ. मुनिसुव्रत का हस्तिनापुर में आगमन
२९-३२ ३३-३४ ३५-३६ ३७-४०
४१
४२
१०-११
४३-४४ ४५-४७ ४८-४९ ५०-६०
११ १२-१३
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पृष्ठांक १२-१३
१४-१५
१४ १४ १४-१५
१५-१६
:
WWF
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
सूत्रांक ५ कार्तिक श्रेष्ठी का प्रव्रज्या संकल्प
५४-५७ ६ एक हजार व्यापारियों के साथ कार्तिक श्रेष्ठी का प्रव्रज्या ग्रहण
५८ ७ कार्तिक का शक होना और भविष्य में सिद्ध होना
५९-६० ३ भ. मुनिसुव्रत के तीर्थ में गंगदत्त श्रमण
१ गंगदत्त देव के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न २ हस्तिनापुर में भ. मुनिसुव्रत का आगमन और गंगदत्त का धर्मश्रवण ३ गंगदत्त की प्रव्रज्या और देवत्व
४ गंगदत्त की सिद्धी ४ म. अरिष्टनेमि के तीर्थ में चित्त संभूति का कथन
६८-७६ १ ब्रह्मदत्त और चित्त का जन्म कथन २ कम्पिलपुर में चित्तसंभूति का आगमन और पूर्वभव कथन ३ कर्म-फल का चिन्तन ४ ब्रह्मदत्त ने चित्त को भोग भोगने के लिए आमन्त्रित किया ५ चित्तमुनि ने काम भोग की निन्दा की ६ ब्रह्मदत्त ने अपने निदान का वर्णन किया ७ चित्तमुनि ने आर्यकर्म करने का उपदेश दिया ८ ब्रह्मदत्त का नरक निवास
९ चित्त श्रमण की सिद्ध गति ५ भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में निषडादि श्रमण
७७-९७ १ निषढादि बारह श्रमण २ द्वारिका में श्रीकृष्ण वासुदेव
७८ ३ द्वारिका में बलदेव राजा ४ बलदेव की रेवती देवी का पुत्र निषढ कुमार भ. अरिष्टनेमि तीर्थकर का आगमन और श्रीकृष्ण की पर्युपासना
८१-८२ ६ निषढ़ ने श्रावक धर्म ग्रहण किया
८३ ७ वरदत्त अणगार ने निषढ के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न पूछा. और भ. अरिष्टनेमि ने पूर्वभव कहा ८४ ८ निषढ पूर्वभव में वीरांगद कुमार था
८५ ९ सिद्धार्थ आचार्य के उपदेश से विरांगद का प्रव्रज्या ग्रहण करना और ब्रह्मलोक में उत्पन्न होना. ८६-८७ १० ब्रह्मलोक से च्यवकर निषढ कुमार हुआ
८८-९१ ११ निषढ की भ. अरिष्टनेमि के दर्शन की इच्छा १२ निषढ़ की इच्छा को जानकर भ. अरिष्टनेमि का आगमन १३ निषढ की प्रव्रज्या और समाधिमरण
९४-९५ १४ भ. अरिष्टनेमि से वरदत्त ने निषढ की गति के सम्बन्ध में पूछा-भगवान् ने सर्वार्थ सिद्ध विमान
में उत्पन्न होने का कहा १५ भ. अरिष्टनेमि ने निषढ के महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्ध होने की कही भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में गौतम आदि अणगार
९८-१०६ १ संग्रहणी गाथा २ द्वारिका में श्रीकृष्ण वासुदेव
९९-१०१ ३ अंधकवृष्णि राजा का पुत्र गौतम कुमार
१७-२०
७७
१८
१८
१८-१९
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१९-२० २० २०-२१
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पृष्ठांक
सूत्रांक १०२
१०४
१०५-१०६
१०७-११२
१०७ १०८-१०९ ११० १११ ११२ ११३-१५९ ११३-११४ ११५-११८ ११९
२३-३३
२३
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१२०
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ४ भ. अरिष्टनेमि का धर्मोपदेश और गौतम की प्रव्रज्या ५ शत्रुञ्जय पर्वत पर गौतम की सिद्धी ६ समुद्रादि ७ अक्षोभादि कुमार अणगार ८ संग्रहणी गाथा म. अरिष्टनेमि के तीर्थ में अणीयस कुमार और अन्य अणगार १ अणीयसादि अणगारों के नाम २ भद्दिलपुर में नाग गाथापति का पुत्र “अणीयस" ३ भ. अरिष्टनेमि के समीप अणीयस की प्रव्रज्या और शत्रुञ्जय पर्वत पर सिद्धी ४ अनन्तसेन आदि कुमार अणगार ५ सारण कुमार श्रमण भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में गजसुकुमार आदि अणगार १ छह अणगारों का तप संकल्प भ. अरिष्टनेमि की आज्ञा २ छहों का क्रमशः देवकी के घर में प्रवेश ३ देवकी को एक संघाटक के ही पुनरागमन की शंका ४ देवकी का शंका-समाधान ५ देवकी के मन में अतिमुक्त कुमार के वचनों में शंका ६ भ. अरिष्टनेमि ने सुलसा का चरित्र कहकर शंका का समाधान किया ७ छ सहोदर अणगार देवकी के ही पुत्र हैं यह जानकर देवकी हर्षित हुई ८ देवकी के मन में पुत्र के लालन-पालन की अभिलाषा और चिन्ता ९ श्रीकृष्ण ने चिन्ता का कारण पूछा १० देवकी ने चिन्ता का कारण कहा ११ श्रीकृष्ण द्वारा देवाराधन और देव ने लघुभ्राता होने के लिये कहा १२ श्रीकृष्ण ने देवकी को अश्वासन दिया
गजसुकुमार का जन्म गजसुकुमार की भार्या करने के लिये सोमिल ब्राह्मण की लड़की को कुमारिकाओं के अन्त:पुर में रखा
भ. अरिष्टनेमि ने धर्मदेशना दी. १६ गजसुकुमार का प्रव्रज्या संकल्प.
गजसुकुमार का माता-पिता को निवेदन. १८ देवकी की शोकाकुल दशा. १९ देवकी और गजसुकुमार का परिसंवाद २० गजसुकुमार के प्रति श्रीकृष्ण का राज्य ग्रहण प्रस्ताव.
गजसुकुमार का एक दिवस का राज्य २२ गजसुकुमार की प्रव्रज्या २३ गजसुकुमार का महाप्रतिमा स्वीकार करना. २४ सोमिलकृत उपसर्ग. २५ गजसुकुमार की सिद्धगति. २६ श्रीकृष्ण ने वृद्ध की सहायता की. २७ श्रीकृष्ण की गजसुकुमार-दर्शनाभिलाषा.
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३४-४६
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
सूत्रांक २८ भ. अरिष्टनेमि ने गजसुकुमार की सिद्धगति कही.
१५५ २९ उपसर्ग श्रवण से श्रीकृष्ण का क्रुद्ध होना.
१५६ उपसर्ग करने वाले ने सहायता ही की है यह जानकर क्रोध शान्त हुआ
१५७ ३१ उपसर्ग करने वाले को कृष्ण ने जाना. ३२ सोमिल की अकाल मृत्यु.
१५९ भ. अरिष्टनेमि तीर्थ में सुमुख आदि कुमार श्रमण
१६०-१६१ जालि आदि श्रमण भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में थावच्चापुत्र और अन्य श्रमण
१६३-२१० १ द्वारिका में श्रीकृष्ण वासुदेव २ गाथापत्नी थावच्चा और उसका पुत्र थावच्चापुत्र ३ भ. अरिष्टनेमि का समवसरण ४ श्रीकृष्ण की पर्युपासना ५ थावच्चापुत्र का प्रव्रज्या-संकल्प श्रीकृष्ण और थावच्चापुत्र का परिसंवाद
१६८ ७ श्रीकृष्ण की योगक्षेम-घोषणा
थावच्चापुत्र का अभिनिष्क्रमण शिष्यरूपभिक्षा का दान थावच्चापुत्र का प्रव्रज्या-ग्रहण
१७२ ११ थावच्चापुत्र की अणगार-चर्या १२ थावच्चापुत्र का जनपद विहार और सेलगपुर में समवसरण १३ सेलगराजा का आगमन
१७५ १४ सेलग का गृहस्थ धर्म स्वीकार करना
१७६ १५ सेलग की श्रमणोपासक चर्या १६ सौगंधिका में सुदर्शन श्रेष्ठी
१७८ १७ सौगंधिका में शुक परिव्राजक का आगमन
१७९ १८ शुक परिव्राजक ने शौचमूलक धर्म का उपदेश दिया १९ सुदर्शन का शौचमूलक धर्म स्वीकार करना
१८१ २० शौचमूलक धर्म के सम्बन्ध में थावच्चापुत्र का सुदर्शन से संवाद और चातुर्यामिक धर्म का उपदेश १८२-१८३ २१ सुदर्शन का विनयमूल धर्म स्वीकार करना
१८४ २२ शुक ने सुदर्शन को प्रतिबोध दिया
१८५-१८६ २३ शुक का थावच्चापुत्र के साथ संवाद
१८७ २४ यात्रादि पदों की विचारणा २५ सरिसवों की भक्ष्याभक्ष्य विचारणा
१८८ २६ कुलथों की भक्ष्याभक्ष्य विचारणा
१८९ २७ माषों की भक्ष्याभक्ष्य विचारणा २८ एक अक्षयादि पदविचारणा २९ शुक का हजार परिवाजकों के साथ प्रवजित होना ३० शुक का जनपद विहार ३१ थावच्चापुत्र का परिनिर्वाण १. सूत्रांक नहीं है।
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पृष्ठांक
सूत्रांक १९५-१९६
१९७
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२१० २११-२१४ २१५-२२६
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ३२ शुक का शैलकपुर में आगमन और सेलक की अभिनिष्क्रमण-अभिलाषा ३३ शैलक पुत्र मंडुक का राज्याभिषेक ३४ शैलक की प्रव्रज्या ३५ शुक का पुंडरीक पर्वत पर निर्वाण ३६ शैलक का रोग से आतंकित होना ३७ मंडुक ने शैलक की चिकित्सा करवाई ३८ शैलक का प्रमत्त विहार ३९ पंथक अणगार को सेवा के लिए रखकर शैलक शिष्यों का विहार करना ४० मद्य से प्रमत्त शैलक का पंथक से चातुर्मासिक क्षमापना ४१ शैलक का कुपित होना और पंथक की क्षमा याचना ४२ शैलक का पुनः अब्भ्युद्यत विहार ४३ शैलक कथा के उपसंहार से उपदेश ४४ शैलक के समीप शैलक शिष्यों का पुनः आगमन ४५ पुंडरीक पर्वत पर शैलकादि सबका निर्वाण
४६ वृत्तिकार उद्धृत निगमन गाथा १२ रहनेमी श्रमण का राजमती द्वारा उद्धार १३ भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में अंगई सुप्रतिष्ठ और पूर्णभद्रादि श्रमण
१ दस अध्ययनों के नाम २ भ. वर्धमान के समवसरण में ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र ने नृत्य किया ३ ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के पूर्वभव वर्णन में अंगई की कथा ४ चन्द्र की स्थिति और उसकी महाविदेह में सिद्धी ५ भ. वर्धमान के समवसरण में सूर्य ने नृत्य किया ६ सूर्य का पूर्वभव ७ भ. वर्धमान की परिषद् में पूर्णभद्र देव ने नृत्य किया ८ पूर्णभद्र देव का पूर्वभव
भ. वर्धमान के समवसरण में माणिभद्र देव ने नृत्य किया १० माणिभद्र देव का पूर्वभव
११ दत्तआदि अन्य अणगार १४ जितशत्रु और सुबुद्धि का कथानक
१ चम्पा नगरी में जितशत्रु राजा और सुबुद्धि अमात्या २ परिखा के उदक का वर्णक ३ जितशत्रु ने पान-भोजन की प्रशंसा की ४ सुबुद्धि ने पुद्गल का शुभाशुभ परिणमन कहा ५ जितशत्रु ने परिखोदक की निन्दा की ६ सुबुद्धि ने पुनः पुद्गल स्वभाव का वर्णन किया ७ जितशत्रु ने विरोध किया ८ सुबुद्धि ने जल का शोधन किया ९ सुबुद्धि ने जल प्रेषित किया
जितशत्रु ने उदगरत्न की प्रशंसा की ११ जितशत्रु ने पानी लाने वाले से पूछा
२१७
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२१९ २२०
२२१
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२२२-२२३ २२४ २२५
२२६ २२७-२४६
२२७ २२८ २२९ २३० २३१ २३२
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५२-५३
२३५
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२३७
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१६
१२ सुबुद्धि ने उत्तर दिया
१३ जितशत्रु ने जल शोधन करवाया १४ जितशत्रु का प्रश्न
धर्मकयानुयोग-विषय-सूची
१५ सुबुद्धि का उत्तर
१६ जना श्रमणोपासक होना
१७ जिस और बुद्धि की प्रवज्या १८ वृत्तिकार उद्धृत निगमन गाथा
१५ नमिराजर्षि
१
२
मिथिला के राजा नमी और उसका अभिनिष्क्रमण
शक्र के साथ नमिराजर्षि का संवाद
भ. महावीर के तीर्थ में ऋषभदत्त और देवानन्दा का चरित्र
ब्राह्मण कुण्डग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण
ऋषभदत्त की भार्या देवानन्दा १
ऋषभदत्त और देवानंदा की महावीर दर्शनाभिलाषा
ऋषभदत्त और देवानन्दा का दर्शनार्थ आगमन
५
पूर्वपुत्र भ. महावीर के दर्शन स्नेह एवं राग से देवानन्दा के स्तनों में दूध आ गया
६ देवानन्दा का यह रूप देखकर गौतमस्वामी ने प्रश्न किया और भ. महावीर ने समाधान किया
७
भ. महावीर ने धर्म कहा
८
ऋषभदत्त की प्रव्रज्याभिलाषा
९
१
२
३
४
भ. महावीर ने ऋषभदत्त को प्रव्रज्या दी ऋषभदत्त की सिद्धगति
१०
११ देवानन्दा की भी प्रव्रज्या और सिद्धगति
१७ बालतपस्वी मौर्यपुत्र तामली अणगार
(१४)
१
भ. महावीर के समवसरण में ईशान देवेन्द्र ने नृत्य किया
२ देवद्युति के प्रवेश के सम्बन्ध में प्रश्न और समाधान
३. ईशान देवेन्द्र का पूर्वभव
४ मौर्यपुत्र तामली गाथापति और उसकी प्रव्रज्या ग्रहणाभिलाषा
५ तामली ने प्रणामा प्रव्रज्या ग्रहण की
६
प्रणामा प्रव्रज्या का विवरण
७
तामली ने पादोपगमन संलेखना ग्रहण की
८ बलिचंचा राजधानिवासी असुरकुमार देवों ने इन्द्र होने के लिए प्रार्थना की और तामली का निदान
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९ तामली का ईशानेन्द्र के रूप में उत्पन्न होना
१०
ईशानेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ जानकर असुर कुमार देवों को रोष आया और तामली के शरीर की हीलन की
११ तामली के शरीर की हीलना जानकर ईशानेन्द्र ने बलिचंचा राजधानी को भस्मीभूत कर दिया १२ असुर कुमार देवों ने ईशानेन्द्र से प्रार्थना की और क्षमायाचना की
१. सूत्रांक देना छूट गया है।
२. सूत्रांक पृष्ठ ५८ पर दिया है; किन्तु इस शीर्षक के नीचे देना उचित था ।
सूत्रांक
२३८
२३९
२४०
२४१ २४२.
२४३-२४५
२४६
२४७-२४९
२४७
२४८-२४९
२५० २५९
२५०
२५१
२५२
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६२
६२
६२-६३
६२-६३
६३
६३
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१९
२०
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
१८ आर्द्धक का अन्यतीर्थिक के साथ वाद
२१
१३
१४ ईशानेन्द्र की स्थिति और महाविदेह में सिद्धी
तदनन्तर असुर कुमार ईशानेन्द्र की आज्ञा मानने लगे
५
१ भ. महावीर की जीवनचर्या के सम्बन्ध में गोशालक का आक्षेप
२ आर्द्रक का उत्तर
३
गोशालक ने कहा शीतोदग आदिके सेवन में पाप नहीं है।
४
आर्द्रक का उत्तर
६
७
८
९ महावीर वणिक जैसा है- गोशालक का आक्षेप
आर्द्रक का उत्तर
वाद करने वालों की परस्पर (एक दूसरे की ) निन्दा करते हो । गोशालक का आक्षेप
आर्द्रक का उत्तर
मेधावी पुरुषों के प्रश्नों के भय से महावीर आरामगृह में नहीं ठहरता है । गोशालक का आक्षेप
आर्द्रक का उत्तर
१०
११ बुद्ध भिक्षुओं की हिंसा-अहिंसा के विषय में वादियों का मत
१२
आर्द्रक का उत्तर
१३
१४
१५
१६
१७
१८
म. महावीर के तीर्थ में अतिमुक्त कुमार भ्रमण
१ पोलासपुर के राजा का पुत्र अतिमुक्त कुमार
२
गौतम की भिक्षाचर्या
३ गौतम और अतिमुक्त कुमार का संवाद
४ अतिमुक्त कुमार की प्रव्रज्या
५
9
८
९
स्नातकों को भोजन कराने से पुष्पार्जन होता है यह वेदवादियों का मत है
आर्द्रक का उत्तर
सांख्य परिव्राजकों के अव्यक्त पुरुष सम्बन्धि मन्तव्य
आर्द्रक का उत्तर
हस्ति तापसों के अभिप्रायका निरुपण
आर्द्रक का उत्तर
अतिमुक्त कुमार श्रमण की क्रीड़ा
म. महावीर के तीर्थ में अलक्षराजय
अलक्षराजा की प्रव्रज्या
१
भ. महावीर के तीर्थ में मेघकुमार मण
१ राजगृह में श्रेणिक राजा
२
(१५)
श्रेणिक-भार्या धारिणी
धारिणी का स्वप्न-दर्शन
३
४ श्रेणिक को स्वप्न- निवेदन
५ श्रेणिक ने स्वप्न की महिमा कही
६ धारिणी की स्वप्न - जागरणा
स्वप्नपाठकों को निमंत्रण दिया
श्रेणिक ने स्वप्न फल पूछा
स्वप्न फल कथन
१. सूत्रांक लगाना छूट गया है।
सूत्रांक
२७४
२७५
२७६-२८३
२७६
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२८१
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७०
७०
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20 20 10
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
१९
श्रेणिक ने चिन्ता का कारण पूछा
१७ धारिणी ने चिन्ता का कारण कहा
१८
2 * * * * Z @ 2 2 g
२०
२१
२२
२३
२४
२६
२७
२८
२५ धारणी का दोहवपूर्ण हुआ
३०
३१
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
स्वप्नपाठकों का विसर्जन
श्रेणिक ने स्वप्न - प्रशंसा की
धारिणी का दोहद
धारिणी की चिन्ता
३२
२२
३४
परिचारिकाओं ने चिन्ता का कारण पूछा परिचारिकाओं ने श्रेणिक को कहा
३९
४०
श्रेणिक ने आश्वासन दिया
अभय कुमार ने श्रेणिक को चिन्ता का कारण पूछा
श्रेणिक ने चिन्ता का कारण कहा
अभयकुमार ने आश्वासन दिया
अभयकुमार ने एक देव की आराधना की
देव का आगमन हुआ
२९ मेघकुमार का जन्मोत्सव
५०
५१
देव ने अकाल ( वर्षाकाल के अभाव में) भेघ की रचना की
अभय कुमार ने देव को विदाई दी
धारिणी की गर्भचर्या
मेघकुमार का जन्म होने पर बधाई दी
मेघकुमार के नामकरण आदि संस्कार
मेघकुमार का लालन-पालन
३५
भ. महावीर का समवसरण २६ मेघकुमार की जिज्ञासा
३७
कंचुकी पुरुष द्वारा निवेदन
३८
मेघकुमार का भ. महावीर के समीप जाना धर्मदेशना
मेघकुमार का कला ग्रहण मेघकुमार का पाणिग्रहण प्रीतिदान
मेघकुमार का प्रव्रज्या ग्रहण करने का संकल्प मेघकुमार का माता-पिता को निवेदन
४१
४२ धारिणी की शोकाकुल दशा
४३
४४
धारिणी और मेघकुमार का परिसंवाद
मेघकुमार का एक दिवस का राज्य
मेघकुमार के निष्क्रमण प्रायोग्य उपकरण
४५
४६
काश्यप ( नापित) ने मेघकुमार के बालों के अग्रभाग कतर दिये
४७
मेघकुमार का अलंकरण किया गया
४८ मेघकुमार का अभिनिष्क्रमण महोत्सव
४९
शिष्य रूप भिक्षा का दान
(१६)
मेघकुमार का प्रव्रज्या - ग्रहण मेघकुमार का मानसिक-संक्लेश
सूत्रांक
३००
३०१
३०२
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३०६
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३१०
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३१५-३१६
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३३१
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३४१-३४२
३४३
३४४-३४६ ३४७-३४८ ३४९-३५०
३५१
पृष्ठांक
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३७५
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ५२ मेघकुमार का सम्यक् बोध ५३ भगवान् द्वारा पूर्वभव में हुए सुमेरुप्रभ नामक हाथी के भव का निरूपण ५४ भगवान् द्वारा मेरुप्रभ नामक हाथी के भव का निरूपण ५५ मेरुप्रभ ने मण्डल का निर्माण किया ५६ दवाग्नि से भयभीत श्वापदों का और मेरुप्रभ का मण्डल प्रवेश ५७ मेरुप्रभ का पैर ऊँचा रखना
मेघकुमार का भव और उसमें तितिक्षा का उपदेश मेघकुमार को जातिस्मरण
मेघकुमार की पुनः प्रव्रज्या ६१ मेघकुमार की निर्ग्रन्थ चर्या ६६ भ. महावीर का राजगृह से बाहर जनपद-विहार ६३ मेघकुमार-श्रमण की भिक्षु-प्रतिमा-आराधना ६४ मेघकूमार-श्रमण द्वारा गणरत्नसंवत्सर तप का आराधन ६५ मेघकूमार-श्रमण की शारीरिक स्थिति ६६ मेघकुमार-श्रमण का विपुलगिरि पर्वत पर अनशन ६७ मेघकुमार श्रमण का समाधि-मरण ६८ स्थविरों ने मेघकुमार श्रमण के आचार भाण्ड समर्पित किये ६९ गौतम का प्रश्न. भगवान का उत्तर
७० वृत्तिकार-उद्धृत-निगमन (निष्कर्ष) गाथा २२ भ. महावीर के तीर्थ में मकाई आदि श्रमण
१ संग्रहणी गाथा
२ मकाई श्रमण और किंकिम श्रमण २३ भ. महावीर के तीर्थ में अर्जुनमालाकार
१ राजगृह में मुद्गर पाणि यक्ष का आयतन २ अर्जुन की यक्ष-पर्युपासना ३ गोष्ठिकों ने अर्जुनमालाकार को बांधा और बन्धुमति भार्या के साथ अनाचार किया ४ अर्जुन की चिन्ता और उसके शरीर में मुद्गरपाणि यक्ष का प्रवेश ५ राजगृह में आतंक ६ भगवान् का समवसरण ७ सुदर्शन का बन्दनार्थ-गमन ८ सुदर्शन को अर्जुन कृत उपसर्ग ९ उपसर्ग-निवारण
सुदर्शन और अर्जुन ने भगवान् की पर्युपासना की ११ अर्जुन की प्रव्रज्या १२ अर्जुन अणगार की तितिक्षा
१३ अर्जुन अणगार की सिद्धगति २४ भ. महावीर के तीर्थ में काश्यपादि श्रमण २५ भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिकपत्र जाली आदि श्रमण
१ संग्रहणी गाथा २ जाली अणगार
३७७-३७९ ३७७ ३७८-३७९ ३८०-३९३
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३८० ३८१ ३८२ ३८३ ३८४
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३९५-३९८ ३९५
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ३ मयाली आदि श्रमण
भ. महावीर के तीर्थ में दीर्घसेन आदि श्रमण १ संग्रहणीगाथायें २ दीर्घसेन श्रमण' भ. महावीर के तीर्थ में सार्थवाह पुत्र धन्य अणगार १ संग्रहणी गाथायें २ धन्य का गृहवास ३ धन्य की प्रव्रज्या ४ धन्य की तपश्चर्या ५ धन्य का तपजनित शरीर लावण्य
श्रेणिक ने महान् दुष्कर तप करने वाले के सम्बन्ध में पूछा' ७ भगवान का उत्तर ८ श्रेणिक ने धन्य अणगार की स्तुति की
९ धन्य अणगार का सर्वार्थ सिद्धगमन और महाविदेह में उत्पत्ति तथा सिद्धगति २७ भ. महावीर के तीर्थ में सुनक्षत्र आदि श्रमण
१ सुनक्षत्र श्रमण ५
२ ऋषिदास आदि की कथानकों का निर्देश २८ भ. महावीर के तीर्थ में सुबाहुकुमार श्रमण
१ संग्रहणी गाथा २ सुबाहुकुमार का जन्म और परिणय ३ सुबाहुकुमार का गृहस्थ धर्म स्वीकार करना
सुबाहुकुमार के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न
सुबाहुकुमार के 'सुमुखभव' का कथानक __ अणगार की भिक्षा वेला में पांच दिव्यों का प्रादुर्भाव ७ सुमुख का सुबाहु भव ८ सुबाहकूमार की प्रव्रज्या
९ सुबाहुकुमार के आगामी भव और महाविदेह में सिद्धि २९ भ. महावीर के तीर्थ में भद्रनंदी आदि श्रमणों के कथानक
१ भद्रनंदी 'श्रमण' २ सुजात 'श्रमण' ३ सुवासव 'श्रमण' ४ जिनदास 'श्रमण' ५ धनपति 'श्रमण १. अध्ययन का क्रमांक और अध्ययन का शीर्षक लिखना छूट गया है। यहां केवल अध्ययन के
शीर्षक का हिन्दी अनुवाद दिया है । २. मूल 'गाहा' एकवचन है किन्तु गाथायें हैं-इसलिये "गाथायें" बहुवचन दिया है। ३. यहां शीर्षक छुट गया है। ४: यहां शीर्षक में "भगवओ समाहाणं च" अनावश्यक है। ५. शीर्षक छुट गया है
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ६ महबल 'श्रमण' ७ भद्रनंदी 'श्रमण ८ महचन्द 'थमण'
९ वरदत्त 'श्रमण' ३० भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिक का पौत्र पद्म श्रमण और महापद्म श्रमण
१ संग्रहणीगाथा २ पद्मकुमार का जन्म ३ पद्मकुमार की प्रव्रज्या
४ भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिक के पोते महापद्म आदि श्रमण ३१ भ. महावीर के तीर्थ में हरिकेशबल श्रमण
१ यज्ञवाडे में भिक्षार्थ गमन २ हरिकेशी को देखकर ब्राह्मणों को रोस आया ३ यक्ष ने हरिकेशी की प्रशंसा की ४ यक्ष का ब्राह्मणों से संवाद । ५ कुमारों ने हरिकेशी को पीटा ६ भद्रा (राजकुमारी) ने उनको रोका और मुनि की प्रशंसा की ७ यक्षों ने भी उनको रोका और असुरों ने कुमारों को पीटा ८ भद्रा ने मुनि की पुनः प्रशंसा की ९ ब्राह्मणों ने क्षमायाचना की
१० मुनि ने यज्ञ स्वरूप का प्ररूपण किया ३२ भ. महावीर के तीर्थ में अनाथो महा निर्ग्रन्थ
१ श्रेणिक ने मुनि-दर्शन किया २ मुनि ने अपना अनाथत्व प्ररूपित किया ३ अनाथपने को जानकर प्रव्रज्या का संकल्प किया और इससे वेदना का क्षय हुआ ४ प्रव्रज्याग्रहण करने से सनाथत्व प्राप्त हुआ ५ कुशीलाचरण निरूपण पूर्वक संयम पालन का उपदेश दिया
६ श्रेणिक का प्रसन्न होना और क्षमायाचना करना ३३ भ. महावीर के तीर्थ में समुद्रपालीय का कथानक
१ पालित श्रावक २ समुद्र में जन्म और परिणय आदि ३ वध्य पुरुष के दर्शन से वैराग्य और प्रव्रज्या
४ परीषह-सहन और सिद्धी ३४ भ. महावीर के तीर्थ में मृगापुत्र बलश्री श्रमण
१ बलश्री मृगापुत्र २ श्रमण को देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ ३ मृगापुत्र का प्रव्रज्या-संकल्प और माता-पिता से निवेदन ४ माता-पिता ने श्रमण जीवन दुष्कर कहा और प्रवज्या लेने से रोका ५ मृगापुत्र ने नरक के दुखों का वर्णन किया और श्रमण जीवन की दुष्करता का निराकरण किया ६ माता-पिता ने कहा-श्रमण जीवन में चिकित्सा निषिद्ध है
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ७ मृगापुत्र का उत्तर
८ मृगापुत्र की प्रव्रज्या ३५ म. महावीर के तीर्थ में गर्दभाली और संजय राजा
१ संजय राजा ने मुनि के समीप मृगवध किया २ संजय ने क्षमायाचना की ३ गर्दभाली मुनि ने उपदेश दिया ४ मुनि के समीप राजा की प्रव्रज्या ५ क्षत्रियमुनि के प्रश्न ६ संजय मुनि ने आत्मकथा कही. ७ क्षत्रिय मुनि ने अपना पूर्वभव कहा
८ क्षत्रिय मुनि ने पूर्व प्रव्रजित भरतादिक का निरूपण किया ३६ म. महावीर के तीर्थ में इषुकार राजा आदि छ श्रमण
१ इषुकार नगर में पुरोहित तथा उसके पुत्रादि २ जातिस्मरण ज्ञान से पुरोहित पुत्रों को विरति, प्रव्रज्या का संकल्प और निवेदन
३ राजा आदि की प्रव्रज्या ३७ भ. महावीर के तीर्थ में स्कंदक परिव्राजक
१ कृतंगला नगरी में भ. महावीर का समोसरण २ श्रावस्ती नगरी में स्कंदक परिव्राजक ३ पिंगल निर्ग्रन्थ ने लोकादि के सम्बन्ध में प्रश्न किये
स्कंदक का उत्तर देने में असामर्थ्य
अनेकजन कृतंगला नगरी गये ६ भ. महावीर के दर्शनार्थ स्कंदक का कृतंगला जाना ७ भ. महावीर ने गौतम को स्कंदक के आगमन की सूचना दी ८ गौतम ने स्कंदक का स्वागत किया और स्कंदक ने अपने आने का कारण कहा ९ भ. महावीर के ज्ञान के सम्बन्ध में स्कन्दक को आश्चर्य हआ १० स्कन्दक की महावीर-पर्युपासना ११ भ. महावीर ने स्कन्दक के मनोगत भाव कहे १२ भ. महावीर ने चार प्रकार से लोक की प्ररूपणा की १३ चार प्रकार से जीव की प्ररूपणा की १४ चार प्रकार से सिद्धि की प्ररूपणा की १५ चार प्रकार से सिद्धों की प्ररूपणा की' १६ (अनेक प्रकार से) मरण की प्ररूपणा की १७ स्कन्दक का धर्म-श्रमण १८ स्कन्दक की प्रव्रज्या
भ. महावीर का जनपद विहार
स्कन्दक ने भिक्षु-प्रतिमा ग्रहण की २१ स्कन्दक ने गुणरत्नसंवत्सर तप किया २२ राजगृह में भ. महावीर का समवसरण और स्कन्दक का समाधिमरण का संकल्प २३ स्कन्दक की संलेखना १. सूत्रांक देना छूट गया है ।
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २४ स्कन्दक के पात्र-वस्त्र ले आना
२५ स्कन्दक का अच्युतकल्प में उपपात और महाविदेह में सिद्धि ३८ भ. महावीर के तीर्थ में मोद्गल परिव्राजक
१ आलभिका नगरी में मोद्गल परिव्राजक २ मोद्गल का विभंगज्ञान ३ देव-स्थिति के सम्बन्ध में मोद्गल का विभंगज्ञान ४ भ. महावीर का समवसरण और देव-स्थिति के सम्बन्ध में यथार्थ कथन ५ मोद्गल के विभंगज्ञान का पतन और भ. महावीर के समीप गमन ६ मोदगल का प्रवज्या
७ सिद्ध होने वाले के संहनन के सम्बन्ध में गौतम के प्रश्न ३९ भ. महावीर के तीर्थ में शिवराज ऋषि
१ हस्तिनापुर में शिवराजा २ शिव का दिशाप्रोक्षिक-तापस-प्रव्रज्या का संकल्प ३ शिवभद्रकुमार का राज्याभिषेक. ४ शिव की दिशाप्रोक्षिक-तापस-प्रव्रज्या ५ शिव का सात द्वीप विषयक विभंगज्ञान ६ भ. महावीर के समवसरण में शिव के विभंगज्ञान के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर ७ भ. महावीर द्वारा असंख्य द्वीप-समुद्र की प्ररूपणा ८ शिव को अपने ज्ञान के सम्बन्ध में शंका और भ. महावीर की पर्युपासना
९ शिव की प्रव्रज्या और निर्वाणगमन ४० भ. महावीर के तीर्थ में उदायन राजा का कथानक
१ चम्पा नगरी में भ. महावीर का समवसरण २ वीतीभय नगर में उदायन राजा ३ उदायन की महावीर वन्दनाभिलाषा ४ भ. महावीर ने अभिलाषा जानी ५ वीतीभय नगर में भ. महावीर का समवसरण ६ उदायन का प्रव्रज्या-संकल्प ७ अपने पुत्र अभिजितकुमार को छोड़कर केशीकुमार (भाणेज) का राज्याभिषेक ८ उदायन की प्रव्रज्या ९ अभिजितकुमार का उदायन के प्रति वैर भाव और कौणिक के समीप गमन
१० अभिजितकुमार की असुर देवों में उत्पत्ति ४१ भ. महावीर के तीर्थ में जिनपाल जिनरक्षित का उदाहरण
१ चम्पा में माकंदी सार्थवाह के पुत्र २ जिनपाल-जिनरक्षित की समुद्र यात्रा ३ नावा-भंग ४ माकंदी-पुत्र फलक खण्ड से रतन द्वीप पहुंचे ५ रत्नद्वीप की देवी के साथ भोग भोगे
रत्नद्वीप की देवी का लवणसमुद्र को स्वच्छ करने के लिए जाना और वनखंड में रमण करने का आदेश देना
५३० ५३१-५४०
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ७ रत्नद्वीप की देवी का माकंदी पुत्रों को दृष्टिविष सर्प के समीप जाने का निषेध ८ माकंदी पुत्रों का बनखण्ड में गमन । ९ माकंदी पुत्रों का देवी-निषिद्ध स्थान में गमन १० वनखण्ड में देवी द्वारा सुलीपर आरोपित पुरुष के दर्शन ११ माकंदी पुत्रों ने संकट-मुक्त होने के संबंध में पूछा १२ माकंदी पुत्रों ने शेलक यक्ष की उपासना की १३ शेलक यक्ष ने रक्षण का उपाय कहा १४ माकंदी-पुत्रों का शैलक यक्ष के पृष्ठ पर आरोहण करना १५ रत्नद्वीप की देवी ने प्रतिकूल उपसर्ग किये १६ रत्नद्वीप की देवी ने अनुकूल उपसर्ग किये १७ जिनरक्षित की मृत्यु १८ जिनपालित का चम्पागमन
१९ जिनपालित की प्रव्रज्या ४२ भ. महावीर के तीर्थ में कालाशवैश्यपुत्र
१ कालाशवैश्यपुत्र श्रमण का चातुर्याम धर्म से पंचमहाव्रत धर्म स्वीकार करना ४३ भ. महावीर के तीर्थ में उदक पेढाल पुत्र
१ नालंदा में लेप नाम का श्रमणोपासक था २ लेप की उदक शाला के समीप गौतम ठहरे हुए थे ३ गौतम के समीप प्रश्न के लिए पार्खापत्यश्रमण उदकपेढाल पुत्र का आना ४ उदकपेढालपुत्र का श्रमणोपासक के प्रत्याख्यान के सम्बन्ध में प्रश्न ५ भगवान गौतम का उत्तर ६ उदकपेढाल पुत्र का प्रति प्रश्न
"त्रस भूत प्राणी त्रस हैं, और त्रस प्राणी त्रस हैं. ये दोनों वाक्य समान अर्थ वाले हैं"
ऐसा गौतम ने कहा ८ उदकपेढाल पुत्र का स्वपक्ष स्थापन ९ भगवान गौतम का प्रत्युत्तर १० श्रमण का दृष्टान्त ११ प्रत्याख्यान के विषय दिखाना १२ नो भागों में प्रत्याख्यान के विषय-दिखाना १३ त्रस-स्थावर प्राणियों के व्यवच्छेद (विनाश) का अभाव १४ उपसंहार
१५ उदक का चार यामधर्म से पंचमहाव्रत धर्म ग्रहण करना. ४४ भ. महावीर के तीर्थ में नन्दीफल का उदाहरण
१ चम्पानगरी में धनसार्थवाह २ धन (सार्थवाह) की अहिच्छत्रा जाने की घोषणा ३ धन (सार्थवाह) ने नन्दीफल वृक्षों के उपभोग का निषेध किया ४ निषेध के अनुसरण का फल
निषेध का पालन न करने पर मृत्यु ६ धन (सार्थवाह) का अहिच्छत्रा जाना ७ धन (सार्थवाह) का प्रवजित होना
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१४८ १४८ १४८ १४८ १४९ १४९
५७१-५७३ ५७४-५८२ ५८३
१४९ १४९-१५० १५० १५०-१५१ १५१-१५३ १५३-१५५ १५५ १५५-१५६
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१५६-१५७ १५७-१५८ १५८
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१५८
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सूत्रांक ५९६-६२२
पृष्ठांक १५९-१६४ १५९
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१६४-१६६
१६४
६२३-६२४ ६२५
- धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ४५ धनसार्थवाह का कथानक.
१ राजगृह में धन सार्थवाह की पुत्री सुसुमा २ चिलातदासपुत्र ने कुमार कुमारिकाओं को कीड़ाकाल में मारा-पीटा ३ चिलात को घर से निकाल दिया ४ चिलात की दुर्व्यसनों में प्रवृत्ति ५ राजगृह के समीप चोरपल्ली और उसमें विजय चोर सेनापति
चिलात का चोरपल्ली में गमन और चोर सेनापति विजय ने उसे चोर विद्यायें सिखाई ७ चोर सेनापति विजय की मृत्यु ८ चिलात का चोर सेनापति होना
चिलात का धन सार्थवाह का घर लूटना और सुसुमा का अपहरण करना १० नगररक्षकों ने चोरों का निग्रह किया ११ चिलात का चोरपल्लि से सुसुमा को लेकर भागना और ससुमा को मार देना १२ धन सार्थवाह का सुसुमा के लिये क्रन्दन करना १३ उस अटवी में भूख से व्याकुल धन सार्थवाह आदि ने सुसुमा के मांस रक्त का आहार किया १४ धन सार्थवाह का प्रवजित होना
१५ अंगवंश के सितंतर राजा दीक्षित हुये ४६ कालोदाई (आदि अनेक अन्यतीथियों) के कथानक
१ राजगह-स्थित कालोदाई आदि का अस्तिकाय के विषय में सन्देह २ कालोदाई आदि का गौतम के प्रति अस्तिकाय सम्बन्धि शंका का निरूपण ३ गौतम ने कालोदाई आदि की शंकाओं का समाधान किया ४ कालोदायी के पंचास्तिकाय संबंधी-विविध प्रश्नों के ज्ञातपुत्र-भ. महावीर कृत समाधान ५ कालोदाई का निग्रन्थ प्रव्रज्या ग्रहण और विहरण ६ भ. महावीर का जनपद विहार ७ कालोदाई के पापकर्म फलविपाक संबंधी और कल्याणकर्म (धर्म) फल विपाक संबंधी
प्रश्नों का भ. महावीर ने समाधान किया ८ कल्याण कर्मों के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर
कालोदाई के अग्निकाय जलाने और बुझाने से होने वाले कर्मबन्ध संबन्धी प्रश्नों का
भ. महावीर ने समाधान किया १० कालोदाई के अचित्त पुद्गलों के प्रकाश उद्योतादि संबंधी प्रश्नों का (भ. महावीर) ने
समाधान किया ११ कालोदाई का निर्वाण गमन ४७ पुंडरीक-कंडरीक कथानक
१ महाविदेह में पुण्डरीकिणी नगरी में राजपुत्र पुण्डरीक और कण्डरीक २ महापद्म राजा की प्रव्रज्या और पूण्डरीक का अभिषेक ३ कंडरीक की प्रव्रज्या ४ कंडरीक की वेदना ५ कंडरीक की चिकित्सा ६ कंडरीक का प्रमत्त विहार ७ पुंडरीक ने (कंडरीक को) प्रतिबोध दिया १. धनसार्थवाह के कथानक से यह सूत्र सर्वथा भिन्न है ।
१६५
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सूत्रांक
पृष्ठांक
६४७-६४८ ६४९-६५० ६५१-६५६
१६९-१७० १७० १७१-१७५
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१७१ १७२-१७४ १७५ १७७-२३९
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
कंडरीक का प्रव्रज्या परित्याग ९ पुंडरीक की प्रव्रज्या १० कंडरीक की मत्य
११ पुंडरीक की आराधना ४८ भ. महावीर के तीर्थ में स्थविरावली
१ इग्यारह गणधर २ आर्य सुधर्मा के श्रमण-निर्ग्रन्थों की परम्परा ३ आर्य सुधर्मा से आर्य जसभद्र पर्यन्त स्थविरावलो ४ आर्य जसभद्र से संक्षिप्त स्थविरावली ५ आर्य जसभद्र से विस्तृत स्थविरावली ६ नन्दीसूत्रान्तर्गत स्थविरावली
तृतीय-स्कंध श्रमणियों के कथानक
अध्ययन १-१० म. अरिष्टनेमि के तीर्थ में द्रोपदी का कथानक १ द्रौपदी के पूर्वभव २ नागश्री का कथानक ३ नागश्री ने तीक्ष्णरस के तुंबे का व्यंजन बनाया और उसे छिपाकर रखा ४ धर्मरुचि को तीक्ष्णरस के तुंबे का व्यञ्जन दिया ५ धर्मरुचि ने तीखे तुम्बे का व्यञ्जन (भूमि पर) डाला और उससे कीडियां मरी ६ अहिंसा के लिए धर्मरुचि ने तीखे तुबे का व्यञ्जन खाया ७ धर्मरुचि का समाधिमरण ८ साधुओं ने धर्मरुचि की खोज की ९ साधुओं ने धर्मरुचि का समाधि-मरण कहा १० धर्मरुचि का अनुत्तर देवरूप में उपपात और नागसिरी की निन्दा ११ नागसिरी को घर से निकालना १२ नागसिरी का भवभ्रमण १३ नागसिरी का सुकुमालिका का भव १४ सुकुमालिका का सागर के साथ विवाह १५ सागर का पलायन १६ सुकुमालिका की चिन्ता १७ सागरदत्त ने जिनदत्त को उपालम्भ दिया १८ समझाने पर भी सागर ने सुकुमालिका के साथ रहना नहीं चाहा १९ सुकुमालिका का गरीब के साथ पुनर्विवाह २० गरीब भी भाग गया
सुकुमालीका को पुन: चिन्ता , २२ सुकुमालीका का दानशाला. निर्माण २३ आर्याओंका संघाटक भिक्षा के लिए सागरदत्त के घर आया २४ सुकुमालिका ने सागर के प्रसन्न होने के उपाय पूछा २५ आर्याओं ने धर्मोपदेश दिया
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(२५)
सूत्रांक ४८
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २६ सुकुमालिका का श्रमणोपासिका होना २७ सुकुमालिका का प्रव्रज्या स्वीकार करना २८ सुकुमालिका का चम्पा नगरी के बाहर आतापना लेना २९ सुकुमालिका ने गणिका के भोगमय. जीवन को देखकर नियाणा किया ३० सुकुमालिका का बाकुशिक (सदोष) निर्ग्रन्थित्व ३१ सुकुमालिका का पृथक् विहार और देवलोक में उपपात ३२ द्रौपदी-भव के कथानक में द्रौपदी का तारुण्य भाव ३३ द्रुपद राजा ने द्रौपदी के स्वयम्बर का संकल्प किया ३४ द्वारिका को दूत भेजा ३५ श्रीकृष्ण का प्रस्थान ३६ हस्तिनापुर को दूत भेजा ३७ चम्पानगरी को दूत भेजा ३८ हजारों राजाओं का प्रस्थान ३९ द्रुपद राजा ने वासुदेव आदि का सत्कार किया ४० द्रौपदी का स्वयम्वर
द्रौपदी का पाण्डवों को वरण करना ४२ पाणि-ग्रहण ४३ पण्डु राजा ने वासुदेव आदि को निमन्त्रण दिया ४४ पण्डु राजा ने वासुदेव आदि का सत्कार किया ४५ कल्याण कारक उत्सव किया ४६ नारद का आगमन ४७ द्रौपदी ने नारद का अनादर किया ४८ नारद का अपरकंका जाना और पद्मनाभ राजा से मिलना ४९ पद्मनाभ का अपने अन्तःपुर के सम्बन्ध में गर्व ५० कूपदर्दुर का दृष्टान्त कहकर नारद ने द्रौपदी के रूप की प्रशंसा की ५१ पद्मनाभ के लिये द्रौपदी का देवता ने अपहरण किया ५२ द्रौपदी को चिन्ता ५३ पद्मनाभ ने आश्वासन दिया ५४ युधिष्ठिर ने पण्डुराजा को द्रौपदी के अपहरण की सूचना दी ५५ पण्डुराजा ने कुन्ती को श्रीकृष्ण के पास भेजा और द्रौपदी अन्वेषण के लिए कहा ५६ श्रीकृष्ण का द्रौपदी की गवेषणा के लिये आदेश ५७ नारद से द्रौपदी का वृत्तान्त मिलना ५८ पाण्डव सहित श्रीकृष्ण का द्रौपदी को लाने के लिये धातकी खण्ड की ओर प्रयाण ५९ श्रीकृष्ण का देव आराधन
श्रीकृष्ण की आजा से सुस्थित देव ने लवण समुद्र के मध्य में मार्ग बनाया ६१ पद्मनाभ के समीप श्रीकृष्ण ने दूत भेजा ६२ पद्मनाभ ने दूत का अपमान किया ६३ दुत का श्रीकृष्ण के समीप आना ६४ पद्मनाभ का पाण्डवों से युद्ध ६५ पाण्डवों का पराजय
श्रीकृष्ण ने पराजय कारण कहा और युद्ध किया ६७ पद्मनाभ का पलायन
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ६८ श्रीकृष्ण का नृसिंह रूप बनाना ६९ पद्मनाभ का श्रीकृष्ण का शरण स्वीकार करना
द्रौपदी सहित पाण्डव और श्रीकृष्ण का आगमन ७१ धातकी खण्ड के कपिल वासुदेव और भरत क्षेत्र के श्रीकृष्ण वासुदेव का शंख-शब्द से मिलना
कपिल ने पद्मनाभ को निर्वासित कर दिया
अपरिक्षणीय श्रीकृष्ण की पाण्डवों ने परीक्षा की ७४ श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को निर्वासित कर दिया ७५ पाण्डु-मथुरा बसाना ७६ पण्डुसेन का जन्म
पाण्डव और द्रौपदी की प्रव्रज्या १८ भ. अरिष्टनेमि का निर्वाण ७९ पाण्डबों का निर्वाण ८० द्रौपदी की देवगति भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में पद्मावती आदि श्रमणियों के कथानक १ संग्रहणी-गाथा २ श्रीकृष्ण वासुदेव की देवी पद्मावती ३ अर्हन्त अरिष्टनेमि ने चारयाम धर्म की देशना दी ४ श्रीकृष्ण ने द्वारिका के विनाश का कारण पूछा ५ श्रीकृष्ण को द्वारिका के विनाश से चिन्ता
निदान करने से सभी बासुदेव प्रवजित नहीं होते ऐसा स्पष्टीकरण ७ श्री कृष्ण का अनन्तर भव में पाताल लोक में निवास ८ आगामी उत्सपिणी में श्रीकृष्ण का अमम भव में तीर्थकर पद ९ श्रीकृष्ण ने अन्य के प्रवज्या ग्रहण में सहाय की घोषणा १० पद्मावती देवी का प्रव्रज्या संकल्प .११ पद्मावती की प्रव्रज्या १२ पद्मावती की सिद्धगति १३ गोरी प्रभृति के कथानक संक्षेप
१४ मूलसिरि-मूलदत्ता के कथानक ३ पोट्टिला का कथानक
१ तेतलीपुर में तेतलीपुत्र अमात्य २ स्वर्णकार की पुत्री पोट्टिला ३ तेतलीपुत्र की पोट्टिला में आसक्ति ४ पोट्टिला का वरण ५ पोट्टिला का पाणि-ग्रहण ६ कनकरथ राजा की राज्यासक्ति और पुत्र का अंग-छेदन ७ पद्मावती ने पुत्र की रक्षा के लिए तेतली पुत्र की स्वीकृति ८ पद्मावती का पुत्र और पोट्टिला की पुत्री का जन्म के बाद परस्पर परावर्तन ९ पुत्री का मृतक कार्य १० अमात्य-पुत्र का जन्मोत्सव और कनकध्वज नामकरण ११ अमात्य की पोट्टिला से विरक्ति
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची १२ पोट्टिला का दानशाला चालु करना १३ आर्या-संघाटक का भिक्षा के लिए आगमन १४ पोटिला ने अमात्य के प्रसन्न होने का उपाय पूछा १५ आर्या संघाटक ने धर्मोपदेश दिया १६ पोट्टिला ने श्राविका-धर्म ग्रहण किया १७ पोट्टिला का प्रव्रज्या-ग्रहण संकल्प १८ तेतलीपुत्र को धर्म का बोध कराने के लिये वचन बद्ध पोट्टिला का प्रव्रज्या ग्रहण
और देवलोक में उपपात १९ कनकरथ की मृत्यु ।
कनकध्वज का राज्याभिषेक २१ तेतली-पुत्र का सम्मान २२ तेतली-पुत्र को धर्म-बोध कराने के लिए पोट्टिल देव कृत उपाय २३ तेतली-पुत्र की मरण चेष्टा का विफलीकरण २४ तेतली-पुत्र को विस्मय २५ पोट्टिलदेव का संवाद २६ जातिस्मरण के अनन्तर तेतली-पुत्र का प्रव्रज्या-ग्रहण २७ तेतली-पुत्र अणगार को केवलज्ञान २८ कनकध्वज का श्रावक धर्म-ग्रहण करना.
२९ तेतली-पुत्र केवली की सिद्धि ४ भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में काली आदि श्रमणियों के कथानक
१ धर्मकथा के दस वर्ग २ चमर चंचा में काली देवी ३ भ. महावीर के समीप काली देवी की नृत्य-विधि ४ गौतम ने काली देवी के पूर्वभव की पृच्छा की ५ काली देवी का पूर्वभव में भी काली नाम था ६ काली ने भ. पार्श्वनाथ के दर्शन किये और धर्म-श्रवण किया ७ काली का प्रव्रज्या-संकल्प ८ काली की प्रव्रज्या ९ काली का बाकुशिक चारित्र १० काली का पृथक् विहार ११ काली की मृत्यु और देवी होना
१२ काली देवी की स्थिति और सिद्धि ५ भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में राई आदि श्रमणियों के कथानक
१ राई के कथानक में राई देवी का नृत्य २ राई देवी का पूर्वभव ३ रजनी का कथानक ४ विज्जू का कथानक ५ मेधा का कथानक ६ शुंभा का कथानक ७ १निसंभा, २ रंभा. ३ निरंभा ४ मदना इन चारों के कथानक ८ अला का कथानक
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ९ १ कमा, २ सतेरा, ३ सोयामणी, ४ इन्दा, ५ घनविद्युता-इनके कथानक १० शेष दाक्षिणात्य इन्द्र की अग्रमहिषियों के कथानकों की सूचना ११ उत्तरीय इन्द्र की रुया आदि अग्रमहिषियों के कथानक १२ दाक्षिणात्य पिशाचकुमारेन्द्र की कमला आदि अग्रमहिषियों के कथानक १३ उत्तरीय पिशाचेन्द्र की महाकाली आदि अग्रमहिषियों के कथानक १४ सूर्य को अग्रमहिषियों के कथानक १५ चन्द्र की अग्रमहिषियों के कथानक १६ शक्र की पद्मावती आदि अग्रमहिषियों के कथानका
१७ ईशानेन्द्र की कृष्णा आदि अग्रमहिषियों के कथानक ६ भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में भूता आदि श्रमणियों के कथानक
१ संग्रहणी गाथा २ भ. महावीर के समवसरण में श्रीदेवी की नृत्य विधि ३ श्रीदेवी के पूर्वभव में भूता का कथानक ४ भ. पार्श्वनाथ के समवसरण में गमन ५ भूता की प्रव्रज्या ६ भूता निर्ग्रन्थी का शरीर बाकुशिकत्व. (सदोष चरित्र) ७ भूता का देवी होना
८ भ. पार्श्वनाथ की ही आदि श्रमणियों के कथानक ७ पावस्था (शिथिलाचारिणी) सुभद्रा श्रमणी का कथानक.
१ भ. महावीर के समवसरण में बहुपुत्रिका देवी की नृत्य-विधि २ बहुपुत्रिका देवी का पूर्वभवरूप सुभद्रा का कथानक ३ सुभद्रा को अपने बंध्यत्व की चिन्ता ४ आर्याओं से पुत्र होने का उपाय पूछा ५ आर्याओं ने धर्म कहा ६ सुभद्रा ने गृहीधर्म स्वीकार किया ७ सुभद्रा का प्रव्रज्या संकल्प ८ सुभद्रा की प्रव्रज्या
बालकों से स्नेह रखने वाली सुभद्रा निर्ग्रन्थी की विविध प्रकार की बालक्रीड़ायें १० आर्या सुभद्रा को बालक्रीड़ाओं का निषेध करना ११ सुभद्रा का पृथक् वास
सुभद्रा की संलेखना. बहुपुत्रिकादेवी के रूप में उपपात १३ बहुपुत्रिका नाम का तात्पर्य १४ बहुपुत्रिका देवी की स्थिति का कथन, और भावी जन्म काकथानक. १५ बहुपुत्रिका देवी का सोम भिव १६ बत्तीस सन्तानों से सोमा की मनोपीड़ा
सोमा की वंध्यत्व-प्रशंसा १८ सोमा का धर्म-श्रवण १९ सोमा का प्रव्रज्या-संकल्प, २० राष्ट्रकूट ने प्रवज्या लेने का निषेध किया २१ सोमा का श्रावक धर्म-ग्रहण करना
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८
धर्मानुयोग-विषय-सूची
१०
२२ सोमा की प्रव्रज्या
२३ सोमा का देव होना और सिद्धगति का प्राप्त होना
भ. महावीर के तीर्थ में नन्दा आदि के कथानक
९
भ. महावीर के तीर्थ में काली आदि श्रमणियों के कथानक
१ संग्रहणी गाथा.
२
३
१ संग्रहणी गावायें
२ श्रेणिक राजा की नन्दा आदि देवियों का श्रमणी होना और सिद्ध गति प्राप्त करना
कोणिक राजा की लघुमाता काली
काली की प्रव्रज्या और रत्नावली तप
४ काली की संलेखना और सिद्धगति
काली का कनकावती तप और सिद्धमति
५
६ महाकाली का
७
८
कृष्णा की भिक्षु प्रतिमा और सिद्धगति
९
महाकृष्णा की लघु सर्वतोभद्रप्रतिमा और सिद्धगति १० वीरकृष्णा की महासर्वतोभद्रप्रतिमा और सिगति
रामकृष्णा की भद्रोत्तर प्रतिमा और सिद्धगति
निष्कीति तप और सिद्धगति
कृष्णा का महासिंह तप और सिगति
११
१२
१३
१४ संग्रहणी गाथा
भ. महावीर के तीर्थ में जयन्ती का कथानक
१ कोशाम्बी नगरी में उदयन आदि का धर्म-श्रवण.
२ जयन्ती के प्रश्न और समाधान.
कृष्णा का मुक्तायसी उप और
गति
महासेन कृष्णा का आयम्बिल वर्धमान तप और सिद्धगति
चतुर्थ स्कन्ध
श्रमणोपासकों के कथानक
(२९)
१- २३ अध्ययन
१
भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में सोमिल ब्राह्मण का कथानक
१
भ. महावीर के समवसरण में शुक्र महाग्रहदेव ने नृत्य विधि की
२ शुक्रदेव के पूर्वभव वर्णन में सोमिल ब्राह्मण का कथानक
३
भ. पार्श्वनाथ के समीप सोमिलका श्रावक धर्म-ग्रहण करना
४ सोमिल का मिथ्यात्व
५ सोमिल ने आम्र-आराम आदि का निर्माण कराया
६
नाना प्रकार के तापसों का वर्णक और सोमिल का दिशा प्रोक्षिक-तापस जीवन दिशाप्रोक्षिक तापसचर्या
13
८
सोमिल का काष्ठ मुद्रा से मुखबन्धन करके महाप्रस्थान करना
९. "तेरी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है" इस प्रकार देव के कहने पर भी सोमिल को बोध प्राप्त नहीं हुआ
१०
११
१. सूत्रांक देना छूट गया है।
देव के पुनः पुनः बोध देने पर सोमिल ने अणुव्रत आदि ग्रहण किये -
सोमिल को बोध प्राप्त हुआ
सूत्रांक
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
सूत्रांक १२ सोमिल का संलेखना करना और शुक्र महाग्रह देवरूप में होना
१३ शुक्र देवलोक से च्यवन के अनन्तर सोमिल के जीव की सिद्ध गति का प्ररूपण २ भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में राजा प्रदेशी का कथानक
१३-६१ १ आमलकप्पा में भ. महावीर का समवसरण २ सूर्याभदेव का महावीर वंदन के लिए संकल्प. और उचित कार्य करने के लिए आभियोगिक
देव को भेजना ३ आभियोगिक देव ने महावीर वंदन आदि किये ४ आभियोगक देव ने भ. महावीर के समवसरण की भूमिका का संप्रमार्जन किया ५ सूर्याभदेव के आदेश से उसके विमानवासी देव-देवियों का उसके समीप आगमन ६ सूर्याभदेव के आदेश से आभियोगिक देव ने दिव्ययान विमान का निर्माण किया और दिव्ययान
विमान का वर्णक ७ सूर्याभ का भ. महावीर के समीप आगमन. और दिव्य विमान आरोहण का वर्णक
८ सूर्याभ ने नृत्य-विधि का आयोजन किया . ९ नृत्य-विधि का वर्णक १० नृत्य की समाप्ति और सूर्याभ का गमन ११ सूर्याभदेव की देव ऋद्धि आदि का शरीरान्तर्गत होने का निरूपण १२ सूर्याभविमान के स्थान आदि का विस्तार से निरूपण १३ सूर्याभदेव का विस्तार से अभिषेक वर्णन. १४ सूर्याभदेव और उसके सामानिक देवों की स्थिति का प्ररूपण. १५ प्रदेशी राजा का दृढ़ प्रतिज्ञ चरित्र. सूर्याभदेव का पूर्वभव और अनन्तरभव का प्ररूपण, प्रदेशी
राजा, सूर्यकतादेवी, सूर्यकान्त कुमार, चित्तसारथि आदि के नामों का निरूपण १६ प्रदेशी राजा ने जितशत्रु राजा के समीप चित्तसारथि को भेजना १७ श्रावस्ति नगरी में केशिकुमार श्रमण का आगमन.
केशिकुमार श्रमण के आगमन का वृत्तान्त ज्ञात होने पर चित्तसारथि का केशिकुमार श्रमण की चंदना के लिये जाना, धर्म-श्रवण करना और गृहस्थ धर्म स्वीकार करना.
३२-३५ श्वेताम्बिका नगरी जाते हुए चित्त सारथि ने केशिकुमार श्रमण को श्वेताम्बिका नगरी आने के
लिए प्रार्थना की और केशिकुमार श्रमण ने स्वीकृति दी २० चित्त सारथि का श्वेताम्बिका नगरी में आगमन
३७-३८ उद्यान पालक के कहे अनुसार चित्त सारथि का केशिकुमार श्रमण को वंदन करने के लिए जाना और धर्म-श्रवण करना धर्म के अलाभ एवं लाभ के संबंध में चार निर्देश. अश्व परीक्षा के लिए निकले हुए चित्त सारथि सहित प्रदेशी राजा का केशिकुमार श्रमण के समीप आना-१ प्रदेशी राजा को प्रतिबोध देने के लिए केशिमुनि के प्ररूपण में पांच प्रकार के ज्ञान का निरूपण ४४ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में जीव और शरीर का अन्यत्व प्ररूपण "आजकल में उत्पन्न
नैरयिक का मनुष्यलोक आगमन विषयक निषेध-प्ररूपक चार निर्देश" २६ "आजकल में उत्पन्न देव का मनुष्य लोक आगमन विषयक निषेध निरूपक चार निर्देश" २७ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में “जीव की अप्रतिहत गति का समर्थन"
४७-४८ १. मूलपाठ पर दिये गये शीर्षक का यह अनुवाद है किन्तु आगम पाठ के भावानुसार शीर्षक भिन्न
होना चाहिए और उसका अनुवाद इस प्रकार होना चाहिए-“अश्व परीक्षा के बहाने चित्त सारथि का प्रदेशी राजा को केशिकुमार श्रमण के समीप लाना ।
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२७६-२७७ २७७-२७८ २७८-२७९
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५
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
२८ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में - "जीव और शरीर के अन्यत्व समर्थन में अपर्याप्त उपकरण हेतु का निरूपण"
२९ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में "जीव का अगुरुलघुत्व"
३० केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में - "काष्ठगत अग्नि के दृष्टान्त से जीव का अदर्शन"
३१ केशिकुमार श्रमण निर्दिष्ट - "प्रदेशी राजा का व्यावहारिक जीवन"
३२ केशिकुमार निर्दिष्ट "जीव की अदृश्यता"
३३ केशिकुमार श्रमण निर्दिष्ट - "जीव प्रदेशों की शरीर प्रमाण अवस्थिति"
३४ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में - "लोह (धातु) धारक का दृष्टान्त पश्चात्ताप के निषेध का
प्ररूपण
३५ प्रदेशी राजा का गृहस्थ धर्म स्वीकार करना और रमणीय अमरणीय होने के सम्बन्ध में वन खण्ड आदि के दृष्टान्त.
३६ सूरीकन्ता ने विष प्रयोग किया, प्रदेशी राजा का समाधिमरण और सूर्याभदेव के रूप में उपपात ३७ सूर्याभदेव के भव के बाद प्रदेशी राजा को जीव दृढ़प्रतिज्ञ के भव में मोक्ष गमन का निरूपण भ. महावीर के तीर्थ में लुंगिया नगरी निवासी श्रमणोपासक
३
१
श्रमणोपासक वर्णक
२ तुंगिया नगरी में पार्श्वपत्य स्थविरों का आगमन
३ श्रमणोपासकों ने स्थविरों की पर्युपासना की
भ. महावीर के तीर्थ में नन्द मणियार का कथानक
(३१)
१
भ. महावीर के समवसरण में दर्दुर देव ने नृत्यविधि की
२ गौतम के पूछने पर भ. महावीर ने दर्दुरदेव के पूर्व भव का नन्द मणियार का कथानक कहा
३
नन्द का धर्म ग्रहण करना
४
नन्द का मिथ्यात्व ग्रहण करना
५
६
७
८
९
नन्द ने पुष्करणी का निर्माण करवाया
नन्द ने वनखण्ड का निर्माण करवाया
नन्द ने चित्र सभा का निर्माण करवाय।
नन्द ने महानसशाला का निर्माण करवाया
नन्द ने चिकित्साशाला का निर्माण करवाया
१०
नन्द ने आलंकारिक सभा का निर्माण करवाया
११ अनेक लोगों ने नन्द की प्रशंसा की और वह हर्षित हुआ
१२
नन्द के रोगोत्पति
नन्द के रोगों की वैद्यों द्वारा की गई चिकित्सा निष्फल गई
१३
१४ नन्द मणियार का दुर्दर भव
१५ दर्दुर का जातिस्मरण और श्रावक व्रतों का पालन
१६
भ. महावीर का राजगृह में समवसरण
१७ दर्दर का समवसरण में जाना
१८ दर्दर का महाव्रत ग्रहण-संकल्प १९ दर्दर का देव होना
भ. महावीर के तीर्थ में आनन्द गाथापति का कथानक
१ संग्रहणी गाथा
२ वाणिज्य ग्राम में आनन्द गाथापति
सूत्रांक
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ३ भ. महावीर का समवसरण ४ भ. महावीर के समवसरण में आनन्द का जाना और धर्म श्रवण करना ५ आनन्द का गृहीधर्म ग्रहण करना ६ आनन्द गाथापति के श्रावक धर्म का विवरण ७ सम्यक्त्व आदि के अतिचार ८ आनन्द का अभि ग्रह और शिवानन्दा को गहीधर्म पालन के लिए प्रेरणा देना
शिवानन्दा का भगवान को वंदन करने के लिए जाना और धर्म श्रवण करना शिवानन्दा का गृहीधर्म ग्रहण करना
आनन्द के प्रव्रज्या ग्रहण करने के सम्बन्ध में गौतम का प्रश्न और भगवान का समाधान १२ भगवान का जनपद विहार
आनन्द की श्रमणोपासक चर्या १४ शिवानन्दा की श्रमणोपासिका चर्या १५ आनन्द की धर्म जागरिका और गही व्यापार का त्याग १६ आनन्द का उपासक प्रतिमा स्वीकार करना १७ आनन्द का अनशन १८ आनन्द को अवधिज्ञान की उत्पत्ति
गोचरचर्या के लिए निकले हुए गौतम का आनन्द के समक्ष आना २० अवधिज्ञान के सम्बन्ध में आनन्द और गौतम का संवाद २१ भगवान ने गौतम की शंका का निराकरण किया २२ गौतम द्वारा क्षमा याचना २३ भगवान का जनपद विहार
२४ आनन्द का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति. और उसके बाद सिद्धगति का निरूपण ६ कामदेव गाथापति का कथानक
१ चम्पानगरी में कामदेव गाथापति २ भ. महावीर का समवसरण ३ कामदेव का समवसरण में गमन और धर्म श्रवण ४ कामदेव का गृहीधर्म स्वीकार करना
भगवान का जनपद विहार
कामदेव की श्रमणोपासक चर्या ७ भद्रा की श्रमणोपासिका चर्या ८ कामदेव की धर्म-जागरिका और गृह व्यापार का त्याग
कामदेव ने पिशाचरूप से किया गया मारणांतिक उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया १० कामदेव ने हाथीरूप से किया गया उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया ११ कामदेव ने सर्परूप से किया गया उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया १२ देव ने स्वाभाविक रूप धारण करके कामदेव की प्रशंसा की और क्षमायाचना की १३ कामदेव ने प्रतिज्ञा की १४ कामदेव ने भगवान् की पर्युपासना की १५ भगवान ने कामदेव के उपसर्ग का स्पष्टीकरण किया १६ भगवान ने कामदेव की प्रशंसा की १७ कामदेव का लौटना १८ भगवान का जनपद विहार
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6)
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
१९ कामदेव ने उपासक प्रतिमायें
ग्रहण की
२० कामदेव का अनशन
२१ कामदेव का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति और बाद में सिद्धगति का निरूपण
चुलणीविता गाथापति का कथानक
वाराणसी नगरी में चुनीता गाथापति
(३३)
२ भ. महावीर का समवसरण
३ चुलनी पिता गाथापति का समवसरण में जाना और धर्म श्रवण करना
४
चुलनी पिता का गृही धर्म स्वीकार करना
५
भगवान का जनपद विहार
६ चुलनी पिता की श्रमणोपासक चर्या
७
शामा की श्रमणोपासका चर्या
८
चुलनी पिता की धर्म जागरिका और गृह व्यापार का त्याग
९ चुलनीपिता ने देवता द्वारा किये गये अपने बड़े पुत्र के मरने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया.
१० चुलनीपिता ने देवता द्वारा किये गये अपने मझले पुत्र के मारने का उपसर्गं सम्यक् प्रकार से सहन किया
११ चुलनीपिता ने देवता द्वारा किये गये अपने छोटे पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया
१२ चुलनी पिता को देवता के कहे हुए अपनी माता को मारने के वचन श्रवण का उपसर्ग सहन न होने पर कोलाहल करना और मायावी देव का आकाश में अदृश्य हो जाना
१३
भद्रा का प्रश्न
१४ चुलनीपिता का उत्तर
१५ चुलनी पिता का प्रायश्चित्त करना
१६
चुलनी का उपासक प्रतिमा स्वीकार करना.
१७ चुलनीपिता का अनशन
१८ चुलनीपिता का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति और उसके बाद सिद्धगति का निरूपण
८ सुरादेव गाथापति का कथानक
१ वाराणसी नगरी में सुरादेव गाथापति
२
भगवान महावीर का समवसरण
३ सुरादेव गाथापति का समवसरण में जाना और धर्म श्रवण करना
४ सुरादेव का गृही धर्म स्वीकार करना
५
भगवान का जनपद विहार
६ सुरादेव की श्रमणोपासक चर्या
७
धन्ना भार्या की श्रमणोपासका चर्या
८ सुरादेव की धर्मजागरिका और गृही व्यापार का त्याग
९
सुरादेव ने देवता द्वारा किये गये अपने बड़े पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया
१० सुरादेव ने देवता द्वारा किये गये अपने मझले पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया
११ सुरादेव ने देवता द्वारा किये गये अपने छोटे पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया
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(३४) धर्मकथानुयोग-विषय-सूची १२ देव कथित रोगांतक सहन न होने पर सुरादेव का कोलाहल करना और मायावी देव का
आकाश में अदृश्य हो जाना धन्ना भार्या का प्रश्न
सुरादेव का उत्तर १५ सुरादेव का प्रायश्चित्त करना १६ सुरादेव का उपासक प्रतिमा स्वीकार करना १७ सुरादेव का अनशन १८ सुरादेव का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति उसके बाद सिद्धगति प्राप्त करने का निरूपण चुल्लशतक गाथापति का कथानक १ आलभिका नगरी में चुल्लशतक गाथापति २ भगवान महावीर का समवसरण ३ चुल्लशतक का समवसरण में जाना और धर्म श्रवण करना ४ चुल्लशतक का गृहीधर्म स्वीकार करना
भगवान का जनपद विहार
चुल्लशतक की श्रमणोपासक चर्या ७ बहलाभार्या की श्रमणोपासिका चर्या
चुल्लशतक की धर्मजागरिका ९ चुल्लशतक ने देवता द्वारा किये गये अपने बड़े पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक प्रकार से सहन
किया चुल्लशतक ने देवता द्वारा किये गये अपने मझले पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया चल्लशतक ने देवता द्वारा कियेगये अपने छोटे पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया देवकथित अपनी स्वर्ण-राशि को बिखरने रूप उपसर्ग सहन न होने पर चुल्लशतक का कोलाहल
करना और मायावी देव का आकाश में अदृश्य हो जाना १३ बहुला का प्रश्न १४ चुल्लशतक का उत्तर १५ चुल्लशतक का प्रायश्चित्त १६ चुल्लशतक का उपासक प्रतिमा आराधन करना १७ चुल्लशतक का अनशन
१८ चल्लशतक का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति और सिद्धगति प्राप्त करने का निरूपण १० कुण्डकोलिक गाथापति का कथानक
कपिलपुर में कुण्डकोलिक गाथापति २ भ. महावीर का समवसरण ३ कुण्डकोलिक गाथापति का समवसरण में जाना और धर्म श्रवण करना ४ कुण्डकोलिक का गृही धर्म ग्रहण करना ५ भगवान का जनपद विहार ६ कुण्डकोलिक की श्रमणोपासक चर्या ७ पूसा भार्या की श्रमणोपासिका चर्या ८ देवता ने नियतिवाद का समर्थन किया ९ कुण्डकोलिक ने नियतिवाद का निरसन किया
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
१० देवता ने नियतिवाद का समर्थन किया
११
१२ देव का लौट जाना
कुण्डकोलिक ने नियतिवाद का निरसन किया
१३
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१५
भ. महावीर के समवसरण में जाना और धर्मश्रवण करना
भ. महावीर द्वारा पूर्व वृतान्त का प्ररूपण
भ. महावीर ने कुण्डकोलिक की प्रशंसा की
भगवान का जनपद विहार
कुण्ड कोलिक की धर्मजागरिका
१६
१७
१८ कुण्डकोलिक का उपासक प्रतिमा आराधना करना
१९ कुण्डकोलिक का अनशन
२० कुण्डकोलिक का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति और उसके बाद सिद्धगति प्राप्त करने का निरूपण
सद्दालपुत्र कुंभकार का कथानक
१ पोलासपुर में सालपुत्र
२ सद्दालपुत्र के सामने देवता ने भ. महावीर की प्रशंसा की
३ सद्दालपुत्र का गोशालक वंदन संकल्प
४
(३५)
भ. महावीर का समवसरण और सद्दालपुत्र का धर्म-श्रवण
५
अ. महावीर ने देवता द्वारा की गई प्रशंसा का निरूपण किया ६ सद्दालपुत्र का निवेदन
७
८ सहालपुत्र का गुहीधर्म ग्रहण करना
९ अग्निमित्रा का भ. महावीर की वंदना के लिए जाना और धर्म-श्रवण करना
१०
अग्निमित्रा का गृहीधर्म ग्रहण करना
११
भगवान का जनपद विहार
१२ सद्दालपुत्र की श्रमणोपासक चर्या
१३ अग्निमित्रा की श्रमणोपासका चर्या
भ. महावीर ने सालपुत्र को बोध दिया
१४ गोशालक का आगमन
१५ गोशालक ने भ. महावीर के
गुणगान किये
१६ भ. महावीर के साथ विवाद करने में गोशालक का असामर्थ्य और उसका लौट जाना १० साल की धर्मारिका
१८ सद्दालपुत्र ने देवता द्वारा किये गये अपने बड़े पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया
१९ सद्दालपुत्र ने देवता द्वारा किये गये अपने मझले पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से गहन किया
२० सद्दालपुत्र ने देवता द्वारा किये गये अपने छोटे पुत्र के मारने का उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन किया
२१ सद्दालपुत्र द्वारा देव कथित अपनी भार्या का मारण रूप उपसर्ग सहन न होने पर कोलाहल करना और मायावी देव का आकाश में ऊपर चले जाना
२२ अग्निमित्रा का प्रश्न
२३ सद्दालपुत्र का उत्तर
२४ सद्दालपुत्र ने प्रायश्चित्त किया
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २५ सद्दालपुत्र का उपासक प्रतिमा आराधन २६ सद्दालपुत्र का अनशन २७ सद्दालपुत्र का समाधिमरण, देवलोक में उत्पत्ति, और उसके बाद सिद्धगति प्राप्त करने का
निरूपण महाशतक गाथापति का कथानक १ राजगृह में महाशतक गाथापति २ भगवान महावीर का समवसरण ३ महाशतक का समवसरण में जाना और धर्मश्रवण करना
महाशतक का गृहीधर्म ग्रहण करना
महाशतक की श्रमणोपासक चर्या ६ भगवान का जनपद विहार ७ भोगाभिलासिणी रेवती की चिन्ता ८ रेवती का सपत्नियों को मार देना ९ रेवती का मांस मद्य सेवन १० अमारी की घोषणा होने पर भी रेवती का मांस-मद्य सेवन ११ महाशतक की धर्मजागरिका १२ रेवती ने महाशतक को अनुकूल उपसर्ग किया १३ महाशतक का उपासक प्रतिमा आराधन १४ महाशतक का अनशन १५ महाशतक को अवधिज्ञान की उत्पत्ति १६ रेवति ने महाशतक को पुनः अनुकूल उपसर्ग किया १७ विक्षेप से कुपित महाशतक ने रेवती का मरण के बाद नरक गमन कहा १८ भ. महावीर का समवसरण
महाशतक के पास गौतम को भेजना २० गौतम का महाशतक के पास जाना २१ महाशतक का गौतम को वंदन करना २२ गौतम ने महाशतक का 'प्रायश्चित्त करने का भगवन्त का कथन कहा २३ महाशतक का प्रायश्चित्त करना २४ गौतम का लौट जाना २५ भगवान का जनपद विहार २६ महाशतक का समाधिमरण देवलोक में उत्पत्ति और उसके बाद सिद्धगति प्राप्त करने का
निरूपण, १३ नन्दिनीपिता गाथापति का कथानक
१ श्रावस्तिनगरी में नन्दिनीपिता गाथापति २ भ. महावीर का समवसरण ३ नन्दिनीपिता का समवसरण में जाना और धर्म श्रवण करना ४ नन्दिनी पिता का गृहीधर्म स्वीकार करना ५ भगवान का जनपद विहार
नन्दिनीपिता की श्रमणोपासकचर्या ७ अश्विनी भार्या की श्रमणोपासिकाचर्या
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१० नन्दिनीपिता का अनशन
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नन्दिनीपिता का समाधिमरण देवलोक में उत्पत्ति और उसके बाद सिद्धगति प्राप्त होने का निरूपण २६८
११ १४ लेतिकापिता गाथापति का कथानक
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची.
८
नन्दिनीपिता की धर्मजागरिका
९ नन्दिनीपिता की उपासक प्रतिमा आराधना
१७
१ श्रावस्ति नगरी में लेतिका पिता गाथापति
२
भगवान् महावीर का समवसरण
३
लेतिका पिता गाथापति का समवसरण में जाना और धर्मश्रवण करना
५
६
૩
८
९
१०
११
लेतिका पिता का गृही धर्म ग्रहण करना
भगवान का जनपद विहार
लेतिका पिता की श्रमणोपासक चर्या
१५ ऋषिभद्रपुत्रादिक श्रमणोपासक
फाल्गुनी भार्या को श्रमणोपासका चर्या
लेतिकापिता की धर्मजागरिका
लेतिका पिता का उपासक प्रतिम। आराधन करना
१ आवधिका नगरी में ऋषभादिक श्रमणोपासक
२ देवस्थिति विषयक विवाद
१
२
३
लेतिकापिता का अनशन
लेतिकापिता का समाधिमरण देवलोक में उत्पत्ति और उसके बाद सिद्धगति प्राप्त करने का निरूपण
१६ शंख और पोक्खली असणोपासक
३
भ. महावीर का समवसरण
४
भ. महावीर ने ( देवस्थिति विषयक) समाधान किया
५ ऋषिभद्रपुत्र सम्बन्धित गौतम का प्रश्न और भ महावीर का उत्तर
(२७)
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श्रावस्ती नगरी में शंख और पोक्खली
भ. महावीर का समवसरण
शंख का पौषध करना
शंख के कहे अनुसार श्रावस्ती के श्रमणोपासकों ने पौषध के पहले विपुल अशनादि बनाये ५ अशनादिका आहार करने के लिये पोक्खली ने शंख को निमंत्रण दिया
६ शंख ने निमंत्रण स्वीकार नहीं किया
अन्य श्रमणोपासकों ने पौषध के पहले अशनादि का आहार किया
८ शंख ने पारणा के पूर्व भ. महावीर की पर्युपासना की
९ श्रमणोपासकों ने शंख की हीलना की
१०
भ. महावीर ने शंख की हीलना न करने के लिए कहा
११
भ. महावीर ने जागरिका के प्रकार कहे
१२
" कषाय का फल कर्मबंधन है" यह जानकर श्रमणोपासकों की शंख से क्षमायाचना
१३
शंख की देवगति और सिद्धगति
वरुण नाग नप्तृक
श्रमणोपासक
१
"संग्राम में मरने वाला देवता होता है" इस सम्बन्ध में गौतम का प्रश्न
२
भ.
महावीर के उत्तर में "वरुण का कथानक "
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(३८)
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३६०-३६२
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३६३-३७१
३०६
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची.
सूत्रांक ३ वरुण का रथ-मुसल-संग्राम में जाना ४ संग्राम में वरुण का अभिग्रह ५ वरुण ने संलेखना की ६ वरुणनाग नप्तृक के मित्र ने भी वरुण का अनुसरण किया ७ वरुण के मरने पर देवकृत वृष्टि ८ वरुण की देवलोक में उत्पत्ति और उसके बाद सिद्धगति प्राप्त करने का निरूपण २९९ ९ वरुण का मित्र भी सुकुल में उत्पन्न हुआ
३०० १८ सोमिल ब्राह्मण श्रमणोपासक
३०१-३०४ १ बाणिज्य ग्राम में सोमिल ब्राह्मण और भ. महावीर का समवसरण २ सोमिल ब्राह्मण का समवसरण में जाना
३०२ ३ सोमिल के यात्रादि प्रश्नों का भगवान ने समाधान किया ४ सोमिल का श्रावक धर्म ग्रहण करना ५ सोमिल की देवगति और सिद्धगति का निर्देश
३०४ १९ भ. महावीर के श्रमणोपासकों की देवलोक स्थिति का निरूपण
३०५ २ कूणिक का भ. महावीर के समवसरण में जाना और धर्मश्रवण करना
३०६-३२७ १ चम्पानगरी-वर्णक २ पूर्णभद्र चैत्य का वर्णक ३ वनखण्ड-वर्णक
३०८ ४ अशोक वृक्ष-वर्णक ५ पृथ्वीशिला पट्ट-वर्णक ६ चम्पा में कूणिक राजा ७ कूणिक की धारिणी देवी ८ भ. महावीर की प्रवृत्ति के निवेदक पुरुष की कूणिक ने स्थायी नियुक्ति की
३१३ कोणिक का सुखपूर्वक विहरण
३१४ १० भगवान की प्रवृत्ति के निवेदक पुरुष ने कोणिक के समक्ष चम्पा में आगमन का निवेदन किया ११ भगवान को कौणिक के नमस्कारादि १२ चम्पा में भ. महावीर का समवसरण
३१७ १३ चम्पानगरी निवासी जनों का समवसरण में जाना और पर्युपासना करना
३१८ १४ भगवान की प्रवृत्ति के निवेदक पुरुष ने कोणिक के समक्ष भगवान के आगमन का निवेदन (१) ३१९ १५ कोणिक का भ. महावीर के दर्शन का संकल्प और सर्व ऋद्धि से समवसरण में जाने के लिए प्रस्थान ३२० १६ कूणिक का समवसरण की ओर प्रयाण १७ कूणिक का समवसरण में आगमन और पर्युपासना
३२२ १८ सुभद्रादि कौणिक की भार्याओं का समवसरण में आना और पर्युपासना करना
३२३ १९ भ. महावीर की धर्मदेशना
३२४ २० परिषदा की धर्माराधना और स्वगृहगमन २१ कौणिक ने धर्मदेशना की प्रशंसा की और अपने भवन को गया २२ सुभद्रादि कौणिक की भार्याओं ने धर्मदेशना की प्रशंसा की और अपने निवास (अन्तःपुर) को गयी
३२७ १. सूत्रांक ३१५ में और इस ३१९ सूत्रांक में विशेष अन्तर नहीं है। केवल वाचना भेद का अन्तर है।
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३६९-३७०
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सूत्रांक ३२८-३३७
पृष्ठांक ३७२-३७५
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३७२-३७३ ३७३ ३७३-३७४
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३७६-३७७
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची. २१ अम्बड परिव्राजक का कथानक
१ भगवति सूत्र में अम्बड परिव्राजक का निर्देश २ अम्बड के अन्तेवासियों के कथानक ३ सात सौ अम्बड शिष्यों का संचित जल अटवी में समाप्त हो गया ४ अदत्त न लेने का व्रत पालने वाले सात सौ परिव्राजकों का संलेखना-पूर्वक समाधिमरण
और देवलोक में उत्पत्ति
अम्बड का वसति के सौ घरों से आहार लेने का निरूपण ६ अम्बड का श्रमणोपासक होना ७ अम्बड का देव भव ८ अम्बड का दृढप्रतिज्ञ भवनिरूपण और दढ़प्रतिज्ञ का जन्म
अम्बड का दृढ़प्रतिज्ञ-भव १० दृढ़प्रतिज्ञ का कला ग्रहण ११ युवा दृढ़प्रतिज्ञ को वैराग्य १२ दृढ़प्रतिज्ञ की प्रव्रज्या तथा सिद्धगति प्राप्त होने का निरूपण
उदायी हस्तिराजा और भूतानंद हस्तिराजा १ राजगृही में उदायी हस्तिराजा और भूतानन्द हस्तिराजा
२ हस्तिराजा भूतानन्द २३ मद्रुक श्रमणोपासक कथा
१ राजगही में अन्यतीथिक और मद्रक श्रमणोपासक २ भ. महावीर का राजगह में समवसरण ३ समवसरण में जाते हुए मद्रुक का अन्य तीर्थियों के साथ अस्तिकाय विषयक संलाप ४ भ. महावीर ने मद्रुक की प्रशंसा की ५ मद्रुक के अनन्तर भवों का निरूपण पंचम स्कन्ध
निन्हव-कथानक १ सात प्रवचन-निन्हवों के नाम धर्माचार्य और उनके नगरों का निर्देश २ जमालि निन्हव का कथानक
१ क्षत्रिय कुण्ड में जमालिकुमार २ ब्राह्मण कुण्ड में भ. महावीर का विहार ३ जमालिकुमार ने भ. महावीर की पर्युपासना की ४ भ. महावीर की धर्मकथा ५ जमालि कुमार का प्रव्रज्या संकल्प
माता-पिताओं ने प्रवज्या ग्रहण करने से रोका और जमाली ने प्रव्रज्या ग्रहण करने
का समर्थन किया ७ माता-पिताओं ने प्रव्रज्या ग्रहण करने की अनुमति दी । ८ प्रव्रज्या ग्रहण करने से पूर्व किये जाने वाले कार्य १ माता-पिताओं ने भ. महावीर को शिष्य भिक्षा का दान दिया १० जमाली की प्रव्रज्या
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१४-२५
२७-२८
३८९
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
११ जमाली ने जनपद में विहार करने के लिए प्रार्थना की किन्तु भ. महावीर मौन रहे
१२ जमाली का जनपद विहार और श्रावस्ती में आगमन
१३
भ. महावीर का चम्पा में आगमन
१४ जमाली को रोग के आतंक से पीड़ा और शय्या संस्तारक के लिए आज्ञा प्रदान करना जमाली और उसके शिष्यों का शय्या करने में "कृत कार्यमाण" के विषयों में प्रश्नोत्तर "चलमान चलित है" इत्यादि भगवंत की प्ररूपणा से जमाली का विरोध
१५
१६
१७
जमाली के प्ररूपण पर श्रद्धा न करने वाले कुछ श्रमणों का भगवान के समीप आना चम्पा में भ. महावीर के समक्ष जमाली ने अपने को केवली घोषित किया
१८
१९
२०
लोक और जीव के विषय में गौतम के प्रश्न करने पर जमाली का चुप रहना भगवंत प्ररूपित लोक और जीवों का शास्वतपन तथा अशास्वतपन २१ जमाली का श्रद्धा न करना और मरने पर लांतक कल्प में किल्विषी देव होना
२२ किल्विषी देवों के भेदों का प्ररूपण
२३ जमाली के अन्यभव और सिद्ध गति की प्राप्ति
३ आजीविक तीर्थंकर गोशालक का कथानक
१
स. वत्थी नगरी में रहने वाली "हालाहला" नामकी कुंभारी की हाट में " गोशालक "
२
छ दिशाचरों ने पूर्व में से ( दस प्रकार के निमित्तों का ) निर्यूहण किया
३ गोशालक ने छ अनतिक्रमणीयों का प्ररूपण किया
४ गोशालक ने अपने आपको जिन कहा
५
भ. महावीर का समवसरण और गौतम का गौचरी जाना
६ गौतम का गौशालक की चर्या जानने के लिए कहना
७
भ. महावीर ने गौतम को गौशालक के चरित्र का पूर्व भाग कहा
(४०)
१२
१३
८
९
१० मंखली और भद्राने अपने पुत्र का नाम "गौशालक" दिया
११ गौशालक की मंखचर्या
"मंखली की भद्रा भा का गर्भिणी होना'
मंखली और भद्रा का गौशाला में निवास
१४
१५
भ. महावीर का नालंदा की तन्तुशाला में विहरण
गौशालक का भी तन्तुशाला में आगमन
भ. महावीर के प्रथम मासखमण के पारणे में पाँच दिव्य प्रगटे
शिष्य बनाने के लिए गौशालक की प्रार्थना और भ महावीर की उदासीनता
१६
भ. महावीर के द्वितीय मासखमण के पारण में पाँच दिव्य प्रगटे
१७ शिष्य बनाने के लिए गौशालक की पुनः प्रार्थना और भ. महावीर की उदासीनता भ. महावीर के तृतीय मासखमण के पारणे में पाँच दिव्य प्रगटे
१८
१९ शिष्य बनाने के लिए गौशालक की पुनः प्रार्थना और भ. महावीर की उदासीनता
२०
भ. महावीर के चतुर्थ मासखमण के पारणे में पांच दिव्य प्रगटे
२१ शिष्य बनाने के लिए गौशालक ने पुनः प्रार्थना की और भगवान ने अनुमति दी - गौशालक का
साथ विहरण
२२ तिल के पौधे के सम्बन्ध में भगवान के वचन गौशालक की अश्रद्धा
२३ गौशालक के वचन से
'क्रुद्ध
'वैश्यायन बाल-तपस्वी ने गौशालक के ऊपर तेजोलेश्या फेंकी
२४
भ. महावीर ने गौशालक की रक्षा के लिए शीतलेश्या फेंकी २५ तेजोलेश्या की सिद्धि के उपाय
२६
भ. महावीर कथित तिल के पौधे को देखकर गौशालक का चले जाना
सूचांक
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची
२७ गौशालक की तेजोलेश्या सिद्धि
- -
२८
२९ गौशालक का ईर्ष्याभाव
३०
३१
३२
३३
३४
३५
३६ गौशालक ने सर्वानुभूति मुनि को भस्म कर दिया
३७ गौशालक ने सुनक्षत्र मुनि को भी मार दिया
2 2 2 3 3
३८
भ. महावीर ने गौशालक को हितशिक्षा के वचन कड़े
३९ क्रुद्ध गौशालक द्वारा फेंकी गई निष्फल तेजोलेश्या ने गौशालक को ही जलाया
४२
भ. महावीर कथित गौशालक का अजिनत्व
४० गौशालक और भ. महावीर ने परस्पर एक दूसरे की मरणकाल मर्यादा का निरूपण किया ४१ श्रावस्ती के लोगों में चर्चा
४३
**
गौशालक का आनन्द स्थविर के समक्ष अर्थलुब्धवणिक का दृष्टांत कहकर आक्रोश दिखाना आनन्द स्थविर का भगवान के समक्ष गौशालक के वचनों का कथन और भगवान का किया हुआ समाधान
भ. महावीर ने गौशालक को छेड़ने का निषेध किया
गौशालक का भगवान के प्रति आक्रोश वचन कहकर स्वसिद्धान्त निरूपण करना
भ. महावीर ने गौशालक के वचनों का प्रतिकार किया भगवान के प्रति गौशालक का पुनः आक्रोश
४५
(४१)
भगवान ने गौशालक की तेजोलेश्या का सामर्थ्य और गौशालक का सिद्धान्त कहा
४६ आजीविक स्थविरों ने "अयंपुल" को आजीविक उपासक रूप में स्थिर किया अयंपुल
५४
५५
भगवान के कहने से गौशालक से प्रश्न किये
गौशालक का पृथक संघ
तेजोलेश्या के दाह से पीड़ित गौशालक ने मद्यपान आदि किये
अजीविकोपासक हो गया
४७ गौशालक का अपने मरने के बाद निहरण के सम्बन्ध में निर्देश
४८ गौशालक का सम्यक्त्व परिणाम-पूर्वक कालधर्म
४९ गौशालक का निहरण
५०
भगवान् के देह में रोग के आतंक का प्रादुर्भाव ५१ सिमुनि का मानसिक दुःख
५२ भगवान् ने सहमति को आश्वासन दिया
५३
सिंहमुनि रेवती के घर से भैषज्य लाया
भगवान् का आरोग्य
सर्वानुभूति और सुनक्षत्रमुनि की देवलोक में उत्पत्ति और सिद्धगति प्राप्त होने का निरूपण
गौशालक के जीव की देवलोक में उत्पत्ति
५६
५७ गौशालक का महापद्मभव में जन्म और राज्याभिषेक ५८ महापद्म के देवसेन और विमलवाहन ये दो नाम ५९ विमलवाहन का निर्ग्रन्थों के प्रतिकूल आचरण ६० विमलवान ने सुमंगल अणगार को उपसर्ग किया
६१ सुमंगल मुनि की तेजोलेश्या से विमलवाहन का मरण
६२ सुमंगल मुनि की देवगति और पश्चात् सिद्धगति निरूपण
७३ गौशालक जीव विमलवाहन के अनेक दुःख प्रचुर भव और बाद में देव भव
६४ गौशालक जीव के दृढ़प्रतिज्ञ भव से सिद्धगति का निरूपण
सूर्याक
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धर्मकथानुयोग-विषय सूची
सूत्रांक छटा स्कन्ध
१-३६१ प्रकीर्णक कथानक अध्ययन १-२१ १ भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिक और चेलना के अवलोकन से साधु-साध्वियों के निदान करने का प्रसंग १-१३
१ राजगृह में श्रेणिक राजा २ भ. महावीर का आगमन -वृत्तान्त जानने के लिए श्रेणिक का कोटुम्बिक पुरुष को आदेश ३ भ. महावीर का समवसरण ४ महत्तर (नियुक्त कौटुम्बिक) पुरुषों ने श्रेणिक के समक्ष भगवान् के आगमन का निवेदन किया ५ श्रेणिक का राजगृह नगर को सुशोभित करने का आदेश और यान आदि लाने का आदेश ६ चेलना सहित श्रेणिक का समवसरण में जाना और भगवान् की पर्युपासना करना ७ भगवान् की धर्मदेशना और बाद में श्रेणिक आदि की परिषद् का लौटना ८ साधु-साध्वियों का निदान करना ९ भगवान का निदान करने का निषेध रूप उपदेश सुनकर साधु-साध्वियों का प्रायश्चित्तादि करना १२-१३ रथ-मुशल संग्राम
१४-२० १ रथ-मुशल-संग्राम में वज्जियों की विजय हुई-इसका निरूपण २ कूणिक का युद्ध के लिए प्रस्थान ३ कूणिक को इन्द्र की सहायता ४ कृणिक की विजय ५ रथ-मशल संग्राम का स्वरूप ६ संग्राम में मृत मनुष्यों की संख्या
७ कूणिक की सहायता के लिए इन्द्र के आने का हेतु ३ रथ-मुशल संग्राम में काल आदि कुमारों के मरण की कथा
२१-६४ ... १ काल आदि दस कुमारों के नामों का कथन
२१ २ चम्पानगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र कालकुमार ३ कुणिक सहित कालकुमार का रथ-मुशल संग्राम में जाना ४ भ. महावीर के समवसरण में काली रानी का प्रश्न
२४-२६ ५ काली रानी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कालीरानी के पुत्र कालकुमार का मरण कहा ___और कालीरानी स्वस्थान गई
२७-२८ ६ कालकुमार की नरक गति ७ कूणिक चरित्र के अन्तर्गत कालकुमार के नरक गमन के हेतु का भगवान् द्वारा निरूपण ८ चेलणा के श्रेणिक मांस-भक्षण दोहद से श्रेणिक की चिन्ता ९ अभयकुमार की युक्ति से चेलणा के दोहद की पूर्ति १० चेलणा के गर्भ-पात प्रयत्न की निष्फलता ११ चेलणा ने उकरडि पर शिशु को डलवा दिया १२ श्रेणिक के उपालम्भ से चेलणा ने अपने पुत्र का संरक्षण किया १३ श्रेणिक ने पुत्र की वेदना का निवारण किया १४ पुत्र का कूणिक नाम दिया और कूणिक का तारुण्य आदि १५ श्रेणिक को कारागृह में बन्द करके कूणिक ने राज्य श्री प्राप्त की १६ कूणिक ने अपने पर श्रेणिक का स्नेह चेलणा से जाना १७ श्रेणिक का बंधन छेदन करने के लिए कूणिक का जाना १८ श्रेणिक का तालपुट विषभक्षण और मरण
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2
१९
२० कृषिक सहोदर हल्लने सेचनक गंध हस्ति-कीड़ा की प्रशंसा की
२१ अपनी भार्या पद्मावती के आग्रह से कूणिक काल से पुनः पुनः हाथी और हार मांगना
२२
कूणिक के भय से वेहल्ल का चेड़ा राजा के शरण में वैशाली जाना
२३
कूणिक ने चेडा के समीप सेचनक गंध हस्ति आदि को लौटाने के लिए दूत भेजा
२४
२५
२६
चेडा ने फिर भी आधा राज्य मांगा
२७ कूमिका ने युद्ध के लिए पुनः दूत भेजा
धर्मकयानुयोग-विषय-सूची
को मुक्ति और अपने भाइयों में राज्य का विभाजन
चेडा ने वेहल्ल के लिए आधा राज्य मांगा
पुनः दूत भेजा
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२८ ने युद्ध के लिए सुसज्जित होना चेडाका
२९ कूणिक आदि के लिए काल आदिकुमारों का युद्ध के लिए मिलना
३०
काल आदि कुमारों सहित कूणिक का युद्ध के लिए वैशाली की ओर प्रस्थान ३१ मल्लकी नेकी सहित पेडा का युद्ध के लिए अपने देश की सीमा पर स्थित होना ३२ कूक और नेहा का बुद्ध
५
६
३३
युद्ध में कालकुमार का मरण
३४
नारक भव के बाद कालकुमार की सिद्धगति का निरूपण
३५ कालकुमार के अनुसार सुकाल आदि नो कुमारों के कथन का निर्देश
४ महाशिलाकंटक संग्राम का कथानक
(४३)
१ भगवान् महावीर प्ररूपित कूणिक की जय
२
शक सहित कूणिक का युद्ध में आना
३ मल्लकी और लेच्छकीयों की पराजय
४ महाशिलाकंटक संग्राम का शब्दार्थ और संग्राम में मरे मनुष्यों की गति
५ विजय चौर का उदाहरण
१ राजगृह में धन सार्थवाह और भद्राभार्या
२
राजगृह में विजय तस्कर
३
४
भद्रा का संतान प्राप्ति मनोरथ
भद्रा ने नाग आदि की
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भद्रा के दोहद (गर्भ की इच्छा पूर्ण
पुत्र जन्म और देवदिन्न नामकरण
७
देवदिन की बालीडा
८ देवदिन्न का विजय चौर ने अपहरण किया
९ देवदिन की गवेषणा
विजय चौर का पकड़ा जाना
१०
११ देवदिन्न की मृत्यु
१२ धनसार्थवाह का पकड़ा जाना
१२ धनसार्थवाह केलिए भोजन घर से जाता था
१४ विजय चौर ने आहार का भाग मांगा
१५ धन सार्थवाह ने आहार का भाग नहीं दिया
१६
मल-मूत्र के मेग से पीड़ित धनसार्थवाह को विजय चीर के सहयोग की अपेक्षा हुई
१७ विजय चौर ने सहयोग देने के लिए मना कर दिया
सूत्रांक
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची १८ धनसार्थवाह के पुनः कहने पर विजय चौर ने अपने लिए आहार का भाग मांगा १९ धनसार्थवाह ने विजय चौर को आहार का भाग दिया
पंथक ने भद्रा से विजय चौर को आहार का भाग देने की बात कही २१ भद्रा कुपित हो गई
धनसार्थवाह की कारागृह से मुक्ति २३ धनसार्थवाह का सन्मान २४ भद्रा ने कोप उपशान्त होने पर सन्मान किया
विजय चौर के उदाहरण का निष्कर्श २६ धनसार्थवाह के उदाहरण का निष्कर्ष २७ राजगृह में स्थविरों का आगमन २८ धनसार्थवाह की प्रव्रज्या २१ धनसार्थवाह की महाविदेह से मुक्ति ३० धनसार्थवाह के उदाहरण का पुनः निष्कर्ष मयूरी के अण्डे का उदाहरण
चम्पानगरी में मयूरी के अण्डे का संरक्षण स्थान २ चम्पानगरी में सार्थवाह सुपुत्र जिनदत्त और सागरदत्त ३ चम्पा नगरी में देवदत्ता गणिका ४ सार्थवाह पुत्रों की गणिका के साथ उद्यान क्रीड़ा ५ सार्थवाह पुत्र मयूरी के अण्डे लाये ६ सागरदत्त के संदेह से अण्डा नष्ट हो गया और इस उदाहरण से शंका अतिचार की सिद्धि
७ श्रद्धालु जिनदत्त को मयूर की प्राप्ति हुई और इस उदाहरण से सम्यक्त्व की सिद्धि ७ कूर्म का उदाहरण
१ वाराणसी से कुछ दूर मृतांगद्रह के समीप मालुका कच्छ के किनारे दो पापी शृगाल २ मृतंगद्रह के किनारे पर दो कछुए ३ पापी शृगाल शिकार खोजने लगे । ४ शृगालों को देखकर कछुओं ने अपने अंगों को संकुचित कर लिए ५ शृगालों ने अंग संकुचित न करने वाले कछुये को मार डाला ६ अंग संकोचन न करने वाले कछुये के उदाहरण से अगुप्तेन्द्रिय के फल का सूचन ७ गुप्तेन्द्रिय कूर्म का सुख ८ गुप्तेन्द्रिय कूर्म के उदाहरण से गुप्तेन्द्रिय के फल का सूचन रोहिणी का उदाहरण १ राजगृह में धनसार्थवाह २ धन सार्थवाह ने चारों पुत्रवधुओं की परीक्षा की ३ उज्झिता ने शाली के ५ दाणे फेंक दिये ४ भोगवति का ने शाली के ५ दाणे खालिये ५ रक्षिता ने शाली के ५ दाणे सुरक्षित रख दिये ६ रोहिणी ने शाली के ५ दाणे बढ़ाये ७ पांच संवत्सर के बाद धनसार्थवाह ने (चारों पुत्रवधुओं से) शाली के ५-५ दाणे मांगे ८ उज्झिता को बाहर डालने के कार्य करने का आदेश दिया ९ उज्झिता के उदाहरण से महाव्रत परित्याग के फल का निर्देश
१०७ १०८ १०९-११२ ११३-११४ ११५-११७ ११८-१२१ १२२-१३१ १२२-१२३
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची १० भोगवति को घर के अन्दर के कार्य करने का आदेश दिया ११ भोगवति के उदाहरण से महाव्रत दूषित करने के फल का निर्देश १२ रक्षिता को भण्डार की सुरक्षा का आदेश दिया १३ रक्षिता के उदाहरण से महाव्रतों की सुरक्षा के फल का निर्देश १४ रोहिणी को सारे अधिकार देने के आदेश दिये १५ रोहिणी के उदाहरण से महाव्रतों की वृद्धि के फल का निर्देश अश्वों का उदाहरण १ हस्तिशीर्ष नगर में सांयांत्रिक (नौका द्वारा व्यापार करने वाले वणिक) २ सांयात्रिकों (नावावणिकों) को समुद्र के मध्य में उपद्रव हुआ ३ नावा निर्यामक की दिग्मूढ़ता और दिशाबोध ४ सांयात्रिक (नावावणिकों) को कालिक द्वीप में घोड़ों का दिखाई देना ५ सांयात्रिकों (नावावणिकों) का पुनरागमन ६ कनककेतु के आदेश से अश्व लाना ७ अनासक्त अश्वों का स्वायत्त विहार ८ अनासक्त अश्वों के उदाहरण से श्रमणादि की अनासक्ति के फल का निर्देश ९ आसक्त अश्वों की परवशता १० आसक्त अश्वों के उदाहरण से श्रमणादि की आसक्ति के फल का निर्देश ११ सम्यक् दृष्टान्त की उपनय गाथायें मृगापुत्र कथानक १ मृग गांव में विजय राजा का पुत्र मृगापुत्र २ मृगापुत्र की जन्मान्धता आदि ३ भ. महावीर के समवसरण में गौतम का जन्मान्ध पुरुष के सम्बन्ध में प्रश्न ४ भगवान ने मृगापुत्र के स्वरूप का निरूपण किया ५ गौतम ने मृगापुत्र को देखा ६ गौतम ने मृगापुत्र के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ७ मृगापुत्र के पूर्वभव की की एक्काइ" नामक राष्ट्रकूट कथा
"इक्काइ" नामक राष्ट्रकूट का प्रजा-पीड़न "इक्काइ" का असाध्य रोगों से पीड़ित होना
"इक्काइ" का नरकगमन ११ मृगापुत्र के वर्तमान भव के वर्णन में मृगादेवी की वेदना और गर्भपात कराने का विचार १२ गर्भपातजन्य मृगापुत्र का रोगों से पीड़ित होना १३ मुगापुत्र का जन्मान्ध आदि रूप देखकर मृगावती का उसे उकरडी पर फिकवाने का संकल्प १४ मृगापुत्र का भूमि घर में स्थापन १५ मृगापुत्र के आगामि भव का वर्णन उज्झितक का कथानक १ वाणिज्य ग्राम में सार्थवाह पुत्र उज्झितक २ भ. महावीर का समवसरण ३ गौतम ने उज्झितक के पूर्व भव के सम्बन्ध में पूछा ४ उज्झितक के गोत्रास भव का कथानक ५ हस्तिनापुर में “भीम" कूटग्राह
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४६४ ४६४-४६५ ४६५-४७० ४६५
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४७० ४७१-४७६ ४७१ ४७१-४७२
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ६ भीम की भार्या उत्पला का मांस-भक्षण-दोहद ७ भीम ने दोहद पूर्ण किया ८ पुत्र जन्म ९ पुत्र का 'गोत्रास' नाम दिया
भीम के मरने के बाद गोत्रास को कूटग्राह-पद ११ गोत्रास का मांस-भक्षण और नरक आदि के भव १२ उज्झितक के वर्तमान भव का वर्णन १३ पुत्र का उज्झितक नाम दिया १४ विजय मित्र का लवण समुद्र में मरण १५ सुभद्रा सार्थवाही के मरने पर उज्झितक को घर से निकाल दिया गया १६ उज्झितक का गणिका से सहवास १७ गणिका में आसक्त मित्र राजा ने उज्झितक को प्राण दण्ड दिया १८ उपसंहार
१९ उज्झितक के आगामिभव का वर्णन १२ अभग्नसेन का कथानक
१ पूरिमताल नगर के समीप चोर पल्ली में चोर सेनापति विजय का पुत्र अभग्नसेन २ भ. महावीर के समवसरण में गौतम ने अभग्नसेन के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ३ अभग्नसेन के निन्नक भव की कथा ४ अण्डवणिक निन्नक का जीवन और उसकी नरक में उत्पत्ति ५ अभग्नसेन के वर्तमान भव का वर्णन ६ स्कंद श्री का दोहद ७ विजय ने दोहद पूर्ण किया ८ पुत्र का अभग्नसेन नाम दिया वह युवा हो गया ९ विजय के मरने के बाद अभग्न सेन का चौर-सेनापति होना १० अभग्नसेन को प्राणदण्ड देने की महब्बलराजा की आज्ञा ११ अभग्नसेन ने राजा की सेना को परास्त कर दी १२ राजा ने दस रात्रि का उत्सव घोषित किया १३ अभग्नसेन का पुरिमताल में राजा के अतिथि रूप में जाना १४ राजा ने अभग्नसेन को पकड़वाया १५ उपसंहार
१६ अभग्नसेन के आगामी भव की कथा १३ शकट का कथानक
१ साहंजणी नगरी में सार्थवाह पुत्र शकट २ भ. महावीर के समवसरण में शकट के पूर्व भव की कथा ३ शकट के छन्निक छागलिक के भव का वर्णन ४ छन्त्रिक मांसाहार करना और मांस का व्यापार करना
छनिक का मरण और उसकी नरक में उत्पत्ति
शकट के वर्तमान भव की कथा ७ पुत्र का शकट नाम रखना, उसे घर से निकालना और उसका वेश्या के वश हो जाना ८ अमात्य नेशकट को गणिका के घर से निकाला और उसे प्राणदण्ड दिया
उपसंहार
२२७ २२८ २२९-२३१ २३२-२५७ २३२-२३५ २३६-२३७ २३७-२३९ २४० २४१ २४२ २४३-२४४ २४५ २४६ २४७-२५०
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२६५-२६६ २६७-२६९ २७०
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२७२-२८१
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धर्मकथानुयोग-विषय-सूची - १० शकट के आगामी भव की कथा १४ बृहस्पतिदत्त का कथानक
१ कौशाम्बि में पुरोहित पुत्र बृहस्पतिदत्त २ भ. महावीर के समवसरण में गौतम ने बृहस्पतिदत्त के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ३ बृहस्पतिदत्त के महेश्वरदत्त भव की कथा ४ महेश्वरदत्त ने शान्तिहोम में ब्राह्मण आदि के बच्चों की बलि दी ५ महेश्वरदत्त का नरक में उत्पन्न होना ६ बृहस्पतिदत्त के वर्तमान भव का वर्णन ७ बृहस्पतिदत्त का उदयन राजा की राजमहिषी के साथ भोग भोगना ८ राजा ने बृहस्पतिदत्त को प्राण दण्ड दिया ९ उपसंहार
१० बृहस्पतिदत्त के आगामी भव की कथा १५ नन्दिवर्धनकुमार की कथा
१ मथुरा में नन्दिवर्धन कुमार २ भ. महावीर के समवसरण में गौतम ने नन्दिवर्धन के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ३ नन्दिवर्धन के दुर्योधन भव की कथा ४ चरक पाल बना दुर्योधन ५ दुर्योधन की चर्या ६ नन्दिवर्धन के वर्तमान भव की कथा ७ नन्दिवर्धन का पिता को मारने का संकल्प ८ राजा ने नन्दिवर्धन को प्राणदण्ड दिया ९ उपसंहार
१० नन्दिवर्धन के आगामी भव का वर्णन १६ उम्बरदत्त का कथानक
४८० ४८० ४८० ४८० ४८०
२८१ २८२-२९१ २८२
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१ पाटलिपुत्र में उम्बरदत्त २ भ. महावीर के समवसरण में गौतम ने उम्बरदत्त के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ३ उम्बरदत्त के धन्वन्तरी भव की कथा ४ धन्वन्तरी वैद्य ने मांसाहार से चिकित्सा कार्य किया ५ नरक में उत्पत्ति ६ उम्बरदत्त के वर्तमान भव की कथा ७ गंगदत्त ने उम्बरदत्त यक्ष को पूजा की ८ गंगदत्ता का दोहद ९ पुत्र का "उम्बरदत्त" नाम दिया और वह युवा हुवा १० माता-पिता के मरने के बाद उम्बरदत्त को घर से निकाल दिया गया ११ उपसंहार
१२ उम्बरदत्त के आगामी भव का प्ररूपण १७ सूर्यदत्त का कथानक
१ सूर्यपुर में सूर्यदत्त २ भ. महावीर के समवसरण में गौतम ने सूर्यदत्त के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ३ सूर्यदत्त के श्री भव की कथा
४८४ ४८४-४८५ ४८५ ४८५ ४८५ ४८५-४८६ ४८६ ४८६-४८७ ४८७ ४८७ ४८७ ४८७
३०३-३०४
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३०९-३१९
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सूत्रांक ३१५ ३१६-३१७ ३१८ ३१९
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३३७-३४३
४९५-४९६
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ४ सूर्यदत्त के वर्तमान भव की कथा ५ सूर्यदत्त की दुश्चर्या ६ उपसंहार ७ सूर्यदत्त के आगामी भव का प्ररूपण देवदत्ता का कथानक १ रोहिंड नगर में देवदत्ता २ भ महावीर के समवसरण में गौतम ने देवदत्ता के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ३ देवदत्ता के सीहसेन भव की कथा ४ सीहसेन राजा की श्यामा राणी में आसक्ति ५ श्यामा का कोप घर में प्रवेश ६ सीहसेन ने श्यामा की १०० सपत्नियों को आग में जला दी ७ सीहसेन की नरक में उत्पत्ति ८ देवदसा का वर्तमान भव
वैधमणदत्त राजा ने युवराज के लिए देवदत्ता की याचना की १० देवदत्ता और पुष्यनन्दिका का पाणिग्रहण ११ पिता का मरण और पृष्यनन्दि को राज्य १२ देवदत्ता ने पुष्यनन्दि की मां को मार दिया १३ पुष्यनन्दि ने देवदत्ता को प्राण दण्ड दिया १४ उपसंहार १५ देवदत्ता के आगामी भव का प्ररूपण अंजू का कथानक १ वभेमानपुर में अंजू २ अंज के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न ३ अंजू के पृथ्वी श्री भव की कथा ४ अंज के वर्तमान भव की कथा ५ उपसंहार ६ अंज के आगामी भव का प्ररूपण पूरण बालतपस्वी का कथानक १ बेभेल सन्निवेश में पूरण गाथापति' २ पूरण की दानामा प्रव्रज्या ३ पूरण की संलेखना ४ महावीर का छद्यस्थ काल में सुसुमारपुर में विहार
पूरण का चमर चंचा में असुरेन्द्र के रूप में उपपात ६ शकेन्द्र के वैभव से चमरेन्द्र को ईर्ष्या उत्पन्न हई ७ भ. महावीर की निश्रा में चमरेन्द्र का शकेन्द्र को अपमानित करने के लिए जाना ८ शकेन्द्र ने चमरेन्द्र पर व्रज फेंका ९ चमरेन्द्र ने भ. महावीर के चरणों की शरण ली १० शकेन्द्र का भी भ. महावीर के समीप आना और वन को रोकना ११ शकेन्द्र ने भगवान से क्षमायाचना की और असुरेन्द्र को निर्भय कर दिया १२ शक्रादि की गति के विषय में गौतम के प्रश्न और भगवान के समाधान
१३ भ. महावीर के समीप चमरेन्द्र का पुनरागमन २१ महाशुक्र कल्प के देवों का भ. महावीर के समीप आने का प्रसङ्ग
१ देवताओं के मन से किये गये प्रश्नों का भ. महावीर ने मन से ही उत्तर दिया २ भ. महाबीर ने गीतम के मनोगत भाव कहे ३ गौतम का देवताओं के समीप जाना
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४९५ ४९५
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पढमो खंधो
उत्तमपुरिस-कहाणगाणि
अज्झयणा मंगलसुत्ताणि १ कुलगरा २ उसह-चरियं ३ मल्ली-चरियं ४ अरिटुनेमि-चरियं ५ पास-चरियं ६ महावीर-चरियं ७ पउम-चरियं ८ तित्थयर-सामण्णं ९ भरहचक्कवट्टी-चरियं १० चक्कवट्टी-सामण्णं ११ बलदेव-वासुदेवसामण्णं
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मंगलसुत्ताणि
१ णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ॥'
भग० स० १, उ० १, सु० १ । एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ॥
आव०नि० गा० १०१८ ।
२ १. अरिहंता मंगलं, २. सिद्धा मंगलं, ३. साहू मंगलं,
४. केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं ।
३ १. अरिहंता लोगुत्तमा, २. सिद्धा लोगुत्तमा, ३. साहू लोगुत्तमा,
४. केलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो।
४ १. अरिहंते सरणं पवज्जामि, २. सिद्ध सरणं पवज्जामि, ३. साहू सरणं पवज्जामि, ४. केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवज्जामि ।
आव० अ० ४, सु० १२, १३, १४ ।
१. कुलगरा
५ जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्या, तं जहा
संगहणी-गाहा मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे । विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ॥१॥
सम० सु० १५७ । ठाणं० अ० ७. सु० ५५६ । ६ जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा होत्था, तं जहा-- १ सूरि० पा० १, सु० १ । आव० अ० १, सु० १ । २ विसे० गा० ३९२५ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
संगहणी-गाहा सयंजले सयाऊ य, अणंतसेणे य अजितसेणे य । कक्कसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ॥१॥ दढरहे, दसरहे, सयरहे ॥
ठाणं० अ० १०, सु० ७६७ । सम० सु० १५७ । ७ जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति, तं जहा-- मित्तवाहणे सुभूमे य, सुप्पभे य सयंपभे । दत्ते, सुहूमे, सुबंधू य, आगमेस्साण होक्खति ॥१॥
ठाणं० अ० ७, सु० ५५६ । सम० सु० १५८ । ८ जंबुद्दीवे दीवे भारहे बासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति, तं जहासीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, संमुती, पडिसुते, दढधणू, दसधणू, सतधणू ॥
__ठाणं० अ० १०, सु० ७६७ । सम० सु० १५९ । ९ जंबुद्दीवे णं दीवे एरवर आगमिस्साए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति, तं जहाविमलवाहणे, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमधरे । वढधणू, दसधणू, सयधणू, पडिसूई, संमुइ ति ॥१॥
सम० सु० १५८ ।
१० विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था ॥
ठाणं० अ० ९ सु० ६९६ ।
११ विमलवाहणे णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमार्गाच्छसु, तं जहामत्तंगया य भिगा, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा । मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य ॥१॥
ठाणं० अ० ७, सु० ५५६ । १२ अभिचंदे णं कुलगरे छ धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ठाणं० अ० ६, सु०५१८ । सम० सु० १०९, ५ । १३ जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे बासे इमोसे ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था, तं जहा
पढमेत्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे । तत्तो य पसेणइए, मरुदेवे चेव नाभी य॥१॥
१४ एतेसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारियाओ होत्था, तं जहाचंदजस चंदकता, सुरूव पडिरूव चक्खुकता य । सिरिकंता मरुदेवी, कुलगरइत्थीण णामाई ॥१॥
ठाणं० अ० ७, सु० ५५६ । सम० सु० १५७ । १५ तीसे णं समाए पच्छिमे तिभाए पलिओवमट्ठमभागावसेसे एत्थ णं इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था तं जहा
१. सुमइ २. पडिस्सुइ ३. सीमंकरे ४. सीमंधरे ५. खेमंकरे ६. खेमंधरे ७. विमलवाहणे ८. चक्खुमं ९. जसमं १०. अभिचंदे ११. चंदाभे १२. पसेणइ १३. मरुदेवे १४. णाभी १५. उसभे ति ॥ जंबु० व०२ सु० २८ ।
१६ सत्तविधा दंडनीति पण्णता, तं जहा- हक्कारे, मक्कारे, धिक्कारे, परिभासे, मंडलबंधे, चारए, छविच्छेदे ॥
ठाण० अ० ७, सू० ५५७ ।
१७ तत्थ णं सुमइ-पडिस्सुइ-सीमंकर-सीमंधर-खेमकराणं एएसि पंचण्हं कुलगराणं हक्कारे दंडणीई होत्था
ते णं मणुआ हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलज्जिया वेड्डा भीया तुसिणिया विणओणया चिठ्ठति । तत्थ णं खेमंधर-विमलवाहण-चक्खुम-जसमं-अभिचंदाणं-एएसि णं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे णाम दंडणीई होत्थाते णं मणुया मक्कारेणं दंडेणं या समाणा-जाव-चिट्ठति । तत्थ णं चंदाभ-पसेणइ-मरुदेव-नाभि-उसभाणं एएसिणं पंचण्हं कुलगराणं धिक्कारे णाम दंडणीई होत्थाते णं मणुया धिक्कारेणं दंडेणं हया समाणा - जाव - चिट्ठति ॥
जंब० व० २ सु० २९ ।
१ ठाणं० अ०१०, सु०७६६ ।
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२. उसह-चरियं
१८
कल्लाणग-नक्खत्ताई तेणं कालेगं तेणं समएणं उसहे गं अरहा कोसलिए चउ-उत्तरासाढे अभीइ-पंचमे होत्या, तं जहा - १. उत्तरासादाहिं चुए चइत्ता गभं वक्कते, २. उत्तरासाढाहि जाए, ३. उत्तरासाढाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पध्वइए, ४. उत्तरासाढाहि अणते अणुत्तरे निव्वाबाए निरावरणे किसिणे पडिपुन्ने केवलवर-नाण-दसणे समुप्पन्ने, ५. अभिइणा परिणिन्तुए।'
कप्प० सु० १९० ।
गब्भवक्कंती १९ णाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवीए भारियाए कुच्छिंसि एत्य गं उसभे णामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थयरे पढमधम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टी समुप्पज्जित्था।
जंबु० व० २ सु० ३० ।
२०
जम्म-कल्लाणयं तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स अदुमीपक्खणं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं - जाव- आसाढाहिं नक्सत्तेणं जोगमुवागएणं आरोग्गा आरोग्गं पयाया।
कप्प० सु० १९३ ।
१ उसभे णं अरहा कोसलिए पंचउत्तरासाढे अभीइछठे होत्था, तं जहा--
१. उत्तरासाढाहि चुए चइत्ता गम्भं वक्कते, २. उत्तरासाढाहि जाए, ३. उत्तरासाढाहि रायाभिसेयं पत्ते, ४. उत्तरासादाहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए, ५. उत्तरासाढाहि अणंते - जाव - केवल-वर-नाण-दसणे समुप्पन्ने, ६. अभिइणा परिणिब्युए।
जंबु० वक्ष० २ सु० ३२ । २ तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे आसाढबहुले तस्स णं
आसाढ़बहुलस्स चउत्थी पक्खेणं सव्वट्ठसिद्धाओ महाविमाणाओ तेत्तीससागरोवमद्वितीयाओ अणंतर चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इक्खागभूमीए नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवीए भारियाए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि आहारवक्कंतीए - जाव-गब्भत्ताए वक्कते ।। कप्प० सु० १९१ ।। उसभे अरहा कोसलिए तिन्नाणोवगए होत्था तं जहा - चइस्सामि त्ति जाणइ - जाव - सुमिणे पासइ, तं जहागाहा - गय उसह - जाव - सिहिं च । सव्वं तहेव, नवरं सुविणपाढगा णत्थि । नाभी कुलगरो वागरेइ ।।कप्प० सु० १९२।। उसभे णं कोसलिए कासवगुत्तेणं, तस्स णं पंच नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहाउसभे इ वा, पढमराया इ वा, पढमभिक्खाचरे इ वा, पढमजिणे इ वा, पढमतित्थकरे इ वा कप्प० सु० १९४।। ३ तं चेव - जाव - देवा देवोओ य वसुहारवासं वासिसु सेसं तहेव चारगसोहणं, माणुम्माणवड्ढणं, उस्सुक्कमाईयं, ठिइपडियवज्ज सव्वं भाणियव्वं ॥ कप्प० सु० १९३ ।।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
अहोलोगीय-दिसाकुमारी-कय-जम्म-महिमा २१ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्यव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरीआओ सहि सएहिं कूहि, सहि सहि
भवणेहि, सएहिं सहि पासायव.सएहि, पत्तेयं पत्तेयं चहि सामाणियसाहस्सीहि चहि य महत्तरियाहिं सपरिवाराहि सहि अणिएहि सहि अणियाहिवईहिं सोलसएहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि अण्णेहि य बहूहिं भवणवइ-वाणमंतरेहि देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिवुडाओ महया हय-णट्ट-गीय - वाइय - जाव - भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरंति, तं जहागाहा- १ भोगंकरा, २ भोगवई, ३ सुभोगा, ४ भोगमालिणी।
५ तोयधारा, ६ विचित्ता, ७ पुष्पमाला, ८ अणिदिया ॥१॥
२२ तए णं तासि अहेलोगवत्यवाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीणं महत्तरियाणं पत्तेयं पत्तेयं आसणाई चलंति ।
तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं पत्तेयं आसणाई चलियाई पासन्ति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति आभोइत्ता अण्णमण्णं सहाविति, सद्दावित्ता, एवं वयासी"उप्पण्णे खलु भो ! जम्बुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं अधोलोगवत्थव्वाणं अट्टण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं भगवओ तित्थगरस्स जम्मण-महिमं करेत्तए", तं गच्छामो णं अम्हे वि भगवओ जम्मणमहिमं करेमो त्ति कटु एवं वयंति, एवं वइत्ता पत्तेयं पत्तेयं आभिओगिए देवे सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी - "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखम्भसयसण्णिविठे लोलट्ठियसालभंजिआकलियं एवं विमाणवण्णओ भाणियव्वोजाव- जोयणवित्थिणे दिवे जाणविमाणे विउव्वह बिउब्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ति ।"
२३ तए णं ते आभियोगा देवा अणेगखम्भसय-सण्णिविट्ठे - जाव- पच्चप्पिणंति,
तए णं ताओ अहेलोग-वत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियाओ हट्ट-तुट्ठ-चित्तमाणंदिया -जाव- पायपीढाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं पत्तेयं चहिं सामाणियसाहस्सीहि चहि महत्तरियाहि -जाव- अण्णेहिं बहूहि देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिवुडाओ ते दिव्वे जाणविमाणे दुरूहंति, दुरुहिता सविड्ढीए सव्वजुईए घण-मुइंग-पणव-पवाइय-रवेणं ताए उक्किट्ठाए -जाव- देवगईए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मण-णगरे जेणेव तित्थयरस्स जम्मण-भवणे तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-भवणस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए ईसिं चउरंगुलमसंपत्ते धरणियतले दिव्वे जाणविमाणे ठविति, ठवित्ता पत्तेयं पत्तेयं चउहि सामाणियसाहस्सीहि -जाव- सद्धि संपरिवुडाओ दिव्वेहितो जाणविमाणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता सव्विड्ढीए -जाव-दंदुहि-निग्धोस-णाइएणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिखुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करित्ता पत्तेयं पत्तेयं करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट, एवं वयासी -
२४ "णमोऽत्यु ते रयणकुच्छिधारिए जगप्पईवदाईए सव्वजगमंगलस्स चक्खुणो य मुत्तस्स सव्वजग-जीव-वच्छलस्स हियकारग
मग्ग-देसिय-वागिद्धि-विभु-पभुस्स जिणस्स णाणिस्त णायगस्स बुहस्स बोहगस्स सव्वलोग-णाहस्स सव्वजगमंगलस्सणिम्ममस्स पवरकुलसमुइभवस्स जाइए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स जणणी धण्णासि तं पुण्णासि कयत्यासि ।
१ अट्ठ अहोलोगवत्थवाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ तं जहागाहा- भोगकरां भोगवई सुभोगा भोगमालिणी ॥ सुवच्छा वच्छमित्ता य वारिसेणा बलाहगा ॥ १ ॥
ठाणं० अ० ८, सु०६४३ ।
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उसहचरियं
"अम्हे णं देवाणुप्पिए! अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मण-महिमं करिस्सामो । तण्णं तुबभेहिं ण भाइयव्वं" ति कट्ट उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमन्ति ।
२५ अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाइं डंडं णिसिरंति, तं जहा - रयणाणं-जाव
संवट्टगवाए विउदांति, विउवित्ता तेणं सिवेणं मउएणं मारुएणं अणुद्धएणं भूमितलविमलकरणेणं मणहरेण सव्वोउय-सुरहिकुसुम-गंधाणुवासिएणं पिण्डिम-णीहारिमेणं गंधुद्धएणं तिरियं पवाइएणं भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-भवणस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमण्डलं । से जहा णामए - कम्मगरदारए सिया -जाव- तहेव जं तत्थ तणं वा, पत्तं वा, कळं वा, कयवरं वा, असुइमचोक्खं पूइयं दुन्भि-गंध तं सव्वं आहुणिय आहुणिय एगते एडेति, एडित्ता जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयर-मायाए य अदूरसामंते आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥
जंबु० व० ५, सु० ११२ ।
उडढलोगीय-दिसाकुमारी-कय-जम्म-महिमा २६ तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सहि सहि कूहि, सहि सरह
भवणेहि, सरहिं सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं पत्तेयं चहि सामाणियसाहस्सीहि एवं तं चेव पुव्ववणियं -जाव- विहरंति, तंजहागाहा - १ मेहंकरा, २ मेहवई, ३ सुमेहा, ४ मेहमालिणी,
५ सुवच्छा, ६ वच्छमित्ता य, ७ वारिसेणा, ८ बलाहगा ॥१॥
२७ तए णं तासि उड्डलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं पत्तेयं आसणाई चलन्ति,
एवं तं चेव भाणियव्वं - पुव्ववणियं-जाव- अम्हे णं देवाणुप्पिए ! उड्ढलोगवत्थव्वाओ अढ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ जेणं भगवओ तित्थगरस्स जम्मण-महिमं करिस्सामो तेणं तुम्भाहिं ण भाइयव्वं ति कट्ठ उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता -जाव- अब्भवद्दलए विउव्वन्ति, विउव्वित्ता- जाव-तं णिहयरयं गट्ठरयं भट्ठरय पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, करित्ता खिप्पामेव पच्चुवसमंति । एवं पुप्फबद्दलंसि पुप्फवासं वासंति, वासित्ता-जाव- कालागरुपवर-जाव- सुरवराभिगमणजोग्गं करेंति, करित्ता जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता- जाव- आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥
जंबु० व० ५, सु० ११३
रुयगवासी-दिसाकुमारी-कय-जम्म-महिमा २८ तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरत्थिम-रुयग-वत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ सरहिं सहि कूडेहि तहेव -जाव- विहरंति,
तं जहागाहा- १ णंदुत्तरा य, २ गंदा, ३ आणंदा, ४ णंदिवद्धणा।
५ विजया य, ६ वेजयंती, ७ जयंती, ८ अपराजिया ॥१॥
१ अटु उड्डलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, त जहा
गाहा - मेघंकरा मेधवई सुमेघा मेबमालिणी । तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिंदिया ॥१॥ठाणं० अ० ८, सु० ६४३ ॥
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
सेसं तहेव-जाव-तुम्भाहि ण भाइयव्व ति कटु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य पुरित्थिमेणं आयंस-हत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।
२९ तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिण-रुयग-वत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ तहेव -जाव-विहरंति, तं जहा -
गाहा- १ समाहारा, २ सुप्पइण्णा, ३ सुप्पबुद्धा, ४ जसोहरा।
५ लच्छिमई, ६ सेसवई, ७ चित्तगुत्ता, ८ वसुंधरा ॥१॥ तहेव -जाव- तुब्भाहि ण भाइयव्वं ति कटु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरस्स माऊए य दाहिणणं भिंगारहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति।
३० तेणं कालेणं तेणं समएणं पच्चत्थिम-रुयग-वत्थम्बाओ अटु दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सहि सहि कू.हिं -जाव-विहरंति,
तं जहा - गाहा - १ इलादेवी, २ सुरादेवी, ३ पुहवी, ४ पउमाबई।
५ एगणासा, ६ णवमिया, ७ भद्दा, ८ सीया य अट्ठमा ॥१॥
सेसं तहेव -जाव-तुब्भाहि ण भाइयव्वं ति कटु-जाव-भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य पच्चत्थिमेणं तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।
३१ तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरिल्ल-रुयग-वत्थव्वाओ -जाव- विहरंति, तं जहा
गाहा - १ अलंबुसा, २ मिस्सकेसी, ३ पुण्डरीया य, ४ वारुणी ।
५ हासा, ६ सव्वप्पभा, ७ चेव हिरि, ८ सिरि, चेव उत्तराओ ॥१॥
तहेव - जाव-वदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।
३२ तेणं कालेगं तेणं समएणं विदिसि-रुपग-वस्थवाओ चतारि दिसाकुमारीओ - जाव - विहरंति, तंजहा -
गाहा - १ चित्ता य, २ चित्तकणगा, ३ सतेरा, ४ य सोदामिणी ।
तहेव - जाव - ण भाइयब्वं ति कटु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयर-माऊए य चउसु विदिसासु दीविया-हत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणोओ चिट्ठन्ति त्ति ।
१ ठाणं० अ०८, सु० ६४३ । २ तत्य णं अदिसाकुमारि महनरिया ओ महिड्डियाओ - जाव- पलिओवमट्ठियाओ परिवसंति, तं जहागाहा-अलंबुसा मितकेसी पोंडरिगी य वारुणी । आसा य सव्वगा चेव, सिरि हिरी चेव उत्तरओ ।।१।।
ठाणं० अ०८, सू० ६४३ ।
।
३ ईमाई चतारि नामाई ठागंगे च उत्थे ठाणे पढमे उद्देसे विज्जुकुमारिमहत्तरियाणं संति, चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ तं जहा-१ चित्ता, २ चित्तकणगा, ३ सएरा, ४ सोयामणी ।।
ठाणं० अ०४, उ०१,सु०२५९ ।
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उसहचरियं
मज्झिम-रुयगवासी-दिसाकुमारी-महत्तरिया-कय-णाभि-णालकत्तणं ३३ तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिम-रुयग-वत्यब्बाओ चत्तारि दिसाकुमारी-महत्तरियाओ सहि सएहि कूडेहि तहेव - जाव -
विहरंति, तं जहा - गाहा- १ रूया, २ रूआसिया, चेव, ३ सुरूआ, ४ रुयगावई । तहेव-जाव -तुम्भाहि ण भाइयव्वं ति कटु भगवओ तित्थयरस्स चउरंगुलवज्ज णाभि-णालं कप्पन्ति, कप्पेत्ता वियरगं खणन्ति खणित्ता वियरगे णाभि णिहणंति, णिहणित्ता रयणाण य, वइराण य पूरेंति, पुरित्ता हरियालियाए पेढं बंधंति, बंधित्ता तिदिसि तओ कयलीहरए विउव्वति । तए णं तेसि कयलीहरगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ चाउस्सालए विउव्वंति, तए णं तेसिं चाउस्सालगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ सोहासणे विउव्वंति, तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते । सम्बो वण्णगो भाणियन्वो ॥
जंबु० व० ५, सु० ११४ ।
दिसाकुमारी-कय-माया-पुत्ताणं मज्जणाइ-किच्चं ३४ तए णं ताओ मज्श-रुयग-वत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तराओ जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव
उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं करयल-संपुडेणं गिण्हन्ति । तित्थयरमायरं च बाहाहि गिण्हन्ति, गिण्हित्ता जेणेव दाहिणिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छन्ति उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयावेति णिसीयावित्ता सयपाग-सहस्सपाहि तिल्लेहि अभंगेंति, अब्भंगित्ता सुरभिणा गंधवट्टएणं, उवटेंति, उवट्टित्ता भगवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहासु गिण्हन्ति, गिण्हिता जेणेव पुरथिमिल्ल कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए, जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयाति णिसियावेत्ता तिहिं उदएहि मज्जावेंति, तंजहा१ गन्धोदएणं, २ पुप्फोदएणं, ३ सुद्धोदएणं मज्जावित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति करित्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायर' च बाहाहि गिण्हन्ति, गिण्हित्ता जेणेव उत्तरिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयर तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयाविति, णिसीयावित्ता आभिओगे देवे सद्दाविन्ति, सद्दावित्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चुल्ल हिमवन्ताओ वासहरपव्वयाओ गोसीसचंदणकट्ठाई साहरह।" तएणं ते आभिओगा देवा ताहि मज्झरुयगवत्थव्वाहिं चहिं दिसाकुमारीमहत्तरियाहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ-तुट्ठ-जावविणएणं वयणं पडिच्छन्ति पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवन्ताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीसचन्दणकट्ठाई साहरन्ति । तए णं ताओ मज्झिम-रुयग-वत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सरगं करेन्ति, करित्ता अरणिं घट्टेति घट्टित्ता सरएणं अरणि महिति महित्ता अग्गि पाडेंति, पाडित्ता अग्गिं संधुक्खंति, संधुक्खिता गोसीसचन्दणकट्ठे पक्खिवन्ति, पक्खिवित्ता अग्गिं उज्जालंति, उज्जालित्ता, समिहाकट्ठाइं पक्खिवंति, पक्खिवित्ता, अग्गिहोमं करेंति, करित्ता भूइकम्म, करेंति, करित्ता
१ छ दिसाकुमारि महत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- १ रूवा, २ रूवंसा, ३ सुरूवा, ४ रूबवई, ५ रूवकंता, ६ रूवप्पभा ॥
ठाणं० अ०४ उ० १ सु० २५९; ठाणं० अ० ६, सु० ५०७ । २ जेण कम्मेण कट्ठाई भस्सरूवाइं भवंति तं तारिमं ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे रक्खा'-पोट्टलियं बंधन्ति बंधिता णाणा-मणि-रयण-भत्तिचिते दुविहे पाहाणवट्टगे गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टियाविन्ति भवउ भयवं पव्वयाउए पव्वयाउए।
३५ तए णं ताओ मज्झ-रुयग-वत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भयवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं तित्थयरमायरं
च बाहाहि गिण्हन्ति, गिण्हित्ता जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-भवणे तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता तित्थयरमायरं सयणिज्जंसि णिसीयाविति, णिसीयावित्ता भयवं तित्ययरं माऊए पासे ठवेंति, ठवित्ता आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठन्ती ति॥
जंबु० व० ५, सु० ११४ ।
देविन्द-सवकस्स तित्थयर-जम्मनगरे गमणं ३६ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के णाम देविदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सतक्कतू सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्ढ
लोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससय-सहस्साहिवई एरावण-वाहणे सुरिंदे अरयंबरवत्यधरे आलइय-मालमउडे णवहेम-चारु-चित्तचंचलकुण्डल-विलिहिज्जमाणगंडे भासुरबोंदी पलम्बवणमाले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महाणुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए सक्कंसि सोहासणंसि से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं, सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्ख-देव-साहस्सोणं, अण्णेसि च बहूणं सोहम्मकप्प-वासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महया हय-णट्टनगीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुपडह-वाइय-रवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ।
३७ तए णं तस्स सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो आसणं चलइ।
तए णं से सक्के-जाव-आसणं चलियं पासइ, पासइत्ता ओहि पउंजइ, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएई, आभोइत्ता हट्ठ-तुटु-चित्ते आणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहय-कयंब-कुसुम-चंचुमालइय-ऊसविय-रोमकूवे वियसिय-वर-कमल-णयण-वयणे पयलियवरकडग-तुडिय-केऊर-मउडे, कुण्डलहार-विरायंत-वच्छे, पालम्ब-पलम्ब-माण-घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता, पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता वेरुलिय-बरिट-रिटअंजण-णिउणोविय-मिसिमिसिंत-मणि-रयण-मंडियाओ पाउआओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता अंजलिमउलियग्गहत्ये तित्ययराभिमुहे सत्तट्ठ -पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेई, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणीयलंसि साहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि णिवेसेइ, णिवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडगतुडियथंभियाओ
भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी - ३८ "णमोऽत्थु णं अरहताणं भगवन्ताणं, आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं,
पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुण्डरीयाणं पुरिसवरगन्धहत्थीणं, लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरन्तचक्कवट्टीणं , दीवो ताणं सरणं-गई-पइट्ठा अप्पडिहय-बर-नाण-दसण-धराणं वियदृछउमाणं, जिणाणं जावयाणं, तिण्णाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोयाणं, मुत्ताणं मोयगाणं, सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं, सिवमयलमरुयमणन्तमक्खयमव्वाबाहमणंरावित्तिसिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं णमो जिणाणं जियभयाणं।
१ भस्सेति वा भप्पेति वा भूईति वा रक्खाति वा एगट्ठा । २ जीयंति काऊण बंधिज्जती भस्सपोट्टलिया तं ।
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सहचरियं
णमो
भगवओो तित्थगरस्स आइगरस्स-जाय-संपाविउकामस्स ।
वदामि णं भगवन्तं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भयवं ! तत्थगए इहायं"
लिक
३९
४०
४२
बंद णमंस, वंदिता णमंसिता सीहारूणवरंसि पुरस्वाभिमु ससि ।
तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो य अयमेयारूवे जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था । उपण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भगवं तत्पयरे से जीयमेवं सीय-पच्चप्पण्णमणावयानं सक्काणं देविदाणं देवराईणं तित्ययराणं जन्मणमहिम करेलए,
तं गच्छामि णं अपि भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करोमि त्ति कट्टु एवं संदेहेई, संपेहित्ता हरिणेगमेसि पायत्ताणीयाहिवई देवं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
-
"वयमेव भो देवाप्पिया सभाए सुम्याए मेयोरसिय-गंभीर महरयर- स उल्लामा उत्तालेमाणे महया महया सद्दे उधोगेमागे उम्पोसेमाणे एवं वयाहि" आणवेद णं भो ! सक्के देविंदे देवराया, गच्छइ णं भो ! सक्के देविदे देवराया जम्बुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थयरस्स जम्मण महिमं करितए, तं तुम्भे वि णं देवाणुप्पिया ! सव्विड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सम्बविनूईए सविभूसाए सम्बतंभ्रमेणं सम्यगाविसज्य-पृष्ठ-गंध-मालाकार विभूसाए सय्य-दिव्य डिय-सहसण्णिणाएणं महया इड्ढीए जाव रवेणं णियय परियाल संपरिवुडा सयाई सयाइं जाणविमाण वाहणाई दुरूढा समाणा अकापरिहीणं चैव सक्कस्स नाव अंतिय पावह
"
११
तए मं से हरिणेगमेसी देवे पायताणीवाहिवई सक्केणं देविदेणं देवरण्णा जाव एवं से समाणे हजाब एवं देवे ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सक्कस्ल देविंदस्स देवरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमई पडिणिक्खमित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए मेघोघ- रसिय- गम्भीरर-महुरयरसद्दा 'जोयण-परिमण्डला सुधोसा घण्टा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं मेघोध- रसिय- गम्भीर- महरयर- सद्दं जोयण-परिमण्डलं सुधोसं घण्टं तिक्खुत्तो उल्लालेई ।
-
तए णं तीसे मेवोध - रसिय-गम्भीर-मधुरयर- सद्दाए जोयण-परिमण्डलाए सुधोसाए घण्टाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए सोहम्मे कप्पे अण्णेहिं एगूणेहि बत्तीस विमाणावास-सयसहस्सेहि अण्णाई एगूणाई बत्तीसं घण्टा सय-सहस्साइं जमगसमगं कणकणाराव काउं पयताई हुत्था इति ।
लए णं सोहम्मे कप्पे पासाव-विमान-शिवडावडिय सह- समुट्टिय घण्टा पपि सप सहसंकुले जाए यानि होत्या ।
४१ तए णं तेसि सोहम्मकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगन्त रइ-पसत्त- णिच्च-प्पमत्त-विसय-सुह-मुच्छिषाणं यूसर-घण्टारसिय-विलोल-रिव-चल-पडियोहणे कए समाने घोसण-कोहल- विष्ण-कृष्ण-ए-चित्त-वत्त-माणसा से पायताणीयाहिवई देवे तंसि घण्टारवंसि णिसंतपडिसंतंसि समाणंसि तत्थ तत्थ तहिं तहि देसे महया महया सद्देणं उग्धोसेमाणे उग्वोसेमाणे एवं वयासी
जोवणपरिमण्डलं सुघोर्स दूसरे घंटे सो
-
-
“हन्त ! सुणंतु भवंतो बहवे सोहम्मकप्पवासी वैमाणियदेवा देवीओ य सोहम्मकप्पवहणो, इणमो वयणं हियसुहत्थं आणाव णं भो ! सक्के तं चैव जाव अंतियं पाउब्भवह त्ति ।"
तए णं ते देवा देवीओ य एयमट्ठे सोच्चा हट्टतुट्ट जाव हियया अप्पेगइया वन्दणवत्तियं, णमंसणवत्तियं एवं पूअणवत्तियं सक्कारवत्तियं, सम्माणवत्तिय दंसणवत्तियं जिणभत्तिरागेणं । अप्पेगइया सक्कस्स वयणमणुवट्टमाणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणुयत्तमाणा । अप्पेगइया तं जीयमेयं एवमाइ सि कट जाव पाउन्भवंति त्ति ।
-
४३ तए णं से सक्के देविदे देवराया ते वेमाणिए देवे देवीओ य अकालपरिहीणं चेव अंतिय पाउब्भवमाणे पासइ पासइशा हट पाल मा अभियोग देव सहावे सहायिता एवं बधासी
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१२
2
४५
तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिस तओ तिसोवाणपडिरूवगा वण्णओ,
४६ तेसि णं पडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं तोरणा वण्णओ -जाव- पडिरुवा ।
में
४७
तस्स णं जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे । से जहा णामए आलिंग-पुक्खरेइ वा जाव- दीविय चम्मेइ वा अग-कुकी-सहरसा-विषए आवड- पचावड-हि-यहि-त्-सोय-बद्धमान-समाणय-मखंड-मगरंग-जार -मार- फुल्लावलि - पउमपत्त- सागरतरंग- वसंतलय-पडमलय-भत्तिचितेहिं सच्छाएहिं सम्पर्भोहं समरीइएहि सज्जोएहि णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहि उवसोभिए उबलोभिए ।
तेसि णं मणीणं वण्णे गन्धे फासे य भाणियव्वे, 1
तस्स णं भूमिभागस्त बहुमजनसभाए पेच्छापरमण्डवे अणेगखम्भसयसष्णिविट्ठे, वण्णओ जान पडिये।
-
तस्स उल्लोए पउमलय-भत्तिचित्ते
तस्स णं मण्डवरल बहुसमरमणिज्जस्थ भूमिभावस्त बहुमन्झदेसभागसि महं एगा मणिपेठिया अटु जोयणाई आपामविक्लम्भेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई वण्णओ ।
५२ तीए उर्वार महं एगे सीहासणे वण्णओ ।
५३ तस्सुर्वारं महं एगे विजयसे सव्वरयणामए वण्णओ ।
तरस मज्यसभाए एगे बदरामए अंकुसे एत्य णं महंएगे कुम्भिक्के मुत्तादामे, सेणं अमेहि तवदुच्चत्तव्यमाण- मिहि चहि अद्धकुम्भिकेहि मुत्तादामेहि सम्बओ समन्ता संपरिक्खिते ।
४८
४९
५०
५१
धम्मकहाणुओगे पढमबंधे “खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेग खम्भ-सय-सण्णिविट्ठ लीलट्ठिय-सालभंजियाकलियं ईहामिय उसम तुरग णर-मगरविहग वाला-किम्पर-कह-सरभ- चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं संभुग्णय बदर-वेइया-परिगयाभिरामं विज्जाहर-जमलजुयल ---वि अच्ची- सहस्स मालिणीयं स्व-सहस्वकलियं मिसमाणं भिग्भिमाणं चक्बुल्लोयणले मुहफार्स सहिसरीयस्वं पष्टावलि बलिय-मर-मगहर सर मुहं बन्तं परिसणिज्जं णिउणोविव- मिसिमिसित-मणि रयण- पंडिया-जाल-परिक्सि जोयणसहस्स वित्यिष्णं पंच-जोपण-सयमुम्बई सिम्यं तुरियं जणणिव्याहिदिव्वं जागविमाणं विम्बाहि बिउब्वित्ता एयमाणलिवं पच्चविणाहि "
जंबु०व० ५, सु० ११५ ।
गए गं से पालयदेवे सबके देविदेणं देवरण्णा एवं वृत्ते समाणे हद्दु-जावेदसमुग्धाएणं समोहणिता तहेब करेइति ।
५४
५५
•जाव- सव्व-तवणिज्जमए जाव पडिरूवे ।
-
ते णं दामा तवणिज्ज-लंबूसगा सुवण्ण-पयरग मण्डिया णाणा- मणि रयण- विविह-हारद्धहार- उवसोभिया समुदया ईसि अण्णमण्यमसंपत्ता पुयाइएहि वाहिं मन्दं मन्दं एइज्जमाना एइन्जभाषा- जाव- निस्बुकरे सणं ते एसे अपूरेमाणा आपूरेमाना -जाव- आईव अईव उवसोभेमाणा उवसोभमाणा चिट्ठेति ति ।
तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स वेवरण्णो चउरासीए सामाणियसाहस्सोणं चउरासी- भद्दासनसाहस्सोओ पुरत्यिमेणं अट्ठन्हं अग्गमहिसीणं ।
१ जहा रायसेइज्जे (कंडिका २४-४०) इति मूले पाठ: ।
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उसहचरियं
एवं दाहिणपुरथिमेणं अभिंतरपरिसाए दुवालसण्हं देवसाहस्सीणं, दाहिणेणं मज्झिमाए चउदसण्हं देवसाहस्सीणं, दाहिजपच्चत्थिमेणं बाहिरपरिसाए सोलसण्हं देवसाहस्सीणं पच्चत्थिमेणं सत्तण्ह अणियाहिबईणं ति । तए णं तस्स सोहासणस्स चउद्दिसि चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं । एवमाई विभासियव्वं सूरियाभगमेणं-जाव-पच्चप्पिणन्ति ति।
जंबु० व० ५, सु० ११६ ।
५६ तए णं से सक्के - जाव - हट्ठ-हियए दिव्वं जिणेदाभिगमग-जुग्गं सव्वालंकार-विभूसिय उत्तरवेउब्वियं रूवं विउव्वइ,
विउव्वित्ता अहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि गट्टाणीएणं गन्धव्वाणीएण य सद्धिं तं विमाणं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुबिल्लेणं तिसोवाणेणं दुरूहइ, दुरूहिता-जाव-सीहासगंसि पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे त्ति ।
५७ एवं चेव सामाणिया वि उत्तरेणं तिसोवाणेणं दुरूहइ दुरूहित्ता पत्तेयं पत्तेयं पुटबग्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति ।
अवसेसा य देवा देवीओ य दाहिणिल्लेणं तिसोवाणेणं दुरूहइ दुहिता तहेव -जाव- णिसीयंति ।
५८ तए णं तस्स सक्कस्स तंसि दुरूढस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया।
५९ तयणंतरं च णं पुग्णकलसभिगारं दिवा य छत्तपडागा सवामरा य सण-रइय-आलोय-दरिसणिज्जा वाउयविजयवेजयन्ती
य समूसिया गगणतलमणुलिहंति पुरओ अहाणुपुटवीए संपट्ठिया।
६० तयणन्तरं च णं छत्तभिंगारं ।
६१ तयणतरं च णं वइरामयवट्ट-लट्ठ-संठिय-सुसिलिट्ठ-परिघट्ट-पट्ट-सुपइट्ठिए विसिट्ठे अणेगवरपंचवण्णकुडभी-सहस्स-परिमण्डि
याभिरामे वाउद्धृय-विजय-वेजयन्ती-पडागा-छत्ताइच्छत्त-कलिए तुंगे गयण-तलमणुलिहंत-सिहरे जोयण-सहस्समूसिए महइमहालए महिंदज्झए पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठिए त्ति।
६२ तयणन्तरं च णं सरूव-णेवत्थ-परियच्छिय-सुसज्जा सव्वालंकारविभूसिया पंच अणिया पंच अणियाहिवइणो -जाव- संपट्ठिया ।
६३ तयणन्तरं च णं बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य सएहि सहि रूवेहि- जाव -णिओगेहि सक्क देविदं देवरायं पुरओ
य मग्गओ य पासओ अ अहाणुपुव्वीए संपलिए त्ति । तयणन्तरं च णं बहवे सोहम्मकप्पवासी देवा य देवीओ य सब्विड्ढीए-जाव-दुरूढा समाणा मग्गओ य - जाव - संपट्टिया।
६४ तए णं से सक्के तेणं पंचाणियपरिक्खित्तेणं-जाव-महिंदज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं चउरासीए सामाणिय-जाव
परिवुड़े । सब्बिड्ढोए-जाव-रवेणं सोहम्मस्स कप्पस्स मज्झं मज्झेणं तं दिव्वं देविडिढी-जाव-उवदंसेमाणे उवदंसेमाणे जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जोयणसयसाहस्सिएहि विग्गहेहि ओवयमाणे ओवयमाणे ताए उक्किट्ठाए -जाव- देवगईए वीईवयमाणे बीईवयमाणे तिरियमसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्सं मझेणं जेणेव णंदीसरवरे दीवे जेणेव दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरग-पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं जा चेव सूरियाभस्स वत्तब्वया । णवरं सक्काहिगारो वत्तन्वो -जाव- तं दिव्वं देविड्ढिं -जाव- दिव्वं जाणविमाणं पडिसाहरमाणे पडिसाहरमाणे -जाव- जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-णगरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-भवणं तेणं दिव्वेणं जाणविमाणेणं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता भगवओ.तित्थयरस्स जम्मणभवणस्स उत्तर-पुरथिमे दिसीभागे चउरंगुलमसंपत्तं धरणियले तं दिव्वं जाणविमाणं ठवेइ ठवित्ता अहि अग्गमहिसोहिं दोहिं अणीएहि गन्धवाणीएण य णट्टाणीएण य सद्धि ताओ दिव्याओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तए णं सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो चउरासीइसामाणियसाहस्सीओ दिवाओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरहंति, अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरहंति ति ।
६५ तए णं से सक्के देविन्दे देवराया चउरासीए समाणियसाहस्सिएहि-जाव-सद्धि संपरिवुडे सविड्ढोए-जाव-दुंदुहिणिग्धोस
णाइय-रवेणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता आलोए चेव पणामं करेइ , करित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता करयल -जाव- एवं वयासी"णमोऽत्यु ते रयणकुच्छिवारिए एवं जहा दिसाकुमारीओ -जाव- धण्णासि पुण्णासि-तं कयत्थाऽसि, "अहण्णं देवाणुप्पिए ! सक्के णाम देविंदे देवराया तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामि, तं णं तुम्माहिं ण भाइयव्वं"ति कटु ओसोवणिं दलयइ, दलयित्ता तित्थयरपडिरूवगं विउब्वइ, विउवित्ता तित्थयरमाउयाए पासे ठवेइ, ठवित्ता पंच सक्के विउव्वइ ।। विउव्वित्ता एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिटुओ आयवत्तं घरेइ, दुवे सक्का उभओ पासि चामरुक्खेव करेन्ति, एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पकडढइ त्ति ।
६६ तए णं से सक्के देविन्दे देवराया अण्णेहिं बहूहिं भवणवइ-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणिएहि देहि देवीहि य सद्धि
संपरिबुडे सव्विड्ढीए-जाव-णाइएणं ताए उक्किट्ठाए-जाव-वीईवयमाणे वीईवयमाणे जेणेव मन्दरे पव्वए जेणेव पंडगवणे जेणेव अमिसेयसिला जेणेव अभिसेयसीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे त्ति ॥
जंबु० व० ५, सु० ११७ ।
इसाणाइ-इंद-कय-जम्म-महिमा
६७ तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविन्दे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे सुरिन्दे उत्तरड्ढलोगाहिवई अट्ठावीसविमाणावास
रूयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे एवं जहा सक्के । इमं णाणतं-महाधोसा घण्टा लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई, पुप्फओ विमाणकारी, दक्खिणे निज्जाणमग्गे, उत्तरपुरथिमिल्ले, रइकरगपवओ मन्दरे समोसरिओ - जाव - पज्जुवासइ ति।
६८ एवं अवसिट्ठा वि इंदा भाणियन्वा - जाव - अच्चुओ त्ति ।
इमं णाणतं - गाहा - चउरासोइ असीई, बावत्तरि सत्तरी य सट्ठी य । पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा दस सहस्सा ॥१॥
एए सामाणियाणं :गाहा - बत्तीसठ्ठावीसा, बारसट्ठ चउरो सयसहस्सा । पण्णा चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥१॥
७० आणयपाणयकप्पे चत्तारिसयाऽऽरणच्चुए तिणि ।
एए विमाणाणं इमे जाणबिमाणकारी देवा, तंजहा -- गाहा - १ पालय, २ पुप्फे, य ३ सोमणसे, ४ सिरिवच्छे य, ५ णंदियावत्ते ।
६ कामगमे, ७ पीइगमे, ८ मणोरमे, ९ विमल, १० सव्वओभद्दे ॥१॥
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१५
उसहचरियं ७२ सोहम्मगाणं सगंकुमारगाणं बंभलोयगाणं महासुक्कयाणं पाणगाणं इंदाणं सुघोसा घण्टा, हरिणेगमेसी पायत्ताणीयाहिवई,
उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी, दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरग-पव्वए । ७३ ईसाणगाणं माहिंद-लंतग-सहस्सार-अच्चुयगाण य इंदाण महाघोसा घण्टा, लहुपरक्कमो पायत्ताणीयाहिवई, दक्खिणिल्ले
णिज्जाणमग्गे, उत्तरपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए । सेसं तं चेव परिसाओ। आयरक्खा सामाणियचउग्गुणा, सव्वेसिं जाणविमाणा सर्वसिं जोयणसयसहस्सवित्थिण्णा उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंदज्झया सव्वेसिं जोयणसाहस्तिया, सक्कवज्जा मन्दरे समोयरंति-जाव-पज्जुवासंति त्ति ॥
जंबु० व० ५, सु० ११८ ।
असुरिंद-चमर-कय-जम्म-महिमा ७४ तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिन्दे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए
सामाणियसाहस्सीहि, तायतीसाए तायत्तीसेहि, चउहिं लोगपालेहि, पचहि अग्गमहिसीहिं, सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहि, सत्तहिं अणिएहि, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, चउहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खदेव-साहस्सोहिं, अण्णेहि य जहा सक्के । णवरं-इमं णाणत्तं-दुमो पायताणोयाहिवई, ओघस्सरा घण्टा, विमाणं पण्णासं जोयणसहस्साई, महिन्दझओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभिओगिओ देवो, अवसिढें तं चेव-जाव-मन्दरे समोसरन पज्जुवासइ त्ति ।
जंबु० व० ५, सु० ११९ ।
आसुरिंदबली-आइ-कय-जम्म-महिमा ७५ तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिन्दे असुरराया एवमेव
णवरं सट्ठी सामाणियसाहस्सीओ, चउगुणा आयरक्खा, महादुमो पायताणीयाहिवई, महाओहस्सरा घण्टा सेसं तं चेव परिसाओ
७६ तेणं कालेणं तेणं समएणं धरणे तहेव । ७७ णाणत्तं-छ सामाणियसाहस्सीओ, छ अग्गमहिसोओ, चउग्गुणा आयरक्खा, मेधस्सरा घण्टा, भद्दसेणो पायत्ताणीयाहिबई,
विमाणं पणवीसं जोयणसहस्साइं, महिंदज्झओ, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं । एवमसुरिन्दवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं । णवरं असुराणं ओघस्सरा घण्टा, णागाणं मेघस्सरा, सुवण्णाणं हंसस्सरा, विज्जूणं कोंचस्सरा, अग्गीणं मंजुरसरा, दिसाणं मंजुघोसा, उदहीणं सुस्सरा, दीवाणं महुरस्सरा, वाऊणं णंदिस्सरा, थणियाणं णंदिघोसा । गाहा- च उसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥१॥
७८ दाहिणिल्लाणं पायत्तागीयाहिवई भद्दसेणो, उत्तरिल्लाणं दक्खो त्ति । ७९ वाणमन्तर-जोइसिया णेयव्वा एवं चेव ।
णवरं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ, सोलस आयरक्ख सहस्सा, विमाणा सहस्सं, महिन्दाया पणवीसं जोयणसयं, घण्टा दाहिणाणं मंजुस्सरा, उत्तराणं मंजुघोसा, पायत्ताणीयाहिवई विमाणकारी य आभिओगा देवा । जोइसियाणं सुस्सरा सुस्सरणिग्घोसाओ घण्टाओ, मन्दरे सनोसरणं- जाव-पज्जुवासंति त्ति ॥
जंबु०व० ५, सु० ११९ ।
१ जहा जीवाभिगमे-जीवा० पडि० ३, उ० ३, सु० २०८ । २ जहा जीवाभिगमे-जीवा० पडि०३, उ०१,सु०११८, ११९, १२० ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे अच्चुय-देविद-कय-तित्थयराभिसेओ ८० तए णं से अच्चुए देविन्दे देवराया महं देवाहिवे आभिओगे देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
"खिप्यामेव भो देवाणुप्पिया ! महत्यं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह ।"
८१ तर णं ते आभिओगा देवा हट्ठतुट्ठ-जाव-पडिसुणिता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमन्ति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसम
ग्धाएणं-जाव-समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाणं । एवं रुप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवण्णमणिमयाणं रुप्पमणिमयाणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं, अट्ठसहस्सं भोमिज्जाणं, अट्ठसहस्सं चन्दणकलसाणं । एवं भिगाराणं आयंसाणं थालाणं पाईणं सुपइगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं वायकरगाणं पुष्फचंगेरोणं एवं जहा सूरिआभस्स सव्व चंगेरिओ सव्व पडलगाइं विसेसियतराई भाणियव्वाई।
सीहासण-छत्त-चामर-तेल्लसमुग्ग-जाव-सरिसवसमुग्गा तालियंटा-जाव-अट्ठसहस्सं कडुच्छुगाणं विउव्वंति विउम्बित्ता साहाविए वे उव्विए य कलसे- जाव -कडुच्छुए य गिण्हिता जेणेव खीरोदए समुद्दे तेणेव आगम्म खीरोदगं गिण्हन्ति, गिण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई- जाव -सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति । एवं पुक्खरोदाओ-जाव-भरहेरवयाणं मागहाइतित्थाणं उदगं मट्टियं च गिण्हन्ति ।। एवं गंगाईगं महाणईणं-जाव-चुल्लहिमवन्ताओ सव्वतुवरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले-जाव-सव्वोसहीओ सिद्धत्थए य गिहिन्ति, गिहिता पउमद्दहाओ दहोदगं उप्पलाईणि य ।
८२ एवं सबकुल-पधएमु वट्टवेयड्ढेसु सम्बमहद्दहेसु सव्ववासेसु सव्वचक्कवट्टिविजएसु वक्खार-पव्वएसु अंतरण ईसु
विभासिज्जा-जाव-उत्तरकुरूसु-जाव-सुदंसण-भद्दसालवणे सव्वतुवरे-जाव-सिद्धत्थए य गिण्हन्ति ।
८३ एवं गंदणवणाओ सव्वतुवरे -जाव- सिद्धत्थए य सरसं गोसीसचन्दणं दिव्वं च सुमणदामं गेहंति ।
एवं सोमणस-पंडगवणाओ य सव्वतुवरे -जाव- सुमणदामं दद्दर-मलय-सुगन्धे य गिण्हंति गिण्हित्ता एगओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव सामी तेणेव उवागच्छन्ति उवागच्छित्ता महत्थं-जाव-तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेंति त्ति ।
जंबु० व० ५, सु० १२० ।
८४ तए णं से अच्चुए देविन्दे दसहि सामाणियसाहस्सीहि, तावत्तीसाए तायत्तीसएहि, चउहिं लोगपालेहि, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं
अणिएहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, चतालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे तेहिं साभाविएहिं वेउब्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपडिपुणेहि चन्दणकयचच्चाएहि आविद्धकण्ठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं करयलसुकुमालपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवणियाणं कलसाणं-जाव-अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं-जाव-सब्बोदएहिं सवमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं-जाव-सव्वोसहि-सिद्धत्यएहिं सविड्ढीए-जाव- रवेणं महया महया तित्थयराभिसेएणं अभिसिचइ ।
८५ तए णं सामिस्स महया महया अभिसेयंसि वट्टमाणंसि इंदाइया देवा छत्त-चामर-धूव-कडुच्छुअ-पुप्फ-गांध-जाव-कलस
हत्थगया हट्ठतुट्ठ-जाव-वज्जसूलपाणी पुरओ चिट्ठति पंजलिउडा इति। एवं विजयाणुसारेण -जाव-अप्पेगइया देवा आसियसंमज्जिओवलित्तसित्तसुइसम्मट्ठरत्यंतरावणवीहियं करेन्ति-जाव-गन्धवटि भूयं ति । अप्पेगइया हिरण्णवासं वासिंति । एवं सुवण्ण-रयण-वइर-आभरण-पत्त-पुप्फ-फल-बीय-मल्ल-गन्ध-वण्ण जाव चुण्णवासं वासंति । अप्पेगइया हिरण्णविहिं भाइंति । एवं-जाव-चुण्णविहिं भाइंति ।
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उसहचरियं
८६ अप्पेगइया चउब्विहं वज्जं वाएन्ति, तं जहा- १ ततं, २ विततं, ३ घणं, ४ झुसिरं ।
८७ अप्पेगइया चउन्विहं गेयं गायन्ति, तं जहा - १ उक्खित्तं, २ पायत्तं, ३ मन्दाइयं ४ रोइयावसाणं ।
८८
अप्पेगइया चउव्विहं णट णच्चन्ति , तं जहा- १ अंचियं, २ दुयं, ३ आरभडं, ४ भसोलं ।। अप्पेगइया चउन्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा - १ दिट्ठतियं, २ पाडिस्सुइयं, ३ सामण्णोवणिवाइयं, ४ लोगमज्झावसाणियं । अप्पेगइया बत्तीसइविहं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेन्ति । अप्पेगइया उप्पयनिवयं निवयउप्पयं संकुचियपसारियं -जाव- भन्तसंभन्तणामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंती ति ।
८९ अप्पेगइया पोणेन्ति, एवं बुक्कारेन्ति, अप्पेगइया तंडति, अप्पेगइया लासेन्ति, अप्फोडेन्ति, वग्गन्ति, सीहणायं णदन्ति,
अप्पेगइया सव्वाइं करेन्ति,
९०
अप्पेगइया हयहेसियं । एवं हत्थिगुलगुलाइयं, रहघणघणाइयं, अप्पेगइया तिण्णि वि, अप्पेगइया उच्छोलन्ति, अप्पेगइया पच्छोलन्ति अप्पेगइया तिवई छिदन्ति, पायबद्दरयं करेन्ति, भूमिचवेडे दलयन्ति, अप्पेगइया महया महया सद्देणं रावेति । एवं संजोगा विभासियन्वा । अप्पेगइया हक्कारेन्ति । एवं पुक्कारेन्ति थक्कारेन्ति ओवयंति उप्पयंति परिवयंति जलन्ति तवंति पतवंति गज्जंति विज्जुयायंति वासिति अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति । एवं देवकहकहगं करेंति, अप्पेगइया दुहुदुहुगं करेंति ।
९१ अप्पेगइया विकियभूयाई रुवाई विउन्वित्ता पणच्चंति ।
९२ एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स -जाव- सव्वओ समन्ता आधाति परिधावेति त्ति ।
जंबु० व० ५, सु० १२१ ।
९३ तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया महया अभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं-जाव-मत्थए
अंजलिं कटु जएणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावित्ता ताहिं इट्ठाहिं-जाव -जयजयस पउंजइ, पउंजित्ता- जाव -पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गन्धकासाईए गायाई लहेइ, लूहित्ता
९४ एवं- जाव - कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेइ, करित्ता - जाव - णट्टविहिं उवदंसेइ, उवदंसित्ता अछेहि सण्हेहिं
रययामएहिं अच्छरसतण्डुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अट्ठट्ठमंगलगे आलिहइ, तंजहा :गाहा- १ दप्पण, २ भद्दासण, ३ वद्धमाण, ४ वरकलस, ५ मच्छ, ६ सिरिवच्छा । ७ सोत्थिअ, ८ णन्दावत्ता,
लिहिआ अट्ठमंगलगा ॥१॥
९५ लिहिऊण करेइ उबगारं, कि ते ? पाडल-मल्लिअ-चंपग-असोग-पुन्नाग-चुअमंजरि-णवमालिअ-बउल-तिलय-कणवीर-कुंद-कुज्जक
कोरंटक-पत्त-दमणग-वर-सुरभिगंध-गंधिअस्स कयग्गाहगहिअ-करयल-पन्भट्ठ-विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिअरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकर करेत्ता चंदप्पभ-रयण-वइर-बेरुलिय-विमलदण्डं, कंचण-मणि-रयण-भत्तिचित्तं, कालागुरुपवर-कंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-गंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवटि विणिम्मुअंतं वेरुलियमयं कडुच्छुअं पग्गहित्तु पयत्तेण धूवं दाऊण जिणवरिदस्त सत्तट्ठपयाई ओसरिता दसंगुलियं अंजलि करिय मत्थयंमि पयओ अट्ठसयविसुद्धगन्धजुहि महावितेहि भपुणरत्तेहिं अत्थजुत्तेहिं संथणइ । संथुणित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता - जाव - करयलपरिग्गहियं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी"णमोऽत्थु ते सिद्ध-बुद्ध-णीरय-समण-समाहिय-समत्त-समजोगि-सल्लगत्तण-णिग्भय-णोरागदोस-णिम्मम-णिस्संग-णीसल्ल-माणमूरण-गुणरयण-सीलसागरमणंतमप्पमेय-भविय-धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टी ! "णमोऽत्थु ते अरहओ ति" कटु एवं वन्दइ, णमंसइ, वंदित्ता, णमंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे-जाव-पज्जुवासइ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
ईसाणाइ-कय-तित्थयराभिसेओ
९७ एवं जहा अच्चुयस्स तहा - जाव - ईसाणस्स भाणियव्वं ।
९८ एवं भवणवइ-वाणमन्तर-जोइसिया य सूरपज्जवसाणा सएणं परिवारेणं पत्तेयं पत्तेयं अभिसिंचंति ।
९९ तए णं से ईसाणे देविदे देवराया पंच ईसाणे विउम्वइ, विउम्वित्ता--
एगे ईसाणे भगवं तित्ययरं करयल-संपुडेणं गिम्हइ, गिहित्ता सोहासगवरगए पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे । एगे ईसाणे पिट्ठओ आयवत्तं घरेइ । दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेन्ति । एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठइ ।
देविदसक्क-कय-तित्थयराभिसेओ
१०० तए पं से सरके देविन्दे देवराया अभिओगे देवे सदावेइ, सहाविता एसो वि तह चेव अभिसेयाणत्तिं देइ तेऽवि तह चेव
उवणेन्ति ।
१०१ तए णं से सक्के देविन्दे देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउद्दिसि चत्तारि धवल-वसभे विउग्धेइ सेए संखदल-विमल-णिम्मल
दधि-घण-गोखीर-फेण-रययणिगर-प्पगासे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरुवे पडिरूवे । तए णं तेसि चउण्हं धवल-वसभाणं अहिं सिंहितो अट्ठ तोअधाराओ णिगच्छंति। तए गं ताओ अट्ठ तोयधाराओ उड्ढ वेहासं उप्पपन्ति, उप्पित्ता एगओ मिलायन्ति, मिलाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स मुद्धाणंसि णिवयंति ।
१०२ तए णं से सक्के देविन्दे देवराया चउरासीईए सामाणियसाहस्सोहि एपस्स वि तहेव अभिसेओ भाणियब्बो - जाव - णमोऽत्यु ते अरहओ त्ति कट्ट वन्दइ णमंसइ - जाव - पज्जवासइ ।
जंबु० व० ५, सु० १२२ ।
१०३ तए णं से सक्के देविंद देवराया पंच सक्के विउम्बइ, विउविसा
एगे सक्के भयवं तित्ययरं करयलसंपुडेणं गिव्हह । एगे सक्के पिट्ठओ आयवत्तं घरेइ । दुवे सक्का उभओ पासिं चामरक्खेंवं करेंति । एगे सक्के वज्जपाणी पुरओ पकड्ढइ ।
१०४ तए णं से सक्के चउरासीईए सामाणियसाहस्सोहिं-जाव -अण्णेहि य भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि
संपरिवडे सब्बिड्डीए - जाव - णाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-णयरे जेणेव जम्मण-भवणे जेगेव तित्थयरमाया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेइ, ठवित्ता तित्थयरपडिरूवगं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता ओसोवणिं पडिसाहरइ, पडिसाहरिता एगं महं खोमजुअलं कुंडलजुअलं च भगवओ तित्थयरस्स उस्सीसगमले ठवेइ, ठवित्ता एगं महं सिरिदामगंडं तवणिज्जलंबूसगं सुवष्णपयरगमंडियं णाणामणि-रयण-विविह-हारद्धहार-उवसोहियसमुदयं भगवनो तित्थयरस्स उल्लोयंसि णिक्खिवह। तष्णं भगवं तित्थयरे अणिमिसाए विट्ठीए देहमाणे देहमाणे सुहंसुहेणं अभिरममाणे अभिरममाणे चिट्ठ ।
१.५ तए णं से सक्के देविदे देवराया बेसमणं देवं सहावेह, सद्दावित्ता एवं बयासी -
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उसहचरियं
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ, बत्तीसं सुवष्णकोडोओ, बत्तीसं गंदाई, बत्तीस भद्दाइं सुभगे सुभगरूव-जुव्वण-लावण्णे य भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-भवणंसि साहराहि, साहरित्ता एयमापत्तियं पच्चप्पिणाहि ।" तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं-जाव-विणएणं वयणं पडिसुणेइ पडिसुणेइत्ता नभए देजे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं क्यासी-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ -जाव- भगवओ तित्थयरस्स अम्मण-भवणंसि साहरह, साहरित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।" तए णं ते जंभगा देवा बेसमणेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ- जाब -खिप्पामेव बत्तीसं हिरण्यकोडीओ - आव - भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणंसि साहरंति, साहरिता जेणेव बेसमणे देवे तेणेव- जाव -पच्चप्पिणंति । तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविंदे देवराया- जाव -पच्चप्पिणइ ।
१०६ तए णं सक्के देविदे देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी--
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! भगवओ तित्थयरस्स जम्मण-णयरंसि सिंघाडग • जाव - महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वदह"हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा य, देवीओ य जे णं देवाणुप्पिया ! तित्ययरस्स तित्थयरमाऊए वा असुभं मणं पधारेइ, तस्स णं अज्जगमंजरिया इव सयहा मुद्धाणं फुट्टउ त्ति कट्ट घोसणं घोसेह, घोसित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह" त्ति । तए णं ते आभिओगा देवा-जाव -एवं देवोत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता सिप्पामेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरंसि सिंघाडग - जाव - एवं वयासी"हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ - जाव - जे णं देवाणुप्पिया ! तित्थयरस्स-जाव-फुट्टिही" ति कट्ट घोसणगं घोसेंति,
घोसित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । १०७ तए गं ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा भगवओ तित्यगरस्स जम्मण-महिमं करेंति, करिता जेणेव
नंदिस्सरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करेंति, करित्ता जामेव दिसिं पाउम्भूया तामेव दिसि पडिगया ।
जंबु० व० ५, सु. १२३ ।
उसहेण लेहाइ-उवएसो :
१०८ तए णं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमझे वसइ, वसित्ता तेवढिं पुव्वसयसहस्साई महारायवास
मझे वसइ, तेवढिं पुव्वसयसहस्साई महारायवासमझे वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुय-पज्जवसाणाओ बावरि कलाओ चोसटिळं महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिणि वि पयाहियाए उवदिसइ, त्ति ।
उसहस्स पव्वज्जा:
१०९ उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ,
अभिसिंचिता तेसीई पुध्वसयसहस्साई महारायवासमझे वसइ, वसित्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे, पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स णवमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे
१. सम० स० ७२, सु० ७ । २. जम्बु० व० २, सु० ३०, टीका । ३. जम्बु. व. २, सु. ३०, टीका ।
४. जीवाभि० पडि० ३, उ०३ सु० १११ । ५. जंबु० व० २ सु० ३०, टीका। ६. जंबु० व० २, सु० ३०, टीका ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे चइत्ता हिरणं, चइत्ता सुवणं, चइत्ता कोसं, चइत्ता कोट्ठागारं, चइत्ता बलं, चइत्ता वाहणं, चइत्ता पुरं, चइत्ता अंतेउरं, चइत्ता जणवयं, चइत्ता विउल-धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत-रयण-संतसार-सावइज्जं विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता, दायं दाइया णं परिभाएता सुदंसगाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमागे संखिय-चक्किय-णंगलियमुहमंगलिय-पूसमाणग-वक्षमाणग-आइक्खग-लंख-मंख-घंटिय-गणेहिं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरियाहि हिययगमणिज्जाहि हिययपल्हायणिज्जाहि गंभीराहि कण्णमणणिन्वुइकराहि अट्ठसइयाहिं अपुणहत्ताहि वाहिं अणवरयं अभिणंदता य अभिथुणंता य एवं वयासी"जय जय नंदा! जय जय भद्दा ! धम्मेणं अभीए परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे भय-भेरवाणं धम्मे ते अविग्धं भवउ," त्ति कटु अभिणंदंति य अभियुणंति य ।
११० तए णं उसमे अरहा कोसलिए गयणमालासहस्सेहि पिच्छिज्जमाणे पिच्छिज्जमाणे एवं-जाव-णिग्गच्छइ,-जाव-आउलबोलबहुलं
णभं करते विणीयाए रायहाणीए मज्झं मझेणं णिग्गच्छइ ।
१११ आसिय-सम्मज्जिय-सित्त-सुइक-पुप्फोवयार-कलियं सिद्धत्थवणविउलरायमगं करेमाणे हय-गय-रह-पहकरेण पाइक्कचड
करेण य मंदं मंदं उद्धयरेणुयं करेमाणे करेमाणे जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ । ठावित्ता सीयाओ पच्चोरहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेवाभरणालंकारं ओमयइ, ओमुइत्ता सयमेव चाहिं अट्ठाहिं (मुट्ठिहिं) लोयं करेइ, करित्ता छठेणं भत्तेगं अपाणएणं आसाढाहिं णक्खत्तेण जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइन्नाणं खत्तियाणं चाहिं सहस्सेहिं सद्धिं एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।
जंबु० व० २, सू० ३० ।
उसहस्स अचेलयत्तं उवसग्गसहणं य
११२ उसभे णं अरहा कोसलिए संवग्छर-साहियं चीवरवारी होत्या, तेण परं अचेलए । ११३ जप्पभिई च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तप्पभिई च णं उसभे अरहा कोसलिए
णिच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा - दिव्वा वा - जाव - पडिलोमा वा अणुलोमा वा । तत्थ पडिलोमा वेत्तेण वा - जाव - कसेण वा काए आउटेज्जा, अणुलोमा वंदेज्ज वा - जाव -पज्जुवासेज्ज वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे अगाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमण-वयण-कायगुत्ते सम्म सहइ- जाव -अहियासेइ।
उसहस्स अणगारसरूवं
११४ तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए - जाव - पारिट्ठावणिआसमिए मणसमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते - जाव - गुत्तबंभयारी अकोहे - जाव - अलोहे । संते पसंते उवसंते परिणिबुडे छिण्णसोए निरुवलेवे ।।
जंबु० व० २, सु० ३१ । १ सुविमल-वर-कंस-भायण व मुक्कतोए',
२ संखे विव निरंजणे विगय-राग-दोस-मोहे, ३ कुम्मो इव इंदिएसु गुत्ते,
४ जच्चकंचणगं व जायसवे, ५ पोक्खरपत्तं व निरुवलेवे,
६ चंदो इव सोमभावयाए,
१. कप्प० सु० १९५ ।। २. समणस्सोवमाकमे उवमासंखासु य एगरूवया नत्थि । एत्थ पण्हावागरण (संव० ५, सु०१)पाढो दिण्णो । दट्ठव्या-उववाइय.
सु० २७ । जंबु० व० २ सु० ३१ ।
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उसहचरियं
२१
८ अचले जह मंदरे गिरिवरे, १० पुढवी व सव्वफासविसहे, १२ जलियहुयासणो विव तेयसा जलते, १४ हरयो विव समियभावे, १६ सोंडीरे कुंजरोव्व,
७ सूरो व्य दित्ततेए, ९ अक्खोभे सागरो ब्व थिमिए, ११ तवसा वि य भासरासिछन्नि व्व जाततेए, १३ गोसीसचंदणं पि व सीयले, सुगंधे य १५ उग्घोसिय सुनिम्मलं व आयंसमंडलतलं व
पागडभावेण सुद्धभावे, १७ वसभेव्व जाययामे, १९ सारयसलिलं व सुद्धहियए, २१ खग्गिविसाणं व एगजाते, २३ सुन्नागारे ब्व अप्पडिकम्मे, २५ जहा खुरो चेव एगधारे, २७ गगणमिव निरालंबे, २९ कय-परनिलए जहा चेव उरए, ३१ जीबो ब्व अप्पडिहय-गइ त्ति ।
१८ सीहे वा जहा मिगाहिवे होति दुप्पधरिसे, २० भारंडे चेव अप्पमत्ते, २२ खाणुं चेव उड्ढकाए, २४ सुन्नागारावणस्संतो निवाय-सरणप्पदीपज्झाणमिव निप्पकंप, २६ जहा अही चेव एगदिट्ठी, २८ विहग इव सव्वओ विष्पमुक्के, ३० अनिलो ब्व अप्पडिबद्धे,
उसहस्स पडिबंधाभावो
११५ णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे । से पडिबंधे, चउविहे भवई तं जहा
१ दव्वओ, २ खित्तओ, ३ कालओ, ४ भावओ। दव्वओ-इह खलु माया मे, पिया मे, भाया मे, भगिणी मे, - जाव -संगंथसंथुआ मे, हिरणं मे, सुवणं मे-जाव -उवगरणं मे अहवा-समासओ सच्चिते वा, अचित्ते वा, मीसए वा दबजाए-सेवं तस्स ण भवइ । खित्तओ-गामे वा, णयरे वा, अरग्णे वा, खेते वा, खले वा, गेहे वा, अंगणे वा-एवं तस्स ण भवइ । कालओ-समए वा, आवलियाए वा, आणापाणुए वा, योवे वा, लवे वा, मुहुत्ते वा, अहोरत्ते वा, पक्खे वा, मासे वा, उऊए वा, अयणे वा, संवच्छरे वा, अन्नयरे वा दोहकाले पडिबंधे-एवं तस्स ण भवइ । भावओ-कोहे वा- जाव -मिच्छादसणसल्ले वा-एवं तस्स ण भवइ ।
उसहस्स विहारो
११६ से णं भगवं वासावासबज्ज हेमंतगिम्हासु गामे एगराइए, णयरे पंचराइए ववगय-हास-सोग-अरइ-भय-परित्तासे णिम्ममे णिर
हंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणे अदुठे चंदणाणुलेवणे अरत्ते लेठुम्मि कंचणम्मि य समे इहलोए परलोए य अपडिबद्धे जीविय-मरणे निक्कंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्यायणट्ठाए अब ट्ठिए विहरइ।
उसहस्स केवलनाणं
११७ तस्स णं भगवंतस्स एएगं विहारेगं विहरमागस्स एगे वास-सहस्से विइक्कंते समाणे पुरिमतालस्स नयरस्स बहिया सगडमुहंसि
उज्जागंसि णिग्गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरियाए बट्टमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कारसीए पुव्वण्हकालसमए अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अणुत्तरेणं णाणेणं - जाव - अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएणं विहारेणं अणुतराए भावणाए खंत्तीए गुत्तीए, मुत्तीए, तुट्ठीए अणुत्तरेणं अज्जवणं मद्दवेणं लाघवेणं सुचरियसोवचिय-फल-निव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे।
११८ जिणे जाए केवली सध्वन्नू सव्वदरिसी
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
स रइय-तिरिय-नरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणइ पासइ, तं जहा-- आगई गई ठिई चवणं उबवायं भुत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्म रहो कम्मं तं तं कालं मणवयकाए जोगे एवमादी जीवाण वि सम्वभावे अजीवाण वि सव्वभावे मोक्खमग्गस्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे एस खलुं मोक्खमग्गे मम अण्णेसि च जीवाणं हिय-सुह-णिस्सेयस-करे सव्वदुक्ख-विमोक्खणे परमसुहसमाणणे भविस्सइ।
उसहेण तित्थपवत्तणं
११९ तए णं से भगवं समणाणं निग्गंथाण य निग्गंथीण य महत्वयाई सभावणगाई छच्च जीवणिकाए धम्म देसेमाणे विहरइ,
तं जहापुढवीकाइए भावणागमेणं पंच महन्वयाई सभावणगाई भाणियन्वाई ति ।
जम्बु० व० २ सु० ३१ । उसभेणं अरहा कोसलिएणं इमोसे ओसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं बीइक्कंताहिं तित्थे पवत्तिते ॥
।। ठाणं अ० ९, सु० ६९७ ।
उसहस्स गणहराइसंपया
१२० उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासी गणा गणहरा होत्था।
उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेण-पामोवखाओ चुलसीइं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था । उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी-सुंदरी-पामोक्खाओ तिणि अज्जिया सयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया-संपया होत्था । उसभस्स णं अरहओ कोसलियरस सेज्जंस-पामोक्खाओ तिणि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य साहस्सीओ उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था । उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सुभद्दा-पामोवखाओ पंच समणोवासिया सयसाहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासिया संपया होत्था ।
१२१ उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर-संनिवाईणं जिणो विव अवितह वागरमाणाणं चत्तारि
चउद्दसपुख्वीसहस्सा अट्ठमा य सया उक्कोसिया चउद्दसपुवी संपया होत्था । उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स णव ओहिणाणि-सहस्सा उक्कोसिया ओहिणाणिसंपया होत्था । उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं जिणसहस्सा, वीसं वेउग्विय-सहस्सा छच्च सया उक्कोसिया जिणसंपया वेउव्वियसंपया य होत्था , बारस-विउलमइ-सहस्सा छच्च सया पण्णासा, बारस-वाइसहस्सा छच्च सया पण्णासा । उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसि भद्दाणं बावीसं अणुत्तरोववाइयाणं सहस्सा णव य सया उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयसंपया होत्था ।
१. उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं निच्चं वोसट्ठकाये चियत्तदेहे-जाव-अप्पाणं भावमाणस्स एक्कं वाससहस्सं विइक्कतं तओ णं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे फग्गुणबहुले तस्स णं फग्गुणबहुलस्स एक्कारसीपक्खेगं पुन्वण्हकालसमयंसि पुरिमतालस्स नयरस्स बहिया सगडमुहंसि उज्जाणंसि नग्गोहवरपायवस्स अहे अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणते- जाव -जाणमाणे पासमाणे विहरइ
॥ कप्प० सु० १९६ ।। २. आया० सु० २ अ० १५, सु० ७३३--७९२ ।
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उसहचरियं
उसहकाले सिद्धा
१२२ उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं समणसहस्सा सिद्धा,
चत्तालीसं अज्जियासहस्सा सिद्धा, सट्ठि अंतेवासिसहस्सा सिद्धा'।
उसहअणगाराणं वण्णओ
१२३ अरहओ णं उसभस्स बहवे अंतेवासी अणगारा भगवंतो अप्पेगइया मासपरियाया-जाव - उद्धं जाणू अहो सिरा झाणको
ट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति ।'
अंतकरभूमि
१२४ अरहओ णं उसभस्स दुविहा अंतकरभूमी होत्या तं जहा-१ जुगंतकरभूमी य, २ परियाअंतकरभूमी य ।
जुगंतकरभूमी- जाव - असंखेज्जाई पुरिसजुगाई । परियाअंतकरभूमी अंतोमुहुत्तपरियाए अंतमकासी ॥
जंबु० व० २, सू० ३१ ।
उसहस्स संघयणाई कुमारवासाईणिव्वाणं च
१२५ उसभेणं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसवयणे समचउरंस-संठाणसंठिए पंच धणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं होत्था ।
१२६ उसभेणं अरहा वीसं पुब्बसपसहस्साई कुमारवासमले वसित्ता ते टुं पुव्वसयसहस्साई महारज्जवासमज्मे वसित्ता तेसीई
पुव्वसयसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । उसभेणं अरहा एगं वासहस्सं छ उमत्य-परियायं पाउणिता एग पुग्वसयसहस्सं वास-सहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता एग पुवसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता चउरासीइं पुठ्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता'जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसी पक्खेणं दसहिं अणगारसहस्सेहिं सद्धिं संपरिबुडे अट्ठावय-सेलसिहरंसि चोद्दसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलियंक-निसण्णे पुम्वाहकाल-समयंसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमदूसमाए समाए एगूषणवउइईहिं पक्वेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कते - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
सक्काइदेविंद-कय-निव्वाणमहिमा
जं समयं च णं उसभे अरहा कोसलिए कालगए वोइकते समजार छिम-जाइ-जरा-परगबंधणे सिद्ध बुद्ध - जाव - सव्वदुक्खप्पहोणे तं समयं च णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणे चलिए । तएणं से सरके देविदे देवराया आसगं चलियं पासइ, पासिता ओहि पउंजइ, पउंजिता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आमोइत्ता एवं वयासी"परिणिव्वुए खलु जंबुद्दीचे दीवे भरहे वासे उसहे अरहा कोसलिए--तं जोयनेयं तीय-पाचुप्पण्णमगागयाणं सक्काणं देविंदाणं
१. कप्प० सु० १९७ । २. जहा उववाइए (सु. १४) सव्वो अणगारवण्णओ। ३. कप्प० सु० १९८ । ४. ठाणं अ० ५, उ० २, सु० ४३५ । सम० स० ५..
सु० ३ ।
५. सम० स० ६३, सु० १ । ६. सम० स० ८३, सु० ४ । ७. सम० स० ८४, सु० २ । ८. सम० स० ८९, सु० १ । कप्प. सु. १९९ ।
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२४
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे देवराईणं तित्थगराणं परिनिवाणमहिमं करेत्तए । तं गच्छामि णं अहं पि भगवओ तित्थगरस्स परिनिध्वाणमहिमं करेमि ति” कटु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहि तायत्तीसाए तायत्तीसएहिं चरहिं लोगपालेहिं - जाव - चउहिं चउरासीईहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि अण्णेहि य बहूहिं सोहम्मकप्प-वासीहि बेमाणिएहि देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे ताए उक्किट्ठाए- जावतिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झं मझेणं जेणेव अट्ठावयपध्वए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स सरीरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विमणे णिराणंदे अंसुपुण्ण-णयणे तित्थयरसरीरयं तिवखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे - जाव - पज्जुवासइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया उत्तरड्ढलोगाहिवई अठ्ठावीस-विमाण-सयसहस्साहिवई सूलपाणी वसहवाहणे
सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे-जाव-विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । १२८ तए णं तस्स ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणं चलइ,
तए णं से ईसाणे - जाव-देवराया आसणं चलियं पासइ, पासइत्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भगवं तित्थगरं ओहिणा आभोएइ, आभोइत्ता जहा सक्के नियगपरिवारेणं भाणेयवो - जाव - पज्जुवासइ ।
१२९ एवं सब्वे देविंदा - जाव - अच्चुए णियग-परिवारेणं आणेयव्वा,
एवं-जाव-भवणवासीणं वीस इंदा, वाणमंतराणं सोलस, जोइसियाणं दोण्णि, णियग-परिवारा यव्वा । १३० तए णं सक्के देविंदे देवराया ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिए देवे एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! णंदणवणाओ सरसाइं गोसीसवरचंदणकट्ठाई साहरह, साहरित्ता तओ चिइगाओ रएह१ एगं भगवओ तित्थगरस्स, २ एगं गणहराणं, ३ एगं अवसेसाणं अणगाराणं । तए णं ते भवणवइ- जाव -वेमाणिया देवा गंदणवणाओ सरसाइं गोसीस-वर-चंदणकट्ठाई साहरंति, साहरित्ता तओ चिइगाओ
रएंति, १ एग भगवओ तित्थगरस्स, २ एगं गणहराणं, ३ एग अवसेसाणं अणगाराणं । १३१ तए णं से सक्के देविंदे देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! खीरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह।" तए णं ते आभिओगा देवा खीरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरंति । तए णं से सक्के देविदे देवराया तित्थगरसरीरगं खीरोदगेणं पहाणेइ, हाणित्ता सरसेणं गोसीस-वर-चंदणेणं अणुलिपइ, अणुलिंपित्ता हंसलक्खणं पडसाडयं णियंसई, णियंसइत्ता सव्वालंकार-विभूसियं करेइ । तए णं ते भवणवइ - जाव - बेमाणिया गणहर-सरीरगाइं अणगार-सरीरगाई पि खीरोदगेणं व्हावेति, पहावित्ता सरसेणं गोसीस
वर-चंदणेणं अणुलिपंति अणुलिंपित्ता अहयाई दिव्वाइं देवदूसजुयलाई णियंसेंति, णियंसित्ता सव्वालंकारविभूसियाई करेंति । १३२ तए णं से सक्के देविंदे देवराया ते बहवे भवणवइ - जाव - वेमाणिए देवे एवं बयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! ईहामिग-उसभ-तुरय- जाव -वणलय-भत्तिचित्ताओ तओ सिवियाओ विउव्वह, "१ एगं भगवओ तित्थगरस्स, २ एगं गणहराणं, ३ एग अवसेसाणं अणगाराणं ।" तए णं ते बहवे भवणवई-जाव-वेमाणिया तओ सिवियाओ विउब्वंति१ एगं भगवओ तित्थगरस्स, २ एगं गणहराणं, ३ एगं अवसेसाणं अणगाराणं ।।
१३३ तए णं से सक्के देविंदे देवराया विमणे णिराणंदे अंसुपुण्ण-जयणे भगवओ तित्थगरस्स विणट्ट-जम्म-जरा-मरणस्स सरीरगं
सीयं आरुहेइ, आरुहिता चिइगाए ठवेइ । तए णं ते बहवे भवणवइ-जाव -वेमाणिया देवा गणहराणं, अणगाराण य विणट्ठ-जम्म-जरा-मरणाणं सरीरगाइं सीयं
आरहेंति, आरुहित्ता चिइगाए ठवेंति । १३४ तए णं से सक्के देविंदे देवराया अग्गिकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचिइगाए- जाच -अणगारचिइगाए अगणिकायं विउव्वह, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं
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उसहचरियं
पच्चप्पिणह।"
तए णं ते अग्गिकुमारा देवा विमणा णिराणंबा असुपुण्णणयणा तित्थगरचिइगाए - जाव - अणगारचिइगाए अगणिकायं विउठवंति। १३५ तए णं से सक्के देविंदे देवराया बाउकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचिइगाए-जाव -अणगारचिइगाए अ वाउक्कायं विउव्वह, विउव्वहइत्ता अगणिकार्य उज्जालेह, तित्थगरसरीरगं गणहरसरीरगाइं अणगारसरीरगाइं च झामेह ।" तए णं ते वाउकुमारा देवा विमणा णिराणंदा असुपृष्ण-णयणा तित्थगरचिइगाए - जाव - विउध्वंति अगणिकायं उज्जालेंति
तित्थगरसरीरगं - जाव - अणगारसरीरगाणि अ झार्मेति । १३६ तए णं से सक्के देविदे देवराया ते बहवे भवणवई - जाव - वेमाणिए देवे एवं वयासी -
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! तित्थगरचिइगाए - जाव - अणगारचिइगाए अगुरुतुरुक्कघयमधं च कुंभग्गसो अ भारग्गसो अ साहरह ।”
तए णं ते भवणवइ-जाव -तित्थगर-जाव-भारग्गसो अ साहरंति । १३७ तए णं से सक्के देविंदे देवराया मेहकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी -
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिा ! तित्थयरचिइग-जाव-अणगारचिइगं च खीरोदगेणं णिव्वावेह ।"
तए णं ते मेहकुमारा देवा तित्थगरचिइगं - जाव - णिव्वावेति । १३८ तए णं से सक्के देविदे देवराया भगवओ तित्थगरस्स उवरिल्लं दाहिणं सकहं गेण्हइ, ईसाणे देविदे देवराया उवरिल्लं
वामं सकहं गेण्हइ, चमरे असुरिंदे असुरराया हिडिल्लं दाहिणं सकहं गेण्हइ, बली वइरोअणिंदे बहरोअणराया हिडिल्लं वामं सकहं गेण्हइ, अवसेसा भवणबइ - जाव - वैमाणिआ देवा जहारिहं अवसेसाई अंगमंगाई, केई जिणभत्तीए केई
जीअमेअं ति कटु केइ धम्मो त्ति कटु गेण्हंति । १३९ तए णं से सक्के देविदे देवराया बहवे भवणवइ - जाव - वेमाणिए देवे जहारिहं एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिा ! सन्वरयणामए महइमहालए तओ चेइअथूभे करेह, एगं भगवओ तित्थगरस्स चिइगाए, एगं गणहरचिइगाए, एगं अवसेसाणं अणगाराणं चिइगाए।" तए णं ते बहवे - जाव - करेंति ।
१४० तए णं ते बहवे भवणवइ -जाव- वेमाणिआ देवा तित्थगरस्स परिणिव्वाणमहिमं करेंति, करित्ता जेणेव नंदीसरवरे दीवे तेणेव
उवागच्छन्ति ।
१४१ तए णं से सक्के देविंदे देवराया पुरच्छिमिल्ले अंजणगपव्वए अट्ठाहिरं महामहिमं करेति ।
तए णं सक्कस्स देविंदस्स चत्तारि लोगपाला चउसु दहिमुहगपव्वएसु अढाहियं महामहिमं करेंति, ईसाणे देविदे देवराया उत्तरिल्ले अंजणगे अट्ठाहिअं तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहगेसु अट्टाहिअं चमरो अ दाहिणिल्ले अंजणगे तस्स लोगपाला दहिमुहगपव्वएसु बली पच्चथिमिल्ले अंजणगे तस्स लोगपाला दहिमुहगेसु । तए णं ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर- जाव -अट्ठाहिआओ महामहिमाओ करेंति, करित्ता जेणेव साइं साइं विमाणाई, जेणेव साइं साई भवणाई, जेणेव साओ साओ सभाओ सुहम्माओ, जेणेव सगा सगा माणवगा चेइअखंभा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिण-सकहाओ पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अग्गेहि वरेहि गंधेहि अ मल्लेहि अ अच्चेंति, अच्चित्ता विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरति ।
जंबु० व० २ सु० ॥ ३३ ॥
। इइ उसह-जिण-चरियं ।
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३. मल्ली-चरियं
महब्बले राया तस्स य छ बालवयंसा
१४२ तेगं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्यिमेणं, निसढस्स वासहर-पव्वयस्स
उत्तरेणं, सीओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स बक्खार-पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिम-लवणसमुदस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नाम विजए पण्णत्ते । तत्थ णं सलिलावई विजए वीयसोगा नाम रायहाणी नव-जोयण-वित्थिण्णा - जाव - पच्चक्खं देवलोगभूया। तीसे गं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसौभाए इंदकुंभे नाम उज्जाणे। तत्थ णं वीयसोगाए रापहाणीए बले नाम राया। तस्स धारिणी-पामोक्खं देवी-सहस्सं ओरोहे होत्था । तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ सोहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा - जाव - महब्बले दारए जाए उम्मुक्क-बालभावे-जाव-भोग-समत्थे । तए णं तं महब्बलं अम्मा-
पिरो सरिसियाणं कमलसिरि-पामोक्खाणं पंचण्हं रायवर-कन्ना-सयाणं एग-दिवसेणं पाणिं गेण्हावेति । पंच पासाय-सया पंच-सओ दाओ - जाव - माणुस्सए काम-भोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ । १४३ तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। बलो वि निग्गओ। धम्म सोच्चा निसम्म
हटुतुटठे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी" सद्दहामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं - जाव - नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेमि । तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि ।" 'अहासुहं देवाणुप्पिया' ! - जाव - एक्कारसंग-वी। बहूणि वासाणि परियाओ। जेणेव चारु-पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
मासिएणं भत्तणं सिद्धे । १४४ तए णं सा कमलप्तिरी अण्णया कयाइ सोहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा - जाव - बलभद्दो कुमारो जाओ। जुवराया यावि
होत्था । १४५ तस्स णं महब्बलस्स रण्णो इमे छ-प्पिय-बाल-बयंसगा रायाणो होत्था, तं जहा -१ अयले, २ धरणे, ३ पूरणे, ४ वसू
५ वेसमणे ६ अभिचंदे-सह-जायया, सह-वड्ढियया, सह-पंसुकीलियया, सह-दार-दरिसी, अण्णमण्णमणुरत्तया, अण्णमण्णमणुव्वयया, अण्णनण्णच्छंदाणुवत्तया, अण्णमण्ण-हियइच्छिय-कारया, अण्णमण्णेसु रज्जेसु किच्चाई करणिज्जाई पच्चणुभवमाणा विहरंति । तए णं तेति रायाणं अण्णया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं, सण्णिसण्णाणं, सण्णिविट्ठाणं इमेयारूवे मिहो-कहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था--'जण्णं देवाणुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पवज्जा वा विदेस-गमणं वा समुप्पज्जइ, तणं अम्महिं एगयओ समेच्चा नित्थरियन्वे' त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयभट्ठ पडिसुणेति ।
महब्बलादीणं पव्वज्जा
१४६ तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। महब्बाले णं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुटठे ।
जं नवरं - छ-प्पिय-बाल-वयंसए आपुच्छामि, बलभदं च कुमारं रज्ज ठावेमि, - जाव - ते छ-प्पिय-बालवयंसए आपुच्छइ । तए णं ते छ-प्पिय-बाल-वयंसगा महब्बलं रायं एवं वयासी--'जइ णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे पव्वयह, अम्हं के अण्णे आहारे वा आलंबे वा? अम्हे वि य णं पव्वयामो । तए णं से महब्बले राया से छ-प्पिय-बाल-वयंसए एवं वयासी'जइ णं तुब्भे मए सद्धि पव्वयह, तं गच्छह, जेट्ट-पुत्ते सएहि-सएहिं रज्जेहिं ठावेह, पुरिससहस्स-वाहिणीओ सीयाओ दुरुढा समाणा मम अंतियं पाउन्भवह।' तेवि तहेब पाउन्भवति । तए णं से महब्बले राया छ-प्पिय-बाल-वयंसए पाउठभूए पासइ, पासित्ता हट्ठ-तुट्टे कोडुबिय-पुरिसे सद्दावेइ- जाव-बलभद्दस्स अभिसेओ । - जाव - बलभदं राय आपुच्छइ । तए णं से महब्बले हिं बाल-वयंसहिं सद्धि महया इड्ढीए पव्वइए । एक्कारसंगावी। बहूहि चउत्थ-छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमास-खमणेहि अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।
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मल्ली-चरियं
महब्बलस्स तवविसये माया १४७ तए णं तेसि महब्बल-पामोक्खाणं सत्तण्हं अणगाराणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूबे मिहो-कहा-समुल्लावे समु.
प्पज्जित्था-'जण्णं अम्हं देवाणुप्पिया ! एगे तवो-कम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, तण्णं अम्हेहिं सवहिं तवो-कम्म उवसंपज्जिताणं विहरित्तए' त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमढें पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता बहि चउत्थ-छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमास-खमणेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरति । तए णं से महब्बले अणगारे इमेणं कारगणं इत्थि-नाम-गोयं कम्मं नित्तिसु-जइ णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा चउत्थं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे छठें उवसंपज्जिताणं विहरइ । जइ णं ते महब्बल-वज्जा छ अणगारा छठें उवसंपज्जित्ताणं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे अदम उवसंपज्जित्ताणं बिहरइ । एवं-अह अट्ठमं तो दसमं, अह दसमं तो दुवालसमं ।
तित्थयरनामकम्मनिव्वत्तणं १४८ इमेहि य णं वीसाए णं कारणेहि आसेविय-बहुलीकएहिं तित्थयरनामगोयं कम्मं निव्वत्तिंसु, तं जहा
संगहणी-गाहा अरहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुय-तवस्सीसु । वच्छल्लया य तेसि, अभिक्ख नाणोवओगे य ॥१॥ दसण-विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो। खणलवतवच्चियाए, वेयावच्चे समाहीए ॥ २ ॥ अपुब्वनाणगहणे, सुयभत्तो पवयण-पहावणया । एएहि कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ सो उ ॥३॥
महब्बलादीणं विविहतवचरणं १४९ तए णं ते महब्बल-पामोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खु-पडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरंति-जाव-एगराइयं । तए णं ते
महब्बल-पामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं 'सीहनिक्कीलियं तवो-कम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरंति । तए गं ते महब्बल-पामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवो-कम्मं दोहि संवच्छरेहि अट्टवीसाए अहो-रत्तेहिं अहा-सुत्तं - जाव - आणाए आराहेत्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी'इच्छामि णं भंते ! महालयं सीहनिक्कीलियं तवो-कम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।"तए णं ते महब्बल-पामोक्खा सत्त अणगारा महालयं सीहनिक्कीलियं अहा-सुत्तं-जाव- आराहिता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति नमसंति, वंदिता नमंसित्ता बहूणि चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमास-खमणेहि अप्पाणं भावमाणा विहरति ।
तए णं ते महब्बल-पामोक्खा सत्त अणगारा तेणं उरालेणं तवो-कम्मेणं सुक्का, भुक्खा, निम्मंसा, किडिकिडियाभूया, अट्टिचम्मावणद्धा, किसा, धमणिसंतया जाया या वि होत्था । जहा खंदओ नवरं-थेरे आपुच्छित्ता चारु-पव्वयं सणियं सणियं दुरुहंति - जाव - दो-मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता,सवीसं भत्त-सयं अणसणाए छएत्ता, चतुरासीई वास-सय-सहस्साई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, चुलसीइं पुन्व-सय-सहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता जयंते विमाणे देवत्ताए उबवण्णा। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं महब्बल-वज्जार्ण छण्हं देवाणं देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स य पडिपुण्णाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई ।
महब्बलादीणं पच्चायाति
१५० तए णं ते महब्बल-बज्जा छप्पि देवा जयंताओ देवलोगाओ आउ-क्खएणं, भव-क्खएणं, ठिति -क्खएणं अणंतरं चयं
चइत्ता, इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्ध-पिइ-माइ-वंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहा१ पडिबुद्धो इक्खागराया, २ चंदच्छाए अंगराया, ३ संखे कासिराया, ४ रुप्पी कुणालाहिवई, ५ अदोणसत्तू कुरुराया, ६ जियसत्तू पंचालाहिवई ।
१. खुड्डागसीहनिक्कीलियस्स महासीहनिक्कीलियस्स य तवस्स वण्णओ चरणाणुओगस्स तवायारे पेक्खियब्वो ।
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मल्लिस्स गब्भाववकमणं
१५१ लए णं से महत्व देवेति नागेहि समय उपय-द्वा-गए महे, सोमासु दिसासु वितिमिरातु विसुद्धा जइएम सडणे, पयाहि - णाणुकूलंसि भूमिसप्पिसि मारुयंसि पवायंसि, निष्फण्ण-सस्स-मेइणीयंसि कालंसि, पमुइय-पक्कीलिएसु जणवएसु अद्धरत्त-काल-समयंसि, अस्सिणी - नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, जे से हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे, तस्स णं फग्गुण-सुद्धस्स त्यो पक्खेणं जयंताओ विमाणाओ बत्तीसं सागरोवमठियाओ अनंतरं चयं चइत्ता, इहेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, मिहिलाए रायहानीए, कुंभर रण्गो पभावतीए देवीए कुण्डिसि आहारवस्तीए, भववस्तीए, सरीरवतीए गन्नताए वक्कते ।
१५२ नं वचनं महत्वले देवे पभावतीए देवीए कुछसि गम्भताए बक्कले, तं रयण व णं सा पभावती देवी चोट्स महामुनि पालिताणं परिवृद्धा भतार कहणं । सुमिणपागच्छा जाव विपुलाई भोगभोगाई भुजमाणी विहरद
१५३ लए तो भावईए देवीए तिन्हं मासाणं बहु-परिपुष्याणं इमेवावे. डोले पाउवभूए-बनाओ
ताओ अम्माओ जाओ पं] जल-वलय-भावजयभूषणं दसबकोणं मल्लेणं अत्य-पच्चत्यंसि सर्वाभिज्नंसि सणसणाओ, निवण्णाओ व विहति एवं च महं सिरियाम-गंड पाहल-मल्लिय-चंपग-अलग प्राग-नाम-मरुयग-दमणच अनोजसोज्जव-परं परम-सुह-कार्स, दरिसणिज्जं महया गंधद्धण मुयंतं अग्धायमाणीओ डोहलं विर्णेति' । तए णं तीसे पभावईए इमं एपारूवं डोहलं पाउब्भूयं पासिता अहा-सणिहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जल-थलय-भासर-प्पभूयं दसद्ध-वण्णं मल्लं कुंभग्गसो य भारग्गसो य कुंभस्स रण्णो भवणंसि साहति, एगं चणं महं सिरि-दाम-गंडं जाव गंधद्धणि सुयंतं उवर्णेति । तए णं सा पभावई देवी जलथलय भासर-प्पभूएणं, दसद्ध-वण्णेणं मल्लेणं दोहलं विणेइ । तए णं सा पभावई देवी पसत्थ- दोहला, सम्माणिय-दोहला, विगोव-दोहला, संगुण-दोहला संपत दोहला बिउलाई मागुस्साई भोगभोगाई पञ्चगुभवमाणी विहरद ।
मल्ली - तित्थयर-जम्मणं
१५४ तए णं सा पभावई देवी नवग्रहं मासाणं बहु-पडिपुण्णाणं अद्धद्रुमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं, जे से हेमंताणं पढने मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे, तस्स णं एक्कारसीए पुव्वरतावरत्त-काल- समयंसि अस्सिणी- नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, उच्चठ्ठाणगए जब पय-यश्की लिए जणवएम आरोयारोप एणवीसइमं तित्ववरं पयाया ।
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१५५ लेणं काले लेणं समएणं अहेलोग इत्यन्याओ अनु दिसाकुमारी महत्तरियान जहाउसहरुस जम्मगुस्सवं, नवरं मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलाओ संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा |
चम्मकाणुओगे पचे
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१५६ तथा णं कुंभए राया बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर जोइस बेमाणिएहिं देवहिं तित्थयर- जम्मणाभिसेय-महिमाए कयाए समाणीए, पलूस-काल-समति नगर-गुलिए सहावे, जावकम्मं जाय नामकरण 'जम्हा में अहं इमीले दारियाए माऊए मल्ल-सयज्वंसि डोले चिनीए से होउ णं अहं दारिया नाणं मल्ली ।
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१५७ तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव सुहंसुहेणं परिवढई ।
तए णं सा महली विदेह-राम-वर-कमा उम्मुक्क-बालभावा विष्णव-परिणय-मेला जोम्बगगमणुपत्ता येग व जोन्गंग लाव- उक्किदा उनिक सरीरा जावा यावि होत्या ।
मल्लिणा मोहणघर - निम्माणं
१५८ तसा माली देवास-सय-जावा ते छप्पिय-रायागो विउले ओहिणा आभोमाणी आभोएमाणी विहरह, संजहा परिवृद्धि स्वागरावं बंदच्छायें अंगरस्थं संवं कासिरामं राप्पि कुणालाहिवद, अदोणसतुं कुरुरायं जियस पंचालाहिवई ।
१५९ लए सा मल्ली कोदिय-रिले सहावे सहावेता एवं वयासी
'तुम्भेणं देवागुपिया! असोगणियाए एवं महं मोहण-धरं करेह अग-संभ-सय-समिवि । तस्स णं मोहण-परस्त बहु
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मल्ली-चरिय
२९ मा-देसभाए छ गम्भ-धरए करेह । तेसि णं गम्भ-घरगाणं बहु-मज्ज्ञा-देस-भाए जाल-घरयं करेह । तस्स णं जाल
घरयस्स बहु-मजा-देस-भाए मणि-पेढियं करेह । एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।' तेवि तहेव पच्चप्पिणंति । १६० तए णं सा मल्ली मणिपेढियाए उरि अप्पणो सरिसियं, सरि-त्तयं, सरि-व्वयं, सरिस-लावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयं,
कणगामई, मत्थय-च्छिटुं-पउमुप्पल-पिहाणं पडिमं करेइ, करेत्ता जं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आहारेइ, तओ मणुण्णाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ कल्लाल्लि एगमेगं पिंडं गहाय तीसे कणगामईए, मत्थय-छिड्डाए, पउमुप्पलपिहाणाए पडिमाए मत्थयंसि पक्खिवमाणी-पक्खिवमाणी विहरइ । तए णं तीसे कणगामईए, मत्थय-छिड्डाए पउमुष्पलपिहाणाए पडिमाए एगमेगंसि पिंडे पक्खिप्पमाणे-पक्खिप्पमाणे तओ गंधे पाउन्भवेइ। से जहा णामए - अहि-मडे इ वा, गो-मडे इ वा, सुणह-मडे इ वा, मज्जार-मडे इ वा, मणुस्स-मडे इवा, महिस-मडे इ वा, मूसग-मडे इ वा, आस-मडे इ वा, हत्यि-मडे इ वा, सोह-मडे इवा, बग्घ-मडे इ वा, विग-मडे इ वा, दीबिग-मडे इ वा, । मय-कुहिय-विणट्ठ-दुरभिवावष्ण-दुब्भिगंधे किमि-जालाउल-संसत्ते असुइ-विलीण-विगय-बीभत्स-दरिसणिज्जे भवेयारूवे सिया ? नो इणठे समठे । एत्तो अणिद्वैतराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव ।
पडिबुद्धिरण्णो पउमावईए देवीए नाग-जण्णए १६१ तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसला नाम जणवए । तत्थ णं सागेए नाम नयरे । तस्स णं उत्तरपुरथिमे दिसी-भाए, एत्थ णं
महेगे नाग-घरए होत्था-दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सण्णिहिय-पाडिहेरे । तत्थ णं सागेए नयरे पडिबुद्धी नाम इक्खागराया
परिवसइ । पउमावई देवी । सुबुद्धी अमच्चे साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-नीति-सुपउत्त-नय-विहण्णू विहरई । १६२ तए णं पउमावईए देवीए अण्णया कयाइ नाग-जण्णए यावि होत्था ।।
तए णं सा पउमावई देवी नाग-जण्णमुवट्ठियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी राया तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दस-णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी“एवं खलु सामी ! मम कल्लं नाग-जण्णए भविस्सइ । तं इच्छामि णं सामी ! तुम्भेहिं अन्भणुण्णाया समाणी नाग-जण्णयं गमित्तए । तुम्भे वि णं सामी! मम नाग-जण्णयंसि समोसरह । तए णं पडिबुद्धी पउमावईए एयमट्ठ पडिसुणेइ । तए णं पउमावई पडिबुद्धिणा रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी, हट्ठ-तुट्ठा कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम कल्लं नाग-जष्णं भविस्सइ, तं तुम्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वदाह-"एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं नाग-जण्णए भविस्सइ, तं तुन्भे गं देवाणुप्पिया ! जल-थलय-भासरप्पभूयं दसद्ध-वण्णं मल्लं नाग-घरयंसि साहरह, एग च णं महं सिरि-दाम-गडं उवणेह।" तए णं जल-थलय-भासर-प्पभूएणं दसद्ध-वष्णेणं मल्लेणं नाणाविह-भत्ति-सुविरइयं, हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवायमयणसाल-कोइल-कुलोववेयं, ईहामिय-उसभ-तुरय-नर-मगर-विहग-वालग-किंनर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं, महग्धं, महरिहं, विउलं, पुप्फ-मंडवं विरएह । तस्स णं बहु-मा-देस-भाए एगं महं सिरि-दाम-गंडं - जाव - गंधद्धणि मुयंत उल्लोयंसि ओलएह, पउमावई देविं पडिवालेमाणा चिट्ठह। तए णं ते कोडुबिया - जाव - पउमावति देवि पडिवालेमाणा
चिट्ठति । १६३ तए णं सा पउमावई देवी कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए, - जाव - उट्ठियम्मि सूरे, सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते,
कोडुबिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सागेयं नयरं सबिभतर-बाहिरियं आसिय-सम्मज्जि-ओवलितं - जाव - गंधवट्टिभूयं करेह, कारवह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' ते वि तहेव पच्चप्पिणंति । तए णं सा पउमावई देवी दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहु-करण-जुत्तं - जाव - धम्मियं जाण-प्पवरं उवट्ठवेह ।" ते वि तहेव उवट्ठति । १६४ तए णं सा पउमावई देवी अंतो अंतेउरंसि व्हाया - जाव - पम्मियं जाणं दुरूढा ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तए णं सा पउमावई देवी नियग-परियाल-संपरिवुडा सागेयं नयरं मज्मज्झणं निज्जाइ, जेणेव पोक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पोक्खरणिं ओगाहति, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ - जाव - परम-सुइभूया उल्ल-पड-साडया, जाई तत्थ उप्पलाई- जाव - ताई गेण्हइ, जेणेव नाग-घरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं पउमावईए देवीए दासचेडीओ बहूओ पुष्फपडलगहत्थगयाओ, धूवकडच्छुय-हत्थगयाओ पिट्ठओ समणुगच्छंति । तए णं पउमावई देवी सविड्ढीए जेणेव नाग-घरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाग-घरं अणुप्पविसइ, लोमहत्थगं
परामुसइ - जाव - धूवं डहइ, पडिबुद्धिं पडिवालेमाणी-पडिबालेमाणी चिठ्ठइ । १६५ तए णं से पडिबुद्धी हाए हत्थि-खंध-वर-गए स-कोरेंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, सेय-वर-चामराहिं विइज्जमाणे
हय-गय-रह-पवरजोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे, महया भड-चडगर-रह-पहकर-बिंद-परिक्खित्ते सागेयं नगरं मज्झांमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव नाग-घरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थि-खंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता आलोए पणामं करेइ, करेत्ता पुप्फ-मंडवं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पासइ तं एगं महं सिरि-दाम-गडं ।
मल्लीए सिरिदामगंडस्स पसंसा १६६ तए णं पडिबुद्धी तं सिरि-दाम-गंडं सुचिरं कालं निरिक्खइ । तसि सिरि-दाम-गडंसि जाय-विम्हए सुबुद्धिं अमच्च एवं वयासी
'तुमं देवाणुप्पिया ! मम दोच्चेणं बहुणि गामागर - जाव - सण्णिवेसाइं आहिंडसि, बहूण य राईसर-जाव-सत्थवाह-पभिईणं गिहाई अणुप्पविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिंचि एरिसए सिरि-दाम-गंडे दिट्ठ-पुव्वे, जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरि-दाम-गंडे ?' तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धि रायं एवं वयासी'एवं खलु सामी ! अहं अण्णया कयाइ तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणिं गए । तत्थ णं मए कुंभयस्स रणो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए संबच्छर-पडिलेहणगंसि दिव्वे सिरि-दाम-गडे विट्ठ-पुव्वे । तस्स णं सिरि-दामनगंडस्स इमे पउमावईए देवीए सिरि-दाम-गंडे सय-सहस्सइमं पि कलं न अग्घइ ।'
मल्ली-रूव-पसंसा १६७ तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धिं अमच्च एवं वयासी--
'केरिसिया णं देवाणुप्पिया.! मल्ली विदेहराय-वर-कन्ना, जस्स णं संवच्छरपडिलहणयंसि सिरि-दाम-गंडरस पउमावईए देवीए सिरि-दाम-गंडे सय-सहस्सइमंपि कलं न अग्घइ ?' तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं इक्खागरायं एवं वयासी'एवं खलु सामी! मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना सुपइट्ठिय-कुम्मुण्णय-चारुचरणा - जाव-पडिरूवा ।' तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयम? सोच्चा, निसम्म सिरि-दाम-गंड-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिया ! मिहिलं रायहाणिं । तत्थ णं कुंभगस्स रण्णो धूयं पभावईए अत्तयं मल्लि विदेह-रायवर-कन्नं मम भारियत्ताए वरेहि जइ वि य गं सा सयं रज्ज-सुंका ।
पडिबुद्धि-रण्णो दूयस्स मिहिलागमणं १६८ तए णं से दूए पडिबुद्धिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे, हट्टतुट्टै पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव चाउ-घंटे आस-रहे
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउ-वंट-आस-रहं पडिकप्पावेइ, पडिकप्पावेत्ता दुरुढे हय-गय-रह-पवर-जोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया भड-चडगरेणं साएयाओ निग्गच्छइ , निग्गच्छित्ता जेणेव विदेह-जणवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
अरहण्णग-वाणियगस्स समुद्द-जत्ता १६९ तेणं कालेणं तेणं समएणं अंग-नाम जणवए होत्था । तत्थ णं चंपा नाम नयरी होत्था । तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए
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मल्ली - चरियं
अंगराया होत्या । तत्य णं बंचाए नपरीए अरहष्णव-यामोक्खा यहवे संजत्ता-नावा वाणियमा परिवर्तति-अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया । तए गं से अरहम्ण समणोवास या विहोत्या अहिगयजीवाजीये- यणओ ।
१७० तए णं तेसि अरहण्णग-पामोक्खाणं संजता नावा- वाणियगाणं अष्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो- कहा- समुल्लावे समुपज्जत्वा
'सेयं खलु अम्हं गणिमंच, धरिमं च मेज्नं च पारिन्छन्नं च मंडगं गृहाय लवणसमुद्दे पोयवहगं ओगाहिए" ति कट्टु अणमणस्स एयम परिसुति पडिसुगेता गणिमं च परिमं च मे च पारिष्कृति हा सगडी- सागडयं सज्जेंति, सज्जेत्ता गणिमस्स, धरिमस्स, मेज्जस्स, पारिच्छेज्जस्स य भंडगस्स सगडी-सागडियं भरेंति, भरेत्ता सोहसि तिहि करण- नक्खत्त-मुहुत्तंसि विडलं असणं, पाणं, खाइमं साइमं, उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि- परिजगं भोयणवेलाए भुंजार्वेति, भुंजावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि- परिजणं आपुच्छंति, आपुच्छित्ता सगडीसागडियं जोयंति, जोइत्ता चंपाए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव गंभीरए पोय-पट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सगडी-सागडियं मोयंति, पोय-वहणं सज्जैति, सज्जेत्ता य गणिमस्स धरिमस्स मेज्जस्स पारिच्छेज्जरस य भंडगस्स भरेंति, तंदुलाण य, समियस्स य, तेलस्स य, घयस्स य, गुलस्स य, गोरसस्स य, उदगस्स य, भायणाण य, ओसहाण य, भेसज्जाण य, तणस्स य, कटुस्स य, आवरणाण य, पहरणाण य अण्णेसि च बहूणं पोय-वहण पाउग्गाणं दव्वाणं पोय-वहणं भरेंति ।
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सोहणंसि तिहि-करण-नवत्त-महसि विडलं असणं पागं साइमं साइमं उवस्वडावेति वक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियगसण-संबंधि- परियणं भोयणवेलाए भुंजावेंति, भुंजावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि- परियणं आपुच्छंति, जेणेव पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति ।
१७१ तए णं तेसि अरहण्णग-पामोक्खाणं बहूणं संजत्ता - नावा- वाणियगाणं मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणा ताहि इट्ठा, कंताहिं, पियाहिं, मणुष्णाहिं, मणामाहिं, ओरालाहिं, वग्गूहिं अभिनंदता य अभिसंथुणमाणा य एवं वयासी'अज्ज ! ताय ! भाय ! माउल ! भाइणेज्ज ! भगवया समुद्देणं अभिरक्खिज्जमाणा अभिरक्खिज्जमाणा चिरं जीवह, भच में पुणरबि लट्ट कवकज्ने अहम निवगं परं हव्यमागए पासामो' ति कतु ताहिं सोमाहि नाहिं वोहाहि विवासाहि पाहि बिहिं निविखमाणा महत्तमेतं संचिट्ठेति ।
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तओ समाणिए पुष्क-बलि-कम्मे, दिनेषु सरस-रत- बंगबद्दचंगुलि-तले अणुसंसि पूयंसि पूइएस समुद्द-वाए संसारिया बलवासु असिए लिए वो पहु-वाइए तूरेम, जस्सु सव्वसउणे, गहिएम रायवरसासणे, महया उनिक-सोहना-बोलकलकल रवेण पक्लुभिय-महासमुह-रव-भूयं पिव मेइणि करेमाणा, एगदिसि एगाभिमुहा अरहष्णवपामोक्ला संजत्ता नावा- वाणियगा नावाए दुरूढा । तओ पुस्स-माणवो वक्कमुदाहु-- 'हं भो ! सव्वेसिमेव मे अत्थसिद्धि, उडिवाई कल्लागाई, परिहवाई सम्बन्याबाई जुत्तो पुसो, बिजय महतो अर्थ देसकालो' ।
तओ पुसमाणवेणं वक्कमुदाहिए हट्ठतुडा कण्णधार - कुच्छिधार गब्भिज्ज-संजत्ता-नावा- वाणियगा-वावारिंसु तं नावं पुष्णुच्छंगं पुग्ण-मुहिं बंधेहितो मुंचति ।
तए णं सा नावा विमुक्क-बंधणा पवण-बल-समाहया ऊसिय-सिया, वितत पक्खा इव गरुल- जुवई, गंगा-सलिल - तिक्ख-सीय वेगेहिं संभमाणो उम्मी-तरंग-माना सहस्साई समइवाणी समइण्टमाणी कइवहिं अहोरतेहि लवण समुहं अणेगा जोयण-सयाई ओगाढा ।
तालपिसायादीणं उप्पायाणं पाउभावो
१७२ लए सि अरणग-यामोक्ताणं संजता यावा वाणिवाणं लवण समुई अगेगाई जोन-सवाई गाहाणं समाजानं बहुई उप्पादय साई पाउन्भूयाई, तं जहा
अकाले गजिए, अकाले बिज्जुए, अकाले धणियस अग्भिवणं-अग्भिवणं आगासे देवयाओ नवंति। तए गं से अरहणणवज्जा संजत्ता - नावा- वाणियगा एगं च णं महं ताल-पिसायं पासंति
ताल गंध, दिवंगयाह वाहाहि फूट-सिरं भमर-निगर-बरमासरासि-महित-काल, भरिय मेह-बणं, तुप्प-हं, फालसरिस-जीहं,
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे लंबोळं, धवलवट्ट-असिलिट्ठ-तिक्ख-थिर-पीण-कुडिल-दाढोवगूढ-बयणं, विकोसिय-धारासिजुयल-समसरिस-तणुय-चंचल-गलंतरसलोल-चवल-फुरफुरत-निल्लालियग्गजीहं, अवयत्थिय-महल्ल-विगय-बीभच्छ-लालपगलंत-रत्ततालुयं, हिंगुलय-सगब्भ-कंदर-बिलं व अंजण-गिरिस्स अग्गिज्जालुग्गिलंत-वयणं, आऊसिय-अक्खचम्म-उइट्ठ-गंडदेसं, चीण-चिमिढ-वंक-भग्ग-नासं,रोसागय-धमधर्मत-मारुय-निठुर-खर-फरस-झुसिरं ओभुग्ग-नासियपुडं-धाडुब्भड-रइय-भीसण-मुहं, उद्ध-मुह-कण्ण-सक्कुलियं-महंत-विगय-लोम-संखालगलंबंत-चलिय-कण्णं, पिंगल-दिप्पत-लोयणं, भिउडि-तडि-निडालं, नर-सिर-माल-परिणचिधं, विचित्तगोणस-सुबद्धपरिकरं, अवहोलंत फुप्फुयायंत-सप्प-विच्छ्य-गोधुंदुर-नउल-सरड-विरइय-विचित्त-वेयच्छ-मालियागं, भोग-कूर-कण्हसप्प-धमधमेत-लंबंत-कष्णपूर, मज्जार-सियाल-लइय-खंघ, दित्त-घुघुयंत-घूय-कय-भुंभर-सिरं, घंटारवेणं भीम-भयंकरं, कायर-जण-हियय-फोडणं दित्तं अट्ट-हासं विणिम्मयंत, वसा-रुहिर-पूय-मंस-मल-मलिण-पोच्चड-तणुं, उत्तासणयं, विसाल-वच्छं, पेच्छंताभिन्न-नख-मुह-नयण-कण्ण-वरवग्ध-चित्त-कत्ती-णियंसणं, सरस-रुहिर-गयचम्म-वियय-ऊसविय-बाहुजुयलं, ताहि य खर-फरुस-असिणिद्ध-दित्त-अणि?-असुभअप्पिय-अकंत-वग्गूहि य तज्जयंतंतं तालपिसाय-रूवं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता भीया, तत्था, तसिया, उव्विग्गा, संजायभया अण्णमण्णस्स कार्य समतुरंगेमाणा-समतुरंगेमाणा, बहूणं इंदाण य, खंदाण य, रुदाण य, सिवाण य, वेसमणाण य, नागाण य, भूयाण य, जक्खाण य अज्ज-कोट्टकिरियाण य बहुणि उवाइयसयाणि उवाइमाणा चिट्ठति ।
१७३ तए णं से अरहण्णए समणोवासए तं दिव्वं पिसाय-रूवं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता अभीए, अतत्थे, अचलिए, असंभंते,
अणाउले, अणुम्विग्गे, अभिण्ण-मुह-राग-नयण-वण्णे, अदीण-विमण-माणसे, पोय-वहणस्स एगदेसंसि वत्यंतेणं भूमि पमज्जइ, पमज्जिता ठाणं ठाइ, ठाइत्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासि'नमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं - जाव - सिद्धि-गइ-नामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । जइ णं हं एत्तो उवसग्गाओ मुंचामि तो मे कप्पइ पारित्तए, अह णं एत्तो उवसग्गाओ न मुंचामि तो मे तहा पच्चक्खाएयव्वे' त्ति कट्टु सागारं भत्तं पच्चक्खाइ ।
अरहण्णगस्स पिसाय-बाहा
१७४ तए ण से पिसाय-रूवे-जेणेव अरहण्णगे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहण्णगं एवं वयासी
"हंभो अरहण्णगा ! अपत्थिय-पत्थया ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! होण-पुण्ण-चाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! नो खलु कप्पइ तव सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाई चालित्तए वा, खोभित्तए वा, खंडित्तए वा, भंजित्तए वा, उझिात्तए बा, परिच्चइत्तए वा । तं जइ णं तुम सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं न चालेसि, न खोभेसि, न खंडेसि, न भंजेसि, न उज्ासि, न परिच्चयसि, तो ते अहं एवं पोय-वहणं दोहि अंगुलियाहि गेल्हामि, गेण्हित्ता-सत्तट्ठ-तल-प्पमाण-मेत्ताई उड्ढे वेहासं उठिवहामि, अंतोजलंसि निब्बोलेमि, जेणं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहि-पत्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।'
अरहण्णगस्स दढधम्मत्तं
१७५ तए णं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी -
'अहं गं देवाणुप्पिया! अरहण्णए नाम समणोवासए अहिगय-जीवाजीवे । नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा, दाणवेण वा, जक्खेण वा, रक्खसेण वा, किन्नरेण वा, किंपुरिसेण वा, महोरगेण वा, गंधव्वेण वा, निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा, खोभित्तए वा, विपरिणामित्तए वा । तुम णं जा सद्धा तं करेहि' ति कटु अभीए, - जाव - अभिन्न-मुह राग-नयण-वण्णे अदीण-विमण-माणसे, निच्चले, निप्फंदे, तुसिणीए, धम्मज्शाणोवगए विहरइ । तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहण्णगं समणोवासगं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी'हंभो अरहण्णगा ! - जाव - धम्मज्शाणोवगए विहरइ ।
१७६ तए णं से दिव्व पिसाय-रूवे अरहण्णगं धम्म-शाणोवगयं पासइ, पासित्ता बलियतरागं आसुरत्ते तं पोय-वहणं दोहि अंगुलियाहिं
गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्तट्ठ-तल-प्पमाण-मत्ताई उड्ढं वेहासं उठिवहइ, उब्विहित्ता अरहण्णगं एवं वयासी
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मल्ली-चरियं
३३ 'हंभो अरहण्णगा! अपत्थिय-पत्थया ! नो खलु कप्पइ तव-सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाई चालित्तए बा, खोभित्तए बा, खंडित्तए वा, भंजित्तए वा, उज्झित्तए वा, परिच्चइत्तए वा । तं जइ णं तुम सोल-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं न चालेसि, न खोभेसि, न खंडेसि, न भंजेसि, न उज्झसि, न परिच्चयसि तो ते अहं एवं पोय-वहणं अंतो-जलंसि निब्बोलेमि, जेणं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहि-पत्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी'अहं णं देवाणुप्पिया ! अरहण्णए नामं समणोवासए-अहिगय-जीवाजीवे नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा, दाणवेण वा, जक्खेण वा, रक्खसेण वा, किन्नरेण वा, किंपुरिसेण वा, महोरगेण वा, गंधव्वेण वा, निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा, खोभित्तए वा, विपरिणामित्तए वा। तुम णं जा सद्धा तं करेहि त्ति कटटु अभीए, - जाव - अभिन्न-मुह-राग-नयण-वण्णे, अदीणविमण-माणसे, निच्चले, निप्फंदे, तुसिणीए, धम्म-ज्झाणोवगए विहरइ ।
देवस्स पिसाय-रूव-साहरणं स-वुत्तंत-कहणं
१७७ तए णं से पिसायरूवे अरहण्णगं जाहे नो संचाएइ निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा, खोभित्तए वा, विपरिणामित्तए वा,
ताहे संते, तंते, परितंते, निविण्णे तं पोयवहणं सणियं-सणियं उवरि जलस्स ठवेइ, ठवेत्ता तं दिव्वं पिसाय-रूवं पडिसाहरेइ, पडिसाहरेत्ता दिव्वं देव-रूवं विउव्वइ अंतलिक्ख-पडिवन्ने सखिखिणीयाई दसद्ध-वण्णाई वत्थाई पवर-परिहिए अरहणणगं समणोवासगं एवं वयासी'हं भो अरहण्णगा! समणोवासया ! धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! पुण्णेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! कयत्थेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! कय-लक्खणेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! सुलः णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्म-जीविय-फले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिबत्ती लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया । एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के, देविदे, देवराया सोहम्मे कप्पे, सोहम्मडिसए विमाणे, सभाए सुहम्माए, बहूणं देवाणं मज्झगए, मया-महया सद्देणं एवं आइक्खइ, एवं भासेइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेई - "एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, चंपाए नयरीए, अरहण्णए समणोवासए अभिगय-जीवाजीवे । नो खलु सक्के केणइ देवेण वा, दाणवेण वा, जक्खेण वा, रक्खसेण वा, किन्नरेण वा, किंपुरिसेण वा, महोरगेण वा, गंधव्वेण वा, निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा, खोभित्तए वा, विपरिणामित्तए वा।" तए णं अहं देवाणुप्पिया ! सक्कस्स, देविंदस्स, देवरण्णो नो एयमट्ठ सद्दहामि, पत्तियामि, रोएमि । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए, चितिए, पत्थिए, मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था"गच्छामि गं अहं अरहण्णगस्स अंतियं पाउभवामि, जाणामि ताव अहं अरहण्णगं-कि पियधम्मे, नो पियधम्मे ? दढधम्मे, नो दढधम्मे ? सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं किं चालेइ, नो चालेइ ? खोभेइ, नो खोभेइ ? खंडेइ, नो खंडेइ ? भंजेइ, नो भंजेइ ? उज्वाइ, नो उज्झाइ ? परिच्चयइ, नो परिच्चयइ?" ति कटु एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता ओहि पउंजामि, पउंजित्ता देवाणुप्पियं ओहिणा आभोएमि, आभोएत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अव्वक्कमामि उत्तर-वेउब्वियं रूवं विउव्वामि, विउव्वित्ता ताए उक्किट्ठाए देवगईए जेणेव लवणसमुद्दे, जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवाणुपियस्स उवसग्गं करेमि, नो चेव णं देवाणुप्पिए भीए तत्थे, चलिए, संभंते, आउले, उब्विग्गे, भिण्ण-मुह-एग-नयण-वण्णे, दीण-विमण-माणसे जाए । तं जं णं सक्के, देविदे, देवराया एवं वयइ, सच्चे गं! एसमझें। तं दिठे णं देवाणुप्पियस्स इड्ढी, जुई, जसो, बलं, वीरियं, पुरिसकार-परक्कमे लद्धे, पत्ते, अभिसमण्णागए ! तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! खमेसु णं देवाणुप्पिया! खंतुमरिहसि णं देवाणुप्पिया ! नाइ भुज्जो एवं करणयाए' त्ति कट्ट पंजलिउडे पायवडिए एयमट्ट विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेइ, अरहण्णगस्स य दुवे कुंडलजुयले दलयइ, दलइत्ता जामेव दिसि पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए। तए णं से अरहण्णए निरुवसग्गमिति कट्ट पडिम पारे ।
ठे गं देवाणुप्पियन देवाणुप्पिया!
खामेइ,
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
__ अरहण्णगस्स मिहिला-आगमणं
१७८ तए णं ते अरहण्णग-पामोक्खा संजत्ता-नावा-वाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोय-ट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति,
उवागच्छित्ता पोयं लंबेति, लंबेत्ता सगडि-सागडं सज्जेंति, तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडि-सागडं संकाति, संकामेत्ता सगडि-सागडं जोविति, जोवित्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उबागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जासि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं, महग्धं, महरिहं, विउलं, रायारिहं पाहुडं, दिव्वं कुंडलजुयलं च गेहंति, गेण्हित्ता मिहिलाए रायहाणीए अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट महत्थं, महग्धं महरिहं, विउलं, रायारिहं पाहुडं, दिव्वं कुंडल-जुयलं च उवणेति । तए णं कुंभए राया तेसिं संजत्ता-नावा-वाणियगाणं तं महत्थं, महग्धं, महरिहं, बिउलं, रायारिहं पाहुडं, दिव्वं कुंडलजुयलं च पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लि विदेह-वर-राय-कन्नं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता तं दिव्वं कुंडल-जुयलं मल्लीए विदेहरायकन्नगाए पिणद्धेइ, पिणद्धत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से कुभए राया ते अरहण्णग-पामोक्खे संजता-नावा-वाणियगे विपुलेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता, सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, विर्यारत्ता रायमग्गमोगाढे य आवासे वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ ।
अरहण्णगस्स चंपाए आगमणं १७९ तए णं अरहण्णग-पामोक्खा संजत्ता-नावा-वाणियगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता
भंडववहरगं करेंति, पडिभंडे गेण्हंति, गेण्हित्ता सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता जेणेव गंभीरए पोय-पट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोय-वहणं सज्जेति, सज्जेत्ता भंडं संकाति, संकामेत्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव चंपाए पोय-ट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेता तं गणिमं, धरिमं, मेज्जं, परिच्छेज्ज च सगडी-सागडं संकामेति, संकामेत्ता सगडि-सागडं जोविति, जोवित्ता जेणेव चंपा-नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चंपाए रायहाणोए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं, महग्धं, महरिहं, विउलं, रायारिहं पाहुडं, दिव्वं च कुंडल-जुयलं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्धं, महरिहं, विउलं, रायारिहं पाहुडं, दिव्वं च कुंडल-जुयलं उवणेति ।
१८० तए णं चंदच्छाए अंगराया तं महत्थं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते अरहण्णग-पामोक्खे एवं बयासी
'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! बहूणि गामागर - जाव - सण्णिवेसाई आहिंडह, लवण-समुदं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोय-बहहिं ओगाहेह तं अत्थियाई भे केइ कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुब्वे ?'
मल्ली-रूव-पसंसा १८१ तए णं ते अरहण्णग-पामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी
'एवं खलु सामी ! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहण्णग-पामोक्खा बहवे संजत्तगा-नावा-वाणियगा परिवसामो । तए णं अम्हे अण्णया कयाइ गणिमंच, धरिमं च, मेज्जं च, परिच्छेज्जं च गेण्हामो, तहेव अहीण-अइरित्तं - जाव - कुंभगस्स रण्णो उवणेमो। तए णं से कुंभए मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए तं दिव्वं कुंडल-जुयलं पिणद्धेइ, पिणवेत्ता पडिविसज्जेइ । तं एस णं सामी ! अम्हेहि कुभगराय-भवणंसि मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना अच्छरए बिढे । तं नो खलु अण्णा का वि तारिसिया देव-कन्ना वा, असुर-कन्ना वा, नाग-कन्ना वा, जक्ख-कन्ना वा, गंधव-कन्ना वा, राय-कन्ना वा जारिसिया णं मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना ।' तए णं चंदच्छाए अरहण्णग-पामोक्खे सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता, सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ ।
चंदच्छाय-रण्णो दूयस्स मिहिला-गमणं १८२ तए णं चंदच्छाए वाणियग-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
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मल्ली-चरियं
'गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिया - जाब - मल्लि विदेह-राय-वर-कन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका' तए णं से दूए चंदच्छाएणं एवं वुत्ते समाणे हट्ट-तु? - जाव - पहारेत्थ गमणाए ।
रुप्पी राया
१८३ तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जणवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई
नाम राया होत्या । तस्स णं रुप्पिस्स घूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था सुकुमालपाणिपाया रूवेण य, जोब्वर्णण य, लावणेण य उक्किट्टा उक्किटुसरीरा जाया यावि होत्था ।
सुबाहुए मज्जणए
१८४ तीसे णं सुबाहूए दारियाए अण्णया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यावि होत्या । तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहुए
दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उबट्टियं जाणइ, जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'एवं खलु देवाणुप्पिया ! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, तं तुब्भे गं रायमग्गमोगाढंसि चउक्कंसि जल-थलय-दसवणं मल्लं साहरह - जाव - एगं महं सिरि-दाम-गंडं गंधद्धणि मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह ।' ते वि तहेव ओलयंति। तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुवण्णगार-सेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायमग्गमोगाढंसि पुप्फ-मंडवंसि नाणाविह-पंचवणेहि तंदुलेहि नगरं आलिहह, तस्स बहु-मज्या
देस-भाए पट्टयं रएह, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' ते वि तहेव पच्चप्पिणंति । १८५ तए णं से रुप्पी कुणालाहिबई हत्यि-खंध-वरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भड-चडगर-रह-पहकर-विंद-परिक्खित्ते अंतेउर
परियाल-संपरिवुडे, सुबाहुं दारियं पुरओ कटु, जेणेव रायमग्गे, जेणेव पुप्फमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पुप्फ-मंडवे अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सोहासण-वर-गए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे । तए णं ताओ अंतेउरियाओ सुबाहुं-दारियं पट्टयंसि दुरुहेंति, दुरुहेत्ता सेयापीयहि कलसेहि हाणेति, म्हाणेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता पिउणो पाय-बंदियं उवणेति । तए णं सुबाहू दारिया जेणेब रुप्पी राया तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता पाय-ग्गहणं करेइ ।
मल्ली-मज्जणग-पसंसा १८६ तए णं से रुप्पी राया सुबाहुं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसित्ता सुबाहूए दारियाए स्वेण य, जोव्वणेण य, लावण्णेण य, जायविम्हए
वरिसधरं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'तुमं णं देवाणुप्पिया ! मम दोच्चे णं बहूणि गामागर-नगर-जाव-सण्णिवेसाई आहिडसि, बहूण य राईसर - जाव - सत्थ-वाहपभिईणं गिहाणि अणुप्पविससि, तं अत्थियाइ ते कस्सइ रण्णो वा, ईसरस्स वा कहिंचि एयारिसए मज्जणए दिद्वपुग्वे, जारिसए णं इमीसे सुबाहूए दारियाए मज्जणए ?' तए णं से वरिसधरे रुप्पि रायं करयल-परिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी'एवं खलु सामी ! अहं अण्णया तुम्भं दोच्चेणं मिहिलं गए । तत्थ णं मए कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नगाए मज्जणए दिठे । तस्स णं मज्जणगस्स इमे सुबाहूए दारियाए मज्जणए सय-सहस्सइमं पि कलं न अग्घई।'
चंदच्छायस्स दूयस्स मिहिलागमणं १८७ तए णं से रुप्पी राया वरिसधरस्स अंतियं एयम8 सोच्चा निसम्म मज्जणग-जणिय-हासे' दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
'गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया! - जाव - मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए बरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका।' तए णं से दूए रुप्पिणा एवं वुत्ते समाणे हट्ट-तुळे - जाव - जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
संख-राया
१८८ तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नाम जणवए होत्था । तत्थ णं वाणारसी नाम नयरी होत्था । तत्थ णं संखे नामं
कासीराया होत्था ।
मल्लीए कुंडल-जुयलस्स संधिविघडणं
१८९ तए गं तीसे मल्लीए विदेह-वर-राय-कन्नाए अण्णया कयाई तस्स दिव्वस्स कुंडल-जुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्या ।
तए णं से कुंभए राया सुवण्णगार-सेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! इमस्स दिव्वस्स कुंडल-जुयलस्स संधि संघाडेह ।" तए णं सा सुवण्णगार-सेणी एयमझें तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दिव्वं कुंडल-जुयलं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुवण्णगार-भिसियासु निवेसेइ, निवेसेत्ता बहूहिं आएहि य, उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य, वेणइयाहि य, कम्मयाहि य, पारिणामियाहि य बुद्धीहि परिणामेमाणा इच्छंति तस्स दिव्वस्स कुंडल-जुयलस्स संधि घडित्तए, नो चेव णं संचाएइ घडित्तए । तए णं सा सुव्वण्णगार-सेणी जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ बद्धावेत्ता एवं वयासी"एवं खलु सामी ! अज्ज तुम्हे अम्हे सद्दावेह, - जाव - संधि संघाडेता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं अम्हे तं दिव्वं कुंडल-जुयलं गेण्हामो, गेण्हिता जेणेव सुवण्णगार-भिसियाओ तेणेव उवगच्छामो - जाव - नो संचाएमो संधि संबाडेत्तए। तए णं अम्हे सामी ! एयस्स दिव्वस्स कुंडल-जुयलस्स अण्णं सरिसयं कुंडल-जुयलं घडेमो ।"
सुवण्णगारसेणीए निव्विसय-करणं
१९० तए णं से कुंभए राया तोसे सुव्वग्णगार-सेणीए अंतिए एयमटु सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते, रुठे, कुविए, चंडिक्किए, मिसि
मिसेमाणे तिवलियं भिड निडाले साहट्ट एवं वयासी'केस णं तुभे कलायाणं भवह, जे णं तुम्भे इमस्त दिव्वस्स कुंडल-जुयलस्स नो संचाएह संधि संघाडित्तए ?' ते सुवण्णगारे निव्विसए आणवेइ ।
सुवण्णगारसेणीए वाणारसीए आगमणं १९१ तए णं ते सुवण्णगारा कुंभगेणं रण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा जेणेव साइं साइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता
सभंडमत्तोवगरण-मायाए मिहिलाए रायहाणीए मज्झमझेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता विदेहस्स जणवयस्स मज्झमझेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता जेणेव कासी जणवए जेणेव वाणारसी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अग्गुज्जाणंसि सगडी-सागडं मोएंति, मोएता महत्थं - जाव - पाहुडं गेहंति, गेण्हित्ता वाणारसीए नयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव संखे कासोराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धाति, बद्धावेत्ता पाहुडं उवणेति, उवणेत्ता एवं वयासी''अम्हे णं सामी ! मिहिलाओ कुंभएणं रण्णा निविसया आणत्ता समाणा इह हव्वमागया.। तं इच्छामो णं सामी! तुब्भं बाहुच्छाया-परिग्गहिया निब्भया, निरुव्विग्गा, सुहंसुहेणं परिवसिउं ।" तए णं संखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी'कि णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! कुंभएणं रण्णा निविसया आणता ?' तए ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासो"एवं खलु सामी! कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए कुंडल-जुयलस्स संधी विसंवडिए । तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणि सद्दावेइ - जाव - निव्विसया आणत्ता । तं एएणं कारणेणं सामी! अम्हे
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मल्ली-चरियं
३७
कुंभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता।" तए णं से संखे कासीराया सुवण्णगारे एवं वयासी'केरिसिया णं देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स रग्णो धूया पभावईदेवीए अत्तया मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना ?'
मल्ली-रूव-पसंसा संखदूयस्स मिहिलागमणं १९२ तए णं ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी -
"नो खलु सामी ! अण्णा का वि तारिसिया देव-कन्ना वा, असुर-कन्ना वा, नाग-कन्ना वा, जक्ख-कन्ना वा, गंधव्व-कन्ना वा, राय-कन्ना वा जारिसिया णं मल्ली विदेह-वर-राय-कन्ना ।" तए णं से संखे कासीराया कुंडल-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी
"गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया! - जाव - मल्लि विदेह-राय-वर-कलं मम भारियताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका।" १९३ तए णं से दूए संखेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुठे - जाव - जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
अदीणसत्तु-राया १९४ तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरुनाम जणवए होत्था । तत्थ णं हत्थिणाउरे नाम नयरे होत्था । तत्थ णं अदीणसत्तू
नाम राया होत्था - जाव - रज्जं पसासेमाणे विहरइ ।
मल्लदिन्न चित्त-सभा-कारवणं
१९५ तत्थ गं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रण्णो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लीए अणुमग्ग-जायए मल्लदिन्ने नाम कुमारे
सुकुमाल-पाणि-पाए - जाव - जुवराया यावि होत्था । १९६ तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कयाइ कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
'गच्छह णं तुम्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्त-सभं करेह अणेग-खंभ-सय-सण्णिविट्ठ-एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह' । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति । तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! चित्त-सभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोय-कलिएहि स्वेहि चित्तेह, चित्तेता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ?" तए णं सा चित्तगर-सेणी एयमट्ठ तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सयाइं गिहाइं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तूलियाओ वण्णए य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चित्त-सभा तेणेव अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता भूमि-भागे विरचति, विरचित्ता भूमि सज्जेइ, सज्जेता चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोय-कलिएहि रूबेहिं चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था ।
चित्तगरेण मल्ली-पडिरूव-निव्वत्तणं
१९७ तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया-'जस्स गं दुपयस्स वा, चउप्पयस्स वा,
अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं निव्वत्तेइ ।' तए णं से चित्तगरे मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायंगुटुं पासइ । तए णं तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झथिए - जाव - समुप्पज्जित्था 'सेयं खलु ममं मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए पायंगुट्ठाणुसारेणं सरिसगं सरित्तयं सरिव्वयं सरिस-लावण्णरूव-जोव्वण-गुणोववेयं रूवं निव्वत्तित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता भूमि-भागं सज्जेइ, सज्जत्ता मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए पायंगुट्ठाणुसारेणं सरिसगं - जाव - रूवं निव्वत्तेइ ।
१९८ तए णं सा चित्तगर-सेणी चित्त-सभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोय-कलिएहिं स्वेहिं चित्तेइ, चित्तेत्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ । तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणि सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेता, सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे बलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ । तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे व्हाए अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे अम्म-धाईए सद्धि जेणेव चित्त-सभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चित्तसभं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता हाव-भाव-विलास-बिब्बोय-कलियाई रूवाई पासमाणे पासमाणे जेणेव
मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए तयाणुरुवे रुवे निव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १९९ तए णं से मल्लदिन्ने कुमार मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए तयाणुरूवं स्वं निव्वत्तियं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए
- जाव - समुप्पज्जित्था-'एस णं मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ने ति कट्टु लज्जिए विलिए, बेड्डे सणियं सणियं पच्चोसक्कइ । तए गं तं मल्लदिन्नं कुमारं अम्म-धाई-सणियं सणियं पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी'किण्णं तुमं पुत्ता ! लज्जिए, विलिए, वेड्डे सणियं सणियं पच्चोसक्कसि ?' तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्म-धाई एवं वयासी'जुत्तं गं अम्मो ! मम जेट्टाए भगिणीए गुरू-देवय-भूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तसभं अणुपविसित्तए ?' तए णं अम्म-धाई मल्लदिन्नं कुमारं एवं वयासी'नो खलु पुत्ता! एस मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना । एस णं मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए चित्तगरएणं तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए।
चित्तगरस्स निव्विसयकरणं २०० तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्म-धाईए एयम8 सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते एवं वयासी
'केस णं भो ! से चित्तारए अपत्थिय-पत्थए, दुरंत-पंत-लक्खणे, होण-पुण्ण-चाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए, जे णं मम जेट्टाए भगिणीए गुरु-देवय-भूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्त-सभाए तयाणुरूवे रूबे निव्वत्तिए' त्ति कटु तं चित्तगरं वज्झ आणवेइ । तए णं सा चित्तगर-सेणी इमोसे कहाए लद्धट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी'एवं खलु सामी ! तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया-जस्स णं दुपयस्स वा, चउप्पयस्स वा, अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तेइ । तं मा णं सामी ! तुन्भे तं चित्तगरं वसं आणवेह । तं तुन्भे णं सामी ! तस्स चित्तगरस्स अण्णं तयाणुरूवं दंडं निव्वत्तेह ।' तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिदावेइ, छिदावेत्ता निविसयं आणवेइ ।
चित्तगरस्स हथिणाउरे आगमणं
२०१ तए णं से चित्तगरे मल्लदिनेणं कुमारेणं निविसए आणत्ते समाणे सभंडमत्तोबगरणमायाए मिहिलाओ नयरीओ निक्खमइ,
नियखमित्ता विदेहस्स जणवयस्स मज्म ज्झेणं जेणेव कुरु-जणवए जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंड-निक्खेवं करेइ, करेत्ता चित्त-फलगं सज्जेइ, सज्जेता मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए पायंगुट्ठाणुसारेण एवं निव्वत्तेइ, निव्वत्तेता कक्खंतरंसि छुब्भइ, छुब्भित्ता महत्थं - जाव - पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता हत्थिणाउरस्स नयरस्स मज्झांमज्झेणं जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेब उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं बयासी'एवं खलु अहं सामी ! मिहिलाओ रायहाणीओ कुंभगस्स रण्णो पुत्तेण पभावईए देवीए अत्तएणं मल्लदिनेणं कुमारेणं निविसए आणत्ते समाणे इहं हव्वमागए । तं इच्छामि गं सामी! तुभं बाहुच्छाया-परिग्गहिए निब्भए, निरुव्विग्गे, सुहंसुहेणं परिवसिसए। तए णं से अदोणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी'किण्णं तुम देवाणुप्पिया ! मल्लदिन्नणं निव्विसए आणते ?' तए णं से चित्तगरे अदीणसत्तुं रायं एवं वयासी - 'एवं खलु सामी ! मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कयाइ चित्तगर-सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"तुब्भे णं देवाणुप्पिया! मम चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोय-कलिएहिं रूहि चित्तेह" तं चेव सव्वं भाणियन्वं - जाव -
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मल्ली-चरियं
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मम संडासगं छिदाइ, छिदावेत्ता निव्विसयं आणवेइ । एवं खलु अहं सामी ! मल्लदिनेणं कुमारेणं निव्विसए आणते ।'
अदीणसत्तणो मल्लिी - पडिरूव-दरिसणं
२०२ तए णं अदीणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी
'से केरिसए णं देवागुपिया
तणं सेवित करत
तुमे महलीए विदेह-राय-वर-कनाए तथा स्वं वित्तिए ?" तिलगं मी, गीता अदीणससुरस उबगेड, उबला एवं बयासी
'एस सामी मल्लीए विदेह-राय-वर-नाए तथाणुरूवर स्वरस केंद्र आगार-भाव-पोवारे निव्वतिए तो खलु सक्का केइ देवेण वा, दाणवण वा, जक्खेण वा रक्खसेण वा, किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा, गंधवेण वा, मल्लीए विदेह-राबरका तपास्वे ये निव्यतित्तए ।'
अदी सत्तणो दूयस्स महिलागमणं
२०३ तए णं से अदीणसत्तू पडिरूव जणिय-हासे दूयं सद्दावे, सहावेत्ता एवं वयासी
गच्छाहि णं तुमं देबाणुप्पिया ! - जाव मल्ल विदेह-राय-वर-कलं मम भारियताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका ।' २०४ तए णं से दूए अदीणसत्तूणा एवं दुत्ते समाणे हट्ट तुट्ठे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
जियसत्तु राया
२०५ तेणं काले तेणं समएणं पंचाले जणवए । कंपिल्लपुरे नयरे । जियसत्तू नामं राया पंचालाहिवई । तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणी पामोवलं देवी- सहस्सं ओरोहे होत्या ।
चोक्खा परिव्वाइया
।
जाव धाउ
२०६ तत्व णं मिहिलाए चोक्ला नाम परिव्याइयारियनुवेद सामवेद अहमणवेद- इतिहास-संयमाणं निद्वाणं संगोबंगाणं चउन्हं सहरसा चंदा सारगा जाव भए यसत्येमु सुपरिगिट्टिया पावि होत्या लए णं सा चोवणा परिवाइया मिहिलाए राईसराव सत्यवाह-पभिई पुर दाग-धम्मं च सोय-धम्मं च तित्याभिसेयं व आघवेमाणी, पण्णवेमाणी, परूवेमाणी, उवदंसेमाणी विहरइ । तए णं सा चोक्खा अण्णया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च रत्ताओ य गेहs, गेव्हित्ता परिव्वाइगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पविरल-परिव्वाइया सद्धि संपरिवुडा मिहिल रायहाणिं मज्मज्मेणं जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे, जेणेव कनंतेउरे, जेणेव मल्ली विदेह-राय- वर-कन्ना तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता उदय परिकोसियाए दब्भोवरि-पच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता मल्लीए विदेह राय वर-कन्नाए पुरओ दाण-धम्मं च सोय-धम्मं च तित्याभिसेयं च आधवेमाणी, पण्णवेमाणी, परूवेमाणी, उवदंसेमाणी विहरइ ।
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मल्लीए चोक्खामय-निरासो
२०७ विदेह-राय-यरका चोक्तं परिवाह एवं बयासी'सुरभयं घोषणे किं मूलए चम्बे पण ? एसा चोक्ता परिवाइया मल्लि विदेह-राय-पर-क एवं वयासी'अहं णं देवापिए सोय-मूल धम्मे पण जंगं अहं कवि अमु भवतं णं उदएण य, मट्टियाए सुई भवइ । एवं अम्हे जलाभिय-पप्पाणी अवि गच्छाम । तए णं मल्ली विदेह राय वर-कन्ना चोक्त्वं परिव्वाइयं एवं वयासी
'चोक्खे ! से जहा नामए केइ पुरिसे रुहिर-कयं वत्थं रुहिरेणं चेव धोवेज्जा, अत्थि णं चोक्खे ! तस्स राहिर-कस्स वत्थस्त रुहिरेणं धोव्वमाणस्स काइ सोही ?" 'नो इट्ठे सम
-
'एवामेव चोषले ! सुम्भणं पाणावाएगं जावमिच्छाम नसणं नत्थि काह सोही जहा तस्स राहिरकर पत्रस हिरे व पोयमाणस्स ।'
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे २०८ तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए एवं वुत्ता समाणी, संकिया, कंखिया, वितिगिछिया, भेयसमावण्णा
जाया यावि होत्था, मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए नो संचाएइ किंचिवि पामोक्खमाइविखत्तए, तुसिणीया संचिट्ठइ । तए णं तं चोक्खं मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए बहुओ दास-चेडीओ होलेंति, निंदंति, खिंसंति, गरिहंति, अप्पेगइयाओ हेरुयालेंति, अप्पेगइयाओ मुहमक्कडियाओ करेंति, अप्पेगइयाओ वग्घाडियाओ काति, अप्पेगइयाओ तज्जेमाणीओ, तालेमाणीओ निच्छुहंति ॥
चोक्खाए कंपिल्लपुरे आगमणं २०९ तए णं सा चोक्खा मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए दास-चेडियाहिं हीलिज्जमाणी, निदिज्जमाणी, खिंसिज्जमाणी, गरहिज्जमाणी,
आसुरुत्ता - जाव - मिसिमिसेमाणी, मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नयाए पओसमावज्जइ, भिसियं गेण्हइ, गेण्हित्ता कन्नतेउराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता मिहिलाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता, परिवाइया-संपरिवुडा जेणेव पंचाल-जणवए, जेणेव कंपिल्लपुरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं राईसर - जाव - सत्थवाहपभिईणं पुरओ दाण-धम्मं च सोय-धम्म च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी, पण्णवेमाणी, परवेमाणी, उवदंसेमाणी विहरइ ।
२१० तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ अंतो अंतेउर-परियालसद्धि संपरिवुडे सीहासण-वर-गए यावि विहरइ ।
तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया-संपरिवुडा जेणेव जियसत्तुस्स रण्णो भवणे, जेणेव जियसत्तू राया, तेणेव अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जियसत्तुं जएणं विजएणं वद्धावेइ । तए णं से जियसत्तू चोक्खं परिवाइयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता सीहासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुठेत्ता चोक्खं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता, सम्माणेत्ताअ सिणेणं उवनिमंतेइ । तए णं सा चोक्खा उदग-परिफोसियाए दभोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निविसइ, निविसित्ता जियसत्तुं रायं रज्जे य, रठे य, कोसे य, कोट्ठागारे य, बले य, वाहणे य, पुरे य, अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ । तए णं सा चोक्खा जियसत्तुस्स रण्णो दाण-धम्म च, सोय-धम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी, पण्णवेमाणी, परूवेमाणी, उवदंसेमाणी विहरइ ।
चोक्खा कहिओ अगड-दधुर दिह्रतो २११ तए णं से जियसत्तू अप्पणो ओरोहंसि जाय-विम्हए चोक्खं एवं वयासी
'तुम णं देवाणुप्पिया !. बहूणि गामागर -जाव- सण्णिवेसंसि आहिंडसि, बहूण य राईसर-सत्थवाह-प्पमिईणं गिहाईअणुप्पविससि, तं अत्थियाइं ते कस्सइ रण्णो वा, ईसरस्स वा कहिंचि एरिसए ओरोहे दिट्ठ-पुब्वे, जारिसए णं इमे मम ओरोहे ?' तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया 'जियसत्तुणा एवं वुत्ता समाणी ईसिं विहसियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी'सरिसए णं तुमं देवाणुप्पिया! तस्स अगड-दद्दुरस्स । 'के णं देवाणुप्पिए ! से अगड-ददुरे ?' 'जियसत्तू ! से जहा-नामए अगड-ददुरे सिया। से णं तत्थ जाए, तत्थैव वुड्ढे अण्णं अगडं वा, तलागं वा, दहं वा, सरं वा, सागरं वा अपासमाणे मण्णइ-"अयं चेव अगडे वा, तलागे वा, दहे वा, सरे वा, सागरे वा ।" तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए ददुरे हव्वमागए । तए णं से कूव-ददुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं बयासी- “से के तुम देवाणुप्पिया ! कत्तो वा इह हव्वमागए ?" तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कुब-ददुरं एवं वयासी-“एवं खलु देवाणुप्पिया! अहं सामुद्दए ददुरे ।" तए णं से कूव-ददुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासी-“के-महालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ?" तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूव-ददुरं एवं वयासी-"महालए णं देवाणुप्पिया ! समुद्दे ।" तए णं से कूव-ददुरे पाएणं लोहं कड्ढेइ, कड्ढेता एवं वयासी-"ए-महालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ?" "नो इणढे समझें । महालए णं से समुद्दे ।" तए णं से कूव-ददुरे पुरथिमिल्लाओ तीराओ उप्फिडित्ता णं पच्चथिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी"ए-महालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ?"
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मल्ली - चरियं
"नो इमडे समट्ठे।"
एवामेव तुमं पि जियसत्तू अण्णेसिं बहूणं राईसर जाव सत्यवाह-प्पभिईणं वा, भज्जं वा, भगिणिं वा, धूयं वा, सुन्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए नो असि ।
मल्ली-रूब पसंसा
!
7
२१२ तं एवं खलु जियस मिहिलाएं नयरीए कुंभगस्स घूया पभावईए अलवा मल्ली नाम विदेह राय वर-कन्ना रुवेण य जोव्वणेण य, लावण्णेण य उक्किट्ठा, उक्किट्ठसरोरा, नो खलु अण्णा काइ तारिसिया देव कन्ना वा असुर-कन्ना वा, नागकन्ना वा, जक्ख- कन्ना वा, गंधव्व-कन्ना वा, राय-कन्ना वा जारिसिया मल्ली, विदेह-राय- वर-कन्नाए छिन्नस्स वि पायंगुट्ठगस्स इमे तवोरोहे सय-सहस्सइमपि कलं न अग्घइ ति कट्टु जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।
·
जियसत्तुमिहिलागमणं
२१३ तए णं से जियसत्तू परिव्वाइया - जणिय-हासे द्वयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
- जाय मल्ल विदेह-राय- वर-कनं मम भारियताए वरेहि, जइ वि व णं सा सवं रजसुंका
तए णं से दूए जियसत्तुणा एवं वृत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे -जाव- जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । दूयाणं संदेस-निवेदणं
२१४ तए णं तेसि जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं द्वया जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्य गमणाए ।
तए णं छप्पि दूयगा जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुजाणंसि पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेस करेंति, करेत्ता मिहिलं रायहाणिं अणुष्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पत्तेयं करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु साणं-साणं राईणं वयणाई निवेदेति ।
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कुंभएण दूयाणं असक्कारे
२१५ ए गं से कुंभए सियाणं अंतियं एवम सोच्या आसुरुते रुट्ठे कुबिए चंडिक्किए, मिसिमिसेमाणे, तिवलियं भिउड निडाले साहट्टु एवं वयासी
'न देमि णं अहं तुब्भं मल्ल विदेह-राय-वर-कलं ति कट्टु ते छप्पि दूए असक्कारिय, असम्माणिय, अवद्दारेणं निच्छुभावेइ । तएषं से जियतु-यायोक्खाणं उन्हं राईणं वा कुंभएणं रण्मा असक्कारिय, असम्माणिय, अवद्दारेणं निच्छुभाविया समाणा जेणेव सगा सगा जणवया, जेणेव सयाई-सयाई नगराई, जेणेव सया-सया रायाणो, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी
जाव
'एवं खलु सामी ! अम्हे जियसत्तु पामोक्खाणं छण्हं राईणं तया जमग-समगं चेव जेणेव मिहिला, तेणेव उवागया, अवहारेगं निच्छुभावेद । तं न दे णं सामी ! कुंभए महिल विदेह-राय-बर-कर्म साणं-साणं राईणं एयम निवेदेति ।
जियसत्तु पामोक्खाणं कुंभएणं जुज्
२१६ तए णं ते जियसत्तु - पामोक्खा छप्पि रायाणो तस दूयाणं अंतिए एयम सोच्चा, निसम्म आसुरुता, रुट्ठा, कुविया, चंडिक्किया, मिसिमिसेमाणा, अण्णमण्णस्स दूय-संपेसणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी
-
'एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं छण्हं राईणं द्वया जमग-समगं चेव मिहिला तेणेव उवागया - जाव अवद्दारेणं निच्छूढा । सेयं खलु देवाणुप्पिया ! कुंभयस्स जलं गेव्हिलए' ति कट्टु अण्यमग्गस्स एपम पडितुति, पडिता व्हावा, सम्मा हत्यि-खंध-बर-गया, सकोरेंट-मल्ल-दामेणं छत्तेगं परिज्जमागेणं, सेप वर-वामराहि वोइज्माणा महया हव-गय-रह-पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धि संपुरिवुडा, सब्बिड्डीए जान दुंदुभि नाइय-रवेणं सहितो सहिंतो नगरे हितो निम्गच्छति निम्यच्छिता एवओो मिलायंति, जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे बल-वाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी'खिप्पामेव हय-गय-रह-पवर-जोह-कलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि' । से वि - जाव - पच्चप्पिणति । तए णं कुंभए राया पहाए सण्णद्धे, हत्यि-खंध-वर-गए, सकोरेंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेय-वर-चामराहि वीइज्जमाणे, महया हय-गय-रह-पवर-जोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे, सविड्ढीए -जाव- दुंदुभिनाइय-रवेणं मिहिलं मज्मज्झणं निज्जाइ, निज्जावेत्ता विदेह-जणवयं मज्झमझेणं जेणेव देसग्गं तेणेव
खंधावार-निवेसं करेइ, करेत्ता जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि य रायाणो पडिवालेमाणे जुज्श-सज्जे पडिचिट्ठइ । २१७ तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभएणं रण्णा सद्धि
संपलग्गा यावि होत्था । तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो कुंभयं रायं हय-महिय-पवर-वीर-धाइय-विवडिय-चिष-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसहेति । तए णं से कुंभए जियसत्तु-पामोक्खेंहि छहिं राईहि हय-महिय-पवर-वीर-घाइय-विवडिय-चिध-धय-पडागे किच्छोवगय-पाणे दिसोदिसि पडिसेहिए समाणे अत्थामे, अबले, अवीरिए, अपुरिसक्कारपरक्कम, अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं, तुरियं, चवलं, चंडं, जइणं, वेइयं जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता मिहिलं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता मिहिलाए
दुवाराई पिहेइ, पिहेत्ता रोह-सज्जे चिट्ठइ । २१८ तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलं रायहाणि निस्संचार
निरुच्चारं, सव्वओ समंता ओरंभित्ता णं चिट्ठति । तए णं से कुंभए राया मिहिलं रायहाणि ओरुद्धं जाणित्ता अभितरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए सि जियसत्तु-पामोक्खाणं छहं राईणं अंतराणि य, छिद्दाणि य, विवराणि य, मम्माणि य अलभमाणे बहूहि आएहि य, उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य, वेणइयाहि य, कम्मयाहि य, पारिणामियाहि य, बुद्धीहि परिणामेमाणे परिणामेमाणे किंचि आयं वा उवायं वा अलभमाणे ओहय-मण-संकप्पे करतल-पल्हत्थ-मुहे अट्ट-ज्शाणोवगए झियायइ ।
मल्लीए चिताहेउ-पुच्छा २१९ इमं च णं मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना व्हाया कय-बलि-कम्मा, कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता, सव्वालंकार-विभूसिया, बहूहि
खुज्जाहि संपरिवुडा जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाय-ग्गहणं करेइ । तए णं कुंभए मल्लि विदेह-राय-वर-कन्नं नो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिटुइ ।
तए णं मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना कुंभगं एवं वयासी'तुब्भे गं ताओ ! अण्णया ममं एज्जमाणिं पासित्ता आढाह, परियाणाह, अंके निवेसेह । इयाणि ताओ ! तुभे ममं नो आढाह, नो परियाणाह, नो अंके निवेसे ह । किण्णं तुभं, अज्ज ओहय-मण-संकप्पा करतल-पल्हत्थ-मुहा अट्टज्झाणोवगया झियायह ?'
कुंभगस्स चिताहेउ-कहणं २२० तए णं कुंभए मल्लि विदेह-राय-वर-कन्नं एवं बयासी
‘एवं खलु पुत्ता! तब कज्जे जियसत्तु-पामोक्षेहि छहिं राईहिं दूया संपेसिया । ते णं मए असक्कारिय, असम्माणिय अबद्दारेणं निच्छूढा । तए णं जियसतु-पामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयम8 सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिलं रायहाणि निस्संचारं, निरुच्चारं सव्वओ समंता ओरुभित्ता णं चिट्ठति । तए णं अहं पुत्ता तेसि जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य, मम्माणि य अलभमाणे - जाव - अट्टज्झाणोवगए शियामि ।'
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मल्ली-चरिय
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मल्लीए उवायनिरूवणं २२१ तए णं सा मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना कुंभगं रायं एवं बयासी
'मा णं तुब्भे ताओ ! ओहय-मण-संकप्पा करतल-पल्हत्थ-मुहा अट्ट-ज्झाणोवगया झियायह । तुब्भे गं ताओ ! तेसि जियसत्तु-पामोक्खाणं छहं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं रहस्सिए दूय-संपेसे करेह, एगमेगं एवं वयह"तव देमि मल्लि विदेह-राय-वर-कन्नं" ति कटु संझ-काल-समयंसि पविरल-मणूसंसि निसंत-पडिनिसंतंसि पत्तेयं-पत्तेयं मिहिलं रायहाणिं अणुप्पबेसेह, अणुप्पवेसेत्ता गम्भघरएसु अणुप्पवेसेह, अणुप्पवेसेत्ता मिहिलाए रायहाणीए दुवाराई पिहेह, पिहेत्ता रोहा-सज्जा चिट्ठह ।' तए णं कुंभए तेसि जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं रहस्सिए दूय-संपेसे करेइ - जाव - रोहा-सज्जे चिट्ठइ।
मल्लीए जियसत्तुपामोक्खाणं संबोहो २२२ तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए - जाव - उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे
तेयसा जलंते, जालंतरेहि कणगमई, मत्थय-छिड्डे, पउमुप्पल-पिहाणं पडिमं पासंति-'एस णं मल्ली विदेह-राय-वर-कन्नत्ति' कटु मल्लीए राय-वर-कन्नाए रूबे य जोवणे य लावण्णे य मुच्छिया, गिद्धा, गढिया, अज्झोववण्णा अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणा-पेहमाणा चिट्ठति । तए णं सा मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना व्हाया, कयबलिकम्मा, कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता, सव्वालंकार-विभूसिया, बहिं खुज्जाहिं - जाव - परिक्खित्ता, जेणेव जालधरए, जेणेव कणगमई, मत्थयछिड्डा, पउमुप्पल-पिहाणा पडिमा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता तीसे कणगमईए मत्थयछिड्डाए, पउमुप्पल-पीहाणाए पडिमाए मत्थयाओ तं पउमुप्पल-पिहाणं
अवणेइ । तओ णं गंधे निद्धावेइ, से जहा-णामए- अहिमडे इ वा - जाव - एत्तो असुभतराए चेव । २२३ तए णं से जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सहि-सएहि उत्तरिहि आसाई
पिहेंति, पिहेत्ता परम्मुहा चिट्ठति । तए णं सा मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना ते जियसत्तु-पामोक्खे एवं बयासी'किणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सएहि-सहि उत्तरिज्जेहिं आसाई पिहेत्ता परम्मुहा चिट्ठह ?' तए णं ते जियसन्तु-पामोक्खा मल्लि विदेह-राय-बर-कन्नं एवं वयंति
'एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हे इमेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सहि-सएहि उत्तरिज्जेहि आसाइं पिहेत्ता चिट्ठाभो ।' २२४ तए णं मल्ली विदेह-राय-वर-कन्ना ते जियसत्तु-पामोक्खे एवं वयासी
'जइ ताव देवाणुप्पिया ! इमीसे कणगमईए, मत्थय-छिड्डाए, पउमुप्पल-पिहाणाए पडिमाए-कल्लाकल्लिं ताओ मणुग्णाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ एगमेगे पिंडे पक्खिप्पमाणे-पक्खिप्पमाणे इमेयारूवे असुभे पोग्गल-परिणामे, इमरस पुण ओरालिय-सरीरस्स, खेलासवस्स, वंतासवस्स, पित्तासवस्स, सुक्कासवस्स, सोणिय-पूयासवस्स, दुरुय-ऊसास-नीसासस्स, दुरुय-मुत्तपूइय-पुरीस-पुण्णस्स, सडण-पडण-छेयण-विद्धंसण-धम्मस्स केरिसए य परिणाम भविस्सइ ? तं मा णं तब्भे देवाणप्पिया ! माणुस्सएसु काम-भोगेसु सज्जह, रज्जह, गिशाह, मुज्झाह, अज्झोववज्जह । एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमाओ तच्चे भवग्गहणे, अवर-विदेह-वासे, सलिलावतिसि विजए वीयसोगाए रायहाणीए, महब्बल-पामोक्खा सत्त वि य बाल-वयंसया
रायाणो होत्था-- सहजाया - जाव - पव्वइया । २२५ तए णं अहं देवाणुप्पिया ! इमेणं कारणेणं इत्थी-नाम-गोयं कम्मं निव्वत्तेमि-जइ णं तुब्भे चउत्थं उपसंपज्जित्ता गं
विहरह, तए णं अहं छठं उवसंपज्जित्ता णं विहरामि सेसं तहेव सव्वं । तए णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! काल-मासे कालं किच्चा जयंते विमाणे उबवण्णा । तत्थ णं तुभं देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई । तए णं तुब्भे ताओ देव-लोगाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे - जाव - साई-साइं रज्जाइं उवसंपज्जित्ता णं विहरह । तए णं अहं ताओ देव-लोगाओ आउक्खएणं - जाव - दारियत्ताए पच्चायाया । गाहाकि थ तयं पम्हठं, जंथ तया भो ! जयंत-पवरम्मि । बुत्था समय-णिबद्धा, देवा तं संभरह जाइं ॥१॥'
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
जियसत्तुपामोक्खाणं जाइसरणं २२६ तए णं तेसि जियसत्तु-पामोक्खाणं छहं राईणं मल्लीए विदेह-राय-वर-कन्नाए अंतिए एयमद्वै सोच्चा निसम्म सुभेणं परिणा
मेणं, पसत्थेणं अज्ावसाणेणं, लेसाहिं विसुज्झामाणीहि, तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं, ईहापूहमग्गण-गवसणं करेमाणाणं सण्णि-पुब्वे जाइ-सरणे समुप्पण्णे, एयमट्ट सम्मं अभिसमागच्छंति ।।
२२७ तए णं मल्ली अरहा जियसत्तु-पामोक्खे छप्पि रायाणो समुप्पण्ण-जाइसरणे जाणित्ता गब्भ-घराणं दाराई विहाडेइ ।
तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मल्ली अरहा, तेणेव उवागच्छति । तए णं महब्बल-पामोक्खा सत्त वि य बाल-वयंसा एगयओ अभिसमण्णागया वि होत्था ।
मल्लीए जियसत्तुपामोक्खाणं रणं य पव्वज्जासंकप्पो २२८ तए णं मल्लो अरहा ते जियसत्तु-पामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी
'एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! संसार-भउब्विग्गा - जाव - पव्वयामि । तं तुब्भे णं किं करेह ? किं ववसह ? किं वा में हियइच्छिए सामत्थे ?' तए णं जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो मल्लि अरहं एवं बयासी-। 'जइ णं तुब्भ देवाणुप्पिए ! संसार-भउन्विग्गा - जाव - पटवयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के अण्णे आलंबणे वा, आहारे वा, पडिबंधे वा ? जह चेव णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे अम्हं इओ तच्चे भवग्गहणे बहूसु कज्जेसु य मेढी पमाणं - जाव - धम्म-धुरा होत्था, तह चेव णं देवाणुप्पिया ! इण्हि पि - जाव - धम्म-धुरा भविस्सह । अम्हे वि णं देवाणुप्पिया ! संसार-भउम्बिग्गा, भीया जम्मण-मरणाणं देवाणुप्पिया-सद्धि मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयामो ।' तए णं मल्ली अरहा ते जियसतु-पामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी'जइ णं तब्भे संसार-भउविगा - जाव - मए सद्धि पव्वयह, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सह-सहि रहि जेट्टपुत्ते ठावेह, ठावेत्ता पुरिस-सहस्स-वाहिणीओ सीयाओ दुरुहह मम अंतियं पाउन्भवह ।' तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो मल्लिस्स अरहओ एयमझें पडिसुणेति । तए णं मल्लो अरहा ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो गहाय जेणेव कुंभए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएसु पाडेइ । तए णं कुंभए ते जियसत्तु-पामोक्खे विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता, सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो कुंभएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साई-साइं रज्जाई जेणेव साइं-साई नगराई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सगाई-सगाई रज्जाई उवसंपज्जित्ता णं विहरंति ।
मल्लीए निक्खमणमहोच्छवो २२९ तए णं मल्लो अरहा संबच्छरावसाणे निक्खमिस्सामि त्ति मणं पहारेइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्कस्स आसणं चलइ । तए णं से सक्के, देविदे, देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता मल्लि अरहं ओहिणा आभोएइ । इमेयारूवे अज्झात्थिए, चितिए, पत्थिए, मणोगए, संकप्पे समुप्पज्जित्था - 'एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, मिहिलाए नयरीए, कुंभगस्स रणो धूया पभावईए देवीए अत्तया मल्ली अरहा निमिस्सामि त्ति मणं पहारेइ । तं जीयमेयं तीय-पच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं अरहताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं इमेयारूवं अत्थसंपयाणं दलइत्तए, तं जहासंगहणी गाहा- तिण्णेव य कोडि-सया, अट्टासीइं च हंति कोडीओ।
असिई च सय-सहस्सा, इंदा दलयंति अरहाणं ॥१॥'
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मल्ली-चरियं
एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता वेसमणं देवं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दोवे दीवे, भारहे वासे, मिहिलाए रायहाणीए, कुंभगस्स रण्णो धूया, पभावईए देवीए अत्तया मल्ली अरहा निक्खमिस्सामि त्ति मणं पहारेइ - जाव - इंदा दलयंति अरहाणं । तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं, भारहं वासं, मिहिलं रायहाणि, कुंभगस्स रण्णो भवणंसि इमेयारूवं अत्थसंपयाणं साहराहि, साहरित्ता खिप्पामेव मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।' तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं देविदेणं, देवरग्णा एवं वुत्ते समाणे हद्व-तुठे करयल-परिग्गहियं दस-णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं, भारहं वासं, मिहिलं रायहाणि, कुंभगस्स रण्णो भवणंसि तिणि कोडि
सया अट्ठासोई च कोडीओ असीई सय-सहस्साइं-इमेयारूवं अत्थ-संपयाणं साहरह, साहरित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।' २३० तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा - जाव - पडिसुणेत्ता उत्तर-पुरथिम दिसी-भागं अवक्कमंति,
अवक्कमित्ता वेउब्विय-समुग्घाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरंति, - जाव - उत्तर-वेउब्वियाई रूवाई विउव्वंति, विउन्वित्ता ताए उक्किट्ठाए - जाव - देवगईए वोईवयमाणा-वीईवयमाणा, जेणेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, जेणेव मिहिला रायहाणी, जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभगस्स रण्णो भवणंसि तिणि कोडिसया - जाव - साहरंति, साहरित्ता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं दस-णहं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कटु तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविदे, देवराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं - जाव - तमाण
त्तियं पच्चप्पिणइ । २३१ तए णं मल्लो अरहा कल्लाकल्लिं - जाव - मागहओ पायरासो त्ति बहूणं सणाहाण य, अणाहाण य, पंथियाण य, पहियाण
य, करोडियाण य, कप्पडियाण य, एगमेगं हिरण्ण-कोडि अट्ठ य अणूणाई सय-सहस्साइं-इमेयारूवं अत्थ-संपयाणं दलयइ । तए णं कुंभए राया मिहिलाए रायहाणोए तत्थ-तत्थ, हि-हिं, देसे-देसे बहूओ महाणस-सालाओ करेइ। तत्थ णं बहवे मणुया दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा बिउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेंति । जे जहा आगच्छंति, तं जहा-पंथिया वा, पहिया वा, करोडिया वा, कप्पडिया वा, पासंडत्या वा, गिहत्था वा, तस्स य तहा आसत्थस्स, वीसत्थस्स, सुहासण-वर-गयस्स तं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं परिभाएमाणा, परिवेसेमाणा विहरंति । तए णं मिहिलाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहु-जणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ'एवं खलु देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स रण्णो भवणंसि सव्व-काम-गुणियं, किमिच्छियं, विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं बहणं समणाण य, माहणाण य, सणाहाण य, अणाहाण य, पंथियाण य, पहियाण य, करोडियाण य, कप्पडियाण य, परिभाइज्जइ, परिवेसिज्जइ । संगहणी-गाहा- वरवरिया घोसिज्जइ, किमिच्छियं दिज्जए बहुविहीयं ।
सुर-असुर देव-दाणव-नरिंद-महियाण निक्खमणे॥१॥' २३२ तए णं मल्ली अरहा संवच्छरेणं तिणि कोडि-सया अट्ठासीई च कोडीओ असीई सय-सहस्साइं-इमेयारूवं अत्थ-संपयाणं
दलइत्ता निक्खमामि त्ति मणं पहारेइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोए कप्पे, रिठे विमाण-पत्थडे, सरहि-सएहि विमाहि, सएहि-सएहिं पासाय-वडिसएहि, पत्तेयं-पत्तेयं चउहि सामाणिय-साहस्सीहि, तिहि परिसाहि, सहि अणिएहि, सतहिं अणियाहिवईहिं, सोलसहि आयरक्ख-देव-साहस्सीहि, अण्णेहि य बहूहि लोगतिएहिं देवेहिं सद्धि संपरिवुडा महयाऽऽहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तलताल-तुडिय-वण-मुइंग-पडु-प्पवाइय-रवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति, तं जहासंगहणी-गाहा- सारस्सयमाइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य। तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥१॥
२३३ तए णं तेसि लोगंतियाणं देवाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसणाई चलंति तहेव - जाव-तं जीयमेयं लोगंतियाणं देवाणं अरहंताणं
भगवंताणं निक्खममाणाणं संबोहणं करित्तए त्ति । तं गच्छामो णं अम्हे वि मल्लिस्स अरहओ संबोहणं करेमो त्ति कटट
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसी-भागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता बेउब्विय-समुग्याएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइ दंडं निसिरंति, एवं - जहा - जंभगा - जाव - जेणेव मिहिला रायहाणी, जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे, जेणेव मल्ली अरहा, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणियाई दसद्ध-वण्णाई वत्थाई पवर-परिहिया, करयल-परिग्गहियं दस-णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ताहिं इट्टाहि कंताहिं पियाहि मणुण्णाहिं, मणामाहि, वहि एवं वयासी - 'बुज्झाहि भगवं लोग-णाहा ! पवत्तेहि धम्मतित्थं, जीवाणं हिय-सुह-निस्सयस-करं भविस्सई' त्ति कटु दोच्च पि तच्चं पि एवं वयंति, मल्लि अरहं बंदंति, नमसंति, बंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया ।
२३४ तए णं मल्ली अरहा तेहि लोगंतिएहि देहिं संबोहिए समाणे, जेणेव अम्मापियरो, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता कर
यल परिग्गहियं दस-णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी'इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुर्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ।' तए णं कुंभए राया कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अट्ठ-सहस्सेणं सोवणियाणं कलसाणं - जाव - अटु-सहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं अण्णं च महत्थं, महग्वं, महरिहं, विउलं, तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह । ते वि - जाव - उवट्ठदेति । तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे - जाव - अच्चुय-पज्जवसाणा आगया । तए णं सक्के देविदे, देवराया आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अट्ठ-सहर सेणं सोणियाणं कलसाणं - जाव - अण्णं च महत्थं, महग्धं, महरिहं, विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह ।' ते वि - जाव - उबट्ठति । ते वि कलसा 'तेसु चेव कलसेतु' अणुपविट्ठा । तए णं से सक्के, देविदे, देवराया, कुंभए य राया मल्लि अरहं सीहासणंसि पुरत्याभिमुहं निवेसेंति, अट्ठ-सहस्सेणं सोवणियाणं कलसाणं - जाव - तित्थयराभिसेयं अभिसिंचंति । तए णं मल्लिस्स भगवओ अभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया देवा मिहिलं च सब्भितर-बाहिरियं - जाव - सव्वओ समंता
आधावंति परिधावति । २३५ तए णं कुंभए राया दोच्चपि उत्तरावक्कमणं सोहासणं रयावेइ, - जाव - सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता कोडंबिय-पुरिसे
सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मणोरमं सीयं उवद्ववेह ।' ते वि उवटुर्वेति । तए णं सक्के देविदे देवराया आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेग-खंभ-सय-सण्णिविट्ठ - जाव - मणोरमं सीयं उवट्ठवेह, ते वि - जाव - उबति । सा वि सीया तं चेव सीयं अणुप्पविट्ठा । तए णं मल्ली अरहा सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता जेणेव मणोरमा सीया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मणोरमं सीयं अणुपयाहिणीकरेमाणे मणोरमं सीयं दुरुहइ, दुरुहिता सीहासण-वर-गए पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे । तए णं कुंभए अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी'तुभे णं देवाणुप्पिया ! व्हाया - जाव - सव्वालंकारविभूसिया मल्लिस्स सीयं परिवहह ।' ते वि - जाव - परिवहति । तए णं सक्के देविदे देवराया मणोरमाए सीयाए दक्खिणिल्लं उवरिल्लं बाहं गेण्हइ, ईसाणे उत्तरिल्लं उवरिल्लं बाहं गेण्हइ, चमरे दाहिणिल्लं हेट्ठिल्लं, बली उत्तरिल्लं हेडिल्लं, अवसेसा देवा जहारिहं मणोरमं सीयं परिवहति । . संगहणी-गाहा-पुचि उक्खित्ता, माणुसेहि साहट्ट-रोम-कूहिं । पच्छा बहंति सीयं, असुरिंद-सुरिंद-नागिंदा ॥१॥
चल-चवल-कुंडल-धरा, सच्छंद-विउव्वियाभरण-धारी । देविंद-दाबिंदा, वहंति सीयं जिणिदस्स ॥२॥ तए णं मल्लिस्स अरहओ मणोरमं सीयं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठ-मंगला पुरओ अहाणुपुव्वीए संपत्थियाएवं निग्गमो जहा जमालिस्स । तए णं मल्लिस्स अरहओ निक्खममाणस्स अप्पेगइया देवा मिहिलं रायहाणि अभितर-बाहिरं आसिय-समज्जिय-संमट्टसुइ-रत्यंतरावण-बीहियं करेंति - जाव - परिधावति ॥
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मल्ली-चरियं
२३६ तए णं मल्ली अरहा जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव असोग-वर-पायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ
पच्चोरुहइ, आभरणालंकार ओमयइ । तए णं पभावई हंस-लक्खणणं पडसाडएणं आभरणालंकारं पडिच्छइ । तए णं मल्ली अरहा सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ । तए णं सक्के, देविदे, देवराया, मल्लिस्स केसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता खोरोदग-समुद्दे साहरइ । तए णं मल्लो अरहा 'नमोत्थु णं सिद्धाणं' ति कटु सामाइय-चरित्तं पडिवज्जइ । जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइय-चरितं पडिवज्जइ, तं समयं च णं देवाण माणुसाण य निग्रोसे, तुडिय-णिणाए, गीय-वाइय-निग्घोसे य सक्क-वयण-संदेसेणं निलुक्के यावि होत्था । जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइय-चारित्तं पडिवणे, तं समयं च मल्लिस्स अरहओ माणुस-धम्माओ
उत्तरिए मणपज्जव-णाणे समुप्पण्णे । २३७ मल्ली णं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे, चउत्थे पक्खे, पोससुद्धे, तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपक्षेणं, पुन्वण्हकाल
समयंसि, अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं, अस्सिणीहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, तिहि इत्थीसहि-अभितरियाए परिसाए, तिहि पुरिससएहिं बाहिरियाए परिसाए सद्धि मुंडे भवित्ता पम्वइए । मल्लि अरहं इमे अट्ठ नायकुमारा अणुपव्वइंसु, तं जहा - गाहा-नंदे य नंदिमित्ते, सुमित्त-बलमित्त-भाणुमित्ते य । अमरवइ अमरसेणे, महसेणे चेव अट्ठमए ॥१॥ तए णं ते भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया देवा मल्लिस्स अरहओ निक्खमण-महिमं करेंति, करेत्ता जेणेव नंदीसरे बीवे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिसा अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया ।
मल्लीए केवलणाणं २३८ तए णं मल्ली अरहा जं चेव दिवसं पव्वइए, तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्ह-काल-समयंसि, असोग-वर-पायवस्स अहे पुढवि
सिलापट्टयंसि सुहासण-वर-गयस्स सुहेणं परिणामेणं, पसत्याहिं लेसाहि, तयावरण-कम्मरय-विकरण-करं अपुटव-करणं अणुपविट्ठस्स अणंते, अणुसरे, निवाघाए, निरावरणे, कसिणे, पडिपुण्णे, केवल-वर-नाण-दंसणे समुप्पण्णे । तेणं कालेणं, तेणं समएणं, सव्वदेवाणं आसणाई चलेंति, समोसढा, धम्म सुणेति, सूणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्टाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया । कुंभए वि निग्गच्छद।
जियसत्तुपामोक्खाणं पव्वज्जा २३९ तए णं ते जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो जेट्ट-पुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिस-सहस्स-बाहिणीयाओ सीयाओ दुरूढा समाणा सव्वि
ड्ढीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति - जाव - पज्जुवासंति । तए णं मल्ली अरहा तीसे महइ-महालियाए परिसाए, कुंभगस्स रण्णो तेसिं च जियसत्तु-पामोक्खाणं छहं राईणं धम्म परिकहेइ । परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया। कुंभए समणोवासए - जाव - पडिगए, पभावई य । तए णं जियसत्तु-पामोक्खा छप्पि रायाणो धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वयासी'आलित्तए णं भंते ! लोए, पलित्तए णं भंते ! लोए, आलित्त-पलित्तए णं भंते ! लोए जराए, मरणेण य - जाव • पव्वइया - जाव - चोद्दसपुग्विणो । अणंते वर-नाण-दसणे केवले समुप्पाडेता तओ पच्छा सिद्धा ।
मल्लिजिणस्स सिस्स-संपदा २४० तए णं मल्ली अरहा सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता बहिया जणवय-विहारं विहरइ ।
मल्लिस्स णं अरहओ भिसग-पामोक्खा अट्ठावीसं गणा, अट्ठावीसं गणहरा होत्था । मल्लिस्स णं अरहओ चत्तालीसं समण-साहस्सीओ उक्कोसिया समण-संपया होत्या, बंधुमइ-पामोक्खाओ पणपन्नं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्या, सावयाणं एगा सय-साहस्सी चुलसीइं सहस्सा, सावियाणं तिण्णि सय-साहस्सीओ पट्टिं च सहस्सा, छस्सया चोद्दसपुवीणं, वीसं सया ओहिनाणीणं, बत्तीसं सया केवल-नाणीणं, पणतीसं सया वेउब्वियाणं अट्ठ-सया मणपज्जव-नाणीणं, चोद्दस-सया वाईणं, बीसं सया अणुत्तरोववाइयाणं ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
मनियम साहको भूमिहा संस्कारमा होत्या, तह- मुर्गीकर-भूमी परियाय
मल्लिस्स णं अरहओ दुविहा अंतकर-भूमी होत्था, तं जहा- जुगंतकर-भूमी परियायतकर-भूमी य - जाव - वीसइमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकर-भूमी दुवास-परियाए अंतमकासी ।
मल्लिजिणस्स निव्वाणं
२४१ मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूई उड्ड उच्चत्तेणं, वण्णेणं पियंगु-सामे, सम-चउरंस-संठाणे, वज्ज-रिसह-नाराय-संघयणे मज्झसे,
सुहंसुहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागन्छित्ता सम्मेय-सेल-सिहरे पाओवगमणं-णुवन्ने । मल्ली णं अरहा एग वास-सयं अगार-वास-मज्झे, पणपण्णं वास-सहस्साई वास-सयऊणाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, पणपण्णं वाससहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे, चेत्तसुद्ध, तस्स णं चेत्त-सुद्धस्स चउत्थीए पक्खणं, भरणीए नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अद्धरत्त-काल-समयंसि, पंचहि अज्जिया-सएहि-अभितरियाए परिसाए, पंचहि अणगार-सएहि-बाहिरियाए परिसाए, मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं, वग्धारियपाणी पाए साहटु खीणे वेयणिज्जे, आउए, नाम-गोए, सिद्धे । एवं परिनिव्वाण-महिमा भाणियव्वा जहा उसहस्सतित्थयरस्स नंदीसरे अट्ठाहियाओ पडिगयाओ।1
णाया० सु० १, अ०८ ।
४. अरिद्वनेमिचरियं
कल्लाणगाणि
२४२ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनमी पंचचित्ते होत्था, तं जहा
चित्ताहि चुए चइत्ता गम्भं वक्ते - जाव - चित्ताहिं परिनिव्वुए ।
गब्भवक्कंती सुमिणदंसणाई य
२४३ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी जे से वासाणं चउत्थे मासे, सत्तमे पक्खे, कत्तियबहुले तस्स णं कत्तियबहुलस्स
बारसोपक्खणं अपराजियाओ महाविमाणाओ बत्तीसं सागरोवमद्वितीयाओ* अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोरियपुरे नगरे समुद्दविजयस्स रन्नो भारियाए सिवाए देवीए' पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि -जाव- चित्ताहिं गब्भताए वक्ते, सव्वं तहेव, सुमिण-दसण-दविण-संहरणाइयं एत्थ भणियव्वं ॥
कप्प० सु० १६२।
१ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा
उग्गतवसंजमवओ, पगिट्ठफलसाहगस्स वि जयिस्स । धम्मविसए वि सुहमा वि, होइ माया अणत्थाय ।।१।।
जह मल्लिस्स महाबल-भवम्मि तित्थयरनामबंधे वि। तव-विसय-थोवमाया जाया जुवइत्त-हे उत्ति ।।२।। २. ठाणं० अ० ५ उ० १, सु० ४११ ।
६. सप्त० स्था० ३०, गा० ९८ । ३. सप्त० स्था० १४, गा० ६२ ।
७. सप्त० स्था० २९, गा० ९६ । ४. सप्त० स्था० १३, गा० ५८ ।
८. ठाणं० अ० ५, उ० १, सु० ४११। ५. सप्त० स्था० २८, गा० ९४ ।
९. कप्प० सु० ३३-८४ ।
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अरिनेमि चरियं
जम्माह
२४४ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जे से वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे सावणसुद्धे तस्स णं सावणसुद्धस्स पंचमीपक्खेणं नवहं मासाणं जाव चित्ताहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं 2 अरोगा अरोगं पयाया । जम्मणं समुद्दविजयाभिलावेणं नेतव्वं जाव 3 तं होउ णं कुमारे अरिट्ठनेमी नामेणं ॥
-
कप्प० सु० १६३ ।
-
-
पव्वज्जा
6
8
9
10
२४५ अरहा अरिट्ठनेमी दक्खे -जाब- विणीए तिनि वाससथाई अगारवासमझे वसिता णं पुणरवि लोयंतिएहिं जीयकप्पिएहि देवहि तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाव - दायं दाइयाणं परिभाएत्ता जे से वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे सावणसुद्धे तस्स णं सावण-सुद्धस्स छट्ठीपवलेणं पुण्यकालसमयसि उत्तरकुराए सोयाए सदेवमणुवामुराए परिसाए अणुमम्ममाणम -जाव- बारवईए नगरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयउज्जाणे" तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगबरपायवस्त आहे सीपं ठावे, सीयं ठाविता सीवाए बच्चोरहद, सोयाए पच्चरहिता सपमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमुद, ओमुद्दत्ता सयमेव पंचमुख्यं लोयं करे, करिता छट्ठणं भलेणं अपाणएवं चित्ताहि नक्वतेनं जोगमुवागणं एवं देवसमादाय एयेणं पुरिससहस्सेमं सद्धि मुण्डे भविता अगाराम अणगारियं पव्यइए ।
12
कप्प० सु० १६४ ।
-
केवलनाणं
२४६ अरहा णं अरिट्ठनेमी चउप्पन्नं राइंदियाइं 16 निच्चं वोसटुकाए चियत्तदेहे तं चैव सव्वं - जाव - पणपन्नइमस्स राइदियस्स अंतरा वट्टमाणे, जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पकले अस्सोवबहुले तस्स णं अस्सोवबहुलस्त पनरसोपवणेणं दिवसरस पच्छिमे भागे 19 उप्पि उज्जितसेलसिहरे 20 वडपायवस्स अहे 21 अट्ठणं भत्तेणं अपाणएणं 22 चित्ताहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं 23 शाणंतरियाए बट्टमाणस जाब- अनंते अणुत्तरे -जाय सम्बलोए सव्यजीवाणं भावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ।। कप्प० सु० १६५ ।
१. सप्त० स्था० २१, गा० ८१ ।
२. सप्त० स्था० २२, गा०
८२ ।
३. कप्प० सु० ९३-१०३ । ४. कप्प० सु० ११०
१४५ ।
५. कप्प० सु० ११०-१११। ६. सप्त० स्था० ५९, गा० ७. सप्त० स्था० ५९, गा० ८. सप्त० स्था० ७१ गा० १५७/
१४७।
गणहराइ संपया
२४७ अरओ गं अरिनेमिस्स अट्ठारस गणा गमहरा होत्या ।
अरहओ णं अरिनेमिस्स वरदत्त-पायोक्खाओ अट्ठारस समणसाहसीओ उक्कोसिया समण-संपया होत्या
९. सप्त० स्था० ६४, गा० १५२।
१०. सम० स० १५७। सु० १० 1 ११. सप्त० स्था० ६७, गा० १५६। १२. सम० स० १५७, सु० १४ ।
-
१३. ठाणं० अ० ५, उ० १, सु० ४११ । १४. सप्त० स्था० ७२, ७३, गा० १५८ । १५. सप्त० स्था० ६५, गा० १५३ । १६. सप्त० स्था० ८४, गा० १७३। १७. कप्प० सु० ११६ १२० । १८. सप्त० स्था० ८७, गा० १९. सप्त० स्था० ९५, गा० २०. सप्त० स्था० ९०, गा०
१८४ |
२१. सप्त० स्था० ९१, गा०
१८५।
२२. सप्त० स्था० ९४, गा० १८९।
४९
१८३ ।
१९० ।
२३. सप्त० स्था० १४८, गा.० ३१२। २४. सम० स० १८, सु० २।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अज्ज-जविखणि-पामोक्खाओ चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया संपया होत्था । अरहओ अरिठ्ठनेमिस्स नंद-पामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउणरि च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था। अरहओ अरिट्ठनेमिस्स महासुब्वया-पामोक्खाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ छत्तीसं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था ।
२४८ अरहओ अरिट्ठनेमिस्स चत्तारि सया चोद्दसपुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर-जाव-होत्या ।
पण्णरस-सया ओहिनाणीणं, पन्नरस-सया केवलनाणीणं ।
२४९ पन्नरस-सया बेउब्वियाणं', बस-सया विउलमतीणं,
अट्ठ -सया वाईणं,
२५० सोलस-सया अणुत्तरोववाइयाणं 10,
पन्नरस समणसया सिद्धा , तीसं अज्जियासयाई सिद्धाई ।
कप्प० सु.० १६६।
अंतकडभूमी २५१ अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स दुबिहा अंतकडभूमी होत्या, तं जहा१. जुगंतकडभूमी य, २. परियायतकडभूमी य - जाव - अट्ठमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, दुवासपरियाए अंतमकासी111
कप्प० सु० १६७।
कुमारवासाइ निव्वाणं य २५२ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिठ्ठनेमी तिन्नि वाससयाइं कुमारवासमझे वसित्ता, चउप्पन्नं राइंदियाइं छउमत्थपरियागं
पाउणित्ता13, देसूणाई सत्त वाससयाई केवलिपरियागं पाउणित्ता14, पडिपुन्नाई सत्त वाससयाई सामन्नपरियागंपाउ णिता, एग वाससहस्सं सव्वाउयं पालइत्ता15, खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दुसमसुसमाए समाए बहुवीइक्कंताए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढसुढे तस्स णं आसाढसुद्धस्स अट्ठमीपक्खेणं उप्पि उज्जितसेलसिहरंसि पंचहि छत्तीसेहि अणगारसएहिं सद्धि मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि नेसज्जिए कालगए - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
कप्प० सु० १६८॥
१ सम० स० ४०, सु०१॥ २ सप्त० स्था०११४, गा० २४२। ३ सप्त० स्था० ११५, गा० २४५। ४ ठाणं, अ० ४, उ० ४, सु० ३८१॥ ५ सप्त० स्था०११८, गा० २५७। ६ सप्त० स्था० ११६,गा० २४९। ७ सप्त० स्था० १००, गा० २६३। ८ सप्त० स्था० ११७, गा० २५४।
९ ठाणं० अ०८, सु० ६५१। १० सप्त० स्था० १२३ गा० २६९। ११ क-ठाणं० अ० ८, सु० ६२०।
ख-सप्त० स्था० १५८, १५९ गा० ३२३, ३२४। १२ सप्त० स० ३० सु०२। १३ सम० स० ५४, सु० २। १४ सम० स० ७०० सु०४। १५ सम० स० १०००, सु०७।
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५. पास-चरियं
कल्लाणगाणि २५३ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए पंचविसाहे होत्था, तं जहा
१ विसाहाहि चुए चइत्ता गम्भं वक्कते, २ विसाहाहि जाए, ३ विसाहाहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, ४ विसाहाहि अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, ५ विसाहाहि परिनिव्वुए ।
कप्प० सु० १४८।
गब्भवक्कन्ती २५४ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स
चउत्थीपक्खणं पाणयाओ कप्पाओ वीसं सागरोवमद्वितीयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वाणारसीए नयरीए' आससेणस्स रन्नो वम्माए देवीए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि विसाहाहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते।
कप्प० सु० १४९। २५५ पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तिण्णाणोवगए यावि होत्था । चइस्सामि त्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, चुए मि त्ति
जाणइ, तेणं चेव अभिलावेणं सुविणदंसणविहाणेणं सव्वं - जाव - निययं गिहं अणुप्पविट्ठा - जाव - सुहं सुहेणं तं गम्भं परिवहइ' ।
कप्प० सु० १५० जम्माई २५६ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे से हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले तस्स णं पोसबहुलस्स
दसमीपक्खेणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं विइक्कंताणं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि विसाहाहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अरोगा अरोगं पयाया, जम्मणं सव्वं पासाभिलावेण भाणियब्वं - जाव - तं होउ णं कुमारे पासे नामेणं ॥
कप्प० सु० १५१॥
पव्वज्जा २५७ पासे णं अरहा पुरिसादाणीए दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे अल्लोणे भद्दए विणीए तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता णं
पुणरवि लोयंतिएहि जियकप्पिएहिं देवेहिं ताहि इटाहि - जाव - एवं वयासीजय जय नंदा, जय जय भद्दा, भई ते - जाव - जय जय सदं पउंजंति ।
कप्प० सु० १५२।
१. ठाणं अ० ५, उ० १, सु० ४११। २ सप्त० स्था० १४, गा० ६३। ३ सप्त० स्था० १३, गा० ५६, ५८। ४ सप्त० स्था० २८, गा० ९४। ५ क-सप्त० स्था० २९, ३० । गा०९६,९८।
५ ख-सम० स० १५७, सु० ५-६। ६ ठाणं० अ० ५, उ०१, सु० ४११। ७ कप्प० सु० ३, ३३-९२ । ८ ठाण० अ०५, उ०१, सु० ४११। ९ सम० स० ३०, सु० ६।
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५२
धम्मकहाणुओगे पढमखंध २५८ पुठिंब पिणं पासस्त अरहओ पुरिसादाणियस्स माणुस्सगाओ गिहत्थधम्माओ अणुत्तरे आहोहियए तं चेव सव्वं - जाव - दायं दाइ
याणं परिभाएत्ता जे से हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले तस्स णं पोसबहुलस्स एक्कारसोदिवसेणं पुव्वण्हकालसमयंसि विसालाए सिवियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए तं चेव सव्वं । नवरं वाणारसिं नार मसंमज्मेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता, जेणेव आसमपए उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, सीयाओ पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयति, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुठ्ठियं लोयं करेइ, पंचमुट्ठियं लोयं करित्ता अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमायाय' तिहिं पुरिससरहिं सद्धि मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए' ॥
कप्प० सु०१५३॥ उवसग्गसहण २५९ पासे गं अरहा पुरिसादाणीए तेसोई राइंदियाई निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति, तं जहा
दिव्वा वा, माणुस्सा वा, तिरिक्खजोणिया वा, अणुलोमा वा, पडिलोमा वा ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे - जाव - सम्म सहइ तितिक्खइ खमइ अहियासेइ ।
कप्प० सु० १५४ केवलनाणं २६० तए णं से पासे भगवं अणगारे जाए इरियासमिए - जाब - अप्पाणं भावमाणस्स तेसीइं राइंदियाई विइक्कंताई चउरासोइमस्स
राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणे जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थीपक्षेणं पुवण्हकालसमयंसि धायति-पायवस्स अहे छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए निरावरणे- जाव-केवल-वर-नाण-दसणे समुप्पन्ने - जाव - जाणमाणे पासमाणे विहरइ ।
कप्प ० सु० १५५॥ गणहराइसंपया २६१ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहागाहा-संभे य अज्ज बोसे य, वसिढे बंभयारि य । सोमे सिरिहरे चेव वीरभद्दे जसे वि य ।
कप्प० सु० १५६ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अज्जदिण्ण-पामोक्खाओ सोलस्स समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था । पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स पुप्फचूला-पामोक्खाओ अठ्ठत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपदा होत्था' । पासस्स णं अरहओ पुरिसादागीयस्स सुनंद-पामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी चउठ्ठि च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था । पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुनंदा-पामोक्खाणं समणोवासिगाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिया
समणोवासियाणं संपया होत्था । २६२ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अबुट्ठसया चोद्दसपुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर - जाव - चोद्दसपुव्वीणं
संपया होत्था । पासस्स णं अरहओ पुरिसावाणीयस्स चोद्दस सया ओहिनाणीणं", दस सया केवलनाणीणं,
१ सम० स० १५७, सु० १४। २ ठाणं० अ० ५, उ०१, सु० ४११। ३ सम० स० १५७, सु० ११।। ४ सम० स० १५७, सु० १३। ५ ठाणं अ० ८, सु० ६१७। सम० स० ८, सु० ८। ६ सम० स० १६, सु० ४।
७ सम० स० ३८, सु० १॥ ८ सप्त० स्था० ११४ गा० २४२। ९ सम० स० १२६ सु० १। १० सम० स० १०५, सु० १। ११ सप्त० स्था० ११८ गा० २५७। १२ सम० स० ११३, सु० ८।
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पास-चरियं
२६३ एक्कारस सया वउव्वियाणं',
अट्ठमसया विउलमईणं, छस्सया वाईणंड, छ सया रिउमईणं,
२६४ बारस सया अणुत्तरोबवाइयाणं संपया होत्था ।
कप्प सु० १५७
अंतकडभूमी २६५ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्या, तं जहाजुयंतकडभूमी य, परियायतकडभूमी य। - जाव - चउत्याओ पुरिसजुगाओ जुयंतकडभूमि तिवासपरियाए अंतमकासी ।
कप्प सु० १५८॥
अगारवासाइं निव्वाणं य
२६६ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता', तेसीति राइंदियाई छउम
त्थपरियायं पाउणित्ता, देसूणाई सरिं वासाइं केवलिपरियायं पाउणित्ता, बहुपडिपुनाई सरि वासाइं सामनपरियायं पाउणित्ता", एक्कं वाससयं सवाउयं पालित्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसमसूसमाए समाए बहुवीइक्कताए जे से वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे सावणसुद्धे तस्स णं सावणसुद्धस्स अट्ठमीपक्खेणं उप्पि सम्मेयसेलसिहरंसि अप्पचोत्तीसइमे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्सत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वण्हकालसमयंसि" वग्धारियपाणी कालगए - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणे ।
कप्प० सु० १५९
१ सम० स० ११४, सु० २। २ सत्त० स्था० ११७, गा० २५४ ३ क० ठाण० अ० ६ सु० ५२०॥
ख० सम० १०९, सु० ४। ४ सत्त० स्था० ११७, गा० २५४॥ ५ सत्त० स्था० १२३, गा० २६९। ६ सत्त० स्था० १५८-५९, गा० ३२३-२४। ७ सम० स० ३०, सु० ६।
८ आव० नि० चु० गा० २३९। ९ आव० नि० चु० गा० ३०२। १० सम० स० ७०, सु० १। ११ प्रव० द्वा० ३२, गा० ३८७। १२ आव०नि० चु० गा० ३०८। १३ सत्त० स्था० १५३, गा. ३१७। १४ ठाण० अ० ५, उ० १, सु० ४११॥ १५ सत्त० स्था० १५५, गा० ३२२।
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६. महावीर - चरियं
पुव्वभवे पोट्टिलो
२६७ समये भगवं महावीरे तित्थगरभवग्गणाओ पोट्टिलभवन्महणे एवं वासकोडिं सामण्णपरियागं पाणिता सहस्वारे कप्पे सव्वट्ठे विमाणे देवत्ताए उववण्णे'
कल्लाणयाणि
२६८ काले लेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्युत्तरे यावि होत्या
१. हत्युत्तराहि चुए चइत्ता गब्भं वक्कते,
२. हत्युत्तराहिं गभाओ गब्भं साहरिए,
३. हत्युत्तराहि जाए,
४. हत्युत्तराहिं सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइए,
४. हत्तराहि कसिने परिपुष्णे अब्बाधाए निरावरणे अणते अणुत्तरे केवल वर-नाण-दंसणे समुपणे । साइणा भगवं परिनिष्ए ।
देवानंदागभागमणं
२६९ समने भगवं महावीरे हमाए ओसचिनीए-मुसनमुसमाए समाए बीइनकंताए, सुसमाए समाए बीतिस्कंताए, मुसमदुसमाए समाए वीतिताए, दुसमनुसमाए समाए बहु बीतिक्ताए पाहत्तरीए वाहि मासेहि व अणयमेहि सेसेहि, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्टमे पक्खे - आसाढसुद्धे, तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महाविजयसिद्धत्व-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय- दिसासोवत्यिय वद्धमाणाओ महाविभागाओ वीसं सागरोवमा आउ बालसा आउक्लएर्ण भववलए क्विएणं बुए चहत्ता इह तु जंबुद्दीवेदी, भारहे बासे, दाहिणभरहे दाहिणमानकुंड
सम० स० १३४ ।
१ वीरस्स पुव्वभवा :
।।१।। १७।।
ओपिगी इमीए हमें विव गामतिग-भवंनि ॥ नीरोग सोक्लमून सम्मत्तमगुत्तमं पत्तो ततो पाविय देवत्तमुत्तमं भड़स्स । मिरिदति हो जिणदेखिय दिवस दुम्बहारिहनिम्महियमाणयो व विडिवयं मिच्छवितमई, कविवर कुराणं कार्ड तोमेणं अथरागं डिकोडकोटि संसारं ॥ १०७भव पुणरवि, पारिव पवना दीहं संसार हिंडिऊण, रायग्गिंमि रायसुओ ।। होऊण विस्सभूई १९, घोरं संजममणुचरित्ता मरणे नियाण निव्वत्तिय सुरसुह२० न भोतृणं । पोगपुरे तिवि२१ परिपालय वासुदेवस मूयाए पियमित्तो२२ चक्कित्तं२३ संजमं च अणुचरिअं । छत्तग्गाए नंदण२४, नरनाहत्तं २५ च पव्वज्जं ॥७।। २३।। परिपालिय वीसइकारणेहिं, तित्थाहिवत्तमज्जिणिउं । पाणयकप्पा चविउं२६, कुंडग्गामंमि नयरंमि २७ हो जंतूमुबरणहे ॥ सब्वविरहं पवजय दुब्बिसहपरी
।।२।। १८ ।। ।। ३ ।। १९।। ।।४।। २०।। ।।५।। २१ ।। ।।६।। २२।।
।।८।। २४।। ।।९।। २५।।
सहि
गुणचंदरइयं महा० प० १ गा० १७ २५ ।
3
1
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९८८ कप्प० सु० ११
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महावीर-चरिय
पुरसन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए सोहोब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिसि गब्भं वक्कते।
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९८९ १ तेणं कालेगं तेण समएणं समणे भयव महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठम पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढ
सुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमट्ठियाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्वएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणद्धभरहे इमीसे ओसप्पिणीए-- सुसममुसमाए समाए विइक्कंताए सुसमाए समाए विइक्कताए दुस्समसुसमाए समाए बहुविइक्कंताए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणियाए पंचहत्तरीए वासेहिं अद्धनवमेहिं य मासेहिं सेसेहिइक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुलसमुप्पन्नेहिं कासवगुत्तेहिं दोहि य हरिवंसकुलसमुप्पन्नेहिं गोतमसगुत्तेहिं, तेवीसाए तित्थयरेहि वीइक्कतेहि-समणे भगवं महावीरे चरिमे तित्थकरे पुन्वतित्थकरनिद्दिठे माहणकुण्डग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुतराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिंसि गब्भत्ताए वक्ते । जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते तं रयणिं च णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणो इमेयारूबे ओराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । तंजहा१गय, २वसह, ३सीह, ४अभिसेय, ५दाम, ६ससि, ७दिणयर, ८ झयं, ९कुंभं । १० पउमसर, ११सागर, १२विमाण-भवण, १३ रयणुच्चय, १४सिहं च ।। तए णं सा देवाणंदा माहणी इमेतारूवे ओराले - जाव-सस्सिरीए चोद्दस महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धा समाणी हट्ठत टुचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणसिया हरिसवसविसप्पमाणहियया धाराहयकलंबुयं पिव समुस्ससिय रोमकूवा सुमिणोग्गहं करेइ, सुमिणोग्गहं करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुठेइ, सयणिज्जाओ अब्भुठेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए रायहंससरिसीए गईए जेणेव उसभदत्ते माहणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसभदत्तं माहणं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावित्ता भद्दासणवरगया आसत्था वीसत्था करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासीएवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! अज्ज सयणिज्जसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे ओराले-जाव-सस्सिरीए चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा तं जहा-गय-जाव-सिहिं च ।। एएसि णं देवाणुप्पिया ! ओरालाणं-जाव-चोद्दसण्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? । तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणंदाए माहणीए अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव-हियए धाराहयकलंबुयं पिव समुस्ससियरोमकूवे सुमिणोग्गहं करेइ, करित्ता ईहं अणुपविसइ, ईहं अणुपविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धि विन्नाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थोग्गहं करेइ, करित्ता देवाणंदा-माहणि एवं वयासी"ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, कल्लाणा णं तुमे देवाणुप्पिए सुमिणा दिट्ठा एवं सिवा धन्ना मंगल्ला सस्सिरीया आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारगा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा । तं जहाअत्थलाभो देवाणुप्पिए ! भोग लाभो देवाणुप्पिए ! पुत्त लाभो देवाणुप्पिए! सोक्खलाभो देवाणुप्पिए ! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं सुकुमाल-पाणि-पायं अहीण-पडिपुन्न-पंचिदिय-सरीरं लक्खण-वंजणगुणोववेयं माणुम्माण-पमाण-पडिपुण्णं सुजाय-सव्वंग-सुंदरंग ससि-सोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं देवकुमारोवमं दारयं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विनायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते १ रिउव्वेय, २ जउब्वेय, ३ सामवेय, ४ अथव्वणवेय, इतिहासपंचमाणं, निघंटुछट्ठाणं, संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेयाणं सारए पारए धारए सडंगवी सद्वितंतविसारए संखाणे सिक्खाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुते जोइसामयणे अण्णेसु य बहुसु बंभन्नएसु परिव्वायएस नएस परिनिदिएयावि भविस्सइ ।
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५६
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तं ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा-जाव-आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-मंगल-कल्लाणकारगाणं तुम देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा ।"
तए ण सा देवाणंदा माहणी उसभदत्तस्स माणस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव-हियया करयलपरिग्गहियं दसनह सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु उसभदत्तं माहणं एवं बयासी"एवमेयं देवाणुप्पिया ! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! असंदिद्धमेय देवाणुप्पिया ! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! सच्चे णं एसमठे से जहेयं तुब्भे वयह"त्तिक१ ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ, ते सुमिणे सम्म पडिच्छित्ता उसभदत्तेणं माहणेण सद्धि ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सतक्कतू सहस्सक्खे मघवं पाकसासणे दाहिणड्ढ-लोगाहिवई बत्तीसविमाण-सय-सहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे नवहेम-चारु-चित्तचंचल-कुंडलविलिहिज्जमाणगंडे भामुर-बोंदी पलंब-वणमालधरे सोहम्मकप्पे सोहम्मवडिसए विमाणे सुहम्माए सभाए सक्कंसि सीहासणंसि निसणे ।। से ण तत्थ बत्तोसाए विमाणावास-सयसाहस्सोणं, चउरासीए सामाणिय-साहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्डं अग्गमहिसीणं, सपरिवाराणं तिहं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं चउरासीए आयरक्ख-देवसाहस्सीणं, अण्णेसिं च बहुणं सोहम्मकप्प-वासीण वेमाणियाण देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्च कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्टगीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुपडहवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ।। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेण ओहिणा आभोएमाणे २ विहरइ, तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवं भारहे वासे दाहिणड्डभरहे माहणकुंडग्गामे नगरं उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोतस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए. कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्तं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए णदिए परमाणंदिए पीइमणे परम-सोमणसिए हरिस-वस-विसप्पमाण-हियए धाराहय-नीव-सुरहि कुसुम-चचुमालइय-ऊससियरोमकूवे वियसिय-वर-कमल-नयण-वयणे पयलिय-वर-कडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हार-विरायंतवच्छे पालब-पलंबमाण-धोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरिय चवलं सुरिदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, सीहासणाओ अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेरुलिय-वरिट्ठ-रिट्ठ-अंजण-निउणोविय-मिसिमिसिंत मणि-रयण-मंडियाओ पाउयातो ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, एगसाडियं उत्तरासंग करित्ता अंजलिमउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ट पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छिता वामं जाणु अंचेइ, वामं जागुं अंचित्ता दाहिण जाणुं धरणितलंसि साहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, तिक्वत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसित्ता ईसि पच्चुण्णमइ, पच्चुष्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी"नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं, आइगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरियाणं पुरिसवरगंधहत्थीण लोगत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा, (णं) अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं वियट्टछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वन्नणं सम्बदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वावाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताण नमो जिणाणं जियभयाणं ।
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महावीर-चरिय
गब्भगयस्स तिण्णि णाणाई २७० समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोजगए यावि होत्था । चइस्सामि त्ति जाणइ, चुएमि त्ति जाणइ, चयमाणे न जाणेइ, सुहुमे णं से काले पण्णत्ते ।
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९८९। गब्भ-साहरणं २७१ तओ णं समणे भगवं महावीरे अणुकंपएणं देवेणं “जीयमेयं," ति कटु जे से वासाणं तच्चे मासे, पंचमे
पक्खे-आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खणं हत्थुत्तराहि नक्खहि जोगमुवागएणं बासीतिहिं राइदिएहिं वीइक्कतहिं' तेसीइमस्स राइंदियस्स परियाए बट्टमाणे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसाओ उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसंसि णायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठ-सगोत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करेत्ता, सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता कुच्छिसि गन्भं साहरइ । जे वि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गम्भे, तंपि य दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल
सगोत्तरस देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए कुच्छिसि साहरइ । २७२ समण भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था। साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणइ, साहरिएमि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ, समणाउसो !
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९८९।९९०।
नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स चरिमतित्थयरस्स पुवतित्थयरनिहिस्स-जाव-संपाविउकामस्स, बंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगये पासउ मे भगवं तत्थगए, इहगयं,"-ति कटु समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निमन्ने । तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-- -न एवं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्स, जं नं अरहंता वा, चक्कवट्टी वा, बलदेवा वा, वासुदेवा वा, अंतकुलेसु वा, पंतकुलेसु वा, तुच्छकुलेसु वा, दरिद्दकुलेसु वा, किविणकुलेसु वा, भिक्खायकुलेसु वा, माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्मंति वा, एवं खलु अरहंता वा, चक्कवट्टी वा, बलदेवा वा, वासुदेवा वा, उग्गकुलेसु बा, भोगकुलेसु वा, राइण्णकुलेसु वा, इक्खागकुलेसु वा, खत्तियकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नतरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्ध-जाति-कुल-वंसेसु आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा । अत्थि पृण एसे वि भावे लोगच्छेरयभूए अणंताहि ओसप्पिणीउस्सप्पिणीहिं वीइक्कंताहिं समुपज्जति, नामगोत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेइयस्स अणिज्जिण्णस्स उदएणं जन्नं अरहता वा, - जाव - माहणकलेसु वा, आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा, वक्कमति वा, वक्कमिस्संति बा, नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणेणं निक्वमिसु वा, निक्खमंति वा, निक्खमिस्संति वा । अयं च णं समणे भगव महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माणस्स कोडालसगोत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणोए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कंते ।।
कप्प० सु० २।४-१९ १ सम० स० ८२, सु०२।
२ सम० स० ८३, सु०१। ३ क-भग० स०५, उ०४,मु० ७६,७७।
ख-तं जीयमेयं तोयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविदाणं देवराईणं अरहते भगवंते तहप्पगारेहितो अंतकुलेहितो वा-जावकिविणकुलेहितो वा तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा- जाव -अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु विमुद्धजातिकुलवंसेसु वा साहरा वित्तए । तं सेयं खलु मम दि समणं भगवं महावीरं चरिमतित्थयरं पुबतित्थयरनिद्दिट्ठ माहणकुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणोए जालंधरसगोताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरावित्तए,
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
जे वि य णं से निसलाए खत्तियागोए गम्भे तं पि य णं देवाणंदाए माहणीए, जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरावित्ताए त्ति कटु एवं संपेहेइ, एवं संपेहित्ता हरिणेगमेसि पायत्ताणियाहिवइं देवं सद्दावेइ, हरिणेगमेसिं पायत्ताणियाहिवई देवं सद्दावित्ता एवं वयासोएवं खलु देवागुखिया ! न एयं भूयं, न एयं भव्वं, न एवं भविस्सं, जन्नं अरहंता बा-जाव-भिक्खागकुलेसु वा आयाइसु वा आयाइंति वा, आयाइस्संति वा । एवं खलु अरहता वा-जाव-हरिवंसकुलेसु वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइकुलवंसेसु आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा । अस्थि पुग एस भावे लोगच्छेरयभूए अणंताहिं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहिं विइक्कंताहि समुप्पज्जति, नामगोत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेयस्स अणिज्जिन्नस्म उदएणं जन्नं अरहंता वा- जाव-भिक्खागकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणेणं निक्खमिसु वा, निक्खमंति वा, निक्खमिस्संत्ति वा । अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणोए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गन्भत्ताए वक्कते । तं जीयमेयं तीयाच्चुप्पण्णमणागयाणं सकाणं देविंदाणं देवराईणं अरहंते भगवंते तहप्पगारेहितो बा, अंतकुलेहितो वा -जाव-हरिवंसकुलेसु वा अग्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजातिकुलवंसेसु साहावित्तए । तं गच्छ गं तुम देवागुनिया ! समग भगवं महावीरं माहणकुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवागंदाए माहणोए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवसगोतस्स भारिवाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिसि गम्भताए साहराहि, साहरित्ता मम एयमाणत्तियं विप्पमेव पच्चविणाहि ।। तए णं से हरिणेगमेसी पायताणियाहिवई देवे सक्केणं देविदेणं देवरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्टे-जाब-हयहियए करयल-जाव-त्ति कटु एवं जं देवो आणवेइ त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, वयणं पडिसुणित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरच्छिमदिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइत्ता, संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरइ, तं जहारयणाणं बयराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगम्भाणं पुलयाणं सोगंधियाणं जोइरसाणं अंजणाणं अंजणपुलयाणं रययाणं जायरूवाणं सुभगाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता अहासुहुमे पोग्गले परियादियति । परियादित्ता दोच्चं पि वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ, समोहणित्ता उत्तरवेउब्वियं रूवं विउव्वइ, उत्तरवे उब्वियं रूवं विउविता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जयणाए उद्ध्याए सिग्धाए दिव्वाए देवगईए वीयीवयमाणे वीतीवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाण मज्मज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेब भारहे वासे जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव उसभदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स पणामं करेइ, करिता देवाणंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवणि दलयइ, ओसोवणि दलइत्ता असुहे पोग्गले अवहरड, अवहरित्ता सुहे पोग्गले पक्खिवइ, सुहे पोग्गले पक्खिवइत्ता 'अणुजाणउ मे भगवं !' ति कटु समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं करयलसंपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे, जेणेव सिद्धत्थस्स खत्तियस्स गिहे, जेणेव तिसला खत्तियाणी तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तिसलाए खत्तियाणीए सपरिजणाए ओसोणि दलयइ, ओसोवणि दलयित्ता असुहे पोग्गले अवहरइ, असुहे पोग्गले अवहरित्ता सुहे पोग्गले पक्खिवइ,
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महावीर-चरियं
जम्म-कल्लाणयकालो
२७३ तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह अण्णया कयाइ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं, अट्ठमाणं राइंदियाणं
बीतिक्कंताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे-चेत्तसुद्धे, तस्सणं चेत्तसुद्धस्स तेरसीपक्खणं, हत्युत्तराहि नक्खत्तेणं जोगोवगएणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया ।।
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९९१
सुहे पोग्गले पक्खिवइत्ता समणं भगवं महावीरं अव्वाबाह अब्वाबाहेणं तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ । जे वि य णं ते तिसलाए खत्तियाणीए गन्भे तं पि य णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ, साहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए । उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए उद्ध्याए सिग्धाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं जोयणसाहस्सोएहि विग्गहेहिं उप्पयमाणे २ जेणामेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसए विमाणे सक्कंसि सीहासणंसि सक्के देविदे देवराया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले तस्स णं आसोय बहुलस्स तेरसीपक्खेणं बासीइराइदिएहिं विइक्कतेहिं तेसीइमस्स राइदियस्स अंतरा वट्टमाणे हियाणुकंपएणं देवेणं हरिणेगमेसिणा सक्कवयणसंदिट्टेणं माहणकुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधर सगोत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवसगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिद्धसगोत्ताए पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएण अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं कुच्छिसि साहरिए । समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए आवि होत्था, साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे जाणइ, साहरिएमि, त्ति जाणइ ।
कप्प० सु० २०-३१। १. जं रयणिं च णं समणे भगव महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालधरसगोत्ताए कुच्छोओ तिसलाए खत्तियाणीए बासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए. साहरिए तं रयणि च णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूबे ओराले-जाव-सस्सिरीए चोद्दस महासुमिणे तिसलाए खत्तियाणीए हडे त्ति पासित्ता णं पडिबुद्धा। जं रयणिं च णं समणे भगव महावीरे देवागंदाए माहणोए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिंसि गब्भत्ताए साहरिए तं रयणि च णं सा तिसला खत्तियाणी तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अभितरओ सचित्तकम्मे बाहिरओ दूमियघट्टमट्ठ विचित्तउल्लोयतले मणि-रयण-पणासियंधयारे बहुसम-सुविभत्त-भूमि भागे पंचवण्ण-सरस-सुरहि-मुक्कपुप्फ-पुंजोवयारकलिए कालागरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-डज्झत-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि सालिंगणवट्टिए उभओ बिब्बोयणे उभओ उन्नये मज्झे णयगंभीरे गंगा-पुलिण-वालु-उद्दाल -सालिसए-तोय-वियखोमिय-दुगुल्ल-पट्ट-पडिच्छन्ने सुविरइय-रयत्ताणे रत्तंसुय-संवुए सुरम्मे आयीणग-रूय-बूर-नवणीय-तूलफासे सुगंध-वर-कसुम-चुण्णसयणोवयारकलिए पुनरत्तावरत्त-कालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमेयारूवे ओराले चोहस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तं जहा-- गय-वसह-सीह-अभिसेय, दाम-ससि-दिणयरं झयं-कुंभं । पउमसर-सागर-विमाण-भवण-रयणुच्चय-सिहि च ।।१।। तए णं सा तिसला खत्तियाणी तपढमयाए-तओ य चउदंतमूसिय-गलिय-विपुल-जलहर-हार-निकर-खीरसागर-ससंक किरणदगरय-रयय-महासेल-पंडरतरं समागय-महुयर-सुगंध-दाणवासिय-कवोलमूलं, देवराय-कुजरं वरप्पमाणं पेच्छइ, सजलघण-विपुल -जलहर-गज्जिय-गंभीर-चारु-घोसं इभं सुभं सव्वलक्खणकयंबियं वरोरु ।। तओ पुणो धवल-कमलपत्त-पयराइरेगरूवप्पभं पहासमुदओवहारेहि सव्वओ चेव दीवयंत अइसिरिभर-पिल्लणा-विसप्पत-कंतसोहंत- चारु-ककुहं तणुसुइ-सुकुमाल-लोमनिद्धच्छविं थिर-सुबद्ध-मंसलोवचिय-लट्ठ-सुविभत्त-सुंदरंग पेच्छइ, घण-वट्ट-लट्ठ उक्किट्ठ -विसिठ्ठ-तुप्पग्ग-तिक्खसिंग दंतं सिवं समाणसोभंतसुद्धदतं वसभं अमियगुण-मंगलमुहं ।२।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तओ पुणो हार-निकर-खीरसागर-ससंक-किरण-दगरय-रयय-महासेल-पडरगोरं रमणिज्ज-पेच्छणिज्जं थिर-लठ्ठ-पउट्ठ वट्ट-पीवरसुसिलिट्ठ-विसिटु-तिक्ख-दाढा-विडंबियमुहं परिकम्मिय-जच्च-कमल-कोमल-भाइय-सोभंत-लट्ठउ8 रत्तोप्पल-पत्त-मउय-सुकुमाल तालु-निल्लालियग्गजीहं मूसागय-पवर-कणग-ताविय-आवत्तायंत-वट्ट-विमल-तडिसरिसनयणं विसाल-पीवर-वरोरुं पडिपुन्नविमलखंचं मिउविसय-सुहम-लक्षण-पसत्थ-विच्छिन्न-केसराडोवसोहिय-ऊसिय-सुनिम्मिय-सुजाय-अप्फोडिय-नंगलं सोम्म सोम्माकार लीलायत नहयलाओ ओवयमाणं नियगवयणमइवयंतं पेच्छइ सा गाढ-तिक्खनहं सीहं वयणसिरीपल्लव-पत्त-चारु-जीहं ।३। तओ पुणो पुण्णचंद-वयणा उच्चागय-ठाण लट्ठसंठियं पसत्थरूवं सुपइट्ठिय-कणग-कुम्भ-सरिसोवमाणचलणं अच्चुन्नय-पीण-रइयमंसल-उन्नय-तणु-तब-निद्धनहं कमल-पलास-सुकुमाल-कर-चरण-कोमल-वरंगुलि कुरुविंदावत्त-बट्टाणु-पुव्वजंघं निगूढ-जाणुं गयवरकर-सरिस-पोवरोरु चामीकर-रइय-मेहला जुत्त-कंत-विच्छिन्न-सोणि-चक्कं जच्चजण-भमर-जलय-पकर-उज्जुय-सम-संहियतणुय-आदेज्ज-लडह-सुकुमाल-मउय-रमणिज्ज-रोमराई नाभी-मंडल-विसाल-सुंदर पसत्थ-जघणं करयलमाइय-पसत्थ-तिवलीयमझा नाणा-मणि-रयण-कणग-विमल-महातवणिज्जाहारण-भूसण-विराइयंगमंगि हारविरायंत-कुंदमाल परिणद्ध-जलजलितथगजुयल-विमल-कलसं आइय-पत्तिय-विभूसिएण य सुभग-जालुज्जलेण मुत्ता-कलावएणं उरत्थ-दीणारमालियविरइएणं कंठमणिसुत्तएण य कुंडल-जुयलुल्ल-संत-अंसोवसत्त-सोभंत सप्पभेणं, सोभागुण-समुदएणं आणण-कुडुबिएण कमलामल-विसालरमणिज्ज लोयणं कमल-पज्जलंत-करगहिय-मुक्कतोयं लीलावाय-कय-पक्वएणं सुविसय-कसिण-धण-सह-लंबंत-केसहत्थं, पउमद्दहकमल-वासिणि सिरिं भगवई पिच्छइ हिमवंत-सेलसिहरे दिसागइंदोरु-पीवर-कराभिसिच्चमाणिं ।४। तओ पुणो सरस-कुसुम-मंदार-दाम-रमणिज्जभूयं चंपगासोग-पुण्णाग-नाग-पियंगु-सिरीस- मोग्गरग-मल्लिया-जाइ-जूहियं-कोल्लकोज्ज-कोरिंद-पत्त-दमगय-गवमालिय-बउल-तिलय-वासंतिय-पउमुप्पल-पाडल-कुंदाइमुत्त-सहकार-सुरभिगंधिं अणुवम-मणोहरेणं गंधेणं दस दिसाओ वि वासयंतं सब्बोउय-सुरभि-कुसुम-मल्ल-धवल-विलसंत-कंत-बहुवन्न-भत्तिचित्तं छप्पय-महुयरि-भमरगणगुमगुमायंत-मिलन-गुंजंत-देसभागं दामं पेच्छइ नभंगण-तलाओ ओवयंत ॥५॥ ससिं च गोखीर-फेण-दगरय-रयय-कलस-पंडरं सुभं हियय-नयणकंतं पडिपुनं तिमिर-निकर-घणगहिर-वितिमिरकर पमाण-पक्खंतराय-लेहं कुमुद-वण-विबोहयं निसासोभगं सुपरिमट्ठ-दप्पण-तलोवमं हंसपडुवन्नं जोइसमुहमंडगं तमरिपुं मयणसरापूर समुद-दगपुरगं दुम्मणं जणं दतियवज्जियं पायएहिं सोसयंतं पुणो सोम्मचारुरूवं पेच्छइ सा गगण-मंडल-विसाल-सोम्मचकम्ममाण-तिलगं रोहिणि-मण-हियय-वल्लहं देवी पुन्नचंदं समुल्लसंतं ।६। तओ पुणो तमपडलपरिप्फुडं चेव तेयसा पज्जलंतरूवं रत्तासोग-पगास-किंसुय-सुग-मुह-गुंजद्ध-राग-सरिसं कमलवणालंकरणं अंकणं जोइसस्स अंबरतलपईवं हिम-पडल-गलग्गहं गहगणोरुनायगं रत्तिविणासं उदयत्थमणेसु मुहुत्तसुहदसणं दुन्निरिक्खरूवं रत्तिमुद्धायतदुप्पयार-पमद्दणं सीयवेगमहणं पेच्छइ मेरुगिरि-सयय परियट्टयं विसाल सूरं रस्सी-सहस्स-पयलिय-दित्त-सोहं ।। तओ पुणो जच्च-कणग-लट्ठि-पइट्ठियं समूह-नील-रत्त-पीय-सुक्किल्ल-सुकुमालुल्लसिय-मोरपिछ कयमुद्धयं धयं अहियसस्सिरीयं फालिय संखंक-कुंद-दगरय-रयय-कलसपंडरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेणं रायमाणं भेनु गगणतलमंडलं चेव ववसिएण पेच्छा सिव-मउय-मारुय-लया-हय-पकंपमाणं अतिप्पमाणं जणपिच्छणिज्जवं ।। तओ पुणो जच्च-कंचणुज्जलंतरूवं निम्मल-जल-पुन्नमुत्तमं दिप्पमाणसोहं कमल कलावपरिरायमाणं पडिपुण्ण-सब्वमंगल-भेयसमागमं पवररयणपरायंतकमलट्ठियं नयण-भूसणकरं पभासमाणं सव्वओ चेव दीवयंतं सोमलच्छी-निभेलणं सव्वपावपरिवज्जियं सुभं भासुरं सिखिरं सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-आसत्त-मल्लदामं पेच्छइ सा रययपुन्नकलसं ।९। तओ पुणो रविकिरण-तरुण बोहिय-सहस्सपत्त-सुरहितर-पिंजरजलं जलचर-पगर-परिहत्थग-मच्छ-परिभुज्जमाण-जलसंचयं महंत जलंतमिव कमल-कुवलय-उप्पल-तामरस पुंडरीय-उरुसप्पमाण-सिरिसमुदएहिं रमणिज्ज-रूवसोभं पमुइयंत-भमरगणमत्तमहकर-गणोक्करोलिब्भमाण-कमल कादंबग-बलाहग-चक्काक-कलहंस-सारस-गव्विय-सउणगण-मिहुण-सेविज्ज-माण-सलिलं पउमिणिपत्तोवलग्ग-जलबिंदुमुत्तचित्तं च पेच्छइ सा हियय-णयणकंतं पउमसरं नाम सरं सररुहाभिरामं ।१०। तओ पुणो चंदकिरणरासि-सरिस-सिरिवच्छसोहं चउगमण-पवड्ढमाण-जलसंचयं चवल-चंचलुच्चायप्पमाण-कल्लोल-लोलंतोयपडुपवणाहय चालिय-चवल-पागड-तरंग-रंगत-भंग-खोखुब्भमाण-सोभंत-निम्मल-उक्कड-उम्मीसह-संबंध-धावमाणोनियत्त-भासुरतराभिरामं महामगर-मच्छ-तिमिर-तिमिगिल-निरुद्ध-तिलितिलियाभिधायं कप्पूर-फेण-पसर-महानई-तुरियवेग-समागयभमगंगावत्त-गप्पमाणुच्चलंत-पच्चोनियत्त-भममाण-लोलसलिलं पेच्छइ खीरोय-सागरं सरय-रयणिकर-सोम्मवयणा ।११। तओ पुणो तरुणसूरमंडलसमयभं उतम कंचण-महामणि-समूह-पवर-तेय-अट्ठसहस्स-दिप्पंत-नभप्पईवं कणग-पयर-पलबमाण
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महावीरचरिवं
मुत्तासमुज्जलं जलंतदिव्वदामं हामिग-उसभ तुरग नर-मगर- विहग वालग किन्नर - रुरु- सरभ-चमर संसत्त- कुंजर - वणलयमलय-भत्तिवित्तं न्यवमाण संपुष्ययो नि जलपण-विजल-जलहर-मज्जिय-सहाणुणादिणा देवहि-महारर्ण
धूमपमर्पत-गंवाभिरामं निवालो सेयं सेवप्यभं
समवि जीवन पर कालागरुपवर
मुरखराभिरामं पिन्छ सा सातोयभोगं विमानव कुंडरी ॥१२॥
६१
तत्र पुगो पुलग वेरिंदनील-सासग - कक्केयण लोहियक्ख मरगय-मसारगल्ल- पवाल- फलिह-सोगंधिय-हंसगब्भ- अंजण- चंदप्पभवररयण-महियलपट्टियं गगणमंडल से पभासतं गं मेरुगिरि-गा पिच्छा सा रयणनियररासि |१३| सिहं साल-पिंगल-मपय परिसिच्यमाण- निळून गपगाइय-जलत जानुज्जलाभिरामं तरतमजोगेहिं जालपयरेहिं अण्णमणमिव अणुपइण्णं पेच्छइ जालुज्जलणगं अंबरं व कत्थइपयंतं अइवेगचंचलं सिहिं ॥ १४ ॥ ]
एमेते एयारिसे सुभे सोमे पियदंसणे सुरूवे सुविणे दट्ठूण सयणमज्झे पडिबुद्धा अरविंदलोयणा हरिसपुलइयंगी । गाहा एए पोट्स सुमिणे, सब्बा पासे तित्ययरमाया । जं रमणि बक्कमई, कृष्छिसि महावतो अरहा ॥१॥ तए णं सा दिखना खतिवाणी इमेवा ओराने बोट्स महासुनिने पासिता परिबुद्धा समाणी दु-जावया धाराहयक लंबपुप्फगं पिव समूससियरोमकूवा सुमिणोग्गहं करेइ, सुमिणोग्गहं करिता सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ,
सणिज्जाओ अता पायपीठातो पचोरुहर
पच्चोरुहिता अतुरियं अचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सर्याणिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिएं तेणेव उवागच्छइ,
उवागच्छित्ता सिद्धत्थं खत्तियं ताहि इट्टाहि कंताहि पियाहि मणुन्नाहि मणामाहिं ओरालाहि कल्लाणाहि सिवाहि धन्नाहि मंगलाहि सस्सिरियाहि हिययगमणिज्जाहिं हियय- पल्हायणिज्जाहि मिय-महुर-मंजुलाहिं गिराहि संलवमाणी संलवमाणी पडिबोइ ।
तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भगुण्णाया समाणी नाणामणि रयण भत्तिचित्तंसि भद्दासांसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्या वीसत्था सुहासणवरगया सिद्धत्थं खत्तियं ताहि इट्ठाह - जाव -संलवमाणी संलवमाणी एवं वयासी एवं खलु अहं सामी अज्ज हंसि तारिससि सवणिज्जंसि वनओ-जावडबुडा जहा गाहा गयवसह जावसिहि च । तं एतेसि सामी ! ओरालाणं चोद्दसह महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ?
तए णं से सिद्धत्थे राया तिसलाए खत्तियाणीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्ते आनंदिए पी मणे परमसोमसिए हरिस-यस-विसप्पमाण हिवए बाराह्य नीव सुरहि-कुसुम-मालय- रोमकूबे ते सुमिणे ओहिति ते सुमिणे ओगिण्हित्ता ईहं अणुपविसइ,
ई अपविसित्ता अप्पणो साहाविएणं मइपुव्वएण बुद्धिविन्नाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थोग्गहं करेइ,
त्यहं करिता तिलाखत्तियाणीं ताहि इट्ठाहि-जाव-मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहि वग्गूहिं संलवमाणे संलवमाणे एवं वयासी" ओराला गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, कल्लाणा णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा, एवं सिवा धन्ना मंगल्ला सस्सिरीया आरोग्यदीहाउय-कल्याण मंगलकारा गं तुमे देवापिए । सुमिणा दिडा ! तं जहा
अत्पलाभो देवापिए भोगलामो देवानुष्पिए पुतलामो देवाणुम्पिए! सोक्लामो देवागुथिए! रज्जलाभो देवापिए! एवं खलु तुमं देवाप्पिए ! नवहं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं विइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं अम्हं कुलदीपस्य कुलडिस कुलतिलयं कुलकितिकर कुलवित्तिकरं कुलदिणय कुलबहार कुलनंदिकरं कुलजसकर कुलपायचं कुणकरं सुकुमायाणिचार्य अही संपुन वेदियसरीरं गंज-गुणोवेयं माम्माण यमाण-परिवृन्तसुजाय सव्वंग- सुंदरंग ससिसोमाकारं कंतं पियं सुदंसणं दारयं पयाहिसि" ।।
सेवि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते विच्छिन्न- विउल- बलवाहणे रज्जवई राया भविस्सड, तं जहा
ओराला पं तुमे देवाएि सुमिया दिद्वा-जाव-दो पि तच्च पि अणुवृहद
वाणं सा तिला खतवाणी सिद्धत्वस्तरशो अंतिम सोम्यानिसम्म बुडा जाब-हिया करयपरियि वसनहं
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी"एवमेय सामी ! तहमेयं सामी ! अवितहदेयं सामी ! असंदिद्धमेयं सामी ! इच्छ्यिमेयं सामी ! पडिच्छियमेयं सामी ! इच्छियपडिच्छियमेयं सामी! सच्चे णं एसम8 से जहेयं तुब्भे वयह" ति कट्ट ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ । ते सुमिणे सम्म पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणि नाणामणि-रयण-भत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुढेइ अब्भुट्टित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंस-सरिसीए गईए, जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता एवं वयासी"मा मे ते उत्तमा पहाणा मंगला महासुमिणा अन्नेहिं पावसुमिणेहिं पडिहम्मिस्संति" त्ति कटु देवय-गुरु-जणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहि लट्ठाहिं कहाहि सुमिणजागरियं जागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ । तए णं सिद्धत्थे खत्तिए पच्चूस-कालसमयंसि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ कोडुबियपुरिसे सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अज्ज सविसेस बाहिरिज्जं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त-सम्मज्जिओवलितं सुगंध-वर-पंचवन्नपुप्फोवयार-कलियं कालागरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-डज्झत-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगधवरगंधियं गंधबट्टिभूयं करेह, कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता य सीहासणं रयावेह, सीहासणं रयावित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह । तए णं ते कीकुंबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठ-जाव-हियया करलय-जाव-कटु ‘एवं सामि!' ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, एवं सामि ! ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त-जाव-सीहासणं रयाति, सीहासण रयावित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं सिद्धत्थे खत्तिए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिल्लियम्मि अह पंडरे पहाए रत्तासोय-पगासकिसुय-सुयमुह-गुंजद्ध-राग-सरिसे कमलायर-संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते य सणिज्जाओ अब्भुठेइ । सयणिज्जाओ अब्भुट्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पायपीढाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अट्टणसालं अणुपविसित्ता अणेग-वायाम-जोग-वग्गणवा-मद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंधवरतेल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं जिंघणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहि सबिदिय-गाय-पल्हायणिज्जेहिं अभंगिए समाणे तेल्लचम्मंसि णिउणेहि पडिपुन्न-पाणि-पाय-सुकुमाल-कोमल-तलेहिं पुरिसेहिं अभंगण-परिमद्दणुव्वलणकरण-गुणनिम्माएहिं छेएहि दोहिं पठेहि कुसहिं मेधावीहिं जियपरिस्समेहि १ अट्टिसुहाए, २ मंससुहाए, ३ तयासुहाए. ४ रोमसुहाए, चउविहाए सुहपरिकम्मणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्सने अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ । अट्टणसालाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुप्पविसित्ता समुत्तजालकलावाभिरामे विचित्त-मणि-रयण-कोट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि नाणा-मणि-रयण-भत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहनिसन्ने पुप्फोदएहि य गंधोदएहि य उगहोदएहि य सुहोदएहि य सुद्धोदएहि य कल्लाण-करण-पवर-मज्जण-विहीए मज्जिए। तत्थ कोउयसहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंध-कासातिय-लूहियंगे अय-सुमहग्ध-दूसरयणसुसंवुए सरस-सुरहि-गोसीस-चंदणाणुलित्त-गत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे आविद्धमणिसुवन्ने कप्पिय-हार-द्धहार-तिसरय-पालब-पलंबमाण-कडिसुत्तय-कयसोहे पिणद्धगेविज्जे अगुलिज्जग-ललिय-कयाभरणे
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महावीर-चरियं
वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे मुद्दियापिंगलंगुलीए पालंबपलंबमाणसुकयपडत्तरिज्जे नाणामणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-निउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ -लट्ठ-आविद्ध-वीरवलए । कि बहुणा? कप्परुक्खते चेव अलंकियविभूसिए नरिदे सकोरिटमल्लदामेणं छत्तेणं घरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं मंगलजयसद्दकयालोए अणेग-गणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारियअमच्च-चेड-पीढमद्द-णगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दुय-संधिपालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेह-निग्गए इव गहगणदिप्पंतरिक्ख-तारागणाण मज्झे ससि व्व पियदसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ । मज्जणधराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता अप्पणो उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठभद्दासणाई सेयवत्थपच्चत्थुयाई सिद्धत्थय-कय-मंगलोवयाराई रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणि-रयण-मंडियं अहियपेच्छणिज्ज महग्धवर-पट्टणुग्गयं सहपट्टभत्तिसतचित्तमाणं ईहामिय-उसह-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं अभितरियं जबणियं अंछावेइ, अंछावेत्ता नाणामणि-रयण-भत्तिचित्तं अत्थरयमिउमसूरगोत्थयं सेयवत्थपच्चत्युयं सुमउयं अंगसुह-फरिस गं विसिट्ठ तिसलाए खत्तियाणीए भद्दासणं रयावेइ । भद्दासणं रयावित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अठंग महानिमित्त-सुत्तत्थपारए विविह-सत्थ-कुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह । तए णं ते कोडुबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रत्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठा-जाव-हययिया करयल-जाव-पडिसुणेति पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता कुंडग्गामं नगर मज्झं मज्झेण जेणेव सुमिण-लक्खण-पाढगाणं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता सुविण-लक्खण-पाढए सद्दाविति । तए णं ते सुविण-लक्खण-पाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठतुट्ठ-जाव-यिया व्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगलाई वत्थाई पवराई परिहिया अप्प-महग्घाभरणालंकिय-सरीरा सिद्धत्थकहरियालिय कय-मंगलमुद्धाणा सरहिं सएहिं गेहेहितो निग्गच्छति । निग्गच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगर मज्झमझेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रिनो भवण-वर-वडिसग-पडिदुवारे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता भवण-वर-वडिसग-पडिदुवारे एगयओ मिलंति, एगयओ मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करतलपरिग्गहियं-जाव-कटू सिद्धत्थं खत्तियं जएण विजएणं वद्धाविति । तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा सिद्धत्थेणं रन्ना वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति । तए णं सिद्धत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणि जवणियंतरियं ठावेइ, ठावित्ता, पुप्फ-फल-पडिपुन्न-हत्थे परेणं विणएणं ते सुमिणलक्खणपाढए एवं वयासि"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज तिसला खत्तियाणी तंसि तारिसगंसि-जाव-सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमेयारूवे ओराले-जाव-चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं जहा–गाहा-गय उसभ-जाव-सिहि च । तं एतेसिं चोदसण्हं महासुमिणागं देवाणुप्पिया ! ओरालाणं-जाव-के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? तए णं ते सुमिगलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिए एयम?' सोच्चा निसम्म हट्ठ-जाव-हियया ते सुविणे ओगिण्हंति,
ओगिण्हित्ता ईहं अणुपविसंति, ईहं अणुपविसित्ता अन्नमनेणं सद्धिं संलाविति, संलावित्ता तेसिं सुविणाणं लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अहिगयट्ठा सिद्धत्थस्स रन्नो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं सुविण सत्थे बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा, बावरि सव्वसुविणा दिट्ठा,
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तत्थ ण देवाणुप्पिया ! अरहंतमातरो वा, चक्कवट्टिमायरो वा, अरहतंसि वा, चक्कहरसि वा, गब्भं वक्कममाणंसि एतेसि तोसाए महामुविणाणं इमे चोद्दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति, तं जहा-गाहा- गयवसह -जाव-सिहि च । वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसिं गन्भं वक्कममाणंसिं एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अण्णतरे सत्त महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्ांति । बलदेवमायरो वा, बलदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोइसण्ह महासुविणाण अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झांति । मंडलियमायरो वा मडलियंसि गभं वक्ते समाणे एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयर एगं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुज्ांति । [भग० स० १६ उ० ६, सु० ७६-९० ।] इमे य ण देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुविणा दिट्ठा,-जाव-मंगल्लकारगा णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुविणा दिट्ठा, तं जहाअत्थलाभो देवाणुप्पिया ! -जाव- सुक्खलाभो देवाणुप्पिया! रज्जलाभो देवाणुप्पिया !, एवं खलु देवागुप्पिया ! तिसला खत्तियाणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं विइक्कंताणं तुम्हें कुलकेउं-जाव- दारयं पयाहिइ । से वि य ण दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सुरे वीरे विक्कंते वित्थिण्ण-विपुल-बलवाहणे चाउरंतचक्कवट्टी रज्जवई राया भविस्सइ, जिणे वा तिलोक्कनायए धम्मवरचक्कवट्टी, तं ओराला णं देवाणुप्पिया! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा-जाव-आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगलकारगा णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा । तए णं से सिद्धत्थे राया तेसि सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्टत?-जाव-हियए करयल-जाव- ते सुविणलक्खणपाढगे एवं वयासी-- "एवमेयं देवाणुप्पिया ! -जाव- इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! सच्चे णं एसमठे से जहेयं तुब्भे वयह त्ति” कट्टु ते सुविणे सम्म विणएणं पडिच्छइ, ते सुविणे पडिच्छित्ता ते सुविणलक्वणपाढए ण विउलेणं पुष्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयति, विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइत्ता पडिविसज्जेइ । तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए सीहासणाओ अब्भुट्ठ इ, सीहासणाओ अब्भुट्टित्ता जेणेव तिसला खत्तियाणी जवणियंतरिया तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तिसलं खत्तियाणी एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिए ! सुविणसत्थंसि बायालीसं सुविणा -जाव -एगं महासुविणं सुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झांति । इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए ! चोदस महासुविणा दिट्ठा, तं जहा--गाहा-गयवसह-जाव-सिहिं च । ओराला णं तुमे-जाव-जिणे वा तेलोक्कनायए धम्मवरचक्कवट्टी ।।" तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हठ्ठलुट्ठा-जाव-हियया करयल-जाव- ते सुविणे सम्म पडिच्छइ। सम्म पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणी नाणामणि-रयण भत्ति-चित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुट्टित्ता अतुरियं अचवलं असंभताए अविलंबियाए रायहंस-सरिसीए गईए जेणेव सते भवणे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता सयं भवणं अणुपविट्ठा । जप्पभिई च ण समणे भगव महावीरे तं नायकुलं साहरिए तप्पभियं च णं बहवे वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा सक्कवयणेणं से जाइं इमाई पुरापोराणाई महानिहाणाई भवंति, तं जहापहीणसामियाई पहीणसेउयाई पहीणगोत्तागाराई उच्छन्नसामियाई उच्छन्नसे उकाई उच्छन्नगोत्तागाराई गामाऽऽगर-नगर-खेडकब्बड-मडंब-दोगमुह-पट्टणासम-संवाह-सन्निवेसेसु सिंघाडएसु वा, तिएसु बा, चउक्केसु बा, चच्चरेसु वा, चउम्मुहेसु वा, महाप हेसु वा, गामट्ठाणेसु वा, नगरट्ठासुणे वा, गामनिद्धमणेसु बा, नगरनिद्धमणेसु वा, आवणेसु वा, देवकुलेसु वा, सभासु वा, पवासु वा, आरामेसु वा, उज्जाणेसु वा, वणेसु वा, वणसंडेसु वा सुसाण-सुन्नागार-गिरिकंदर-संति-सेलोबट्ठाणभवण-गिहेसु वा सन्निक्खित्ताई चिट्ठति ताई सिद्धत्थरायभवणंसि साहरंति ।
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महावीर चरियं
जम्म-काले देवकयोज्जोयाई
२७४ जणं राई तिला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं राई भवणवइ-वाणमंतर - जोइसिय-विमावासिदेवेहि य देवीहि य ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देव-सण्णिवाते देवकहक्क हे उप्पिजलगभूए पानि होत्या ।
६५
जं रर्याणि च णं समणे भगव महावीरे नायकुलंसि साहरिए तं रर्याणि च णं नायकुलं हिरण्णेणं वड्ढित्था, सुवण्णेणं वड्ढित्था, एवं धणणं, धन्नेणं, रज्जेणं, रट्ठेणं, बलेणं, वाहणेणं, कोसेणं, कोट्ठागारेणं, पुरेणं, अंतेउरेणं, जणवएणं, जसवाएणं विस्था विपुल - धण - कणग- रयण-मणि-मोत्तिय संख-सिलप्पवाल-रत्तरयणमाइएणं पीइसक्कारसमुदए अब अई अभिवद्दत्था
संतसारसावएज्जेणं
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९९२ ॥ कप्प० सु० ९४ ।
तर णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापिऊणं अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - जयमिव गं अम्ह एस दार कुच्छिसि गमता ते तप्यभि चणं अम्हे हिरोणं वदामो सुवणं म एवं घणे, घने, शेणं, रगं बलेणं, वाहणेणं, कोसेणं, कोट्टागारेणं, पुरेणं, अंतेउरेणं, जगवणं, जसवाएणं वदामो विपुल-वण-कणगरयण-मणि-मोत्तिय संख सिल प्पवाल- रत्तरयणमाइएणं संतसारसावएज्जेणं पिइसक्कारसमुदएणं अतीव अतीव अभिवड्ढामो ।
तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स एयाणुरूवं गोन्न गुणनिष्पन्न नामधिज्जं करिस्सामो 'वद्धमाणो' त्ति ।
समभव महाबीरे माउ-अणुकंपणाए निचले निष्कंदे निरयणं अल्सीण-पल्लीणगुप्ते या विहोत्या । तए णं तीसे तिसलाए खत्तियाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था - "ह्डे मे से गन्भे, मडे में से गब्भे, एमे से गलिए मे से एस मे गर्भ पुव्वि एयति श्याणि नी एयति नि" कट्टु बोहतमणसंकष्या चितासोगसारं संपविट्ठा करनपत्यमुही अट्टज्झागोबनवा भूमिगमविया शिवाय । तं पिय सिद्धत्थरायभवणं उवरय-मुइंग-तंती- तल-ताल- नाडइज्ज-जणमणुज्जं दीणविमणं विहरड़ ।
,
तणं समने भगवं महावीरे मऊ अवमेारूपं अत्यं परिययं मनोवयं संप्पं समुपण विजाणित्ता एगदेसेणं एप तए णं सा तिसला खत्तियाणी हट्टतुटु-जाव-हिया एवं वयासि -
-
"नो लुगडे-जामो मलिए मे गन्ने पुचिनो एव वाण एव ति कह जाव एवं विहरङ्ग । तए णं समणे भगवं महावीरे गब्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ
"नो खलु मे कप्पद अम्मापिएहि जीवतेहि मुंडे भवित्ता अगरवासानो अनगारियं पव्वतए"।
तरणं सा तिला यतियाणी हावा कपबनिकम्मा कपकोउयमंगळपायन्त्तिा सव्वालंकारभूरिया व गन्नाइसहि नाइउण्हेहि नाइतितेहि नाइक एहि नाइकसाइएहि नाइअंबिलेहि नाइमहुरेहि नातिनिद्धेहि नातिलुक्खेहिं नातिउल्लेहि नातिकेहि उभयमाणसुहिं भोयण च्छायण-गंध-मल्लेह ववगय-रोग-सोग मोह-भय-परित्तासा जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देते य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहि सयणासणेहि पइरिक्कसुहाए मणोणुकूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुन दोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वुच्छिन्नदोहला विणीयदोहला सुहंसुहेणं आसयइ सयति चिट्ठ निसी तु सहसणं तं गर्भ परिवह
तेणें काले ते समपुर्ण सम भगवं महावीरे के से गिह्माणं पढने मासे दोच्ये पक्से वित्तसुद्धे तस्स णं चित्तमुदस्स तेरसीदिवसैंण नयष्णं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अवद्यमान व राहंदियाण विनताण उच्चाणते हे पढमे चंदजोगे सोमा दिसावितिमिरासु विमुद्धानु जतिएसु सव्यसउणे पाहणाणुकृतंन्ति भूमिसम्पति माध्यंसि पातंसि निष्पष्णमेदिणसि कालंसिपमुदितपक्कीलिएसु जणवएस पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहि नक्खत्तेणं जोगमुबागएणं आरोग्ग दारयं पयाया ।
कप्प० सु० ३२-९३ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
देवकय-अमयाइवासाई
२७५ जण्णं यणि तिसला खत्तियाणी समगं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं रणि बहवे देवा य देवीओ यएगं महं अमवासं च, गंधवासं च, चुग्णवासं च, हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिंसु ॥
आया० सु०२, अ० १५, सु० ९९३।
कप्प० सु० ९५॥
देवकयतित्थयरजम्माभिसेओ
२७६ जण्णं रर्याग तिसला खत्तियागो समणं भगवं महाबोरं अरोया अरोयं पसूया, तणं रणि भवगवइ-वाणमंतर-जोइसियविमाणवासिणो देवा य देवीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्त कोउगभूइकम्माई तित्थयराभिसेयं च करिसु ॥
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९९३ । सिद्धत्थकयजम्मुस्सवो २७७ तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए भवणवइ-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणिएहि देहि तित्थयरजम्मणाभिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चू
सकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ नगरगुत्तिए सद्दावित्ता एवं बयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं करेह, चारगसोहणं करिता, मागुम्माणबद्धणं करेह, माणुम्माणवद्धणं करिसा कुंडपुरं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जियोवलेवियं सिवाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सित्तसुइसम्भट्ठरत्यंतरावगवीहियं मंचाइमंचकलियं नाणाविहरागभूसियज्यपडागमंडियं लाउल्लोइयमहियं गोसीस-सरसरत्तचंदण-बद्दरदिग्णपंचंगुलितलं उवचियचंदणकलसं चंदण-घड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभागं आसत्तोसत्त-विपुल-वट्ट-वग्धारियमल्लदाम-कलावं पंचवन्न-सरस-सुरहि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागुरु-पवर-कुंदरुक्क-तुरुक्क-डज्शंत-धूव-मधधितगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-पवग-कहग-पढक-लासक-आइंखग-लंख-मंख-तूणइल्लतुंबवीणिय-अणेगतालायराणुचरियं करेह कारवेह, करेत्ता, कारवेत्ता य जूयसहस्सं च, मुसलसहस्सं च उस्सवेह, उस्सवित्ता य मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणेह । तए णं ते णगरगुत्तिया सिद्धत्थेणं रना एवं वुत्ता समाणा हटुतुट्ठ - जाब - हियया करयल - जाव - पडिसुणित्ता खिप्पामेव कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं - जाब - उस्सवेत्ता जेणेव सिद्धत्ये राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल - जाव - कटु सिद्धत्थस्स रन्नो एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।
२७८ तए णं सिद्धत्थे राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता - जाव - सव्वोरोहेणं सव्वपुप्फगंधवत्थमल्लालंकार
विभूसाए सव्वतुडियसद्दनिनाएणं महया इड्ढोए महया जुतीए महया बलेणं महया वाहणेणं महया समुदएणं मह्या वरतुडियजमगसमगप्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरव-मुइंग-दुंदुहि-निग्धोसणादितरवेणं उस्सुकं उक्करं उक्किट्ठ अदेज्ज अमेज्ज अभडप्पवेसं अडंडकोडंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलियसपुरजणजाणवयं दसदिवसटिइपडियं करेइ । तए णं से सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइपडियाते वट्टमाणीए सइए य, साहस्सिए य, सयसाहस्सिए य, जाए य, दाए य, भाए य, दलमाणे य, दवाबमाणे य, सइए य, साहस्सिए य, सयसाहस्सिए य, लंभे पडिच्छेमाणे य, पडिच्छावमाणे य एवं बिहरइ ।
२७९ तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो
पढमे दिवसे ठिइपडियं करेंति, तइए दिवसे चंदसूरस्स दंसणियं करिति, छठे दिवसे जागरियं करेंति, एक्कारसमे दिवसे विइक्कते निव्वत्तिए असुतिजातकम्मकरणे संपत्ते
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महावीर-चरियं
बारसाहदिवसे विउलं असग-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडाविति, उवक्खडावित्ता मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं नायए य खत्तिए य आमंतेत्ता तओ पच्छा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिते भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं नायएहि य सद्धि तं विउलं असणं, पाणं, खाइम, साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परि जमाणा परिभाएमाणा विहरति ।
वद्धमाणनामकरणं
२८० जिमियभुत्तोत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुईभूया तं मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं नायए य
खत्तिए य विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्माणेति सक्कारिता सम्माणित्ता तस्सेव मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणस्स नायाण य खत्तियाण य पुरओ एवं वयासी
पुट्विं पि य णं देवाणुप्पिया! अम्हं एयंसि दारगंसि गन्भं वक्तंसि समाणंसि इमेयारूवे अब्भत्थिए चिंतिए-जाव-समुप्पज्जित्था। जप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिंसि गब्भत्ताए वक्कते तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णणं वड्ढामो सुवष्णणं धणेणं धण्णेणं-जाव-सावएज्जेणं पीइ सक्कारेणं अईव अईव अभिवड्डामो सामंतरायाणो वसमागया य तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सए तया णं अम्हे एयस्स दारगस्सं एयाणुरूवं गोण्णं गुणणिप्फण्णं नामधिज्जं करिस्सामो बद्धमाणुत्ति तं होउ णं कुमारे बद्धमाणे नामेणं ।।
कप्प० सु० ९६-१०३।
बालसंवडढणं
२८१ तओ णं समणे भगवं महावीरे पंचधातिपरिवुडे, तं जहा-१ खीरधाईए, २ मज्जणधाईए, ३ मंडावणधाईए, ४ खेल्ला
वणधाईए, ५ अंकधाईए, अंकाओ अंकं साहरिज्जमाणे रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणे व चंपयपायवे अहाणुपुव्वीए संबड्डइ ।
आया० सु०२, अ०१५, सु०९९६।
जोवणं
२८२ तओ णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणये विणियत्तबाल-भाव अप्पुस्सुयाई उरालाई माणुस्सगाई पंचलक्खणाई कामभोगाई सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई परियारेमाणे, एवं च णं विहरइ ।
आया० सु०२, अ०१५, सु०९९७ ।
१. जओ णं पभिइ समणे भगवं महावीरे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गन्भं आहुए, तओ णं पभिइ तं कुलं विपुलेणं
हिरणेणं सुवण्णेणं धणेणं धणेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्ढइ ।।। तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो एयमढं जाणेत्ता णिवत्तदसाहंसि वोक्कतसि सुचिभूयंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवणिमंतेति, मित्त-णाति-सयण-संबंधिवगं उवणिमंतेत्ता बहवे समण-माहण-किवण-वणिमग-भिच्छुडग-पंडरगातीण विच्छड्डेंति विगोवेंति विस्साणेति, दायारे (ए?)सु णं दायं पज्जभाएंति, विच्छड्डित्ता विगोवित्ता विस्साणित्ता दायारे (ए ?)सु ण दायं पज्जभाएत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुजावेंति, मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुजावेत्ता मित्त-णाइ-सयणसंबंधिवग्गेणं इमेयारूवं णामधेज कारवेंति-जओ णं पभिइ इमे कुमारे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गब्भे आहुए, तओ णं पभिइ इमं कुलं, विउलेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं घण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्ढइ, तो होउ णं कुमारे " वद्धमाणे"।
आया० सु० २, अ० १५, सु० ९९५॥
कप्प० सु० १०३।
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६८
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तिण्णि णामाई
२८३ समणे भगवं महाबीरे कासवगोत्ते । तस्स णं इमे तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा
१. अम्मापिउसंतिए “वद्धमाणे" २. सह-सम्मुइए “समणे" ३. "भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ" ति कट्ट देवेहि से णाम कयं “समणे भगवं महावीरे"।
आया० सु० २, अ०१५, सु० ९९८ ।
कप्प० सु०१०४।
अम्मापियराणं देवगई
२८४ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोबासगा यावि होत्था ।
ते णं बहुई वासाई समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्तार उववण्णा । तओ णं आउखएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिारसंति बुझिास्संति मच्चिस्तंति परिणिन्त्राइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
आया० सु० २, अ०१५, सु. १००२ ।
वडढमाणस्स णियगा
२८५ समणस्स णं भगवओ महाबीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा
१. सिद्धत्थे ति वा २. सेज्जसे ति वा ३. जसंसे ति वा । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्ठ-सगोत्ता । तोसेणं तिणि णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा१. तिसला ति वा २. विदेहदिण्णा ति वा ३. पियकारिणी ति वा । समणस्त णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए 'सुपासे" कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेठे भाया ‘णंदिवद्धणे' कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेट्ठा भइणी 'सुदंसणा' कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा 'जसोया' कोडिण्णागोत्तेणं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स धूया कासवगोत्तेणं । तीसे णं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा१. अणोज्जा ति वा २. पियदसणा ति वा । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स णत्तुई कोसियगोत्तेणं । तीसे णं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा१. सेसवती ति वा २. जसवती ति वा ।
आया० सु०२, अ०१५, सु० ९९९-१००१
कप्प० सु० १०५-१०९ ।
अभिणिक्खमणाभिप्पायो संवच्छरदाणं य २८६ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे णाते णायपुत्ते णायकुलविणिवत्ते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसुमाले
तीसं वासाई विदेहत्ति कटु अगारमझे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहिं देवलोगमणुपत्तेहिं समत्तपइण्णे चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं, चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सार-सावदेज्ज, विच्छड्डेसा विगोवित्ता
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महावीर-चरियं
६९
विस्साणित्ता, दायारेसु णं 'बायं पज्जभाएत्ता, संवच्छरं दलइत्ता', जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्ष-मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्षेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगएणं अभिणिक्खमणाभिप्पाए यावि होत्था
आया० सु० २, अ० १५, सु० १००३ । देविदसक्ककयदेवच्छंदए मज्जणाइं सिबियाविउव्वणं य २८७ तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमणाभिप्पायं जाणेत्ता भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य
देवीओ य सएहिं-सएहिं स्वेहि, सएहि-सएहिं णेवत्येहि, सरहिं-सएहिं चिंधेहि, सम्विड्ढीए सम्वजुतीए सव्वबलसमुदएणं सयाई-सयाई जाणविमाणाई दुरुहंति, सयाई-सयाई जाणविमाणाई दुरुहिता अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेति, अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेता अहासुहमाई पोग्गलाई परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाई परियाइत्ता उड्दं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्वाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाई दीवसमुद्दाई बीतिक्कममाणा-बीतिक्कममाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभाए तेणेव झत्तिवेगेण उवट्ठिया ।
आया. सु. २, अ० १५, सु० १०१० । २८८ तओ णं सक्के देविंदे देवराया सणियं-सणियं जाणविमाणं ठवेति,
सणिय-सणियं जाणविमाणं ठवेत्ता सणियं-सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरति, सणियं-सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरित्ता एगंतमवक्कमेति, एगंतमबक्कमेत्ता महया वेउव्विएणं समुग्धाएणं समोहण्णति,
महया वेउविएणं समुग्धाएणं समोहणिला एग महं णाणामणिकणयरयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकतरूवं देवच्छंदयं विउव्वति । २८९ तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्जादेसभाए एगं महं सपायपीढ़ णाणामणिकणय-रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकतरूवं सिंहासणं बिउब्बइ,
विउवित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागचाप्रति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ,
समगं भगवं महावीरं तिवावुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति, २९० बंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति,
उवागच्छित्ता सणिय-सणियं पुरत्याभिमुहे सीहासणे णिसीयावेइ, सणियं-सणियं पुरत्याभिमुहे सीहासणे णिसीयावेत्ता सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अभंगेति, अभंगेत्ता, गंधकसाएहिं उल्लोलेति, उल्लोलित्ता सुद्धोदएणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता जस्स जंतपलं सयसहस्सेणंति पडोलत्तित्तएणं साहिएणं सोतएणं गोसोस-रत्त-चंदणेणं अणुलिपति, अणुलिंपित्ता ईसिणिस्सासवातवो वरणगरपट्टणुग्गयं कुसलणरपसंसितं अस्सलालापेलवं छेयायरियकणगखचियंतकम्म हंसलक्खणं पट्टजुयलं णियंसावेइ,
१. संगहणी-गाहाओ [आया० २ अ० १५ सु० ७४७-७५२।]
संवच्छरेण होहिति, अभिणिक्खमणं तु जिणरिदस्स । तो अत्थ-संपदाणं, पब्वतई पुव्वसूराओ ।।१।। एगा हिरणकोडी, अट्टेव अणूणया सयसहस्सा । सूरोदयमाईयं, दिज्जइ जा पायरासो त्ति ।।२।।
आव० नि० गा० २१६, २१७ । तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीति च होति कोडीओ। असितिं च सयसहस्सा, एयं संवच्छरे दिण्णं।।३ ।।।
आव०नि० गा० २२० । वेसमणकुंडलधरा, देवा लोगंतिया महिड्ढीया । बोहिंति य तित्थयरं. पण्णरससु कम्म-भूमिसु ।।४।। बंभंमि य कप्पंमि य, बोद्धव्वा कण्हराइणो मज्झे । लोगंतिया विमाणा, अट्ठसु बत्था असंखेज्जा ।।५।। एए देवणिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं । सव्वजग-जीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि ॥६॥
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
णियंसावेत्ता हारं अद्धहारं उरत्थं एगावलिं पालंजसुत्त-पट्ट-मउड-रयणमालाई आविधावेति, आविधावेत्ता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संधातिमेणं मल्लेणं कप्परुक्खमिव समालंकेति,
२९१ समालंकेता दोच्चपि महया वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ,
समोहणित्ता एगं महं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि विउच्वइ, तं जहाईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मकर-विहग-वाणर-कुंजर-रुरु-सरभ-चमर-सदूलसीह-वणलय-विचित्तविज्जाहर-मिहुण-जुयल-जंत-जोगजुत्तं, अच्चीसहस्समालिणीयं, सुणिरूवित-मिसिमिसिंत-रूवगसहस्सकलियं, ईसिभिसमाणं, भिन्भिसमाणं, चक्खुल्लोयणलेस्सं, मुत्ताहलमुत्तजालंतरोवियं, तवणीय-पवरलंबूस-पलंबंतमुत्तदाम, हारहार-भूसणसमोणयं, अहियपेच्छणिज्ज, पउमलयभत्तिचित्तं, असोगलयभत्तिचित्तं, कंदलयभत्तिचित्तं, णाणालयभत्ति-विरइयं सुभं चारुकंतरूवं णाणामणिपंचवण्णघंटापडाय-परिमंडियग्गसिहरं पासादीयं दरिसणीयं सुरूवं ।।
अभिणिक्खमणं
२९२ तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे-मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खणं,
सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, 'हत्युत्तराहि णक्खत्तेणं' जोगोवगएणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, छठेणं भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए, चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए, सदेवमणुयासुराए परिसाए समणिज्जमाणेसमणिज्जमाणे उत्तरखत्तियकुंडपुर-संणिवेसस्स मज्झमझणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव णायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उजागच्छिता ईसिरयणिप्पमाणं अच्छुप्पेणं भूमिभागेणं सणियं-सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणिं ठवेइ, ठवेत्ता सणियं-सणियं चंदप्पभाओ सिवियाओ सहस्सवाहिणीओ पच्चोयरइ, पच्चोयरित्ता सणियं-सणियं पुरत्याभिमुहे सीहासणे णिसीयइ, आभरणालंकारं ओमुयइ । तओ गं बेसमणे देवे जन्नुब्वायपडिए समणस्स भगवओ महावीरस्स हंसलक्खणेणं पडेणं आभरणालंकारं पडिच्छइ ।
पंचमुट्ठिलोयकरणं २९३ तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेइ ।
१. संगहणी-गाहाओ
सीया उवणीया, जिणवरस्स जरमरणविप्पमुक्कस्स । ओसत्तमल्लदामा, जलथलयदिब्वकुसुमेहिं ।। सिवियाए मायारे, दिव्वं वररयणस्वचेवइयं । सीहासणं महरिहं, सपादपीढं जिणवरस्स ।। आलइयमालमउडो, भासुरबोंदी वराभरणधारी। खोमयवत्थणियत्थो, जस्स य मोल्लं सयसहस्सं । छठेणं उ भत्तेणं, अज्झवसाणेण सोहणेण जिणो । लेसाहिं विसुज्झतो, आरुह्इ उत्तमं सीयं ।।। सीहासणे णिविट्ठो, सक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं । वीयंति चामराहिं, मणिरयणविचित्तदंडाहिं ।। पुचि उक्खित्ता, माणुसेहिं साहट्ठरोमपुलएहि । पच्छा वहंति देवा, सुरअसुरगरुलणागिंदा ।। पुरओ सुरा वहंति, असुरा पुण दाहिंणमि पासंमि । अवरे वहति गरुला, णागा पुण उत्तरे पासे ।। वणसंडं व कुसुमियं, पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ।। सिद्धत्थवणं व जहा, कणियारवणं व चंपगवणं वा । सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं । वरपडहभेरिझल्लरि-संखसयसहस्सिएहि तूरेहिं । गयणतले धरणितले, तूर-णिणाओ परमरम्मो ।। ततविततं घणझुसिरं, आउज्जं चउविहं बहुविहीयं। वायंति तत्थ देवा, बर्हि आणट्टगसएहिं ।।
आया० सु० २ अ०१५, सु० १०११।
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महावीर-चरिय २९४ तओ णं सक्के देविदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स जन्नुव्वायपडिए वयरामएणं थालेणं केसाइं पडिच्छइ,
पडिच्छित्ता "अणजाणेसि भंते" त्ति कटु खीरोयसायरं साहरइ ॥
सामाइयचरित्त-पडिवज्जणं २९५ तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्टियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेइ, करेत्ता,
"सवं अकरणिज्जं पावकम्म," ति कटु सामाइयं चरित्तं पडिवज्जइ', सामाइयं चरित्तं पडिवज्जेत्ता देवपरिसं मणुयपरिसं च आलिक्ख-चित्तभूयमिव टुवेइ ।
आया० सु० २, अ० १५, सु० १०१२।
१. संगहणी गाहाओ
दिव्यो मणुस्सबोसो, तुरियणिणाओ य सक्कवयणेण । खिप्पामेव णिलुक्को, जाहे पडिवज्जइ चरित्तं ।
पडिवज्जित्तु चरित्तं, अहोणिसि सबपाणभूतहितं । साह?लोमपुलया, पयया देवा निसामिति ।। २. समणे भगवं महावीरे दक्खे दक्ख पतिन्ने पडिरूवे आलोणे भद्दए विणीए नाए नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे विदेहदिन्ने विदेह
जच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाइं विदेहंसि कटु अम्मापिईहिं देवत्तगहि गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुन्नाए समत्तपइन्ने पुणरवि लोयंतिएहिं जियकप्पिएहिं देहि ताहि इटाहि-जाव-वग्गूहि अणवरयं अभिनंदमाणा य अभिथुव्वमाणा य एवं वयासी"जय जय नंदा! जय जय भद्दा ! भदं ते जय जय खत्तियवरवसहा ! बुज्झाहि भगवं लोगनाहा ! पवत्तेहि धम्मतित्थं हियसुहनिस्सेयसकरं सबलोए सव्वजीवाणं भविस्सई ति" कट्ट जय जय सह पउंजंति । पुचि पि य णं समगस्स भगवओ महाबोरस्स माणुस्साओ गिहत्यधम्माओ अणुत्तरे आहोहिए अप्पडिवाई नाण-दसणे होत्था ।। तर णं समणे भगवं महाबोरे तेणं अगुतरेणं आहोहिएण नाण-दसणेणं अप्पणो निक्खमणकालं आभोएइ, अप्पणो निवमणकालं आभोइता चेच्चा हिरणं,-जाव- दाइयाणं परिभाएत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे, पढमे पक्खे, मग्गसिरबहुले तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपखणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिविट्टाए पमाणपत्ताए सुब्बएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, चंदप्पभाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखिय-चक्कियनंगलिय-मुहमंगलिय- बद्धमाणग-पूसमाणग-धंटियगणेहिं ताहिं इट्ठाहि-जाव-वग्गूहि अभिनंदमाणा अभिसंथुवमाणा य एवं वयासी - "जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! भदं ते अभग्गेहि णाणदंसणचरित्तेहिं अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्म, जिअविग्धो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमझा निहणाहि रागदोसमल्ले तवेणं धिइधणियबद्धकच्छे मद्दाहि अटुकम्मसन झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च वीर ! तेलोक्करंगमज्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं वरणाणं, गच्छ य मोक्खं परमपयं जिगवरोवदिठेणं मग्गेणं अकुडिलेणं, हंता परीसहचमूं । जय जय खत्तियवरवसहा ! बहूई दिवसाई, बहूई पक्खाई, बहूई मासाई, बहुई उऊई, बहूई अयणाई, बहूई संवच्छराई, अभोए परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे भयभेरवाणं धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति” कटु जय जय सई पउंजंति ।। तए णं समणे भगवं महावीरेनयणमालासहस्सेहि पेच्छिज्जमाणे पेच्छिज्जमाणे, वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे अभिथुव्वमाणे, हिययमालासहस्सेहिं अभिनंदिज्जमाणे अभिनंदिज्जमाणे, मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे, कंतिरुवसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणे पत्थिज्जमाणे, अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे दाइज्जमाणे, दाहिणहत्थेणं बहणं नरनारिसहस्साणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे, भवणपंतिसहस्साई समतिच्छमाणे समतिच्छमाणे, तंती-तल-ताल-तुडिय-गोय-वाइयरवेणं महुरेण य मणहरेण जयजयसद्दघोसमीसिएणं मंजुमंजुणा धोसेण य पडिबुज्झमाणे पडिबुज्झमाणे, सब्बिड्डीए सव्वजुईए सबबलेणं सब्ववाहणेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूतीए सव्वविभूसाए सब्बसंभमेणं सव्वसंगमेणं सव्वपगतीहि सव्वणाडएहि सव्वतालायरेहि सव्वोरोहेणं सव्व-पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकार-विभूसाए सव्वतुडिय
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
मणपज्जवणाणोप्पत्ति २९६ तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरितं पडिवनस्स मणपज्जवणाणे णाम णाणे समुप्पन्नेअड्डाइजेहिं दीवहिं दोहि य समुद्देहि सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाई भावाई जाणेइ ॥
आया ० सु०२, अ०१५, सु० १०१५।
तेरसमासाणंतरं अचेले
२९७ समणे भगवं महावीरे संवच्छरं साहियं मासं - जाव - चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेले पाणिपडिग्गहए ।
कप्प० सु० ११५ ॥
अणगाररूवपसंसणं २९८ तए णं समगे भगवं महावीरे अणगारे जाए १ इरियासमिए, २ भासासमिए, ३ एसणासमिए, ४ आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणा
समिए, ५ उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए, ६ मणसमिए, ७ वइसमिए, ८ कायसमिए, १ मणगुत्ते, २ वयगुत्ते, ३ कायगुत्ते, गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी अकोहे अमाणे अमाए अलोभे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे अणासवे अममे अकिंचए छिन्नगंथे निरुवलेवे, १ विमलवरकसभायणं व मुक्कतोए-जाव-२१ जीबो व्व अप्पडिहय-गइ त्ति ।
कप्प० सु० ११७ ॥
पडिबंधाभावो २९९ नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्यइ पडिबंधो भवति । से य पडिबंधे चउठिवहे पण्णते, तं जहा
१ दवओ, २ खेतओ, ३ कालओ, ४ भावओ।
१. दव्वओ णं सचित्ताचित्तम्मीसिएसु दम्वेसु । २. खेत्तओ णं गामे वा -जाव - णहे वा ।। ३. कालओ णं समए वा-जाव-अण्णयरे वा दोहकाल संजोगे वा । ४. भावओ णं कोहे वा-जाव-मिच्छादसणसल्ले वा । तस्स णं भगवंतस्स नो एवं भवइ ।
कप्प० सु० ११८ ।
सहसण्णि णादेणं महता इड्डीए महता जुतीए महता बलेणं महता वाहणेणं महता समुदएणं महता वरतुडित-जमग-समगप्पवादितणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हडक्क-दंदुभि-निग्घोस-नादियरवेणं कुंडपुरं नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ., निग्गच्छित्ता जेणेव णायसंडवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ। जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, अहे सीयं ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, सीयाओ पच्चोरुहिता सयमेव आहरणमल्लालंकारं ओमुयइ, आहरणमल्लालंकारं ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करित्ता छ?णं भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगे अबीए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए ।
कप्प० सु० ११०-११४॥ १. एतेसिं पदाणं इमातो दुन्नि संगणी गाहाओ
१ कसे २ संखे ३ जीबे, ४ गगणे ५ वायु य ६ सरयसलिले य । ७ पुक्खरपत्ते ८ कुम्मे, ९ विहगे १० खग्गे य ११ भारंडे ॥१॥ १२ कुंजर १३ वसभे १४ सीहे, १५ णगराया चेव १६ सागरमखोभे । १७ चंदे १८ सूरे १९ कएगे, २० वसुंधरा चेव २१ हूयवहे ॥२॥
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महावीरचरियं
महावीरस्स अभिग्गहो ३०० तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-जाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं
अभिग्गहं अभिगिण्हइ-"बारसवासाई बोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा-दिवा वा, -जावपज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते सम्म सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि ॥"
आया० सु० २, अ० १५ मु० १०१६।
महावीरस्स विहारो ३०१ तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हेत्ता बोसटुकाए चत्तदेहे दिवसे मुहत्तसेसे कम्मारं गामं समणुपत्ते ।
तओ गं समणे भगवं महावीरे वोसट्टचत्तदेहे अणुत्तरेणं णाणेणं जाव - अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं आलएणं, अणुत्तरेणं विहारेणं, अणुत्तरेणं वोरिएणं अगुत्तरेणं, संजमेणं, अणुत्तरेणं पग्गहेणं, अणुत्तरेणं संवरेणं, अणुत्तरेणं तवेणं, अणुत्तरेणं बंभचेरवासेणं, अणुत्तराए खंतोए, अगुत्तराए मोत्तीए, अणुत्तराए तुट्ठीए, अणुत्तराए समितीए, अणुत्तराए गुत्तीए, अणुत्तरेणं ठाणेणं, अणुत्तरेणं कम्मेणं, अणुत्तरेणं सुचरियसोवचइयफलपरिणिव्वाणमुत्तिमग्गणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।
आया० सु०२, अ०१५, सु०१०१७ ।
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परीसहजयो ३०२ एवं विहरमाणस्त जे केइ उवसग्गा समुपज्जिसु-दिव्वा वा-जाब-पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे उबसग्ग समुप्पन्ने समाणे अणाइले अव्वहिए अदीण-माणसे तिविहमणवयणकायगत्ते सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥
आया० सु० २, अ० १५, सु० १०१८ । दससुविणाणं फलं ३०३ समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता गं पडिबुद्धे, तं जहा
१. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे । २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलग सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ३. एगं च णं महं चित्सविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे ।
एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ५. एगं च णं महं सेयं गोवरगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ७. एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं भूयाहिं तिण्णं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्ध । ९. एगं च णं महं हरिबेरुलियवण्णाभेणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वओ समंता आवेढियं परिवढियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे ।
१०. एगं च णं महं मंदरे पव्वए मंदरचूलियाए उबरिं सीहासगवरगयं अप्पाणं सुविणे पासिता णं पडिबुद्धे । ३०४ १. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं घोररूवदित्तघरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणेणं
भगवया महावीरेणं मोहणिज्जे मूलाओ उग्घाइए । २. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सुक्कज्शाणोवगए विहरति । ३. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे विचित्तं ससमयपरसमइयं दुवालसंगं गणिपिडगं आघवेति पण्णवेति परवेति दंसेति निदंसेति उवदंसेति,
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे तं जहा-आयारं सूयगडं - जाव - विहिवायं । ४. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं दामदुगं सब्बरयगामयं सुविणे पासित्ता गं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे दुविहे धम्मे पण्णवेति, तं जहा-अगारधम्म वा, अणगारधम्म वा । ५. जग्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासिता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउठवण्णाइण्णे समणसंघे, तं जहा-समणा, समणीओ, सावया सावियाओ। ६. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता गं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे चउविहे देवे पण्णवेति, तं जहा-१ भवणवासी, २ वाणमंतरे, ३ जोतिसिए, ४ वेमाणिए । ७. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सागरं उम्मीवीयोसहस्सकलियं भूयाहि तिणं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्ध, तण्णं समणेणं भगवया महावीरेणं अणादीए अणवदग्गे दोहमद्धे चाउरते संसारकंतारे तिण्णे । ८. जष्णं समणे भागवं महावीरे एगं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्त अणते अगुत्तरे निव्वाबाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवल-बर-नाण-दसणे समुप्पन्ने । ९. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं हरिवेरुलियवण्णाभणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वओ समंता आवेढियं परिवेढियं सुविणे पासित्ता गं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ओराला कित्ति-वण्ण-सह-सिलोया सदेवमणुयासुरे लोए परिभमंति-इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे । १०. जण्णं सपणे भगवं महावीरे मंदरे पन्चए मंदरचूलियाए उवरिं सोहासगवरगयं अप्पाणं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सदेवमगुयासुराए परिसाए मझागए केवलो धम्म आयवेति पग्णवेति परूवेति दंसेति निदंसेति उबदंसेति ।।
सुविण-फलं
३०५ इत्थी वा पुरिसे वा सुविगंते एगं महं हयपतिं वा गयति वा नरपंतिं वा किन्नरपंतिं वा किपुरिसपंतिं वा महोरगपंतिं वा
गंधवपंतिं वा वसभपंतिं वा पासमाणे पासति, Qहमाणे द्रुति, दूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झाति, तेणेव भवग्गहणणं सिज्ाति -जाव- सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्यो वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं दामिणि पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुढे पासमाणे पासति, संवेल्लेमाणे संवेल्लेइ, संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्ाति, तेणेव भवग्गहणेणं सिझाति -जाव- सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं रज्जु पाईणपडिणायतं दुहओ लोगते पुटु पासमाणे पासति, छिदमागे छिदति, छिन्नमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गणेणं सिज्ज्ञति -जाव- सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्यो वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं किण्हसुत्तगं वा नीलसुत्तगं वा लोहियसुत्सगं वा हालिद्दसुत्तगं वा सुक्किलसुत्तगं वा पासमाणे पासति, उग्गोवेमाणे उग्गोवेलि, उग्गोवितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुझाति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति -जाव- सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं अपरासिं वा तंबरासिं वा तउयरासिं वा सीसगरासिं वा पासमाणे पासति, दुरुहमाणे दुरुहति, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झाति, दोच्चे भवग्गहणे सिज्शति - जाब - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्यो वा पुरिसे वा सुविणते एगं महं हिरण्णरासि वा सुवण्णरासिं वा रयणरासिं वा वइररासिं वा पासमाणे पासति, दुरुहमाणे दुरुहति, दुरूढभिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झाति, तेणेव भवग्गहणेणं सिवाति -जाव- सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एग महं तणरासिं वा कटुरासिं वा पत्तरासिं वा तयरासिं वा तुसरासिं वा भुसरासिं वा गोमयरासिं था अबकररासिं वा पासमाणे पासति, विक्खिरमाणे विक्खिरति, विक्खिण्णमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुजाति, तेणेव भवग्गहणणं सिजाति - जाव - सम्बदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविगंते एगं महं सरथंभं वा वीरणथंभ वा वंसीमूलथंभं वा वल्लीमूलथंभं वा पासमाणे पासति,
१. ठाणं अ० १०, सु० ७५० ।
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महावीरचरियं
उम्मूलेमाणे उम्मूलेति, उम्मूलितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुवाति, तेगेव भवग्गहणणं सिज्शति - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं खीरकुंभं वा दधिकुंभं वा धयकुंभं वा मधुकुंभं वा पासमाणे पासति, उप्पाडेमाणे उप्पाडेति उप्पाडितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झाति, तेणेव भवग्गहणणं सिजाति - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं सुरावियडकुंभं वा सोवीरवियडकुंभं वा तेल्लकुंभं वा वसाकुंभ वा पासमाणे पासति, भिंदमाणे भिंदति, भिन्नमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, दोच्चे भवग्गहणे सियाति - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणते एगं महं पउमसरं कुसुमियं पासमाणे पासति, ओगाहमाणे ओगाहति, ओगाढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्शति, तेणेव भवग्गहणणं सिज्झति, - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्यो वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं सागरं उम्मीवीयोसहस्सकलियं पासमाणे पासति, तरमाणे तरति, तिण्णमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्शति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति ।। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणते एगं महं भवणं सब्वरयणामयं पासमाणे पासति, अणुप्पविसमाणे अणुप्पविसति, अणुप्पविट्ठमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिदाति - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं विमाणं सव्वरयणामयं पासमाणे पासति, द्रुहमाणे द्रुहति, दूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिवाति - जाव - सव्वदुक्खाणं अंतं करेति ।
भग० स० १६, उ०६, सु० ५७७ ।
भगवओ दीहतवो
भगवओ चरिया
३०६ १. अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय । संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीइत्था ॥
२. णो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते । से पारए आवकहाए, एयं खु अणुधम्मियं तस्स ॥ ३. चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाण-जाइया आगम्म । अभिरुज्झ कायं विहरिसु, आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु ॥ ४. संवच्छरं साहियं मासं, जं ण रिक्कासि बत्थगं भगवं । अचेलए ततो चाई, तं बोसज्ज वत्थमणगारे ॥
३०७ ५. अदु पोरिसिं तिरियं भित्ति, चक्खुमासज्ज अंतसो झाइ । अह चक्खु-भीया सहिया, तं "हता हंता" बहवे दिसु ॥
६. सयणेहिं वितिमिस्सेहि, इत्थीओ तत्थ से परिष्णाय । सागारियं ण सेवे, इति से सयं पवेसिया झाति ॥ ७. जे के इमे अगारत्था मीसोभावं पहाय से झाति । पुट्ठो वि णाभिभासिंसु, गच्छति णाइवत्तई अंजू ॥ ८. णो सुगरमेतमेगेसिं, णाभिभासे अभिवायमाणे । हयपुवो तत्थ दंडेहिं, लूसियपुवो अप्पपुण्णेहिं ॥ ९. फरसाइं दुत्तितिक्खाई, अतिअच्च मुणी परक्कममाणे । आघाय-णट्ट-गीताई, दंडजुधाई मुट्ठिजुद्धाई ॥ १०. गढिए मिहो-कहासु, समयंमि णायसुए विसोगे अदक्खू । एताई सो उरालाई, गच्छइ णायपुत्ते असरणाए ।
३०८ ११. अवि साहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा णिक्खते । एगत्तगए पियिच्चे, से अहिण्णायदंसगे संते ॥
१२. पुढविं च आउकायं, तेउकायं च वाउकायं च । पणगाइं बीय-हरियाई, तसकायं च सव्वसो गच्चा ॥ १३. एयाई संति पडिलेहे, चित्तमंताई से अभिण्णाय । परिवज्जियाण विहरित्था, इति संखाए से महावीरे ॥
३०९ १४. अदु थावरा तसत्ताए, तसजीवा य थावरत्ताए । अदु सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला ॥
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धम्मकहाणुओगे पढ़मखंधे १५. भगवं च एवं मन्नेसिं, सोवहिए हु लुप्पती बाले । कभ्मं च सव्यसो णच्चा, तं पडियाइवखे पावगं भगवं ॥ १६. दुविहं रूमिच्च मेहावी, किरियमक्खायणेलिसि गाणी । आयाण-सोयमतिवाय-सोयं, जोगं च सव्वसो पच्चा।।
३१० १७. अइवातियं अणाउट्टे, सयमण्णेसि अकरणयाए । जस्सित्योओ परिण्णाया, सव्वकम्मावहाओ से अदक्खू ॥
३११ १८. अहाकडं न से सेवे, सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू । जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियर्ड भुंजित्था ॥
१९. णो सेवती य परवत्थं, परपाए वि से ण भुंजित्था । परिवज्जियाण ओमाणं, गच्छति संखडि असरणाए । २०. मायणे असण-पाणस्स, णाणुगिद्धे रसेसु अपडिण्णे । अच्छिपि णो पमज्जिया, णोवि य कंड्यये मुणी गायं ॥
३१२ २१. अप्पं तिरियं पेहाए, अप्पं पिट्टओ उपहाए । अप्पं बुइए पडिभाणी, पंथपेही चरे जयमाणे ॥
२२. सिसिरंसि अद्धपडिवन्ने, तं बोसज्ज वत्थमणगारे । पसारित्तु बाहं परक्कमे, णो अवलंबियाण कंधंसि ॥
३१३ २३. एस विही अणुक्कतो, माहणेण
मईया । अपडिपणेग बोरेण, कासवेण महेसिणा ॥
-त्ति बेमि।। आया० सु० १, अ०९, उ०१ ।
भगवओ सेज्जा
३१४ १. चरियासणाई सेज्जाओ, एगतियाओ जाओ बुइयाओ । आइक्ख ताई सयणासणाई, जाइं सेवित्था से महावीरो॥
२. आवेसण-सभा-पवासु, पणियसालासु एगदा वासो । अदुवा पलियट्ठाणेसु, पलालपुंजेसु एगदा वासो ॥ ३. आगंतारे आरामागारे, गामे णगरे वि एगदा वासो । सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले वि एगदा वासो ॥
४. एहि मुणो सयहिं, समणे आसी पतेरसवासे । राइं दिवं पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति ॥ ३१५ ५. णिई पि णो पगामाए, सेवइ भगवं उढाए । जग्गावती य अप्पाणं, ईसि साई यासी अपडिण्णे ॥
६. संबुज्झमाणे पुणरवि, आसिसु भगवं उट्ठाए । णिक्खम्म एगया राओ, बहिं चंकमिया मुहत्तागं ॥
३१६ ७. सयणेहिं तस्सुवसग्गा, भीमा आसी अणेगरूबा य । संसप्पगा य जे पाणा, अदुवा जे पक्खिणो उवचरंति ॥
८. अदु कुचरा उवचरंति, गामरक्खा य सत्तिहत्था य । अदु गामिया उवसग्गा, इत्थी एगतिया पुरिसा य ॥ ९. इहलोइयाई परलोइयाई, भीमाइं अगरूवाई । अवि सुब्भि-दुब्भि-गंधाई, सद्दाई अणेगरूबाई ॥ १०. अहियासए सया समिए, फासाइं विरूवरूवाइं । अरई रइं अभिभूय, रीयई माहणे अबहुवाई ॥ ११. स जोह तत्थ पुच्छिसु, एगचरा वि एगदा राओ। अव्वाहिए कसाइत्था, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे ॥
३१७ १२. अपमंतरंसि को एत्थ, अहमंसि त्ति भिक्खू आहट्ट । अयमुत्तमे से धम्मे, तुसिणीए सकसाइए झाति ॥
१३. जंसिप्पेगे पवेयंति, सिसिरे मारुए पवायते । तसिप्पेगे अणगारा, हिमवाए णिवायमेसंति ॥ १४. संघाडीओ पविसिस्तामो, एहा य समादहमाणा । पिहिया वा सक्खामो, अतिदुक्खं हिमग-संफासा ॥ १५. तंसि भगवं अपडिग्णे, अहे विधडे अहियासए दविए। णिक्खम्म एगदा राओ, चाएइ भगवं समियाए ॥
३१८ १६. एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया । अपडिण्णण
वीरेण,
कासवेण महेसिणा ॥
--त्ति बेमि ॥ आया० सु० १, अ० ९, उ० २ ।।
भगवओ परीसह-उवसग्गा
३१९ १. तणकासे सोयफासे य, ते उकासे य दंस-मसगे य । अहियासए सया समिए, फासाई विरूवरूवाई ॥
२. अह दुच्चर-लाढमचारी, वज्जभूमि च सुब्भभूमि च । पंत सेज्जं सेविंसु, आसणगाणि चेव पंताई ॥
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महावीरचरियं
७७
३. लाढेहिं तस्सुबसग्गा, बहवे जाणवया लूसिंसु । अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिंसु ॥ ४. अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए दसमाणे । छुछुकारंति आहंतु, समणं कुक्कुरा डसंतु ति ॥ ५. एलिक्खए जणे भुज्जो, बहवे वज्जभूमि फरुसासी । लट्ठि गहाय णालीयं, समणा तत्थ एव विहरिसु ॥ ६. एवं पि तत्थ विहरंता, पुटपुटवा अहेसि सुणएहिं । संतुंचनाणा सुणएहि, दुच्चरगाणि तत्थ लाहि ॥ ७. निधाय दंडं पाणेहि, तं कायं वोसज्जमणगारे । अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए अभिसमेच्चा ।। ८. णाओ संगामसीसे वा, पारए तत्थ से महावीरे । एवं पि तत्थ लाढेहिं, अलद्धपुब्बो वि एगया गामो ॥
३२० ९. उवसंकमंतमपडिष्णं, गामंतियं पि अप्पत्तं । पडिणिमित्तु लूसिंसु, एत्तात्तो परं पलेहि ति ॥
१०. हयपुटवो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु कुंताइ-फलेणं । अदु लेलुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे दिसु ॥ ११. मंसूणि छिन्नपुब्वाइं, उट्ठभंति एगया कायं । परीसहाई लुंचिंसु, अहवा पंसुणा अवकिरिसु ॥ १२. उच्चालइय णिणिसु, अदुवा आसणाओ खलइंसु । वोसटुकाए पणयासो, दुक्खसहे भगवं अपडिण्णे ॥ १३. सूरो संगामसीसे वा, संखुडे तत्थ से महाबीरे । पडिसेवमाणे फहसाई, अचले भगवं रोइत्था ।
३२१ १४. एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया । अपडिपणेण वीरेण, कासवेण
महेसिणा ॥
-त्ति बेमि ॥ आया० सु० १, अ० ९, उ० ३ ।
भगवओ तिगिच्छाइवज्जणं
३२२ १. ओमोदरियं चाएति, अपुढे वि भगवं रोगेहि । पुठे वा से अपुढे वा, णो से सातिज्जति तेइच्छं ॥
२. संसोहणं च वमणं च, गायभंगणं सिणाणं च । संबाहणं ण से कप्पे, दंतपक्खालणं परिणाए । ३. विरए गामधमेहि, रोयति माहणे अबहुवाई । सिसिरंमि एगदा भगवं, छायाए झाइ आसी य ॥
भगवओ आहार-चरिया
३२३ ४. आयाबई य गिम्हाणं, अच्छइ उक्कुडुए अभिवाते । अदु जावइत्थ लूहेणं, ओयण-मंथु-कुम्मासेणं ॥
५. एयाणि तिण्णि पडिसेवे, अट्ठ मासे य जावए भगवं । अपिइत्य एगया भगवं, अद्धमासं अदुवा मासं पि ॥ ६. अवि साहिए दुवे मासे, छप्पि मासे अदुवा अपिवित्ता । रायोवरायं अपडिण्णे, अन्नगिलायमेगया भुंजे ॥ ७. छठेणं एगया भुंजे, अदुवा अट्टमेण दसमेणं । दुवालसमेण एगया भुंजे, पेहमाणे समाहिं अपडिग्णे ॥
३२४ ८. णच्चाणं से महावीरे, णो वि य पावगं सयमकासी। अण्णेहि वि ण कारित्था, कोरंतं पि णाणुजाणित्था ॥
९. गामं पविसे णयर, वा, धासमेसे कडं परढाए । सुविसुद्धमेसिया भगवं, आयत-जोगयाए सेवित्था ॥ १०. अदु बायसा दिगिंछत्ता, जे अण्णे रसेसिणो सत्ता । घासेसगाए चिट्ठते, सययं णिवतिते य पेहाए । ११. अदु माहणं व समणं वा, गापिंडोलगं च अतिहिं वा । सोवागं मूसियारं वा, कुक्कुरं वा वि विट्ठियं पुरतो ॥ १२. वित्तिच्छेदं वज्जतो, तेसप्पत्तियं परिहरंतो । मंदं परक्कमे भगवं, अहिंसमाणो घासमेसिस्था ।। (त्रिभिः कुलकम् )
१३. अवि सूइयं व सुक्कं वा, सोयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु बक्कसं पुलागं वा, लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ॥ ३२५ १४. अवि झाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं । उड्ढमहे य तिरियं च, पेहमाणे समाहिमपडिण्णे ॥
१५. अकसाई विगयगेही, सद्दरूवेसऽमुच्छिए झाति । छउमत्थे वि परक्कममाणे, णो पमायं सई पि कुश्वित्था ॥
१६. सयमेव अभिसमागम्म, आयतजोगमायसोहीए । अभिणिबुडे अमाइल्ले, आवकहं भगवं समिआसी ॥ ३२६ १७. एस विही अणुक्कतो, माहणणं मईमया । अपडिण्णेण धीरेण, कासवेण महेसिणा ॥
-त्ति बेमि आया० सु० १, अ० ९, उ०४ ।।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
केवलणाण-दसणुप्पत्ति
३२७ तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स बारसवासा वीइक्कंता, तेरसमस्स य वासस्स परियाए
बट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे-वइसाहसुद्धे, तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं, सुम्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं, पाईणगामिणोए छायाए, वियत्ताए, पोरिसीए, जंभियगामस्स णगरस्स बहिया णईए उजुवालियाए उत्तरे कूले, सामागस्स गाहावइस्स कट्टकरणंसि, वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, सालरुक्खस्त अदूरसामंते, उक्कुडुयस्स, गोदोहियाए आयावणाए आयावेमाणस्स, छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं', उड्ढंजाणुअहोसिरस्स, धम्मज्शाणोवगयस्स, झाणकोट्ठोवगयस्स, सुक्काणंतरियाए वट्टमाणस्स, निब्वाणे, कसिणे, पडिपुण्णे, अव्वाहए, णिरावरणे, अणंते, अणुत्तरे, केवल-वर-णाण-दंसणे समुप्पण्णे ॥ से भगवं अरिहं जिणे जाए, केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी, सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पज्जाए जाणइ, तं जहाआगति - जाव - रहोकम्म लवियं कहियं मणोमाणसियं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावाइं जाणमाणे पासमाणे, एवं च णं विहरइ ॥
आया० सु० २, अ० १५, सु. १०२०।
देवागमणं
३२८ जणं दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स णिव्वाणे कसिणे पडिपुण्णे अव्वाहए णिरावरणे अणंते अणुत्तरे केवल वर-णाण
दसणे समुप्पण्णे तण्णं दिवसं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देव-सण्णिवाते देव-कहक्कहे उप्पिंजलगभूए यावि होत्था ॥
आया० सु० २, अ० १५, सु० १०२२॥
कप्प० सु० १२१ ।
भवणवासी देवा आगया ३२९ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउन्भवित्था, काल-महाणील
सरिस-णील-गुलियगवल-अयसिकुसुमप्पगासा वियसियसयवत्तमिव पत्तलनिम्मला ईसोसिय-रत्त-तंबणयणा गरुलायय-उज्जुतंगणासा ओयविय-सिलप्पवाल-बिंबफल-सण्णिभाहरोट्ठा पंडुर-ससि-सयल-विमल-णिम्मल-संख-गोखीर-फेण-दगरय-मुणालियाधवल-दंतसेढी हुयवह-णिद्धत-धोय-तत्त-तवणिज्जरत्ततल-तालु-जीहा अंजण-घण-कसिण-रुयग-रमणिज्ज-णिद्ध केसा वामेगकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता ईसी-सिलिंध-पुप्फ-प्पगासाइं असंकिलिट्ठाई सुहुमाइं वत्थाई पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोठवणे वट्टमाणा तलभंगय-तुडिय-पवर-भूसण-निम्मल-मणि-रयण-मंडियभुया दस-मुद्दा
१. ठाणं अ० ६, सु० ५३१ । २. तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेण, अणुत्तरेणं दंसणेणं, अणुत्तरेणं चरित्तेणं, अणुतरेणं आलएणं, अणुत्तरेणं विहारेणं, अणुत्तरेणं बीरिएणं, अणुत्तरेणं अज्जवेणं, अणुत्तरेणं मद्दवेणं, अणुत्तरेणं लाघवेणं, अणुत्तराए खंतीए, अणुत्तराए मुत्तीए, अणुत्तराए गुत्तीए, अणुत्तराए तुट्ठीए, अणुत्तरेणं सच्च-संजम-तव-सुचरिय-सोवचइय-फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स दुवालस संवच्छराई विइक्कंताई। तेरसमस्स संबच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे वइसाहसुद्धे तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीएं पक्खेण पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिवट्टाए पमाणपत्ताए सुब्बएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स बहिया उजुवालियाए नईए तीरे वियावत्तस्स चेईयस्स अदूरसामंते सामागस्स गाहावइस्स कट्ठकरणंसि सालपायवस्स अहे गोदोहियाए उक्कुडयनिसिज्जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छठेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुत्तरे निब्वाधाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवल-वर-नाण-दसणे समुप्पन्ने ।।
कप्प० सु० १२०॥
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महावीरचरियं
मंडियग्ग-हत्या चूलामणि-चिंधगया सुरूवा महड्डिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा हारविराइयवच्छा कडग-तूडिय-थंभिय-भुया अंगयकुंडलमट्टगंडतला कण्णपविवारी विचित्तहत्याभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवर-वत्थ-परिहिया कल्लाणग-पवर-मल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी पलंब-वण-मालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्येणं रूवेणं एवं-फासेणं संघाएणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए जुईए पभाए छायाए अच्चीए दिवेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म रत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेन्ति करित्ता वंदंति णमसंति वंदित्ता णमंसित्ता साइं साई णामगोयाई सार्वन्ति णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥
ओव० सु० ३३ ।
३३० तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्त भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवज्जिया भवणवासी देवा अंतियं पाउम्भवित्था णाग
पइणो सुवण्णा विज्जू अग्गी य दीवउदही दिसाकुमारा य, पवणथणिया य, भवणवासी णागफडा-गरुल-वइर-पुण्ण कलसंकिण्णउप्फेससीह-हयवर-गयंक-मयरंकवर-मउड-वद्धमाण-णिज्जुत्त-बिचित्त-चिंधगया सुरूवा महिड्ढिया सेसं तं चेव - जाव - पज्जुवासंति।
ओव० सु० ३४ ।
वाणमंतरा देवा आगया
३३१ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउन्भवित्था पिसायभया य
जक्ख-रक्खसा किनर-किपुरिस-भुयगपइणो य महाकाया गंधव्व-णिकायगणा णिउण-गंधब्व-गोयरइणो अणवण्णियपणवण्णिय-इसिवादिय-भूयवादिय-कंदिय-महाकंदिया य कुहंड-पययदेवा चंचल-चवल-चित्त-कलिण-दवप्पिया गंभीर-हसियभणिय-पीय-गीय-णच्चण-रई वणमालामेल-मउड-कुंडल-सच्छंद-विउव्वियाहरण-चारु-विभूसणधरा सब्वोउय-सुरभि-कुसुमसुरइय-पलंब-सोभंत-कंत-वियसंत-चित्त-वणमाल-रइय-वच्छा कामगमा कामरूवधारी णाणाविह-वण्णरागवर-वत्थ-चित्तचिल्लय-णियंसणा विविह-देसी-णेवच्छ-गहियवेसा पमुइय-कंदप्प-कलह-केली-कोलाहल-पिया हासबोलबहुला अणेगमणिरयण-विविह-णिज्जुत्त-विचित्तचिधगया सुरूवा महिढ्ढिया -जाव-पज्जुवासंति ।।
ओव० सु० ३५ ।
जोइसिया देवा आगया
३३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स (वद्धमाणस्स) जोइसिया देवा अंतियं पाउभवित्था, बिहस्सती
चंब-सूर-सुक्क-सणिच्छरा राहू धूमकेतु-बुहा य अंगारका य तत्त-तवणिज्ज-कणग-वण्णा जे य गहा जोइसंमि चारं चरंति केऊ य गइरइया अट्ठावीसतिविहा य णक्ख त्तदेवगणा जाणासंठाणसंठियाओ य पंचवण्णाओ ताराओ ठियलेसा चारिणो य अविस्साम मंडलगई पत्तेयं णामंक-पागडिय-चिधम उडा महिडिया-जाव-पज्जुवासंति ॥
ओव० सु० ३६ ।
वेमाणिया देवा आगया
३३३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समस्त भगवओ महावीरस्त वेमाणिया देवा अंतियं पाउभवित्था सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद
बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्साराणय-पाणयारण-अच्चुयबई पहिट्ठा देवा जिणदंसगुस्सुयागमण-जणियहासा पालगपुप्फगसोमणससिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगम-पीइगम-मणोगम-विमल-सब्वओभद्द-सरिस-णामधेज्जेहि विमाणेहि ओइण्णा बंदगा जिणिंद मिग-महिस-बराह-छगल-दद्दर-हय-गयवई-भुयग-खग-उस कविडिम-पागडिय-चिंध-मउडा पसिढिल-वर-मउड-तिरोड-धारी कुंडलउज्जोवियाणणा मउडदित्तसिरया रत्तामा पउम-पम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तमवेउव्विणो विविह-वत्थ-गंध-मल्ल-धारी महिड्ढिया महज्जुतिया-जाव-पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥
ओव० सु० ३७ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे ३३४ सामाणिय-तावत्तीस-महिया सलोगपाल-अग्गहिसि-परिसाणिय-आयरोहिं संपरिवुडा समणुगम्मत-सस्सिरीया देवसंघजयसद्दक
यालोया मिग-महिस-वराह-छगल-ददुर-हय-गयवइ-भुयग-खग्ग-उसभंक-बिडिम-पागडिय-चिधमउडा पालग-पुष्फग-सोमणस-सिसिरिवच्छ-नंदियावट्ट-कामगम-पीतिगम-मणोगम-विमल-सव्वओभद्द-नामधेजेहिं विमाणेहिं तरुणदिणयरकरअइरेगप्पन्भेहिं मणि-कणग-रयण-घडिय-जालुज्जल-हेमजाल-परंत-परिगएहिं सपयरवरमुत्तदामलंबंतभूसणेहिं पचलियघंटावलि-महुर-सह-बंस-तंतीतलताल-गीय-वाइय-रवेणं महुरेणं मणोहरेणं पूरयंता अंबरं दिसाओ य, सोभेमाणा सरियं, संपट्ठिया थिरजसा देविंदा हदुतुटुमणसा, सेसा वि य कप्पवरविमाणाहिवा सविमाण-विचित्त-चिंध-नामंक-विगड-पागड-मउडाडोवसुभदंसणिज्जा समन्निति, लोयंतविमाणवासिणो यावि देवसंवा य पत्तेय-विरायमाण-विरइय-मणि-रयण-कुंडल-भिसंत-निम्मल-नियगंकिय-विचित्त-पागडियमउडा दायंता अप्पणो समुदयं, पेच्छंता वि य परस्स इड्ढीओ, जिणिद-बंदण-निमित्त-भत्तीए चोइयमई जिणदंसणूसुयागमणजणियहासा विउल-बलसमूह-पिडिया संभमेणं गगण-तल-विमलविउल-गगण-गइ-चवल-चलियमण (पवण)जइणसिग्यवेगा णाणाविह-जाणवाहणगया ऊसियविमलधवलछत्ता विउव्विय-जाणवाहण-विमाण-देह-रयणप्पभाए उज्जोएंता नहं, वितिमिरं करेंता सविड्ढोए हुलियं पयाया। पसिढिलवरमउडतिरीडधारी मउडदित्तसिरया रत्ताभा पउमपम्हगोरा सेया ।
ओव० सु० ३७। अच्छरगणसंघाया आगया
३३५ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अच्छरगणसंधाया अंतियं पाउन्भवित्था। ताओ णं
अच्छराओ धंतधोय-कणग-रुयग-सरिसप्पभाओ समइक्कंताओ य बालभावं अणइवरसोमचारुरूवाओ निरुवहय-सरस-जोवण-कक्कसतरुणवयभावं उवगयाओ निच्चं अवट्ठियसहावाओ सव्वंगसुंदरीओ इच्छिय-नेवच्छ-रइय-रमणिज्ज-गहिय-वैसाओ, कि ते? हारद्धहार-पाउत्त-रयण-कुंडल-वामुत्तग-हेमजाल-मणिजाल-कणगजाल-सुत्तगउरितिय-कडगखुड्डग-एगावलि-कंठसुत्तमगहग-धरऽच्छ-गेवेज्ज-सोणिसुत्तग-तिलग-फुल्लग-सिद्धत्थिय-कण्णवालिय-ससि-सूर-उसभ-चक्कय-तलभंगय-तुडिय-हत्थमालय-हरिसकेऊर-वलय-पालंब पलंब-अंगुलिज्जगवलक्खदीणारमालिया-चंद-सूर-मालिया-कंचिमेहल-कलाव-पयरग-परिहेरग-पायजाल-घंटियाखिखिगि-रयणोरुजाल-खुड्डियवर-नेउर-चलणमालियाकणग-गिगलजालग-मगरमुह-विरायमाण-नेउर-पलियसद्दाल-भूसणधारणीओ दसद्धवण्ण-रागरइय-रत्तमणहरे हयलालापेलवाइरेगे धवले कणग-खचियंतकम्मे आगासकालियसरिसप्पहे अंसुएणियत्थाओ आयरेणं तुसार-गोक्खीर-हार-दगरय-पंडुर-दुगुल्ल-सुकुमाल-सुकयरमणिज्ज-उत्तरिज्जाई पाउयाओ, वरचंदणचच्चियाओ वराभरणभूसियाओ सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-रइय-विचित्त-वरमल्लधारिणीओ सुगंध-चुण्णंगराग-वरवास-पुप्फ-पूरगविराइयाओ अहियसस्सिरीयाओ उत्तमवर-धूव-धूवियाओ सिरीसमाणवेसाओ दिव्व-कुसुम-मल्लदाम-पभंजलिपुडाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमललाडाओ चंदाहिय-सोमदंसणाओ उक्काओ विव उज्जोएमाणाओ विज्जुघणमिरीइसूरदिप्पंततेयअहियतरसन्निगासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ संगय-य-हसिय-भणिय-चेट्टिय-विलास-सललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयार-कुसलाओ सुंदर-थण-जघण-वयण-करचरण-नयण-लावण्ण-रूवजोव्वण-विलास-कलियाओ सुरवधूओ सिरीस-नवणीय-मउय-सुकुमालतुल्लफासाओ ववगयकलिकलुसाओ धोयनिखंतरयमलाओ सोमाओ कंताओ पियदसणाओ सुरूवाओ जिणभत्तिदसणाणुरागेणं हरिसियाओ ओवइयाओ यावि जिणसगासं दिव्वेणं सेस तं चेव नवरं ठियाओ चेव ।
ओव० सु० ३३-३८॥
भगवओ महावीरस्स वण्णओ
३३६ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्ध
पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसबरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए जीवदए। दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरतचक्कवट्टी अप्पडिहय-वर-नाण-दंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए, तिण्णे तारए, मुत्ते मोयए, बुद्धे बोहए, सवण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेनं ठाणं संपाविउकामे ।
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महावीरचरियं
३३७ अरहा जिणे केवली सत्तहत्थुस्सेहे समचउरंस-संठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे अणुलोमवाउवेगे कंकग्गहणी कवोयपरि
णामे सउणिपोसपिट्ठेतरोरुपरिणए, पउमप्पल-गंध-सरिस-निस्सास-सुरभिवयणे, छबी निरायंक-उत्तम-पसत्थ-अइसेय-निरुवमपले, जल्लमल्ल-कलंक-सेय-रय-दोस-वज्जिय-सरीर-निरुवलेवे, छायाउज्जोइयंगमंगे घण-निचिय-सुबद्ध-लक्खणुण्णय-कूडागार-निभ-पिंडियग्गसिरए सामलि-बोंड-धण-निचिय-च्छोडिय-मिउविसय-पसत्थ-सुहुम-लक्खण-सुगंध-सुंदर-भुयमोयग-भिंग-नेल-कज्जल-पहट्ठ-भमरगण-णिद्धनिकुरुंब-निचिय-कुंचिय-पयाहिणावत्तमुद्धसिरए दालिमपुष्फ-प्पगास-तवणिज्ज-सरिस-निम्मल-सुणिद्ध-केसंतकेसभूमी (घणनिचियसुबद्धलक्खणुनयकूडागारनिभपंडियग्गसिरए) छत्तागारुत्तिमंगदेसे णिव्वण-समलट्ठ-मट्ठ-चंदद्ध-सम-णिडाले उडुवइ-पडिपुण्ण-सोमवयणे अल्लीणपमाणजुत्तसवणे सुस्सवणे पोणमंसलकवोलदेसभाए आणामिय-चाव-रुइलकिण्हन्भराइ-तणु-कसिण-णिद्ध-भमुहे अबदालिय-पुंडरीय-णयणे कोयासियधवलपत्तलच्छे गरुलायय-उज्जु-तुंगणासे उवचियसिलप्पवाल-बिंबफल-सण्णिभाहरोठे पंडुर-ससिसयल-विमल-णिम्मल-संख-गोक्खीर-फेण-कुंद-दगरय-मुणालियाधवलदंतसेढी, अखंडदंते अप्फुडियदंते अविरलदंते सुणिद्धदंते सुजायदंते एगदंतसेढी विव अणेगदंते हुयवह-गिद्धत-घोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्ततल-तालुजीहे अवट्ठिय-सुविभत्त-चित्तमंसु मंसल-संठिय-पसत्यसदूल-विउल-हणुए चउरंगुल-सप्पमाण-कंबुवर-सरिसग्गीवे वरमहिस-वराह-सीह-सदूल-उसभ-नागवर-पडिपुण्ण-विउलक्खंधे जुगसन्निभ-पीण-रइय-पीवर-पउ8-सुसंठिय-सुसिलिछविसिट्ठ-घण-थिर-सुबद्ध-संधिपुरवर-फलिह-वट्टियभुए भुपगीसर-विउल-भोग-आयाण-पलिह-उच्छूढ-दीहबाहू रत्ततलोवइय-मउय-मंसल-सुजाय-लक्खण-पसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरकोमलवरंगुली आयंबतंबतलिणसुइरुइलणिद्धणखे चंदपाणिलेहे सूरपाणिलेहे संखपाणिलेहे चक्कपाणिलेहे दिसासो, यसपाणिलेहे चंद-सूर-संख-चक्क-दिसा-सोत्थिय-पाणिलेहे कणग-सिलायलुज्जलपसस्थ-समतल-उवचिय-विच्छिण्ण-पिलवच्छे, सिरिवच्छंक्कियवच्छे अकरंडुय-कणग-रुयय-निम्मल-सुजाय-निरुवयदेहधारी अट्ठसहस्स-पडिपुण्ण-वर-पुरिस-लक्खणधरे सण्ण पासे संगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाइयपीणरइयपासे उज्जुय-समसहिय-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-आइज्ज-लडह-रमणिज्जरोमराई सस-विहग-पुजाय-पीण-कुच्छी झसोयरे सुइकरणे पउमवियडणाभे गंगावत्तग-पयाहिणावत्त-तरंग-भंगुर-रविकिरण-तरुणबोहिय-अकोसायंत-पउमगंभीर-वियडणाभे साहयसोणंदमुसल-दप्पण-णिकरिय-वर-कणगच्छरु-सरिसवरवहर-वलियमझे पमुइयवरतुरगसीहवरवटियकडी वरतुरगसुजायसुगुज्झदेसे
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८२
आइण्णहउव्व णिरुवलेवे वरवारणतुल्ल -विक्कम विलसियगई गय-सस-गुजायसन्निभो
समुग्ग-निमा- गूढजाणू
एणीकुरुवदावत्त- वट्टाणुपुव्वजंघे
संठिसुसिलिट्ठ (विट्ठि) गूढगुप्फे सुप्पइट्ठियकुम्मचारुचलणे
अणुपुव्वसुसंयंगुलीए,
उखे
रसुण्यलपसमउय कुमालकोमलले
अट्ठसहस्स-वरपुरिस लक्खणवरे, नग-नगर-मगर सागर- चक्कंक-वरंग- मंगलंकिय-चलणे, विसिट्रूवे, हुयवह-निधूम - जलियतडितडिय तरुण-रवि-किरण-सरिसतेए
३३८ अणासवे अममे अकिवणे छिन्नसोए निरुवलेवे ववगयपेमरागदोसमोहे निग्गंथस्स पवयणस्स देसए सत्यनायगे पइट्ठावए समणपई समणगविंदपरिवडिए चउतीसबुद्धवयणाइसेसपत्ते पणतीस सञ्चवयणाइसेस पत्ते
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
३३९ आगासगएणं चपणं, आमासगए इसे आगासियाहि चामराहि आगासफालियामएनं सभायवीदेनं धम्माणं पुर पकडिजमाणेणं चउद्दसहं समणसाहस्सीहिं छत्तीसाए अजिया साहस्सीहि सद्धि संपरि
ओव० सु० १६ ।
महावीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो
उग्गपव्वइया भोगप
३४० तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो अप्पेगइया राणाय कोरवलयिपइया भडा जोहा सेणावईपसत्वारो सेट्ठी इभा अन् य बहवे एवमाइणो उत्तम जाइ कुल -व-विजय विगानयण्ण-लावण्ण-विक्कम- पहाण-सोभा-कंति जुत्ता धण-पण णिचयपरियाल-पिडिया गरबइगुणाइरेगा
भोगा संपलिया कियागफलोमं च मुणिय विराय- सोक्वं जनयुध्यसमागं कुसग्गजलबिन्दुचंचलं जीवियं व गाऊण अवमिगं श्वमिव पडलयं संविधुवित्ताणं, बत्ता हिरण्णं, विण्या सुवणं, विच्या धणं एवं धष्णं वाहणं कोर्स कोट्ठागारं रज्जे पुरं तं विश्वा विउल-ण-कणग-रमन-मणि-मोतिय-संल-तिप्पवाल-रक्त- रणमायं संतसारसावतेज्जं, विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, अप्पेगइया अद्धमास परियाया अप्पेगइया मासपरियाया --एवं दुमास तिमास जाव एक्कारस मासपरियाया अप्पेगइया वासपरियाया, दुवास तिवास जाव अप्पेगइया अणेगवासपरियाया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहति ॥
-
-
ओव०
३४१ तेगं कालेणं तेणं समएणं समगस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो- अप्पेगइया आभिणिबोहियणाणी- जाव- केवलणाणी
अप्पेगइया मणबलिया वयबलिया कायबलिया णाणबलिया दंसणबलिया चारित्तबलिया
अध्येया मणेर्ण सावागुग्गहसमत्था एवं वएणं कारणं
अगालोसपिता एवं जल्लोसहि विप्योसहि आमोसहि सयोसहि
० सु० २३|
अव्येगहया कोट्ठबुडी एवं बीवुड बुद्धी, अप्येगइया पयासारी,
अध्येया संभिसोया, अप्येगइया लौरासवा अप्पेगइया महवासवा, अप्येगइया सचिवासवा अप्पेगइया अक्खीणमहा
एसिया,
अप्पेगइया उज्जुन, अध्येया विलमई विणिपित्ता, चारमा बिज्जाहरा, आगासाइबाई,
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महावीरचरियं
३४२ अप्पैगइया कणगावलितवोकम्म पडिवण्णा
एवं एगावलि, अप्पेगइया खुड्डागसीहनिक्कीलियं तवोकम्म पडिवण्णा, अप्पेगइया महालयं सोहनिक्कीलियं तवोकम्म पडिवण्णा, एवं भद्दपडिम, महाभद्दपडिम, सव्वओभद्दपडिम, आयंबिलवद्धमाणं तवोकम्म पडिवण्णा,
गइया मासिक
सत्तराईदिय
भवखुपडिमं पाखड्डियं मोय विओसगपडि
३४३ अप्पेगइया मासियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, एवं दोमासियं, पडिम, तिमासियं पडिम-जाव-सत्तमासियं भिख्खुपडिम पडि
वण्णा, अप्पेगइया पढ़मं सत्तराईदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा -जाव- तच्चसत्तराइंदियभिक्खुपडियं पडिवण्णा अहोराइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा, एक्कराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिम, अट्ठअट्ठमियं भिक्खुपडिमं णवणवमियं भिक्खुपडिमं, दसदसमियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा खुड्डियं मोयपडिमं पडिवण्णा, महल्लियं मोयपडिमं पडिवण्णा, जवमज्ज्ञ चंदपडिम पडिवण्णा, वइरमझ चंदपडिमं पडिवण्णा, विवेगपडिमं विओसग्गपडिमं उवहाणपडिमं पडिसलीणपडिमं पडिवण्णा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति ।
ओव० सु० २४ ।
३४४ तेणं कालेणं तेणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा बलसंपण्णा रूवसं
पण्णा विणयसंपण्णा णाणसंपण्णा दसणसंपण्णा चरित्तसंपण्णा लज्जासंपण्णा लाघवसंपण्णा ओयंसी तेयंसी वच्चसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जिइंदिया जियणिद्दा जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा णिग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा अज्जवप्पहाणा मद्दवप्पहाणा लायवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जापहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा चारुवण्णा लज्जातवस्सी जिइंदिया सोही अणियाणा अप्पोसुया अबहिल्लेसा अप्पडिलेस्सा सुसामण्णरया दंता' इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरंति ।
ओव० सु० २५।
३४५ तेसि णं भगवंताणं आयावाया वि विदिता भवंति, परवाया वि विदिता भवंति, आयावायं जमइत्ता नलवणमिव मत्तमा
तंगा अच्छिद्दपसिणवागरणा रयणकरंडगसमाणा कुत्तियावणभूया परवाइपमद्दणा चोद्दसपुब्वो' दुवालसंगिणो समत्तगणिपिडगधरा सध्वक्खरसण्णिवाइणो सव्वभासाणुगामिणो अजिणा जिणसंकासा, जिणा इव अवितहं वागरमाणा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति ।
ओव० सु० २६ ।
३४६ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो इरियासमिया-जाव-पारिट्ठा
वणियासमिया, १ मणगुत्ता, २ वयगुत्ता, ३ कायगुत्ता, गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी, अममा अकिंचणा अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिन्वुया अणासवा अग्गंथा छिण्णग्गंथा छिण्णसोया निरुवलेवा विमलवरकसभायणं व मुक्कतोया -जाव- जीवो व्व अप्पडिहयगइया ......तेयसा जलंता ।
ओव० सु० २७ ।
३४७ नत्यि णं तेसि णं भगवंताणं कत्यइ पडिबंधे भवइ । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा
१ दव्वओ, २ खेत्तओ, ३ कालओ, ४ भावओ।
१ भद्दपडिमं सुभद्दपडिमं महाभद्दपडिम सबओभद्दपडिम भद्दतरपडिम . . . पाठान्तर । २ बहूर्ण आयरिया, बहूर्ण उवज्शाया बहूणं गिहत्थाणं पव्वइयाणं च दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा । ३ परवाईहि अणोक्ता अण्णउत्यिएहिं अणोद्धंसिज्जमाणा विहरंति अप्पेगइया आयारधरा - जाव - विवागसुयधरा चोदसपुव्वी।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
दव्वओ णं-सचित्ताचित्तमीसिएस दव्वेस, खेत्तओ णं-गामे वा -जाव- णहे वा, कालओ णं-समए वा -जाव-अण्णयरे वा दोहकालसंजोगे । भावओ णं-कोहे वा, -जाव-मिच्छादसणसल्लेणं-एवं तेसिं ण भवद ।
ओव० सु० २४ ।
३४८ ते णं भगवंतो वासावासवज्जं अट्ठ गिम्हहेमंतियाणि मासाणि गामे एगराइया, जयरे पंचराइया वासोचंदणसमाणकप्पा
समलेठ्ठकं वगा समसुहदुक्खा इहलोग-परलोग-अप्पडिबद्धा संसारपारगामी कम्मणिग्धायणट्ठाए अब्भुट्ठिया विहरति । जं णं जं णं दिसं इच्छंति तं णं तं णं विहरंति सुइभूया लभूया अणप्पग्गंथा ।
ओव० सु० २९ ।
३४९ तेणं कालेणं तेगं समएणं समगस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अगगारा भगवंतो अप्पेगइया आयारधरा -जाव- विवागसुयधरा
तत्थ तत्थ तहि तहिं देसे देसे गच्छाच्छि गुम्मागुम्मि फड्डाडि, अप्पेगइया वायंति, अप्पेगइया पडिपुच्छंति, अप्पेगइया परियट्टति, अप्पेगइया अणुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवोओ संवेयणीओ णिव्वेयणीओ बहुविहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा शाणकोट्टोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति ।
३५० संसारभउम्बिग्गा भीया
जम्मण-जर-मरण-करण-गंभीर-दुक्ख-पक्खुब्भिय-पउर-सलिलं, संजोग-विओग-वीइ-चिता-पसंग-पसरिय-वह-बंध-महल्ल-विउलकल्लोल-कलुण-विलविय-लोभ-कलकलंत-बोलबहुलं, अवमागण-कण-तिव्व-खिसण-पुलपुल[पलुंपण]प्पभूय-रोग-वेयणपरिभवविणिवाय-फरुस-धरिसणा समावडिय-कढिण-कम्म-पत्थर-तरंगरंगत-निच्च-सच्चुभय-तोयपटु कसाय-पायाल-संकुलं भवसयसहस्सकलुस-जलसंचयं पइभयं अपरिमिय-महिच्छ-कलुसमइ-वाउवेग-उद्धम्म नाण-दगरय-रयंधआर-वर-फेण-पउर-आसा-पिवास-धवलं, मोहमहावत्त-भोग-भममाण-गुप्पमाणुच्छलंत-पच्चोणियत्त-पाणिय-पमाय-चंड-बहुदुट्ठ-सावय-समायुद्धायमाण-पब्भार-धोर-कंदिय-महारवरवंतभेरवरवं, अण्णाण-भमंत-मच्छपरिहत्थ-अणियिदिय-महामगर-तुरिय-चरियखोखुब्भमाण-नच्चंत-चवल-चंचल-चलतछुम्मत-जलसमूह, अरइ-भय-विसाय-सोग-मिच्छत्त-सेल-संकडं अणाइसंताण-कम्मबंधण-किलेस-चिक्खल्लसुदुत्तारं अमर-णर-तिरियणरयगइ-गमण-कुडिल-परिवत्तविउलवेलं चउरतं महंतमणवयग्गं रुंदं संसारसागरं भीमंदरिसणिज्जं तरंति ।
३५१ घिइधणियनिप्पकपणे तुरियचवलं संवर-वेरग्ग-तुंग-कूवय-सुसंपउत्तेणं णाण-सिय-विमलमूसिएणं सम्मत्त-विसुद्ध-लद्धणिज्जामएणं
धीरा संजम-पोएण सोलकलिया पसत्थाण-सव-वाय-पणोल्लिय-पहाविएणं उज्जम-ववसाय-गहिय-णिज्जरण-जयण-उवओगणाण-दंसग-चरित्त-विसुद्धवयभंडभरियसारा जिणवर-वयणोवदिट्ठ-मग्गेण अकुडिलेण सिद्धिमहापट्टणाभिमुहा समणवरसत्थवाहा सुसुइसुसंभाससुपण्हसासा गामे गामे एगरायं णगरे णगरे पंचरायं दूइज्जंता जिइंदिया जिम्भया गयभया सचित्ताचित्तमीसिएसु दवेसु विरागयं गया संजया विरता मुत्ता लहुया मिरवकंखा साहू णिहुया चरंति धम्मं ।।
ओव० सु० २३-३२ ।
महावीरेण एगनिसज्जाए चउपण्णाई वागरणाई
३५२ समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेज्जाए चउप्पग्णाई वागरणाई वागरित्था ।
सम० स० ५४, सु० ३ ।
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महावीरचरियं
महावीरकया पज्जुवासणा ३५३ समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वीतिक्कंते सत्तरिए राईदिएहि सेसेहि वासावासं पज्जोसवेद ॥
सम० स० ७०, सु० १
वासावासगणणा
३५४ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे
अट्ठियगामं नीसाए पढम अंतरावासं वासावासं उवागए । चंपं च पिट्टिचंपं च निस्साए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए । वेसालि नर्गार वाणियगामं च निस्साए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवागए । रायगिहं नगरं नालंदं च बाहरियं निस्साए चोद्दस अंतरावासे वासावासं उवागए । छ म्मिहिलाए, दो भद्दियाए, एगं आलभियाए, एगं सावत्थीए, एगं पणीयभूमीए, एग पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्त रन्नो रज्जुगसहाए अपच्छिम अंतरावासं वासावासं उवागए ।
कप्प० सु० १२२।
णिव्वाणं देवेहि उज्जोयकरणं य ३५५ एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउध्वीसाए तित्थगराणं चरमतित्थयरे सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिध्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ।
ठाणं० अ० १, सु० ७६॥
१. तेगं कालेणं तेगं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सबीसइराए मासे विइक्कंते वासावास पज्जोसवेइ ।
से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे बासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसबेइ? जतो णं पाएणं अगारीण अगाराई कडियाई उक्कंपियाई छन्नाई लित्ताई घट्ठाई मट्ठाई संपधूमियाई खओदगाई खातनिद्धमणाई अप्पणो अट्ठाए कयाइं परिभोत्ताइं परिणामियाई भवंति । से एतेण ऽणं एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसहराए मासे वोइक्कते वासावासं पज्जोसवेति । जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वोइक्कते वासावासं पज्जोसवेइ तहा णं गणहरा वि वासाण सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति । जहा गं गणहरा वासाणं - जाव - पज्जोसवेति तहा ण गणहरसीसा वि वासाणं - जाव - पज्जोसविंति । जहा णं गणहरसीसा वासाणं-जाव-पज्जोसविति तहा ण थेरा वि वासाणं -जाव -पज्जोसविति । जहा णं थेरा वासाणं - जाव - पज्जोसबिति तहा णं जे इमे अज्जताए समणा निग्गंथा विहरंति एए वि णं वासाणं - जाव - पज्जोसविति । जहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा वासाणं सबोसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसविंति तहा णं अम्हं पि आयरियउवज्झाया वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेति । जहा णं अम्हं आयरिय उवज्शाया बासाणं - जाव - पज्जोसवेंति तहा णं अम्हे वि अज्जो ! वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेमो । अंतरा वि य से कप्पइ पज्जोसवित्ताए नो से कप्पइ तं रयणिं उवायणावित्तए ।
कप्प० सु० २२४-२३१ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे ३५६ तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रन्नो रज्जुगसभाए अपच्छिम अंतरावासं वासावासं उवागए, तस्स णं
अंतरावासस्स जे से वासाणं चउत्थे मासे, सत्तमे पक्खे, कत्तियबहुले तस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसीपक्खणं जा सा चरिमा रयणी तं रणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विइक्कंते समुज्जाए छिन्न-जाइ-जरा-मरण-बंधणे सिद्ध
बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुड़े सव्वदुक्खपहीणे, ३५७ चंदे नाम से दोच्चे संवच्छरे, पोतिवद्धणे मासे, नंदिवद्धणे पक्खे, अग्गिवेसे नाम से दिवसे, उवसमि त्ति वि पबुच्चइ,
देवाणंदा नाम सा रयणी निरइ ति पबुच्चइ, अच्चे लवे, पुहुत्ते पाणू, थोवे सिद्धे, नागे करणे, सब्वट्ठसिद्ध मुहुत्ते,
साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं कालगए विइक्कते-जाव-सव्वदुवखप्पहीणे । ३५८ जं रणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए -जाव- सव्वदुक्खप्पहोणे सा गं रयणी बहूहिं देहि य देवेहि य
ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उज्जोविया यावि होत्था । जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे सा गं रयणी बहुहिं देहि य देवीहि य ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उप्पिजलगमाणभूया कहकहगभूया यावि होत्था ।
महावीरस्सायुकालगणणा अंतिमोवदेसो य ३५९ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे
तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता', साइरेगाई दुवालस वासाइं छउमत्यपरियागं पाउणित्ता, देसूणाई तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामन्न-परियायं पाउणित्ता', बावरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जाउय-नाम-गोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दुसमसुसमाए समाए बहुवीइक्कंताए तिहि बासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसएहि पावाए मज्झिामाए हत्थिपालगस्स रन्नो रज्जुगसभाए एगे अबीए छट्टणं भसेणं अपाणएणं साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पच्चूसकालसमयंसि संपलियंकनिसन्नेपणपन्नं अज्झायणाई कल्लाणफलविवागाई पणपन्नं अज्झायणाइं पावफलविवागाई, छत्तीसं च अपुटुवागरणाई वागरित्ता पघाणं नाम अायणं विभावेमाणे विभावेमाणे कालगए वितिक्कते समुज्जाए छिन्न-जाइ-जरा-मरण-बंधणे सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुड़े सव्वदुक्खप्पहीणे ।
कप्प० सु० १४६ । गोयमस्स केवलं ३६० जं रणि च णं भगवं महावीरे कालगए-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे तं रणि च णं जेट्ठस्स गोयमस्स इंदभूइस्स अणगारस अंतेवासिस्स नायए पेज्जबंधणे वोच्छिन्ने अणंते अणुत्तरे -जाव- केवल-बर-नाण-दंसणे समुप्पन्ने ।
कप्प. सु० १२६ । गणरायकयोज्जोओ ३६१ ज रयणिं च णं समणे -जाव- सव्वदुक्खप्पहीणे तं रणि च णं नव मल्लई नव लिच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो अमावसाए पाराभोयं पोसहोवबासं पटुवइंसु, गते से भावुज्जोए दब्बुज्जोयं करिस्सामो ।
कप्प० सु० १२७।
१ सम० स० ३०, सु०७। २ सम० स० ४२, सु० १ ३ सम० स० ७२, सु० ३। ४ सम० स० ८९, सु० २।
५ ठाणं, अ० १, सु० ७६। ६ ठाणं, अ० ६, सु० ५३१। ७ सम० स० ५५, सु० ४।
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८७
महावीरचरियं
निव्वाणाणंतरं भासरासीग्गहो तप्पभावा य ३६२ जं रयणिं च णं समणे-जाव-सम्बदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च च णं खुड्डाए भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सट्ठिई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्ख तं संकंते ।
कप्प० सु० १२८।
३६३ जप्पभिई च णं से खुड्डाए भासरासी महग्गहे दो बासतहपठिई समणस्त भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकते तप्पभिइं च णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीणं य नो उदिए उदिए पयासक्कारे पवत्तति ॥
कप्प० सु० १२९
३६४ जया णं से खुड्डाए-जाव-जम्मनक्षत्ताओ बौतिक्कंते भविस्सइ तया णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य उदिए उदिए पूयासक्कारे पवत्तिस्सति ।
कप्प० सु० १३०॥
निव्वाणाणंतरं संजमदराराहणा
३६५ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे तं रणि च णं कुंथू अणुद्धरी नाम समुप्पन्ना
जा ठिया अचलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, जा अठिया चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य चक्खुफासं हवमागच्छइ, जं पासित्ता बहूहिं निग्गंहिं निग्गंथीहि य भत्ताई पच्चक्खायाई । से किमाहु भंते ! अज्जप्पभिई दुराराहए संजमे भविस्सइ ।
कप्प० सु० १३१-१३२ ।
महावीरस्स समणाइसंपया
३६६ तेणं कालेणं तेणं समएणं
समणस्स भगवओ महावीरस्स इंदभूइपामोक्खाओ चोइस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समण-संपया होत्था समणस्स भगवओ महावीरस्स अज्जचंदणापामोक्खाओ छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्या । समणस्स भगवओ महावीरस्स संख-सयगपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउट्ठि च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासयाणं संपया होत्था । समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसा-रेवईपामोक्खाणं समणोवासियाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ अट्ठारस य सहस्सा उक्कोसिया
समणोवासियाणं संपया होत्था । ३६७ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तिन्नि सया चोद्दसपुब्बीणं अजिणाणं जिण-संकासाणं सव्वक्खर-सन्निवाईणं जिणो विव
अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चोद्दसपुव्वीणं संपया होत्था । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेरस सया ओहिनाणीणं अतिसेसपत्ताणं उक्कोसिया ओहिनाणीणं संपया होत्था । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त सया केवलनाणीणं संभिन्न-वरनाणदंसण-धराणं उक्कोसिया केवलनाणिसंपया होत्था
३६८ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त सया वेउवीणं अदेवाणं देविड्डिपत्ताणं उक्कोसिया वेउव्विसंपया होत्था ।
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पंचसया विउलमईणं अड्ढाइज्जेसु दीवेसु दोसु य समुद्देसु सग्णीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं जीवाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं उक्कोसिया विउलमईसंपया होत्था ।
१ सम० स० १४, सु० ४।
२ सम० स०३६ सु०३ । ३ सम० स०३००, सु०४। ठाणं अ० ३, उ० ४, सु० २३० ।
४ सम० स० ७००, सु० २। ५ सम० स० ७००, सु० ३।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ।
३६९ समणस्स णं भगवओ महावीरस्त सत्त अंतेवासिसयाई सिद्धाई - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणाई, चउद्दस अज्जियासयाई सिद्धाई।
समणस्स णं भगवओ महावीरस्त अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभहाणं उक्कोसिया अणुसरोववाइयाणं संपया होत्था ।
कप्प० सु० १४४॥ भ० महावीरस्स अणुत्तरदेवलोयगामिणो सिस्सा ३७० समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेवनं अणगारा संवच्छरपरियाया पंचसु अणुत्तरेसु महइमहालएसु महाविमाणेसु देवत्ताए उववन्ना ।
सम० स०५३, सु०३।
भ० महावीरस्स अंतगडभूमी ३७१ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहाजुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य - जाब - तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, चउवासपरियाए अंतमकासी ।
कप्प० सु० १४५। भ० महावीरदिक्खियरायाणो ३७२ समणेणं भगवता महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंडे भवेत्ता अगाराओ अणगारित पव्वाइया, तं जहासंगहणी-गाहा-वीरंगए वीरजसे, संजय एणिज्जए य रारिसी । सेये सिवे उद्दायणे, तह संखे कासिवद्धणे ॥१॥
ठाणं अ० ८, सु० ६२१ । भ० महावीरतित्थे तित्थयरकम्मबंधया ३७३ समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तित्यंसि णहि जीवेहि तित्थगरणामगोत्ते कम्मे णिव्वत्तिते, तं जहा-सेणिएणं, सुपासेणं, उदाइणा, पोट्टिलेगं अणगारेणं, दढाउगा, संखेणं, सतएगं, सुलसाए सावियाए, रेवतीए ॥
याणं अ० ९, सु० ६९१ ।
महावीरतित्थे पवयण-निण्हगा: ३७४ समणस्स णं भगवओ महावीरस्त तित्यसि सत्त पवयणणिण्हगा पण्णता, तं जहा
बहुरता, जीवपएसिया, अवत्तिया, सामुच्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया ॥ एएसि णं सतण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्या, तं जहाजमाली, तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामाहिले ॥ एतेसि णं सतण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त उत्पत्तिणगरा हुत्या, तं जहासंगहणी-गाहा-सावत्थी उसभपुरं, सेयिवया मिहिल उल्लगातीरं । पुरिनंतरंजि दसपुरं, णिण्हगउप्पत्तिणगराई ॥१॥
टाणं, अ० ७, सु० ५८७ ।
१ सम० स०४००, सु०५। ठाणं० अ०४, उ०४,सु०३८२।
२ सम० स० ८००, सु० ३। ठाणं, अ० ८, सु० ६५३ ।
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७ महापउमचरियं
सेणियस्स नरकगमणं ३७५ एस णं अज्जो ! सेणिए राया भिभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरा
सीइ-वास-सहस्स-ट्ठिइयंसि निरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं तत्थ नेरइए भविस्सइ काले कालोभासे - जाव - परमकिण्हे वण्णेणं से गं तत्थ वेयणं वेदिहिइ उज्जलं - जाव - दुरहियासं।
सेणियस्स नरकाओ आगामि-उस्सप्पिणीए कुलकरगिहे जम्मो ३७६ से णं तओ नरयाओ उवदे॒त्ता आगमेस्साए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु
सतदुवारे नयरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिइ । तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं मासाणं बहुपड़िपुण्णाणं अबुट्ठमाण य राइंदियाणं विइक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं
अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजण - जाव - सुरूवं दारगं पयाहिइ। ३७७ जं रयणिं च णं से दारए पयाहिई तं रणिं च णं सतदुवारे नगरे सब्भितरबाहिरए भारगसो य कुंभग्गसो य
पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिइ ।
महापउमनामकरणं
३७८ तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे विइक्कते - जाव - बारसाहे दिवसे अयमेयारूवं गोण्णं गण
णिफण्णं नामधिज्ज काहिंति । जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि जायंसि समाणंसि सयदुवारे नगरे सभिंतरबाहिरए भारग्गसो य, कुंभग्गसो य, पउमवासे य, रयणवासे य वासे वुठे, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधिज्ज्ञं महापउमे । तए णं तस्स दारगस्त अम्मापियरो नामधिज्ज काहिंति महापउमे त्ति ।
रज्जाभिसेओ ३७९ तए णं महापउमं दारगं अम्मापियरो साइरेगं अट्ठवासजायगं जाणित्ता महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिहिति ।
से णं तत्थ राया मबिस्सइ महता हिमवंतमहंतमलयमंदरराय वण्णओ - जाव - रज्ज पसाहेमाणे विहरिस्सइ । ३८० तए णं तस्स महापउमस्स रण्णो अण्णया कयाइ दो देवा महिढ़िया - जाव - महेसक्खा सेणाकम्मं काहिति तं जहा
पुण्णभद्दए, माणिभद्दए ।
देवसेणे ति दुतीयं नाम ३८१ तए णं सतदुवारे नगरे बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भसेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियओ अण्णमण्णं सद्दावेहिति
एवं वइस्संति । जम्हा णं देवाणुप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दो देवा महिड्ढिया - जाव - महेसक्खा सेणाकम्मं करेंति तं जहापुण्णभद्दे य माणिभद्दे य । तं होउ णं अम्हं देवाणुप्पिया ! महापउमस्स रण्णो दोच्चे वि नामधेज्जे देवसेणे ।
तए णं तस्स महापउमस्स दोच्चे वि नामधेज्जे भविस्सइ । ३८२ तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो अण्णया कयाइ सेयसंखतलविमलसण्णिकासे चउइंते हत्थिरयणे समुप्पज्जिहिइ ।
तए णं से देवसेणे राया तं सेयं संखतलविमलसण्णिकासं चउदंतं हत्थिरयणं दुरुढे समाणे सतदुवारं नगरं मज्झमझेणं अभिक्खणं अभिक्खणं अइज्जाहि य निज्जाहि य ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे विमलवाहणे ति नाम ३८३ तए णं सतदुवारे नगरे बहवे राईसरतलवर - जाव - अण्णमण्णं सद्दाविति एवं वइस्संति-जम्हा गं देवाणुप्पिया ! अम्हं
देवसेणस्स रण्णो सेए संखतलविमलसण्णिकासे चउद्देते हत्थिरयणे तं होउ णं अम्हं देवाणुप्पिया! देवसेणस्स रण्णो तच्चे वि नामषेज्जे विमलवाहणे । तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो तच्चे वि नामषेज्जे भविस्सइ विमलवाहणे ।
महापउमस्स पव्वज्जा
३८४ तए णं से विमलवाहणे राया तीसं वासाई अगारवासमजले वसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगहि गुरुमहत्तरएहि अब्भणुण्णाए
समाणे उदुमि सरए संबुद्ध अणुत्तरे मोक्खमग्गे पुणरवि लोरांतिएहि जीयकप्पिहिं देवेहिं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुष्णाहि मणामाहिं उरालाहि कल्लाणाहि घण्णाहिं सिवाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीआहिं वग्गूहि अभिणंदिज्जमाणे अभियुवमाणे य बहिया सुभूमिभागे उज्जाणे एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिथं पव्वयाहिइ ।
उवसग्गसहणं
३८५ तस्स णं भगवंतस्स साइरेगाई दुवालस वासाई निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जिस्संति तं जहा
दिव्वा वा, माणुसा वा, तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पण्णे सम्मं सहिस्सइ, खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ, अहियासिस्सइ । तए णं से भगवं इरियासमिए भासासमिए-जाव - गुत्तबंभयारि अममे अकिंचणे छिण्णगंथे निरुवलेवे कंसपाइ व मुक्कतोए जहा भावणाए - जाव - सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलंते। गाहाओ - कसे संखे जीवे, गगणे वाए य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुमे, विहगे खग्ने य भारंडे ॥१॥
कुंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोभे । चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥
भगवत
गहिएकविसं
पडिबंधविरहो ३८६ नत्यि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पड़िबंधे भवइ । से य पड़िबंधे चउब्विहे पण्णत्ते तं जहा -
अंडएइ वा, पोयएइ वा, उग्गहिएइ वा, पागहिएइ वा । जं णं जं गं दिसं इच्छइ तं गं तं गं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावमाणे विहरिस्सइ तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं, अणुत्तरेणं दंसणेणं, अणुत्तरेणं चरिएणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवे मद्दवे लाघवे खंती मुत्ती गुत्ती सच्च-संजम-तव-गुणसुचरियसोवचियफलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स झाणंतरियाए बट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए - जाव - केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति ।
केवलनाणं दंसणं च
३८७ तए णं से भगवं अरहा जिणे भविस्सइ केवली सम्वण्णू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए
सव्वजीवाणं आगई गई ठिइं चवणं उववायं तक्कं मणोमाणसियं भुत्तं कडं परिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणस-बयस-काइए जोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरद्द । तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाण-दंसणेणं सदेवमणुआसुरलोग अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं [३८५ तमसूत्रादारभ्य ३८८ तमसूत्रगत'पंच'पदपर्यन्तपाठसन्दर्भस्थाने वाचनान्तरे इत्थं पाठ उपलभ्यते-"से गं भगवं जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता-जाव- पव्वयाही तं चेव दिवसं सयमेतारूवमभिग्गहं अभिगिहिहिति-जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति तं जहाविव्वा वा, माणुसा वा, तिरिक्खजोणिया वा ते सव्वे सम्मं सहेज्जा, खमेज्जा, तितिक्खिज्जा, अहियासिज्जा तए णं से भगवं अणगारे भविस्सइ इरियासमिए भासासमिए एवं जहा- वज़माणसामी तं चेव निरवसेस - जावअव्वावारविउसजोगजुत्ते।
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महापडम-परियं
२८८ तस्स णं भगवंतरस एएवं बिहारेणं विहरमानरस बुवालसहि संवछरेहि विक्संहि तेरसहिय पक्लेर्हि तेरसमस संवछरस्त अंतरा बट्टमाणस्स अणुतरेणं नाणेणं जहा भावनाए केबलवरना समुप्यज्जिहति जिणे भविस्सा केवली सस्य सम्यदरिसी सरए जावपंच"] पंच महत्वपाई सभावनाई छच जीवनिकायसम्म देसेमाणे विहरिस्सह । महावीरस्स महापउमस्स य देसणासामण्णं
३८९ से जहा णामए अज्जो ! मए समणाणं निग्गंथाणं एगे आरंभठाणे पण्णले, 1
एवामेव महाचमे वि अरहा समणाणं निचाणं एवं आरंभठाणं पणहि ।
.
३९० से जहा नामए अज्जो ! मए समणाणं विहे बंधणे पष्णले तं जहा पेजबंधणे, दोसबंधणे, एवामेव महापउने वि अरहा समणानं निदानं विहं बंधणं पण्णवेहि तं महा पेन्जबंधणं च दोसबंधणं च । ३९१ से जहा णामए अज्जो ! मए समणाणं निग्गंथाणं तओ दंडा पण्णत्ता तं जहा एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं निग्गंयाणं तओ दंडे पण्णवेहि तं जहा
३९२ से जहा णामए एएणं अभिलावेणं चत्तारि कसाया पण्णत्ता तं जहा
कोहकसाए जाव लोहकसाए ।
-
३९३ पंच कामगुणे पण्णत्ते तं जहा सद्दे जाव - फासे ।
३९४ छज्जीवनिकाया पण्णत्ता तं जहा पुढविकइया जाव तसकाइया,
एवामेव पुढविकाइया जाव तसकाइया ।
.
·
३९५ से जहा णामए एएणं अभिलावेणं सत्त भयट्ठाणा पण्णत्ता तं जहा - इलोगभए जब असिलोगभए,
एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं सत्त भट्टाणा पण्णवेहिह ।
·
१
२
३९६ एवं अभवद्वाणे नव भवेरगुसीओ बसविहे समजयन्मे एवं जाव तेतीसमासातमा सि
·
·
-
३९७ से जहा णामए अज्जो ! मए समणाणं निग्गंथाणं नग्गभावे, मुंडभावे, अण्हाणए, अदंतवणे, अच्छत्तए, अणुवाहणए, भूमिसेज्जा, फलगसेज्जा, कट्टसेज्जा, केसलोए, बंभचेरवासे, परधरपवेसे जाव लावलद्धवित्तीओ पण्णत्ताओ, एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं निग्रंथागं नग्गभावं जाव लढावलद्धवित्तीओ पण्णवेहिह ।
·
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·
मणदंडे जाव कायदंडे,
मणवंडं जाव कायदंडं ।
.
२९८ से जहा णामए अन्जो भए समणानं निमार्ण आधारुम्मिएड वा, उद्देसिएड था, मीसज्जाए वा अन्सोपरवड या पूइए, कीए, पामिन्चे, अण्टेन्जे, अभिसि अभिडे या संतारभत्ते वा भिक्लभते वा गिलानभसे वा बलियामते या पाहुणभत्ते या मूलभोवणे या संदभोषणेह वा फलभोवणेड या बीयभोवणे वा हरियभोवणेह वा पडिसिद्धे,
·
एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं आधाकम्मियं वा जाव हरियभोयणं वा पडिसेहिस्सइ । २९९ से जहा नामए अन्नो भए समगाणं पंचमहम्बए सपदिकमणे अचेल धन्मेपणले एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं निग्गंथाणं पंचमहव्वइयं जाव अचेलगं धम्मं पण्णवेहिद ।
·
४०० से जहा णामए अज्जो ! मए पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए दुवालसविहे सावगधम्मे पण्णत्ते । एवामेव महायउमे वि अरहा पंचागुव्ययं जाव सावयधम्मं पण्णवेस्स ।
आवसग्गस्स चउत्थे पडिक्कमणज्झयणे "पडिक्कमामि एगविहे असंजमे" एयारूवं सुत्तमत्थि । आव० अ० ४ सु० २०-२६ ।
·
९१
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९२
धम्मकहाणुओगे पढ़मखंधे ४०१ से जहा णामए अज्जो ! मए समणाणं निग्गंथाणं सेज्जायपिंडेइ वा, रायपिंडेइ वा पडिसिद्धे,
एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं निग्गंथाणं सेज्जायपिडेइ वा रायपिंडेइ वा पड़िसेहिस्सइ ।
संपत्तिसामण्णं
४०२ से जहा णामए अज्जो ! मम नव गणा, एगारस गणधरा।
एवामेव महापउमस्स वि अरहओ नव गणा, एगारस गणधरा भविस्संति । आयुसो सामण्णं
.
४०३ से जहा णामए अज्जो! अहं तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भविता - जाव - पब्बइए, दुवालस संवच्छराई तेरस
पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, तेरसहि पहिं उणगाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणिता, बायालीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता, सिज्झिास्सं - जाव - सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं, एवामेव महापउमे वि अरहा तीसं वासाई अगारबासमझें वसित्ता - जाव - पवहिइ, दुवालस संवच्छराई - जाव - बावत्तरिवासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिइ - जाव - सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ गाहा-जंसीलसमायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो। तस्सीलसमायारो, होइ उ अरहा महापउमे ॥१॥
ठाणं अ० ९, स० ६९३ ।
अरहया महापउमेण अद्वरायाणो दिक्खिया भविस्संति ४०४ अरहा णं महापउमे अट्ठ रायाणो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारितं पवावेस्सति, तं जहा - १ पउमं, २ पउमगुम्म, ३ णलिणं, ४ पलिणगुम्मं, ५ पउमद्धयं ६ घणुद्धयं, ७ कणगरह, ८ भरहं ।
ठाणं अ० ९, स० ६२५ ।
८. तित्थयर-सामण्णं
अड्ढाइज्जेसु दीवेसु अरहंताइवंससमुप्पत्ती ४०५ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो अरहंतवंसा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
४०६ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो चक्कवट्टिवंसा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
४०७ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो बसारवंसा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ॥
ठाणं० अ० २, उ० ३, सु० ८९ ।
४०८ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीए तओ वंसा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा
उप्पज्जिस्संति बा, तं जहा-अरहंतवंसे, चक्कवट्टिवंसे, दसारवंसे ।
४०९ एवं जाव पुक्खरवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे ।
ठाणं० अ० ३, उ० १, सु० १४३ ।
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तित्थयर-सामणं
अड्ढाइज्जसु दीवेसु अरहंताईणमुप्पत्ती ४१० जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो अरहंता उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
४११ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो चक्कवट्टी उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
४१२ जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो बलदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा।
४१३ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो वासुदेवा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
ठाणं० अ० २, उ० ३, सु० ८९ ।
४१४ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीए तओ उत्तमपुरिसा उपज्जिसु वा उप्पजंति वा
उप्पज्जिस्संति वा, तं जहा- अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा ।
४१५ एवं जाव पुक्खरवरदीवद्धपचत्थिमद्धे ।
ठाणं० अ० ३, उ० १, सु० १४३ ।
जंबुद्दीवे भरहेरवएसु उत्तमपुरिसा ४१६ जंबुद्दीवे दीवे भर हेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणोए एगमेगाए उस्सप्पिणीए वउप्पण्णं-चउप्पण्णं उत्तमपुरिसा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उपज्जिस्संति वा, तं जहा-चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा।
सम० स० ५४, सु० १ ।
धायइसंडे उत्तमपुरिसा ४१७ धायइसंडे णं दीवे उक्कोसपए अटुढि अरहंता समुपज्जिसु वा समुप्पज्जेंति वा समुष्पज्जिस्संति वा ।
४१८ एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा ।
सम० स० ६८, सु० १-३ ।
पुक्खरवरदीवड्ढ़े उत्तमपुरिसा ४१९ पुक्खरवरदीवड्ढे णं उक्कोसपए अटुट्ठि अरहंता समुपज्जिसु वा समुप्पज्जेंति वा समुप्पज्जिस्संति वा ।
४२० एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा ।
सम० स० ६८, सु० ४ ।
जंबुद्दीवे महाविदेहे अरहंताईणमुप्पत्ती
४२१ जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे जहण्णपए चत्तारि अरहंता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उप्पर्जजसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
ठाणं० अ० ४, उ० २, सु० ३०२ ।
४२२ जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं सीताए महाणदीए उत्तरेणं उक्कोसपए अट्ठ अरहंता, अट्ठ चक्कवट्टी, अट्ठ बलदेवा,
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धम्मकहाणओगे पढमखंधे अट्ठ वासुदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा ।
ठाणं० अ० ८, सु० ६३८ । जंबुट्टीवे एरवए तित्थयरा ४२३ जंबुद्दीवे गं दीवे एरवए वासे इमोसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्या, तं जहा
चंदाणणं सुचंदं च, अग्गिसेणं च नंदिसेणं च । इसिदिण्णं वयहारिं, वंदिमो सामचंदं च ॥१॥ वंदामि जुत्तिसेणं, अजियसेणं तहेव सिवसेणं । बुद्धं च देवसम्म, सययं निक्खित्तसत्यं च ॥२॥ असंजलं जिणवसहं, वंदे य अणंतयं अमियणाणि । उवसंतं च घुयरयं, वंदे खलु गुत्तिसेणं च ॥३॥ अतिपासं च सुपासं, देवेसरवंदियं च मरुदेवं । णिव्वाणगयं च घरं, खीणदुहं सामकोटु च ॥४॥ जियरागमग्गिसेणं, वंदे खीणरयमग्गिउत्तं च । वोक्कसियपेज्जदोस, च बारिसेणं गयं सिद्धि ॥५॥
सम० सु० १५८ । जंबुद्दीवे एरवए भावी तित्थयरा ४२४ जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थकरा भविस्संति तं जहा
सुमंगले य सिद्धत्थे, णिव्वाणे य महाजसे । धम्मजाए य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥१॥ सिरिचंदे पुप्फकेऊ, महाचंदे य केवली । सुयसागरे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥२॥ सिद्धत्थे पुण्णधोसे य, महाघोसे य केबली । सच्चसेणे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥३॥ सूरसेणे य अरहा, महासेणे य केवली । सव्वाणंदे य अरहा, देवउत्ते य होक्खइ ॥४॥ सुपासे सुव्वए अरहा, अरहे य सुकोसले। अरहा अणंतविजए, आगमिस्साण होक्खइ ॥५॥ विमले उत्तरे अरहा, अरहा य महाबले । देवाणंदे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥६॥ एए वुत्ता चउव्वीसं, एरवयम्मि केवली । आगमिस्साण होक्खंति, धम्मतित्थस्स देसगा ॥७॥
सम० सु० १५८ । जंबुद्दीवे तित्थयरा ४२५ जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केबइया तित्थयरा सम्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थयरा सव्वग्गेणं पण्णत्ता ।
जंबु. व० ७ सु० १७३ ।
जंबुद्दीवतित्थयराणं उक्किट्ठा संखा ४२६ जंबुद्दीवे णं दीवे उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थंकरा समुप्पज्जंति ।
सम० स० ३४, सु० ४ ।
जंबुद्दीवे भारहे वासे तित्थयराणं नामाई ४२७ जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए कति तित्थगरा पण्णता ?
गोयमा ! चउवीसं तित्थगरा पण्णत्ता, तं जहा-उसभ-अजिय-संभव-अभिनंदणसुमति-सुप्पभ-सुपास-ससि-पुप्फदंत-सीयल-सेज्जंस-वासुपुज्ज-विमल-अणंत-धम्म-संति-कुंथु-अर-मल्लि-मुणिसुव्वय-नमि-नेमि-पासवद्धमाणा।
भग० स० २०, उ०८ सु० ६७५ ।
सम० स० २४, सु० १ ।
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तित्थयर-सामण्णं
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पियरो
४२८ जंबुद्दीवे गं दीवे भारहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं पियरो होत्या, तं जहासंगहणीगाहाओ
णाभी य जियसत्तू य, जियारी संवरे इ य । मेहे धरे पइ? य, महसेणे य खत्तिए ॥१॥ सुग्गीवे दढरहे विण्हू, वसुपुज्जे य खत्तिए । कयवम्मा सीहसेणे य, भाणू विस्ससेणे इ य ॥२॥ सूरे सुदंसणे कुंभे, सुमित्तविजए समुद्दविजये य । राया य आससेणे, सिद्धत्थे च्चिय खत्तिए ॥३॥ उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया । तित्थप्पवत्तयाणं, एए पियरो जिणवराणं ॥४॥
मायरो
४२९ जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था, तं जहा - संगहणीगाहाओ
मरुदेवा विजया सेगा, सिद्धत्था मंगला सुसीमा य । पुहवी लक्खण रामा, नंदा विण्हू जया सामा ॥१॥ सुजसा सुब्वय अइरा, सिरिया देवी पभावई । पउभा वप्पा सिवा य, वामा तिसला देवी य जिणमाया ॥२॥
पुव्वभवा ४३० एएसि चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पुव्वभबिया णामधेज्जा होत्या, तं जहासंगहणी गाहाओ
पढमेत्थ वइरणाभे, विमले तह विमलवाहणे चेव । तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्ते तह धम्ममित्ते य ॥१॥ सुंदरबाहू तह दीहबाहू जुगबाहू लट्ठबाहू य । दिण्णे य इंवदत्ते, सुंदर माहिंदरे चेव ॥२॥ सोहरहे मेहरहे, रुप्पी य सुदंसणे य बोद्धव्वे । तत्तो य नंदणे खलु, सीहगिरी चेव वीसइमे ॥३॥ अदीणसत्तु संखे, सुदंसणे नंदणे य बोद्धव्वे । ओसप्पिणीए एए, तित्थकराणं तु पुन्वभवा ॥४॥
सम० सु० १५७ ।
पुव्वभवसुयणाणं ४३१ जंबुद्दीदे गं दीवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थकरा पुव्वभवे एक्कारसंगिणो होत्या, तं जहा-अजिए संभवे अभिणंदणे
सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सोतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अणंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिटुणेमी पासे वद्धमाणे य । उसभे णं अरहा कोसलिए चोद्दसपुव्वी होत्था ।
पुव्वभवा ४३२ जंबुद्दीवे णं दोवे इमोसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थगरा पुव्वभवे मंडलियरायाणो होत्था, तं जहा-अजिए।
सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अणंते धम्मे संतो कुंथू अरे मल्ली मुणिसुन्वए णमी अरिटुणेमी पासे बद्धमाणे य । उसभे णं अरहा कोसलिए चक्कवट्टी होत्था।
सम० स० २३, सु० ३४ ।
तित्थयराणं वण्णो ४३३ दो तित्थगरा णीलुप्पलसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा- मुणिसुब्बए चेव, अरिटुणेमी चेव ।
दो तित्थगरा पियंगुसामा वण्णेणं पण्णता, तं जहा-मल्ली चेव, पासे चेव। दो तित्थगरा पउमगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-पउमप्पहे चेव, वासुपुज्जे चेव ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
दो तित्थगरा चंदगोरा वण्णेणं पण्णता, तं जहा-चंदप्पभे चेव, पुष्फदंते चेव ।।
ठाणं० अ० २, उ० ४ सु० १०८ । ज्ञाता० अ० ८।
उच्चत्तं
४३४ अजिते णं अरहा अद्धपंचमाइं धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ४५०, सु० १ ।
संभवे गं अरहा चत्तारि धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ४००, सु० १ ।
अभिनंदणे णं अरहा अबुट्ठाई धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ३५०, सु० २।
सुमई णं अरहा तिण्णि धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ३००, सु० १।
पउमप्प णं अरहा अड्ढाइज्जाइं धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० २५०, सु० १।
सुपासे णं अरहा दो धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० २००, सु० १ ।
चंदप्पभे णं अरहा दिवड्ढ घणुसयं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० १५०, सु० १ ।
सुविही पुष्फदंते गं अरहा एगं धणुसयं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० १००, सू० ३ ।
सीयले णं अरहा नउई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ९०, सु० १ ।
सेज्जंसे णं अरहा असीइं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सम० स० ८०, सु० १ ।
वासुपुज्जे णं अरहा सरि धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ७००, सु० ३ ।
विमले णं अरहा सठिं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ६०, सु० ३ ।
अणंते णं अरहा पण्णासं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ५०, सु. २।
धम्मे णं अरहा पणयालीसं धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ४५, सु० ५ ।
संती णं अरहा चत्तालीसं धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ४०, सु० ३ ।
कुंथू णं अरहा पणतीसं धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ३५, सु० २।
अरे णं अरहा तीसं धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ३०, सु० ४ ।
१ पउम-वसुपुज्जरत्ता, ससि-सुविहि सेअ नेमि-मणि काला । मल्ली पासो नीला, कणयनिहा सेल सेस जिणा ॥१॥
सत्त० ठा० ४६, गा० १२५ ।
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तित्थयर-सामण्णं
मल्ली गं अरहा पणवीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० २५, सु० २ ।
मुणिसुव्वए णं अरहा बीसं धई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० २०, सु० २ ।
णमी णं अरहा पण्णरस धणूई उडलं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० १५, सु० २ ।
मी गं अरहा दस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, होत्या' ।
ठाणं अ० १०, सु. ७३५ ।
पासे गं अरहा नव रयणीओ उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ९, सु० ४ ।
समणे भगवं महावीरे सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ७, सु० ३ ।
अगारवासो
४३५ उसभे गं अरहा कोसलिए तेसीई पुव्वसयसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारिअं पव्वइए।
सम० स० ८३, सु० १ । अजिते गं अरहा एक्कसरि पुव्वसयसहस्साई अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारिअं पव्वइए ।
सम० स० ७१, सु० ३ । संभवे गं अरहा एगूणसठिं पुव्वसयसहस्साइ अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्सा गं अगाराओ अणगारिअं पव्वइए ।
सम० स० ५९, सु० २ । सीतले णं अरहा पण्णरि पुव्वसहस्साई अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता गं अगाराओ अणगारिअं पव्वइए।
सम० स० ७५, सु० २ । संती णं अरहा पण्णतरि वाससहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए।
सम० स० ७५, सु० ३ । अरिठ्ठनेमी गं अरहा तिणि वाससयाई कुमारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्सा अगाराओ अणगारिअं पव्वइए।
सम० स० ३००, सु० २ । से णं अरहा तीसं वासाई अगारमझे वसित्ता [मुंडे भवित्ता ?] अगाराओ अणगारियं पव्वइए।
सम० स० ३०, सु. ६ । समणे भगवं महावीरे तीसं वासाई अगारमा वसित्ता मुंडे भवित्ता अगराओ अणगारियं पव्वइए ।
सम० स० ३०, सु० ७ ।
कुमारकालो
४३६ पंच तित्थगरा कुमारवासमझे वसित्ता मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तं जहा-वासुपुज्जे, मल्ली, अरिटुणेमी, पासे, वीरे॥
ठाणं० अ० ५, उ० ३, सु० ४७१ ।
१ सम० स० १०, सु० ४ । २ ठा० अ० ७, सु० ५६। ओव० सु० १६ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंघ
अगारवासकालो
४३७ एगणवीसं तित्थयरा अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारिअं पध्वइआ।
सम० स० १९, सु० ५ ।
सव्वायू ४३८ उसभेणं अरहा कोसलिए चउरासीइं पुव्व-सयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिग्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ।
सम० स० ८४, सु० २ । चंदप्पभे णं अरहा दस-पुव्व-सतसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख-प्पहीणे ॥
ठाणं० अ० १०, सु० ७३५ । सेज्जसे अरहा चउरासीइं वास-सयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिम्वुडे सम्वदुक्ख-प्पहीणे ।
___ सम० स० ८४, सु० ३ । म्मे गं अरहा दस वास-सयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्बुड़े सव्वदुक्ख-प्पहीणे ।
ठाणं०, अ० १०, सु० ७३५ । कुंथू णं अरहा पंचाणउई वास-सहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सव्वदुक्ख-प्पहीणे ।
सम० स० ९५, सु० ४ ।
१ तित्थयराणं कुमारत्तं रज्जं च : गाहाओ : १ उसभस्स कुमारत्तं, पुवाणं वीसई सयसहस्सा । तेवट्ठी रज्जमी, अणुपालेऊण णिवखंतो ॥१॥
२ अजिअस्स कुमारत्तं, अट्ठारस पुव्वसयसहस्साई । तेवण्णं रज्जमी, पुव्वंगं चेव बोद्धन्वं ।।२।। पण्णरस सयसहस्सा, कुमारवासो अ संभवजिणस्स ३ । चोआलीसं रज्जे, चउरंगं चेव बोद्धव्वं ।।३।। अद्धतेरसलक्खा, पुवाणंऽभिणदणे ४ कुमारत्तं । छत्तीसा अद्धं चिअ, अटुंगा चेव रज्जंमि ।।४।। ५ सुमइस्स कुमारत्तं, हवंति दस पुव्वसयसहस्साई । अउणातीस रज्जे, बारस अंगा य बोद्धब्वा ॥५॥ ६ पउमस्स कुमारत्तं, पुवाणऽद्धट्ठमा सयसहस्सा। अद्धं च एगवीसा, सोलस अंगा य रज्जंमि ।।६।। पुव्वसय सहस्साई, पंच सुपासे ७ कुमारवासा उ । चउदस पुण रज्जमी, वीसं अंगा य बोद्धब्बा ।।७॥ अड्ढाइज्जा लक्खा, कुमारवासो ससिप्पहे ८ होइ । अद्धं छच्चिय रज्जे, चउवीसंगा य बोद्धव्वा ।।८।। पणं पुब्बसहस्सा, कुमारवासो उ पुष्फदंतस्स ९ तावइ रज्जमी, अट्ठावीसं च पुव्वंगा ।।९।। पणवीससहस्साई, पुव्वाण सीअले १० कुमारत्तं । तावइअं परिआओ, पण्णासं चेव रज्जंमि ॥१०॥ वासाण कुमारत्तं, इगवीसं लक्ख हुँति सिज्जंसे ११ । तावइ परिआओ, बायालीसं च रज्जमि ।।११।। गिहवासे अट्ठारस, वासाणं सयसहस्स निअमेणं । चउपण्ण सयसहस्सा, परिआओ होइ वसुपुज्जे १२ ।।१२।। पण्णरस सयसहस्सा, कुमारवासो अ तीसई रज्जे। पण्णरस सयसहस्सा, परिआओ होइ विमलस्स १३ ॥१३।। अट्ठमलक्खाई, वासाणमणतई१४ कुमारत्ते । तावइ परिआओ, रज्जमी हुँति पण्णरस ।१४। १५धम्मस्स कुमारत्तं, वासाणड्ढाइआई लक्खाई ॥ तावइ परिआओ, रज्जे पुण हुँति पंचैव ।।१५।। १६संतिस्स कुमारतं, मंडलिअ चक्कि परिआअ चउसुंपि । पत्ते पत्तेअं, वाससहस्साइं पणवीसं ।१६। एमेव य कुंथुस्स१७ बि, चउसु वि ठाणेसु हुँति पत्ते । तेवीस सहस्साई, वरिसाणद्धट्ठमसया य ।१७। एमेव अरजिणिदस्स१८, चउसु बि ठाणेसु हुंति पत्ते। इगवीस सहस्साई, वासाण हुँति णायव्वा ।१८। १९मल्लिस्स वि वाससयं, गिहवासे सेसयं तु परिआओ । चउप्पण्णसहस्साई, नब चेव सयाई पुण्णाई ।१९। अद्धट्ठमा सहस्सा, कुमारवासो उ सुव्वय२०जिणस्स । तावइ परिआओ, पण्णरससहस्स रज्जमि ।२०। नमिणो२१ कुमारवासो, वास सहस्साई दुण्णि अद्धं च । तावइ परिआओ, पंचसहस्साई रज्जमि ।।२१।। तिण्णेव य वाससया, कुमारवासो अरिट्ठनेमिस्स२२ । सत्त य वाससयाई, सामण्णे होइ परिआओ ॥२२॥ पासस्स २३कुमारत्तं, तीसं परिआओ सत्तरी होइ । तीसा य वद्धमाणे २४, बायालीसा उ परिआओ ॥२३॥
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तित्य यर सामण्णं
मल्ली गं अरहा पणपणं वास सहरसाई परमाउं पालता सिद्धं बुद्धं मुझे अंतग परिणि सव्यक्तीने । सम० स० ५५, सु. १ ।
णमी णं अरहा दस-बास - सहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिठवडे सव्वदुक्ख-प्पहीणे । ठाणं० अ० १०, सु० ७३५ ।
मी गं अरहा इस बास-सवाई सम्याउयं पालता सिद्धे बुद्धे मुले अंतगड परिणम्बु सम्यक्खीणं । ठाणं० अ० १०, सु० ७३५ । पासे णं अरहा पुरिसादाणीए एक्कं वास सयं सम्बाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिठवडे सव्वदुक्ख प्पहीणे । सम० सु० १००, ४ सु० समणे भगवं महावीरे बावर्त्तारं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख--पहीणे' ।
सम० ७२, सु० ३ ।
चंदप्पभस्स छउमत्थकालो
४३९ चंदप्प णं अरहा छम्मासे छउमत्थे हुत्था ।
१
कल्लाणगाणि
४४० परमप्यहेणं अरहा पंचचित्ते हत्था, तं जहा
१. चित्ताहि चुते चइत्ता गर्भ वक्कते । २. चित्ताहि जाते । ३. चित्ताहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइए । ४. चित्ताहि अनंते अणुत्तरे जिब्बावाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । ५. चित्ताहि परिणिते ।
२
पुष्कले गं अरहा पंचमूले हुत्वा तं जहा मूले ते बहला गर्भ बस्ते० ॥ सीपले गं अरहा पंचपुवा हत्वा तं जहा पुण्यासाठाहि चुते दत्ता गर्भव विमलेणं अरहा उत्तराभवए हुत्या तं जहा उत्तराभवयाहि ते चइता गर्भ बसे० ॥ अते अरहा पंचरेलिए हत्या तं जहा रेवतिहि ते बहला गर्भ वक्रुतं ॥ धम्बे अरहा पंचपुते हुत्या तं जहा सेणं ते वदता गर्भ बनते० ॥
०
संतो गं अरहा पंचभरणीतं जहा भरणीहि चुते चइता गर्भ वयते । कुंथू णं अरहा पंचकत्तिए हुत्था, तं जहा- कत्तियाहि चुते चइत्ता गब्भं वक्कते ० ॥ अरे णं अरहा पंचरेवतिए हुत्या, तं जहा रेवतिहि चुते चइता गर्भ वक्कते ० ।। मुम्बिए अरहा पंचसवणे हत्या तं जहा सवर्णणं तं बद्दता गर्भ वक्रते० ॥ नमो गं जरहा पंचसिगीए हत्या तं जहा आसिहि चुते चला गर्भ बनले० ॥ पेमी गं अरहा पंचचित्ते हत्या से जहा चित्ताहि चुसे चइता गर्भ वक्ते ॥ पासे णं अरहा पंचविसाहे हुत्था, तं जहा -विसाहाहि चुते चइता गन्भं वक्कते० ।।
०
९९
ठाणं० अ० ६, सु० ५२० ।
तित्थयराणं सव्वाउ गाहाओ
।।१।।
चउरासी १ बिसत्तरि२ सट्ठी ३ पण्णासमेव लक्खाई४ । चत्ता५ तीसा६ वीसा७ दस दो९ एगं च पुव्वाणं १ चउरासीइं११ बावत्तरी १२य सट्ठी य होइ वासानं १३ ।। तीसा१४ य दस १५ य एगं च एवमेए सयसहस्सा १६ ॥२॥ पंचाणउइ सहस्सा १७. चउरासीई१८ य पंचपण्णा १९ य ।। तीसा२० य दस २१ य एगं २२ सय २३ च बावत्तरी२४ चेव । । ३ । । गाहाओ - वाससहस्सं १ बारस२ चउदस३ अट्ठार४ वीसबरिसा५ य ।। मासा६ छन्नव७ तिन्निय य मिक्कग १२ दुगं १३ च ।। १ ।। तिय १४ दुग १५ इक्कग १६ सोलस, वासा१७ तिन्नि १८ मासिक्कारस२० नवगं २१, चपण दिगाई२२ चुलसीई २३ || २ || पक्खऽहिय सड्ड बारस२४, वासा
चउ९ तिग १० दुग ११ य तहेवऽहोरत्तं १९ ।। छउमत्थ- काल - परिमाणे ।।
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१००
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे समणे भगवं महावीरे पंचहत्युत्तरे होत्था, तं जहा-१. हत्थुसराहि चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। २. हत्थुत्तराहि गम्भाओ गभं साहरिते। ३. हत्युत्तराहिं जाते। ४. हत्युत्तराहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइए । ५, हत्युत्तराहि अणंते अगत्तरे णिवाधाए णिराबरणे कसिणे पडिपुणे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे ॥
ठाणं० अ० ५, उ० १, सु० ४११ :
सीया सीयावाहया य ४४१ एएसि णं चउवीसाए तित्थकराणं चउधोसं सोयाओ होत्था, तं जहा
सोया सुदंसणा सुप्पभा यति, सिद्धत्य सुष्पसिद्धा य । विजया य वेजयंति, जयंति अपराजिया चेव ॥१॥ अरुणप्पभ चंदप्पभ, सूरप्पह अग्गिसप्पभा चेव । विमला य पंचवण्णा, सागरदत्ता य णागदत्ता य ॥२॥ अभयकर णिवुतिकरा, मणोरमा तह मजोहरा चेव । देषकुर उत्तरकुरा, विसाल चंदप्पभा सीया ॥३॥ एयातो सीयाओ, सवसि चेव जिणवरिंदाणं । सम्वजगवच्छताणं, सब्वोतुयसुभाए छायाए ॥४॥ पुब्बि उक्खिता, माणुसेहि साहदुरोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥५॥ चलघवलकुंडलवरा, सच्छदविउब्वियाभरणधारी । सुरअसुरवंदियाणं, वहंति सीयं जिणिदाणं ॥६॥ पुरओ वहंति देवा, नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि । पच्चत्थिमेण असुरा, गरुला पुण उत्तरे पासे ॥७॥
दिक्खानगराई
४४२ उसमो य विणीयाए, बारवईए अरिटुवरणेमी । अवसेसा तित्ययरा, निक्खंता जम्मभूमीसु ॥१॥
दिक्खाकाले एगदू सं ४४३ सम्वे वि एगदूसेण, णिग्गया जिगवरा चउव्वीसं । ण य णाम अण्णलिंगे ग य गिहिलिगे कुलिंगे व ॥१॥
१. दुच उत्थ नवम बारस, तेरस पन्नरस सेस गन्मठिइ । मासा अड नव तदुवरि, उसहाइकमेणिमे दिवसा ॥१॥
चउ पणवीसं छद्दिण, अडवीसं छच्च छच्चिगुणवीसं । सगछन्वीसं छ च्छ य, वीसिगवीस छ छव्वीसं ।।२।।
छ पण अड सत्त अट्ठय, अट्ठडट्ठ छ सत्त हुंत्ति गम्भ दिणा । २. क गाहाओ
एवमेएणं अभिलावेणं इमाओ गाहाओ अणुगंतव्याओ
पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पुवाई आसाढा, सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवया ॥१॥ मुणिसुव्वयस्स सवणो, आसिणि नमिणो य नेमिणो चित्ता । पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्थुत्तरो वीरो ।।३।।
- रेवइया अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवइओ य ॥२॥ ख उत्तरसाढा ? रोहिणि२, मियसीस३ पुणव्वसू४ महा५ चित्ता६ ॥ वइसाह ७ऽणुराहा८ मूल९, पुव्व१० सवणो११
सासयभिसा१२ य ॥१॥ उत्तरभद्दव१३ रेवइ१४, पुस्स १५ भरणि१६ कत्तिया१७ य रेवइ१८ य ।। अस्सिणि १९ सवणो२० अस्सिणि२१ चित्त२२
विसाहु२३ त्तरा२४ रिक्खा ॥२॥ ३. तित्थयराणं दिक्खाकालोगाहाओ : उसभस्स पुवलक्खं, पुवंगूणमजिअस्स तं चेव । चउरंगूणं लक्खं, पुणो पुणो जाव सुविहित्ति ॥१॥
पणवीसं तु सहस्सा, पुब्वाणं सीअलस्स परिआओ। लक्खाई इक्कवीसं, सिजंस जिणस्स वासाणं ॥२।। चउपणं पण्णरस, तत्तो अट्ठमाइ लक्खाई।, अड्डाइज्जाई तओ, वाससहस्साई पणवीसं ।।३।। तेवीसं च सहस्सा, सयाणि अट्ठमाणि अ हवंति । इगवीसं च सहस्सा, बाससऊणा य पणपण्णा ॥४॥ अट्ठमा सहस्सा, अड्ढाइज्जा य सत्त य सयाइं । सयरी बिचत्तवासा, दिक्खाकालो जिणिंदाणं ॥५।।
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तित्थयर-सामण्णं
सहदिक्खियाणं संखा ४४४ एक्को भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहि-तिहि-सएहि । भयपि वासुपुज्जो, छहिं पुरिससहि निक्खंतो ॥१॥
उग्गाणं भोगाणं, राइण्णाणं च खत्तियाणं च । चहिं सहस्सेहिं उसभो, सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥२॥
दिक्खापुव्वं तवो ४४५ सुमइत्थ णिच्चभत्तेण, णिग्गओ वासुपुज्ज चोत्येणं । पासो मल्ली वि य., अट्ठमेण सेसा उ छठेणं ॥१॥
सम० सु० १५७ ।
पढमभिक्खादायगा
। पढमभिवखादायारो हारमा तह धम्ममिते यामदत्त य ॥२॥
४४६ एएसि णं चउवोसाए तित्थगराणं चउवोसं पढमभिक्खादायारो होत्या, तं जहा
सेज्जंसे बंभवत्ते, सुरिंदवत्ते य इंददत्ते य । तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्त तह धम्ममित्ते य ॥१॥ पुस्से पुणव्वसू पुण्णणंद, सुणंदे जये य विजये य । पउमे य सोमदेवे, महिंददत्ते य सोमबत्ते य ॥२॥ अपराजिय वीससेणे, वीसतिमे होइ उसभसेणे य । दिण्णे वरदत्ते, घने बहुले य आणुपुव्वीए ॥३॥ एते विसुद्धलेसा, जिणवरभत्तीए पंजलिउडा य ।तं कालं तं समय, पडिलाभेई जिणवरिंदे ॥४॥
४४७
पढमभिक्खाकालो संबच्छरेण भिक्खा, लद्धा उसभेण लोगणाहेण । सेसेहिं बीयदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥१॥ उसभस्स पढमभिक्खा, खोयरसो आसि लोगणाहस्स । सेसाणं परमण्णं, अमयरसरसोवमं आसि ॥२॥ सर्वेसि पि जिणाणं, जहियं लद्धाओ पढमभिक्खातो । तहियं वसुधाराओ, सरीरमेत्तीओ बुढाओ ॥३॥
चेइयरुक्खा
संगहणी गाहाओएतेसि णं चउबीसाए तित्थगराणं चउवीसं चेइयरुक्खा होत्था, तं जहाणग्गोह-सत्तिवण्णे, साले पियए पियंगु छत्ताहे। सिरिसे य गागरुक्खे, माली य पिलंखुरुक्खे य ॥१॥ तेंदुग पाडल जंबू, आसोत्ये खलु तहेव दधिवण्णे। गंदीरुक्खे तिलए अंबयरुक्खे असोगे य ॥२॥ चंपय बउले य तहा, वेडसिरुक्खे य वायईरुक्खे । साले य वड्ढमाणस्स, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥३॥ बत्तीसई धणूई, चेइयरुक्खो य वद्धमाणस्स । णिच्चोउगो असोगो, ओच्छण्णो सालरुक्णं ॥४॥ तिण्णेव गाउयाई, चेइयरुक्खो जिणस्स उसभस्स । सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥५॥ सच्छत्ता सपडागा, सवेइया तोरणेहि उववेया। सुरअसुरगहलमहिया, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥६॥
पढमसिस्सा ४४९ एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसीसा होत्था, तं जहा
पढमेत्य उसभसेणे, बीए पुण होइ सोहसेणे उ । चारू य वज्जणाभे, चमरे तह सुन्वते विदग्भे ॥१॥ दिपणे वाराहे पुण, आणंदे गोथुभे सुहम्मे य । मंदर जसे अरिठे, चक्काउह सयंभु कुंभे य ॥२॥ ठाणं अ० ३, उ० ४, सु० २२९ । क. मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए, तं जहा- मल्ली विदेहरायवरकण्णगा, पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाये अंगराया, रुप्पी कुणालाधिपती, संखे कासीराया, अदीणसत्तु कुरुराया, जितसत्तु पंचालराया ।।
ठाणं० अ० ७, सु० ५६४ नायाधम्मकहाए (4) पुण अद्वराजकुमारेहि सह मल्ली दिक्खियति
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१०२
धम्मकहाणुओगे पढमखंधेट
'भिसए व इंद कुंभे, वरदत्ते दिण्ण इंदभूती य । उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया । तित्थप्पबत्तयाणं, पढमा सिस्सा जिणवराणं ॥३॥
पढमसिस्सिणीओ ४५० एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीओ होत्या, तं जहा
बंभी फग्ग सम्मा, अतिराणी कासवी रई सोमा । सुमणा वारुणि सुलसा, धारिणि धरणी य धरणिधरा ॥१॥ पउमा सिवा सुई अंजू, भावियप्पा य रक्खिया । बंधू-पुप्फवती चेव, अज्जा धणिला य आहिया ॥२॥ जक्खिणी पुप्फचूला य, चंदणऽज्जा य आहिया । उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया । तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सी जिणवराणं ॥३॥
सम. सु. १५७ । केवलनाण-दसणोप्पत्तिकालो
४५१ अंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसाए जिणाणं सूरुग्गमणमुहत्तंसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ॥
सम० स० २३, सु० २ । तित्थयराणं अतिसेसा ४५२ चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पण्णत्ता, तं जहा
१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे । २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए । ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे । ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अहिस्से मंसचक्खुणा । ६. आगासगयं चक्कं । ७. आगासगयं छत्तं । ८. आगासगयाओ सेयवरचामराओ । ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सोहासणं । १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरिमंडिआभिरामो इंदाओ पुरओ गच्छद । ११. जत्थ जत्थ वि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थ वि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लव
समाउलो सच्छत्तो सज्झओ सयंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ । १२. ईसि पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं अभिसंजायइ, अंधकारेवि य णं दस दिसाओ पभासेइ । १३. बहुसमरमणिज्जे मूमिभागे । १४. अहोसिरा कंटया भवंति । १५. उडु विवरीया सुहफासा भवति । १६. सीयलेणं सुहफासेणं सुरभिणा मारुएणं जोयणपरिमंडलं सवओ समंता संपमज्जिज्जति । १७. जुत्तफुसिएण य मेहेण निय-रय-रेणुयं कज्जइ । १८. जल-थलय-भासुर-पभूतेणं बिटट्ठाइणा दसद्धवणेणं कुसुमेणं जाणुस्सेहप्पमाणमित्ते पुष्फोवयारे कज्जइ । १९. अमणुण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं अवकरिसो भवइ । २०. मणुण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रुव-गंधाणं पाउब्भावो भवइ । २१. पच्चाहरओवि य णं हिययगमणीओ जोयणनीहारी सरो । २२. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ । २३. सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसि सवेसि आरियमणारियाणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि
सिरीसिवाणं अप्पणो हिय-सिव-सुहदभासत्ताए परिणमइ ।
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तित्थयर-सामण्णं
१०३ २४. पुव्वबद्धवेरा वि य णं देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव-महोरगा अरहओ पायमले
पसंतचित्तमाणसा धम्म निसामति । २५. अण्णउत्थिय-पावयणिया वि य णमागया बंदंति । २६. आगया समाणा अरहओ पायमूले निप्पडिवयणा हवंति । २७. जओ जओ वि य णं अरहंतो भगवंतो विहरंति तओ तओ वि य णं जोयणपणवीसाएणं ईती न भवइ । २८. मारी न भवइ । २९. सचक्कं न भवइ । ३०. परचक्कं न भवइ । ३१. अइवट्ठी न भवइ । ३२. अणावुट्ठी न भवइ । ३३. दुभिक्खं न भवइ । ३४. पुन्वुप्पण्णावि य णं उपाइया वाही खिप्पामेव उवसमंति ।।।
सम० स० ३४, सु० १ ।
४५३ पणतीसं सच्चवयणाइसेसा पण्णत्ता
सम० स० ३५, सु०१ ।
चाउज्जामधम्मोवदेसगा तित्थयरा
४५४ भरहेरवएसु णं वासेमु पुरिम-पच्छिम-वज्जा मज्झिामगा बावीसं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्म पण्णवयंति, तं जहा
सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ बेरमणं, सवाओ अदिण्णादाणाओ बेरमणं, सव्वाओ
१. चउत्तीसाइसयगाहाओ
रयरोयसेयरहिओ, देहो१ धवलाई मस - रुहिराइं२ । आहारा नीहारा, अहिस्सा३ सुरहिणो सासा४ ।।१।। जम्माउ इमे चउरो, एक्कारस कम्मखयभवा इण्डिं । खेत्ते जोयणमेत्ते, तिजयजणो माइ बहुओऽवि५ ॥२।। नियभासाए नर-तिरि-सुराण धम्मावबोहया वाणी६ । पुन्वभवा रोगा उबसमंति७ न य हुंति वेराइं८ ।।३।। दुन्भिख९ डमर१० दुम्मारि११, ईइ१२ अइबुट्टि१३ अगभिवुट्ठीओ१४ । हूति न बहु जियतरणी, पसरइ
भामंडलुज्जोओ१५ ।।४।। सुररइया इगुवीसा, मणिमयसीहासणं सपयवीढं १६ । छत्तत्तय १७ इंदज्झय१८, सियचामर १९ धम्मचक्काइं२० ॥५।। सह जगगुरुणा गयणट्ठियाइं पंच वि इमाई वियरंति । पाउब्भवइ असोओ२१, चिट्ठइ जत्थ प्पहू तत्थ ।।६।। चउमुहमुत्तिचउक्कं २२, मणि-कंचण-तार-रइय-सालतिगं२३ । नवकणयपंकयाइं२४, अहोमुहा कंटया हुति२५ ।।७।। निच्चमवट्ठियमित्ता, पहुणो चिट्ठति केस-रोम-नहा२६ । इंदिय अत्था पंचवि, मणोरमा२७ हुति छप्पि रिऊ२८ ।८।। गंधोदयस्स वुट्ठी२९, कुसुमाणं पचवन्नाणं३० । दिति पयाहिण सउणा३१, पहुणो पवणोऽवि अणुकूलो३२ ॥९॥ पणमंति दुमा३३ वज्जति दुदुहीओ गहीरघोसाओ३४ । चउतीसाइसया णं, सव्वजिणिंदाण हुँति इमा ॥१०॥
प्रव० गा० ४४१-४५० । वयणगुणा सग सद्दे, अत्थे अडवीस मिलिअ पणतीसं । तेहिं गुणेहि मणुन, जिणाण वयणं कमेण इमं ।।१।। वयणं सक्कार-गभीर-धोस-उवयारुदत्तयाजुत्तं । पडिनायकरं दक्खिन्नसहिअमुवणीअरायं च ।।२।। सुमहत्यं अव्वाहयमसंसयं तत्तनिट्ठिअं सिट्ठ । पत्थाबुचियं पडिहयपरुत्तरं हिययपीईकरं ।।३।। अनुन्नसाभिकखं, अभिजायं अइसिणिद्धमहुरं च । ससलाहापरनिंदावज्जिअमपइन्नपसरजुअं ॥४॥ पयडक्खरपयवक्कं सत्तपहाणं च कारगाइजुअं ।। ठविअविसेसमुआर अणेगजाई विचित्तं च ।।५।। परमम्मविब्भमाईविलंबवुच्छेयखेयरहिअं च । अदुअं धम्मत्थजुयं, सलाहणिज्ज च चित्तकरं ॥६॥
सत्त० स्था० ९८, गा० २०३-२०७ ।
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१०४
बहिडावाणाओं रमणं ॥
सय्येणं महाविदेहेमु अरहंता भगवंतो वाउज्जानं धम्मं पण्णवयंति तं जहा
सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं ॥
ठाणं अ० ४, उ० १, सु० २६६ ।
कण्हाइभावीतित्थयरा घाउज्जामधम्मोवएसगा
४५५ एस णं अज्जो ! कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुते, पुट्टिले, सतए गाहावती, दारुए नियंठे, सच्चई पिठीपुले, साविययुद्धे अब [म्म ? ]डे परिष्वायए, अजावि णं सुपासा पासावबिना जागमेस्साए उस्सप्पिणीए पाउज्जामं धम्मं पणवता सिज्झिहिति बुज्झिहित मुयिहिति परिणिवाहिति सव्वदुस्तानं अंतं काहिति ॥
ठाण ० ० अ०९, सु० ६९३ ।
पम्मकहाणुभगे पडमधे
आगामि- उस्सप्पिणीए तित्थयरा
तित्थयरनामाई
४५६ जंबुद्दीये णं होये भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चडवी तित्पगरा भवित्संति तं जहा
संग्रहणी गाहाओ
महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे । उदय पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सतए ति य अमने णिक्कसाए य, निष्णुलाए य निम्ममे संवरे अणिवट्टी व बिजए विमलेति प एए बुत्ता उवी भरहे वासम्मि केवली
सव्वाणुभूई अरहा, देवउत्ते य होक्खति ॥ १॥ । मुणिसुव्वए य अरहा, सव्वभावविदू जिणे ॥२॥ चितउत्ते समाही य, आगमिस्साए होक्व ॥ ३॥ देवोववाए अरहा, अनंतविजए ति य ॥४॥
आगमेस्थान होक्वंति, धम्मलित्वस्त देगा ||५॥
पुण्यभवनामाई
य बोद्धव्या ॥१॥
४५७ एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुव्वभविया चउवीसं नामवेज्जा भविस्संति, सं जहा - सेणिय सुपास उदए, पोट्टिल अणगारे तह दढाऊ य । कत्तिय संखे य तहा, नंद सुनंदे सत देवई वेव सच्चह तह वासुदेव बलदेवे रोहिणि सुलता चेव ततो खलु रेवई चे ||२|| तत्तो हवs मिगाली, बोद्धव्वे खलु तहा भयाली य । दीवायणे य कण्हे, तत्तो खलु नारए चेव ||३|| अंबडे दारुमडे य, साई बुद्धे य होइ बोद्धव्वे । उस्सप्पिणी आगमेस्साए, तित्थगराणं तु पुव्वभवा ||४||
तित्थयरअम्मा- पियरे
४५८ एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पियरो भविस्संति, चउवीसं मायरो भविस्संति, चउवीसं पढमसीसा भविस्संति, चवीस पढमसिस्सिणीओ भविस्संति, पढमभिक्खादा भविस्संति, चडवीसं चेइयरुक्खा भविस्संति ॥
सम० सु० १५८ ।
तिथयरस्स उबदेसस्स दुग्गम-सुगमता
४५९ पंचहि ठाणंहि पुरिम-पण्डिमगाणं जिणाणं दुष्मं भवति तं जहादुआ दुबिभक्तं परसंबुतितिक्खं दुरवरं ॥
पंचहि ठाणेहि मज्झिमगाणं जिगाणं मुग्गमं भवति, तं जहासुआइक्वं सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरणुचर ॥
ठाणं० अ० ५ उ०१, सु० ३९६ ।
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तित्थयर-सामण्णं
१०५
समण-संपया
४६० उसभस्स णं कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चउरासीइं समणसाहस्सीओ होत्था ॥
सम० स० ८४, सु० १६ । विमलस्स णं अरहओ अट्ठसटि समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥
सम० स० ६८, सु० ५ । पासस्स णं अरहतो पुरिसादाणीयस्स सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ समण-संपदा होत्था ॥
सम० स० १६, सु० ४। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चउद्दस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ समणसंपया होत्था ॥
सम० स० १४, सु० ४ ।
समणी-संपया ४६१ संतिस्स णं अरहओ एगणणउई अज्जासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जासंपया होत्था ।
सम० स० ८९, सु० ४ । मुणिसुव्वयस्स गं अरहओ पंचासं अज्जियासाहस्सोओ होत्था ।
सम० स० ५०, सु० १ । नमिस्स णं अरहओ एक्कचत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ होत्था ॥
सम० सु० ४१, सु० १ । अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ होत्या ॥
सम० स० ४०, सु० १ । पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठतीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपा होत्था ॥
सम० स० ३८, सु० १ । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छत्तीसं अज्जाणं साहस्सीओ होत्था ॥
सम० स० ३६, सु० ३ ।
गाहाओचुलसीई च सहस्सा १, एगं च दुवे३ य तिणि लक्खाइं४ ॥ तिण्णि य बीसहियाई५, तोसऽहियाई६ च तिन्नेव७ ॥१॥ तिनि य अड्डाइज्जाक, दुवे९ य एगं च सयसहस्साई १० ॥ चुलसीई च सहस्सा११, बिसत्तरि१२ अट्टसट्टिच १३ ।।२।। छावटुिं१४ चोवर्द्वि १५, बाव४ि१६ सट्ठिमेव१७ पन्नासा१८ । चता१९ तीसा२० वीसा२१, अट्ठारस २२ सोलस सहस्सा२३॥३।। चोद्दस य सहस्साइं२४, जिणाण जइसीसपमाण । अट्ठावीसं लक्खा, अडयालीसं च तह सहस्साई। सब्वेसि पि जिणाणं, जइप्पमाणं विणिदिट्ट ।।१।। गाहाओतिण्णेव य लक्खाइं१, तिण्णि य तीसाइं२ तिन्नि छत्तीसा३।। तीसा य छच्च ४ पंच य, तीसा५ चउरो य बीसाइं६ ॥१॥ चत्तारि य तीसाइं७, तिण्णि असीया य तिण्णि मित्तो९ य । बीसुत्तरं१० छलहियं ११, ति-सहस्सहियं च लक्ख १२ च।।२।। लक्खं१३ अट्ठसयाणि य१४, बासट्ठिसहस्स चउसयसमग्गा १५ ।। एगट्ठी छच्च सया१६, सट्ठिसहस्सा सया छच्च १७ ॥३।। सट्टि१८ पणपन्न १९ पन्नेग२० चत्त२१ चत्ता २२ सहद्भुतीसं२३ च ।। छत्तीसं च सहस्सा२४, अज्जाणं संगहो एसो ।।४।। अओ अणंतरं सावय-संपयापरूविगाओ इमाओ गाहाओपढमस्स तिन्नि लक्खा, पंचसहस्सा दुलक्ख जा संती (२-१६) ॥ लक्खोवरि अडनउई२, तेणउई ३ अट्ठसीई४ य ॥१॥ एगासी५ छावत्तरि६, सत्तावन्ना७ य तह य पन्नासा८ ॥ एगुणतीस९ नवासी१०, इगुणासी११ पन्नरसट्ठ व१३ ॥२॥ छ च्चिय सहस्स१४ चउरो, सहस्स१५ नउई सहस्स संतिस्स १६ ।। तत्तो एगो लक्खो, उवरि (१७-२४) गुणसीय१७
चुलसी१८ य ॥३॥ तेयासो१८ बावत्तरि२०, सत्तरि इगुणत्तरी२२ य चउसट्ठी२३ ।। एगुणसट्ठिसहस्सा२४, य सावगाणं जिणवराणं ॥४॥
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१०६
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
साविया-संपया
४६२ पासस्त गं अरहओ तिणि सयसाहस्सीओ सतावीसं च सहस्साई उक्कोसिया साविया-संपया होत्था ।
सम० सु. १२६ ।
वाइ-संपया ४६३ सुपासस्स णं अरहओ छलसीई वाइसया होत्था ॥
सम० स० ८६, सु० २ । अरहओ णं अरिष्टनेमिस्स अट्ठ सयाई वाईणं सदेवमणुयासुरम्मि लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ॥1
सम० स० ८००, सु० १११ । पासस्स णं अरहओ छ सया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिआणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ॥
सम० स० ६००, सु० १०९ । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुरम्मि लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ॥
सम० स० ४००, सु० १०६ ।
वेउब्विय-संपया
४६४ पासस्स णं अरहओ इक्कारससायाई वेउब्बियाणं होत्था ।
सम० स० ११००, सु० ११४ । समणस्स भगवओ महावीरस्त सत वेउब्वियसया होत्था ।
सम० स० ७०० सु० ११० । चोदस-पुन्वि-संपया ४६५ संतिस्स णं अरहओ तेणउई चउद्दसपुस्विसया होत्था ॥
सम० स० ९३, सु० २ । अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स चत्तारि सया चोद्दसपुब्बीणमजिणाणं जिणसंकासाणं सम्बक्खरसण्णिवाईणं जिणो इव अवितथं वागरमाणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुग्विसंपया हुत्था ॥
ठाणं० अ० ४, उ० ४, सु० ३८१ ।
१. ठाणं० अ० ८, सु० ६५१ । २. ठाणं अ० ६ सु० ५५० । ३क. ठाणं अ० ४, उ० ४, सु० ३८ । ३ख. गाहाओ
सड छ सया दुवालस १, सहस्स बारस य चउसयऽभहिया२। बारेक्कारस-सहस्सा३,४, दससहस्सा छ सय पन्नासा५ ।।१।। छन्न उई६ चुलसीई७, छहत्तरी सट्ठि९ अट्ठपन्ना१० य । पन्नासा य सयाणं११, सीयाला अहव बायाला १२ ॥२॥ बत्तोसा१३ बतोसा १४, अट्ठावीसा१५ सयाण चउवीसा१६। बिसहस्सा १७ सोलसया १८,चउदस १९-बारस २०दस-सयाइं२१।।३।। अट्ठसया२२ छच्च सया२३, चत्तारि सयाई हुँति वीरम्मि२४ । वाइमुणीण पमाणं, चउवीसाए जिणवराणं ॥४॥ गाहाओवेउब्वियलद्धीणं, वीस-सहस्सा य सयछगऽब्भहिया१ । वीस-सहस्सा चउसय २, इगुणीस-सहस्स अट्ठसया ३ ॥१॥ इगुणिस-सहस्स४-अट्ठार, च उसया५ सोल-सहस्स अट्ठसया६ । सतिसय-पनरस७-चउदसम,तेरस९-बारस-सहस दसमे१० ।।२।। इक्कारस११-दस १२-नव१३-अट्ट१४-, सत्त १५-छ-सहस्स१६, एगवन्न-सया१७ । सत्त-सहस्स सतिसया १८, दुन्नि य सहस्सा
नवसयाइं१९ ॥३॥ दुन्नि सहस्सा२०पंच य, सहस्स२१ पनरस सयाई नेमिम्मि२२ । इक्कारस सय पासे २३, सयाई सत्तेव वीरजिणे २४ ।।४।।
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तित्थयर-सामण्णं
१०७
पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठयाइं चोद्दसपुवीणं संपया होत्था ॥
सम० स० ३५० सु० १०५ ।
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तिण्णि सयाणि चोद्दसपुवीणं होत्था ॥
सम० स० ३०० सु० १०४ ।
ओहिनाणि-संपया
४६६ अजियस्स णं अरहओ चउणउइं ओहिनाणिसया होत्था ॥
सम० स० ९४, सु० २ ।
कुंथुस्स णं अरहओ एक्काणउई आहोहियसया होत्था ।
सम० स० ९१, सु० ३ ।
मल्लिस्स णं एरहओ अगूणसटुिं ओहिनाणिया होत्था ।
सम० स० ५९, सु० ३ ।
नमिस्स णं अरहओ अगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था ॥
सम० स० ३९, सु० १ ।
मणपज्जवनाणि-संपया ४६७ कुंथुस्स णं अरहओ एक्कासीतिं मणपज्जवनाणिसया होत्था ॥
सम० स० ८१, सु० २ ।
मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावण्णं मणपज्जवनाणिसया होत्था ॥
सम० स० ५७, सु० ४ ।
गाहाओचउदसपुव्विसहस्सा, चउरो अद्धटुमाणि य सयाणि१ । वीसऽहिय सत्ततीसा२, इगवीससया य पन्नासा३ ॥१॥ पनरस४-चउवीससया५, तेवीससया६ य वीससय तीसा७ । दो सहसम्पनरस सया, सय चउदस१० तेरस-सयाई ११ ॥२॥ सय बारस १२ इक्कारस १३, दस १४, नव१५ अट्ठ व१६ छच्च सय सयरी१७ । दसऽयि छच्चेव सया१८, छच्च सया
अट्ठसट्ठहिया १९ ॥३॥ सय पंच२० अद्धपंचम२१, चउरो२२ अहिय२३ तिन्नि य सयाई २४ । उसभाइजिणिदाणं, चउदस पुवीण परिमाणं।।४।। गाहाओअह ओहिनाणि नवई १, चउनवई२ छण्णवइ ३अटुणवई ४य । एयाइं सयाइं तओ, इगार५ दस६ नव७ अडसहस्सा ॥१॥ चुलसी९ बिसयरि१० सट्ठी,११ च उपन्न १२ऽडयाल १३ तह य तेयाला १४ । छत्तीसं१५ तीससया१६, पण १७ वी
___ छव्वीस १८ बावीसा १९ ॥२॥ अट्ठार२० सोल २१ पनरस २२, चउदस २३ तेरस सया२४ अवधिनाणी । लक्वेक तित्तिस सहस चत्तारि सयाई सव्वंके
(१३३४००), ॥३॥ गाहाओबारस-सहस्स तिण्हं, सयसड्ढा सत्त१ पंच२ य दिवड्व३ । इगदस सड' छस्सय४, दस-सहस्सा चउसया सडा५ ।।१।। दस-सहसा तिनि सया६, नवदिवड्ढ-सया७ य अट्ठ-सहस्साय । पंचसय सत्त-सहस्सा, सुविहिजिणे ९ सीयले १० चेव ॥२॥ छसहस्स दोण्हमित्तो११-१२, पंच सहस्सा य पंच य सयाई१३ । पंच-सहस्सा१४ चउरो, सहस्स सय पंच यऽभहिया १५ ।।३।। चउरो सहस्स१६ तिन्नि य, तिन्नेव सया हवंति चालीसा१७ । सहसदुगं पंचसया, इगवन्ना अरजिणिदस्स१८ ॥४॥ सत्तर सयाइ पन्ना १९, पंच दस सया२० य बार सय सट्ठी२१ । सहसो२२ सय अट्ठम २३, पंचेव सया उ वीरस्स२४ ।।५।।
..........सव्वे मणनाणि एगलक्खाय ॥ पणयालीस सहस्सा, पंचसया इगनवइअहिया ॥६॥
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१०८
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
तित्थयराणं जिण-संपया
४६८ मुविहिस्स णं पुष्कदंतस्स अरहओ पण्णतरि जिणसया होत्या ॥
सम० स० ७५, सु० १ ।
कुंथुस्स णं अरहओ बत्तीसहिया बत्तीसं जिणसया होत्था।।
सम० स० ३२, सु० ३ ।
पासस्स णं अरहओ दस सयाई जिणाणं होत्था ।
स० १०००, सु० ११३ ।
समणस्स गं भगवओ महावीरस्स सत्त जिणसया होत्था ॥
सम० स० ७०० सु० ११० ।
अणुत्त रोववाइय-संपया ४६९ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अणुत्तरोवाइयाणं देवाणं गइकल्लागाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभडाणं उक्कोसिआ अणुत्तरोवाइयसंपया होत्था ॥
ठाणं० अ० ८, सु० ६५३ ।
तित्थयराणमंतरकालो
४७० उसभसिरिस्त भगवओ चरिमस्स य महावीरबद्धमाणस्स एगा सागरोवमकोडाकोडी अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥
सम० स० अगको० सु० १३५ । संभवाओ णं अरहतो अभिणंदणे अरहा दसहि सागरोवमकोडिसतसहस्सेहिं वीतिक्कतेहि समुप्पण्णे ॥
ठाणं० अ० १०, सु० ७३० । अभिणंदणाओ णं अरहओ सुमती अरहा णहि सागरोवमकोडिसयसहस्सेहि वीइक्कतेंहि समुप्पण्णे ॥
ठाणं० अ० ९, सु० ६६४ । धम्माओ णं अरहाओ संती अरहा तिहि सागरोवमेहि तिचउभागपलिओवमऊणएहि वोतिक्कतेहि समुप्पणे ॥
ठाणं० अ० ३, अ० ४, सु० २२८ । उसहाइतित्थयरेहितो पज्जोसवणाकप्पनिज्जूहणसमयनिरूवणं ४७१ उसभस्स णं अरहओ कोसलियरस कालगयस्स - जाव - सम्बदुक्खप्पहीणस्स तिन्नि वासा अद्धनवमा य मासा विइक्कंता,
तओ वि परं एगा सागरोवमकोडाकोडी तिवासअद्धनवमासाहिएहि बायालीसाए वाससहस्सेहि ऊणिया वीइक्कता, एयम्मि समए समणे भगवं महावीरे परिनिव्वुडे, तओ वि परं नव वाससया वीइक्कंता, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरकाले गच्छइ ॥
गाहाओवीससहस्सा उसहे१, बीसं बावीस अहव अजियस्स२ । पनरस३ चउदस४ तेरस५, बारस६ इक्कारस७ दसेवः ॥१॥ अट्टम९ सनेव१० य, छस्सड्ढा११ छच्च१२ पंच सड्ढा य१३ य । पंचेव१४ अद्धपंचम १५,चउ सहसा तिन्नि य सया१६ य।।२।। बत्तीस सया अहवा, बावीस सयाई हुंति कुंथुस्स१७ । अट्ठावीसं१८ बावीस १९, तह य अट्ठारस सयाई२० ॥३॥ सोलस२१ पन्नर२२ दस सय२३, सत्तेव सया हवंति वीरस्स२४ ।। एवं केवलिनाणं ।। एत्तो जिणंतराइं वोच्छं किल उसभसामिणो अजिओ। पण्णासकोडिलक्खेहि सायराणं समप्पण्णो ॥१॥ तीसाए संभवजिणो, दसहि उ अभिनंदणो जिणवरिंदो । नवहि उ सुमइजिणिंदो, उप्पण्णो कोडिलक्खेहिं ॥२॥
२.
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तित्थयर-सामण्णं
अजियस्म णं - जाव - पहीणस्स पन्नासं सागरोबमकोडिसयसहस्सा बीइक्कंता, सेसं जहा सोयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवाससहस्सेहिं इच्चाइयं । संभवस्स णं अरहओ - जाव • प्पहीणस्स वीसं सागरोवमकोडिसयसहस्सा बीइक्कंता, सेसं जहा सीयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवाससहसैहि इच्चाइयं ॥ अभिनंदणस्स णं-जाव - प्पहीणस्स दस सागरोवमकोडीसयसहस्सा बीइक्कता, सेसं जहा सोयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवाससहस्सेहि इच्चाइयं ॥ सुमइस्स णं - जाव - प्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडिसयसहस्से वीइक्कते, सेसं जहा सोयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालोसवाससहस्सेहि इच्चाइयं ॥ पउमप्पभस्स णं - जाव - प्पहीणस्स दससागरोवमकोडिसहस्सा वोइक्कता, सेसं जहा सोयलस्स, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवाससहलैहि ऊणिया वीइक्कंता इच्चाइयं ॥ सुपासस्स णं - जाव - प्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडिसहस्से वीइक्कते, सेसं जहा सीयलस्स, तं च इम-तिवासअद्धनवमासाहियबापालीसवाससहस्सेहिं ऊणिया वीइक्कंता इच्चाइ ।। चंदप्पहस्स णं अरहओ - जाव - पहोणस्स एगं सागरोबमकोडिसयं वीइक्कतं, सेसं जहा सोतलस्स, तं च इम-तिवासअद्धनबमासाहियबायालीसवाससहस्सेहिंऊणिगामिच्चाइ ॥ सुविहिस्स णं अरहओ पुप्फदंतस्स काल - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणस्स दस सागरोवमकोडीओ वीइक्कंताओ, सेसं जहा सोअलस्स, तं च इम-तिवासअद्धनवमासाहिअबायालीसवाससहस्सेहि ऊणिआ वोइक्कंता इच्चाइ ॥ सोयलस्स गं - जाव - प्पहीणस्स एगा सागरोवमकोडी तिवासअड्ढनवमासाहियबायालीसवाससहस्सेहि उणिया बोइक्कंता एयम्मि समए वीरे निव्वुए, तओ वि य णं पर नव वाससयाई वीइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असोइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ सेज्जंसस्स णं अरहओ - जाव - प्यहोणस्स एगे सागरोवमसए वोइक्कते पट्टि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ वासुपुज्जस्स णं अरहओ - जाव - प्पहीणस्स छायालीसं सागरोवमाइं वीइक्कंताई, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ विमलस्स णं - जाव - प्पहीणस्स सोलस सागरोवमाइं वीइक्कताइं पट्टि च, सेसं जहा मल्लिस ॥ अणंतस्स णं - जाहीव - प्पणस्स सत्त सागरोवमाई वीइक्कताइं पढि च, सेसं जहा मल्लिरस ॥ धम्मस्स णं अरहओ - जाव - प्पहीणस्स तिन्नि सागरोवमाई वीइक्कंताई पट्टि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ संतिस्स गं अरहओ - जाव - प्पहीणस्स एगे चउभागूणे पलितोवमे वीइक्कते पट्टि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ कुंथुस्स णं अरहओ - जाव - पहीणस्स एगे चउभागपलिओवमे बोइक्कते पंचटुिं च सयसहस्सा, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ अरस्स णं अरहओ - जाव - प्पहीणस्स एगे वासकोडिसहस्से वीतिक्कते, सेसं जहा मल्लिस्स । तं च एयं-पंचट्ठि लक्खा चउरासीइसहस्सा वीइक्कंता तम्मि समए महावीरो निन्बुओ, ततो पर नव वाससया वीइक्कंता, दसमस्स य वाससयस्स
नउईइ सहस्सेहिं कोड़ीणं वोलियाण पउमाभो । नवहिं सहस्सेहिं तओ, सुपासनामो समुप्पण्णो ।।३।। कोडिसएहिं नवहि उ जाओ चंदप्पहो जणाणंदो । नउईए कोडीहिं सुविहिजिणो देसिओ समए ॥४॥ सीयलजिणो महप्पा, तत्तो कोडीहिं नवहिं निद्दिट्ठो । कोडीए सेयंसो ऊणाइ इमेण कालेण ॥५॥ सागरसएण एगेण, तह य छावट्ठिवरिसलक्खेहिं । छब्बीसइसहसेहिं तओ पुरो अंतरेसु ति ।।६।। चउपण्णाअयरेहिं वसुपुज्जजिणो जगुत्तमो जाओ । विमलो विमलगुणोहो, तीसहि अयरेहि रयरहिओ ॥७॥ नवहि अयरेहणतो, चउहि उ धम्मो उ धम्मपुरधवलो । तिहिं ऊणेहिं संती, तिहि चउभारोहिं पलियस्स ।।८।। भागेहि दोहिं कुंथू पलियस्स अरो उ एगभागेणं । कोडिसहस्सेगेणं वासाण जिणेसरो भणिओ ॥९।। मल्ली तिसल्लरहिओ जाओ वासाण कोडिसहस्सेण । चउपण्णवासलक्खेहि सुब्बओ सुब्बओ सिद्धो ॥१०॥ जाओ छहिं नमिनाहो, पंचहिं लखेहिं जिणवरो नेमी । पासो अट्ठमसयसमहियतेसीइसहसेहिं ।।११।। अड्ढ़ाइज्जसएहिं गएहिं वीरो जिणेसरो जाओ । दूसमअइदूसमाणं दोण्हंपि दुचत्तसहसेहिं ।।१२।। पुज्जइ कोडाकोडी उसहजिणाओ इमेण कालेण । भणिअं अंतरदारं, एयं समयाणुसारेणं ।।१३।।
प्रव० द्वा० ३५, गा० ३९३-४०५।।
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धम्मकहाणुओगे पढ़मखंधे
अयं असीइमे संवच्छरकाले गच्छइ । एवं अग्गओ - जाव - सेयंसो ताव दट्टव्वं ॥ मल्लिरस णं अरहओ - जाव - प्पहीणस्स पट्टि वाससयसहस्साई चउरासीई वाससहस्साई नव य वाससयाई वीइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ कालगयस्स - जाब - प्पहीणस्स एक्कारस वाससयसहस्साई चउरासीइं च वाससहस्साइं नव य वाससयाई वीइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे गच्छइ ॥ नमिस्स णं अरहओ कालगयस्सजाव - जाव - प्पहीणस्स पंच वाससयसहस्साइं चउरासीई च वाससयहस्साई नव य वाससयाई विइक्कताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छह ।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स कालगयस्स - जाव - सम्वदुक्खप्पहीणस्स चउरासीई वाससहस्साई वीइक्कंताई, पंचासीइमस्स य वाससहस्सस्स नव वाससयाई वीइक्कताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरेकाले गच्छइ ॥ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स कालगतस्स - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणस्स दुवालस वाससयाई वीइक्कताई, तेरसमस्स य वाससयस्स अयं तीसइमे संवच्छरकाले गच्छइ ॥ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स - जाव - सव्वदुक्खप्पहीणस्स नव वाससयाई वीइक्कंताई, दसमास य वाससयस्स अयं असोइमे अंवच्छरकाले गच्छइ । वायणंतरे पुण-अयं तेणउए संवच्छरकाले गच्छइ इति दीसइ ॥
- कप्पसुत्तं
गणा गणहरा य
४७२ उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीइं गणा, चउरासीइं गणहरा होत्था ॥
सम० स० ८४, सु० २ ।
अजियस्स गं अरहओ नउई गणा, नउई गहणरा होत्या ॥
सम० स० ९०, सु० २।
सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउई गणा, पंचाणउइं गणहरा होत्था ॥
सम० स० ९५, सु० १।
चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउई गणा, तेणउई गणहरा होत्था ॥
सम० स० ९३, सु० ३।
सुविहिस्स णं पुष्फवंतस्स अरहओ सलसीइं गणा, सलसीइं गणहरा होत्था ।
सम० स० ८६, सु० ॥
सोयलस्स णं अरहो तेसीति गणा, तेसोति गणहरा होत्था ॥
सम० ८३ ।
सेज्जंसस्स गं अरहओ छाढ़ि गणा, छाबढि गणहरा होत्या ॥
सम० ६६।
वासुपुज्जस्स णं अरहओ बाढि गणा, बाढेि गणहरा होत्था ।
सम० स० ६२, सु० २
विमलस्स णं अरहओ छप्पण्णं गणा, छप्पण्णं गणहरा होत्था ॥
सम० स० ५६, सु० २।
अणंतस्स गं अरहओ चउप्पण्णं गणा, चउप्पण्णं गणहरा होत्था ।।
सम० स० ५४, सु० ४ ।
धम्मस्स गं अरहओ अडयालीसं गणा, अडयालीसं गणहरा होत्था । संतिस्स णं अरहओ नउई गणा, नउइं गणहरा होत्था ॥
सम० स० ४८, सु० २ ।
सम० स० ९०, सु०२ ।
कुंथुस्स णं अरहओ सत्तत्तीसं गणा, सत्तत्तीसं गणहरा होत्था ॥
सम० स. ३७, सु० १ ।
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तित्थयर-सामण्णं
१११
पासस्स गं अरहओ पुरिसादाणीअस्स अट्ठ गणा, अट्ठ गणहरा होत्या, तं जहासुभे य सुभघोसे य, वसिढे बंभयारि य । सोमे सिरिधरे चेव, वीरभद्दे जसे इ य ॥१॥
सम० स० ८ सु. ८ । कप्प० १५६ । समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा- गोदासगणे, उत्तर-बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्ढियगणे, माणवगणे, कोडियगणे ॥
ठाणं अ०९ सु० ६८० । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एक्कारस गणहरा होत्या, तं जहा- इंदभूती अग्गिभूती वायुभूती विअत्ते सुहम्मे मंडिए मोरियपुत्ते अकंपिए अयलभाया मेतज्जे पभासे ॥
सम० स० ११, सु० ४।
महावीरस्स गणा-गणहरा य
४७३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, एक्कारस गणहरा होत्था ।
से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ-समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, एक्कारस गणहरा होत्था ? समणस्स भगवओ महावीरस्स१ जेठे इंदभूई अणगारे गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ, २ मज्झिमे अणगारे अग्गिभूई नामेणं गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ, ३ कणीयसे अणगारे वाउभूई नामेणं गोयमे गोत्तणं पंच समणसयाई वाएइ, ४ थेरे अज्जवियत्ते भारद्दाये गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ, ५ थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ, ६ थेरे मंडियपुत्ते वासिढे गोत्तेगं अट्ठाई समणसयाई बाएइ, ७ थेरे मोरियपुत्ते कासवगोत्तेणं अद्भुट्ठाई समणसयाई वाएइ, ८-९ थेरे अकंपिए गोयमे गोत्तेणं, थेरे अयलभाया हरियायणे गोत्तेणं ते दुन्नि वि थेरा तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाइंति, १०-११ थेरे मेयज्जे, थेरे य पभासे एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोत्तेणं तिन्नि तिन्नि समण-सयाई वाएंति, से एतेणं अट्ठणं जज्जो ! एवं बुच्चइ-समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, एक्कारस गणहरा होत्था ।
-कप्प सुत्तं महावीरगणहराणं अगारवासकालो ४७४ थेरे णं अग्गिभूई सत्तचालीसं वासाई अगारमज्मे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।
सम० स० ४७, सु०२ ।
१. पासस्स णं अरहओ परिसादाणीयस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहा होत्था, तं जहा-सुभे, अज्जघोसे, वसिट्ठ, बंभचारी, सोमे, सिरिधरे, वीरिए, भद्दजसे ॥
ठाणं अ० ८, सु० ६१७ । २. गाहाओ
चुलसीइ १ पंचनउई २ बिउत्तर सोलसुत्तर सयं ३, ४, ५ च । सत्तहिों ६ पणनउई ७ तेण उई ८अट्ठसीई ९ अ ।।१।। इक्कासीई १० छावत्तरी ११ अ, छावट्ठि १२ सत्तवण्णा १३ य । पण्णा १४ तेयालीसा १५ छत्तीसा १६ चैव पणतीसा ।।२।। तित्तीस १८ अट्ठवीसा १९ अट्ठारस २० चेव तहय सत्तरस २१ । इक्कारस २२ दस २३ नवगं २४, गणाण माणं जिणिंदाण १२३।।
आव. नि. गा० २६६--२६८ । एक्कारस उ गणहरा, जिणस्स वीरस्स सेसयाणं तु। जावइआ जस्स गणा, तावइआ गणहरा तस्स ॥१॥
आव. नि. गा० २६९ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे थेरे णं मोरियपुत्ते पणसद्विवासाई अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।
सम० स० ६५, सु० २ । मंडियपुत्तस्स सामण्णपरियाओ
४७५ थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता सिद्ध बुद्धे-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
सम० स० ३०, सु० २। महावीरगणहराणं सव्वाऊ ४७६ थेरे णं इंदभूती बाणउई वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
सम० स० ९२, सु० २। घेरे गं अग्गिभूई गणहरे चोवरि वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे-जाव-दुक्खप्पहीणे ॥
सम० स० ७४, सु० १॥ थेरे णं मंडियपुत्ते तेसीइं वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
सम० स० ८३, सु० २। थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउई वासाई सब्बाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
सम० स० ९५, सु० ४। थेरे णं अकंपिए अट्टहरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे-जाव-सव्वदुवखप्पहोणे ॥
सम० स० ७८, सु० २। थेरे णं अयलमाया बावरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
सम० सु० ७२, सु० ४। भगवओ महावीरस्स गोयमगणहरे
रायगिहे महावीरस्सागमणं ४७७ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं गयरे होत्या, वण्णओ, तस्स णं रायगिहस्स णगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे
__ दिसीभाए गुणसिलए णाम उज्जाणे होत्था, सेणिए राया, चिल्लणा देवी ॥४॥ ४७८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिसवरपुंडरीए पुरिस
वरगंधहत्थीए लोगुत्तमे लोगनाहे लोगप्पदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए [धम्मदए] धम्मदेसए धम्मसारहीए धम्मवरचाउर तवक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियदृछउमे जिणे जावए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वन्नू सव्वदरिसी सिवमयलमख्यमणंतमक्खयमम्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामे - जाव - समोसरणं ॥५॥
४७९ परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया ॥६॥
इंदभूती गोयमो ४८० तेणं कालेणं तेणं समएणं समणरस भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंचभूती नाम अणगारे गोयमसगोत्तेणं सत्तुस्सेहे
समचउरससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंधयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरवंभचेरवासी उच्छूटसरीरे संखित्तविउलतेयलेसे चोद्दसपुवी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाई
१. गाहाओ- बाणउई चउहत्तरि सत्तरि तत्तो भवे असीई अ । एगं च सयं तत्तो, पणनउई चेव तेसीई ॥१॥
अट्टत्तरि च वासा, तत्तो बावत्तरिं च वासाइं । बाढेि चत्ता खलु, सव्वगणहराउयं एयं ॥२॥
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तित्थयर सामण्णं
११३
समणस्स भगवओो महावीरस्स अगरसामंते उजाण अहोसिरे झाणकोटोबगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाने विहरइ ॥७॥
४८१ तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायको ऊहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले संजायसढे संजायसंसए संजायको हल्ले समुपस समुप्यन्नस समुप्पनको महल्ले उठाए उडु उडाए उठेला जेणेव समणे भगवं महावीरे तेगेव उबागच्छर उबागच्छिता समणं भगव महावीर तिक्त आयाहिणपयाहि करेड करिता बह नमसद यास जाइदूरे सुस्समाणे णमंसमाणे अभिमुहे बिनएवं पंजलिउड़े पज्जुवासमाणे एवं वयासी ।। भगवई श० १ उ० १ । ओव० सु० ६२, ६३ ।
नमसिला
? ॥२॥
४८२ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा हुत्या ||१|| ४८३ से केणटुणं भंते ! एवं वच्चइ - समणस्स भगवओ महावीस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा हुत्था ४८४ समस्त भगवओ महावीरस्स नि बभूई अणगारे गोयम ( स ) गुणं पंच समसपाई बाद, मनिनए अगिभूई अणगारे गोयमणं पंच समसवाई जाए, कणीयसे अणगारे वाजभूई नामेणं गोयमगुणं पंच समणसवाई वाएद, बेरे अज्जवियत्ते भारद्दाए गुणं पंच समणसगाई वाएइ, थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गुत्तेणं पंच समणसयाइं वाएइ, थेरे मंडियपुत्तेवासिट्ठसगुत्तेणं अद्धुट्ठाई समणसयाइं वाएइ, थेरे मोरियपुत्ते कासवगुतेणं अट्ठाई समणसयाई वाएइ, थेरे अर्कए गोयमसले धेरे अवलभाया हारियायणगुत्तेगं एए बुणि वि बेरा तिष्णि तिष्णि समणसपाई बारे अजमेर-मेरे अजभासे, एए दृष्णि वि घेरा कोडिया गुणं तिष्णि तिष्णि समसमा बति ।
४८५ से तेणटुणं अज्जो ! एवं बुच्चइ- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा हुत्या ॥३॥
४८६ सव्वे वि णं एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारस वि गणहरा दुवालसंगिणो चउदसपुब्विणो समत्तगणिपिडगधारगा रायगिहे नगरे मासिएणं भले अपागएवं कालगया जाव सन्यदुक्खपहीणा ।
४८७ मेरे भूरे अमेय सिद्धिगए महावीरे पन्छा दृष्णि वि बेरा परिनिबुधा मे इमे अजलाए समा निधा विहरति एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवञ्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा बुच्छिन्ना ||४||
४८८ समणे भगवं महावीरे कासव । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगुत्तस्स अज्जसुहम्मे थेरे अंतेवासी गाण |
४८९ थेरस्स णं अज्जलुहम्मस्स अग्गिवेसायणगुत्तस्स अज्जजंबूनामे थेरे अंतेवासी कासवगुत्तेणं । ४९० ररस में अजगामस्य कासवगतमा अजयभये मेरे अंतेवासी कण्वायगु । ४९१ थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगुत्तस्स अज्जसिज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगुत्ते । ४९२ थेरस्स णं अज्ञ्जसिज्जंभवस्स मणगपिउणो वच्छसगुत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी लुंगियायण इइ गणहराइथेरावली समत्ता ॥
॥५॥
रूप्पसूत
अच्छेरगा
४९३ दस अच्छेरगा प०-तं०-उवसग्ग गम्भहरणं इत्यीतित्यं अभाविया परिसा, कण्हस्स अवरकंका उत्तरणं चंदसूराणं ॥ १ ॥ हरिवंसकुलुप्पत्ती चमरुप्पाओ य अट्ठसयसिद्धा, असंजएसु पूआ दस वि अनंतेण कालेनं २ ॥
१ "अम्हाणमइपाईणायरिसे एत्तिओ चेव पाढो लब्भइ जो 'अज्जभद्दबाहुणा इमस्स रयणा कया' अस्स पुट्ठि करे ।” इति मुनिवरत्रीपुष्टभिसम्पादिते 'कण्यसुत' ग्रन्थे टिप्नकम् ॥
ठाण० अ० १०।
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९ भरहचक्कवट्टिचरियं
भरहचक्कवट्टिस्स वण्णओ ४९४ तत्थ णं विणीयाए रापहाणीए भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था, महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर -
जाव - रज्जं पसासेमाणे बिहरइ ।
बिइओ गमो रायवण्णगस्स इमो ४९५ तत्थ असंखेज्जकालवासंतरेण उप्पज्जए जसंसी उत्तमे-अभिजाए सत्त-बोरिय-परक्कम-गुणे पसत्य-वण्ण-सर-सार-संघयण
तणुग-बुद्धि-धारण-मेहा-संठाण-सीलप्पगई पहाण-गारव-च्छायागइए अणेग-वयण-प्पहाणे तेय-आउ-बल-बोरियजुत्ते अझुसिरघण-णिचिय-लोह-संकल-णाराय-वइर-उसह-संघयण-देहधारी १ झास, २ जुग, ३ भिंगार, ४ बद्धमाणग, ५ भद्दासण, ६ संख, ७ छत्त, ८ वीयणि, ९ पडाग, १० चक्क, ११, जंगल, १२ मुसल, १३ रह, १४ सोस्थिय, १५ अंकुस, १६-१७ धंदाइच्च, १८ अग्गि, १९ जूय, २० सागर, २१ इंदज्झाय, २२ पुहवि, २३ पउम २४ कुंजर, २५ सीहासण, २६ दंड, २७ कुम्भ, २८ गिरिवर, २९ तुरगवर, ३० वरमउड, ३१ कुंडल, ३२, गंदावत्त, ३३ घणु, ३४ कोंत, ३५ गागर, ३६ भवणविमाण-अणेग-लक्खण-पसत्थ-सुविभत्त-चित्त-कर-चरण-देसभाए, उड्ढामुह-लोमजाल-सुकुमाल-णिद्धमउआवत-पपत्य-लोम-विरइय-सिरिबच्छ-च्छण्ण-विउलवच्छे, देस-खेत्त-सुविभत्त-देहधारी तरुण-रवि-रस्सि-बोहिय-वर-कमलविबुद्ध-गम्भवणे, हय-पोसग-कोस-सण्णिभ-पसत्य-पिट्ठत-णिरुवलेवे, पउमुप्पल-कुंद-जाइ-जूहियवर-चंपग-णागपुष्फ-सारंगतुल्लगंत्री छतीसाहिय-पसत्य-पत्यित्रगुणेहिं जुत्ते, अव्वोच्छिण्णायवत्ते, पागड-उभय-जोणी, विसुद्ध-णियग-कुलगयणपुण्णचंदे, चंदे इव सोमयाए णपण-मण-णिन्वुइकरे, अक्खोभे सागरो व थिमिए धणवइ व्व भोग-समुदय-सहव्वयाए समरे अपराइए परम-विक्कम-गुणे अमरवइ-समाण-सरिसरूवे, मणुयवई भरहचक्कवट्टी भरहं भुंजइ पण्णट्ठसत्तू ॥४२॥
चक्करयणुप्पत्ती
४९६ तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ आउह-घरसालाए दिव्वे चक्करपणे समुप्पज्जित्था ।
तए णं से आउह-धरिए भरहस्स रण्णो आउह-घरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पण्णं पासइ, पासित्ता हट्ठ-तुट्ठचित्तमाणदिए णदिए पीइमणे परभसोमणस्सिए हरिस-बस-विसप्पमाण-हियए जेणामेव दिवे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करइ, करित्ता कयल-जाव-कटु चक्करयणस्स परणामं करेइ, करित्ता आउह-रसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-जाव-जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावित्ता एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पियाण आउहयरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पण्णे तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियट्ट्याए पियं णिवेएमि, पियं भे भवउ ।"
४९७ तए णं से भरहे राया तस्स आउहरियस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म हट्ठ-जाव-सोमणस्सिए वियसिय
वर-कमल-णयण-वयणे, पर्यालअ-वर-कडग-तुडिअ-के ऊर- मउड-कुंडल-हार-विरायंतर इअ-वच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरिअं चवलं ारदे सोहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठ्ठित्ता पायपीढ़ाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता पाउआओ ओमुअइ, ओमुइत्ता एगसाडिअं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता अंजलि-मलिअग्गहत्थे चक्करयणाभिमुहे सत्तट्टपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिहट्ट करयल - जाव - अंजलि कट्ट चक्करयणस्स पणामं करेइ, करिता तस्स आउहयरियस्स अहामालियं मउडवज्जं ओमोयं दलयइ, दलइत्ता विउलं जीवियारिहं पोइदाणं दलयइ, दलयित्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ, पडिक्सिज्जित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे ।
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भरहचक्कवट्टिचरियं
१५
चक्करयणस्स अट्ठाहियमहामहिमाकरणं
४९८ तए णं से भरहे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेह, सद्दावेइत्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयं रायहाणिं सम्भितर-बाहिरियं आसिय-संमज्जिय-सित्त-सुइग-रत्यंतर-वीहियं मंचाइमंचकलियं णाणाविह-राग-वसग-ऊसिय-झय-पडागाइपडाग-मंडियं लाउल्लोइय-महियं गोसीस-सरस-रत्त-चंदण-कलसं, चंदण-घड-मुकय - जाव - गंधुद्धयाभिरामं, सुगंधवरगंघियं, गंधवट्टिभूयं करेह, कारबेह, करेत्ता कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।" तए णं ते कोडुंबिय-पुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठ करयल - जाव - ‘एवं सामि त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता भरहस्स० अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणिं-जाव-करेत्ता
कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ४९९ तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जगधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता
समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्त-मणिरयण-कुट्टिम-तले रमणिज्जे व्हाणमंडवंसि णाणामणि-रयण-भत्ति-चित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसणे, सुहोदएहि गंधोदहि पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणग-पवर-मज्जण-विहीए मज्जिए तत्थ कोउय-सएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंध-कासाइय-लूहियंगे, सरस-सुरहि-गोसीसचंदणाणुलित्तंगत्ते, अहय-सुमहग्घ-दूस-रयण-सुसंवुडे, सुइमालावण्णगविलेवणे आबिद्ध-मणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्ध-हारतिसरिय-पालं ब-पलबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे, पिणद्ध-विज्जग-अंगुलिज्जग-ललियगय-ललिय-कयाभरणे, णाणा-मणि-कडगतुडिय-थंभियभुए, अहिय-सस्सिरीए, कुंडल-उज्जोइयाणणे मउड-दित्तसिरए, हारोत्थय-सुकय-रइय-वच्छे, पालंब पलंबमाणसुकय-पड-उत्तरिज्जे, मुद्दिया-पिंगलंगुलीए, णाणा-मणि-कगग-विमल-महरिह-णिउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसस्थ-आविद्ध-वीरबलए । किं बहुणा ?, कप्परुक्खए चेव अलंकिय-विभूसिए परिंदे सकोरंट - जाव - चउ-चामर-वाल-वोइयंगे मंगल-जय-जयसह-कयालोए, अणेग-गणगायग-दंडणायग - जाब - दूय-संधिवाल-सद्धिं संपरिवुडे, धवल-महामेह-णिग्गए इव - जाब - ससिब्ब पियदंसणे, णरबई धूव-पुष्फ-गंध-मल्ल-हत्थगए मज्जण बराओ पडिणिक्खमइ,
पडिणिक्खमिता जेणेव आउहघरसाला जेणेव चक्करयणे तेणामेव पहारेत्थ गमणाए । ५०० तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहवे ईसर-पभिईओ अप्पेगइआ पउमहन्थगया अपेगइया उप्पलहत्थगया- जाव-अप्पेगइआ
सयसहस्स-पत्त-हत्थगया भरहं रायाणं पिट्ठओ पिट्ठओ अणुगच्छति । तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहुईओगाहाओखुज्जा चिलाइ वामणिबडभीओ बब्बरी बउसियाओ । जोणिय-पहवियाओ ईसिणिय-थारुगिणियाओ ॥१॥ लासिय-लउसिय-दमिलो सिंहलि तह आरबो पुलिंदो य । पक्कणि बहलि मुरुंडी सबरीओ पारसीओ य ॥२॥ अप्पेगइया बंदण-कलस-हत्थगयाओ भिंगार-आदस-याल-पाति-सुपइट्ठग-वायकरग-रयणकरंडग-पुष्फचंगेरी-मल्ल-यण्ण-चुष्ण-गंधवत्थ-आभरण-लोम-हत्थयचंगेरी-पुप्फपडल-हत्थगयाओ - जाव - लोमहत्थगयाओ अप्पेगइआओ सीहासणहत्थगयाओ छत्त-चामर-हत्थगयाओ तिल्ल-समुरगय-हत्थगयाओ, गाहातेल्ले-कोट्टमुरगे, पत्ते चोए अ तगर मेला य । हरिआले हिंगुलए, मणोसिला सासवसमुरगे ॥१॥
अप्पेगइआओ तालिअंटहत्थगयाओ, अप्पे० धूवक्कडुच्छुअ-हत्थगयाओ भरहं रायाणं पिट्ठओ पिट्ठओ अणुगच्छति । ५०१ तए णं से भरहे राया सविड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सब्वायरेणं सम्वविभूसाए सम्वविभूईए सव्व-वत्थ-पुष्फ
गंध-मल्लालंकार-विभूसाए सव्वतुडिय-सद्द-सण्णिणाएणं महया इड्ढोए - जाव - महया वर-तुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संखपणव-पडह-भेरि-मल्लरि-खरमुहि-मुरय-मुइंग-दुंदुहि-णिग्घोसणाइएणं जेणेव आउह-घरसाला तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता आलोए चक्करयणरस पणामं करेइ, करित्ता जेणेव चक्करयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता चक्करयणं पमज्जइ पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ,अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ, अणुलिंपित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहिं अ अच्चिणइ, पुप्फारुहणं मल्ल-गंध-वण्ण-चुण्ण-वत्थाहणं आभरणारुहणं करेइ,
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धम्मकहाणुओगें पढमखंधे करित्ता अच्छेहि सण्हेहिं सेएहिं रपयामरहिं अच्छरसातंडुलेहिं चक्करयणस्स पुरओ अट्ठट्ठमंगलए आलिहइ, तंजहा१ सोत्थिय, २ सिरिवच्छ, ३ णंदिआवत्त, ४ बद्धमाणग, ५ भद्दासण, ६ मच्छ, ७ कलस, ८ दप्पण । अट्ठमंगलए आलिहिता काऊणं करेइ उबयारंति किं ते-- पाडल-मल्लिअ-चंपग-असोग-पुण्णाग-चूअमंजरि-णवमालिअ-बकुल-तिलग-कणवीर-कुंद-कोज्जय-कोरंटय-पत्त-दमणयवर-सुरहि-सुगंध-गंधिअस्स कयग्गह-गहिअ-करयल-प-भट्ठ-विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जाणुस्सेहप्पमाणमित्तं
ओहिनिगरं करेता चंदप्पभ-वइर-वेरुलिअ-विमलदंडं कंचण-मणि-रयण-भतिचित्तं कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमट्टि विणिम्मुअंतं वेलिअमयं कडुच्छुअं पग्गहेत्तु पयते धूवं दहइ, दहित्ता सत्तद्वपयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्किता वामं जाणुं अंचेइ - जाव • पणामं करेइ, करित्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चक्करयणं पासइ, पासिता आउह-घरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छिता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसीयइ, सण्णिसीइत्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी''खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिजं अभडप्पबेसं अदंडकोदंडिमं अपरिमं गणिया-वर-णाडइज्ज-कलिय अगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलाय-मल्लदाम पमुइय-१क्कोलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं चक्करयणस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ।" । तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रन्ना एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठ-जाव-विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता भरहस्स रण्णो अंतिवाओ पडिणिक्ख मेंति, पडिणिक्खमित्ता उस्सुक्क उक्कर - जाव - करेंति य कारवेति करित्ता कारविता य जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥४३॥
चककरयणस्स मागहतित्थाभिमहत्त्पयाणं
५०२ तए णं से दिवे चक्करयणे अठ्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहबरसालाओ पडिणिक्बमइ, पडिणिक्ख मित्ता
अंतलिक्खपडिवण्णे जक्ख-सहस्स-संपरिबुडे दिव्व-तुडिय-सद्द-सण्णिणाएणं आपूरेते चेव अंबरतलं विणीयाए रायहाणीए मझमज्झेणं णिग्गच्छा, णिग्गच्छित्ता गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पूरस्थिमं दिसिं मागहतिस्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था ।
आभिसेक्कहत्थिरयणारूढस्स भरहस्स चक्करयणाणुगमणं ५०३ तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुह पयायं
पासइ, पासिता हठ्ठतुट्ठ - जाव - हियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्क हत्थिरयणं पडिकप्पेह, परिकप्पेत्ता हय-गय-रह-पवर-जोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेत्ता सण्णाहेह, एयसाणत्तियं पच्चप्पिणह ।" तए णं ते कोडुबिय - जाव - पच्चप्पिणंति । तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्त-जालाकुलाभिरामे तहेव - जाव - धवल-महामेह-णिग्गए इव - जाव - ससिव पियदसणे गरवई मज्जणधराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवर-वाहण-भड-चडगर-पगर-संकुलाए सेणाए पहिर्याकत्ती जेणेव बाहिरिया
उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरि-कूड-सण्णिभं गयवई णरवई दुरुटे । ५०४ तए णं से भरहाहिये रिदे हारोत्थय-सुकय-रइय-वच्छे, कुंडल-उज्जोइयाणणे, मउडदित्तसिरए, णरसीहे थरवई परिंदे
गरवसहे मरुय-राय-वसभकप्पे, अब्भहिय-रायतेय-लच्छोए दिप्पमाणे, पसत्थ-मंगल-सएहिं संथुब्बमाणे जय-जयसद्दकयालोए हथिखंध-वरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धध्वमाणीहिं उद्धृब्वमाणीहिं जक्खसहस्स-संपरिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरवइसण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कुलेणं गामागरणगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संवाह-सहस्स-मंडियं थिमिय-मेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे अभिजिणमाणे अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाणे अणुगच्छमाणे जोयणंतरियाहिं बसहीहिं वसमाणे बसमाणे जेणेव मागहतित्थे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मागहतित्थस्स अदूरसामंते दुवालस-जोयणायाम
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वोपण-वित्थिष्णं वर-नगर-सरिभाई विजय संपावारणिवे करे, करिता बहरयणं सहावे सहायता एवं बयासीकरेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि " चित्तमागंदिए पीदमने जाय अंजलिक
भरचमकट्टिचारिय
"खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! ममं आवासं पोसहसालं च तए णं से रणे भरहेनं रण्गा एवं वृत्ते समाने एवं सामी | तह त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिणित्ता भरहस्स रण्णो आवाहं पोसहसालं च करेइ, करिता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिण्णइ ।
भरण मागहतित्वे अट्ठमभत्त-पोसहकरणं
५०५ तए गं से भरहे राया अभिसेक्का हत्थरपणा पोहद, पच्चरहिता जेगेव पोसहसाला तेगेव उवाय, उपागच्छत्ता पोसहसा अनुपसिह, अविसिता पोसहसा पमज्जइ, पमज्जित्ता दम्भसंचारणं संचर, संपरिता दम्भसंचारणं दुरूह, दुरुहिता मागहतित्यकुमारत्स देवस्स अट्ठमभतं परिम्हद पगिन्हिता पोसहसालाए पोसहिए इव बंभयारी उम्मुक्कमणिसुक्षपणे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्त-सत्यमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अबीए अट्ठमभत्तं पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरइ ।
आसरहारूढस्स भरहस्स लवणसमुद्द े ओगाहणं
५०६ तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमिता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
"खियामेव भो देवागुपिया ! हप-यय-रह-पवर जोह-कलियं, चाउरंगिण सेणं सम्माह वाउग्य आसरहं पटिरूप्पेह" ति कट्टु मज्जनवरं अनुपसिह, अनुपविधित्ता समुतहेब जाव धवल महामेह-जिग्यए जावरा पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवर वाहण जाय पहियकिती जेणेव बाहिरिया उट्ठाणसाला जेणेच चारवंटे आसरहे तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता चाउग्वंटं आस रहं दुरूढे ॥
·
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-
-
५०७ तए णं से भरहे राया चाउरघंटं आस-रहं दुरूढे समाणे हय-गय-रह-पवर जोह - कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए वद्धिं संपरिबुडे मह्या-भड-चडगर-मगर-बंद-परिस्थिते चक्करयण-देसियम, अग-राय वर सहस्सावाय मगं महया उविकट्ठ-सोहणाय पशुभिय- महासमुद्र भूयं पिव करेमाणे पुरस्यिम- दिसाभिमु हे माह-तित्वेणं लवणसमुद्र ओगाहरु - जाव से रहयरस्स कुष्परा उल्ला, तर पं से भरहे राया तुरगे निचिन्ह निगिष्टइत्ता रहे व्यं, ठविता षणुं परामुस ।
बोलकर
भरहनिसट्टसरस्स मागहतिस्थाहिब देवभवणे निवडणं
५०८ तए णं तं अइरुग्गय बालचंद इंद- धणु-संनिकासं, वर-महिस-दरिय-दप्पिय-दह घण- सिंग- रइय- सारं, उरगवर-पवरगवल पवरपरय- भमर-कुल- पीलि-ति-पोपट पिउणीवय- मिसिमिसिनी मणि-रण- घंटिया-जाल-परिक्खितं तदितरण-संपिगढ किरण-विषं बद्दर-मलयगिरि सिहर केसर वामर वालद्ध चंदचिषं काल-हरिय-रस-पीय युनिल्ल बहु-पहाराि संपिणजीवं जीवित करणं चलजीवं धणु गहिऊण से णरवई, उसु च वरवइर-कोडियं वइर-सारतोंडं, कंचण-मणि-कणगरयण घोष-सुकय-खं, अनंग-मणि रयण-विविह-सुविरइय-णाम विषं वदसाहं ठाऊण ठाणं आयय-कन्याययं च काऊण उसुमुदारं हमाई बधाई तत्व भाणी से परवई
गाहाओ हंदि गुगंतु भवंतो, बाहिरओ अन् सरस्स जे देवा
-
जागासुरा युबमा लेखि खु नमो पणिवयामि ॥ १ ॥
॥२॥
हंदि सुणंतु भवंतो अभितरओ सरस्स जे देवा । जागासुरा सुवण्णा सव्वे मे ते विसयवासी इतिकट्टु उसुं णिसिरइति ।
परिगरणिगरियो वाउयसोभमाणकोलेजो
वित्तंग सोभए धणुवरेण इंदरे व पचवणं ॥ ३॥
तं चंचलायमाणं पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, णरवइणो तंमि विजयंमि ॥४॥ तए गं से सरे भरहेणं रण्णा जिसट्ठे समाणे खियामेव वालस जोवणाई गंता मागहतित्वाहिवइस्स देवस्स भवसि निवइए ।
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११८
धरमकहाणुओगे पढमखंधे
णामंकियसर दटठूण मागहतित्थाहिवइणो भरहसम्मुहमब्भुवगमणं ५०९ तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवर्णसि सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे
तिवलियं भिडि णिडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी"केस पं भो ! एस अपत्यियपत्थए दुरंत-पंत-लक्खणे होणपुग्ण-चाउद्दसे हिरि-सिरि-परिवज्जिए जे णं मम इमाए एयाणुरूवाए दिव्वाए देविड्ढोए दिव्वाए देवजुईए दिवेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पिं अप्पुस्सुए भवणंसि सरं णिसिरइ"त्ति कटु सीहासणाओ अन्भुठेइ अब्भुट्टित्ता जेणेव से णामाहयके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामायंक सरं गेहइ, गेण्हित्ता णामक अणुप्पवाएइ, णामकं अणुप्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था
५१० "उप्पण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी तं जीयमेयं तीय-पच्चुप्पण्ण
मणागयाणं मागह-तित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्याणियं करेत्तए । तं गच्छामि णं अहं पि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमि" त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हारं मउडं कुंडलाणि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयक मागहतित्थोदगं च गेण्हइ, गिण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए सोहाए सिग्धाए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे बीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ,
५११ उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिर-जाव
अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावित्ता एवं वयासी"अभिजिए णं देवाणुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे पुरथिमेणं मागहतित्यमेराए, तं अहष्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्तीकिंकरे, अहण्णं देवाणुप्पियाणं पुरथिमिल्ले अंतवाले, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! ममं इमेयारूवं पीइदाणं' ति कटु हारं मउडं कुंडलाणि य कडगाणि य-जाव-मागहतित्थोदगं च उवणेइ । तए णं से भरहे राया मागहतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मागहतित्थकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेई सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ ।
भरहस्स अट्ठमभत्तपारणं मागहतित्थाहिवदेवमुद्दिस्स अट्ठाहिय-महिमकरणादेसो य ५१२ तए णं से भरहे राया रहं परावत्तइ, परावत्तित्ता मागहतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजय
खंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवाच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए णिगिण्हइ, णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरे अणुपविसइ, अणुपविसित्ता-जाव-ससि व्व पियदसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारित्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सहावेइ, सहावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं - उक्करं - जाव - मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करित्त। मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।" तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं बुत्ताओ सभाणीओ हट्ठ जाव करेंति, करित्ता एयमाणत्तिय पच्चप्पिणंति ।
चक्करयणस्स वरदामतित्थाभिमहप्पयाणं
५१३ तए णं से दिव्वे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहियक्खामयारए जंबूणयणेमीए, णाणा-मणि-खुरप्प-थाल-परिगए, मणि-मुत्ता
जाल-भूसिए, सणंदिघोसे सखिंखिणीए दिव्वे, तरुण-रवि-मंडल-णिभे, णाणा-मणि-रयण-घंटियाजाल-परिक्खित्ते, सम्वोउयसुरभि-कुसुम-आसत्त-मल्लदामे अंतलिक्ख-पडिवण्ण-जक्ख-सहस्स-संपरिवुडे, दिव्व-तुडिय-सह-सण्णिणाएणं, पूरते चेव अंबरतलं
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भरहचक्कवट्टिचरियं
णामेण य सुदंसणे परवइस्स पढमे चक्करयणे मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियार महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउह-बरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दाहिणपच्चत्थिमं दिसि बरदामतित्थाभिमुहे पयाए याबि होत्था ।
भरहस्स वरदामतित्थाणुगमणाई ५१४ तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदाम-तित्थाभिमुहं पयायं चावि पासइ, पासित्ता
हट्ठतुटु० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-पवर० चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेह, सग्णाहेत्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह" त्ति कटु मज्जणबरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता तेणेव कमेणं-जाव-धवल-महामेह-णिग्गए-जाव-सेयवरचामराहिं उद्धन्वमाणोहिं उद्धृब्वमाणोहिं माइय-वर-फलय-पवर-परिगर-खेडय-वरवम्म-कवय-माढी-सहस्स-कलिए उक्कड-वर-मउड-तिरीड-पडागझय-वेजयंति-चामर-चलंत-छत्तंधयार-कलिए, असिखेवणिखग्ग-चाव-णाराय-कणय-कप्प-णिसूल-लउड-भिंडिमाल-धणुह तोण-सरपहरणेहि य काल-णोल-रुहिर-पीय-सुकिल्ल-अणेग-चिंध-सय-सण्णिविठे अप्फ़ोडिय-सीहणाय-छेलिय-हयहेसिय-हत्थिगुलुगुलाइयअणेगरह-सयसहस्स-घणघणेत-णीहम्ममाण-सद्दसहिएण, जमगसमग-भंभा-होरंभ-किणिंत-खरमुहि-मुगुंद-संखिय-परिलि-वच्चगपरिवाइणि-वंसवेणु-विपंचि-महइकच्छभिरिगिसिगिय-कलताल-कंसताल-करधाणुत्थिएण महया सद्द-सणिणाएण सयलमवि जीवलोगं पूरयंते बल-वाहण-समुदएणं एवं जक्ख-सहस्स-परिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरवइ-सण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती गामागर-णगर-खेड-कब्बड तहेव सेसं - जाव - विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करित्ता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवसहं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि" ॥ ५१५ तए णं से आसम-दोगमुह-गाम-पट्टण-पुरवर-खंधावार-गिहावण-विभागकुसले एगासीइपएसु सम्वेसु चेव वत्थूसु णेगगुण
जाणए पंडिए विहिष्णू पणयालीसाए देवयाणं वत्थुपरिच्छाए मिपासेसु भत्तसालासु कोट्टणीसु य वासघरेसु य विभागकुसले छज्जे वेज्झे य दाणकम्मे पहाणबुद्धी जलयाणं भूमियाण य भायणे जल-थल-गुहासु जंतसु परिहासु य कालनाणे तहेव सद्दे वत्थुप्पएसे पहाणे गम्भिणि-कण्णरुक्ख-वल्लि-वेढिय-गुण-दोस-वियाण ए, गुणड्ढे, सोलस-पासायकरणकुसले चउसट्ठि-विकप्प-वित्थियमई गंदावते य वद्धमाणे सोत्थिय-रुयग तह सव्वओ भद्दसण्णिवेसे य बहुविसेसे उइंडिय-देव-कोट्ठ-दारु-गिरि-खाय-वाहण-विभागकुसले । गाहाओ-इय तस्स बहुगुणड्ढे थवईरयणे परिंदचंदस्स । तवसंजमणिविठे 'किं करवाणी'तुबट्ठाई ॥१॥
सो देवकम्मविहिणा खंधावारं परिंदवयणेणं । आवसह-भवण-कलियं करेइ सव्वं मुहुत्तेणं ॥२॥ करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ, करित्ता जेणेव भरहे राया- जाव - एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ, सेसं तहेव - जावमज्जणघराओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ।।
५१६ तए णं तं धरणितल-गमणलहुं तओ बहुलक्खण-पसत्थं हिमवंत-कंदरंतर-णिवाय-संवढिय-चित्त-तिणिस-दलियं जंबूणय
सुकयकूबरं, कणय-दंडियारं, पुलय-वरिंदणील-सासग-पवाल-फलिह-वर-रयण-ले?-मणि-विहम-विभूसियं, अडयालीसार-रइयतवणिज्ज-पट्ट-संगहिय-जुत्त-तुंब, पसिय-पसिय-णिम्मिय-णव-पट्ट-पुट्ठ-परिणिट्ठियं, विसिठ-लट्ठ-णव-लोह-बद्धकम्म, हरिपहरण-रयण-सरिसचक्कं, कक्केयण-इंदणील-सासग-सुसमाहिय-बद्धजाल-कडगं, पसत्थ-विच्छिण्ण-समधुरं पुरवरं च गुत्तं, सुकिरणतवणिज्ज-जुत्त-कलियं, कंकटय-णिजुत्त-कप्पणं, पहरणाणुजायं, खेडग-कणग-धणु-मंडलग्ग-वरसत्ति-कोंत-तोमर-सरसयबत्तीसतोण-परिमंडियं, कणग-रयण-चित्तं, जुत्तं हलीमुह-बलाग-गयदंत-चंद-मोत्तिय-तण-सोल्लिय-कुंद-कुडय-वरसिंदुवारकंदल-वर-फेण-णिगर-हारकासप्पगास-धवलहिं अमर-मण-बवण-जइण-चवल-सिग्धगामीहिं चउहिं चामरा-कणग-विभूसियंगे हिं, तुरगेहिं, सच्छत्तं सज्झयं सघंटं सपडागं सुकयसंधिकम्म, सुसमाहिय-समर-कणग-गंभीर-तुल्लघोसं, वरकुप्परं सुचक्कं वरणेमीमंडलं, बरवुरातोंडं, वरवइरबद्धतुंब, वरचण-भूसियं वरायरिय-णिम्मियं, वरतुरग-संपउत्तं, वरसारहिसुसंपग्गहियं, वरपुरिसे वरमहारहं दुरूढे आरूढे पवर-रयण-परिमंडियं कणय-खिंखिणीजाल-सोभियं, अउज्झं सोयामणिकणग-तविय-पंकय-जासुयण-जलण-जलिय-सुय-तो डरागं, गुंजद्ध-बंधुजीवग-रत्तहिंगुलग-णिगर-सिंदूर-रुइल-कुंकुम-पारेवग-चलणणयणकोइल-दसणावरण-रइयाइरेग-रत्तासोगकणग-केसुय-गयतालु-सुरिंदगोवग-समप्पभप्पगासं, बिंबफल-सिलप्पवाल-उटेिंतसूर-सरिसं, सम्वोउय-सुरहि-कुसुम-आसत्त-मल्लदाम, ऊसिय-सेय-ज्झयं, महामह- रसिय-गंभीर-णिद्ध-घोसं, सत्तु-हियय-कंपणं, पभाए
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धम्मकहाणुओगे पडमधे
व सस्सिरीयं णामेणं पुहवि विजय-संभं ति विस्सूयं लोगविस्सुयजसो पाउट आसरहं पोसहिए परवई तुरुते । तए णं से भरहे राया चाउग्धंटं आसरहं दुरूढे समाणे सेसं तहेव दाहिणाभिमुहे वरदामतित्येणं लवणसमुद्दं ओगाहइ - जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला जाव - पीइदाणं से । णवरं चूडामणिं च दिव्यं उरत्थगेविज्जगं सोणियसुत्तगं esगाणि य तुडियाणि य जाव- दाहिणिल्ले अंतवाले जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करिता एयमाणत्तियं पच्चपिणंति ।
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भरहस्स पभासतित्थविजयो
५१७ एसे दिवे चक्करपणे वरदामतित्यकुमारस्य देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए जिम्बत्ताए समाणीए आउह घरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे- जाव पूरंते चेव अंबरतलं उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं पासतित्याभिमुपधाए पात्र होत्या ।
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तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं- जाव उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं तहेव जाव पच्चत्थिमदिसाभिमुहे पभासतित्येणं लवणसमुहं ओगाइ, ओगाहिता जाब से रहवरस्स कुप्परा उल्ला- जाव- पीइदाणं से। णवरं मालं मउडिं मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयंकं पभासतित्योदगं च गिन्हइ, गिव्हित्ता जाव - पत्विमे पनासतिरवनेराए अहम्णं देवापियाणं विसवासी जाय पचवत्यमिल्ले अंतवाले से तहेब जाव अट्ठाहिया गिव्वता ॥
1
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भरहस्स सिन्धुदेवीकयं उवत्याणियं
५१८ तए णं से दिवे चक्करपणे पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिगिक्समद, पडिणिमत्ता जाव पूरेते व अंवरत सिंधूए महाणईए दाहिमिले कूलेणं पुरच्छिमं दिसिं सिंधुदेवोभवणाभिमु पचाए यानि होत्या ।
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तए णं भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्यिमं दिसिं सिंधूदेवीभवणाभिमुहं पया पास, पासित्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए तहेव - जाव जेणेव सिंधूए देवीए भवणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधूए देवीए भवगस्म अदूरसामंते दुवाललजोयणायामं पवनोयपविच्छिष्णं वर-नगर-सारिण्यं विजयधावार-निवेस करे- जाव- सिंधुदेवीए अट्टमभत्त पगिण्हइ, परिहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी - जाव दग्भसंयारोबगए अट्टमभत्तिए सिंधुदेवं मनसि करेमाणे करेमाणे चिट्टद्द तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि सिंधूए देवीए आसणं बसि पास पासिता जोहिं पज, पजिला भरहं रायं जहिणा आभोएड, चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था“उप्पण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दोबे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सिंधूगं देवीनं भरहाणं राईणं उवत्याणियं करेलए तं गच्छामि नं अहं पि भरहस्त रम्णो उपत्याणियं करेमि " ति कट्टु कुंभट्टसहस्सं रयणचित्तं णाणा- मणि-कणग-रयण भत्ति चित्ताणि य दुवे कणग-भद्दासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य जाव- आभरणाणि य गेण्हs, गिन्हित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव एवं वयासी -- "अभिजिए गं देवागुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे बासे अहम्णं देवागुप्पियाणं विसयवासिणी, अहम्णं देवाणुप्पियाणं आणसिकिंकरी, तं पडिच्छंतु णं देवाणुपिया | मम इमं एयारूवं पीइवाणं" ति कट्टु कुंभद्रसहस्रं रयणचित्तं गाणामणिकणग- कडगाणि य- जाव सो चेव गमो जाव पडिविसज्जेइ ।
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५१९ तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छ उवागच्छित्ता पहाए, कययलिकम्मे सुद्धप्यावेसाई मंगलाई करवाई पवरपरिहिए अप्पमहन्याभरणालंकियसरीरे मम्मणपराओ पडिणिक्लम पडिणिक्aमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं परियादियइ - जाव सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेनिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावित्ता जाव अट्ठाहियाए महामहिमाए तमाणति पचति ॥
चलइ, तए णं सा सिंधुदेवी आसणं आभोडता इमे एयाख्ये अम्मथिए
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भरहचक्कवट्टिचरियं
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वेयड्ढगिरिकुमारकया भरहस्स उवट्ठाणिया ५२० तए णं से दिव्वे चक्करयणे सिंधूए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउह-धरसालाओ तहेव
- जाव - उत्तरपुरच्छिमं दिसिं वेयड्ढपव्वयाभिमुहे पयाए यावि होत्था । तए णं से भरहे राया -जाव - जेणेव वेयढ़पव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णियंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढरस पव्वयस्स दाहिणिल्ले णियंबे दुवालसजोयणायाम गवजोयण-विच्छिण्णं वर-णगर-सरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करित्ता-जाव-बेषड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हिता पोसहसालाए - जाव - अट्ठमभत्तिए वेयड्ढगिरिकुमारं देवं मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइ । तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अटुमभत्तंसि परिणममाणंसि वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स आसणं चलइ । एवं सिंधुगमो णेयव्वो पीइदाणं आभिसेक्कं रयणालंकारं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हइ, गिण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए-जाव- अढाहियं-जाव-पच्चप्पिणंति ।
तिमिसगुहाहिवइकयमालगदेवकया भरहस्स उवट्ठाणिया ५२१ तए णं से दिवे चक्करयणे अट्टाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए - जाव - पच्चस्थिमं दिसि तिमिसगुहाभिमुहे
पयाए यावि होत्था । तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं-जाव-पच्चत्थिमं दिसि तिमिसगुहाभिमुहं पयायं पासइ, पासिता हतुटुचित्त-माणंदिए-जाव-तिमिसगुहार अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं णवतोयणवित्थिण्णं-जाव-कयमालस्स देवस्स अट्ठम भत्तं पगिण्हइ, पगिव्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए इव बंभयारी-जाव-कयमालगं देवं मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइ । तए णं तस्स भरहस्स रणो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ, तहेव-जाव-वेयड्ढगिरिकुमारस्स । णवरं पोइदाणं हत्यारय गस्स तिलगचोदसं भंडालंकारं कडगाणि य -जाव- आभरणाणि य गेण्हइ, गिव्हित्ता ताए उक्किट्टाए-जाव-सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिबिसज्जेइ-जाव-भोयणमंडवे । तहेव महामहिमा कयमालस्स पच्चप्पिणंति ॥
भरहस्स सुसेणसेणावइणा ससेण चम्मरयणनावाभूएण सिंधुनईसमुत्तीरणं ५२२ तए णं से भरहे राया कयमालस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावित्ता
एवं वयासी'गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया ! सिंधुए महाणईए पच्चत्थिमिल्लं णिक्खुडं ससिंधु-सागर-गिरि-मेरागं, सम-विसम-णिक्खु
डाणि य ओअवेहि, ओअवेत्ता अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छाहि, अग्गाई० परिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि । ५२३ तए णं से सेणावई बलस्स या भरहे वासंमि विस्सुय-जसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेय-लक्खणजुत्ते
मिलक्खु-भासा-विसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि णिक्खुडाणं णिण्णाण य दुग्गमाण य दुप्पवेसाण य बियाणए अत्थ-सत्व-कुसले रयणं सेणावई सुसेणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टचित्तमाणंदिए-जाव-करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता भरहस्स रष्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवर-जाव-चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेह" त्ति कटु जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता व्हाए कयबिलकम्मे कयकोउअमंगलपायच्छिते सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए, पिणद्ध-विज्म-बद्ध-आविद्ध-विमल-वरचिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे अणेग-गणणायग-दंडणायग-जाव-सद्धिं संपरिवुडे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मंगलजय-जय-सद्दकयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्वमित्ता जेणेव बाहिरिया उवटाणसाला जेणेब
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आभिक्के हत्थरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढे ।
तए गं से सुसे सेणावई हत्यिवंधवरगए सकोरंटमल्लदामेण छतं परिज्जमाने हम-गय-रह-पवर जोह-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरि महया-भड खडगर-पहगर-वंदपरिक्खिते महया उरिसीहणाय बोल- कलकल-स समुद्द-रव-भूयं पिव करेमाणे सब्बिड्डीए सव्वश्ईए सम्ययलेणं-जाव-नियोसनाइए जेणेव सिंधू महागाई संवा
गच्छइ, उवागच्छित्ता चम्मरयणं परामुसइ ।
तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्त-तारद्ध-चंद चित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं सणसत्तरसाईं सव्वधण्णाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाई, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामुटठे दिवे चम्मरयणे दुवालस जोयणाई तिरियं पवित्थर, तत्थ साहियाई ।
तए णं से दिव्वे चम्मरयणे सुसेणसेणावइणा परामुट्ठे समाणे खिप्पामेव णावाभूए जाए यावि होत्या ।
लए णं से सुसेणे सेणावई सवधावार बलवाहने गावाभूयं चम्मरवणं दुरूह, बुरुहिता सिषु महागाई विमलजलतुंगबीई णावाभूषणं चम्मरयणं सबलवाहने ससेगे समुत्तिष्णे ।
सुसेणसेणावद्दणा सिंहलाइ विजयो
५२४ त महाहमुत्तरितु सिधु अप्यडिहवसास सेणावई कहिचि गामागर-नगर-यत्ययाणि खेड-बट-मवाणि पट्टणाणि सिहलए बम्बरए य सव्वं च अंगलोयं बलायालोयं च परम रम्मं जवणदीवं च पवर-मणि रयण-कणग-कोसागार समिद्धं आरए रोमए य अलसंड- विसयवासी य पिक्खुरे कालमुहे जोणए य उत्तरवेयड्ढ संसियाओ य मेच्छजाई बहुप्पगारा दाहिणअवरेण जाव - सिंधुसागरंतो त्ति सव्वपवरकच्छं च ओअवेऊण पडिणियत्तो बहुसमरमणिज्जे य भूमिभागे तस्स कच्छस्स सुहणिसवणे, ताहे ते जणवयाण णगराण पट्टणाण य जे य तहिं सामिया पभूया आगरवई य मंडलवई य पट्टणवई य सव्वे घेत्तूण पाहुडाई आभरणाणि य भूसणाणि रयणाणि य वत्याणि य महरिहाणि अण्णं च जं रिट्ठ रायारिहं जं च इण्डियन एवं सेगावइस्स उवर्णेति मत्यय-कथंजलि-पुडा, पुणरवि काऊन अंजलिं मत्वयमि पणया तुम्हेश्व सामिया देवयं व सरणागया मो, तुब्भं विसयवासिणो त्ति विजयं जंपमाणा सेणावइणा जहारिहं ठविय सक्कारिय विज्जियाणियत्ता सगाणि नगराणि पट्टणाणि अणुपविट्ठा ।
पञ्चागयसुसेणसेणावइकथं भरहसमवखं पाहुडऽप्पर्ण
५२५ ताहे सेगावई सविनय घलून पाहुडाई आभरणाणि भूसणाणि रमणाणि व पुणरवि तं सिधुणामधेनं उतिम्ये अह सासण-बले, तहेब भरहस्स रग्णो नित्रेएइ, णिवेद्दत्ता य अप्पिणिता या पाहुड़ाई सक्कारिय सम्माणिए सहरिसे विसज्जिए सगं पडमंडवमइगए ।
धम्मकहाणओगे पह
तर पंगु सेनावई व्हाए जिमियत्सुतरागए समाने जाब सरस-गोसीस बंद मुक्त्ति गायसरीरे उपि पासाववरगए फुट्ट माह मुइंगमत्यएहिं बत्तीसइबद्धेहिं णा एहिं वरतरुणीसंपउत्तेहि उवणच्चिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालि ( लभि ) ज्जमाणे उवलालि (लभि) ज्जमाणे महया पट्टा वासंतीलाल य घणमुइंग प्वाइय-रवेणं इट्ठे सद्द-फरिस रस रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोगे भुंजमाणे विहरइ ॥
सुसेणसेणावइकथं तिमिसगुहादारुग्घाडणं
५२६ तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी
!
गच्छ णं खियामेव भो देवानुपिया । तिमिसगुहाए बाहिणिस्सस्स पच्चपिगाहित्ति ।
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तर णं से सुसेणे सेणावई भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हतुवित्तमाणंदिए- जावकरयलपरिग्गहियं० सिरसावत्तं मत्थर अंजलि 'कट्टु जाव पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमिता जेणेव सए आवासे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भसंचारगं संथरद्द - जाव कयमालस्स देवस्स अट्टमभत्तं
वारस्स कवाडे विहाडेहि विहाडिता मम एयमाणलियं
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भरहचक्कवटिचरियं
१२३ पगिण्हइ पोसहसालाए पोसहिए इव बंभयारी - जाव - अटुमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जण घरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउअमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहा बाभरणालंकियसरीरे धूवपुष्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय - जाव - सत्यवाहप्पभियओ अप्पेगइआ उप्पलहत्थगया - जाव - सुसेणं सेणावई पिटुओ पिटुओ अणुगच्छंति । तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहुईओ खुज्जाओ चिलाइयाओ - जाव - इंगिय-चितिय
पत्थिय-वियाणियाओ पिउणकुसलाओ विणीयाओ - जाव - अणुगच्छंति । ५२७ तए णं से सुसेणे सेणावई सविड्ढीए सबजुईए · जाव - णिग्घोसणाइएणं जेणेव तिमिगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स
कबाडा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता आलोए पगामं करेइ करिता लोमहत्यगं परामुसइ, परामुसित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ अन्भुक्खिता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितले चच्चए दलइ, दलिता अग्गेहि वरेहि गंहिं अ मल्लेहि अ अच्चिणेइ, अच्चिणित्ता पुप्फारुहणं - जाव - वत्थारुहणं करेइ, करित्ता आसत्तोसत्तविपुलवट्ट - जाव - करेइ, करित्ता अछेहि सण्हेहि रययामएहि अच्छरसातंडुलेहि तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुबारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठमंगलए आलिहइ, तं जहा-सोत्थिय सिरिवच्छ - जाव - कयग्गहगहिअकरयलपन्भट्टचंदप्पभवइरवेरुलिअविमलदंडं -जाव- धूवं दलयइ, दलइत्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता करयल • जाव - मत्थए अंजलि कटु कवाडाणं पणामं करेइ, करिता दंडरयणं परामुसइ, तए णं तं दंडरयणं पंचलइयं वइरसारमइयं विणासणं सम्वसत्तुसेण्णाणं खंधावारे णरवइस्स गड्ड-दरि-विसम-प-भार-गिरिवर-पवायाणं समीकरणं संतिकरं सुभकरं हियकरं रणो हिय-इच्छिय-मगोरह-पूरगं दिव्वमप्पडिहयं दंडरयणं गहाय सत्तट्ठ पयाई पच्चोसक्कइ पच्चोसक्कित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडेइ । तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेगावइणा दंडरयणेणं महया महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडिया समाणा महया महया सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई सगाई ठाणाई पच्चोसक्किस्था । तए णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स - कवाडे विहाडेइ, विहाडित्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता - जाव - भरहं रायं करयलपरिग्गहियं जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं बयासीविहाडिया णं देवाणुप्पिया ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा, एपण्णं देवाणुप्पियाणं पियं णिवेएमि, पियं भे भवउ।
मणिरयणसहियस्स भरहस्स तिमिसगुहादारे पयाणं ५२८ तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेगावइस्स अंतिए एपम8 सोच्चा निसम्म हदुतुटुचित्तमाणंदिए-जाव - हियए सुसेणं सेणावई
सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणिता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवर तहेव जाव अंजणगिरिकृडसण्णिभं
गयवरं णरवई दुरूढे ॥ ५२९ तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ तोतं चउरंगुलप्पमाणमित्तं च अणग्धं तंसियं छलंसं अणोवमजुई दिव्वं
मणिरयणपइसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं जेण य मुद्धागएणं दुक्खं ण किंचि - जाव - हवइ आरोग्गे य सम्वकालं तेरिच्छियदेव-माणुसकया य उवसग्गा सव्वे ण करति तस्स दुक्खं, संगामेऽवि असत्यवज्झो होइ णरो मणिवरं धरेंतो ठियजोवणकेस-अवट्ठिय-णहो हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को । तं मणिरयणं गहाय से णरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए णिक्खिवइ । तए णं से भरहाहिवे गरिदे हारोत्थय-सुकय-रइय-वच्छे - जाव - अमरवइसण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती मणिरयणकउज्जोए चक्यरयणदेसियमग्गे अणेगरायसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्ठि-सीहणाय-बोल-कलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता तिमिसगुहं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अईइ ससि व्व मेहंघयारणिवह।
कलरवेण सम्वरमय पिच परमाण
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे कागणिरयण-सहियस्स भरहस्स तिमिसगुहापवेसो ५३० तए णं से भरहे राया छत्तलं दुवालसंसियं अट्ठकणियं अहिगरणिसंठियं अट्ठसोबरिणयं कागणिरयणं परामुसइ ।।
तए णं तं चउरंगुलप्पमाणमित्तं अट्ठसुवण्णं च विसहरणं अउलं चउरंससंठाणसंठियं समतलं माणुम्माणजोगा जओ लोगे चरंति सव्वजणपण्णवगा । ण इव चंदो ण इव तत्थ सूरे ण इव अग्गी ण इव तत्थ मणिणो तिमिरं णासेंति अंधयारे । जत्थ तयं दिव्वं भावजुत्तं दुबालसजोयणाई तस्स लेसाओ विवड्दति तिमिर-णिगर-पडिसेहियाओ । रत्तिं च सव्वकाल खंधावारे करेइ आलोयं दिवसभूयं जस्स पभावेण चक्कवट्टी तिमिसगुह अईइ सेण्णसहिए अभिजेतुं बिइयमद्धभरह रायवरे कार्गागं गहाय तिमिसगुहाए पुरथिमिल्ल-पच्चथिमिल्लेसं कडएसुं जोयणंतरियाई पंचधणुसयविक्खंभाई जोयणुज्जोयकराई चक्कणेमीसंठियाई चंदमंडल-पडिणिगासाइं एगूणपण्णं मंडलाइं आलिहमाणे आलिहमाणे अणुप्पविसइ । तए णं सा तिमिसगुहा भरहेणं रण्णा तेहिं जोयणंतरिएहि-जाव- जोयणुज्जोयकरहिं एगूणपण्णाए मंडहिं आलिहिज्जमाणेहि आलिहिज्जमाणेहि खिप्पामेव आलोगभूया उज्जोयभूया दिवसभूया जाया यावि होत्था ॥
तिमिसगुहामज्झदेसे उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ ५३१ तीसे णं तिमिसगुहाए बहुमझदेसभाए एत्य गं उम्मग्ग-णिमग्गजलाओ णाम दुवे महाणईओ पण्णत्ताओ, जाओ णं
तिमिसगुहाए पुरथिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पढाओ समाणीओ पच्चत्थिमेणं सिंधु महाणइं समति । से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-उम्मग्ग-णिमग्गजलाओ महाणईओ ? . "गोयमा ! जण्णं उम्मग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कळं वा सक्करं वा आसे वा हत्थि वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पक्खिप्पइ तण्णं उम्मग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिय आहुणिय एगते थलंसि एडेइ । जवणं णिमग्गजलाए महाणईए तणं वा, पत्तं वा, कटुवा, सक्करं वा-जाव-मणुस्से वा पक्खिप्पइ तण्णं णिमग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिय आहुणिय अंतोजसंसि णिमज्जाबेइ । से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ।"
उम्मग्ग-णिमग्गजलासु महानईसु वड्ढइरयणेण सुहसंकमनिम्माणं ससेणस्स भरहस्स उत्तरणं च ५३२ तए णं से भरहे राया चक्करयण-देसियमग्गे अणेगराय० महया उक्किट्ठ-सीहणाय-जाव-करेमाणे सिंधूए महाणईए पुरित्थि
मिल्लेणं कूलेणं जेणेव उम्मग्गजला महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासो"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उम्मग्ग-णिमग्गजलासु महाणईसु अणेग-खंभ-सय-सण्णिविट्ठे अयलमकंपे अभेज्जकवए सालंबणबाहाए सम्वरयणामए सुहसंकमे करेहि, करेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि । तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए-जाव-विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता खिप्पामेव उम्मग्ग-णिमग्गजलासु महाणईसु अणेग-खंभ-सय-सण्णिविठे-जाव-सुहसंकमे करेइ, करित्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-जाव-एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ । तए णं से भरहे राया सखंधावारबले उम्मग्ग-णिमग्गजलाओ महाणईओ तेहि अणेग-खंभ-सय-सण्णिविठेहि-जावसुहसंकमेहि उत्तरइ ।
तिमिसगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडेहि सयमेव मग्गदाणं ५३३ तए णं तीसे तिमिसगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया महया कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई
सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था ॥
उत्तरड्ढभरहे सुसेणसेणावइकओ आवाडचिलायपराजओ ५३४ तेणं कालेणं तेणं समएणं उतरड्ढभरहे वासे बहवे आवाडा णाम चिलाया परिवसंति । अड्ढा दित्ता वित्ता विस्थिण्ण
१. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवण्णिए काकणिरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अधिकरणिसंठिते
ठाणं अ० ८, सु० ६३३
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भरहचक्कवट्टिचरियं
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विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णा बहुधण-बहुजायरूवरयया आओग-पओगसंपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गोमहिस-गवेलग-प्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कंता वित्थिण्ण-विउल-बलवाहणा बहूसु समर
संपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था। ५३५ तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अग्णया कयाई विसयंसि बहूई उप्पाइय-सयाई पाउन्भवित्था, तंजहा-अकाले गज्जियं, अकाले
विज्जया, अकाले पायवा पुप्फंति, अभिक्खणं अभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति । तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई पासंति, पासित्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं विसयंसि बहूई उप्पाइयसयाई पाउन्भूयाइं तंजहाअकाले गज्जियं, अकाले विज्जुया, अकाले पायवा पुप्फंति, अभिक्खणं अभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति, तं ण णज्जइ णं देवाणुप्पिया ! अम्हं विसयस्स के मन्ने उबद्दवे भविस्सई" त्ति कटु ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरं पविट्ठा करयल
पल्हत्थ-मुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिठ्ठिया झियायति । ५३६ तए णं से भरहे राया चक्करयण-देसियमग्गे-जाव-समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे तिमिसगुहाओ उत्तरिल्लेणं दारेणं णीइ ससि व्व
मेहंधयारणिवहा । तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता आसुरुत्ता रुट्ठा चंडिक्किया कुविया मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णं सद्दावेति, सद्दावित्ता एवं वयासी"एस णं देवाणुप्पिया ! केइ अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरि-सिरि-परिवज्जिए जे णं अम्हं विसयस्स उरि विरिएणं हव्वमागच्छद, तं तहा णं घत्तामो देवाणुप्पिया ! जहा णं एस अम्हं विसयस्स उरि विरिएणं णो हम्बमागच्छई" त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणित्ता सण्णबद्धवम्मियकवया उप्पीलियसरासणपट्टिया पिणद्धगेविज्जा बद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणा जेणेव भरहस्स रणो अग्गाणीयं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भरहस्स रण्णो अग्गाणीएण सद्धि संपलग्गा यावि होत्था। तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं हय-महिय-पवर-वीरघाइय-विवडिय-चिध-द्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं
दिसोदिसि पडिसेहिति ॥ ५३७ तए णं से सेणाबलस्स या वेढो-जाव-भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं आवाडचिलाएहि हयमहियपवरवीर-जाव-दिसोदिसि
पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे चंडिक्किए कुबिए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरूहइ, दुरूहित्ता तए णं असीइमंगुलमूसियं णवणउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमाययं बत्तीसमंगुलमूसियसिरं चउरंगुलकण्णागं वीसइअंगुलबाहागं चउरंगुलजाणूकं सोलसअंगुलजंघागं चउरंगुलमूसियखुरं मुत्तोलीसंवत्तवलियमज्झं ईसि अंगुलपणयपढें संणयपढें संगयपढें सुजायपट्ठ पसत्थपढें विसिट्ठपढें एणीजाणुण्णयवित्थयथद्धपढें वित्तलयकस-णिवाय-अंकेल्लणपहारपरिवज्जियंगं तवणिज्जथासगाहिलाणं, वर-कणग-सुफुल्ल-थासग-विचित-रयण-रज्जुपासं, कंचण-मणि-कणग-पयरग-णाणाविह-घंटियाजालमुत्तिया-जालएहि परिमंडिएणं, पढेंण सोभमाणेण सोभमाणं कक्कयण-इंदणील-मरगय-मसारगल्ल-मुहमंडण-रइयं, आविद्धमाणिक्क-सुत्तग-विभूसियं, कणगामय-पउम-सुकय-तिलयं, देवमइ-विगप्पियं, सुररिदवाहणजोग्गावयं सुरूबं, दूइज्जमाण-पंचचारुचामरामेलगं धरेंतं अणब्भवाहं अभेलणयणं कोकासिय-बहलपत्त-लच्छं सयावरण-णवकणग-तविय-तवणिज्ज-तालुजीहासयं सिरिआभिसेयधोणं पोक्खरपत्तमिव सलिलबिदुजुयं अचंचलं चंचलसरीर चोक्खचरगपरिव्वायगो विव हिलीयमाणं हिलीयमाणं खुरचलणचच्चपुड़ेहि धरणियलं अभिहणमाणं अभिहणमाणं दोवि य चलणे जमगसमगं मुहाओ विणिग्गमंतं व सिग्धयाए मुणाल-तंतु-उदगमवि णिस्साए पक्कमंतं, जाइकुल-रूव-पच्चय-पसत्थ-बारसावत्तग-विसुद्ध-लक्षणं सुकुलप्पसूर्य, मेहाविभद्दयविणीयं, अणुय-तणुय-सुकुमाल-लोम-णिद्धच्छविं, सुजाय-अमर-मण-पवण-गरुल-जइण-चवल-सिग्घगामि इसिमिव खंतिखमए सुसीसमिव पच्चक्खयाविणीयं उदग-हुयवह-पासाण-पंसु-कद्दम-ससक्कर-सवालुइल्ल-तडकडग-विसम-पन्भारगिरिदरी-सुलंधण-पिल्लण-णित्थारणासमत्थं अचंडपाडियं दंडयाई अणंसुपाई अकालतालुच कालहेसि जियणिदं गवेसगं जियपरिसहं जच्चजाईयं मल्लिहाणिं सुगपत्तसुवण्णकोमलं मणाभिरामं कमलामेलं णामेणं आसरयणं सेणावई कमेण समभिरूढे कुवलयबलसामलं च रयणियर-मंडलणिभं सत्तुजण-विणासणं कणगरयणदंडं णवमालियपुष्फसुरहिगंधि णाणामणिलयभत्तिचित्तं च पहोय-मिसिमिसित-तिक्खधार दिव्वं खग्गरयणं लोए अणोवमाणं तं च पुणो वंस-रुक्ख-सिंग-ट्ठिदंत
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे कालायस-विउल-लोहदंडय-वरवइर-भयगं -जाव- सव्वत्थअप्पडिहयं किं पुण देहेसु जंगमाणं । गाहा-पण्णासंगुलदीहो, सोलस से अंगुलाई वित्थिण्णो । अद्धंगुलसोणीको, जेट्ठपमाणो असो भणिओ ॥१॥ असिरयणं णरवइस्स हत्थाओ तं गहिऊण जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आवाडचिलाएहि सद्धि संपलग्गे यावि होत्था । तए णं से सुसेणे सेणावई ते आवाडचिलाए हयमहियपवरवीरवाइय-जाव-दिसोदिसि पडिसेहेइ ।
आवाडचिलायपत्थणाए भरहसेणोरि नागकुमारदेवकयं महामेहवरिसणं ५३८ तए णं ते आवाडचिलाया सुसेण-सेणावइणा हयमहिय-जाव-पडिसेहिया समाणा भीया तत्था वहिया उब्विग्गा संजायभया
अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमिति कट्ट अणेगाई जोयणाई अवक्कमंति, अबक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलइत्ता जणेव सिंधू महाणई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संयरेंति, संथरिता वालुयासंथारए दुरूहंति, दुरूहित्ता अट्ठमभत्ताई पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया
जे तेसि कुलदेवया मेहमुहा णामं णागकुमारा देवा ते मणसीकरेमाणा मणसीकरेमाणा चिठ्ठति । ५३९ तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि मेहमुहाणं णागकुमाराणं देवाणं आसणाई चलंति, तए णं ते
मेहमुहा णागकुमारा देवा आसणाई चलियाई पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजति, पउंजित्ता आवाचिलाए ओहिणा आभोएंति, आभोइत्ता अण्णमण्णं सदावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दोवे उत्तरड्डभरहे वासे आवाडचिलाया सिंधूए महाणईए वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया अम्हे कुलदेवर मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसीकरेमाणा मणसीकरेमाणा चिट्ठति, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं आवाडचिलायाणं अंतिए पाउभवित्तए" त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए-जाव-वीइवयमाणा वीइवयमाणा जेणेव ज बुद्दोवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे जणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाई पवरपरिहिया त आवाडचिलाए एवं वयासी"हं भो आवाडचिलाया ! जणं तुम्भे देवाणुप्पिया ! वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अटुमभत्तिया अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसीकरेमाणा मणसीकरेमाणा चिट्ठह । तए णं अम्हे मेहमुहा णागकुमारा देवा तुभं कुलदेवया तुम्हं अंतियण्णं पाउन्भूया, तं वदह णं देवाणुप्पिया! किं करेभो, [? कि आचिट्ठामो] के व भे मणसाइए।"
५४० तए णं आवाडचिलाया मेहमुहाणं णागकुमाराणं देवाणं अंतिए एयमढें साच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिया-जाव-हियया
उठाए उद्रुति, उठित्ता जेणेव मेहमुहा णागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं-जावमत्थए अंजलि कटु मेहमुहे णागकुमारे देवे जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावित्ता एवं वयासी"एस णं देवाणुप्पिया ! केइ अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे -जाव-हिरिसिरिपरिवज्जिए जे णं अम्हं विसयस्स उरि
विरिएणं हव्वमागच्छइ, तं तहा णं घत्तेह देवाणुप्पिया ! जहा णं एस अम्हं विसयस्स उरि विरिएणं णो हव्वमागच्छइ ।" ५४१ सए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा ते आवाडचिलाए एवं वयासी
"एस णं भो देवाणुप्पिया ! भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी महिड्डिए महज्जुइए -जाव -महासोक्खे, णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा, दाणवेण वा, किण्णरेण वा, किंपुरिसेण वा, महोरगेण वा, गंधब्वेण वा, सत्थप्पओगेण वा, अग्गिप्पओगेण वा, मंतप्पओगेण वा, उदवित्तए पडिसेहित्तए वा, तहा वि य णं तुभं पियट्टयाए भरहस्स रण्णो उवसग्गं करेमो" ति कटु तेसि आवाडचिलायाणं अंतियाओ अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणित्ता मेहाणीयं विउव्वंति, विउन्वित्ता जेणेव भरहस्स रणो विजयक्खंधावारणिवेसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उप्पि विजयक्खंधावारणिवेसस्स खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जयाइत्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्टिप्पमाणमेत्ताहि धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासिउं पवत्ता यावि होत्था ।
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भरहचक्कवट्टिचरियं
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भरहेण छत्तरयणपवित्थरणं ५४२ तए णं से भरहे राया उप्पि विजयक्खंधावारस्स जुगमुसलमुट्टिप्पमाणेत्ताहि धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासमाण
पासइ, पासित्ता चम्मरयणं परामुसइ । तए णं तं सिरिवच्छसरिसरुवं वेढो भाणियन्वो-जाव-दुवालसजोयणाई तिरियं पवित्थरइ, तत्थ साहियाई । तए णं से भरहे राया सखंधावारबले चम्मरयणं दुरुहइ, दुरूहित्ता दिव्वं छत्तरयणं परामुसइ । तए णं णवणउइ-सहस्स-कंचण-सलाग-परिमंडियं महरिहं अउज्झं णिव्वण-सुपसत्थ-विसिट्ठ-लट्ठ-कंचण-सुपुट्ठद, मिउराययवट्ट-लट्ठ-अरविंद-कण्णिय-समाणरूवं, वत्थिपएसे य पंजरविराइय, विविहभत्तिचितं, मणि-मुत्त-पवाल-तत्ततवणिज्ज-पंचवण्णियधोय-रयण-रूवरइयं, रयण-मरीई-समोप्पणाकप्पकारमणुरंजिएल्लियं, राय-लछिचिधं, अज्जुण-सुवण्ण-पंडुर-पच्चत्थुयपट्टदेसभागं, तहेव तवणिज्ज-पट्ट-धम्मंत-परिगयं, अहिय-सस्सिरीयं सारय-रयणियर-विमल-पडिपुण्ण-चंदमंडल-समाणरूवं, रिद-वामप्पमाण-पगइवित्थडं, कुमुयसंघधवलं, रण्णो संचारिमं विमाणं सूरायववायबुट्टिदोसाण य खयकरं तवगुणेहिं लद्धं । गाहा :- अयं बहुगुणदाणं, उऊण विवरीयसुहकयच्छायं । छत्तरयणं पहाणं, सुदुल्लहं अप्पपुण्णाणं ॥१॥ पमाणराईण तवगुणाण फलेगदेसभागं विमाणवासे वि दुल्लहतरं वग्धारिय-मल्ल-दाम-कलावं सारय-धवल-उभरययणिगरप्पगासं दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणियलपुण्णइंदो । तए णं से दिव्वे छत्तरयणे भरहेणं रण्णा परामुळे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई पवित्थरइ साहियाई तिरियं ॥ तए णं से भरहे राया छत्तरयणं खंधावारस्सुरि ठवेइ, ठवित्ता मणिरयणं परामुसइ वेढो-जाव-छत्तरयणस्स वत्थिभागंसि ठवेइ, तस्स य अणइवरं चारुरूवं सिलणिहिअत्थमंतमेत्त-सालि-जव-गोहूम-मुग्ग-मास-तिल-कुलत्थ-सट्ठिग-निप्फाव-चणगकोद्दव-कोत्थुभरि-कंगु-वरग-रालग-अणेग-धण्णावरण-हारियग-अल्लग-मूलग-हलिद्द-लाउय-तउस-तुंब-कालिंग-कविट्ठ-अंब-अंबिलियसव्वणिप्फायए सुकुसले गाहावइरयणे त्ति सव्वजणवीसुयगुणे ।
गाहावइरयणकओ भरहसेणाए सत्तदिणणिव्वाहो ५४३ तए णं से गाहावइरयणे भरहस्स रणो तद्दिवस-प्पइण्ण-णि प्फाइय-पूइयाणं सव्वधण्णाणं अणेगाई कुंभसहस्साई उवट्ठवेइ ।
तए णं से भरहे राया चम्मरयण-समारूढ़े छत्तरयण-समोच्छण्णे मणिरयण-कउज्जोए समुग्गयभूएणं सुहंसुहेणं सत्तरत्तं परिवसइ । गाहा :- ण वि से खुहा ण विलियं, णेव भयं णेव विज्जए दुक्खं । भरहाहिवस्स रण्णो, खंधावारस्स वि तहेव ॥१॥
देवसहस्सेहिं नागकुमारं पइ भरहसरणगमणोवएसो ५४४ तए णं तस्स भरहस्स रणो सत्तरतंसि परिणममाणंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे
समुप्पज्जित्था-"केस णं भो ! अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे-जाव-परिवज्जिए जे णं ममं इमाए एयाणुरूवाए-जावअभिसमण्णागयाए उप्पि विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठि-जाव-वासं वासइ ।" तए णं तस्स भरहस्स रण्णो इमेयारूवं अज्मत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सण्णज्जिाउं पवत्ता यावि होत्था । तए णं ते देवा सण्णद्धबद्धवम्मियकवया-जाव-हियाउहप्पहरणा जेणेव ते मेहमुहा णागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मेहमुहे णागकुमारे देवे एवं वयासी"हं भो मेहमुहा णागकुमारा देवा ! अपत्थियपत्थगा-जाव-परिवज्जिया किण्णं तुम्भे ण जाणह भरहं रायं चाउरंतचक्कवटि महिड्ढियं-जाव-उद्दवित्तए वा, पडिसेहित्तए वा, तहा वि णं तुम्भे भरहस्स रण्णो विजयखंधावारस्स उप्पि जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासह, तं एवमवि गए इत्तो खिप्पामेव अवक्कमह, अहव णं अज्ज पासह चितं जीवलोगं ।"
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नागकुमारोवएसेण चिलायेहि भरहसरणगमणं
५४५ एसे मेहमुहा मागकुमारा देवा तेहि देहि एवं बुला समाणा भीया तत्था बहिया उबिगा संजायभया मेहाणीय पडिसाहरति, पडिसाहरित्ता जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आवाडचिलाए एवं वयासी“एस णं देवाणुप्पिया ! भरहे राया महिड्डिए - जाव णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा जाव अग्गिप्पओगेण वा-आब-उवित्तए वा पडिसेहिलिए या तहावि य णं अम्हेहि देवाणुपिया ! तुभं पिटुवाए भरहास रच्णो उसमे कए, तं गच्छ णं तुभे देवाणुपिया ! व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणियच्छा अग्गाई वराई रयणाई गहाय पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायाणं सरणं उवेह | पणिवइय- वच्छला खलु उत्तमपुरिसा, णत्थि भे भरहस्त रण्णो अंतियाओ भयमिति कट्टु" एवं वइत्ता जामेव दिस पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।
धम्मक्राणुओगे पसं
५४६ लए गं से आबादखिलाया मेहमुहेहि गागकुमारेहिं देवेहिं एवं बुत्ता समाणा उडाए उट्ठेति उडिसा व्हाया उलटसाडगा ओचूलगिन्छा जग्गाई पराई रमगाई महाव जेणेव भरहे राया तेगंव उपागच्छति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं जाव - मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएगं विजएणं बद्धाविति वद्धावित्ता अग्गाई बराई रयणाई उवर्णेति,
उवणित्ता एवं वयासी
गाहाओ "वहर गुमहर जहर, हरि-सिरि-यो- कितिवारय । गरिव महस्यधारण रायमिदं मे चिरं धारे ॥ १॥
हयवs गयवइ णरवइ णवणिहिवइ भरहवासपढमवई । बत्तीस जण वय सहस्स रायसामी चिरं जीव || २ || पट्टम-परीसर ईसर हिपईसर महिलियासहस्साणं देवसयसाहसीसर पोसरयणीसर जसंसी ॥३॥ सागरगिरिमेरानं उत्तरबाईणमभिजियं सुमए ता अम्हे देवाणुप्पियस्स बिसए परिवसामो ||४||
अहो णं देवाविवाहटी जुई जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्रमे दिव्या देवजुई दिव्वे देवाभावे लढे पसे अभिसमण्णागए । तं दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्ढी एवं चेव- जाव अभिसमण्णागए, तं खामेमु णं देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुपिया ! खंतुमरहंति णं देवाणुप्पिया ! णाइ भुज्जो भुज्जो एवंकरणयाए ति" कट्टु पंजलिउडा पायवडिया भरहं रामं सरणं उविंति ।
५४७ तए णं से भरहे राया तेसि आवाडचिलायाणं अग्गाई वराहं रयणाई पडिच्छ, पडिच्छित्ता ते आवाडचिलाए एवं वयासी
गच्छ भो तुमने ममं बाहुण्डायापरिग्वहिया णिम्भया विरुवा सुमुहे परिवसह परिथ में सव भयमत्थि त्ति" कट्टु सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेता सम्माणेता पडिविसज्जे ।
५४ए से भरहे राया सुवेणं सेणाव सहावद, सहावित्ता एवं बयासी
गच्छाहिणं भी देवाणुपिया ! दोण्यपि सिए महानईए पच्चत्थि मिक्ससिसागरगिरिमेरागं सम-विसमणिओह ओवित्ता अग्गाई वराई रपणाई पडिहाहि पछि म एमाणतियं विप्यामेव पञ्चि जहा दाहिणिल्लस ओअवणं तहा सव्वं भाणियव्वं जाव- पच्चणुभवमाणे विहरइ ।।
चुल्लहिमवंतगिरिकुमारविजयो
५४९ तए णं दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्ख पडिवण्णे - जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसि चुल्लहिमवंतपव्वयाभिमुहे पयाए यावि होत्या ।
तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं- जाव- चुल्लहिमवंत वासहरपव्वयस्स अदूरसामंते बुवालसजोयणायामं जावल्लहिमवंत-गिरिकुमारस्य देवरस अमन पनि सहेब जहा मागहतित्वस्स- जाव-समुदुरयभयं पिव करेमा उत्तरदिसाभिमुहे जेणेच मुल्लहिमवंत वासहपत्यए तेज उपागच्छद्र, उवागष्ठिता चुमिताहरपस्वयं तिक्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए णिगिण्हइ, णिगिरिहत्ता तहेव जाव आपयकण्णाययं च काऊण उसुमुदारं इमाणि वयणाणि तत्थ भाणीअ से णरवई जाव सव्वे मे ते विसयवासि त्ति कट्टु उड्ढं वेहासं उसुं णिसिरइ परिगरणिगरियमज्झे -जाव तए णं से सरें भरहेणं रण्णा उड्ढं वेहासं णिसट्ठे समाणे खिप्पामेव बावर्त्तारं जोयणाई गंता चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्त देवस्स मेराए णिवइए ।
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भरहचक्कवट्टिचरियं
१२९ ५५० तए णं से चुल्लहिमवंतगिरिकुमारे देवे मेराए सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे-जाव-पीइदाणं सव्वोसहि
च मालं गोसीसचंदणं च कडगाणि - जाव - दहोदगं च गेण्हइ, गिण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए-जाव-उत्तरेणं चुल्लहिमवंतगिरिमेराए अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी-जाव-अहण्णं देवाणुप्पियाणं उत्तरिल्ले अंतवाल-जाव-पडिविसज्जेइ ।
कागणिरयणपरामुसणेण भरहेण चक्कवट्टिनामलिहणं ५५१ तए णं से भरहे राया तुरए णिगिण्हइ, णिगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तित्ता जेणेव उसहकूडे तेणेव उवागच्छइ,
उवागच्छित्ता उसहकूडं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता छत्तलं दुवालसंसियं अट्ठकणियं अहिगरणिसंठियं सावणियं कागणिरयणं परामुसइ, परामुसित्ता उसभकूडस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लंसि कडगंसि णामगं आउडेइ । गाहाओ- ओसप्पिणीइमीसे तइयाए समाए पच्छिमे भाए । अहमसि चक्कवट्टी भरहो इय नामधिज्जेणं ॥१॥
___ अहमंसि पढमराया अहयं भरहाहिवो णरवरिंदो। पत्थि महं पडिसत्तू जियं मए भारहं वासं ॥२॥ ति कटु णामगं आउडेइ ।
चक्काणुमग्गेणं भरहस्स वेयड्ढउत्तरणियंबे गमणं ५५२ णामगं आउडित्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तित्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव
उवागच्छइ, उवागच्छित्ता - जाव - चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता-जाव-दाहिणदिसि वेयड्ढपव्वयामिमुहे पयाए यावि होत्था ।
५५३ तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं-जाव-बयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णियंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णियंबे दुवालसजोयणायाम-जाव-पोसहसालं अणुपविसए-जावणमिविणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए-जाव-णमि-विणमि-विज्जाहररायाणो मणसी-करेमाणे करेमाणे चिट्ठइ ।
विज्जाहरराएहि गमि-विणमोहिं भरहस्स रयणाइ-इत्थिरयण-समप्पणं
५५४ तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अटुमभत्तंसि परिणममाणंसि णमि-विणमिविज्जाहररायाणो दिव्वाए मईए चोइयमई
अण्णमण्णस्स अंतियं पाउन्भवंति, पाउभवित्ता एवं वयासी"उप्पण्णे खलु भो देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे राया चाउरतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! अम्हेवि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमो ति" कट्ट विणमीणाऊणं चक्कट्टि दिव्वाए मईए चोइयमई माणुम्माणप्पमाण जुत्तं तेयस्सि रूवलक्खणजुत्तं ठियजुब्वणकेसवट्ठियणहं सव्वरोगणाणिस बलकरि इच्छियसीउण्हफासजुत्तं । गाहा- तिसु तणुयं तिसु तंबं तिबलीगइउग्णयं तिगंभीरं । तिसु कालं तिसु सेयं तियाययं तिसु य वित्थिण्णं ॥१॥ समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलष्पहाणं सुंदर-थण-जहण-वर-कर-चलण-णयण-सिरसिज-दसण-जणहियय - रमणमणहरि सिंगारागार-जाव-जुत्तोवयारकुसलं अमरवहूणं सुरूवं रूवेणं अणुहरंति सुभदं भदंमि जोवणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं; णमी य रयणाणि य, कडगाणि य, तुडियाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए-जाव-उद्ध्याए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणियाइं-जाव-जएणं विजएणं बद्धा ति, बद्धावित्ता एवं बयासी"अभिजिए णं देवाणुप्पिया ! जाव अम्हे देवाणुप्पियाणं आणत्तिकिंकरा इति कटु तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! अम्ह" इम-जाव-विणमी इत्थीरयणं णमी रयणाणि समप्पेइ । तए णं से भरहे राया-जाव-पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता............भोयणमंडबे-जाव-णमि-विणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठाहियमहामहिमा ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
गंगादेवीकयं भरहस्स कणगसिंहासणजुगसमप्पणं ५५५ तए णं से विग्वे चक्करयणे आउहबरसालाओ पडिणिक्खमई-जाव-उत्तरपुरस्थिमं दिसिं गंगादेवी-भवणाभिमुहे पयाए
यावि होत्था, सच्चेव सव्वा सिधुवत्तव्वया-जाव-णवरं कुंभट्ठसहस्सं रयणचितं णाणामणि-कणग-रयण-भत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं चेव - जाव - महिम ति॥
खंडप्पवायगुहाए णट्टमालगदेवण भरहस्स पीइदाणं ५५६ तए णं से दिब्वे चक्करयणे गंगाए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउह-घरसालाओ पडिणिक्खमइ,
पडिणिक्खमित्ता -जाव- गंगाए महाणईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था । तए णं से भरहे राया-जाव-जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता०, सव्वा कयमालगवत्तव्यया णेयव्वा । णवरं णट्टमालगे देवे पीइदाणं से आलंकारियभंडं कडगाणि य, सेसं सव्वं तहेव - जाव - अट्ठाहिया महाम० । तए णं से भरहे राया पट्टमालगस्स देवस्स अट्टाहियाए म० णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावित्ता - जाव - सिंधुगमो णेयव्वो - जाव - गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेइ, ओअवित्ता अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोच्चंपि सक्खंधावारबले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीइं णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छड, उबागच्छित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता अग्गाई बराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं - जाव - अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावित्ता अग्गाई वराई रयणाई उवणेइ ।
सुसेणसेणावइस्स भरहेण सक्कारो
५५७ तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अग्गाई बराई रयणाई पडिच्छइ, पडिपिछत्ता सुसेणं सेणावई सक्कारेइ
सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ । तए णं से सुसेणे सेणावई भरहस्स रण्णो सेसं पि तहेव - जाव - विहरद्द । अओ परं आगमणकमेण पडिगमणं भरहस्स
५५८ तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी
गच्छ णं भो देवाणुप्पिया ! खंडगप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडित्ता जहा तिमिसगुहाए तहा भाणियव्वं - जाव - पियं भे भवउ । सेसं तहेव - जाव- भरहो उत्तरिल्लेणं दुवारेणं अईइ ससिव्व मेहंधयारणिवहं तहेव पविसंतो मंडलाइं आलिहइ । तीसे णं खंडगप्पवायगुहाए बहुमज्झदेसभाए-जाव-उम्मग्ग-णिमग्गजलाओ णाम दुवे महाणईओ तहेव । णवरं पच्चथिमिल्लाओ कडगाओ पढाओ समाणीओ पुरत्यिमेणं गंगं महाणई समप्पेति । सेसं तहेव णवरं पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं गंगाए संकमवत्तव्वया तहेव ति।। तए णं खंडगप्पवायगुहाए बाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया महया कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था । तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे-जाव-खंडगप्पवायगुहाओ दक्खिणिल्लेणं दारेणं णोणेइ ससिव्व मेहंघयारणिवहाओ ॥
णवणिहिउप्पत्ती ५५९ तए णं से भरहे राया गंगाए महाणईए पच्चथिमिल्ले कूले दुवालसजोयणायामं णवजोयणवित्थिण्णं-जाव-विजयक्खंधा
वारणिवेसं करेइ, अवसिठं तं चेव-जाव-णिहिरयणाणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ ।
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भरहचक्कवट्टिचरियं
१३१
तए णं से भरहे राया पोसहसालाए-जाव-णिहिरयणे मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइति । तस्स य अपरिमिय-रत्तरयणा धूयमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयंकरा उवगया णब णिहओ लोगविस्सुय-जसा तं जहागाहाओ- १णेसप्पे २पंडुयए ३पिंगलए ४सव्वरयण ५महपउमे । ६काले ७य महाकाले ८माणवगे महाणिही ९संखे ॥१॥
सप्पंमि णिवेसा गामागर-णगर-पट्टणाणं च । दोणमुह-मडंबाणं खंघावारावण-गिहाणं ॥१॥ गणियस्स उ उप्पत्तो माणुम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य बीयाण य उप्पत्ती पंडुए भणिया ॥२॥ सव्वा आभरणविही पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं । आसाण य हत्थीण य पिंगलगणिहिमि सा भणिया ॥३॥ रयणाई सव्वरयणे चउदसवि वराई चक्कवट्टिस्स । उप्पज्जंते एगिदियाइं पंचिबियाई च ॥४॥ वत्थाण य उप्पत्ती णिप्फत्ती चेव सन्वभत्तीणं । रंगाण य धोव्वाण य सव्वाएसा महापउमे ॥५॥ काले कालण्णाणं सव्वपुराणं च तिसु वि वंसेसु । सिप्पसयं कम्माणि य तिण्णि पयाए हियकराणि ॥६॥ लोहस्स य उप्पत्ती होइ महाकाले आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य मणि-मुत्त-सिलप्पवालाणं ॥७॥ जोहाण स उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा य जुद्धणीई, माणवगे दंडणीई य ॥८॥ पट्टविही गाडगविही, कव्वस्स य चउविहस्स उत्पत्ती । संखे महाणिहिमी तुडियंगाणं च सवसि ॥९॥
चक्कट्टपइट्ठाणा अठुस्सेहा य णव य विक्खंभा । बारसदोहा मंजूससंठिया जण्हबीइ मुहे ॥१०॥ वेरुलिय-मणिकवाडा कणगमया विविह-रयण-पडिपुण्णा । ससि-सूर-चक्क-लक्खण अणुसमवयणोववत्ती या ॥११॥ पलिओवमट्टिईया णिहिसरिणामा य तत्थ खलु देवा । जेसि ते आवासा अक्किज्जा आहिवच्चा य ॥१२॥ एए णव णिहिरयणा पभूय-धण-रयण-संचय-समिद्धा । जे वसमुवगच्छंति भरहाहिवचक्कट्टीणं ॥१३॥ तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ। एवं मज्जणघरपवेसो-जाव-सेणि-प्पसेणिसद्दावणया-जाव-णिहिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिमं करेइ ।
५६० तए णं मे भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सद्दावित्ता
एवं वयासी"गच्छ णं भो देवाणुप्पिया! गंगामहाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दुच्चं पि सगंगासागर-गिरि-मेरागं सम-विसम-णिक्खुडाणि य ओअवेहि, ओअइत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि" ति । तए णं से सुसेणे तं चेव पुव्ववणियं भाणियव्वं-जाव-ओअवित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ......पडिविसज्जेइ-जावभोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ।
विणीयं रायहाणि पडि गमणं ५६१ तए णं से दिव्वे चक्करयणे अन्नया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्ख-पडिवण्णे जक्स
सहस्स-संपरिवुडे दिव्वतुडिय-जाव-आपूरेते चेव विजयक्खंधावार-णिवेसं मसंमजसणं णिग्गच्छइ, णिगच्छित्ता बाहिणपच्चत्थिम दिसि विणीयं रायहाणि अभिमुहे पयाए पावि होत्था । तए णं से भरहे राया-जाव-पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-जाव-कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्क-जाव-पच्चप्पिणंति ॥ तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो णिज्जियसत्तू उप्पण्ण-समत्त-रयणे चक्करयणप्पहाणे णव-णिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओअवेइ, ओअवेत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दाइ, सहावित्ता एवं वयासी
१. एगमेगे णं महाणिही अट्टचक्कवालपतिट्ठाणे अट्ठजोयणाई उड्द उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
एगमेगे गं महाणिही णव-णवजोयणाई विक्खंभेण पण्णत्ते । एगमेगस्स ण रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स णव महाणिहिओ पण्णता, तं जहा-णेसप्पे पंडुयए जाव सब्बेसिं चक्कवट्टीणं ।।
ठाणं अ० ९, सु० ६७३ ।
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१३२
धम्मकहाणुओगे पढ़मखंधे "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्क हत्थिरयणं हय-गय-रह-तहेव-जाव-अंजणगिरिकूडसष्णिभं गयवई गरवई दुरूढे ।" तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया, तं जहासोत्थियसिरिवच्छ-जाव-दप्पणे । तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार दिव्वा य छत्तपडागा-जाव-संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बेरुलिय-भिसंत-बिमलदंड-जाव-अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं । तयणंतरं च णं सत्त एगिदियरयणा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया । तं जहा- १चक्करयणे २ छत्तरयणे ३ चम्मरयणे ४ दंडरयणे ५ असिरयणे ६ मणिरयणे ७ कागणिरयणे ।
५६२ तयणंतरं च णं णव महाणिहिओ पुरओ अहाणुपुथ्वीए संपट्ठिया ।
तं जहा- सप्पे पंडुयए-जाव-संखे, तयणंतरं च णं सोलस देवसहस्सा पुरओ अहाणुपुयीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बत्तीसं रायवरसहस्सा पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं सेणावइरयणे पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिए । एवं गाहावइरयणे वड्डइरयणे पुरोहियरयणे, तयणंतरं च णं इत्थिरयणे पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिए । तयणंतरं च णं बत्तीसं उडुकल्लाणिया सहस्सा पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बत्तीसं जणवयकल्लाणिया सहस्सा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बत्तीसं बत्तीसइबद्धा णाडग-सहस्सा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं तिणि सट्ठा सूयसया पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया । तयणंतरं च णं अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया ।। तयणंतरं च णं चउरासीइं आससयससहस्सा पुरओ अहाणुपुब्वीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं चउरासीई हत्थि-सयसहस्सा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया । तयणंतरं च णं चउरासीइं रह-सयसहस्सा पुरओ अहाणुपुठवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं छण्णउई मणुस्सकोडीओ पुरओ अहाणुपुटवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बहवे राईसर-तलवर-जाव-सत्यवाहप्पभिइओ पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया ।
५६३ तयणंतरं च णं बहवे असिग्गाहा लट्टिग्गाहा कुंतग्गाहा चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा फलगग्गाहा परसुग्गाहा पोत्थयग्गाहा
वीणग्गहा कूयग्गाहा हडप्फग्गाहा दीवियग्गाहा सएहिं सहिं रूहि,
एवं वेसेहिं चिहिँ निओएहिं सरहिं सएहिं बथेहिं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया । ५६४ तयगंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो जडिणो पिच्छिणो हासकारगा खेड्डुकारगा दवकारगा चाडुकारगा
कंदप्पिया कुक्कुइया मोहरिया गायंता य दीवंता य, वायंता य, नच्चंता य, हसंता य, रमंता य, कोलंता य, सार्सेता य, साता य, जाता य, रावेता य, सोभैता य, सोभाता य, आलोयंता य, जयजयसदं च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया । एवं उववाइयगमेणं - जाव - तरस रण्णो पुरओ महआसा आसघरा उभओ पासि णागा णागधरा पिट्टओ रहा रहसंगल्ली अहाणुपुटवीए संपट्ठिया ।
१ इमाओ अट्ठारस सेणि-पसेणीओकुंभार१ पट्टइल्ला२, सुवणकारा३ य सूवकारा य । गंधव्वा५ कासवगा६, मालाकारा७ य कच्छकरा ॥१॥ तंबोलिया य एए, नवप्पयारा य नारुआ भणिया । अह णं णवप्पयारे, कारुअवण्णे पवक्खामि ॥२॥ चम्मयर जंतपीलग , गंछिय३ छिपा य कंसकारे य । सीवग६ गुआर७ भिल्ला धीवर९ वण्णाइ अट्टदस ॥३॥
जम्बु० व० ३, सू० ४३ टीका ।
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भरहचक्कवचिरियं
५६५ तए णं से भरहाहिवे परिंदे हारोत्थ ए-सुकय- रइय-वच्छे-जाव- अमरबइ-सण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती चक्करयण
देसियमग्गे अणेग - राय वर सहस्साणुयाय-मग्गे जाव- समुद्द रवभूयं पिव करेमाणे करेमाणे सव्विड्ढीए सब्वज्जुईए-जावजिग्बोसणाइय-रवेणं गामागर-नगर-खेड- कब्बड - मडंब - जाव- जोयणंतरियाहि वसहोहिं वसमाणे वससाणे जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता विणीयाए रायहाणीए अदूरसामंते दुवालस-जोयणायामं णवजोयण-वित्थिष्णंजाव-खंधा-वार- णिवेसं करेइ, करिता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावित्ता जाव - पोसहसालं अणुपविसs, अणुपविसित्ता विणीयाए रायहाणीए अट्ठमभत्तं परिण्हइ, परिव्हित्ता जाव अट्ठमभतं पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरइ ।
५६६ तए णं से भरहे राया अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेद, सद्दावित्ता तहेव जाव - अंजणगिरि कूड-सण्णिभं गयवई णरवई दुरूढे । तं चैव सव्वं जहा हेट्ठा ।
णवरं णव महाणिहओ चत्तारि सेणाओ ण पविसंति ।
सेसो सो चेव गमो -जावणिग्घोसणाइएणं विणीयाए रायहाणीए मज्झां मज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवर- वडिंसगपडिदुवारे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
५६७ तए णं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणि मज्शंमज्झेणं अणुपविसमाणस्स अप्पेगइया देवा विणीयं रायहाणिं सभंतरबाहिरियं आसिय सम्मज्जिवलित्तं करेंति ।
अप्पेगइया देवा मंचाइमंचकलियं करेंति । एवं सेसेसु वि पएसु अप्पेगया देवा णाणाविह राग- वसणुस्सिय-धयपडागामंडियभूमियं करेंति । अप्पेगइया देवा लाउल्लोइयमहियं करेति, अप्पेगइया देवा- गंधवट्टिभूयं करेंति अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासिंति, सुवण्ण-रयण - वइर आभरण- वासं वासेंति ।
५६८ तए
तस्सं भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणिं मज्झमज्मेणं अणुपविसमाणस्स सिंघाडग- जाव - महापहपहेसु बहवे अथत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया इद्धिसिया कब्बिसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया गंगलिया मुहमंगलिया पूसमाणया बद्धमाणया लंख-मंखमाइया ताहि ओरालाहि इट्ठाहि कंताहि पियाहि मणुष्णाहि मणामाहिं सिवाहिं धण्णाहि मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहि हियय-गमणिज्जाहिं हियय- पल्हायणिज्जाहिं वग्गूहिं अणवरयं अभिनंदता य अभियुगंता य एवं वयासी
"जय जय गंदा ! जय जय भद्दा ! भद्दं ते अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि इंदो विव देवाणं, चंदो विव ताराणं - चमरो विव असुराणं, धरणो विव नागाणं, बहूइं पुव्वसयसहस्साई बहुईओ पुव्वकोडीओ बहुईओ पुव्वकोडाकोडीओ विणीयाए रायहाणीए चुल्लहिमवंत - गिरि-सागर- मेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स गामागरणगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-सण्णिवेसेसु सम्मं पयापालणोवज्जिय-लद्धजसे महया - जाव आहेबच्चं पोरेवच्चं - जाव - विहराहि" ति कट्टु जयजयसद्दं पउंजंति ।
भरहेण देवाईणं सक्कारो पडिविसज्जणं य
१३३
५६९ तए णं से भरहे राया
णयणमालासहस्सेहि पिच्छिज्जमाणे २ वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे २ हिययमालासहस्सेहि उण्णदिज्जमाणे २ मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे २
कंतिरूवसोहग्गगुणेहिं पिच्छिज्जमाणे २
अंगुलिमालासहस्सेहि दाइज्जमाणे २
दाहिणहत्थेणं बहूणं णर-णारी- सहस्साणं अंजलिमाला - सहस्साइं पडिच्छेमाणे २
भवणपतीसहस्साइं समइच्छमाणे २
तंती- तल-तुडिय - गीय-वाइय-रवेणं महुरेणं मणहरेणं मंजुमंजुणा घोसेणं पडिबुज्हामाणे२ जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवर वडिंसयदुवारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ, ठवित्ता अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ
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धम्मकहाणुओगे पदम
पच्चtoes, पच्चोoहित्ता सालस देवसहस्से सक्कारेs सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता बत्तीस रायसहस्से सक्कारेइ सम्माणे, सक्कारिता सम्माणित्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता एवं गाहावइरयणं वड्ढइरयणं पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता तिष्णि सट्ठे सूअसए सक्का रेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्मानित्ता अट्ठारस सेमिप्यलेणीओ सरकारे सम्माने सरकारिता सम्माणिता अवि बहवे राईसर-जाव-सत्यवायभि सक्कारेs सम्माणे, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ ।
इत्यtरयणेणं बत्तीसाए उड़कल्लाणियासहस्सेहि बत्तीसाए जणवयकल्लाणियास हस्सेहिं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडय - सहस्सेहि सद्धि संपरिवृढे भवणवरसिगं न हा कुबेरो व्व देवराया कैलास- सिहरि सिगभूति तणं से भरहे राया मित्त-फाइ-णियग-सयण-संबंधिपरियणं पच्चुवेक्ख इ, पच्चुवेक्खित्ता जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमड़, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारित्ता उप्पि पासायवरगए फुट्टमाह मुइंगमत्थए हि बत्तीसह पाहि उबलालिमा उक्लालितमाणे उवणविजमाणे वचिमाणे उपगमा उि ज्जमाणे महया - जाव- भुंजमाणे विहरइ ||
भरस्स रायाभिसेयसंकष्पो
५७० तए णं तस्स भरहस्त रण्णो अष्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे - जाव-समुप्पज्जित्था -
"अभिजिए
मए गियग-बलचीरिय-पुरिसक्कारपरक्कमेण बुल्लहिमवंत गिरिसागरमेराए केवलप्ये भरहे बासे, तं शेयं खलु मे अप्पाणं महया रायाभिसेएणं अभिसेएणं अभिसंचावित्तए" त्ति कट्टु एवं संपेहद, संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभाया - जाव- जलते जेणेव मज्जणघरे- जाव- पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीयद्द, णिसीइत्ता सोलस देवसहस्से, बत्तीसं रायवरसहस्से सेणाइरयणे - जाव- पुरोहियरयणे तिष्णि सट्ठे सूयसए अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ अण्णे य बहवे राईसरतलवर-जाव-सत्यवाप्यभिव सहावेद, सहावित्ता एवं बयासी
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अभिजिए णं देवाणुप्पिया ! मए णियय-बलवीरियजाव केवलकप्पे भरहे वासे तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं महयारायाभिसेवं विपरह "
५७१ तए णं ते सोलस देवसहस्सा - जाब-पभिइओ भरहेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ • करयल • मत्थए अंजलि कट्टु भरहस्स रण्णो एयमट्ठे सम्मं विणएणं पडिसुर्णेति ।
तए णं से भरहे राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छिता जाव अट्टमभत्तिए पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरइ ।
-
देवहिं अभिसेयमंडवकरणं
५७२ तए णं से भरहे राया अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि आभिओगिए देवे सद्दावेद, सद्दावित्ता एवं वयासी"विपामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे विव्वित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।"
,
तए णं ते अभिओगा देवा भरहेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ पढिसुर्णेति पडिणिता विणीयाए राहाणीए उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं समोहणंति, समोहणित्ता संखिज्जाई जोयणाई दंडं णिसिरंति, तं जहा
रमणानं जाव-रिद्वाणं महादायरे पुग्यले परिसाति, परिसाहिता अहामुहमे पुष्णले परिवादियंति, परिवादिता च्वंपि वेदिसमुग्धाए जाब समोहति समोहणिता बहुसमरमणिलं भूमिभागं विवति । से जहाणामए - आलिंगपुवखरे वा० ।
तस्स णं बहुसमरमभिग्नरस भूमिभागरस बहमज्यादेतभाए एत्व में महं एवं अभिसेयमण्डवं विजयंति स सणिविट्ठे जाव गंधवट्टिभूयं पेच्छाघरमंडव-वण्णगोति ।
-
-
दिसीभाए एवं महं अभिसेयमण्डवं विजब्बेह,
जाव 'एवं सामि'त्ति आणाए विणएणं वयणं अवक्कमंति, अवक्कमिता सिमुरयाए
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भरहचक्कवट्टिचरियं ५७३ तस्स णं अभिसेयमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगं अभिसेयपेढं विउव्वंति अच्छं सहं ।
तस्स णं अभिसेयपेढस्स तिदिसि तओ तिसोवाणपडिरूबए विउववंति ।। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते - जाव- तोरणा । तस्स णं अभिसेयपेढस्स बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ।
सीहासणं ५७४ तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगं सोहारुणं विउव्वति ।
तस्स णं सीहासणस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णते - जाव - दामवष्णगं समत्तं ति । तए णं ते देवा अभिसेयमंडवं विउव्वंति, विउव्वित्ता जेणेव भरहे राया - जाव - पच्चप्पिणंति ।
भरहेण अभिसेअमंडवपवेसो ५७५ तए णं से भरहे राया आभिओगाणं देवाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव-पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ,
पडिणिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, पडिकप्पित्ता हयगय-जाव - सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह-जाव-पच्चप्पिणंति । तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ-जाव - अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई
णरवई दुरूढ़े । ५७६ तए णं तस्स भरहस्स रणो आभिसेक्कं हत्यिरयणं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगला जो चेव गमो विणीयं पविस
माणस्स सो चेव णिक्खममाणस्स वि-जाव-पडिबुज्झमाणे पडिबुज्झामाणे विणीयं रायहाणि मज्मज्झणं णिग्गच्छइ. णिगच्छित्ता जेणेव विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरथिमे दिसीभाए अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयमंडववारे आभिसेक्कं हस्थिरयणं ठावेइ, ठावित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरहइ, पच्चोरहित्ता इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्सेहि, बत्तीसाए जणवयकल्लाणियाहस्सेहि, बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहि सद्धि संपरिवुडे अभिसेयमंडवं अणुपविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव अभिसेयपेढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयपेढं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं तिसोवाण-पडिरूवएणं दुरूहइ, दुहिता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे । तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बत्तीसं रायसहस्सा जेणेव अभिसेय-मण्डवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता अभिसेयमंडवं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अभिसेयपेढं अणुप्पयाहिणीकरेमाणा अणुप्पयाहिणीकरेमाणा उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल-जाव-अंजलि कटु भरहं रायाणं जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावित्ता भरहस्स रणो णच्चासणे णाइदूरे सुस्सूसमाणा -जाव- पज्जुवासंति ।
भरहस्स महारायाभिसेओ
५७७ तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे-जाव-सत्यवाहप्पभिइओ ते वि तह चेव । णवरं दाहिणिल्लेणं तिसोवाण
पडिरूवएणं - जाव - पज्जुवासंति । तए णं से भरहे राया आभिओगे देवेसहावेइ सहावेत्ता एवं बयासी"खिप्पामेव भो वेवाणुप्पिया ! ममं महत्थं महग्धं महरिहं महारयाभिसेयं उवट्ठवेह ।" तए णं ते आभिओइया देवा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्त -जाव- उत्तरपुरस्थिमं दिसीभार्ग अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्याएणं समोहणंति । एवं जहा विजयस्स तहा इत्थं पि-जाव-पंडगवणे एगओ मिलायंति, एगओ मिलाइत्ता जेणेव दाहिणड्ढभरहे वासे जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विणीयं रायहाणि अणुप्पयाहिणीकरेमाणा अणुप्पयाहिणीकरमाणा जेणेब अभिसेयमंडवे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उबागच्छित्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं महारायाभिसेयं उवठ्ठति । तए णं तं भरहं रायाणं बत्तीसं रायसहस्सा सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-णक्खत्त-महत्तंसि उत्तरपोटुवयाविजयंसि तेहि
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
साभाविएहि य उत्तरवेउम्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहि सुरभि-वर-वारि-पडिपुण्णेहिं -जाव- महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति, अभिसेओ जहा विजयस्स, अभिसंचित्ता पत्तेयं पत्तेयं -जाव- अंजलि क१ ताहि इटाहि जहा पविसंतस्स भणिया -जाव- विहराहि त्ति कटु जयजयसई पउंजंति ।
नयरे दुवालससंवच्छरियपमोयघोसणं ५७८ तए णं तं भरहं रायाणं सेणावइरयणे -जाव- पुरोहियरयणे तिण्णि य सट्टा सूयसया अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ अण्णे य
बहवे -जाव- सत्यवाहप्पभिइओ एवं चेव अभिसिंचंति, तेहि वरकमलपइट्ठाणेहिं तहेव -जाव- अभिथुणंति य सोलस देवसहस्सा एवं चेव । णवरं पम्हलसुकुमालाए -जाव- मउडं पिणखेति । तयणंतरं च णं दद्दरमलयसुगंधिएहिं गंधेहिं गायाई अन्भक्खेंति दिव्वं च सुमणोदामं पिणखेति । कि बहुणा ?, गंठिम-बेढिम -जाव- विभूसियं करेंति । तए णं से भरहे राया महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिए समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हत्थिखंधवरगया विणीयाए रायहाणीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर -जाव- महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्धोसेमाणा उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं -जावसपुरजण-जाणवयं दुवालस-संवच्छरियं पमोयं घोसेह, घोसित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ति।" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिया पोइमणा० हरिसवसविसप्पमाणहियया विणएणं वयणं पडिसुणिति, पडिसुणित्ता खिप्पामेव हत्थिखंधवरगया -जाव- घोसेंति, घोसित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।
पासायं पडिगमणं ५७९ तए णं से भरहे राया महया महया रायाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सोहासणाओ अब्भुट्ट्इ, अब्भुठ्ठित्ता इत्थिरयणेणं
-जाव-णाडग-सहस्सेहि सद्धि संपरिवुडे अभिसेय-पेढाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ पच्चोरुहित्ता अभिसेयमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूड-सण्णिभं गयवई-जाव-दुरूढे । तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बत्तीसं रायसहस्सा अभिसेयपेढाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरहंति । तए णं तस्स भरहस्स रणो सेणावइरयणे - जाव - सत्यवाहप्पभिइओ अभिसेयपेढाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति । तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ -जाव- संपठ्ठिया । जो वि य अइगच्छमाणस्स गमो पढमो कुबेरावसाणो सो चेव इहंपि कमो सक्कारजढो णेयत्वो -जाव- कुबेरे ब्व देवराया केलासं सिहरिसिंगभूयंति ।
५८० तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता -जाव- भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ,
पारिता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता उप्पि पासायवरगए फुटमाणेहि मुइंगमत्थएहि -जाव- भुंजमाणे विहर।। तए णं से भरहे राया दुवालस-संवच्छरियंसि पमोयंसि णिव्वत्तंसि समाणंसि जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-जाव-मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला-जाव-सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीयित्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ पडिविसज्जेत्ता बत्तीसं रायवरसहस्सा सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता-जाव-पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता एवं तिणि सट्टे सूयारसए अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता अण्णे य बहवे राईसरतलवर-जाव-सत्यवाहप्पभिइओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ पडिविसज्जित्ता उप्पि पासायवरगए-जाव-विहरइ ॥
रयणमहाणिहीणं उप्पत्तिठाणं ५८१ भरहस्स रण्णो चक्करयणे १ दंडरयणे २ असिरयणे ३ छत्तरयणे ४ एए णं चत्तारि एगिदियरयणा आउहबरसालाए
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भरहचक्कवट्टिचरियं
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समुप्पण्णा, १ चम्मरयणे २ मणिरयणे ३ कागणिरयणे णव य महाणिहओ एए णं सिरिघरंसि समुप्पण्णा, १ सेणावहरयणे, २ गाहावहरयणे, ३ वड्ढइरयणे, ४ पुरोहियरयणे एए णं चत्तारि मणुयरयणा विणीयाए रायहाणीए समुप्पण्णा । १ आसरयणे २ हत्थिरयणे एए णं दुबे पंचिंदियरयणा वेयड्ढगिरिपायमूले समुप्पण्णा । सुभद्दा इत्थीरयणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पण्णे ।
भरहस्स सासणं
५८२ तए णं से भरहे राया चउदसण्हं रयणाणं, णवण्हं महाणिहोणं, सोलसण्हं देवसाहस्सीणं, बत्तीसाए रायसहस्साणं, बत्तीसाए
उडुकल्लाणियासहस्साणं, बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्साणं, बत्तीसाए बत्तीसइबद्धाणं णाडगसहस्साणं, तिण्हं सट्ठीणं सूयार-सयाणं, अट्ठारसण्हं सेणिप्पसेणीणं, चउरासीईए आससयसहस्साणं, चउरासीईए दंतिसयसहस्साणं, चउरासीईए रहसयसहस्साणं, छण्णउईए मणुस्सकोडोणं, बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं, बत्तीसाए जणवयसहस्साणं, छण्णउईए गामकोडीणं णवणउईए दोणमुहसहस्साणं, अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं, चउव्वीसाए कब्बडसहस्साणं, चउव्वीसाए मडंबसहस्साणं, वीसाए आगरसहस्साणं, सोलसण्हं खेडसहस्साणं, चउदसण्हं संवाहसहस्साणं, छप्पण्णाए अंतरोदगाणं, एगूणपण्णाए कुरज्जाणं, विणीयाए रायहाणीए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स अणेसि च बहणं राईसर-तलबर-जाव-सत्यवाहप्पभिईणं आहेबच्चं पोरेवच्चं भट्टितं सामित्तं महत्तरगत्तं आणाईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ओहयणिहएसु कंटएसु उद्धियमलिएसु सव्वसत्तूसु णिज्जिएसु भरहाहिवे गरिदे बरचंदणचच्चियंगे वरहाररइय-वच्छे, वर-मउड-विसिट्ठए, वर-वत्थ-भूसण-धरे, सब्वोउय-सुरहि-कुसुमवर-मल्ल-सोभिय-सिरे, वर-णाडग-णाडइज्ज-वरइत्थिगुम्मसद्धि संपरिवुडे सम्वोसहि-सव्वरयण-सव्वसमिइसमग्गे संपुण्णमणोरहे हयामित्तमाणमहणे पुवकय-तबप्पभावणिविट्ठसंचियफले भुंजइ माणुस्सए सुहे भरहे णामधेज्जे त्ति ॥
भरहस्स आयंसघरंसि केवलनाणं ५८३ तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता -जाव- ससि व्व पियदसणे
णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमई, पडिणिक्वमित्ता जेणेव आयंसघरे जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता सोहासणवरगए पुरत्याभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता आयंसघरंसि अत्ताणं देहमाणे देहमाणे चिट्ठइ ।। तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सुभेणं परिणामेण पसत्थेहि अज्शवसाहिं लेसाहि विसुज्झमाणीहिं विसुज्माणीहि ईहापोहमग्गण-गवेसणं करेमाणस्स तयावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुवकरणं पविठ्ठस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवर-नाण-दंसणे समुप्पण्णे ।
भरहस्स अट्ठावयगमणं तत्थ णिव्वाणं च ५८४ तए णं से भर हे केवली सयमेपाभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता आयंसघराओ
पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतेउरमसंमज्झणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता दसहि रायवरसहस्सेहिं सद्धि संपरिबुडे विणीयं रायहाणि मज्झमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता मज्बादेसे सुहंसुहेणं बिहरइ, विहरित्ता जेणेव अट्ठावए पव्वए तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता अट्ठावयं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेघघणसण्णिगासं देवसण्णिवायं पुढविसिलावट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहिता सलेहणा-भूसगा-झूसिए भत्त-पाण-पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकखमाणे अणवकखमाणे विहरइ ।
२. सम० ९६, सु० १।
१. सम० ७२, सु० ६ । ३. सम० ४८, सु० १ ।
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धम्मकहाणुओगे पढमखंधे ५८५ तए णं से भरहे केवली सत्तत्तरि युब्बसयसहस्साई कुमारवासमझे वसित्ता', एगं वाससहस्सं मंडलियरायमझे वसित्ता,
छ पुव्वसयसहस्साई वाससहस्सूणगाई महारायमज्झे वसित्ता, तेसोइपुव्वसयसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं देसूणगं केवलिपरियायं पाउणिता तमेव बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता चउरासीइपुष्वसयसहस्साई सवाउयं पाउणित्ता मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं सबणेणं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं खीणे वेयणिज्जे आउए णामे गोए कालगए वीइक्कत समुज्जाए छिण्ण-जाइ-जरामरण-बंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परणिव्वुडे अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ इइ भरहचक्किचरियं समतं ॥
जंबु० ब० ३ भरहस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठपुरिसजुगाई अणुबद्धं सिद्धाई-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणाइं तं जहा–१ आइच्चजसे, २ महासच्चे, ३ अइबले, ४ महाबले, ५ तेयवोरिए ६ कित्तविरए । ७ दंडवीरिए, ८ जलवीरिए ॥ ..
ठाणं अ० ८, सु० ६१६ ।।
१० चक्कवट्टिसामण्णं अड्ढाइज्जेसु दीवेसु चक्कवट्टिविजया ५८६ जंबुद्दीवे णं दीवे चउत्तीसं चक्कट्टि विजया पण्णता, तं जहाबत्तीसं महाविदेहे, दो भरहेरवए ।
सम० स० ३४, सु० २। ५८७ जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्त पुरथिने णं सीताए महाणदीए उत्तरे णं अट्ठ चक्कट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा
कच्छ, सुकच्छे, महाकच्छे, कच्छगावती, आवत्ते, मंगलावत्ते, पुक्खले, पुक्खलावती । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ चक्कट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहावच्छे, सुवच्छे, महावच्छे, वच्छगावतो, रम्म, रम्मगे, रमणिज्जे, मंगलावती । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोतोयाए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहापम्हे, सुपम्हे, महापम्हे, पम्हगावती, संखे, गलिणे, कुमुए, सलिलावती । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे गं सीतोयाए महाणदीए उत्तरे गं अट्ठ चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा
वप्पे, सुबप्पे महावप्पे, वप्पगावती, वग्गू, सुवग्गू, गंधिल्ले, गंधिलावती । ५८८ जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे गं सीताए महाणदीए उत्तरे णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
खेमा, खेमपुरी, रिट्ठा, रिठ्ठपुरी, खग्गी, मंजूसा, ओसधी, पुंडरीगिणी ।। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणईए दाहिणे णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहासुसीमा, कुंडला, अपराजिया, पभंकरा, अंकावई, पम्हावई, सुभा, रयणसंचया ।। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्यिमे णं सीओदाए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहाआसपुरा, सीहपुरा, महापुरा, विजयपुरा, अवराजिता, अरया, असोया, वीतसोगा । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोतोयाए महाणईए उत्तरे णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१ सम० ७७ सु०१। २ भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी छ पुव्वसयसहस्साई महाराया हुत्था ।
ठाणं० अ० ६, सु० ५१९। भरहे णं राया चा उरंतचट्टी छ पुवमयसहस्साई रायमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।
सम० सु० १२९। ३ सम० ८३ सु० ४। ४ (क) सम० ८४, सु० २। (ख) चक्कीणं सव्वाउ - गाहाओ- चउरासीती बावत्तरी य, पुब्वाण सयसहस्साई । पंच य तिन्नि य एगं च, सयसहस्सा उ वासाणं ॥१।। पचाणउतिसहस्सा चउरासीती य अट्ठमे सट्ठी। तीसा य दस य तिन्नि य, अपच्छिमे सत्त वाससया ।।२॥
आव. नि. गा० ३९५, ३९६।
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चक्कवट्टिसामण्णं
१३९ विजया, बेजयंति, जयंती, अपराजिया, चक्कपुरा, खग्गपुरा, अवज्झा, अउज्झा ।
ठाणं अ० ८, सु० ६३७१, जंबु० व० ४ सु० ९३, ९४, ९५, ९६।, जंब० व० ४ सु० १०२। ५८९ एवं धायइसंडदीवे वि । ५९० एवं पुक्खरवरदीवड्ढे वि ।
ठाणं अ० ८, सु० ६४१ । ५९१ धायइसंडे णं दीवे अटुढेि चक्कवट्टिविजया, अटुट्टि रायहाणीओ पण्णत्ताओ।
सम० स० ६८, सु० ४ । पुक्खरवरदीवड्ढे णं अट्ठसट्टि चक्कवट्टिविजया, अट्ठस४ि रायहाणीओ पण्णत्ताओ।
सम० स० ६८ सु० ४ । जंबुद्दीवे भरहवासे बारसण्हं चक्कबट्टीणं तप्पिउ-माउ-इत्थिरयणाणं च नामाई ५९२ जंबुद्दीदे णं दोवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कसिपियरो होत्था तं जहा
१ उसमें २ सुमित्तविजए, ३ समुद्दविजए य ४ अस्ससेणे य । ५ विस्ससेणे य ६ सूरे, ७ सुदंसणे ८ कत्तवीरिए य॥१॥ ९ पउमुत्तरे १० महाहरी, ११ विजए राया तहेव य । १२ बम्हे बारसमे वुत्ते, पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥२॥ जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए बारस चक्कट्टिमायरो होत्था, तं जहा१सुमंगला २जसवती, ३भद्दा ४सहदेवी ५अइर ६सिरिदेवी । तारा ९जाला १०मेरा, ११वप्पा १२चुलणी अपच्छिमा ॥१॥
५९३ जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टी होत्था, तं जहा
१भरहो २सगरो ३मयवं, ४सणंकुमारो य रायसङ्कलो । ५संती ६कुंथू य ७अरो, हवइ सुभूमो य कोरवो ॥१॥
९नवमो य महापउमो, १०हरिसेणो चेव रायसद्लो । ११जयनामो य नरवई, १२बारसमो बंभदत्तो य ॥२॥ ५९४ एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस इणिरयणा होत्था, तं जहा
१पढमा होइ सुभद्दा, २भद्दा ३सुणंदा जया४ य ५विजया य । ६कण्हसिरी, ७सूरसिरी ८पउमसिरी ९वसुंधरा १०देवी ॥१॥ ११लच्छिमई १२कुरुमई, इत्थिरयणाण नामाई ।
सम० सु० १५८ । जंबुद्दीवे भरहे वासे आगमेस्सुस्सप्पिणीए चक्कवट्टिनामाई ५९५ जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्तप्पिणीए बारस चक्कवट्टी भविस्संति, तं जहा
संगहणीगाहा १भरहे य २दोहदंते, ३गूढदंते य ४सुद्धदंते य । सिरिउत्ते ६सिरिभूई, सिरिसोमे य सत्तमे ॥१॥
८पउमे य ९महापउमे, १०विमलवाहणे ११विपुलवाहणे चेव । १२रिठे बारसमे वृत्ते, आगमेस्सा भरहाहिवा ॥२॥ ५९६ एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति ।
सम० म० १५८ । जम्बुद्दीवे आगमेस्सुम्सप्पिणीए एरवए वासे चक्कवट्टिआईणं संखा ५९७ जम्बुद्दीवे एरवएवासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीएबारस चक्कवट्टी भविसंस्त, बारस चकवट्टिपिपरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति ।
सम० सु० १५८ । जंबुद्दीवे चक्कवट्टी-आई ५९८ जंबुद्दीवे णं भंते ! केवइआ जहण्णपए वा उक्कोसपए वा चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहण्णपदे चत्तारि, उक्कोसपदे वीसं सव्वग्गेणं पण्णत्ता इति । बलदेवा तत्तिआ चेव जत्तिया चक्कवट्टी । वासुदेवा वि तत्तिया चेव त्ति ।।
जंबु० व० ७, सु० १७३ ।
१ ठाणं अ० ३, उ० ४, सु० २३२।
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१४०
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे तिण्हं तित्थयराणं चक्कवट्टित्तं ५९९ तओ तित्थयरा चक्कवट्टी होत्था, तं जहा- संती, कुंथू, अरो ।
ठाणं, अ० ३, उ० ४, सु० २३२। सुभूम-बंभदत्ताणं नरयगमणं ६०० दो चक्कवट्टी अपरिचत्तकामभोगा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अपइट्ठाणे गरए णेरइयत्ताए उववण्णा, तं जहा-सुभूमे चेव, बंभदत्ते चेव ।।
ठाण, अ० २, उ० ४, सु० ११२। ६०१ जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे दस रायहाणीओ पण्णताओ, तं जहा
गाहा- चंपा महुरा वाराणसी य, सावत्थि तह य साएयं । हरिणणउर कंपिल्लं, मिहिला कोसंबि रायगिहं । ६०२ एयासु णं दससु रायहाणीसु दस रायाणो मुंडा भवेत्ता-जाव-पव्वइया, तं जहा१ भरहो, २ सगरो, ३ मववं, ४ सणंकुमारो, ५ संतो, ६ कुंथू, ७ अरे, ८ महापउमे, ९ हरिसेणे, १० जमणामे ।।
ठाण अ० १०, सु० ७१८॥ सगरो चक्कट्टी ६०३ एवं सगरा वि राया चाउरंतचक्कवट्टी एक्कसत्तरि पुब्व-जाव-पब्वइए त्ति ॥
सम० सु० ७१।
हरिसेणे चक्कवट्टी ६०४ हरिसेणे गं राया चाउरंतचक्कवट्टी एगणनउई वाससयाई महाराया होत्था ।
सम० सु० ८९ । हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी देसूणाई सत्ताणउइं वाससयाई अगारमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं-जाव-पम्वइए ॥१७॥
सम० सु० ९७।। भरहाईणं सरीरुस्सेहो भरहे णं राया चाउरतचक्कवट्टी पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्या' बाहुबली णं अणगारे एवं चेव । बंभी गं अज्जा एवं चेव, एवं सुंदरी वि।।
__ठाण० अ० ५, उ० २, सु० ४३५ । ६०५ सगरे णं राया चउरंतचक्कवट्टी अद्धपंचमाई धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० ४५० सु० २। चक्कवट्टिस्स हारे ६०६ सम्बस्स वि य णं रणो चाउरंतवकवट्टिस्स चउसट्ठिलट्ठीए महग्धे मुत्तामणिमए हारे पण्णत्ते ।
सम० स० ६४, सु० ६ चक्कवट्टिस्स गाम-पुर-पट्टणसंखा ६०७ एगमेगस्स णं रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स छगणउई छण्णउइं गामकोडीओ होत्था । सम० स० ९६, सु० १॥
१ बंमदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्त धणू ई उड्ढे उच्चत्तेणं सत य वाससयाई परमाउँ पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढबीए अप्पतिट्ठाणे नरए उबवण्णे ।
ठाण, अ० ७, सु० ५६२ । २. उत्त० अ० १८, गा० ३८-४१॥ ३. क. चक्कीण उस्सेहो : गाहाओ-पंच सत अद्धपंचम, बायाला चेव अद्धधणुयं च । चत्ता दिवड्ढघणुयं च, चउत्थे पंचमे चत्ता ॥१॥
पणुतीसा तीसा पुण, अट्ठावीसा य वीस घणुउगाणि । पन्नरस बारसेव य, अपच्छिमा सत्त य धणूणि ।।२।।
यं च । चत्ता दिवड.
सम० स० ५०० तासा पुण, अट्ठावीसा
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चक्कवट्टिसामण्णं
१४१
एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावतरि पुरवरसाहस्सीओ पण्णताओ । एगमेगस्स गं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अडयालीसं पट्टणसहस्सा पण्णत्ता।
सम० स० ७२, सु० ६। सम० स० ४८, सु० ११
निहिरयणा : ६०८ जंबुद्दीवे दीवे केवइया निहिरयणा सव्वग्गेणं पण्णता ?
गोयमा ! तिण्णि छलुत्तरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता । जंबुद्दीवे दीवे केवइआ णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हब्बमागच्छंति ? गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं, उक्कोसपए दोणि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगताए हब्वमागच्छति ।
सम० ब० ७, सु. १७३। ६०९ एगमेगे णं महाणिही अट्टचक्कवालपतिढाणे अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
ठाण अ० ८, सु० ६२ । एगमेगे णं महाणिही णव-णव जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ते । एगमेगस्स णं रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स णव महाणिहिओ पण्णत्ता ।
ठाणं अ० ९, सु० ६९३ । चक्कवट्टिस्स चउद्दस-रयणाई ६१० एगमेगस्स णं रग्णो चाउरंतचक्कट्टिस्स सत्त एगिदियरतणा पण्णत्ता, तं जहा
१ चक्करयणे, २ छत्तरयणे, ३ चम्मरयणे, ४ दंडरयणे, ५ असिरयणे, ६ मणिरयणे, ७ काकणिरयणे । ६११ एगमेगस्स गं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त पचिदियरतणा पण्णत्ता, तं जहा१ सेणावतिरयणे, २ गाहावतिरयणे, ३ वड्ढइरयणे, ४ पुरोहितरयणे, ५ इत्थिरयणे, ६ आसरयणे, ७ हत्थिरयणे ।।
सम० स० १४, सु० ७ । काकिणिरयणागिई ६१२ एगमेगस्स णं रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवण्णिए काकणिरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अधिकरणिसंठिते ॥
ठाण, अ० ८, सु० ६३३।
जंबुद्दीवे एगिदियरयणाणं संखा-परिभोगनिरूवणं ६१३ जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइआ एगिदिअरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! दो दसुत्तरा एगिदिअरयणसया सव्वग्गेणं पण्णता । जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया एगिदियरयणसया, परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! जहण्णपए अट्ठावीसं, उक्कोसेणं दोण्णि दसुत्तरा एगिदिअरयणसया परिभोगताए हब्बमागच्छति ।
जंबुद्दीवे पंचिदियरयणाणं संखा-परिभोगनिरूवणं ६१४ जंबुद्दीवे दीवे केवइया पंचिदिअरयणसया सव्वग्गेणं पण्णता ?
गोयमा ! वो दसुत्तरा पंचिंदिअरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता । जंबुद्दीवे बीवे जहण्णपदे वा उक्कोसपदे वा केबइआ पंचिदिअरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! जहण्णपदे अट्ठावीसं, उक्कोसपए दाण्णि दसुत्तरा पंचिदिअरयणसया परिभोगत्ताए हब्बमागच्छति ।
जंबु० व० ७, सु० १७३।
१ ठाण', अ० ७, सु० ५५८ ।
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११ बलदेव-वासुदेवसामण्णं बलदेव-वासुदेवाणं पिउ-माउयाइ ६१५ जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेवपितरो होत्था, तं जहा
गाहा- पयावती य बंभे रोद्दे सोमे सिवे ति य । महसिहे अग्गिसिहे नवमे य वसुदेवे ॥१॥
६१६ जंबुद्दीवे णं दोबे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए णव वासुदेवमायरो होत्था, तं जहा___ गाहा- मियावई उमा चेव, पुहवी सीया य अम्मया । लच्छिमती सेसवती, केकई देवई इ य ॥१॥
६१७ जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए णव बलदेवमायरो होत्था, तं जहा
गाहा-- भद्दा तह सुभद्दा य, सुप्पभा य सुदंसणा । विजया य वेजयंती, जयंती अपराइया ॥१॥ णवमिया रोहिणी, बलदेवाण मायरो ।
६१८ जंबुद्दोवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा
उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसो वच्चंसी जसंसो छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-णयण-कंता ओहबला अतिबला महाबला अणिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्स-माणमहणा साणुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय. वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दसणा अमरिसणा पयंडदंडप्पन्भारा गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धउग्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्ध-कित्तिपुरिसा विउलकुल-समुन्भवा महारयण-विहाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुल-वंस-तिलया अजिया अजियरहा हल-मुसल-कणग-पाणी संख-चक्क-गय-सत्ति-नंदगधरा पवरुज्जल-सुक्कंत-विमल-गोत्थुभ-तिरीडधारी कुंडलउज्जोइयाणणा पुंडरीय-णयणा एकावलि-कंठलइय-वच्छा सिरिवच्छ-सुलंछणा बरजसा सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-सुरइत-पलंबसोभंत-कंत-विकसंत-विचित्त-वरमाल-रइयवच्छा अट्ठसय-विभत्त-लक्खण-पसत्य-सुंदर-विरइयंगमंगा मत्तगयरिंद-ललिय-विक्कमबिलसियगई सारय-नवथणियमधुर-गंभीर-कोंचनिग्योस-दुंदुभिसरा कडिसुत्तगनील-पीय-कोसेयवाससा पवरदित्त-तेया नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसभा मरुयवसभकप्पा अन्भहियं राय-तय-लच्छीए दिप्पमाणा नीलग-पीतग-वसणा दुवे दुवे रामकेसवा भायरो होत्या, तं जहासंगहणी-गाहाओ-तिविठू य दुविठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे । पुरिससोहे तह पुरिसपुंडरीए, दत्ते नारायणे, कण्हे ॥१॥
- अयले, विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे । आणंदे णंदणे, पउमे रामे यावि अपच्छिमे ॥२॥ ६१९ एतेसि णं णवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वविया नव-नव नामधेज्जा होत्या, तं जहा
विस्सभूई पन्वयए, धणदत्त समुदत्त इिसिवाले । पियमित्त ललियमित्ते, पुणव्वस गंगदत्ते य ॥१॥ एयाई नामाई, पुवभवे आसि वासुदेवाणं । एत्तो बलदेवाणं, जहक्कम कित्तइस्सामि ॥२॥ विसनंदी सुबंधू य, सागर दत्ते असोगललिए य । वाराह धम्मसेणे, अपराइय रायललिए य ॥३॥
६२० एतेसि णं नवण्हं वासुदेवाणं पुव्वभविया नव धम्मारिया होत्था, तं जहागाहाओ-संभूत सुभद्दे सुदंसणे, य सेयंसे कण्ह गंगदत्ते य । सागरसमुद्दनामे, दुमसेणे य णवमए ॥१॥
एते धम्मायरिया, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । पुब्वभवे आसिण्हं, जत्थ निदाणाई कासी य ॥२॥ ६२१ एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं पुब्वभवे नव नियाणभूमीओ होत्था, तं जहा
महरा य कणगवत्थू, सावत्थी पोयणं च रायगिहं । कायंदी कोसंबी, मिहिलपुरी हत्थिणपुरं च ॥१॥ एतेसि णं नवण्हं वासुदेवाण नियाणकारणा होत्था, गावी जुवे य संगामे इत्थी पराइयो रंगे । भज्जाणुराग गोट्ठी,, पराइड्ढी माउयाइ य ॥१॥
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बलदेव-वासुदेवसामण्णं
१४३ ६२२ एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव पडिसत्तू होत्था, तं जहा- .
अस्सग्गीवे तारए, मेरए महुकेढवे निसुंभे य । बलि पहराए तह रावणे य नवमे जरासंधे ॥१॥ एए खलु पडिसत्तू, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । सम्वे वि चक्कजोही सव्वे वि हया सचक्र्केहि ॥२॥ एक्को य सत्तमाए, पंच य छट्ठीए पंचमी एक्को । एक्को य चउत्थीए, कण्हो पुण तच्चपुढ़वीए ॥१॥ अणिदाणकडा रामा, सव्वे वि य केसवा नियाणकडा । उड्ढंगामी रामा, केसव सम्वे अहोगामी ॥२॥ अढतकडा रामा, एगो पुण बंभलोयकप्पंमि । एक्का से गब्भवसही, सिज्यिास्सइ आगमस्साणं ॥३॥
सम० सु० १५८। जंबुद्दीवे आगमिस्सुस्सप्पिणीए बलदेव-वासुदेवे पडुच्च विविहं परूवणं ६२३ जंबुद्दीवे णं दीवे भार हे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए
नव बलदेव-वासुदेवपियरो भविस्सति । नव वासुदेवमायरो भविस्संति । नव बलदेवमायरो भविस्सति । नव दसारमंडला भविस्संति, तं जहाउत्तमपुरिसा मज्झिामपुरिसा पहाणपुरिसा । ओयंसी तेयंसी एवं सो चेव वण्णओ भाणियब्बो-जाव-नीलग-पीतगवसणा दुबे दुवे राम-कैसवा भायरो भविस्संति, तं जहागाहाओ-नंदे य नंदमित्ते, दोहबाहू तहा महाबाहू । अइबले महाबले, बलभद्दे य सत्तमे ॥
दुविठू य तिविटू य, आगमिस्साण विण्हुणो । जयंते विजये भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ॥
आणंदे नंदणे पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे ॥ ६२४ एएसि णं नवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुखभविया णव नामधेज्जा भविस्संति ।
नव धम्मायरिया भविस्संति । नव नियाणभूमीओ भविस्संति । नव नियाण कारणा भविस्संति । नव पडिसत्तू भविस्संति, तं जहागाहाओ-तिलए य लोहजंघे वइरजंघे, य केसरी पहराए । अपराइए य भीमे, महाभीमे य सुग्गीवे ॥
एए खलु पडिसत्तू कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । सब्वे वि चक्कजोही, हम्मीहिती सचक्केहि ॥ ६२५ जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए णव बलदेव-वासुदेवपियरो भविस्संति । णव वासुदेवमायरो
भविस्संति । णव बलदेवमायरो भविस्संति । स दसारमंडला भविस्संति, तंजहाउत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा-जाव-दुवे दुवे राम-केसवा भायरो भविस्संति । णव पडिसत्तू भविस्संति । णव पुत्वभवणामधेज्जा । णव धम्मायरिया । णव णियाणभूमीओ । णव णियाणकारणा । आयाए एरवए आगमिस्साए भाणियव्वा । एवं दोसु वि आगमिस्साए भाणियव्वा ॥
सम० सु. १५९॥ बलदेवाणमुच्चत्तं सव्वाउयं च ६२६ अयले णं बलदेवे असोई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
सम० स० ८, सु० ३। ६२७ विजए णं बलदेवे तेवरि वाससयसहस्साई सम्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ।
सम० स० ७३ सु० २। ६२८ सुप्पभे णं बलदेवे एकावण्णं बाससयसहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सम्बदुक्खप्पहीणे ।।
सम० स० ५१, सु० ४।
१. ठाण० अ० ९, सु० ६७२। २. अंत० व० ५ अ० १ सु० ९।
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१४४
६२९ नंदणे णं बलदेवे पणतीसं घणूई उड्ढं उच्चत्तेनं होत्था ।
६३० रामे णं बलदेवे दस घणूई उड्द्धं उच्चत्तेणं होत्या ।
६३१ रामे णं बलदेवे दुवालस वाससयाई सव्वाउयं' पालित्ता देवत्तं गए ।
६३२ तिविट्ठे में वासुदेवे असी वाससयसहरसाई महाराया होत्या ।
वासुदेव - पष्णगं
६२३ तिविट्ठेनं वासुदेवे असीई धगूई उददं उच्च
होत्या ।
६३४ तिविट्ठे णं वासुदेवे चउरासीइं वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता अप्पइट्टाणे नरए नेरइयत्ताए उववण्णे ।
६३५ सयंभुस्स णं वासुदेवस्स णउइवासाई बिजए होत्या ।
६३६ पुरिसीत्तमे णं वासुदेवे पण्णासं घणूइं उड्ढं उच्चतेणं होत्था ।
६२७ पुरिससीहे गं वासुदेवे दस दाससवराहस्सा समाज्यं पालता पंचमाए डबीए नरए नेरइयत्ताए उपय
धम्मकहाणुओगे पढमखंधे
सम० स० ३५. सु० ४। सम० स० १०. सु ६|
सम० स० १२, सु ५।
सम० स० ८०, सु० ४।
१. बलदेवाणं सव्वाउ :
गाहाओ :- पंचासी१ पष्णसरीर म पटि३ पंचवा४ व सत्तरस ५ सयसहस्सा, पंचमह आउअं होड़ ||१|| पंचासीइ सहस्सा७, पण्णट्ठीय तह य चेव पण्णरस । बारस सयाई ९ आउ, बलदेवाणं जहासंखे ||२||
६३८ पुरिससीहे णं वासुदेवे इस पाससयसहस्साई सच्चाउयं पालता उट्ठीए समाए पुढबीए रहयसाए उबवणे। ठाण अ० १०, सु० ७५३।
पढमो खंधो समत्तो ।
गाहा
सम० स० ८०, सु० २।
६३९ दत्ते णं वासुदेवे पणतीसं घणूइं उड़ढं उच्चत्तेणं होत्या ।
सम० स० ३५, सु० ३ ।
६४० कण्हे णं वासुदेवे दस घणूइं उड़ उच्चतेणं, दस य वासस्याइं सव्वाउयं पालइत्ता तच्चाए वालुयप्पभाए पुढ़वीए रहलाए उपवणं । ठाणं अ० १०, सु० ७३५।
सम० स० ८४, सु० ४| सम० स०९, सु० ४। सम० स० ५० सु० ३।
सम० सु० १३३॥
२. सम० स० १०, सु ५।
३. वासुदेवाण सव्वाउ
गाहा
चउरासी १ बिसत्तरि२ सट्ठी ३ तीसा४ य दस य लक्खाईं५ । पणसट्ठि सहस्साई ६-७ छप्पण्णा बारसेगं च ८-९
विशे०
पढमो घणूणsसीई सत्तरि सट्ठी अ पण्ण पणयाला । अउणत्तीसं च घणू, छथ्वीसा सोलस दसेव ।। वासुदेवाणमुच्चत्तं ।
आव० नि० चू० गा० ४०६, ४०७।
० भा० २ गा० १७६२।
विशे० भा० २, गा० १७६१।
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दुतीयो खंधो
. समणकहाणगाणि
अज्झयणा
१. विमलतित्थे महब्बलो २. मुणिसुव्वयतित्थे कत्तियसेट्ठि-आईणं कहाणयं ३. मुणिसुव्वयतित्थे गंगदत्तो ४. अरिटुने मितित्थे चित्तसंभूइज्जकहाणयं ५. अरिट्टनेमितित्थे निसढो ६. अरिटुनेमितित्थे गोयमो अण्णे य ७. अरिटुनेमितित्थे अणीयसो कुमारो अण्णे य ८. अरिटुनेमितित्थे गजसुकमालाई ९. अरिट्टनेमितित्थे सुमुहाइकुमारा १०. अरिटुनेमितित्थे जालिआई समणा ११. अरिटुनेमितित्थे थावच्चापुत्ते अण्णे य १२. अरिटुनेमितित्थे रहनेमिसमणस्स राजीमइए समुद्धारो १३. पासतित्थे अंगई, सुपइट्ठो, पुण्णभद्दाई य १४. पासतित्थे जियसत्तु-सुबुद्धिकहाणयं १५. महावीरतित्थे नमिरायरिसी १६. महावीरतित्थे उसहदत्त-देवाणंदाणं चरियं १७. महावीरतित्थे बालतवस्सी मोरियपुत्ते तामली अणगारे १८. महावीरतित्थे अद्दगस्स अण्णतित्थिएण सह वादो
व.
क
.
१
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१९. महावीरतित्थे अइमुत्तए कुमारसमणे २०. महावीरतित्थे
अलक्कराया २१. महावीरतित्थे मेहकमारे समणे २२. महावीरतित्थे मकाईआई समणा २३. महावीरतित्थे अज्जुणमालागारे २४. महावीरतित्थे कासवाई समणा २५. महावीरतित्थे सेणियपुत्ता जालिआई समणा २६. महाबीरतित्थे धण्णे सत्थवाहपुत्ते अणगारे २७. महावीरतित्थे सुणक्खत्ताइसमणा २८. महावीरतित्थे सबाहुकुमारसमणे २९. महावीरतित्थे भद्दनंदीआइसमणकहाणगाणि ३०. महावीरतित्थे सेणियनत्त पउमसमणो ३१. महावीरतित्थे हरिएसबलो ३२. महावीरतित्थे अणाही महानियंठो ३३. महावीरतित्थे समुद्दपालीयस्स कहाणयं ३४. महावीरतित्थे मियापुत्ते बलसिरीसमणे ३५. महावीरतित्थे संजय राया ३६. महावीरतित्थे उसयाररायाई छ समणा ३७. महावीरतित्थे खंदए परिव्वायगे ३८. महावीरतित्थे पोग्गलपरिव्वायगे ३९. महावीरतित्थे
सिवरायरिसी ४०. महावीरतित्थे उद्दायण रायकहाणयं ४१. महावीरतित्थे ।
जिणपालिय-जिण रक्खिय-णायं ४२. महावीरतित्थे . कालासवेसियपुत्ते ४३. महावीरतित्थे. उदए पेढालपुत्ते । ४४. महावीरतित्थे : नंदीफलणायं ४५. महावीरतित्थे धम्मसत्थवाहकहाणयं ४६. महावीरतित्थे पुण्डरीय-कुण्डरीय-कहाणयं ४७. महावीरतित्थे थविरावली
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वाणियगामे भगवओ महावीरस्सागमणं
१ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नाम नगरे होत्था
दूतिपलासे चेइए-- वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ ।
१. विमलतित्थे महब्बलो
तत्थ णं वाणियग्गामे नगरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवसद् -- अड्ढे जाव - बहुजणस्स अपरिभूए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे - जाव - अहापरिग्ाहिएहि तवोकम्मे या भावेमाने विहर।
२ सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ ॥
सुदंसणसेट्ठिा धम्मसवर्ण
३ तएषं से सुसणे सेट्ठी हमीसे कहाए लट्ठे समाणे हाए कययलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सब्वालंकारविभूसिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं पायविहारचारेणं महयापुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते वाणियग्गामं नगरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गछित्ता जेणेव दूतिपलासे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे लेव उवागच्छ, उबागच्छित्ता समगं भगवं महावीरं पंचविहे अभिगमेनं अभिगच्छ जहा उसमदत्तो जाव-तिविहाए पज्जुवासनाए पज्जुवासइ ।
७
तए णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स सेटिस तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकले जाब- आगाए आराहर
भवइ ||
सुदंसणसेद्विणा कालविसए पुच्छा
५ लए गं से सुदंसणे सेठी समणस्स भगवओ महावीरस्त अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठे उठाए उ उठेता सम भगवं महावीरं तिक्त आयाहि पाहणं करे, करेला वंद नस, वंदिला नसता एवं बवासी-
वण्णओ ।
६ 'कतिविहे णं भंते ! काले पण्णत्तं ?
सुदंसणा ! बिहे काले पण्णले तं जहा १ पमाणकाले २ अहाउनिव्वलिकाले ३ मरणकाले ४ अढाकाले ।।'
से किं तं पमाणकाले ?
1
पमाणकाले विहेपणले तं जहा-१ दिवसव्यमाणकाले २ राइप्यमाणकाले पचपोरिसिए दिवसे चउपोरिसिया राई भवइ ।" उनकोसिया अपंचमहत्ता दिवसात वा राईए वा पोरिसी भवद
जहणिया तिमुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ ।।
१ ठाणं अ० ४, उ० १, सु० २६४ ।
२
उत्त० अ० २६, गा० ११ और गा १७
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो ८ जदा णं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममहत्ता विवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, तदा णं कतिभागमुहत्तभागेणं परिहायमाणी
परिहायमाणी जहणिया तिमुहुत्ता विवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ? जदा णं जहण्णिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, तदा णं कतिभागमुहुत्तभागेणं परिवड्ढमाणी-परिवड्ढमाणी उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ ? सुदंसणा! जदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, तदा णं बावीससयभागमहत्तभागेणं परिहायमाणी-परिहायमाणी जहणिया तिमहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ। जदा वा जहणिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, तदा णं बावीससयभागमुहुत्तभागेणं परिवड्ढमाणी-परिवड्ढमाणी उक्कोसिया अद्धपंचममहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ॥ कदा णं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ ? कदा वा जहणिया तिमुहुत्ता दिबसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ ? सुदंसणा! जदा णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, तदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ, जहणिया तिमहत्ता राईए पोरिसी भवइ ।' जदा णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्तिया राई भवई, जहण्णिए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तदा णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता राईए
पोरिसी भवइ, जहणिया तिमुहत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ ॥ १० कदा णं भते ! उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवई ?
कदा वा उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ ? सुदंसणा! आसादपुण्णिमाए उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ ।
पोसपुण्णिमाए णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ॥' ११ अत्थि णं भंते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति ?
हंता अत्थि ॥ कदा णं भंते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति ? सुदंसणा! चेत्तासोयपुणिमासु, एत्थ णं दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति-पण्णरसमुहुत्ते दिवसे पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ ।
चउभागमुहत्तभागूणा चउमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ । से तं पमाणकाले ॥ १२ से किं तं अहाउनिव्वत्तिकाले ?
अहाउनिव्वत्तिकाले--जणं जेणं नेरइएण वा तिरिक्खजोणिएण वा मणुस्सेण वा देवेण वा अहाउयं निव्वत्तियं । से तं अहाउ-निव्वत्तिकाले ॥
१३ से कि तं मरणकाले ?
मरणकाले--जीवो वा सरीराओ सरीरं वा जीवाओ । से तं मरणकाले ॥ १४ से कि तं अद्धाकाले ?
अद्धाकाले-से णं समयट्ठयाए आवलियठ्ठयाए-जाव-उस्सप्पिणीट्ट्याए ।
१ सम० १८, सु० ८। २ सम० १२, सु० ८। ३ सम० २४, सु० ४ । २७, सु०६ । ३७ सु० ५ । ३६ सु० ४ । ४०, सु० ६,७ । ४ सम० १५, सु० ५।
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विमलतित्थे महब्बलो
एस णं सुदंसणा! अद्धा दोहाराछेदेणं छिज्जमाणी जाहे विभागं नो हव्वमागच्छइ, से तं समए समयट्ठयाए । असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा आवलियत्ति पवुच्चइ । संखेज्जाओ आवलियाओ ।
जहा सालिउद्देसए-जाव-सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परिमाणं'
१५ एएहि णं भंते ! पलिओवम-सागरोवमेहि कि पयोयणं?
सुदंसणा! एएहि पलिओवम-सागरोवमेहि नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाई मविज्जति ॥
१६
नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? . एवं ठिइपदं निरवसेसं भाणियव्वं-जावसम्वट्ठगसिद्धगदेवाण-पज्जत्तयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णता ॥'
सुदंसणसेटिणा पलिओवमादि खयावचयविसए पुच्छा १७ अत्थि णं भंते ! एएसि पलिओवम-सागरोवमाणं खए ति वा अवचए ति वा ? हंता अत्थि ॥
भगवया महावीरेण सुदंसणसेट्ठिणो पुन्वभववण्णणे महब्बल-कहा-कहणं १८ से केण→णं भंते ! एवं वुच्चइ--अत्थि णं एएसि पलिओवमसागरोवमाणं 'खएति वा' अवचएति वा ?
एवं खलु सुदसणा ! तेणं कालेण तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था-वण्णओ। सहस्संबवणे उज्जाणे-वण्णओ । तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे बले नाम राया होत्था-वण्णओ। तस्स णं बलस्स रण्णो पभावई नामं देवी होत्था-सुकुमालपाणिपाया-वण्णओ-जाव-पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ ।
पभावई-देवीए सुमीणे सीह-दसणं तए णं सा पभावई देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि . . . अद्धरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी अयमेयारूवं ओरालं-जाव-सस्सिरियं महा सुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा। हार-रयय-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेल-पंडुर-तरोरु-रमणिज्जं पेच्छणिज्जं...नहयलाओ ओवयमाणं निययवयणमतिवयं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा ।
२१
तए णं सा पभावती देवी अयमेयारूवं ओरालं-जाव-सस्सिरियं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया-जावधाराहयकलंबगं पिव समूसियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता सयणिज्जाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुठेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गइए जेणेव बलस्स रणो सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलं रायं इट्ठाहि-जाव
१ क-अणु० सु० ३६३-३९८ ।
ख-भग० स०६, उ०७, सु०४-७ । ग-ठाणं० अ० २, उ०१, सु०६७, ७४ । अ०२, उ० ४, सु० ९९ । अ० ८, सु० ६१७ ।
घ-भग० स० २५, उ०५, सु० २-१९ २ अणु० सु० ३८२ ।। ३ क-अणु० सु० ३८३-३९१ ।
ख-पण० प० ४, सु० ३३५-३४२ ।
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
गिराहि संलवमाणी संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहेत्ता बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीयित्ता आसत्था वीसस्था सुहासणवरगया बलं रायं ताहि इट्ठाहि-जाव-संलवमाणी संलवमाणी एवं वयासी"एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि सालिगणवट्टिए तं चेव-जाव-नियगवयणमइवयंतं सोहं सुविणे पासित्ता गं पडिबुद्धा, तण्णं देवाणुप्पिया ! एयस्स ओरालस्स-जाव-महासुविणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ?
बलेण रणा सुविणफलकहणं २२ तए णं से बले राया पभावईए देवीए अंतियं एयमह्र सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमाणदिए णदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए
हरिसबसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम-चंचुमालइयतणुए ऊसवियरोमकूवे तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता ईहं पविसइ, पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविण्णाणेणं तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेइ, करेत्ता पभावई देवि ताहि इट्ठाहि कंताहि-जाव-मंगल्लाहि मिय-महुर-सस्सिरीयाहि वहि संलवमाणे-संलवमाणे एवं वयासीओराले णं तुमे देवी ! सुविणे विडे, · · 'पुत्तलाभो देवाणुप्पिए ! रज्जलाभो देवाणुप्पिए ! एवं खलु तुम देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं - - ‘सुरूवं देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि ।
से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णाय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते वित्यिण्ण-विउल-बल-वाहणे रज्जवई रायाभविस्सइ। तं ओराले णं तुमे देवी ! सुविणे दिठे-जाव-आरोग्ग-तुट्ठि-दोहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवी ! सुविणेदिठे त्ति कटु पभावति देवि ताहि इट्ठाहि-जाव-वहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुबहति ॥
२४ तए णं सा पभावती देवी बलस्स रण्णो अंतियं एयम8 सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए
अंजलि कटु एवं वयासी--
एवमेयं देवाणुप्पिया ! - - ‘से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कटु तं सुविणं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता बलेणं रण्णा अन्भणुण्णाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुट्ठइ, अब्भुटुत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सए सणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जसि निसीयति, निसीयित्ता एवं वयासो'मा मे से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुविणे अण्णेहि पावसुमिणेहि पडिहम्मिस्सइ ति कट्ट देवगुरुजणसंबद्धाहि पसत्याहि मंगल्लाहि 'धम्मियाहि कहाहि सुविणजागरियं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरड ॥
सुविणलक्खण-पाढहिं विणफलकहणं २५ तए णं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दाबेद्द, सद्दावेत्ता एवं वयासी--
'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं-जाब-गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य सीहासणं रएह, रएता ममेतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ तए णं ते कोडुबियपुरिसा-जाव-पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं-जाव-गंधवट्टिभूयं करेत्ता य कारवेत्ता य सीहासणं रएत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति॥
२६ तए णं से बले राया पच्चूसकालसमयंसि सयणिज्जाओ अब्भुट्ठ इ, अन्भुट्ठत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला
तेणेव उवागच्छइ, अट्टणसालं अगुपविसइ, जहा ओववाइए तहेव मज्जणघरे-जाव-ससिव्व पियदसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीयित्ता अप्पणो उत्तरपुरथिमे दिसीभाए अट्रभद्दासणाई सेयवस्थपच्चत्युयाई सिद्धत्थगक यमंगलोवयाराइं रयावेइ, रयावेत्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणा-मणि-रयण-मंडियं-जावजवणियं अंछावेइ, अंछावेत्ता नाणामणिरयणभत्तिचित्तं - 'सुमउयं पभावतीर देवीए भद्दासणं रयावेइ, रयावेत्ता कोडबियपुरिसे सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं वयासि-- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह ।
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विमलतित्थे महब्बलो .
तए णं ते कोडुबियपुरिसा-जाव-पडिसुणेत्ता बलस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता' . 'हत्थिणपुर नगरं मज्झंमझेणं जेणेव तेसि सुविणलक्खणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए सहावेति ॥ तए णं ते विणलक्खणपाढगा बलस्स रण्णो कोडुबियपुरिसेहि सद्दाविया-समाणा-जाव-सएहि-सएहि गेहेहितो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता इतिथणपर नगर मझमज्झेणं जेणेव बलस्स रण्णो भवणवरवडेंसए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिति, मिलिता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट बलं रायं जएणं विजएणं वद्धाति ।
२७ तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलेणं रण्णा बंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुवण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ॥
तए ण से बले राया पभाति देवि जवणियंतरियं ठावेइ, ठावेत्ता पुप्फ-फल-पडिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं ते सुविणलक्खणपाढए एवं वयासी-- एवं खल देवाणप्पिया ! पमावती देवी अज्ज तंसि तारितगंसि वासघरंसि-जाव-सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तण्णं देवाणुपिया ! एयस्स ओरालस्स-जाव-महासुविणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्ति विसेसे भविस्सइ ? तए णं ते सविणलक्षणपाडगा बलस्स रणो अंतियं एयमट्ठ सोच्चा निसम्म ' ' 'बलस्स रणो पुरओ सविणसत्थाई उच्चारेमाणाउच्चारेमाणा एवं वयासी-- एवं खल देवाणप्पिया! अम्ह सुविण सत्थंसि ' ' मंडलियमायरो मंडलियंसि गर्भ वक्कममाणंसि एएसि णं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अग्णयर एग महासविणं पासिता णं पडिबुझंति । इमे य णं देवाणुप्पिया ! पभावतीए देवीए एगे महासुविणे दि, तं ओराले णं देवाणुप्पिया ! पभावतीए देवीए सुविणे दिटु-जाव-आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए णं देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठ, अत्थलाभो देवाणुप्पिया ! भोगलाभो देवाणुप्पिया ! पुत्तलाभो देवाणुप्पिया ! रज्जलाभो देवाणुप्पिया ! एवं खलु देवाणुप्पिया! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कताणं तुम्हें कुलके-जाव-देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिति । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते वित्थिण्ण-विउलबल-वाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा । तं ओराले णं देवाणुप्पिया ! पभाबतीए देवीए सुविणे दिट्ठ-जाव-आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउकल्लाण-मंगल्लकारए पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठ ॥
पभावइए बलेण रण्णा पुणो सुविणफल-कहणं २८ तए णं से बले राया सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयम? सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए
अंजलि कटु ते सुविणलक्खणपाढगे एवं वयासी-- एवमेयं देवाणुप्पिया-जाव-से जहेयं तुम्भे वदह त्ति कटु तं सुविणं सम्म पडिच्छ, पडिच्छित्ता सुविणलक्खणपाढए । 'पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणाओ अब्भुट्टइ, अब्भुट्टत्ता जेणेव पभावती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पभावति देवि ताहि इट्टाहि -जाव-मिय-महुर-सस्सिरीयाहि वहिं संलवमाणे-संलवमाणे एवं वयासी-- एवं खल देवाणुप्पिए ! • • 'इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिट्ट, तं ओराले णं तुमे देवी ! सुविणे दि8-जाव-रज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा, तं ओराले णं तुमे देवी ! सुविणे ट्ठि-जाव-आरोग्ग-तुट्टि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुदिणे दिट्ठत्ति कटु पभावति देवि ताहि इट्टाहि-जाव-मिय-महुर-सस्सिरीयाहि वहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुबूहइ ।
बलं पडि महब्बलस्स जम्मनिवेयणं २९ तए णं सा पभावती देवी बलस्स रण्णो अंतियं एयम8 सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि
कटु एवं वयासी-- एयमेयं देवाणुप्पिया!-जाव-तं सुविणं सम्भं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणा-मणि-रयण-भत्ति-चित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुट्ठइ, अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणमणुपविट्ठा ।
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धम्मकहाणुओगे दुतीयोबंधो
३० तए णं सा पभावती देवी व्हाया कयबलिकम्मा-जाव-सव्वालंकारविभूसिया' तं गम्भं सुहंसुहेणं-परिवहति ॥
तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंबियाणं वीइक्कताणं सुकुमालपाणिपाय अहोणपडिपुण्ण-पंचिदिय
सरीरं लक्खण-वंजणगुणोववेयं माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरुवं दारयं पयाया ॥ ३१ तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपडियारियाओ पभावति देवि पसूयं जाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता
करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु बलं रायं जएणं विजएणं बद्धावेति, बद्धावेत्ता एवं वयासी-- एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं-जाब-सुरुवं दारगं पयाया । तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं
पियट्टयाए पियं निवेदेमो । पियं भे भवतु ॥ ३२ तए णं से बले राया अंगपडियारियाणं अंतियं एयम सोच्चा निसम्म हदुतुट्ठ-चित्तमाणंदिए गंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए
हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम-चंचमालइयतणुए ऊसवियरोम-कूवे तासि अंगपडियारियाणं मउडवज्ज जहामालियं ओमोयं दलयइ, दलयित्ता सेतं रययामयं विमलसलिलपुण्णं भिगारं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता मत्थए धोवइ, धोवित्ता विउलं जीविया. रिहं पीइदाणं दलयइ, बलयित्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।
जम्ममहुस्सवो ३३ तए णं से बले राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेई, सद्दावेत्ता एवं बयासी
खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हत्यिणापुरे नयरे चारगसोहणं करेह, करेत्ता माणुम्माणवड्ढणं करेह, करेत्ता हत्थिणापुरं नगरं सभितरबाहिरियं आसिय-संमज्जिवलितं-जाव-गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेता य कारवेत्ता य जूबसहस्सं वा चक्कसहस्सं वा पूयामहामहिमसंजुत्तं उरसवेह, उस्सवेत्ता ममेतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ तए णं ते कोडुंबियपुरिसा बलेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा-जाव-तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ तए णं से बले राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव-जाव-मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उस्सुक्कं उक्करं उक्किटु अदेज्ज अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिम अधरिमं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालाचराणुचरियं
अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलियं सपुरजणजाणवयं दसदिवसे ठिइवडियं करेति ।। ३४ तए णं से बले राया दसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीए सयए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे
य दवावेमाणे य, सयए य साहिस्सिए य सयसाहस्सिए य लंभे पडिन्छेमाणे य पडिच्छावेमाणे य एवं यावि विहरइ॥ महब्बल ति नामकरणं अण्णे य संखारा तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो-जाव-अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्ज करेंति--जम्हा णं अम्हं इमे दारए बतस्स रण्णो पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं 'महम्बले महब्बले' । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नाम
धेज्जं करेंति महब्बले ति ॥ ३६ तए णं से महम्बले दारए पंचधाईपरिग्गहिए, एवं जहा दढपइण्णस्स-जाव-निब्वाय-निव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्दति ॥
तए णं तस्स महब्बलस्स दारगस्स अम्मापियरो अणुपुब्बेणं ठिइवडियं वा चंदसूरदंसावणियं वा जागरियं वा नामकरणं वा परंगामणं वा पचंकामणं वा पजेमामणं वा पिंडवद्धणं वा पजपावणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं वा, अण्णाणि य बहूणि गब्भाधाण-जम्मणमादियाई कोउयाई करेंति ॥
सिक्खागहणं पाणिगहणं य ३७ तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो सातिरंगट्टवासगं जाणित्ता सोभणसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेति,
एवं जहा वढप्पइण्णे-जाव-अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था ।। ३८ तए णं तं महब्बलं कुमारं उम्मुक्कबालभावं-जाव-अलं भोगसमत्थं विजाणित्ता अम्मापियरो अट्ठ पासायवडेंसए काति--अब्भुग्गय
मूसिए-पहसिए इव वण्णओ जहा रायपसेणइज्जे-जाव-पडिरूवे । तेसि गं पासायवडेंसगाणं बहुमज्मदेसभागे, एत्थ णं महेगं भवणं कारेंति-अणेगखंभसय संनिविट्ठवण्णओ जहा रायपसेणइज्जे पेच्छाघरमंडवंसि-जाव-पडिहवे ॥
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विमलतित्थे महब्बलो
तए णं तं महब्बल कुमारं अम्मापियरो अण्णया कयाइ सोभणसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त-महत्तंसि व्हायं कयबलिकम्म कयकोउयमंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणग-व्हाण-गीय-वाइय-पसाहण-अट्ठगतिलग-कंकण-अविहवबहुउवणीयं मंगलसुजंपिएहि य वरकोउयमंगलोवयार-कयसंतिकम्मं सरिसियाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रुव-जोव्वणगुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मंगलपायच्छित्ताण सरिसएहि रायकुलेहितो आणिल्लियाण अटण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हाविसु ।
३९
तए णं तस्स महाबलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं पीइदाणं दलयंति, तं जहा-- अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओअट्र मउडे मउडापवरे, अट्ट कुंडलजोए कुंडलजोयप्पवरे, अट्ट हारे हारप्पवरे, अट्ठ अवहारे अवहारप्पवरे, अट्ठ एगावलीओ एगावलिप्पवराओ, एवं मुत्तावलीओ, एवं कणगावलीओ, एवं रयणाणावलीओअट्ठ कडगजोए कडगजोयप्पवरे, एवं तुडियजोए । अट्ठ खोमजुयलाई खोमजुयलप्पवराई । एवं वडगजुयलाई, एवं पट्टजुयलाई, एवं दुगुल्लजुयलाई । अट्ट सिरीओ, अट्ठ हिरीओ। एवं धिईओ, कित्तीओ, बुद्धीओ, लच्छीओ। अट्ठ नंदाई, अट्ठ भद्दाई, अट्ठ तले तलप्पवरे सव्वरयणामए, नियगवरभवणकेऊ । अट्ठ झए झयप्पवरे, अट्ठ वए वयप्पवरे, दसगोसाहस्सिएणं वएणं । अट्ठ नाडगाई नाडगप्पवराई, बत्तीसइबद्धेणं नाडएणं । अट्ठ आसे आसप्पवरे, सव्वरयणामए सिरिघरपडिरूवए । अट्ट हत्थी हत्थिप्पवरे सब्बरयणामए सिरिघरपडिरूवए, अट्ठ जाणाई जाणप्पबराई, अट्ठ जुगाई जुगप्पवराई, एवं सिबियाओ, एवं संदमाणीओ, एवं गिल्लीओ, थिल्लोओ। अट्ट वियडजाणाई वियडजाणप्पवराई, अट्ठ रहे पारिजाणिए, अट्ठ रहे संगामिए, अट्ठ आसे आसप्पवरे, अट्ट हत्थी हत्थिप्पवरे । अट्ठ गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं गामेणं । अट्ठ दासे दासप्पवरे, एवं दासीओ, एवं किंकरे, एवं कंचुइज्जे, एवं वरिसधरे, एवं महत्तरए । अट्ट सोवण्णिए ओलंबणदीवे, अट्ठ रुप्पामए ओलंबणदीवे, अट्ट सुवण्णरुप्पामए ओलंबणदीवे । अट्ट सोवण्णिए उक्कंबणदीवे, एवं चेव तिण्णि वि, अट्ठ सोवण्णिए पंजरदीवे, एवं चेव तिण्णि वि । अट्ट सोवण्णिए थाले, अट्ठ रुप्पामए थाले, अट्ठ सुवण्णरुप्पामए थाले, अट्ट सोवणियाओ पत्तीओ ३, अट्ठ सोवणियाई थासगाई ३, अट्ठ सोवष्णियाई मल्लगाई ३, अट्ठ सोवणियाओ तलियाओ ३ । अट्ठ सोवणियाओ कविचियाओ ३, अट्ठ सोवण्णिए अवएडए ३, अट्ठ सोवष्णियाओ अवयक्काओ ३, अट्ठ सोवण्णिए पायपीढए ३ । अट्ठ सोवणियाओ भिसियाओ ३, अट्ठ सोवणियाओ करोडियाओ ३, अट्ट सोवण्णिए पल्लंके ३, अट्ठ सोवणियाओ पडिसेज्जाओ ३ । अट्ट हंसासणाई, अट्ट कोंचासणाई, एवं गरलासणाई, उन्नयासणाई, पणयासणाई, दोहासणाई, भद्दासणाई, पक्खासणाई, मगरासणाई, अट्ट पउमासणाई, अट्ठ दिसासोवत्थियासणाई । अट्ट तेल्ल-समुग्गे, जहारायप्पसेणइज्जे अट्ठ कोट्ठ-समुग्गे, एवं पत्त-चोयग-तगर-एल-हरियाल-हिंगुलय-मणोसिल-अंजण-समुग्गे, अट्ठ सरिसव-समुग्गे । अट्ठ खुज्जाओ जहा ओववाइए-जाव-अट्ठ पारिसीओ,
ध० क०२
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
अट्ठ छत्ते, अट्ठ छत्तधारीओ चेडीओ, अट्ट चामराओ, अट्ठ चामरधारीओ चेडीओ। अट्ट तालियंटे, अट्ठ तालियंटधारीओ घेडीओ, अट्ठ करोडियाओ, अट्ठ करोडियाधारीओ चेडीओ, अट्ट खीरधाईओ, अढ मज्जणधाईओ, अट्ठ मंडणधाईओ अट्ठ खेल्लावणधाईओ, अट्ठ अंकधाईओ, अट्ठ अंगमद्दियाओ, अट्ठ उम्महियाओ अट्ठ पहावियाओ, अट्ठ पसाहियाओ, अट्ठ वण्णगपेसीओ, अट्ठ चुण्णगपेसीओ, अट्ठ कोडागारीओ, अट्ठ दवकारीओ, अट्ठ उवत्थाणियाओ, अट्ठ नाडइज्जाओ, अट्ठ कोडुबिणीओ, अट्ठ महाणसिणीओ, अट्ठ भंडागारिणीओ, अट्ठ अब्भाधारिणीओ, अट्ठ पुप्फधरणीओ, अट्ठ पाणिधरणीओ, अट्ट बाहिरियाओ, अट्ट सेज्जाकारीओ, अट्ठ अभितरियाओ पडिहारीओ, अट्ट बाहिरियाओ पडिहारीओ, अट्ठ मालाकारीओ, अट्ठ पेसणकारीओ, अण्णं वा सुबहुं हिरण्णं वा सुवण्णं वा कंस वा दूसं वा विउलधणग-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय
संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्ज,1 अलाहि-जाव-आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं, पकामं भोत्तुं, पकामं परिभाएउं ।। ४० तए णं से महब्बले कुमारे एगमेगाए भज्जाए एगमेगं हिरण्णकोडि दलयइ, एगमेगं सुवण्णकोडि दलयइ, एगमेगं मउडं मउडप्पवरं
दलयइ, एवं तं चेव सव्वं-जाव-एगमेगं पेसणकारि दलयइ, अण्णं वा सुबह हिरण्ण वा सुवण्णं वा कंसं वा दूसं वा विउलधणकणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्ज, अलाहि-जाव-आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं, पकामं
भोत्तुं, पकामं परिभाए। . तए णं से महब्बले कुमारे उप्पि पासायवरगए जहा जमाली-जाव-पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ।।
धम्मघोसागमणं ४१ तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे जाइसंपन्ने वण्णओ जहा केसिसामिस्स-जाव-पंचहि
अणगारसहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणापुरे नगरे, जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। तए णं हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा-जाव-परिसा पज्जुवासइ॥ महब्बलकुमारेण धम्मसवणं तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स तं महयाजणसई वा जगवूहं वा-जाव-जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा एवं जहा जमालो तहेव चिता, तहेव कंचुइज्ज-पुरिसं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज हत्थिणापुरे नयरे इंदमहे इ वा-जाव-निग्गच्छति ॥ तए णं से कंचुइ-पुरिसे महब्बलेणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हठ्ठतु? धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छिए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु महब्बलं कुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी--
४२ तए
१ पीइदाणं गाहाओ:-अट्ठहिरण्ण-सुवन्नयकोडीओ मउडकुंडलाहारा । अट्ठट्ठहार एकावली उ, मुत्तावली अट्ठ ॥१॥
कणगावलि-रयणावलि-कडगजुगा तुडियजोयखोमजुगा । वडजुग-पट्टजुगाई, दुकूलजुगलाई अट्ठ ।।२।। सिरि-हिरि-धिइ-कित्ती उ, बुद्धी लच्छी य होति अट्ठ । नंदा भद्दा य तला, झय-वय-नाडाई आसेव ।।३।। हत्थी जाणा जुग्गाओ, सीया तह संदमाणी गिल्लीओ।थिल्ली इ वियड जाणा, रह गामा दास दासीओ ।।४।। किंकर-कंचुइ-मयहर, वरिसधरे तिविह दीव थाले य । पाई थासग पल्लग, कतिविय अवएड अवपक्का ।।५।। पावीढ भिसिय करोडियाओ पल्लंकए य पडिसिज्जा । हंसाइहि विसिट्टा, आसणभेया उ अटूटू ।।६।। हंसे कुंचे गरुडे ओणय पणए य दीहभद्दे य । पक्खे मयरे पउमे, होइ दिसा सोत्थिए क्कारे ।।७।। तेल्ले कोटुसमुग्गा पत्ते चोए य तगर एला य । हरियाले हिंगुलए, मणोसिला सासवसमुग्गे ।।८।। खुज्जा चिलाइ वामणि बडभीओ बब्बरीओ वसियाओ । जोणिय पल्हवियाओ, इसिणिया घोरुणिया य ।।९।। लासिय लउसिय दमिणी, सिंहली तह आरबि पुलिंदी य । पक्कणि वणि मुरंढी, सबरीओ पारसीओ य ।।१०।। छत्तधरी चेडीओ, चामरधर-तालियंटधरीओ । सकरोडियाधरीओ, खीराति पंच धावीओ ।।११।। अनुगमद्दियाओ उम्मद्दिग-विगमंडियाओ य । वण्णय-चुण्णय-पीसीय कीलाकारी य दवगारी य ।।१२।। उच्छाविया उ तह, नाडइल्ल कोडुबिणी महाणसिणी । भंडारि अज्जधारि, पुप्फधरी पाणीयधरी य ॥१३॥ वलकारि य सेज्जाकारियाओ, अभंतरी उ बाहिरिया । पडिहारी मालारी, पेसणकारी उ अट्ट ।।१४।।
णाया० सु०१, अ० १, स०२१ टीका ।
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विमलतित्थे महब्बलो
नो खल देवाणुप्पिया ! अज्ज हत्थिणापुरे नगरे इंदमहे इ वा-जाव-निग्गच्छंति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नाम अणगारे हथिणापुरस्स नगरस्स बहिया सहसंबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा, भोगा-जाव-निग्गच्छति ।।
महब्बलेण पब्वज्जाभिलासकहणं ४३ तए णं से महब्बले कुमारे तहेव रहवरेणं निग्गच्छति । धम्मकहा जहा केसिसामिस्स।
सो वि तहेव अम्मापियरं आपुच्छइ, नवरं--धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । तहेव वत्तपरिवत्तिया, नवरं--इमाओ य ते जाया ! विउलरायकुलबालियाओ कलाकुसलसव्वकाललालिय-सुहोचियाओ सेसं तं चैव-जावताहे अकामाई चेव महब्बलकुमार एवं वयासी-- तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरि पासित्तए।
तए णं से महब्बले कुमारे अम्मापिउ-वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। ४४ तए णं से बले राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, एवं जहा सिवभहस्स तहेव रायाभिसेओ भाणियव्वो-जाव अभिसिंचति,
करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु महब्बलं कुमारं जएणं विजएणं वद्धावेति, वद्धावेत्ता एवं यवासी-- भण जाया ! किं देमो ? किं पयच्छामो ? सेसं जहा जमालिस्स तहेव जाव
महब्बलपव्वज्जा देवभवो सुदंसणरूवेण जम्म य ४५ तए णं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ
छट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्ध-मासखमणेहि विचितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालस-वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणाई, बहूई जोयणसयाई, बहूई जोयणसहस्साई, बहूई जोयणसयसहस्साई, बहूओ जोयणकोडीओ, बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिदे कप्पे वीईवइत्ता बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णता ।
तत्थ णं महब्बलस्स वि देवस्स बस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। ४६ से णं तुम सुदंसणा ! बंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाई 'दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्ता ताओ चेव देवलोगाओ आउक्खएणं
भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणियग्गामें नगरे सेटिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाए। तए णं तुमे सुदंसणा ! उम्मुक्कबालभावेणं विण्णाय-परिणयमेत्तेणं जोवणगमणुप्पत्तेणं तहारूवाणं थेराणं अंतियं केवलिपग्णत्ते धम्मे निसंते, सेवि य धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए।
तं सुट्ठ णं तुम सुदंसणा ! इदाणि पि करेसि । ४७ से तेण?णं सुदंसणा ! एवं वुच्चइ--अस्थि णं एतेसि पलिओवम-सागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा ॥
सुदंसणस्स जातीसरणं णाणं पत्वज्जाइं य । तए णं तस्स सुदंसणस्स सेट्ठिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम→ सोच्चा निसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहि विसुज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णीपुग्वे जातीसरणे
समुप्पन्न, एयम४ सम्म अभिसमेति ॥ ४९ तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणेण भगवया महावीरेणं संभारियपुत्वभवे दुगुणाणीयसड्ढसंवेगे आणंदसुपुण्णनयणे समणं भगवं महावीर
तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी---- एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते !--से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कटु उत्तर पुरत्थिमं विसीभार्ग अवक्कमइ, सेसं जहा उसभदत्तस्स-जावसव्वदुक्खप्पहीणे, नवरं--चोइस पुवाई अहिज्जइ, बहुपडिपुण्णाई दुवालस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, सेसं तं चेव ।। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ।।
भग० स०११, उ० ११ ।
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२. मुणिसुव्वयतित्थे कत्तियसेट्ठिआईणं कहाणयं
सक्कस्स महावीरसमोसरणे नट्टविही तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नाम नगरी होत्था--वण्णओ । बहुपुत्तिए चेइए--वण्णओ । सामी समोसढे-जावपज्जुवासइ । तेणं कालेणं तेणं समएण सक्के देविदे देवराया वजपाणी पुरंदरे एवं जहा सोलसमसए बिइय उद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमाणेणं आगओ । नवरं--एत्थ आभियोगा वि अत्थि -जाव - बत्तीसतिविहं नट्टविहि उवयंसेति उबदसेत्ता-जाव-पडिगए ॥
सक्कस्स पुत्वभव-पुच्छा ५१ भंते त्ति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-"जहा तइएसए ईसाणस्स तहेव
कूडागार-विट्ठतो, तहेव पुन्वभवपुच्छा-जाव-अभिसमन्नागए ?"
सक्कस्स पुत्वभवो कत्तिय सेट्री ५२ गोयमादि ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं बयासी
एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं जंबुद्दीवे दोघे भारहे वासे हथिणापुरे नाम नगरे होत्था--वण्णओ । सहसंबवणे उज्जाणे-वण्णओ। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे कत्तिए नाम सेट्ठी परिवसति अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए नेगमपढमासणिए, नेगमट्ठसहस्सस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कोडंबेसु य-एवं जहारायप्पसेणइज्जे चित्ते-जाव-चक्खुभूए, नेगमट्टसहस्सस्स सयस्स य कुटुंबस्स आहेवच्चं-जाव-कारेमाणे पालेमाणे, समणोवासए, अहिगयजीवाजीवे-जाव-अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ हत्थिणापुरे मुणिसुव्वयागमणं तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा आदिगरे जहा सोलसमसए तहेव-जाव-समोसढे-जाव-परिसा पज्जुवासइ । तए णं से कत्तिए सेट्ठी इमीसे कहाए लढे समाणे हट्टतुट्टे एवं जहा एक्कारसमसए सुदंसणे तहेव निग्गओ-जाव-पज्जुवासति ॥ तए णं मुणिसुव्वए अरहा कत्तियस्स सेट्ठिस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ-जाव-परिसा पडिगया ॥
कत्तियस्स पव्वज्जा-संकप्पो
५४ तए णं से कत्तिए सेट्ठी मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुठे उद्याए उठेति, उद्वेत्ता मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ
नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- एवमेयं भंते ! -जाव-से जहेयं तुम्भे बवह जं, नवरं-देवाणुप्पिया! नेगमट्ठसहस्सं आपुच्छामि, जेट्टपुत्तं च कुडुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह । तए णं से कत्तिए सेट्ठी-जाव-पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव हथिणापुरे नगरे जेणेव सए गेहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नेगमसहस्सं सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए।
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मुणिसुब्वयतित्थे कत्तियसेट्ठि आईणं कहाणयं
१३
५५
तए णं अहं देवाणुप्पिया ! संसारभयुश्विग्गे - जाव-पव्वयामि, तं तुबे णं देवाणुप्पिया! कि करेह, कि बवसह, कि भे हियइन्छिए, कि भे सामत्थे ?" तए णं तं नेगमट्ठसहस्सं पितं कत्तियं सेट्टि एवं वयासीजइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! संसारभयुग्विग्गा-जाव-पव्वयह, अम्हं देवाणुप्पिया ! के अण्णे आलंबे वा, आहारे वा, पडिबंधे वा ? अम्हे वि णं देवाणुप्पिया ! संसारभयुब्विग्गा भीया जम्मण-मरणाणं देवाणुप्पिएहि सद्धि मुणिसुब्वयस्स अरहओ अंतियं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वयामो ॥ तए णं से कत्तिए सेट्ठी तं नेगमट्ठसहस्सं एवं वयासोजदि णं देवाणुप्पिया ! संसारभयुब्बिग्गा भीया जम्मणमरणाणं मए सद्धि मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयह, तं गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! सएसु गिहेसु, विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेह, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेह सम्माणेह, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरओ जेदुपुत्ते कुडुबे ठावेह, ठावेत्ता तं मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्टपुत्ते आपुच्छह, आपुच्छित्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सोयाओ दुरुहइ, दुरुहिता मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परिजणेण जेट्टपुत्तेहि य समणुगम्ममाणमग्गा सब्बिड्ढीए-जाव-दुंदुहि-निग्घोसनादियरवेणं अकालपरिहीणं चेव मम अंतियं पाउन्भवह ॥ तए णं तं नेगमट्ठसहस्सं पि कत्तियस्स सेट्ठिस्स एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव साई-साइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्टपुत्ते कुडंबे ठावेति, ठावेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण जेट्टपुत्ते य आपुच्छइ, आपुच्छित्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सोयाओ दुरुहति, दुरुहिता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं जेट्टपुत्तेहि य समणुगम्ममाणमग्गा सविड्ढीए-जाव-दुंदुहि-निग्घोसनादिय
रवेणं अकालपरिहीणं चेव कत्तियस्स सेटिस्स अंतियं पाउन्भवंति ।। ५७ तए णं से कत्तिए सेट्ठी विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेति जहा गंगदत्तो-जाव-सीयं दुरूहिति, दुरूहित्ता मित्त-नाइ
नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं जेट्टपुत्तेणं नेगमट्ठसहस्सेण य समणुगम्ममाणमग्गे सविड्ढीए-जाव-बंदुहि-निग्घोसनादियरवेणं हथिणापुरं नगरं मझमजोणं निग्गच्छद्द, जहा गंगदत्तो-जाव-आलित्ते णं भंते ! लोए, पलिते णं भत्ते ! लोए, आलित्त-पलित्ते णं भंते ! लोए-जाव-आणुगामियत्ताए भविस्सति, तं इच्छामि णं भंते ! नेगमट्ठसहस्सेण सद्धि सयमेव पव्वावियं-जाव-धम्ममाइक्खियं ॥
नेगमट्ठसहस्सेणं सद्धि कत्तियस्स पव्वज्जा ५८ तए णं मुणिसुव्वए अरहा कत्तियं सेट्ठि नेगमट्टसहस्सेणं सद्धि सयमेव पवावेति-जाव-धम्ममाइक्खइ--एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं,
एवं चिट्ठियव्वं-जाव-संजमियव्वं ॥ तए णं से कत्तिए सेट्ठी नेगमटुसहस्सेण सद्धि मुणिसुव्वयस्स अरहओ इमं एयारूवं धम्मियं उवदेसं सम्म पडिवज्जइ, तभाणाए तहा गच्छति-जाव-संजमेति ॥ तए णं से कत्तिए सेट्ठी नेगमट्ठसहस्सेणं सद्धि अणगारे जाए-ईरियासमिए-जाव-गुत्तबंभयारी ॥ कत्तियस्स सक्कत्तं भावीकाले सिद्धी य । तए णं से कत्तिए अणगारे मुणिसुव्वयस्स अरहो तहारूवाणं थेराणं अंतियं सामाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जिता बहूहि चउत्थ-छटट्ठम-दसम-दुवालसेहि, मासद्धमासखमणेहि विचिहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालस-वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेइ, झोसेत्ता सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदेति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मव.सए विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स
असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए सक्के देविदत्ताए उववन्ने ॥ ६० तए णं से सक्के देविदे देवराया अहणोववण्णमेत्तए सेसं जहा गंगवत्तस्स-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति, नवरं-ठिती दो सागरोव
माइं, सेसं तं चेव ॥ सेवं भंते ! सेवं भत्ते ! ति ॥
भग० स० १८, उ०२।
ए अत्ताणं झोसेह, अहि अप्पाणं भावमा पुवाई अहिज्जइ, अहिजि
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३. मुणिसुव्वयतित्थे गंगदत्तो
गंगदत्तस्स पुव्वभव - पुच्छा
६१ अहो भंते ! गंगदत्ते देवे महिड्दिए महज्जुइए महम्बले महायसे महेसक्खे ।
गंगदत्तणं भंते ! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती किष्णा लद्धा जाव अभिसमण्णागया ?
६२ गोयमादी ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं बयासी --
एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था -- वण्णओ । सहसंबवणे उज्जाणे -- वण्णओ ।
तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे गंगदत्ते नाम गाहावती परिवसति-- अड्ढे जाव- बहुजणस्स अपरिभूए ।
हथिणारे मुणिसुव्वयागमणं, गंगदत्तेण य धम्मसवणं
६३ तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा आदिगरे- जाव- सव्वण्णू सव्ववरिसी - जाव सीसगणसंपरिवुडे पुव्वाणुपुव्यि चरमाणे गामाणुगामं वइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव सहसंब-वणे उज्जाणे - जाव- विहरति । परिसा निग्गया- जाव- पज्जुवा सति ।
1
६४ तए णं से गंगदत्ते गाहावती इमीसे कहाए लट्ठे समाने हतुट्ठे पहाए कयबलिकम्मे - जाव- अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं हत्थिणापुरं नगरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे, जेणेव मुणिसुव्वए अरहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता मुणिसुव्वयं अरहं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ-जाब - तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासति ।
तए णं मुनिसुव्वए अरहा गंगदत्तस्स गाहावतिस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ - जाव-परिसा पडिगया ॥
तए णं से गंगदत्ते गाहावती मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे उट्ठाए, उट्ठेति, उट्ठेत्ता मुणिसुव्वयं अरहं वंदs नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-
सहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं- जाव से जहेयं तुभे वदह, जं नवरं देवाणुप्पिया ! जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवाप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि ।
अहासु देवाणुपिया ! मा पडिबंधं करेह |
गंगदत्तस्स पव्वज्जा, देवत्तं य
६५
तए णं से गंगदत्ते गाहाबई मुणिसुव्वएणं अरया एवं वृत्ते समाणे तुट्ठे मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियाओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव सए गिहे तेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता विउलं असण- पाण- खाइम साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेति, आमंतेत्ता तओ पच्छा व्हाए जहा पूरणे जाव- जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेति । तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छर, आपुच्छित्ता पुरिससहस्सवार्हाणि सीयं दुरुहति, दुरुहित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं जेट्टपुत्तेण य समणुगम्ममाणमग्गे सव्विड्ढीए - जाव- दुंदुहि निग्घोसना दितरवेणं हत्थिणागपुरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छिता छत्तादिते तित्थगिरातिसए पासति । एवं जहा उद्दायणे जाव सयमेव आभरणे ओमुयइ,
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अरिट्टनेमितित्थे चित्तसंभूइज्जकहाणयं
ओमुइता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति, करेत्ता जेणेव मुणिसुब्धए अरहा एवं जहेव उद्दायणे तहेव पव्वइए, तहेव एक्कारस अंगाई अहिज्जइ-जाव-मासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेइ, झूसेत्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदेति, छेवेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे उबवायसभाए देवसयणिज्जंसि - जाब-गंगदत्तदेवत्ताए उववन्ने । तए णं से गंगदत्तं देवे अहणोववन्नमेत्तए समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तभावं गच्छति, तं जहा--
आहारपज्जत्तीए-जाव-भासा-मणपज्जत्तीए । ६६ एवं खल गोयमा ! गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्या देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जती से विश्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए ।
गंगदत्तस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिति पण्णता ? गोयमा ! सत्तरस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।
गंगदत्तस्स सिद्धी ६७ गंगदत्ते णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहि गच्छिहिति ? कहि
उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥
भग० स० १६, उ० ५
४. अरिट्टनेमितित्थे चित्तसंभूइज्जकहाणयं ।
बंभदत्त-चित्त-संभआणं जम्मकहणं ६८ जाईपराजिओ खलु, कासि नियाणं तु हथिणपुरम्मि । 'चुलणीए बंभदत्तो, उववन्नो पउमगुम्माओ ॥१॥
कंपिल्ले संभूओ, चित्तो पुण जाओ पुरिमतालम्मि । सेटुिकुलम्मि विसाले, धम्म सोऊण पव्वइओ ॥२॥ कंपिलम्मि चित्तसंभयाणमागामणं पुत्वभवकहणं य कंपिलम्मि य नयरे, समागया दो वि चित्तसंभूया । सुह-दुक्ख-फलविवागं, कति ते एक्कमेक्कस्स ॥३॥ चक्कवट्टी महिड्ढीओ, बंभदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेणं, इमं वयणमब्बबी ॥४॥ आसीम भायरा दोवि, अन्नमन्नवसाणुगा । अन्नमन्नमणुरत्ता, अन्नमन्न-हिएसिणो ॥५॥ दासा दसण्णे आसी, मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीराए, सोवागा कासिभूमिए ॥६॥ देवा य देवलोगम्मि, आसि अम्हे महिड्ढिया । इमा णो छट्ठिया जाई, अन्नमन्नेण जा विणा ॥७॥
६९
र
- कम्मफलचिता ७० कम्मा नियाणपयडा, तुमे राय ! विचितिया। तेसि फलविवागेण, विप्पओगमुवागया ॥८॥
सच्च-सोय-प्पगडा, कम्मा मए पुरा कडा। ते अज्ज परिभुंजामो, किं नु चित्ते वि से तहा? ॥९॥ सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहि, आया ममं पुण्णफलोववेए ॥१०॥ जाणाहि संभूय ! महाणुभाग, महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं ! इड्ढी जुई तस्स वि य प्पभूया ॥११॥ महत्थरूवावयणऽप्पभूया, गाहाणुगीया नरसंघमज्झे । जं भिक्खुणो सीलयुणोववेया, इहज्जयंते समणो मि जाओ ।१२॥
व राजा मानव तस्य विवि मम
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
बंभदत्तण चित्तं पडिभोगासेवणामंतणं ७१ उच्चोयए मह कक्के य बंभे, पवेइया आवसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं, पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥१३॥
नदेहि गीएहि य वाइएहि, नारीजणाहिं परिवारयंतो । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू ! मम रोयई पव्वज्जा ह दुक्खं ॥१४॥
चित्तमणिणा कामभोगस्स निन्दणं ७२ तं पुव्वनेहेण कयाणुरागं, नराहिवं कामगुणेसु गिद्ध । धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही, चित्तो इमं वयणमुदाहरित्था ॥१५॥
सव्वं विलवियं गोयं, सव्वं नर्से विडंबियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥१६॥ बालाभिरामेसु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेसु रायं ! विरत्त कामाण तवोधणाणं, जं भिक्खुण सीलगुणे रयाणं ॥१७॥ नरिंद ! जाई अहमा नराणं, सोवागजाई दुहओ गयाणं । जहि वयं सव्वजणस्स वेसा, वसीय सोवागनिवेसणेसु ॥१८॥ तीसे अ जाईइ उ पावियाए, बुच्छामु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्स लोगस्स दुगंछणिज्जा, इहं तु कम्माई पुरे कडाइं ॥१९॥ सो दार्णािस राय! महाणुभागो, महिड्ढिओ पुण्णफलोववेओ। चइत्तु भोगाइं असासयाई, आदाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥२०॥ इह जीविए राय ! असासयम्मि, धणियं तु पुण्णाइ अकुब्वमाणो । से सोयइ मच्चुमु होवणीए, धम्म अकाऊण परंसि लोए ॥२१॥ 'जहेह सोहो व मियं गहाय', मच्चू नरं नेइ हु अंतकाले। न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवंति ॥२२॥ न तस्स दुक्खं विभयंति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पच्चणुहोड दुक्ख, कत्तारमेवं अणुजाइ कम्मं ॥२३॥ चिच्चा दुप्पयं च चउप्पयं च, खेत्तं गिहं धणधन्नं च सव्वं । सकम्मबीओ अवसो पयाइ, परं भवं सुंदरपावगं वा ॥२४॥ तं एक्कगं तुच्छसरीरगं से, चिईगयं दहिय उ पावगेणं । भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य, दायारमन्नं अणुसंकमंति ॥२५॥ उवणिज्जई जीवियमप्पमायं, वणं जरा हरइ नरस्स रायं ! पंचालराया ! बयणं सुणाहि, मा कासि कम्माइ महालयाई ॥२६॥
बंभदत्तण अप्पणो नियाणकरणवण्णणं ७३ अहं पि जाणामि जहेइ साहू, जं मे तुम साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवंति, जे दुज्जया अज्ज ! अम्हारिसेहि ॥२७॥
हत्थिणपुरम्मि चित्ता ! दट्ठणं नरवई महिड्ढियं । कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं ॥२८॥ तस्स मे अप्पडिकंतस्स, इमं एयारिसं फलं । जाणमाणो वि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥२९॥ "नागो जहा" पंकजलावसन्नो, दलृ थलं नाभिसमेइ तीरं। एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ॥३०॥
चित्तमणिणा अज्जकम्मकरणोवएसो अच्चेइ कालो तूरंति राइओ, न या वि भोगा पुरिसाण निच्चा । उविच्च भोगा पुरिसं चयंति, दुर्म जहा खीणफलं व पक्खी ॥३१॥ जई सि भोगे चइउं असत्तो, अज्जाइ कम्माइ करेहि रायं ! धम्मे ठिओ सव्व-पयाणुकंपी, तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ॥३२॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धोसि आरंभ-परिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! आमंतिओसि ॥३३॥
बंभदत्तस्स निरयवासो ७५ पंचालराया वि य बंभदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥
चित्तस्स सिद्धी ७६ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, उदग्गच रित्ततवो महेसी । अणुत्तरं संजमं पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥३५॥
॥त्ति बेमि ॥
उत्त० अ०१३
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५. अरिट्ठनेमितित्थे निसढो
निसढाइया दुवालस समणा ७७ १. निसढे २. माअणि ३. वह ४, बहे ५. पगया ६. जुत्ती ७. दसरहे ८. दढरहे य। ९. महाधणू १०. सत्तधणू ११. दसधणू नामे
१२. सयधणू य॥
बारवईए कण्हो वासुदेवो ७८ तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था दुवालसजोयणायामा-जाव-पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया-जाव-पडिहवा ॥
तीसे गं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं रेवए नामं पव्वए होत्या तुङ्गे गयणयलमणुलिहन्तसिहरे नाणाविह-रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोञ्च-सारस-काग-मयणसाला-कोइल-कुलोववेए तड-कडग-वियरउब्भर-पवाल-सिहर-पउरे अच्छर-गण-देवसंघ-विज्जाहर-मिहुण-संनिचिण्णे निच्चच्छणए बसार-वर-वीर-पुरिस-तेल्लोक्क-बलवगाणं सोमे सुभए पियवंसणे सुरूवे पासादीए-जाव-पडिरूवे ॥ तस्स णं रेवयगस्स पव्वयस्स अदूरसामन्ते एत्थ णं नन्दणवणे नामं उज्जाणे होत्या सव्वोउयपुष्फ-जाव-दरिसणिज्जे ॥ तत्थ णं नन्दगवणे उज्जाणे सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्या चिराईए-जाव-बहुजणो आगम्म अच्छेइ सुरप्पियं जक्खाययणं । से णं सुरप्पिए जक्खाययणे एगणं महया वणसण्डेणं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ते जहा पुण्णभद्दे-जाव-सिलावट्टए। तत्थ णं बारवईए नयरोए कण्हे नामं वासुदेवे राया होत्था-जाव-पसासमाणे विहर।। से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणं पञ्चण्हं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं राईसाहस्सीणं, पज्जुण्णपामोक्खाणं अधुट्ठाणं कुमारकोडीणं, सम्बपामोक्खाणं सट्ठीए दुद्दन्तसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए बीरसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पन्नाए बलवग्साहस्सीणं रुप्पिणिपामोक्खाणं सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं, अणङ्गसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अन्नेसि च बहुणं राईसर-जाव-सत्थ वाहप्पभिईणं वेयड्ढगिरिसागरमेरागस्स दाहिणड्ढभरहस्स आहेवच्च-जाव-विहरइ ।
बारवईए बलदेवे राया ७९ तत्थ णं बारवईए नयरीए बलदेवे नामं राया होत्था, महया-जाव-रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
बलदेवस्स रेवईदेवीए पुत्तो निसढकुमारो ८० तस्स णं बलदेवस्स रनो रेवई नाम देवी होत्था सोमाला-जाव-विहरइ । तए णं सा रेवई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि
सयणिज्जंसि-जाव-सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा एवं सुमिणदसणपरिकहणं, कलाओ जहा महाबलस्स, पन्नासओ दाओ, पन्नासरायकन्नगाणं एगदिवसेणं पाणिग्गहणं... नवरं निसढे नाम-जाव-उप्पि पासायं विहरइ ॥
ध० क.
३
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
अरिट्रनेमितित्थयरागमणं-कण्हस्स पज्जवासणं च ८१ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिढणेमी आइगरे दस धणूई... वण्णओ-जाव-समोसरिए। परिसा निग्गया ।
तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हटुतुटू कोडुम्बियपुरिसं सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं बयासी"खिप्पामेव, भो देवाणुिप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाणियं भेरि तालेहि"। तए णं से कोडुम्बियपुरिसे-जाव-पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाणिया भेरी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाणियं भेरि महया-महया सद्देणं तालेइ॥ तए णं तीसे सामुदाणियाए भेरीए महया-महया सद्देणं तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दसारा, देवीओ भाणियच्याओ, जाव-अणङ्गसेणापामोक्खा अणेगा गणियासहस्सा अन्ने य बहवे राईसर-जाव-सत्थवाहप्पभिईओ व्हाया-जाव-पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया जहाविभवइड्ढीसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया-जाव-पुरिसवग्गुरा-परिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता करयल कण्हं वासुदेवं जएण विजएणं वद्धावन्ति ।। तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुम्बियपुरिसे एवं वयासी-"खिप्पामेव, भो देवाणुप्पिया, आभिसेक्कहत्थि कप्पेह हयगयरहपवर"-जावपच्चप्पिणन्ति। तए णं से कण्हे वासुदेवे मज्जणघरे जाव दुरूढे, अट्ठ मङ्गलगा, जहा कूणिए, सेयवरचामरेहि उद्धव्वमाणेहि उद्धब्वमाणेहि समुद्दविजयपामोक्खेंहि दसहि दसारहि-जाव-सत्थवाहप्पभिईहि सद्धि संपरिवुडे सब्विड्डीए-जाव-रवेणं बारवई नरि मज्झमझेणं. ....सेसं जहा कूणिओ-जाव-पज्जुवासइ ।।
निसढेण सावयधम्मगहणं ८३ तए णं तस्स निसढस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगयस्स तं महया जणसई च... जहा जमाली,-जाव-धम्म सोच्चा निसम्म वन्दइ,
नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-"सद्दहामि णं, भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं," जहा चित्तो-जाव-सावगधम्म पडिवज्जइ पडिवज्जित्ता पडिगए।
वरदत्तण निसढस्स पुन्वभवपुच्छा-अरिट्टनेमिणा पुत्वभवकहणं च ८४ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिटुनेमिस्स अन्तेवासी वरदत्त नाम अणगारे उराले-जाव-विहरइ ।
तए णं से वरदत्ते अणगारे निसलं पासइ, जायसड्ढे-जाव-पज्जुवासमाणे एवं वयासी"अहो णं, भन्ते, निसढे कुमारे इ8 इट्टरूवे कन्ते कन्तरूवे, एवं पिए मणुन्नए, मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे पियदंसणे सुरूवे। निसढेणं, भन्ते ! कुमारेण अयमेयारूबा मणुयइड्ढी किणा लद्धा, किणा पत्ता?" पुच्छा जहा सुरियाभस्स। निसढस्स पुटवभवो-वीरंगअकुमारो "एवं खलु वरदत्ता"! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे रोहीडए नामं नयरे होत्था, रिद्ध... । मेहवण्णे उज्जाणे । माणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे। तत्थ णं रोहीडए नयरे महब्बले नाम राया, पउमावई नाम देवी, अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सीहं सुमिणे . . ., एवं जम्मणं भाणियव्वं जहा महाबलस्स, नवरं वीरगओ नामं, बत्तीसओ दाओ, बत्तीसाए रायवरकन्नगाणं पाणि-जाब-ओगिज्जमाणे ओगिज्जमाणे पाउसवरिसारत्तसारयहेमन्तगिम्हवसन्ते छप्पि उऊ जहाविभवे समाणे इ8 सद्दे-जाव-विहरइ॥
सिद्धत्थायरिओवएसेण वीरंगअस्स पवज्जा बंभलोए उप्पत्ती य ८६ तेणं कालेणं तेणं समएणं सिद्धत्था नाम आयरिया जाइसंपन्ना. . .जहा केसी, नवरं बहुस्सुया बहुपरिवारा जेणेव रोहीडए नयरे, जेणेव
मेहवण्णे उज्जाणे, जेणेव माणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे, तेणेव उवागए. अहापडिरूवं-जाव-विहरइ। परिसा निग्गया। तए णं तस्स वीरङ्गयस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगयस्स तं महया जणसई...जहा जमाली, निग्गओ। धम्म सोच्चा...जे, नवरं, देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि जहा जमाली, तहेव निक्खन्तो-जाव-अणगारे जाए-जाव-गुत्तबम्भयारी।"
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१९
अरिटुनेमितित्थे निसढो ८७ तए णं से वीरंगए अणगारे सिद्धस्थाणं आयरियाणं अन्तिए सामाइयमाइयाई-जाव-एक्कारस अंगाई अहिज्जइ । अहिज्जित्ता बहूई
-जाव-चउत्थ-जाव-अप्पाणं भावमाणे बहुपडिपुण्णाई पणयालीसवासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं शूसित्ता सवीसं भत्तसयं अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बम्भलोए कप्पे मणोरमे विमाणे देवत्ताए उबवन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दससागरोवमाई ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं वीरंगयस्स वि देवस्स वि दस सागरोवमा ठिई पन्नत्ता ॥
८८
बंभलोगाओ चइत्ता निसढकुमारो जाओ से णं वीरङ्गए देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं-जाव-अणन्तरं चयं चइत्ता इहेव बारवईए नयरीए बलदेवस्स रन्नो रेवईए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तए णं सा रेवई देवी तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सुमिणदंसणं,- जाव-उप्पिं पासायवरगए
विहरइ। ८९ तं एवं खलु वरदत्ता ! निसढेणं कुमारेणं अयमेयारूवा उराला मणुयइड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । ९० पभू णं, भन्ते ! निसढे कुमारे देवाणुप्पियाणं अन्तिए-जाव-पव्वइत्तए?" हन्ता, पभू । से एवं, भन्ते ! इह वरदत्ते अणगारे-जाव-अप्पाणं
भावेमाणे विहरइ। ९१ तए णं अरहा अरिटुणेमी अन्नया कयाइ बारवईओ नयरीओ-जाव-बहिया जणवयविहारं विहरइ । निसढे कुमारे समणोवासए जाए
अभिगयजीवाजीवे-जाव-विहरइ ।।
निसढस्स अरिट्रनेमिदंसणेच्छा ९२ तए णं से निसढे कुमारे अन्नया कयाइ जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता-जाव-दब्भसंथारोवगए विहरइ ।
तए णं तस्स निसढस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था"धन्ना णं ते गामागर-जाव-संनिवेसा जत्थ णं अरहा अरिटुणेमी विहरइ । धन्ना णं ते राईसर-जाव-सत्यवाहप्पभिईओ जे णं अरहं अरिदमि वन्दन्ति, नमसन्ति-जाव-पज्जुवासन्ति । जइ णं अरहा अरिढणेमी पुव्वाणुपुदिव . . . नन्दणवणे विहरेज्जा, तए णं अहं अरहं अरिटुणेमि वन्दिज्जा-जाव-पज्जुवासिज्जा ॥
निसढेच्छ णाऊणं अरिट्रने मिस्सागमणं ९३ तए णं अरहा अरिटुणेमी निसढस्स कुमारस्स अयमेयारूवमज्झत्थिय-जाव-वियाणित्ता अट्ठारसहि समणसहस्सेहि-जाव-नन्दणवणे
समोसढे। परिसा निग्गया।
निसढस्स पव्वज्जा समाहिमरणं च ९४ तए णं निसढे कुमारे इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हट० चाउग्घण्टेणं आसरहेणं निग्गए जहा जमाली,-जाव-अम्मापियरो आपुच्छित्ता
पव्वइए, अणगारे जाए इरियासमिए-जाव-गुत्तबम्भयारी। ९५ तए णं से निसढे अणगारे अरहओ अरि?णेमिस्स तहारूबाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाई अहिज्जइ, अहि
जित्ता, बहूई चउत्थ-छ?-जाव-विचिहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाइं नववासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता बायालीसं भत्ताई अणसणाए हुएइ, आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते आणुपुब्बीए कालगए ॥
वरदत्तपच्छिएण अरिटुनेमिणा निसढस्स सम्वद्रसिद्ध विमाणगमणकहणं ९६ तए णं से बरदत्ते अणगारे निसढं अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव अरहा अरिटुणेमी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पियाणं अन्तेवासी निसढे नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए । से णं, भन्ते ! निसढे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववन्ने ?॥ "वरदत्ता" ई अरहा अरिट्ठणेमी वरदत्तं अणगारं एवं वयासी-“एवं खलु, वरदत्ता ! ममं अन्तेवासी निसढे नाम अणगारे पगइभद्दएजाव-विणीए ममं तहारूवाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाइं अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई नव वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता बायालीसं भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढे चन्दिम
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
सूरिय-गहनाण-नक्खत्ततारारूवाणं सोहम्मीसाणाणं तिणि य अट्ठारसुत्तरे गेविज्जविमाणावाससए वीइवइत्ता सव्वदसिद्धविमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं देवाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता"। तत्थ णं णिसढस्स वि देवस्स तेत्तीस सागरोवमा ठिई पण्णत्ता।
९७
निसढस्स महाविदेहे सिद्धी भावि त्ति अरिटुनेमिकहणं "से णं, भन्ते ! निसढे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणन्तरं चयं चइत्ता कहि गच्छिहिइ, कहि उववज्जिहिइ?" "वरदत्ता! इहेव जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उन्नाए नगरे विसुद्धपिइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिए। . तए णं से उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अन्तिए केवलंबोहि बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जिहिइ । से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ इरियासमिए-जाव-गुत्तबम्भयारी। से णं तत्थ बहूइं चउत्थ-छट्ठ-ऽदुम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणिस्सइ । पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेहिइ, झूसित्ता ट्ठि भत्ताई अगसणाए छेइहिइ, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुण्डभावे अण्हाणए अदन्तवणए अछत्तए अणोवाहणए फलहसेज्जा कटुसेज्जा केसलोए बम्भचेर-वासे परघरपवेसे पिण्डवाउलद्धावलद्धे उच्चावया य गामकण्टगा अहियासिज्जति, तमटुं आराहेइ । आराहित्ता चरिमेहि उस्सासनिस्सासेहि सिज्झिहिइ-जाव-सव्व-दुक्खाणं अन्तं काहिइ" ॥
वहि० अ०१
गणं भावमाए-जाव-गुत्तववाण थेराणं आता
६. अरिट्ठनेमितित्थे गोयमाइया अणगारा
संगहणी-गाहा १. गोयम २.मुद्द ३. सागर ४. गंभीरे चेन होइ ५. थिमिए य। ६. अयले ७. कंपिल्ले खलु, ८. अक्खोभ ९. पसेणई १०. विण्ह॥१॥
९८
बारवईए कण्हो वासुदेवो तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नाम नयरी होत्था-दुवालस-जोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा धणवति-मइ-णिम्माया चामीकर-पागारा नाणामणि-पंचवण्ण-कविसीसगमंडिया सुरम्मा अलकापुरि-संकासा पमुदिय-पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया पासादीया जाव-पडि रूवा ।। तीसे गं बारवईए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीमाए, एत्थ णं रेवयए नाम पव्वए होत्था-वण्णओ। तत्थ णं रेवयए पव्वए नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था-वण्णओ ॥ तस्स णं उज्जाणस्स बहुमज्मदेसभाए सुरप्पिए नामं जक्खायतणे होत्था चिराइए पुव्यपुरिस-पण्णत्ते पोराणे ॥ से णं एगणं वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ॥
तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे असोगवरपायवे ॥ १०० तत्थ णं बारवईए णयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ महया, राय-वण्णओ ॥
से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं, पज्जुण्णपामोक्खाणं अद्ध द्वाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सट्ठोए दुईतसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवगसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एगवीसाए वीरसाहस्सीणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं रायसाहस्सीणं, रुप्पिणीपामोक्खाणं 'सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं, अण्णेसि च बहूणं, राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहाणं बारवईए नयरीए अद्धभरहस्स य समं
तस्स आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ १०१ तत्थ णं बारवईए नयरीए अंधगवण्ही नाम राया परिवसइ -महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ।
अंधगवहिरणो गोयमो कुमारो तस्स णं अंधगवहिस्स रण्णो धारिणी नाम देवी होत्था-वण्णओ॥ तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि-जाव-नियगबयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा एवं जहा महब्बले, नवरं-गोयमो नामेणं। अढण्हं रायवरकण्णाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेति । अदुओ दाओ॥
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अरिटुनेमितित्थे गोयमाइया अणगारा
अरिनेमिस्स धम्मोवएसो, गोयमपव्वज्जा य १०२ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी आदिकरे-जाव-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । चउम्विहा देवा आगया ।
कण्हे वि निग्गए॥
तए णं तस्स गोयमस्स कुमारस्स तं महाजणसदं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था। जहा मेहे तहा णिग्गए । धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु जं नवरं -देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि ॥
तए णं से गोयमे कुमारे एवं जहा मेहे जाव अणगारे जाए-इरियासमिए जाव इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ का विहरइ॥ तए णं से गोयमे अण्णया कयाइ अरहओ अरिटुनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइ अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ-छट्ठट्ठम-वसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि विविहेहिं तवोकस्मेहि अप्पाणं भावमाणे विहरइ।
गोयमस्स सेत्तुंजे सिद्धी १०३ 'तए णं' अरहा अरिटुनेमी अण्णया कयाइ बारवईओ नयरीओ नंदणवणाओ पडिणिक्खमइ, बहिया जणवयविहारं विहरइ॥
तए णं से गोयमे अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा खंदओ तहा बारस भिक्खुपडिमाओ फासेइ। गुणरयणं पि तवोकम्म तहेव फासेइ निरवसेसं । जहा खंदओ तहा चितेइ, तहा आपुच्छइ, तहा थेरेहि सद्धि सेत्तुंज दुरूहइ ॥
सं। जहा खंबातावरित्तए। एवं जहा खंदाला वयासी-इच्छामि गं भते ! अर
तए णं से गोयमे अणगारे बारस वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाब केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेता तओ पच्छा सिद्धे ॥
समुद्दादि १०४ एवं जहा गोयमो तहा सेसा। अंधगवण्ही पिया, धारिणी माया। समुद्दे, सागरे, थमिए, गंभीरे, अयले, कंपिल्ले, अक्खोभे, पसेणई, विण्ह, एए एगगमा ॥
अंत० व० १ अ० १-१० अक्खोभाइ कुमारा अणगारा
संगहणी-गाहा १०५ १. अक्खोभ २. सागरे खलु, ३. समुद्द ४.हिमवंत ५. अचलनामे य। ६. धरणे य ७. पूरणे या, ८. अभिचंदे चेव अट्ठमए ॥१॥ १०६ तेणं कालेणं तेणं समएणं 'बारवई नामं नयरी होत्था' । अंधगवण्ही पिया। धारिणी माया। गुणरयणं तवो-कम्मं । सोलस बासाई परियाओ। सेत्तुंजे मासियाए संलेहणाए सिद्धा॥
अंत० व० २, अ०१-८
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७. अरिटुनेमितित्थे अणीयसो कुमारो अण्णे य
१०७ १.अणीयसे २. अणंतसेणे ३. अजियसेणे ४. अणिहयरिऊ ५. देवसेणे ६. सत्तुसेणे ७. सारणे ८. गए ९. समुद्दे १०. दुम्मुहे ११. कूवए
१२. दारुए १३. अणाहिट्ठी॥
भद्दिलपुरे नागगाहावई तस्स य पुत्तो अणीयसो १०८ तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे नाम नगरे होत्था--वण्णओ।
तस्स णं भद्दिलपुरस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभाए सिरिवणे नामं उज्जाणे होत्था-वण्णओ, जियसत्तू राया। तत्थ णं भद्दिलपुरे नयरे नागे नाम गाहावई होत्था--अड्ढे-जाव-अपरिभूए॥
तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा नाम भारिया होत्था-सूमाला-जाव-सुरूवा॥ १०९ तस्स णं नागस्स गाहावइस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयसे नाम कुमारे होत्था--सूमाले-जाव-सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते
जहा दढपइण्णे-जाव-गिरकंदरमल्लीणे विव चंपगवरपायवे णिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढइ ॥ तए णं तं अणीयसं कुमारं सातिरेगअट्ठवासजायं जाणित्ता अम्मापियरो कलायरियस्स उवणेति-जाव-भोगसमत्थे जाए यावि होत्था । तए णं तं अणीयसं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाणित्ता अम्मापियरो सरिसियाणं सरिव्वयाणं सरित्तयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वणगुणोववेयाणं सरिसएहितो इन्भकुलेहितो आणिएल्लियाणं बत्तीसाए इब्भवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेति ॥ तए णं से नागे गाहावई अणीयसस्स कुमारस्स इमं एयारूवं पोइदाणं दलयइ, तं जहाबत्तीस हिरण्णकोडीओ जहा महब्बलस्स-जाव-उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहं मुइंगमत्थरहि भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ॥
अरिट्टनेमिसकासे अणीयसपव्वज्जा सत्तुंजे सिद्धी य ११० तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिद्वनेमी जेणेव भद्दिलपुरे नयरे जेणेव सिरिवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अहा
पडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। तए णं तस्स अणीयसस्स कुमारस्स तं महा जणसदं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था। जहा गोयमे तहा अणगारे जाए, नवरं-सामाइयमाइयाई चोद्दस-पुन्वाइं अहिज्जइ । बीसं वासाइं परियाओ। सेसं तहेव-जाव-सेत्तुंजे पव्वए मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे ॥
अंत० व० ३-अ० १
अणंतसेणकुमाराई अणगारा १११ एवं जहा अणीयसे । एवं सेसा वि । बत्तीसओ दाओ। वीसं वासा परियाओ। चोद्दस पुव्वा । सेत्तुंजे सिद्धा।
अंत० व०३, अ०२-६
सारणकुमारसमणो ११२ तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा अणीयसे नवरं-वसुदेवे राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे। सारणे कुमारे। . पण्णासओ दाओ। चोद्दस पुवा । वीसं वासा परियाओ। सेसं जहा गोयमस्स-जाव-सेत्तुंजे सिद्ध ।
अंत० व-३, अ०७
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८. अरिट्टिनेमितित्थे गजसुकुमालाइसमणा
११३ तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे ॥
छम्हं अणगाराणं तव-संकप्यस्स अरिनेमिणा अम्भणुष्णा
११४ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठमिस्स अंतेवासी छ अणगारा भायरो सहोदरा होत्था -- सरिसया सरितया सरिव्वया नील-गुल-अपसकुसुमप्यगासा सिश्विनकिय-बछा कुसुम-कुंडलभद्दलया रसमाना ॥
तए णं ते छ अणगारा जं चेव दिवस मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तं चैव दिवस अरहं अरिट्ठमि वंदंति गति दित्ता नर्मसित्ता एवं बवासी
"इच्छाभो णं भंते! तुम्भेहि अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटु छट्ट ेणं अणिक्खितेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरितए ।"
अहाहं देवाविवा! मा परिबंध करेह ॥
तए णं ते छ अणगारा अरया अरिट्टणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठ छट्ट ेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥
छहं पि देवईए गिहे कमसो पवेसो
११५ तए णं ते छ अणगारा अन्यया कयाई छक्यमणपाणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झा करेंति, बीपाए पोरिसीए सायं शियाति याए पोरिसीए अरियमचवलमसंभंता मुहपोत्लियं पडित पहिलेहिता भागवत्थाई पडिले पडिलेहिता भावणाई मति पमज्जिता भाषणाई उन्नार्हति उपाहता जेणेव अरहा अरिनेमी तेणेव उपागच्छति उवागता अहं अरिनेमि वंदति नति वंदित्ता नमसित्ता एवं क्यासी-
"इच्छामो गं भंते दुक्खमणस्स पारण तुम्ह अमाया समाजा तिहि संचाहि वारवईए नपरी उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणरस भिखारियाए अडिए ।" अहासुहं देवाप्पिया ।
तर ते अगगारा अरपा अरिगेमिया अन्मगुण्याचा समाणा अहं अनेिमि वदति नमति, वंदिता नमसिसा अनो अमिर अंतिया सहसंबणाओ डिनिमंति, पडिनिक्यमित्ता तिहि संपा अरियमचवलमसंभंता जुगतरतोयणाए बिए पुरोरिवं सोहेमाणा सोहेमाना जेणेव बारवई नयरी तेथेच उपागच्छति उपागच्छता वारवईए नमरीए उच्च-नीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडंति ।।
तत्य णं एगे संघाइए बारवईए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई हुलाई परसमुदाणा भिखारियाए अमाणे वमुदेवरस एग्मो बेवईए देवीए गेहे अमुष्यवि ।।
तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्नमाणे वासह पासिता हद्दु-चित्तमानंदिया पीदमणा परमसोमणस्सिया हरिसबस-विसप्पमानहिपया आसणाओ अम्मुट्टे, अग् ता सतपदा अनुगच्छद, तिक्त आणि पाहिणं करे, करेला वंदनमंस, वंदिता नमसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागया, सोहकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमसs, वंदित्ता नमसित्ता पडिविस्सज्जेइ ॥
११७ तयणंतरं च णं दोन्चे संघाडए बारवईए नयरीए उच्च-नीय मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए गेहे अणुष्पविट्टे ||
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठ इ, अब्भुट्ठत्ता सत्तट्ठ पदाइं अणुगच्छइ, तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागया सीहकेसराण मोयगाणं
थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ॥ ११८ तयाणंतरं च णं तच्चे संघाडए बारवईए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसुदेवस्स
रण्णो देवईए देवीए गेहे अणुप्पविट्ठ॥
दणस्य भिखारियाए जमाणे वसुदेवरा
देवईए एगस्सेव पुणरागमणसंका ११९ तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठसुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठइ, अब्भुट्ठता सत्तट्ठ पदाइं अणुगाइ,
तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागया सीहकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, पडिलाभत्ता एवं क्यासी"किण्णं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरोए नवजोयणवित्थिष्णाए जाव पच्चक्खं देवलोगभूयाए समणा निग्गंथा उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणा भत्तपाणं नो लभंति, जण्णं ताई चेव कुलाई भत्तपाणाए भुज्जो-भुज्जो अणुप्पविसंति ?"
घेवईए संका-समाधाणं १२० तए णं ते अणगारा देवइं देवि एवं वयासी--
"नो खलु देवाणुप्पिए ! कण्हस्स बासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरीए जाव देवलोग-भूयाए समणा निग्गंथा उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणा भत्तपाणं णो लभंति, णो चेव णं ताई चेव कुलाई बोच्चं पि तच्चं पि भत्तपाणाए अणुपविसंति ॥ एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हे भद्दिलपुरे नगरे नागस्स गाहावइस्स पुत्ता सुलसाए भारियाए अत्तया छ भायरो सहोदरा सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-असिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम कुंडलभद्दलया नलकूबर-समाणा अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा संसारभउम्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया। तए णं अम्हे जं चेव दिवसं पव्वइआ तं चेव दिवसं अरहं अरिट्टनेमि वंदामो नमसामो, इमं एयारूवं अभिग्गहं ओगिण्हामो इच्छामो णं भंते! तुहि अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुंछ?णं अणिक्खत्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! तए णं अम्हे अरहया अरिटुणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुंछ?णं जाब विहरामो। तं अम्हे अज्ज छटुक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेत्ता, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइत्ता, तइयाए पोरिसीए अरहया अरिट्टनेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा तिहि संघाडएहिं बारवईए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणा तव गेहं अणुप्पविट्ठा। तं णो खलु देवाणुप्पिए ! ते चेव णं अम्हे। अम्हे णं अण्णे-देवई देवि एवं वदंति, वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया।"
देवईमणम्मि अइमुत्तकुमारवयणे संका १२१ तए णं तीसे देवईए देवीए अयमेयारवे अज्झथिए । 'संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे अतिमुत्तेणं कुमारसमणेणं
बालत्तणे वागरिआ-"तुमण्णं देवाणुप्पिए ! अट्ठ पुत्ते पयाइस्ससि सरिसए जाव नलकूबर-समाणे नो चेव णं भरहे वासे अण्णाओ अम्मयाओ तारिसए पुत्ते पयाइस्संति ।" तं गं मिच्छा। इमं णं पच्चक्खमेव दिस्सइ-भरहे वासे अण्णाओ वि अम्मयाओ खलु एरिसए पुत्ते पयायाओ। तं गच्छामि णं अरहं अरिटुणेमि बंदामि, वंदित्ता इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामीति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह।" ते वि तहेव उवट्ठति । जहा देवाणंदा जाव पज्जुवासइ॥
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अरिट्टिनेमितित्थे गजसुकुमालाइसमणा
२५
अरिष्टनेमिणा सुलसाचरियकहणेण संका-समाधाण १२२ तए णं अरहा अरिढणेमी देवई देवि एवं वयासी
"से नणं तव देवई ! इमे छ अणगारे पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए । 'संकप्पे समुप्पण्णे-"एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे अइमत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिआ तं चेव जाव निम्गच्छित्ता मम अंतियं हव्वमागया ।" से नणं देवई ! अट्ट सम?? हंता अत्थि ॥ एवं खलु देवाणुप्पिए ! तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे नयरे नागे नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे जाव अपरिभूए ।
तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा नाम भारिया होत्था ॥ . १२३ तए णं सा सुलसा गाहावइणी बालत्तणे चेव नेमित्तिएणं वागरिया-“एस णं दारिया णिदू भविस्सइ ॥"
तए णं सा सुलसा बालप्पभिई चेव हरिणेगमेसिस्स पडिमं करेइ, करेत्ता कल्लाकल्लि व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगलपायच्छित्ता उल्लपड-साडया महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, करेता जण्णुपायपडिया पणामं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा आहारेइ वा नीहारेइ वा चरइ वा ॥ तए णं तीसे सुलसाए गाहावइणीए भत्तिबहुमाणसुस्सूसाए हरिणेगमेसी देवे आराहिए यावि होत्था ॥ तए णं से हरिणेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्टयाए सुलसं गाहावइणि तुमं च 'दो वि समउउयाओ' करेइ । तए णं तुन्भे दो वि समामेव गम्भे गिण्हह, समामेव गभे परिवहह, समामेष दारए पयायह॥
तए णं सा सुलसा गाहावइणी विणिहायमावण्णे दारए पयायइ ॥ १२४ तए णं से हरिणेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपगट्टयाए विणिहाय-मावण्णे दारए करयल संपुडेणं गेण्हइ, गेण्हित्ता तब
अंतियं साहरइ। तं समयं च णं तुमं पि नवण्हं मासाणं सुकुमालदारए पसवसि । जे वि य णं देवाणुप्पिए ! तव पुत्ता ते वि य तव अंतिआओ करयल-संपुडेणं गेण्हइ, गेण्हित्ता सुलसाए गाहावइणीए अंतिए साहरइ। तं तव चेव णं देवई ! एए पुत्ता। णो सुलसाए गाहावइणीए ॥
छ सहोदरा अणगारा देवईए एव पृत्त ति णच्चा देवईए हरिसो १२५ तए णं सा देवई देवी अरहओ अरिटुणेमिस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हटुतुद्दचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया
हरिसवसविसप्पमाणहियया अरहं अरिदणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता ते छप्पि अणगारे वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता आगयपण्हया पप्फुयलोयणा कंचुयपडिक्खित्तया दरियवलय-बाहा धाराहय-कलंबपुष्फग विव समूससिय-रोमकूवा ते छप्पि अणगारे अणिमिसाए विट्ठीए पेहमाणी पेहमाणी सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव अरहा अरिटुणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिटुमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुहिता जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई नरि अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागया, धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता जेणेव सए वासघरे जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागया सयंसि सणिज्जंसि निसीयइ॥
देवईमणम्मि पुत्तस्स लालनपालनाभिलासो चिता य १२६ तए णं तीसे देवईए देवीए अयं अज्झथिए । संकप्पे समुप्पण्णे-“एवं खलु अहं सरिसए जाव नलकूबर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया,
नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणए समणुब्भूए। एस वि य णं कण्हे वासुदेवे छह-छहं मासाणं ममं अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छइ। तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, पुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, जासि मण्णे णियग-कुच्छि-संभूयाई थणवुद्ध-लुखयाई महुर-समुल्लावयाई मम्मण-पजंपियाई थण-मूलाकक्खदेसभागं अभिसरमाणाई मुद्धयाइं पुणो य कोमलकमलोबमेहि हत्थेहि गिहिऊण उच्छंगे णिवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पणिए । अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एक्कतरमवि ण पत्ता-ओहयमणसंकप्पा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियायइ॥"
ध० क० ४
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
कण्हस्स चिताकारणपुच्छा १२७ इमं च णं कण्हे वासुदेवे व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए देवईए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ ॥
तए णं से कण्हे वासुदेवे देवई देवि पासइ, पासित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता देवई देवि एवं वयासी"अण्णया णं अम्मो! तुब्भे ममं पासेत्ता हवतुट्ठा जाव भवह, किण्णं अम्मो ! अज्ज तुब्भे ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह?"
देवईए चिताकारण-निवेदणं १२८ तए णं सा देवई देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--
एवं खलु अहं पुत्ता ! सरिसए जाव नलकूबर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेवणं मए एगस्स वि बालत्तणे अणुब्भूए। तुम पि य णं पुत्ता! छह-छह मासाणं ममं अंतियं पायदए हव्वमागच्छसि । तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव झियामि ।
१३१
कण्हस्स देवाराहणं देवेण य कणीयसभायरभवणकहणं १२९ तए णं से कण्हे वासुदेवे देवई देवि एवं वयासी- .
मा णं तुन्भे अम्मो! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह। अहण्णं तहा घत्तिस्सामि जहा णं ममं सहोदरे कणीयसे भाउए भविस्सति त्ति कटु देवई देवि ताहि इट्टाहि-जाव-वग्गूहि समासासेइ । तओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुहिता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता
पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी हरिणेगमेसि देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ॥ १३० तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे हरिणेगमेसिस्स देवस्स आसणं चलइ जाव अहं इहं हव्वमागए । संदिसाहि
णं देवाणुप्पिया ! कि करेमि ? किं दलयामि? किं पयच्छामि ? किं वा ते हियइच्छियं? तए णं से कण्हे वासुदेवे तं हरिणेगमेसि देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ट पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-- "इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सहोदरं कणीयसं भाउयं विदिग्णं ॥" तए णं से हरिणेगमेसी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-- "होहिइ णं देवाणुप्पिया! तव देवलोयचुए सहोदरे कणीयसे भाउए । से णं उम्मुक्क बालभावे विष्णयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते अरहओ अरिडणेमिस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ"-- कण्हं वासुदेवं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदइ, बदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए।
कण्हेण देवईए आसासणं १३२ तए णं से कण्हे वासुदेवे पोसहसालाओ पडिणिवत्तइ, पडिणिवत्तित्ता जेणेव देवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवईए देवीए
पायग्गहणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-- "होहिइ णं अम्मो ! मम सहोदरे कणीयसे भाउए त्ति कटु देवई देवि ताहि इट्टाहि-जाव-वहि आसासेइ, आसासेत्ता जामेव दिवं पाउम्भूए तामेव दिवं पडिगए।" गयसुकुमालस्स जम्मो तए णं सा देवई देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाव सोहं सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा जाव गब्भं परिवहइ॥ तए णं सा देवई देवी नवण्हं मासाणं जासुमण-रत्तबंधुजीवय-लक्खारस-सरसपारिजातक-तरूणदिवायर-समप्पभं सम्वणयणकंतसुकुमालपाणिपायं जाव सुरूवं गयतालुसभाणं दारयं पयाया। जम्मणं जहा मेहकुमारे जाव जम्हा गं अहं इमे दारए गयतालुसमाणे, तं होउ णं अम्हं एयस्स दारगस्स नामधेज्जे गयसुकुमाले॥ तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरे नाम करेंति--यसुकुमालो त्ति ! सेसं जहा मेहे जाव अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था ।
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अरिट्टिनेमितित्थे गजसुकुमालाइसमणा
गयसुकुमालभारिया भविस्सइ त्ति सोमिलमाहणधूयाए कण्णतेउर-पक्खेवो १३४ तत्थ णं बारवईए नयरीए सोमिले नाम माहणे परिवसइ-अड्ढे-जाव-अपरिभूए रिउव्वेय-जाव-बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिए
यावि होत्था ॥ तस्स सोमिल-माहणस्स सोमसिरी नामं माहणी होत्था--सूमालपाणिपाया-जाव-सुरूवा ॥ तस्स णं सोमिलस्स धूया सोमसिरीए माहणीए अत्तया सोमा नाम दारिया होत्था--सूमालपाणिपाया जाव सुरूवा, रूवेणं जोव्वर्णणं लावण्णणं उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा यावि होत्था॥ तए णं सा सोमा दारिया अण्णया कयाइ व्हाया जाव विभूसिया, बहूहि खुज्जाहिं जाव महत्तरविंद-परिक्खित्ता सयाओ गिहाओ
पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायमग्गंसि कणतिदूसएणं कीलमाणी चिट्ठइ ॥ १३५ तेणं कालेणं तेणं सभएणं अरहा अरिटुनेमी समोसढे । परिसा निग्गया ।
तए णं से कण्हे वासुदेवे इमोसे कहाए लद्धढे समाणे ण्हाए जाव विभूसिए गयसुकुमालेणं कुमारेणं सद्धि हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उडुब्वमाणीहि बारवईए नयरीए मझमज्झेणं अरहओ अरिटुणेमिस्स पायबंदए निग्गच्छमाणे सोमं दारियं पासइ, पासित्ता सोमाए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य जायविम्हए कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सोमिलं माहणं जायित्ता सोमं दारियं गेहह, गैण्हित्ता कपणंतेउरंसि पक्खिवह । तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ ।"
तए णं कोडुंबियपुरिसा तहेव पक्खिवंति ॥ १३६ तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मझमझेगं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव अरहा अरिटुनेमी
तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता अरहं अरिटनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता अरहओ अरिट्टनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं पज्जुवासइ ।
अरिट्टनेमिणा धम्मदेसणा १३७ तए णं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स गयसुकुमालस्स कुमारस्स तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्म कहेइ, तं जहा--
सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं,
सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहातो वेरमणं । कण्हे पडिगए ॥
गयसुकुमालस्स पव्वज्जासंकप्पो १३८ तए णं से गयसुकुमाले अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतु? अरहं अरिट्ठनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं
करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- "सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, · · ‘से जहेयं तुम्भे वयह । नवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि। तओ पच्छा मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामि।" अहासुहं देवाणप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि।
गयसुकुमालस्स अम्मापिऊणं निवेदणं १३९ तए णं से गयसुकुमाले अरहं अरिट्टनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणामेव हत्थिरयणं तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
हत्थिखंधवरगए महया भड-चडगर-पहकरेणं बारवईए नयरोए मज्झमझेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छए, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी--
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२८
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धम्मकहाणुओगे गुलीयो बंध
" एवं खलु अम्मयाओ ! मए अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ।। " तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अम्मापियरो एवं वयासी-
"धनोसि तुमं जाया ! संपुष्णोसि तुमं जाया! क्याथोसि तुमं जाया! कवलक्वणोसि तुमं जाया ! जणं तुझे अरहनो अरिafree ifre धम्मे निसंते से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ।। "
तए से कुमाले अम्मापियरो दोष पि एवं वयासी-
१४३
"एवं खलु अमपाओ मए अरहन अरिनेमिस्स अंखिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इण्डिए पडिए अभिए । तं इच्छामि नं अम्मयाओ तुम्भेहि अभाए समाणे अरबो अनेिभिल्स अंतिए मुंडे भवित्ताणं अवाराओ अणगारिय
पव्वइत्तए ।"
देवईए सोगाकुलदसा
तए णं सा देवई देवी तं अणि अकंतं । अप्पियं अमगुण्णं अमणामं असुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणलिएणं महवा पुत्तनुश्येणं अभिभूया समाणी सयंहिं धस सि पहिया ।
देवईए गयसुकुमालस्स य परिसंवादो
१४२ तए णं सा देवई देवी
विलवमाणी गयसुकुमालं कुमारं एवं वयासी-
"तुम सजाया । अम्हं एगे 'पुते' हट्टनो खलु जाया ! अम्हें, इच्छामो वणमवि विप्पओगं सहितए तं जाहि ताव जाया ! विपुले माणुस कामभोगे जाव ताव वर्ष जीवामो तो पच्छा अम्हेहि कालगहि परिणयवए जम्मि निराक्ये अरहो अरिनेभिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अंगाराओ अणमारिये पञ्चस्ससि ।।"
यि कुलतं
तएषं से
कुमाले अम्माहि एवं वृत्तं समाने अम्मापय एवं क्यासी
तहेव णं तं अम्मो ! जहेव णं तुम्भे ममं एवं वयह-- “ तुमं सि णं जाया ! अम्हं 'एगे पुत्ते' इट्ठ कंते पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे durfer सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय- उस्सासिए हियय-मंदिजणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए, मिंग पुण पाणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए । तं भुंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तओ पच्छा अम्हेहि कालगएहि परिणयवए वड्ढिय कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।"
एवं खलु अभ्मयाओ ! 'माणुस्सए भने अधुये अणिलिए असावए वसणस ओववाभिभूते विलयाचंचले आणि जलम्बुपमाणे कुशिम्भरागसरिसे सुविणदंसणीवमे सडण-पण विद्वंसग-धन्मे पच्छा पुरं च अवस्थविष्यजहणिजे '
से के णं जाणइ अम्मयाओ ! के पुठिंव गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे अह अमर अंतिए मुंडे भविता गं अगाराओं अणगारियं पचए ।
१४४ एतं गयकुमा कुमारं अम्बापियरो एवं बयासी
"इमे य ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबह हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणि-मोत्तिय संख-सिल-प्पवालरत्तरयण-संतसार- सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउ पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं । तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।। "
तए से यमाने अम्मापियर एवं क्यासी-
लव णं तं अभ्मपाओ ! जं गं मे ममं एवं वह “इमे ते जाया ! अजग-पग पिउपजपागए सुबह हिरणे व सुवणे य कंसे य से य मणि-मोत्तिय संख-सिल-प्पवाल- रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्ढिसक्का रसमुदयं । तओ पच्छा अणुभयकल्लाणे अमिस्स अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अणवारिवं एम्बस।"
एवं खलु माओ हिरण्यये व जान सावज्जे व अग्निसाहिए चोरलाहिए राजसाहिए वायसाहिए मच्चसाहिए, अगसामने चोरसामध्ये रायसामने बाइसामने मन्सामणे सण पडण- विद्वंसनधम्मे पच्छा पुरं चणं अवस्सविष्यजणिज्जे से केणं
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अरिट्टिनेमितित्थे गजसुकुमालाइसमणा
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जाणइ अम्मयाओ ! के पुवि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइत्तए॥ तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति गयसुकुमालं कुमारं बहूहि विसयाणुलोमाहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउब्वेयकारियाहि पण्णवणाहि पण्णवेमाणा एवं बयासी-- "एस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहि दुत्तरे, तिक्खं कमियत्वं, गरुअं लंबेयव्वं, असिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा कोयगडे वा ठविए वा रइए वा दुभिक्खभत्ते वा कतारभत्ते वा वद्दलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा । तुमं च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उण्हं नालं खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय-सिभियसन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए, बावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्म अहियासित्तए । भुंजाहि ताव जाया !
माणुस्सए कामभोगे । तओ पच्छा भुत्तभोगी अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ॥" १४६ तए णं से गयसुकुमाले कुमारे अम्मापिर्लाह एवं वुत्ते सुमाणे अम्मापियरं एवं वयासी
तहेव णं तं अम्मयाओ ! जं णं तुब्भे मम एवं वयह--"एस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्ध सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निजाणमग्गे निब्याणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतरिदिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयवा, वालुयाकवले इव निरस्ताए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहि दुत्तरे, तिक्खं कमियब्वं, गरुअं लंबेयध्वं, असिधारवयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा कोयगडे वा ठविए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कतारभत्ते वा वद्दलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा। तुमं च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उण्हं नालं खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय-सिभियसन्निवाइए विविहे रोगायके, उच्चावए गामकंटए बावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्म अहियासित्तए । भुजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे । तओ पच्छा भुत्तभोगी अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि।" एवं खलु अम्मयाओ ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगनिप्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स, नो चेव णं धीरस्स । निच्छियववसियस्स एत्थ किं दुक्करं करणयाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुबोहं अब्भणुण्णाए समाणे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए।
कण्हस्स गयसुकुमालं पइ रज्जगहणपत्थावो १४७ तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठ समाणे जेणेव गयसुकुमाले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालं आलिंगइ,
आलिंगित्ता उच्छंगे निवेसेइ, निवेसेत्ता एवं वयासी-- 'तुमं णं मम' सहोदरे कणीयसे भाया। तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! इयाणि अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वाहि । अहण्णं तुमे बारवईए नयरीए महया-महया रायाभिसेएणं अभिसचिस्सामि । तए णं से गयसुकुमाले कण्हेणं वासुदेवेणं एवं बुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ।। तए णं से गयसुकुमाले कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-- एवं खलु देवाणुप्पिया ! माणुस्सया काम भोगा असुई वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुय-उस्सास-नीसासा दुख्य-मुत्तपुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवा अधुवा अणितिया असासया सडणपडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
से के णं जाणइ देवाणुप्पिया! के पुब्बि गमणाए के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तु हिं अभणण्णाए समाणे अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए।
गयसुकुमालस्स एगदिवसरजं तए णं तं गयसुकुमालं कण्हे वासुदेवे अम्मापियरो य जाहे नो संचाएइ बहुयाहि विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामाई चेव गयसुकुमालं कुमारं एवं वयासी-- * इच्छामो णं ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरि पासित्तए ॥ तए णं गयसुकुमाले कुमारे कण्हं वासुदेवं अम्मापियरं च अणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ।। तए णं कण्हे वासुदेवे कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! गयसुकुमालस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उबढवेह।" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उबवेति । तए णं से कण्हे वासुदेवे गयसुकुमालं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचाइ, अभिसिचित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरस. वत्तं मत्थए अलि कटु एवं वयासी-- "जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमझे वसाहि, इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बारवईए नयरीए अण्णेसि च बहूणं गामागर-नगर-खेड-कब्बडदोणमुह-मडब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहराहि त्ति कटु जय-जय-सद्दे पउंजंति ॥ तए णं से गएसुकुमाले राया जाए जाव-रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥ तए णं तं गयसुकमाल रायं कण्हे वासुदेवे अम्मापियरो य एवं वयासी-- "भण जाया ! कि दलयामो ? कि पयच्छामो ? किं वा ते हिए-इच्छिय सामत्थे ?"
गयसुकुमालस्स पब्वज्जा १४९ तए णं से गयसुकुमाले राया कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य एवं बयासी--
इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च आणियं कासवियं च सद्दावियं । निक्खमणं जहा महब्बलस्स । तए णं से गयसुकुमाले कुमारे अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडिवज्जइ--तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ, तह निसीयइ, तह तुयट्टइ, तह भुंजइ, तह भासइ, तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहि भूएहिं जीहि सत्तेहि संजमेणं संजमइ ।। तए णं से गयसुकुमाले अणगारे जाए--इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी॥ तए णं से गयसुकुमाले जं चेव दिवसं पवइए तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्ह-कालसमयंसि जेणेव अरहा अरिटुणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिदृणेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- "इच्छामि णं भंते ! तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥
गयसुकुमालस्स महापडिमोवसंपज्जणं १५० तए णं से गयसुकुमाले अणगारे अरहया अरिट्ठणेमिणा अब्भणुण्णाए समाणे अरहं अरिद्वमिं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसिता
अरहओ अरि?णेमिस्स अंतिए सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव महाकाले सुसाणे तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता थंडिल्लं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता ईसि पन्भारगएणं कारणं वग्घारियपाणी अणिमिसनयणे सुक्कपोग्गल-निरुद्धदिट्टी दो वि पाए साहटु एगराई महापडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।।
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अरिट्टिनेमितित्थे गजसुकुमालाइसमणा
सोमिलकय-उवसग्गो १५१ इमं च णं सोमिले माहणे सामिधेयस्स अट्ठाए बारवईओ नयरीओ बहिया पुव्वणिग्गए। समिहाओ य दब्भे य कुसे य पत्तामोडं
च गेण्हइ, गेण्हिता तओ पडिणियत्तइ, पडिणियत्तित्ता महाकालस्स सुसाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे-बीईवयमाणे संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि गयसुकुमालं अणगारं पासइ, पासित्ता तं वरं सरइ, सरिता आसुरुत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं बयासी-- एस णं भो! से गयसुकुमाले कुमारे अपत्थियपत्थिए, दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिपरिवज्जिए, जेणं मम धूयं सोमसिरीए भारियाए अत्तयं सोमं दारियं अदिट्ठदोसपत्तियं कालवत्तिणि विप्पजहेत्ता मुंडे जाव पव्वइए। तं सेयं खलु मम गयसुकुमालस्स कुमारस्स वेनिज्जायणं करेत्तए----एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दिसापडिलेहणं करेइ, करेता सरसं मट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव गयसुकुमाले अणगारे तेणेव उवागच्छाइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए मट्टियाए पालि बंधइ, बंधित्ता जलंतीओ चियाओ फुल्लियकिसुयसमाणे खरिंगाले कहल्लेणं गेण्हइ, गेण्हिता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए विग्गे संजायभए तओ विप्पामेव अववकमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए।
गयसुकुमालस्स सिद्धी १५२ तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूया--उज्जला-जाव-दुरहियासा॥
तए णं से गयसुकुमाले अणगारे सोमिलस्स माहणस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं अहियासेइ ॥ तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थज्झवसाणेणं तदावरणिज्जाणं कम्भाणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं अणुप्पविटुस्स अगंते अणुत्तरे केवलवरणाणदसणे-जाव-समुप्पणे। तओ पच्छा सिद्धे सव्व-दुक्खप्पहीणे ॥ तत्थ णं 'अहासंनिहिएहि देहि सम्म आराहिए' त्ति कटु दिव्वे सुरभिगंधोदए वुट्ठ, दसद्धवण्णे कुसुमे निवाडिए; चेलुक्खेवे कए; दिब्वे य गीयगंधव्वणिणाए कए यावि होत्था ।।
कण्हण वुड्ढस्स साहिज्जकरणं १५३ तए णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पहाए जाव
विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उद्धव्वमाणीहि महयाभड-चडगर-पहकरवंदपरिक्खित्ते बारवई नरि मझमज्झेणं जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं--जुण्णं जरा जज्जरिय-देहं आउरं झूसियं पिवासियं दुब्बलं किलंतं महइमहालयाओ इट्टगरासीओ एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पासइ॥ तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंपणढाए हत्थिखंधवरगए चेव एग इट्टगं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवेसेइ ॥ तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहि पुरिससहि से महालए इट्टगस्स रासी बहिया रत्थापहयाओ अंतोघरंसि अणुप्पवेसिए ।
कण्हस्स गयसुकुमाल-दंसणाभिलासा १५४ तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव अरहा अरिद्वनेमी तेणेव उवागए, उवा
गच्छित्ता अरहं अरिठुनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता गयसुकुमालं अणगारं अपासमाणे अरहं अरिटुमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - “कहि णं भंते ! से ममं सहोदरे कणीयसे भाया गयसुकुमाले अणगारे 'जं णं' अहं वदामि नमसामि ?"
अरिट्टनेमिणा गयसुकुमालस्स सिद्धीकहणं १५५ तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--
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धम्मोकहाणुओगे दुतीयो खंधो
साहिए णं कण्हा! गयसुकुमालेणं अणगारेणं अप्पणो अट्ठ। तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटुनेमि एवं वयासी-- कहण्णं भंते ! गयसूमालेणं अणगारेणं साहिए अपणो अट्ठ? तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-- एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं ममं कल्लं पच्चावरण्हकालसमयंसि बंबइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी"इच्छामि णं भंते ! तुब्र्भहिं अब्भणुण्णाए समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए जाव एगराइयं महापडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ॥ तए णं तं गयसुकुमालं अणणारं एगे पुरिसे पासइ, पासित्ता आसुरत्ते गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए मट्टियाए पालि बंधइ, बंधित्ता जलतीओ चिययाओ फुल्लियर्याकसुयसमाणे खरिंगाले कहल्लेणं गेण्हह, गेण्हिता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए तओ खिप्पामेव अवक्कमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउडभए तामेव दिसं पडिगए। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउम्भुआ--उज्जला विउला कक्खडा पगाहा चंडा दुक्खा दुरहियासा। तए णं से गयसुकुमाले अणगारे तस्स पुरिसस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे उज्जलं जाव दुरहियाहसं वेयणं अहियासेइ। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थज्यवसाणणं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुवकरणं अणुप्पविदुस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । तओ पच्छा सिद्धे। तं एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं साहिए अप्पणो अट्ठ।
उवसग्गसवणेण कण्हस्स कोहो १५६ तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटणेमि एवं बयासी--
"केस णं भंते ! से पुरिसे अपत्थियपत्थिए, दुरंत-पंत-लक्खणे, होणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए, जेणं ममं सहोदरं कणीयसं भायरं गयसुकुमालं अणगारं अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेइ ?
उवसग्गकरणेण साहिज्जमेव विष्णं ति कोहसमणं १५७ तए णं अरहा अरिटुनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--
मा णं कण्हा ! तुम तस्स पुरिसस्स पदोसमावज्जाहि । एवं खलु कण्हा ! सेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे । कहष्णं भंते! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे? तए णं अरहा अरिटुनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-- से नूणं कण्हा ! तुम ममं पायवंदए हव्वमागच्छमाणे बारवईए नयरीए एगं पुरिसं जुण्णं जराजज्जरिय-देहं आउरं झुसियं पिवासियं दुब्बलं किलंतं महइमहालयाओ इट्टगरासीओ एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवि समाणं पाससि । तए णं तुमं तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए हत्थिखंधवरगए चेव एग इट्टगं गेण्हसि, गेण्हित्ता बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवेससि । तए णं तुमे एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहिं पुरिससरहिं से महालयाए इट्टगस्स रासी बहिया रत्थापहाओ अंतोघरंसि अणुपवेसिए। जहा णं कण्हा! तुमे तस्स पुरिसस्स साहिज्जे दिण्णे, एबामेव कण्हा ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स अणेगभव-सयसहस्ससंचियं कम्मं उदीरेमाणेणं बहुकम्मणिज्जरत्थं साहिज्जे दिग्णे ॥
उवसग्गकत्तारस्स परिणाणं कण्हेण तए णं से कण्हे वासुदेव अरहं अरिटुनेमि एवं बयासी"से णं भंते ! पुरिसे मए कहं जाणियव्वे ?"
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अरिनेमितित्थे सुमुहादकुमारा
१५८ तए णं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-
"जे षणं कहा ! तुमं चावईए नए अणुष्पविसमाणं पासेत्ता ठियए देव भएका करिस, तां तुमं जाणिज्जासि 'एस णं से पुरिसे' ।"
तए णं से कहे वासुदेवे अरहं अरिनेमि वंदइ नगंसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव आभिसेयं हत्थिरयणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हथिgoes, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
सोमिलस्स अकालमच्च्
१५९ तए णं तस्स सोमिलमाहणस्स कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अयमेयाख्वे अज्झ
बिए जाय-संकच्ये समुष्य एवं वसु कहे वासुदेवे अहं अभि पायबंदए निगए। तं नायमेयं अरया, विष्णायमेवं अरहवा, सुयमेवं रहा, सिटुमेयं अरया भविस्सह सहस्स वासुदेवस्स तं न नज्जद णं कहे वासुदेवे ममं केण कुमारेणं मारिस्स" त्ति कट्टु भीए तत्थे तसिए उब्बिग्गे संजायभए सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ । कण्हस्स वासुदेवस्स बारवई नयर अणुपविमाणस्स पुर स सपदिदिति माग ||
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लए गं से सोनिले ग्राहक वासुदेवं सहसा पासेसा भीए- आज संजाय भए दिए चैव ठिमेवं कालं करोड़, धरणितलंस सयंगेह 'स' लि सनिधि ॥
लणं सेवामा पास, पालिता एवं पयासी
"एस णं भो! देवागुनिया से सोमिले माहने अपत्विपत्थए-जाय-सिरि-हरि-धि-फिति-परिवजिए, जेणं ममं सहावरे कणीय से serer कुमाले अणगारे अकाले चैव जीवियाओ ववरोविए" त्ति कट्टु सोमिलं माहणं पाह कड्ढावेद, कड्ढावेत्ता तं भूमि पाणिएणं अभोक्खावेइ, अन्भोक्खावेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। सर्प गिहं अणुप्पविट्ठे ॥
अंत० व० ३, अ० ८ ।
१६० तेणं कालेणं तेणं समएणं आरवईए नयरीए कण्हे नाम वासुदेवे राया-जाव विहरइ ॥
तत्व णं बारवईए बलदेवे नाम रावा होत्या
।।
३३
९. अरिट्ठनेमितित्थे सुमुहाइकुमारा
६० क०५
तस्स णं बलदेवस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था--वण्णओ ॥
तणं सा धारिणी देवी अग्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि- जाव- नियगवयणमइवयंतं सोहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा । जहा गोयमे, नवरं - सुमुहे कुमारे। पण्णासं कण्णाओ । पण्णासओ दाओ । चोद्दस पुव्बाई अहिज्जइ । वीसं वासाइं परियाओ । सेसं सिद्धं ॥
तं
१६१ एवंवि हूए वि तिष्णि वि बलदेव धारिणी-सुवा ।
1
बाए एवं चैव नवरं वसुदेव धारिणी-मुए। एवं-- अणाहिट्टी वि वसुदेव- धारिणी- सुए ।।
अंत० ० ३, अ० ९-१३ ।
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१०. जालिआई समणा
गाहा-१. जालि. २. मयालि. ३. उवयालि, ४. पुरिससेणे य५. वारिसेणे य ।
६. पज्जुन्न ७. संबई. अनिरुद्धे, ९ सच्चनेमी य १०. दहनेमी ॥१॥ १६२ तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। तीसे णं बारवईए-नयरीए-जाव-कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं-जाव-कारेमाणे पालेमाणे विहर ॥
तत्थ णं बारवईए नगरीए वसुदेवे राया।धारिणी देवी-वण्णओ जहा गोयमो, नवरं-जालिकुमारे । पण्णासओ दाओ । बारसंगी। सोलस वाला परियाओ । सेसं जहा गोयमस्स-जाव-सेत्तुंजे सिदे॥ एवं-मयाली उवयाली पुरिससेणे य वारिसेणे य । एवं-पज्जुण्ण वि, नवरं-कण्हे पिया, रुप्पिणी माया । एवं-संबे वि, नवरं-अंबवई माया। एवं--अणिरुद्ध वि, नवरं-पज्जुण्णे पिया, वेदङमी माया । एवं-सच्चणेमी, नवरं--समुद्दविजए पिया, सिवा माया। एवं-दढणेमी वि सव्वे एगगमा ॥
अंत० व० ४, अ० १-१० ।
११. अरिट्टनेमितित्थे थावच्चापुत्ते अण्णे य
बारवईए कण्हो वासुदेवो
गरीए बहिया
यर-कोच-सारस्व
त्रिपणे निच
तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती नाम नयरी होत्था-पाईणपडीणायया उदोणवाहिणवित्थिण्णा नवजोयणवित्थिण्णा दुवालसजोयणायामा धणवइ-मइ-निम्मिया चामीयर-पवर-पागारा नाणामणि-पंचवण्णकविसीसग-सोहिया अलकापुरि-संफासा पमइय-पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया ॥ तीसे गं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए रेवतगे नाम पन्वए होत्था-सुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे नाणाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लिपरिगए हंस-मिग-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइलकुलोववेए अणेगतड-कडग-वियर-उज्झर-पवायपन्भारसिहरपउरे अच्छरगण-देवसंघ-चारण-विज्जाहरमिहुणसंविचिण्णे निच्चच्छणए दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्क-बलवगाणं, सोमे सुभगे पियदसणे सुरुवे पासाईए दरिसणीए अभिरूवे पडिरूवे ॥ तस्स णं रेवयगस्स अदूरसामंते, एत्थ णं नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था-सव्वोज्य-पुप्फ-फल-समिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए दरिसणए अभिरूवे पडिरूवे ॥ तस्स णं उज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए सुरप्पिए नामं जक्खाययणे होत्था-दिव्वे वण्णओ॥ तत्थ गं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ । से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसहं दसाराणं-जाव-अणेसि च बहूणं ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिईणं, वेयड्ढगिरि-सागरपेरंतस्स य शहिणड्ढ-भ रहस्स, बारवईए नयरीए आहेवच्चं-जाव-पालेमाणे विहरइ ॥
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अरिटुनमितित्थे थावच्चापुत्ते अण्णे य
गाहावईणी थावच्चा तीसे य पुत्तो थावच्चापुत्तो १६४ तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नाम गाहावइणी परिवसइ-अड्ढा-जाव-अपरिभूया ॥
तोसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नाम सत्यवाहदारए होत्था--सुकुमालपाणिपाए-जाव-सुरुवे ॥ तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेइ-जाव-भोगसमत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इब्भकुलबालियाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेइ । बत्तीसओ दाओ-जाव-बत्तीए इन्भकुलबालियाहिं सद्धि विपुले सद्द-फरिस-रस-हव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए भुंजमाणे विहरइ ॥
अरिट्रनेमि-समवसरणं
१६५ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी आइगरे तित्थगरे सो चेव वण्णओ दसधणुस्सेहे नीलुप्पल-गवलगुलिय अयसिकुसुमप्पगासे
अट्ठारसहि समण-साहस्सीहि, चत्तालीसाए अज्जियासाहसीहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगाम दुइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव बारवती नाम नगरी जेणेव रेवतगपब्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागपिछत्ता सहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहर।। परिसा निग्गया। धम्मो फहिओ।।
कण्हस्स पज्जुवासणा
तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठे समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी"खियामेव भो देवाणुप्पिया ! समाए सुहम्माए मेघोघरसियं गंभीरमहरसदं कोमुइयं भेरि तालेह ॥" तए णं ते कोडुबियपुरिसा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठ-चित्त-माणंदिया-जाव-मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तह त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कण्हस्स बासुदेवस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव कोमुइया भेरी, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरमहरसई कोमुइयं भेरि तालेति । तओ निद्ध-महुरनांभीर-पडिसुएणं पिव सारइएणं बलाहएण अणुरसियं भेरीए ॥ तए णं तीसे कोमुइयाए भेरीए तालियाए समाणीए बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडग-तियचउक्क-चन्चर-कंदर-दरी-विवर-कुहर-गिरिसिहर-नगरगोउर-पासाय-दुवार-भवण-देउल-पडिस्सुया-सयसहस्ससंकुलं करेमाणे बारवति नरि सब्भितर-बाहिरियं सव्वओ समंता सद्दे विष्पसरित्या ॥ तए णं बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए बारसजोयणायामाए समुद्दविजयामोक्खा दस दसारा-जाव-गणियासहस्साई कोमुइयाए भेरीए सई सोग्चा निसम्म हतु-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसम्पमाणहियया व्हाया आविद्ध-वग्धारिय-मल्लदाम-कलावा अहयवत्थ-चंदणोकिन्नगायसरीरा अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रह-सीया-संदमाणीगया अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियं पाउभविस्था । तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे-जाव-अंतियं पाउम्भवमाणे पासित्ता हद्वतुट्ठ-चित्तमाणंदिए-जाव-हरिसवसविसपमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउरंगिणि सेणं सज्जेह, विजयं च गंधहत्थि ज्वट्ठवेह तेवि तह त्ति उववेत्ति ॥ तए णं से कण्हे वासुदेवे व्हाए-जाव-सव्वालंकारविभूसिए विजयं गंधहत्थि दुरुढे समाणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयापड-चडगर-बंद-परियाल-संपरिवडे बारवतीए नयरीए मझमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्सा जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेब सुरपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवर पायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहओ अरिटुनेमिस्स छत्ताइज्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता विजयाओ गंधहत्याओ पच्चोरुहइ, पचोरुहित्ता अरहं अरिट्टनेमि पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ...जेणामेव अरहा अरिटुनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता अरहओ अरिटुनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं पज्जुवासइ ॥
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३६
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जासंकप्पो १६७ थावच्चापुत्ते वि निग्गए । जहा मेहे तहेव धम्म सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
पायग्गहणं करेइ । जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा ॥ तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ दिसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बाहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विष्णवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था ॥ तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसण ओ अभट्टइ अब्भत्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवडा जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स भवणवरपडिदुवार-देसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पडिहारदेसिएणं मग्गेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया ! मम एगे पुत्ते यावच्चापुत्ते नाम दारए--इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंबरपुष्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, फिमंग पुण दरिसणयाए ? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिपाइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवढिए नोवलिप्प हामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं । से गं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं इच्छइ अरहओ अरिहनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पदइत्तए । अहण्णं निक्खमणसवकारं करेमि । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्तस्स निक्खममाणस्स छत्त-मउड-चामराओ य विदिनाओ। तए णं कण्हे वासुदेवे थावच्चं गाहावइणि एवं वयासी"अच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिए ! सुनिव्वुत-वीसत्था, अहण्णं सयमेव थावच्चापुत्तरस दारगस्स निक्खमणसवकारं करिस्सामि ॥"
कण्हस्स थावच्चापुत्तस्स य परिसंवादो १६८ तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणीए सेणाए विजयं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे जेणेव थावच्चाए गाहावइणीए भवणे तेणेव उवाग
च्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी-- मा गं तुम देवाणुप्पिया ! मुंडे भवित्ता पव्वयाहि, भुंजाहि णं देवाणुप्पिया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे मम बाहुच्छायपरिग्गहिए । केवलं देवाणुप्पियस्स अहं नो संचाएमि वाउकायं उवरिमेणं गच्छमाणं निवारित्तए । अण्णो णं देवाणुप्पियरस जं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएइ, तं सव्वं निवारेमि ॥ तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-- "जइ णं देवाणुप्पिया ! मम जीवियंतकरं मच्च एज्जमाणं निवारेसि, जरं वा सरीररूव-विणासणि सरीरं अइबयमाणि निवारेसि, तए णं अहं तव बाहुच्छाय-परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भंजमाणे विहरामि ॥" तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वृत्ते समाणे थावच्चापुत्तं एवं वयासी-“एए णं देवाणुप्षिया बुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा निवारित्तए, नण्णत्व अप्पणो कम्मक्खएणं ॥" तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-"जइ णं एए दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा निवारित्तए, नण्णत्थ अप्पणो कम्मक्खएणं । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! अण्णाण-मिच्छत्त-अविरइ-कसाय-संचियस्स अत्तणो कम्मक्खयं करित्तए ॥ कण्हस्स जोगवखम-घोसणा तए णं से कण्हे वासुदेवे यावच्चापुत्तेणं एवं वृत्त समाणे कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो---"गच्छह णं देवाणुप्पिया ! बारवईए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु हस्थिखंध वरगधा महया-महया सद्देणं उग्धोसेमाणा-उग्धोसेमाणा उग्घोसणं करेह--एवं खलु देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्ते संसारभविग्गे भीए जम्मण-अर-मरणाणं, इच्छइ अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए, तं जो खलु देवाणुप्पिया ! राया वा जुबराया वा देवी वा कुमारे वा ईसरे वा तलवरे वा कोडुंबियमाडंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणु-पब्वयइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे अणुजाणइ पच्छाउरस्स वि य से मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स जोगक्खेम-वट्टमाणी पडिवहइ त्ति कटु घोसणं घोसेह-जाव-घोसति ॥
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अरिट्टनेमितित्थे थावच्चापुत्ते अण्णे य
१७१
थावच्चापुत्तस्स अभिनिक्खमणं १७० तए णं थावच्चापुत्तस्स अणुराएणं पुरिससहस्सं निक्खमणाभिमुहं व्हायं सव्वालंकारविभूसियं पत्तेयं-पत्तेयं पुरिससहस्सवाहिणीसु
सिबियासु दुरुढं समाणं मित्त-नाइ-परिवुडं थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउन्भूयं ॥ तए णं से कण्हे वासुदेवे पुरिससहस्सं अंतियं पाउम्भवमाणं पासइ, पासित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-"जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेओ, खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभ-सयसशिविट्ठ-जाव-सीयं उवट्ठवह ॥ तए णं से थावच्चापुत्ते बारवतीए नयरीए मझमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवतगपब्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहओ अरिट्टनेमिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता सोयाओ पच्चोरुहइ ॥ सिस्सभिक्खादाणं तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तं पुरओ काउं जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुपिया ! थावच्चापुत्ते" थावच्चाए गाहावइणीए एगे पुत्ते इ8 कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे बेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए ? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पद पंकरएणं नोबलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवड्ढिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं । एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभविगे भीए जम्मण-जर-मरणाणं, इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सभिक्खं" ॥ तए णं अरहा अरिटुनेमी कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे एयमट्ठ सम्म पडिसुणेइ ॥ तए णं से थावच्चापुत्ते अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतियाओ उत्तरपुरत्थिमं दिसीभायं अवक्कमइ, सयमेव आभरण-मल्लालंकारं
ओमुयइ। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरण-मल्लालंकार पडिच्छइ, हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलिप्पगासाई अंसूणि विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी रोयमाणी-रोयमाणी कंदमाणी-कंदमाणी विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयास:"जइयव्वं जाया ! घडियव्वं जाया ! परक्फमियव्वं जाया ! अस्सिं च णं अट्ठ नो पमाएयव्वं । अम्हंपिणं एसेव मग्गे भवउ त्ति कट्ट थावच्चा गाहावइणी अरहं अरिटुनेमि वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ॥"
थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जागहणं १७२ तए णं से थावच्चापुत्ते पुरिससहस्सेणं सद्धि सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव अरहा अरिटुनेमी तेणामेव उवागच्छइ,
उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ-जाव-पव्वइए ॥
थावच्चापुत्तस्स अणगारचरिया १७३ तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारे जाए-इरियासमिए-जाव-गुत्तबंभयारी अकोहे-जाव-निरुवलेवे, कंसपाईव मुक्कतोए-जाव-कम्मनिग्या
यणट्ठाए एवं च णं विहरइ ॥ तए णं से थावच्चापुत्ते अरहओ अरिटुनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुब्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ-छट्ठद्वम-दसम-बुवालसेहिं मासद्धमासखमहं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥
थावच्चापुत्तस्स जणवयविहारो सेलगपुरे समोसरणं च १७४ तए णं अरहा अरिटुनेमी थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स तं इन्भाइयं अणगार-सहस्सं सीसत्ताए दलयइ ॥
तए णं से थावच्चापुत्ते अण्णया कयाइं अरहं अरिट्टनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"इच्छामि गं भंते ! तुर्भेहि अब्भणण्णाए समाणे अणगारसहस्सेणं सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरित्तए ।
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
अहासुहं देवाणुप्पिया! तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरइ ।।
सेलगरायागमणं १७५ तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नाम नगरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे । सेलए राया। पउमावई देवी। मंडुए कुमारे जुवराया।
तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था-उप्पत्तियाए-जाद-पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चितयंति ॥ थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे । राया निग्गए।
सेलगस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती १७६ तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए धम्म सोच्चा एवं वयासी
"जहा णं देवाणुप्पियाणं सं अंतिए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता मुंडा भवित्ताणं अगाराओ अणचारियं पब्वइया, तहा णं अहं नो संचाएमि-जाव-पब्वइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं-जाव-गिहिधम्म पडिज्जिस्सामि।" अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेहि ॥ तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए पंचाणुध्वइयं-जाव-गिहिधम्म उवसंपज्जइ ॥
सेलगस्स समणोवासग-चरिया १७७ तए णं सेलए राया समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे अप्पाणं भावमाणे विहरई ॥
पंथगपामोक्खा पंच मंति-सया समणोवासया जाया ॥ थावच्चापुत्ते बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥
सोगंधियाए सुदंसणे सेट्ठी १७८ तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधिया नाम नयरी होत्था-वण्णओ। नीलासोए उज्जाणे-वण्णओ।
तत्थ णं सोगंधियाए नयरीए सुदंसणे नामं नयरसेट्ठी परिवसइ, अड्ढे-जाव-अपरिभूए ।
सोगंधियाए सुयपरिवायगागमणं तेणं कालेणं तेणं समएणं सुए नाम परिव्वायए होत्था--रिउवय-जजुब्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय-सद्वितंतकुसले संखसमए लट्ठ पंचजम-पंचनियमजुत्तं सोयमलयं दसप्पयारं परिव्वायगधम्मं दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणे पष्णवेमाणे धाउरत्त-वत्थ-पवर-परिहिए तिदंड-कुंडिय-छत्त-छनालय-अंकुस-पवित्तय-केसरि-हत्थगए परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि संपरिवडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिवायगावसहंसि भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता संखसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ॥ तए णं सोगंधियाए नगरीए सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ--एवं खलु सुए परिव्वायए इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव सोगंधियाए नयरीए परिव्वायगावसहंसि राखसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ॥ परिसा निग्गया! सुदंसणो वि णीति ॥
सुयपरिब्वायगेण सोयमलय-धम्मोवएसो १८० तए णं से सुए परिव्वायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अण्णेसि च बहूणं संखाणं परिकहेइ-एवं खलु सुदंसणा! अम्हं सोयमूलए
धम्मे पण्णते। से वि य सोए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दवसोए य, भावसोए य। दव्वसोए उदएणं मट्टियाए य। भावसोए दम्भेहि य मंतेहि य। जं णं अम्हं देवाणुप्पिया! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सज्जो पुढवीए आलिप्पइ, तओ पच्छा सुद्धण बारिणा पक्खालिज्जइ, तओ तं असुई सुई भवइ । एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छति ॥
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अरिहने मितित्थे थाबच्चापुत्ते अण्णे य
सुदंसणस्स सोयमूलय-धम्मपडिवत्ती १८१ तए णं से सुदंसणे सुयस्स अंतिए धम्म सोच्चा हट्ठतु8 सुयस्स अंतियं सोयमूलयं धम्म गेण्हइ, गेण्हिता परिव्वायए विउलेणं असण
पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभमाणे संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ तए णं से सुए परिव्वायए सोगंधियाओ नयरीओ निग्गच्छाइ, निग्गच्छित्ता बहिया जणवयविहार विहर॥
सोयमलधम्मविसए थावच्चापुत्तस्स सुदंसणेण संवादो चाउज्जामियधम्मोवएसोय १८२ तेणं कालेणं तेणं समएणं थावच्चापुत्तस्स समोसरणं । परिसा निग्गया। सुदंसणो वि णीह। थावच्चापुत्तं वंबइ नमसइ, वंदित्ता
नमंसित्ता एवं वयासी–तुम्हाणं किमूलए धम्मे पण्णते? तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणेणं एवं वुत्ते समाणे सुदंसणं एवं वयासी-सुदंसणा! विणयमूलए धम्मे पण्णत्ते। से विय विणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--अगार-विणए अणगा रविणए य। तत्थ णं जे से अगारविणए, से णं पंच अणुव्वयाई, सत्त सिक्खावयाइं एक्कारस उवासगपडिमाओ। तत्थ णं जे से अणगारविणए, से णं चाउज्जामा, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सब्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अविण्णादाणाओ बेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं ।
इच्चेएणं दुविहेणं विणयमूलएणं धम्मेणं आणुपुष्वणं अट्ठकम्मपगडीओ खबत्ता लोयग्गपट्ठाणा भवंति ॥ १८३ तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एवं वयासी-तुन्भण्णं सुदंसणा! किमूलए धम्मे पण्णत्ते ?
अम्हाणं देवाणुप्पिया! सोयमलए धम्मे पण्णत्ते -जावखलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छति ॥ तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एवं वयासी"सुदंसणा! से जहानामए केह पुरिसे एग महं रुहिरकयं वत्थं रुहिरेण चेव धोवेज्जा, तए णं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्यस्स रुहिरेण चेव पक्खालिज्जमाणस्स अस्थि काइ सोही? नो इण? सम?। एवामेव सुदंसणा! दुब्भं पि पाणाइवाएणं-जाव-बहिबादाणेणं नत्थि सोही, जहा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रहिरेणं चेव पक्खालिज्जमाणस्स नत्थि सोही। सुदंसणा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं रुहिरकयं वत्थं सज्जिय-खारेणं आलिंपइ, आलिंपित्ता पयणं आरुहेइ आरुहेत्ता उण्हं गाहेइ, तओ पच्छा सुद्धणं वारिणा धोवेज्जा। से नूणं सुदंसणा ! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स सज्जिय-खारेणं अणुलित्तस्स पयणं आरुहियस्स उण्हं गाहियस्स सुद्धेणं वारिणा पक्खालिज्जमाणस्स सोही भवइ ? हंता भवइ । एवामेव सुदंसणा! अम्हं पि पाणाइवायवेरमणेणं-जाव-बहिद्धादाणवेरमणेणं अत्यि सोही, जहा या तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स सज्जियखारेणं अणुलित्तस्स पयणं आरुहियस्स उण्हं गाहियस्स सुद्धणं वारिणा पक्खालिज्जमाणस्स अत्थि सोही ॥
सुदंसणस्स विणयमूलय-धम्मपडिवत्ती १८४ तत्थ णं सुदंसणे संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ, वंवित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--
इच्छामि णं भंते ! तुभं अंतिए धम्म सोच्चा जाणित्तए। तए णं थावच्चापुत्ते अणगारे सुदंसणस्स तोसे य महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा-- सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसाबायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ बेरमणं-जावतए णं से सुवंसणे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्यपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ॥
सुयेण सुदसणस्स पडिसंबोधो १८५ तए णं तस्स सुयस्स परिव्वायगस्स इमोसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयाहवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु सुदंस
णेणं सोयधम्मं विप्पजहाय विणयमूले धम्मे पडिवण्णे, तं सेयं खलु मम सुदंसणस्त दिद्धि वामेत्तए पुणरवि सोयमूलए धम्मे आघ
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
वित्तए त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि जेणेव सोगंधिया नगरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहंसि भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता धाउरत्त-वत्थ-पवर परिहिए पविरल-परिव्वायगेणं सद्धि संपरिखुडे परिव्वायगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सोगंधियाए नयरीए मजसंमज्झेणं जेणेव सुदंसणस्सगिहे जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ ॥ तए णं से सुदंसणे तं सुयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो अब्भुट्ठइ न पच्चुग्गच्छई नो आढाइ नो बंदइ तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं अणब्भुट्ठियं पासित्ता एवं वयासीतुम णं सुदंसणा! अण्णया मम एज्जमाणं पासित्ता अब्भुट्ठसि पच्चुग्गच्छसि आढासि वंदसि, इयाणि सुदंसणा! तुम मम एज्जमाणं पासित्ता नो अब्भुट्ठसि नो पच्चुग्गच्छसि नो आढासि नो वंदसि । तं कस्स गं तुमे सुदंसणा! इमेयारूवे विणयमूले धम्मे पडिवणे ?
१८६ ता
तए णं से सुदंसणे सुएणं परिव्वायगेणं एवं वुत्ते समाणे आसणाओ अब्भ टुइ, अब्भुट्ठता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सुयं परिवायगं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतेवासी थावच्चापुत्ते नाम अणगारे पुवाणुपुति चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह चेव नीलासोए उज्जाणे विहरइ। तस्स णं अंतिए विणयमूले धम्मे पडिवण्णे ॥ तए णं से सुए परिवायए सुदंसणं एवं वयासी"तं गच्छामो णं सुदंसणा! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउन्भवामो, इमाइं च णं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊइं पसिणाई कारणाइं वागरणाई पुच्छामो। तं जइ मे से इमाइं अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाइं वागरणाई वागरेइ, तओ णं वंदामि नमसामि । अह मे से इमाइं अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाई नो वागरेइ, तओ णं अहं एएहि चेव अहिं हेहि निप्पटपसिणवागरणं करिस्सामि ॥
सुयस्स थावच्चापुत्तेण सह संवादो १८७ तए णं से सुए परिव्वायगसहस्सेणं सुदंसणेण य सेट्ठिणा सद्धि जेणेव नीलासोए उज्जाणे जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवा
गच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी"जत्ता ते भंते ? जवणिज्जं ते (भंते ) ? अव्वाबाहं (ते भंते )? फासुयं विहारं (ते भंते ?)" 6ए ण से थावच्चापुत्ते अणगारे सुएणं परिव्वायगेणं एवं वुत्ते समाणे सुयं परिव्वायगं एवं वयासी-"सुया ! जत्तावि मे जवणिज्ज पि में अव्वाबाहं पि मे फासुयं विहारं पि में"। जत्ताइपदविचारणा तए णं से सुए थावच्चापुत्तं एवं वयासी--कि ते भंते ! जत्ता ? सुया! जण्णं मम नाण-दसण-चरित्त-तव-संजममाइएहिं जोएहि जयणा, से तं जत्ता। से कि ते भंते ! जवणिज्जं? सुया ! जवणिज्जे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाइंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे य। से कि तं इंदियजवणिज्जे? सुया! जणं ममं सोतिदिय-क्खिदिय-धाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाई निरुवहयाई वसे वटुंति, से तं इंदियजवणिज्जे। से कि तं नोइंदियजवणिज्जे? सुया! जण्णं मम कोह-माण-माया-लोभा खोणा उवसंता नो उदयंति, से तं नोइंदियजवणिज्जे। से कि ते भंते ! अव्वाबाहं ? सुया ! जण्णं मम बाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका नो उदीरेंति, से तं अव्वाबाहं । से कि ते भंते! फासुयं बिहारं?
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अनिमितत्वे धाववाले अणे य
४१
सुया | जणं आरामेतु उन्हातु देलेगु समासु पचासु इत्थी-पशु-पंग-विवज्जियासु बसही पारिहारियं पीड़ कलन- सेज्जासंधारयं ओगिरिता णं विहरामि से तं फालु बिहारं ॥
सरिसवाणं भवखाभवत्तवियारणा
१८८ सरिसवया ते भंते ! किं भक्खया ? अभक्खया ?
सुया ! सरिसवया भक्खया fव अभक्खया वि ।
से केण णं भंते! एवं वृण्वद सरिसवदा नवया वि अमक्या वि?
सुया ! सरिसवया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- मित्तसरिसवया य धण्णसरिसवया य ।
तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवया ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा
सहजापया सहयया सहीलिया, ते नं समगाणं निबंधानं अभया । तत्थ णं जे ते धण्णसरिसवया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा
सत्यपरिणया य असत्यपरिणया थे ।
तत्थ ण जे ते असत्यपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया ।
तत्थ णं जे ते सत्यपरिणया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा
फासुवा य अफासुया थे। अफासुया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्या ।
तत्थ णं जे ते फासूया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा
एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य ।
तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया ।
सत्य
से एसा ते दुहि पण्णत्ता, तं जहा
जाइया य अजाइया थे ।
तत्थ णं जे ते अजाइया ते णं समगाणं निथार्ण अभवखया ।
तत्थ णं जे ते जाइया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा
लद्वा य अलद्वा य । तत्थ णं जे ते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ णं जे ते लढा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खया ।
एएणं अट्ठणं सुया ! एवं वच्चइ -- सरिसवया भक्या वि अभक्खया वि ॥
कुलत्थाणं भवखाभवत्तवियारणा
१८९ कुलत्था ते भंते! कि भक्या ? अभक्या ?
सुया ! कुलत्था भक्या वि अभक्खया वि।
से केण णं भंते! एवं मुच्च कुलत्या नवखेवा वि अनया वि?
सुया! कुलत्वा दुबिहाता तं अहा- दत्यिकुलत्थाय धष्णकुलवा थ
तत्थ णं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा कुलवहुया इय कुलमाउया इ य कुलधूया इ य । ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया ।
तत्थ णं जे ते धष्णकुलत्था ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा - सत्यपरिणया य असत्यपरिणया य । तत्थ णं जे ते असत्यपरिणया ते णं समगाणं निग्गंथाणं अभक्खेया ।
तत्थ णं जे ते सत्यपरिणया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा- फासूया य अफासुया य । अफासुया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्खया ।
तत्थ णं जे ते फासूया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य ।
तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निगाणं अभक्खया ।
तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा जाइया य अजाइया य । तत्थ णं जे ते अजाइया ते णं समणाणं निम्गंथाणं अभक्खया
६० क० ६
ך
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४२
१९०
धम्मका दुतीय पो
तत्थ णं जे ते जाइया ते बुविहा पण्णत्ता, तं जहा -लद्वा य अलद्धा य । सत्थ णं जे ते अलद्वा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ णं जे ते लढा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भवखया ।
१९२
एएवं अगुवा एवं बकुला भावि अश्या वि ॥
!
मासाणं भषणाभक्तविचारणा
मासा ते भंते! किं भक्खया ? अभक्खया ?
सुया! मासा भक्वेया वि अभवखेया वि।
से केणटुणं भंते! एवं बुच्चइ - मासा भक्खया व अभवखया वि?
सुया ! मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-कालमासा य, अत्थमासा य धण्णमासा य ।
सत्य जे ते कालमाता ते बुबासविहान्नता संहासनवाए आसोए कलिए ममासिरे से माहे फल्गुणे येते साहे जेट्ठामूले आसाढे । ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभषखेया ।
तत्थ णं जे ते अत्थमासा ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा- हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य । ते णं समणाणं निम्गंधाणं अभक्वेया । तत्थ णं जे ते धण्णमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सत्यपरिणया य असत्यपरिणया । तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया ते पं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया ।
तत्थ णं जे ते सत्यपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- फासूया व अफासुया में अफाया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्या ।
तत्थ णं जे ते फासूया ते दुविहा पष्णता, तं जहा- एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं समणानं निग्गंथाणं अभक्खया ।
तत्थ गं जे ते एसणिज्जा ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा- जाइया य अजाइया य । तत्थ णं जे ते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ णं जे ते जाइया ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा - लद्धा य अलद्धाय । तत्थ णं जे ते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ णं जे ते लढा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खया ।
एएवं अनसुया! एवं बुवह माता भजेा वि अमक्या दि
एग - अक्खयाइपदविया रणा
१९१ एगे ? दुबे भवं ? अपवाद भयं ? अम्बर] [भ] ? अट्टिए
? अगप-भाव-भविए ?
सुपा ए वि अहं दुवे विवि अहं ए वि जहं अवद्वए वि अहं अगभूय-भाव-भविए वि यहं ।
सेकेट्टणं भंते! एगे वि अहं ? दुवे वि अहं ? अक्खए वि अहं ? अवए वि अहं ? अवट्टिए वि अहं ? अग भूय-भाव-भविए वि अहं ? सुया! दण्वट्टयाए एगे वि अहं, नाणदंसणट्टयाए दुवे व अहं, एसटुयाए अनखए वि अहं, अम्बए वि अहं, अवट्टिए वि अहं, उवओगट्टयाए अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं ॥
सुयस्त परिव्वायगसहस्सेण सह पव्वज्जा
एत्थ णं से सुए संबुद्धे थावच्चापुतं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं क्यासी"इच्छामि णं भंते! तुन्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्मं निसामित्तए । "
लए गं वावच्या अनगारे सुवास चाउमा धम्मं कहेंद्र ।।
तए णं मे सुए परिव्याधए वायरस अंतिए धम्मं सोच्या निसम्म एवं क्यासी- इच्छामि में भंते परिव्यासह स संपरिवडे देवागुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए । महादेविया ॥
!
तणं से सुए परिव्वायए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तिदंडयं च कुंडियाओ य छत्तए में छन्नालए य अंकुसए य पत्ति य केसरियाओ य धाउरत्ताओ य एगंते एडेड, सयमेव सिंहं उप्पाडेद, उप्पाडेत्ता जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उarच्छ, उवागच्छित्ता यावच्चापुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ, वंदिता नमसित्ता थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए मुंडे भविता पव्वइए । सामाइपमाइयाइं चोद्दसपुष्वाइं अहिज्जइ ॥
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अरिटुममितित्थे थावच्चापुत्ते अण्णे य
सुयस्स जणवयविहारो १९३ तए णं थावच्चापुत्ते सुयस्स अणगारसहस्सं सीसनाए वियरइ ।
तए णं थावच्चापुत्ते सोगंधियाओ नवरीओ नीलासोयाओ उउजाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हिया जणवयविहार विहरइ।
थावच्चापुत्तस्स परिनिव्वाणं १९४ तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि संपरिवुड़े जेणेव पुंडरीए पश्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं
सणियं-सणियं दुरुहह, दुरुहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता-जाव-संलेहणा-भूसणा-भूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पाओवगमणं णुवन्ने । तए णं से थावच्चापुत्ते बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए सलेहणाए अत्ताणं मूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता-जाव-केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ परछा सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहोणे॥ सुयस्स सेलगपुरागमणं सेलगस्स य अभिनिक्खमणाभिलासो सए णं से सुए अण्णया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। सेलओ निग्गच्छइ । तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्म सोच्चा निप्तम्म हद्वतु? सुधं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, फरेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं-जाव-नवरं देवाणुप्पिया ! पंथगपामोक्खाई पंच मंतिसयाई आपुच्छामि, मंडुयं च कुमारं रज्जे ठामि। तओ पच्छा देवाणुपियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया॥ तए णं से सेलए राया सेलगपुरं नगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागरिछत्ता सीहासणे सण्णिसण्णे ॥
१९६ तए णं से सेलए राया पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पिया! मए सुयस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तए णं अहं देवाणुप्पिया! संसार-भउव्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं सुयस्स अणगारस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्धयामि । तुम्भे णं देवाणुप्पिया! किं करेह ? कि ववसह ? कि भे हियइच्छिए सामत्थे ? तए णं ते पंथगमामोक्खा पंच मंतिसया सेलगं रायं एवं वयासी"जइ णं तुम्भं देवाणुप्पिया ! संसारभविग्गा-जाव-पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया! के अण्णे आहारे वा आलंबे का? अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया! संसारभउठिवग्गा-जाव-पब्वयामो। जहा णं देवाणुप्पिया! अम्हं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुबसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चवखुभूए, तहा णं पध्वइयाण वि समाणाणं बहूसु कज्जेसु य-जाव-चक्खुभूए ॥" तए णं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए एवं वयासी"ज इ णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे संसारभउव्विग्गा-जाव-पव्वयह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! सएसु-सएस कुडंबेसु जेट्टपुत्ते कुडंबमज्झे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूढ़ा समाणा मम अंतियं पाउन्भवह" । ते वि तहेव पाउन्भवति ।।
सेलगपुत्तमंडुयस्स रायाभिसेयो १९७ तए णं से सेलए राया पंच मंतिसयाई पाउन्भवमाणाई पासइ, पासित्ता हतुटु कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं क्यासी
खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह । तए णं ते कोडुबियपुरिसा मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठति ।। तए णं से सेलए राया बहूहि गणनायगेहि य-जाव-संधिवालेहि य सद्धि संपरिबुडे मंडुयं कुमार-जाव-रायाभिसेएणं अभिसिंचइ । तए णं से मंडुए राया जाए-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे-जाव-रज्जं पसासेमाणे विहरइ ।।
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
सेलयस्स पव्वज्जा तए णं से सेलए मंडुयं रायं आपुच्छइ॥ तए णं मंडुए राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सेलगपुरं नयरं आसिय-सित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलितं-जाव-सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥" तए णं से मंडुए दोच्चं पि को बियपुरिसे एवं वयासोखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सेलगस्स रणो महत्थं महग्धं महरिहं विउलं निक्खमणाभिसेयं करेह ? जहेव मेहस्स तहेव नवरंपउमावती देवी अग्गकेसे पडिच्छइ, सच्चेव पडिग्गहं गहाय सीयं दुरुहइ । अवसेसं तहेव-जावतए णं से सेलगे पंचहि मंतिसहि सद्धि ? सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेता जेणामेव सुए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुयं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ-जाव-पव्वइए। तए णं से सेलए अणगारे जाए-जाव-कम्मनिग्घायणट्ठाए एवं च णं विहरइ॥ तए णं से सेलए सुयस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ-छटुट्ठमदसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमहि अप्पाणं भावमाणे विहरइ॥
सुयस्स पुंडरीयपव्वए परिनिव्वाणं १९९ तए णं से सुए सेलगस्स अणगारस्स ताई पंथगपामोक्खाइं पंच अणगारसयाई सीसत्ताए वियरइ।
तए णं से सुए अण्णया कयाइ सेलगपुराओ नगराओ सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिमिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ तए णं से सुए अणगारे अण्णया कयाइ तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धि संपरिवुडे पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव पुंडरीयपव्वए-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
२००
सेलगस्स रोगातका तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहि अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला-जावदुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ । तए णं से सेलए तेणं रोगायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था । तए णं से सेलए अण्णया कयाइ पुवाणुव्वि चरमाणे-जाव-विहरई॥ परिसा निग्गया। मंडुओ वि निग्गओ सेलगं अणगारं बंदइ नमसइ पज्जुवासइ ।।
२०१
सेलगस्स मंडुयकया तिगिच्छा तए णं से मंडुए राया सेलगस्स अणगारस्स सरीरगं सुक्क भुक्खं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता एवं वयासी"अहणं भंते! तुम्भं अहापवहि तेगिच्छिएहि अहापवत्तणं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं तेगिच्छं आउट्टावेमि। तुभ णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह, फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं ओगिण्हित्ताणं विहरह ॥" तए णं से सेलए अणगारे मंडुयस्स रण्णो एयम8 तह त्ति पडिसुणेइ॥ तए णं से मंडुए सेलगं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। तए णं से सेलए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्स-रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते स-भंड-मत्तोवगरणमायाए पंथगपामोोहि पंचहि अणगारसएहिं सद्धि सेलगपुरमणुप्पविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मंडुयस्स रण्णो जाणसाला तेणेव उवागच्छा, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्ज पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं ओगिण्हित्ताणं विहर।।। तए णं से मंडुए तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! सेलगस्स फासु-एसणिज्जेण ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं तेगिच्छं आउद्देह ॥"
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अरिट्टनेमितित्थे थावच्चापुत्ते अण्णे य
४५
तए णं ते तेगिच्छिया मंडुएणं रण्णा एवं बुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा सेलगस्त अहापवत्तेहि ओसह-भेसज्ज-भत्तपाहि तेगिच्छं आउटृति, मज्जपाणगं च से उवदिसंति ॥ तए णं तस्स सेलगस्स अहापवत्तेहि ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेहि मज्जपाणए य से रोगायके उवसंते यावि होत्था--हढे मल्लसरीरे जाए ववगयरोगायंके ॥
सेलगस्स पमत्तविहारे २०२ तए णं से सेलए तंसि रोगायकसि उवसंतसि समाणंसि तंसि विपुले असण-पाण-खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए गढिए गिद्धे
अज्झोववने ओसने ओसनविहारी, पासत्थे पासत्यविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसते संसत्तविहारी उउबद्धपीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ते यावि विहरइ, नो संचाएइ फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं आपुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरित्तए॥
पंथगं अणगारं वेयावच्चकर ठावेत्ता सेलगसिस्साणं विहारो २०३ तए णं तेसि पंथगवज्जाणं पंचण्हं अणगारसयाणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सण्णिविट्ठाणं पुव
रत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणाणं अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था एवं खलु सेलए रायरिसी चइत्ता रज्ज -जाव-पव्वइए विउले असण-पाण-खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए नो संचाएइ फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं आपुग्छिछत्ता बहिया जणबपविहारं विहरित्तए । नो खलु कप्पाइ देवाणुप्पिया ! समणाणं निग्गंथाणं ओसन्नाणं पासत्थाणं कुसीलाणं पमत्ताणं संसत्ताणं उउ-बद्ध-पीढ-फलग-सेज्जासंथारए पमताणं विहरित्तए। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं कल्लं सेलग रायरिसिं आपुच्छिता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता सेलगस्स अणगारस्स पंथयं अणगारं वेयावच्चकरं ठावेत्ता बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए- एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं जेणेव सेलए रायरिसी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेलयं रायरिसिं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणंति, पच्चप्पिणित्ता पंथयं अणगारं वेयावच्चकर ठाति, ठावेत्ता बहिया जणवयविहारं विहरति ।।
मज्जपमत्तस्स सेलगस्स पंथगेणं चाउम्मासिय-खामणा २०४ तए णं से पंथए सेलगस्स सेज्जा-संथारय-उच्चार-पासवण-खेल्ल-सिंघाणमत्त-ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणएणं अगिलाए विणएणं वेयावडियं
करेइ ॥ तए णं से सेलए अण्णया कयाइ कत्तिय-चाउम्मासियंसि विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आहारमाहारिए सुबहुं च मज्जपाणयं पीए पच्चावरण्हकालसमयंसि सुहप्पसुत्ते॥ तए णं से पंथए कत्तिय-चाउम्मानियंसि कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कते, चाउम्मासियं पडिक्कमिडकामे सेलगं रायरिसि खामणट्ठयाए सीसेणं पाएसु संघट्टेइ ।
सेलगस्स कोवो पंथएणं खामणा य २०५ तए णं से सेलए पंथएणं सीसेणं पाएसु संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे उट्ठ'इ, उर्दुत्ता एवं वयासी
"से केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए, दुरंत-पंत-लक्खणे, होणपुण्णचाउसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवरिजए, जे णं ममं सुहपसुत्तं पाएसु संघट्टेइ?" तए णं से पंथए सेलएणं एवं बुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं बयासी"अहं णं भंते ! पंथए कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कते, चाउम्मासियं खामेमाणे देवाणुप्पियं वंदमाणे सीसेणं पाएसु संघट्टेमि । तं खामेमि णं तुब्भे देवाणुपिया ! खमंतु णं देवाणु प्पिया ! खंतुमरहंति णं देवाणुपिया ! नाइ भुज्जो एवंकरणयाए" त्ति कटु सेलयं अणगारं एयमट्ठ सम्मं विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेइ ॥
सेलगस्स पुणो अब्भुज्जयविहारो २०६ तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स पंथएणं एवं वुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था
एवं खलु अहं चइत्ता रज्जं-जाव-पव्वइए ओसने ओसनविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
संसत्ते संसतविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ते यावि विहरामि। तं नो खलु कप्पद समणाणं निगंथाणं ओसन्नाणं पासत्थाणं कुसीलाणं पमत्ताणं संसत्ताणं उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ताणं विहरित्तए। तं सेयं खलु मे कल्लं मंडुयं रायं आपुछिछत्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं मंडयं रायं आपूच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सज्जा-संथारगं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवय-विहारेणं विहरइ ॥
सेलगकहोवसंहारेणोवएसो २०७ एवामेव समणाउसो! जे निग्गंथे वा निग्गंथी वा ओसप्ने ओसन्त्रविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसौलविहारी पमत्ते पमत
विहारी संसते संमत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्त विहरइ, से णं इहलोए चेव बहणं समणाणं बहणं समीणं बहूर्ण सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य गं आगच्छइ बहूणि दंडगाणि य अगादियं च णं अणवयग्ग-दोहमद्धं चाउरंत-संसार कतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ ॥
सेलगसमीवे सेलगसिस्साणं पुणो आगमणं २०८ . तए णं ते पंथगवज्जा पंच अणगारसया इमीसे कहाए लद्धट्टा समाणा अण्णमण्णं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं बयासी
"एवं खल देवाणुपिया! सेलए रायरिसी पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरइ । तं सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं सेलगं रायरिसिं उपसंपज्जित्ताणं विहरत्तिए"-एवं संपेहेति, संपेहेत्ता सेलगं रायरिसि उवसंपज्जिताणं विहरति ।
२०९
पुडरीयपवए सोसि सेलगाईणं निव्वाणं तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा य पंच अणगारसया जेणेव पुंडरीए पवए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता पुंडरीयपध्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति, दुरुहिता मेवघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता-जाव-संलेहणा-झूसणा-झसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया पाओवगमणं णुवन्ना ॥ तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा य पंच अणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं काउणिता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसिता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता-जाव-केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिवडा सव्वदुक्खप्पहीणा ॥ एवामेव समणाउसो ! जो निग्गंथो वा निग्गंथी वा अन्भुज्जएणं जणवय-विहारेणं बिहरइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहणं सावियाण य अच्चणिज्जे बंदणिज्जे नमसणिज्जे पयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विगएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ । परलोए वियणं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछयणाणि य एवं हिययउपायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणणि य पाविहिड, पुणो अणाइयं च णं अणवदगं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं बीईवइस्स।
वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा-- २१० सिढिलिय-संजम-कज्जा वि होइउं उज्जमंति जइ पच्छा। संवेगाओ ते सेलओ व्व आराहया होंति ॥१॥
-णाया० सु० १ अ० ५।
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१२. रहनेमिसमणस्स राजीमइए समुद्धारो
२११ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्ढिए । 'वसुदेव' ति नामेणं, रायलक्खणसंजुए ॥१॥
तस्स भज्जा दुबे आसी, 'रोहिणी-देवई' तहा। तासि दोण्हं दुवे पुत्ता, इट्ठा 'राम-केसवा' ॥२॥ सोरियपुरम्भि नयर, आसि राया महिड्ढिए। 'समुद्दविजए' नाम, रायलक्खणसंजुए॥३॥ तस्स भज्जा 'सिवा' नाम, तीसे पुत्ते महायसे। भगवं 'अरिद्वनेमि' त्ति लोगनाहे दमीसरे ॥४॥ सोरिट्टनेमिनाभो उ, लक्खण-स्सर-संजुओ। अट्ठसहस्स-लक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी॥५॥ बजरिसह-संधयणो, समचउरंसो ससोदरो। तस्स 'रायमईकन्न' भज्जं जायइ केसवो ॥६॥ अह सा रायबरकता, सुसीला चारपेहणी। सन्ध-लक्षण-संत्रा, विज्जुसोयामणिप्पभा॥७॥ अहाह जगओ तीसे, वासुदेवं महिड्ढियं । इहायच्छ मारो, जहा से कनं दामिऽहं ॥८॥ सम्वोसहीहिं हविओ, मय-को ज्य-मंगलो। विवजुयल-परिहिओ, आभरणेहिं विभूसिओ ॥९॥ मत्तं च गंधहत्थि च, वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणी जहा ॥१०॥ अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिओ। दसारचक्केण य सो, सब्वओ परिवारिओ॥११॥ चउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कम। तुडियाण सनिनाएणं, दिव्वणं गगणं फुसे ॥१२॥
२१२ एयारिसीए इड्ढीए, जुईए उत्तमाइ य। नियगाओ भवणाओ, निज्जाओ वहिपुंगवो ॥१३॥
अह सो तत्थ निज्जतो, दिस्स पाणे भयदुए । वाहि पंजरेहिं च, संनिरुद्ध सुदुक्खिए ॥१४॥ जीवियंतं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियम्बए। पासित्ता से महापन्ने, साहिं इणमब्यवी ॥१५॥ अरिटुनेमीकस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणो। बाहिं पंजरेहि च, सन्निरुद्धा य अच्छिया? ॥१६॥ सारहीअह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो। तुज्झं विवाहकज्जम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥१७॥ अरिटुनेमीसोऊण तस्स वयणं, बहुपाण-विणासणं । चितेइ से महापत्र, साणुक्कोसे जिए हिओ ॥१८॥ जइ मज्झ कारण। एए, हम्मति सुबह जिया । न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई॥१९॥ सो कुंडलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो। आभरणाणि य सवाणि, सारहिस्स पणामइ ॥२०॥ मगपरिणामो यकओ, देवा य जहोइयं समोइण्णा सचिड्ढाइ सपरिसा, निक्खमणं तस्स काउं जे ॥२१॥ देव-मणुस्सपरिवुडो, सिबिया-रयणं तओ समारूढो । निक्खमिय बारगाओ, रेवयर्याम्म ठिओ भगवं ॥२२॥ उज्जाणं संपत्तो, ओइण्णो उत्तमाउ सोयाओ। साहस्सीय परिवुडो, अह निक्खमई उचिताहिं ॥२३॥ अह से सुगंधगंधीए, तुरियं मउअकुंचिए । सयमेव लुचई केसे, पंचढाहिं समाहिओ ॥२४॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइंदियं। इच्छ्यिमणोरहं तुरियं, पावसु तं दमीसरा!॥२५॥ नाणेणं दसणणं च, चरितण तहेव य । खंतीए मुत्तीए, वड्ढमाणो भवाहि य ॥२६॥ एवं ते राम-केसवा, दसारा य बहू जणा । अरि?णेमि वंदित्ता, अइगया बारगापुरि ॥२७॥
२१३
सोऊण रायकन्ना, पव्वज्जं सा जिणस्स उनीहासा य निराणंदा, सोगेण उ समुच्छिया ॥२८॥ राईमई विचितेइ, धिरत्थु मम जीवियं । जाऽहं तेणं परिच्चत्ता, सेयं पव्वइयं मम ॥२९॥ अह सा भमरसन्निभे, कुच्च-फणग-साहिए । सयमेव लुंचइ केसे, धिइमंती ववस्सिया ॥३०॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुतकेसि जिइंदियं । संसारसागरं घोरं, तर कन्ने ! लहुं लहुं ॥३१॥ सा पम्वइया संती, पव्वावेसी तहिं बहुं । सयणं परियणं चेव, सीलवंता बहुस्सुया ॥३२॥
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४८
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
२१४
गिरि रेवययं जंती, वासेणुल्ता उ अंतरा। वासंते अंधयारंमि, अंतो लयणस्स सा ठिया ॥३३॥ चीवराई विसारंती, जहा जायत्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो, पच्छा दिट्ठोय तीइ वि ॥३४॥ भीया य सा तर्हि दटुं, एगते संजयं तयं । बाहाहि काउ संगोल्फ, वेवमाणी निसीयई ॥३५॥ रहनेमीअह सो वि रायपुत्तो, समुद्दविजयंगओ । भीयं पवेवियं दटुं, इमं वक्कमुदाहरे ॥३६॥ 'रहनेमी' अहं भद्दे !, सुरूवे ! चारुहिणी !। ममं भयाहि सुयणु, न ते पीला भविस्सइ ॥३७॥ एहि ता भुंजिमो भोए, माणुस्सं खु सुदुल्लहं । भुत्तभोगा पुणो पच्छा, जिणमग्गं चरिस्सिमो ॥३८॥ राइमई-- दळूण रहनेमि तं, भग्गुज्जोय-पराजियं । राईमई असंभंता, अप्पाणं संवरे तहि ॥३९॥ अह सा रायवरक त्रा, सुट्ठिया नियमव्वए। जाई कुलं च सौलं च रक्खमाणी तयं वए ॥४०॥ जइ सि रूवेण वेसमाणो, ललिएण नल-कबरो। तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरंदरो॥४१॥ पक्खंदे जलिअं जोई, धमकेउं दुरासयं । नेण्छंति बंतयं भोत्तं, कुले जाया अगंधणे ।। धिरत्थु तेजसोकामी, जो तं जीवियकारणा । वंतं इच्छसि आवेडं, सेयं ते मरणं भवे ॥४२॥ अहं च भोगरायस्स, तं च सि अंधगवहिणो। मा कुले गंधणा होमो, संजमं निहुओ चर ॥४३॥ जइ तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ । वायाइद्धो ब्व हढो, अद्विअप्पा भविस्ससि ॥४४॥' गोवालो भंडवालो वा, जहा तद्दव्वणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि, सामण्णम भविस्ससि ॥४५॥ कोहं माणं निगिहित्ता, मायं लोभं च सव्वसो । इंदियाई बसे काउं, अपाणं उवसंहरे ॥ रहनेमी-- तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ॥४६॥२ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइंदिओ। सामण्णं निच्चलं फासे, जावज्जीवं दढव्वओ ॥४७॥ उग्गं तवं चरित्ताणं, जाया बुण्णि वि केवली । सव्वं कम्मं खवित्ताणं, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥४॥ एवं करेंति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियद्वृति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो ॥४९॥3
त्ति बेमि ॥
उत्त० अ० २२ ।
१. दस० अ० २ गा० ६-९ २. दस० अ० २ गा० १० ३. दस० अ० २ गा० ११
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१३. पासतित्ये अंगई सुपइट्ठो पुण्णभद्दाई य
गाहा १ चंदे, २. सूरे, ३ सुक्हे, ४. बहुपुत्तिय, ५. पुन्न, ६. माणिभद्दे य । ७. दत्ते, ८. सिवे, ९. बले या, १०. अणाढिए चैव बोद्धव्वे ॥१॥ २१५ ते काले तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया । तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा निग्गया ।
चंदेण जोइसिंदेण वड्ढमाणसमवसरणे नट्टविही
२१६ ते काणं तेणं समएणं चन्दे जोइसिन्दे जोइसराया चन्दवडसर विमाणे सभाए सुहम्माए चन्दंसि सीहासणंसि चह सामाणियसाहस्सीहि जाव- विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे पासइ, पासिता समणं भगवं महावीरं, जहा सूरिया, आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता - जाव-सुरिन्दाभिगमणजोग्गं करेत्ता तमाणत्तियं पञ्चप्पियन्ति । सुसरा घण्टा - जाव-विव्वणा। नवरं जाणविमाणं जोयणसहस्सवित्थिण्णं अद्धतेवट्टिजोयणसमूसियं, महिन्दजाओ पणुवीसं जोयणमूसिओ, सेसं जहा सूरियाभस्स, जाव- आगओ । नट्टविही, तहेव पडिगओ ।
"भन्ते" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं० पुच्छा। सरीरं अणुपविट्ठा० कूडागारसाला, पुव्वभवो एवं खलु गोयमा ! -
चंदस्स जोइसिंदस्स पुव्वभववण्णणे अंगइकहा
२१७ तेणं फालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नयरी होत्था । कोट्ठए चेइए। तत्थ णं सावत्थीए अङ्गर्ड नामं गाहावई होत्या अड्ढे -जाव अपरिभूए । तए णं से अई गाहावई सावत्थीए नयरीए बहूणं नगरनिगम जहा आणन्दो ||
तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे णं अरहा पुरिसादाणीए आइगरे, जहा महावीरो, नवस्सेहे सोलसेहि समण - साहस्सीहि अट्ठतीसाए अज्जिया - सहस्सेहि, जाव-कोट्टए समोसढे । परिसा निग्गया ।।
तए णं से अई गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हट्ट जहा कत्तिओ सेट्टी तहा निग्गच्छइ जाव- पज्जुवासइ धम्मं सोच्चा निसम्म, जं नवरं, "देवाणुप्पिया ! जेट्टपुत्तं कुडुम्बे ठावेमि । तणं अहं देवाणुप्पियाणं- जाव- पव्वयामि" । जहा गङ्गदत्ते तहा पव्वए - जाव-गुत्तबम्भयारी ॥
तणं से अङ्गई अणगारे पासस्स अरहओ तहारूवाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाई अहिज्जर, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ- जाव-भावेमाणे बहूइं वासाइं सामण्ण-परियागं पाउणइ । पाणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तो भत्ताइं अणसणाए छेइत्ता विराहियसामण्णे कालमा से कालं किच्चा चन्दवडिस विमाणे उववाइयाए सभाए देवसयणिज्जंसि देवसन्तरिए चन्दे जोइसिन्दत्ताए ज्ववन्ने ॥
तए णं से चन्दे जोइसिन्दे जोइसराया अहुणोववस्त्रे समाणे पञ्चविहाए पत्तीए पज्जत्तीभावं गच्छइ, तं जहा - १. आहारपज्जत्तीए, २. सरीरपत्तीए, ३. इन्दियपज्जत्तीए ४. सासोसासपज्जत्तीए, ५. भासामणपज्जत्तीए ॥
चंदस्स ठिई, महाविदेहे सिद्धी य
२१८ " चन्दस्स णं भन्ते ! जोइसिन्दस्स जोइसरन्नो के इयं कालं ठिई पन्नत्ता ?"
"गोयमा ! पलिओवमं वासस्यसहस्सम भहियं ।
एवं खलु गोयमा ! चन्दस्स-जाव - जोइसरनो सा दिव्वा देविढी० ।"
" चन्दे णं भन्ते ! जोइसिन्दे जोइसराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चइत्ता कहि गच्छिवि, कहि ववज्जिहिति ?"
"गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिद- जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।।"
घ० क० ७
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
२२२
पासतित्थे सुपइट्ठो अणगारो वड्ढमाणसमोसरणे सूरेण नट्टविही २१९ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। समोसरणं । जहा चन्दो तहा सूरो वि आगओ,
-जाव-नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगओ।
सूरस्स पुत्वभवो २२० पुन्वभवपुच्छा । सावत्थी नयरी । सुपइ8 नाम गाहावई होत्था अड्ढे-जाव-अपरिभूए जहेव अङ्गई-जाव - विहरइ । पासो समोसढो, जहा अङ्गई तहेव पव्वइए, तहेव विराहियसामण्णे-जाव-महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-अन्तं करेहिइ ॥ पुष्फि० उवं० ३, अ० २।
पुण्णभद्दे अणगारे पुण्णभद्ददेवेण वड्ढमाण-परिसाए नट्टविही २२१ तेणं कालेणं तेणं समयेणं रायगिहे नाम नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसरिए । परिसा निग्गया ।
तेणं कालेणं तेणं समयेणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे सभाए सुहम्माए पुण्णभदंसि सीहासणंसि चहि सामाणियसाहस्सीहिं, जहा सूरियाभो - जाव-बत्तीसइविहं नट्टविहिं उवदंसित्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए । कूडागारसाला। पुण्णभद्ददेवस्स पुव्वभवो पुन्वभवपुच्छा। "एवं खलु गोयमा ! - तेणं कालेणं तेणं समयेणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे मणिवइया नामं नयरी होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धा-जाव-वण्णओ । चन्दो राया। ताराइणे चेइए। तत्थ णं मणिवइयाए नयरीए पुण्णभद्दे नाम गाहावई परिवसइ अड्ढे-जाव-अपरिभूए। तेणं कालेणं तेणं समयेणं थेरा भगवन्तो जाइसंपन्ना-जाव-जीवियासमरणभयविप्पमुक्का बहुस्सुया बहुपरिवारा पुब्वाणुपुद्वि-जाव-समोसढा । परिसा निग्गया । तए णं से पुण्णभद्दे गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ, हट्ठ-जाव-जहा पण्णत्तीए गङ्गदत्ते, तहेव निग्गच्छइ-जाव-निक्खन्लो-जावगुत्तबम्भयारी॥ तए णं से पुण्णभद्दे अणगारे थेराणं भगवन्ताणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाइं अहिज्जइ । अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थछट्टम -जाव-भावित्ता बहूई वासाई सामण्णपरियायं पाउणइ। पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सद्धि भत्ताई अणसणाए छइत्ता आलोइय
पडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे उबवायसभाए देवसयणिज्जंसि-जाव-भासामणपज्जत्तीए । २२३ एवं खलु गोयमा ! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी-जाव-अभिसमन्नागया"।
पुण्णभद्दस्स णं भन्ते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा ! दो सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता। पुण्णभद्दे णं भन्ते ! देवे ताओ देवलोयाओ-जाव-कहि गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणं अन्तं काहिइ॥
पूप्फि० उ०३, अ०५। माणिभद्दे समणे माणिभद्ददेवेण वड्ढमाण-समोसरणे नट्टविही २२४ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसरिए ॥
तेणं कालेणं तेणं समयेणं माणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभदंसि सीहासणंसि चहि सामाणियसाहस्सीहि जहा पुण्णभद्दी तहेव आगमणं, नट्टविही ।
माणिभद्ददेवस्स पुन्वभव्वो २२५ पुवभवपुच्छा । मणिवइया नयरी, माणिभद्दे गाहावई, थेराणं अन्तिए पब्वज्जा, एक्कारस अङ्गाई अहिज्जइ, बहूई वासाई परियाओ,
मासिया संलेहणा, सद्धि भत्ताई - माणिभद्दे विमाणे उववाओ, शे सागरोवमाई ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥
पुष्फि० उवं० ३, अ०६। दत्ताई अण्णे अणगारा २२६ ७ एवं दत्ते, ८ सिवे, ९ बले, १० अणाढिए, सब्वे जहा पुण्णभद्दे देवे । सङ्केसि दो सागरोवमाई ठिई । विमाणा देवसरिसनामा । पुत्वभवे दत्ते
चन्दणानामाए, सिवे महिलाए, बले हत्थिणपुरे नयरे, अणाढिए काकन्दीए। चेइयाई जहा संगहणीए॥ पुफ्फि० उवं० ३, अ०७-१० ।
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१४. जियसत्तु-सुबुद्धिकहाणयं
चंपानयरीए जितसत्तुराया सुबुद्धिअमच्चे य २२७ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी। पृष्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया। धारिणी देवी। अदीणसत्तू कुमारे जुवराया वि
होत्या। सुबुद्धी अमच्चे-जाव-रज्जधुराचितए, समणोवासए । फरिहोदगवण्णओ तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमेणं एगे फरिहोदए यावि होत्था-मेय-वसा-रुहिर-मंस-पूय-पडल-पोच्चडे मयग-कलेवरसंछपणे अमणुण्ण चण्णणं अमणुपणे गंधेणं अमणुण्णे रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए--अहिमडे इ वा गोमडे इ वा - जावमय-कुहिय-विणढ-किमिण-वावण्ण-दुरभिगंधे किमिजालाउले संसते असुइ-विगय-बीभच्छ-दरिसणिज्जे। भवेयारूवे सिया ? नो इग? सम8 । एत्तो अणिद्वैतरराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुष्णतराए चेव अमणामतराए चेव गंधणं पण्णत्ते ॥
२२८
२२९
जियसत्तुणा पाणभोयणपसंसा तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ हाए कयबलिकम्मे-जाव-अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरै बहूहिं राईसर-जाव-सत्यवाहपभिईहिं सद्धि भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे एवं च णं विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए तसि विपुलंसि असण-पाण-खाइमसाइमंसि जायविम्हए ते बहवे राईसर-जाव-सत्यवाहपभिईओ, एवं वयासी-- अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम-साइमे वण्णेणं उववए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सन्विदियगाय-पल्हायणिज्जे॥ तए णं ते बहवे राईसर-जाव-सत्यवाहपभिईओ जियसत्तुं रायं एवं वयासीतहेव णं सामी ! जण्णं तुम्भे वयह-अहो णं इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम-साइमे वण्णणं उववेए-जाव-सविदियगाय-पल्हायणिज्जे॥
यस्त राया मुद्धा ! इमेणा रणा दोन विम्ह
सुबुद्धिणा पुग्गलस्स सुहासुहपरिणमणकहणं २३० तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी
अहो णं देवाणुप्पिया सुबुद्धी! इमे मणुष्णे असण-पाण-खाइम-साइमे-जाव-सविदियगाय-पल्हायणिज्जे ॥ तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमट्ठनो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्रइ । तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-- अहो णं देवाणुप्पिया सुबुद्धी ! इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम-साइमे-जाव-सविदियगायपल्हायणिज्जे ॥ तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे जियसत्तुं रायं एवं वयासी-'नो खलुस ामी ! अम्हं एयंसि मणुण्णंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि केइ विम्हए। एवं खल सामी ! सुबिभसहा वि पोग्गला दुबिभसद्दत्ताए परिणमंति, दुरिभसद्दा वि पोग्गला सुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति । सुरुवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति । सुब्भिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुन्भिगंधा वि पोग्गला सुबिभगंधत्ताए परिणमंति। सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमंति। सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति, दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए परिणमंति, पओग-वीससा-परिणया वि य णं सामी! पोग्गला पण्णत्ता॥" तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवमाणस्स एयमट्ठनो आढाइ नो परियाणाई तुसिणीए संचिट्ठइ ।
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५२
२३१
जियसत्तणा करिहोदगस्स गरहा
तर से जिस रावा अण्णया कवाइ व्हाए आबंधबरए महयाभह चडगर-आतवाहिणआए निजामाने तस्करहोदयस् अदूरसमंते बीई ॥
तए नियतत्त् रावा तरस फरिहोयगस्स अमेगं गंधे अभिभए समाने सएवं उत्तरिम्यमेणं आहे, पिता एतं अवक्कमद, अवयकमिता यहवे ईसर-जा-सत्यवापभिओ एवं ववासी
-
अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं जाव अमणुष्णे फासेणं, से जहानामए - - अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चैव गंधेणं पण्णत्ते ॥
लए सेब ईसर- जाव- सत्यवापभय
एवं बासी
तहेब णं तं सामी ! जं गं तुम्भे ययह--अहो णं इमे फरिहोवर अमय जाव अमरणे फासेणं, से जहानामए-अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ॥
तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धि अमभ्वं एवं वयासी - अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए अमगुण्णे वण्णेणं-जाव- अमणे फासेणं, से जहानामए - अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ॥
सुबुद्धिणा पुणो वि पुग्गलसहाववणणं
२३२लए
से बुद्धी अमचे जियस्सरणी एवम् नो आवाद मी परियाणा सिणीए चि
तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धि अमचं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीअहो णं सुबुद्धी! हमे करिहोबए अमगुणं वर्ण-जाव-अम
फासे
से जहानामए - - अहिमडे इ वा जाव अमणः मतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।।
धम्मक हाणुओगे दुतीयो बंधो
तए णं से सुबुद्धी अवरचे फरिहोस केंद्र बिम्हए
निवसतुणा रण्णा दोषवं पि तच्वं पि एवं मुसे समाणे एवं बयासी-मोलू सामी ! अहं एसि एवं खलु सामी !
वोग्य सताए परिणमति-जाब-हफासा वियोगाला गुफासत्ताए परिणमति । पलोग-बीसत्ता-परिणया विव सामी ! पोग्गला पण्णत्ता ॥"
जियसमा विरोधो
२३३लए जिस राया सुबुद्धि अम एवं ववासी
"माणं तुमं देवाचिया! अध्या च परं च भयं च बहूहि व सन्नाभावाहि छताभिनिवेसेण व बुग्गामा बुध्याएमाणे बहराहि" ॥
सुबुद्धिणा जलसोधणं
२३४लए सुबुद्धिस्त इमेवा अथिए-जावक समुयजित्वा अहो गंजियस राया संते तचेतहिए भक्ति
एण
नाये तो उसे सेयं खलु मम जियसतुस्स ररणो संताणं तच्चानं तहिया अवितहाणं सम्भूयाणं जिणपण्ण ताणं भावा अभिगममवाए एवम उवाणात एवं संतापचइएहि पुरिसेोहि सद्ध अंतरावनाओ नए घ पेन्टर, गेहिता संज्ञाकालसर्पति विनमसि निसंत-यदिनिसंतंसि गंगेव फरिहोदए तेच उपागच्छ उवागच्छिता तं फरिहोदगं गण्हा वेद, म्हाविला नव पगाल गालावेत्ता नवएसु घडए पक्खिवावे, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेइ,
वातायिमुदिए कारावं,
कारावेत्ता सतरतं परिवा
परिवासा दो पि नवए पढए गालावे,
गालावेता नव पद परिवाद, क्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेद,
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जियसत्तु-सुबुद्धिकहाणयं
पक्खिवावेत्ता लंछिय-महिए कारावेइ, कारावेत्ता सत्तरत्तं परिवसावेइ, परिवसावेत्ता तच्चं पि नवएसु पडएसु गालावेइ, गालावेत्ता नवएसु घडएसु पक्खिबावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछिय-मुद्दिए कारावेइ, कारावेत्ता सत्तरत्तं संवसावेई । एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा गालावेमाणे अंतरा पक्खिवावेमाणे अंतरा य संवसावेमाणे सत्तसत्तयराइंदियाइं परिवसावेइ। तए णं से फरिहोदए सत्तमंसि सत्तयंसि परिणममाणसि उदगरयणे जाए यावि होत्था--अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फालियवण्णाभे वण्णणं उववेए गंधणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए आसायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिजे सम्विदियगाय-पल्हायणिज्जे ।।
सुबुद्धिणा जलपेसणं २३५ तए णं सुबुद्धी जेणेव से उदगरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलंसि आसादेइ, आसादेत्ता तं उदगरयणं वण्णेणं उववेयं गंधणं
उववेयं रसेणं उववेयं फासेणं उववेयं आसायणिज्जं बिसायणिज्जं पोणणिज्जं दीवणिज्जं दप्पणिज्जं मयणिज्जं बिहणिज्जं सस्विदियगाय-पल्हायणिज्जं जाणित्ता हद्वतु? बहूहि उदगसंभारणिज्जेहिं दबेंहिं संभारेइ, संभारेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो पाणियपरियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी"तुम णं देवाणुप्पिया! इमं उदगरयणं गेण्हाहि, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेज्जासि ॥"
जियसत्तुणा उदगरयणपसंसा २३६ तए णं से पाणिय-धरिए सुबुद्धिस्स एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं उदगरयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए
उवट्ठवेइ॥ तए णं से जियसत्तू राया तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे एवं च णं विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य गं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभए तंसि उदगरयणंसि जायविम्हए ते बहवे राईसर-जाव-सत्थवाहपभिईओ एवं वयासी"अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे उदगरयणे अच्छे-जाव-सन्विदियगाय-पल्हायणिज्जे।" तए णं ते बहवे राईसर-जाव-सत्थवाहपभिईओ एवं बयासीतहेव णं सामी! जणं तुम्भे वयह-इमे उदगरयणे अच्छे-जाव-सविदियगायपल्हायणिज्जे॥
जियसत्तुणा उदगाणयणपुच्छा २३७ तए णं जियसत्तू राया पाणिय-धरियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
"एस गं तुमे देवाणुप्पिया! उदगरयणे कओ आसादिते?" तए णं से पाणिय-घरिए जियसत्तुं एवं वयासी"एस णं सामी! मए उदगरयणे सुबुद्धिस्स अंतियाओ आसादिते॥" तए णं जियसत्तू सुबुद्धि अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"अहो णं सुबुद्धी! केणं कारणेणं अहं तव अणि?-जाव-अमणामे जेणं तुम मम कल्लाकल्लि भोयणवेलाए इमं उदगरपणं न उवट्ठवेसि? तं एस गं तुमे देवाणुप्पिया ! उदगरयणे कओ उवलढे?"
सुबद्धिणा उत्तरं २३८ तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एस णं सामी! से फरिहोदए।
तए णं से जियसत्तू सुबुद्धि एवं वयासी-केणं कारणेणं सुबुद्धी! एस से फरिहोदए? तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो "एवं खलु सामी ! तुम्भे तया मम एवमाइक्खमाणस्स-जाव-पख्वेमाणस्स एयम नो सद्दहह । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए-जावसंकप्पे समुपज्जित्था--अहो णं जियसत्तू राया संते तच्चे तहिए अवितहे सम्भूए जिणपण्णत्ते भावे नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ । तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सब्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयम उवाइणावेत्तए--एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता तं चेव-जाव-पाणिय-परियं सदावेमि, सद्दावेत्ता एवं वदामि-- तुमं णं देवाणुप्पिया! उदगरयणं जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेहि । तं एएणं कारणेणं सामी ! एस से फरिहोदए ॥"
जियसत्तुणा जलसोधणं २३९ तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स एवमाइक्खमाणस्स-जाव-परूवेमाणस्स एयमट्ठ नो सहहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, असद्दहमाणे
अपत्तियमाणे अरोएमाणे अभितरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "गच्छह णं तुब्भ देवाणुप्पिया! अंतरावणाओ नवए घडए पडए य गेण्हह - जाव-उदगसंभारणिज्जेहिं दहि संभारेह।" तेवि तहेव संभारेति, संभारेत्ता जियसत्तुस्स उवणेति ॥
जियसत्तुस्स पुच्छा २४० तए णं से जियसत राया तं उदगरयणं करयलंसि आसाएइ, आसाएत्ता आसायणिज्जं-जाव-सविदियगाय-पल्हायणिज्जं जाणित्ता
सुबुद्धि अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"सुबुद्धी! एए णं तुमे संता तच्चा तहिया अवितहा सम्भूया भावा कओ उवलद्धा?"
सुबुद्धिस्स उत्तरं २४१ तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी--एए णं सामी! मए संता तच्चा तहिया अवितहा सम्भूया भावा जिणवयणाओ उवलद्धा ।।
तए गं जियसत्तू सुबुद्धि एवं वयासी-तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया! तव अंतिए जिणवयणं निसामित्तए ।
जियसत्तुस्स समणोवासयत्तं २४२ तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स विचित्तं केवलिपण्णत्तं चाउज्जामं धम्म परिकहेइ।
तए णं जियसत्त सुबुद्धिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटु सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-- "सहहामि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं-जाव-से जहेयं तुभे वयह । तं इच्छामि णं तव अंतिए पंचाणुव्वइयं सससिक्खावइयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ॥ तए णं से जियसत्तू सुबुद्धिस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं-जाव-दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जइ ।। तए णं जियसत्तू समणोवासए जाए--अहिगयजीवाजीवे-जाव-पडिलाभेमाणे विहरइ ।।
२४३
जियसत्तु-सुबुद्धीणं पव्वज्जा तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। जियसतू राया सुबुद्धी य निग्गच्छइ । सुबुद्धी धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वयासी--जं नवरंजियसत्तुं आपुच्छामि तओ पच्छा मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया! तए णं सुबुद्धी जेणेब जियसत्तू तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते। से विय धम्म इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तए णं अहं सामी! संसारभउब्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणणं इच्छामि णं तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पन्वइत्तए । तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि एवं वयासी--अच्छसु ताव देवाणुप्पिया ! कइबयाई वासाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणा तओ पच्छा एगयओ थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पम्वइस्सामो॥ तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमझें पडिसुणेई॥ तए णं तस्स जियसत्तुस्स रण्णो सुबुद्धिणा सद्धि विपुलाई माणुस्सगाई कामभोगाई पच्चणुभवमाणस्स दुवालस वासाई वीइक्कंताई।।
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नमिरायरिसी
२४४ तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। जियसत्तू राया धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासी--जं नवरं--देवाणुप्पिया ! सुबुद्धि अमच्चं
आमंतेमि, जेटुपुत्तं रज्जे ठावेमि, तए णं तुब्भणं अंतिए मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! तए णं जियसत्तू राया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबुद्धि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते-जाव-पव्वयामि। तुम णं किं करेसि? तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं रायं एवं वयासी-जइ णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा-जाव-पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के अण्ण आहारे वा आलंबे वा? अहं पि य णं देवाणुप्पिया! संसारभउब्विग्गे-जाव-पव्वयामि। तं जइ णं देवाणुप्पिया ! -जाव-पव्वाहि । गच्छह णं देवाणु प्पिया ! जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेहि, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुहित्ता णं ममं अंतिए पाउब्भवाहि । सो वि तहेव पाउब्भवउ । तए णं जियसत्तू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी''गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! अदोणसत्तुस्स कुमारस्स रायाभिसेयं उवट्ठवेह।" ते वि तहेव उवट्ठवेंति-जाव-अभिसिंचति -जाव
पन्वइए॥ २४५ तए णं जियसत्त रायरिसी एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता, मासियाए
संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता-जाव-सिद्धे॥ तए णं सुबुद्धी एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता -जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे॥
वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा २४६ मिच्छत्त-मोहियमणा, पावपसत्ता वि पाणिणो विगुणा । फरिहोदगं व गुणिणो, हवंति वरगुरुपसायाओ ॥१॥
णायाधम्मकहाओ सु. १ अ. १२
१५. नमिरायरिसी
मिहिलाए राया नमी तस्स य अभिनिक्खमणं २४७ चइऊण देवलोगाओ, उववन्नो माणुसंमि लोगंमि। उवसंत-मोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई॥१॥
जाइं सरित्तु भयवं, सह-संबुद्धो अणुत्तरे धम्मे। पुत्तं ठवित्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया ॥२॥ सो देवलोगसरिसे अंतेउर-वरगओ वरे भोए। भुंजित्तु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयइ ॥३॥ मिहिलं सपुर-जणवयं, बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खंतो, एगंतमहिट्टिओ भयवं ॥४॥ कोलाहलगम्भूयं, आसी मिहिलाए पध्वयंतंमि। तइया रायरिसिमि, नर्मिमि अभिणिक्खमंतंमि॥५॥
२४८
सक्केण सह नमिरायरिसिणो संवादो
अब्भुट्टियं रायरिसि, पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण, इमं वयणमब्बबी ॥६॥ (१) किं नु भो अज्ज मिहिलाए, कोलाहलगसंकुला । सुब्वंति दारुणा सद्दा, पासाएसु गिहेसु य॥७॥
एयमट्ठं निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमो रायरिसी, देविदं इणमब्बवी॥८॥ मिहिलाए चेइए बच्छे, सीयच्छाए मणोरमे। पत्त-पुप्फ-फलोबेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥९॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
वाएण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे। दुहिया असरणा अत्ता, एए कदंति भो! खगा ॥१०॥
एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसि, देविदो इणमब्बवी॥११॥ (२) एस अग्गी य वाऊ य, एवं डसइ मंदिरं । भयवं अंतेउरतेणं, कीस णं नावपेक्खह ॥१२॥
एयमढें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥१३॥ सुहं वसामो जीवामो, जेसि मो नत्थि किंचणं । मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचणं ॥१४॥ चत्तपुत्त-कलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जइ ॥१५॥ बहुं खु मुणिणो भई, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वओ विष्पमुक्कस्स, एगंतमणुपस्सओ॥१६॥
एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविदो इणमब्बवी ॥१७॥ (३) पागारं कारइत्ताणं, गोपुरट्टालगाणि य। ओमूलग-सयग्घीओ, तओ गच्छसि खत्तिया! ॥१८॥
एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥१९॥ सद्ध नगरं किच्चा, तव-संवरमग्गलं। खंति निउणपागारं, तिगुत्तं दुप्पधंसयं ॥२०॥ धणु परक्कम किच्चा, जीवं च इरियं सया। धिइंच केयणं किच्चा, सच्चेणं पलिमंथए ॥२१॥ तव-नाराय-जुत्तेणं, भित्तूणं कम्म-कंचुयं । मुणी विगय-संगामो, भवाओ परिमुच्चई ॥२२॥
एयमढं निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविदो इणमब्बवी ॥२३॥ (४) पासाए कारइत्ताणं, वड्ढमाणगिहाणि य। वालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥२४॥
एयमढे निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥२५॥ संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणइ घरं । जत्थेव गंतुमिच्छेज्जा, तत्थ कुग्विज्ज सासयं ॥२६॥
एयमलै निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥२७॥ (५) आमोसे लोमहारे य, गंठिभए य तक्करे। नगरस्स खेम काऊणं, तओ गच्छसि खत्तिया! ॥२८॥
एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥२९॥ असई तु मणुस्सेहि, मिच्छा दंडो पउंजए। अकारिणोऽत्थ बझंति, मुच्चए कारओ जणो॥३०॥
एयमलैं निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसि, देविदो इणमब्बवी ॥३१॥ (६) जे केइ पत्थिवा तुझ, नानमंति नराहिवा! वसे ते ठावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥३२॥
एयमलृ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥३३॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे। एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ॥३४॥ अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ। अप्पणा चेव अप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए ॥३५॥ पंचिदियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च । दुज्जयं चेव अप्पाणं, सब्वमप्पे जिए जियं ॥३६॥
एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिसि, देविदो इणमब्बबी ॥३७॥ (७) जइत्ता विउले जन्ने, भोइत्ता समण-माहणे। दच्चा भोच्चा य जट्ठा य, तओ गच्छसि खत्तिया!॥३८॥
एयमढं निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥३९॥ जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्सावि संजमो सेओ, अदितस्स वि किंचणं ॥४०॥
एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नर्मि रायरिसि, देविदो इणमब्बवी ॥४१॥ (८) घोरासमं चइत्ताणं, अन्नं पत्थेसि आसमं। इहेव पोसह-रओ, भवाहि मणुयाहिवा! ॥४२॥
एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥४३॥ मासे मासे तु जो बालो, कुसग्गेणं तु भुंजए। न सो सक्खाय-धम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसि ॥४४॥
एयमढें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रायरिंसि, देविंदो इणमब्बवी ॥४५॥ (९) हिरण्ण'सुवण्ण मणि-मुत्तं, कंस दूसंच वाहणं । कोसं वड्ढावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥४६॥
एयमढें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥४७॥ सुवण्ण-रुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलास-समा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि, इच्छा हु आगास-समा अणंतिया ॥४८॥
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महावीरतित्थे उसहदत्त-देवाणंदाणं चरियं
पुढवी साली जवा चेव, हिरणं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे॥४९॥
एयमलृ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमि रापरिसिं, देविदो इणमब्बवी ॥५०॥ (१०) अच्छेरयमन्भुदए, भोए चयसि पत्थिवा। असंते कामे पत्थेसि, संकप्पेण विहन्नसि ॥५१॥
एयमढें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ॥५२॥ सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा। कामे पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गइं॥५३॥ अहे वयइ कोहेणं, माणेणं अहमा गई । माया गइपडिग्घाओ, लोहाओ दुहओ भयं ॥५४॥
२४९ अवउज्झिऊण माहणरूवं, विउरुविऊण इंदत्तं। वंदइ अभित्थुणंतो, इमाहि महुराहि वहिं ॥५५॥
अहो ते निज्जिओ कोहो, अहो माणो पराजिओ। अहो ते निरक्किया माया, अहो लोहो वसीकओ॥५६॥ अहो ते अज्जवं साहु ! अहो ते साहु ! मद्दवं । अहो ते उत्तमा खंती, अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥७॥ इहं सि उत्तमो भंते, पेच्चा होहिसि उत्तमो। लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धि गच्छसि नीरओ॥८॥ एवं अभित्थुणंतो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए। पयाहिणं करेंतो, पुणो पुणो वंदए सक्को ॥५९ ॥ तो बंदिऊण पाए, चक्कं-कुस-लक्खणे मुणिवरस्स। आगासेणुप्पइओ, ललिय-चवल-कुंडल-तिरीडी॥६०॥ नमो नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुवट्ठिओ ।।६१॥ एवं करेंति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा। विणियटुंति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसि ॥६२॥
॥ति बेमि ॥
उत्त० अ०९।
१६. महावीरतित्थे उसहदत्त-देवाणंदाणं चरियं
२५०
माहणकुंडग्गामे उसहदत्तो माहणो तेणं कालेण तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था-वण्णओ। बहुसालए चेइए--वण्णओ। तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसमदत्त नामं माहणे परिवसइ--अड्ढे-जाव-अपरिभूए रिब्वेद-जजुब्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद-जाव-अण्णेसु य बहूसु बंभण्णएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे - जाव - अहा-परिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
उसहदत्तस्स भारिया देवाणंदा तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवाणंदा नाम माहणी होत्था--सुकुमालपाणिपाया-जाव-पियदंसणा सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा-जाव-अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ॥ उसहदत्त-देवाणंदाणं महावीरदसणाभिलासो तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा पज्जुवासइ॥ तए णं से उसभदत्ते माहणे इमोसे कहाए लद्धढे समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए-जाव-हियए जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता देवाणंदं माहणि एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे -जाव - सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं-जाव-सुहंसुहेणं विहरमाणे बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदण-नमंसणपडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ?
ध० क०६
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५८
धम्मकाणुओगे दुतीयो बंधो
तं गच्छामो णं देवाप्पिए! समणं भगवं महावीरं वंदामो- जाव- पज्जुवासमो । एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्साए आणुगामियत्ताए भविस्सइ " ॥
२५१ एसा देवागंदा माहणी उत्सभदत्तेणं माहणेणं एवं युता समाणी
करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु उसभदत्तस्स माहणस्स एयमट्ठ विणणं पडिसुणेइ ॥ तए णं से उसभदत्ते माहणे कोडुं बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
तुट्ट-वित्तमाणंदिया जाब हरिसवसविसप्यमाणहियवा
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहूकरणजुत्त- जोइय-समखुरवालिहाण - समलिहिर्यासंह, जंबूणयामय कलावजुत्त- पतिविसिट्ठे हिं, रययामयघंटा-सुत्तरज्जुय-पवरकंचणनत्थपग्गहोग्गाहियएहि, नीलुप्पलकयामेलएहि, पवरगोणजुवाणएहि नाणामणिरयण-घंटियाजालपरिगयं, सुजायजुग-जोत्तरज्जुयजुग-पसत्थसुविरचियनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उबद्ववेत्ता मम एतमाणत्तियं पच्चप्पिण ॥”
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा उसभदत्तेणं माहणेणं एवं वृत्ता समाणा हट्टुतुट्ठचित्तमाणंदिया- जाव- हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिगहि दसनहं सिरसावतं मत्यए अंजलि कट्टु एवं बयासिसामी! तहत्ताणाए बिणएवं वर्षणं पडिति, पडिला खिष्णामेव लहुकरणत जाव धम्मियं जाणण्यवरं जुत्तामेव उब्वेता समाणलियं पचपिति ॥
तए णं से उसभदत्ते माहणे पहाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिणिक्खमति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उबट्टाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे ।।
तणं सा देवाचा माहणी व्हाया जाय- अप्यमहन्याभरणालंकियसरीरा यहूहि जाहिं चितातियाहि-जाव-बेडियाचक्कवालबरिसधर-बेरकंचुइज्ज-महत्तरगबंदपरिक्खित्ता अंतेजराज निमाच्छति निग्गच्छिता जेणेव बाहिरिया उबद्वाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवर दुरूढा ।।
उसहदत्तदेवार्णदाणं दंसणत्थमागमणं
२५२ एणं से उसमदत्ते माहने देवाणंबाए माहणीए सद्धि धम्मियं जाणप्पवरं कुरुडे समाणे नियगपरियासंपरिवुडे माहाकुंडगा नगरं मज्मणं निगच्छ, निग्गन्छिता जेणेव बहुसालए पेइए तेणेव उपागच्छद्र, उवागच्छिता छत्तादीए तित्मकरातिसए पासइ पासित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविणं अभिगमेणं अभिगच्छति, तं जहा-
सच्चिताणं दव्वाणं विओसरणयाए- जाव-तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ।।
महावीरवंसणेण पृथ्वपुत्तसिणेहरागेण देवाणंदा आगयपन्हया संजाया
२५३ सा देवानंदा माहणी धनिया जानवराज पन्चोस्कृति, परचोरुहिता महि जाहि-जाव-बेडियाल परिसरबेरकंयुज्ज-महत्तरगदपरित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविणं अभिगमेणं अभिगच्छ व समभवं महावीरे लेगेव उच्चागण्ड, उवागच्छिता समणं भगवं महावीर तो आहि-याहि करेड, करेत्ता बंद नस, बंदिता नर्मसिता उसभवसं माहणं पुरओ कट्टु टिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी नर्मसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिकडा पज्जुवासइ ।।
तए णं सा देवाणंदा माहणी आगयपण्या पप्पुयलोयणा संवरियवलयबाहा कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंबगं पिव समूसवियरोमकूवा सवणं भगवं महावीरं अभिमताएं दिट्ठीए देहमाणी-देह्माणी चि ।।
देवादाए एवंवदंसणेण गोयमपण्हो भ महावीरकयं समाहाण च
२५४ भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - किं णं भंते! एसा देवाणंदा माहणी आगयपण्या पप्पुयलोयणा संवरियवलयबाहा कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंबगं पिव समूसवियरोमकूवा देवाणुप्पियं अणिमिसाए दिट्ठीए बेहमाणी-देहमाणी चिट्ठइ ?
गोपमा ! ति समणे भगवं महावीरे भगवं गोधनं एवं बयासी-
“एवं खलु गोयमा ! देवाणंदा माहणी ममं अम्मगा, अहण्ण देवाणंदाए माहणीए अत्तए । तण्णं एसा देवाणंदा माहणी तेणं पुव्वपुत्तसिणेहरागेणं आगवण्या जाव समूतवियरोमकूवा ममं अभिभिसाए दिट्ठीए रेहमानी-देह्माणी विद ।।"
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महावीरतित्थे उसहदत्त-देवाणंदाणं चरियं
भ. महावीरेण धम्मकहण २५५ तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवाणंदाएं माहणीए तीसे य मतिमहालियाए इसिपरिसाए-जाव-जोयणणी
हारिणा सरेण अद्धमागहाए भासाए भासइ--धम्म परिकहेइ-जाव-परिसा पडिगया ।
उसहदत्तस्स पव्वज्जाभिलासो २५६ तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुझें उढाए उठेइ, उद्वैत्ता समणं
भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी-- एवमेयं भंते ! -जाव--से जहेयं तुम्भे वदह त्ति कट्ट उत्तरपुरथिम दिसिभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- आलित्ते णं भंते ! लोए, पलिते णं भंते ! लोए, आलित-पलिते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य । एवं जहा खंदओ तहेव पव्वइओ॥
भ. महावीरेण उसहदत्तस्स पव्वायणा २५७ तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तं माहणं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव सेहावेइ, सयमेव सिक्खावेइ, सयमेव
आयारगोयरं विणय-वेणइये चरण-करणजायामायावत्तियं धम्ममाइक्खइ"एवं देवाणुप्पिया गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीइयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं, एवं भासियव्वं एवं उद्याय-उदाय पाहिं भूएहि जीहि सत्तेहि संजमेणं संजमियव्वं अस्सिं च णं अट्ठे णो किंचि वि पमाइयव्वं ।"
२५८
२५९
उसहदत्तस्स सिद्धी तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जई - जाव - सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ-छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहि, मासद्धमासखमणेहि विचित्तहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसेत्ता सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्टाए कीरति नग्गभावे-जाव-तमढें आराहेइ, आराहेत्ता चरमेहिं उस्सास-नीसासेहि सिद्ध बुद्धे मुक्के परिनिव्वुड़े सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ देवाणंदाए वि पव्वज्जा सिद्धी य तए णं सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हद्वतुट्ठा समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! एवं जहा उसभदत्तो तहेव-जाव-धम्ममाइक्खियं ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणि सयमेव पवावेइ, पव्वावेत्ता सयमेव अज्जचंदणाए अज्जाए सीसिणित्ताए दलयइ॥ तए णं सा अज्जचंदणा अज्जा देवाणंदं माहणि सयमेव मुंडावेति, सयमेव सेहावेति। एवं जहेव उसभदत्तो तहेव अज्जचंदणाए अज्जाए इमं एयारूवं धम्मियं उबदेसं सम्म संपडिवज्जइ, तमाणाए तहा गच्छइ-जावसंजमेणं संजमति ॥ तए णं सा देवाणंदा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतियं सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थछट्टम-दसम-दुवालसेहि, मासद्धमासखमहि विचितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसेत्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता चरमेहि उस्सास-नीसासेहि सिद्धा बुद्धा मुक्का परिनिन्वुडा सव्वदुक्खप्पहीणा ॥
भग० स-९, उ० ३३
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१७. बालतवस्सी मोरियपुत्ते तामली अणगारे
भ. महावीरसमोसरणे ईसाणदेविदेण नट्टविही २६० तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ मोयाओ नयरीओ नंदणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवय
विहारं विहरइ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था--वण्णओ-जाव-परिसा पज्जुवासइ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविदे देवराया ईसाणे कप्पे ईसाणवडेंसए विमाणे-जाव-दिव्वं देविढेि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता-जाब-जामेव दिसि पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए ।
देवज्जुतिअणुपविसणविसये पण्हो समाहाणं च २६१ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी--
अहो गं भंते ! ईसाणे देविदे देवराया महिड्ढोए-जाव-महाणुभागे । ईसाणस्स णं भंते ! सा दिव्वा देविड्ढो दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते ? कहिं अणुपविठे ? गोयमा ! सरीरं गते, सरीरं अणुपविठे ॥ से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ--सरीरं गते! सरीरं अणुपविट्ठ? गोयमा! से जहानामए कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा। तीसे णं कूडागारसालाए अदूरसामंते, एत्थ णं महेगे जणसमूहे एगं महं अब्भवद्दलग वा वासवद्दलगं वा महावायं वा एज्जमाणं पासति, पासित्ता तं कूडागारसालं अंतो अणुपविसित्ता गं चिट्ठइ। से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चति--सरीरं गते, सरीरं अणुपविठे।
ईसाणदेविन्दस्स पुब्वभवो २६२ "ईसाणेणं भंते ! देविदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिब्वे देवाणुभागे किणा लद्धे ? किणा पत्ते ? किणा
अभिसमण्णागए? के वा एस आसि पुब्वभवे ? किनामए वा? किंगोत्ते वा? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा-जाव-सण्णिवेसंसि वा? कि वा दच्चा? किं वा भोच्चा? किं वा किच्चा? किं वा समायरित्ता? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म ? जं णं ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिब्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए ?"
मोरियपत्ते तामली गाहावई तस्स य पाणामा पव्वज्जागहणाभिलासो २६३ एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तामलित्ती नामं नयरी होत्था--वण्णओ।
तत्थ णं तामलित्तीए नयरीए तामली नाम मोरियपुत्ते गाहावई होत्था--अड्ढे-जाव-अपरिभूए यावि होत्था ॥ तए णं तस्स मोरियपुत्तस्स तामलिस्स गाहावइस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था--"अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसे, जेणाहं हिरण्णणं वड्ढामि सुवण्णणं वड्ढामि, धणेणं वड्ढामि, धण्णणं वड्ढामि, पुत्तेहि वड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्जेणं अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं एगंतसोखयं उवेहमाणे विहरामि?
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बालतवस्सी मोरियपुत्ते तामली अणगारे
तं-जाव-ताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि-जाव-अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, जावं च मे मित्त-नाति-नियग-सयण-संबंधि-परियणो आढाति परियाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं विणएणं चेइयं पज्जुवासइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जावउट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं करेता विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण, संबंधि-परियणं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्टपुत्तं च आपुच्छित्ता, सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं गहाय मुंडे भवित्ता पाणामाए पवज्जाए पव्वइत्तए। पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि--कप्पइ मे जावज्जीवाए छठंछट्टैणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए, छठुस्स वि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुभित्ता सयमेव दारुमय पडिग्गहगं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता सुद्धोदणं पडिग्गाहेत्ता तं तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेता तओ पच्छा आहारं आहारित्तए ति" कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा 'जलते सयमेय दारुमयं पडिग्गहगं करेइ, करेत्ता विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता ततो पच्छा व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं सद्धि तं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसादेमाणे वीसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ।
तामलिणा पाणामापव्वज्जागहणं जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेइ, ठावेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्टपुत्तं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता मुंडे भवित्ता पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइए । पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ--"कप्पइ मे जावज्जीवाए छठंछट्टेणं-जाव-आहारित्तए त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता जावज्जीवाए छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। छट्ठस्स वि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गहगं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ, अडित्ता सुद्धोयणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत्ता तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता तओ पच्छा आहारं आहारेइ ॥ पाणामापव्वज्जाविवरण से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ--पाणामा पच्वज्जा? गोयमा ! पाणामाए णं पव्वज्जाए पव्वइए समाणे जं जत्थ पासइ--इंदं वा खंदं वा रुदं वा सिवं वा बेसमणं वा अज्जं वा कोट्टकिरियं वा रायं वा ईसरं वा तलवरं वा माडंबियं वा कोडुबियं वा इन्भं वा सेट्टि सेणावई वा सत्थवाहं वा काकं वा साणं वा पाणं वा--उच्च पासइ उच्च पणामं करेइ, नीयं पासइ नीयं पणामं करेइ, जं जहा पासइ तस्स तहा पणामं करेइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ पाणामा पव्वज्जा ॥
तामलिणा पाओवगमणसंलेहणागहणं २६६ तए णं से तामली मोरियपुत्ते तेणं ओरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं सुक्के-जाव-धमणिसंतए जाए यावि
होत्था। तए णं तस्स तामलिस्स बालतवस्सिस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिच्चजागरियं जागरमाणस्स इमेयारवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे-जाव-धमणिसंतए जाए, तं अत्थि जा मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव - उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते तामलित्तीए नगरीए दिट्ठाभट्ठे य पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिए य परियायसंगतिए य आपुच्छित्ता तामलित्तीए नगरीए मज्झंमज्झणं निग्गच्छित्ता पादुग-कुंडिय-मादीयं उवगरणं दारुमयं च पडिग्गहगं एगते एडित्ता तामलित्तीए नगरीए उत्तरपुरथिमे दिसिमाए
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
णियत्तणिय-मंडलं आलिहिता संलेहणा-असणा-भूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते तामलित्तीए नगरीए दिट्ठाभट्ठे य पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिए य परियायसंगतिए य आपुच्छइ, आपुच्छित्ता तामलित्तीए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पादुग-कुंडिय-मादीयं उवगरणं दारुमयं च पडिग्गहगं एगते एडेइ, एडेत्ता तामलित्तीए नगरीए उत्तरपुरथिमे दिसिभाए णियत्तणिय-मंडलं आलिहइ, आलिहिता संलेहणाशसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे ॥ बलिचंचारायहाणिवत्थव्वअसुरकुमारदेवेहिं इन्दत्थं पत्थणा तामलिणा अनियाणकरणं च तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहाणी अजिंदा अपुरोहिया यावि होत्था । तएणं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवाय देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासि"एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अणिदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवाणुप्पिया ! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवाणुप्पिया! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणिय-मंडलं आलिहित्ता संलेहणाझूसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तालि बालतस्सि बलिचंचाए रायहाणीए ठितिपकप्पं पकरावेत्तए" त्ति कट्ट अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्टपडिसुणेति, पडिसुणेत्ता बलिचंचाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव यागदे उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता-जाव-उत्तरवेउब्वियाई रूवाई विकुवंति विकुन्वित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए छेयाए सोहाए सिग्याए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए तिरियं असंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झणं वीईवयमाणा वीईवयमाणा-जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेब तामलित्ती नगरी जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तामलिस्स बालतवस्सिस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसि ठिच्चा दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवज्जुति दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेंति, उवदंसेत्ता तालि बालतर्वास्स तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे बलिचंचारायहाणीवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाणुप्पियं वंदामो नमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। अम्हण्णं देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी अणिदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवाणुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! बलिचंचं रायहाणि आढाह परियाणह सुमरह, अह्र बंधह, निदाणं पकरेह, ठितिपकप्पं पकरेह, तए णं तुम्भे कालमासे कालं किच्चा बलिचंचाए रायहाणीए उववज्जिस्सह, तए णं तुब्भे अम्हं इंदा भविस्सह, तएणं तुम्भे अम्हेहिं सद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरिस्सह ॥ तए णं से तामली बालतवस्सी तेहिं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहि बहूहि असुरकुमारहिं देवेहि देवीहि य एवं वुत्ते समाणे एयमझें नो आढाइ, नो परियाणेइ, तुसिणीए संचिइ । तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तालि मोरियपुत्तं दोच्चं पि तच्चं पि तिक्खुत्तो आयाहिण-पया हिणं करेंति-जाव-अम्हं च णं देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी अजिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवाणुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिा इंदाहीण-कज्जा, तं तुब्भेणं देवाणुप्पिया! बलिचंचं रायहाणि आढाह परियाणह सुमरह, अटुं बंधह, निदाणं पकरेह, ठितिपकप्पं पकरेह-जाव-बोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्त समाणे एयमझें नो आढाइ, नो परियाणेद, तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ तए गं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिणा बालतवस्सिणा अणाढाइज्जमाणा अपरियाणिज्जमाणा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।
तामलिस्स ईसाणिन्दत्तण उववाओ २६९ तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे कप्पे अणिदे अपुरोहिए यावि होत्था ॥
तए णं से तामली बालतवस्सी बहुपडिपुण्णाई सट्टि वाससहस्साई परियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सवीस भत्तसयं अणसणाए छेदित्ता कालकासे कालं किच्चा ईसाण कप्पे ईसाणवडेंसए विमाणे उववायसभाए देबसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए
अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए ईसाणदेविंदविरहियकालसमयंसि ईसाणदेविदत्ताए उववणे ॥ २७० तए णं से ईसाणे देविदे देवराया अहुणोववण्णे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहा-आहारपज्जत्तीए-जाव-भासा-मण
पज्जत्तीए॥
ईसाणिन्दत्तं णच्चा असुरकुमारदेवाणं रोसो तामलिसरीरहीलणं च २७१ तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तालि बालतस्सि कालगतं जाणित्ता, ईसाणे य कप्पे देविंद
ताए उववण्णं पासित्ता आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा बलिचंचाए रायहाणीए मझमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता
देवाणुप्पिया ! बाबालचचं रायहाणि आढा परियाणेइ, तुसिणीप सरावासणा अणाढा
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बालतवस्ती मोरियपुत्ते तामली अणगारे
ताए उक्किट्ठाए जाव-: य- जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती नयरी जेणेव तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरए तेणेव उवागच्छंति, वामे पाए संबंधति ततो मुनिति तामलितीए नगरीए सिंघाडग-तिग-बक्क-बच्चर-बउम्मूह-महापह-पहेतु आकड-विड करेमाणा, महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा - उग्घोसेमाणा एवं वयासि
केस णं भो ! से तामली बालतवस्ती सयंगहियलिंगे पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइए ? केस णं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया ? तिक तामलिस्स वालवस्थिस्सा सरीरयं हीलति नियंतित रहत अयमणंति सति तालेति परिबर्हति पचति आक विट करेंति, होलेत्ता निंदित्ता खिसित्ता गरहित्ता अवमण्णेत्ता तज्जेत्ता तालेत्ता परिवहेत्ता पबेहेत्ता आकड्ढ - विर्काड्ढ करेत्ता एगंते एडंति, एडित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।।
तामलिसरीरस्स होलणं गच्चा ईसाणिन्देण बलिचंचारायहाणिस्स वहणं
२७२ तए णं ते ईसाणकप्पवासी बहवे वैमाणिया देवा य देवीओ य बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहि बहूहि असुरकुमारेहि देवेहि देवीहि य तामलिस बालचरिसरस सरीरवं होलिज्माणं निविनमाणं खिसिज्जमानं गरहियमाणं अवमजमार्ग तन्निमाणं तालेज्नमाणं परियमाणं पञ्चनिमार्ण आकवि कोरमाणं पासंति, पासिता आसुस्ता- जाव- मिसिमिसेमाना जेणेव ईसा देविदे देवराया तेणेव उवागच्छति, उनागहिता करपलपरिग्नहिये उसनहं सिरसावतं मत्याए अंजलि कट जाए जिणं बद्धाति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-
एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवाय देवीओ य देवाणुप्पिए कालगए जाणित्ता ईसाय कप्पे दत्ताए उबवणेपासेला आसुस्ता जाएगंले एति, एडेला जामेव दिसि पाठभूया तामेव विसि पगिया ॥
तए णं ईसाणे देविदे देवराया तेसि ईसाणकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म आसुरुते जायमिसमिसेमाणे सत्येव सज्जवरगए तिवलिय भिड निवाले साह बलिचंचारामहाणि अहे सपविखं सपदिसि समभिलोए । तए णं सा बलिचंचा रायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा अहे सर्पाक्ख सपडिदिसि समभिलोइया समाणी तेणं दिव्वप्यभावेणं इंगालब्भूया मुम्मुरन्भूया छारियन्भूया तत्तकवेल्लकब्भूया तत्ता समजोइन्भूया जाया यावि होत्या ॥
असुरकुमारदेवेहि ईसाणिभ्यपत्थणं खमायणं व
२७३ तए णं ते बलिचारायहाणिवायव्यवा महवे असुरकुमारा देवा व देवीओ यतं बलिचंचं रामहाणि इंगालम्भूयं जाव- समजोइग्नू पासंति, पासिता भोआ तत्था तसिआ उत्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति, आधावेत्ता परिधावेत्ता अण्णमण्णस्स कार्य समतुरंगेमाणा समतुरंमाणा चिट्ठति ।।
तणं ते बलिचंचारापहानिवत्थामा महये अमरकुमारा देवा य देवीओ य ईसा देवि देवरायं परिकुवियं जाणिला ईसाणस्म देविंदस्स देवरण्णो तं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवज्जुइ दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सर्पाक्ख सर्पाडिदिसं ठिच्चा करपलपरिग्गहियं बसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएन बिजणं वद्धावेति वढावेला एवं वयासी अहो! देवापिए दिव्या देविदो दिव्या देवजुई दिव्ये देवाणुभावे सई यस अभिसमण्णागए संदिट्ठा णं देवागुप्पियाणं दिव्या देविको दिव्या देवन्तु दिवे देवाणुभावे लई पले अभिसमयागए, तं खामेमो णं देवागुप्पिया! खमंतु गं देवानुपिया ! संतुमरिहंति णं देवागुपिया! गाइ भुल्नो एवं करणयाए ति कट्टु एयमट्ठे सम्मं चिगएवं भुज्जो - भुज्जो खामेति ॥
तदणंतरं असुरकुमारा ईसाणिन्दस्स आणाए ठिया जाया
६३
२७४ लए गं से ईसा देविदे देवराया तेहि वतिचंचारायहाणिवत्थव्यएहि बहूहि असुरकुमारेहि देहि देवीहि य एयम सम्मं विगएवं भुमो-जो खामिते समाणे तं दिव्यं देविडि-नाव-तेवलेस्सं पडिसाहर तप्पभिति चणं गोयना ते बतिचंचारायहाणिवत्यव्यया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविदं देवरायं आढंति परियागंति सक्कारैति सम्मार्णेति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणणं पवासंति, ईसागस्स य देविंदस्स देवरम्यो आगा- उबवायवयण-निसे चिट्ठति ।
एवं खल गोधमा ! ईसामेण देविदेण देवरष्णा सा दिव्या देवडी दिव्या देवजुई दिवे देवाणुभावे लई पत्ते अभिसमयागए । ईसाणिन्दस्स ठिई महाविदेहे सिद्धी य
२७५ ईसाणस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो केवतियं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! सातिरेगाई दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।।
ईसाणे णं भंते ! देविदे देवराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छहिति ? कहि यज्जिहति ? गोयमा ! महाविदेहे मासे सिज्झिहिति बुझिहति मुचहिति सव्ययुक्खाणं अंतं काहिति ॥
भग० स० ३, उ० १ ।
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१८. अद्दगस्स अण्णतित्थिएण सह वादो
महावीरचरियं अहिकिच्च गोसालगस्स अक्खेवो २७६ पुराकडं अद्द ! इमं सुणेह, एगंतचारी समणे पुरासी । से भिक्खवो उवणेत्ता अणेगे आइक्खतिहि पुढो वित्थरेणं ॥१॥
साऽऽजीविया पट्टवियाऽथिरेण सभागओ गणओ भिक्खुमज्झे । आइक्खमाणो बहुजण्णमत्थं ण संधयाई अवरेण पुव्वं ॥२॥ एगंतमेवं अदुवा वि इण्हि दोऽवण्णमण्णं ण समेति जम्हा । पुचि च इण्हि च अणागयं च एगंतमेवं पडिसंधयाइ ॥३॥
अद्दगस्स उत्तरं समेच्च लोगं तसथावराणं खेमंकरे समणे माहणे वा । आइक्खमाणो वि सहस्समझे एगंतयं सारयई तहच्चे ॥४॥ धम्मं कहतस्स उपस्थि दोसो खंतस्स दंतस्य जिइंदियस्स । भासाय दोसे य विवज्जगस्स गुणे य भासाय णिसेवगस्स ॥५॥ महव्वए पंच अणुव्वए य तहेव पंचासव संवरे य । विरई इहस्सामणियम्मि पण्णे लवावसक्की समणे त्ति बेमि ॥६॥
सीओदगादिसेविणो ण पावमिति गोसालो । २७७ सीओदगं सेवउ बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णाभिसमेइ पावं ॥७॥
अद्दगस्स उत्तरं सोओदगं वा तह बीयकार्य आहायकम्म तह इत्थियाओ। एयाइं जाणे पडिसेवमाणा अगारिणो अस्समणा भवंति ॥८॥ सिया य बीयोदगइत्थियाओ पडिसेवमाणा समणा भवंतु । अगारिणो वि समणा भवंतु सेवंति उ ते वि तहप्पगारं ॥९॥ जे यावि बीओदगभोइ भिक्खू भिक्ख विहं जायइ जीवियट्ठी। ते णाइसंजोगमविप्पहाय काओवगा गंतकरा भवंति ॥१०॥
पावायाणं परोप्परं निन्देति गोसालगस्स अक्खेवो २७८ इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं पावाइणो गरहसि सव्व एव । पावाइणो पुढो किट्टयंता सयं सयं दिद्धि करेंति पाउं ॥११॥
अद्द गस्स उत्तरं ते अण्णमण्णस्स उ गरहमाणा अक्खंति ऊ समणा माहणा य । सतो य अत्थी असतो य णत्थी गरहामो दिढि ण गरहामो किंचि ॥१२॥ ण किंचि रूवेणऽभिधारयामो सदिट्टिमग्गं तु करेमो पाउं । मग्गे इमे किट्टिए आरिएहि अणुत्तरे सप्पुरिसेहि अंजू ॥१३॥ उड्ढे अहे य तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा । भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे णो गरहइ बुसिमं किंचि लोए ॥१४॥
मेहाविपुरिसपण्हभयेण महावीरो आरामगिहे न तिद्वतीति गोसलो २७९ आगंतगारे आरामगारे समणे उभीते ण उवेइ वासं। दुक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊणातिरित्ता य लवालवा य ॥१५॥
मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता सुत्तेहि अत्थेहि य णिच्छयण्णू । पुच्छिसु मा णे अणगार अण्णे इति संकमाणो ण उवेइ तत्थ ॥१६॥
अद्द गस्स उत्तरं णो कामकिच्चा ण य बालकिच्चा रायाभियोगेण कुओ भएणं? वियागरेज्जा पसिणं ण वा वि सकामकिच्चेणिह आरियाणं ॥१७॥ गंता व तत्था अदुवा अगंता वियागरेज्जा समियासुपण्णे । अणारिया सणओ परित्ता इति संकमाणो ण उवेइ तत्थ ॥१८॥
वणियसदिसो महावीरे त्ति गोसालगस्स अक्खेवो पण्णं जहा वणिए उदयट्ठी आयस्स हेउं पगरेइ संग । तओवमे समणे णायपुत्ते इच्चेव मे होइ मई वियक्का ॥१९॥
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महावीरतित्थे अद्दगस्स अण्णतित्थिएण सह वादो
अद्दगस्स उत्तरं णवं ण कुज्जा विहुणे पुराणं चिच्चाऽमई ताइ य साह एवं । एतावता बंभवति त्ति वुत्ते तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि ॥२०॥ समारभंते वणिया भूयगाम परिग्गहं चेव ममायमाणा । ते णाइसंजोगमविप्पहाय आयस्स हेउं पगरेंति संगं ॥२१॥ वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते भोयणट्ठा बणिया वयंति । वयं तु कामेहि अज्झोववण्णा अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥२२॥ आरंभगं चेव परिग्गहं च अविउस्सिया णिस्सिय आयदंडा। तेसि च से उदए जं वयासी चउरंतणंताय दुहाय ह ॥२३॥ गति णच्चंति वओदए से वयंति ते दो वि गुणोदयम्मि । से उदए साइमणंतपत्ते तमुदयं साहयइ ताइ णाई ॥२४॥ अहिंसयं सव्वपयाणुकंपी धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं । तमायदंडेहि समायरंता अबोहिए ते पडिरूवमेयं ॥२५॥
बुद्ध-भिक्खूणं हिंसा-अहिंसाविसये मतनिवेयणं २८० पिण्णागपिंडीमवि विद्ध सूले केई पएज्जा पुरिसे इमे त्ति। अलाउयं वा वि कुमारग त्ति स लिप्पई पाणिवहेण अम्हं ॥२६॥
अहवा वि विद्धण मिलक्ख सूले पिण्णागबुद्धीए णरं पएज्जा । कुमारगं वा वि अलाउए ति ण लिप्पई पाणिबहेण अम्हं ॥२७॥ पुरिसं च विद्धण कुमारगं वा सूलंमि केई पए जायतेए । पिण्णागपिडि सइमारुहेत्ता बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए ॥२८॥ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोपए णितिए भिक्खुयार्ण । ते पुण्णखधं सुमहऽज्जणिता भवंति आरोप्प महंतसत्ता ॥२९॥ अद्दगस्स उत्तरं अजोगरूवं इह संजयाणं पावं तु पाणाण पसज्म काउं । अबोहिए दोण्ह वि तं असाहु वयंति जे यावि पडिस्सुणंति ॥३०॥ उड्ढं अहे य तिरियं दिसासु विष्णाय लिगं तसथावराणं । भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे वदे करेज्जा वा कुओ विहऽत्थि ॥३१॥ पुरिसे त्ति विण्णत्ति ण एवमत्थि अणारिए से पुरिसे तहा हु। को संभवो पिण्णपिडियाए वाया वि एसा बुइया असच्चा ॥३२॥ वायाभिओगेण जमावहेज्जा णो तारिसं वायमुदाहरेज्जा । अट्ठाणमेयं वयणं गुणाणणो दिक्खिए बूय सुरालमेयं ॥३३॥ लद्धे अट्ठे अहो एव तुम्भे जीवाणुभागे सुविचितिते य । पुव्वं समुदं अवरं च पुढे ओलोइए पाणितलट्ठिए वा ॥३४॥ जीवाणुभागं सुविचितयंता आहारिया अण्णविहीए सोहि । ण वियागरे छण्णपओपजीवी एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं ॥३५॥ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णितिए भिक्खुयाणं । असंजए लोहियपाणि से ऊ णियच्छई गरहमिहेव लोए ॥३६॥ थूलं उरब्भं इह मारियाणं उद्दिट्ठभत्तं च पगप्पएत्ता । तं लोणतेल्लेण उवक्खडेता सपिप्पलीयं पगरंति मंसं ॥३७॥ तं भुंजमाणा पिसियं पभूयं णो उबलिप्पामो वयं रएणं । इच्चेवमाहंसु अणज्जधम्मा अणारिया बाल रसेसु गिद्धा ॥३८॥ जे यावि भुंजंति तहप्पगार सेवंति ते पावमजाणमाणा। मणं ण एयं कुसला करेंति वाया वि एसा बुइया उ मिच्छा ॥३९॥ सव्वेसि जीवाण दयट्टयाए सावज्जदोसं परिवज्जयंता । तस्संकिणो इसिणो णायपुत्ता उद्दिट्ठभत्तं परिवज्जयंति ।।४०॥ भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणा सव्वेसि पाणाण णिहाय दंडं । तम्हा ण भुजंति तहप्पगारं एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं ॥४१॥ णिग्गंथधम्मम्मि इमा समाही अस्सि सुठिच्चा अणिहे चरेज्जा । बुद्धे मुणी सीलगुणोववेए इहच्चणं पाउणई सिलोगं ॥४२॥
सियाणगभोयणेण पुण्णज्जणमिति वेय-वाईणं मतं २८१ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णितिए माहणाणं । ते पुण्णखंघे सुमहज्जणित्ता भवंति देवा इइ वेयवाओ ॥४३॥
अगस्स उत्तरं सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णितिए कुलालयाणं । से गच्छई लोलुवसंपगाढे तिव्वाभितावी णरगाभिसेवी ॥४४॥ दयावरं धम्म दुगुंछमाणे बहावहं धम्म पसंसमाणे । एगं पि जे भोययई असील णिहो णिसं गच्छद्द अंतकाले ॥४५॥
संख-परिव्वायगाणं अव्वत्तरूवपुरिसविसये मतं २८२ दुहओवि धम्मम्मि समुठ्यिामो अस्सि सुठिच्चा तह एसकालं । आयारसीले बुइएह णाणे ण संपरायम्मि विसेसमत्थि ॥४६॥
अव्वत्तरूवं पुरिसं महंत सणातणं अक्खयमव्वयं च । सन्वेसु भूएसु वि सव्वओ से चंदो व ताराहि समत्तरूवे ॥४७॥ १. णिवो णिसं जाति कुओ सुरेहि । इइ पाठंतरं । ध० कह
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
अगस्स उत्तरं एवं ण मिज्जंति ण संसरंति ण माहणा खत्तिय-वेस-पेसा। कोडा य पक्खी सरीसिवा य जरा य सव्वे तह देवलोगा ॥४८॥ लोगं अयाणित्तिह केवलेण कहिति जे धम्ममजाणमाणा। णासेंति अप्पाण परं च णट्ठा संसार घोरम्मि अणोरपारे ॥४९॥ लोगं विजाणंतिह केवलेणं पुण्णण णाणेण समाहिजुत्ता। धम्म समत्तं च कहिति जे उ तारेंति अप्पाण परं च तिण्णा ॥५०॥ जे गरहियं ठाणमिहावसंति जे यावि लोए चरणोववेया। उदाहडं तं तु समं मईए अहाउसो विप्परियासमेव ॥५१॥
हत्थितावसाणं साभिप्पाय-निरूवणं २८३ संवच्छरेणावि य एगमेगं बाणेण मारेउ महागयं तु । सेसाण जीवाण दयट्टयाए वासं वयं वित्ति पकप्पयामो ॥५२॥
अगस्स उत्तर-पदं संवच्छरेणावि य एगमेगं पाणं हणंता अणियत्तदोसा । सेसाण जीवाण वहेण लग्गा सिया य थोवं गिहिणो वि तम्हा ॥५३॥ संवच्छरेणावि य एगमेगं पाणं हणंते समणव्वते ऊ। आयाहिए से पुरिसे अणज्जे ण तारिसं केवलिणो भणंति ॥५४॥ बुद्धस्स आणाए इमं समाहि अस्सि सुठिच्चा तिविहेण ताई । तरिउं समुदं व महाभवोघं आयाणवं धम्ममुदाहरेज्जासि ॥५५॥
--त्ति बेमि ॥ सूय. सु. २ अ०६।
१६. महावीरतित्थे अइमुत्तए कुमारसमणे
पोलासपुररण्णो अइमुत्तकुमारो २८४ तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे नगरे । सिरिवणे उज्जाणे ।।
तत्थ णं पोलासपुरे नयरे विजये नामं राया होत्था ।। तस्स णं विजयस्स रण्णो सिरी नामं देवी होत्था--वण्णओ। तस्स णं विजयस्स रण्णो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अतिमुत्ते नाम कुमारे होत्था--सूमालपाणिपाए ।
२८५
गोयमस्स भिक्खायरिया तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-सिरिवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी इंदभूती अणगारे जाव-पोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ
२८६
गोयम-अइमुत्तकुमार-संवादो इमं च णं अइमुत्ते कुमारे हाए-जाव-सव्वालंकारविभूसिए बहहिं दारएहि य दारियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इंदट्ठाणे तेणेव उवागए । तेहिं बहूहिं दारएहि य संपरिबुडे अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ॥
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महावीरतित्थे अइमुत्तए कुमारसमणे
तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मजिसमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे इंदट्ठाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ॥ तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए भगवं गोयमं एवं वयासी-- "के णं भंते ! तुन्भे? किं वा अडह ?" तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी-- "अम्हे णं देवाणुप्पिया! समणा निग्गंथा इरियासमिया-जाव-गुत्तबंभयारी उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडामो॥" तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी"एह णं भंते ! तुम्भे जा णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमि" त्ति कटु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया। भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिविसज्जेइ।। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं बयासी-- “कहि णं भंते ! तुम्भे परिवसह ?" तए णं से भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं बयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिया! मम धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे आइगरे -जाव-सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तत्थ गं अम्हे परिवसामो ॥"
अइमुत्तकुमारस्स पव्वज्जा २८७ तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी--
"गच्छामि गं भंते ! अहं तुहि सद्धि समणं भगवं महावीरं पायवंदए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेहि ॥" । तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवया गोयमेणं सद्धि जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ-जाव-पज्जुवासइ ।। तए णं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमेइ, पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरई॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स तोसे य महइमहालियाए परिसाए मनगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ ॥ तए णं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्टे एवं वयासी-- "सहहामि णं भंते ! निगंथं पावयणं-जाव-जं नवरं-देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए -जाव-पव्वयामि।" अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए-जाव-इच्छामि णं अम्मयाओ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए । तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं बयासी--
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"बाले सिताब तुमं पुत्ता ! असंबुद्धे, किं णं तुमं जाणसि धम्मं ?"
तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी --
" एवं खलु अहं अम्मयाओ ! जं चेव जाणामि तं चैव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चैव जाणामि ।।" तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-
"कहं णं तुमं पुत्ता ! जं चेव जाणसि तं चैव न जाणसि ? जं चेव न जाणसि तं चैव जागसि ? "
तए णं से अइमुले कुमारे अम्मापियरो एवं बयासी --
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" जाणामि अहं अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्स मरियध्वं न जाणामि अहं अम्मयाओ ! काहे वा कहि वा कहं वा किय चिरेण वा ? न जाणामि गं अम्मयाओ! केहि कम्बापपणेहिं जीवा नेरइय-तिरिषखजोणिय-मनुस्स-देवे उपवनंति जानामि णं अम्बयाओ ! जहा सहि कम्माययहि जीवा रय-तिरिवाजो नियमणुस्स देवंसु उवयति ।
एवं खलु अहं अम्मयाओ ? जं चैव जाणामि तं चैव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चैव जाणामि । तं इच्छामि गं अम्मयामी ! तुमेहि अन्माए-जाव-पव्वलए ।।"
धम्मकहाणुओगे वृतीयो बंधो
तए से अहमु कुमारं अम्माप जाहे नो संचाएं बहू आघवणाहि व पण्णवाहिय सगवगाहि व विवाह प आत्तिए या पणवित्तए वा सम्पवित्तए वा विनवित्तए वा ताहे अकामकाई बेव असं कुमारं एवं बयासी-
"तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रायसिरिं पासेत्तए । "
लए गं से अहमुत्ते कुमारे अम्मापितवयणमण्यमाणे तुमिणीए संचिड अभिनेओ जहा महत्वलास नियमणं जाय-सामा माइयाई एक्कारस अंगाई अहिरन ।
अंत० ० ६ अ० १५ ।
समणअइमुत्त गकुमारस्स कीलणं
२८८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अहमुत्ते नामं कुमार-समणे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायाली में मिउमद्दयसंपन्ने अल्लीणे विणीए ।
तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे अण्णया कयाइ महावुट्ठिकार्यसि निवयमाणंसि कक्खपडिग्गह- रयहरणमायाए बहिया संपट्टिए विहाराए ॥
तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे वाहयं वहमाणं पासइ, पासित्ता मट्टियाए पालि बंधइ, बंधिता णाविया मे, णाविया मे नाविओ विव णावमयं पडिग्गहगं उदगंसि पव्वाहमाणे- पव्वाहमाणे अभिरमइ । तं च थेरा अद्दक्खु । जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वदासी-
"एवं खलु देवानुपिवानं अंतेवासी असे नामं कुमार-समणे, से णं भंते अमुले कुमार-समने कतिहि ति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति ?"
२८९ 'अज्जो ति !' समणे भगवं महावीरे ते थेरे एवं वयासी-
"एवं खलु अनो ! ममं अंतेवासी अमुले नाम कुमार-समणे पगह भए- जाव-विनीए से भयग्यहणं सिविझहिति जाव अंत करेहिति तं मा णं अम्लो तुम अमुर्त कुमार-सम मरण तुम्भे गं देवाविया ! अदमुत्तं कुमार-समणं अगिलाए संगिष्टह, अगिलाए उनिहरु वेयावडियं करेह । अइमुत्ते णं कुमार-समणे अंतकरे, चेव, अंतिमसरीरिए चेव ॥"
तए णं ते थेरा भगवंतो समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, अइमुत्तं कुमारसम अविताए संविहंति अगिलाए उवगिरहंत, अगिलाए भत्तेगं पागेणं बिग
पावहियं करेति ॥
बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, गुणरयणं तवोकम्मं जाव विपुले सिद्धे ॥
,
अहम कुमार-समणे इमेणं सेव हीले निवह विवह अब अगिलाए भत्तेर्ण पाणे दिए
भग० स० ५ उ० ४ ।
अंत
[० ० ६ अ० १५ ।
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२०. महावीरतित्थे अलक्कराया
अलक्करायस्स पव्वज्जा २९० तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नयरी, काममहावणे चेइए॥
तत्व णं वाणारसीए अलक्के नाम राया होत्था ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-विहरइ । परिसा निग्गया। तए णं अलक्के राया इमीसे कहाए लद्धढे हट्ठतुळे जहा कोणिए-जाव-पज्जुवासइ । धम्मकहा। तए णं से अलक्के राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए जहा उद्दायणे तहा निक्खंते, नवरं--जेटुपुत्तं रण्जे अभिसिंचइ। एक्कारस अंगाई। बहू वासा परियाओ-जाव-विपुले सिद्धे ॥
अंत० व० ६ अ०१६ ।
२१. महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
रायगिहे सेणिओ राया २९१. तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नाम नयरे होत्था--वण्णओ॥
गुणसिलए चेतिए--वण्णओ॥ तत्थ गं रायगिहे नयरे सेणिए नाम राया होत्या--महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ॥ तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नामं देवी होत्था--सूमालपाणिपाया वण्णओ॥ तस्स णं सेणियस्स पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नाम कुमारे होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-चिबियसरीरे-जाव-सेणियस्स रण्णो रज्ज च रटुच कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव समुपेक्खमाणे समुपेक्खमाणे विहरइ ।
सेणियस्स धारिणी भारिया २९२. तस्स णं सेणियस्स रण्णो धारिणी नाम देवी होत्था-जाव-सुकुमाल-पाणिपाया विहरइ ।
धारिणीए सुमिणदंसणं २९३ तए णं सा धारिणी देवी अण्णदा कदाइ तंसि तारिसगंसि--छक्कट्ठग-लट्ठमट्ठसंठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जल-मणि-कणग
रयण-थूभिय-विडंकजालद्धचंद-निज्जूहंतरकणयालिचंदसालियाविभत्तिकलिए सरसच्छधाऊवल-वण्णरइए बाहिरओ दूमिय-घटु-मठे अभितरओ पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नाणाविह-पंचवण्ण-मणिरयण-कोट्टिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुष्फजाइ-उल्लोयचित्तिय-तले बंदण-वरकणगकलससुणिम्मिय-पडिपूजिय-सरसपउमसोहंतदारभाए पयरग-लंबंत-मणिमुत्तदाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-बर कुसुममउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर-लवंग-मलय-चंदण-कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झत-सुरभि-मघमत
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धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो
गंधुद्ध याभिरामे सुगंधवरगंधिए गंधवट्टिभूए मणिकिरण-पणासियंधयारे, किंबहुणा ? जुइगुणेहि सुरवरविमाण-विडंबियवरघरए, तंसि तारिसंगसि सयणिज्जंसि-जाव-पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणीएग महं सत्तुस्सेहं रययकूड-सन्निहं नहयलंसि सोमं सोमागारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमतिगयं गयं पासित्ता णं पडिबुद्धा। सेणियस्स सुमिणनिवेदणं तए णं सा धारिणी देवी अयमेयारूवं उरालं महासुमिणं पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणामेव से सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ताहिं इट्राहि-जाव-गिराहि संलवमाणी-संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहेत्ता सेणिएणं रण्णा अन्भणुण्णाया समाणी नाणा-मणिकणगरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सेणियं रायं एवं बयासी-- "एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए-जाव-नियगवयणमइवयंतं गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा--तं एयस्स णं देवाणुप्पिया! उरालस्स-जाव-सुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ?"
२९४
सेणिएण सुमिणमहिम-निदंसणं २९५ तए णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयम? सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस
विसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम-चुंचुमालइयतणू ऊसवियरोमकूवे तं सुमिणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता ईहं पविसइ, पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविण्णाणेणं तस्स सुमिणस्स अत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता धारिणि देवि ताहि इट्ठाहि-जाव-वहि अणुवूहमाणे-अणुवूहमाणे एवं वयासी"उराले णं. तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे विट्ठ-जाव- अत्थलाभो ते देवाणुप्पिए! पुत्तलाभो ते देवाणुप्पिए! रज्जलाभो ते देवाणुप्पिए! भोग-सोक्खलाभो ते देवाणुप्पिए ! एवं खलु तुम देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं वीइक्कताणं अम्हं कुलकेउ-जाव-सुरूवं दारयं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते वित्थिण्ण-विपुलबलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ। तं उराले णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणे विट्ठ -जाव- आरोग्ग-तुट्ठि-दोहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दि?" ति कट्ठ भुज्जो-भुज्जो अणुवहेइ।
धारिणीए सुमिणजागरिया २९६ तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं बुत्ता समाणी हट्टतुट-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल
परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी"एवमेयं देवाणुप्पिया! ...-जाव-सच्चे गं एसम? जं तुम्भे वयह" ति कटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणिकणगरयण-भत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अम्भुटुइ, अन्भुठेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयंसि सयणिज्जंसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासो-- "मा मे से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुमिणे अण्णेहि पावसुमिणेहि पडिहम्मिहि" त्ति कटु देवय-गुरुजणसंबद्धाहि पसत्याहिं धम्मियाहिं कहाहि सुमिणजागरियं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ ॥
सुमिणपाढग-निमंतणं २९७ तए णं से सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्म... गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ तए णं से सेणिए राया -जाव- जेणेव अट्टणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ ।
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महावीरतित्थ मेहकुमारसमणे
अणेगवायाम-जोग्ग-बग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपाहिं सुगंधवरतेल्लमादिएहि-जाव-अब्भंगेहि अन्भंगिए . समाणे ...--अवगय-परिस्समे नरिंदे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समत्तजालाभिरामे विचित्त-मणि-रयण-कोट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडबंसि नाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसण्णे सुहोदएहि गंधोदएहि पुप्फोदएहि सुद्धोदएहि य पुणो पुणो कल्लाणगपवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ-कोउयसएहि बहुविहेहि कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाइ-लहियंगे अहयसुमहग्घ-दूसरयण-सुसंवुए. . .-ससि व्व पियदसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमई, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सोहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सण्णिसणे ॥ तए णं से सेणिए राया अप्पणो अदूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेयवस्थ-पच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थय-मंगलोक्यार-कयसंतिकम्माई रयावेइ, रयावेत्ता नाणामणिरतणमंडियं...सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं रयावेइ, रयावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्तसुत्तत्थपाढए विविहसत्थकुसले सुमिणपाढए सद्दावेह, सद्दावेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ॥" तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो! तह त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सेणियस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमेत्ता रायगिहस्स नगरस्स मझमज्झणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दावेति ॥
सेणिएण सुमिणफल-पुच्छा २९८ तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो कोडुबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हद्वतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया
पहाया कयबलिकम्मा. . . सएहि-सएहि गेहेहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झणं जेणेव सेणियस्स भवणवडेंसगदुवारे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगयओ मिलंति, मिलित्ता सेणियस्स रण्णो भवणवडेंसगदुवारेणं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धाति, सेणिएणं रण्णा अच्चिय-वंदिय 'पूइय-माणिय-सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तयं-पत्तयं पुत्वन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ।। तए णं से सेणिए राया जवणियंतरियं धारिणि देवि ठवेइ, ठवेत्ता पुप्फफल-पडिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं ते सुमिणपाढए एवं वयासी'एवं खलु देवागुप्पिया ! धारिणी देवी अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि-जाव-महासुमिणं पासित्ताणं पडिबुद्धा । तं एयस्स णं देवाणुप्पिया ! उरालस्स-जाव-सस्सिरीयस्स महासुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? ॥"
सुमिणफल-कहणं २९९ तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया
तं सुमिणं सम्मं ओगिण्हंति ओगिण्हित्ता ईहं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता अण्णमण्णेण सद्धि संचालति, संचालेत्ता तस्स सुमिणस्स लट्ठा पुच्छियट्ठा गहियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा सेणियस्स रण्णो पुरओ सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा-उच्चारेमाणा एवं वयासी"... इमे य सामी ! धारिणीए देवीए एगे महासुमिणे दिटु, तं उराले णं सामी! धारिणीए देवीए सुमिणे दिटु-जावआरोग्य-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठ । अत्थलाभो सामी ! पुत्तलाभो सामी ! रज्ज-लाभो सामी ! भोगलाभो सामी! सोक्खलाभो सामी! एवं खलु सामी! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं-जावदारगं पयाहिइ। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते वित्थिण्ण-विपुलबलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे बा भावियप्पा । तं उराले णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठ-जाव-आरोग्ग-तुढ़ि-दीहा उय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी ! धारणीए देवीए सुमिणे दि?" त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुव्हेति ॥
सुमिणपाढग-विसज्जणं ३०० तए णं से सेणिए राया तेसिं सुमिणपाढगाणं अंतिए एयम? सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियए
करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं बयासी--
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो "एवमेयं देवाणुप्पिया! -जाव-जं गं तुम्भे वयह ति कट्ट तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ", पडिच्छित्ता ते सुमिणपाए विपुलेणं असणपाण-खाइम- साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेई, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पोतिदाणं वलयति, दलहत्ता पडिविसज्जेइ ॥
सेणिएण सुमिणपसंसा ३०१ तए णं से सेणिए राया सीहासणाओ अब्भुट्ठइ, अम्भुटुत्ता जेणेव धारिणी देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणि देवि
एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पिए!...आरोग्ग-तुट्ठि-दोहाउय-कल्लाण-मंगल्ल-कारए णं तुमे देवि! सुमिणे ट्ठि" त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुवूहे ॥
धारिणीए दोहलो ३०२ तए णं सा धारिणी देवी सेणियस्स रणो अंतिए एयम? सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं
सुमिणं सम्म पडिच्छति, पडिच्छित्ता जेणेव सए वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता व्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ता विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरह।
तए णं तोसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गन्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउन्भवित्था--
"धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, सपुष्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि माणुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं मेहेसु अम्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जुएसु सफुसिएसु सथणिएमु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियाल-भय-चंपग-सण-कोरेंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खारस-सरस-रत्तकिंसुय-जासुमण-रत्तबंधुजीवगजातिहिंगुलय-सरस-कुंकुम-उरभससरुहिर-इंदगोवग-समप्पभेसु बरहिण-नील-गुलिय-सुग-चासपिच्छ-भिगपत्त-सासग-नीलुप्पलनियर-नवसिरीसकुसुम-नवसद्दलसमप्पभेसु जच्चंजण-भिगभेय-रिट्ठग-भमरावलि-गवल-गुलिय-कज्जलसमप्पभेसु फुरंत-विज्जय-सगज्जिएसु वायवसविपुलगगण-चवलपरिसक्किरेसु, निम्मल-वरवारिधारा-पयलिय-पयंडमास्यसमाहय-समोत्थरंत-उवरुवरितुरियवासं पवासिएसु, धारा-पहकर-निबाय-निव्वावियमेइणितले हरियगगणकंचुए पल्लवियपायवगणेसु वल्लिबियाणेसु पसरिएसु उन्नएसु सोभग्गमुवगएसु वेभारगिरिप्पवाय-तड-कडगविमुक्केसु उज्झ रेसु, तुरियपहाविय-पट्टलोट्टफेणाउलं सकलसं जलं वहतीसु गिरिनदीसु सज्जज्जुणनीव-कुडय-कंदल-सिलिध-कलिएसु उववणेसु, मेहरसिय-हट्ठतुट्ठचिट्ठिय-हरिसवसपमुक्ककंठकेकारवं मुयंतेसु बरहिणेसु उउवसमयजणिय-तरुणसहयरि-पणच्चिएसु नवसुरभि-सिलिध-कुडय-कंदल-कलंब-गंधद्धणि मुयंतेसु उववणेसु, परहुय-रुय-रिभिय-संकुलेसु उद्दाइंत-रत्तइंदगोवय-योवय-कारुण्णविलविसु ओणयतणमंडिएसु ददुरपयंपिएसु संपिडिय-दरिय-भमर-महुयरिपहकर-परिलितमत्त-छप्पय-कुसुमासवलोल-महुर-गुंजतदेसभाएसु उववणेसु, परिसामिय-चंद-सूर-गहगण-पणटुनक्खत्ततारगपहे इंदाउह-बद्धचिधपट्टम्मि अंबरतले उड्डीणबलागपंति-सोभंतमेहवंदे कारंडग-चक्कवाय-कलहंस-उस्सुयकरे संपत्त पाउसम्मि काले व्हायाओ कयबलिकम्माओ कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ताओ कि ते?' वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडगखुड्डय-विचित्तवरवलयथंभियभुयाओ कुंडलउज्जोवियाणणाओ रयणभूसियंगीओ, नासा-नीसासवाय-वोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं धवलकणय-खचियंतकम्मं आगासफलिह-सरिसप्पभं अंसुयं पवरपरिहियाओ, दुगूलसुकुमालउत्तरिज्जाओ सव्वोउय-सुरभिकुसुम-पवरमल्लसोभियसिराओ कालागरुधूवधूवियाओ सिरी-समाणवेसाओ, सेयणय-गंधहत्थिरयणं दुरूढाओ समाणीओ, सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चंदप्पभ-वइअवेरुलिय-विमलदंड-संख-कुंद-दगरयअमय-महि-य-फेणपुंजसन्निगासचउचामरवालबीजियंगोओ सेणिएणं रण्णा सद्धि हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठओ-पिट्ठओ समणुगच्छमाणीओ चाउरंगिणीए सेणाए-महया हयाणीएणं गयाणीएणं रहाणीएणं पायत्ताणीएणं-सविड्ढीए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सह-सण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं मया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-मल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहि निग्घोसनाइयरवेणं रायगिह नयरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु आसित्तसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलितं पंचवण्ण-सरस-सुरभिमुक्क-पुण्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डझंत-सुरभि-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
अवलोएमाणीओ नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणीओ गुच्छ-लया-रुक्ख-गुम्म-वल्लि-गुच्छोच्छाइयं सुरम्मं वेभारगिरिकडग-पायमलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुगएसु-जाव-दोहलं विणिज्जामि ॥"
धारिणीए चिंता ३०३ तए णं सा धारिणी देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि असंपत्तदोहला असंपुण्णदोहला असम्माणियदोहला सुक्का भुक्खा निम्मंसा
ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा पमइलदुब्बला किलंता ओमंथियवयण-नयणकमला पंडुइयमुही करयलमलिय व्व चंपगमाला नित्तया दीणविवण्णवयणा जहोचिय-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-हारं अणभिलसमाणी किटारमणकरियं परिहावेमाणी दोणा दुम्मणा निराणंदा भूमिगयदिट्ठीया ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्ट ज्झाणोवगया झियाइ ।।
पडिचारियाहिं चिताकारणपुच्छा ३०४ तए णं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडिचारियाओ अभितरियाओ दासचेडियाओ य धारिणि देवि ओलुग्गं झियायमाणि पासंति, पासित्ता
एवं वयासी"किण्णं तुमे देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा-जाव-झियायसि ?" तए णं सा धारिणी देवी ताहिं अंगपडिचारियाहिं अभितरियाहि दासचेडियाहि य एवं वुत्ता सभाणी ताओ दासवेडियाओ नो आढाइ नो परियाणह, अणाढायमाणी अपरियाणमाणी तुसिणीया संचिद्रह । तए णं ताओ अंगपडिचारियाओ अभितरियाओ दासचेडियाओ य धारिणि देवि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी" किणं तुमे देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा ओल्गसरीरा-जाव-झियायसि ?" तए णं सा धारिणी देवी ताहि अंगपडिचारियाहि अभितरियाहि दासचेडियाहि य दोच्चं पि तच्चं पि एवं कुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ, अणादायमाणो अपरियाणमाणी तुसिणीया संचिट्ठइ ।।
पडिचारियाहिं सेणियस्स निवेदण। ३०५ तए णं ताओ अंगपडिचारियाओ अभितरियाओ दासचेडियाओ य धारिणीए देवीए अणाढाइज्जमाणीओ अपरियाणिज्जमाणीओ तहेव
संभंताओ समाणीओ धारिणीए देवीए अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता एवं वयासी"एवं खलु सामी! किंपि अज्ज धारिणी देवी ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा-जाव-अट्टज्झाणोवगया झियायइ॥"
सेणिएणं चिताकारणपुच्छा ३०६ तए णं से सेणिए राया तासि अंगडचारियाणं अंतिए एयम सोच्चा निसम्म तहेव संभते समाणे सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं
जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छड, उवागच्छिता धारिणि देवि ओलुग्गं ओलुग्गसरीरं-जाव-अट्ट ज्झाणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी"किण्णं तुम देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा ओलुगसरीरा-जाव-अट्टज्माणोवगया झियायसि ? " तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ-जाव-तुसिणीया संचिट्ठइ ।। तए णं से सेणिए राया धारिणि देवि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी"किण्णं तुम देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा ओल्लुगसरीरा-जाव-अट्टज्झाणोवगया झियाससि ?" । तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ता समाणो नो आढाइ नो परियाणइ-जाव-तुसिणीया संचिट्टइ। तए णं से सेणिए राया धारिणि देवि सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-- "किणं देवाणुप्पिए! अहमेयस्स अट्ठस्स अणरिहे सवणयाए? तो णं तुमं ममं अयमेयारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सीकरेसि ॥"
धारिणीए चिताकारणनिवेदणं ३०७ तए गं सा धारिणी देवी सेणिएणं रणा सवह-साविया समाणी सेणियं रायं एवं वयासी
"एवं खलु सामी! मम तस्स उरालस्स-जाव-महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुष्णाणं अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउम्भूएघक०१०
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७४
३०८
३१०
धम्मकहाणुओगे दुतीयो धो “घण्णाजी णं तामो अम्मपाओ कथाओं पं ताओ जयाओ-जा-बेमारगिरिकडग-पाय सओ समेता हिमानीओ-आहिङ माणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव-दोहलं विणेज्जामि ।
तणं अहं सामी अयमेवाति अकालवोहति अविजमासि ओग्या-जाय अागोया शियामि ।"
३११
सेणिएणं आसासणं
गए गं से सेलिए राजा धारिणीए देवीए अंतिए एयम सोचा निसम्म धारिणि देवि एवं ववासी
"माणं तुमं देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा- जाव- अट्टज्झाणोवगया झियाहि । अहं णं तह करिस्सामि जहा णं तुब्भं अयमेयारूवस्स अकालदोहस्स्स मगोरहसंपत्ती भविस्स" ति दुधारिणि देवि इट्टाहि वमूहि समासाह, समासामेता गंगेव बाहिरिया उक्ाणसाला तेच उपागच्छ उबगडिसा सोहासगवरगए पुरत्याभिमु सम्मिसन्धारिणी देवी एवं अकालवोह बहूहि आएहि य उहि य, उप्पसियाहि वेगइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि पचहाहि बुद्धीहि अनुचितेमाणे अणुचितेमाणे तस्म दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिई वा उपपत्ति वा अविदमाणे ओहयमणसंकप्पे - जाव-झियाय ||
अभयकुमारेण सेणियं यह चिताकारणपुच्छा
३०९ तयानंतरं च णं अभए कुमारे व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल- पायच्छिते सव्वालंकार विभूसिए पायबंदए पहारेत्थ गमणाए ||
तए णं अभए कुमारे जेणेव सेणिए राया तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहयमणसंकष्पं- जाव- झियायमाणं पासइ, पासिता अवमेवास्ये संकपे समुपज्जित्था - "अण्णवा मर्म सेलिए राया एन्नमार्ण पापासिता आढाई परिमाण सरकारह सम्माणेइ इट्ठाहिं वग्गूहिं आलवइ संलबइ अद्धासणेणं उवनिमंतेइ मत्थयंसि अग्धाइ । इयाणि ममं सेणिए राया तो आढाइ नो परियाणइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेह नो इट्ठाहि... वग्गूहि आलवइ संलवद्द नो अद्धासणेणं उवनिमंतेइ नो मत्ययंसि अग्याइ, किपि ओहमणसंकप्पे - जाव- झियाय । तं भवियव्वं णं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु ममं सेणियं रायं एयमट्ठ पुच्छित्तए" -- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छद्द, उवागच्छिता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जल्णं विजएणं बढाबढावेता एवं बयासी
--
"तुम्भे णं ताओ ! अष्णया ममं एज्जमाणं पासिता आढाह परियाणह सक्कारेह सम्माणेह आलवह संलवह अद्धासणेणं उवणिमंतेह मत्थसि अग्धाय । इयाणि ताओ ! तुब्भे ममं नो आढाह-जाव-नो मत्थयंसि अग्घायह किं पि ओहयमणसंकप्पा- जाव-झियायह । तं भवियध्वं णं ताओ ! एत्थ कारणेणं । तओ तुम्भे मम ताओ! एवं कारणं अगूहमाणा असंकमाणा अनिण्हवमाणा अपच्छाएमाणा जहाभूतमवितहमसंविद्धं एयमट्ठ आइक्खह । तए णं हं तस्स कारणस्स अंतगमणं गमिस्सामि ।। "
सेणिएणं चिताकारणनिवेदनं
लए णं से सेलिए राया अभएणं कुमारेणं एवं बुतं समाणे अमयं कुमारं एवं क्यासी"एवं खलु गुप्ता तव बुलसमाउपाए धारिणोदेवीए तस्स गमस्स दोसु मासे अयमेयारूवे दोहले पाउन्भवित्था -- धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ तहेव निरवसेसं समता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु
ए अहं पुल धारिणीए देवीए तस्स अकालवोहलर बहूहिं आएहि व - जाव-शियामि, तुमं आगयं पि न वागामि तं एतेणं कारणं अहं पुत्ता ! ओहयमगसंकप्पे जाय-निवासि ॥"
1
अइक्कतेमु तदयमासे बट्टमा दोहनकालसमयसि भाणियव्वं जाव- वैभारगिरिकडग- पायमूलं सव्वओ अब्भुग्गएसु-जाव - दोहलं विणिज्जामि ।
उपाएह जाब- उप्पति अविदमाणे ओमणसंकल्पे
अभएण आसासणं
तए णं से अभए कुमारे सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए-जाव- हरिसवस - विसप्पमाणहियए सेणियं रायं एवं बयासी
" मा णं तुब्भे ताओ ! ओहयमणसंकप्पा- जाव-झियायह। अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयाख्वस्त अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्सइ" ति कट्टु सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहि... वग्गूहिं समासासेइ ॥
लए गं से सेगिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुले समाणे तु चित्तमामंदिए- जाव-हरिसवस विसप्पमापहियए अभयं कुमारं eters सम्माणेs, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
अभएण देवाराहणं ३१२ तए णं से अभए कुमारे सक्कारिए सम्माणिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता
जेणामेव सए भवणे, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणे निसणे ॥ तए णं तस्स अभयस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"नो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमणोरहसंपत्ति करित्तए, नन्नत्थ दिव्वेणं उवाएणं । अत्थि णं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुव्वसंगइए देवे महिड्ढीए-जाव-महासोक्खे । तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए [पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स ववगयमालावण्णगविलेवणस्स निक्खित्तसत्थमुसलस्रा एगस्स अबीयस्स दब्भसंथारोवगयस्स ] अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणस्स विहरित्तए । तए णं पुव्वसंगइए देवे मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारुवं अकाल-मेहेसु दोहलं विणेहिति"- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवगच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जिता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भ संथारगं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता. दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी-जाव-पुन्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ।
देवागमणं ३१३ तए णं तस्स अभयकुमारस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे पुव्वसंगइयरस देवस्स आसणं चलइ ।
तए णं से पुटवसंगइए सोहम्मकप्पवासी देवे आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहि पउंजइ । तए णं तस्स पुव्वसंगइयस्स देवस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु मम पुश्वसंगइए जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नयरे पोसहसालाए पोसहिए अभए नाम कुमारे अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मणसीकरेमाणेमणसीकरेमाणे चिट्ठइ। तं सेयं खलु भम अभयस्स कुमारस्स अंतिए पाउभवित्तए"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उत्तरपुरथिमं दिसौभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरइ, तं जहा-- रयणाणं वइराणं बेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगम्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंकाणं अंजणाणं रययाणं जायरूवाणं अंजणपुलगाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडेत्ता अहासुहमे पोग्गले परिगिण्हइ, परिगिण्हित्ता अभयकुमारमणुकंपमाणे देवे पुन्वभवजणिय-नेह-पीइबहुभाणजायसोगे, तओ विमाणवरपुंडरीयाओ रयणुत्तमाओ धरणियल-गमणतुरिय-संजणिय-गमणपयारो बाधुण्णिय-विमल-कणग-पयरग-वडिसगमउडुक्कडाडोवदंसणिज्जो अणेगमणि-कणगरयण-पहकर-परिमंडिय-भत्तिचित्त-विणिउत्तग-मणुगुणजणियहरिसो दिखोलमाणवरललियकुंडलुज्जलिय-वयणगुणजणियसोम्मरूवो उदिओ विव कोमुदीनिसाए सणिच्छरंगारकुज्जलियमज्झभागत्थो नयणाणंदो सरयचंदो दिव्वोसहिपज्जलुज्जलियदसणाभिरामो उदुलच्छिसमत्त-जायसोहो पइट्टगंधुद्धयाभिरामो मेरू विव नगवरो विगुम्वियविचित्तवेसो दोवसमुद्दाणं असंखपरिमाणनामधेज्जाणं मझंकारेणं वोइवयमाणो उज्जोयंतो पभाए विमलाए जीवलोयं रायगिहं पुरवरं च अभयस्स पासं ओवयइ दिव्वरूवधारी। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसवण्णाई सखिखिणियाई पवरवत्थाई परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी"अहं गं देवाणुप्पिया ! पुवसंगइए सोहम्मकप्पवासी देवे महिड्ढोए जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं मम मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवाणुप्पिया! अहं इहं हव्वमागए। संदिसाहि णं देवाणुप्पिया! कि करेमि? कि दलयामि? कि पयच्छामि ? किं वा ते हियइच्छियं?" तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्टतुट्ठ पोसह पारेइ, पारेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालदोहले पाउन्भूए---धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ तहेव पुव्वगमेणं-जाव-वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु-जाव-दोहलं विणेज्जामि--तं गं तुमं देवाणुप्पिया ! मम क्षुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालवोहलं विणेहि ॥"
देवेण अकालमेहविउव्वणं ३१४ तए णं से देवे अभएणं कुमारेणं एवं बुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ अभयं कुमारं एवं वयासी
"तुमं गं देवाणपिया! सुनिव्वुय-वीसत्थे अच्छाहि । अहं णं तब चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं विणेमि
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धम्मकहाणुओगे बुतीयो खंधो त्ति कटु अभयस्स कुमारस्स अंतियाओ, पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरथिमे णं वेभारपवए वेउब्वियसमुग्याएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरइ-जाव-दोच्चं पि वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणिता खिप्पामेव सगज्जियं, सविज्जुयं सफुसियं पंचवण्णमेहनिणाओवसोहियं दिव्वं पाउसर्सािर विउब्वइ, विउव्वित्ता जेणामेव अभए कुमारे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभयं कुमारं एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया! मए तव पियट्टयाए सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया दिव्वा पाउससिरी विउविया, तं विणेऊ णं देवाणुप्पिया! तब चुल्लमाउया धारिणी देवी अयमेयारूवं अकालदोहलं ।।
धारिणीए दोहद-पूरणं ३१५ तए णं से अभए कुमारे तस्स पुटवसंगइयस्स सोहम्मकप्पवासिस्स देवस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हटुतुट्ठ सयाओ भवणाओ
पडिनिक्खमइ, पडिनिवखमित्ता जेणामेब सेणिए राया तेणामेव उवागच्छ इ, उबागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थर अंजलि कटु एवं वयासी"एवं खलु ताओ ! मम पुव्वसंगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगज्जिया सविज्या पंचवण्णमेहनिणाओवसोभिया दिव्वा पाउससिरी बिउव्विया । तं विणेऊ णं मम चुल्लमाउया धारिणो देवी अकालदोहलं ॥” तए णं से सेणिए राया अभयस्स कुमारस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्ठतु? कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया! रायगिहं नगरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसितसित्त-सुइय-संमज्जिओवलित-जाव-सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता करवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।।" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं बुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ-चित्त-माणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ तए णं से सेणिए राया दोच्चं पि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणि सेणं सन्नाहेह, सेयणयं च गंधहत्थिं परिकप्पेह।" तेवि तहेव करेंति-जाव-पच्चप्पिणंति ।। तए णं से सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणि देवि एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिए! सज्जिया सविज्जया सफुसिया दिव्वा पाउससिरी पाउड्भूया। तं गं तुम देवाणुप्पिए! एवं अकाल
दोहलं विणेहि ॥" ३१६ तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हट्ठतुट्ठा जेणामेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं
अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता अंतो अंतेउरंसि व्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता, कि ते बरपायपत्तनेउर-मणिमेहलहार-रइय-ओविय-कडग-खुड्डय-विचित-वरवलयर्थभियभुया जाव-आगास-फालिय-समप्पभं अंसुयं नियत्था, सेयणयं गंधहत्थिं दुरुढा समाणी अमय-महिय-फेणपुंज-सन्निगासाहि सेयचामरवाल-वीयणीहिं वीइज्जमाणी-बोइज्जमाणी संपत्थिया॥ तए णं से सेणिए राया हाए कयबलिकम्मे-जाव-सस्सिरिए हत्यिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामराहि वीइज्जमाणे धारिणि देवि पिट्ठओ अणुगच्छइ ॥ तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठओ-पिटुओ समणुगम्ममाण-मग्गा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडा महया भड-चडगर-वंदपरिक्खिता सब्बिड्ढीए सव्वज्जुईए-जाव-दुंदुभिनिग्घोसनाइयरवेणं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणी-अभिनंदिज्जमाणी जेणामेव वेभारगिरिपव्वए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेभारगिरि-कडग-तडपायमूले आरामेसु य उज्जाणेसु य काणणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य रुक्खेसु य गुच्छेसु य गुम्मेसु य लयात्सु य वल्लीसु य कंदरासु य दरीसु य चुंढीसु य दहेसु य कच्छेसु य नदीसु य संगमेसु य विवरएसु य अच्छमाणी य पेच्छमाणी य मज्जमाणी य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य पल्लवाणि य गिण्हमाणी य माणेमाणी य अग्घायमाणी य परिभुंजेमाणी य परिभाएमाणी य बेभारगिरिपायमले दोहलं विणेमाणी सव्वओ समंता आहिडइ । तए णं सा धारिणी देवी सम्माणियदोहला विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपत्तदोहला जाया यावि होत्था ॥ तए णं सा धारिणो देवी सेयणयगंधहत्थि दुरूढा समाणी सेणिएणं हत्थिखंधवरगएणं पिटुओ-पिटुओ समणुगम्ममाण-मग्गा हय-गयरह-पवरजोहकलियाए-जाव-जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रागिहं नयरं मज्झमझेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाई पच्चणुभवमाणी विहरई॥
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
अभएण देवरस पडिसिजणं
३१७ तए णं से अभए कुमारे जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सक्कारेश सम्माणेइ, सम्माणेता पडिविसज्जेड़ ।।
ए से देखे सवं सविज्यं पंचमेोदसोहि पाउससिरि पसार, परिसारिता जागेव दिसि पाउए सामेव दिपिडिए ।
धारिणीए गन्भचरिया
३१८ तसा धारिणी देवी सिलोह विससम्मानित अब परिवहइ ||
३१९
३२०
३२२
७७
मेहस्स जम्मवावणं
तए णं सा धारिणी देवी नवग्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्टमाण य राइंदियाणं वोडक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपाय -जाय सव्वंगसुंदर दारगं पयाया ||
सक्कारेसा
तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणि देवि नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासिता सिग्धं रियं वयं व सेभिए राव उवागच्छति, उवागष्ठिता सेवियं रा जणं विजए बढावेत, बहाता रयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी-
"एवं देवाचिया धारिणी देवी व माला पटिया सवंगसुंदर दार बदाया तं णं हे देवाचियाणं पियं निवेएमो, पियं में भवउ ।। "
तए णं से सेणिए राया तासि अंगपडियारियाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ ताओ अंगपडियारियाओ महुरेहिं वयणेहि विलेय पु-गंध-लकारेणं सक्कारे सम्मा मत्यधवाओ करे, पुसापुत्ति विति पे कप्पेत्ता पहिबिसने ॥
मेहस्स जम्मुरसवो
३२१ लगिए राया पचसकाम कोरिले सहावेद सहायता एवं वयासी-
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायगिहं नगरं आसिय सम्मज्जिओवलितं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं नड णटग जल्ल-मल्ल- मुट्ठिय-कप-लाह-मंत्र-यूइल्ल- तुंबीय-अभगतालावरपरिगीयं करेह, कारवेह व चारपहिकरे, करता मामाणवणं करेह, करेला एमागतियं यस्चपिह ॥"
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठइ-चित्त-माणंदिया पोडमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पञ्चपिष्णंति ||
लए गं से सेगिए राया अट्ठारयषि-यसेजीमो सहावे सहावेत्ता एवं बसणं तुम्भे देवाणुष्पिया! रायविहे नगरे भरबाहिरिए उत्सुं उनक अभडप्पवेस अडिन कुडिमं अधरमं अधारणिज्जं अणुडवमुइंग अमिलामा गणिवावरताडहनकलिये अगताला परावरियं पय-पक्कीलियाभिरामं जहारिहं वयं वसवेवसि करेह, कारमेह व एमाल पच्चपिह ॥"
तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणंति ।
तए णं से सेणिए राया बाहिरियाए उबद्वाणसालाए सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सणसणे सतिएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि दाहिमालयमा पच्छिमार्ग-परिमार्ण एवं च विहरह ॥
मेहस्स नामादिसबकार करणं
तए णं तस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिपडियं करेंति, बिति दिवसे जागरियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसूरदंसणियं करेंति एवामेव निवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे विपुलं असण- पाण- खाइम साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडादेत्ता मित्त-नाइ-नियमसण-संबंधि-परिवणं च बहवे गणनायग-दंडनायगराईसर-नवरा- कोबियमंति- महामंति-गण-दोवारि-व-बेडपीढम-नगर-निगम-सेट्ठि- सेणावइ- सत्यवाह दूय- संधिवाले आमंतेंति । तओ पच्छा पहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता सवालंकारविभूतिया महामहालयंसि भोवणमंत असणं पाणं खाइ साइमं मिल-नाहन संबंधि-परियणेहि
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धम्मकहाणुओगे दुतोयो बंधो बले व महहिं गणनायण दंडनायगराईसर तलवर माडंबिय फोटुंबिय मंति- महामंति-गणग-दोबारिय-अमल-बेड-पीड मद्द-नगर-निगममेडि सेगाव- सत्यवाह-दू-संसद आसाएमागा बिसाएमागा परिभाएमाणा परिमाणा एवं चणं विहरति । जिमियतत्तरागयावि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं बलं च बहवे गणनायग-जाव-संधिवाले विपुलेनं पुण्-गंध-नाकारेण सबका सम्माति सरकारला सम्माता एवं व्यासी-"जम्हा णं अम्हं इमस्स दारगस्स गम्भत्थस्स चेव समाणस्स अकालमेहेसु दोहले पाउन्भूए, तं होउ णं अम्हं दारए मेहे नामेणं । तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं गोष्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति मेहे इ ।। "
मेहस्स लालणपालणं
२२२ सेमे कुमारे पंधारिहिए अण्णाहि यबहि-जाहि चिलाई वामणीहि बमोहिं बबरी मसीह जोि याहि पल्हवियाहि ईसिणियाहि धारवियाहि लासियाहि सिपाहि शमिलीहि हिसीहि आरवीहि पुलिदीहि पक्कणीहि बहतीह मुडीह सरीहि पारसी नानादेसी विदेसपरिमंडियाहि इंगिय चितिय परिचय-विपाणिपाहि सस-नेवत्व-गहिय-साहि निणकुसलाहिं विणीयाहि, चेडियाचक्कवाल वरिसधर-कंच इज्ज-महयरग बंद - परिक्खिते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे अंकाओ अंक परिभुज्नमाणे परिगिज्जमा बालिजमा उतालिमा रम्मंति] मणिकोमिलति परंविनमाणे निवा-या गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं बढइ ॥
३२४ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं नामकरणं च पजेमणगं च पचकमणगं च चोलोवणयं च महया-महया हड्डी-सरकार-समुदए करें ।।
मेहस्त कलागणं
३२७
३२५ ए
मेहं कुमारं अम्मापिपरी साइरेगबासजाय चैव सोहसि तिहि करण-महापरिवरस उयोंत ।।
तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुय पज्जवसाणा ओ बावर्त्तारि कलाओ सुत्तओ य अत्यओ य करणओ य सेहावेह सिक्खावेइ, तं जहा-
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१. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नट्टं ५. गीयं ५. वाइयं ७. सरगयं ८. पोक्खरगयं ९. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासयं
२१.
१२. अट्ठा १४. पोरे १५
१६. अम्मविहि १७. पाणविहि १८. विहि १९. विवाह २० २५ २६ सिलोयं २७. हिरण्णजूति २८. मति २९
२२. पहेलियं २२. माहि २४ जुलि ३०. आभरणविह ३१. किम् ३२. इलिनं ३३. पुरिसलक्खणं ३४. लवखणं ३५. यलम्वर्ण २६. गोगलक्खणं ३७. कुकुडल ३८. छत्तलक्खणं ३९. दंडलक्खणं ४०. असिलक्खणं ४१. मणिलक्खणं ४२. कागणिलक्खणं ४३. वत्युविज्जं ४४, खंधारमाणं ४५. नगरमाणं ४६. वूहं ४७. पडिवूहं ४८. चारं ४९. पडिचारं ५०. चक्कवूहं ५१. गरुलवूहं ५२. सगडवूहं ५३. जुद्धं ५४. निजुद्धं ५५. जुद्धाइ
५६. अजु ५७ ५०. बा४९६०. ईसत्यं ६१. रुपवा ६२. धणुवे ६२. हिरा ६४ णपागं ६५. बट्टखेडुं ६६. सुत्तखेडुं ६७. नलियाखेड ६८. पत्तच्छेज्जं ६९. कडच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुतं ति ॥ १ लए गं से कलावरिए मेहं कुमारं हाइवा गााओं उपपन्नवसाणा बावरला तो करमजी व सेहावेद सिक्खा, सेहावेला सिक्खासा सम्माऊि उवणे ।।
३२६ तए णं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं महुरेहिं वयणेहिं विउलेण य वत्थ - गंध मल्लालंकारेण सक्कारेति सम्मार्णेति,
सक्कारेत्ता सम्माणेता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं वलयंति, दलइत्ता पडिविसज्जैति ।।
तए गं से मेहे कुमारे बारिकापडिए नगपडिबोहिए, अट्ठारस-विहिवारबेसी भासाविसारए गोवध जोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्या ।।
मेहस्स पाणिग्गणं
तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावन्तरि कलापंडियं जाव- वियालचारि जायं पासंति, पासित्ता अट्ठ पासायस कारेति अवग्यपिलिए विच मणि-कण-रण- प्रतिनिले बाउड य-विजय-जयंती-पान-छत्तालिए मुंगे गगगतलमभिसंधमाणसिहरे जातंतर रणपंजरम्मिलिए व्य मणिकगगभिया विसिय सययत-पंडरी तिलयरवणचम्लिए नाणामणिमयदामालंकिए अंतो बहि च सण्हे तवणिज्ज हइल वालुया- पत्थरे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए- जाब- पडिरूवे ।
१ सम० ७२ ।।
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
एणं महं भवगं कारेति--अगभसयसमिवि लीलयालमंजिया अगवकपबहरवेयातोरण-वररामंजियसिविलि-डि-सत्य-वेलिय-नाणामणिकणगरयण-खमिति निचियरमणि भूमिभागं हाथिय
उसमय-नर-मगर बिग-बाल-किर-सह-सरभ- चमर-कुंजर-बगलय- मलय-मितिवि संग्रह पापरिगयाभिरामं विजाह-जमल-जुल जंत पिय अच्चीसहस्तमालीयं सहसकलियं मिसमाणं भिन्निसमार्ण चल्लोपनले महासं सस्सियत्वं कंचणमभिरयणभूमियागं नागाविह पंचवाडा-परिमंडियमसिह धवलमिरिचिकवयं विशिम्सालमहा-गंध पासाईयं जाय-परूियं ॥
लए लस्त मेहस कुमारस्य अम्मापिवरो मेहं कुमारं सोहसि तिहि करण-नल-मुहांस सरिसियानं सरियागं सरियागं सरसावण-वन-गोवा सरिसहितो रायकुलेहितो आगिल्लियानं पसाहन-मंगल पहि अहि रामबरनाहि गाँठ एवरिवसे पाणि गिष्टाविसु ।।
पोइदाणं
३२८ तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयंति अट्ठ हरिण्ण-कोडीओ अट्ठ सुवण्णकोडीओ गाहाणुसारेण भाणियव्वंजाव-पेसणकारियाओ, अण्णं च विपुलं धण-कणग- रयण-मणि-मोत्तिय संख-सिल-प्वाल रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जं अलाहि-जावआत्माओ कुलवंसाओ पकामं दाउ पकामं भोतुं पकामं परिभाएउं ॥
७९
महावीरसमवसरणं
३२९ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुच्चि चरमाणे गामाणुगामं वइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नवरे गुणसिलए चेहए मामेव उपागच्छ, उनागच्छिता अहारडिरूवं ओहं ओगिन्हित्ता संजयेणं तवसा अप्पानं भावेमा बिहरह] ॥
३३१
तए णं से मेहे कुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडि दलयइ, जाव एगमेगं पेसणकारि दलयइ, अण्णं च विजलं धण कण- रयण-मणि-मोत्तिय संख-सिल-प्पवाल- रत्तरयण-संत-सार- सावएज्जं अलाहि-जाव- आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउ पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउ दलयइ ।।
तए णं से मेहे कुमारे उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेह मुइंगमत्थ एहि जाव- माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥
मेहस्स पुच्छा
३२० एरायमिहे नवरे विवाह-तिग-खडक-बन्दर-बदम्मूह महापपहेसु-मया जनसमाजाच बहवे जग्गा भोगा-जाबरायगिव नगर मज्-मल्दो एगदिसि एगामिमहा निगच्छति । इमं व गं मेहे कुमारे उप्पि पामायवरगए फुट्टमाणेहि मुइंगमत्थ एहि जाव- माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च ओलोएमाणे- ओलोएमाणे एवं च णं विहरइ ॥
तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं सहावे, सहायता एवं वयासी
"किणं भो देवाचिया अज्ज रायगिहे नगरे इंदमइ वा जाब- एगदिएमा निम्न्छति ।। "
३३२
कंचहज्जपुरिसेण निवेदणं
लए गं से कंबृहज्जपुरिसे समणस्स भगवओ महावीरस्स गहियागमणपवित्तीए मेहं कुमारं एवं बीलु देवापिया अन्न रायगिहे नवरे इंयम इ मानव-गिरिजा वाजं एए उन्या भोवा- जाव- एगदिति एनानिमूह निमाच्छति । एवं खलु देवाप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आहगरे लित्यवरे इहबागए इह संपले इह समोसठे इह बेव रायगिहे नगरे दुसिलए बेइए अहाहरू ओहं ओहिता जमे तवसा अप्पानं भावमाणे विहरह ।। "
मेहस्स भगवओ समीये गमणं
तए णं से मेहे कुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ट कोटुंबियपुरिसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उदट्ठबेह । तहत्ति उयति ॥
तए णं से मेहे हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए चाउग्घंटं आसरहं दुरूढ समाणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भट-डगर-वंद-परियाल-परिहासनपरस्सममन्येगं निगन्छ, निम्गन्छिता मेगामेव गुणसिलए बेइए तेणामेव
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छद। जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं पज्जुवासइ॥
धम्मदेसणा ३३३ तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ--
जह जीवा बझंति, मुच्चंति जहा य संकिलिस्संति । धम्मकहा भाणियन्वा जाव परिसा पडिगया।
मेहस्स पव्वज्जासंकप्पो ३३४ तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण
पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-- "सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं-जाव-देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तओ पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामि।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि॥"
३३५
मेहस्स अम्मापिऊणं निवेदणं तए णं से मेहे कुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटे आसरहं दुरूहइ, दुरूहित्ता मया भड-चडगर-पहकरेणं रायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-- "एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए।" तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयासी-- "धन्नो सि तुम जाया! संपुण्णो सि तुम जाया ! कयत्थो सि तुमं जया! कयलक्खणो सि तुमं जाया! जन्नं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए॥" तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चं पि एवं वयासी"एवं खल अम्मयाओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुहि अब्भणण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए॥"
धारिणीए सोगाकुलदसा ३३६ तए णं सा धारिणी देवी तं अणि? अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुयपुव्वं फरुसं, गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारवेणं
मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्खेणं अभिभूया समाणी सेयागयरोमकूवपगलंत-चिलिणगाया सोयभरपवेवियंगी नित्तेया दीण-विमणवयणा करयलमलिय व्व कमलमाला तक्खणओलुग्गदुब्बलसरीर-लावण्णसुन्न-निच्छाय-गयसिरीया पसिढिलभूसण-पडतखुम्मिय-संचुण्णियधवलवलय-पब्भ?उत्तरिज्जा सूमाल-विकिण्ण-केसहत्था मुच्छावस-नटुचेय-गरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलट्टी विमुक्क-संधिबंधणा कोट्टिमतलंसि सव्वंहि धसत्ति पडिया॥
धारिणीए मेहस्स य परिसंवादो ३३७ तए णं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचर्णाभिगारमुहविणिग्गय-सोयलजलविमलधाराए परिसिंचमाण-निव्वा
वियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविट-वीयणग-जणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउर-परिजगणं आसासिया समाणी मुत्तावलि-सन्निगास-पवडंतअंसुधाराहि सिंचमाणी पोहरे, कलुण-विमण-दीणा रोयमाणी कंदमाणी तिष्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं वयासी"तुमं सि णं जाया! अहं एगे पुते- कते इ8 पिए मगुण्णे भगामे थेग्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंड
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
गसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंबरपुष्पं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए। तं भुंजाहि ताव जाया! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तओ पच्छा अम्हेहि कालगएहि परिणयवए वढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइस्ससि ॥" तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं बुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं बयासी"तहेब णं तं अम्मताओ! जहेव णं तुम्भे ममं एवं वयह--'तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते-जाव-पव्वइस्ससि ।' "एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सए भवे अधुबे अणितिए असासए वसणसओवद्दवाभिभूते विज्जुलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजबिंदुसन्निभे संझब्भरागसरिसे सुविणदंसणोवमे सडण-पडण-विद्धसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुवि गमणाए, के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए॥" तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी"इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरित्तयाओ सरिव्वयाओ सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाओ सरिसेहितो रायकुलेहितो आणिल्लियाओ भारियाओ। तं भुजाहि णं जाया! एयाहिं सद्धि विउले माणुस्सए कामभोगे। पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पन्वइस्ससि ॥" तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं बयासी"तहेव णं तं अम्मयाओ ! जं गं तुम्भे ममं एवं वयह-'इमाओ ते जाया ! सरिसियाओ-जाव-भारियाओ । तं भुंजाहि णं जाया! एयाहि सद्धि विउले माणुस्सए कामभोगे। पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइस्ससि ।' "एवं खलु अम्मयाओ ! माणुस्सगा कामभोगा असुई वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुस्सास-नीसासा दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवा अधुवा अणितिया असासया सडणपडण-विद्धसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा। "से के णं जाणइ अम्मयाओ ! के पुब्वि गमणाए, के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि गं अम्मयाओ ! तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए॥" तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं बयासी"इमे य ते जाया! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवणे य कसे य दूसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालरत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि-जाव-आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउ । तं अणुहोही ताव जाया! विपुलं माणुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं । तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ॥" तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं बयासी"तहेव णं तं अम्मयाओ! जं णं तुम्भे ममं एवं वयह-'इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए-जाव-तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइस्ससि।' "एवं खलु अम्मयाओ ! हिरण्णे य जाव साबएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अग्गिसामण्णे -जाव- मच्चुसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुब्धि गमणाए, के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुर्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए।"
३३८ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं बहूहि विसयाणुलोमाहि आधवणाहि य पण्णव णाहि
य सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य आधवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विष्णवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउब्वेयकारियाहि पण्णवणाहि पण्णवेमाणा एवं बयासी
धक०११
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
"एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए-जाव- संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहि दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुअं लंबेयव्वं, असिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया! समणाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए वा, उद्देसिए वा कीयगडे वा ठविए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा बद्दलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा। "तुमं च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सोयं नालं उण्हं नालं खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय-सिभियसन्निवाइए विविहे रोगायके, उच्चावए गामकंटए, बावीसं परीसहोवसग्गे उदिपणे सम्म अहियासित्तए। भुंजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे। तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अगगारियं पव्वइस्ससि ॥' तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरं एवं बयासी-- "तहेव णं तं अम्मयाओ! जंणं तुन्भे ममं एवं वयह--'एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे पुणरवि तं चेव जाब पव्वइस्ससि।' एवं खलु अम्मयाओ! निग्गंथे पावयणे कोवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगनिप्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स, नो चेव णं धीरस्स निच्छियववसियस्स एत्थ कि दुक्करं करणयाए? "तं इच्छामि णं अम्मयाओ तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए॥"
मेहस्स एगदिवसरजं ३३९ तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहि विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि
य सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विषणवित्तए वा ताहे अकामकाई चेव मेहं कुमार एवं वयासी-- "इच्छामो ताव जाया ! एगदिवसमवि ते रायसिरि पासित्तए ॥" तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ॥ तए णं से सेणिए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह ॥" तए णं ते कोडुबियपुरिसा मेहस्स कुमारस्त महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उबटुवेति ॥ तए णं से सेणिए राया बहूहि गणनायगेहि य -जाव- संधिवालेहि य -जाव- संपरिवुडे मेहं कुमारं अट्ठसएणं सोवणियाणं कलसाणं एवं रुप्पमयाणं कलसाणं मणिमयाणं कलसाणं सुवण्णरुप्पमयाणं कलसाणं, सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहि सव्वमट्टियाहिं सव्वपुप्फेहि सव्वगंधेहिं सव्वमल्लेहि सव्वोसहीहि सिद्धत्थएहि य सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं-जाव- दुंदुभि-निग्घोस पाइयरवेणं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी--"जय-जय नंदा! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा ! भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालवाहि, जियमझे वसाहि, अजियं जिणाहि सत्तुपक्खं, जियं च पालेहि मित्तपक्खं, इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराण धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं रायगिहस्स नगरस्स असि च बहूणं गामागर-नगर खेड-कब्बडदोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाणं आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आगा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहराहि ति" कट्ट जय-जय-सई पउंजति ॥ तए णं से मेहे राया जाए-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ ।। तए णं तस्स मेहस्स रणो अम्मापियरी एवं बयासी--"भण जाया ! कि दलयामो ? किं पयच्छामो? किं वा ते हियइच्छिए सामत्थे?"
मेहस्स निक्खमणपाओग्ग-उवगरणं ३४० तए णं से मेहे राया अम्मापियरी एवं वयासी
"इच्छामि णं अम्मयाओ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च आणियं, कासवयं च सद्दावियं ॥"
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
तए णं से सेणिए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! सिरिघराओ तिग्णि सयसहस्साई गहाय दोहि सप-सहस्सेहि कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेह ।" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हतुट्ठा सिरिघराओ तिणि सयसहस्साई गहाय कुत्तियावणाओ बोहि सयसहस्सेहिं रयहरणं पडिग्गहं च उवर्णेति, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेति ।।
कासवेणं मेहस्स अग्गकेसकप्पणं ३४१ तए णं से कासवए तेहि कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविए समाणे हटुतुटु-चित्तमाणदिए -जाब-हरिसवसविसम्पमाणहियए हाए कयबलिकामे
कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासो-- “संदिसह णं देवाणुप्पिया! जं मए करणिज्जं॥" तए णं से सेणिए राया कासवयं एवं वयासी"गच्छाहि गं तुब्भे देवाणुप्पिया! सुरभिणा गंधोदएणं निक्के हत्थपाए पक्खालेहि, सेयाए चउप्फालाए पोतीए मुहं बंधित्ता मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पेहि ॥" तए णं से कासवए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हटतुटु-चित्तमाणदिए जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयगं पडिसुणेइ, पडिसुणेता सुरभिगा गंधोदएणं हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खा
लेत्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बंधइ, बंधित्ता परेणं जतेणं मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पेति ॥ ३४२ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया महरिहेणं हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं
पक्खालेइ, पवखालेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चाओ दलयइ, दलइत्ता सेयाए पोत्तीए बंधइ, बंधिता रयणसमुग्गयंसि पक्खिवह, मंजूसाए पक्खिवइ, हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलि-प्पगासाई अंसूई विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी, रोयमाणी-रोयमाणी, कंदमाणी-कंदमाणी, विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयासी-- "एस णं अम्हं मेहस्स कुमारस्स अब्भुदएसु य उस्सवेसु य पधेसु य तिहीसु य छणेसु य जन्नेसु य पव्वणीसु य--अपच्छिमे दरिसणे भविस्सइ" ति कट्ट उस्सीसामूले ठवेइ ॥
मेहस्स अलंकरणं ३४३ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयाति, मेहं कुमारं दोच्चं पि तच्चं पि सेयापीएहि कलसेहि
व्हावेति, व्हावेत्ता पम्हलसूमालाए गंधकासाइयाए गायाई लूहॅति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अलिपंति, अलिपित्ता नासानीसासवाय-बोज्झं वरणगरपट्टणग्गयं कुसलणरपसंसितं अस्सलालापेलवं छेयायरियकणगखचियंतकम्मं हंसलक्खणं पडसाडगं नियंसेंति, हारं पिणद्धति, अद्धहारं पिणति , एवं-एगावलि मुत्तालि कणगावलि रयणालि पालंबं पायपलंब कडगाई तुडिगाई केऊराई अंगयाई दसमुद्दियार्णतयं कडिसुत्तयं कुंडलाइं चूडामणि रयणुक्कडं मउडं-पिणद्धति, पिणद्धता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमेणं चउरिवहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेंति ।
मेहस्स अभिनिक्खमणमहुस्सव तए णं से सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसय-सण्णिविट्ठ लीलट्ठिय-साल-भंजियागं इहामिय-उसम-तुरय-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नररुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं घंटा-वलि-महर-मणहरसरं सुभ-कंत-दरिसणिज्जं निउणोविय-मिसिमिसेंत-मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं अब्भग्गय-वइरवेइया-परिगयाभिरामं विज्जाहरजमल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्तमालणीयं रूबगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेस्सं सुहफासं सस्सिरीयरूवं सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवटुवेह ॥" तए णं ते कोडुबियपुरिसा हट्ठा अणेगखंभसय-सण्णिविट्ठ -जाव-सीयं उवट्ठति ॥
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८४
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
तए णं से मेहे कुमारे सीयं दुरूहइ दुरूहित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सण्णिसणे ।। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स
दाहिणपासे भद्दासणंसि निसीयह ॥ ३४५ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अंबधाई रयहरणं च पडिग्गहं च गहाय सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स वामपासे भद्दास
शंसि निसीयइ॥ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिट्ठओ एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्टिय-विलास-संलावुल्लावनिउणजुत्तोवयारकुसला आमेलगजमलजुयल-वट्टिय-अब्भुण्णय-पीण-रइय-संठिय-पओहरा हिम-रयय-कुंदेंदुपगासं सकोरेंटमल्लदामं धवलं आयवत्तं गहाय सलीलं ओहारेमाणी ओहारेमाणी चिट्टई ।। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स दुवे वरतरुणीओ सिगारागारचारवेसाओ संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलास-संलावुल्लाव-निउणजुत्तोवयारकुसलाओ सीयं दुरुहंति, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स उभओ पासं नाणामणि-कणग-रयण-महरिहतवणिज्जज्जल-विचित्तदंडाओ चिल्लियाओ सुहमवरदीहवालाओ संख-कुंद-दगरय-अमयमहियफेणपुंज-सण्णिगासाओ चामराओ गहाय सलीलं ओहारेमाणीओ ओहारेमाणीओ चिट्ठंति । तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एग. वरतरुणी सिंगारागारचारवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलास-संलावल्लाव-निउणजुतोवयारकुसला सीयं दुरूहइ, दुहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुरओ पुरथिमेणं चंदप्पभवहर-वेरुलिय-विमलदंडं तालियंट गहाय चिट्ठइ ॥ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्टिय-विलास-संलावुल्लाव-निउणजुत्तोवयारकुसला सीयं दुरूहइ, दुहिता मेहस्स कुमारस्स पुव्वदक्खिणेणं सेयं रययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगय-महामुहाकितिसमाणं भिगारं
गहाय चिट्ठइ । ३४६ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"खिप्पामेव भो देवाणप्पिया ! सरिसयाणं
सरित्तयाणं सरिव्वयाणं एगाभरण-गहिय-निज्जोयाणं कोडुबियवरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेह ॥" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं एगाभरण-गहिय-निज्जोयाणं कोडुबियवरतरुणाणं सहस्सं सदावेति ॥ तए णं ते कोडुंबियवरतरुणपुरिसा सेणियस्स रणो कोडुंबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हट्ठा व्हाया-जाव-एगाभरण-गहिय-णिज्जोया जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी“संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जं णं अम्हेहि करणिज्ज ॥" तए णं से सेणिए राया तं कोडुंबियवरतरुणसहस्सं एवं बयासी"गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं परिवहेह ॥" तए णं तं कोडुबियवरतरुणसहस्सं सेणिएण रण्णा एवं वृत्तं संतं हटें मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं परिवहद ॥ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलया तप्पढमयाए पुरओ अहाणपुवीए संपत्थिया, तं जहा --सोत्थिय-सिरिवच्छ-नंदियावत-वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणया-जाव-बहवे अत्यत्थिया -जावकामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किदिवसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया महमंगलिया बद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहि इट्टाहि कंताहि पियाहि मणुण्णाहि मणामाहि मणाभिरामाहि हिययगमणिज्जाहि वहि जयविजयमंगलसहि अणवरयं अभिनंदता य अभिथणता य एवं वयासी-- "जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा ! भदं ते अजियं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समण-धम्म, जियविग्धो विय वसाहि तं देव ! सिद्धिमझे, निहणाहि रागदोसमल्ले तवेण धिइ-धणिय-बद्धकच्छो, महाहि य अट्टकम्मसत्त झाणणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं नाणं, गच्छ य मोक्खं परमं पयं सासयं च अयलं, हंता परीसहचणं', अभीओ परीसहोवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ" त्ति कटु पुणो-पुणो मंगल-जयसई पउंजंति ॥ तए णं से मेहे कुमारे रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ पच्चोरहइ ।।
सिस्सभिक्खादाणं ३४७ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरओ कटु जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं
भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसिता एवं वयासो--"एस णं देवाणुप्पिया !
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
मेहे कुमारे अम्हं एगे पुत्ते इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययणंदिजणए उंबरपुष्पं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए ? “से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव मेहे कुमारे कामेसु जाए भोगेसु संवड्ढिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं । एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउम्बिग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं, इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! सिस्सभिक्खं ।।"
तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊहिं एवं बुत्ते समाणे एयमझें सम्म पडिसुणेइ ।। ३४८ तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमइ, सयमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमयइ।
तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छइ, पडिच्छिता हार-वारिधार-सिंदुवारछिन्नमुत्तावलिप्पगासाइं अंसूणि विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी रोयमाणी रोयमाणी कंदमाणी कंदमाणी विलवमाणी विलवमाणी एवं वयासो-- "जइयत्वं जाया ! घडियव्वं जाया! परक्कमियव्वं जाया! अस्सि च णं अट्ठे नो पमाएयव्वं ।" 'अम्हं पिणं एसेव मग्गे भवउ' ति कटु मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।
मेहस्स पव्वज्जागहणं ३४९ तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं
भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी -- "आलित्ते णं भंते ! लोए, पलिते णं भंत! लोए, आलित्तपलिते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य। "से जहानामए-केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ-एस मे नित्यारिए समाणे पच्छा पुरा य लोए हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ । एवामेव मम वि एगे आयाभंडे इठे कंते पिए मगुण्णे मणामे । एस मे नित्थारिए समाणे संसारवोच्छेयकरे भविस्सइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहि सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सयमेव सेहावियं, सयमेव सिक्खावियं, सयमेव आयार-गोयर-विणय-वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममा
इक्खियं ॥" ३५० तए णं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पब्वावेइ-जाव-धम्ममाइक्खइ--
"एवं देवाणुप्पिया! गंतव्वं, एवं चिट्ठियन्वं, एवं निसीयव्वं , एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियध्वं, एवं भासियब्वं, एवं उठाए उट्ठाय पाणेहि -जाव-सत्तेहि संजमेणं संजमियब्वं, अस्सि च णं अट्ठे नो पमाएयव्वं ॥" तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडिवज्जइ-तमाणाए तह गच्छइ, तहचिट्ठइ, -जाव-उट्ठाय पाणेहि-जाव-सत्तेहि संजमेणं संजमइ ॥
मेहस्स मणो-संकिलेसे ३५१ जद्दिवसं च णं मेहे कुमारे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तस्स णं दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयसि समणाणं निग्गंथाणं
अहाराइणियाए सेज्जा संथारएसु विभज्जमाणेसु मेहकुमारस्स दारमले सेज्जा-संथारए जाए यावि होत्था ॥ तए णं समणा निग्गंथा पुन्वरत्तावरत्तकालसमयसि वायणाए-जात्र-धम्माणुजोगचिताए य उच्चारस्त वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहि संघटुंति-जाव-अप्पेगइया ओलंति अप्पेगइया पोलंडेंति अप्पेगइया पाय-रय-रेणुगुंडियं करेंति । एमहालियं च रयणि मेहे कुमारे नो संचाएइ खणमवि अच्छि निमोलित्तए । तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु अहं सेणियस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए मेहे इ8 कंते-जाव-उंबर-पुष्पं व दुल्लहे सवणयाए । तं जया णं अहं अगारमझे आवसामि तया णं मम समणा निग्गंथा आढायंति परियाणंति सक्कारेंति सम्माति, अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई आइक्खंति, इटाहि कंताहि-जाव-वहिं आलवेति संलवेति । जप्पभिई च णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तप्पभिई च णं मम समणा निग्गंथा नो आढायंति-जाव
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
नो कंताहि वर्गाह आलवेति संलवेति । अदुत्तरं च णं मम समणा निग्गंथा राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए-जाव-एमहालियं च गं रति अहं नो संचाएमि अच्छि निमीलावेत्तए, तं सेयं खलु मज्झ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमझे आवसित्तए ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट-माणसगए निरयपडिरूवियं च णं तं रणि खवेइ, खवेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए सुविमलाए रयगीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्तत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ जाव पज्जुवासइ ।।
मेहस्स संबोधो ३५२ तए णं मेहा! इसमणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं बयासी
"से नूणं तुम मेहा! राओ पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहि निग्गंथेहि वायणाए-जाव-एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहुत्तमवि अच्छि निमीलावेत्तए। "तए णं तुज्झ मेहा ! इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--जया णं अहं अगारमझे आवसामि तया णं मम समणा निग्गंथा आढायंति इटाहि . . . वहि आलवेंति संलवेति । जप्पभिइंच णं मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि तप्पभिई च णं ममं समणा निग्गंथा नो आढायंति जाव नो इटाहि कंताहि वाहि आलवेति संलति । अदुत्तरं च णं ममं समणा निग्गंथा राओ पुम्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अप्पेगइया जाव पाय-रय-रेणु-गुंडियं करेंति । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमझे आवसित्तए त्ति कटु एवं संपेहेसि, संपेहेत्ता अट्ट-दुहट्टवसट्ट-माणसगए निरयपडिरूवियं च णं तं रणि खवेसि, खवेत्ता जेणामेव अहं तेणामेव हन्धमागए। से नूणं मेहा ! एस अत्ये समत्थे।" "हंता, अत्थे समत्थे ॥"
भगवया पुथ्वभवसुमेरुप्पभ-भवनिरूवणं ३५३ "एवं खलु मेहा ! तुमं इओ तच्चे अईए भवग्गहणे वेयड्ढगिरिपायमूले वणयरेहि निव्वत्तियनामधेज्जे सेए संख-उज्जल-विमल-निम्मल
दहिघण-गोखीर-फेण-रयणियरप्पयासे सत्तुस्सेहे नवायए दसपरिणाहे सत्तंगपइट्ठिए सोमे सम्मिए सुरुवे पुरओ उदग्गे समूसियसिरे सुहासणे पिट्ठओ वराहे अइयाकुच्छी अच्छिद्दकुच्छी अलंबकुच्छी पलंबलंबोदराहरकरे धणुपट्टागिति-विसिटुपुढे अल्लोण-पमागजुत्तवट्टिय-पीवर-गत्तावरे अल्लीण-पमाणजुत्तपुच्छे पडिपुग्ण-सुचारु-कुम्मचलणे पंडुर-सुविसुद्ध-निद्ध-निरुवय-विसतिनहे छईते सुमेरुप्पभे नाम हत्थिराया होत्था ॥ "तत्थ णं तुम मेहा ! बाहिं हत्थीहि य हत्थिणियाहि य लोट्टएहि य लोट्टियाहि य कलभएहि य कलभियाहि य सद्धि संपरिवुडे हत्थिसहस्सनायए देसए पागट्ठी पट्ठवए जूहवई वंदपरिवड्ढए, अणेस च बहूणं एकल्लाणं हथिकलभाणं आहेबच्च-जाव-विहरसि ॥ "तए णं तुम मेहा ! निच्चप्पमत्ते सई पललिए कंदप्परई मोहणसीले अवितण्हे कामभोगतिसिए बहूहि हत्थोहि य-जाव-संपरिवुडे वेयड्ढगिरिपायमूले गिरोसु य दरीसु य कुहरेसु य कंदरासु य उज्झरेसु य निज्झरेसु य वियरएसु य गड्डासु य पल्ललेसु य चिल्ललेसु य कडगेसु य कडयपल्ललेसु य तडीसु य वियडीसु य टंकेसु य कूडेसु य सिहरेसु य पन्भारेसु य मंसु य मालेसु य कागणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य वणराईसु य नदीसु य नदीकच्छेसु य जूहेसु य संगमेसु य वावीसु य पोक्खरणीसु य दीहियासु य गुंजालियासु य सरेसु य सरपंतियासु य सरसरपंतियासु य वणयरेहि दिनवियारे बहूहिं हत्थोहि य जाव कलभियाहि य सद्धि संपरिवुडे बहुविहतरुपल्लव-पउरपा
णियतणे निभए निरुविग्गे सुहंसुहेणं विहरसि ॥ ३५५ "तए णं तुम मेहा-अण्णया कयाइ पाउस-बरिसारत्त-सरद-हेमंत-वसंतेसु कमेण पंचसु उऊसु समइक्कतेसु गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले
मासे पायवघंससमुट्ठिएणं सुक्कतण-पत्त-कयवर-मारुय-संजोगदोविएणं महाभयंकरेणं हुयवहेणं वगदव-जाल-संपलितेसु वगंतेसु धूमाउलासु दिसासु महावाय-वेगेणं संघट्टिएसु छिण्णजालेसु आवयमाणेसु पोल्लरुक्खेसु अंतो-अंतो झिपायमाणेसु मय-कुहिय-विगढ-किमिय-कद्दमनईवियरगझीणपाणीयंतेसु वर्णतेसु भिंगारकवीणकंदिय-रवेसु खरफरुस-अणि?-रिट्ठ-वाहित्त-विद्दुमग्गेसु दुमेसु तण्हावस-मुक्कपक्खपायडियजिब्भतालुय-असंपुडियतुंड-पक्खिसंघेसु ससंतेसु गिम्हुम्हउण्हवाय-खरफरुसचंडमारुय-सुक्कतणपत्सकयवरवाउलि-भमंतदित्तसंभंतसावयाउल-मिगतण्हाबद्धचिधपट्टेसु गिरिवरेसु संवट्टिइएसु तत्थ-मिय-पसव-सरीसिवेसु अवदालियवयणविवर-निल्लालियग्गजीहे मततंबइय-पुण्णकण्णे संकुचिय-थोर-पीवर-करे ऊसिय-नंगूले पीणाइय-विरसरडिय-सट्टेणं फोडयंतेव अंबरतलं, पायदहरएणं कंपयंतेव मेइणितलं, विणिम्मुयमाणे य सीयारं, सव्वओ समंता वल्लिवियाणाई छिदमाणे, रुक्खसहस्साई तत्थ सुबहूणि नोल्लयंते, विणट्टरटुव्व नरवरिदे,
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
वायाइद्धेव्व पोए, मंडलवाएव्व परिब्भमंते, अभिक्खणं-अभिक्खणं लिंडनियरं पमुंचमाणे-पमुंचमाणे बहूहि हत्थीहि य जाव कलभियाहि य सद्धि दिसोदिसि विप्पलाइत्था । "तत्थ णं तुम मेहा! जुण्णे जरा-जज्जरिय-देहे आउरे झंझिए पिवासिए दुब्बले किलंते नटुसुइए मूढदिसाए सयाओ जूहाओ विचहणे वणदवजालापरद्धे उण्हेण य तण्हाए य छुहाए य परब्भाहए समाणे भोए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए सव्वओ समंता आधावमाणे परिधावमाणे एगं च णं महं सरं अप्पोदगं पंकबहुलं अतित्थेणं पाणियपाए ओइण्णे। "तत्थ णं तुम मेहा! तीरमइगए पाणियं असंपत्ते अंतरा चेव सेयंसि विसणे । "तत्थं गं तुम मेहा! पाणियं पाइस्सामि त्ति कटु हत्थं पसारेसि । से वि य ते हत्थे उदगं न पावइ । तए गं तुम मेहा! पुणरवि कायं पच्चुरिस्सामि त्ति कटु बलियतरायं पंकसि खुत्ते ॥ "तए णं तुम मेहा! अण्णया कयाइ एगे चिरनिज्जूढए गयवरजुवाणए सगाओ जूहाओ कर-चरण-दंत-मुसलप्पहारेहि विप्परद्धे समाणे तं चेव महद्दहं पाणीयपाए समोयरइ। तए णं से कलभए तुम पासइ, पासित्ता तं पुबवेरं सुमरइ, सुमरित्ता आसुरत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे जेणेव तुम तेणेव उवागच्छइ,उवागच्छित्ता तुमं तिहिं दंतमुसलेहि तिक्खुतो पिट्ठओ उट्ठभइ, उट्ठभित्ता पुव्वं वेरं निज्जाएइ, निज्जाएत्ता हटुतुठे पाणीयं पिबइ, पिबित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। "तए णं तव मेहा! सरीरगंसि वेयणा पाउन्भवित्था-उज्जला-जाव-दुरहियासा । पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरित्था ।
भगवया मेरुप्पभ-भवनिरूवणं "तए णं तुम मेहा ! तं उज्जलं-जाव-दुरहियासं सत्तराइंदियं वेयणं वेदेसि, सवोसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे गंगाए महानईए दाहिणे कूले विझगिरिपायमूले एगेणं मत्तवरगंधहत्थिणा एगाए गयवर-करेणुए कुच्छिसि गयकलभए जगिए । "तए णं सा गयकलभिया नवण्हं मासाणं वसंतमासंसि तुमं पयाया ॥ "तए गं तुम मेहा! गम्भवासाओ विप्पमुक्के समाणे गयकलभए यावि होत्था-रत्तुप्पल-रत्तसूमालए जासुमणाऽऽरत्तपालियत्तय-लक्खारससरसकुंकुमसंझब्भरागवण्णे, इठे नियगस्स जूहवइणो, गणियायार-करेणु-कोत्थ-हत्थी अणेगहत्यिसयसंपरिवुडे रम्मेसु गिरिकाणणेसु सुहंसुहेणं विहरसि ॥ "तए णं तुम मेहा! उम्मुक्कबालभावे जोवणगमणुप्पत्ते जूहवइणा कालधम्मुणा संजुत्तेणं तं जूहं सयमेव पडिवज्जसि ॥ "तए णं तुम नेहा ! वगयरेहि निव्वत्तियनामधेज्जे सत्तुस्सेहे-जाव-पंडुर-सुविसुद्ध-निद्ध-निरुवय-विसतिनहे चउदंते मेरुप्पभे हत्थिरयणे
होत्या। तत्थ णं तुम मेहा! सत्तसइयस्स जूहस्स आहेबच्च-जाव-कारेमाणे पालेमाणे अभिरमेत्था ।। ३५७ "तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले मासे पायवघंससमुट्ठिएणं सुक्कतण-पत्त-कयवर-मारुय-संजोगदीविएणं
महाभयंकरेणं हयवहेणं वणदव-जाला-पलित्तेसु वर्णतेसु धूमाउलासु दिसासु-जाव-मंडलवाएव्व परिभमंते भीए-जाव-संजायभए बहूहि हत्थीहि य-जाव-संपरिबुडे सव्वओ समंता दिसोदिसि विप्पलाइत्था ॥ "तए णं तव मेहा! तं वणदवं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समप्पज्जित्था--'कहि णं मन्ने मए अयमेयारूवे अग्गिसंभमे अणूभूयपुटवे ?' "तए णं तव मेहा ! लेस्साहि विसुज्झमाणोहिं अज्शवसाणेणं सोहणेणं सुभेणं परिणामेणं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मगण-गवेसणं करेमाणस्स सन्निपुव्वे जाईसरणे समुप्पज्जित्था ॥ "तए णं तुम मेहा! एयमलै सम्म अभिसमेसि--एवं खलु मया अईए दोच्चे भवग्गहणे इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले जाव सुमेरुप्पभे नाम हत्थिराया होत्था । तत्थ णं मया अयमेयारूवे अग्गिसंभमे समणुभूए । 'तए णं तुम मेहा! तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि नियएणं जूहेणं सद्धिं समण्णागए यावि होत्था ॥ तए णं तुम मेहा! सत्तुस्सेहे-जाव-सन्निजाईसरणे चउदंते मेरुप्पभे नामं हत्थी होत्था ।
मेरुप्पमेण मंडलनिम्माण ३५८ "तए णं तुझं मेहा ! अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--सेयं खलु मम इयाणि गंगाए महानईए दाहिणिल्लंसि
कलंसि विझगिरिपायमूले दवग्गिसंताणकारणट्ठा सएणं जूहेणं महइमहालयं मंडलं घाइत्तए त्ति कट्टटु एवं संपेहेसि, संपेहेत्ता सुहसुहेणं विहरसि॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
"तए णं तुम मेहा! अण्णया कयाइ पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि सन्निवयंसि गंगाए महानईए अदूरसामंते बहूहि हत्थीहि य-जावकलभियाहि य सत्तहि य हत्थिसएहिं संपरिवडे एगं महं जोयणपरिमंडलं महइमहालयं मंडलं घाएसि--जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कट्ठ वा कंटए वा लया वा वल्ली वा खाणुं वा रुक्खे वा खुवे वा, तं सव्वं तिखुतो आहुणिय-आहुणिय पाएणं उट्ठवेसि, हत्थेणं गिण्हसि, एगते एडेसि ॥ "तए णं तुम मेहा ! तस्सेव मंडलस्स अदूरसामंते गंगाए महानईए दाहिणिल्ले कूले विझगिरिपायमूले गिरीसु य-जाव-सुहंसुहेणं विहरसि ॥ 'तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ मज्झिमए वरिसारतसि महावुट्टिकायंसि सन्निवइयंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता दोच्चं पि मंडलघायं करेसि । "एवं-चरिमवरिसारत्तंसि महावुट्टिकायंसि सन्निवयमाणंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तच्चं पि मंडलघायं करेसि-जाव-सुहंसुहेणं विहरसि ।।
दवग्गिभीतसावयाणं मेरुप्पभस्स य मंडलपवेसो ३५९ "अह मेहा! तुमं गइंदभावम्मि वट्टमाणो कमेणं नलिणिवणविवहणगरे हेमंते कुंदलोद्धउद्धततुसारपउरम्मि अतिक्कते अहिणवे गिम्ह
समयंसि पत्ते वियट्टमाणेसु वणेसु वणकरेणुविविहदिण्णकयपंसुघाओ तुमं उउयकुसुमकयचामरकन्नपूरपरिमंडियाभिरामो मयवसविगसंतकडतडकिलिनगंधमदवारिणा सुरभिजणियगंधो करेणुपरिवारिओ उउसमत्तजणियसोभो काले दिणयरकरपयंडे परिसोसियतरवरसिहरभीमतरदंसणिज्जे भिगाररवंतभेरवरवे गाणाविहपत्तकट्ठतणकयवरुद्ध तपइमारुयाइद्धनह्यलदुमगणे वाउलियादारुणतरे तण्हावसदोसदूसियभमंतविविहसावयसमाउले भीमदरिसणिज्जे वट्टते दारुणम्मि गिम्हे मारुतबसपसरपसरियवियंभिएणं अब्भहियभीमभेरवरबप्पगारेणं महुधारापडियसित्तउद्धायमाणधगधगधगंतसद्द,दएणं दित्ततरसफुलिंगेणं धूममालाउलेणं सावयसयंतकरणेणं अन्भहियवणदवेणं जालालोवियनिरुद्धधूमंधकार भीयो आयावालोयमहंततुंबइयपुन्नकन्नो आकुंचियथोरपीवरकरो भयवसभयंतदित्तनयणो वेगेण महामेहो व्व पवणोल्लियमहल्लरूवो जेणेव को ते पुरा दवग्गिभयभीयहियएणं अवगयतणप्पएसरुक्खो रुक्खोद्देसो दवग्गिसंताणकारणढाए जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्थ गमणाए, एक्को ताव एस गमो। "तए णं तुम मेहा! अण्णया कयाइ कमेण पंचसु उऊसु समइक्कतेसु गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले मासे पायव-घंससमुट्ठिएणं-जावसंवट्टिइएसु मियपसुपंखिसरीसिवेसु दिसोदिसि विप्पलायमाणेसु तेहिं बहूहि हत्थीहि य-जाव-कलभियाहि य सद्धि जेणेव से मंडले तेणेव पहारेत्थ गमणाए। "तत्थ णं अण्णे बहवे सीहा य वग्घा य विगा य दीविया य अच्छा य तरच्छा य परासरा य सिपाला य विराला य सुणहा य कोला य ससा य कोकंतिया य चित्ता य चिल्लला य पुव्वपविट्ठा अग्गिभयविद्या एगयओ बिलधम्मेणं चिट्ठति ॥ "तए णं तुम मेहा! जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तेहि बहि सोहेहि य-जाव-चिल्ललेहि य एगयओ बिलधम्मेणं चिट्ठसि ॥
मेरुप्पभस्स पादुक्खेवे ३६० "तए णं तुमे मेहा! पाएणं गत्तं कंडूइस्सामी ति कटु पाए उक्खित्ते । तसिं च णं अंतरंसि अहिं बलवंतेहिं सहिं पणोलि
ज्जमाणे-पणोलिज्जमाणे ससए अणुप्पविढे ॥ "तए णं तुमे मेहा! गाय कंडूइत्ता पुणरवि पायं पडिनिक्खेविस्सामि त्ति कटु तं ससयं अणुपविट्ठ पाससि, पासित्ता पाणाणु
कंपयाए-जाव-सत्ताणुकंपयाए से पाए अंतरा चेव संधारिए, नो चेव णं निक्खित्ते ॥ ३६१ "तए णं तुम मेहा! ताए पाणाणुकंपयाए-जाव-सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए, माणुस्साउए निबद्धे ।।
तए णं से वणदवे अड्ढाइज्जाइं राइंदियाई तं वणं झामेइ, झामेत्ता निट्ठिए उवरए उवसंते विज्झाए यावि होत्था ।। तए णं ते बहवे सीहा य-जाव-चिल्लला य तं वणदवं निट्ठियं उवरयं उवसंतं विज्झायं पासंति, पासित्ता अग्गिभयविप्पमुक्का तण्हाए य छुहाए य परब्भाहया समाणा तओ मंडलाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सम्बओ समंता विप्पसरिस्था। तए णं ते बहवे हत्थी य-जाव-कलभिया य तं वणदवं निट्टियं उवरयं उवसंतं विज्झायं पासंति, पासित्ता अग्गिभयविप्पमुक्का तण्हाए य छुहाए य परम्भाहया समाणा तओ मंडलाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता दिसोदिसि विप्पसरित्था ।
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
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"तए णं तुम मेहा! जुण्णे जरा-जज्जरिय-देहे सिढिलवलितय-पिणिद्धगत्ते दुब्बले किलंते जुजिए पिवासिए अत्थामे अबले अपरक्कमे अचंकमणा वा ठाणुखंडे वेगेण विप्पसरिस्सामि त्ति कटु पाए पसारेमाणे विज्जुहए विव रययगिरि-पम्भारे धरणितलंसि सव्वं हिं सण्णिवइए॥ "तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया--उज्जला-जाब-दुरहियासा। पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरसि ॥
मेहभवो तत्थ य तितिक्खोवदेसो ३६२ "तए णं तुम मेहा! तं उज्जलं-जाव-दुरहियासं तिण्णि राइंदियाइं वेयणं वेएमाणे विहरिता एगं वाससयं परमाउं पालइत्ता इहेव
जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रणो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पच्चायाए । तए णं तुम मेहा! आणुपुवेणं गन्भवासाओ निक्खंते समाणे उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। "तं जद्द ताव तुमे मेहा ! तिरिक्खजोणियभावमुवगएणं अपडिलद्ध-सम्मत्तरयणलंभणं से पाए पाणाणुकंपयाए-जाव-सत्ताणुकंपयाए अंतरा चेव संधारिए, नो चेव णं निक्खित्ते । किमंग पुण तुम मेहा ! इयाणि विपुलकुलसमुभवे णं निरुवयसरीर-दंतलद्धपंचिदिए गं एवं उट्ठाण-बल-वीरिय-पुरिसगार-परक्कमसंजुत्ते णं मम अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अगगारियं पव्वइए समाणे समणाणं निग्गंथाणं राओ पुन्वरत्तावरतकालसमयंसि वायणाए-जाव-धम्माणुओगचिताए य उच्चारस वा पासवणस्त वा अइगच्छमाणाण य निग्गच्छमाणाण य हत्थसंघट्टणाणि य-जाब-रय-रेणु-ांडणाणि य नो सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि?"
मेहस्स जाईसरणं ३६३ तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म सुहं परिणामेहि-जाव-पसत्थेहि
अज्झवसाणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुग्वे जाइसरणे समुप्पण्णे, एयमढं सम्म अभिसमेइ ।।
मेहस्स पुणो पव्वज्जा ३६४ तए णं से मेहे कुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं संभारियपुब्वभवे दुगुणाणीयसंवेगे आणंदअंसुपुण्णमुहे हरिसवसविसप्पमाणहियए
धाराहयकलंबकं पिव समूससियरोमकूवे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- "अज्जप्पभिती णं भंते ! मम दो अच्छीणि मोत्तणं अवसेसे काए समणाणं निग्गंथाणं निस? त्ति कटु पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-- "इच्छामि णं भंते ! इयाणि दोच्चं पि सयमेव पव्वावियं-जाव-सयमेव आयार-गोयरं जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं ॥" तए णं समणे भगव' महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पव्वावेइ -जाव-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खद "एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं, एवं चिट्टियव्वं, एवं निसीयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं एवं उट्ठाए उट्ठाय पाणाणं-जाव-सत्ताणं संजमेणं संजमियव्वं ॥" तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवं धम्मियं उबएसं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तह गच्छइ-जाव-संजमेणं संजमइ॥
मेहस्स नियंठचरिया ३६५ तए णं से मेहे अणगारे जाए-इरियासमिए -जाव- इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरति ।।
तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि छट्ठट्ठमबसमबुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।
महावीरस्स रायगिहाओ बहिया जणवयविहारो ३६६ तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नयराओ गुणसिलयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं
विहरई॥
ध० के०१२
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
मेहस्स भिक्खुपडिमा ३६७ तए णं से मेहे अणगारे अण्णया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी--
"इच्छामि गं भंते ! तुब्र्भहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ॥" तए णं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । मासियं भिक्खुपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं सम्म काएणं फासेइ-जाव-किट्टेइ, सम्म काएणं फासेत्ता-जाव-किमुत्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नभंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- "दृच्छामि णं भंते ! तुम्ह अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता गं विहरित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि।" जहा पढमाए अभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पामसत्तराईदियाए दोच्चसत्तराईदियाए तच्चसत्तराइंदियाए अहोराइयाए एगराइयाए वि।।
मेहस्स गुणरयणसंवच्छरतवो ३६८ तए णं से मेहे अणगारे बारस भिक्खपडिमाओ सम्मं कारणं फासेत्ता-जाव-किदृत्ता पुणरवि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता
एवं वयासी--"इच्छामि णं भंते ! तुब्र्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे गुणरयणसंबच्छरं तवोकम्म' उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।" । "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ॥"१ . . . तए णं से मेहे अणगारे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्म कारणं फासेइ-जाव-किट्टेइ अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं काएणं फासेता-जाव- किमुत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहि छट्ठमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
मेहस्स सरीरदसा ३६९ तए णं से मेहे अणगारे तेणं ओरालेणं विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धनेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं
उत्तमेणं महाणुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडिकिडियाभूए अद्विचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्थाजीवंजीवेणं गच्छद, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भास भासिस्सामि ति गिलाइ । से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलसगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी ससई गच्छइ, ससई चिट्ठइ, एवामेव मेहे अणगारे ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, उचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, हयासणे इव भासरासिपरिच्छन्ने तघेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिद ।
३७०
मेहस्स विपुलपव्वए अणसणं तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे-जाव-पुष्वाणुपुन्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स राओ पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं ओरालेण-जाव-तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडिकिडियाभूए अद्विचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था--जीवंजीवेणं गच्छामि-जाव-भासं भासिस्सामि त्ति गिलामि । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे,-जाव-य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहर इ, ताव ता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णायस्स समाणस्स सयमेव पंच महन्वयाइं आरुहित्ता गोयमादीए समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य खामेत्ता तहारूवेहि कडाईहि थेरेहि सद्धि विउलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहिता सयमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहित्ता संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाणएत्थ मूलपाठगयं गुणरयणसंबच्छारतबोकम्मस्स वण्णणं चरणाणुओगस्स तवायारे दट्टव्वं ।
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महावीरतित्थे मेहकुमारसमणे
पडियाइक्खियस्स पाओवगयरस कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उद्धियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पायाहिणं करेइ, करेत्ता वंदह नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे
विणएणं पंजलिउडे पज्जुबासइ॥ ३७१ 'मेहा' इ समणे भगवं महावीरे मेहं अणगारं एवं वयासी
“से नणं तव मेहा! राओ पुष्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमागस्त अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्थाएवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं सुक्के-जाव-जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए। "से नूणं मेहा! अट्ट सम? ?" "हंता, अत्थि ।"
''अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥" ३७२ तए णं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए-जाब-हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्टाए
उट्ठद, उट्ठता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महन्वयाई आरुहेइ, आरुहेत्ता गोयमादीए समणे निगाथे निग्गंथोओ य खामेइ, खामेत्ता तहारूहि कडादीहि थेरेहि सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरूहह, दुरूहित्ता सयमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता बन्भसंथारगं दुरूहइ, दुरूहिला पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-- "नमोत्थु णं अरहंताणं-जाव-सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं गमणस्स-जाव-सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ म भगवं तत्थगए इहगयं" ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी"पुग्वि पि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए-जाव-मिच्छादसणसल्ले-पच्चक्खाए। "इयाणि पिणं अहं तस्सेब अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि-जाव-मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइम चउम्विहं पि आहार पच्चक्खामि जावज्जीवाए। "ज पि य इमं सरीरं इ8-जाव-विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतीति कटु एवं पि य णं चरमेहि ऊसास-नीसासेहि वोसिरामि" त्ति कट्ट संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकखमाणे विहरइ ॥ तए णं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए बेयावडियं करेंति ॥
मेहस्स समाहिमरणं ३७३ तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडि
पुण्णाई दुवालसवरिसाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, ट्ठि भत्ताई अणसगाए छएत्ता, आलोइयपडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते अणुपुत्वेणं कालगए।
थेरेहि मेहस्स आयारभंडसमप्पणं ३७४ तए णं ते थेरा भगवंतो मेहं अणगारं अणुपुब्वेणं कालगयं पासंति, पासित्ता परिनेव्वाणवत्तियं काउस्सगं करेंति, करेत्ता मेहस्स आयार-गं
भंडगं गेहंति, विउलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणामेव समणे भगवं महावीरे, तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-- "एवं खल देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे नामं अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए, से णं देवाणुप्पिएहि अब्भणुण्णाए समाणे गोयमाइए समणे निग्गथे निग्गंथीओ य खामेत्ता अम्हेहि द्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरूहइ, सयमेवमेघघणसण्णिगास पुढविसिलं पडिलेहेइ, भत्तपाणपडियाइक्खिए अणुपुट्वेणं कालगए। "एस णं देवाणुप्पिया! मेहस्स अणगारस्स आयारभंडए ॥"
अमीर, वाणिकि अगर का समय यावर समो
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
गोयमपुच्छाए भगवओ उत्तर ३७५ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--
"एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे नामं अणगारे से णं भंते ! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहि गए ? कहिं उबवण्णे ?" गोयमा! इसमणे भगवं महावीरे गोयम एवं वसासी-"एवं खल गोयमा ! मम अंतेवासी मेहे नामं अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए, से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बारस भिक्खुपडिमाओ गुणरयण-संबच्छरं तवोकम्म काएणं फासेत्ता-जाव-किट्टेत्ता, मए अब्भणुण्णाए समाणे गोयमाइ थेरे खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहि कडादीहि थेरेहि सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरूहित्ता, दब्भसंथारगं, संथरित्ता दब्भसंथारोवगए सयमेव पंचमहव्वए उच्चारेत्ता, बारस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छदेत्ता आलोइय-पडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साई बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढे दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सर्णकुमार-माहिद-बंभ-लंतग-महासुक्कसहस्साराणय-पाणयारणच्चुए तिण्णि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्ज-विमाणवाससए वीईवइत्ता विजए महाविमाणे देवताए उववण्णे । "तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीस सागरोवमाइं ठिई पण्णता । तत्थ णं मेहस्स वि देवस्स तेतीसं सागरोवमाइं ठिई ॥” । "एस णं भंते ! मेहे देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ?" 'गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सब्बदुक्खाणमंतं काहिइ ।।"
--त्ति बेमि
वृत्तिकृता समद्धता निगमनगाथा ३७६ महुरेहि निउणेहि, वयणेहि चोययंति आयरिया । सीसे कहिंचि खलिए, जह मेहमुणि महावीरो ॥१॥
णाया-अ. १
२२. महावीरतित्थे मकाइआई समणा
संगहणी-गाहा ३७७ १. मकाइ २. किकमे चेब, ३. मोग्गरपाणी य ४. कासवे ।
५. खेमए ६. धिइहरे चेव, ७. केलासे ८. हरिचंदणे ॥१॥ ९. वारत्त १०. सुदंसण ११. पुण्णभद्द तह १२. सुमणभद्द १३. सुपइठे । १४. मेहे १५. ऽतिमुत्त १६. अलक्के, अज्झयणाणं तु सोलसयं ।।२।।
मकाई समणे किकिमे य ३७८ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिह नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया ।।
तत्थ णं मकाइ नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे-जाव-अपरिभूए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिकरे गुणसिलए-जाव- संजमेणं तवसा अम्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया । तए णं से मकाई गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते तहेव इमो वि जेट्टपुत्तं कुडंबे ठवेत्ता पुरिससहस्स-बाहिणीए सीयाए निक्खंते-जाव-अणगारे जाए - इरियासमिए । तए णं से मकाई अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराण अंतिए समाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ ।
सेसं जहा खंदगस्स गुणरयणं तवोकम्मं । सोलसवासाइं परियाओ। तहेव बिउले सिद्धे ॥ ३७९ किकमे वि एवं चेव-जाव-विउले सिद्धे ।
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२३. महावीरतित्थे अज्जुणमालागारे
रायगिहे मोग्गरपाणिजक्खाययणे ३८० तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी ।।
तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुणए नाम मालागारे परिवसइ--अड्ढे-जाव-अपरिभूए । तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स बंधुमई नाम भारिया होत्था--सूमाल-पाणिपाया० ।। तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्य णं महं एगे पुष्फारामे होत्था--किण्हे-जाव-महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवण्ण-कुसुमकुसुमिए पासाईए-जाव-पडिरूवे ॥ तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुणयस्स मालायारस्स अज्जयपज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था--पोराणे दिव्वे सच्चे जहा पुण्णभद्दे ।। तत्थ णं मोग्गरपाणिस्स पडिमा एगं महं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं गहाय चिट्ठइ ।
अज्जुणस्स जक्खपज्जुवासणा ३८१ तए णं से अज्जुणए मालागारे बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणि-जक्खभत्ते यावि होत्था । कल्लाकल्लि पच्छियपिडगाइं गेण्हइ, गेण्हित्ता
रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुप्फुच्चयं करेइ, करेत्ता अग्गाई वराई पुप्फाई गहाय, जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणं करेइ, करेत्ता जण्णुपायपडिए पणामं करेइ, तओ पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरइ॥
गोटिल्लेहि अज्जुणमालायारबंधणं बन्धुमईए सद्धि अणायारो य ३८२ तत्थ णं रायगिहे नयरे ललिया नाम गोट्ठी परिवसइ--अड्ढा-जाव-अपरिभूता जं कयसुकया यावि होत्था ।
तए णं रायगिहे नगरे अण्णया कयाइ पमोदे घुठे यावि होत्था ॥ तए णं से अज्जुणए मालागारे कल्लं पभूयतराएहि पुप्फेहि कज्जं इति कट्ट पच्चूसकालसमयंसि बंधुमईए भारियाए सद्धि पच्छियपिडयाई गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बंधुमईए भारियाए सद्धि पुप्फुच्चयं करेइ ।। तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए छ गोहिल्ला पुरिसा जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागया अभिरममाणा चिट्ठति ।। तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि पुप्फुच्चयं करेइ, पत्थियं भरेइ, भरेत्ता अग्गाई वराई पुष्फाइंगहाय जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ ॥ तए णं ते छ गोहिल्ला पुरिसा अज्जुणयं मालागारं बंधुमईए भारियाए सद्धि एज्जमाणं पासंति, पासित्ता अण्णमण्णं एवं वयासी-- "एस णं देवाणुप्पिया ! अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि इहं हव्वमागच्छइ । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं अज्जुणयं मालागारं अवओडय-बंधणयं करेत्ता बंधुमईए भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणाणं विहरित्तए" त्ति कटु एयमट्ठ अण्णमण्णस्स पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कवाडंतरेसु निलुक्कंति, निच्चला निष्फंदा तुसिणीया पच्छण्णा चिट्ठति ॥ तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, आलोए पणामं करेइ, महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, जण्णुपायपडिए पणामं करेइ ।। तए णं छ गोटिल्ला पुरिसा दवदवस्स कवाडंतरहितो निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता अज्जुणयं मालागारं गेण्हंति, गेण्हित्ता अवओडय-बंधणं करेंति । बंधुमईए मालागारीए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति ॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
अज्जणस्स चिता तस्स सरीरे मोग्गरपाणिपवेसो य ३८३ तए णं तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवओ
कल्लाकल्लि-जाव-पुप्फच्चणं करेमि, जण्णुपायपडिए पणामं करेमि, तओ पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरामि। तं जइ णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए होते, से णं किं मम एयारूवं आवई पावेज्जमाणं पासते ? तं नत्थि णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सणिहिए। सुव्वत्तं गं एस कट्टे॥" तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे अज्जुणयस्त मालागारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं-जाव-बियाणेता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तडतडस्स बंधाई छिदइ, छिदित्ता तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं गेण्हइ, गेण्हिता ते इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएइ॥ तए णं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जखणं अण्णाइछे समाणे रायगिहस्स नगरस्स परिपेरंतेणं कल्लाकल्लि इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे घाएमाणे विहरइ ॥
रायगिहे आतंक ३८४ तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-एवं परूवेइ--
"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा अण्णाइ8 समाणे रायगिहे नयरे बहिया इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणेघाएमाणे विहरइ ॥" तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लट्ठ समाणे कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्जुणए मालागारे-जाव-घाएमाणे-घाएमाणे विहरइ। तं मा णं तुब्भे केइ कटुस्स वा तणस्स वा पाणियस्स वा पुष्फफलाणं वा अट्ठाए सइरं निग्गच्छइ। मा णं तस्स सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ ति कट्ट दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता खिप्पामेव ममेयं पच्चप्पिणह ॥" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-पच्चप्पिणंति ।।
भगवओ समोसरणं ३८५ तत्थ णं रायगिहे नगरे सुव॑सणे नामं सेट्ठी परिवसइ-अड्ढे-जाव-अपरिभए ।
तए णं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था--अभिगयजीवाजीवे-जाव-विहरइ॥ तेणं कालेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुब्वि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-किमंग पुण विपुलस्स अट्ठस्स गहणयाए?
सुदंसणस्स वंदणठें गमणं तए णं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु समणे भगवं महावीरे-जाव-विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वसासी--"एवं खलु अम्मयाओ! समणे भगवं महावीरे-जाव-विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि नमसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पन्जुवासामि ॥" तए णं सुदंसणं सेट्ठि अम्मापियरो एवं वयासी--"एवं खलु पुत्ता! अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइट्ठे समाणे रायगिहस्स नयरस्स परिपेरंतेणं कल्लाकल्लि बहिया इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे-घाएमाणे विहरइ। तं मा णं तुम पुत्ता ! समणं भगवं महावीरं वंदए निग्गच्छाहि, मा णं तव सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ । तुमण्णं इह गए चेव समणं भगवं महावीरं वंदाहि ॥" तए णं से सुदंसणे सेट्ठी अम्मापियरं एवं वयासी--"किण्णं अहं अम्मयाओ! समणं भगवं महावीर इहमागयं-जाव-इह गए चेव वंदिस्सामि ? तं गच्छामि णं अहं अम्मयाओ! तुर्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदए॥"
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महावीरतित्थे अज्जुणमालागारे
तए णं सुदंसणं सेट्ठि अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहि आघवणाहि पण्णवणाहि सण्णवणाहिं विण्णवणाहिं परूवणाहिं आघवेत्तए पण्णवेत्तए सण्णवेत्तए विष्णवेत्तए परूवेत्तए ताहे एवं बयासी--"अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।।" तए णं से सुदंसणे अम्मापिईहिं अब्भणुण्णाए समाणे व्हाए सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पायविहारचारेणं रायगिहं नगरं मझमज्मेणं निग्गच्छड, निग्गच्छिता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणस्स अदूरसामंतेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
सुदंसणस्स अज्जुणकय-उवसग्गो ३८७ तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोबासयं अदूरसामंतेणं वोईवयमाणं-बीईवयमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे
तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं से सुदंसणे समणोबासए मोग्गरपाणि जखं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता अभीए अतत्थे अणुम्बिग्गे अक्खुभिए अचलिए असंभंते वत्थंतेणं भूमि पमज्जइ, पमज्जिता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी"नमोत्थु णं अरहंताणं-जाव-सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं ।" । "नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपाविउकामस्स।" "पुचि पिणं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए मुसाबाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, सदारसंतोसे कए जावज्जीवाए, इच्छापरिमाणे कए जावज्जीवाए । तं इदाणि पिणं तस्सेव अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, मुसावायं अदत्तादाणं मेहुणं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं कोहं-जाव-मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउम्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जइ णं एत्तो उवसग्याओ मुच्चिस्सामि तो मे कप्पइ पारेत्तए। अहण्णं एत्तो उवसग्गाओ न मुच्चिस्सामि तो मे तहा पच्चक्खाए चेव" ति कटु सागारं पडिमं पडिवज्जइ । तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे तं पलसहस्सणिप्फणं अओमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणव उवागए। नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडितए ।।
उवसग्गनिवारणं ३८८ तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं सम्बओ समंता परिघोलेमाणे-परिघोलेमाणे जाहे नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणो
वासयं तेयसा समभिपडित्तए, ताहे सुदंसणस्स समणोवासयस्स पुरओ सपक्खि सपडिदिसि ठिच्चा सुदंसणं समणोवासयं अणिमिसाए दिट्ठीए सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता तं पलसहस्सणिप्फणं अओमयं मोग्गरं गहाय जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। तए णं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जखणं विप्पमुक्के समाणे 'धस' ति धरणियलंसि सव्वहिं निवडिए॥ तए णं से सुदंसणे समणोवासए निरुवसग्गमिति कट्ट पडिम पारे ।
सुदंसणस्स अज्जुणस्स य भगवओ पज्जुवासणा ३८९ तए णं से अज्जुणए मालगारे तत्तो मुहत्तंतरेणं आसत्ये समाणे उठेइ, उठेत्ता सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी--
"तुब्भे गं देवाणुप्पिया ! के कहि वा संपत्थिया ?" तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जणयं मालागारं एवं बयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सुदंसणे नामं समगोवासए--अभिगयजीवाजीवे गुणसिलए चेइए समणं भगवं महावीरं वंदए संपत्थिए।" तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं बयासी--"तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! अहमवि तुमए सद्धि समणं भगवं महावीर वंदित्तए-जाव-पज्जुवासित्तए ।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेहि ॥" तए णं सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धि जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धि समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ-जाव-पज्जुवासइ॥
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९६
३९०
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३९२
धम्मकहाणओगे दुतीयो बंधो
तए णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स समणोवासगस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइक्इ । सुदंसणे पडिगए ||
अज्जुणस्स पव्वज्जा
तणं से अज्जुणए मालागारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्वा निसम्म हदुतुटु समगं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसिता एवं वयासी-
"सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ट े मि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं ।"
"अहासुहं देवाणुपिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥"
तएषं से अज्जुनए मालागारे उत्तरपुरत्थिमं दिसोभागं अवeens, अवक्कमिला सपमेव पंचमुद्रियं लोकरे, करेला जाब-अणगारे जाए, से णं वासीचंद समतिणमणिकं समोग-परलोग अप्पविद्धं जीविय मरण- निरवचे संसारपारगामी
कम्मनिग्ायणाए एवं च गं विहर।
अज्जुणअणगारस्स तितिक्या
तणं से अज्जुणए अणगारे जं चेव दिवस मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तं चैव दिवस समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदिता नसता इमं एवं अभिग्य ओव्हरकप्पड़ मे जावश्शीवाद छ छ अगिखिते तवोकम्मे अध्यागं भावेमा मस्स बिहरिए कि अपमेयास्वं अभिहिता जावजीवाद छ अगिवणं तवोकम्मे अध्यानं
भावेमा बिहर ।
लए गं से अनुगए अणगारे छक्मणपारणति पदमाए पोरिसीएस करेड बीयाए पोरिसीए मागं मियाद तयाए पोरिसीए जहा गोयमसामी- जाव- रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ ||
1
लए गतं अजुन अगगारं रायगि नवरे उच्च-नीय बाई कुलाई घरसमुदायस्त भिक्वावरियाए मार्ग बहने हत् पुरिसा य डहरा य महल्ला य जुवाणा य एवं वयासी--"इमेण मे पिता मारिए । इमेण मे माता मारिया । इमेण मे भाया भगिणी भज्जा पुत्ते धूया सुब्हा मारिया । इमेण मे अण्णयरे सयण-संबंधि-परियणे मारिए" ति कट्टु अप्पेगइया अक्कोसंति, अप्पेगइआ होति नियंति खितितितिति ॥
तए णं से अज्जुणए अणगारे तेहि बहूहिं इत्थीहि य पुरिसेहि य डहरेहि य महल्लेहि य जुवाणएहि य आओसिज्जमाणे जावतालेञ्जमा तेसि मणसा वि अपउस्समाणे सम्म सहइ सम्मं खमइ सम्मं तितिक्ख सम्म अहियासेद, सम्मं सहमाणे सम्मं खममार्ग सम्मं तितिवखमासम्म अहियामागे राग नवरे उच्च-गीत-म-कुलाई लम तो पान
लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ ॥
तए से अनुए अनगारे अदी अविम अकलुगाले अवसाद अतिजोगी अद अता रामविहाओ नगराओ पडिणिक्खम, पडिणिमामेव गुणसिलए बेइए जेगेव समभवं महावीरे तेगेव उपागच्छह, उपागच्छता समरस भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमनागमणाए पडिक्कमेड पविमेता एम आलोएड आलोएता मला पडसे, पडिदसेत्ता समणेण भगवया महावोरेणं अब्भणुग्णाए समाणे अनुछिए अगिद्धे अगढिए अगज्झोववण्णे बिलमिव पणग-भूएणं अध्यागेणं समाहारं आहारेद
तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया रायगिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिस्वमिता बहिया जगवनविहारं विहरइ ।
अज्जुण अणगारस्य सिद्धी
३९.३ से अनुगए अणगारे ते ओरालेगं विपुलेणं पले एवं महाणुभागणं तवोकम्येणं अध्यार्थ भावेमा छम्मासे सामणपरियागं पाउद, पाणिता अदमानिया संहमाए अप्पा से, सेता तो भलाई जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे - जाव- सिद्धे ।।
बहु गलाए दे देता अंतगड व. ६- अ. ३ ।
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२४. महावीरतित्थे कासवाई समणा
३९४ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए । सेगिए राया। कासवे नाम गाहावई परिवसइ । जहा मकाई । सोलस वासा
परियाओ । विपुले सिद्धे ॥ एवं--खेमए विगाहाबई, नवरं--कायदो नयरी । सोलस वासा परियाओ। विपुले पब्बए सिद्धे ॥ एवं--धिइहरे वि गाहावई कायंदीए नवरीए । सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे ॥ एवं--केलासे वि गाहावई, नवरं--साएए नयरे । बारस वासाई परियाओ। विपुले सिद्ध ॥ एवं--हरिचंदणे विगाहावई साएए नयरे । बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे ॥ एवं--वारत्तए वि गाहावई, नवरं--रायगिहे नगरे । बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे ॥ एवं-सुदंसणे वि गाहावई, नवरं--वाणियग्गामे नयरे । दूइपलासए चेइए। पंच वासा परियाओ। विपुले सिद्धे ॥ एवं-पुण्णभद्दे वि गाहावई वाणियग्गामे नयरे। पंचवासा परियाओ। विपुले सिद्ध ॥ एत्र--सुमणभद्दे बिगाहावई सावत्थीए नवरीए । बहुवासाइं परियाओ। विपुले सिद्ध । एवं--सुपइठे वि गाहावई सावत्थीए नयरीए । सत्तावीसं वासा परियाओ। विपुले सिद्धे ॥ एवं--मेहे वि गाहावई रायगिहे नयरे । बहूई बासाइ परियाओ। विपुले सिद्ध ॥'
अंतगड व०६ अ०४-१४ ।
२५. महावीरतित्थे सेणियपुत्ता जालीआइ-समणा
३९५
संगहणी-गाहा १. जालि २. मयालि ३. उवयाली, ४. पुरिससेणे य ५. वारिसेणे य। ६. दोहदंते य ७. लट्ठदंते य, ८. वेहल्ले ९. वेहायसे १०. अभए इ य कुमारे ॥१॥
जालि-अणगारे ३९६ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नघरे-रिद्ध त्यिमियसमिद्धे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे ।
जाली कुमारो। जहा मेहो। अट्ठओ दाओ॥ तए णं से जालीकुमारे उप्पि पासायवरगए फुट्टमार्गाह मुइंगमत्यएहि-जाव-माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ। सामी समोसढे । सेणिओ निग्गओ। जहा मेहो तहा जाली वि निग्गओ। तहेव निक्खंतो जहा मेहो। एक्कारस अंगाई अहिज्जइ। गुणरयणं तवोकम्मं जहा खंदयस्स । एवं जा चेव खंदगस्स बत्तव्वया, सा चेव चितणा, आपुच्छणा। थेरेहिं सद्धि विउलं पव्वयं तहेव दुरूहइ, नवरं-सोलस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता, कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्ततारा-रूवाण सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्साराणय-पाणय-आरणच्चुए कप्पे नव य गेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं बीईवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उबवण्णे। तए णं ते थेरा भगवंतो जालि अणगारं कालगयं जाणिता परिणिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करेत्ता पत्त-चीवराइं गेहति । तहेव उत्तरंति-जाव-इमे से आयारभंडए॥
अइमुत्तअकहाणयं ६६ पुटु दह्रव्वं । अलक्ककहाणयं य ६९ पुटु दटुब्बं । ध०क०१३
१.
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९८
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
३९७ भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जाली नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणोए। से णं जाली अणगारे कालगए कहिं गए? कहिं उववण्णे?" "एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी तहेव जहा खंदयस्स-जाव-कालगए उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं-जाव-विजए विमाणे देवत्ताए उववण्णे ॥" "जालिस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?" "गोयमा! बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णता ॥" "से णं भंते ! ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ?" गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।
मयालिपभिइसमणा ३९८ एवं सेसाण वि नवण्हं भाणियब्वं, नवरं-सत्त धारिणिसुआ, वेहल्ल वेहायसा चेल्लणाए, अभए नंदाए। सवसि सेणिओ पिया।
आइल्लाणं पंचण्हं सोलस वासाइं सामण्णपरियाओ। तिण्हं बारस वासाई। दोण्हं पंच वासाई। आइल्लाणं पंचण्हं आणुपुवीए उववाओ विजए वेजयंते जयंते अपराजिए सव्वट्ठसिद्धे। दोहदंते सव्वट्ठसिद्धे उक्कमेणं सेसा । अभओ विजए। सेसं जहा पढमे ।।
__ अणुत्त० व०१, अ०१-१०॥ दोहसेणाइ समणा
संगहणी-गाहा३९९ १. दोहसेणे २. महासेणे, ३. लट्ठदंते य ४. गूढदंते य ५. सुद्धदंते य।
६. हल्ले ७. दुमे ८. दुमसेणे, ९. महादुमसेणे य आहिए ॥१॥ १०. सीहे य ११. सोहसेणे य, १२. महासीहसेणे य आहिए।
१३. पुण्णसेणे य बोधव्वे, तेरसये होइ अज्झयणे ॥२॥ ४०० तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे। जहा जाली तहा
जम्मं बालत्तणं कलाओ, नवरं-दोहसेणो कुमारो सच्चेव वत्तव्वया जहा जालिस्स-जाव-अंतं काहिइ। एवं तेरस वि रायगिहे नयरे । सेणिओ पिया। धारिणी माया। तेरसह वि सोलस वासा परियाओ। आणपु-वीए विजए दोण्णि, वेजयंते दोण्णि, जयंते दोण्णि, अपराजिए दोण्णि, सेसा महादुमसेणमादी पंच सव्वट्ठसिद्धे॥
अणुत्त० व, २, अ. १-१३ ।
२६. महावीरतित्थे सत्थवाहपुत्ते धण्णे अणगारे
संगहणी-गाहाओ ४०१ १.धण्णे य २. सुणक्खत्ते य, ३. इसिदासे य आहिए।
४. पेल्लए ५. रामपुत्ते य, ६. चंदिमा ७. पिट्टिमा इ य॥१॥ ८. पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पोट्टिले वि य । १०. वेहल्ले दसमे वुत्ते, इमे य दस आहिया ॥२॥
धण्णस्स गिहवासे ४०२ तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नाम नयरी होत्या--रिद्धस्थिमियसमिद्धा। सहसंबवणे उज्जाणे-सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे ।
जियसत्तू राया।
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महावीरतित्थे सत्थवाहपुत्ते धण्णे अणगारे
तत्य णं कामंदीए नयरीए महा नाम सत्यवाही परिवसह अड्डा जाब- अपरिभूया ॥
तोसे णं भद्दाए सत्यवाहीए पुसे धणे नामं दार होत्या-अहीणपडिपुण-पंचेदियसरीरे नाव गुरुचे पंचधाईपरिग्ाहिए जहा महत्वो वाद-बावर कलाओ अहीए नाव अलंभोगसमत्वे जाए यावि होत्या ॥
४०४
धण्णस्स पव्वज्जा
४०३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा निग्गया । राया जहा कोणिओ तहा निग्गओ ॥
तए णं तस्स धष्णस्स दारगस्स तं महया जणसद्दं वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाब-संकपे समयमा अन काळंबीए नवरीए इंदमइ वा जाव वनमहे दवा जणं एते बहने उगा भोया-जायनिगछंति एवं संपेहेड, संपेता कंइरिसं सद्दावेद, सहावेत्ता एवं बयासीकियां देवाप्पिया! अज्म काकंदीए गयरीए इंदमहे इ वा जाव-निग्गच्छति ?"
४०५
तसा भासावाही धणं दारयं उम्मुश्कवालभावं जाव अलंभोग समत्वं वा व जाणिता बत्तीस पासावसए कारेअन्भुग्गयमूसिए - जाव- पडिरूवे । तेसि मज्झे एगं च णं महं भवणं कारेइ- अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ - जाव-परुिवं ॥ एसा भद्दा सत्यवाही से धणं दार बत्तीसाए इग्भवरकणगाणं एकदिवसे पाणि पहावे तए णं से धणे दारए उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेह मुइंगमत्थए हिजाब- विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥
बत्तीस दाओ ।।
९९
तए णं से कंचुइपुरिसे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए धण्णं दारयं एवं वयासी-
"एवं खलु देवागुण्डिया | अन्न समये भगवं महावीरे काकंदीए नरोए बहिया सहसंबवणे उजाने अहापडिवं ओहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा भोगा- जाव-निग्गच्छति ॥”
तए णं से धण्णे दारए कंचुइपुरिसस्स अंतियं एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ - जाव-पायचारेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ॥
लए समणे भगवं महावीरे धण्णस्स दारयस्स तीसे व महमहालियाए इतिपरिसाए-जाव-धम्मं परिकहे ।।
तए णं से धणे दारए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ट समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदिता नमसित्ता एवं वयासी-
"सहामि णं भंते! निग्धपाय- जाव-अम्मयं भदं सत्यवाहि आपुच्छामि तए णं अहं देवागुपियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि ।"
"अहाहं देवाविया ॥" जहा जमाती तहा आपुनछ ।
तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं अणि अकंतं अप्पियं अमगुण्णं अमणामं असुयदुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म धस त्ति सव्वगेहि संविडिया वृत्तपत्तिया जहा महन्यते ॥
लए णं तं धणं दारखं भद्दा सत्यवाही जाहे नो संचाए जाव-जियतुं आयुच्छह- "इच्छामि णं देवानुप्पिया ! धष्णस्स दारवस्त निक्खममाणस्स छत्तमउड-चामराओ य विदिशाओ ।"
तए णं जियसत्तू राया भद्दं सत्यवाहिं एवं वयासी
"अच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिए ! सुनिब्बुत-वीसत्था, अहष्णं सयमेव धण्णस्स दारयस्स निक्खमणसक्कारं करिस्सामि । " सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेइ, जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो ||
तए णं से धण्णे दारए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ-जाव-पव्वइए ॥
तएषं से धणे दारए अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण मंड-मणिक्खेवासमिए उच्चार- पासवणखेल-सिंघाण-मल्ल-पारिावणिवासमिए मणसलिए इसलिए कश्यसलिए मणले बगुले कापगते गुले गुतिबिए गुरुवं भवारी ॥
धण्णस्स तवचरिया
तए णं से धणे अणगारे जं चेव दिवस मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तं चैव दिवस समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी
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१००
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
"इच्छामि णं भंते ! तुहि अब्भणुग्णाए समाणे जावज्जीवाए छटुंछ?णं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरित्तए छटुस्स वि य णं पारणयंसि कप्पइ मे आयंबिलं पडिगाहेत्तए, नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसट्ट, नो चेव ण' असंसट्ट। तं पि य णं उज्झियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं । तं पि य जं अण्णे बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमगा नावखंति ।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ॥" तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ जावज्जीवाए छट्ठछ?णं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।। तए णं से धणे अणगारे पढम-छट्ठखमणपारणयंसि पढमाए पोरिसोए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ,-जावजेणेव काकंदी नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता काकंदीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे आयंबिलं पडिगाहेति, नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसटुं, नो चेव णं असंसटुं। तं पि य उज्झियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं तं पि य जं अण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा नावखंति । तए णं से धणे अणगारे ताए अब्भुज्जयाए पययाए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं न लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ॥ तए णं से धण्णे अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत-जोगी जयण-घडण-जोगचरिते अहापज्जतं समुदाणं पडिगाहे इ, पडिगाहेत्ता काकंदीओ नयरीओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जहा गोयमे-जाव-पडिद सेइ । तए णं से धणे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुग्णाए समाणे अमुछिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववरणे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणणं आहारं आहारेइ, आहारेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ कार्यवीओ नयरीओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया
जणवयविहारं विहरइ ॥ ४०८ तए णं से धण्णे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्त तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ,
अहिज्जित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ तए णं से धणे अणगारे तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावगद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था। जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्टइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलाइ। से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्त-तिल-भंडग-सगडिया इ वा एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, एवामेव धणे अणगारे ससई गच्छइ, ससई चिटुइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंस-सोणिएणं, यासणे विव भासरासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव-तेयसिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे-उबसोभेमाणे चिट्ठइ॥
धण्णस्स तवजणिय-सरीरलावण्णं ४०९ धण्णस्स णं अणगारस्स पायाणं अयमेयारूवे तव-रूब-लावण्णे होत्था
से जहानामए सुक्कछल्ली इ वा कट्ठपाउया इ वा जरग्गओवाहणा इ वा, एवामेव धणस्स अणगारस्स पाया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स पायंगुलियाणं अयमेयारूवे-तवरूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए कलसंगलिया इ वा मुग्गसंगलिया इ वा माससंगलिया इ वा तरुणिया छिण्णा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी-मिलायमाणी चिट्ठति, । एवामेव धण्णस्त अणगारस्स पायंगुलियाओ सुक्काओ लुक्खाओ निम्मंसाओ अट्ठि-वम्मछिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए॥
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महावीरतित्थे सत्यवाहपुत्ते धण्णे अणगारे
१०१
धण्णस्स णं अणगारस्स जंधाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावणे होत्था-- से जहानामए काकजंघा इ वा कंकजंघा इ वा ढेणियालियाजंधा इवा,एवामेव धण्णस्त अणगारस्स जंघाओ सुक्काओ लुक्खाओ निम्मंसाओ अट्ठि-चम्म-छिरसाए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धणस्स णं अणगारस्स जाणूणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-- से जहानामए कालिपोरे इ वा मऊरपोरे इ वा, ढेणियालियापोरे इवा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स जाणू सुक्का लक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स ऊरूणं अयमेयारूवे तव-रूब-लावणे होत्था-- से जहानामए सामरिल्ले इ वा बोरीकरिल्ले इ वा सल्लइकरिल्ले इ वा सामलिकरिल्ले इ वा तरुणए छिण्णे उण्हे दिण्णे सुक्के समाणे मिलायमाणे मिलायमाणे चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स ऊरू सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्टि-चम्म-छिरत्ताए पषणायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स कडिपत्तस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए उट्टपादे इ वा जग्गपाए इ वा महिसपाए इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्त कडिपत्ते सुक्के लुक्खे निम्मंसे
अद्विचम्म-छि रत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४१० धणस्स णं अणगारस्स उदर-भायणस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था--
से जहानामए सुक्क-दिए इ वा भज्जणय-कभल्ले इ वा कट-कोलंबए इ वा, एवामेव धणस्स अणगारस्स उदरं सुक्क लुक्खं निम्मंसं चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । धण्णस्स णं अणगारस्स पासुलिय-कडयाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-- से जहानामए थासयावली इ वा पाणावली इ वा मुंडावली इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पासुलिय-कडया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स पिट्ठि-करंडयाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-- से जहानामए कण्णावली इ वा गोलावली इ वा वट्टयावली इ वा, एवामेव धगणस्त अणगारस्स पिट्ठि-करंडया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धग्णस्म णं अणगारस्स उर-कडयस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-- से जहानामए चित्तकट्टरे इ वा वीयणपत्ते इ वा तालियंटपत्ते इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स उर-कडए सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स बाहाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए समिसंगलिया इ वा वाहायासंगलिया इ वा अगत्थियसंगलिया इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स बाहाओ सुक्काओ लुक्खाओ निम्मंसाओ अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए॥ धण्णस्स णं अणगारस्स हत्थाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए सुक्कछगणिया इ वा वडपत्ते इ वा पलासपत्ते इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स हत्था सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स हत्थंगुलियाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए कलसंगलिया इ वा मग्गसंगलिया इ वा माससंगलिया इ वा तरुणिया छिण्णा आयवे विण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी मिलायमाणी चिट्ठति, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स हत्थंगुलियाओ सुक्काओ लुक्खाओ निम्मंसाओ अट्रि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस
सोणियत्ताए। ४११ धण्णस्स णं अणगारस्स गोवाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावणे होत्था
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१०२
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
से जहानामए करगगीवा इ वा कुंडियागोवा इ वा उच्चत्थवणए इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स गीवा सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । धण्णस्स णं अणगारस्स हणुयाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए लाउफले इ वा हकुवफले इ वा अंबगट्ठिया इ वा आयवे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी मिलायमाणी चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स हणुया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स उट्ठाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए सुक्कजलोया इ वा सिलेस-गुलिया इ वा अलत्त-गुलिया इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स उट्ठा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स जिब्भाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए वडपत्ते इ वा पलासपत्ते इ वा सागपत्ते इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स जिब्भा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । धण्णस्स णं अणगारस्स नासाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए अंबगपेसिया इ वा अंबाडगपेसिया इ वा माउलुंगपेसिया इ वा तरुणिया छिण्णा आयवे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी-मिलायमाणी चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स नासा सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्टि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स अच्छीणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए वीणाछिद्दे इ वा बद्धीसगछिद्दे इ वा पाभाइयतारिगा इवा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स अच्छीओ सुक्काओ लुक्खाओ निम्मंसाओ अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स कण्णाणं अयमेयारूवे तव-रूब-लावण्णे होत्थासे जहानामए मूलाछल्लिया इ वा वालुंकछल्लिया इ वा कारेल्लयछल्लिया इ वा, एवामेव धण्णस अणगारस्स कण्णा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णस्स णं अणगारस्स सीसस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्थासे जहानामए तरुणगलाउए इ वा तरुणगएलालुए इ वा सिण्हालए इ वा तरुणए छिण्णे आयवे दिण्णे सुक्के समाणे मिलायमाणेमिलायमाणे चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स सोसं सुक्कं लुक्खं निम्मंस अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायइ, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । धण्णे णं अणगारे सुक्केणं भुक्खणं पायजंघोरुणा, विगय-तडि-करालेणं कडिकडाहेणं, पिट्टिमवस्सिएणं उदरभायणेणं, जोइज्जमाहि, पासुलि-कडएहि, अक्खसुत्तमाला ति व गणेज्जमाहिं पिट्टिकरंडगसंधीहि, गंगातरंगभूएणं उरकडगदेसभाएणं, सुक्कसप्पसमाणाहि बाहाहि, सिढिलकडाली विवलंबतेहि य अग्गहत्थेहि, कंपणवाइओ विव वेवमाणीए सीसघडीए पब्वायवयणकमले उभडघडामहे उब्बणयणकोसे जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ। से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससई गच्छइ, ससदं चिट्ठइ, एवामेव धण्णे अणगारे ससदं गच्छ इ, ससदं चिट्ठइ, उचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, हुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णे तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ॥
४१२
सेणियेण महादुक्करकारय-पुच्छा भगवओ समाहाणं च ४१३ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा । परिसा पडिगया। नए णं सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--
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महावीरतित्थे सत्थवाहपुत्ते धण्णे अणगारे
१०३
"इमासि णं भंते! इंदमूहपायोक्खाणं चोट्सष्टं समणसाहस्सीणं कतरे अगणारे महादुक्करकारए बेव महाणिज्जरतराए जेय ?" "एवं खलु सेणिया ! इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोट्सहं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चैव महाणिज्जरतराए चेव ।"
" से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ, इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसहं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ?"
भगवओ उत्तरं
४१४ एवं खलु सेगिया! तेषं काले तेगं समए कामंदी नाम नपरी होत्या धगे दारए उप्पि पासाववडेंसए विहरद।"
तए णं अहं अण्णा कवाई पुब्बाणपुब्बीए चरमाणे गामायुगामं वृहज्जमागे जेणेव कार्यदी नयरी जेगेव सहसंबवणे उज्जाणे तेव उबागए। अहापरूियं ओहं ओगिव्हिता संजमेनं तवसा अप्पानं भावेमाणे विहरामि परिसा निगगया। तहेब जाब-पम्बइए - जाव - बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं आहारं आहारेइ । धण्णस्स णं अणगारस्स सरीरवण्णओ सव्वो-जाव-तवतेयसिरीए अईव - अब उसीमेमाणे- सोमा चि
"से तेण णं सेगिया ! एवं बुच्चर इमासि णं इंइपामोक्खाणं बोट्सहं समणसाहस्सोणं धष्णे अणगारे महाबुक्करकारए जेब महाणिज्जरतराए चेव ।। "
सेणिएण धण्णस्स थवणा
४१५ लए णं से सेगिए राया समणस्स भगवन महावीरस्स अंतिए एवम सोचमा निसम्म ह सम भगवं महावीरं तिस्वृत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदs नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता जेणेव धण्णे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं अणगारं तिक्खुत्तो आग्राहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी
"धणे सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुपुण्णे सि णं तुमं देवाणु प्पिया ! सुकयत्थे सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कथलक्खणे सि णं तुम देवापिया ! सुद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले" त्ति कट्टु वंदs नमसs, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव सम भगवं महावीरे तेनेव उपागच्छड उदागष्ठिता समयं भगवं महावीरं तिक्खुतो आपाहिण-यवाहिणं करेड, करेता बंद नर्मसह, वंदित्ता नमसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए ||
धण्णस्स सव्वट्टसिद्ध-गमणं-महाविदेहे सिद्धी य
४१६ तए णं तस्स धण्णस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए- जाव-संकपे समुज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं जरालेणं तवोकम्मेणं धर्माणिसंतए जाए जहा बंद तव चिता आन्गं घेरे िसद्ध बिलं पव्वयं दुरूहइ । मासिया संलेहणा । नव मासा परियाओ - जाव - कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिमसूर-गहगण-नक्खत्ततारास्वा जाव-नव य गेवेज्जविमागपत्थडे उड्हें दूरं बीईवइत्ता सबसि विमाने देवताए उबवणे मेरा तहेब ओयति-जाव इसे से आधारभंड |
भंते ति ! भगवं गोपने तहेब आपुच्छति, जहा बंदपरस भगवं वागरेइ-जाव-सम्बद्धसिद्धे विमाणे उबवण्णे ।। "धण्णस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?"
"गोयमा ! तेतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।।" "से गं भंते! ताओ देवलगाओ कहि गल्छि गोयमा ! महाविदेहे वासे समद मुयिहि परिनिव्याहिद सम्यक्खाणमंत काहि ।
? कहि ववजिहिद ?"
अणत्त० ६० ३ अ० १ ।
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२७. महावीरतित्थे सुणक्खत्ताइसमणा
४१७ तेणं कालेणं तेणं समएण काकंदी नयरी। जियसत्तू राया ।।
तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्यवाही परिवसइ-अड्ढा-जाव-अपरिभूया ॥ तोसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुणक्खत्ते नामं दारए होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे-जाव-सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धण्णो तहेव। बत्तीसओ दाओ-जाव-उप्पि पासायवडेंसए विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे-जाव-समोसरणं। जहा धपणे तहा सुणक्खते वि निगए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं-जाव-अणगारे जाए--इरियासमिए-जाव-गुत्तबंभयारी॥ तए णं से सुणक्खत्ते जं चेव दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पम्वइए तं चेव दिवसं
अभिग्गहं तहेव-जाव-बिलमिव पष्णगभूएणं अप्पाणेणं आहारं आहारेइ, आहारेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ ४१८ सामी बहिया जगवयविहारं विहरइ । एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।
तए णं से सुणक्खत्ते अणगारे तेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं जहा खंदओ अईव-अईव उवसोभेमाणे उबसोभेमाणे चिट्ठइ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। राया निग्गओ।
धम्मकहा। राया पडिगओ। परिसा पडिगया । ४१९ तए णं तस्स सुणक्खत्तस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुवरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमागस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव
संकप्पे समुप्यज्जित्था, जहा खंदयस्स । बहू वासा परियाओ। गोयमपुच्छा। तहेव कहेइ-जाव-सब्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तेतीसं सागरोवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्व दुक्खाणमंतं काहिइ ॥
अणत्त० ३० ३ अ०२।
४२०
इसिदासादि-कहाणयनिद्देसो एवं सुणक्खत्तगमेणं सेसा वि अट्ठ अज्झयणा भाणियव्वा, नवरं-आणुपुबीए दोण्णि रायगिहे, दोण्णि साकेते, दोण्णि वणियग्गामे, नवमो हत्थिणपुरे, दसमो रायगिहे । नवण्हं भद्दाओ जणणीओ। नवण्ह वि बत्तीसओ दाओ। नवण्हं निक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं । वेहल्लस्स पिया करेइ। छम्मासा वेहल्लए। नव धणे । सेसाणं बहू वासा। मासं संलेहणा। सव्वट्ठसिद्धे। सव्वे महाविदेहे सिज्झिस्संति-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
अणुत्त० १०३, अ० ३-१०।
२८. महावीरतित्थे सुबाहुकुमारसमणे
४२१
सुबाहू भद्दनंदी य, सुजाए य सुवासवे। तहेव जिणदासे य, धणवई य महब्बले ॥ भद्दनंदी महच्चंदे, वरदत्त तहेव य॥१॥
सुबाहुकुमार जम्म-परिणयाई ४२२ तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था-रिथिमियसमिद्धे । वण्णओ॥
तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नाम उज्जाणे होत्था--सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे वष्णओ॥
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महावीरतित्थे सुबाहुकुमारसमणे
१०५
तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-दिब्वे०॥ तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था--महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे, वण्णओ। तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था ॥ तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासभवणंसि सोहं सुमिणे पासइ, जहा मेहस्स जम्मणं तहा भाणियन्वं ॥
तए णं से सुबाहकुमारे बावत्तरिकलापंडिए-जाव-अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था ॥ ४२३ तए णं तं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो बावरिकलापंडियं-जाव-अलंभोगसमत्थं वा जाणंति, जाणिता अम्मापियरो पंच पासायव.स.
गसयाई कारेंति- अब्भुग्गयमूसियपहसियाई। एगं च णं महं भवणं कारेंति एवं जहा महब्बलस्स रणो, नवरं-युप्फचूलापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं एगदिवसेणं पाणि गिण्हावेति । तहेव पंचसइओ दाओ-जाव-उप्पि पासायवरगए फूट्टमाणेहि मुइंगमत्थरहि -जाव- माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ॥
४२४
सुबाहुकुमारस्स गिहिधम्मपडिवज्जणं तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया। अदीणसत्तू जहा कूणिए तहा निग्गए। सुबाहू वि जहा जमाली तहा रहेणं निग्गए-जाव-धम्मो कहिओ। रायपरिसा गया। तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ उट्ठाए उ8 इ-जाव-एवं बयासी-- "सद्दहामि गं भंते ! निग्गथं पावयणं । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ सत्थवाहप्पभियओ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयंति नो खलु अहं तहा संचाएमि पव्वइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जामि।" "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ॥" तए णं से सुबाहू समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचागुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जिता तमेव चाउरघंटं आसरहं दुरूहइ, दुरूहित्ता जामेव दिसं पाउब्भए तामेव दिसं पडिगए।
सुबाहुपुत्वभवपुच्छा ४२५ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी इंदभूई-जाव-एवं बयासी--
"अहो णं भंते ! सुबाहकुमारे इ8 इट्टरूवे कते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुण्णे मणुण्णरूवे मणामे मणामरूबे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदंसणे सुरूवे। बहुजणस्स वि य णं भंते! सुबाहुकुमारे इ8 इट्टरूवे-जाव-सुरुवे। साहुजणस्स वि य णं भंते ! सुबाहुकुमारे इ8 इटरूवे-जाव-सुरुवे । सुबाहुणा भंते ! कुमारेणं इमा एयारूवा उराला माणुसिड्ढी किण्णा लद्धा ? -जाव-अभिसमण्णागया?"
सुबाहुस्स सुमुहभव-कहाणयं ४२६ गोयमा ! इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं बयासी
एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे हथिणाउरे नाम नयरे होत्था--रिथिमियसमिद्धे वण्णओ॥ तत्थ णं हत्थिणाउरे नपरे सुमुहे नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे-जाव-अपरिभूए॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाइसंपण्णा-जाव-पर्चाह समणसहि सद्धि संपरिबुडा पुव्वाणुपुब्बि चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा जेणेव हथिणाउरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्सा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सुदत्ते नाम अणगारे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संक्खित्तविउलतेयलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ ॥ तए णं से सुदत्ते अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्मायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव धम्मघोसे थेरे आपुच्छ।
-जाव-अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहे अणुप्पविट्ठ । ध०क०१४
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४२७
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो तए णं से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ आसणाओ अब्भुट्ठ इ, अब्भुट्ठत्ता पायवीढाओ पच्चोसहइ, पच्चोरुहिता पाउयाओ ओमयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता सुदत्तं अणगारं सत्तट्ठ पयाई पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयहत्थेणं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेस्सामीति तुट्ठ पडिलाभेमाणे वि तुट्ठ पडिलाभिए वि तुट्ठ॥ अणगारभिक्खावेलाए पंचदिव्वपाउन्भवो तए णं तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धणं गाहगसुद्धणं दायगसुद्धणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परित्तीकए, मणुस्साउए निबद्धे, गेहंसि य से इमाइं पंच दिव्वाई पाउन्भुयाई, तं जहा-वसुहारा बुढा, दसद्धवष्णे कुसुमे निवातिते, चेलुक्खेवे कए, आहयाओ देवदुंदुभीओ. अंतरा वि य णं आगासंसि 'अहो दाणे अहो दाणे घुटु य । हत्थिणाउरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजगो अण्णमण्णस्स एवं आइक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइधण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहाबई पुण्णे णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई एवं-कयत्थे णं कयलक्खणे णं सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। तं धणे णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई पुण्णे णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई एवं-कयत्थे णं कयलक्खणे णं सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारुवा उराला माणुस्सिड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया।
सुमुहस्स सुबाहुभवो तए णं से सुमुहे गाहावई बहूई वाससयाई आउयं पालेइ, पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हत्थिसीसे नयरे अदोणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पृत्तत्ताए उववण्णे ॥ तए णं सा धारिणी देवी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी तहेव सीहं पासइ, सेसं तं चेव-जाव-उप्पि पासाए विहरइ। तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा इमा एयारूवा उराला माणुसिड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया ॥" 'पभू णं भंते ! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?" "हंता, पभू॥ तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ॥ तए णं समण भगवं माहवीरे अण्णया कयाइ हथिसीसाओ नयराओ पुप्फकरंडयउज्जाणाओ कयवणमालपियजक्खाययणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ तए णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे-जाव-पडिलाभेमाणे विहरइ॥ तए णं से सुबाहुकुमारे अण्णया कयाइ चाउद्दसटुमुद्दिट्टपुष्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारं दुरूहइ, दुरूहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ॥
सुबाहुकुमारस्स पव्वज्जा ४२९ तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्प
ज्जित्था-धण्णा णं ते गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसा, जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ। धण्णा णं ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभियओ, जे ण समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयंति। धण्णा णं ते राईसर-तलबर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियओ, जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जति । धण्णा णं ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-प्पभियओ, जे गं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सुणेति।
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महावीरता सुबाहुकुमारसम
तं जणं समने भगवं महावीरे यापुवि परमाणे गामानुगामं दम्भमाणं इमागन्डेजा इह समोसरेज्जा हेव हत्थीसीसस्स नयरस बहिया पुप्फकरंडयउज्जाणे कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा, तए णं अहं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा ॥
४३०
तए णं समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस्त इमं एयाख्वं अज्झत्थियं जाव-वियाणित्ता पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दुइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव पुष्फकरंडयउज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा राया निग्गए ।
तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स तं महया जणसहं वा जाव-जनसण्णिवायं वा सुणमाणस्स वा पासमा णस्स वा अयमेयारूवे अथिए चितिए करिए गए मनोगए संकपे समुज्जित्था एवं जहा जमली तहान धम्म कहिजो परिसा राया
पडिगया ||
तए
णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ े जहा मेहो तहा अम्मापियरो आवुच्छछ । निक्मणाभिसे तहेब-जाब- अणगारे जाए इरियासमिए जाव-गुलबंभवारी ॥
१०७
सुबाहुकुमारस्स आगामिभवा महाविदिहे सिद्धी य
४३१ तए णं से सुबाहू अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिजित्ता महत्-महाहि अप्पा भावेत्ता, बहूई बासाई सामण्णपरियागं पाणिता, मासिवाए संतेहणाए अध्या झुसित्ता, स भत्ताइं अणसणाए छेएता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालम से कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवताए उववण्णे || से णं तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिeिs, केवलं बोहिं बुज्झिeिs, तहारुवाणं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगरियं पव्वइस्सइ ।।
से गं सत्य बहु वासाई सामण्णं पाउनिहिद आलोयपडिते समाहिपते कालवए सर्णकुमारे कप्पे देवताए उहि । से णं ताओ माणुस्सं पव्वज्जा, बंभलोए । माणुस्सं महासुक्के । माणुस्सं आणए । माणुस्सं, आरणे माणुस्सं सव्बट्ठसिद्धे । ४३२ सेती अनंतर उम्बत्ता महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति अढाई जहा वदपइको सिम्मिहि
सिहि मुल्यहि सु. २.१ ।
परिणिवाहिद सम्यक्खणतं काहि ।।
२६. महावीरतित्थे भद्दनंदी- आइसमण कहाणगाणि
भद्दनवी
४३३ तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे । थूभकरंडउज्जाणे । धण्णो जक्खो । धणावहो राया। सरस्सई देवी । सुमिणदंसणं, कहणा, जम्मं, बालत्तणं कलाओ य । जोव्वणं, पाणिग्गहणं, दाओ, पासाया, भोगा य ॥
"
जहा सुबाहूस्स, नवरं -- भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोवखाणं पंचसयाणं रायवरकण्णयाणं पाणिग्यहणं । सामीसमोसरणं । सावगधम्मं पुव्वभवपुच्छा | महाविदेहे वासे पुंडरीगिणी नयरी । विजए कुमारे। जुगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए । मणुस्साउए निबद्धे । इह उप्पर से जहा सुबह-जाव-महाविदेहे वासेादाय सामंतं काहिए।
सुजाए
४३४ वीरपुरं नयरं । मणोरमं उज्जाणं । वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी सुजाए कुमारे। बलसिरीपामोक्खा णं पंचसयकना । सामीसमोसरणं पुग्वभवपुच्छा । उसुयारे नयरे । उसभदत्ते गाहावई । पुप्फदंते अणगारे पडिला भिए । मणुस्साउए निबद्धे । इहं उप्पण्णे - जाव- महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहि ।
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१०८
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
सुवासवे ४३५ विजयपुरं नयरं। नंदणवणं उज्जाणं । असोगो जक्खो। वासवदत्त राया। कण्हा देवी। सुवासवे कुमारे। भद्दापामोक्खाणं पंचसया०
-जाव-पुव्वभवे । कोसंबी नयरी। धणपाले राय, । वेसमणभद्दे अणगारे पडिलाभिए। इह उप्पण्णे-जाव-महाविदेहे वासे-जाव-सिद्धे ॥
जिणदासो ४३६ सोगंधिया नयरी। नीलासोगं उज्जाणं। सुकालो जक्खो। अप्पडिहओ राया। सुकण्णा देवी। महचंदे कुमारे। तस्स अरहदत्ता
भारिया। जिणदासो पुत्तो। तित्थयरागमणं । जिणदासपुव्वभवो। मज्झमिया नवरी। मेहरहे राया। सुधम्मे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे॥
धणवई ४३७ कणगपुरं नयरं । सेयासोयं उज्जाणं । बीर भट्टो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दा देवी । वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरिदेवीपामोक्खा
पंचसया कन्ना पाणिग्गहणं । तित्थयरागमणं। धणवई जुबरायपुत्ते-जाव-पुत्वभवो। मणिवइया नयरी। मित्तो राया। संभुतिविजए अणगारे पडिलाभिए-जाव-सिद्धे॥
महब्बलो ४३८. महापुरं नयरं । रत्तासोगं उज्जाणं । रत्तपाओ जक्खो। बले राया। सुभद्दा देवी। महब्बले कुमारे। रत्तवईपामोक्खाओ पंचसया
कन्ना पाणिग्गहणं । तित्थयरागमणं-जाव-पुम्वभवो। मणिपुरं नयरं । नागदत्ते गाहावई । इंदपुत्ते अणगारे पडिलाभिए-जाव-सिद्धे ॥
भद्दनंदी ४३९ सुघोसं नवरं । देवरमणं उज्जाणं । वीरसेणो जक्खो। अज्जुणो राया। तत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया
-जाव-पुत्वभवे । महाघोसे नयरे। धम्मघोसे गाहावई। धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिए-जाव-सिद्धे ।।
महचंद ४४० चंपा नयरी। पुण्णभद्दे उज्जाणे। पुष्णभद्दे जक्खे। दत्ते राया। रत्तवती देवी। महचंदे कुमारे जुवराया। सिरिकतापामोक्खा णं
पंचसया कन्ना-जाव-पुव्वभवो। तिगिछी नयरी। जियसत्तू राया। धम्मवोरिए अणगारे पडिलाभिए-जाव-सिद्धे ॥
वरदत्ते ४४१
तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं नामं नयरं होत्था। उत्तरकुरुउज्जाणे। पासमिओ जक्खो। मित्तनंदी राया। सिरिकता देवी। वरदत्ते कुमारे। वीरसेणापामोक्खा पंच देवीसया। तित्थयरागमणं। सावगधम्मं । पुन्वभवपुच्छा। सयदुवारे नयरे। विमलवाहणे राया। धम्मरुई अणगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्ध। इहं उप्पण्णे। सेसं जहा सुबाहुस्स कुमारस्स। चिता-जाव-पव्वज्जा। कप्पंतरिते-जाव-सव्वट्ठसिद्ध। तओ महाविदेहे जहा दढपइण्णे-जाव-सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।।
विवागसुयं सु०२, अ०२-१० ।
३०. महावीरतित्थे सेणियनत्तू पउमसमणो अण्णे य
४४२ गाहा-- १ पउमे, २ महापउमे, ३ भद्दे, ४ सुभद्दे, ५ पउमभद्दे।
६ पउमसेणे, ७ पउमगुम्मे, ८ नलिणिगम्मे, ९ आणंदे, १० नंदणे ।। पउमजम्मणं ४४३ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुष्णभद्दे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए नयरीए
सेणियस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रन्नो चुल्लमाउया काली नाम देवी होत्था सुउमालपाणिपाया-जाव-सुरुवा। तीसे णं कालीए देवीए पुत्त काले नाम कुमारे होत्था सुउमाल-जाव-सुरूवे । तस्स णं कालस्स कुमारस्स पउमावई नामं देवी होत्था, सोमाला
नाव-सुरूवा-जाव-वाम कुमारे होत्थाभी चल्लमाज्या कालाभ हे चेहए। कूणिए
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महावीरतित्थे सेणियनत्तू पउमसमणो अण्णे य
१०९
तए णं सा पउभावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अन्भिन्तरओ सचित्तकम्मे-जाव-सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। एवं जम्मणं, जहा महाबलस्स,-जाव-नामधेज-'जम्हा णं अम्हं इमे दारए कालस्स कुमारस्स पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए, तं होउ णं अम्हं इमरस दारगस्स नामधेज्जं पउमे पउमे"। सेसं जहा महाबलस्स । अट्टओ दाओ। -जाव-उप्पि पासायवरगए विहर।।
पउमपव्वज्जा
सामी समोसरिए। परिसा निग्गया। कूणिए निग्गए। पउमे वि जहा महाबले, निग्गए। तहेव अम्मापिइआपुच्छणा,-जाव-पव्वइए अणगारे जाए इरियासमिए-जाव-गुत्तबम्भयारी॥ तए णं से पउमे अणगारे समणस्त भगवओ महावीरस्स तहारूबाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाई अहिज्जइ। अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थछट्टट्ठम-जाव-विहरइ ।। तए णं से पउमे अणगारे तेणं ओरालेणं, जहा मेहो, तहेव धम्मजागरिया, चिन्ता। एवं जहेव मेहो तहेव समणं भगवं आपुच्छित्ता विउले-जाव-पाओवगए समाणे तहारूवाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अङ्गाई, बहुपडिपुण्णाई, पंच वासाइं सामण्णपरियाए। मासियाए संलेहणाए टि भत्ताई। आणपुव्वीए कालगए। थेरा ओतिण्णा। भगवं गोयमे पुच्छइ, सामी कहेइ,-जाव
ट्टि भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कन्ते उड्ढं चन्दिम० सोहम्मे कप्पे देवताए उववन्ने । दो सागराइं॥ "से णं, भन्ते, पउमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएण"। पुच्छा। “गोयमा, महाविदेहे वासे, जहा दढपइन्नो,-जाव-अन्तं काहिइ"।
कप्पव० अ०१।
महावीरतित्थे सेणियनत्तणो महापउमाइसमणा ४४४ तेणं कालेणं तेणं समयेणं चम्पा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए नयरीए सेणि
यस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रन्नो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था। तीसे णं सुकालीए पुत्ते सुकाले नाम कुमारे। तस्स णं सुकालस्स कुमारस्स महापउमा नाम देवी होत्था सुउमाल० । तए णं सा महापउमा देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगसि, एवं तहेव, महापउमे नामं दारए-जाव-सिज्झिहिइ-जाव-सब्वदुक्खाणमंतं काहिइ। नवरं ईसाणे कप्पे उववाओ उक्कोसट्रिईओ।
कप्पव० अ०२ । ४४५ एवं सेसा वि अट्ठ नेयव्वा । मायाओ सरिसनामाओ। कालाईणं दसण्हं पुत्ता आणुपुव्वीए--.
दोण्हं च पञ्च चत्तारि तिण्हं तिहं च होन्ति तिण्णेव । दोण्हं च दोन्नि वासा सेणियनतूण परियाओ॥१॥ उववाओ आणुपुव्वीए-पढमो, सोहम्मे, बिइओ ईसाणे, तइओ सणकुमारे, चउत्थो माहिन्दे पञ्चमो बम्भलोए, छट्ठो लन्तए, सतमो महासुक्के, अट्ठमो सहस्सारे, नवमो पाणए, दसमो अच्चुए। सव्वत्थ उक्कोसटिई भाणियव्वा । महाविदेहे सिद्ध ।
कप्पव० अ० ३-१० ।
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३१. महावीरतित्थे हरिएसबलो
जन्नवाडे भिक्ख? गमणं ४४६ सोबागकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी। हरिएसबलो नाम, आसी भिक्खू जिइंदिओ॥१॥
इरि-एसण-भासाए, उच्चारसमिईसु य । जओ आयाण-निक्खेवे, संजओ सु-समाहिओ॥२॥ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खट्टा बंभइज्जम्मि, जन्नवाडमुवट्टिओ॥३॥ तं पासिऊणमेज्जतं, तवेण परिसोसियं । पंतोवहि-उवगरणं, उवहसंति अणारिया ॥४॥ जाईमय-पडिबद्धा, हिंसगा अजिइंदिया। अबंभचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ॥५॥
हरिएसं दट्टणं माहणरोसो ४४७ कयरे आगच्छद वित्तरूबे ? काले विकराले फोक्कनासे। ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकर दूसं परिहरिय कंठे ॥६॥
कयरे तुम इय अदंसणिज्जे ? काए व आसा इहमागओसि? ओम-चेलया पंसु-पोसायभूया, गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओ सि । ७॥ जक्खकया हरिएसपसंसा जखे तहिं तिदुयरुक्खवासी, अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स। पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाई वयणाइमुदाहरित्था ॥८॥ समणो अहं संजओ खंभयारी, विरओ धण-पयण-परिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥९॥ वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जइ य, अन्नं पभूयं भवयाणमेयं । जाणेह मे जायण-जीविणो त्ति, सेसावसेसं लहऊ तवस्सी ॥१०॥ जक्खस्स माहणेहिं संवादो माहणा-- उबक्खडं भोयण माहणाणं, अत्तट्टियं सिद्धमिहेगपक्खं । नऊ वयं एरिसमन्नपाणं, दाहामु तुझं किमिहं ठिओ सि?॥११॥ जक्खोथलेसु बीयाइ ववंति कासगा, तहेव निन्नेसु य आससाए। एयाए सद्धाए दलाह मसं, आराहए पुण्णमिणं खु खित्तं ॥१२॥ माहणा-- खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए, जहि पकिग्णा विरहंति पुण्णा। जे माहणा जाइ-विज्जोववेया, ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई ॥१३॥ जक्खो -- कोहो य माणो य बहो य जेसि, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । ते माहणा जाइ-विज्जा-बिहीणा, ताई तु खेत्ताई सुपावयाई ॥१४॥ तुब्भेत्थ भो भारधरा गिराणं, अळं न जाणाह अहिज्ज वेए। उच्चावयाई मुणिणो चरंति, ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई ॥१५॥ माहणा-- अज्झावयाणं पडिकूलभासी, पभाससे किं नु सगासि अम्हं ? अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं, न य णं दाहाम तुमं नियंठा !॥१६॥ जक्ख -- समिईहि ममं सुसमाहियस्स, गुत्तीही गुत्तस्स जिइंदियस्स। जइ मे न दाहित्य अहेसणिज्जं, किमज्ज जन्माण लहित्थ लाहं ॥१७॥ माहणा-- के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खंडिहि । एवं खु दंडेण फलेण हता, कंठमि घेत्तूण खलेज्ज जो णं ॥१८॥
कुमारहिं हरिएसताडणं ४५० अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया
तत्थ बहू कुमारा। दंडेहि वित्तेहि कसेहि चैव, समागया तं इसि तालयंति ॥१९॥
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महावीरतित्थे हरिएसबलो
१११
भद्दाए निवारणं पसंसा य ४५१ रन्नो तहि कोसलियस्स धूया, 'भद्द ति' नामेण अणिदियंगी। तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुद्ध कुमारे परिनिव्ववेइ ॥२०॥
देवाभिओगेण निओइएणं, दिन्ना मु रन्ना मणसा न झाया। नरिंद--देविदभिवंदिएणं, जेणम्हि वंता इसिणा स एसो ॥२१॥ एसो हु सो उग्गतवो महप्पा, जिइंदिओ संजओ बंभयारी। जो मे तया नेच्छइ दिज्जमाणि, पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना ॥२२॥ महाजसो एस महाणुभागो, घोरब्बओ घोरपरक्कमो य । मा एयं होलेह अहीलणिज्जं, मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा ॥२३॥
जखेहि निवारणं असुरेहि कुमारताडणं य ४५२ एयाइं तोसे वयणाई सोच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुभासियाई । इसिस्स वेयावडियट्टयाए, जक्खा कुमारे विणिवारयति ॥२४॥
ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे, असुरा तहिं तं जणं तालयंति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमंते, पासित्तु भद्दा, इणमाहु भुज्जो ॥२५॥
भद्दाए पुणो पसंसा ४५३ गिरि नहेहि खणह, अयं दंतेहि खायह । जायतेयं पाएहि हणह, जे भिक्खं अवमन्नह ॥२६॥
आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्वओ घोरपरक्कमो य । अणि व पक्खंद पयंगसेणा, जे भिक्खुयं भतकाले बहेह ॥२७॥ सीसेण एवं सरणं उवेह, समागया सव्वजण तुम्भे । जइ इच्छह जीवि वा धणं वा, लोग पि एसो कुविओ डहेज्जा ॥२८॥
माहणेण खमाजायणं ४५४ अवहेडिय-पिट्ठि-सउत्तमंगे, पसारिया बाडु अकम्मचेठे । निभेरियच्छे रुहिरं वमंते, उद्धमहे निग्गय-जोह--नेते ॥२९॥
ते पासिया खंडियकट्ठभए, विमणो विसण्णो अह माहणो सो। इसि पसाएइ सभारियाओ, हीलं च निदं च खमाह भंते ! ॥३०॥ बालेहि मूढेहि अयाणएहि, जं होलिया तस्स खमाह भंते ! महप्पसाया इसिणो हवंति, न हू मुणी कोवपरा हवंति ॥३१॥ मुणीपुटिव च इहि च अणागयं च, मणप्पओसो न मे अत्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेंति, तम्हा हु एए निया कुमारा ॥३२॥ माहणाअत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुब्भे न वि कुप्पह भूइपन्ना। तुम्भं तु पाए सरणं उवेमो, समागया सव्वजण अम्हे ॥३३॥ अच्चेमु ते महाभाग !, न ते किंचि न अच्चिमो। भुंजाहि सालिम कूर, नाणा-वंजण-संजुयं ॥३४॥ इमं च मे अत्थि पभूयमन्नं, तं भुंजसु अम्ह अणुग्गहट्ठा। वाढं ति पडिच्छइ भत्तपाणं, मासस्स ऊ पारणाए महप्पा ॥३५॥ तहियं गंधोदय-पुप्फवासं, दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा। पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहि, आगासे अहो दाणं च घुटुं ॥३६॥ सक्खं खु दोसइ तवोविसेसो, न दोसइ जाइविसेस कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाहुं, जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा ॥३७॥
मुणिणा जण्णसरुवपरूवणं मुणीकि माहणा ! जोइसमारभंता, उदएण सोहि बहिया विमगहा ? जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुदिट्ठ कुसला वयंति ॥३८॥ कुसं च जूवं तणकट्टरिंग, सायं च पायं उदगं फुसंता । पाणाइ भ्याइ विहेडयंता, भुज्जो वि मंदा ! पगरेह पावं ॥३९॥ माहणा-- कहं चरे भिक्खू ? वयं जयामो, पावाइ कम्माइ पणुल्लयामो। अक्खाहि णे संजय ! जक्खपूइया, कहं सुजलृकुसला वयंति ॥४०॥ मुणीछज्जीवकाए असमारभंता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा। परिग्गहं इथिओ माण मायं, एयं परिन्नाय चरंति दंता ॥४१॥ सुसंवुडा पंचहि संवरेहि, इह जीवियं अणवकंखमाणा। वोसट्टकाया सुइचत्तदेहा, महाजयं जयई जन्नसिटुं ॥४२॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो
माहणा--- के ते जोई के व ते जोइठाणा? का ते सुया कि च ते कारिसंगं? एहा य ते कयरा संति भिक्खू ? कयरेण होमेण हुणासि जोइं? ॥४३॥ मुणी-- तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंग। कम्मं एहा संजमजोग संती, होमं हुणामि इसिणं पसत्यं ॥४४॥ माहणा-- के ते हरए के य ते संतितित्थे ? कहि सि हाओ व रयं जहासि? आइक्ख णे संजय! जक्खपूइया, इच्छामो नाउं भवओ सगासे ॥४५॥ मणी-- धम्मे हरए बंभे संतितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नलेसे । हिसि व्हाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥४६॥ एवं सिणाणं कुसलेहि दिट्ट, महासिणाणं इसिणं पसत्यं । जहिसि व्हाया विमला विसुद्वा, महारिसी उतमं ठाण पता ॥४७॥
त्ति बेमि ॥ उत्त० अ० १२।
३२, महावीरतित्थे अणाही महानियंठो
सेणिएण मुणिसणं सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ। अत्थ-धम्म-गई तच्च अणुसिटुिं सुणेह मे ॥१॥ पभूयरयणो राया, सेणिओ मगहाहिवो। विहारजतं निज्जाओ, मंडिकुच्छिसि चेइए ॥२॥ नाणा--दुम-लयाइण्णं, नाणा-पक्खि-निसेवियं । नाणाकुसुम-संछन्नं, उज्जाणं नंदणीवमं ॥३॥ तत्थ सो पासई साहुं संजयं सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ॥४॥ तस्स रूबं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए। अच्चंतपरमो आसी, अउलो रूवविम्हओ ॥५॥ अहो वण्णो अहो रूवं, अहो अज्जस्स सोमया । अहो खंती अहो मुत्ती, अहो भोगे असंगया ॥६॥ तरस पाए उ बंदित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पंजली पडिपुच्छइ ॥७॥
मेणियस्स मुणिणा सह संवादो सेणिओ-- तरुणो सि अज्जो ! पव्वइओ, भोगकालम्मि संजया। उवढिओ हि सामण्णे एयमढे सुणेमि ता॥८॥ मुणी-- अणाहो मि महाराय !, नाहो मज्झ न विज्जइ। अणुकंपयं सुहि वा वि, कंचि नाभिसमेमहं ॥९॥ सेणिओ-- तओ सो पहसिओ राया, सेणिओ मगहाहिवो। एवं ते इड्ढिमं तस्स, कहं नाहो न विज्जइ ॥१०॥ होमि नाहो भयंताणं, भोगे भुंजाहि संजया ! मित्त-नाइ-परिवुडो, माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥११॥
मुणी--
अप्पणा वि अणाहो सि, सेणिया! मगहाहिवा! अप्पणा अणाहो संतो, कहं नाहो भविस्ससि ! ॥१२॥
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महावीरतिरथे अणाही महानिवंडो
मेणिओ--]]
एवं वृत्तो नरदोसो, सुसंतो सुविहिओ जपणं असूपपुध्वं, साहुगाव ।।१३।। अस्सा हत्थी मगुस्सा मे पुरं अंतेतरं च मे भुंजामि माणुसे भीए, आणा इस्परियं च मे ।।१४।। एरिसे संपयग्गम्मि सव्वकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ, मा हु भंते !! मुसं वए ॥१५॥
मुणिणा अप्पणी अनाहत परूवणं
४५७
न तुम जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं व पत्थिवा ! । जहा अणाहो भवइ, सणाहो वा नराहिवा ! ॥१६॥ सुणेह मे महाराय ! अव्वक्खित्तेण चेयसा । जहा अणाहो भवई, जहा मे य पवत्तियं ॥१७॥ 'कोसंबी' नाम नयरी, पुराणपुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूय-धण-संचओ ॥१८॥ पढमे वए महाराय !, अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो दाहो, सव्वगत्तेसु पत्थिवा ॥१९॥ सत्यं जहा परमतिक्खं, सरीर-विवरंतरे । पविसिज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥ २० ॥ तियं मे अंतरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडइ । इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥२१॥ उडिया में आपरिया, बिज्जा-मंत-तिमिच्छया । अबीया सत्यकुसला, मंतमूलविसारया ।। २२ ।।
मेतिगच्छं कुब्बति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥२३॥ पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ||२४|| माया विमे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ॥ २५ ॥ भायरा मे महाराय ! सगा जेटु-कणिट्टगा । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २६ ॥ भणीओ मे महाराय ! सगा जेट्ट कणिट्टगा । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २७ ॥ भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुष्णेहि नयणेह, उरं मे परिसिंचइ ||२८|| अन्नं पाणं च हाणं च गंध-मल्लविलेवणं । मए नायमणायं वा, सा बाला नोवभुंजइ ॥ २९ ॥ खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टइ । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ॥३०॥
अणाहयं णच्चा पव्वज्जासंकप्पो, तओ वेयणाखयो य
४५८ तओ हं एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुभवि जे, संसारम्मि अनंत ॥३१॥ । खंतो दंतो निरारंभो, पव्वए अणगारियं ॥ ३२ ॥ परिवसंतीए राईए, बेषणा मे खयं गया ||३३||
स च जइ मुच्चिज्जा, वेयणा विउला इओ एवं च चित्तानं पत्ती भि नराहिया
परवज्जागणेण सनाहसं
४५९ तो कल्ले पनामि, आपुच्छिताण बंधवे
तो दंतो निरारंभो पत्वहओ अणगारियं ॥ ३४ ॥ तो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सव्र्व्वेस चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ॥ ३५॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेणू, अप्पा मे नंदणं वणं ॥ ३६ ॥ अप्पा कता विकता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठिय सुपट्टिओ ॥ ३७ ॥
कुसीलायरणनिरूवणपुच्वं संजमपालणोवएसो
४६० इमा हु अन्ना वि अणाया निवा ! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियंठधम्मं लहियाण वी जहा, सीयंति एगे बहुकायरा नरा ||३८|| जो पव्वाण महत्वयाई, सम्मं च नो फासयई पमाया । अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिन्नइ बंधणं से ।। ३९ । आत्ता जस्सन अत्थि काई, इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाण-निक्खेव दुग्छणाए, न वीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥ ४० ॥
घ० क० १५
११३
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११४
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
चिरं पि से मुंडरुई भवित्ता, अथिरब्वए तवनियमेहि भट्ठे। चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ॥४१॥ पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे, अंयंतिए कूड-कहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसु ॥४२॥ कुसीलिंग इह धारइत्ता, इसिज्मयं जीविय विहइत्ता । असंजए संजय लप्पमाणे, विणिघायमागच्छइ से चिरं पि॥४३॥ विसं तु पीयं जह कालकूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसो वि धम्मो विसओववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवन्नो ॥४४॥ जे लक्खणं सुविणं पउंजमाणे, निमित्त-कोऊहलसंपगा। कुहेडविज्जासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥४५।। तमं तमेणेव उ जे असोले, सया दुही विपरियासुवेइ। संधावई नरगतिरिक्खजोणि, मोणं विराहित्तु असाहुरूवे ॥४६।। उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुंचई किंचि अणेसणिज्ज। अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता, इत्तो चुए गच्छइ कटु पावं ॥४७॥ न तं अरी कंठछेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा। से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण दयाविहूणे ॥४८॥ निरट्टिया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमठे विवज्जासमेइ । इमे वि से नत्थि परे वि लोए, दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ॥४९॥ एमेवऽहाछंदकूसीलरूवे, मग्गं विराहेतु जिणुत्तमाणं । कूररी विवा भोगरसाणुगिद्धा, निरटुसोया परितावमेइ ॥५०॥ सोच्चाण मेहावि! सुभासियं इम, अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं, महानियंठाण वए पहेणं ॥५१॥ चरित्तमायारगुणन्निए तओ, अणुतरं संजम पालियाणं । निरासवे संखवियाण कम्मं, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ॥५२॥ एवुग्गदंते वि महातवोधणे, महामुणी महापइन्ने महायसे । महानियंठिज्जमिणं महासुर्य, से काहए महया वित्थरेणं ॥५३॥
४६१
सेणियस्स तुट्टी खमाजायणं च तुट्ठो य सेणिओ राया, इणमुदाहु कयंजली । अणाहत्तं जहाभूयं, सुठ्ठ मे उवदंसियं ॥५४॥ तुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्मं, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी! । तुभ सणाहा य सबंधवा य, जंभे ठिया मग्गि जिणुत्तमाणं ॥५॥ तं सि नाहो अणाहाणं, सव्वभूयाण संजया ! । खामेमि ते महाभाग, इच्छामि अणुसासिउं ॥५६॥ पुच्छिऊण मए तुम्भ, झाणविग्यो उ जो कओ। निमंतिया य भोगेहि, तं सव्वं मरिसेहि मे ॥५७॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणगारसोहं परमाइ भत्तिए । सओरोहो सपरियणो सबंधवो, धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ॥५॥ ऊससियरोमकूवो, काऊण य पयाहिणं । अभिवंदिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥५९॥ इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य । बिहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥६०॥
त्ति बेमि ॥
उत्तर० अ०२०।
३३. महावीरतित्थे समुद्दपालीयस्स कहाणयं
४६२ चपाए पालिए नाम, सावए आसि बाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो ॥१॥
निग्गंथे पावयणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरते, पिहुंडं नगरमागए ॥२॥ पिहुंडे वबहरंतस्स, वाणिओ बेइ धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥३॥
पर निगावविपण, साबए सावि याचिए हावारण अपहल, साहस नगरमागए।"
समुद्दे जम्मणं परिणयणाइ य ४६३ अह पालियस्स घरिणी, समुद्दम्मि पसवइ । अह दारए हि जाए, समुद्दपालि त्ति नामए ॥४॥
खेमेण आगए चंपं, सावए वाणिए घरं । संवड्ढई तस्स घरे, दारए से सुहोइए ॥५॥
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महावीरतित्थे समुद्दपालीयस्स कहाणयं
११५
बावत्तरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जुव्वणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥६॥ तस्स रूववई भज्जं, पिया आणेइ रूविणि । पासाए कोलए रम्मे, देवो दोगुंदुओ जहा ॥७॥
बज्झदसणेण वेरग्गं पव्वज्जा य ४६४ अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ। वज्झमंडणसोभाग, वसं पासइ वज्झगं ॥८॥
तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बबी । अहोऽसुहाण कम्माणं, निज्जाणं पावगं इमं ॥९॥ संबुद्धो सो तहि भयवं, परमसंवेगमागओ । आपुच्छऽम्मापियरो, पब्वए अणगारियं ॥१०॥ जहित्तु संगं च महाकिलेसं, महंतमोहं कसिणं भयावहं। परियायधम्म चऽभिरोयएज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥११॥ अहिंस सच्चं च अतेणगं च, तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंचमहन्वयाणि, चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विऊ ॥१२॥ सव्वेहि भूएहि दयाणुकंपी, खंतिक्खमे संजयबंभयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयंतो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइंदिए ॥१३॥ कालेण कालं विहरेज्ज रट्टे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न संतसेन्जा, वयजोग सुच्चा न असब्भमाहु ॥१४॥
परीसहसहणं सिद्धी य ४६५ उवेहमाणो उ परिव्वइज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइज्जा । न सव्व सम्वत्थऽभिरोयइज्जा, न यावि पूर्य गरहं च संजए ॥१५॥
अणेगछंदा इह माणहिं, जे भावओ से पगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा, दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥१६॥ परीसहा दुव्विसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा। से तत्थ पत्ते न बहिज्ज भिक्खू, संगामसीसे इव नागराया ॥१७॥ सीओसिणा बंस-मसा य फासा, आयंका विविहा फुसंति देहं। अकुक्कुओ तत्थऽहियासएज्जा, रयाई खेवेज्ज पुराकयाई ॥१८॥ पहाय रागं च तहेव दोस, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो। मेरु व्व बाएण अकंपमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥१९॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पूर्य गरहं च संजए। से उज्जुभावं पडिवज्ज संजए, निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ अरइ-रइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणवं । परमट्ठपहि चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥२१॥ विवित्तलयणाइ भएज्ज ताई, निरोवलेवाइं असंथडाइं। इसीहिं चिण्णाई महायसेहि, काएण फासेज्ज परीसहाई ॥२२॥ सन्नाणनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरित्रं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वंऽतलिक्खे ॥२३॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरिता समुदं व महाभवोह, समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥२४॥
त्ति बेमि॥ उत्तर० अ० २१ ।
३४. महावीरतित्थे मियापुत्ते बलसिरी समणे
४६६ सुग्गीवे नयरे रंमे, काणणुज्जाणसोहिए । राया बलभद्दित्ति, मिया तस्सग्गमहिसी ॥१॥
तेसि पुत्ते बलसिरी, मियापुत्ते ति विस्सुए । अम्मापिऊण दइए, जुवराया दमीसरे ॥२॥ नंदणे सो उ पासाए, कोलए सह इहिं । देवो दोगुंदुगो चेव, निच्चं मुइय-माणसो ॥३॥ मणि-रयण-कोट्टिमतले, पासायालोयणट्ठिओ । आलोएइ नगरस्स, चउक्क-तिय-चच्चरे ॥४॥
समणं दट्ट ण जाईसरणं ४६७ अह तत्थ अइच्छतं, पासई समण-संजयं । तव-नियम-संजमधरं, सीलड्ढं गुणआगरं ॥५॥
तं पेहई मियापुत्ते, दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरिसं रूवं, दिट्ठपुव्वं मए पुरा। ॥६॥ साहस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि सोहणे। मोहं गयस्त संतस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥ देवलोगचुओ संतो, माणुसं भवमागओ। सन्नि-नाणे-समुप्पन्ने, जाई सरइ पुराणियं ॥८॥ जाईसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते महिड्ढिए । सरई पोराणियं जाई, सामण्णं च पुराकयं ॥९॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
मियापुत्तस्स पव्वज्जासंकप्पो अम्मापि उपुरओ निवेयणं च ४६८ विसएहि अरज्जंतो, रज्जतो संजमंमि य । अम्मा-पियरमुवागम्म, इमं वयणमब्बवी ॥१०॥
सुयाणि मे पंच महन्वयाणि, नरएसु दुक्खं च तिरिक्ख-जोणिसु । निविण्णकामो मि महण्णवाओ, अणुजाणह पव्वइस्सामि अम्मो! ॥११॥ अम्मताय ! मए भोगा, भुत्ता विसफलोबमा । पच्छा कडुयविवागा, अणुबंधदुहावहा ॥ १२॥ इमं सरीरं अणिच्चं, असुई असुइसंभवं। असासयावासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं ॥१३॥ असासए सरीरंमि, रई नोवलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुब्बयसन्निभे ॥ १४ ॥ माणुसत्ते असारंमि, वाहीरोगाण आलए । जरा-मरणपत्थंमि, खणं पि न रमामहं ॥ १५॥ जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो॥१६॥ खेत्तं बत्थं हिरण्णं च, पुत्तदारं च बंधवा। चइत्ताणं इमं देहं, गंतव्वमवसस्स मे ॥ १७ ॥ जहा किपागफलाणं, परिणामो न सुंदरो । एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो ॥१८॥ अद्धाणं जो महंतं तु, अपाहेज्जो पवज्जइ । गच्छंतो सो दुही होइ, छुहा-तण्हाए पीडिओ॥१९॥ एवं धम्म अकाऊणं जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो दुही होइ, वाहीरो हि पौडिओ॥२०॥ अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेज्जो पवज्जइ । गच्छंतो सो सही होइ, छुहातहाविवज्जिओ ॥२१॥ एवं धम्म पि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवयणे ॥२२॥ जहा गेहे पलितम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभंडाणि नीइ, असारं अवइज्झइ ॥२३॥ एवं लोए पलित्तम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहिं अणुमन्निओ॥२४॥
सामण्णं दुक्करं ति अम्मापियरेहिं पव्वज्जावारणं ४६९ तं बेंतऽमापियरो, सामण्णं पुत्त ! दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साई, धारेयब्वाइं भिक्खुणा ॥२५॥
(१) समया सव्वभूएसु, सत्तुमित्तेसु वा जगे। पाणाइवाय-विरई, जावज्जीवाए दुक्करं ॥२६॥ (२) निच्चकालऽप्पमत्तेणं, मुसावायविवज्जणं । भासियव्वं हियं सच्चं, निच्चाउत्तेण दुक्करं ॥२७॥ (३) दंतसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिज्जस्स, गिण्हणा अवि दुक्करं ॥२८॥ (४) विरई अबंभचेरस्स, कामभोगरसन्नणा। उग्गं महव्वयं बंभ, धारेयब्वं सुदुक्करं ॥२९॥ (५) धण-धन्न-पेसवग्गेसु, परिग्गह-विवज्जणं । सव्वारंभ-परिच्चाओ, निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥ ३०॥ (६) चउन्विहे वि आहारे, राईभोयणवज्जणा । सन्निही-संचओ चेव, वज्जेयब्वो सुदुक्करं ।। ३१॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं, बंस-मसअवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेज्जा य, तणफासा जल्लमेव य ॥ ३२ ॥ तालणा तज्जणा चेव, वह-बंधपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥३३॥ कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो। दुक्खं बंभव्वयं घोरं, धारेउ अमहप्पणो ॥ ३४॥ सुहोइओ तुमं पुत्ता!, सुउमालो सुमज्जिओ। न हुसि पभू तुमं पुत्ता, सामण्णमणुपालिया ॥ ३५॥ जावज्जीवमविस्सामो गुणाणं तु महब्भरो। गुरुओ लोहभारु व्व, जो पुत्ता होइ दुव्वहो ॥३६॥ आगासे गंगसोउ व्व, पडिसोउ व्व दुत्तरो। बाहाहि सागरो चेव, तरियध्वो गुणोदही ॥ ३७॥ वालुया कवले चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरित्रं तवो ॥३८॥ अहीवेगंतदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त ! दुक्करे । जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं ॥ ३९।। जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करा । तह दुक्करं करेउं जे, तारुण्णे समणत्तणं ॥ ४०॥ जहा दुक्खं भरेउं जे, होइ वायस्स कोत्थलो । तहा दुक्खं करेउं जे, कीवेणं समणत्तणं ॥४१॥ जहा तुलाए तोलेउ, दुक्करो मंदरो गिरी । तहा नियनीसंकं, दुक्करं समणत्तणं ॥४२॥ जहा भुयाहि तरिऊ, दुक्करं रयणायरो। तहा अणुवसंतेणं, दुक्करं दमसागरो॥४३॥ भुंज माणुस्सए भोए, पंचलक्खणए तुम । भुत्तभोगी तओ जाया! पच्छा धम्म चरिस्ससि ॥ ४४ ॥
मियापुत्तेण नरयदुक्खवण्णणं सामण्णदुक्करत्तनिराकरणं च ४७० सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । इह लोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचिवि दुक्करं ॥४५॥
सारीर-माणसा चेव, वेयणाओ अणंतसो। मए सोढाओ भीमाओ, असई दुक्खभयाणि य ॥४६॥ जरामरणकतारे, चाउरते भयागरे। मया सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य ॥४७॥
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महावीरतित्थे मियापुत्ते बलसिरी सम
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जहा इहं अगणी उन्हो, एत्तोऽणंतगुणो तह । नरएसु वेयणा उण्हा, असाया वेइया मए ॥ ४८ ॥ जहा इहं इमं सौयं एतोतगुणं हि नरए वेपणा सोया, असाया येइया मए ।। ४९ ।। तो कंकुंभीलु उपाओ अहोसिरोपासणे जलतम्मि पक्कपुल्यो अतसो ॥ ५० ॥ महादवगिकासे, मरुमि वइरवालुए। कलंबवालुयाए य दड्ढपुव्वो अनंतसो ॥ ५१ ॥ रतो कंदुकुंभी उह बढो अबंधयो । करवत-करकयाईहि छिनथ्यो अतसो ।। ५२ ।। अतिखाणे, सिलपा खेवि पालवणं, कड्डोकाहि दुक्करं ।। ५३ ।। महाजतेसु उच्छू वा. आरसंतो सुभेरवं । पोलिओ मि सम्मेहि, पावकम्मो अनंतसो ॥ ५४ ॥ कूती कोणएहि सामेहिसवलेहि य पाडिओ फालिओ छिनो विष्फुरंतो अवसो ।। ५५ ।। असहि अयसवण्णाहिं, भल्लेहि पट्टिसेहिय । छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य, ओइण्णो पावकम्मुणा ॥ ५६ ॥ अवसो लोहरहे जुत्तो, जलते समिलाजुए । चोइओ तोत्तजुत्तेहि, रोज्झो वा जह पाडिओ ।। ५७ ।। हुवास जम्म चिया महियो fee | दड्डी पक्को व असो, पावकम्मे पाविओ ॥ ५८ ॥ बाह सोहहि पनि विलुतो विलवतोऽहं कहि तो ।। ५९ ।। सहाकिती धावंती पती बेपर नई जाति विनंती, खुरधाराहि विवाइओ ।। ६० ।। उहाभितत्तो संपतो, असिपत्तं महावणं असिपत्तेह पडतेहि छिन्नपुव्वो अणेगसो ॥ ६१ ॥ मुग्रेहिं संदीहि हि मुलेहिय गया संभाग-गरोह पत्तं दुखं अनंतसो ॥ ६२ ॥ खुरेहि तिक्खधाराहिं, छुरिया हि कप्पणीहि य । कप्पिओ फालिओ छिन्नो, उक्कित्तो य अणेगसो ॥ ६३॥ पासेहि कूडजालेहि, मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धरुद्धो य, बहुसो चेव विवाइओ ।। ६४ ।। गले मगरजाहि मच्छो या अवसो अहं उल्लिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अनंतसो ॥ ६५ ॥ बीसहि जाहि पाहि सउणो विब पहिलो लग्गो व बद्धो य, मारिओ व अतसी ॥ ६६ ॥ कुहाड-फरसु-माईहिं, बड्ढईहि दुमो विव । कुट्टिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अनंतसो ॥ ६७ ॥ वेद-मुट्टिमाईहि कुमारेहि अयं पिब ताडिओ कुट्टिम भिम्रो चुष्णिओ अतो ।। ६८ ।। तत्ता लोहा ताई, सीसवाणि य पाइओ कलकलंताई, आरसंतो सुनेर । ६९ ।। तुहं पियाई मंसाई, खंडाई सोल्लगाणि य । खाविओ मि स-मंसाई, अग्गिवण्णाई णेगसो ॥ ७० ॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि य । पाइओ मि जलतीओ, वसाओ रुहिराणि य ।। ७१ ।। निच्चं भीएण तत्थेण दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेइया मए ॥ ७२ ॥ विगाढाओ धोराजी अदुस्सहा महाभयाज भीमाओ नर बेदवा भए ।। ७३ ।। जारिसा माणुसे लोए, ताया ! दीसंति वेयणा । एत्तो अनंतगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ॥ ७४ ॥ सव्वभवे असाया, वेणा वेइया मए । निमेसंतरमित्तं पि, जं साता नत्थि वेयणा ॥ ७५ ॥
अम्मापियरेहि सामण्णे निष्पटिकम्मणं ति कह
४७१ तं बिंतऽम्मापियरो, छंदेणं पुत्त ! पव्वया । नवरं पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥७६॥
मियापुत्तस्स उत्तरं
४७२ सो बेइ अम्मापियरो ! एवमेवं जहा फुडं । पडिकम्मं को कुणइ, अरण्णे मियपक्खिणं ॥७७॥ एगभूओ अरणे वा, जहा उ चरइ मिगो । एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ॥७८॥ जहा मिगस आर्यको महारष्यमि जायद अच्छे स्क्खमूलमि को णं ताहे चिगिन्छ ।।७९॥ कोवा से ओसहं देइ, को वा से पुच्छइ सुहं ? को से भत्तं व पाणं वा, आहरित पणामए ? ॥ ८० ॥ जया य से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं । भत्तपाणस्स अट्ठाए, वल्लराणि सराणि य ॥ ८१ ॥ खाइत्ता पाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य । मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारियं ॥ ८२ ॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो एवं समुट्ठिओ भिक्खू, एवमेव अणेगए। मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ढं पक्कमई दिसं ॥३॥ जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरियं पविठे, नो होलए नो वि य खिसएज्जा ॥४॥
मियापुत्तस्स पव्वज्जा ४७३ मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता! जहासुहं । अम्मापिऊहिऽणुन्नाओ, जहाइ उहि तओ ॥५॥
मियचारियं चरिस्सामि, सव्वदुक्खविमोर्खाण । तुर्भेहिं अंब ! ऽणुन्नाओ, गच्छ पुत्त ! जहासुहं ॥८६॥ एवं सो अम्मापियरो, अणुमाणित्ताण बहुविहं। ममत्तं छिदई ताहे, महानागो ब्व कंचुयं ॥७॥ इड्ढी वित्तं च मित्त य, पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पड़े लग्गं, निद्धणित्ताण निग्गओ ॥८॥ पंचमहव्वयजुत्तो, पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य । सब्भिंतरबाहिरए, तवोकम्ममि उज्जुओ॥८९॥ निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो । समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य ॥९०॥ लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा । समो निंदा-पसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥११॥ गारवेसु कसाएसु, दंड-सल्ल-भएसु य । नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबंधणो ॥९२॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचंदणकप्पो य, असणे अणसणे तहा ॥१३॥ अप्पसत्थेहिं दारेहिं सव्वओ पिहियासवे । अज्झप्प-ज्झाणजोहि, पसत्थ-दमसासणे ॥१४॥ एवं नाणेण चरणेण, सणेण तवेण य। भावणाहि य सुद्धाहि, सम्म भावित्तु अप्पयं ॥१५॥ बहुयाणि उ वासाणि, सामण्णमणुपालिया । मासिएण उ भत्तेण, सिद्धि पत्तो अणुत्तरं ॥९६॥ एवं करंति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा। विणिअटुंति भोगेसु, मियापुत्ते जहा रिसी ॥९७॥ महप्पभावस्स महाजसस्स, मियाइपुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तम, गइप्पहाणं च तिलोगविस्सुयं ॥९॥ वियाणिया दुक्ख-विवड्ढणं धणं, ममत्तबंध च महाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेह निब्वाण-गुणावहं महं ॥९९॥
ति बेमि॥ उत्तर० अ० १९।
३५. महावीरतित्थे गद्दभाली संजयराया य
संजयरण्णा मुणिसमीवे मिअवहो ४७४ कंपिल्ले नयरे राया, उदिण्णबलवाहणे । नामेणं संजए नाम, मिगव्वं उवणिग्गए ॥१॥
याणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव य । पायत्ताणीए महया, सव्वओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहित्ता हयगओ, कंपिल्लुज्जाणकेसरे। भीए संते मिए तत्थ, वहेइ, रसमुच्छिए ॥३॥ अह केसरम्मि उज्जाणे, अणगारे तवोधणे। सज्झायज्झाणसंजुत्ते, धम्मज्झाणं झियायइ ॥४॥ अप्फोवमंडवंमि, झायइ खवियासवे । तस्सागए 'मिए पासं, बहेइ से नराहिवे ॥५॥ अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासइ ॥६॥
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महावीरतित्थे गद्दभाली संजयराया य
११९
७५
संजएण खमाजायणं अह राया तत्थ संभंतो, अणगारो मणाहओ। मए उ मंदपुण्णेणं, रसगिद्धेण घंतुणा ॥७॥ आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो। विणएण वंदए पाए, भगवं ! एत्थ मे खमे ॥८॥ अह मोणेण सो भगवं, अणगारे झाणमस्सिए। रायाणं न पडिमंतेइ, तओ राया भयदुओ॥९॥ संजओ अहमंसीति, भगवं! वाहराहि मे । कुद्धे तेएण अणगारे, डहेज्ज नरकोडिओ॥१०॥
गहभालिमुणिणा उवएसो ४७६ अभओ पत्थिवा! तुम्भं, अभयदाया भवाहि य । अणिच्चे जीवलोगंमि, किं हिंसाए पसज्जसि ? ॥११॥
जया सव्वं परिच्चज्ज, गंतव्वमवसस्स ते । अणिच्चं जीवलोगंमि, कि रज्जंमि पसज्जसि? ॥१२॥ जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपायचंचलं । जत्थ तं मुज्झसि रायं ! पेच्चत्थं नावबुज्झसे ॥१३॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बंधवा । जीवंतमणुजीवंति, मयं नाणुवयंति य ॥१४॥ नीहरंति मयं पुत्ता, पियरं परमदुक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते, बंधू रायं ! तब चरे ॥१५॥ तओ तेणज्जिए दवे, दारे य परिरक्खिए । कोलंतऽन्ने नरा रायं ! हट्टतुट्ठमलंकिया ॥१६॥ तेणावि जं कयं कम्म, सुहं वा जइ वा दुहं । कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं ॥१७॥
मुणिसमीवे रणो पव्वज्जा ४७७ सोऊण तस्स सो धम्मं, अणगारस्स अंतिए । महया संवेगनिव्वेयं, समावन्नो नराहिवो ॥१८॥
संजओ चइउं रज्जं, निक्खंतो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ, अणगारस्स अंतिए ॥१९॥
खत्तियमुणिपण्हो ४७८ चिच्चा रटुं पव्वइए, खत्तिए परिभासइ । जहा ते दीसइ रूवं, पसन्नं ते तहा मणो ॥२०॥
कि नामे कि गोत्ते कस्सट्ठाए व माहणे । कहं पडियरसि बुद्धे, कहं विणीए ति वुच्चसि ? ॥२१॥
संजयमुणिणा अत्तकहानिवेयणं ४७९ संजओ नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो । गद्दभाली ममायरिया, बिज्जाचरणपारगा ॥२२॥
किरियं अकिरियं विणयं, अन्नाणं च महामुणी । एएहि चहि ठार्गोह, मेवन्ने कि पभासइ ॥२३॥ इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिव्वुए । विज्जा-चरण-संपन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे ॥२४॥ पडंति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो । दिव्वं च गई गच्छंति, चरिता धम्ममारियं ॥२५॥ मायावुइयमेयं तु, मुसा भासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं, बसामि इरियामि य ॥२६॥ सव्वेए विइया मझं, मिच्छादिट्टी अणारिया। विज्जमाणे परे लोर, सम्म जागामि अप्पयं ॥२७॥
खत्तियमुणिणा अप्पणो पुव्वभवकहणं ४८० अहमासि महापाणे, जुइमं वरिससओवमे। जा सा पालि-महापाली, दिव्वा वरिससओवमा ॥२८॥
से चुए, बंभलोगाओ, माणुस्सं भवमागए । अप्पणो य परेसि च, आउं जाणे जहा तहा ॥२९॥ नाणारुइं च छंदं च, परिवज्जेज्ज संजए। अणट्ठा जे य सम्वत्था, इइ विज्जामगुसंवरे ॥३०॥ पडिक्कमामि पसिणाणं, परमंतेहिं वा पुणो । अहो उट्ठिए अहोरायं, इइ विज्जा तवं चरे ॥३१॥ जं च मे पुच्छसी काले, समं सुद्धण चेयसा। ताई पाउकरे बुद्ध, तं नाणं जिणसासणे ॥३२॥ किरियं च रोयइ धीरे, अकिरियं परिवज्जए । दिट्ठीए दिद्विसंपन्ने, धम्म चर सुदुच्चरं ॥३३॥
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१२०
वत्तियमुणिणा पुव्यपव्वइयभर हाईणं निरूवणं
४८१ एयं पुण्णपयं सोच्चा, अत्थ - धम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वासं, चिच्चा कामाई पव्व ॥ ३४॥ सगरो वि सागरंतं, भरहवासं नराहिवो । इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाए परिनिव्वुडे ||३५|| चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्दिओ । पव्वज्जमभुवगओ, मधवं नाम महाजसो ॥ ३६ ॥ सकुमारो मर्णास्सिदो, चक्कवट्टी महिडिओ । पुत्तं रज्जे ठवेऊणं, सो वि राया तवं चरे ॥ ३७ ॥ चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिडिओ । संति संतिकरे लोए, पत्तो इमगुत्तरं ॥ ३८ ॥ इक्खागरायवसभो, कुंथू नाम नरीसरो । विक्खायकित्ती भगवं पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३९॥ सागरंतं चइत्ताणं, भरहवासं नरेसरो । अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणुत्तरं ॥४०॥ चइत्ता भारहं वासं, चइत्ता बलवाहणं । चइत्ता उत्तमे भोए, महापउमे तवं चरे ॥४१॥ एगच्छत्तं पसाहित्ता, महि माण- निसूरणो । हरिसेणो मणुस्सिदो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥४२॥ अनिओ रायसहस्सेहि, सुपरिच्चाई दमं चरे । जयनामो जिणक्खायं, पत्तो गइमनुत्तरं ॥ ४३॥ दसण्णरज्जं मुदियं चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभद्दो निक्खतो, सक्खं सक्केण चोइओ ॥ ४४ ॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ । चइऊण गेहं वइदेही, सामणे पज्जुवट्टिओ ॥४५॥ करकंडू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो । नमी राया विदेहेसु, गंधारेसु य नगई ॥ ४६ ॥ एए नदिवसभा, निक्खता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवेऊणं, सामण्णे पज्जुवट्टिया ॥ ४७ ॥ सो वीररायवतभो, चइत्ताण मुणी चरे । उदायणो पव्वइओ, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४८ ॥ तहेव कासिया वि सेओ सच्चपरक्कमो । कामभोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्ममहावणं ॥ ४९ ॥ तहेव विजओ राया, अणट्टा कित्ति पव्वए । रज्जं तु गुणसमिद्धं परहित महाजसो ॥५०॥ तहेवुग्गं तवं किच्चा, अव्वक्खित्तेणं चेयसा । महब्बलो रायरिसी, आदाय सिरसा सिरिं ।। ५१ ।। कहं धीरो अहेऊह, उम्मतो व महि चरे ? एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा ॥५२॥ अच्चतनियाणखमा, सच्चा मे भासिया वई । अतरसु तरंतेगे, तरिस्संति अणागया ॥ ५३ ॥ कहि धीरे अहेऊह, अत्तागं परियावसे । सव्वसंग - विणिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए ॥ ५४ ॥ ॥ति बेमि ॥
४८२
धागे दुखंधो
उत्तर० अ० १६ ।
३६. महावीरतित्थे उसुधाररायाई छ समणा
उसुयारनयरे पुरोहियपुत्ताई
देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि, केई चुया एगविमाणवासी । पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम् ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया । निव्विण्ण संसारभया जहाय, जिणिदमग्गं सरणं पवन्ना ॥ २ ॥ पुमत्तमागम्म कुमार दो वि, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती । विसालकित्ती य तहो सुयारो, रायऽत्थ देवी कमलाबाई ८ ॥ ३॥
जाईसरणेण पुरोहियपुत्ताणं विरत्ती पव्वज्जासंकप्पो णिवेयणं च
४८३ जाई - जरा मच्चु - भयाभिभूया, बहिं विहाराभिनिविट्ट - चित्ता । संसार-चक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दट्ठूण ते कामगुणे विरता ॥४॥
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महावीर तित्थे उसुयारयाई छ समणां
पियपुत्तगा दुन्नि व माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिण्णं तवसंजमं च ॥५॥ ते कामभोगे असज्जमाणा, माणुस्सएसुं जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजायसड्ढा, तायं उवागम्म इमं उदाहु ॥६॥ असासयं दट्ठ इमं विहारं, बहुअंतरायं न य दोहमाउं । तम्हा गिर्हसि न रई लहामो, आमंतयामो चरिस्सामु मोणं ॥७॥ पुरोहित वार
४८४ अह
तायगो तत्थ मुणीण तेसि, तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयंति, जहा न होई असुयाण लोगो ॥ ८ ॥ हिज्ज वे परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिदृष्य गिहंसि जाया ! भोच्चा ण भोए सह इत्थियाहि, आरण्णगा होह मुणी पसत्था ॥ ९ ॥
पुरोहिता
सोयग्गणा आयगुणिधणेण, मोहाणिला पज्जलनाहिएणं । संतत्तभावं परितप्यमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥१०॥ पुरोहियं तं कमसोऽनुगतं निमंतयंतं च सुए धणेणं । जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं ॥११॥ या अहिया न भवति ताणं, भुत्ता दिया निति तमं तमेणं । जाया य पुसा न हवंति ताणं, को णाम ते अनुमन्नेज्ज एवं ॥१२॥ मक्खा का लक्खा, पगामनुखा अधिगामसुखा संसार-मोस्स विपक्व भूया, खाणी अगत्वा कामभोगा ।।१३।। परिव्ययंते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्तं धणमेसमाणे, पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥ १४ ॥ इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं माओ ।।१५।। पुरोहियो
धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा । तवं कए तप्प जस्स लोगो, तं सव्व साहीणमिहेव तुब्भं ||१६|| पुरोहिता
धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहि चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ।।१७।। पुरोहि
जहा य अग्गी अरणी असंतो, खीरे घयं तेल्लमहातिलेसु । एमेव जाया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छइ नासइ नावचिट्ठे ॥ १८ ॥ पुरोहिअपुत्ता
नो इंदियग्गेज्म अमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो । अज्झत्थहेडं निययऽस्स बंधो, संसारहेउं च वयंति बंधं ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओम्भमाणा परिरक्खयंता, तं नेव भुज्जो वि समायरामो ॥२०॥ अम्माम लोगम्मि सम्बओ परिवारिए अमोहाहि पतीहि हिसिन रई स ।।२१।।
-
पुरोहि
hr अन्भाहओ लोगो ? केण वा परिवारिओ ? । का वा अमोहा वृत्ता ? जाया चिंतावरो हुमि ॥ २२॥ पुरोहिअपुत्ता
मणाऽभाओ लोगो, जराए परिवारिओ । अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय विजाणह ||२३|| जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्त । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा बच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ ।। २५ ।।
पुरोहिओ
एओ संवािणं ओ सम्मत्तसंजय पच्छा जाया ! दमिस्लामो भिक्खमाणा कुले कुले ॥ २६ ॥ पुरोहिता --
जस्सत्थि मचुणा सक्खं, जस्स चsत्थि फ्लायणं । जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ॥ २७ ॥ अज्जेव धम्मं पडिवज्जयामो, जहि पवन्ना न पुणब्भवाभो । अणागयं नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥
ध० क० १६
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धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो
भारियं जसं पइ पुरोहिओ४८५ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिट्टि ! भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहए समाहि, छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥२९॥
पंखाविहूणो व जहेव पक्खी, भिच्चव्विहूणो व्व रणे नरिंदो। विवन्नसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहंपि ॥३०॥ जसा-- सुसंभिया कामगुणे इमे ते, संपिडिया अग्गरसप्पभूया । भुंजामु ता कामगुणे पगामं, पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥३१॥ पुरोहिओ-- भुत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वओ, न जीवियट्ठा पजहामि भोए। लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ जसा -- मा हू तुमं सोयरियाण संभरे, जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी । भुंजाहि भोगाई मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥३३॥ पुरोहिओ-- जहा य भोई तणुयं भयंगो, निम्मोणि हिच्च पलेइ मुत्तो । एमेए जाया पयहंति भोए, ते हैं कहं नाणुगमिस्समेक्को ? ॥३४॥ छिदित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाए। धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरंति ॥३५॥ जसा-- नहे व कुंचा समइक्कमंता, तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा । पलिति पुत्ता य पई य मझ, ते हं कह नाणुगमिस्समेक्का ? ॥३६॥
कमलावई रायाणं पइ-- ४८६ पुरोहियं तं ससुयं सदारं, सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुटुंबसारं विउलुत्तमं च, रायं अभिक्ख समुवाय देवी ॥३७॥
वंतासी पुरिसो रायं ! न सो होई पसंसिओ। माहणेण परिच्चत्तं, धणं आयाउमिच्छसि ॥३॥ सव्वं जग जइ तुहं, सव्वं वा वि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जतं, नेव ताणाय तं तव ॥३९॥ मरिहिसि रायं ! जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय । एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं, न विज्जई अन्नमिहेह किंचि ॥४०॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं । अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा, परिग्गहारंभनियत्तदोसा ॥४१॥ दवग्गिणा जहा रणे, उज्झमाणेसु जंतुसु । अन्ने सत्ता पमोयंति, रागद्दोसवसं गया ॥४२॥ एवमेव वयं मूढा, काम-भोगेसु मुच्छिया। उज्झमाणं न बुज्झामो, रागद्दोसग्गिणा जगं ॥४३॥ भोगे भोच्चा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणो। आमोयमाणा गच्छंति, दिया कामकमा इव ॥४४॥ इमे य बद्धा फंदंति, मम हत्थाज्जमागया । वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे ॥४५॥ सामिसं कुललं दिस्स, बज्झमाणं निरामिसं । आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा ॥४६॥ गिद्धोवमा उ नच्चाणं, कामे संसारवड्ढणे । उरगो सुवण्णपासे व्व, संकमाणो तणुं चरे ॥४७।। नागो व्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए। एयं पत्थं महारायं, उस्सुयारि ति मे सुयं ॥४॥
रायाईणं पव्वज्जा ४८७ चइत्ता विउलं रज्जं, कामभोगे य दुच्चए । निविसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥४९॥
सम्मं धम्म वियाणित्ता, चिच्चा कामगुणे वरे । तवं पगिज्झऽहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा ॥५०॥ एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्म-मच्चु-भउविग्गा, दुक्खस्संतगवेसिणो ॥५१॥ सासणे विगयमोहाणं, पुवि भावणभाविया । अचिरेणेव कालेणं, दुक्खसंतमुवागया ॥५२॥ राया सह देवीए, माहणो य पुरोहिओ । माहणी दारगा चेव. सव्वे ते परिनिव्वुडा ॥५३॥
॥त्ति बेमि ॥
उत्तर० अ० १४।
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४८८ लए
४९०
कयंगलाए महावीरसमोसरणं
३७. महावीरतित्वे बंदए परिवा
समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिताओ बेहजाओ पडिनिक्खम, पडिनिमित्ता बहिया जणवपविहार
बिहर ॥
सावत्थीए खंदए परिव्वायगे
४८९ तोसे गं कपंगला नवरी अदुरसामंते सारी नाम नवरी होत्या वणो ॥
तत्व गं सावत्मीए नवरीए पारस अंतेवासी बंदए नाम कण्वावणसमोसे परिव्वायये परिवस- रिब्वेद-जजुवेद सामवेद-अहल्यणवेदइतिहास - पंचमाणं निघंटु छट्ठाणं- चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए, संखाणे सिक्खा - कप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे, अण्णेसु य बहसु बंभण्णएसु परिव्वायएस य नयेसु सुपरिनिट्ठिए यावि होत्या ॥
४९३
तेणं कालेणं तेणं समएणं कथंगला नामं नगरी होत्था -- वण्णओ ॥
तीसे णं कथंगलाए नपरीए बहिया उत्तरपुरत्विमे विसोभाए छत्तपनासए नाम चेइए होत्या ।।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे जाव समोसरणं । परिसा निग्गच्छइ ।।
पिंगलेण लोगाइविसए पण्हाईं
तत्व णं सावत्वोए नवरी लिए नाम नि
सालिसाए परिजन ।।
तए णं से पिंगलए नामं नियंठे वेसालियसावए अण्णया कथाइ जेणेव खंदए कच्चायणसगोते तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता खंदगं कच्चायणसगोत्तं इणमयं पुच्छे ---
मागहा ! १. कि सअंते लोए ? अगंते लोए ? २. सअंते जीवे ? अगंने जीवे ? ३. सअंता सिद्धी ? अगंता सिद्धी ? ४. सअंते सिद्धे ? अते सिद्धे ? ५. केण वा मरणं मरमाणे जीवेति वा, हापति वा ? एता ताव आइस्याहि युच्वमाणे एवं ॥
खंदअस्स उत्तरदाणे असामत्थं
४९१ लए ण से खंदए कल्याणसयोल पिंगलए नियंडे बेसालिसावएवं इणमक्वेवं पुछिए समाणे किए कंचिए वितिमिच्छिए भेदसमायनं कल्लुससमावनं जो संचाए पिगलयस्स नियंठस्स वेसालिवावयस् किचि वि पमोनखमखाइ, सिणोए संविद ।। तएषं से पिंगलए नियं वेसालियावए दयं कच्चायणगोत दोन्वं पि तवं पि इणमक्लेवं पुच्छे --
मागहा ! १. किं सअंते लोए ? अनंते लोए ? - जाव ५. केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वड्ढति वा, हायति वा ? -- एतावं ताव आइक्खाहि वुच्चमाणे एवं ॥
तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते पिंगलएणं नियंठेणं वेसालियसावएणं दोच्चं पि तच्वं पि इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए कखिए वितिनिन्छिए भेदसमायनं कलुससमाज भी संचाए विंगतरस नियंटस्स सालिसायरस किचि वि पोखरा,
तुसिणीए संचिट्ठइ ॥
बहुजणस्स कवंगलं पद गमणं
४९२ तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग-जाव- महापहेसु महया जणसंमद्दे इ वा जणवू हे इ-वा । परिसा निग्गच्छति ॥
खंदअस्स महावीरदंसणट्ठ' कयंग लागमणं
तए णं तस्स खंदयस्स कच्चायणसगोत्तस्स बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म इमेयारूचे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए सं कप्पे समुपज्जित्था - 'एवं खलु समणे भगवं महावीरे कथंगलाए नयरीए बहिया छत्तपलासए चेइए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे
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धम्मकहाणुओगे दुतीओ बंधो
विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि नम॑सामि । सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता, नमसित्ता सक्कारेत्ता सम्माता कल्याणं मंगलं देववं चेयं पवासिता इमाई एपारवाई अट्ठाई हेकटं पसिगाई कारभाई वागरणाई पुच्छित ति कट एवं संपे, संपेला जेणेव परिन्यायगावसह तेथेच उचावच्छ, उवायच्छिता दिंडे व कुंडियं च वणि च करोडियं च मिलिय केसरियं च छण्णालयं च अंकुसयं च पवित्तयं च गणेत्तियं च छत्तयं च उवाह्णाओ य पाउयाओ य धाउरत्ताओ य गेण्हइ, गेव्हित्ता परिव्वाहामिद, परिनिमिता दिंड-कुंडिय-कंपनिय-करोडिय मिसिय-केसरियण्णालय- अंकुरूप पवितयगणेपित्य छतवाणसं धात्तवत्थपरिहिए सावत्चीए नपरीए मम निमाच्छ, निग्नच्छित्ता जेणेव कथंगला नगरी, जेणेव छत्तलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव पहारेत्थ गमणाए ||
महावीरेण गोयमं पइ खंदय आगमण निद्देसो
४९४ गोयमा ! इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं बयासी-
"दच्छिसि णं गोयमा ! पुव्वसंगइयं । "
कं भंते ! ? खंदयं नाम । से काहे वा ? किह वा ? केवच्चिरेण वा ?
एवं खल गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्था -- वण्णओ ।
तत्व णं सावत्थीए नपरीए गद्दभालस्स अंतेवासी बंदए नाम कच्चायणसपोतं परिव्यापए परिवसद् तं देव-जाव-शेव ममं अंतिए, तेणेव पहारेत्थ गमणाए । से अदूरागते बहुसंपत्ते अद्धाणपडिवण्णे अंतरा पहे बट्टइ । अज्जेव णं दच्छिसि गोयमा !
भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी-
पहूणं भंते! बंदए कच्चापनसगो देवाचियाणं अंतिए मुंडे भविता अवाराओ अनगारिय पम्बलए? हंता पभू ॥
जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयमट्ठ परिकहेइ, तावं च णं से खंदए कच्चायणसगोते तं बेसं हव्वमागए ॥
गोमयं खंदयसुसागयं आगमणकारणकहणं च
४९५ तए णं भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणसगोत्तं अदूरागतं जाणित्ता खिप्पामेव अब्भुट्ठ ेति, अब्भुट्ट े ता खिप्पामेव पच्चुवगच्छइ, जेणेव खंदए कच्चायणसगोते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंदयं कच्चायणसगोतं एवं वयासी
४९६
"हे संदया ! सामयं दया! सुभागपं चंदया! अनुराग चंदया! सागयमगुराम चंदया! से नृणं तुमं चंदया। सावत्बीएनपीए पिंगलएणं नियंठेणं वेसालियसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए--मागहा ! कि सअंते लोगे ? अनंते लोगे ? एवं तं चेव-जाव- जेणेव इहं वहन्यभाग से मूगं खंदया! अट्ठे समट्ठे ?" हंता अस्थि ।।
महावीरस्स नाणविसए बंदयस्स अच्छरियं
तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्तं भगवं गोयमं एवं वयासी-
“से केस णं गोयमा ! तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं तव एस अट्ठे मम ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ गं तुमं जाणसि ? " तए णं से भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणसगोतं एवं वयासी-
--
"एवं खलु खंदा ! ममं धम्मारिए धम्मोवदेसए समयं भगवं महावीरे उष्णनामधरे अरहा जिसे केवली तीयपकुप्पनमणागवियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी जेणं मम एस अट्ठे तव ताव रहस्सकडे हल्वमक्खाए, जओ णं अहं जाणामि खंदया ! " तए णं से खंदए कच्चायणसगोत भगवं गोयमं एवं वयासी-
“गच्छामो णं गोयमा ! तव धम्मायरियं धम्मोवदेसयं समणं भगवं महावीर वंदामो नमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेयं पज्जुवासामो।"
अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिवंधं करेह ॥
तणं से भगवं गोयमे खंबएणं कच्चायणसगोतेणं सद्धि जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
दयरस महावीरपज्जुवासभा
४९७ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वियट्टभोई यावि होत्था ।।
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महावीरतित्थे खंदए परिव्वायगे
तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियट्टभोइस्स सरीरयं ओरालं सिगारं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगल्लं अणलंकियविभूसियं लक्खणजयगुणवे सिरीए अतीव-अतीव उवसोममाणं विरइ ॥
४९८
तए णं से खंदए कच्चायणसगोते समणस्स भगवओ महावीरस्स वियट्टभोइस्स सरीरयं ओरालं-जाव-अतीव अतीव उवसोभेमाणं पासs, पासित्ता हतुचित्तमाणंदिए दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ-जाव-पज्जुवासइ ॥
महावीरेण खंदयस्स मणोगयस्स कहणं
खंदया ! ति समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चायणसगोत्तं एवं वयासी-
"से नूणं तुमं खंबया ! सावत्थीए नयनेए पिंगलएणं नियंठेणं वेसालियसावएवं इणमक्खेवं पुच्छिए-मागहा ! १. कि सअंते लोए ? अनंते लोए ? एवं तं चेव-जाव- जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वमागए । से नूणं खंदया ! अट्ठे समट्ठे ?" हंता अस्थि ।
महावीरेण चउव्विहलोय परूपणं
४९९ जेविय से चंदा अपमेपावे जन्मथिए चितिए पत्थए मणोगए कप्पे समुपरित्या कि सते लोए ? अनंते लोए ? तर वियां अयम एवं खलु मए बंदना! च
लोए पते तं जहा
दओ ओ कालो भावो ।
--
१२५
दव्वओ णं एगे लोए] सअंते ।
खेत्तओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयणकोडा कीडीओ आयाम विक्खभेणं, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पण्णत्ते, अत्थि पुण से अंते ।
कालओ णं लोए न कयाइ न आसी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सs - भविसु य, भवति य, भविस्सइ य-- धुवे free free ray अव्वए अवट्टिए निच्चे, नत्थि पुण से अंते ।
भावओ णं लोए अनंता वण्णपज्जवा, अनंता गंधपज्जवा, अनंता रसपज्जवा, अणता फासपज्जवा, अनंता संठाणपज्जवा, अनंता गरुयल हुयपज्जवा, अनंता अगरुयलहुयपज्जवा, नत्थि !
पुण से अंते ।
सेतं खंदगा ! दव्वओ लोए सअंते, खेत्तओ लोए सअंते, कालओ लोए अणंते, भावओ लोए अनंते ॥
चविजीवपरूवणं
५०० में वियते चंदा अयमेवात्एि चिलिए परिवाए मनोगए संकर समय-
किं सअंते जीवे ? अणते जीवे ?
तस्स वि य णं अयमट्ठे-- एवं खलु मए खंदया ! चउव्विहे जीवे पण्णत्ते, तं जहा-
दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ ।
दव्वओ णं एगे जीवे सअंते ।
खेती गं जीवे असंखेपए लिए, असंखेएसोगाडे, अस्थिपुग से अंते । ।
कालओ णं जीवे न कयाइ न आसी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइर्भावसु य, भवति य, भविस्सइ य-- धुवे नियए सासए अक्खए अन्वर अवट्ठिए निच्चे, नत्थि पुण से अंते ।
भावओ णं जीवे अनंता नाणपज्जवा, अनंता दंसणपज्जवा, अनंता चारितपज्जवा, अनंता गरुयल हुयपज्जवा, अनंता अगरुयल हुयपज्जवा पुण से अंते ।
सेत्तं खंदगा ! दव्वओ जीवे सअंते, खेत्तओ जीवे सअंते, कालओ जीवे अणंते, भावओ जीवे अनंते ॥
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१२६
धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो
चउन्विहसिद्धिपरूवणं ५०१ जे वि य ते खंदया ! अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--
किं सअंता सिद्धी ? अणंता सिद्धी ? तरस वि य णं अयमठे। एवं खलु मए खंदया! चउम्विहा सिद्धी पण्णता, तं जहा-- दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं एगा सिद्धी सअंता । खेत्तओ णं सिद्धी पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई तीसं च सहस्साई दोषिण य अउणापन्नजोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णता, अत्थि पुण से अंते । कालओ णं सिद्धी न कयाइ न आसी, न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ--भविसु य, भवति य, भविस्सइ य--धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवठ्ठिया निच्चा, नत्थि पुण से अंते । भावओ णं सिद्धीए अणंता वण्णपज्जवा, अणंता गंधपज्जवा, अगंता रसपज्जवा, अणंता फासपज्जवा, अणंता संठाणपज्जवा, अणंता गरुयलयपज्जवा, अणंता अगरुयलहयपज्जवा, नत्थि पूण से अंते । सेत्तं खंदया! दव्वओ सिद्धी सअंता, खेत्तओ सिद्धी सअंता, कालओ सिद्धी अणंता, भावओ सिद्धी अणंता ॥
चउन्विहसिद्ध-परूवणं जे वि य ते खंदया ! अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-- कि सअंते सिद्ध ? अणते सिद्ध ? तस्स वि य णं अयमढे--एवं खलु मए खंदया ! चउम्बिहे सिद्ध पण्णत्ते, तं जहा-- दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं एगे सिद्धे सअंते। खेत्तओ णं सिद्धे असंखेज्जपएसिए, असंखेज्जपएसोगाढे, अत्थि पुण से अंते । कालओ णं सिद्धे सादीए, अपज्जवसिए, नत्थि पुण से अंते। भावओ णं सिद्धे अणंता नाणपज्जवा, अणंता बंसणपज्जवा, अणंता अगरयलहुयपज्जवा, नस्थि पुण से अंते । सेत्तं खंदया! दव्वओ सिद्ध सअंते, खेत्तओ सिद्धे सअंते, कालओ सिद्धे अणंते, भावओ सिद्धे अणते ।।
५०२
मरणपरूवणं जे वि य ते खंदया ! इमेयारूवे अज्ञथिए चितिए-पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-- केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे बड्ढति बा, हायति वा ? तस्स वि य णं अयमठे-एवं खलु खंदया! मए दुविहे मरणे पण्णते, तं जहा-- बालमरणे य, पंडियमरणे य। से कि तं बालमरणे? बालमरणे दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहा१. वलयमरणे २. वसट्रमरणे ३. अंतोसल्लमरणे ४. तब्भवमरण ५. गिरिपडणे ६. तरुपडणे ७. जलप्पवेसे ८. जलगप्पवेसे ९. विस-भक्खणे १०. सत्थोवाडणे ११. वेहाणसे १२. गिद्धप? -- इच्चेतेणं खंदया ! दुवालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहि नेरइयभवग्गहहि अप्पाणं संजोएइ, अणतेहिं तिरियभवग्गहहिं अप्पाणं संजोएइ, अणंतेहि मणुयभवग्गहDहि अप्पाणं संजोएइ, अर्णतेहिं देवभवग्गणेहि अप्पाणं संजोएइ, अणाइयं च णं अगवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टइ। सेत्तं मरमाणे बड्ढइ-वड्ढई। सेत्तं बालमरणे ।
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महावीरतित्थे खंदए परिव्वायगे
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से कि तं पंडियमरणे? पंडियमरणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य। से कि तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-नीहारिमे य, अनीहारिमे य। नियमा अप्पडिकम्मे । सेत्तं पाओवगमणे। से कि तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-नीहारिमे य, अनीहारिमे य। नियमा सपडिकम्मे । सेत्तं भत्तपच्चक्खाणे। इच्चेतेणं खंदया! दुविहेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहि नेरइयभवग्गहणेहि अप्पाणं विसंजोएइ, अणंतेहि तिरियभवग्गहणेहि अप्पाणं विसंजोएइ, अणंतेहि मणुयभवग्गहणेहि अप्पाणं विसंजोएइ, अगंतेहिं देवभवग्गणेहिं अप्पाणं विसंजोएइ, अगाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयइ । सेत्तं मरमाणे हायइ-हायइ। सेत्तं पंडियमरणे। इच्चेएणं खंदया ! दुविहेणं मरणेणं मरमाणे जीवे वड्ढइ वा, हायइ वा॥
खंदयस्स धम्मसवणं ५०३ एत्थ णं से खंदए कच्चायणसगोते संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि गं भंते !
तुम्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्म निसामित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणसगोतस्स, तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ । धम्मकहा भाणियव्वा ॥
खंदयस्स पव्वज्जा तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमाणदिए णंदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उद्वैत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीसद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, -जाव-से जहेयं तुन्भे वदह ति कट्ट समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभायं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तिदंडं च कुंडियं च-जाव-धाउरत्ताओ य एगते एडेइ, एडेता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवा-गच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी"आलित्ते णं भत्ते ! लोए, पलिते णं भंते ! लोए, आलित्त-पलिते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य । से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए, तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ । एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ । एवामेव देवाणुप्पिया! मज्झ वि आया एगे भंडे इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेस्सासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरडगसमाणे, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं चोरा, मा णं वाला, मा णं दंसा, मा णं मसया, मा गं वाइय-पित्तिय-सेभिय-सन्निवाइय-विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कटु एस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ। तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सयमेव सेहावियं, सयमेव सिक्खावियं, सयमेव आयार-गोयरं विणय-वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं ॥" तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चायणसगोत्तं सयमेव पवावेइ-जाव-धम्ममाइक्खइ
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धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो
एवं देवाणुप्पिया! गंतव्वं, एवं चिठ्ठियव्वं, एवं निसीइयव्वं, एवं तुयट्टियब्वं, एवं भुंजियव्वं, एवं भासियव्वं, एवं उट्ठाय-उट्ठाय पाणेहि भएहि जीवेहिं सहिं संजमेणं संजमियव्वं, अस्सि च णं अट्ठे णो किंचि वि पमाइयव्वं ॥ तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जइ-तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ, तह निसीयइ, तह तुयट्टइ, तह भुंजइ, तह भासइ, तह उट्ठाय-उट्ठाय पाणेहि भूएहि जीहि सत्तेहि संजमेणं संजमेइ, अस्सिं च णं अट्ठे णो पमायइ ॥ तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते अणगारे जाते-इरियासमिए -जाव- गुत्तबंभयारी चाई लज्जू धन्ने खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अनियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ काउंविहरइ॥
महावीरस्स जणवयविहारो ५०५ तए णं समणे भगवं महावीरे कयंगलाओ नयरीओ छत्तपलासाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं
विहरइ॥
खंदएण भिक्खुपडिमागहणं ५०६ तए णं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ,
अहिज्जित्ता, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासीइच्छामि गं भंते ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ॥ तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे हट्टे-जाव-नमंसित्ता मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरई॥ तए णं से खंदए अणगारे मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च अहासम्म सम्मं काएण फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ पूरेइ किट्टेइ अणुपालेइ आणाए आराहेइ, सम्म काएण फासेत्ता पालेत्ता सोभत्ता तीरेत्ता पूरेत्ता किमुत्ता अणुपालेत्ता आणाए आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी"इच्छामि गं भंते ! तुर्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं बिहरित्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं । तं चेव ॥ एवं तेमासियं, चाउम्मासिय, पंचमासियं, छम्मासियं, सत्तमासिय, पढमसत्तरातिदियं, दोच्चसत्तरातिदियं, तच्चसत्तरातिदियं, रातिदियं, एगरातियं ॥ तए णं से खंदए अणगारे एगरातियं भिक्खुपडिमं अहासुत्त-जाव-आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी
खंदएण गुणरयणसंवच्छरतवोवसंपज्जणं ५०७ इच्छामि गं भंते! तुहि अब्भणुण्णाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया!
मा पडिबंधं करेह ॥ तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुठे-जाव-नमंसित्ता गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति । तए णं से खंदए अणगारे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं अहासुत्तं अहाकप्पं-जाव-आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ-छठ्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहि, मासद्धमासखमणेहि विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
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महावीरतित्थे खंदए परिवायगे
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तए णं से खंदए अणगारे तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठि-चम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था। जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलाइ । से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा, पत्तसगडिया इवा, पत्त-तिल-भंडगसगडिया इ वा, एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा-उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससई गच्छइ, ससई, चिट्ठइ, एवामेव खंदए अणगारे ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, उचिए तवेणं अवचिए मंस-सोणिएणं, हुयासणे विव भासरासिपडिच्छण्णे तवेणं तेएणं सव-तेयसिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे-उबसोभेमाणे चिट्ठ।।।
५०८
रायगिहे महावीरसमोसरण खंदयस्स समाहिमरणे संकप्पो य तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे-जाव-समोसरणं जाव परिसा पडिगया । तए णं तस्स खंदयस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए -जाव-समुप्पज्जित्था-- "एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं-जाव-किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि-जाब-एवामेव अहं पि ससदं गच्छामि, ससई चिट्ठामि। तं अस्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे, तं जावता मे अत्थि उट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे -जाव- य मे धम्मारिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए, फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियाम्म अहपंडुरे पभाए, रत्तासोयप्पकासे, किसुय-सुधमुह-गुंजद्धरागसरिसे, कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिगयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदिता नमंसित्ता पच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिण्डे पज्जुवासित्ता समजेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरोवेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता तहारूहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरूहित्ता मेहघणसंनिगास देवसन्निवातं पुढवीसिलापट्टयं पडिलेहिता, दब्भसंथारगं संयरित्ता दब्भसंथारोवगयस्स संलेहणाझूसणाझसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए" ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासइ॥ खंदया ! इ समणे भगवं महावीरे खंदयं अणगारं एवं बयासी-"से नूणं तव खंदया ! पुब्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमागस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं तवेणं ओरालेणं विउलेणं तं चेव-जावकालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेसि, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते' जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वमागए। से नूणं खंदया! अढे समठे ?" हंता अस्थि । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह ॥
५०९
ख्दयस्स संलहणा तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमाणदिए णदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महब्वयाई आरुहेइ, आरुहेत्ता समणा य समणीओ य खामेइ, खामेत्ता तहारोह थेरेहि कडाईहिं सद्धि विपुलं पब्वयं सणियं-सणियं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहघणसन्निगासं देवसन्निवातं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरिता पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसणे करयलपरिग्गहियं बसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-- "नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं-जाव-सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामस्स ।
ध० क०१७
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१३०
धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो
वंदामि गं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगय" ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासो"पुवि पि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सब्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए-जाव-मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए जावज्जीवाए। इयाणि पि य गं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए-जाव-मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए एवं सव्वं असण-पाण-खाइम-साइम-चउन्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जं पि य इमं सरीरं इट्ठ कंतं पियं-जाव-मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सन्निवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु ति कट्ट एवं पिणं चरिमेहि उस्सास-नीसासेहि वोसिरामि" त्ति कटु संलेहणाझूसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ॥ तए णं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुवीए कालगए।
५१०
खंदयस्स पत्त-चीवरसमाणयणं तए णं ते थेरा भगवंतो खंदयं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेंति, करेता पत्त-चीवराणि गेण्हंति, गेण्हित्ता विपुलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोएहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-"एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विणीए । से णं देवाणुप्पिएहि अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरुहेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता, अम्हेंहिं सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहिता-जावमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदेता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुब्बीए कालगए। इमे य से आयारभंडए॥"
खंदअस्स अच्चुयकप्पे उववाओ महाविदेहे सिद्धी य ५११ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नाम अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववण्णे?" गोयमा! इसमणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वदासी-- "एवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणे विणीए, से णं मए अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाइं आरुहेता-जाव-मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झुसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णे ॥ तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।तत्य णं खंदयस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥" से णं भत्ते ! खंदए देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्यिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति ।।
भग० स० २, उ०१॥
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३८. महावीरतित्थे मोग्गलपरिव्वायगे
आलभियाए मोग्गल-परिव्वायगो ५१२ तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होत्था-वण्णओ। तत्थ णं संखवणे नामं चेइए होत्था-वण्णओ। तस्स णं संख
वणस्स चेइयस्स अदूरसामंते मोग्गले नाम परिव्वायए-रिउव्वेद-जजुब्वेद-जाव-बंभण्णएसु परिव्वायएसु य नएसु सुपरिनिट्ठिए छ8छ?णं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्मिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ ॥
मोग्गलस्स विभंगनाणं ५१३ तए णं तस्स मोग्गलस्त परिब्वायगस्स छटुंछ?णं अणिक्खि तेणं तबोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावण
भूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपयणुकोहमाणमायालोभाए मिउमद्दवसंपन्नयाए अल्लीणयाए विणीययाए अण्णया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स विभंगे नाम नाणे समुप्पन्ने । से णं तेणं विभंगेणं नाणेणं समुप्पन्नणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठिति जाणइ-पासइ॥
देवठिइविसए मोग्गलस्स विभंगनाण ५१४ तए णं तस्स मोग्गलस्स परिवायगस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुष्पज्जित्था-अत्थि णं ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने
देवलोएसु णं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया-जाव-असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाई ठिती पण्णता। तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता, तिवंडं च कुंडियं च-जाव-धाउरत्ताओ य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव आलभिया नगरी, जेणेव परिव्वायगावसहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेता आलभियाए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापह-पहेसु अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदसणे समुप्पन्ने, देवलोएसु णं देवाणं जहण्णणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया,-जाव-असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाई ठिती पण्णता। तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य॥ . तए णं मोग्गलस्स परिव्वायगस्स अंतियं एयमट्ट सोच्चा निसम्म आलभियाए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! मोग्गले परिव्वायए एवमाइक्ख इ-जाव-परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु देवलोएसु णं देवाणं जहण्णणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया-जाव-असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य । से कहमेयं मन्ने एवं?
महावीरसमोसरणं देवठि इविसए जहत्थकहणं च ५१५ सामी समोसढे, परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। भगवं गोयमे तहेव भिक्खायरियाए तहेव बहुजणसई निसामेइ,
निसामेत्ता तहेव सव्वं भाणियग्वं-जाव-अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, एवं भासामि-जाव-परूवेमि-देवलोएसु णं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया-जाव-असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य॥ अस्थि णं भंते! सोहम्मे कप्पे दव्वाइं-सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाई पि अरसाई पि, सफासाई पि अफासाइं पि अण्णमण्णबद्धाई अण्णमण्णपुट्ठाई अण्णमण्णबद्धपुट्ठाई अण्णमण्णघडताए चिट्ठति ? हंता अस्थि । एवं ईसाणे वि, एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेज्जविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसु वि, ईसिपब्भाराए वि-जाव-? हंता अस्थि ॥ तए णं सा महतिमहालिया परिसा-जाव-जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया ।
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१३२
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
तए णं आलभियाए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ "जण्णं देवाणुप्पिया! मोग्गले परिव्वायए एवमाइक्खइ-जाव-परवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु देवलोएसु णं देवाणं जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया-जाव-असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाई ठिती पण्णत्ता । तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य । तं नो इण8 सम। समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ-जाव-देवलोएसु णं देवाणं जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया-जाव-असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य" ॥
५१६
मोग्गलस्स विभंगनाणपडणं महावीरसमीवे गमणं च तए णं से मोग्गले परिव्वायए बहुजणस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था। तए णं तस्स मोग्गलस्स परिव्वायगस्स संकियस्स कंखियस्स वितिगिच्छियस्स भेदसमावन्नस्स कलुससमावन्नस्स से विभंगे नाणे खिप्पामेव पडिवडिए । तए णं तस्स मोग्गलस्स परिव्वायगस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे-जाव-सब्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं-जाव-संखवणे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिम्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तं महप्फलं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमणवंदण-नमसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि-जाव-पज्जुवासामि, एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सई" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तिदंडं च कुंडियं च-जाव-धाउरत्ताओ य गेण्हइ, गेण्हित्ता परिव्वायगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पडिवडियविभंगे आलभियं नार मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव संखवणे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिकडे पज्जुवासइ॥
मोग्गलस्स पव्वज्जा ५१७ तए णं समणे भगवं महावीरे मोग्गलस्स परिव्वायगस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धर्म परिकहेइ-जाव-आणाए आराहए
भव। तए णं से मोग्गले परिव्वायए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म जहा खंदओ-जाव-उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तिदंडं च कुंडियं च-जाव-धाउरत्ताओ य एगते एडेइ, एडेत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करैत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं जहेव उसभदत्तो तहेव पव्वइओ, तहेव एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, तहेव सव्वं-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
गोयमस्स सिज्झमाणस्स संघयणाइपण्हा ५१८ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-जीवा णं भंते ! सिज्झमाणस्स कयरम्मि
संघयण सिझंति? गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणे सिझंति, एवं जहेब ओवबाइए तहेव । संघयणं संठाणं, उच्चत्तं आउयं च परिवसणा। एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियव्वा-जाव-- अव्वाबाहं सोक्खं, अणुहंती सासयं सिद्धा॥ सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ .. . ..
. भग० श० ११, उ० १२ ।
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३९. महावीरतित्थे सिवरायरिसी
हत्थिणापुरे सिवराया ५१९ तेगं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नाम नगरे होत्था-वण्णओ। तस्स णं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे,
एत्थ णं सहसंबवणे नाम उज्जाणे होत्था-सव्वोउय-पुष्फ-फलसमिद्धे रम्मे गंदणवणसन्निभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मणोरमे सादुप्फले अकंटए, पासादीए-जाव-पडिरूवे ॥ तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे-वण्णओ। तस्स गं सिवस्स रणो धारिणी नामं देवी होत्या-सुकुमालपाणिपाया-वग्णओ। तस्स णं सिवस्स रण्णो पुते धारिणीए अतए सिवभद्दे नाम कुमारे होत्थासुकुमालपाणिपाए, जहा सूरियकते-जाव-रज्जं च रटुं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे-पच्चुवेक्खमाणे विहरइ॥
सिवस्स दिसापोक्खिय-तावसपव्वज्जासंकप्पो ५२० तए णं तस्स सिवस्स रण्णो अष्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि रज्जधुरं चितेमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे
समुप्पज्जित्था-"अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसे, जेणाहं हिरण्णेणं वड्ढामि, सुवण्णेणं वड्ढामि, धणेणं वड्ढामि, धण्णणं वड्ढामि, पुत्तेहि वड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, रज्जेणं वड्ढामि, एवं रट्टेणं बलेणं वाहणणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं वड्ढामि, विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संखसिलप्पबाल-रत्तरयणसंतसारसावएज्जेणं अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं THA कम्माणं एगंतसो खयं उवेहमाणे विहरामि? तं जाव ताव अहं हिरण्णणं वड्ढामि-जाव-अतीव-अतीव अभिवड्ढामि-जाव-मे N
सुचिण्णाण सुपरकताण सुभाष सामंतररायाणो वि वसे वटुंति, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्स-रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं घडावेत्ता सिवभई कुमारं रज्जे ठावेत्ता तं सुबहुं लोही-लोहकडाह-कड़च्छ्यं तंबियं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकुले वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जहा ओववाइए -जाव-आयावणाहि पंचग्गिताहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्टसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति तत्थ णं जे ते दिसापोक्खियतावसा तेसि अंतियं मुंडे भवित्ता दिसायोक्खियतावसत्ताए पव्वइत्तए, पव्वइते वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि-कप्पइ मे जावज्जीवाए छटुंछठेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए", ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सुबहुं लोहीलोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं घडावेत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया ! हत्थिणापुर नगरं सब्भितरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलितं-जाव-सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" ते वि तमाणत्तियं पच्चप्पिणति ॥
सिवभद्दकुमारस्स रज्जाभिसेओ ५२१ तए णं से सिवे राया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--
खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया ! सिवमद्दस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव उवट्ठति ॥ तए णं से सिवे राया अगगगनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाह-दूध-संधियाल-सद्धि संपरिबुडे सिवभई कुमारं सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहं, निसियावेद, निसियावेत्ता अट्ठसएणं सोवण्णिपाणं कलसाणं-जाव-अट्ठसएणं भोमेज्जागं कलसाणं सब्बिड्डीए-जाव-दंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं महया-महया रायाभिसेगेणं अभिसिंचइ, अभिसिचित्ता पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लुहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिपति एवं जहेव जमालिस्स अलंकारो
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१३४
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
तहेव-जाव-कप्परुक्खगं पिव अलंकिय-विभूसियं करेइ, करेत्ता करयलपरिग्गहियं दसनह सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सिवभई कुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता ताहि इटाहि-जाव-वग्नहि जयविजयमंगलसएहि अणवरयं अभिणंदतो य अभित्थुणंतो य एवं वयासी"जय-जय नंदा! जय-जय भद्दा ! भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमझे बसाहि । इंदो इव देवाणं, चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, चंदो इव ताराणं, भरहो इव मणुयाणं बहूई वासाई बहूई वाससयाई बहूई वाससहस्साई बहूई वाससयसहस्साई अणहसमग्गो हट्टतुट्ठो परमाउं पालयाहि, इट्ठजणसंपरिवुडे हत्थिणापुरस्स नगरस्स, अण्णेसि च बहूणं गामागर-नगर-खेड-कब्बडदोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे बिहराहि" ति कटु जयजयसई पउंजति ॥ तए णं से सिवभद्दे कुमारे राया जाते-महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे, वण्णओ-जाव-रज्जं पसासेमाणे विहरइ।। सिवस्स दिसापोक्खियतावसपव्वज्जा
५२२ तए णं से सिवे राया अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-महत्त-नक्खत्तंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेति,
उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं रायाणो य खत्तिए य आमंतेति, आमंतेत्ता तओ पच्छा बहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणणं राएहि य खत्तिएहि सद्धि विपूलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसादेमाणे वीसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभए तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विउलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं रायाणो य खत्तिए य सिवभई च रायाणं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था ताबसा भवंति, तं चेव-जाव-तेसि अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए, पव्वइए वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहति-'कप्पइ मे जावज्जीवाए छटुंछट्टणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ
पगिज्झिय-पगिज्झिय विहरित्तए'-अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता पढम छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ॥ ५२३ तए णं से सिवे रायरिसी पढमछट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पुरथिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसि-अभिरक्खउ सिवं रायरिसि, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ त्ति कट्ट पुरत्थिमं दिसं पसरइ, पसरिता जाणि य तत्थ कंदाणि य-जाव-हरियाणि य ताई गण्हइ, गेम्हित्ता किढिण-संकाइयगं भरेइ, भरेत्ता दन्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं ठवेइ, ठवेत्ता दि वढ्ढेइ, वड्ढेत्ता उवलेवणसंमज्जणं करेइ, करेत्ता दब्भकलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महानदि ओगाहेइ, ओगाहेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकीडं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवय-पिति-कयकज्जे दब्भकलसाहत्यगए गंगाओ महानदीओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाए य वेदि रएति, रएत्ता सरएणं अरणि महेइ, महेत्ता अग्गि पाडेइ, पाडेता अग्गि संधुक्केइ, संधुक्केत्ता समिहाकट्ठाई पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अग्गि उज्जालेइ, उज्जालेत्ता "अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे", तं जहासकहं वक्कलं ठाणं, सिज्जाभंडं कमंडलुं। दंडदारूं तहप्पाणं, अहेताई समादहे ॥१॥ महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, हुणित्ता चरुं साहेइ, साहेत्ता बलि-वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहार माहारेति ॥ तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥ तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता वागलवथनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणगं दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसि, सेसं तं चेव-जाव-तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ॥ तए णं से सिवे रायरिसी तच्चं छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ॥
हत्ता वागलवत्थनियत्री
यरिसिं, सेसंह, गिण्हित्ता दाहिण
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महावीरतित्थे सिवरायरिसी
१३५
तए णं से सिवे रायरिसी तच्चे छट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरहइ, पच्चोरुहित्ता वागलबत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिव्हित्ता पच्चत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पच्चत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसि, सेसं तं चैव-जाव-तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ॥ तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ॥ तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थे छट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसि, सेसं तं चेव-जाव-तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ।।
सिवस्स विभंगनाणं सत्तदीवविसयं ५२४ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिझिय
सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपयणुकोहमाण-मायालोभयाए मिउमद्दवसंपन्नयाए अल्लोणयाए विणीययाए अण्णया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स विभंगे नामं नाणे समुप्पन्ने । से णं तेणं विन्भंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति अस्सि लोए सत्त दीवे सत्त समुद्दे, तेण परं न जाणइ, न पासइ ॥ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-अत्थि णं ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुय-तंबियं तावसभंडगं किढिण-संकाइयगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता हथिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पहेसु बहुजणस्स एबमाइक्ख इ-जाव-एवं परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए-सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना
दीवा य समुद्दा य॥ ५२५ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयम सोच्चा निसम्म हथिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह
पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-"एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। से कहमेयं मन्ने एवं ?"
गण्हह, गहिता उडए तेणेव उवागच्छादी य-एवं संपेहेइ, संपे.
महावीरसमोसरणे सिवविभंगनाणविसए पण्होत्तराई ५२६ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा-निग्गया। धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया ।
तेणं कालेण तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे जहा बितियसए नियंठुद्देसए-जावघरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसई निसामेइ, बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ-जाव-एवं परूवेइ-अत्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दोवा य समुद्दा य । से कहमेयं मन्ने एवं ? तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमलृ सोच्चा निसम्म जायसड्ढे -जाव- समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी"एवं खलु भंते ! अहं तुब्ह अब्भणुण्णाए समाणे हत्थिणापुरे नयरे उच्च-नीय-मजिममाणि कुलाणि घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसई निसामेमि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । से कहमेयं भंते ! एवं?" | गोयमा ! दि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी"जण्णं गोयमा! एवं खलु एयस्स सिवस्स रायरिसिस्स छठंछट्टैणं अणिक्खितेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झियपगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपयणुकोहमाणमायालोभयाए मिउमद्दवसंपन्नयाए अल्लीणयाए विणीययाए अण्णया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स विभंगे नाम
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
नाणे समुप्पन्ने । तं चेव सव्वं भाणियव्वं-जाव-भंडनिक्खेवं करेइ, करेता हथिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापह-पहेसु बहुजणस्स एवमा इक्खइ-जाव-एवं परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य ससुद्दा य।
महावीरेण असंखेज्ज-दीवसमुद्दपरूवर्ण
५२७ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिए एयम© सोच्चा निसम्म हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह
पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-''एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणसणे समुप्पन्ने, एवं खल अस्ति लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं बोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, तणं मिच्छा! अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि-जाव-परूवेमि-एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा, लवणादीया समुद्दा संठाणओ एगविहिविहाणा, वित्थारओ. अणेगविहिविहाणा एवं जहां जीवाभिगमे,-जाव-सयंभरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोए असंखेज्जा दोवसमुद्दा पण्णता समणाउसो!" अत्थि णं भंते ! जंबहीवे दीवे दवाई-सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाई पि अरसाई पि, सफासाई पि अफासाई पि, अण्णमण्णबद्धाई अण्णमण्णपुढाई अण्णमण्णबद्धपुट्ठाई अण्णमण्णघडताए चिट्ठति ? हंता अत्थि ॥ अस्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे दव्वाई-सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाई पि अरसाई पि, सकासाई पि अफासाई पि अण्णमण्णबद्धाई अण्णमण्णपुटाई अण्णमण्णबद्धपुढाई अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति? हंता अस्थि ।। अस्थि णं भंते ! धायइसंडे दीवे दव्वाइं सवण्णाई पि अवण्णाइं पि, सगंधाई पि अगंधाइं पि, सरसाई पि अरसाई पि, सफासाई पि अफासाई पि अण्णमण्णबद्धाइं अण्णमण्णपदाइं अण्णमण्णबद्धपद्राई अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति ? हंता अस्थि । एवं-जाव-- अत्थि णं भंते ! सयंभूरमणसमुद्दे दव्वाइं--सवण्णाई पि अवण्णाई पि, सगंधाई पि, अगंधाई पि, सरसाइं पि, अरसाई पि, सफासाई पि, अफासाई पि, अण्णमण्णबद्धाइं अण्णमण्णपुट्ठाई अण्णमण्णबद्धपुट्ठाई अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति ? हंता अत्थि ॥ तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीर
वंद नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया । ५२८ तए णं हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्त एवमाइक्खइ जाव परूवेई “जण्णं
देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परवेइ--अत्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेणं परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। तं नो इण8 समट्ठ। समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ जाव परूवेइ--एवं खलु एयस्स सिवस्स रायरिसिस्स छदैछटेणं० तं चेव-जाव-भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पहेसु बहुजणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ--अत्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा य सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य । तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयम सोच्चा निसम्म जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य तण्णं मिच्छा, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ--एवं खलु जंबद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुहा०, तं चेव जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा पण्णत्ता समणाउसो !"
५२९
सिवस्स अप्पणो नाणे संका महावीरपज्जवासणं च तए णं से सिवे रायरिसी बहुजणस्स अंतियं एयम सोच्चा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स संकियस्स कंखियस्स वितिगिच्छियस्स भेदसमावन्नस्स कलुससमावन्नस्स से विभंगे नाणे खिप्पामेव परिवडिए॥ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अज्झथिए -जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु समणे भगवं महावीरे तित्थगरे आदिगरे जाव-सव्वष्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव सहसंबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तं महप्फलं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदण-नमंसणपडिपुच्छण-पज्जुवासगयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि जाव पज्जवासामि, एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खभाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सई" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताबसावसहं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता
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महावीरतित्थे उद्दायणरायकहाणयं
१३७
सुबह लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावभंडगं किढिण-संकाइयगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता तावसावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पडिवडियविभंगे हथिणापुर नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिकडे पज्जुवासइ ।। तए णं समणे भगवं महावीरे सिवस्स रायरिसिस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ जाव आणाए आराहए भवइ ।।
सिवस्स पव्वज्जा निव्वाणगमणं च ५३० तए णं से सिवे रायरिसी समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म जहा खंदओ-जाव-उत्तरपुरत्थिमं दिसौभागं
अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सुबहु लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं किढिण-संकाइयगं च एगते एडेइ, एडेता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं जहब उसमदत्तो तहेव पव्वइओ, तहेव एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, तहेव सव्वं-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ।।
भग० श० ११, उ०९।
४०. महावीरतित्थे उद्दायणरायकहाणयं
चपाए महावीरसमोसरणं ५३१ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था--वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए--वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ
पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
वीतीभए उद्दायणराया ५३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधूसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए नाम नगरे होत्था--वण्णओ। तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे
दिसीभाए, एत्थ णं मियवणे नामं उज्जाणे होत्था--सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे--वण्णओ । तत्थ णं वीतीभए नगरे उद्दायणे नामं राया होत्था--महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे-वण्णओ। तस्प णं उद्दायणस्स पउमावती नामं देवी होत्था-सकुमाल० वण्णऔ । तस्स णं उद्दायणस्स रण्णो पभावती नामं देवी होत्था-सुकुमाल पाणिपाया--वण्णओ। तस्स णं उद्दायणस्स रणो पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए अभीयो नाम कुमारे होत्था--सुकुमालपाणिपाए अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-पमाण-पडिपुण्ण-सुजायसव्वंग-सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदसणे सुरूवे पडिरूवे । सेणं अभीयी कुमारे जुवराया वि होत्था--उद्दायणस्स रफ्णो-रज्जं च र?' च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे-पच्चुवेक्खमाणे विहरइ। तस्स णं उद्दायणस्स रण्णो नियए भाइणेज्जे केसी नाम कुमारे होत्था-सुकुमालपाणिपाए-जाव-सुरूवे । से णं उद्दायणे राया सिंधूसोवीरप्पा-मोक्खाणं सोलसण्हं जणवयाणं, वीतीभयप्पामोक्खाणं तिण्हं तेसट्ठीणं नगरागरसयाणं, महसेणप्पामोवखाणं दसण्हं राईणं बद्धमउडाणं विदिन्नछत्त-चामर-वालवीयणाणं, असं च बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्टिसेणावइ-सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे समणोवासए अभिगयजीवाजीवेजाव-अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।।
ध० क० १८
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
तए णं से उहायणे राया अण्णया कयाइ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, जहा संखे-जाव-पोसहिए बंभचारी ओमुक्कमणिसुवणे ववगयमाला-वण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थ-मुसले एगे अबिइए दन्भसंथारोवगए पक्खियं पोसह पडिजागरमाणे विहरइ।
उद्दायणस्स महावीरवंदणाइम्मि अहिलासो ५३३ तए णं तस्स उहायणस्स रणो पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्प
ज्जित्था--"धन्ना णं ते गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संवाहसण्णिवेसा जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ, धन्ना णं ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितयो जे णं समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति-जावपज्जुवासंति । जइ णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इहमागच्छेज्जा, इह समोसरेज्जा, इहेब बीतीभयस्स नगरस्स बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा, तो णं अहं समणं भगवं महावीरं वंदेज्जा नमसेज्जा-जाव-पज्जुवासेज्जा ॥"
महावीरेण अहिलासवियाणणा ५३४ तए णं समणे भगवं महवीरे उद्दायणस्स रणो अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव-संकप्पं समुप्पन्नं वियाणित्ता चंपाओ नगरीओ पुण्णभद्दाओ
चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणपुद्वि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सिंधूसोवीरे जणवए जेणेव बीतीभये नगरे, जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-जाव-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
वीतीभए समोसरण ५३५ तए णं बीतीभये नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु-जाव-परिसा पज्जुवासइ ॥
तए णं से उद्दायणे राया इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हट्टतुळे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- खिप्पामेव भो देवाणप्पिया! बीयोभयं नगरं सब्भितरबाहिरियं-जाव-पज्जवासइ । पउमावतीपामोक्खाओ देवीओ तहेव-जाव-पज्जुवासंति। धम्मकहा ॥
उद्दायणस्स पव्वज्जासंकप्पो ५३६ तए णं से उद्दायणे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुठे उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं
महावीरं तिक्खुत्तो-जाव-नमंसित्ता एवं बयासी-- एवमेयं भंते !-जाव-से जहेयं तुन्भे वदह त्ति कटु जं नवरं----देवाणुप्पिया ! अभीयिकुमारं रज्जे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पध्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ॥ तए णं से उद्दायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुटु० समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेक्कं हत्थि दुरूहइ. दुरूहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ मियवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव वीतीभये नगरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
अभीयीकुमार नियपुत्तं हिच्चा केसीकुमारस्स रज्जाभिसेओ ५३७ तए णं तस्स उद्दायणस्स रण्णो अयमेयारूवे अज्झत्थिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु अभीयोकुमारे ममं एगे पुत्ते इठे कंते
पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविऊसविए हिययनंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तं जदि णं अहं अभीयीकुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पन्वयामि, तोणं अभीयीकुमारे रज्जे य रठे य बले वाहणे य कोसे य कोटागारे य पुरे य अंतेउरे य जणवए य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गिद्ध गढिए अज्झोववन्ने अणादीयं अणवदग्गं बीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियट्टिस्सइ, तं नो खलु मे सेयं अभीयीकुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए, सेयं खलु मे नियगं भाइणेज्जं केसि कुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव वीयोभये नगरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वीयोभयं नगरं मझमज्झणं० जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, आभिसेक्कं हत्थि ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थीओ पच्चोरुभइ,
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महावीरतित्थे उद्दायणरायकहाणयं
१३९
पच्चोरुभित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वीयोभयं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसियसमज्जिओवलितं-जाव-सुगंधिवरगंध गंधियंगंधवट्टिभयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ तए णं से उद्दायणे राया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! केसिस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं एवं रायाभिसेओ-जाव-परमाउं पालयाहि, इट्ठजणसंपरिवडे सिंधूसोवीरपामोक्खाणं सोलसण्हं जणवयाणं वीयोभयपा.मोक्खाणं तिणि तेसट्ठीणं नगरागरसयाणं महसेणपामोक्खाण दसण्हं राईणं, अण्णेसि च बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्टि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसरसेणावच्चं कारेमाणे, पालेमाणे विहराहि त्ति कटु जयजयसई पउंजंति ॥ तए णं से केसी कुमारे राया जाए--महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे-जाव-रज्जं पसासेमाणे विहरइ ।
उद्दायणस्स पव्वज्जा ५३८ तए णं से उद्दायणे राया केसि रायाणं आपुच्छइ ॥
तए णं से केसी राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ--एवं जहा जमालिस्स तहेव सब्भितरबाहिरियं तहेव-जाव-निक्खमणाभिसेयं उवट्ठति ।। तए णं से केसी राया अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिपाल-सद्धिसंपरिवुडे उद्दायणं रायं सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे निसीयावेति, निसीयावेत्ता अट्ठसएणं सोवण्णियाणं कलसाणं एवं जहा जमालिस्स -जाव-महया-महया निक्खमणाभिसेगणं अभिसिंचति, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं बद्धावेति, बद्धावेत्ता एवं वयासी-- भण सामी! कि देमो ? किं पयच्छामो ? किणा वा ते अट्ठो? तए णं से उद्दायणे राया केसि रायं एवं वयासी-- इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणियं, कासवगं च सद्दावियं---एवं जहा जमालिस्स, नवरंपउमावती अग्गकेसे पडिच्छइ पियविप्पयोगदूसहा ॥ तए णं से केसी राया दोच्चं पि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावेति, रयावेत्ता उद्दायणं रायं सेवा-पीतहि कलसेहिं ण्हावेति, पहावेत्ता सेसं जहा जमालिस्स-जाव-चउविहेणं अलंकारेणं अलंकारिए समाणे पडिपुग्णालंकारे सीहासणाओ अब्भु?ई, अब्भत्ता सीयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे सीयं दुरुहइ, दुहिता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सण्णिसग्णे, तहेव अम्मधाती, नवरं पउमावती हंसलक्खणं पडसाडगं गहाय सीयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणी सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता उद्दायणस्स रण्णो दाहिणे पासे भद्दासणवरंसि सण्णिसण्णा सेसं तं चेव-जाव-छत्तादीए तित्थगरातिसए पासइ, पासित्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं ठवेइ, पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरथिमं दिसोभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ॥ तए णं सा पउमावती देवी हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्न-मुत्तालिप्पगासाइं अंसूणि विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी उद्दायणं रायं एवं वयासी-- जइयव्वं सामी ! घडियव्वं सामी ! परक्कमियव्वं सामी ! अस्सि च णं अट्ठ नो पमादेयव्वं त्ति कटु केसी राया पउमावती य समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भुया तामेव दिसं पडिगया ॥ तए णं से उद्दायणे राया समयेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ सेसं जहा उसभदत्तस्स-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
अभीयीकुमारस्स उद्दायणं पइ वेरभावणा कूणियसमीवगमणं य तए णं तस्स अभीयोस्स कुमारस्स अण्णदा कदाइ पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए -जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु अहं उद्दायणस्स पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए, तए णं से उद्दायणे राया ममं अवहाय नियगं भाइणेज्जं केसि कुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए-इमेणं एयारूवेणं महया अप्पत्तिएणं मणोमाणसिएणं दुक्खणं अभिभूए समाणे अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए वीतीभयाओ नयराओ निग्गच्छइ,
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
निग्गच्छित्ता पुन्वाणुपुटिव चरमाणे गामाणुगाम दूइज्ज़माणे जेणेव चंपा नपरी, जेणेव कूणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कणियं रायं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तत्थ विणं से विउलभोगसमितिसमन्नागए यावि होत्था। तए णं से अभीयीकुमारे समणोवासए यावि होत्था--अभिगयजीवाजीवे-जाव-अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, उद्दायणम्मि रायरिसिम्मि समणुबद्धवेरे यावि होत्था ॥
५४०
अभीयीकुमारस्स असुरदेवेसु उप्पत्ती तेणं कालेण तेणं समएणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु चोट्ठि असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णता । तए णं से अभीयीकुमारे बहूई वासई समणोवासगपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छएइ, छेएत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु चोयट्टीए आयावाअसुरकुमारावाससयसहस्सेसु अण्णयरंसि आयावाअसुरकुमारावासंसि आयावाअसुरकुमारदेवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्थेगतियाणं आयावगाणं असुरकुमाराणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं अभीयोस्स वि देवस्स एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। से णं भंते! अभीयोदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं उन्वट्टित्ता कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति॥
भग० स० १३, उ०६ ।
४१. महावीरतित्थे जिणपालिय-जिणरक्खियणायं
चंपाए मायंदीसत्थवाहदारया ५४१ तेणं कालेणं तेणं समएणं चपा नामं नयरी। पुग्णभद्दे चेइए।
तत्थ णं मायंदी नाम सत्थवाहे परिवसइ-अड्ढे - जाव - अपरिभूए। तस्स णं भद्दा नाम भारिया। तोसे गं भद्दाए अत्तया दुवे सत्थवाहदारया होत्था, तं जहा--जिणपालिए य जिणरक्खिए य॥
जिणपालियजिणरक्खियाणं समुद्दजत्ता ५४२ तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूबे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था- "एवं खलु अम्हे लवण
समुदं पोयवहणणं एक्कारसवाराओ ओगाढा । सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि नियधरं हव्वमागया । तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! दुवालसमंपि लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए" त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी-- एवं खलु अम्हे अम्मयाओ! लवणसमुदं पोयवहणेणं एक्कारसवा राओ ओगाढा। सव्वत्थ वि य णं लद्धट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि नियघरं हव्वमागया। तं इच्छामो णं अम्मयाओ! तुब्र्भहिं अब्भणुण्णाया समाणा दुवालसमंपि लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए । तए णं ते मागंदिय-दारए अम्मापियरो एवं वयासी
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महावीरतित्थे जिणपालिय-जिणरक्खियणायं
१४१
"इमे भे जाया! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणिमोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्जे य अलाहि-जाव-आसत्तमाओ कुलवंसाओ पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाए । तं अणुहोह ताव जाया ! विपुले माणुस्सए इड्ढीसक्कारसमुदए । कि भे सपच्चवाएणं निरालंबणेणं लवणसमुद्दोत्तारेणं? एवं खल पुत्ता ! दुवालसमी जत्ता सोवसग्गा यावि भवइ । तं मा णं तुब्भे दुवे पुत्ता दुवालसमंपि लवण समुदं पोयवहणणं ओगाहेह। मा हु तुब्भं सरीरस्स वावत्ती भविस्तइ ॥" तए णं ते मागंदिय-दारगा अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी--"एवं खलु अम्हे अम्मयाओ ! एक्कारसवाराओ लवणसमुई पोयवहणेणं ओगाढा । सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कवकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि नियधरं हव्वमागया । तं सेयं खलु अम्हं अम्मवाओ! दुवालसं पि लवणसमुदं पोयवहणणं ओगाहित्तए"। तए णं ते मागंदिय-दारए अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य आधवित्तए वा पण्णवित्तए वा ताहे अकामा चेव एयम8 अणुमण्णित्था ।। तए णं ते मागंदिय दारणा अम्मापिऊहि अब्भणुण्णाया समाणा गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गण्हंति जहा अरहन्नगस्त -जाव-लवणसमुई बहूई जोयणसयाई ओगाढा ।
नावा-भंगो ५४३ तए णं तेसि मागंदिय-दारगाणं लवणसमदं अणेगाइं जोयणसयाई ओगाढाणं समाणाणं अणेगाई उप्पाइयसयाई पाउन्भुयाई, तं जहा--अकाले
गज्जिए अकाले विज्जुए अकाले थणियसद्दे कालियवाए-तत्थ-समट्ठिए ॥ तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी-आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जनाणी संखोभिज्जमाणी-संखोभिज्जमाणी सलिल-तिक्ख-वेहिं आयट्टिज्जनागी-आयट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तिदूसए तस्येव-तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणी विव धरणीयलाओ सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, ओवयमाणी विव गगणतलाओ भटुविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुल-वेग-वित्तासियया भुयगवरकन्नगा, धावमाणी विव महाजण-रसियसद्द-वित्तत्था ठाणभट्ठा आसकिसोरी, निगुंजमाणी विव गुरुजण-दिट्ठावराहा सुजणकुलकन्नगा, घुम्ममाणी विव बीचि-पहार-सय-तालिया, गलिय-लंबणा विव गगणतलाओ, रोयमाणी विव सलिलगंथिविप्पइरमाण-थोरंसुवाएहि नववहू उवरयभत्तुया, विलवमाणी विव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिद्या महापुरवरी, झायमाणी विव कवड-च्छोम-प्पओगजुत्ता जोगपरिवाइया, नीससमाणी विव महाकंतार-विणिग्गय-परिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणी विब तब-चरण-खीण-परिभोगा चवणकाले देववरवहू, संचुण्णियकट्ठ-कूवरा, भग्गमेढि-मोडिय-सहस्समाला, सूलाइय-वंकपरिमासा, फलहंतर-तडतडेंत-फुटुंत-संधिवियलंत-लोहकोलिया, सव्वंगवियंभिया, परिसडियरज्जुविसरंतसव्वगत्ता, आमगमल्लगभूया, अकयपुण्ण-जणमणोरहो विव चितिज्जमाणगुरुई हाहाक्कय-कण्णधारनाविय-वाणियगजण-कम्मकर-विलिविया नाणाविह-रयण-पणिय-संपुण्णा बहिं पुरिससएहि रोयमाणेहि-जाव-विलवमाहिं एगं महं अंतो जलगयं गिरिसिहरमासाइत्ता संभग्गकूवतोरणा मोडियज्झयदंडा वलयसयखंडिया करकरस्स तत्थेव विद्दवं उवगया । तए णं तीए नावाए भिज्जमाणीए ते बहवे पुरिसा विपुल-पणिय-भंडमायाए अंतोजलंमि निमज्जाविया यावि होत्था ॥ मागंदियदारया फलगखंडासादणेण रयणदीवे संपत्ता तए णं ते मागंदिय-दारगा छेया दक्खा पत्तट्टा कुसला मेहावी निउणसिप्पोवगया बहूसु पोयवहण-संपराएसु कयकरणा लद्धविजया अमूढ़ा अमूढहत्था एगं महं फलगखंडं आसादेति ॥ जंसि च णं पएसंसि से पोयवहणे विवण्णे तंसि च णं पएसंसि एगे महं रयणदीवे नाम दीवे होत्था--अणेगाइं जोयणाई आयामविक्खंभेणं अणेगाई जोयणाई परिक्खेवेणं नाणादुमसंड-मंडिउद्देसे सस्सिरीए पासाईए-जाव-पडिरूवे ।
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१४२
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो तस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायब.सए यावि होत्था--अब्भुग्गयमूसिय-पहसिए-जाव-सस्सिरीयरूवे पासाईए-जाव-पडिरूवे । तत्थ णं पासायव.सए रयणदीव-देवया नामं देवया परिवसइ--पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया। तस्स णं पासायवडेंसयस्स चउद्दिसि चत्तारि वणसंडा--किण्हा किण्होभासा ॥ तए ण ते माकंदिय-दारगा तेणं फलयखंडेणं ओवुज्झमाणा-ओवुज्झमाणा रयणदीवंतेणं संबूढा यावि होत्था । तए णं ते मागंदिय-दारगा थाहं लभंति, २ महत्तंतरं आससंति, २ फलगखंड विसज्जेंति, २ रयणदीवं उत्तरंति, २ फलाणं मग्गण-गवेसणं करेंति, २ फलाइं आहारेंति, २ नालिएराणं मग्गण-गवेसणं करेंति, २ नालिएराई फोडेंति, २ नालिएरतेल्लेणं अण्णमण्णस्स गायाई अब्भंगेति, २ पोक्खर-णीओ ओगाहेंति, २ जलमज्जणं करेंति, २ पोक्खरणीओ पच्चुत्तरंति, २ पुढविसिलावट्टयंसि निसीयंति, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासण-वरगया चंपं नार अम्मापिउआपुच्छणं च लवण-समुद्दोत्तारणं च कालियवायसम्मुच्छणं च पोयवहणवित्ति च फलयखंडस्सासायणं च रयण-दीवोत्तारं च अणुचितेमाणा-अचितेमाणा ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्यमुहा अट्टज्झाणोवगया झियायंति ॥
रयणदोवदेवयाए सद्धि भोगभुजणं ५४५ तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए ओहिणा आभोएइ, असि-फडग-वग्ग-हत्था सत्तद्वतलप्पमाणं उड्ढं वेहासं उप्पयइ,
उप्पइत्ता ताए उक्किट्टाए-जाव-देवगईए वीईवयमाणी-वीईवयमाणी जेणेव मागंदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरत्ता ते मागंदिय-दारए खर-फरुस-निठुरवयणेहिं एवं वयासी"हंभो मागंदिय-दारया ! अपत्थियपत्थिया! जइ णं तुब्भे मए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरह, तो भे अत्थि जोबियं; अहण्णं तुम्भे मए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणा नो विहरह तो भे इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेणं खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाई माउआहि उवसोहियाई तालफलाणि व सीसाइं एगते एडेमि ॥ तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयम सोच्चा निसम्म भीया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी''जण्णं देवाणुप्पिया वइस्ससि तस्स आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठिस्सामो ॥" तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए गेण्हइ, २ जेणेव पासायव.सए तेणेव उवागच्छइ, २ असुभपोग्गलावहारं करेइ, २ सुभपोग्गलपक्खेवं करेइ, तओ पच्छा तेहिं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ, कल्लाकल्लि च अमयफलाई उवणेइ ।।
रयणदीवदेवयाए लवणसमुद्दसच्छीकरणत्थं गमणं वणसंडे रमणादेसो य ५४६ तए णं सा रयणदीवदेवया सक्कवयण-संदेसेणं सूट्रिएणं लवणाहिवइणा लवण-समुद्दे तिसत्तखुतो अणुपरियट्ट्यब्वे ति जं किंचि तत्थ तणं वा
पत्तं वा कळं वा कयवरं वा असुइ पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय तिसत्तखुत्तो एगते एडेयव्वं ति कट्ट निउत्ता॥ तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए एवं वयासी-- "एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयण-संदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा तं चेव-जाव-निउत्ता । तं-जाव-अहं देवाणुप्पिया ! लवणसमुद्दे तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टिताजं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कळं वा कयवरं वा असुइ पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणियआहुणिय तिसत्तखुत्तो एगते एडेमि ताव तुब्भे इहेव पासायवडेंसए सुहंसुहेणं अभिरममाणा चिट्ठह । जइ णं तुब्भे एयंसि अंतरंसि उव्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो गं तुन्भे पुरथिमिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा--पाउसे य वासारत्ते य। गाहा-- तत्थ उ--कंदल-सिलिध-दंतो, निउर-वरपुष्फपीवरकरो । कुडयज्जुण-नीव-सुरभिदाणो, पाउसउऊ गयवरो साहीणो॥१॥ तत्थ य--सुरगोवमणि-विचित्तो, दद्दुरकुलरसिय-उज्झररवो । बरहिणवंद-परिणद्धसिहरो, वासारत्तउऊ पवओ साहोणो ॥२॥ तत्थ णं तुब्भे देवाणुप्पिया! बहूसु वावीसु य-जाव-सरसरपंतियासु य बहूसु आलीघरएसु य मालीघरएसु य-जाव-कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरिज्जाह । जइ णं तुब्भे तत्थ वि उब्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो गं तुब्भे उत्तरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा--सरदो य हेमंतो य ।
गाहा-- तत्थ उ--सण-सत्तिवाण-कउहो, नीलुप्पल-पउम-नलिण-सिंगो। सारस-चक्काय-रवियघोसो, सरयउऊ गोवई साहीणो ॥३॥ तत्थ य--सियकुंद-धवलजोण्हो, कुसुमिय-लोद्धवणसंड-मंडलतलो। तुसार-दगधार-पीवरकरो, हेमंतउऊ ससी सया साहीणो ॥४॥
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महावीरतित्थे जिणपालिय-जिणरक्खियणायं
१४३
तत्थ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बहूसु बावीसु य-जाव-सरसरपंतियासु य बहसु आलीघरएसु य मालीघरएसु य-जाव-कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरिज्जाह। जइ णं तुन्भे तत्थ वि उब्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो गं तुब्भे अवरिल्लं वगसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा तं जहा--वसंते य गिम्हे य । गाहा-- तत्थ उ--सहकार-चारुहारो, किसुय-कणियारामोगमउडो । ऊसियतिलग-बकुलायवत्तो, वसंतउऊ नरवई साहीणो ॥५॥ तत्थ य--पाडल-सिरीस-सलिलो, मल्लिया-वासंतिय-धवलवेलो। सोयलसुरभि-निल-मगरचरिओ, गिम्हउऊ सागरो साहीणो॥६॥ तत्थ बहूसु वावीसु य-जाव-सरसरपंतियासु य बहुसु आलोघरएसु य मालीघरएसु य-जाव-कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणाअभिरममाणा विहरेज्जाह।
रयणदीवदेवयाए मांगदीपुत्ताणं दट्टीविससप्पसमीवे गमणनिसेहो ५४७ जइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया! तत्थ वि उब्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तओ तुब्भे जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छेज्जाह
ममं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठज्जाह, मा गं तुम्भे दक्खिणिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं महं एगे उग्गविसे चंडविसे घोरविसे महाविसे अइकाए महाकाए जहा तेपनिसग्गेमसि-महिस-मसा-कालए नयणविसरोसपुग्णे अंजणपुंज-नियरप्पगासे रत्तच्छे जमल-जुयल-चंचल चलंतजोहे धरणितल-णिभूए उक्कड-फुड-कुडिल-जडुल-कक्खड-वियड-फडाडोव-करणदच्छे लोहागर-धम्ममाण-धमधमेतघोसे अणागलिय चंड-तिव्वरोसे समुहिय-तुरिय-चवलं धमधमंते दिट्ठीविसे सप्पे परिवसइ । मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सई"-ते मानदिय-दारए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदति, बदित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता ताए उक्किट्ठाए देवगईए लवणसमुई तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टेउं पयत्ता यावि होत्था ॥
मागंदियपुत्ताणं वणसंडगमणं ५४८ तए णं ते मागंदिय-दारया तओ महत्तंतरल्स पासायवडेंसए सई वा रइंवा धिई वा अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयासी--
एवं खलु देवाणुप्पिया! रयणदीवदेवया अम्हे एवं वयासी-- एवं खलु अहं सक्कवयण-संदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा निउत्ता-जाव-मा णं तुम्भं सरीरगरस वावत्ती भविस्सइ। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! पुरथिमिल्लं वणसंडं गमित्तए-अण्णमण्णस्स एयम पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति, २ तत्थ णं वावीस य-जाव-आलीघरएसु य-जाव-सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति ॥ तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा रई व धिई वा अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति, २ तत्थ णं वावीसु य-जाव-आलीघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति ॥ तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा रइं वा धिई वा अलभमाणा जेणेव पच्चस्थिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति, २ तत्थ णं वावीसु य-जाव-आलीघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति ॥
५४९
मागंदियपुत्ताणं देवयानिसिद्धट्ठाणे गमणं तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सइंवा रइंवा धिई वा अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयासी-- एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे रयणदीवदेवया एवं बयासीएवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयण-संदेसेणं सुटिएणं लवणाहिवइणा निउत्ता-जाव-मा णं तुम्भं सरीरगस्स वावत्ती भबिस्सइ। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं । सेयं खलु अम्हं दक्खिणिल्लं वणसंडं गमित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयम४ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तओ णं गंधे निद्धाइ, से जहानामए--अहिमडे इ वा-जाव-अणिटुतराए चेव ।।
वणसंडे देवयाकयसूलाइयपुरिसदसणं तए णं ते मागंदिय-दारगा तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहि-सएहि उत्तरिज्जेहि आसाइं पिहेंति, पिहेत्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव उवागया। तत्थ णं महं एर्ग आघयणं पासंति-अट्ठियरासि-सय-संकुलं भीम-दरिसणिज्ज। एगं च तत्थ सूलाइयं पुरिसं कलुणाई कट्ठाई विस्सराई कूबमाणं पासंति, भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया जेणेव से सूलाइए पुरिसे तेणेव उवागच्छंति
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१४४
महाणुओगे दुतीय खंधो
उदारता से सुलाइ पुरिस एवं बसी-एस देवाशुपिया ! करसाघव ? तुमंच के ? कम या दहं हयम गए? वा इमेरूवं आवई पाविए ?
५५१
लए सेलाइए पुरिसे से मार्गवियर एवं बयासी एस णं देवाश्यिय ! श्वणदीवदेव्याए आधपणे अहं यं देवाशुप्पिया ! जंबूहवाओ] दवाओं भारहओ वासाओकाद आसवाभिए विपुलं पणियमंड मायाए पोपवहणं समु ओधाए एवं अहं पोषण-विवसीए बिट्ट-भंडारे एवं फलगवंडे आताएमि तए अहं ओबुज्झमाणे ओवनमाणे रणदीवंसेन संवृढे ए सारयणदीवदेवया ममं ओहिणा पासइ, पासित्ता ममं गेण्हइ, गेण्हित्ता मए सद्धि विजलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ । तए णं सा रणदीव-देव अन्यया कयाइ अहालसस अवराहंसि परिकृविया समाणी मर्म एवायं आवई पावेद तं न नजइ णं देवापिः ! तुब्भं पि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्स ?
।
मायंदियदारगेहि नित्थारपुच्छा
तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सूलाइगस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म बलियतरं भीया तत्था तसिया उध्विग्गा संजायभया सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी-
"कहणं देवाणुपिया ! अम्हे रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थि नित्थरेज्जामो ?"
तए णं से सुलाइए पुरिसे ते मागंदिय दारगे एवं वयासी --
"एस णं देवाणुप्पिया ! पुरत्थिमिल्ले वणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नाम आसरूवधारी जक्खे परिवसइ । तए णं से सेलए जचाउसमद्धिपृष्णमासिनी आगयसमए पत्तसमए महया मया स एवं दकं तारयामि ? पालयामि ? तं देवाप्पिया ! पुरथिमिल्लं वयसं सेलगस्स क्स महरिहं पुष्करचणियं करेह, करेला जन्नुपायवडिया पंजलिउडा विणणं पज्जुवासमाणा विहरह । जाहे णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वएज्जाकं तारयामि ? कं पालयामि ? ताहे एवं वदह--अम्हे तारवाहि अम्हे पालपाहि सेलए में जले परं रणदीवदेवयाए हत्याओ साहत्य नित्याज्या अहा भेन याणामि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ? "
मादिय दारएहि सेलगजखजुवासणा
५५२
स ते भादिवारणा तरत लाइयर पुरिसरस अंतिए एयम सोच्चा निसम्म सिन्धं चंडवलं तुरियं वेदयं जेणेव पुरस्थि मिले पोक्यरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागन्छित्ता पोक्खरिणि ओगार्हति ओवाला जलमज्जगं करेति, करेला जाई तत्थ उप्पलाई जाव-ताई गेोहंति, गेव्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेंति, करेला महहिं पुष्पचगि कति करेता जन्नुपायवडिया मुसमाना नमसमाना पजुवाति ।।
तए णं से सेलए जक्खे आगय समए पत्तसमए एवं व्यासी-कं तारयामि ? कं पालयामि ?
तए णं ते मागंदिय-दारगा उट्ठाए उट्ठति, उट्ठता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं व्यासी -- "अम्हे तारयाहि अम्हे पालपाहि ।।"
सेलगजवण रक्खणोवाकणं
५५२ लए गं से सेलाए जव ते मार्गदिय दारए एवं क्यासी-
"एवं खलु देवाप्पिया! तुमं मए सदि लवणसमुदं मन्दमन्दणं बीईयमाणाणं सा रयणदीवदेवया पाया पंडा रहा खुद्दा साहसिया बहूहि रहिय महिय अनुलोमेहि प पडिलोमेहि य लिंगा रेहिय कहि उबल उचल करेहि तं व देवापिया ! रयणदीवदेवया ए एयन आढाह वा परियागह वा अवयवह या तो मे यहं पट्टाओ विषामि। अह णं मदोवाए एट्ट नो आवाहनो परिवाह तो अवयवह तो में रमणदीवदेवपाए हत्याओ साहत्य नित्यामि ।। तए णं ते मार्गदिय दारंगा सेलगं जक्खं एवं वयासी--जं णं देवाणुप्पिया वइस्संति तस्स णं आणा उववाय वयण- निद्दे से चिट्ठिस्सामो । तए से सेलए जनले उत्तरपुरथिनं दिसीमार्ग अवक्कमद, अवरमिता देउव्वियसमुन्याएणं समोहण समोहणिता संग्रेनाई जाडसर, दोस्तं पिलपिन्समुग्धागं समोहन, समोहणिता एवं महं आसवं विश्व विविता मागंदिव दारए एवं वयासी--हं भो मागंदिय-दारया ! आरुहह णं देवाणुप्पिया ! मम पिट्ठसि ॥
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महावीरतित्थे जिणपालिय-जिणरक्खियणायं
१४५
. मागंदियदारगाणं सेलगपट्ठारोहणं ५५४ तए णं ते मागंदिय-दारया हट्ट सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करेत्ता सेलगस्त पिटु दुरूढा ॥
तए णं से सेलए ते मांगदिय-दारए पिट्ठ दुहढे जाणिता सत्तटुतलप्पमाणमेत्ताई उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए दिवाए देवगईए लवणसमुई मज्झमज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव चंपा नयरी तेगेव पहारेत्थ गमणाए।
रयणदीवदेवयाकया पडिलोमा उवसग्गा ५५५ तए णं सा रयणदीवदेवया लवणसमई तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टइ, जं तत्थ तणं वा-जाव-एगते एडेइ, जेणेव पासायव.सए तेणेव उवा
गच्छइ, उवागच्छित्ता ते मागंदिय-दारए पासायव.सए अपासमाणी जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छइ-जाव-सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता तेसि मागंदिय-दारगाणं कत्थइ सुई वा खुई वा पत्ति वा अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले, एवं चेव पच्चथिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहि पउंजइ, ते मागंदिय-दारए सेलएणं सद्धि लवणसमुई मज्झमझेणं वोईवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्तटुतलप्पमाणमेत्ताई उडढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए देवगईए जेणेव मार्गदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं बयासी-- "हंभो मागंदिय-दारगा ! अपत्थियपत्थया ! किणं तुब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धि लवणसमुई मज्झंमज्झेणं बीईवयमाणा? तं एवमवि गए जइ णं तुन्भे ममं अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं । अह णं नावयक्खह तो भे इमेणं नीलुप्पलगवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेणं खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाई माउआहि अवसोहियाई तालफलाणि व सोसाई एगंते एडेमि"। तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म अभीया अतत्या अणुब्बिग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणदीवदेवयाए एयम? नो आदति नो परियाणंति नो अवयक्खंति अणाढामाणा अपरियाणमाणा अणवयक्खमाणा सेलएणं जक्खेणं सद्धि लबणसमुदं मज्झमज्झेणं वीईवयंति ॥
रयणदीवदेवयाकया अणकला उवसग्गा ५५६ तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए जाहे नो संचाएइ बहूहिं पडिलोमेहि उवसरहिं चालित्तए वा लोभित्तए वा खोभित्तए वा
विपरिणामित्तए वा, ताहे महुरेहि सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्था--हंभो मागंदिय-दारगा! जइ णं तुर्भेहि देवाणुप्पिया! मए सद्धि हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिंडियाणि य मोहियाणि य ताहे णं तुन्भे सब्वाई अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धि लवणसमुहूं मझमझेणं वीईवयह ! ॥ तए णं सा रयणदीवदेवया जिणरक्खियस्स मणं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता एवं वयासी-- "निच्चं पि य णं अहं जिणपालियस्स अणिट्टा अर्कता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा। निच्चं मम जिणपालिए अणि? अकते अप्पिए अमणण्णे अमणामे। निच्चं पि य णं अहं जिणरक्खियस्स इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा। निच्चं पि य णं ममं जिणरक्खिए इ8 कंते पिए मणुण्णे मणामे। जइ णं ममं जिणपालिए रोयमाणि कंदमाणि सोयमाणि तिप्पमाणि विलवमाणि नावयक्खइ, किण्णं तुमं पि जिणरक्खिया! मम रोयमाणि कंदमाणि सोयमाणि तिप्पमाणि विलवमाणि नावयक्खसि ?
तए णं-सा पवररयणदीवस्स देवया ओहिणा उ जिणरक्खियस्स मणं नाऊण उरि मागंदियदारगाणं दोण्हं पि दोसकलिया सललिय णाणाविहचुण्णवासमीसं (वासियं) दिव्वं घाणमणनिव्वुइकरं सव्वोउयसुरभिकुसुमट्टि पमुंचमाणी णाणामणिकणगरयणघंटिखिखिणिणेऊरमेहलभूसणरवेणं दिसाओ विदिसाओ पूरयंती, वयणमिणं बेति सा सकलुसा-- "होल! वसुल ! गोल ! णाह ! दइत ! पिय ! रमण ! कंत ! सामिय ! निग्घिण ! णित्थक्क ! छिण्ण ! निक्किय ! अकयण्णुय ! सिढिलभाव ! निल्लज्ज ! लुक्ख ! अकलुण! जिणरक्खिय ! अझं हिययरक्खगा!, "ण हु जुज्जसि एक्कियं अणाहं अबंधवं तुज्म चलणओवायकारियं उझिउं अहण्णं, "गुणसंकर ! अहं तुमे विणा ण समत्था वि जीविउ खणं पि, इमस्स उ अणेग झस-मगर-विविधसावयसयाउलधरस्स रयणागरस्स मज्झे अप्पाणं वहेमि तुझ पुरओ,
१००१६
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૧૪૬
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
"एहि णियत्ताहि, जइ सि कुविओ खमाहि एक्कावराहं मे, "तुज्झ य विगयघणविमलससिमंडलागारसस्सिरीयं सारयनय कमलकुमदकुवलयविमलदलनिकरसरिसनिभं नयणं वयणं पिवासागयाए सद्धा में पेच्छिउं जे, अवलोएहि ता इओ ममं णाह! जा ते पेच्छामि वयणकमलं" एवं सप्पणयसरलमहराइं पुणो पुणो कलुणाई क्यणाई जंपमाणी सा पावा मग्गओ समण्णेइ पावहियया।
जिणरक्खियविवत्ती ५५७ तए णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुहमणहरेणं तेहि य सप्पणय-सरल-महुर-भणिएहि संजाय-विउण-राए रयण
दीवस्स देवयाए तीसे सुंदरथण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्ण-रूव-जोवण्णसिरिं च दिव्वं सरभस-उवगहियाई बिब्बोय-विलसियाणि य विहसिय-सकडक्खदिदि-निस्ससिय-मलिय-उवललिय-थिय-गमण-पणयखिज्जिय-पसाइयाणि य सरमाणे रागमोहियमती अवसे कम्मवसगए अवयक्खइ मग्गतो सविलियं ॥ तए णं जिणरक्खियं समुप्पण्णकलुणभावं मच्चु-गलत्थल्ल-णोल्लियमई अवयक्वंतं तहेव जवखे उ सेलए जाणिऊण सणियं-सणियं उविहद नियगपिट्ठाहि विगयसत्थ ।। तए णं सा रयणदीवदेवया निस्संसा कलुणं जिणरक्खियं सकलसा सेलगपिट्टाहि ओवयंत--'दास ! मओ' सि त्ति जंपमाणी अपत्तं सागरसलिलं गेण्हिय बाहाहि आरसंतं, उड़दं उम्विहइ अंबरतले, ओवयमाणं च मंडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलप्पल-गवलगलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण असिवरेण खंडाखंडि करेइ, कंरेत्ता तत्थेव विलवमाणं तस्स य सरस-वहियस्स घेत्तूणं अंगमंगाई सरुहिराई उक्खित्तबलि चउद्दिसि करेइ, सा पंजली पहिट्ठा ॥ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सए कामभोगे आसायइ पत्थयइ पोहेइ अभिलस्सइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य होलणिज्जे-जाव-चाउरतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो अणपरियट्रिस्सइ--जहा व से जिणरक्खिए। गाहा
छलिओ अवयक्खंतो, निरावयक्खो गओ अबिग्घेणं । तम्हा पवयणसारे, निरावयखेण भवियव्वं ॥१॥ भोगे अवयक्खंता, पडंति संसारसागरे घोरे। भोहिं निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं ॥२॥
जिणपालियस्स चंपागमणं ५५८ तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छइ, बहूहि अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य खरएहि य महुरेहि य सिंगारेहि य
कलुणेहि य उवसग्गेहि जाहे नो संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।। तए णं से सेलए जक्खे जिणपालिएण सद्धि लवणसमुई मझमझेणं बीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चंपाए नयरीए अग्गुज्जाणंसि जिणपालियं पढ़ाओ ओयारेइ, ओयारेता एवं वयासी--एस णं देवाणुप्पिया! चंपा नयरी दीसइ त्ति कटु जिणपालियं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ तए णं से जिणपालिए चंपं नयरि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे तिप्पमाणे विलबमाणे जिणरक्खिय-वात्ति निवेदेइ । तए णं जिणपालिए अम्मापियरो मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेण स रोयमाणा कंदमाणा सोयमाणा तिप्पमाणा विलवमाणा बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेंति, करेता कालेणं विगयसोया जाया । तए णं जिणपालियं अण्णया कयाइ सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी--कहण्णं पुत्ता! जिणरक्खिए कालगए ? तए णं से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोतारं च कालियवाय-संमुच्छणं च पोयवहण-वित्तिं च फलहखंड-आसायणं च रयणदीवुत्तारं च रयणदीवदेवयागिण्हणं च भोगविभूइंच रयणदीवदेवया-आघयणं च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्ख-आरुहणं च रयणदीवदेवया-उवसग्गं च जिणरक्खियवात्तिं च लवणसमुद्दउत्तरणं च चंपागमणं च सेलगजक्खआपुच्छणं च जहाभूयमवितहमसंदिद्धं परिकहेइ ॥ तए णं से जिणपालिए अप्पसोगे-जाए-जाव-विपुलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ॥
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महावीरतित्थे कालसधेसियपुते
१४७
५५९
जिणपालियस्स पव्वज्जा तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समौसढे । जिणपालिए धम्म सोच्चा पब्वइए । एगारसंगवी। मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, टैि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववरणे । दो सागरोवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ -जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥ एवामेव समणाउसो ! जो अम्ह निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पम्वइए समाणे माणस्सए कामभोगे नो पुणरवि आसायइ पत्थयइ पोहेइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समगाणं बहूणं समणोणं बहूणं सावयाणं बहूणं साविधाण य अच्चणिज्जे-जाव-चाउरतं संसारकतारं बोईवइस्सइ--जहा व से जिणपालिए॥'
णायाधम्माकहाओ सु० १ अ-९ ।
४२. महावीरतित्थे कालसवेसियपुत्ते
कालासवेसियस्स चाउज्जामधम्माओ पंचमहव्वइयधम्मउवसंपज्जणा ५६० तए णं ते थे। भगवंतो कालासबेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी--सहाहि अज्जो ! पत्तियाहि अज्जो ! रोएहि अज्जो! से
जहेयं अम्हे वयामो॥ तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते बंदइ नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वदासी-इच्छामि गं भंते ! तुम्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंच-महब्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जिताणं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ॥ तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवते वंदइ नसइ, वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति । तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता जस्सट्टाए कोरइ नग्गभाव मुंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणोवाहणयं भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोओ बंभचेरवासो परघरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहियासिज्जति, तमट्ठ आराहेइ, आराहेत्ता चरमेहि उस्सास-नीसासेहि सिद्ध बुद्धे भुक्के परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
५६१
भग० श०१, उ०९।
१. वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा । जह लाहत्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा ।।१।। जह तेहि भीएहि, दिट्ठो आघायमंडले पुरिसो । संसारदुक्खभीया, पासंति तहेव धम्मकहं ।।२।। जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तत्तो चिय नित्थारो, सेलगजक्खाउ नन्नतो ।।३।। तह धम्मकही भव्वाण, साहए दिट्ठअविरइसहावा । हेउभूया, विसया विरयंति जीवाणं ।।४।। सत्ताण दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिदपण्णत्तं । आणंदरूब-निव्वाण-साहणं तह य दंसेइ ।।५।। जह तेसि तरियब्वो, रुहसमदो तहेव संसारो । जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थ ।।६।। जह सेलगपट्ठाओ, भट्ठो देवीए मोहियमई उ । सावय-सहस्सपउरम्मि, सायरे पाविओ निहणं ।।७।। तह अविरईइ नडिओ, चरणचुओ दुक्खसावयाइण्णो। निवडइ अगाह-संसार-सागरं शंतमवि कालं ।।८।। जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्ठाण-जीवियसुहाई । तह चरणठिओ साहू, अक्खोहो जाइ निम्बाणं ।।९।।
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४३. महावीरतित्थे उदए पेढालपुत्ते
नालंदाए लेवे समणोवासए ५६२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णाम णयरे होत्था--रिथिमियसमिद्धे, वण्णओ-जाव-पडिरूवे ॥
तस्स णं रायगिहस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, एत्थ णं णालंदा णामं बाहिरिया होत्था--अणेगभवणसयसण्णिविट्ठा पासादोया-जाव-पडिरूवा ॥ तत्थ णं णालंदाए बाहिरियाए लेवे णामं गाहावई होत्था--अड्ढे-जाव-अपरिभूए यावि होत्था ॥ से णं लेवे णाम गाहावई समणोवासए यावि होत्था--अभिगयजीवाजीवे-जाव-णिग्गंथिए पावयणे हिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लद्धट्ठ गहिय? पुच्छ्यि ? विणिच्छियट्ठ अभिगयट्ठ अद्धिमिजपेम्माणुरागरत्ते “अयमाउसो ! णिग्गंथे पावयणे अट्ठ अयं परम? सेसे अण?" ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउर-परघरदारप्पवेसे चाउद्दसट्टमुद्दिट्टपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेण वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसहभेसज्जेणं पीढ-फलगसेज्जासंथारएणं पडिलाभमाणे बहूहि सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणे विहरइ॥
लेवस्स उदगसालाए समीवे गोयमविहारो ५६३ तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स णालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरथिमे दिसिभाए, एत्थ णं सेसदविया णाम उदगसाला होत्था--अणेग
खंभसयसण्णिविट्ठा पासादीया-जाव-पडिरूवा ॥ तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरथिमे दिसिभाए, एत्थ णं हत्थिजामे णाम वणसंडे होत्था--किण्हे०, वण्णओ वणसंडस्स ॥ तस्सि च णं गिहपदेसंसि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे आरामंसि ।।
उदगपेढालपुत्तस्स पण्हत्थं गोयमससीवे आगमणं अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे णियंठे मेदज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयाणी--"आउसंतो! गोयमा ! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियब्वे, तं च मे आउसो ! अहासुयं अहादरिसियमेव वियागरेहि ॥" सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी--"अवियाइ आउसो! सोच्चा णिसम्म जाणिस्सामो॥"
उदगपेढालपुत्तस्स समणोवासगपच्चक्खाणविसए पोहो ५६५ सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी--
"आउसंतो! गोयमा! अत्थि खल कम्मारपुत्तिया णाम समणा णिग्गंथा तुम्हागं पवयणं पवयमाणा गाहावई समणोवासगं उवसंपण्णं एवं पच्चक्खाति--'णण्णत्थ अभिजोगणं, गाहावइ-चोरग्गहण-विमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहि णिहाय दंडं ।' एवं ण्हं पच्चक्खंताणं दुप्पच्चक्खायं भवइ । एवं ण्हं पच्चक्खावेमाणाणं दुपच्चक्खावियं भवइ । एवं ते परं पच्चवखावेमाणा अइयरंति सयं पइण्णं । कस्स णं तं हे। संसारिया खलु पाणा-- थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति । तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरकायाओ बिप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जति ।
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महावीरतित्थे उदए पेढालपुत्ते
१४९
तेसि च णं थावरकासि उववण्णाणं ठाणमेयं घत्तं । एवं ण्हं पच्चक्खताणं सुपच्चक्खायं भवइ। एवं हं पच्चक्खावेमाणाणं सुपच्चक्खावियं भवइ । एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा णाइयरंति सयं पइण्णं--'णण्णत्थ अभिजोगणं, गाहावइ-चोरग्गहण-विमोक्खणयाए तसभूएहि पाहि णिहाय दंडं।' एवं सइ भासाए परिकम्मे विज्जमाणे जे ते कोहा वा लोहा वा परं पच्चक्खावैति । अयं पि णो उवएसे कि णो णेयाउए भवइ? अवि याइं आउसो! गोयमा! तुब्भं पि एयं एवं रोय?"
भगवओ गोयमस्स उत्तरं ५६६ सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी--"आउसंतो! उदगा ! णो खलु अम्हं एयं एवं रोयइ-जे ते समणा वा माहणा
वा एवमाइक्खंति, एवं भासेंति, एवं पण्णवेति, एवं परूवेति णो खलु ते समणा वा णिग्गंथा वा भासं भासंति, अणुतावियं खलु ते भासं भासंति, अब्भाइक्खंति खलु ते समणे समणोवासए वा। जेहिं वि अण्णेहि पाणेहि-जाव-सत्तेहि संजमयंति ताणि वि ते अन्भाइक्खंति। कस्स गं तं हे? संसारिया खलु पाणा-- तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकार्यसि उववज्जति । तेसि च णं तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अधत्तं ॥"
उदगपेढालपुत्तस्स पडिपण्हो ५६७ सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी--"कयरे खलु आउसंतो! गोयमा ! तुब्भे वयह तसपाणा तसा आउ अण्णहा ?"
'तसभूया पाणा तसा तसा पाणा तसे' त्ति एकट्रइति गोयमवयणं ५६८ सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासो--"आउसंतो ! उदगा ! जे तुब्भे वयह तसभूया पाणा तसा ते वयं वदामो
तसा पाणा तसा । जे वयं वयामो तसा पाणा तसा ते तुब्भे वदह तसभूया पाणा तसा । एए संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा। किमाउसो! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ--तसभूया पाणा तसा? इमे भे दुप्पणीयतराए भवइ--तसा पाणा तसा? तओ एगमाउसो! पलिकोसह, एक्कं अभिणंदह । अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । भगवं च णं उदाहु--संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसि च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ--णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अग.राओ अणगारियं पव्वइत्तए । वयं णं अणुपुटवणं गोत्तस्स लिस्सिस्सामो । ते एवं संखसाति-"णण्णत्थ अभिजोगेणं गाहावइ-चोरगहण-विमोक्खणयाए तसेहि पाहि णिहाय दंडं" । तं पि तेसिं कुसलमेव भवइ ।। तसा वि वुच्चंति तसा तससंभारकडेणं कम्मुणा, णामं च णं अब्भुवगयं भवइ । तसाउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, तसकायट्ठिइया ते ते तओ आउयं विप्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहित्ता थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि बुच्चंति थावरा थावरसंभारकडेणं कम्मणा, णामं च णं अब्भुतगयं भवइ । थावराउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, थावरकायट्टिइया ते तओ आउयं विप्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहित्ता भुज्जो पारलोइयत्ताए पञ्चायति । ते पाणा वि बुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया ।।
उदगपेढालपुत्तस्स सपक्ख-ठावणा सवायं उदए पेढालपुत्ते भयवं गोयम एवं वयासी-'आउसंतो! गोयमा ! णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स 'एगपाणाए वि दंडे णिक्खिते। कस्स णं तं हेङ ? संसारिया खलु पाणा-- थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति ।
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१५०
धम्मकहाणुओगे दुतीयो बंधी
तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकार्यसि उववज्जति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सब्वे थावरकायंसि उववज्जति । तेसि च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्तं ॥'
५७०
भगवओ गोयमस्स पच्चुत्तरं सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी--'णो खलु आउसो! अस्माक वत्तब्वएणं तुभं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहि-जाव-सव्वसत्तेहि दंडे णिक्खित्ते भवइ । कस्स णं तं हेउं? संसारिया खलु पाणा-- तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति । तेसि च णं तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अघत्तं । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरद्विइया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवारागरस सुपच्चक्खायं भवद । ते अप्पयरगा पाणा हि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जंणं तुन्ने वा अण्णो वा एवं वयह--'णत्थि णं से केइ परियाए जंसि जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खितें'। अयं पि भे उदएसे णो णेयाउए भवइ ।
५७१
समणदिळंतो भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छ्यिव्वा--आउसंतो! णियंठा ! इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति । तेसि च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ--जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसि णं आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते । जे इमे अगारमावसंति, एएसि णं आमरणंताए दंडे णो णिक्खित्ते । केई च णं समणे-जाव-वासाई चउपंचमाइं छहसमाई अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता अगारं वएज्जा? हंता वएज्जा । तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ ? णो इण? समट्ठ। एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहि पाहि दंडे णिक्खिते, थावरेहि पाणेहि दंडे णो णिक्खित्ते । तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे णो भग्गे भवइ । सेवमायाणह णियंठा ! सेवमायाणियव्वं ।।
५७२
भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा--आउसंतो! णियंठा ! इह खलु गाहावइणो वा गाहावइपुत्ता वा तहप्पगारेहि कुलेहि आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा ? हंता उवसंकमज्जा । तेसि च णं तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे ? हंता आइक्खियब्वे । कि ते तहप्पगारं धम्म सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा--इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं अणुतरं केवलियं पडिपुण्ण णेयाउयं संसुवं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं णिज्जाणमग्गं णिव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं । एत्थ ठिया जीवा सिझंति बुमति मुच्चंति परिणिव्वंति सब्वदुक्खाणमंतं करेंति । इमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसीयामो तहा तुयट्टामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्ठ मो तहा उट्ठाए उदृत्ता पाणाणं-जाव-सत्ताणं संजमेणं संजमामो ति वएज्जा? हंता वएज्जा । कि ते तहप्पगारा कप्पंति पवावेत्तए ? हंता कप्पति ।
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महावीरतित्थे उदय पेढालपुत्ते
किं ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावेत्तए ? हंता कप्पंति ।
कि ते हत्यारा कति
वेलए? हंता कति
किं ते तहप्पगारा कंप्पंति उबट्टावेत्तए ? हंता कप्पंति ।
सेसिणं सहयगाराणं सव्याहि-जाते ? हंता
।
लेणं एयाये विहारेणं विहरमाणा - जाव- वासाई चपंचमाई छट्समाई वा अप्यवरो वा भुज्जवरो वा देसंजिता अगारं वएज्जा ? हंता वएज्जा ।
तरसणं सव्वपाणेहिं सव्वसत्तेह दंडे णिक्खिते ? णो इणट्ठे समट्ठे ।
1
से जे से जीवे जस्स परेणं सव्वपाणेहि-जाब-सम्बसह बंडे णो निधि से जे से जीये जस्त आरेणं सव्वपापह जायसव सर्लाहि दंडे णो निक्ले से जे से जोबे जस्स दाणि सव्वपाणेहि जाय सव्वतरोह बंडे जो णिक्खिते भवइ परेण अस्संजए, आणं जए, वाणिजए। अस्संजयत्स णं सव्वपाहि जाय-सयसहि यंणो चिक्खिसे भय सेवमायाह नियंहा णियः ॥
सेवमाया
५७३ भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छ्यिव्वा -- आउसंतो ! नियंठा ! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ वा अण्णयरे हितो तित्यतहत आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा ? हंता उवसंक मेज्जा । किं तेसि तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे ? हंता आइक्खियव्वे ।
किं ते तहपगारं धम्मं सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा -- इणमेव णिग्गंथ पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लक तणं सिद्धिमतियां पिज्जाणमन गिल्वाणम अवितहं असंदिद्धं सबक्यप्पणम । एत्य दिया जोवा सिति बुज्ांति मुच्वंति परिणिति सव्वाणमंत करेति । इमागाए तहा गच्छामो सहा विद्वामो तहा जिसीयामो तहा तुपट्टामो लहा मुंजामो तहा भातामो तहा अमो तहा उडाए उता पाणानं भूषाणं जीवाणं सताणं संगमेणं संजमाम लिया? हंता बना।
किं ते तहप्पगारा कप्पंति पव्वावेत्तए ? हंता कप्पंति ।
कि ते तहणणारा पंति मुंडावेत ? हंता कति
कि ते तयवारा कति सिक्खावेत ? हंता कयंति।
कि ते हयगारा कांति उद्वावेत ? हंताक
किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए ? हंता कप्पंति ।
१५१
ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा - जाव- वासाई चउपंचमाई छद्दसमाई वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जिता अगारं वएज्जा ? हंता वएज्जा ।
ते णं तपगारा कप्पंति सभुंजित्तए ? णो इण सम ।
सेजेसे जीने परे मो कम्प्यंति संभुंजितए ।
से जे से जीवे जे आरेणं कप्पंति संभुंजित्तए ।
से जे से जीने जे इमाणि णो कप्पंति संभुजिए। परेणं अस्सम, आरेणं समणे, इवाणि अस्तमणे असमगं सद्धि णो कप्पंति समा निमार्ण संजित सेवमावाह नियंा सेवमायाणिपथ्यं ।।
पच्चक्खाणस्स विसय उवदंसणं
५७४ भगवं च णं उदाहु-- नियंठा खलु पुच्छियव्वा -- आउसंतो ! णियंठा ! इह खलु संतेगइया समणोवासगा भवंति । तेसि च णं एवं वृत्तपुखं भवइगो खलु वयं संचाएमो मुंडा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए वयं णं चाउमुद्दिष्णमासिनी पडिपुष् पोसहं सम्मं अनुपालेमाणा विहरिस्सामो धूलगं पाणाइवावं पच्चरखा इस्लामो-जाद पूल परियहं पच्चखाइस्ता मो इच्छापरिमाणं करिस्माभो दुविहं तिविहेणं । मा खलु ममट्ठाए किंचि वि करेह वा कारवेह वा तत्थ वि पच्चक्खाइ सामो । ते णं अभोच्चा अपिच्चा असिइत्ता आसंदी पेढयाओ पच्चोरुहित्ता ते तह कालगया कि वत्तव्वं सिया ?
सम्मं कालगय त्ति वत्तध्वं सिया ।
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१५२
धम्मागे दुतीयो वी
ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि बुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरद्विइया । ते बहुतरगा पाणा जहिं समणोवासगस्स सुपच्चखायं भवइ । ते अप्परगा पाणा जहि समणोबासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जं णं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोबासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उबएसे णो याउए भवइ ।।
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५७५ भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा -- आउसंतो ! नियंठा ! इह खलु संतेगइया समणोवासगा भवंति । तेसि च णं एवं वुत्तपुष्यं भवदो वर्ष संचाएको मुंडा भविता अवारा अगगारियं पचाएमो साउनमा सिनी पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा विहरित्तए । वयं णं अपच्छिममा रणंतियसंलेहण झूसणाझूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया कालं traiखमाणा विहरिस्ताम । सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खाइस्सामो, एवं सव्वं मुसावायं सव्वं अदिण्णादाणं सव्वं मेहुणं सव्वं परिग्गहं पचखाइस्समो तिविहं तिविमा खलु ममा किचि वि करेह या कारवेह था करते समजाणेह वा तत्व वि पच्चखाइस्सामा । ते णं अभोच्चा अपिच्चा असिणाइत्ता आसंदीपेढियाओ पच्चोरुहित्ता ते तह कालगया कि वत्तव्वं सिया ? सम्मं कालगय त्ति वत्तव्वं सिया ।
ते पाणा वि बुच्चंति, ते तसा वि बुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्त एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो याउए भवइ ||
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५७६ मगच उदाहुया मस्ता भवंति तं जहा- महिन्छा महारंभा महापरिवहा अहम्मिया-जाय-अधमेण चैव दिति कप्पेमाणा विहरति, 'हण' 'छिंद' 'भिद' विगतगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण माया जियडि-कूड कवड- साइपओला दुस्सीला दुयया पडिवागंदा असा सवाओ पाणादवायाओ अप्पडिविरवा जावन्नीवाए सपराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खिते, ते तओ आउगं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता भुज्जो सगमादाए दोग्गइगामिणो भवंति ।
ते पाणा वि बुच्चंति, ते तसा यि बुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवद्वियस्स पडिविरयस्स जं णं तुम्भे वा अग्यो वा एवं वय-"परि णं से केंद्र परिवार जंति समासस्य एगपागाए जिते" अयं पि मे उबएसे यो वाउए भवइ ।।
५७७ भगवं च णं उदाहु-- संतेगइया मणुस्सा भवंति तं जहा -- अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया- जाव-धम्मेण चैव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति सुसीला सुव्वा सुपडियाणंदा सुसाहू । सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए जाव-सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जाए, हि समनोवागस्स आयाणतो आमरणंताए बंडे गितिविि सगमायाए सोग्गइगामिणो भवंति ।
पण तसा वि युवंति ते महाकावा, ते विरदिवा ते बहुतरमा पागा जेहि समणोबासगरस सुपरचा
व
2
ते अपयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जं णं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि मे उवएसे णो
याउए भवइ ।।
५७८ भगवं च णं उदाहु -- संतेगइया मनुस्सा भवंति तं जहा -- अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया- जाव-धम्मेण चैव वित्ति कप्पेभाषा विहति सुसीला सुन्या सुप्पडियादा मुसाहू एगच्चाओ पाणाइबाबाओ पडिदिरया जावज्जीवाए, एगचाओ अडिरिया । -जाएगा परिहाओ पतिविरवाजावरजीवाए एमाओ] अपदिविरमा जेहि समासदस्य आयाणसी आमरणंताए ते तो आज विहति विहिता ते ती जी सगमादाए सोमाइग्रामिणो भवति ।
दंडे
ते पाणाविति ते तथावि वंति ते महाकाया, ते चिड़िया ते बहुतरगा पाणा जेहि समयोचासह सुचवा] भव । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवद्वियस्स पडिविरयस्स जं णं तुभे वा अण्णो वा एवं वयह-- “ णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खिते ।" अयं पि भे उबएसे णो णेयाउए भवइ ||
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महावीरतित्थे उदय पेढालपुत्ते
१५३
५७९ भगवं च णं उदाहु-संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा--आरणिया आवसहिया गामंतिया कण्हुईरहस्सिया--जेहि समणोवासगस्स
आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ--णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेहि अप्पणा सच्चामोसाइं एवं बिउंजंति--अहं ण हतब्बो अण्णे हतब्वा, अहं ण अज्जावेयव्वो अण्णे अज्जावेयव्वा, अहं ण परिघेतव्वो अण्णे परिघेतब्वा, अहंण परितावेयव्वो अण्णे परितावेयव्वा, अहं ण उद्दवेयव्वो अण्णे उद्दवेयव्वा। एवामेव ते इत्थिकामेहि मच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा -जाव-वासाई चउपंचमाइं छहसमाई अप्पयरो वा भुज्जयरो वा भुजितु भोगभोगाई कालमासे कालं किच्चा अण्णयराइं आसुरियाई किब्बिसियाइं ठाणाई उववत्तारो भवंति । तओ वि विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलभूयत्ताए तमोरूवत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्त जंणं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह--"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते"। अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ॥
भगवं च णं उदाहु--संतेगइया पाणा दीहाउया, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ । ते पुवामेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरिट्टिइया, ते दोहाउया। ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जंणं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह--"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ॥
५८१ भगवं च णं उदाहु--संतेगइया पाणा समाउया, हिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ । ते सममेव कालं
करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते समाउया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णयाउए भवइ ॥
५८२
भगवं च णं उदाहु--संतेगइया पाणा अप्पाउया, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ। ते पुवामेव कालं करेंति, करेता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते अप्पाउया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स ज णं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह--"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उबएसे णो णेयाउए भवई॥
५८३
णवभंगेहिं पच्चक्खाणस्स विसय-उवदसणं भगवं च णं उदाहु--संतेगइया समणोवासगा भवंति । तेसि च णं एवं वृत्तपुध्वं भवइ-- णो खलु वयं संचाएभो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। णो खलु वयं संचाएमो चाउद्दसट्टमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं अणुपालित्तए । णो खल वयं संचाएमो अपच्छिममारणंतियसंलेहणाभूसणाझूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया कालं अणवकंखमाणा बिहरित्तए। वयं गं सामाइयं देसावगासियं--पुरत्या पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं एतावताव सव्वपाणेहि-जाव-सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते पाणभयजीवसहि खेमंकरे अहमंसि।
घक०२०
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५४
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो १. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउ विप्पजहंति, विप्पजहिता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति तेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्त जंणं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ। २. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे थावरा पाणा, जेहि समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते, अणट्ठाए दंडे णिक्खिते, तेसु पच्चायति । तेहि समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खिते। ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिर्राटुइया। ते बहुतरगा पाणा जेहि समगोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्प्त उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जंणं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्त एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ। ३. तत्य आरेणं जे तसा पाणा, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति विप्पजहिता तत्थ परेणं चेव जे तसा थावरा पाणा, जेहि समणोबासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहि समगोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि बुच्चंति, महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवह। ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्त अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जणं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह--"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ।। ४. तत्थ आरेण जे थावरा पाणा, जेहि समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खिते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंतए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते पाणा वि बुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, से महाकाया, ते चिरटिइया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जंणं तुन्भे वा अण्णो वा एवं वयह--"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए
भबइ।
५. तत्थ आरेणं जे थावरा पाणा, जेहि समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्टाए दंडे णिक्खिते, ते तओ आउ विप्पजहंति, विप्पजहिता ते तत्थ आरेणं चेव जे थावरा पाणा, जेहि समणोवासगस्त अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहि समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खिते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते। ते पाणा वि वच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरदिइया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उबट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह--"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उबएसे णो णेयाउए भवइ । ६. तत्थ परेणं जे थावरा पाणा, जेहि समणोवासगस्स अट्टाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विष्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ परेणं चेव जे तसा थावरा पाणा, जेहि समणोवासगस्त आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते पाणा वि बुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उट्टियस्स पडिविरयस्स
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महावीरतित्थे उदय पेढालपुत्ते
१५५
जंणं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समोवागस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भ उवएसे णो णेयाउए भवइ ।
७. तत्थ परेणं जे तस्थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहि समणोवासगस्त सुपच्चवखायं भवइ ।
५८५
ते पाणावि बुच्चति, ते तसा वि बुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया । ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्त सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवद्वियस्स पडिविरयस्स जं गं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि उवएसे णो णेयाउए भवइ ।
८. तत्थ परेणं जे तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहिता तत्य आरेणं जं भायरा पाणा, जहि समगोवासगस्स अट्ठाए दंडे अगिखिते अगद्वाए दंडे निक्खिले, ते पचायति । तेहि समणोबासस्सा भव ।
ते पाणा वि वच्चंति, ते तसा वि वच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया । ते बहुयरगा पाणा जहि समणोवासगस्त सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्परगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवद्वियस्स पडिविरयस्स जं णं तुन्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खिते । "अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ।
९. तत्थ परेणं जे तसथावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खिते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तत्थ परेणं चेव जे तसथावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खिते, तेसु पच्चायति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चवखायं भवइ ।
ते पाणा वि च्वंति से तसा वि च्वंति से महाकाया, ते चिरडिहवा से बहुवरया पाणा जेहिं समगोवासगस्व सुपव्यवखायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्त उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-- “ णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवा सगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खिते ।" अयं पि भ उवएसे णो णेयाउए भवइ ।।
तस-यावर पाणाणं अव्वोच्छित्ती
५८४ भगवं च णं उदाहु--ण एयं भूयं ण एयं भव्वं ण एवं भविस्सं जगणं--तसा पाणा वोच्छिज्जिहति थावरा पाणा भविस्संति । थावरा पाणा वोच्छिज्जिहति तसा पाणा भविस्संति । अवोच्छिष्णेहि तस्थावरेहि पाणेहि जण्णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वदह-" णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि मे उबएसे णो णेयाउए भवइ ।।
उपसंहारो
भगवं च णं उदाहु-- आउसंतो ! उदगा ! जे खलु समणं वा माहणं वा परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता णाणं, आगमिता दंसणं, आगमित्ता चरितं पावानं कम्माणं अकराए से खलु परलोगपतिताए चि
जे समणं वा माहणं वा णो परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता णाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरितं पावाणं कम्माणं अकराए से परलोगविसुद्धीए चि ॥
तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पहारेत्थ गमणाए ||
भगवं च णं उदाह--आउसंतो ! उदगा ! जे खलु तहारूवस्त समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोया जिसम्म अपणो देव गुमाए पडिलेहाए अनुत्तरं जोगमप भिए समाणे सो वि तावतं आदाद परिजाने बंब
ries arers सम्माणेइ कल्याणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ ॥
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१५६
५०६
धम्मकहाणुओगे दुतीयो बंधो
दाल भग गोधनं एवं वयासी "एएसि णं भंते! पदाणं पृथ्वि अण्णानवाए अस्वणयाए अबोहीए अन भिगमेणं अदिद्वाणं अस्नुपानं अमुवानं अविण्णायाणं अणिन्दानं अबोगडाणं अयोगानं अणिसिद्वानं अभिवृद्वाणं अणुवहारिपाणं एयम गो सहहि णो पत्तियं णो रोहये ।
एएसि णं भंते ! पदाणं एहि जाणयाए सवणयाए बोहीए अभिगमेणं दिट्ठाणं सुयाणं मुयाणं विष्णायाणं णिज्जूढाणं वोगडाणं बोमा मिसिद्वाणं णिवृद्वाणं उनधारियागं एयम सहामि पत्तियामि रोएम एवमेवं जहा गं, तुम्भे वदह'"
तए णं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं एवं वयासी -- "सद्दहाहि णं अज्जो ! पत्तियाहि णं अज्जो ! रोएहि णं अज्जो । एवमेयं जहा णं अम्हे वयामो ॥"
उदयरस चाज्जामधम्माओ पंचमहवयगहनं
५८७ से उपर पेढाल भगवं गोपमं एवं बयासी-इच्छामि गं भंते! तुमं अंतिए पाउामा धम्माओ पंचमह सक्किमणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए ॥
तए णं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं गहाय जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ । तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी -- "इच्छामि णं भंते ! तुम्मं अंतिए बाउन्नमाज धम्माओ पंचमहवयं सपडिस्कमणं धम्मं उपसंपज्जित्ताणं बिहरिए।"
अहामुहं देवाणुपिया ! मा पधिं करेहि ॥
तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उच्चसंपविताणं विहर।
४४. महावीरतित्थे नंदीफलणार्य
चंपाए धणत्वाहो
५८८ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए । जियसत्तू राया ॥
तत्य णं पाए नपरीए धर्म नाम थवा होत्या अजाब-अपरिए ।
सोसे णं पंपाए नवरीए उत्तरपुरत्विमे दिसोभाए अहिछता नाम नवरी होत्या-रिस्थिनिय समिावष्णो ॥
तत्य णं अहिछताए नपरी कणकेऊ नाम राया होत्या मया० बष्णओ ॥
--
--त्ति बेमि ॥
सूय० सु० २, अ० ७ ।
धणस्स अहिच्छत्तगमण घोसणा
५८९ तएं णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरतकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए- जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था -- सेयं खलु मम विपुलं पनियहवाए अहिच्छतं नपरि वाणिज्जाए गमितए एवं संपेहेड, संपेता मणिमं च धरिमं पारिष्ठ हिंहिता सगड़ी-सागडं सज्जे, सज्जेता सगड़ी-सागडं भरे भरेला कोयिपुर सदावे सहावेता एवं ववासी-
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महावीरतित्थे नंदीफलणायं
१५७
"गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! चंपाए नयरीए सिंघाडग-जाव-महापहपहेसु उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! धणे सत्यवाहे विपुलं पणियं आदाय इच्छइ अहिच्छत्तं नरि वाणिज्जाए गमित्तए, तं जो गं देवाणुप्पिया ! चरए वा चीरिए वा चम्मखंडिए वा भिच्छंडे वा पंडुरंगे वा गोयमे वा गोव्वतिए वा गिहिधम्मे वा धमचितए वा अविरुद्ध-विरुद्ध-बुड्ढसावग-रत्तपड-निग्गंथप्पभिई पासंडत्थे वा गिहत्थे वा धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि अहिच्छत्तं नरि गच्छड, तस्स णं धणे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अणुवाहणस्स उवाहणाओ दलयइ, अकुंडियस्स कुंडियं दलयइ, अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ, सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ 'त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा चंपाए नयरीए सिंघाडग-जाव-महापहपहेसु एवं वयासी-- हंदि सुणंतु भगवंतो ! चंपानयरीवत्थव्वा ! बहवे चरगा ! वा-जाव-गिहत्था ! वा, जो णं धणेणं सस्थवाहेणं सद्धि अहिच्छत्तं नयरि गच्छइ, तस्स णं धणे सत्यवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ-जाव-सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ तए णं तेसि कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढें सोच्चा चंपाए नयरीए बहवे चरगा य-जाव-गिहत्था य जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छति ॥ तए णं धणे सत्थवाहे तेसि चरगाण य-जाव-गिहत्थाण य अच्छत्तगस्स छत्तं दलयइ-जाव-अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, दलयित्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुब्भ देवाणुप्पिया ! चंपाए नयरोए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह ॥ तए णं ते चरगा य-जाव-गिहत्था य धणेणं सत्यवाहेणं एवं वुत्ता समाणा चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि धणं सत्यवाहं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठति ।।
धणकओ नंदीफलरुक्खोवभोगनिसेहो ५९० तए णं धणे सत्यवाहे सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तंसि विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उबक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ
नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ, आमंतेत्ता भोयणं भोयावेइ, भोयावेत्ता आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सगडी-सागडं जोयावेइ, जोयावेत्ता चंपाओ नयरीओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता नाइविप्पगिट्ठहि अद्धाणेहि वसमाणे-वसमाणे सुहेहि वसहि-पायरा-सेहि अंगं जणवयं मझमझेणं जेणेव देसग्गं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडी-सागडं मोयावेइ, सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एयं वयासी-- तुम्भ णं देवाणुप्पिया ! मम सत्यनिवसंसि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्छोसेमाणा एवं वयह--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! इमोसे आगामियाए छिण्णावायाए दोहमद्धाए अडवीए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं बहवे नंदिफला नाम रुक्खा--किण्हा-जाव-पत्तिया पुफिया फलिया हरिया रेरिज्जमाणा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति--मणुण्णा वण्णेणं मणुण्णा गंधेणं मणुण्णा रसेणं मणुण्णा फासेणं मणुण्णा छायाए। तं जो गं देवाणुप्पिया ! तेसि नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बोयाणि वा हरियाणि वा आहारेइ, छायाए वा वीसमइ, तस्स णं आवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा अकाले चेव जीवियाओ ववरोति । तं मा णं देवाणुप्पिया ! केइ तेसि नंदिफलाणं मूलाणि वा-जाव-हरियाणि वा आहरउ, छायाए वा वीसमउ, मा णं से वि अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जिस्सउ। तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! अणेस रुक्खाणं मूलाणि य-जाव-हरियाणि य आहारेह, छायासु वीसमह" त्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं धणे सत्थवाहे सगडी-सागडं जोएइ, जोएता जेणेव नंदिफला रुक्खा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसि नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता दोच्चं पि तच्चं पि कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! मम सत्थनिवेसंसि महया-महया सद्देणं उग्धोसेमाणा-उग्धोसेमाणा एवं वयह--"एए णं देवाणुप्पिया! ते नंदिफला रुक्खा किण्हा-जाव-मणुण्णा छायाए। तं जो णं देवाणुप्पिया ! एएसि नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा आहारेइ-जाव-अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेइ । तं मा गं तुब्भे तेसि नंदिफलाणं मूलाणि वा-जाव
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धम्मकहाणुओग दुतीयो खंधो
आहारेह, छायाए वा वीसमह, मा णं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जिस्सह, अण्णेसि रुक्खाणं मूलाणि य-जाव-आहारेह, छायाए वा वीसमह त्ति कटु घोसणं घोसेह, घोसेता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह "। ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥
निसेहानुसरणस्स फलं ५९१ तत्थ णं अत्थेगइया पुरिसा धणस्स सत्थवाहस्स एयमठं सद्दहति पत्तियंति रोयंति, एयम९ सद्दहमाणा पत्तियमाणा रोयमाणा तेसि
नंदिफलाणं दूरंदूरेणं परिहरमाणा-परिहरमाणा अणेसि रुक्खाणं मूलाणि य-जाव-आहारंति, छायासु वीसमंति ।। तेसि णं आवाए नोभद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा सुभरूवत्ताए सुभगंधत्ताए सुभरसत्ताए सुभकासत्ताए सुभछायत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति॥ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचसु कामगुणेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोक्वज्जइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थछेयणाणि य कण्णछेयणाणि य नासाळ्यणाणि य एवंहियय उप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ--जहा व ते पुरिसा ।
निसेहापालणे विपत्ती ५९२ तत्थ णं अप्पेगइया पुरिसा धणस्स एयमट्ठनो सद्दहति नो पत्तियंति नो रोयंति , धणस्स, एयमढे असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोयमाणा
जेणेव ते नंदिफला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसि नंदिफलाणं मूलाणि य-जाव-आहारंति, छायासु वीसमंति तेसि णं आवाए
भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणा-परिगममाणा अकाले चेव जीवियाओ बवरोति ।। ५९३ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए-समाणे
पंचसु कामगुणेसु सज्जइ रज्जइ गिज्झइ मुज्झइ अज्झोबवज्जइ, से गं इहभवे-जाव-अणादियं च णं अणवयग्गं दोहमद्धं संसारकंतारं भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ--जहा व ते पुरिसा ॥
धणस्स अहिच्छत्तागमणं ५९४ तएणं से धणे सत्यवाहे सगडी-सागडं जोयावेइ, जोयावेत्ता जेणेव अहिच्छत्ता नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहिच्छत्ताए नयरीए
बहिया अग्गुज्जाणे सत्यनिवेसं करेइ, करेत्ता सगडी-सागडं मोयावेइ ॥ तए णं से धणे सत्थवाहे महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहुपुरिसेहि सद्धि संपरिवुड़े अहिच्छत्तं नर मझमज्झणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणेइ ॥ तए णं ले कणगकेऊ राया हद्वतु? धणस्स सत्थवाहस्स तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं पडिच्छिइ, पडिच्छत्ता धणं सत्यवाह सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, विर्यारत्ता पडिविसज्जेइ, भंडविणिमयं करेइ, करेत्ता पडिभंडं गेण्हइ, गेमिहत्ता सुहंसुहेणं जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिवणेणं सद्धि अभिसमण्णागए विपुलाई माणुस्सगाई भोगभोगाई पच्चणुभवमाणे विहरइ॥
धणस्स पव्वज्जा ५९५ तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं ॥
धणे सत्यवाहे धम्म सोच्चा जेट्टपुत्तं कुडंबे ठावेत्ता पव्वइए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता, अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णे । महा विदेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ ॥'
णायाधम्मकहाओ सु०१ अ०१५ १. वृत्तिकता समुद्धता निगमनगाथा--
चंपा इव मणुयगई, धणोव्व भयवं जिणो दएक्करसो। अहिच्छतानयरिसमं, इह निव्वाणं मुणेयव्वं ।।१।। घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्धं । चरगाइणो व्व एत्थं, सिवसहकामा जिया बहवे ।।२।। नंदिफलाइ व्व इहं, सिवपहपडिपण्णगाण विसया उ । तब्भक्खणाओ मरणं, जह तह बिसएहि संसारो ॥३।। तव्वख्जणेण जह इट्टपुरगमो विसयवज्जणेण तहा । परमानंदनिबंधण-सिवपुरगमणं मुणेयव्वं ।।४।।
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४५. धणसत्थवाहकहाणयं
रायगिहेधणसत्थवाहदारिया सुसुमा ५९६ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था--वष्णओ॥
तत्थ णं धणे नामं सत्यवाहे। भद्दा भारिया ॥ तस्स णं धणस्त सत्यवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्यवाहदारगा होत्था, तं जहा-धणे धणपाले धणदेवेधणगोवे धणरक्खिए । तस्स णं धणस्स सत्यवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया संसुमा नाम दारिया होत्था-सूमालपाणिपाया०॥
चिलाय-दासचेडेण कुमार-कुमारीणं कोडणकाले तज्जणं ५९७ तास णं धणस्स सत्थवाहस्स चिलाए नाम दासचेडे होत्था--अहोणचिदियसरीरे मंसोवचिए बालकोलावणकुसले यावि होत्था ॥
तए णं से दासचेडे सुंसुमाए दारियाए बालग्गाहे जाए यावि होत्था, सुसुमं दारियं कडीए गिण्हइ, गिहिता बहुहि दारएहि य दारियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ॥ तए णं से चिलाए दासचेडे तेसि बहणं दारयाण य वारियाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं वट्टए अवहरइ, अप्पेगइयाणं आडोलियाओ अवहरइ, अप्पेगइयाणं तिदूसए अवहरइ, अप्पेगइयाणं पोत्त ल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं साडोल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं आभरणमल्लालंकारं अवहर इ, अप्पेगइए आउसइ अवहसइ निच्छोडेइ निन्भच्छेइ तज्जेड तालेइ ॥
५९८ तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिभया य डिभिया य कुमारया य कुमारिया य रोयमाणा य कंदमाणा य सोयमाणा य तिप्पमाणा
य बिलबमाणा य साणं माणं अम्मापिऊणं निवेदेति ॥
चिलायस्स गिहाओ निक्कासणं तए णं तेसि बहूणं दारयाण य दारियाण य डिभयाण य डिभियाण कुमारयाण य कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धणं सत्यवाहं बहूहि खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभमाणा य धणस्स सत्थवाहस्स एयम8 निवेदेति ॥ तए णं से धणे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमट्टभुज्जो-भुज्जो निवारेइ, नो चेवणं चिलाए दासचेडे उवरमइ ॥ तए णं से चिलाए दासचेडे तेसि बहूणं दारयाण य दारियाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ अप्पेगइयाणं वट्टए अवहरइ, अप्पेगइयाणं आडोलियाओ अवहरइ, अप्पेगइयाणं तिदूसए अवहरइ, अप्पेगइयाणं पोत्तुल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं साडोल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं आभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए आउसइ अवहसइ निच्छोडेइ निभेच्छेद तज्जेइ तालेइ॥ तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिंभया य डिभिया य कुमारया य कुमारिया य रोयमाणा य कंदमाणा य सोयमाणा व तिप्पमाणा य विलवमाणा य साणं साणं अम्मापिऊणं निवेदेति ॥ तए णं ते आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्कया मिसिमिसेमाणा जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहुहि खिज्जणाहिय रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभमाणा य धणस्स सत्थावाहस्स एयमट्ठ निवेदेति ॥ तए णं से धणे सत्थवाहे बहूणं दारगाणं दारियाणं डिभयाणं डिभियाणं कुमारयाणं कुमारियाणं अम्मापिऊणं अंतिए एयमढे सोच्चा आसुरुत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे चिलायं दासचेडं उच्चावयाहि आउसणाहि आउसइ उद्धंसइ निन्भच्छेइ निच्छोडेह तज्जेइ उच्चावयाहि तालणाहिं तालेइ साओ गिहाओ निच्छभइ॥
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
चिलायस्स दुव्वसण-पवत्ती ६०० तए णं चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छुढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु देवकुलेसु
य सभासु य पवासु य जयखलएसु य वसाधरएसु य पाणघरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ। तए णं से चिलाए दासचेडे अणोहट्टिए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी, मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जयप्पसंगी बेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था ॥
रायगिहसमीवे चोरपल्ली तत्थ य विजए चोरसेणावई ६०१ तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंत दाहिणपुरथिमे दिसीभाए सोहगुहा नाम चोरपल्ली होत्था--विसम-गिरिकडग-कोलंब-सण्णि
बिट्टा बंसीकलंकपागार-परिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अणेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अधिभतरपाणिया सुदुल्लभजल-पेरंता सुबहुस्स वि कूवियबलस्स आगयस्स दुप्पहंसा यावि होत्था ॥
६०२ तत्थ णं सोहगुहाए चोरपल्लीए विजए नामं चोरसेणाबई परिवसई--अहम्मिए अहम्मि? अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोई अह
म्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे बिहरइ । हण-छिद-भिद-वियत्तए लोहियपाणी चंडे रुद्दे खुद्दे साहरिसए उक्कंचणवंचण-माया-नियडि-कवड-कुड-साइ-संपओग-बहले निस्सीले निव्वए निग्गुणे निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे बहूणं दुपय-चउप्पय-मियपसु-पक्खि-सरिसिवाणं घायाए वहाए उच्छायणयाए अहम्मके ऊ समुट्टिए बहनगर-निग्गय-जसे सूरे दढप्पहारी साहसिएए सद्दवेही॥ से गं तत्थ सोहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसपाणं आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥
६०३ तए णं से विजए तक्कर-सेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायाव
गारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभधायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसि च बहूणं छिण्ण-भिण्णबाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था॥
तए णं से विजए चोरसेणावई रायगिहस्स दाहिणपुरथिम जणवयं बहूहि गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगणेहि य बंदिग्गहणेहि ... य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे-ओवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धंसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ ॥
चिलायस्स चोरपल्ली-गमणं चोरसेणावइणा विजयण चोरियविज्जाए सिक्खा य ६०४ तए णं से चिलाए दासचेडए रायगिहे बहुहिं अत्थाभिसंकोहि य चोज्जाभिसंकीहि य दाराभिसंकोहि य धणिएहि य जूयकरेहि
य परब्भवमाणे-परब्भवमाणे रायगिहाओ नगराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सोहगुहा चोरपल्ली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विजयं, चोरसेणावई उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥ तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणाबइस्स अग्ग-असिलढिग्गाहे जाए यावि होत्था । जाहे वि य णं से विजए चोरसेणावई गामघायं वा नगरघायं वा गोगहणं वा बंदिग्गहणं वा पंथकोटिं वा काउं वच्चइ ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहु पि कुवियबलं हय-महियपवरवीरघाइय-विवडियचिध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहेइ, पडिसेहेता पुणरवि लद्धठे कयकज्जे अणहसमग्गे सोहगुहं चोरपल्लि हव्वमागच्छइ। तए णं से विजए चोरसेणावई चिलायं तक्कर बहूओ चोरविज्जाओ य चोरमंते य चोरमायाओ य चोरनिगडीओ य सिक्खावे ॥
चोरसेणावइस्स विजयस्स मच्चू ६०५ तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था॥
तए गं ताई पंचचोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया-महया इड्ढीसक्कार-समुदएणं नोहरणं करेंति, करेत्ता, बहूई लोइयाई " मयकिच्चाई करेंति, करेत्ता कालेणं विगयसोया जाया यावि होत्था ।।
चिलायस्य चोरसेणावइत्तं ६०६ तए णं ताई पंच चोरसयाई अण्णमण्णं सद्दावति, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! विजए चोरसेणावई
कालधम्मुणा संजुत्ते। अयं च णं चिलाए तक्करे विजएणं चोरसेणावइणा बहूओ चोरविज्जाओ य चोरमंते य चोरमायाओ य
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महावीरतित्थे घणसत्यवाहकहाणयं
१६१ चोरनिगडीओ य सिक्खाबिए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! चिलायं तक्करं सोहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचित्तए" त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता चिलायं सोहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए--अहम्मिए अहम्मिठे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरनायगे बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसि च बहूणं छिण्णभिण्ण-बाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था॥ से णं तत्थ सोहगहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टिसं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई रायगिहस्स नयरस्स दाहिणपुरथिमिल्ल जणवयं बहूहि गामघाएहि य नगरधाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे-ओवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहर।।
चिलायस्स धणसत्यवाहगिहविलुंपणं सुन्सुमदारियाहरणं च ६०७ तए णं से चिलाए चोरसेणावई अण्णया कयाइ विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ । तओ
पच्छा व्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंहि चोरसएहि सद्धि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं चं मंसं च सीधं च पसन्नं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूवपुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासो-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! 'रायगिहे नयरे धणे नाम सत्थवाहे अड्ढे । तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया---अहोणा-जाव-सुरूवा। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! धणस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुपामो । तुम्भं विपुले धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाले ममं सुसुमा दारिया ॥"
तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स [एयमलैं?] पडिसुर्णेति ॥ ६०८ तए णं ते चिलाए चोरसेणावई तेहिं पंचहि चोरसएहि सद्धि अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरहित्ता पश्चावरण्ह-कालसमयंसि पंचहि चोर
सहि सद्धि सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए उप्पोलिय-सरासणपट्टिए पिणद्ध-विज्जे आविद्ध-विमलवचिधपट्टे गहियाउह-पहरणे माइयगोमुहिएहि फलएहि, निक्किट्ठाहि असिलट्ठीहि, अंसगएहि तोह, सज्जोहिं धहिं, समुक्खिहिं सरेहिं, समुल्लालियाहिं दाहाहि, ओसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहिं वज्जमाहिं महया-महया उक्किट्ठ-सीहनाय-बोल-कलकलरवणं पक्खुभिय-महासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे सोहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता रायगिहस्स अदूरसामंते एगं महं गहणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता दिवसं खवेमाणे चिट्ठति ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्त-कालसमयंसि निसंत-पडिनिसंतसि पंचहि चोरसहि सद्धि माइय-गोमुहिएहि फलएहि -जाव-मुइयाहिं ऊरुघंटियाहि जेणेव रायगिहे नयरे पुरथिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उदगवत्थि परामुसइ आयंते चोक्खे परम सुइभूए तालुग्घाडणि विज्ज आवाहेइ, आवाहेत्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडेत्ता कवाडं विहाडेइ, विहाडेता रायगिह अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी--"एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! चिलाए नामं चोरसेणावई पंचहि चोरसएहिं सद्धि सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागए धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे। तं जे णं नवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से गं निग्गच्छउ" ति कट्ट जेणेव धणस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणस्स गिहं विहाडेइ ॥
६०९ तए णं से धणे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहि चोरसएहिं सद्धि गिहं घाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे
संजायभए पंचहि पुत्तेहिं सद्धि एगंतं अवक्कमइ ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाएइ, घाएत्ता सुबई धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालरत्तरयण-संत-सार-सावएज्ज सुसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ पडिनिक्खमई, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सोहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥
ध० क० २१
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१६२
धम्मकहाणुओगे दुतीओ खंधो नगरगुत्तिएहिं चोरनिग्गहो ६१० तए णं से धणे सत्यवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता
महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया! चिलाए चोरसेणावई सोहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म पंचर्चाह चोरसएहि सद्धि मम गिहं घाएत्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं गहाय रायगिहाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए। तं इच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए । तुब्भं णं देवाणुप्पिया ! से विपुले धण-कणगे, ममं सुंसुमा दारिया ॥" तए णं ते नगरगुत्तिया धणस्स एयमझैं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया जाव गहियाउहपहरणा महया-महया उक्किट्ठ-सीहनाय-बोल-कलकलरवेणं पक्खुभिय-महासमुद्द-रवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गा यावि होत्था॥ तए णं ते नगरगुत्तिया चिलायं चोरसेणावई हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहेति ॥ तए णं ते पंच चोरसया नगरगुत्तिएहिं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसि पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धण-कणगं विच्छडमाणा य विप्पकिरमाणा य सव्वओ समंता विप्पलाइत्था॥ तए णं ते नगरगुत्तिया तं विपुलं धण-कणगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छति ॥
चिलायस्स चोरपल्लीतो सुसमासद्धि पलायणं संसमामारणं च ६११ तए णं से चिलाए तं चोरसेन्नं तेहि नगरगुत्तिएहि हय-महिय-पवर-वीर-धाइय-विवडियचिध-धय-पडाग किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि
पडिसेहियं [पासित्ता ?] भीए तत्थे सुसुमं दारियं गहाय एगं महं अगामियं दोहमद्धं अवि अणुप्पविठे ॥ . तए णं से धणे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमुहि अवहीरमाणि पासित्ताणं पंचहि पुत्तेहि सद्धि अप्पछठे सण्णद्धबद्ध-वम्मिय-कवए चिलायस्स पयमग्गविहि अणुगच्छमाणे अभिगज्जते हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जेमाणे अभितासेमाणे
पिट्ठओ अणुगच्छइ ॥ ६१२ तए णं से चिलाए तं धणं सत्थवाहं पंचहि पुत्तेहि सद्धि अप्पछ8 सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवयं समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे
अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे जाहे नो संचाएइ सुसुमं दारियं निव्वाहित्तए ताहे संते तंते परितंते नीलुप्पल-गवलगुलियअयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि परामुसइ, परामुसित्ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिदइ, छिदित्ता तं गहाय तं अगामिय
अवि अणुप्पविट्ठ॥ ६१३ तए णं से चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए [छुहाए ? ] अभिभूए समाणे पम्हटु-दिसाभाए सोहगुहं चोरपल्लि असंपत्ते
अंतरा चेव कालगए॥ निगमणपदं एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पब्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स दुरुय-उस्सास-निस्सासस्स दुरुय-मुत-पुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवस्स अधुवस्स अणितियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धंसणधम्मस्स पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जस्स वण्णहेउं वा रूवहेउं वा बलहेउं वा विसयहेउं वा आहार आहारेइ, सेणं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूण सावियाण य होलणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकतारं अणुपरियट्टिस्सइ--जहा व से चिलाए तक्करे ॥
धणस्स सुसुमाकए कंदणं ६१५ तए णं से धणे सत्थवाहे पंहिं पुहि (सद्धि ?) अप्पछ? चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता परिधाडेमाणे-परि
धाडेमाणे संते तंते परितंते नो संचाएइ चिलायं चोरसेणावई साहत्थि गिहितए। से णं तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तित्ता जेणेव सा सुंसुमा चिलाएणं जीवियाओ बबरोविया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुसुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ ववरोवियं पासइ, पासित्ता परसुनियत्ते ब्व चंपगपायवे निव्वत्तमहे ब्व इंदलट्ठी विमुक्क-संधिबंधणे धरणितलंसि सव्वंहिं धसत्ति पडिए । तए णं से धणे सत्थवाहे [पंचहि पुत्तेहि सद्धि ?] अप्पछ? आसत्थे कूवमाणे कंदमाणे विलबमाणे महया-महया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुन्ने सुचिरकालं बाहप्पमोक्खं करेइ ।
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महावीर तिथे धणसत्यवाहकहाण
अडविपतेहि धनाहि हाभिभूएहि सुम्सुमा-मंससोणियाहारो
६१६ सेवा हितंहि [सद्धि ?] अप्पछ चिलावं तीचे अनानिवाए अडवीएस समता परिधामा लहाए हाए य परम्भाहते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता उदगस्स मग्गण - गवेसणं करेमाणे संते तंते परितंते निव्विण्णे तीसे अगामिया अडवीए उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुंसुमा जीवियाओ ववरोविएल्लिया तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता जेट्ठ पुत्तं धणं सहावे सहायता एवं क्यासी एवं खलु पुत्ता! गुमाए दारियाए अट्ठाए दिलायें तस्करं स समता परिधाडेमाणा तव्हाए छुहाए य अभिभूया समाणा इमीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणा नी चेव णं उदगं आसादेमो । तए णं उदगं अणासाएमाणानो संचाएमो रायगंहं संपावित्तए । तष्णं तुब्भे ममं देवाणुप्पिया ! जीवियाओ ववरोवेह, मम मंसं च सोणियं च आहारेह, तेणं आहारेणं अवथद्धा समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अडव नित्थरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ नियगसयण संबंधि- परियणं अभिसमागच्छहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह ॥"
६१७
तए णं से जेट्टे पुत्ते धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे धणं सत्यवाहं एवं वयासी -- "तुब्भे णं ताओ ! अम्हं पिया गुरुजणया देवयभूया ठक्का पट्ठवका संरक्खगा संगोवगा । तं कहणणं अम्हे ताओ । ! तुब्भे जीवियाओ ववरोवेमो, तुब्भं णं मंसं च सोणियं च आहारेमो ? तं तु ताओ। ममं जीबियाओ क्यरोह मंसंच सोचिये च आहारेह, अगामियं अव नित्यरिहि राहिंच संपावेहिह, मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि-परियणं अभिसमागच्छहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह ||"
६१८
६२०
तएव दोषचे पुत्ते एवं बवासीमा ताओ अम्हे जे भावरं गुरुदेवयं जीवियाओ बबरोबेमो तस्स णं मंसं सोणियं च आहारेमो । तं तुब्भे णं ताओ । ! ममं जीवियाओ ववशेवेह, मंसं च सोणियं च आहारेह, अगामियं अर्डावं नित्थरिहिह, रायगिह च संपावेहिह, मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह ।" एवं जाव पंचमे पुत्ते ॥
तए णं से धणे सत्यवाहे पंचाणं हि रोवेमो । एस णं सुसुमाए दारियाए सरीरे [च] सोनिच आहारेलए लए णं अम्हे ते
तए णं ते पंचपुत्ता धणेणं सत्थवाहेण एवं वृत्ता समाणा एयमट्ठ पडिसुर्णेति ॥
१६३
जाणता ते पंचपुते एवं बासीमा णं अम्हे पुसा ! एनमनि जीविवाओ ब निप्पाणे निच्चे जीवविप्पजढे । त सेयं खलु पुत्ता ! अम्हं सुंसुमाए दारियाए मंसं आहारेणं अवथा समाजा रायहिं संपादस्सिमो ॥"
६१९ तए णं धणे सत्यवाहे पंच हि साँड अनि करे, करेला सत्वं हरे, करेला सरएवं अणि महेद, महत्ता पा
पाडेता अरंग संधुक्केइ संधुक्केत्ता दारुयाइं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अग्ग पज्जालेइ, सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारेइ । तेणं आहारेणं अवथद्धा समाणा रायगिहं नयरं संपत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमण्णागया, तस्स य विउलस्स धण-कणगरयण-मणि- मोत्तिय संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार- सावएज्जस्स आभागी जाया ॥
तए णं से धणे सत्थवाहे सुंसुमाए दारियाए बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेs, करेत्ता कालेणं विगयसोए जाए यावि होत्था || धणस्स पव्वज्जा
६२१ ते का ते समएवं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नवरे गुणसिलए वे समो
तत्वसपुते धम्मं सोचा पइए एक्कारसंगवी
सिहि ।।
निगमणं
"जहा विष नंबू ! धणं सत्यवागं नो वणवा वो सब वा नो बलवानो विहे वा सुंमुमाए दारियाए मंससोगिए आहारिए, नम्रत्व एगाए राहि-संपावगट्टयाए ।
मालियाए संदेहणाए सोहम्मे कप्पे उदबम्मे । महाविदेहे बा
एवामेव समगाउसो ! जो अहं नियो वा निधी वा आवरिव-उपरायाणं अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अगगारियं पञ्चइए समाणे इमस ओरालियरीरस्य तावत्स पित्तातवस्त (सासवस्त ? सुक्कासवरस सोगिवासवस्य दुष्य उस्तात निस्तात्तत्स दुख्य-मुत्त-पुरी- बहुपडिमस्त उच्चारखेसियाग-त-पित्त-क-सोयिसंभवस्त अधयस्स अतिवरण असासवस्स सण-वन-विद्धंससम्म पच्छा पुरं च नं अवस्सपिरियनो बम्हे बानो रूपडं वा तो बलवानो बिसयहे वा आहा आहारे, नथ एवाए सिद्धिगमग-संपावणट्टयाए से पं इहनने चैव बहूणं समगाणं बहूणं समनी बसावया बहू सावियाण व अच्चमि जाब चा संसारकता बीच जहा व से सपुत्ते धणे सत्यवाहे ॥"
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१६४
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते।।
त्ति बेमि॥
णायाधम्मकहाओ सु. १ अ. १८ । ६२२ अंगवंसाओ णं सत्तहत्तरि। रायाणो मुंडे-जाव-पव्वइया ।
सम० ७७ सु० १५५ ।
४६. कालोदाइकहाणयं
रायगिहट्ठियाणं कालोदाइआईणं अस्थिकायविसये संदेहो ६२३ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे होत्था बन्नओ। गुणसिलए चेइए- वन्नओ,-जाव-पुढविसिलापट्टए-दण्णओ।
तस्स गं गुणसिलयस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा-कालोदाई सेलोदाई सेवालोदाई उदए नामुदए
नम्मदए अन्नवालए सेलवालए संखवालए सुहत्थी गाहावई, ६२४ तए णं तेसि अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाई एगयओ समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसनाणं अयमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था
"एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अस्थिकाए पन्नवेइ, तं जहा-धम्मत्थिकायं-जाव-आगासत्थिकायं, तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अजीवकाए पन्नवेइ, तं जहा-धम्मत्थिकायं अधम्मत्थिकार्य आगासत्थिकाय पोग्गलत्थिकायं, एगं च णं समणे णायपुत्ते जीवत्थिकायं अरूविकायं जीवकायं पन्नवेइ । तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अरूविकाए पन्नवेइ, तं जहा-धम्मत्थिकायं अधम्मत्थिकार्य आगासत्यिकायं जीवत्थिकायं, एगं च णं समण णायपुत्त पोग्गलत्थिकायं रूविकायं अजीवकायं पन्नवेइ, से कहमेयं मन्ने एवं ?"
कालोदाइआईणं गोयमं पइ अस्थिकायसंकानिरूवणं ६२५ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-गुणसिलए चेइए समोसढे-जाव-परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं
समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभई णाम अणगारे गोयमगोत्तेणं एवं जहा बिइयसए नियंठद्देसए-जाव-भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जतं भत्तपाणं पडिगाहित्ता रायगिहाओ-जाव-अतुरियमचवलमसंभंत-जाव-रियं सोहेमाणे सोहेमाणे तेसि अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीइवयइ। तए णं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयम अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासंति पासेत्ता अन्नमन्नं सद्दावेति अन्नमन्नं सद्दावेत्ता एवं वयासो-- "एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमा कहा अविष्पकडा अयं च णं गोयमे अम्हं अदूरसामंतेणं वीइवयइ त सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं गोयम एयमट्ठ पुच्छित्तए" त्ति कट्ट अन्नमन्नस्स अंतिए एयमलैं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता ते भगवं गोयम एवं क्यासी-- १ वृत्तिकृता समुद्ध ता निगमनगाथा--
जह सो चिलाइपुत्तो सुसुमगिद्धो अकज्ज-पडिबद्धो । धण-पारद्धो पत्तो, महाडवि वसण-सयकलियं ।।१।। तह जीवो विसय-सुहे, लुद्धो काऊण पावकिरियावो । कम्मवसेणं पावइ, भवाडवीए महादुक्खं ॥२॥ धणसेट्ठी विव गुरुणो, पुत्ता इव साहवो भवो अडवी । सुयमंसमिवाहारो, रायगिहं इह सिवं नेयं ॥३।। जह अडवि-नियर-नित्थरण-पावणत्थं तएहि सुयमंसं । भुत्तं तहेह साहू, गुरूण आणाइ आहारं ।।४।। भव-लंघण-सिव-साहणहेउ भुजंति ण गेहीए । वण्ण-बलरूव-हेउ, च भावियप्पा महासत्ता ।।५।।
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महावीरतित्वे कालोदाइरुहाण
१६५
"एवं खलु गोयमा ! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे णायपुत्तं पंच अत्थिकाए पनवेs, तं जहा धम्मत्थिकार्य- जाव- आगासत्थि - कायं तं चेत्र - जाव - रूविकायं अजीवकायं पन्नवेद से कहमेयं भंते! गोयमा ! एवं ? "
गोयमकयं कालोयाइआईणं संकाए समाहाणं
६२६ए से भगवते
थिए एवं दवासी-"तो व वयं देवापिया ! अत्यचार्थ त्विति क्यामरा अस्थि ति वयामो, अम्हे गं देवापिया ! सवं अस्थिभावं अस्थि ति क्यामो सम्यं नत्वभावं नत्विति क्यामो संचेपसा खलु तुम्भे देवाणुपिया ! एयमट्ठे सयमेव पच्चुवेक्खह" ति कट्टु ते अन्नउत्थिए एवं वदति, एवं वदित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेव सम भगवं महाबीरे एवं जहा नियंसए-जाय भत्तपाणं पडियंसे, भतपाणं पडिसेला समणं भगवं महावीरं बंद नमस वंदित्ता नमसित्ता मच्चासन्ने जाव- पज्जुवासइ ।
navarssure पंचत्थिकाय संबंधिविविहपुच्छाए जातपुत्तकयं समाहाणं
६२७ तेणं कालेणं तेगं समएणं समणे भगवं महावीरे महाकहापडिबन्ने यावि होत्या । कालोदाई य तं देतं हव्वमागए । कालोदाई ति समणे भगवं महावीरे कालोदाई एवं व्यासी-
से नूणं कालोदाई । अनया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविद्वाणं तहेव जाव से कहमेयं मझे एवं ? से नूणं कालोदाई ! अट्ठे समट्ठे ? हंता ! अस्थि ।
सं समये
एसम कालोदाई! अहं पंचत्विकार्य पद्मवेग तं जहा धम्मत्किार्य-जाय-योगलत्मिकार्य तत्व णं अहं चत्तारि अाए अभीवताए पण तब-जा-एवं चणं योग्यत्यका विकार्य पष्णयेमि ।
६२८ लए पं से फालोदाई समणं भगवं महावीरं एवं बयासी-
एयंसि णं भंते! धम्मत्थिकायंसि अधम्मत्थिकायंसि आगासत्थिकायंसि अरूविकार्यसि अजीवकार्यसि चक्किया केइ आसइत्तए वा सलए वा चिएका निसीहत्तए वा सिए वा ? मो तिमट्ठे सम
कालोदाई ! एगंसि णं पोग्गलत्थिकायंसि रूविकार्यसि अजीवकार्यसि चक्किया केइ आसइत्तए वा सइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा । एसि णं भंते! पोलस्थिका पंसि रूविकासि अजीवकार्यसि जीवाणं पावा कम्मा पावकम्मफलविवागसंजुत्ता कति ? जो इणट्ठे समट्ठे कालोदाई !
६२९ एयंसि णं जीवत्थिकार्यसि अरूविकार्यसि जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ? हंता ! कज्जंति ।
कालोदाइस्स निग्गंथपवज्जागहणं विहरणं च
६३० एत्थ णं से कालोदाई संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-
इणिं भंते! तुमं अंतियं धम्मं निसामेत्तए एवं जहा खंदए तहेव पव्वइए तहेव एक्कारस अंगाई - जाव-विहरइ ॥
भगवओ महावीरस्स जणवयविहारो
६३१ तए णं समणे भगवं महाबीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नगराओ गुणसिलयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता बहिया जगविहारं विहरइ ।
कालोदाइकमाए पावकम्म- कल्लाणकम्मफल विवागपुच्छाए भगवओ समाहाणं
६३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे गुणसिलए चेइए। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ- जाव- समोसढे । परिसा पडिगया ।
६३३ "लए णं से कालोदाई अणगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं वंदs नमसs, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-
अस्थि णं भंते! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ? हंता ! अत्थि ।
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धम्मकहाणुओग दुतीयो खंधो
६३४
६३५
कहाणं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जति ? कालोदाई ! से जहानामए केइ पुरिसे मणुन्नं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं विससंमिस्सं भोयणं भुंजेज्जा, तस्स णं भोयणस्स आवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे दुरूवत्ताए दुगंधत्ताए जहा महासवए-जाव-भुज्जो भुज्जो परिणमइ, एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवाए-जाव-मिच्छादसणसल्ले तस्स णं आवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाण परिणममाणे दुरूवत्ताए-जाव-भुज्जो भुज्जो परिणमह, एवं खल कालोदाई ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजत्ता कज्जति। कल्लाणकम्मविसये पण्होत्तरं अत्थि णं भंते! जीवाणं कल्लाणा कम्मा कल्लाणफलविवागसंजुत्ता कज्जंति ? हंता ! अस्थि । कहनं भंते ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा जाव कज्जंति ? कालोदाई ! से जहानामए केइ पुरिसे मणुन्नं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं ओसहमिस्सं भोयणं भुंजेज्जा, तस्स णं भोयणस्स आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाण सुरूवत्ताए सुवन्नत्ताए-जाव-सुहत्ताए नो दुक्खत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ, एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे-जाव-परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे-जाव-मिच्छादसणसल्लविवेगे तस्स णं आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे सुरूवत्ताए-जाव-नो दुक्खत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ, एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा-जाव-कज्जति ॥ कालोदाइकयाए अगणिकायसमारभण-निव्वावणसंबंधियकम्मबंधपुच्छाए भगवओ समाहाणं दो भंते ! पुरिसा सरिसया-जाव-सरिसभंडमत्तोवगरणा अनमनेणं सद्धि अगणिकायं समारंभंति तत्थ णं एगे पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ, एगे पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ, एएसि णं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महावेयणतराए चेव, कयरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव-जाव-अप्पवेयणतराए चेव, जे वा से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ, जे वा से पुरिसे अगणिकायं निवावेइ ? कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव-जाव-महावेयणतराए चेव, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव -जाव-अप्पवेयणतराए चेव। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तत्थ णं जं से पुरिसे-जाव-अप्पवेयणतराए चेव? कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकायं समारभइ, बहुतरागं आउवकार्य समारभइ, अप्पतरायं तेउकायं समारभइ, बहुतरागं बाउकायं समारभइ, बहुतरायं वणस्सइकायं समारभइ, बहुतरागं तसकायं समारभइ तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ से णं पुरिसे अप्पतरायं पुढविक्कायं समारभइ, अप्पतरागं आउवकायं समारभइ, बहुतरागं तेउक्कायं समारभइ, अप्पतरागं वाउवकायं समारभइ, अप्पतरागं वणस्सइकायं समार भइ, अप्पतरागं तसकाय समारभद; से तेणठेणं कालोदाई ! -जाव-अप्पवेयणतराए चेव ॥
कालोदइकयाए अचित्तपोग्गलावभासण-उज्जोवणसंबंधियपुच्छाए भगवओ समाहाणं ६३६ अस्थि णं भंते ! अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पभासेंति ?
हंता ! अत्थि। कयरे णं भंते ! अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति-जाव-पभासेंति ? कालोदाई ! कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निसट्टा समाणी दूरं गंता दूरं निवयइ, देसं गंता देसं निवयइ, जहि जहि च णं सा निवयइ तहि तहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति-जाव-पभासंति, एएणं कालोदाई ! ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति जाव-पभासेंति ॥
कालोदाइस्स निव्वाणगमणं ६३७ तए णं से कालोदाई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहि चउत्थछट्टम-जाव-अप्पाणं भावेमाणे जहा पढमसए कालासवेसियपुत्ते-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे। सेवं भंते! सेवं भंते ! ति॥
भगवई श. ७ उ.१० ।
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४७. पुंडरीय-कंडरीयकहाणयं ।
महाविदेहे पुण्डरीगिणी नगरीए रायपुत्ता पुण्डरीय-कंडरीया
६३८
तेगं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दोवे पुव्वविदेहे, सोयाए महानईए उत्तरिल्ले कूले, नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्त सी मुहणसंडस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावई नाम विजए पण्णत्ते ॥ तत्थ णं पुंडरीगिणी नामं रायहाणी पण्णत्ता -- नवजोयणवित्थिण्णा दुबालस जोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरुवा पडिरूवा ॥
तीसे णं पुंडरीगिणीए नयरीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए नलिणिवणे नामं उज्जाणे ॥
तत्थ णं पुंडरीगिगीए रायहाणीए महापउमे नामं राया होत्था ।।
तस्स णं पउमावई नामं देवी होत्था ।।
तस्स णं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अतया दुवे कुमारा होत्था, तं जहा -- पुंडरीए य, कंडरीए य-सुकुमालपाणिपाया । पुंडरीए जुवराया ||
महापउमरणो पव्वज्जा पुंडरीयाभिसेओ य
६३९ तेणं कालेनं तेणं समएणं थेरागमणं । महापउमे राया निग्गए । धम्मं सोच्चा पुंडरीयं रज्जे ठवेत्ता पव्वइए । पुंडरीए राया जाए, कंडरीए जुवराया | महापउमे अणगारे चोट्सपुव्वाइं अहिज्जइ ।
तए णं थेरा बहिया जणवयविहारं विहरति ॥
तए णं से महापउमे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता- जाव-सिद्धे ।
तणं थेरा अण्णा कयाइ पुणरवि पुंडरीगिणीए रायहाणीए नलिणीवणे उज्जाणे समोसढ़ा । पुंडरीए राया निग्गए । कंडरीए महाजत सोच्चा जहा महाबलो जाव पज्जुवासइ । थेरा धम्मं परिकर्हति । पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए।
तए णं कंडरीए थेराणं अतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हटुतुट्ठे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता थेरे तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदs नमसइ, वंदिता नसित्ता एवं वयासी
"सहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुम्भे वयह । जं नंबरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि । तओ पच्छा मुंडे भविता णं अगाराओ अगगारियं पव्वयामि ।"
अहासुहं देवाणुपिया !
तए णं सेकंडरीए थेरे बंदर नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता थेराणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ महयाभड चडगर पहकरेण पुंडरीगिणीए नयरीए मज्झमज्झेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता चाउरघंटाओ आसरहाओ पoatoes, पच्चरुहिता जेणेव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि गं देवाप्पिया! तुभेहि अन्भनुष्णाए समाणे थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।"
कंडरीयस्स पव्वज्जा
६४० तए णं से पुंडरीए राया कंडरीयं एवं वयासी
" मा णं तुमं भाउया ! इयाणि मुंडे भवित्ता णं अंगाराओ अणगारियं पव्वयाहि । अहं णं तुमं महारायाभिसेएणं अभिसिचामि ॥" तए णं सेकंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमट्ठ नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ ।
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१६८
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधी
तए णं से पुंडरीए राया कंडरीयं दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासी -"मा णं तुमं भाउया ! इयाणि मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पब्वयाहि । अहं गं तुमं महारायाभिसेएणं अभिसिंचामि ॥" तए णं से कंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमद्वं नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं पुंडरीए कंडरीयकुमार जाहे नो संचाएइ बहूहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य-जाव-ताहे अकामए चेव एपमठें अणमन्नित्था जाव-निक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ जाव थेराणं सीसभिक्खं दलयइ । पन्वइए । अणगारे जाए। एक्कारसंगवी। तए णं थेरा भगवंतो अण्णया कयाइ पुंडरोगिणीओ नयरीओ नलिणिवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमंति, बहिया जगवविहारं विहरंति॥
कंडरीयस्स वेयणा ६४१ तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य-जाव-दाहवक्कंतीए यावि विहरइ ।
तए णं थेरा अण्णया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नलिणीवणे सभोसढ़ा । पुंडरीए निग्गए। धम्म सुणेइ॥
कंडरीयस्स तिगिच्छा ६४२ तए णं पुंडरीए राया धम्म सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छाइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमसइ, बंदित्ता
नमंसिता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी"अहणणं भंते ! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्तेहिं ओसह-भेसज्ज-भत्त-
पाहि तेगिच्छं आउटामि। तं तुम्भे णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह ॥" तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स एयमढं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुंडरीयस्स रण्णो जाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागचिछत्ता फासुएसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति ॥ तए णं पुंडरीए राया तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेता एवं वयासी-- "तुब्भ ण देवाणुप्पिया! कंडरीयस्स फासु-एसणिज्जेणं ओसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेणं तेगिच्छं आउट्टेह ॥" तए णं ते तेगिच्छिया पुंडरीएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा कंडरीयस्स अहापवत्तेहि ओसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेहि तेगिच्छं आउद्देति, मज्जपाणगं च से उवविसंति ॥ तए णं तस्स कंडरीयस्स अहापवसेहि ओसह-भेसज्ज-भत्त-पाहि मज्जपाणएण य से रोगायके उवसंते यावि होत्था---हढे बलियसरीरे जाए ववगयरोगायंके।
कंडरीयस्स पमत्तविहारो ६४३ तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयं रायं आपुच्छति, आपुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति ॥
तए णं से कंडरीए ताओ रोयायंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असणपाण-खाइम-साइमंसि मुच्छिए गिद्ध गढिए अज्ववण्णे नो संचाएइ पुंडरीयं आपुचिछत्ता बहिया अम्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए तत्थेव ओसने जाए।
पुंडरीएण पडिबोहो ६४४ तए णं से पुंडरीए इमीसे कहाए लद्धढे समाणे व्हाए अंतेउर-परियाल-संपरिवडे जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवाच्छद, उवा
गच्छित्ता कंडरीयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी -- "धन्ने सि णं तुम देवाणुप्पिया ! कयत्थे कयपुण्ण कयलक्खणे। सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! तव माणुस्सए जम्म-जीवियफले जे गं तुम रज्जं च रठं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च विछड्डुत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पन्वइए, अहण्णं अधन्ने अज्झोववण्णे नो संचाएमि जाव पव्वइत्तए । तं धन्ने सि णं तुम देवाणुप्पिया। कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे। सुलद्ध गं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले ॥ तए णं से कंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमलैं नो आडाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिइ॥
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पुंडरीप-कंदरी कहाण
तए णं सेकंडरीए अणगारे पोंडरीएणं दोन्चंपि तच्चपि एवं वृत्तं समाणे अकामए अवसवसे लज्जाए गारवेण व पुंडरीयं आपुच्छइ आपुच्छित्ता थेहि सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥
कंडरीयस्स पव्वज्जा - परिच्चायो
६४५ तए णं से कंडरीए थेरेहि सद्धि कंचि कालं उग्गंउग्गेणं विहरिता तओ पच्छा समणत्तण-परितंते समणत्तण- निव्विण्णे समणत्तणfreefoछए समगुण- मुक्कजोगी थेराणं अंतियाओ सनियं-सणियं पच्चीसक्कड़, पच्चोसक्कित्ता जेणेव पुंडरोगिणी नयरी जेणेव पुंडरीयस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता असोगणियाए असोगवरषायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि निसीयह, नीसीइत्ता ओह्मणसंये करतलत्थमुहे अट्टहाणोचगए शियामागे संविद ।।
१६९
तए णं तस्स पुंडरीयस्स अम्मधाई जेणेव असोगवणिया तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छिता कंडरीयं अणगारं असोगवरपायवस्स अहे विसिलाण्डुसि जयमणसंरूपं जाव शिवायमाणं पास पासिता जेणेव पुंडरीए रामा व उपागच्छद्र, उवागच्छिता पंडरी रायं एवं बयासी-
"एवं खलु देवापिया! तब विभाउ कंडरीए अणगारे असोगबगियाए असोगवरपाववत्स आहे पुरविलापट्टे ओहमणक जाव झियाय ।। "
तए णं से पुंडरीए अम्मधाईए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म तहेब संभंते समाणे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेता अंतेउर परियाल संपरिवडे जेणेव असोगणिया तेव उवागड उपागच्छता कंडरी अगवारं तत्तो आणि याहि करे करेला बंदद्दनमंसह बंदिता
नमसित्ता एवं वयासी-
"धन्ते स तु देवागुनिया रुवावे कयपुर्ण कमलखणे मुल देवागुपिया ! तब माणुस्सए जम्म जीविवफले जाव अगाराओ अगगारियं पव्वइए, अहं णं अधन्ने अकयत्थे अकयपुण्णे अकयलक्खणे जाव नो संचाएमि पव्वइत्तए । तं धनेसि णं तुमं देवापियाजाल देवापिया! तब मागुस्साए जम्म जीवि॥"
तए णं कंडरीए पुंडरीएणं एवं वुत्ते समाणे तुसिगीए संचिट्ठइ । दोच्वंपि तच्वंपि पुंडरीएणं एवं बुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठए । लए पुंडरीकंडरी एवं बयासी मते भो?
हंसा! अठो
तए णं से मुंडरीए राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कंडरीयस्स महत्थं रायाभिसेयं उबटूवेह जाव रायाभिसेएण अभिसिंचति ॥
पुंडरीयरस पव्वज्जा
६४६ तए णं से पुंडरीए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, सबमेव चाज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जिता कंडरीयस्स संतियं आयारमंडगं गेह, गoिहत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिह-
"कप्पड़ में थेरे वंदित्ता नमसित्ता येराण अंतिए बाउज्जाम धम्मं उवसंपज्जित्ता णं तओ पच्छा आहारं आहारितए ति कट्टु इमं एवं अभिवाहं अभिविहितानं पुंडरीमिणीए पडिणिस्खम, पडिणिश्वमिता पुध्वाणपुत्र चरमाणे गामाणुवामं इज्जाणे जेणेव मेरा भगवंतो तेव पहारेत्थ गमणाए ।
कंडरायस म
६४७ तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तं पणीयं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्स अइजागरएण य अइभोय-प्पसंगेण य से आहारे नो सम्म परिणमइ ॥
तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तंसि आहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया -- उज्जला विला खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । पित्तज्जर-परिणय-सरीरे बाह्यक्तीए यानि विहरह ।।
तए णं से कडरीए राया रज्जे य रट्ठे य अंतेउरे य माणुस्सएस् य कामभोगेसु मुछिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अट्टदुहट्टवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे का किवा अहेरालमाए पुइबीए उक्कोसकालयति मरयसि रइताए ।
ध० क २२
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१७०
निगमणं
६४८ एवामेव समणाउसो ! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंधी वा आयरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पुणरिव माणुस्सर कामभोए आसाएइ पत्थयइ पीहेई अभिलसइ, से णं इह भवे चेव बहूणं समणाण बहूण समणीणं बहूणं सापा बहूणं साविपाण य होलणिजे निदणिज्जे सिणिज्ने गरहणिजे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छ बि दंडणाणि य मुंडणाणि य सम्मणाणि वनानि व जाव चाउरंतं संसारकंतारं भुजो भुजो अणुपरिहिसाव से कंडरीए राया ॥
पुंडरीयरस आराहणा
६४९ तए णं से पुंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता मेरा अंति दोष घाउमा धम्मं पडिवजह, दुक्खमणपारणगंति पदमाए पोरिसीए सम्झायं करेइ, बीपाए पोरिसीए शाणं शिवा, तइयाए पोरिसीए नाव उच्च-नीय-मज्झिमाई फुलाई घरसमुदाणस्स भिक्वापरियं अडमाणे सीयलक्खं पाणभोपणं पडिवाइ पडिगाला अहापज्जत्तमिति कट्टुपडिनिवड, जेणेव वेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छड, उपागच्छता भत्तवानं पडिवं पत्ति मेरे भगवंतेहि अमगुणाए समाने अमुछिए जाव विलमिव पण्यगभूषणं अध्याणं तं फामु-एसगिज्जं असण-पाण- खाइम-साइ सरीरको पहि ॥
तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स तं कालाइक्कतं अरसं विरसं सीयलुक्खं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्स पुण्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स से आहारे नो सम्मं परिणमइ ॥
धम्महाणुओगे तो बंधो
तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स सरोरगंसि वेयणा [पाउन्भूया उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । पित्तज्जर-परिगव- सरीरे दावती विरइ ॥
तए णं से पुंडरीए अणगारे अत्थामे अबले अवोरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजल कट्ट् एवं वयासी
"नमोत्यु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरियाणं धम्मोचयाणं पुण्यपि य भए पेराणं अंतिए सम्ये पाणाइयाए पचखाए जाय बहिराणे पचखाए, इयाणि पिणं अहं तसि चेव अंतिए सभ्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव बहिद्धादाणं पञ्चवखामि । सव्वं असण- पाण- खाइम - साइमं पञ्चक्खामि चव्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए । जंपि य इमं सरीरं इट्ठे कंतं तं पि य णं चरिमेहि उस्सासनीसासेहि वोसिरामि" त्ति कट्टु आलोइय-पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा सव्वट्टसिद्धे उववण्णे । तओ अणंतरं उब्वट्टित्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहि बुज्झिहि मुच्चिहि परिनिव्वाहि सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥
निगमणं
६५० एवामेव समासो ! जो अहं निग्गंयो वा निांची वा आवरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भविता अगाराज अनगारियं इसमाने माणुस्महि काममोहि नो सज्ज नो रज्जद्द नो विवाह नो मुन् नो अन्लोबलाइ नो विव्यविद्यायमादन्नई, से णं इहभवे चैव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जं पूर्याणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ ।
परलोए वि य णं नो आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य तालणाणि य जाव चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ -- जहा व से पुंडरीए अणगारे || 1
१. वृत्तिकृता समृद्धता निगमनगाथा-
बाससहसपि जइ काळणं संजम सुविचलंपि अंते किलिट्टभावो न विसुमइ कंडरी अपेण वि काले, केई जहा गहिम सील- सामण्णा | साहति नियय
णाया. सु. १, अ. १९ ।
व्व ।। १ ।। पुंडरीव महारिभि व जहा ॥२॥
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४८. महावीरतित्थे थविरावली
६५१ सव्वे एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारस वि गणहरा दुवालसंगिणो चोद्दसपुग्विणो समत्तगणिपिडगधरा रायगिहे नगरे
मासिएणं भत्तिएणं अपाणएणं कालगया-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा । थेरे इंदभूई, येरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परिनिया ॥
समणनिग्गंथाणं अज्जसुहम्मावच्चिज्जत्तं ६५२ जे इमे अज्जताते समणा निग्गंथा विहरंति एए णं सम्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा
वोच्छिन्ना ॥
अज्जसुहम्ममारब्भ अज्जजसभद्दपज्जंता थेरावली ६५३ समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अज्ज सुहम्मे थेरे अन्तेवासी अग्गिवेसायणगोत्ते ।
थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवसायणसगोत्तस्स अज्जजंबनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते। . थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जंभव थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोते। थेरस्स णं अज्जसेज्जंभवस्स मणगपिउणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायणसगोते॥
अज्जजसभहमारम्भ संखित्तथरावली ६५४ संखित्तवायणाए अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तं जहा--
थेरस्स णं अज्जजसभद्दस्स तुंगियायणसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा--थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोत्ते; थेरे अज्जभद्दबाहू पाइणसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा--थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिद्धसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा सुट्ठियसुपडिबुद्धा कोडियकाकंदगा वग्यावच्चसगोत्ता। .. थेराणं सुट्टिसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदगाणं वग्घावच्चसगोत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्जइंददिन्ने कोसियगोत्ते।
. थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जदिन्ने गोयमसगोते। थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जसोहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते। थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जातिस्सरस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोते। थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा १ थेरे अज्जनाइले,२ थेरे अज्जपोगिले, ३ थेरे अज्जजयंते,४ थेरे अज्जतावसे। थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया, थेराओ अज्जपोगिलाओ अज्जपोगिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताओ अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥ १. परिनिन्बुया गणहरा, जीवंते नायए नव जणाओ । इंदभूइ सुहम्मो य, रायगिहै निव्वुए वीरे ॥१॥ २. क-पंचण्हं पंचसया अद्भुट्ठसया य होंति दोण्ह गण्णा । दोण्ह तु जुयलयाणं, तिसयो तिसयो हवइ गच्छो ।।
तित्थं च सुहम्मातो, निरपच्चा गणहरा सेसा ।। ख-सम. सु. १५७।
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१७२
धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो
६५५
अज्जजसभद्दमारिभ वित्थिण्णा थेरावली वित्थरवायणाए पुण अज्जजसमद्दाओ परओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा-- थेरस्स णं अज्जजसभद्दस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा--थेरे अज्जभद्दबाहू पाईणसगोत्ते, थेरे अज्ज संभूयविजये माढरसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जभद्दबाहुस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा-- येरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जपणदत्त थेरे सोमदत्ते कासवगोत्ते थे। थेरेहितो गं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो एत्थ णं गोदासगणे नाम गणे निग्गए, तस्स गं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा-- तामलित्तिया कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासीखन्वडिया। बेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्या, तं जहा-- गाहाओ-नंदणभद्दे उवनंदभद्द तह तीसमद्द जसमद्दे। थेरे य सुमिणभद्दे मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य ॥१॥
थेरे य यूलभद्दे उज्जमती जंबुनामधेजे य। थेरे य दोहभद्दे थेरे तह पंडुभद्दे य॥२॥ थेरस्स णं अज्जसंभूइविजयस्स माडरसगोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिन्नताओ होत्था, तं जहा-- गाहा-जक्खा य जक्खदिन्ना भूया तह होइ भूयविना य । सेणा वेणा रेणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥१॥ थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो घेरा अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं जहा-- थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोते, मेरे अज्ज सुहत्थी वासिद्धसगोत्ते। येरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्छसगोत्तस्स इमे अट अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं जहा-- १ येरे उत्तरे, २ थेरे बलिस्सहे, ३ थेरे धणड्ढे, ४ थेरे कोडिन्ने, ५ येरे नागे, ६ थेरे नागमित्ते, ७ धेरे छलुए, ८ रोहगुत्ते कोसिए गोतेणं। थेरेहितो गं छलुएहितो रोहगुत्तेहितो कोसियगोहितो तत्थ णं तेरासिया मग्गया । थेरेहितो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्थ णं उतरबलिस्सहगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा-१ कोसंबिया, २ सोतित्तिया, ३ कोडवाणी, ४ चंदनागरी॥ थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिटुसगोत्तस्स इमे घुषालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं जहा-- गाहाओ-थेरे स्थ अज्जरोहण, भद्दजसे मेहगणी य कामिड्ढी। सुट्टियसुप्पडिबुद्धे, रक्खिय तह रोहगुत्ते य॥१॥
इसिगुत्ते सिरिगुत्ते, गणी य बंभे गणी य तह सोमे। दस दो य गणहरा, खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ थेरेहितो णं अज्जरोहणेहितो कासवगुत्तेहितो तत्य णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए। सस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ छच्च कुलाई एवमाहिज्जेति। से कि तं साहाओ? साहाओ एवमाहिज्जंति,-१ उqबरिज्जिया, २ मासपूरिया, ३ मतिपत्तिया, ४ सुवन्नपत्तिया, सेत्तं साहाओ। से कि तं कुलाई? कुलाई एवमाहिज्जति, तं जहा-- गाहाओ-पढमं च नागभूयं, बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं, चउत्थयं हथिलिज्जं तु ॥१॥
पंचमगं नंदिज्ज, छठें पुण पारिहासियं होइ। उद्देहगणस्सेते, छच्च कुला होंति नायब्वा ॥२॥ थेरेहितो गं सिरिगुहितो गं हारियसगोलॊहितो एत्य णं चारणगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ पत्तारि साहाओ, सत य कुलाई एवमाहिति । से कि तं साहातो? साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा-- १हारियमालागारी, २ संकासिया, ३ गवेधूया, ४ बज्जनागरी, से तं साहाओ । से किं तं कुलाइं? कुलाई एवमाहिज्जंति, तं जहा-- गाहाओ-पढमेत्थ वच्छलिज्ज, बीयं पुण वोचिधम्मक होइ । तइयं पुण हालिज्जं, चउत्थगं पूसमित्तेज्जं ॥१॥
पंचमगं मालिज्जं, छठं पुण अज्जचेडयं होइ। सत्तमगं कण्हसह, सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥ थेरेहितो भद्दजसेहितो भारद्दायसगोहितो एत्थ णं उडुवाडियगणे नाम गणे निग्गए।
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महावीरताथे पविरावल
तस्स णं इमाओ चलारिसाहा, तिप्रिय कुलाई एवमाहिज्जेति । से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा-१ चंपिज्जिया, २ भद्दिज्जिया, ३ काकंदिया मेहलिज्जिया, से तं साहाओ । से कि बुलाई? कुलाई एवमाहिज्जेति
वाहा-भजसि तह भद्गुतियं तद्दयं च होइ जसम बेरेहितो णं कामिद्दीहितो कुंडिलोहितो एत्थ में
तस्य णं इमाओ बसारि साहाओ, चत्तारि व कुलाई एवमाहिज्जेति ।
से कि
एयाई उडवाडियगणस्स, तिन्नेव य कुलाई || १ || सवाडियवणे नामं गणे निम्मए ।
साहाओ ?
साहाओ एवमाहिति सावरिया रजवालिया अन्तरिजिया बंगलिया से से साहाओ ।
से किं तं कुलाई ?
कुलाई एवमाहित्वंति-
गाहा गणियं मेहि काम, तह हो र च एवाई बेसवाडियगणस्स बत्तारि उ कुलाइ ॥। १॥ येहितो इसहितो गं दहितो वासिगोलहितो एत्थ णं मानवगणे मागणे निगए । तस्य णं इमाओ बलारिसाहाओ लिविंग व कुलाई एवमाहिति ।
——
सेकसे साहाओ ?
सहाओ एवमाहिज्जेति - १ कासविज्जिया, २ गोयमिज्जिया, ३ वासिट्ठिया, ४ सोरट्टिया से लं साहाओ । से किं तं कुलाई ?
कुलाई एवमाहिज्जंति, तं जहा-
गाहा - इसिगोत्तियत्थपढमं, बिइयं इसिवत्तियं मुणेयब्वं । तइयं व अभिजसंतं, तिनि कुला मानवगणस्स || १ ||
थेरेहितो णं सुट्टियपडिबुद्धे हितो कोडियका दिएहितो वग्धावच्चसगो तेहितो एत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निगए । तस्स जं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाई एवमाहिज्जेति ।
से कि तं साहाओ ?
साहाओ एवमाहिति तं जहा---
गाहा उच्चानागरि बिमारी बहरी मामला कोडियगणस्स एया, हवंति चतारि पाहा ॥१॥ से कि कुलाई ?
कुलाई एवमाहिति तं जहा
गाहा - पढमेत्थ बंभलिज्जं, बितियं नामेण वच्छलिज्जं तु । ततियं पुण वाणिज्जं वउत्थयं पद्मवाहणयं ॥ १ ॥ सुपाडियादा वन्यावयगोता इमे पंच घेरा अंतेवासी महाबच्चा अभिप्राया होत्या,
मेरा
मेरे अदि मेरे ने मेरे बिनाहरगोवाले कासवगोले गं मेरे इससे मेरे अरबले बेरेहितो गं पिवहितो एव
1
वेरेहितो गं अन्नसंतिगिएहितो गं मादरसगोलहितो एत्थ में उच्चानागरी साहा मिलाया।
थेरस्स णं अज्जसंतिसेणियस्स माढरसगोत्तस्स इमे चत्तारि मेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा
णं मझमा साहा निगमा बेरेहितो बिज्जाहरगोवाहितो सत्य णं विनाहरी साहानिया।
थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिने थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जविनस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया वि होत्या, तं जहा-
मेरे अम्जसंतिणिए मारगो मेरे अजसोहगिरी जाहस्तरे कोयगोते ।
मेरे
ए मेरे अब मेरे अरे मेरे असालते । अतिहितो एत्थ अनरोणिया साहानिया।
मेरेहितो
पेरेहितो णं अश्वकुरेहितो एत्थ णं अभ्यकुबेरा साहानिया
येरेहितो गं अनसिपालहितो एत्य णं अज्जइतिवालिया साहा निगया।
थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जातीसरस्स कोसियगोत्तस्स इमे चत्तारि मेरा अंतेवासी अहाबच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहामेरे धरी रे अजबहरे मेरे समिए मेरे अरवि
पेरेहितो गं असमिति एत्व में बंभदेवोया साहा निगया। पेरेहितो
१७३
अवहितो गोपगोते तो एत्थ में अजवारा साहा निग्या
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धम्मकहाणुओगे दुतीयो खंधो थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोतमसगोत्तस्स इमे तिनि थेरा अन्तेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं जहाथेरे अज्जवइरसेणिए थेरे अज्जपउमे थेरे अज्जरहे। थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिएहितो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जरहेहितो एत्थ णं अज्जजयंती साहा निग्गया। थेरस्स णं अज्जरहस्स बच्छसगोत्तस्स अज्जपुसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते । थेरस्स णं अज्जपूसगिरिस्स कोसियगोत्तस्स अज्जफग्गुमित्ते थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते ।। गाहाओ-वंदामि फागुमित्तं च गोयमंधणगिरिं च वासिटु । कोच्छि सिवभूई पि य, कोसिय दोज्जितकंटे य ॥१॥ तं वंदिऊण सिरसा चित्तं वदामि कासवं गोत्तं । णक्खं कासवगोत्तं रक्खं पि य कासवं वंदे ॥२॥ वंदामि अज्जनागं च गोयम जेहिलं च वासिट्ट। विण्डं माढरगोत्तं कालगमवि गोयमं वंदे ॥३॥
गोयमगोत्तमभारं सप्पलयं तह य भयं वंदे। थेरं च संघवालियकासवगोत्तं पणिवयामि ॥४॥ वंदामि अज्जहत्थि च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण पढममासे कालगयं चेत्तसुद्धस्स ॥५॥ वंदामि अज्जधम्मं च सुव्वयं सीसलद्धिसंपन्नं । जस्स निक्खमणे देवो छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥६॥ हत्थं कासवगोत्तं धम्मं सिवसाहगं पणिवयामि । सीहं कासवगोत्तं धम्म पि य कासवं वंदे ॥७॥ सुत्तत्थरयणभरिए खमदममद्दवगुहिं संपन्ने । देविढिखमासमणे कासवगोत्ते पणिवयामि ॥८॥ -कल्पसूत्र
१. अतोऽनन्तरगतगाथायाः पूर्वमर्वाचीनासु प्रतिषु निम्नोद्ध तोऽधिकः पाठ उपलभ्यते
थेरस्स णं अज्जफग्गुमित्तस्स गोयमसगुत्तस्स । अज्जधणगिरी थेरे अंतेवासी वासिट्ठसगोत्ते ।।३।। थेरस्स णं अज्जधणगिरिस्म वासिट्टसगोत्तस्स । अज्जसिवभूई थेरे अंतेवासी कुच्छसगोत्ते ।।४।। थेरस्स णं अज्जसिवभूइस्स कुच्छसगोत्तस्स । अज्जभद्दे थेरे अन्तेवासी कासवगुत्ते ।।५।। थेरस्स णं अज्जभद्दस्स कासवगुत्तस्स। अज्जनक्खते थेरे अन्तेवासी कासवगुत्ते ।।६।। थेरस्स णं अज्जनक्खत्तस्स कासवगुत्तस्स। अज्जरक्खे थेरे अन्तेवासी कासवगुत्ते ।।७।। थेरस्स णं अज्जरक्खस्स कासवगुत्तस्स । अज्जनागे थेरे अन्तेवासी गोयमसगोत्ते ।।८।। थेरस्स णं अज्जनागस्स गोयमसगुत्तस्स । अज्जजेहिले थेरे अन्तेवासी वासिट्टसगुत्ते ।।९।। थेरस्स णं अज्जजेहिलस्स वासिट्ठसगुत्तस्स । अज्जविण्हू थेरे अन्तेवासी माढरसगोत्ते ।।१०।। थेरस्स णं अज्जविण्हस्स माढरस्सगुत्तस्स । अज्जकालए थेरे अन्तेवासी गोयमसगोत्ते ।।११।। थेरस्स णं अज्जकालगस्स गोयमसगुत्तस्स। इमे दुबे थेरा अन्तेवासी गोयमसगोत्ता
थेरे अज्जसंपलिए थेरे अज्जभद्दे ।।१२।। एएसि दण्ह वि थेराणं गोयमसगुत्ताणं। अज्जवुड्ढे थेरे अन्तेवासी गोयमसगुत्ते ।।१३।। थेरस्स णं अज्जवुड्ढस्स गोयमसगोत्तस्स । अज्जसंघपालिए थेरे अन्तेवासी गोयमसगोत्ते ।।१४।। थेरस्स णं अज्जसंघपालियस्स गोयमसगोत्तस्स । अज्जहत्थी थेरे अन्तेवासी कासवगुत्ते ।।१५।। थेरस्स णं अज्जहत्थिस्स कासवगत्तस्स । अज्जधम्मे थेरे अन्तेवासी सूव्वयगोत्ते ।।१६।। थेरस्स- णं अज्जधम्मस्स सुव्वयगोत्तस्स । अज्जसीहे थेरे अन्तेवासी कासवगुत्ते ।।१७।। थेरस्स णं अज्जसीहस्स कासवगुत्तस्स। अज्जधम्मे थेरे अन्तेवासी कासवगुत्ते ।।१८।। थेरस्स णं अज्जधम्मस्स कासवगुत्तस्स। अज्जसंडिल्ले थेरे अन्तेवासी ।।१९।।
--अर्वाचीनासु प्रतिषु पाठः । २. गोयमगोत्तकुमारं-गोयमगोत्तममारं इतिकल्याणविजय--पट्टावलीपरागे पृ. २९ ।
गोयमगोत्तभभारं, गोयमगोत्तममारं' इति प्रत्यन्तरद्वयम् ।। ३. थेरं च अज्जुवुड्ढे, गोयमगुत्तं नमसामि ।।४।।
तं वंदिऊण सिरसा थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्नं। थेरं च संघवालिय गोयमगुत्तं पणिवयामि ।।५।। वंदामि अज्जहत्थि च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाणपढममासे कालगयं चेव सुद्धस्स ।।६।। बंदामि अज्जधम्म च सुव्वयं सीललद्धिसंपन्नं । जस्स निक्खमणे देवो छत्तं वरमुत्तमं वहइ ।।७।। हत्थि कासवगुत्तं धम्म सिवसाहगं पणिवयामि। सीहं कासवगत्तं धम्म पि अ कासवं वंदे ।।८।। तं वंदिऊण सिरसा थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्न । थेरं च अज्जजंबू गोअमगुत्तं नमसामि ।।९।। मिलमदवसंपन्न उवउत्तं नाणदंसणचरित्ते। थेरं च नंदिअंपि य कासवगुत्तं पणिवयामि ।।१०।। तत्तो अ थिरचरितं उत्तमसम्मत्तसत्तसंजुत्तं । देसिगणिखमासमणं माढरगुत्तं. नमसामि ।।११।। तत्तो अणओगधरं धीरं मइसागरं महासत्तं । थिरगत्तखमासमणं वच्छसगत्तं पणिवयामि ।।१२।। तत्तो य नाणदंसणचरित्ततवसुटूिअं गुणमहंतं। थेरं कुमारधम्म वंदामि गणि गुणोवेयं ।।१३।। सुत्तत्थरयणभरिए, खमदममद्दवगुणेहि संपन्ने । देविड्डिखमाममणे कासवगुत्ते पणिवयामि ।।१४।।
--अर्वाचीनासु प्रतिषु पाठः ।
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महावीरतित्थे भविरावली
नंदिता बेरावली
६५६ हम् अगिवेतानं, जंबूनामं च कासवं जस तु बंदे, संभू देव माहरे एलावण्यसंगो वंदामि महागिरि हरिय च
तत्तो कोसियगोत्तं बहुलस्स सरिव्यं वंदे ॥२७॥
हारियगुत्तं साइं च, बंदिमो हारियं च सामज्जं । वंदे कोसियगोत्तं संडिल्लं अज्जजीयधरं ॥ २८ ॥ ति समुह खाकिति, दीवसमुद्देसु गहिय-पेयावं वंदे अन्जसमुद्र, अभिय-समुद्-गंभीरं ।। २९ ।। भगं करगं झरगं, पभावगं णाण दंसणगुणाणं । वंदामि अज्जमंगुं सुयसागरपारगं धीरं ॥ ३० ॥
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* वंदामि अज्जधम्मं तत्तो वंदे य भद्दगुत्तं च । तत्तो य अज्जवइरं तव नियम-गुणेहिं वइरसमं ॥ ३१ ॥ *वंदामि अजरस्य खचणं शक्य-चारित सत्यस्से रवणकरंगभूज, अणुओगो रक्खि जहि ॥ ३२॥ नामि दंसणंमिय, तव - विणए णिच्चकालमुज्जुत्तं । अज्जं नंदिल खवणं, सिरसा वंदे पसन्नमणं ।। ३३ । यद वापसी जसवंती अज्जनागहत्बीणं । जागरण करण-भंगिय, रूम्मपवडीपहाणाणं ।।३४।। जच्चजण धाउसनप्पहाणं मुद्दीय- कुवलयनिहाणं । वड्दउ वायगवंसो, रेवइ-नक्खत्तनामाणं ॥३५॥ अयलपुरा निक्खते, कालियसुअ-आणुओगिए धीरे । बंभद्दीवग-सीहे, वायगपयमुत्तमं पत्ते ॥ ३६ ॥ जस इमो अणुओगो पर अजावि जयभरहंनि बहुनपरनिग्ायजसे ते बंदे खंदिलाचयरिए ॥ ३७॥ ततो हिमवंत-महंत-विकमे, धिपरक्कममणं सायमधरे, हिमयंते बंदिमो सिरसा ॥ ३८ ॥ कालिय-सु-अणुओगस धारए, धारए य पुव्वाणं । हिमवंतखमासमणे, वंदे णागज्जुणायरिए || ३९॥ मिमद्दवसंपन्ने, अणुपुव्वि वायगतंणं पत्ते । ओहसुयसमायारे, नागज्जुणवायए वंदे ||४०|| * योविदापि नमो अणुओने विजलधारणिवाणं विश्वं दिवाणं, गरुवणे सभाणं ।।४१।। "तत्तो भूयदिनं निच्वं तव-संजमे अनिष्णिं पंडिजणतामनं, बंदामो संजमविष्णुं ॥ ४२ ॥ वर-कणग-तविथ-चंपग-विमउल-वर-कमलगभसरिवन्ने । भवियजणहिययदइय, दयागुणविसारए धीरे ||४३|| अढभ रहप्पहाणे, बहुविह-सज्झाय- सुमुणियपहाणे । अणेओगियवरवसमे, नाइलकुलवंसनंदिकरे ॥४४॥ भूयहिययपगन्भे, वंदे ऽहं भूयदिन मारिए । भवभयवुच्छेयकरे, सीसे नागज्जुरिसीणं ॥ ४५ ॥ सुमुनानि सुमुणियसुतत्वधारयं वंदे सम्भावुभावण्या, तत्वं लोहिच्च गामाणं ।। ४६॥ अस्थमहत्याक्खाणि सुसमणश्वाणनिम्याणि पपईए महरवाणि पयलो पणमामि सर्वांग ।।४७॥ * तब नियम- सच्च- संजम विणयज्जव खंति-मद्दवरयाणं । सीलगुणगद्दियाणं, अणुओगजुगप्पहाणा णं ॥ ४८ ॥ सुकुमालकोमलतले, तेस पणमामि लक्खणपसत्वे पाए पाववणीणं पापच्छियसहि पणिवहए ॥ ४९ ॥ जे अने भगवंते, कालियसुय आणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छं ॥ ५० ॥
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१. विरावली--]]
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पमयं कच्चायणं वंदे, वच्छं सिज्यंभवं तहा ।।२५।
भवा चपाइ धूल व गोवमं ।। २६ ।।
--नंदी ।
सूरि बलिस्सह साई, सामज्जो संडिलो य जीयधरो । अज्जसमुद्दो मंगू, नंदिल्लो नागहत्थी य ।। रेबईसह बंदिल, हिमवं नागवा य गोविंदा सिरिभूइदिन्न लोहिच्च सपिणो व देवडी ।। युत्तत्व-रयणभरिए, बम-दम-मवगुरोह संपन्ने देवद्द्वियमासमणे, कासव पणिस्यामि ॥ एतादृचिह्नाङ्कितं गाथा पञ्चकं व्याख्या ग्रन्थेषु नोपलभ्यते ॥
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६० क० २३
तईओ खंधो
समणीकहाणगाणि
१. अरिनेमितित्थे
२. अरिट्टनेमितित्थे
३.
४. पासनाहतित्थे
५. पासनाहतित्थे
६. पासना हतित्थे
७. पासनाहतित्थे
८. महावीरतित्थे
९. महावीरतित्थे
अज्झयणा
दोवईकहाण
पउमावई - आईणं समणीणं कहाणगाणि
पोट्टला कहाण
समणीणं काली- आईणं कहाणगाणि
राई - आईण कहाणगाणि
समणीणं भूयाईणं कहाणगाणि
समणी सुभद्दा कहाण
नंदाई कहाणगाणि
जयन्तीकहाण
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१. अरिट्ठनेमितित्थे दोवईकहाणयं
दोवईपुव्वभवा १ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्या ।। तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसोभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे होत्था ॥
नागसिरी-कहाणगं ___ तत्थ णं चंपाए नयरीए तओ माहणा भायरो परिवसंति, तं जहा--
सोमे सोमदत्ते सोमभूई-अड्ढा-जाव-अपरिभूया रिउव्वेय-जउब्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय-जाव-बंभषणएसु य सत्येसु सुपरिनिट्टिया॥ तेसि णं माहणाणं तओ भारियाओ होत्था, तं जहा-- नागसिरी भूयसिरी जक्खसिरी--सुकुमालपाणिपायाओ-जाव-तेसि णं माहणाणं इटाओ, तेहिं माहहिं सद्धि विउले माणुस्सए कामभोए पच्चगुभवमाणीओ विहरंति ॥
नागसिरीए तित्तालाउयस्स उवक्खडणं एगते गोवणं च ३ तए णं तेसि माहणाणं अण्णया कयाइ एगयओ समुवागयाणं-जाव-इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था-एवं खलु देवाणु
प्पिया ! अम्हं इमे विउले धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जे, अलाहि-जाव-आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तं पकामं परिभाएउं; तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! अण्णमण्णस्स गिहेसु कल्लाकल्लि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडे परिभुंजमाणाणं विहरित्तए । अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुर्णेति, कल्लाकल्लि अण्णमण्णस्स
गिहेसु विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, परिभुंजेमाणा विहरंति ॥ ४ तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए अण्णया कयाइ भोयणवारए जाए यावि होत्था ।
तए णं सा नागसिरी विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, एगं महं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंजुत्तं नेहावगाढं उवक्खडेइ, एग बिंदुयं करयलंसि आसाएइ, तं खारं कडुयं अखज्जं विसभूयं जाणित्ता एवं वयासी"धिरत्थु णं मम नागसिरीए अधनाए अपुग्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभगनिबोलियाए, जाए णं मए सालइए तितालाउए बहसंभारसंभिए नेहावगाढे उवक्खडिए, सुबहुदव्वक्खए नेहक्खए य कए। तं जइ णं ममं जाउयाओ जाणिस्संति तो णं मम खिसिस्संति । तं-जाव-ममं जाउयाओ न जाणंति ताव मम सेयं एयं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगते गोवित्तए, अण्णं सालइयं महुरालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं उवक्खडित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगते गोवेइ, गोवेता अण्णं सालइयं महुरालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं उवक्खडेइ, उवक्खडता तेसि माहणाणं पहायाणं भोयणमंडवंसि सुहासणवरगयाणं तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं परिवेसेइ ॥ तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुरागया समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था । तए णं ताओ माहणीओ व्हायाओ-जाव-विभूसियाओ तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आहारति, जेणेव सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ताओ जायाओ॥
धम्मरुइस्स तित्तालाउय-दाणं ५ तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा-जाव-बहुपरिवारा जेणेव चंपा नयरी जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति,
उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति । परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया।
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तए णं तेसि धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे
संखित्त-विउल-तेयलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ॥ ६ तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं शियाइ, एवं जहा
गोयमसामी तहेव भायणाई ओगाहेइ, तहेव धम्मघोस थेरं आपुच्छइ-जाव-चंपाए नयरीए उच्च-नीअ-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपविढे ॥ तए णं सा नागसिरी माहणी धम्मरुई एज्जमाणं पासइ, पासित्ता तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स एडणट्ठयाए हट्ठतुट्ठा उट्ठाए उ8 इ, उदृत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभार
संभियं नेहावगाढं धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहंसि सव्वमेव निसिरइ॥ ७ तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमिति कट्ठ नागसिरीए माहणीए गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिवखमित्ता चपाए नयरोए
मझमझेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छइ, धम्मघोसस्स अदूरसामंते अन्नपाणं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता अन्नपाणं करयलंसि पडिसेइ ।। धम्माइणा तित्तालाउय-परिट्रावणं पिपीलिगामरणं य तए णं धम्मघोसा थेरा तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स गंधेणं अभिभूया समाणा तओ सालइयाओ तित्तालाउयाओ बहुसंभारसंभियाओ नेहावगाढाओ एगं बिदुयं गहाय करयलंसि आसाति, तित्तगं खारं कडुयं अखज्जं अभोज्नं विसभूयं जाणित्ता धम्मरुई अणगारं एवं वयासी-- "जइ णं तुम देवाणुप्पिया! एवं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं आहारेसि तो गं तुम अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तं मा णं तुम देवाणुप्पिया! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं आहारेसि, मा णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तं गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगंतमणावाए अचित्त थंडिले परिवेहि, अण्णं फासुयं एसणिज्ज असण-पाण-खाइम-साइमं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेहि।" तए णं से धम्मरुई अणगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्त समाणे धम्मघोसस्स थेरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ अदूरसामंते थंडिलं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता तओ सालइयाओ तित्तालाउयाओ बहुसंभारसंभियाओ नेहावगाढाओ एगं बिंदुगं गहाय थंडिलंसि निसिरइ॥ सए णं तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स गंधेणं बहूणि पिपीलिगासहस्साणि पाउम्भूयाणि । जा जहा य णं पिपीलिगा आहारेइ, सा तहा अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जह ॥
अहिंसठ्ठधम्मरुइणा तित्तालाउय-भक्खणं १० तए णं तस्स धम्मरुइस्स अणगारस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--जइ ताव इमस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स
बहुसंभारसंभियस्स एगमि बिदुगंमि पक्खित्तंमि अणगाइं पिपीलिगासहस्साइं ववरोविजंति, तं जइ णं अहं एयं सालइयं तितालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं थंडिलंसि सव्वं निसिरामि तो गं बहूणं पाणाणं-जाव-सत्ताणं वहकरणं भविस्सइ । तं सेयं खलु ममेयं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं सयमेव आहारित्तए, ममं चेव एएणं सरीरएणं निज्जाउ त्ति कटु एवं संपेहेइ संपेहेत्ता मुहपोतियं पडिलेहेइ, ससीसोवरियं कार्य पमज्जेइ, तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणणं सव्वं सरीरकोटुगंसि पक्खिवह ॥
धम्मरुइस्स समाहिमरणं ११ तए णं तस्स धम्मरुइस्स तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं आहारियस्स समाणस्स मुहत्तंतरेणं परिणममाणंसि
सरीरगंसि वैयणा पाउन्भूया--उज्जला-जाव-दुरहियासा॥ तए णं से धम्मरुई अणगारे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसवकारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु आयारभंडगं एगते ठवेइ, थंडिलं पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं संथरेइ, दम्भसंथारगं दुरूहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकभिसण्णे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थर अंजलि कटु एवं वयासी-- "नमोत्थु णं अरहताणं-जाव-सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं । पुव्वि पिणं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए-जाव-बहिद्धादाणे, इयाणि पि णं अहं तेसि चेव
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अरिट्टनेमितित्थे दोवईकहाणयं
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......णास सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियम् -
भगवंताणं अंतियं सव्वं पाणाइवायं पञ्चक्खामि-जाव-बहिद्धादाणं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जहा खंदओ-जाव-चरिमेहि उस्सासेहि वोसिरामि" ति कटु आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालगए॥
साहूहिं धम्मरु इस्स गवसणा १२ तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुई अणगारं चिरगयं जाणित्ता समणे निग्गथे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु देवाणु
प्पिया! धम्मरुई अणगारे मासक्खमणपारणगंसि सालइयस्स तितालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स निसिरणट्टयाए बहिया निग्गए चिरावेइ। तं गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेह ॥
साहूहि धम्मरुइस्स समाहिमरण-निवेदणं । १३ तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं-जाव-तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता धम्मघोसाणं थेराणं
अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेझैं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो ! अकज्जमिति कटु धम्मरुइस्स अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, धम्मरुइस्स आयारभंडगं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता गमणागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी"एवं खलु अम्हे तुम्भं अंतियाओ पडिनिक्खमामो, सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छामो-जाव-इहं हव्वमागया । तं कालगए णं भंते ! धम्मरुई अणगारे। इमे से आयारभंडए॥"
धम्मरुइस्स अणुत्तरदेवत्तेण उववाओ नागसिरिगरहा य १४ तए णं ते धम्मघोसा थेरा पुन्वगए उवओगं गच्छंति, समणे निग्गथे निग्गंधीओ य सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी
"एवं खलु अज्जो! मम अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे-जाव-नागसिरीए माहणीए गिह अगुपविठे। तए णं सा नागसिरी माहणी-जाव-तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहंसि सव्वमेव निसिरइ। तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमिति कटु नागसिरीए माहणीए गिहाओ पडिनिक्खमइ-जाव-समाहिपत्ते कालगए। से गं धम्मरुई अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढे -जाव-सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवताए उववणे । तत्थ णं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पप्णत्ता । तत्थ णं धम्मरुइस्स वि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। से णं धम्मरुई देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं
अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ १५ तं धिरत्थु णं अज्जो ! नागसिरीए माहणीए अधन्नाए अपुण्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभनिंबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू
साहुरूवे धम्मरुई अणगारे मासक्खमणपारणगंसि सालइएणं तित्तालाउएणं बहुसंभारसंभिएणं नेहावगाढेणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए॥" तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयमलैं सोच्चा निसम्म चंपाए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापहपहेसु बहुजणस्स एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेंति एवं परुति--"धिरत्यु णं देवाणुप्पिया! नागसिरीए-जाव-दूभनिबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अणगारे सालइएणं तित्तालाउएणं बहुसंभारसंभिएणं नेहावगाढेणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए ॥" तए णं तेसि समणाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परवेइ "धिरत्यु णं नागसिरीए माहणीए-जाव-जीवियाओ ववरोविए ॥"
नागसिरीए गिहनिव्वासणं १६ तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म आसुरुत्ता-जाव-मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरी
माहणी तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता नागसिरि माहाँण एवं वयासी-- "हंभो नागसिरी! अपत्थियपत्थिए ! दुरंतपंतलक्खणे! हीणपुण्णचाउद्दसे ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिपरिवज्जिए धिरत्थु णं तव अधन्नाए अपुग्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभईनबोलियाए, जाए णं तुमे तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि
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१८२
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
सालइएणं तित्तालाउएणं-जाव-जीवियाओ ववरोविए।" उच्चावयाहिं अक्कोसणाहिं अक्कोसंति, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेंति, उच्चावयाहिं निभच्छणाहिं निभंच्छेति, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहि निच्छोडेंति, तज्जेंति तालेंति, तज्जित्ता तालित्ता सयाओ
गिहाओ निच्छुभंति ॥ १७ तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाओ निच्छूढा समाणी चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापहपहेसु बहुजणेणं
होलिज्जमाणी खिसिज्जमाणी निदिज्जमाणी गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पवहिज्जमाणी धिक्कारिज्जमाणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा निलयं वा अलभमाणी दंडीखंड-निवसणा खंडमल्लय-खंडधडग-हत्थगया फुट्ट-हडाहड-सीसा मच्छियाचडगरेणं अन्निज्जमाणमग्गा गेहंगेहेणं देहबलियाए वित्ति कप्पेमाणी विहरइ ॥
नागसिरीए भवभमणं १८ तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए तब्भवंसि चेव सोलस रोगायंका पाउन्भूया। तं जहा--
सासे कासे जरे दाहे, जोणिसूले भगंदरे। अरिसा अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले अकारए॥
अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू दउदरे कोढे ॥१॥ १९ तए णं सा नागसिरी माहणी सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए पुढवीए उक्कोसं
बावीससागरोवमट्टिइएसु नरएसु नेरइयत्ताए उववण्णा। सा गं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववण्णा । तत्थ णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसं तेत्तीससागरोवमट्टिईएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा । सा णं तओणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जइ । तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहबक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसं तेत्तीससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जइ । सा णं तओहितो उन्वट्टित्ता तच्चं पि मच्छेसु उववण्णा। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि छटाए पुढवीए उक्कोसं बावीससागरोबमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा। तओणंतरं उव्वट्टिता उरगेसु एवं जहा गोसाले तहा नेयव्व-जाव-रयणप्पभाओ पुढवीओ उबट्टित्ता सण्णीसु उववण्णा । तओ उठवट्टित्ता असण्णीसु उबवण्णा । तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्त असंखेज्जइभागट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उबवण्णा । तओ उज्वट्टित्ता जाइं इमाई खहयरविहाणाई--जाव-अदुत्तरं च खरबायरपुढविकाइयत्ताए, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो। नागसिरीए समालिया भवो साणं तओणंतरं उव्वट्टित्ता इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरोए सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा भद्दा सत्थवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया--सुकुमालकोमलियं गयतालुयसमाणं । तए णं तोसे णं दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिष्फण्णं नामधेज करेंति--जम्हा णं अम्हं एसा दारिया सुकुमालकोमलिया गयतालुयसमाणा, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया-सुकुमालिया । तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज करेंति सूमालिय ति॥ तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया अंकाओ अंकं साहरिज्जमाणी रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निवाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढइ ॥
सूमालियाए सागरेण सद्धि विवाहो २१ तए णं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य
उक्किठ्ठा उक्किट्ठसरोरा जाया यावि होत्था । २२ तत्थ णं चपाए नयरीए जिणदत्ते नाम सत्थवाहे--अड्ढे-जाव-अपरिभूए ।
तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया--सूमाला इट्ठा माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरइ ॥
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अरिटुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
१८३
. तस्स गं जिगदतस्स पुते भद्दाए भारियाए अतए सागरए नाम दारए--सुकुमालपाणिपाए-जाव-सुरुवे॥ २३ तए णं से जिणदत्तं सत्यवाहे अण्णया कयाइ सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स अदूरसामंतेणं
वीईवयइ । इमं च णं सूमालिया दारिया व्हाया चेडिया-चक्कवाल-संपरिखुडा उप्पि आगासतलगंसि कणग-तिदूसएणं कोलमाणीकोलमाणी विहरइ। तए णं से जिणदते सत्थवाहे सूमालियं दारियं पासइ, पासित्ता सूमालियाए दारियाए रूवे य जोवणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडंबिपपुरिसे सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं बयासी-- "एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिवा ? किं वा नामधेज्जं से ?" तए णं ते कोडंबियपुरिसा जिणदतेणं सत्यवाहेणं एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-- "एस णं देवाणुप्पिया! सागरदत्तस्स सत्यवाहस्स धूया भद्दाए भारियाए अत्तया सूमालिया नामं दारिया--सुकुमालपाणिपाया
-जाब-रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा ॥" २४ तए णं जिणदत्ते सत्यवाहे तेसि कोडुंबियाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हाए मित्त
नाइ-परिबुडे चंपाए नयरोए मझमज्ञण जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागए। तए ण से सागरदत्त सत्यवाहे जिणदत्तं सत्यवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतेता आसत्यं वोसत्थं सुहासणवरगयं एवं वयासो--"भण देवाणुप्पिया! किमागमणपओयणं?" तए ण से जिणदते सागरदत्तं एवं वधासी--"एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! तव धूयं भद्दाए अत्तियं सूमालियं सागरस्स भारियत्ताए वरेमि । जइ णं जाणह देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो, ता दिज्जउ णं सूमालिया सागरदारगस्स। तए पं देवाणुप्पिया। भण किं दलयामो सुकं सूमालियाए ?" तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिया ! सूमालिया दारिया एगा एगजाया इट्ठा-जाव-मणामा-जाव-उंबरपुष्पं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणथाए? तं नो खलु अहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं। तं जइ णं देवाणुप्पिया ! सागरए दारए मम
घरजामाउए भवइ, तो णं अहं सागरस्स सूमालियं दलयामि ।" २५ तए ण से जिगदते सत्यवाहे सागरदत्तेणं सत्यवाहेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरगं
दारगं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"एवं खलु पुत्ता ! सागरदत्ते सत्यवाहे ममं एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! सूमालिया दारिया-इट्ठा-जाव-मणामा-जावउंबरपुप्फं व दुल्लहा सवणवाए, किमंग पुण पासणयाए? तं नो खलु अहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं। तं जइ णं सागरए दारए मम धरजामाउए भवइ, तो गं दलयामि।" तए णं से सागरए दारए जिणदत्तेणं सत्यवाहेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए [संचिट्ठइ] ॥ तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-महत्तंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ,-जाव-सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सागरं दारगं हायं-जाव-सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूहावेइ, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि परिवडे सविड्ढीए सयाओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छिता चंपं नपरि मसंमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरहइ, पच्चोरुहिता सागरगं दारगं सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स उवणेइ। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता-जाव-सम्माणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धि पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावेत्ता सेयापीएहि कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोमं करावेइ, करावेत्ता सागरगं दारयं सूमालियाए दारियाए पाणि गेण्हावेइ ॥
सागरस्स पलायणं २७ तए णं सागरए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफास पडिसंवेदेइ, से जहानामए--असिपत्ते इ वा करपत्ते इ वा खुरपत्ते
इ वा कलंबचोरिगापत्ते इ वा सत्तिअग्गे इ वा कोतग्गे इ वा तोमरग्गे इ वा भिडिमालग्गे इ वा सूचिकलावए इ वा विच्छ्यडके इ वा कविकच्छू इ वा इंगाले इ वा मुम्मुरे इ वा अच्ची इ वा जाले इ वा अलाए इ वा सुद्धागणी इ वा भवे एयारवे?
२६
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१८४
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो नो इणळे समठे। एत्तो अणिद्वतराएगचेव अकंततराएगं चेव अप्पियतरागं चेव अमणुग्णतरागं घेव अमणामतरागं चेव पाणिफासं संवेदेइ। तए णं से सागरए अकामए अवसवसे मुहुत्तमत्तं संचिट्ठइ। तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे सागरस्स अम्मापियरो मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ
वत्य-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ २८ तए णं सागरए सूमालियाए सद्धि जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागपिछत्ता सूमालियाए दारियाए सद्धि तलिमंसि निवज्जइ ।
तए णं से सागरए वारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, से जहानामए--असिपत्ते इ वा-जाव-एत्तो अमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुभवमाणे विहरइ।
तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ। २९ तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासाओ उठेइ, उद्वेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जसि निवज्जइ॥ तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपस्समाणी तलिमाओ उ8'इ, उद्दुत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णुवज्जइ॥
तए णं से सागरदारए सूमालियाए दारियाए दोच्चं पि इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ-जाव-अकामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ॥ ३० तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ उठेइ, उठेत्ता वासघरस्स दारं विहाडेइ, विहाडेत्ता
मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए।
सूमालियाए चिंता ३१ तए णं सा सूमालिया बारिया तओ मुहत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उठेइ,
सागरस्स दारगस्स सम्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं बयासी-गए
णं से सागरए त्ति कट्ट ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियायइ॥ ३२ तए णं सा भद्दा सत्यवाही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते दासचेडि सद्दावेइ,
सद्दावेत्ता एवं बयासी"गच्छह णं तुम देवाणुप्पिए! वहूवरस्स मुहधोवणियं उवणेहि ॥" तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं बुत्ता समाणी एयमट्ठ तहं ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता महधोवणियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं ओहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी"किण्णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियाहिसि ?" तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडिं एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिए! सागरए दारए ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाओ उठेइ, उठेत्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउम्भूए तामेव दिसि पडिगए । तए णं अहं तओ मुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उठेमि सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से सागरए ति कट्ट ओह्यमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियायामि ॥" तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमझें सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरबत्तस्स एयमझें निवेवेइ
सागरदत्तेण जिणदत्तस्स उवालंभणं ३३ तए णं से सागरदत्ते दासचेडीए अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे जेणेव जिणदत्तस्स सत्थवाहस्स गिहे
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-- "किण्णं देवाणुप्पिया! एवं जुत्तं वा पत्तं वा कुलाणुरूवं वा कुलसरिसं वा जण्णं सागरए दारए सूमालियं दारियं अदिढदोसवडियं पइन्वयं विप्पजहाय इहमागए ?" बहहिं खिज्जणियाहि य रुंटणियाहि य उवालभइ।
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afgafter दोवई कहानयं
जणओवरोहे वि सागरस्स समालिया सहवासनिसेहो
३४ तए णं जिणदत्ते सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स एयमट्ठे सोच्चा जेणेव सागरए तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता सागरयं वारयं एवं बपासी पुता ! तुमे कथं सागरदतस्स गिहाओ इहं हवमागच्छंतेणं सं गच्छ णं तुमं पुस्ता ! एवमवि गए सागरदत्तस्स गिहे ।
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तए णं से सागरए दारए जिणदर्श सत्थवाहं एवं वयासी--'
"अवि याइं अहं ताओ ! गिरिपडणं वा तरुपडणं वा मरुष्पवायं वा जलप्पवेसं वा जलणप्पवेसं वा विसभक्खणं वा सत्थोवडणं वा बेहाणसं थाप थाप वा विदेसन वा अम्भुवगच्छेज्जामि, मो तु अहं सागरवतस्तहिं जामि।।"
मालियाए दमगेण सद्धि पुणविवाहो
३५ तर गं से सागरदले सत्यवारियाए सागरस्त एवम निसाने निसामेला लजिए विलीए यि निगदत्तस्स सत्यवाहस्स महाओ पनि पडिनिमित्ता जेणेव सए गिहे व उबागच्छह, उपागच्छत्ता मुकुमालि शरियं सहावे सहावेता अंके निबेसेड, निवेत्ता एवं ववासी-
"किष्णं तव पुत्ता! सागरएणं दारएणं ? अहं पं तुमं तस्स दाहामि जस्स गं तुमं इट्टा-जाब-मणामा भविस्ससि" ति समालिय वारियं ताहिं इट्टा हि जाव वग्गूहिं समासासेइ, समासासेत्ता पडिविसज्जेइ ।।
३६ तए से सागरले सरथवाहे अण्णा उप्प आगारातसमुहनिस रायमगं ओलोएमा ओलोएमा चिद्वह ।
तए णं से सागरदत्ते एगं महं दमगपुरिसं पासइ -- इंडिखंड - निवसणं खंडमल्लग खंडघडग- हस्थगयं फुट्ट हडाहड-सी मच्छिया सहस्सेह अन्मिज्जमाणमग्गं ।
तए से सागर
सत्यवारिसे सहावे सहावेत्ता एवं व्यासी-
"तुभे णं देवाणुप्पिया ! एवं दमनपुरिसं विपुलेगं असण-पान-खाइम साइमेणं पलोभेह, गिहं अणुष्पवेसेह, अणुप्पवेसेत्ता खंडमल्लागं डड से एगंले एडेह, एडेला अलंकारिकम् करे पहावं कयबलिकम्मं कय-कोय-मंगल-पायच्छतं सव्वाकारविभूलिवं करेह करेला मनुष्णं असण-दान- साइम साइमं भोधावे धाता मम अंतियं उक्षमेह ।।"
३७ तए णं ते कोडुंबियपुरिसा - जाव- पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता तं दमगं असगपाण- खाइम साइमेणं उदन्यतोभेति उप्पलोता सयं हिं अणुष्पवेसंति, अणूप्यर्वसेत्ता
च तस्स -
पुरिसस्स एगंते एडेंति ।
तए णं से दम तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एडिज्जमानंसि महया-महया सद्देणं आरसइ ।
तए णं से सागरले सत्यवाहे तस्स बमपुरिसस्त तं महवा महया आरसियस सोच्दा मिसम्म कोबियपुरिसे एवं क्यासी-"किन्नं देवापिया | एस दमपुर महया मया देणं आरसा ?"
तए णं ते कोडंबियरिसा एवं वयंति - "एस णं सामी ! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडांसि य एडिज्जमानंसि महया-महया सद्दे आरसइ ॥"
३८ तएषं से सागरयते सत्वा ते कोपुर एवं बयासी-
"माणं तुभे देवाणुपिया एयरस दमगस्त तं खंड मल्ल खंडडगं च एवं एडेह पाले से उबेह जहा अपलियं न भवद्द " वि तब उति उता तरस दमस्त अलंकारियकम्मं करेंति, करेता साहसपाहि तेल्लेहि अभंगति अभंगए समाने सुरभिणा गंधवट्टएणं गायें उन्नति, उन्बट्टेत्ता उसिगोदन - गंधोदएणं व्हार्णेति, सीओदगेणं ण्हाणेंति, पम्हल- सुकुमालाइए गंधकासाईए गाजाई लुति, जूता हंसवनं पडताडगं परिहेति सव्यालंकारविभूतियं करोति, विपुलं असण-पाण-साइम- साइमं भोयावेत, भोयावेत्ता सागरदत्तस्स उवर्णेति ।
तएषं से सागरले सत्यवाहे सुमालि बारियं व्हायं जाव सव्यालंकारविभूतियं करेला से दमनपुरिस एवं क्यासी"एस णं देवापिवा मम या द्वा-जाय-मणामा एवं गं अहं तव भारिता इतधामि भहियाए भयो भजामि॥" दमयस्स विपलायणं
३९
तए णं से मनसेि सागरक्षत्तस्स एयमटठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुमालियाए दारियाए सद्धि वासघरं अणुपविसद, सूमालियाए दारियाए सद्धि तलिमंसि निवज्जइ ।
४० क० २४
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૧૬૬
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तए णं से धमगपुरिसे सूमालियाए इमेयारूवं अंगफासं पडि संवेदेइ, से जहानामए--असिपत्ते इ वा-जाव-एत्तो अमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुभवमाणे विहरइ।। तए णं से धमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे मुहत्तमेत्तं संचिट्ठइ। तए णं से घमापुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए धारियाए पासाओ उठेइ, उर्दूत्ता जेणेव सए सयणिज्जे
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सथणिज्जंसि निवज्जइ । ४० तए णं सा सूमालिया धारिया तओ मुहुत्तरस्स पडिबुद्धा समाणी पहब्वया पइमणुरता पई पासे अपस्समाणी तलिमाओ उछेड़,
उठेत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दमगपुरिसस्स पासे णुवज्जइ।
तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए दोच्चंपि इमं एथारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ-जाव-अकामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिढइ ।। ४१ तए णं से दमनपुरिसे सूवालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता वासघराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता
खंडमल्लगं खंडघडगं च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउभए तामेव दिसि पडिगए।
सूमालियाए पुणो चिता ४२ तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहत्ततरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उठेइ,
दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मग्गग-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासह, पासित्ता एवं बयासी--.'गए
गं से दमगपुरिसे' ति कटु ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झिथायइ॥ ४३ तए णं सा भद्दा फल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते धासडि सद्दावेइ, सदावत्ता
एवं क्यासी--च्छह णं तुम देवाणुप्पिए! वहूवरस्स मुहधोवणियं उवणेहि । तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमढें तह ति पडिसुणेइ, पडिसूणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव पासघरे तेणेव उवागच्छई, उवागच्छित्ता सूमालियंदारियं ओहयमणसंकल्पं करतलपल्हत्यहि अट्टज्झाणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी"किण्णं तुम देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियाहि ?" तए णं सा सूमालिया बारिया तं दास.डि एवं बयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिए ! दमगपुरिसे ममं सुहपसुतं जाणिता मम पालाओ उठेंड, उर्दूत्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ, अवंगुणेत्ता मारामको विव काए जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। तए णं हं तओ मुहुत्तरस्स पडिबुद्धा पतिब्बया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उठेमि, दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमागी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से दमगपुरिसे ति कट्ट ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियायामि"। तए णं सा दासवेडी सूमालियाए दारियाए एयम सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमझें निदेइ ॥
सूमालियाए दाणसालानिम्माणं ४४ तए णं से सागरदत्ते तहेव संभंते समाणे जेणेव वासघरे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता
एवं वयासी-- "अहो णं तुम पुत्ता! पुरापोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्परक्कंताणं कडाणं पावाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेस पक्षणुब्भवमाणी विहरसि । तं मा णं तुमं पुत्ता! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियाहि । तुमं णं पुत्ता ! मम महाणसंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य परिभाएमाणी विहराहि"। तए णं सा सूमालिया दारिया एयमट्ठ पडिसुणइ, पडिसुणेत्ता कल्लाकल्लि महाणसंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य देवावेमाणी य परिभाएमाणी विहरइ ।
अज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियाए सागरदत्तगिहागमणं ४५ तेणं कालेणं तेणं समएणं गोवालियाओ अज्जाओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुटवाणुपुचि चरमाणीओ जेणेव चंपा नयरी तेणेव
उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हंति, ओगिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरति ।
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अरिटुनेमितित्थे बोवई कहाणयं
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तए णं तासि गोवालियाणं अज्जाण एग संघाडए जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागछित्ता गोवालियाओ अज्जाओ बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- "इच्छामो णं तु हि अब्भणुण्णाए चंपाए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए"। "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ।" तए णं ताओ अज्जाओ गोवालियाहिं अज्जाहि अब्भणुण्णायाओ समाणोओ भिक्खायरियं अडमाणोओ सागरदत्तस्स गिह अणुप्पविट्ठाओ।
समालियाए सागरपसायोवाय-पुच्छा ४६ तए णं सूमालिया ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अम्भुढेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता
विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं वयासी-- "एवं खलु अज्जाओ! अहं सागरस्स अणिट्ठा-जाव-अमणामा! नेच्छइ णं सागरए दारए मम नाम गोयमवि सवणयाए, कि पुण दसणं वा परिभोगं वा? जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि तस्स-तस्स वि य ण अणिट्ठा-जाव-अमणामा भवामि । तुब्भे य णं अज्जाओ ! बहुनायाओ बहुसिक्खियाओ बहुपढियाओ बहूणि गामागर-णगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टण-आसम-निगमसंबाह-सण्णिवेसाई आहिंडह, बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहपभिईणं गिहाई अणुपविसह। तं अत्थि याई भे अज्जाओ! केइ कहिचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए व कम्मजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा आभिओगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धपुग्वे, जेणं अहं सागरस्स दारगस्स इट्ठा कंता-जाव-मणामा भवेज्जामि?"
अज्जा-संघाडगेण धम्मोवएसो ४७ तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियाए एवं कुत्ताओ समाणोओ दोवि कण्ण ठएंति, ठएता सूमालियं एवं वयासो--
"अम्हे णं देवाणु प्पिए ! समणीओ निग्गंथीओ-जाव-गुत्तबंभचारिणोओ नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कण्णेहि वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा अम्हे णं तव देवाणुप्पिए ! विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहिज्जामो।" तए णं सा सूमालिया ताओ अज्जाओ एवं वयासी--"इच्छामि णं अज्जाओ! तुन्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्म निसामित्तए।" तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियाए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहति ॥
सूमालियाए समणोवासियत्तं ४८ तए णं सा सूमालिया धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं बयासी---
"सहहामि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं-जाव-से जहेयं तुब्भे वयह । इच्छामि णं अहं तुम्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त-सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिज्जित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिए !" तए णं सा सूमालिया तासि अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं-जाव-गिहिधम्म पडिवज्जइ, ताओ अज्जाओ वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ॥ तए णं सा सूमालिया समणोवासिया जाया-जाव-समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुंछणणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ । सूमालियाए पव्वज्जापडिवज्जणं तए णं तीसे सूनालियाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं सागरस्स पुदिव इट्ठा-जाव-मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा-जाव-अमणामा। नेच्छइ णं सागरए मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि तस्स-तस्स वि य णं अणिट्रा-जाव
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
अमणामा भवामि । तं सेयं खलु ममं गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीएजाव-उट्रियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव सागरदत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलि कटु एवं क्यासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए गोवालियाणं अजाणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि गं तुहं अम्मणुण्णाया पव्वइत्तए-जाव-गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए पन्वइया । तए णं सा सूमालिया अज्जा जाया--इरियासमिया-जाव-गुत्तबंभयारिणी बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥
सूमालियाए चंपानयरीए बहि आतावणा तए णं सा सूमालिया अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं पयासी-- "इच्छामि गं अज्जाओ! तुर्भेहिं अल्भणुण्णाया समाणी चंपाए नयरीए बाहिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही आयावेमाणी विहरित्तए।" तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं अज्ज एवं क्यासी-- "अम्हे णं अज्जे! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ-जाव-गुत्तबंभचारिणीओ। नो खलु अम्हं कप्पइ बहिया गामस्स वा-जावसण्णिवेसस्स वा छळंछठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुहीणं आयावेमाणीणं विहरित्तए। कप्पइ णं अम्हं अंतोउवस्सयस्स वइपरिक्खित्तस्स संघाडिबद्धियाए णं समतलपइयाए आयावेत्तए॥" तए णं सा सूमालिया गोवालियाए एयमद्वं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एयमढें असद्दहमाणी अपत्तियमाणो अरोयमाणी सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छठंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सुराभिमुही आयावेमाणी विहरह। समालियाए गणियाभोगं दण नियाणं तत्थ णं चंपाए ललिया नाम गोट्ठी परिवसह नरवइ-दिन्न-पयारा अम्मापिइ-नियग-निप्पिवासा वेसविहार-कय-निकेया नाणाविहअविणयप्पहाणा अड्ढा-जाव-बहुजणस्स अपरिभूया। तत्थ णं चंपाए देवदत्ता नामं गणिया होत्था--सूमाला जहा अंड-नाए । तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए अण्णया कयाइ पंच गोहिल्लगपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरंति।। तत्य गं एगे गोहिल्लगपुरिसे देवदत्तं गणियं उच्छंगे धरेइ, एगे पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, एगे पुष्फपूरगं रएइ, एगे पाए रएइ,
एगे चामरुक्खेवं करेइ॥ ५२ तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं तेहिं पंचहि गोढिल्लपुरिसेहि सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणि पासइ,
पासित्ता इमेयारूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था--अहो णं इमा इत्थिया पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं कडाणं कल्लाणाणं कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणी विहरइ । तं जइ णं केइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तो णं अहमवि आगमिस्सेणं भवग्गहणणं इमेयारूवाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरिज्जामि त्ति कट्ट नियाणं करेइ, करेत्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुभा ॥
५१
सूमालियाए बउसनियंठित्तं तए णं सा सूमालिया अज्जा सरीरबाउसिया जाया यावि होत्या--अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गुज्झतराई धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि
यणं पुवामेव उदएणं अन्भुक्खेत्ता तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ ॥ ५४ तए थे ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं एवं बयासी--
"एवं खलु अज्जे! अम्हे समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ-जाव-बंभचेरधारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाउसियाए होत्तए। तुमं च णं अज्जे! सरीरबाउसिया अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेसि, पाए धोवेसि, सोसं धोवेसि, मुहं धोवेसि, थणंतराई
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अरिट्टनेमितित्थे दोवई कहाणयं
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धोवेसि, कक्खंतराइं धोवेसि, गुज्झंतराइं धोवेसि, जत्थ णं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा घेएसि तत्थ वि य णं पुवामेव उदएणं अन्भुक्खेत्ता तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएसि । तं तुमं गं देवाणुप्पिए ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि-जावअकरणयाए अन्भुठेहि, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जाहि"। तए णं सा सूमालिया गोवालियाणं अज्जाणं एयमझें नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणी अपरियाणमाणी विहरइ । तए गं तओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं अभिक्खणं-अभिक्खणं होलॅति निवेति खिसेंति गरिहंति परिभवंति, अभिक्खणं-अभिक्षणं एयमट्ठ निवारेंति ॥
सूमालियाए पुढोविहारो देवलोगुप्पाओ य ५५ तए णं तोसे सूमालियाए समणीहि निग्गंथीहि होलिज्जमाणीए-जाव-निवारिज्जमाणीए इमेयासवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था
--"जया णं अहं अगारमज्झे वसामि, तया णं अहं अप्पवसा । जया णं अहं मुंडा भवित्ता पम्वइया, तया णं अहं परवसा । पुयि च गं ममं समणीओ आदति परिजाणंति, इयाणि णो आदति नो परिजाणंति । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्ख मित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए" त्ति कटटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ-जाव-जस्थ गं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं पुवामेव उदएणं अन्मुक्खेत्ता तओ पच्छा ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ। तत्थ वि य गं पासत्था पासत्यविहारिणी ओसन्ना ओसन्नविहारिणी कुसीला कुसीलविहारिणी संसत्ता संसत्तविहारिणी बहुणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं मोसेत्ता, तीसं भत्ताई अणसणाए छेएत्ता, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे अण्णयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववण्णा। तत्थेगइयाणं देवीणं नवपलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं सूमालियाए देवीए नवपलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।
५६
दोवईभवकहाणगे दोवईए तारुण्णभावो तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नाम नयरे होत्था--वण्णओ। तत्थ णं दुवए नाम राया होत्था--वण्णओ। तस्स णं चुलणी देवी। धटुज्जुणे कुमारे जुवराया। तए गं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो चुलणीए देवीए कुच्छिसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल-पाणिपायं-जाव-दारियं पयाया। तए णं तोसे दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए इमं एयारूवं नाम-जम्हा णं एसा दारिया दुपयस्स रण्णो धूया चुलगीए देवीए अत्तया, तं होउ णं अम्हं इमोसे दारियाए नामधेज्जे दोवई। तए गं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्जं करेंति--दोबई-दोवई।
तए णं सा दोवई दारिया पंचधाईपरिग्गहिया-जाव-गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढइ ॥ ५८ तए णं सा दोवई रायवरकण्णा उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोब्वणेण य लावण्णण य उक्किट्ठा
उक्किट्टसरीरा जाया यावि होत्था । तए णं तं दोवई रायवरकणं अण्णया कयाइ अंतेउरियाओ पहाय--जाव--सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता दुवयस्स रपणो पायबंदियं पेसेति । तए णं सा दोवई रायवरकण्णा जेणेव दुबए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दुवयस्स रण्णो पायग्गहणं करेइ ।
दुवयरण्णा दोवईए सयंवरसंकप्पो ५९ तए णं से दुवए राया दोवई दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता दोवईए रायवरकण्णाए रूवे य जोवण्णे य लावणे य जायविम्हए
दोबई रायवरकण्णं एवं क्यासी--
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
"जस्स णं अहं तुमं पुत्ता ! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियत्ताए सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुम सुहिया वा दुहिया वा भवेज्जासि । तए णं मम-जावज्जीवाए हिययदाहे भविस्सइ । तं गं अहं तव पुत्ता ! अज्जयाए सयंवरं वियरामि । अज्जआए णं तुम दिन्नसयंवरा । जं णं तुम सयमेव रायं वा जुवरायं वा वरेहिसि, से णं तव भतारे भविस्सई" त्ति कटु ताहि इवाहि-जाव-वहि आसासेइ, आसासेत्ता पडिविसज्जेइ॥
बारवईए दूयपेसणं तए णं से दुवए राया दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--- "गच्छह गं तुमं देवागुप्पिया ! बारवई नार । तत्थ णं तुम कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, बलदेवपामोक्खे पंच महावोरे, उग्गसेणपामोखे सोलस रायत्तहस्से, पज्जुन्नपामोक्खाओ अद्भुटाओ कुमारकोडीओ, संबपामोक्खाओ सट्ठि दुइंतसाहस्सीओ, वीरसेणपामोक्खाओ एक्कवीसं वीरपुरिससाहस्सोओ, महासेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अण्णे य बहवे राईसर-तलवरमाडंविब-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिईओ करयलपरिग्गहियं दसनहं सरिसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं यद्धावेहि, बद्धावेता एवं वयाहि-एवं खलु देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रणो धूयाए, चुलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ । तं गं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह।" तए णं से दूर करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु दुवयस्स रण्णो एयम पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेता एवं वयासी--- "खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया! चाउग्धंट आसरहं जुत्तामेव उबटुवेह।" ते वि तहेव उवट्ठति । तए णं से दूए हाए-जाब-अप्पहग्धाभरणालंकियसरीरे चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहिता बहूहि पुरिसेहि-तण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवएहि उप्पीलिय-सरासण-पट्टिएहिं पिगद्ध-गेविज्जेहिं आविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टेहि गहियाउहपहरणेहि--सद्धि संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नयरं मझमज्झणं निग्गच्छइ, पंचाल जणवपरूप मज्झमझेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरट्ठाजणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता वारवई नरि मज्झमझेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसत्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं ठावेइ, ठावेत्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायचारविहारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हं वासुदेवं, समुद्दविजयपामोखे य दप्स दसारे-जाव-'छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वडावेइ, व द्वावेता एवं वयइ--"एवं खलु देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए, चुलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्त भइणोए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे अस्थि । तं गं तुभ दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे
समोसरह॥" ६१ तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए-जाव-हियए तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ,
सक्कारेता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।।
कण्हस्स पत्थाणं ६२ तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--"गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइय
भेरि तालेह ॥" तए णं कोडंपियपुरिसे करयलपरिग्गहिवं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट कण्हस्स वासुदेवस्स एयम?' पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेगेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरि महया-महया सद्देणं तालति । तर णं ताए 'सानुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा-जाव-'महासेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ पहावा-जाव-सव्वालंकारविभूसिया जहाविभव इड्डिसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रह-सीया-संदमाणीगया अप्पेगइया । पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट
कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं बद्धाति ॥ ६३ तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी----
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अरिनेमितित्थे दोवई कहाणयं
"खियामेव भो देवालिया अभिसेक्शं हरिवरयणं पडिक पर परजहरूलि चाउरंगिण से ज्या एयमागत पहि।" ते विष पचति ।
लए गं से कहे वासुदेवे जेणेव मरे ते उगडद, उनागरिता समलजालाकुलाभिरामे विचित्तमणि- रमणकुट्टिमतले महिमंडस पाणामणि- श्यण बलि-विस पहाणपोईसि सुहगरा मुहोबएहि गंधोएहि पुष्फोदहि सुद्धो हि पुणोपुणो कला-पर-मज्जजविहीए मज्जिए-जा-अंजणगिरिसन्निभं गव नरवई दुरु
तए णं से कहे वासुदेवे समुविजयपामोक्खहिं दस-दसारेहिं जाव अणंग सेणापामोक्खाहिं अणेगाहिं गणियासाहस्सोहि सद्धि संपरिवडे सविड्ढीए-जाब-दुदुहिनिग्घोसन (इयरवेणं बारबरं नयर मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुरट्ठाजणवयस्त मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पंचाल जणवयस्स मज्झं मज्झणं जणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ||
१९१
हरियणाउरे
पेसणं
६४ तए णं से दुवए राया दोच्वं दूयं सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं व्यासी---
"गणं तु देवाचिया हरिवणारं नयरं तत्थ तुमं परावं जुहिट्टिलं भीमसेन सह मोह भाइसय- समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सण कीवं आसत्थामं करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं जिए बडावेहि, बडावेता एवं राह एवं देवापरे नपरे परस रण्णोधूयाए, चुलीए अलवाए धट्टणकुमारस्स महणीए दोबई रायवरण सबरे भविस्स तं तु यं रामं अणुगिष्माचा अकालपरिहीणं देव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह " ॥ ६५ एसे हुए
वाउरे नपरे जंव पंहुचा लेगेच उपागच्छ उगठित पंरा समुहद्वलं भीमसेणं अ नउलं सहदेवं दुज्जोहणं भाइसय-समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सण कीवं आसत्यामं एवं वयइ - "एवं खलु देवाणुपिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रणो धूयाए, चुलणीए अत्तवाए, धटुज्जुणकुमारस्स भइणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे अत्थि, तं णं तुम्भे दुवयं रायं अणुविष्माणा अपरिही ये कंपिल्लपुरे नपरे समोसरह ।"
तए से मंडराया जहा वासुदेवे नवरं मेरी नाव व फलपुरे नवरे तेनेव पहारेत्य गमनाए ।
चंपाइनपरे यणं
६६ एएणेव कमेणं-
सच्चं दूयं एवं बवासी "गच्छतुम देवासुविया । बं नयति तत्तु कवणं अंगरा,
मंदिरावं एवं पाहि
नयरे समोसरह ।" चउत्थं दूयं एवं वयासी -- "गच्छह णं तुम देवाणप्पिया ! सोत्तिमहं नयरिं । तत्य णं तुमं सिसुपालं दमघोरसुयं पंचभाइसय- संपरिवुड एवं वयाहि-- कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।"
पंचमं दूयं एवं बवासी"
तुमं देवापिया | हरियसीस गरि सत्य तु दमवंत राय एवं बाहि
नपरे समोसरह ।"
एवं क्यासीगणं तु देवाणुपिया महरं नयतित्व गं तुम घरं रामं एवं याहि-दिल्लपुरे नपरे समोसरह ।" सत्तमं यं एवं बवासी गछह नं तुमं देवागुपिया ! रामहिं नय तत्व गं तुमं सहदेवं जरासंध एवं याहि कंपमपुरे नपरे समोसरह ।"
--
अट्टमं दूयं एवं वयासी -- " गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! कोडिण्णं नयरं । तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगसुयं एवं वयाहि — कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।"
नवमं दूर्व एवं बासीगह णं तुमं देवापिया | बिराट नगरं तत् कीम भाजय राम एवं याहि पुरे समोर ।"
दस दूयं एवं बदामी
गं तुमं देश ! असेसु गावागर-नगरेसु । तत्थ में तुमं अनेगाई राजसहरसाई एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नवरे समोसरह ।"
--
रायसहरसाणं पत्थाणं
लए णं से महवे रायसहस्सा लेते हावा सम्बद्ध-यमि-वया हत्यसंधरा हम-गय-र-परजोहकलियाए पाउ
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
रंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिडा महया भड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खिस्सा सएहि-सएहि मगरेहितो अभिनिग्गच्छंति, अभिनिग्गकिछत्ता जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
दुवयकयो वासुदेवाईणं सक्कारो ६८ तए णं से दुवए राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेद, सद्दावेता एवं बयासी-च्छह गं तुमं देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए
महानईए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह-अणेगखंभ-सयसन्निविट्ठ लोलट्ठिय-सालभंजियागं-जाव-पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरुवं पडिरूवं करेता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति । तए णं से दुवए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी--खिप्पामेव भो वेवाणुप्पिया ! वासुदेवपामोक्खाणं बहणं रायसहस्साणं आवासे करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणति । तए णं से दुवए राया वासुदेवपामोक्खागं बहूणं रायसहस्साणं आगमणं जाणेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महया भड-चडगर-रहपहकर-विवपरिक्खित्ते अग्धं च पज्जंच गहाय सविड्ढीए कंपिल्लपुराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागचिछत्ता ताई वासुदेवपामोक्खाई अग्घेण य पज्जेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तेसि वासुदेवपामोक्खाणं पत्तेयं-पत्तेयं आवासे वियर। तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया-सया आवासा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिखंहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयंपत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता सएसु-सएसु आवासेसु अणुप्पविसंति, अणुष्पविसित्ता सएसु-सएसु आवासेसु आसणेसु य सयणेसु य सन्निसण्णा य संतुयट्टा य बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य विहरंति । तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नयरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "गपछह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं चमंसंच सीधं च पसन्नं च सुबहुं पुष्फ-वत्य-गंध-मल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह।" ते वि साहरंति । तए णं ते वासुदेवपामोक्खा तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सोधुं च पसन्नं च आसाएमाणा विसादेमाणा परिभाएमाणा परिभुजेमाणा विहरति । जिमियमुत्तत्तरागया वि य गं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया सुहासणवरगया बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य विहरंति ॥
दोवईए सयंवरो ७० तए णं से दुवए राया पच्चावरण्ह-कालसमयंसि कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी--"गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया !
कंपिल्लपुरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु हत्थिखंधवरगया महयामहया सद्देणं उग्धोसेमाणा एवं वयह--एवं खलु देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते दुवयस्स रण्णो धूपाए, चुलणीए देवीए अत्तयाए, ठुज्जुणस्स भगिणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ। तं नुम्भे गं देवागुप्पिया ! दुवयं रायाणं अणुगिण्हेमाणा व्हाया-जाव-सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं बीइज्जमाणा हय-य-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवडा महयाभड-चडगररह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता जेणेव सयंवर-मंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं-पत्तेयं नामंकिएसु आसणेसु निसीयह, निसीइत्ता बोवई रायवरकण्णं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह त्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।"
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव-जाव-पच्चप्पिणंति ॥ ७१ तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी--
"गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! सयंवरमंडवं आसिय-समज्जिओवलितं पंचवण्णपुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुषक-तुरुक्कधूब-डझंत-सुरभिमघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टि भूयं मंचाइमंचकलियं करेह कारवेह, करेता कारवेत्ता बासुदेवपामोक्खाणं बहूर्ण रायसहस्साणं पत्तेयं-पत्तेयं नामंकियाई आसणाई अत्थुयपच्चत्थुयाई रएड, रएत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि -जाव-पच्चप्पिणंति ॥
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अरिनेमितित्थे दोवईकहाण
तए णं ते वासुदेवपायोक्खा बहुये रावसहस्ता कल् पाउप्पनायाए श्वणोए उद्वियम्मि सूरे सहसरस्सिम्म विजयरे वाजते व्हाया - जाव- सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं बीइज्जमाना हयग-रह-पवरजोह कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महयाभड - चडगर रह पहकर विदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए-जावइंदुहि-नियोस-नाइयरवेणं जंव सवरामं तेच उबागच्छति उपागच्छता अनुपविसंति, अगुण्यविसित्ता पत्ते-ना किए आसणे मसीति दोवई रायबरकणं पडियालेमामा पडियालेमाणाविति।।
७३ ए ए रामा कर पाउप्पभाषाए रमणीए उट्टियम पूरे सहत्सरस्तिम्मि दियरे वसा जलते रहाए-जावकार विभूसिए हत्यिवंधर गए सकोरंडमल्लदामेगं छलेणं धरिवमाणेषं सेपवरचामराहिं योज्यमाणे हृद-गय-रह-पवर जोहक लियाए चाउरंगिणीए पाए सहि संपरि महयाभड-चडगर-रह-पहकर विकंपिल्लरंग
य
सर्ववमंडवे जेणेव वासुदेवपायोक्खा बहने रामसहस्सा लेनेय उपागच्छद्र उवागसि सि वासुदेवपामोखाणं करयल-परिह दहं सिरसा एकट एवं विजएवं बढावेद, महावे कस्स वासुदेवरस सेववश्चामरं महापथीयमाणे चिटुइ ॥
* तए णं सा दोवई रायवरकष्णा कल्लं पाउप्पभायाए रथणीए उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मज्जणघरे तेय उवाग उवागष्ठिता मनपर अनुपसिह, अनुपविसिता व्हाया कपबलिकम्मा कप-कोय-मंगल-पाता यावे साई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिया मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणपरं अणुपविसद अनुपविसित्ता जिणपरिमाणं अवर्ण करेड, करेता जिगरा पडिनिक्खम, पडिमियमला जेणेव अंतेरे तेणेव उवागच्छइ ॥
७५
तए णं तं दोबई रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति । कि ते ? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल- महयरगविद-परिक्खित्ता अंतउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छs, उवागच्छत्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धि चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ ।
लए णं से धणे कुमारे दोवईए रायवरकष्णाए सारत्वं करेह ।
७७
१९३
तए णं सा दोवई रायवरकण्णा कंपिल्लपुर नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवे, रहाओ पचोर, पयोदहिता किडाडियाए लेहियाए सहि सवरामं अनुपविस अणुपविसित्ता करवपरिगहियं हं सिरसावतं मत्थए अंजलि कट्टु तेस वासुदेवपामोपखानं बहूणं रायवरसहस्ताणं पणामं करेइ ॥
७६ तए णं सा दोवई रायवरकण्णा एगं महं सिरिदामगंड- कि ते ? पाडलमल्लिय-चंपय- जाव सत्तच्छ्याईहि गंधद्धणि मुयंतं परमसुहफासं दरिसणिज्जं गेण्हइ ।
तणं सा किडाविया मुख्या साभावियसं वोहजणस्स उस्सुकरं वित्त-रण-बरहं वामहस्वेषं चिल्ल दपर्ण गऊण समलियं दण्णसंविव-संबंसिएप से दाहिणं दरिलए पवररायसी विद्धिरिभिय-गंभीर-महरमणिया सा सिस परिववाणं अम्मापितवंस तत्तसामत्य-गोत्त-विस्कति-कति बविआगम-माहत्य - कुलसजाणिवा कित्तणं करेइ पढमं ताव वहिपुंगवासावर वीरपुरिस- लोपलगाणं, सतु-सबहस-माणावमद्दगाणं भवसिद्धिय-वरपुंडरीयानं चिल्लवाणं बल-वीरियरजोवण-गुण-लावण्यकतिया कित्तणं करेह ।
तओ पुणो उन्नगसेगवाई जाववाणं भग-सोहरू लिए वरेह वरपुरिसगंधहत्वोणं जो हु ते होई पिय
दोवईए पंडववरण
तए णं सा दोबई रायवरकणगा बहूणं रायवरसहस्साणं मज्झमज्झेणं समइच्छमाणी- समइच्छमाणी पुव्वकयनियाणेणं चोइज्जमाणीचोइज्माणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते पंच पंडवे तेणं वसद्ध-वण्णेणं कुसुमदामेणं आवेढिय-परिवेढिए करेद्र, करेला एवं वासी एएमए पंच पंडवा दरिया ।
० क ०-२५
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लए लाई बासुदेवपामोखाई बणि रायसहस्वाणि महवा महया सगं उन्धीमागाई उम्घोनामाई एवं वर्पतिरियं खलु भो ! दोवईए रायवरकण्णाए त्ति कट्टु सयंवरमंडवाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सया सया-आवासा तेणेव उवागच्छति ।
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१९४
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तए णं धटुज्जुणे कुमारे पंच पंडवे दोवइं च रायवरकण्णं चाउग्घंट आसरहं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता कंपिल्लपुरं नयरं माझंमजणं उवागच्छइ, उवागच्छिता सयं भवणं अणुपविसइ ।
पाणिग्गहणं ७८ तए णं से दुवए राया पंच पंडवे दोवई च रायवरकण्णं पट्टयं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता सेयापीयहि कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावेत्ता
अग्गिहोमं करावेइ, पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं कारावेइ । तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकष्णाए इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं जहा--अट्ठ हिरण्णकोडोओ-जाव-पेसणकारीओ दासचेडीओ, अण्णं च विपुलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सारसावएज्ज अलाहि-जाव-आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकाम परिभाएउ दलयइ । तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाई बहूई रायसहस्साई विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुपफ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सरकारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥
पंडुरायकयं वासुदेवाइनिमंतणं ! ७९ तए णं से पंडू राया तेसि वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयलपरिगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं
वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य देवीए कल्लाणकारे भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणु
प्पिया ! ममं अणुगिण्हमाणा अकालपरिहीणं चेव समोसरह ।। ८० तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तयं ग्हाया सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया हत्थिखंधवरगया-जाव-जेणेव हत्थिणाउरे
नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। पांडकओ वासूदेवाईणं सक्कारो
: ८१ तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिया । हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं
पंडवाणं पंच पासायडिसए कारेह-अब्भ ग्गयमूसिय-जाव-पडिरूवे। तए णं ते कोडंबियपुरिसा पडिसुणेति-जाव-कारवति । तए णं से पंडू राया पंचर्चाह पंडवेहि दोवईए देवीए सद्धि हय-गय-रह-पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभडचडगर-रह-पहकर-विदपरिक्खित्ते कंपिल्लपुराओ पडिनिवखमइ, पडिनिक्ख मित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए। तए णं से पंड़ राया तेसि वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिया! हथिणाउरस्स नयरस्स बहिया पासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे-अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे कारेह,
कारेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ।। ८२ तए णं वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए।
तए णं से पंडू राया ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से उवागए जाणित्ता हतुझे व्हाए कयबलिकम्मे जहा दुवए-जाव-जहारिहं आवासे दलयइ । तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव सया-सया आवासा तेणेव उवागच्छति तहेव-जाव-विहरंति।। तए णं से पंड राया हथिणाउरं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं वयासी--तुम्भ णं देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आवासेसु उवणेह । तेवि तहेव उवणेति । तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमआसाएमाणा तहेब-जाव-विहरंति ॥
कल्लाणकारुस्सवो ८३ तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे दोवई च देवि पट्टयं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता सेयापीएहि कलसेहि व्हावेइ, पहावेत्ता कल्लाणकारं
करेइ, करेता ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ।
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अरिटुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
१९५
तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाई बहई रायसहस्साई पंडुएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साई-साई रज्जाई जेणेव साइं-साई नगराइं तेणेव पडिगयाइं। तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धि कल्लाकल्लि वारंवारेणं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति ॥
नारदस्स आगमणं ८४ तए णं से पंडू राया अण्णया कयाई पंचहिं पंडवेहि कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धि अंतो अंतेउरपरियालसद्धि संपरिबुडे सोहासण
वरगए यावि विहरइ। इमं च णं कच्छुल्लनारए-दसणेणं अइभद्दए विणीए अंतों-अंतो य कलुसहियए मज्झत्थ उवस्थिए य अल्लीण-सोमपियदंसणे सुरुवे अमइल-सगलपरिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउडदित्तसिरए जन्नोवइय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-बागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-ओवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकामणि-आभिओगि-पण्णत्ति-गमणियंभिणीसु य बहूसु विज्जाहरीसु विज्जासु विस्सुयजसे इठे रामस्स य केसवस्स य पज्जुम्न-पईव-संब-अनिरुद्ध-निसढ-उम्मय-सारणगय-सुमुह-दुम्मुहाईण जायवाणं अद्भुट्ठाण व कुमारकोडीणं हियय-दइए संथवए कलह-जुद्ध-कोलाहलप्पिए भंडणाभिलासी बहूसु य समरसयसंपराएसु दंसणरए समंतओ कलहं सदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवई पक्कणि गगणगमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टण-संबाह-सहस्समंडियं थिमियमेइणीयं निब्भर-जणपदं वसुहं ओलोइंते रम्मं हत्थिणारं उवागए पंडुरायभवणंसि झत्ति-बेगेण समोवइए। तए णं से पंडू राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहि पंडवेहि कुंतीए य देवीए सद्धि आसणाओ अब्भुट्ठई, अन्भु
ठेत्ता कच्छुल्लनारयं सत्तटुपयाई पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता निमंसित्ता महरिहेणं अग्घेणं पज्जेणं आसणेण य उवनिमंतेइ । तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दबभोवरिपच्चत्युयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पंडुरायं रज्जे य रठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। तए णं से पंडू राया कोंती देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लनारयं आढ़ति परियाणंति अब्भुति पज्जुवासंति ।
८५
दोवईए नारयं पइ अणायरो ८६ तए णं सा दोवई देवी कच्छुल्लनारयं अस्संजयं अविरयं अप्पडिहयपच्चखाय-पावकम्मति कटु नो आढाइ नो परियाणइ नो
अब्भुट्टे नो पज्जवासइ। तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अपझथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-"अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहि पंडवेहि अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्टेड नो पज्जुवासइ, तं सेयं खल मन दोबईए देवीए विप्पियं करेत्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पणि विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिन्धाए उद्ध्याए जइणाए छयाए विज्जाहरगईए लवणसमुई मझमस्रणं पुरत्याभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था।
नारदस्स अवरकंका-गमणं पउमनाभरण्णा मिलणं च ८७ तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरस्थिमद्ध-दाहिणड्ड-भरहवासे अवरकका नाम रायहाणी होत्था ।
तत्थ णं अवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभे नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाई ओरोहे होत्था। तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवराया वि होत्था।
तए णं से पउमनाभे राया अंतोअंतेउरंसि ओरोह-संपरिवुडे सीहासणवरगए विहरइ ॥ ८८ तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव अवरकका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स
रणो भवणंसि झत्ति-वेगेण समोवइए।
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१९६
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टेवेत्ता अग्घेणं पज्जेणं आसणेणं उवनिमंतेइ। तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दबभोवरिपच्चत्युयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पउमनाभं रायं रज्जे य रट्टे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे व पुरे य अंतेउरे य कुसलोदंतं आपुच्छइ॥ पउमणाभस्स नियओरोहविसओ गव्वो तए णं से पउमनाभे राया नियगओरोहे जायविम्हए कच्छुल्लनारयं एवं बयासीतुम देवाणुप्पिया ! बणि गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाई आहिंडसि, बहूण य राईसरतलवर-मांडंबिय कोडुबिव-इन्भ-सेट्ठिःसे गावइसत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुपविससि, तं अस्थि याई ते कहिचि देवाणुप्पिया! एरिसए ओरोहे दिट्ठपुब्वे, जारिसए णं मम ओरोहे ? कवदुरदिटुंतकहणपुव्वं नारदकया दोवईरूवपसंसा तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं एवं बुत्ते समाणे ईस विहसियं करेइ, करेता एवं वयासी-- सरिसे णं तुम पउमनाभा! तस्स अगडदद्दुरस्स। के णं देवाणुप्पिया ! से अगडदद्दुरे? पउमनाभा! से जहानामए अगडदद्दुरे सिया। से णं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढ अण्णं अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागर वा अपासमाणे मण्णइ---अयं चेव अगडे वा तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा। तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए ददुरे हव्यमागए। तए णं से कूवददुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासी--"से के तुम देवाणुप्पिया! कत्तो वा इह हव्वमागए?" तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूबददुरं एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! अहं सामुद्दए ददुरे। तए णं से कूवदुरे तं सामुद्दयं दददुरं एवं वयासी--केमहालए णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे ? तए णं से सामुद्दए दददुरे तं कूवबदुरं एवं वयासी--महालए णं देवाणुप्पिया! समुद्दे । तए णं से कूवघदुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे ? नो इणठे समठे। महालए णं से समुद्दे । तए णं से कवदरदुरे पुरथिमिल्लाओ तीराओ उफ्फिडित्ता णं पच्चस्थिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणटठे समझें। एवामेव तुम पि पउमनाभा! असं बहूणं राईसर-जाव-सत्थवाहप्पभिईणं भज्ज वा भगिणि वा धूयं वा सुण्डं वा अपासमाणे
जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए णो असि।। ९१ एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे नपरे दुपयस्स रण्णो धूया, चुलणीए देवीए अत्तया, पंडुस्स सुण्हा
पंचण्डं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य जोवण्णण य लावण्णण ५ उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा। दोवईए णं देवीए छिन्न
स वि पायंगुट्ठस्स अयं तव ओरोहे सयं पि कलं न अग्घइ त्ति कटु पउमनाभं आपुच्छइ आपुच्छित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। पउमणाभट्ट दोवईए देवकयं साहरणं तए णं से पउमनाभे राया कच्छल्लनारयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म दोवईए देवीए रूवे य जोवण्णे य लावणे य मुच्छिए गडिए गिद्धे अज्नीववण्णे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ। तए णं पउमनाभस्स रपणो अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि पुव्वसंगइओ देवो-जाव-आगओ। भणंतु णं देवाणुप्पिया! जं मए कायन्वं ॥ तए णं से पउमनाभे पुत्वसंगइयं देवं एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे नयरे दुपयस्स रण्णो ध्या चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्डं पंडवाणं भारिया दोवई नाम देवी रूवेण य जोवण्णण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किट्टसरीरा। तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया! दोवई देवि इह हव्वमाणीयं"।
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अरिष्टनेमितित्थे दोवईकहाणयं
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९३ तए णं से पुव्वसंगइए देवे पउमनाभं एवं वयासी--
"नो खलु देवाणुप्पिया। एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं दोवई देवी पंच पंडवे मोत्तुणं अण्णणं पुरिसेणं सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहरिस्तइ। तहा वि य णं अहं तव पियट्टयाए दोवई देवि इहं हव्वमाणेमि" ति कटु पउमनाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए-जाव-देवगईए लवणसमुई मज्झमज्झेणं जेणेव हत्थिणाउरे नवरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तेणं कालेणं तेणं समएणं हस्थिणाउरे नवरे जुहिटिल्ले राया दोवईए देवीए सद्धि उप्पि आगासतलगंसि सुहप्पसुत्ते यावि होत्था। तए णं से पुव्वसंगइए देवे जेणेव जुहिडिल्ले राया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवईए देवीए ओसोणि दलयइ, दलइत्ता दोवई देवि गिण्हद, गिण्हिता ताए उक्किट्ठाए-जाव-देवाईए जेणेव अवरकंका जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स भवणंसि असोगवणियाए दोवई देवि ठावेइ, ठावेत्ता ओसोवणि अवहरइ, अवहरिता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी"एस णं देवाणुप्पिया! मए हथिणाउराओ दोवई देवी इहं हव्वमाणीया तव असोगवणियाए चिट्ठइ । अओ परं तुम जाणसि" त्ति कट्ट जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए।
दोवईए चिता २५ तए णं सा दोवई देवी तओ मुहत्तंतरस्त पडिबुद्धा समाणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं बयासी
"नो खलु अम्हं एसे सए भवणे, नो खलु एसा अम्हं सगा असोगवणिया। तं न मज्जइ णं अहं केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधब्वेण वा अण्णस्स रण्णो असोगवणियं साहरिय" त्ति कट्ट ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया झियायइ ।
पउमनाभण आसासणं ९६ तए णं से पउमनाभे राया हाए-जाव-सव्वालंकारविभूसिए अंतेउर-परियाल-संपरिबुडे जेणेव असोगवणिया जेणेव दोवई देवी
तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवई देवि ओहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहि अट्टज्माणोवग झिगायनाणि पातइ, पासित्ता एवं वयासी"किन्नं तुम देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्यमुही अट्टरमाणोवगया झियाहि ? एवं खलु तुम देवाणुप्पिए ! मम पुव्वसंगइएणं देवेणं जंबुद्दोवाओ दोवाओ भारहाओ वासाओ हत्थिणाउराओ नपराओ जुहिट्ठिलस्स रणो भवणाओ साहरिया। तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियाहि । तुम णं मए सद्धि विपुलाई भोगभोगाई
भुंजमाणी विहराहि ॥" ९७ तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं एवं वयासी--
"एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे बारवईए नयरीए कण्हे नाम वासुदेवे मम पियभाउए परिवसइ। तं जइ णं से छण्हं मासाणं मम कूवं नो हब्वमागच्छइ, तए णं अहं देवाणुप्पिया! जं तुमं वदसि तस्स आणा-ओवाय-वरणनिद्देसे चिट्ठिस्सामि। तए णं से पउमनाभे दोवईए देवीए एयमट्ठ पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता दोवई देवि कण्णतेउरे उवेइ । तए णं सा दोवई देवी छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिल-परिग्गहिएणं तवो-कम्मेणं अपाणं भावमाणी विहरइ ।।
जुहिट्ठिलेण पंडुरायं पइ दोवईअवहरणनिरूवणं ९८ तए णं से जुहिट्ठिल्ले राया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्ध समाणे दोवई देवि पासे अपासमाणे सयणिउजाओ उठेइ, उद्वैत्ता दोवईए
देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुइं वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडु रायं एवं वयासी-- "एवं खलु ताओ ! मम आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा नीया वा अवक्खित्ता वा। तं इच्छामि णं ताओ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करित्तए ।" तए णं से पंडु राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधी
"गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! हथिणाउरे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेनाणा एवं वयह--एवं खल देवाणुप्पिया! जुहिट्ठिलस्स रण्णो आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा नीया वा अवविखत्ता वा। तं जो णं देवाणुप्पिया! दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पति वा परिकहेइ, तस्स णं पंडू राया विउलं अत्थसंपयाणं वलयइ ति कट्ट घोसणं घोसावेह, घोसावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥" तए णं ते कोडंबियपुरिसा-जाव-पच्चप्पिणंति ॥
पंडुरायपेसियाए कोंतीए कण्हं पइ दोबइअन्नेसणथनिरूवणं ९९ तए णं से पंडू राया दोवईए देवीए कत्यइ सुई वा खुई वा पत्ति वा अलभमाणे कोंति देवि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी
"गच्छह णं तुम देवाणु प्पिए ! बारवई नार कण्हस्स वासुदेवस्स एयमढें निवेदेहि--कण्हे णं वासुदेवे दोवईए मग्गण-गवेसणं करेज्जा, अग्णहा न नज्जइ दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवत्ती वा॥ तए णं सा कोंती देवी पंडुणा एवं वुत्ता समाणी-जाव-पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा हत्थिखंधवरगया हथिणारं नयरं मझमझेगं निगच्छ, निगच्छिता कुरुजणवयस्म मझमज्झेणं जेणेव सुरट्ठाजणवए जेणेव बारवई नयरी जेणेव अग्गज्जाणे तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिया! बारवई नयरिं, जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स गिहे तेणेव अणुपविसह, अणुपविसित्ता कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयह--एवं खलु सामी ! तुम्भं पिउच्छा कोंती देवी हत्थिणाउराओ नयराओ इहं हव्वमागया तुम्भ बसणं कंखइ॥" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-कहेंति। तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठतुलै हत्थिखंधवरगए बारवईए नयरीए मझमझेणं जेणेव कोंती देवी तेणेव उवागमछइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता कोंतीए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता कोंतीए देवीए सद्धि हत्थिखधं दुरुहइ, दुरुहित्ता बारवईए नयरीए मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
सयं गिहं अणुप्पविसइ ॥ १०१ तए णं से कण्हे वासुदेव कोंति देवि व्हायं कयबलिकम्म जिमियभुत्तुत्तरागयं वि य णं समाणि आयंतं चोक्खं परमसुइभूयं
सुहासणवरगयं एवं बयासी-- संघिसउ णं पिउच्छा! किमागमगपओयणं? तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता! हत्थिणाउरे नयरे जुहिट्ठिलस्स रण्णो आगासतलए सुहप्पसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ अवहिया निया अवक्खित्ता वा। तं इच्छामि णं पुत्ता! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं कयं। तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति पिउच्छ एवं वयासी-"जं मवरं-पिउच्छा! दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पत्ति वा लभामि, तो णं अहं पायालाओ वा भवगाओ वा अद्धभरहाओ वा समंतओ दोवई देवि साहत्थि उवणेमि" त्ति कट्ट कोंति पिउच्छ सरकारेइ सम्मागेइ, सक्कारता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया।
कण्हस्स दोवईगवसणाएसो १०२ तए णं से कण्हे वासुदेवे कोकुंबियपुरिसे सदाबेइ. सदावेत्ता एवं वयासी--
"गच्छह गं तुभ देवाणुप्पिया! बारवईए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्धोसेमागा-उग्धो सेनागा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! जहिट्ठिलस्स रणो आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नजइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किगरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधब्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा। तं जो णं देवाणुप्पिया! दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पत्ति वा परिकहेइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे विउलं अत्थसंपयाणं इलयइ त्ति कटु घोसणं घोलावेह, घोसावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" तए णं ते को डुंबियपुरिसा-जाव-पच्चप्पिणंति । तए णं से कण्हे वासुदेवे अण्णया अंतोअंतेउरगए ओरोह-संपरिबुडे सीहासणवरगए विहरइ॥
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afgafter ataकहा णयं
नारयाओ दोवई उदंतलंभो
१०३ इमं चणं कच्छुल्लनारए - जाव झत्ति-वेगेण समोवइए ।
तए णं से कहे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्ठत्ता अग्घेणं पज्जेणं आसणेणं निमंते ।
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तए णं कच्छुल्लानारए उदगपरिफोसिवाए दभोवरिपच्वत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, नितीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ । तणं से कहे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं ववासी--तुमं णं देवाणुपिया ! बहूणि गामागर जाव- गिहाई अणुपविससि तं अस्थि या ते कहिचि दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवित्ती वा उवलद्धा ?
तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हं वासुदेवं एवं क्यासी --
"एवं खलु देवापिया ! अण्णया घायइसंडदीवे पुरत्थिम दाहिणड्ढ-भरहवासं अवरकंका - रायहाणि गए। तत्थ णं मए पकनाभस्त रण्णो भवसि दोवई - देवी-जारिसिया दिट्ठपुव्वा यावि होत्या । "
तणं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं वयासी -- "तुब्भं चेव णं देवाणुप्पिया ! एवं पुव्वकम्मं ।"
तए णं से कच्छुल्लतारए कण्हेगं वासुदेवेणं एवं वुते समाणे उपयण विज्जं आवाहेद, आवाहेत्ता जामेव दिसि पाउबभूए तामेव दिसि पडिगए ।
सपंडवस्स कव्हरस दोवईआणयणट्ठ धायइसंडं पड़ पाणं
१०४ तए णं से कहे वासुदेवे दूयं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरं नयरं पंडुस्त प्णो एयमट्ठ निवेएहि -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! धायइसंडदीवे पुरत्थिमद्धे दाहिगड्ढ-भरहवासे अवरकंकाए रायहाणीए पज्मन, भभवife दोवईए देवीए पउती उवलद्धा, तं गच्छंतु पंच पंडवा चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा पुरत्थिम-वेयालीए ममं पडियाले - माणा चिछंतु ।
तए णं से दूए भणइ-जाव- पडिवालेमाणा चिट्ठह । तेवि जाव- चिट्ठति ।
तए णं से कहे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सहावेद, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुब्भे देवाणुपिया ! सन्नाहियं भरि तालेह । तेवि तार्लेति ।
तए णं तीए सन्नाहियाए भेरीए सदं सोच्चा समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव - छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवया उप्पीलिय- सरासण-पट्टिया पिणद्ध-गविज्जा आविद्ध-विमल-वरांचध-पट्टा गहियाउहपहरणा अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया - जाव- पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट् जएणं विजएणं वद्धावति ॥
कव्हरस देवा राहणं
१०५ तए णं से कहे वासुदेवे हत्थिबंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेश्वरचामराहि वीइज्जमाणे हय-गय-रहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडे महयाभड चडगर-रह-पहकर - विदपरिक्खित्ते बारवईए नयरीए मज्झमज्झेणं निगच्छ, निगच्छत्ता जेणेव पुरत्थिमवेयाली तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचहि पंडवेहि सद्धि एगयओ मिलइ, मिलित्ता बंधावारनिवेस करेइ, करेता पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुट्टियं देवं मणसीक रेमाणे - मणसीकरेमाणे चिट्ठइ । तणं कण्हत वासुदेवस्स अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि सुट्ठिओ-जाव-आगओ - "भणंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं ।”
कण्हनिद्देसेण सुट्ठियदेवकओ लवणसमुद्दमज्झमग्गो
१०६ तए
से कहे वासुदेवे सुट्ठियं देवं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! दोवई देवी धापईसंडदीवे पुरत्थिमद्धे दाहिणड्ढ-भरहवासे अवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभभवणंसि साहिया, तण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! मम पंचहि पंडवेंहि सद्धि अप्पछटुस्स छहं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियराहि, जेणाहं अवरकंकं रायहाणि दोवईए कूवं गच्छामि ।
तए णं से सुट्ठिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -- किष्णं देवाणुप्पिया ! जहा चेव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं दोवई देवी जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ हस्थिणाउराओ नयराओ जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाओ साहिया, तहा चेव दोवई
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो देवि धायईसंडाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ अवरकंकाओ रायहाणीओ पउमनाभस्स रण्णो भवणाओ हथिणारं साहरामि ?
उदाहु-पउमनाभं रायं सपुरबलवाहणं लवणसमुद्दे पक्खिवामि ? १०७ तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं देवं एवं वयासी-मा गं तुम देवाणुप्पिया ! जहा चेव पउमनाभस्स रणो पुव्वसंगइएणं देवेण
दोवई देवी जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ हत्थिणाउराओ नयराओ जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाओ साहिया, तहा चेव दोवई देवि धायईसंडाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ अवरकंकाओ रायहाणीओ पउमनाभस्स रणो भवणाओ हत्थिणाउरं साहराहि । तुम देवाणुप्पिया! मम लवणमुद्दे पंचहिं पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्ठस्स छगहं रहाणं मग्गं वियराहि । सयमेव णं अहं दोवईए कूवं गच्छामि। तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं होउ। पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछटुस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मागं वियरइ ॥ पउमनाभसमीवे कण्हेण दूयपेसणं तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणि सेणं पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जत्ता पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछठे छहि रहेहि लवणसमुई मझमज्लेणं बीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव अवरकंकाए रायहाणीए अग्गुज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता रहं ठवेइ, ठवेत्ता दारुयं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! अवरकंक रायहाणि अणुप्पविसाहि, अणुप्पविसित्ता पउमनाभस्स रणो वामेणं पाएणं पायपीढं अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणामेहि, पणामेत्ता तिवलियं भिडि निडाले साहट्ट आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयाहि--हंभो पउमनाभा ! अपत्थियपत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा! हीणपुग्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! अज्ज न भवसि । किण्णं तुम न याणसि कण्हस्स वासुदेवस्स भगिण दोबई देवि इहँ हव्वमाणेमाणे ? तं एवमवि गए पच्चप्पिणाहि णं तुमं दोवई देवि कण्हस्स वासुदेवस्स, अहव
णं जुद्ध सज्जे निग्गच्छाहि । एस णं कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडहिं सद्धि अप्पछठे दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए॥ १०९ तए णं से दारुए सारही कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्तं समाणे हद्वतुळे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता अवरकंक रायहाणि अणुपविसइ,
अगुपवितिता जेणेव पउमनाभे तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वडाइ, बद्धावेत्ता एवं वधासी--एस णं सामी ! मम विणयपडिवत्ती, इमा अण्णा मम सामिस्स समुहाणत्ति त्ति कटु आसुरुत्ते वामपाएणं पायपीढं अक्कमइ, अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणामेइ, पणामेत्ता तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिप्तिमिसेमाणे एवं वयासी-हंभो पउमनाभा ! अपत्थियपत्थिया! दुरंतपंतलक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसा! सिरि-हिरिधिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! अज्ज न भवसि । किष्णं तुमं न याणासि कण्हस्स वासुदेवस्स भगिण दोवई देवि इहं हव्वमाणमाणे? तं एवमवि गए पच्चप्पिणाहि णं तुम दोवई देवि कण्हस्स वासुदेवस्स, अहव णं जुद्धसज्जे निग्गच्छाहि । एस णं कण्हे वासुदेते पंचहि पंडहिं सद्धि अप्पछठे दोवईए देवीए कूवं हत्वमागए॥
पउमनाभेण दूयस्स अवमाणणं ११० तए णं से पउमनाभे दारुएणं सारहिणा एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिलि भिडि निडाले
साहट्ट एवं बयासी"णप्पिणामि णं अहं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई। एस णं अहं सयमेव जुज्झसज्जे निग्गच्छामि" त्ति कटु दारुयं सारहिं एवं वयासी"केवलं भो! रायसत्येसु दूए अवज्झे"-त्ति कट्ट असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं निच्छुभावेइ ॥
१११
दूयस्स कण्हसमीवे आगमणं तए णं से दारुए सारही पउमनाभेणं रण्णा असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं निच्छूढे समाणे जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वदावेइ, बद्धावेत्ता कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-- एवं खलु अहं सामी! तुभं वयणेणं अवरकंकं रायहाणि गए-जाव-अवदारेणं निच्छुभावेह॥
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अरिटुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
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पउमनाभस्स पंडहिं जुद्धं ११२ तए णं से पउमनाभे बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह।"
तयाणंतरं च णं छेयायरिय-उवदेस-मइ-कप्पणा-विकप्पेहि सुणिउणेहिं उज्जल-णेवत्थि-हत्य-परिवत्थियं सुसज्ज-जाव-आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता उवणेति ॥ तए णं से पउमनाहे सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए -जाव-आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुहइ, दुरुहिता हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउ
रंगिणीए सेगाए सद्धि संपरिवडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विदपरिक्खित्ते जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ११३ तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमनाभं रायं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता ते पंच पंडवे एवं वयासी--हंभो दारगा! किण्णं तुन्भे
पउमनाभेणं सद्धि जुज्झिहिह उदाहु पेच्छिहिह ? तए णं ते पंच पंडवा कम्हं वासुदेवं एवं वयासी--अम्हे गं सामी ! जुमामो, तुब्भे पेच्छह ॥ तए णं ते पंच पंडवा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया-जाव-पहरणा रहे दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी--अम्हे वा, पउमनामे वा राय ति कट्ट पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गा यावि होत्था ॥
पंडवाणं पराजओ ११४ तए णं से पउमनाभे राया ते पंच पंडवे खिप्पामेव हय-महिय-पवर-वीर-धाइय-विवडियचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि
पडिसेहेइ। तए णं ते पंच पंडवा पउमनाभेणं रण्णा हय-महिय-पवर-वीर-घाइय-विवडिय-चिंध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसि पडिसेहिया समाणा अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमिति कटु जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति ॥
कण्हेण पराजय-हेउ-कहणपुव्वं जुज्झं ११५ तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच-पंडवे एवं वयासी--कहणं तुब्भ देवाणुप्पिया! पउमनाभेणं रण्णा सद्धि संपलग्गा?
तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुहिं अब्भणुग्णाया समाणा सण्णद्ध-बद्धवम्मिय-कवया-जाव-रहे दुरुहामो, दुरुहेत्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एवं वयामो--अम्हे वा पउमनाभे वा रायत्ति कटु पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गा। तए णं से पउमनाभे राया अम्हं खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिध
धय-पडागे किच्छोवगवपाणे दिसोदिसि पडिसेहेइ॥ 1१६ तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वधासी--"जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया! एवं वयंता-अम्हे, णो पउमनाभे रायत्ति
कट्ट पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गंता तो णं तुब्भे नो पउमनाभे हय-महिय-पवर-वीर-घाइय-विवडयचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि पडिसेहित्था। तं पेच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया! अहं, णो पउमनाभे रायत्ति कटटु पउमनाभेणं रण्णा सद्धि जुज्झामि।" त्ति रहं दुरुहइ, दुरुहिता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयं गोखीरहार-धवलं तणसोल्लिय-सिंदुवार. कुंदेंदु-सण्णिगासं निययस्स बलस्स हरिस-जणणं रिउसेण्ण-विणासणकरं पंचजणं संख परामुसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ। तए णं तस्स पउमनाभस्स तेणं संखसद्देणं बल-तिभाए हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसो
दिसि पडिसेहिए। ११७ तए णं से कण्हे वासुदेवे--
अइरुग्णयबालचन्द-इंदधणु-सण्णिगास, वरमहिस-दरिय-दप्पिय-दढघसिंगग्गरइयसारं, उरगवर-पवरगवल-पवरपरहुय-भमरकुल-नीलि-निद्ध-धंत-धोय-पट्टे, निउणोविय-मिसिमिसिंत-मणिरयण-घंटियाजालपरिक्खित्तं, तडितरुणकिरण-तवणिज्जबचिधं, दद्दरमलयगिरिसिहर-केसरचामरवाल-अद्धचंदचिधं, काल-हरिय-रत्त-पीय-सुक्किल-बहुण्हारुणि-संपिणद्धजीवं, जीवियंतकरं धणु परामुसइ, परामुसित्ता धणुं पूरेइ, पूरेत्ता धणुसदं करोइ।
घ००--२६
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तए णं तस्स पउमनाभस्स दोच्चे बल-तिभाए तेणं धणुसद्देणं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि पडिसेहिए।
पउमनाभस्स पलायणं ११८ तए णं से पउमनाभे राया तिभागबलावसेसे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं तुरियं
चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव अवरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अवरकंक रायहाणि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता बाराई पिहेइ, पिहेत्ता रोहासज्जे चिट्ठइ॥
कण्हस्स नरसिंहरूवविउव्वर्ण ११९ तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव अवरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागचिछत्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहह, पच्चोरहित्ता
वेउब्वियसमुग्घाएग समोहग्णइ एगं महं नरसीह-रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता महया-महया सद्देणं पायदद्दरियं करेइ । तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं महया-महया सद्देणं पायदद्दरएणं कएणं समाणेणं अवरकंका रायहाणी संभग्ग-पागार-गोउराट्टालय-चरियतोरण-पल्हत्थिय-पवरभवण-सिरिधरा सरसरस्स धरणियले सण्णिवहया ॥
पउमनाभस्स कण्हसरणपडिवत्ती १२० तए णं से पउमनाभे राया अवरकंकं रायहाणि संभग्ग-पागार-गोउराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवण-सिरिघरं सरसरस्स
धरणियले सण्णिवइयं पासित्ता भीए दोवई देवि सरणं उबेइ। तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं रायं एवं वयासी-- "किण्णं तुम देवाणुप्पिया ! न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं करेमाणे मम इहं हव्वमाणेमाणे? तं एवमवि गए गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया! पहाए उल्लपड-साडए ओचूलगवत्थनियत्थे अंतेउर-परियालसंपरिवुडे अग्गाई बराई रयणाई गहाय ममं पुरओ काउं कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं बसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ठ पायवडिए सरणं उबेहि । पणिवइय
वच्छला गं देवाणुप्पिया ! उत्तमपुरिसा॥" १२१ तए णं से पउमनाभे दोवईए देवीए एवं वुत्ते समाणे व्हाए उल्लपडसाडए ओचूलगवत्थनियत्थे अंतेउर-परियालसंपरिवुडे अग्गाई
वराई रयणाई गहाय दोवई देवि पुरओ काउं कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ठ पायवडिए सरणं उबेइ, उवेत्ता एवं वयासी--"विट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्ढी जुई जसो बलं बीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे । तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! खमंतु णं देवाणुप्पिया! खंतुमरहंति णं देवाणुप्पिया ! नाइ भुज्जो एवंकरणयाए" ति कट्ट पंजलिउडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई देवि साहत्थि उवणेई॥
सदोवइ-पंडवस्स कण्हस्स पडिआगमणं १२२ तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमनाभं एवं वयासी-"हंभो पउमनाभा! अपत्थियपत्थिया! दुरंतपंतलक्खणा! होणपुण्णचाउद्दसा!
सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! किण्णं तुम न जाणसि मम भगिण दोवई देवि इहं हव्वमाणेमाणे ? तं एवमवि गए नत्थि ते ममाहितो इयाणि भयमत्थि" ति कट्ठ पउमनाभं पडिविसज्जेइ, दोवई देवि गेण्हइ, गेण्हिता रहं दुरुहेइ, दुरुहित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचण्हं पंडवाणं दोवई देवि साहत्यि उवणेइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछठे छहि रहेहिं लवणसमुदं मझमज्झणं जेणेव जंबुद्दीवे दोवे जेणेव भारहे वासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥
धायइसंडिल्ल-भरहखेत्तिल्लस्स कविल-कण्ह-वासुदेवजुयलस्स संखसद्देणं मिलणं १२३
तेगं कालेगं तेणं सनएणं धायइसंडे दीवे पुरत्यिमद्ध भारहे वासे चंपा नाम नपरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए नयरीए कविले नामं वासुदेव राया होत्था--महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ।
तेणं कालेणं तेगं समएणं मुणिसुब्बए अरहा चंपाए पुग्णभद्दे चेइए समोसढे । कविले वासुदेवे धम्म सुणेइ ॥ १२४ तए णं से कविले वासुदेव मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतिए धम्म सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसई सुणेइ॥
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अरिटुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
१२५ तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूबे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--कि मण्णे धायइसंडे दीवे
भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए वियंभइ ? कविले बासुदेवे सद्दाइं सुणेइ। मुणिसुव्बए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी--से नूणं कविला वासुदेवा ! ममं अंतिए धम्म निसामेमाणस्स [ते?] संखसह आकण्णिता इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--किमण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे मम पिव मुहवायपूरिए वियंभइ ? से नूणं कविला वासुदेवा ! अद्वै समठे ? हंता ! अत्थि। तं नो खलु कविला! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा अण्णं एगखेते एगजुगे एगसमए णं दुवे अरहंता वा थकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा। एवं खलु वासुदेवा ! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ हत्थिणाउराओ नयराओ पंडुस्स रण्णो सुव्हा पंचाहं पंवाणं भारिया दोवई देवी तव पउमनाभस्त रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं अवरकंकं नरि साहरिया। तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछठे हि रहेहि अवरकंक रायहाणि दोवईए देवीए कूवं हवमागए। तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स पउमनाभेणं रण्णा सद्धि संगामं संगामेमाणस्स अयं संखसद्दे तव मुहवायपूरिए इव वियंभइ ।।
१२६ तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं अरहं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी--गच्छामि गं अहं भंते ! कण्हं वासुदेवं
उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं पासामि ।। तए णं मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासो--नो खलु देवाणुप्पिया! एवं भूयं वा भग्वं वा भविस्सं वा जण्णं अरहता वा अरहंतं पासंति, चक्कवट्टी वा चक्कट्टि पासंति, बलदेवा वा बलदेवं पासंति, वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति । तहवि य णं तुमं कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुदं मझमज्झेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाई पासिहिसि ।
१२७
तए णं से कविले वासुदेव मुणिसुब्वयं अरहं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखंध दुरुहइ, दुरुहित्ता सिग्धं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव वेलाउले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हस्स बासुदेवस्स लवणसमुदं मझमझणं बोईवयमाणस्स सेयापोयाइं धयग्गाई पासइ, पासित्ता एवं वयइ--एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुई मज्झमज्झेणं वीईवयइ ति कटु पंचयण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवस्स संखस आयण्णेइ, आयपणेता पंचयण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ । तए णं दोवि वासुदेवा संखसह-सामायारि करेंति ॥
कविलेण पउमनाभस्स निव्वासणं १२८ तए णं से कविले वासुदेवे जेणेव अवरकंका रायहाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अवरकंक रायहाणि संभग्ग-पागार-गोउर
ट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवर-भवण-सिरिघरं सरसरस्स धरणियले सण्णिवइयं पासइ, पासित्ता पउमनाभं एवं बयासी--किण्णं देवाणुप्पिया ! एसा अवरकंका रायहाणी संभग्ग-पागार-गोउरट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवण-सिरिघरा सरसरस्स धरणियले सण्णिवइया? तए णं से पउमनाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासो--एवं खलु सामी ! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ इहं हन्दमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुभ परिभूय अवरकका रायहाणी संभग्ग-गोउरट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थिय-पवरभवण-सिरिघरा सरसरस्स धरणियले सपिणवाडिया। तए णं से कविले वासुदेवे पउमनाभस्स अंतिए एयमह्र सोच्चा पउमनाभं एवं वयाणी-हंभो पउमनाभा ! अपत्थियपत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा! हीण-पुण्णचाउद्दसा! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! किण्णं तुम न जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे?--आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्ट पउमनाभं निव्विसयं आणवेइ, पउमनाभस्स पुत्तं अवरकंकाए रायहाणीए महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए।
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धम्मकहाणुओगे सईओ खंधो
अपरिक्खणीयकण्हस्स पंडवकया परिक्खा १२९ तए णं से कण्हे वासुदेवं लवणसमुई मज्नंमज्झेणं वोईवयमाणे-बीईवयमाणे गंगं उवागए ते पंच पंडवे एवं वयासो--गच्छह गं
तुम्भे देवाणुप्पिया! गंगं महानई उत्तरह-जाव-ताव अहं सुट्ठियं लवणाहिवई पासामि। तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं बुत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी तेणेव उबागच्छंति, उवागच्छित्ता एगट्टियाए मग्गण-गवेसणं करेंति, करेत्ता एगट्ठियाए गंगं महानई उत्तरंति, उत्तरित्ता अण्णमण्णं एवं वयंति--पहू गं देवाणुप्पिया! कण्हे वासुदेवे गंगं महानई बाहाहि उत्तरित्तए, उदाहू नो पहू उतरित्तए? त्ति कटु एगट्ठियं णूति, मेत्ता कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठति ॥
१३० तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई पासइ, पासित्ता जेणेव गंगं महानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए
सम्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता एगट्ठियं अपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महानई बाढि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णं उत्तरिउ पयत्ते यावि होत्था । तए णं से कण्हे वासुदेवे गंगाए महानईए बहुमज्झदेसभाए संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाए यावि होत्था॥
१३१
तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था--अहो णं पंच पंडवा महाबलवगा जेहिं गंगा महानई बाट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहि उत्तिण्णा। इच्छंतएहिं णं पंह पंडहिं पउमनाभे हय-महिय-पवरवीर-घाइयविविडिय-चिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि नो पडिसेहिए। तए णं गंगादेवी कण्हस्स बासुदेवस्स इमं एयाहवं अज्झत्थियं-जाव-जाणित्ता थाहं वियरइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहुतंतरं समासासेइ, समासासेत्ता गंगं महानदि बाट्टि जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिण्णं बाहाए उत्तरह उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडदा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं क्यासी--अहो णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! महाबलवगा, जेहिं णं तुन्भेंहि गंगा महानई बाट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहि उत्तिण्णा । इच्छंतएहि णं तुम्भेहि पउमनाहे हयमहिय-पवरवीर-धाइय-विवडियचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि नो पडिसेहिए।
१३२ तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--
"एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एगट्टियाए मग्गणगवेसणं करेमो, करेत्ता एगट्टियाए गंगं महानइं उतरेमो, उत्तरेत्ता अण्णमण्णं एवं वयामो-पहू गं देवाणप्पिया ! कण्हे वासुदेवे गंगं महानई बाहाहि उत्तरित्तए, उदाहु नो पहू उत्तरित्तए? ति कटु एगट्ठियं णूमेमो, तुम्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो ॥"
कण्हेण पंडवाणं निव्वासणं १३३ तए णं से कण्हे वासुदेवे तेसि पंचपंडवाणं एयम8 सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडि निडाले साहटु एवं
वयासी'अहो णं जया मए लवणसमुदं दुवे जोयण पयसहस्सवित्यण्णं वोईवइत्ता पउमनाभं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विडियचिध-धय पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहिता अवरकंका संभम्गा, दोवई साहत्थि उवणीया, तया णं तुब्भेहिं मम माहप्पं न विण्णायं, इयाणि जाणिस्सह त्ति कट्ट लोहदंडं परामुसइ, परामुसिता पंचण्हं पंडवाणं रहे चूरेइ, चूरेत्ता पंच पंडवे निविसए आणवेइ । तत्थ णं रहमद्दणे नामं कोट्ठट्ठ निविट्ठ॥ तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता सएणं खंधावारेणं सद्धि अभिसमण्णागए यावि होत्था ।
तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अणुप्पविसइ ।। १३४ तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता
करयलपरिग्गहियं इसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-एवं खलु ताओ! अम्हे कण्हेणं निव्विसया आणत्ता। तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी--"कहण्णं पुत्ता! तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेणं निविसया आणता?"
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अरिटुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
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तए णं ते पंच पंडवा पंडुरायं एवं वयासी--"एवं खलु ताओ ! अम्हे अवरकंफाओ पडिनियत्ता लवणसमुदं दोणि जोयणसयसहस्साई वीईवइत्था । तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वय इ--च्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! गंगं महानइं उत्तरह-जाव-ताव अहं सुट्ठियं लवणाहिवई पासामि, एवं तहेव-जाव-चिट्ठामो। तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं लवणाहिबई बण जेणेव गंगा महानई तेणेव उदागच्छइ तं चेवं सवं नवरं कण्हस्स चिता न बुझइ-जाव-निविसए आणवेइ ॥"
१३५ तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी--"दुटठु णं पुत्ता! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं ।"
तए णं से पंडुराया कोंति देवि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"गच्छह गं तुम देवाणुप्पिए! बारवई नरिं कण्हस्स बासुदेवस्स एवं निवेएहि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुमे पंच पंडवा निस्विस्या आणता । तुमं च णं देवाणुप्पिया ! दाहिणभरहस्स सामी। तं संधिसंतु णं देवाणुप्पिया। ते पंच पंडवा कयरं बेसं वा दिसं वा
विदिसंवा गच्छंतु? १३६ तएणं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हस्थिखधं दुरहइ, जहा हेट्ठा-जाव-संदिसंतु णं पिउच्छा! किमागमणपओयणं ?
तएणं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं क्यासी-एवं खल तुमे पुत्ता! पंचपंडया निव्विसया आणत्ता । तुमं च गं बाहिणड्ढभरहस्स सामी। तं संदिसंतुणं देवाणुप्पिया! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा विदिति वा गच्छंतु ?
१३७ तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति देवि एवं वयासी
"अपूइवयणा णं पिउच्छा! उत्तमपुरिसा-वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं पंच पंडवा पाहिणिल्लं वयालि तत्थ पंडुमहुरं निवसंतु, ममं अधिटुसेवगा भवंतु" ति कट्ट कोंति देवि सक्कारेइ सम्लाणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेता पडिविसज्जेइ । तए णं सा कोंती देवी जेणेव हत्थिणाउरे नवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुस्स एयभट्ट निबेएइ । तए णं पंडू राया पंच पंडवे सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"गच्छह णं तुम्भे पुत्ता ! दाहिणिल्लं यालि । तत्थ तुम्भे पंडमहरं निवेसेह ॥"
पंडुमहरा-निवेसणं १३८ तए णं ते पंच पंडवा पंडुस्स रण्णो एयम तहत्ति पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता सबलवाहणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए
सेणाए सद्धि संपरिबुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विदपरिक्खित्ता हत्थिणाउराओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ताजेणेव दविखणिल्ले वेपाली तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पंडमहरं नगरि निवेसंति । तत्थ विणं ते विपुलभोग-समिति-समण्णागया याचि होत्था ।।
पंडुसेणजम्म १३९ तए णं सा दोवई देवी अण्णया कयाइ आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था।
तए णं सा दोवई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं-जाव-सुरुवं दारगं पयाया-सूमालकोमलयं गयतालुयसमाणं । तए णं तस्स णं दारगस्स निव्वत्तबारसाहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिष्फण्णं नामधेज करैंति जम्हा णं अम्हं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवइए देवीए अत्तए, तं होउ णं इमस्स णं दारगस्स नामधेज्ज 'पंडसेणे-पंडुसेणे'। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति पंडुसेणत्ति। तए णं तं पंडुसेणं दारयं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणंसि तिहि-करण-मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेति । तए णं से कलायरिए पंडुसेणं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सणस्य-पज्जवसाणाओ बावरि कलाओ मुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ-जाव-अलंभोगसमत्थे जाए। जुवराया-जाव-विहरइ॥
१४०
पंडवाणं दोवईए य पव्वज्जा तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा समोसना । परिसा निग्गया। पंडवा निग्गया। धम्म सोच्चा एवं वयासी-जं नवरदेवाणप्पिया ! दोवइं देवि आपुच्छामो। पंडुसेणं च कुमार रज्जे ठाबेमो । तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भविसा णं अगाराओ अणगारियं पन्वयामो। अहासुहं देवाणुप्पिया!
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२०६
लए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, उपागच्छत्ता दोबई देखि सहावेति सहायता एवं क्यासी--- "एवं खलु देवाप्पिए! अम्हेहि वेराणं अंतिए धमे निसते जाय-पव्यामो तुमं णं देवापिएक करेस ?" तए गं सादोई से पंच पंडवं एवं बासी
"जइणं तुभे देवाणुपिया ! संसार भउग्विग्गा जाव-पव्वयह, मम के अण्णे आलंबे वा आहारे वा पडिबंधे वा भविस्सइ ? अहं पिय णं संसारभाि देवास पचस्तामि ।।"
महाणुओगे तईओ बंधो
१४१ ए से पंच पंडवा कोरिले सहावे सहायता एवं बी
"खिने भो देवानिका पंडुसेगस कुमारस्त महत्वं महत्वं महरिहं वि राधाभिसेहं उपद्रवेह" पंड़सेमल अभिसेओ-जाबराया जाए- जाव- रज्जं पसाहेमाणे विहरइ ||
तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अण्णया कयाइ दंडुसेणं रायाणं आपुच्छति ।
तए णं से पंडुसेणे राधा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेद, सहावेत्ता एवं क्यासी-
"विष्णामेव भो देवासुविधा । विश्वमणाभिसेयं करेह-जाव-पुरिततहस्त वाहिणीओ निविदाओ उबटूवेह" नाव- सिविवाओ पच्चो बेरा भगवंतो तेच उगत उगता बेरं भगवंतं श्वित्तो आहिणपाणिं करेति, करेला निमंति नमसला एवं उपासी मालिले भने! तोए-जाव-समणा जावा, पोस्त पुण्याई अजिंति, अहिजित्ता बणि साम माहिमालमा तमणेहि उत्पानं भावमाणाविहरति ।
तए णं सा दोई देवी सीधाओ पचोर जाव-पव्यइया मुख्यवाए अजमाए सिसिनियताए बलयंति एक्कारस अंगाई अहि बहूनि वाला मसालामाल अप्पाणं भावमाणी विहरद ।
तए णं ते येरा भगवंतो अष्णया कयाइ पंडुमहराओ मयरीओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्ख मिता बहिया जणवयविहारं विहरति ॥
अरिनेमिस्स निव्वाणं
१४२ काले ते समएणं भरा अरिनेमी जेगेव सुरद्वाजणवए तेज उवागन्दा उचायिता सुरद्वाजणवयंसि संजमेणं तसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
तर बहुजणी अण्णमस्त एक्साइक्लड भास पण्णवं पवेद एवं देवाचिया अरहा अरिदुनेमी सुरद्वाजणए संज तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।
१४३ लए णं ते द्विपामो पंच अणगार। बहुत अंतिए एक्म सोच्वा अष्णमणं सहावेति सहायता एवं
"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वा णुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं वुइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे सुरट्ठाजणवए संजमेणं तवसा अमाणं भावेमाणे विहरइ । तं सेयं खलु अम्हं थेरे भगवंते आपुच्छितः अरहं अरिटुर्नाम वंदनाए गमित्तए ।" अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुर्णेति, पडिसुणेला जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदति ममसंति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वासी-
"अम्भणुष्णाया समाना भरहं अरिनेमि वंदनाए गमितए।"
अहासुहं देवाविया !
तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा थेरेहिं अन्भणुष्णाया समाणा थेरे भगवंते बंदंति नर्मसंति, वंदिता नमसित्ता थेराणं अंतियाओ पति पनिमित्ता मामा अपि तवोकम्येणं गामागाम भाषा सुगुणं विहरमाणा व हत्थक नपरे व उपागच्छति उपागता त्यकन्यस्त बहिया सहसांगणे उमाणे संजणं तवसा जवा भामाणाविहरति ।
तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा मासक्खमणपारणए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंति, बीयाए झाणं झायंति एवं जहा गोमसामी, नवरं हिट्टितं आपुच्छति जाब-अडमाना बहुजनल निसामेति एवं खलु देवाणुपिया | अरहा अरिनेमी उज्जतसेलसिहरे मासिएवं भत्ते अपाणएवं पंचहि छत्तीसह अनगरसहि सद्धि कालगए-जाव-सम्पही ॥
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अरिठुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
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पंडवाणं निव्वाणं १४४ तए ते जुहिट्ठिलवज्जा चतारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमठ्ठ सोच्चा निसम्म हत्थकप्पाओ नयराओ पडिनिक्खमंति, पडि
निक्खमित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे. जेणेव जुहिट्ठिले अणगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पच्चुवेक्खंति, पच्चुबेक्खिता गमणागमणस्स पडिक्कमंति, पडिक्कमिता एसणमणेसण आलोएंति, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिसेंति, पडिदंसेत्ता एवं बयासी"एवं खल देवाणुप्पिया! अरहा अरिटुनेमी उज्जंतसेलसिहरे मासिएण भत्तेणं अपाणएणं पंचहि छत्तीसेहि अणगारसएहि सद्धि कालगए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! इमं पुव्वगहियं भत्तपाणं परिद्ववेत्ता सेत्तुज्ज पव्वयं सणि-सणियं दुरुहित्तए, सलेहणा-असणा-झोसियाणं काल अणवेक्खमाणाणं विहरित्तए ति" कटु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तं पुव्वगहियं भत्तपाणं एगंते परिट्ठवेति, परिवेत्ता जेणेव सेत्तुज्जे पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागछित्ता सेतुज्ज पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति दुरुहिता संलेहणाअसणा-झोसिया कालं अणवकंखमाणा विहरंति ।
तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा सामाइयमाइयाई चोद्दसपुब्बाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अताणं झोसेत्ता जस्सट्ठाए कोरइ नग्गभावे-जाव-तमट्ठमाराहेंति, आराहेत्ता अणतं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेता तओ पच्छा सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा ॥
दोवईए देवगई १४५ तए णं सा दोवई अज्जा सुव्वयाणं अज्जियाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जिता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं
पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अत्ताणं झोसेता आलोइय-पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववण्णा । तत्थ णं अत्थेगइयाणं
देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं दुवयस्स वि देवस्स दससागरोवमाई ठिई। १४६ से णं भंते! दुवए देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता-आव-महाविबेहे वासे सिजिनहिहजाव-सव्वदुखखाणमंतंकाहिइ ।'
णाया. सु. १, अ. १६ ।
१. वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा--
सुबहू वि तव-किलेसो, नियाण-दोसेण दूसिओ संतो। न सिवाय दोवईए, जह किल सूमालिया-जम्मे ।।१।। अथवा-- अमणुण्णमभत्तीए, पते दाणं भवे अणत्थाय । जह कडुय-तुंब-दाणं, नागसिरि-भवम्मि दोवईए ॥२॥
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१४७
२. अरिनेमितित्थे पउमावई-आईणं समणीणं कहाणगाणि
संगहणी - गाहा
१. पउमावई य २. गोरी, ३. गंधारी, ४. लक्खणा, ५. सुसीमा य ।
६. जंबवड, ७. सच्चभाना, ८. रुध्विणी, ९. मूलसिरि, १०. मूलदत्ता वि ॥ १ ॥
कहवासुदेवस्स देवी पउमावई
ते कालेनं तेणं समएणं बारवई नगरी ।
hot वासुदेवे आहेबच्वं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।
तस्स णं कण्हल्स वासुदेवस्स पउमाई नाम देवी होत्था -- वण्णओ ॥
अरहया अरिट्टनेमिणा चतुज्जामधम्मदेसणा
१४८ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिद्वर्णमी समोसढे जाव-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । कण्हे वासुदेवे निग्गए-जाबपज्जुवासइ ।
तणं सा मावई देवी इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठा जहा देवई देवी जाव-पज्जुवासह ||
तए णं अरहा अरिणेमी कण्हरूप वासुदेवस्स पउमावईए य देवीए तीसे महति महालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहे, तं जहा -- सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहातो वेरमणं । परिसा पडिगया ||
१५१
कण्हेण बारवई विणा सकारण पुच्छा
१४९ तए णं कण्हे वासुदेवे अरहं अरिद्वर्णोम वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी- "इमोसे णं भंते! बारवईए नगरीए नवयोजनवियिण्णा - जाव- देव लोगभूयाए किमूलाए विणासे भविस्स ?"
कहा ! ई अरहा अरिदुणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -- "एवं खलु कण्हा ! इमीसे बारवईए नयरीए नवजोयर्णावित्थिष्णाए-जावदेवलोगभूयाए सुरग्गिदीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ ॥
कण्हत बारवइविणाससवणेण चिंता
१५० कण्हस्स वासुदेवस्स अरहओ अरिटुणेमिस्त अंतिए एवं सोच्चा निसम्म अयं अज्झत्थिए - जाव-संकष्पे समुप्पज्जित्था -- धण्णा णं ते जालिमयालि उवयालि - पुरिससेण वा रिसेण-पज्जुष्ण-संब-अणिरद्ध-ददणेमि सच्चणेमि-प्पभियओ कुमारा जेणं चत्ता हिरण्णं-जावदाणं दाइयाणं परिभाएता अरहओ अरिट्टणेमिस्स अंतियं मुंडा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइया । अहणणं अधष्णे अकय पुणे रज्जेय र य कोसे य कोट्टागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतंउरे य माणुस्वएसु य कामभोगेसु मुच्छिए जाव- अज्झोववण्णे नो संचामि अरहओ अरिट्टणेमिस्स अंतिए मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
निदाण करणेगं सव्वेंसि वासुदेवाणं ण पव्वज्जेत्ति फुडीकरणं
कहा ! ई अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -- " से नूणं कण्हा ! तव अयं अज्झत्थिए- जाव-संकध्ये समुप्पज्जित्था -- धण्णा णं ते जालिप्पभिकुमारा- जाव-पव्वइया, अहरणं अधण्णे- जाव-नो संचाएमि अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वत्तए । से तूणं कण्हा ! अत्थे समत्थे ?
हंता अस्थि ।
तं तो खलु कण्हा ! एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जण्णं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव-पव्वइस्संति ।
सेकेणणं भंते! एवं बुच्चइ 'न एतं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जण्णं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं- जाब-पव्वइस्संति ?
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अरिद्वनेमितित्थे पउमावई-आइसमणीणं कहाणगाणि
२०९
कण्हा! ई अरहा अरिटुणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-"एवं खलु कण्हा! सव्वे वि य णं वासुदेवा पुव्वभवे निदाणकडा। से एतेण?णं कण्हा ! एवं बुच्चइ न एतं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जणं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं-ज व-पच्वइस्संति ॥
कण्हस्स अणंतरभवे निरयगई १५२ तएणं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटमि एवं वयासी
"अहं णं भंते ! इतो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिस्सामि ? कहि उववज्जिस्सामि?" तए णं अरहा अरिढणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-- "एवं खलु कण्हा ! तुमं बारवईए नयरीए सुरग्गि-दीवायण-कोव-निदड्ढाए अम्मापिइ-नियग-विप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धि दाहिणवेयालि अभिमुहे जुहिट्ठिलपामोक्खाणं पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पासं पंडुमहरं संपत्थिए कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टए पीयवस्थ-पच्छाइय-सरोरे जराकुमारेणं तिक्खणं कोदंड-विष्पमुक्केणं उसुणा वामे पादे विद्ध समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उज्जलिए नरए नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि।" तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिढणेमिस्स अंतिए एयम8 सोच्चा मिसम्म ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए झियाइ ॥
कण्हस्स आगामिणीए उस्सप्पिणीए अममभवे तित्थयरत्तं १५३ कण्हा ! ई अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं क्यासी--"मा णं तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पे-जाव-झियाह । एवं खलु तुम
देवाणुप्पिया! तच्चाओ पुढवीओ उज्जलियाओ नरयाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेब जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए पंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि । तत्थ तुम बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणेत्ता सिज्झिहिसि. जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिसि ॥"
कण्हेण अण्णेसि पव्वज्जागहणे सहायघोसणं १५४ तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिदृणेमिस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव-अप्फोडेइ, अफोडेत्ता वग्गइ, वग्गित्ता तिवई
छिदइ, छिदित्ता सीहणायं करेइ, करेता अरहं अरिट्ठणेमि बंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेक्कं हत्थि दुरुहइ, दुरूहित्ता जेणेव बारवई नवरोजेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। आभिसेयहत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी“गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! बारवईए नयरीए सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु हित्थिखंधवरगया महयामहया सहेणं उग्धोसेमाणा-उग्धोसेमाणा एवं क्यह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! बारवईए नयरीए नवजोयणविच्छिण्णाए-जाव-देवलोगभूयाए सुरग्गि-दीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ तं जो णं देवाणुप्पिया ! इच्छइ वारवईए नयरीए राया वा जुवराया वा ईसरे वा तलवरे वा माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठी वा देवी वा कुमारो वा कुमारी वा अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वाइतए, तंणं कण्हे वासुदेवे विसज्जेइ। पच्छातुरस्स वि य से अहापवित्तं वित्ति अणुजाणइ । महया इढिसक्कारसमुदएणय से निक्खमणं करेइ। बोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता मम एवं पच्चप्पिणह।" तए णं ते कोडुंबिया-जाव-पच्चप्पिणंति ॥
पउमावईदेवीए पव्वज्जासंकप्पो १५५ तए णं सा पउमावई देवी अरहओ अरिटुनेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया
अरहं अरि?णेमि वंदइ नमसइ, वंचिता नमंसित्ता एवं वयासी-"सहहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, से जहेयं तुब्भे वयह । जं नवरंदेवाणुप्पिया! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि ।" अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि । तए णं सा पउमावई देवी धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरुहिता जेणेव बारवई नयरी जेणेव संए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं ध० क०२७
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२१०
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-“इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! तुहिं अम्भणुण्णाया समाणा अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि । तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! पउमावईए देवीए महत्थं महग्धं महरिहं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह, उवटुवेत्ता एपमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" तएणं ते कोड बियपुरिसा-जाव-तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।।
पउमावईपव्वज्जा १५६ तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावई देवि पट्टयं दुरुहेइ, अट्ठसएणं सोवष्णकलसाणं-जाव-महाणिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता
सवालंकारविभूसिय करेइ, करेता पुरिससहस्सवाहिणि सिबियं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता बारदईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए पचए जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयं ठवेइ, पउमावई देवि सीयाओ पच्चोसहइ, पच्चोरुहिता जेणेव अरहा अरिद्वणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अरहं अरिट्ठणेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-“एस णं भंते ! मम अग्गमहिसी पउमावई नाम देवी इट्ठा-जाव-मणाभिरामा -जाव-उंबरपुष्कं पिव दुल्लहा सवणयाए, किमंगपुण पासणयाए ? तग्णं अहं देवाणुपिया! सिस्सिणिभिक्खं दलयामि । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं ।" अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह। तए णं सा पउमावई उत्तरपुरथिमं दिसौभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुयित्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ करेत्ता जेणेव अरहा अरिटुणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिद्वमि वंचइ नमसह, वंचित्ता नमंसित्ता
एवं वयासी--"आलिते णं भंते ! लोए-जाव-तं इच्छामि गं देवाणुप्पिएहि धम्ममाइक्खियं ॥" १५७ तएणं अरहा अरिटुणेमी पउमावइं देवि सयमेव पव्वावेइ, पव्वावेत्ता सयमेव जक्खिणीए अज्जाए सिस्सिणित्ताए दलयइ ।
तए णं सा जक्खिणी अज्जा पउमावई देवि सयमेव पव्वावेइ सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेति धम्ममाइक्खइ--एवं देवाणुप्पिए ! गंतव्वं-जाव-संजमेणं संजमियव्यं । तए णं सा पउमावई देवी तमाणाए तह चिट्ठइ-जाव-संजमेणं संजमइ । तए णं सा पउमावई अज्जा जाया । इरियासमिया-जाव-गुत्तबंभयारिणी। तए णं सा पउमावई अज्जा जक्खिणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि विविहेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ ॥
पउमावईए सिद्धी १५८ तए णं सा पउमावई अउजा बहुपडिपुण्णाई वीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अपाणं झूसेइ,
झूसेता ट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे-जाव-तम8 आराहेइ, चरिमुस्सासेहिं सिद्धा-जाव-सव्व. दुक्खप्पहीणा ॥
गोरिपभितीणं कहाणगसंखेवो १५९ तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। रेवयए पव्वए। उज्जाणे नंदणवणे ।
तत्थ णं बारवईए नवरीए कण्हे वासुदेवे । तस्स णं कण्हस्स बासुदेवस्स गोरी देवी-वण्णओ। अरहा समोसढे । कण्हे णिगए । गोरी जहा पउमावई तहा निग्गया। धम्मकहा। परिसा पडिगया। कण्हे वि । तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा निक्वंता-जाव-सिद्धा-जाव-सव्व दुक्खप्पहीणा ।
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अरिनेमितित्थे पउमावई-आइसमणीणं कहाणगाणि
२११
एवं--गन्धारी, लक्षणा, सुसीमा, जंबवई, सच्चभामा, रुपिणी । अट्ठ वि पउमावईसरिसाओ॥
मूलसिरीमूलदत्ताणं कहाणगाई १६० तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए मयरीए रेवयए पव्वए नंदणवणे उज्जाणे कण्हे वासुदेवे ।
तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए अत्तए संबे नाम कुमारे होत्था--अहीणपडिपुण्णपंचेंदियसरीरे। तस्स णं संबस्स कुमारस्स मूलसिरी नामं भारिया होत्था-वण्णओ॥ अरहा समोसढे। कण्हे निग्गए। मूलसिरी वि निग्गया, जहा पउमावई। जं नवरं--देवाणुप्पिया ! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि-जावसिद्धा-जाव-सव्वदुक्खपहीणा। एवं मूलदत्ता वि।
अंत० व० ५, अ० १-१० ।
३. पोट्टिलाकहाणयं
तेयलिपुरे तेयलिपुत्ते अमच्चे १६१ तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरे नाम नयरे होत्था। तस्स णं तेयलिपुरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसिभाए एत्थ गं पमयवणे
नाम उज्जाणे होत्था। तत्थ णं तेयलिपुरे णयरे कणगरहणाम राया होत्था । तस्स णं कणगरहस्स रण्णो पउमावईणामं देवी होत्था । तस्स णं कणगरहस्स रणो तेयलिपुत्ते नाम अमच्ने-साम-दंड-भेय- उक्प्पयाण-नीति-सुपउत्त-नयविहण्णू विहरइ । तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नाम मूसियारदारए होत्था---अड्ढे-जाव-अपरिभूए । तस्स णं भद्दा नाम भारिया होत्या ।
१६२
कलायस्स पुत्ती पोट्टिला तस्स णं कलायस्स मूसियारदारगस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नाम दारिया होत्था--सवेण य जोव्वणेण य लावण्णण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा। तए णं सा पोट्टिला दारिया अण्णया कयाइ हाया सवालंकारिभूरिया चेडिया-चक्कवाल-संएरिवुडा उपि पासायवरगया आगासतलगंसि कणतिदूसएणं कोलमाणी-कोलमाणी विहरइ ।
१. कण्ह-अग्गमहिसो
कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ट अग्गमहिसीओ अरहतो ण अरिदृणेमिस्स अंतिते मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारित पव्वइया सिद्धाओ बुद्धाओ मुत्ताओ अंतगडाओ परिणिबुडाओ सव्वदुक्खप्पहीणाओ, तं जहा-- संगहणी-गाहा
पउमावती य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य । जंबवती सच्चभामा, रुप्पिणी अग्गमहिसीओ।।१।।
ठाणं० अ०८, सु०६२६ ।
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२१२
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तेयलिपुत्तस्स पोट्टिलाए आसत्ती १६३ इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे हाए आसखंधवरगए महया-भड-चडगर-आसवाहणियाए निज्जायमाणे कलायस्स मुसियारदारगस्स
गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयाइ । तए णं से तेथलिपुत्ते अमच्चे मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईक्यमाणे-वीईवयमाणे पोट्टिलं दारियं उप्पि पासायवरगयं आगासतलगंसि कणग-तिदूसएणं कीलमाणि पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य-जाव-अज्झोववण्णे कोडुंबियपुरिसे सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- “एस णं देवाणुप्पिया! कस्स दारिया किं नामधेज्जा वा?" तए णं कोडुबियपुरिसा तेयलिपुत्तं एवं क्यासी---"एस णं सामी! कला यस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नाम दारिया-रूबेण य जोत्वणेण य लावण्णण य उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा॥"
१६४
पोट्टिलाए वरणं तए णं से तेयलिपुत्ते आसवाहगियाओ पडिणियत्ते समाणे अभितरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--"गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं मम भारियत्ताए वरेह।" तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा-जाव-करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी! तह ति आणाए विणएणं क्यणं पडिसुति, पटिसुणेत्ता तेयलिस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणे कलायस्त मूसियारदारयस्स गिहे तेणेव उवागया। तए णं से कलाए मूसियारदारए ते पुरिसे एग्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे आसणाओ अब्भुट्टेड, अब्भटठेत्ता सत्तटुपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता आसणेणं उवणिमंतेइ, उवणिमंतेत्ता आसत्थे वीस थे सुहासणवरगए एवं क्यासी--"संदिसंतुणं देवाणुप्पिया ! किमागमणपओयणं?" तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा कलायं मूसियारदारयं एवं क्यासी--"अम्हे णं देवाणुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारियत्ताए परेमो। तं जाणं जाणसि देवाणुप्पिया! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो वा दिज्जउ णं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स। तो भण देवाणुप्पिया! किं दलामो सुकं ॥" तए णं कलाए मुसियारदारए ते अभितरठाणिजे पुरिसे एवं क्यासी-“एस चेव णं देवाणुप्पिया! मम सुंझे जण्णं तेयलिपुत्त मम दारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ।" ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असण-पाण-खाइ-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध मल्लालंकारेण
सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसण्जेइ ।। १६६ तए गं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहाओ पडिनियतंति, जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति,
उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं एयम्ठं निवेइंति ।।
पोट्टिलाए पाणिग्गहणं १६७ तए णं कलाए मुसियारदारए अण्णया कयाइ सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहत्तंसि पोट्टिलं दारियं व्हायं सव्वालंकारविभसियं सीयं
दुरुहेत्ता मित्त-नाइ-नियगा-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुडे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सविडडीए तेयलिपुरं नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव तेलिस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलया। तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्टतुळे पोट्टिलाए सद्धि पट्टयं दुरुहड, दुरुहित्ता सेयापीएहि कलसेहि अप्पाणं मज्जावेइ, मऊ जावेत्ता अग्गिहोम कारेइ, कारेत्ता पाणिग्गहणं करेइ, करेता पोट्टिलाए भारियाए मित्त-नाईनियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सरकारेइ सम्माणेइ, सरकारता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से तेवलिपुत्ते पोटिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरद्द ।।
कणगरहस्स रज्जासत्ती पुत्तंगछयणं च १६८ तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रठे व बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे 4 मुच्छिए गटिए गिद्धे अज्झो
वण्णे जाए जाए पुत्ते दियंगे इ-अपेगइयाणं हत्थंग लियाओ छिवह, अप्पेगइयाग हत्थंगुट्टए छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिदाइ. अप्पेगइयाणं पायंगुट्टए छिदइ अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिचइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई वियत्तेइ ॥
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पोहिला महाग
१६९
पउमाबद्दल संरक्खणत्थं तयलिपुत्तस्स अणुमई
तए णं तोसे पमावईए देवीए अन्यथा कमाइ पुव्वत्तावत्तकालसमस अयमेवाचे अस्थि-जाय संकल्ये समुपक्रिया एवं मग हे राया रज्जे व रट्ठे व बने व चाहने व कोसे व कोणारे व पुरे व अतिउरे व मुछिए गए गिद्धे अशोवबणे जाए जाए ते वियं-- अप्येवाणं हत्यगुलियाओं व अपेयाणं त्वं हि अप्येयानं पायगुलियाओ छिपाए दिवाणी व या नासाडाई फाले, अवधाणं अंगाई पि तं ज णं अहं दारयं पापानि सेयं खलु मम तं दारणं कणगरहस्य रहस्तिययं नेत्र सारक्खमाणीए संगोयेमाणीए विहतिए" ति एवं सं संपेता तेलिअम सहावे सहावेत्ता एवं वासी-
"एवं स देवापिया! कणगरहे राया रज्जे व रट्ठे य ब य जाहणे य कोसे व कोठागारे व पूरे व अंतरे व मुछिए मडिए गिद्धे अशोववणे जाए जाए पुत्ते वियंगेइ- अप्पेगइया गं हत्थंगुलियाओ छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिदइ अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिदइ, अपेगइयाणं पायंगुटुए छिंद, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलोओ छिदइ, अध्येगइयाणं नासाडाई फालेइ अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई वित्ते । तं जइ णं अहं देवागुप्पिया ! दारगं पयायामि, तए णं तुमं कणगरहस्त रहस्तिययं चैव अणुपुव्वेणं सारक्खमाणे संगो संदेह तए णं से दारए उम्बुकालभावे विषय-परिणयते जगमगुप्ते तव ममय भिक्लाभाय भविस्स" तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवीए एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता पडिगए । पउमावदारग- पोट्टिलादारियाणं जम्माणंतरं परोप्परं परावत्तण
२१३
१७० तए णं पउमावई देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गन्भं गेव्हंति, सममेव गन्भं परिवहंति सममेव गन्भं परिवट्ठेति । तए णं सा पमावई देवी नवण्हं मासाणं बहुप डिपुण्णाणं- जाव-पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया । जं रर्याणि च णं पउमाबाई देवी दारयं पयाया तं रर्याणि च णं पोट्टिला वि अमच्ची नवहं मासाणं विणिहायमावन्तं दारियं पयाया ।
तए णं सा पउमावई देवी अम्मधाई सद्दावेद, सहावेत्ता एवं क्यासी -- "गच्छह णं तुमं अम्मो ! तेयलिपुत्तं रहस्तिययं चेव सहावेहि।"
तए णं सा अम्मधाई तह ति पडिसुणे, पडिसुणेत्ता अंतेउरस्त अवदारणं निग्गच्छs, निग्गच्छित्ता जेणेव तेयलिस्स गिहे जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी--"एवं खलु देवा - पिया पउमावई देवी सहावे।"
तए णं तेलि अन्नचाईए अंतिए एम सोया निसम्म अम्माईए सहि सामान नगर, निति अतेउरस्स अवदारणं रहस्सिययं चैव अनुप्यदिसह, अनुव्यवसित्ता जेणेव परमाबाई देवी तेथे उपागन्छ, उयागच्छिता करण परिमाहियं सिरसावतं एवं वासी संदितुणं देवाग्थिए मए काय-"
-
6
लए पजमाई देवी तेवतियुतं एवं बयासी एवं कणगरहे राया-जायते वियंगे। अहं णं देवाविवा! दार पाया। तं तुमं णं देवाप्पिया ! एवं दार गेव्हा हि-नाव- तव मम यमिवाभावणे भविस्सद त्ति" कद्दू तेलपुत्तस्स हत्ये वस तए गं तेयलिपुत्ते पडमा हत्याओं दार गेव्हड, उत्तरिज्जे विहे अंतेरस्त रहस्तियं अवदारेण निछ, नियच्छिता एग व पोट्टल भारिया नेगेव उपागच्छद्र, उजगन्छिसा पोहिलं एवं वयासी- "एवं देवापिए! कणगरहे राया जब विने अयं दार कणगरहस्स पुते परमवईए असएसनं तुमं देवाग्थिए। इमं दार कणगरहस रहस्य वेद अशुपुत्रेणं सारस्वाहि य संगोयेहि य संदेह य तए णं एस दारए उम्मुक्कामावे तर य मम य पडणानईए य आहारे भवित" कि पोट्टिकाए पासे निक्विड, निखिता दोलाए पासाओ तं विनिहाय मावणियं दारियं गेड, हित्ता उत्तरिणं पिछेद, पिहेला अंतउरस्स अवदारेणं अणुप्यविसह, अणुष्वपिसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवाउवागपिछला पउमावईए देबीए पासे डावे-ब-दिनए ।
1
दारियाए मयकि
ए तो पाईए देवीए अंगपडियारियाओं परमावई देवि विहावमावणियं च दारिव पचा पासति पासिता जेणेव कनगर या तेन उचावच्छति उबागन्दिता करया परिग्यहि सिरसावतं मत्यए अंजलि कट्टु एवं वासी एवं खलु सामी ! पउमावई देवी मएल्लियं दारियं पयाया ।। "
तणं कमनरहे राया तीसे मलवाए दारियाए नोहरणं करेह बहु लगाई मचाई करेह, करेता का बो
3
जाए ॥
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२१४
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
अमच्चपुत्तस्स जम्मुस्सवो कणगज्झयनामकरणं य १७२ तए णं से तैयलिपुत्ते कल्लं कोडुंबियपुरिसे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-"खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया! चारगसोहणं करेह
-जाव-ठिइपडियं रसदेवसियं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं परचप्पिणह।" तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणंति। जम्हा णं अम्हं एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए तं होउ गं दारए नामेणं कणगझए-जाव-अलंभोगसमत्थे जाए।
अमच्चस्स पोट्टिलं पइ विरागो १७३ तए णं सा पोट्टिला अण्णया कयाइ तेयलिपुत्तस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया यावि होत्था-नेच्छइ गं
तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण सणं वा परिभोगं वा? तए णं तीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पउिजत्था--"एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुब्धि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया। नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते मम नाम गोयमवि सवणयाए, कि पुण दंसणं वा परिभोगं वा ?" (ति कट्ट?) ओहयमणसंकप्पा फरतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियायइ ।।
पोट्टिलाए दाणसालाकरणं १७४ तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं ओहयणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहि अट्टज्माणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं क्यासी-“मा गं
तुम देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्यमुही अट्टज्माणोवगया झियाहि। तुमं णं मम महाणसंसि विपुलं असण-पाणखाइम-साइमं उक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य विहराहि।" तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं एवं वुत्ता समाणी हट्ठ तुट्ठा तेयलिपुत्तरस एयमद्वं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कल्लाकल्लि महाणसंसि विपुलं असणपाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि किवण-वणीमगाणं देयमाणी य पवावेमाणी य विहरइ ॥
अज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियाए आगमणं १७५ तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ नाम अज्जाओ इरियासमियाओ-जाव-गुत्तबंभचारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुष्वाणु
पुचि चरमाणीओ जणामेव तेयलिपुरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति । तए णं तासि सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए पढमाए पोरिसीए समाय-जाव-करेइ । अडमाणीओ तेयलिस्स गिहं अणुपक्ट्ठिाओ ॥
पोट्टिलाए अमच्चपसायोवाय-पुच्छा १७६ तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भुठेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता
विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं क्यासी"एवं खलु अहं अज्जाओ! तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पुन्वि इट्टा-जाव-मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा-जाव-अमणामा जाया। नेच्छा णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं तुब्भे गं अज्जाओ बहुनायाओ बहुसिक्खियाओ बहुपढियाओ बहूणि-गामागर-जाव-आहिंडह, बहूणं राईसर-जाव-गिहाई अणुपविसह । तं अत्थि याई भे अज्जाओ ! केइ कहिचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा आभिओगिए वा वसीकरणे वा कोउवकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धपुव्वे, जेणाहं तेयलिपुत्तस्स पुणरवि इट्ठा-जाव-मणामा भवेज्जामि?"
अज्जा-संघाडगेण धम्मोवएसो १७७ तए णं ताओ अजाओ पोट्टिलाए एवं वुत्ताओ समाणीओ दोवि कण्णे ठएंति, ठवेत्ता पोट्टिलं एवं वयासी-“अम्हे णं देवाणुप्पिए !
समणीओ निग्गंथीओ-जाव-गुत्तबंभचारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कणेहि वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा? अम्हे णं तव देवाणुप्पिए! विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहिज्जामो॥"
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पोट्टिला कहाण
२१५
तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एवं व्यासी --" इच्छामि णं अज्जाओ ! तुब्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्मं निसामित्तए । " तए णं ताओ अज्जाओ पोट्टिलाए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्मं परिकर्हति ॥
पोहिलाए सावियाधम्मग्रहणं
१७८ तए णं सा पोट्टिला धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठा तुट्ठा एवं वयासी -- "सद्दहामि णं अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं- जाव से जहेयं तुम्भे वयह इच्छामि णं अहं शुभं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिश्वावदयं-सहं गिहिषम्मं विजिताए ।
अहा देवाप्पिए ।
तसा पहिला तास अजा अंतिए पंचाणुपं जाव-गिम्मिं पहिचन, लाओ अजाओ चंद्र नमसह बंदिता मं सित्ता पडिविसज्जेइ ।
तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया जाव - पडिला भेमाणी विहरइ ॥
पोट्टलाए पव्वज्जागहण संकल्पो
१८९ तए णं तीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरताव रत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए- जाव-संकप्पे समुपज्जत्था -- एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुव्वि इट्ठा- जाव-मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा - जाव अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवगयाए कि पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? तं सेयं खलु ममं सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए - - एवं सं संपेता पाउप्यभावाए रवणीए-जाव-ट्टियम्य पूरे सहस्वरस्तिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेवतेयलिपुत्ते तेव उवागच्छह, उवागच्छिता करबल-परिमहिषं सिरसावतं मत्थए अंजलि कट्टु एवं क्यासी एवं खलु देवानुविधा ! मए सुव्वाणं अज्जाणं अंतिए धन्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं तुर्भेह अन्भणुष्णाया पचइत्तए । "
7
तंलिपुत्तं पर धम्मबोह्करणपडिबढाए पोट्टिलाए पव्वज्जागणं वेदलोगुवबाओ य
१६० एषं ते पोट्टि एवं क्यासी- "एवं खलु तुमं देवापिए! मुंडा पण्यइया समाणी कालमा काला अणयरंतु देवसोए देवता उपजिहिंसि तं जह गं तुमं देवाप्पिए । मर्म ताओ देवलोगाली आगम्म केवलिपणले धम्मे बोहेहि तोऽहं जिससे अह णं तुमं ममं न संबोहेसि तो ते न विसजेोमि ॥"
तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमट्ठ पडिसुणेइ ॥
१०१ तर ते विलं असणं पानं वाइमं साइमं उखडावे, उखडावेला मिल-माइ-नियम-सयण संबंधि-परिवणं आमंतेजवारे सम्माणेह पक्कारेता सम्माता पोट्टि व्हाये सवालंकारविभूसियं पुरिससह वाहिणीयं सीयं दुहितामिसनाइ - नियग-सय-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए-जाव- दुंदुहिनिग्धोसनाइय-रवेणं तेयलिपुरं मज्झमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं उarer तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सोयाओ पच्चोरहइ, बच्चो रुहित्ता पोट्टिलं पुरओ कट्टु जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी- "एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा - जाव-मणामा । एस णं संसारभउव्विग्गा भोया जम्मण जर मरणाणं इच्छइ देत्राणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भविता अगाराओ अणवारियं पव्व पडितु देवापिया सिस्मिणिभि ं।" महा मा पहियं करेहि।
१८२
तएषं सा पहिला सुब्ववाहि अज्जा हि एवं वृत्ता समाणो हड्डा उतरपुरशीथमं दिसीमागं अवक्कम. अवक्कमिता सदमेव आभरणमलाकार ओमद, ओमदत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं खोयं करे, जेणेव सुन्ववाओ अनाओ तेणेव उवागच्छद उदागण्ठित बंद ave दासता एवं क्यासी आणिं अभ्ना ! सोए एवं जहा देवाणंदाजाव-एक्कारस अंगाई अहिज्जद, यहूणि वासागि सामण्णपरियागं काउगह पाउगित्ता मासियाए संतेहणाए अतागं झोसेला सह भलाई अगसणं एता आलोयपडता समाहिता कलमासे का सिल्वा अग्नयरेसु देवसोए देवताए उबवण्णा ।।
कणगरहस्स मच्चू
तए णं से कणगरहे राया अण्णया कयाइ कालधम्पुणा संजुत्ते यावि होत्था ॥
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२१६
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तए णं ते राईसर-जाव-नीहरणं करेंति, करेत्ता अण्णमण्णं एवं क्यासी-"एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य-जावमुच्छिए पुत्ते वियंगित्या। अम्हे णं देवाणुप्पिया! रायाहीणा रायाहिट्ठिया रायाहीणकज्जा। अयं च णं तेयली अमच्चे कणगरहस्स रणो सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिन्नक्यिारे सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था । तं सेयं खलु अम्हं तेयलिपुत्तं अमच्चं कुमारं जाइत्तए" ति कटु अण्णमण्णस्स एयम पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एवं क्यासी-“एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे य-जाव-मुच्छिए पुत्तं वियंगित्या। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! राथाहोणा रायाहिट्ठिया रायाहीणकज्जा। तुम च णं देवाणुप्पिया! कणगरहस्स रण्णो सवठाणेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिनक्यिारे रजधुराचितए होत्था। तं जइ णं देवाणुपिया! अत्थि केइ कुमारे रायलक्खणसंपण्णे अभिसेयारिहे तणं तुम अम्हं दलाहि जणं अम्हे महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचामो।"
कणगज्झयस्स रायाभिसेओ १८३ तए णं तेयलिपुत्ते तेसि ईसरपभिईणं एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कणगज्झयं कुमारं व्हायं-जाव-सस्सिरीयं करेइ, करेत्ता तेसि
ईसरपभिईणं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी--"एस णं देवाणुप्पिया! कणगरहस्स रण्णो पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए कणगज्झए नाम कुमारे अभिसेयारिहे रायलक्खणसंपण्णे, मए कणगरहस्स रण्णो रहस्सिययं संवड्ढिए । एयं णं तुब्भे महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचह ।" सव्वं च से उट्ठाणपरियावणियं परिकहेइ । तए णं ते ईसरपभिइओ कणगझयं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति ।। तए णं से कणगज्झए कुमारे राया जाए-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसार-जाव-रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥
तेयलिपुत्तस्स सम्माणं १८४ तए णं सा पउमावई देवी कणगज्झयं रायं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासो--"एस णं पुत्ता! तव रज्जे य रठे य बले य
वाहणे व कोसे 4 कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य, तुमं च तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पभावेणं । तं तुम णं तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाहि परिजाणाहि सक्कारेहि सम्माणेहि, इंतं अब्भुठेहि, ठियं पज्जुवासेहि, वच्चंतं पडिसंसाहेहि, अद्धासणेणं उबणिमंतेहि, भोगं च से अणुवड्ढेहि।" तए णं से कणगज्झए पउमावईए तहत्ति वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाइ परिजाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ, इंतं अन्भुट्टेड, ठियं पज्जुवासेइ, बच्चंतं पडिसंसाहेइ, अद्धासणेणं उवणिमंतेइ, भोगं च से अणुवड्ढेइ ॥
तेयलिपुत्तस्स पोट्टिलदेवकओ धम्मसंबोहोवाओ १८५ तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं-अभिक्खणं केवलिपण्णत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेलिपुत्ते संबुज्झइ ।
तए गं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु कणगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ-जावभोगं च से अणुवड्ढइ, तए णं से तेयलिपुत्ते अभिक्खणं-अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुज्झइ । तं सेयं खलु मसं कणगपझयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कणगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामेइ। तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्स-रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते आसखंधवरगए बाहिं पुरिसेहिं सद्धि संपारवुड़े साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निम्गच्छित्ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तेयलिपुत्तं अमच्चं जे जहा बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेटि-सेणादइ-सत्थवाहपभियओ पासंति ते तहेव आढायांत परियाणंति अब्भुट्ठति, अंजलिपग्गहं करेंति, इटाहि कंताहि-जाव-वाहि आलवमाणा य संलवमाणा य पुरओ य पिट्ठओ
य पासओ य मग्गतो य समणुगच्छंति ॥ १८६ तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छद।
तए णं से कणगज्जए तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुठेइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणब्भुट्ठमाणे परम्मुहे संचिट्ठइ। तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगज्झयस्स रपणो अंजलि करेइ। तओ यणं से कणगज्झए राया अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणब्भुट्ठमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्ठइ।
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पोलिकायं
संज्ञायाए एवं वयासी" णं मम
तर णं तेपलिते कणवत्यं राधे विपरिणयं जाणित भए तत्थे तसिए कणगज्झए राधा । होगे णं मम कणगज्झए राया । अवज्झाए णं मम कणगज्झए राया । तं न नज्जड़ णं मम केणइ कुमारेण मारेहिइ" त्ति कट्टु भीए तत्थे जाव-सणियं-सणियं पच्चीसक्कड, पच्चोसक्कित्ता तमेव आसबंधं दुरूहइ दुरूहित्ता तेयलिपुरं मझंगेव सए गिहे ते पहारेस्य गमगाए।
तर णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर - जाव-सत्थवाहपभियओ पासंति ते तहा नो आढायंति नो परियाणंति नो अब्भुट्ठेति नो अंजलि - पग करेंति, इट्ठाई जाव-वग्गूहिं नो आलवंति नो संलवंति नो पुरओ व पिटुओ य पासओ य मग्गओ य समनुगच्छति ।
तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए । जा वि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा- वासे इ वा पेसे इवा भाइलए इवा, सावि य णं नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुट्ठेइ । जा वि य से अभितरिया परिसा भवइ, तं जहा -- पिया इ वा माया इ वा भाया इवा भगिणी इवा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा सा वि य णं नो आहार तो परिवाणा मोट्ठे ॥
तेलियपुत्तस्स मरणचेट्ठाए बिलीकरणं
१८७ तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासधरे जेणेव स्यणिज्जे तेणेव उवागच्छद्द, उदागच्छित्ता सर्वाणिज्जंसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासी--"एवं खलु अहं सयाओ गिहाओ निम्गच्छामि तं चेव-जाव-अभितरिया परिसा नो आढाइ नो परियाणा नो ragइ । तं सेयं खलु मम अप्पाणं जीविधाओ ववरोवित्तए" त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तालउड विसं आसगंसि पक्खिव । से य विसे नो कमइ ।
२१७
तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमापगासं खुरधारं असि खंधेसि ओहरइ । तत्थ वि य से धारा ओएला ।
तए णं से तेल जेणेव असोगणिया तेणेव उयागनछड उदागच्छिता समं गोवाए बंध, बंधित वक्वं दुरुह दुहिता पासगं रुक्खे बंध इ, बंधित्ता अध्याणं मुयइ । तत्थ वि य से रज्जू छिन्ना ।
तए णं से तेयलिपुत्ते महइमहालियं सिलं गोवाए बंधद, बंधित्ता अत्थामतारम पोरिसीयंसि उदगंसि अदाणं मुयइ । तत्थ वि से थाहे जाए ||
तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकार्य पक्खिवह, पक्खिवित्ता अप्पाणं मुयइ । तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए। तयलिपुत्तस्स विम्पकरणं
१८८ तए णं से तेयलिपुत्ते एवं क्यासी--"सद्धेयं खलु भो ! समणा वयंति सद्धेयं खलु भो ! माहणा वयंति। सद्धेयं खलु भो ! समण - माणा वति । अहं एगो असद्धेयं वयामि । एवं खलु --
अहं सह पुतेहि अपुते । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह मित्तहि अद्वित्ते । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह अत्थेणं अणत्थे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह दारेणं अदारे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह दासहि अदासे । को मेदं सद्दहिस्सइ ?
सह पेसेहि अपेसे । को मेदं सहहिस्सइ ? सह परि अणेणं अपरजणे । को मेदं सद्दहिस्सइ ?
1
एवं खलु नेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं कणगज्झएणं रग्णा अवज्झाएणं समाणेणं तालपुडगे विसे आसगंसि पक्खित्ते से वि य नो कमइ । कोमे हिस्स? तेथलीयवलय-अभिमाने खुरधारे असी खंत हरितत्व से धारा ओएल्ला । को मेयं सद्दहिस्सइ ?
यसले पास गराए बंचितास्वंदु वारुणेाय मुक्के तत्थ विय से रज्जू दिशा को मेहि? तेलिणं महदमहालय लिंगोबाए बंधिला आवाहनतारमपोरिसोवंसि उदगंत अप्पा मुक्के तत्थ वि य णं से चाहे जाए | को मे सहित ?
ध० क० २८
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२१८
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिविता अप्पा मुक्के। तत्थ विय से अग्गी विज्झाए । को मेयं सदृहिस्सइ ?"
-ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्यमुहे अट्टज्झाणोक्गए झियायइ ॥
पोट्टिलदेवस्स संवादो १८९ तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउवित्ता तेपलिपुत्तस्स अदूर-सामंते ठिच्चा एवं क्यासी
"हं भो तेयलिपुत्ता! पुरओ पवाए, पिट्टओ हत्थिभयं दुहओ अचक्खुफासे, मसे सराणि वरिसंति । गामे पलिते रणे झियाइ. रणे पलिते गामे झियाइ । आउसो तेयलिपुत्ता ! कओ वयामो?" तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं देवं एवं वयासी-भीयस्स खलु भो! पव्वज्जा सरणं, उक्कंट्ठियस्स सदेसगमणं, छहियस्स अन्नं, तिसियस्स पाणं, आउररस भेसज्ज, माइयस्स रहस्सं, अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्स वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहणकिच्चं, परं अभिउंजिउकामस्स सहायकिच्चं । खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि न भवइ ॥" तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अमच्चं एवं वयासी"सुठु णं तुम तेयलिपुता! एयमझें आयाणाहि" त्ति कटु दोच्चपि तच्चपि एवं क्यइ, वइत्ता जामेव दिसि पाउम्भूए तामेव दिसि पडिगए।
तेयलिपुत्तस्स जाईसरणाणंतरं पव्वज्जागहणं १९० तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स सुभेणं परिणामेणं जाईसरणे समुप्पन्ने ।
तए णं तेयलिपुत्तस्स अयमेयारूचे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे पोक्खलावईए विजए पोंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नाम राया होत्था। तए णं हं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता पम्वइए सामाइयमाइयाई चोद्दसपुन्वाइं अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए महासुक्के कप्पे देवत्ताए उववष्णे। तए णं हं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्स अमच्चस्स भद्दाए भारियाए दारगत्ताए पच्चायाए । तं सेयं खलु मम पुवुद्दिट्ठाई महन्वयाई सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए"-एवं संपेहेई संपेहेत्ता सयमेव महव्वयाइं आरुहेइ आरुहेत्ता जेणेव पमयवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिला पट्टयति सुहनिसण्णस्स अणुचितेमाणस्स पुश्वाहीयाई सामाइयमाइयाई चोद्दसपुवाई सयमेव अभिसमण्णागयाई।
तेयलिपुत्ताणगारस्स केवलणाणं १९१ तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेणं अज्ञवसाणेणं लेसाहिं विसुज्नमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं
खओवसमेणं कम्मरयविकरणकरं अपुवकरणं पविट्ठस्स केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे । तए णं तेयलिपुरे नयरे अहासन्निहिएहि वाणमंतरेहि देहि देवीहि य देवदंदुहीओ समाहयाओ, दसद्धवणे कुसुमे निवाइए, चेलुक्खेवे दिव्वे गीयगंधव्वनिनाए कए याधि होत्था ॥
कणगज्झयस्स सावगधम्म-गहणं १९२ तए णं से कणगझए राया इमीसे कहाए लद्धठे समाणे एवं क्यासी-“एवं खलु तेयलिपुत्ते मए अवज्झाए मुंडे भवित्ता पव्वइए।
तं गच्छामि णं तेयलिपुतं अणगारं वदामि नमसामि, वंदित्ता नमसित्ता एयमट्ट विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेमि"--एवं संपेहेइ संपेहेत्ता हाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि जेणेव पमयवणे उज्जाणे जेणेव तेथलिपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एयमट्ठ च णं विणएणं भुजो भुज्जो खामेइ, खामेत्ता नच्चासणे-जाव-पज्जुवासइ। तए णं से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगज्मयस्स रण्णो तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ। तए णं से कणगज्झए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं---दुवालसविहं सावधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे ॥
तेयलिपत्तकेवलिस्स सिद्धिगमणं १९३ तए णं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवलिपरियागं पाउणित्ता-जाव-सिद्ध ॥1
णाया० सु० १, अ०१४ । १. वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
जाव न दुक्खं पत्ता, माणभंसं च पाणिणो पायं । ताव न धम्मं गेण्हंति भावओ तेयलिसुय व्य॥१॥
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४. पासनाहतित्थे समणीए कालीए कहाणगं
१९४ समणेणं भगवया महावीरेणं-जाव-संपत्तेणं धम्मकहाणं बस वग्गा पण्णत्ता तं जहा--
चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे। बलिस्स वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो अग्गहिसीणं बीए बग्गे। असुरिंदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं इंदाणं अगमहिसीणं तईए वग्गे । उत्तरिल्लाणं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासि इंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे बग्गे। दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गहिसीणं पंचमे वग्गे। उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छठे बग्गे। चंदस्स अग्गमहिसीणं सत्तमे वगे। सूरस्त अग्गमहिसीणं अट्ठमे वगे। सक्कस्स अग्गमहिसीणं नवमे वग्गे।
ईसाणस्स य अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे। १९५ तेगं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी। सामी समोसढे । परिसा निग्गया-जाव
परिसा पज्जुवासइ॥
चमरचंचाए कालीदेवी १९६ तेणं कालेणं तेणं समएणं काली देवी चमरचंचाए रायहाणीए कालिवडेंसगभवणे कालंसि सीहासणसि चहि सामाणियसाहस्सीहि
चाहिं महयरियाहिं सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहिं सतहिं अणिएहि सत्तहि अणियाहिवहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि अप्णेहि य बहुहि कालिडिसय-भवणवासीहि असुरकुमाहि देहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडा महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-जल-ताल-तुडियघण-मुइंग-पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी पासइ ।
कालीदेवीए भगवओ महावीरस्स समीवे नट्टविही १९७ एत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं
तवसा अप्पाणं भावमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण-हियया सीहासणाओ अन्भुढेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओभुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ट पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणु अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणु धरणियलंसि निहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि निवेसेइ, ईसि पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी"नमोत्थ णं अरहताणं भगवंताणं-जाव-सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपाविउकामस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगया, पासउ मे समणे भगवं महावीरे तत्थगए इहगयं" ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता
सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा निसण्णा । १९८ तए णं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्प समुप्पज्जित्था--'सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्तए
नमंसित्तए सक्कारित्तए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आभिओगिए देवे
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे विहरइ एवं जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ-जाव-दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं करेह य कारवेह य, करेता य फारवेत्ता व खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" ते वि तहेव करेत्ता-जाव-पच्चप्पिणंति, नवरं--जोयणसहस्स-वित्थिण्णं जाणं। सेसं तहेव। तहेव नामगोयं साहेइ, तहेव नदृविहि उवदंसे इ-जाव-पडिगया।
गोयमेण कालीदेवीए पुव्वभवपुच्छा १९९ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी---
"कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभागे कहिं गए? कहि अणुप्पविट?" गोयमा! सरीरं गए सरीरं अणुप्पविठ्ठ। कूडागारसाला दिळेंतो। अहो णं भंते ! काली देवी महिड्ढिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा। कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लढे ? किण्णा पत्ते ? भिण्णा अभिलमग्णागए?
कालीदेवीए पुन्वभवो कालीनामेणं २०० गोयमा! ति समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम आमंतेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु गोयमा ! तेणं फालेणं तेणं समएणं इहेव
जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पा नाम नयरी होत्था-वण्णओ। अंबसालवणे चेइए । जियसत्तू राया । तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले नाम गाहावई होत्था---अड्ढे-जाव-अपरिभूए। तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी नाम भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया-जाव-सुरूवा। तस्स णं कालस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली नाम दारिया होत्था--वड्डा बडुकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी निविण्णवरा वरगपरिवज्जिया वि होत्था ।
कालीए पासदसणं धम्मसवणं य २०१ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिस
वरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए जीवदए दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंत-चवकवट्टी अप्पडिय-वरनाणसणधरे वियट्टछउमे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिष्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वष्णू सव्वदरिसी नवहत्थुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जल्लमल्लकलंकसेयरहियसरीरे सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्ज ठाणं संपाविउकामे सोलसहि समणसाहस्सीहि अटुत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धि संपरिबुडे पुधाणुपुचि चरमाणे
गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे समोसते । परिसा निग्गया-जाव-पज्जुवासइ । २०२ तए णं सा काली दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठ-तुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण
हियया जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं क्यासी--"एवं खलु अम्मयाओ! पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे तित्थगरे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव आमलकप्पाए नयरीए अंबसालवणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुहि अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायबंदिया गमित्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं करेहि । तए णं सा काली दारिया अम्मापिईहि अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठ-तुट्ठ-चित्त-माणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसक्सिप्पमाण हियया व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडिया-चक्कवाल-परिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेच बाहिरिया उवढाणसाला जणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवरं दुरूढा ! तए णं सा काली दारिया धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी एवं जहा देवई तहा पज्जुवासइ । तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारिवाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं कहेइ।
कालीए पव्वज्जासंकप्पो २०३ तए णं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हियया
पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"सदहामि
छइ, उवागच्छिता
व जहा देवई तह
कहेइ ।।
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पासनाहतित्थे समणीए कालीकहाणगं
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णं भंते ! निगंथं पावयणं,-जाव-से जहेयं तुम्भे वयह। जं नवरं-देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पन्वयामि।" अहासुहं देवाणुप्पिए! तए णं सा काली दारिया पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं एवं वुत्ता समाणी हट्ट-तुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हियया पासं अरहं वंदइ नमसह, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियाओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव आमलकप्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आमलकप्पं नरि मज्झमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, उवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसगह सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-- "एवं खलु अम्मयाओ! मए पासस्स अरहओ अंतिए धम्मे निसंते। से वि य धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तए णं अहं अम्मयाओ! संसारभउव्विग्गा भीया जम्मण-मरणाणं इच्छामि गं तुहि अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स अरहओ अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंधं करेहि।
कालीपव्वज्जा २०४ तए णं से काले गाहावई विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खाडावेइ,
उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेद, आमंतेत्ता तओ पच्छा व्हाए-जाव-विपुलेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ कालिं दारियं सेयापीएहि कलसेहि व्हावेइ, व्हावेत्ता सव्वालंकार-विभूतियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेइ, दुरुहेत्ता मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणणं सद्धि संपरिवडे सविडढीए-जाव-दं दुहि-निग्धोस-नाइयरवेणं आमलकप्पं नरि मसंमज्झेणं निग्गच्छा, निग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागचिछत्ता छत्ताईए तित्थगराइसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवेत्ता कालिं दारियं सीयाओ पच्चोरहेइ। तए गं तं कालि दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसा-दाणीए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वदंति नमसंति, बंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया! काली दारिया अम्हं धूया इट्ठा कता-जाव-उंबरपुष्फ पिक दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउद्विग्गा इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणिभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं ।” अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं सा काली कुमारी पासं अरहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकार ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव लोयं करेइ, . करेत्ता जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासं अरहं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ,
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
देवाणुप्पिए मासिणीया सोनति अब
वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासो--"आलित्ते णं भते ! लोए-जाव-तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहि सयमेय पच्याविय-जाव-धम्म माइक्खियं । तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालि सयमेव पुप्फचलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए दलयइ। तए णं सा पुष्फचूला अज्जा कालि कुमारि सयमेव पव्वावेइ-जाव-धम्ममाइक्खइ। तए णं सा काली पुष्फचूलाए अज्जाए अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं सा काली अजा जाया-इरियासमिया-जाव-गुत्तबंभयारिणी। तए णं सा काली अज्जा पुष्फचलाए अजाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ।
कालीए बाउसियत्तं २०५ तए णं सा काली अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया यावि होत्था । अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवइ, पाए धोवेइ,
सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराणि धोवेइ, कक्खंतराणि धोवेइ, गुज्झंतराणि धोवेइ, जत्थ-जत्थ वि य गं ठरणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तं पुत्वामेव अम्भुक्खित्ता तओ पच्छा आसयइ वा, सयइ वा ॥ तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालिं अज्जं एवं क्यासी--"नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिए! समणीणं निग्गंथीणं सरीरबाउसियाणं होत्तए। तुमं च णं देवाणुप्पिए ! सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवसि, पाए धोवसि, सीसं धोवसि, मुहं धोवसि, थणंतराणि धोवसि, कक्खंतराणि धोवसि, गुरझंतराणि धोवसि, जत्थ-जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएसि, तं पुवामेव अब्भुक्खित्ता तओ पच्छा आसयसि वा सयसि वा । तं तुम देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहि-जाव-पायच्छित्तं पडिवज्जाहि"। तए णं सा काली अज्जा पुष्फचलाए अज्जाए एयमझें नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीया संचिट्ठइ। तए णं ताओ पुप्फचलाओ अपजाओ कालि अज्जं अभिक्खणं-अभिक्खणं हीति निदंति खिसंति गरहंति अवमन्नति अभिक्खणंअभिक्खणं एयमझें निवारेति ॥
कालीए पुढोविहारो २०६ तए णं तीसे कालीए अजाए समणीहि निग्गंथीहि अभिक्खणं-अभिक्खणं होलिज्जमाणीए-जाव-निवारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झ
थिए-जाव-समुष्पज्जित्था--"जया णं अहं अगारमज्झे वसित्था तया णं अहं सयंवसा, जप्पभिई च णं अहं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया तप्पभिई च णं अहं परवसा जाया। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए, उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पाडिक्कयं उवस्सयं उक्संपज्जित्ताणं विहरित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए, उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पाडिक्कयं उक्स्सयं गण्हइ। तत्थ णं अणिवारिया अणोहट्ठिया सच्छंदमई अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराणि धोवेइ, फक्खतराणि धोवेइ, गुज्झंतराणि धोवेइ, जत्थ जत्थ वि य गं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तं पुवामेव अब्भुक्खित्ता तओ पच्छा आसयइ वा सयइ वा॥
कालीए मच्चू देवीतं च २०७ तए णं सा काली अज्जा पासत्था पासस्थविहारी ओसन्ना ओसन्नविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी संसत्ता
संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं सेइ, झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छएइ, छएत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयडिक्कता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए कालिडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेउजाइभागमेत्ताए ओगाहणाए कालीदेवित्ताए उबवण्णा । तए णं सा काली देवी अहुणोक्वण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तभावं गच्छति। तए णं सा काली देवी चउण्हं सामाणिय-साहस्सीणं-जाव-सोलसण्हं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं कालिवडेंसगभवणवासीणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं कारेमाणी-जाव-विहरइ। एवं खलु गोयमा! कालीए देवीए सा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्ण गए।
कालीदेवीए ठिई सिद्धी य २०८ कालीए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णता?
गोयमा! अड्ढाइज्जाई पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। काली गं भंते ! देवी ताओ देवलोगाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ॥
णाया० सु०२, व० १, अ०१।
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५. पासनाहतित्थे राई-आईणं कहाणगाणि
राईकहाणगे राईदेवीए नटुं २०९ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया-जाव-पज्जुवासइ । __ तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगया।
राईदेवीए पुन्वभवो २१० भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुन्वभवपुच्छा।
गोयमा ! ति समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमतेत्ता एवं वयासी-"एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नयरी अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। राई गाहावई। राइसिरी भारिया। राई दारिया। पासस्स समोसरणं। राई दारिया जहेब काली तहेव निक्खता। तए णं सा राई अज्जा जाया। तए णं सा राई अउजा पुष्फचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ। तए णं सा राइ अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया या वि होत्या। तए णं सा राई अज्जा पासस्था तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए रायडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जाए भागमेत्ताए ओगाहणाए राईदेवित्ताए उववण्णा-जावअंतं काहिइ॥
णाया० सु० २ व० १ अ० २। रयणीकहाणगं २११
रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे । तेणं कालेणं तेणं समएणं रयणी देवी चमरचंचाए रायहाणीए । आगया । भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुत्वभवपुच्छा। गोयमा ! ति समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नयरी अंबसालवणे चेइए। जियसतू राया। रयणे गाहावई। रयणसिरी भारिया। रयणी दारिया। सेसं तहेव-जावअंतं काहिइ॥
णाया० सु. २ ० १ ग० ३। विज्जूकहाणगं २१२ एवं विज्जू वि-आमलकप्पा नयरी। विज्जू गाहावई। विज्जूसिरी भारिया। विज्जू दारिया। सेसं तहेव ॥
णाया० सु० २ व० १ ० ४ । महाकहाणगं २१३ एवं मेहा वि--आमलकप्पाए नयरीए मेहे गाहावई। मेहसिरी भारिया। मेहा दारिया । सेसं तहेव ।
णाया० सु० २ ० १ अ० ५। सुंभाकहाणयं २१४ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नवरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निगया-जाव-पज्जवासइ ।
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२२४
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए संभवडेंसए भवणे संभंसि सीहारणसि विहरइ । काली गमएणंजाव-नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। पुन्वभवपुच्छा। सावत्थी नवरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। सुंभे गाहावई। सुंभसिरी भारिया। सुंभा दारिया। सेसं जहा कालीए नवरं अद्भुट्ठाई पलिओवमाई ठिई॥
णाया० सु० २ व० २ अ० १। निसंभा-रंभा-निरंभा-मयणा कहाणगाणि २१५ एवं---सेसा वि चत्तारि अज्झयणा। सावत्थीए। नवरं--माया पिया धूया-सरिनामया ॥
णाया० सु० २ ० २ अ०२-५ । अलाकहाणगं २१६ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया-जाव-पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अला देवी धरणाए रायहाणीए. अलावडेंसए भवणे अलंसि सीहासणंसि एवं कालीगमएण-पाव-नट्टविहि उवदंसेत्ता पडिगया। पुन्वभवपुच्छा। वाणारसीए नयरीए काममहावणे चेहए। अले गाहावई। अलसिरी भारिया। अला दारिया। सेसं जहा कालीए, नवरं--धरणअग्गमहिसित्ताए उववाओ। साइरेगं अद्धपलिओवमं ठिई। सेसं तहेव ।।
णाया० सु० २ व० ३ अ० १। कमासतेरा-सोयामणी-इंदा-धणबिज्जयाणं कहाणगाणि २१७ एवं--कमा, सतेरा, सोयामणी, इंदा, घणविजया वि सधाओ एयाओ धरणस्स अग्गमहिसीओ।
णाया० सु०२ व० ३ अ०२-६ । सेसदाहिणिल्लइंदअग्गमहिसीकहाणगसूयणा २१८ एए छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्वा ।
णाया० सु० २ व० ३ अ० ७-१२। २१९ एवं--हरिस्स अग्गिसिहस्स पुण्णस्स जलकंतस्स अमियगतिस्स वेलंबस्स घोसस्स वि एए चेव छ-छ अज्झयणा। एवमेते दाहिणिल्लाणं चउपगणं अज्झयणा भवंति। सव्वाओ वि वाणारसीए काममहावणे चेइए।
णाया० सु०२३०३ अ०१३-५४ । रूयाईणं उत्तरिल्लइंदऽग्गमहिसीणं कहाणगाई २२० तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं-जाव-परिला पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं ज्या देवी रूयाणंदा रायहाणी, रूयगवडेंसए भवणे रूयगंसि सीहासणंसि जहा कालीए तहा, नदरं-- पुन्वभवे चंपाए पुग्णभद्दे चेइए रूयगगाहावई ख्यगसिरी भारिया रूया दारिया । सेसं तहेव, नवरं--भयाणदअग्गमाहिसित्ताए उववाओ। देसूर्ण पलिओवभं ठिई।
णाया० सु०२ व० ४ ० १।। २२१ एवं--सुरूयावि, रूयंसा वि, रूयगावई वि, रूयकता वि, रूयप्पभा वि।। २२२ एयाओ चेव उत्तरिल्लाणं इंशाणं वेणुदालिस्स हरिस्सहल्स अग्गिमाणवस्स विसिटुस्स जलप्पभस्स अमितवाहणस्स पभंजणस्स महाघोसस्स भाणियव्याओ।
णाया० सु०२ व० ४ अ०२-५४ ।
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पासनाहतित्थे राई-आईणं कहाणगाणि
२२५
. दाहिणिल्लपिसायकुमारिदग्गमहिसोणं कमलाईणं कहाणगाणि २२३ गाहाओ-- कमला कमलप्पभा चेव, उप्पला ५ सुदंसणा। रूववई बहुरुवा, सुरूबा सुभगा वि य ॥१॥
पुण्णा बहुपुत्तिया चेब, उत्तमा भारिया वि यापउमा वसुमती चेव, कणगा कणगप्पभा ॥२॥ वडेंसा केउमई चेव, बइरसेणा रइप्पिया। रोहिणी नवमिया चेव, हिरीपुप्फवती ति य॥३॥ भुयगा भुयगवई चेव, महाकच्छाऽपर इथा। सुघोसा विमला चेव, सुस्सरा य सरस्सई ॥४॥
णाया० सु० २ ब० ५ अ० ३२ । २२४ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं-जाव-परिसा पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कमला देवी कमलाए रायहाणीए कमलवडेंसए भवणे कमलसि सीहासणंसि सेसं जहा कालीए तहेव, नवरं--पुन्वभवे नागपुरे नयरे सहसंबवणे उजाणे कमलस्स गाहावइस्स कमलसिरीए भारियाए कमला दारिया पासस्स अंतिए निक्खता। कालस्स पिसायकुमारिदस्स अम्गमहिसी। अद्धपलिओवमं ठिई।
णाया० सु० २ व० ५ अ० १ । २२५ एवं सेसा वि अज्झयणा दाहिणिल्लाणं वाणमंतरिंदाणं । भाणियव्वाओ सव्वाओ नागपुरे सहसंबवणे उज्जाणे । मायापियरो धूया-सरिसनामया। ठिई अद्धपलिओवमं ।
णाया० सु०२ व० ५ अ०२-३२ । महाकालाइ-उत्तरिल्लपिसाय-इंदग्गमहिसोणं कहाणगाणि २२६ छट्ठो वि वग्गो पंचमवग्ग-सरिसो, नवरं--महाकालाईणं उत्तरिल्लाणं इंदाणं अग्गहिसीओ। पुव्वभवे । सागेए नगरे। उत्तरकुरुउजाणे। मावापियरो ध्या--सरिनामया। सेसं तं चेव ।।
णाया० सु० २ व० ६ अ० १-३२ । सूरऽग्गमहिसोणं कहाणगाणि २२७ तेणं फालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं-जाव-परिसा पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभा देवी सूरंसि विमाणंसि सूरप्पभंसि सीहासणंसि । सेसं जहा कालीए तहा, नवरं-पुव्वभवो अरक्रीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया। सूरस्स अग्गमहिसी। ठिई अद्धपलिओवर्म पंचहि वाससहि अभहियं। सेसं जहा कालीए ।।
णाया० सु०२ व०७ अ० १ । २२८ एवं--आयवा, अच्चिमाली, पभंकरा। सव्वाओ अरक्चुरीए नयरीए॥
णाया० सु० २ व० ७ अ० २-४ । चंदऽग्गमहिसीणं कहाणगाणि २२९ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं-जाव-परिसा पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदपभा देवी चंदप्पभंसि विमाणंसि चंदप्पभंसि सीहासणंसि । सेसं जहा कालीए, नवरं-पुव्वभवो महुराए नयरोए चंदवडेंसए उजाणे। चंदप्पभे गाहावई । चंदपिरी भारिया। चंदप्पभा दारिया। चंदस्स अग्गमहिसी। ठिई अद्धपलिओवमं पण्णासवाससहस्सेहि अन्भहियं ।। सेसं जहा कालीए ।
णाया० सु० २ व० ८ अ० १ । २३० एवं--दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा । महुराए नयरीए। मायापियरो धूया-सरिसनामा ॥
णाया० सु० २ व० ८ अ० २-४ । पउमावइआईणं सक्कऽग्गमहिसीणं कहाणगाई २३१ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं-जाव-परिसा पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पे पउमवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए पउमंसि सीहासणंसि जहा कालीए।
ध० ०२६
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२२६
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
एवं अट्ठ वि अज्मयणा काली-गमएणं नायव्वा, नवरं-सावत्थीए दो जणीओ। हत्थिणाउरे दो जणीओ। कंपिल्लपुरे दो जणीओ। साएए दो जणीओ। पउमे पियरो विजया मायराओ। सब्याओ वि पासस्स अंतियं पव्वइयाओ। सक्कस्स अग्गमहिसाओ । ठिई सत्त पलिओवमाई। महाविदेहे वासे अंतं काहिति ॥
णाया० सु० २ व० ९ अ० १-८ । कण्हाआईणं ईसाणऽग्गमहिसीणं कहाणगाणि २३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं-जाव-परिसा पज्जुवासइ ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए कहंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए। एवं अट्ठ वि अज्झयणा काली-गमएणं नायव्वा, नवरं--पुव्वभवो वाणारसीए नयरीए दो जणोओ। रायगिहे नयरे दो जजोओ। सावत्थीए नयरीए दो जणोओ। कोसंबीए नयरीए दो जणीओ। रामे पिया धम्मा माषा । सव्वाओ वि पासस्स अरहओ अंतिए पव्वइयाओ। पुष्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए। ईसाणस्स अग्गमहिसीओ । ठिई नवपलिओवमाइं । महाविदेहे वासे सिमिहिति
बुजिमाहिति मुचिहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ २३३ गाहा-- कण्हा य कण्हराई, रामा तह रामरक्खिया । वसूया वसुगुप्ता वसुमित्ता, वसुंधरा चेत्र ईसाणे ॥१॥
णाया० सु० २ व० १० अ० १-८ ।
६. पासनाहतित्थे भूयाईणं समणीणं कहाणगाणि ।
२३४ १ सिरि २ हिरि ३ धिइ ४ कित्तीओ ५ बुद्धी ६ लच्छी, य होइ बोद्धव्वा। ७ इलादेवी ८ सुरादेवी ९ रसदेवी १० गंधदेवी य॥
. महावीरसमोसरणे सिरिदेवीए नट्टविही २३५ तेणं कानेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया। सामी समोसढे, परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं
समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिसि सीहासणंसि चहि सामाणियसाहस्साहि चहि महत्तरियाहि, सपरिवाराहि जहा बहुपुत्तिया,-जाव-नट्टविहिं उबदंसत्तिा पडिगया। नवरं दारियाओ नत्थि। पुटवभवपुच्छ।।
सिरिदेवीपुव्वभवे भूयाकहाणगं २३६ तेणं कालेणं तेणं समयेणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, जियसत्तू राया। तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणो नाम गाहावई
परिवसइ अड्डे-गाव-अपरिभूए। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नाम भारिया होत्था सोमाला। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया, पिवाए गाहावयणीए अत्तिया भूया नाम दारिया होत्था, बुड्ढा बुड्ढकुमारी जुण्णा जुष्णकुमारी पडियपुयथणी वरगपरिवज्जिया यावि होत्था॥
भूयाए पाससमोसरणे गमणं २३७ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए-जाव-नवरयणीए वण्णओ सो चेव । समोसरणं। परिसा निग्गया।
तए णं सा भूया दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठतुवा जेणेव अम्मापियरो, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं क्यासी"एवं खलु, अम्मताओ पासे अरहा पुरिसावाणीए पुव्वाणुपुचि चरमाणे-जाव-गणपरिबुडे विहरइ । तं इच्छामि णं, अम्मताओ, सुब्भेहिं अन्भणुन्नाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायवन्दिया गमित्तए।" "अहासुह, देवाणुप्पिए !, मा पडिबन्धं करेह"। तए णं सा भूया दारिया व्हाया-जाव-सरीरा चेडीचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता, धम्मियं जाणप्पवरं दुख्ता।
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पासनाहतिस्थे भूयाईणं समणीणं कहाणगाणि
२२७
तए णं सा भूया दारिया निययपरिवारपरिवुडा रायगिहं नयरं मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता-जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थयरातिसए पासइ, पासित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुभिता चेडीचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो-जाव-पज्जुवासह॥ तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भयाए हारियाए य महइ....। धम्मकहा। धम्म सोच्चा निसम्म हटु० बन्दइ नमसइ, वंदित्ता. नमंसित्ता एवं वयासी"सद्दहामि णं, भन्ते निग्गन्थं पाक्यणं,-जाव-अब्भुट्ठमि णं, भन्ते निग्गन्थं पावयणं, से जहेयं तुन्भे वयह, जं नवरं, भन्ते ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं-जाव-पन्वइत्तए"। "अहासुहं देवाणुप्पिए"।
भूयाए पव्वज्जा २३८ तए णं सा भूया दारिया तमेव धम्मियं जाणप्पवरं-जाव-दुरुहइ, दुरुहिता जेणेव रायगिहे नयरे, तेणेव उवागया। रायगिह नयरं
मज्झमोणं जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागया। रहाओ पच्चोरुहिता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागया। करयल० जहा जमाली, आपुच्छइ। "अहासुहं. देवाणुप्पिए!" तए णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं-जाव-साइमं उवक्खडावेइ, मित्तनाइ आमन्तेइ, आमन्तित्ता-जाव-जिमियभुत्तुत्तरकाले सुइभए निक्खमणमाणेत्ता कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं क्यासी-"खिप्पामेव, भो देवाणुप्पिया, भूयादारियाए पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवट्ठवेह-जाव-उवट्ठविता पच्चप्पिणह"। तए णं ते-जाव-पच्चप्पिणन्ति । तए णं से सुदंसणे गाहावई भूयं दारियं व्हायं विभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुहइ, दुरुहिता। मित्तमाइ-जाव-रवेणं रायगिहं नयरं मझमज्झेणं, जेणेव गुणसिलए चेइए, तेणेव उवागए छत्ताईए तित्थयराइसए पासइ, पारिता सीयं ठावेइ, ठवित्ता भूयं दारियं सीयाओ पच्चोरहेइ। तए णं तं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए, तेणेव उवागए तिक्खुत्तो वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया! भूया दारिया अम्हं एगा धूया इट्ठा। एस णं, देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गा भीया-जाव-देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डा-जाव-पच्वयाइ। तं एयं णं, देवाणप्पियाणं सिस्सिणिभिक्खं दलयामो। पडिच्छन्तु णं देवाणुप्पिया! सिस्तिणिभिक्खं"। अहासुह, देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह"। तए णं सा भूया दारिया पासेणं अरहया...एवं वुत्ता समाणी हट्ठा उत्तरपुरस्थिम सयमेव आभरणमल्लालंकारं उम्मयइ, जहा देवाणन्दा, पुप्फचूलाणं अन्तिए-जाव-गुत्तबम्भयारिणी॥
भूयाए निग्गंथिणीए सरीरपाओसियत्तं २३९ तए णं सा भूया अज्जा अन्नया कयाइ सरीरपाओसिया जाया यावि होत्था। अभिक्खणं २ हत्ये धोवइ, पाए धोवइ, एवं सीसं
धोवइ, मुहं धोवइ, थणगन्तराई धोवइ, कवखन्तराई धोबइ, गुज्झन्तराई धोबइ, जत्थ जत्थ वि य गं ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ तत्थ वि य गं पुवामेव पाणएणं अब्भुक्खइ, तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ। तए णं ताओ पुप्फचूलाओ अजाओ भूयं अज्जं एवं क्यासी--"अम्हे णं, देवाणु पए, समणीओ निग्गन्थीओ इरियासमियाओ-जावगुत्तबम्भवारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरपाओसियाणं होत्तए। तुम च णं, देवाणुप्पिए ! सरीरपाओसिया अभिक्खणं २ हत्थे धोवसि-जाव-निसीहियं चेएसि। तं गं तुम, देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहि" त्ति। सेसं जहा सुभद्दाए,-जाव-पाडिएक्कं उवस्मयं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तए णं सा भूया अउजा अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छन्दमई अभिक्खणं २ हत्थे धोवइ-जाव-चेएइ॥
भूयाए देवित्तं २४० तए णं सा भूया अज्जा बहुहि चउत्थछट्ट० बहुई वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कन्ता कालमासे
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धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिडिसए विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि-जाव-ओगाहणाए सिरिदेविताए उववन्ना पंच विहाए पज्जतीए-जाव-भासामणपज्जत्तीए पज्जत्ता । एवं खलु, गोयमा ! सिरी ए देवीए एसा दिथ्या देविड्ढी लद्धा पत्ता । एग पलिओवमं ठिई। "पिरी णं, भन्ते, देवी-जाव-कहिं गच्छिहिइ ?" "महा विदेहेवासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।"
पुष्फचूलियाओ अ० १। पासस्स समणीणं हिरि-आईणं कहाणगाणि
२४१ एवं सेसाण विनवण्हं भाणियव्वं । सरिसनामा बिमाणा। सोहम्मे कप्पे। पुटवभवो नयरचेइयपियमाईणं अप्पणो य नामादि जहा
संगहणीए। सव्वा पासस्स अन्तिए निक्खन्ता। ताओ पुप्फचुलाणं सिस्सिणीयाओ, सरीरपाओसियाओ सव्वाओ अणन्तरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिन्ति-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिति ।
पुप्फचूलियाओ अ० २-१०
न्त-जाव-सव्वदुक्खाणमत का कत्लाणं सिस्सिणीयाओ, सरस्पायपियमाईणं अप्पणो य न
७. पासत्थाए समणीसुभद्दाए कहाणयं
महावीरसमोसरणे बहुपुत्तियादेवीए नट्टविही २४२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेण तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाणे सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चहि सामाणियसाहस्सीहिं चहि महत्तरियाहिं, जहा सूरियाभे,-जाव-भुज्जमाणी विहरइ, इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी २ पासइ, पासित्ता समणं भगवं महावीरं, जहा सूरियाभो-जाव-नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा संनिसण्णा। आभियोगा जहा सूरियाभस्स, सूसरा घंटा, आभियोगियं देवं सद्दावेइ। जाणविमाणं जोयणसहस्सवित्थिष्णं। जाणविमाणवष्णओ। -जाव-उत्तरिल्लेणं निउजामग्गेण जोयणसाहस्सिएहि विग्गहेहिं आगया, जहा सूरियाभे । धम्मकहा सम्मत्ता । तए णं सा बहुपुत्तिया देवी दाहिणं भयं पसारेइ, पसारेता देवकुमाराणं अट्ठसयं देवकुमारियाण य वामाओ भुयाओ अट्ठसयं, तयणन्तरं च णं बहवे दारगा य दारियाओ 4 डिम्भए य डिम्भियाओ य विउव्वई। नट्टविहि, जहा सूरियाभो, उवदंसित्ता पडिगए।
बहपुत्तियादेवीपुत्वभवरूवं सुभद्दाकहाणयं २४३ "भन्ते" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बन्दइ नमसइ। कुडागारसाला। "बहुपुत्तियाए णं, भन्ते ! देवीए सा दिव्या
देविड्ढी'....पुच्छा, "-जाव-अभिसमन्नागया?" "एवं खलु, गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी, अम्बसालवणे चेइए। तत्थ णं वाणारसीए नयरीए भद्दे नाम सत्थवाहे होत्था अडढे-जाव-अपरिभूए। तस्स णं भ६स्स सुभदा नामं भारिया सुउमाला वंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया यावि होत्था॥
सुभद्दाए अप्पणो वझत्ते चिता २४४ तए णं तीसे सुभदाए सत्यवाहीए अन्नया कयाइ पुन्वरत्तावरत्तकाले कुडम्बजागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे-जाव-संकप्पे समुप्प
जित्था--"एवं खलु अहं भद्देणं सत्थवाहेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयाया। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मथाओ-जाव-सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं मणुयजम्मजीवियफले, जासि मन्ने नियकुच्छिसंभूयगाई थणदुद्धलुद्धगाई महुरसमुल्लाबगाणि मम्मणप्पजम्पियाणि थणमूलकक्खदेसभागं अभिसरमाणगाणि पण्हयन्ति, पुणो य कोमलकमलोवमेहि हत्थेहि गिहिऊणं उच्छशनिवेसियाणि देन्ति, समुल्लावए सुमहुरे पुणो पुणो मम्मणप्पणिए । अहं पं अधन्ना अपुण्णा एत्तो एगमवि न पत्ता।" ओहय-जाव-झियाइ।
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पासत्थाए समणोसुभद्दाए कहाणयं
२२९
अज्जासमोवे पुत्तोवायपुच्छा २४५ तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ अज्जाओ इरियासमियाओ-जाव-गुत्तबम्भयारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुवाणुपुटिव
चरमाणीओ गामाणुगाम दूइज्जमाणीओ जेणेव वाणारसी नयरी, तेणेव उवागयाओ। उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा विहरन्ति । तए णं तासि सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए वाणारसीनयरीए उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे भद्दस्स सत्थवाहस्स गिहं अणुपविठे। तए णं सुभद्दा सत्थवाही ताओ अज्जाओ एक्जमाणीओ पासइ, पासित्ता। हह"खिप्पामेव आसणाओ अब्भुठेइ, अब्भुद्वित्ता सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वन्दइ, नमसइ, वंदिता नमंसित्ता विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता एवं वधासी--"एवं खलु अहं, अज्जाओ, भद्देणं सत्थवाहेणं सद्धि विजलाई भोगभोगाइं भंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयायामि। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ-जाव-एत्तो एगमवि न पत्ता। तं तुम्भे, अज्जाओ, बहुणायाओ बहुपढियाओ बहूणि गामागरनगर-जाव-संनिवेसाई आहिण्डह, बहूणं राईसरतलवर-जाव-सत्थवाहप्पभिईणं गिहाई अणुपक्सिह, अत्थि से केइ कहिचि विज्जापओए वा मन्तप्पओए वा वमणं वा विरेवणं वा बत्थिकम्मं वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलढे, जेणं अहं दारगं वा दारियं वा पयाज्जा ?"
अज्जाहिं धम्मकहणं २४६ तए णं ताओ अज्जाओ सुभई सत्थवाहिं एवं वयासी-"अम्हे णं, देवाणुप्पिए, समणीओ निग्गन्थीओ इरियासमियाओ-जावात्त
बम्भयारीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं एयमढें कण्णेहि वि निसामेत्तए फिमंग पुण उद्दिसित्तए वा समायरित्तए वा। अम्हे णं, देवाणुप्पिए! नवरं तव विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्म परिकहेमो"।
सुभद्दाए गिहिधम्मगहणं २४७ तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तासि अज्जाणं अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हद्वतुट्ठा ताओ अज्जाओ तिक्खुत्तो बन्दइ नमसइ, वंदित्ता
नमंसित्ता एवं क्यासी--"सदहामि णं अज्जाओ! निग्गन्थं पावयणं, पत्तियामि रोएमि णं अज्जाओ निग्गथं पावयणं एवमयं तहमेयं अक्तिहमयं"-जाव-सावगधम्म पडिवज्जइ। "अहासुहं, देवाणुप्पिए, मा पडिबंध करेह" । तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तासि अज्जाणं अन्तिए-जाव-पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता ताओ अज्जाओ वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जइ । तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही समणोवासिया जाया-जाव-विहरइ॥
सुभद्दाए पव्वज्जासंकप्पो २४८ तए णं तीसे सुभदाए समणोवासियाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झ
थिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं भद्देणं सत्थवाहेणं विउलाई भोगभोगाई-जाव-विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा....। तं सेयं मम खलु ममं कल्लं-जाव-जलन्ते भद्दस्स आपुच्छित्ता सुव्वयाणं अज्जाणं अन्तिए अज्जा भवित्ता अगाराओ-जाव-पव्वइत्तए," एवं संपेहेइ, संहिता जेणेव भद्दे सत्थवाहे तेणेव उवागया करयल-जाव-एवं वयासी-“एवं खलु अहं, देवाणुप्पिया ! तुबह सद्धि बहूहि वासाई विउलाई भोगभोगाई-जाव-विहरामि, नो चेव णं दारगं वा दारियं वा पयायामि । तं इच्छामि गं, देवाणुप्पिया! तु हं अन्भणुनाया समाणी सुध्वयाणं अज्जाणं-जाव-पव्वइत्तए"। तए णं से भद्दे सत्यवाहे सुभई सत्थवाहि एवं बयासी--"मा णं तुम, देवाणुप्पिए, मुण्डा-जाव-पव्वयाहि । भुंजाहि ताव, देवाणुप्पिए! मए सद्धि विउलाई भोगभोगाई, तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्वयाणं अज्जाणं-जाव-पव्वयाहि"। तए णं सुभद्दा सत्थवाही भद्दस्स एयमद्वं नो परियाणइ। दोच्चं पि तच्च पि सुभद्दा सत्थवाही भई सत्थवाहं एवं वयासी-- "इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुहि अन्भणुन्नाया समाणी-जाव-पव्वइत्तए।" तए णं से भद्दे सस्थवाहे, जाहे नो संचाएइ बहूहि आघवणाहि य, एवं पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य आघवित्तए वा-जाव-विनवित्तए वा, ताहे अकामए चेव सुभद्दाए निक्खमणं अणुमन्नित्था॥
सुभद्दाए पव्वज्जा २४९ तए णं से भद्दे सत्थवाहे विउलं असणं-जाव-साइमं उवक्खडावेइ। मित्तनाइ...तओ पच्छा भोयणवेलाए-जाव-मित्तनाइसक्कारेइ
संमाणेइ। सुभदं सत्थवाहि व्हायं-जाव-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुहेइ । तओ सा सुभद्दा सत्थ
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२३०
धम्मकाओगे सईओ बंधो
वाही मिलना-जाव-संबन्धिसंपरिबुद्धा तन्बिड्डीए-जाय-रवेणं वाणारसीनपरीए ममयोगं जेणेव सुव्वाणं अज्जानं उबस्सए गेव गचागच्छत्ता पुरिससहस्त्वाहिणि सीयं वेद, सुभद्दं सरथवाहि सीमाओ पन्चोरहे ।।
तणं भद्दे सत्थवाहे सुभद्दं सत्यवाहि पुरओ काउं जेणेव सुव्वया अज्जा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुव्वयाओ अज्जाओ वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी -- "एवं खलु, देवाणुप्पिया, सुभद्दा सत्यवाही ममं भारिया इट्टा कन्ता - जावमा गं वाइवा पत्तिया सिम्भवा संनिवाइया विविहा रोपातंका कुमन्तु एस गं. देवाणुपिया संतार- भरिया, भीमा जम्ममरणाणं, देवापिया अन्तिए मुण्डा भविता जाव - पन्क्याइ । तं एवं अहं देवाणुप्पियाणं सीसिणिभिक्खं हलयामि । परिच्छन्तु णं, देवाणुप्पिया! सीसिणिभिक्वं" "अहासुयं देवागुप्पिया मा परिबन्धं करेह" ।
तएषं सा सुभद्दा सत्यवाही सुव्वयाहि जग्वाहि एवं वृत्ता समाथी हात्यमेव आभरणमल्लालंकार ओमुयद, ओमुद्दता सघमेव पंचमुद्रियं तोयं करे करिता जेणेव सुवानो अग्नान, तेगेव उपागच्छद्र, उपादयिता सुन्यवाओ अन्नाओ जियाहिणपयाहिणेणं वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी -- “आलित्ते णं भंते ?" जहा देवाणन्दा तहा पव्वइया - जाव-अज्जा जाया गुत्तबम्भवारिणी ।।
बाल आसत्ताए सुभद्दाए निम्बंधिणीए विविपयारेण बालकीलावणं
लए णं सा सुभदा अन्ना अनया क्याइ बहुजणस्स चेडरूवं संमुण्डिया जाय-असोचा भट्ट व फायागं च अत्तगं च कंकणाणि य अंजणं च वण्णगं च चुण्णगं च खेल्लणगाणि य खज्ज लगाणि य खीरं च पुप्फाणि य गवेस, गमिता बहुजणस्स बारए वा दरियाओं वा कुमारे व कुमारियाओं व डिम्बए डिम्भयाओ पाओ अच्छेगवाओ एवं कानुयपाणएवं व्हावेद, पाए रखड, ओट्ठे यह अच्छी अनंद, उमुए करेद, लिलए करोड़, दिदिल करेड, पन्तियाओ करे, दिजाई करे एवं समालभ, बुणएवं समालभ, गाई, गाई प सौरभोषणं भुंजावेद, पुण्फाई ओबुक्ड पाए उबेड, जंघालु करेड, एवं ऊस्यु उच्छडये कडीए पिठे उरसि खम्ये सीसे यलपुचेणं गहाय हलउलेमाणी २ आगयमाणी २ परिहारमानी पुत्तपिवासं च धूपपिवासं च मत्यपिवासं च नतिपिपास प भवमाणी विहरद
कर
अज्जाणं सुमहं पर बालकीलावणनिसेहकरणं
२५१ तएषं ताओ सुन्वधाओ अजाओ सुभदं अजं एवं वपासी" अम्हे गं देवागुप्पिए, समणीओ निधीओ इरियासमिवाओ-जाव गुत्तवन्भवारिणी । नो खलु अहं कप्प जातककम्मं करत तुमं च गं देवाप्पिए । बहुजणस्स पेडरूयेसु मुड़िया- जाव अशोववन्ना अब्भङ्गणं- जाव-नत्तिपिवासं वा पञ्चणुभवमाणी विहरसि । तं णं तुमं, देवाणुप्पिए, एयस्स ठाणस्स आलोएहि जावपच्छित्तं पडिवनाहि" ॥
तए णं सा सुभद्दा अज्जा सुव्वयाणं अजाणं एयमट्ठे नो आढाइ, नो परिजाणइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ । लए गं ताओ समणीओ नियन्बीओ सुभ अ होलेन्ति निन्दन्ति, सिन्ति गरहन्ति, अभिस्तणं २ एयम निवारेन्ति ॥ सुभद्दा पुढोवासो
२५२ तए णं तीए सुभद्दाए अग्जाए समणीहि निगन्धीहि होलिमाणीए नाव अभिवणं २ एम निवारिज्माणीए अयमेयारूये अथिए-जावकये समुप्यनित्था-"जय मं अहं अगारवा वसामि तथा गं अहं अवसा जयभिच अहं मुण्डा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तप्पभिदं च णं अहं परवसा पुव्वि च समणीओ निम्गन्थीओ आढेन्ति, परिजानेन्ति, इाणिनो आढाएन्ति न परिजानन्ति तं सेयं खलु मे कल्लं जाव-जलन्ते सुव्ववागं अजाणं अन्तियास पडिनिमित्ता पाडिएक्कं उवस्तयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए,” एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं - जाव- जलन्ते सुव्वयाणं अज्जाणं अन्तियाओ पडिनिक्खमइ, पाटिनिक्वमिता पाडिएव उवस्तपं उपसंपत्ति विरह लए सा सुभदा अग्ला अग्लाह अमोहड़िया अणिवारिया सद मई बहुजणस्स चेड मुभिङ्गणंच जावन्नतिपिवास पणुभवाणी बिहरह।।
सुभद्दाए संलेहणा बहुपुत्तियादेवीवेण उववादो
२५३ तए णं सा सुभद्दा पासत्या पास्त्यविहारी ओसन्ना ओसन्नविहारी कुसीला कुसीलविहारी संसत्ता संसत विहारी अहाछन्दा अहाछन्दविहारी बहूई वासाई सामण्ण-परियागं पाउणइ पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहगाए अत्ताणं. तीसं भत्ताइं अणसणेणं छेत्ता
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पासत्थाए समणीसुभद्दाए कहाणयं
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तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कन्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तियाविमाणे उक्वायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसन्तरिया अंगुलस्स असंखेज्जभागमेत्ताए ओगाहणाए बहुपुत्तियदेवित्ताए उववन्ना। तए णं सा बहुपुत्तिया देवी अहुणोववन्नमेत्ता समाणी पञ्चविहाए पज्जत्तोए..."-जाव-भासामणपज्जतीए । एवं खलु, गोयमा ! बहुपुत्तिदाए देवीए सा दिल्या देविड्ढी-जाव-अभिसमन्नागया।
बहपुत्तियत्ति णामरहस्सं २५४ “से केणट्ठणं, भन्ते, एवं बुच्चइ बहुपुत्तिया देवी २?" गोयमा! बहुपुत्तिया णं देवी जाहे जाहे सक्कस्स देविन्दस्स देवरनो
उवत्थाणियणं करेइ, ताहे २ बहवे दारए यवारियाओ य डिम्भए डिम्भियाओ य विउव्वइ, विउव्धित्ता जेणेव सक्के देविन्दे देवराया, तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविन्दस्स देवरनो रिव्वं देविड्डि दिव्वं देवज्जुई दिव्वं देवाणुभावं उवदसेइ । से तेणठेणं, गोयमा! एवं वुच्चइ बहुपुत्तिया देवी २"॥
बहुपुत्तिया देवीठिइकहणं भावीजम्मकहणं य २५५ बहुपुत्तियाणं, भन्ते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नता?" "गोयमा चतारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता"।
"बहुपुत्तिया गं भन्ते ! देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणन्तरं चयं चइत्ता कहि गच्छिहिह, कहि उववज्जिहिइ?" "गोयमा, इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे विगिरिपायमले वेभेलसंनिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिई"।
बहुपुत्तियादेवीए सोमाभवो २५६ तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो एक्कारसमे विवसे वीइक्कते-जाव-बारसेहि दिवसेहिं वीइक्कतेहि अयमेयारूवं नामधेनं करेंति--
"होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सोमा" ॥ तए णं सोमा उम्मुकबालभावा विनयपरिणयमेत्ता जोव्वणगमणुफ्ता रूवेण य जोवणेण य लावण्णण य उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा-जाव-भविस्सइ। तए णं तं सोमं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विनयपरिणयमेत्तं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूविएणं सुंकेणं पडिरूवएण नियगस्स भाइणेज्जस्स रटुकुडस्स भारियत्ताए दलयिस्सइ। सा गं तस्स भारिया भविस्सइ इट्ठा कन्ता-जाव-भंडकरण्डगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिहिया रयणकरण्डगो विय सुसारक्खिया सुसंगोविया, मा णं सीयं-जाव-विविहा रोगातका फुसंतु॥
बत्तीसदारगकारणा सोमाए मणोपीडा २५७ तए णं सा सोमा माहणी रटुकडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी संवच्छरे २ जुयलगं पयायमाणी सोलसेहि संवच्छरेहि
बत्तीसं दारगरूवे पयायइ। तए णं सोमा माहणी तेहि बहुहिं दारगेहि य दारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि य डिम्भएहि य डिम्भियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि य अप्पेगइएहि थणियाएहि, अप्पेगइएहिं पोहगपाएहि अप्पेगइएहि परंगणएहि, अप्पगइएहि परक्कममार्गोह, अप्पेगइएहि पक्खोलणहि अप्पेगइएहि थणं मग्गमार्गोह, अप्पेगइएहि खीरं मग्गमाहिं, अप्पेगइएहि खेल्लणयं मग्गमार्गोह, अप्पेगइएहि खज्जगं मग्गमाहि अप्पेगइएहि कूरं मग्गमाह, एवं पाणियं मग्गमाणेहि हसमाहिं रूसमाणेहि अक्कोसमाणेहिं अक्कुस्समाह हणमार्गोह विप्पलायमाहि अणुगम्ममाणेहि रोवमाणेहि कंदमार्गोह विलवमाणेहिं कूदमाणेहि उक्कूवमाहि निदायमाणेहि पलवमाहि दहमाणेहि वममाणेहिं छरमार्णोहि सुत्तमाहिं मुत्तपुरीसवमियसुलित्तोवलित्ता मइलवसणपुटवडा-जाव-अइसुबीभच्छा परमदुग्गन्धा नो संचाएइ रटुकुडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरितए।
सोमाए वझत्तपसंसा २५८ तए गं तीसे सोमाए माहणीए अन्नया कयाइ पुष्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरियमाणीए अयमेयारूवे-जाव-समुप्प
ज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेहि बहुहि वारगेहि य-जाव-डिम्भियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि य-जाव-अप्पेगइएहि सुत्तमाहिं दुज्जाएहि दुज्जम्मएहि हयविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहि जेणं मुत्तपुरीसवमियसुलितोवलिता-जाव-परमदुभिगन्धा नो संचाएमि रटुकडेणं सद्धि-जाव-भुंजमाणी विहरित्तए । तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ-जाव-जीवियफले जाओ णं वंझाओ अवियाउरीओ जाणुकोप्परमायाओ सुरभिसुगंधगंधियाओ विउलाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणीओ विहरंति । अहं गं अधन्ना अपुण्णा अकयपुण्णा नो संचाएमि रटुकूडेणं सद्धि विउलाई-जाव-विहरित्तए" ॥
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२३२
सोमा धम्मसवणं
२५९ तेणं काणं तेणं समएणं सुव्ववाओ नाम अज्जाओ इरियासमियाओ - जाव - बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुविजेणेव वेभेले संनिवे जहाहिंजाब-विहरति तएतानि मुख्याणं जाणं एवं संघले संनिवेसे उच्चनीय-जा-अडवा - रस विहं अणुपि
तत तोवा माहणी तान अश्ताओ एनमाणीओ पास पातिता हट्ठे-जाय-विष्यामेव आसणाओ अग्नु अहिता सतह पाई अनुगच्छद अता मंदिता नर्मसिता विवेगं अपना एवं क्यासी-
" एवं खलु अहं, अजाओ रट्ठकूडेणं सद्धि विजलाई जाव-संवच्छरे २ जुगलं पयामि, सोलसह संवच्छ रेहि बत्तीसं दारगरूवे पयाया । तए णं अहं तेहि बहूहि दारएहि य-जाव-डिम्भियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि जाव- सुत्तमाणेह दुज्जा एहि जाव-नो संचाएमि ....विहरिए । तं इच्छामि णं आहे, अन्नाओ, तुम्हं अन्तिए धम्मं निसामेत्तए"। तए णं ताओ अजाओ सोमाए माहणीए प्रतं धम्मं परिच्हति ॥
धम्मपाओगे ईओ बंधो
सोमाए पव्वज्जासंकप्पो
२६० तए णं सा सोमा माहणी तासि अज्जाणं अन्तिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठे-जाव-हियया ताओ अज्जाओ वंदर, नमसद, वंदिता नमसिता एवं वयासी -- "सद्दहामि णं, अज्जाओ, निग्गंथं पाववणं जाव-अब्भुट्ठेमि णं, अज्जाओ, निग्गंथं पावयणं, एवमेयं, अज्जाओजाब से जहेतु वह जंगवर अजाओ, डुकूढं आपुनदामि तए णं अहं देवाविवाणं अंतिए जाव-मुण्डा पक्यामि" । "अहासुहं, देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं करेह" ।
लए णं सा सोमा माहणी ताओ अजाओ बंद, नमसद, वंदिता नर्मसत्ता पडिविस
टुकूडेण पथ्वज्जानिहो
२६१ लए सा सोमा माहणी जेणेव रकुडे, तेणेव उवागया करयल.... एवं क्यासी- "एवं खलु मए देवापिया! अजाणं अंतिए पत्रे नियंते से विणं धम्मे इहिएजाव-अभिषए तए णं अहं देवाणुपिया तुम्भेहि अभाया सुबयाणं अजा-जाय-पदद्दत्तए" ।।
तए णं से रटूकूडे सोमं माहण एवं वयासी -- " मा णं तुमं, देवाणुप्पिए, इयाणि मुण्डा भवित्ता- जाव-पव्वयाहि । भुंजाहि ताव देवापिए, मए सद्धि विजलाई भोगभोगाई तओ पच्छा भुत्तभोई सुब्वयाणं अज्जाणं अंतिए मुण्डा जाव - पव्वयाहि" ।।
सोमाए सावगधम्मगणं
२६२ तसा सोमा माहणी पहाणा-व-सरीरा पेडिया चक्कालपरिकिम्मा साओ पाओ पनि
निक्लमिला बेमेल
संनिवे मज्मज्झेणं जेणेव सुव्वाणं अज्जाणं उवस्सए, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सुन्वयाओ अज्जाओ बंदइ, नमंसइ पज्जुवासइ । तए णं ताओ सुव्वथाओ अज्जाओ सोमाए माहणीए विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मं परिकर्हति जहा जीवा बज्झन्ति । लए था सोमा माहणी सुबयाणं अजाणं अंतिए आवासविहं सावधम्मं परिवद पडियजिता मुख्यपान अग्नाओ मंद, नर्मस दिला नसता जामेव दिसि पाया तामेव दिपिडिया
लए णं सा सोमा माहणी समगोवासिया जाया अभिगय-जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ।
गए णं ताओ वाओ अशा अनया कमाइ वेलाओ गिवेसाओ पडिनिमंति यहिया जणवयविहारं विहरति ।। सोमाए पव्वज्जा
२६३ एषं ताओ सुवधाओं अजाओ अन्य कथा पुण्यापुच्चि - जाथ विहति तए णं सा सोमा माहनी इमीसे कहाए सट्टा समानी हट्ट व्हाया तब जावयन्द, नल वंदिता नर्मसत्ता धम्मं सोचा नाव-नवरं "टुडं आपुच्छामि, तर पाथि" "अहानुहं ।"
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महावीरतित्थे नवाईणं कहाणगाणि
२३३
तए णं सा सोमा माहणी सुव्वयं अज्जं वन्दइ नमसइ, वंदित्ता ममंसित्ता सुधयाणं अन्तियाओ पडिनिक्खमइ पडिणिक्खमिता जेणेव सए गिहे जेणेव रटुकडे, तेणेव उवागच्छइ, उवागछित्ता करयल तहेव आपुच्छइ-जाव-पव्वइत्तए। “अहासुह, देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेह" । तए णं रटुकडे विउलं असगं, तहेव-जाव-पुटवभवे सुभद्दा-जाव-अज्जा जाया इरिथासमियाजाव-गृत्तबम्भयारिणी॥
सोमाए देवत्तं तयणंतरं सिद्धी य २६४ तए णं सा सोमा अजा सुव्वयाणं अजजाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ अहिज्जित्ता बहुई छट्ठमदसम
दुवालस-जाव-भावमाणी बहूई वासाइं सामग्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सद्धि भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किचहा सक्कस्स देविदस्स देव रन्नो सामाणियदेवत्ताए उववज्जिहिइ। नत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दो सागरोक्माई ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं सोमस्त वि देवस्स दो सागरोक्माई लिई पन्नत्ता। 'से णं, भन्ते. सोमे देवे तओ देवलोगाओ आउखएणं-जाव-चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ. कहि उववज्जिहिइ ?" "गोयमा! महाविदेहे वासे-जाव-अन्तं काहिहि"।
पुफियाओ अ० ४ ।
८. महावीरतित्थे नंदाईणं कहाणगाणि
संगहणी गाहादुगं २६५ १. नंदा तह २. नंदवई, ३. नंदुत्तर ४. दिसेणिया चेव । ५. मरुता ६. सुमरुता ७. महमरुता ८. मरुदेवा य अट्ठमा ॥१॥
९. भद्दा य १०. सुभदा य, ११. सुजाया १२. सुमणाइया । १३. भूयदिण्णा य बोधव्या सेणियभज्जाण नामाई ॥२॥
सेणियरण्णो नंदाइदेवीणं समणितं सिद्धी य २६६ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेहए। सेणिए राया--वण्णओ।
तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नाम देवी होत्था--वण्णओ। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तए णं सा नंदा देवी इमोसे कहाए लट्ठा हट्टतुट्ठा कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता जाणं दुरुहइ, जहा पउमावई-जाव-एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता वीसं वासाई परियाओ-जाव-सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा। एवं तेरस वि देवीओ नक्षगमे, नेयवाओ ।।
अंत० व० ७, अ० १-१३ ।
घ. क०३०
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९. महावीरतित्थे कालीआइसमणीणं कहाणगाणि
संग्रहणी-गाहा
२६७ १. काली २. सुकाली ३. महाकाली, ४. कण्हा ५. सुकण्हा ६. महाकण्हा । ७. वीरकन्हा थ बोधव्वा, ८. रामकण्हा तहेव य 1 ९. पिउसेणकण्हा नवमी, दसमी १०. महसेणकव्हा य ॥ १ ॥
कोणिस्स रण्णो चुल्लमाउया काली
२६८ ते काणं तेगं समएवं चंपा नाम गयरी होरथा पुष्णभद्दे हए ।
तत्य में चंपाए नवरीए कोचिए रामाणओ।
तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लमाज्या, काली नामं देवी होत्था --वण्णओ। कालीए पव्वज्जा रयणावली तयो व
२६९ जहा नंदा जाय-सामाइयमाइयाई एक्कारत अंगाई अलि बहिस्थ-म-सम-युवासहि मासद्मा सम लोकमेहि अप्पा भावेमाणी विहर।
तए णं सा काली अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं व्यासी--" इच्छामि गं अजाओ! तुम्ही अन्भणुष्णाया समाणी रयणावलं तवं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए ।
अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंधं करेहि ।
तणं सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अन्भणुष्णाया समाणी रयणार्वाल' तवं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
लए णं सा काली अमरावती-पंचहि संवदहि दोहि व मासेहि अट्ठावीसाए व दिवसेहि अहामु-जाव-आराहता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अजं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता बहूहि चउत्थ- जावअप्पा भावेमानी बिहरह
तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेण विजलेणं पयतेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धण्णेणं मंगल्लेणं सस्सिएण उदग्गेणं उपतंग उत्तमेगं उदारेण महाणुभायेणं तवोकम्मेणं सुक्का सुक्खा निम्मंसा अविमायणा किटिकिडिया किसा धमणिसंता जाया यात्रि होत्था, जीवंजीवेण गच्छइ जाव- सुहयहयासणे इव भासरा सिपलिच्छण्णा तवेणं, तेएणं, तवतेयसिरीए अई अईव उवसोमाणी सोमाणी चिट्ठ ॥
कालीए संलेखणा सिद्धी य
२७० तएषं तीसे कालीए अपनाए अन्यया कयाह पुण्बरताव रत्तकाले अपमात्एि-जा-संकपे समुपाथा, जहा दयस्स चिताजाव-अरि उाणे कम्मे बने पीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे तावता मे सेयं रूपं पापभाषाए पीए-जा-उडियम रे सहस रस्सम्म दियरे वसा जलते अजवणं अजं आता जाए अग्न्यापाए समाणीए नेहाला झूसियाए भत्तपाण -पडियाइक्खियाए काल अणवकखमाणीए विहरितए ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता अज्जचंदण अज्जं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं क्यासी- "इच्छामि णं अज्जो ! तुम्ह भगुणाया समागी संतेहा सणा-सुविधाए भत्ताण-परिवार कियाएका अगवलमाणीए विहरिए।" अहासुरं ।
१. रयणावलिआइतवविसेसाणं वित्थरो चरणाणुओगे ददुव्वो ।
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महावीरतित्थे कालीआइ समणीण कहाणगाणि
तए णं सा काली अज्जा अाजचंदणाए अम्भणुण्णाया समाणा संलेहणा-भूसणा-भूसिया-जाव-विहरइ। तए णं सा काली अजा अज्जचंदणाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुग्णाइं अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणिता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदिता, जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे-जावचरिमुस्सासेहि सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा ।
अंत० व०८, अ० १ । सुकालीए कणगावलितवो सिद्धी य २७१ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। कोणिए राया।
तत्थ णं सेणियस्स रणो भज्जा, कोणिधस्स रप्णो चुल्लमाउया. सुकाली नामं देवी होत्था। जहा काली तहा सुकाली वि निक्खंताजाव-बहूहि-जाव-तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ। तए णं सा सुकाली अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं क्यासी-- "इच्छामि गं अजाओ! तुम्भेहिं अन्भणुण्णाया समाणी कणगावली-तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। नव वासा परिचाओ-जाव-सिद्धा-जावसव्ववुक्खप्पहीणा ॥
अंत० ब०८, अ०२। महाकालीए खडागसीहनिक्कोलियतवो सिद्धी य २७२ एवं-महाकाली पि, नवरं-खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तबोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। सेसं तहेव-जाव-सिद्धा-जाव-सम्वदुक्खपहीणा।
अंत० व० ८, अ० ३ । कण्हाए महासीहनिक्कीलियतबो सिद्धी य २७३ एवं-कण्हा वि, नवरं-महासीहनिक्कीलियं तवोकम्म उवसंपजित्ताणं विहरइ । सेसं तहेव-जाव-सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा।
अंत० व०८, अ० ४ । सुकण्हाए भिक्खुपडिमा सिद्धी य २७४ एवं-सुकण्हा वि, नवरं--सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।' एवं खलु दसदसमियं भिक्खुपडिम एक्केणं राई
दियसएणं अद्धछठेहि य भिक्खासएहि अहासुतं-जाव-आराहेइ, आराहेत्ता बहूहिं चउत्थ-छट्टट्ठम-दसम-दुवाल सेहि मासढमासखमहि
विविहेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ ।। २७५ तए णं सा सुकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं-जाव-सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीण।।
अंत० व०८, अ० ५। महाकण्हाए खुड्डागसव्वओभद्दपडिमा सिद्धी य २७६ एवं-महाकण्हा वि, नवरं--खुड्डागं सव्वओभई पडिम उक्संपज्जित्ताणं विहरइ। सेसं तहेव-जाव-सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा।
अंत० व०८, अ०६। वीरकण्हाए महालयसव्वओभद्दपडिमा सिद्धी य २७७ एवं-वीरकण्हा वि, नवरं--महालयं सव्वओभद्रं तवोकम्म उवसंपज्जिताणं विहरइ, सेसं तहेव-जाव-सिद्धा-जाव-सव्व दुक्खप्पहीणा।
अंत० व०८, अ०७। रामकण्हाए भद्दोत्तरपडिमा सिद्धी य २७८ एवं--रामकण्हा वि, नवरं--भद्दोत्तरपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, सेसं-जाव-सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहोणा।
अंत० व० ८, अ० ८। १. चरणाणुओगे पडिमावित्थरो ददुव्वो।
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२३६
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
पिउसेणकण्हाए मुत्तावलितवो सिद्धी य २७९ एवं-पिउसे गकण्हा वि, नवरं-मुत्तावाल तवोका उपसंपज्जिता णं विहरइ, सेसं-जाव-सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा।
अंत० व० ८, अ०९। महासेणकण्हाए आयंबिलवड्ढमाणतवो सिद्धी य २८० एवं--महासेणकण्हा वि, नवरं----आयंबिलवड्डमाणं तयोफम्म उक्संपज्जित्ताणं विहरइ।
तए णं सा महासेणकण्हा अजजा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोइहि वासेहि तिहि घ मासेहि वीसहि य अहोरहिं अहासुतंजाव-आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदणा अजमा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ, बंदिता नमंसित्ता बहुहिं चउत्थ-छट्टट्ठमदसम-दुवालसेहि मासदमासखमहि विविहेहिं तवोकदेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा महासेणकण्हा अजा तेणं ओरालेणं-जाव-सवेणं तेएणं तवतेय-सिरीए अईव-अईव उवसोहेमाणी चिट्ठइ। तए णं तोसे महासेणकण्हाए अजाए अग्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले चिता जहा खंदयस्स-जाव-अज्जचंदणं अज्ज आपुच्छइ। तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा-झूसणा-झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया कालं अणवकंखमाणी विहरई। तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अजचंदणाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाई सत्तरस वासाई परियायं पालइत्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, ट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे-जाव-लमट्ठ आराहेइ, आराहेत्ता चरिमउस्सासनिस्सासेहि सिद्धा-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा ॥
संगहणी-गाहा २८१ अट्ट य वासा आई, एक्कोत्तरयाए-जाव-सत्तरस। एसो खलु परियाओ, सेणियभज्जाण नायन्वो ॥१॥
अंत० व. ८, अ० १ ।
१०. महावीरतित्थे जयन्तीकहारणयं
कोसंबीए उदयणादोणं धम्मसवणं २८२ तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नाम नगरी होत्या---वण्णओ। चंदोवतरणे चेइए--वण्णओ।
तत्थ णं कोसंवीए नगरीए सहस्ताणीयस्स रण्णो पोते, सबाणीपस्स रणो पुत्ते, चेडगस्स रपणो नत्तुए, मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवासिवाए भत्तिज्जए उदयणे नामं राया होत्था--वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नवरीए सहस्साणीयस्स रण्णो सुण्हा, सयाणीयस्स रणो भज्जा, चेडगस्स रण्णो धूया, उदयणस्स रणो माया, जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नामं देवी होत्या वण्णओ--सुकुमालपाणिपाया-जाव-सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा-जाव-अहापरिगहिएहिं तवोकमहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रणो धूया, सथाणीयस्स रणो भगिणी, उदयणस्त रणो पिउच्छा, मिगावतीए देवीए नणंदा, वेसालियसावयाणं अरहताणं पुथ्वसेज्जातरी जयंती नाम समणोवासिया होत्था--सुकुमालपाणिपाया-जाव-सुरूवा अभिगयजीवाजीवा-जाव-अहापरिग्गहिएहिं तदोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥
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महावीरतित्थे जयन्ती कहाणयं
२३७ २८३ तेणं कालेणं तेणं समएणं साभी समोसढे-जाव-परिसा पज्जुवासइ ।
तए णं से उदयण राया इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हद्वतुळे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं क्यासी--"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कोसंबि नगरि सभिंतर-बाहिरियं आसित्त-सम्मज्जिओवलितं करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।"
एवं जहा कूणिओ तहेव सव्वं-जाव-पज्जुवासइ ।। २८४ तए णं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जेणेव मिगावती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
मिगावति देवि एवं वयासी---"एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे-जाव-सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं -जाव-सुहंसुहेणं विहरमाणे चंदोवतरणे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं महप्फलं खलु देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवधाए-जाय-ए णे इहमवे य, परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ"। तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए समणोवासियाए एवं वुत्ता समाणो हट्ठतुवित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करथलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटटु जयंतीए समणोवासियाए एयमढें विणएणं पडिसुणेइ। तए णं सा मिगावती देवी कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--"खिय्यामेव भो देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त-जोइय -जाव-धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवटुवेह उववेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह॥" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा मिगावतीए देवीए एवं वुत्ता समाणा धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवद्ववेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति।। तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धि व्हाया कयबलिकम्मा-जाव-अप्पमहायाभरणालंकियसरीरा बहूहि खुज्जाहि -जाव-चेडियाचक्कवालवरिसधर-थेरकंचुइज्ज-महत्तरगवंदपरिक्खित्ता अंतेउराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहा। तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धि धम्मियं जाणप्पवरं दुरुढा समाणी नियगपरियालसंपरिवुडा जहा उसभदत्तो-जाव-धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहह। तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धि बहहिं जहा देवाणंदा-जाव-वंदह नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उदयणं
रायं पुरओ कटु ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी नमसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिकडा पज्जुवासइ । २८५ तए णं समणे भगवं महावीरे उदयणस्स रण्णो मिगावतीए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसे य महतिमहलियाए परिसाए
जाव-धम्म परिकहेइ-जाव-परिसा पडिगया, उदयणे पडिगए, निगावती वि पडिगया ।
जयंतीपण्हसमाहाणं २८६ तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्सा अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हहतुट्ठा समणं भगवं महावीर
वंदाइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी--"कहणं भंते ! जीवा गायत्तं हवमागच्छति?"
जयंती! पाणाइवाएणं-जाव-मिच्छादसणसल्लेणं--एवं खलु जयंती ! जीवा गस्यत्तं हवमागच्छति ।। २८७ कहण्णं भंते ! जीवा लहुयत्तं हवमागच्छंति ?
जयंती ! पाणाइवायवेरमणेणं-जाव-मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं--एवं खलु जयंती ! जीदा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति ॥ २८८ कहण्णं भंते ! जीवा संसारं आउलीकरेंति ?
जयंती! पाणाइवाएणं-जाव-मिच्छादसणसल्लेणं--एवं खल जयंती ! जीवा संसारं आउलीकरेंति। कहणं भते ! जीवा संसारं परित्तीफरेंति ? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं-जाव-मिच्छादसणसल्लदेरमणेणं--एवं खल जयंती! जीवा संसारं परित्तीकरेंति । कहण्णं भंते ! जीवा संसारं दोहोकरेंति ? जयंती! पाणाइवाएणं-जाव-मिच्छादसणल्लेणं---एवं खलु जयंती ! जीवा संसार दोहोकरेति ।
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२३८
कण्णं भंते! जीवा संसारं ह्रस्सीकरेंति ?
जयंती ! पाणाइवायवेरमणेणं-जाव-मिच्छादंसणसल्लवे रमणेणं-- एवं खलु जयंती ! जीवा संसारं ह्रस्सीकरेति । कण्णं भंते! जीवा संचार अणुपरिवति ?
जयंती! पाणादवाए-मा-माणसणं एवं खलु जयंती जीवा संसार अणुपरिचति ।।
२८९ कहण्णं भंते! जीवा संसारं वीतिवयंति ? जयंती वाढवायरमनं जाय-मिच्छादन
२९१
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२९० भवसिद्धियत्तणं भंते! जीवाणं किं सभावओ ? परिणामओ ?
जयंती ! सभावओ, नो परिणामओ ।
सव्वे वि णं भंते ! भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति ?
हंता जयंती ! सव्वेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति ||
जहणं ते स भवमिडिया जीवा विति तम्हा गं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्स ?
नो इट्ठे सम
से केणं खाइणं अट्ठेणं भंते! एवं बुच्चइ - - सत्त्रेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेव णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ ?
धम्मकहाणुओगे तईओ खंधो
वेरमणं एवं जयंती जोवा संसार बीतत
जयंति ! से जहानामए सत्यागासेढी सिया-- अणादीया अणवदग्गा परिता परिवुडा, सा णं परमाणुयोग्गल मेतेहि खंडेहि समएसमए अहीराणी-अहीरमानी अणताहि ओपिणी उस्सप्पिणीहि अवहरति नो चेच अवहिया सिया से तेगट्ठेषां जयंती | एवं बुच्चइ - सव्वेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेव णं भवसिद्धिअविरहिए लोए भविस्स ।।
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२९२ ते पाहू? जागरितं वाहू?
जयंती ! अत्थेगतियाणं जीवाणं सुत्ततं साहू, अत्येगतिवाणं जीवाणं जागरियतं साहू ।
से केमद्वेषणं भंते एवं बुद्द अवलिया जीवाणं मुत्ततं साहू आयेगलया जीवाणं जागर साहू ?
जयंती ! जे इसे जीवा अहमिया अहम्ता अहमिट्ठा अहम्मरलाई अहम्प्लोई अहम्मत देवविति माविहरति एएति णं जीवा मुला एए णं जीवा सुत्तः समाया तो सत्ताधारिभावनाए बट्टेति एए गं जीवा मुत्ता माणा अप्पा वा परं वा याहि संजोयणाहि संजोएत्तारो भवंति एएसि णं जीवाणं सुत्ततं साहू |
अहम्य समुदायारा अहम्मे बणं पाणणं भूषणं जीवा भयं वा नो यह अहम्म
जयंती! जे हमे जीवा पम्मिया-राय-यम्मे देव विति कप्पेमामा विहति एएस में जीवाणं जागरितं स एए जीवा जागरा समाण: बहूणं पाणाणं जाव-सत्ताणं अदुवखणथाए जाव अपरियावणयाए बट्टेति । एए णं जीवा जागरा समाणः अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयण हि संजोएत्तारो भवंति । एए णं जीवा जागरा समाणः धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरइत्तारो भवंति । एएसि णं जीवाणं जागरिथतं साहू । से तेणट्ठेणं जयंती । एवं वुच्चइ - अस्थेतिथाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्येगतियाणं जीवाणं जागरियतं साहू ||
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२९३ बलियतं भंते! साहू ? दुब्बलियत्तं साहू ?
जयंती ! अत्येतिया जीवाणं बलिवतं साहू, अत्येतिया जीवाणं दुव्यनियतं साहू
एए
से केणट्ठेण भंते! एवं बुच्चइ - अत्थेगतियाणं जीवाणं बलियतं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू ? जयंती में इमे जीवा जन्मिया जान अहमेव दिति कन्येमाणा विहरंति, एएस में जीवाणं दुनिया जीवा बलिया समाना तो बहु पाण-जाणं दुखयाए-जाव-परियाणा बहुति एए गं जीवा पुलिया क्षमाणा अप्पानं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहि अहम्मियाहि संजोयणाहि संजोएतारो भवंति । एएसि णं जीवाणं दुम्बलियतं साहू ।
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महावीरतित्थे जयन्तीकहाणय
२३९
जयंती! जे इमे जीवा धम्मिया-जाव-धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं बलियत्तं साहू। एए णं जीवा बलिया समाणा बहूणं पाणाणं-जाव-सत्ताणं अदुक्खणयाए-जाव-अपरियावणयाए वट्ठति। एए णं जीवा बलिया समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहि धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति । एएसि णं जीवाणं बलियतं साहू । से तेणट्टेणं
जयंती! एवं वुच्चइ--अत्येगतियाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं दुल्बलियत्तं साहू ।। २९४ दक्खत्तं भंते! साहू ? आलसियत्तं साहू ?
जयंती! अत्यंगतियाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ---अत्यंगतियाणं जीवाणं दवखत्तं साहू, अत्यंगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू ? जयंती। जे इमे जीवा अहम्मिया-जाव-अहम्मेणं चेव वित्ति कप्पमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं आलसियत्तं साहू। एए णं जीवा आलसा समाणा नो बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए-जाव-परियावणयाए वद॒ति । एए णं जीवा अलसा समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति । एएसि णं जीवाणं आलसियत्तं साहू। जयंति ! जे इमे जीवा धम्मिया-जाव-धम्प्रेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं दक्खत्तं साहू। एए णं जीवा दक्खा समाणा बहूर्ण पाणाणं-जाव-सत्ताणं अदुक्खणयाए-जाव-अपरियावणयाए वद॒ति । एए णं जीवा दक्खा समाणा अप्पाणं वा पर वा तदुभयं वा बहूहि धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एए णं जीवा दक्खा समाणा बहि आयरियवयावच्चेहि उवज्झायवेयावच्चेहि थेरवेयावच्चेहि तवस्सिवेयावच्चेहि गिलाणवेयावच्चेहि सेहवयावच्चेहि कुलवेयावच्चेहि गणवेयावच्चेहि संघवेयावच्चेहि साहम्मियवेयावच्चेहि अत्ताणं संजोएतारो भवंति, एएसि णं जीवाणं दक्खत्तं साहू। से तेणठेणं जयंती! एवं वुच्चइ
--अत्थेगतियाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साह । २९५ सोइंदियवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधइ ? कि पकरेइ ? किं चिणाइ ? किं उबचिणाइ ?
जयंती! सोइंदियवसट्टे णं जीवे आउयवाजाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दोहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदाणुभावाओ तिव्वाणुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पए सग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्म सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अणाइयं च णं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टइ। चक्खिदियवसट्टे णं भंते ! जीवे कि बंधइ ? कि पकरेइ ? किं चिणाइ ? कि उवचिणाइ ? एवं चेव-जाव-अणुपरियट्टइ। घाणिदियवस? णं भंते ! जीवे कि बंधइ? किं पकरेइ ? कि चिणाइ ? कि उवचिणाइ? एवं चेव-जाव-अणुपरियट्रइ। जिभिदियवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधइ ? किं पकरेइ ? किं चिणाइ ? किं उवचिणाइ? एवं चेव-जाव-अणुपरियट्रइ ।। फासिदियवसट्रेणं भंते! जीवे कि बंधइ? किं पकरेइ? कि चिणाइ ? किं उचिणाई? एवं चेक-जाव-अणुपरियट्टइ।। तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा सेसं जहा देवाणंदा तहेब पव्वइया-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणा ।। सेवं भंते! सेवं भंते ! ति॥
भग० स० १२, उ०२।
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१. पासतित्थे
२. पासतित्थे
३. महावीर तित्थे
४. महावीरतित्थे ५. महावीर तित्थे
६. महावीरतित्थे
७. महावीरतित्थे
८. महावीरतित्थे
९. महावीरतित्थे
१०. महावीर तित्थे ११. महावीर तित्थे १२. महावीर तित्थे १३. महावीरतित्थे १४. महावीर तित्थे
१५. महावीरतित्थे
१६. महावीरतित्थे
१७. महावीरतित्थे
१८. महावीरतित्थे १९. महावीर तित्थे
२०. महावीर तित्थे २१. महावीर तित्थे
२२. महावीर तित्थे २३. महावीरतित्थे
धं० क० ३१
चउत्थो खंधो
समणोवासग कहाणगाणि
अज्झयणा
सोमिलमा हण कहाणगं
पए सि कहाणगं
तुंगिया गरिनिवासिणो समणोवासगा
नंदमणिया कहाणगं
आनंदगाहावइकहाणगं कामदेवगाहा वइकहाणगं चुलणीपियगाहा व कहाणगं सुरादेवगाहावइकहाणगं चुल्लसययगाहावइकहाणगं कुंड कोलियगाहावइकहाणगं सद्दालपुत्त-कुंभकार कहाणगं महासतयगा हावइ कहाणगं नंदिणीपियगाहावइ कहाणगं लेतियापियगाहा व कहाणगं इभि पुत्ताणो समणोवासगा संखे पोक्खली य समणोवासगा वरुणे - नागनत्तुए समणोवासए सोमिलमाहणे समणोवासए
भगवओ महावीरस्स समणोवासगाणं देवलोगट्टिईए परूवणं कूणियस्स महावीरसमोस रणगमण धम्मसवणपसंगो
अम्मड परिव्वा यग काणयं
उदाई भूयाणंदे यहत्थिराया मदुसमणोवासयकहा
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१. पासतित्थे सोमिलमाहण कहाणगं
सुक्क महग्गहदेवेण महावीरसमोसरणे नट्टविही
१ रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया । सामी समोसढे । परिसा निग्गया । तेणं कालेणं तेणं समएणं सुक्के महग्गहे सुक्कवडस विमाणे सुक्कंसि सीहासणंसि चउह सामाणियसाहस्सीहि जहेव चन्दो तहेव आगओ, नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगओ । “भन्ते” ति० । कूडागारसाला० । पुव्वभवपुच्छा । एवं खलु गोयमा
सुक्कदेव पुष्वभववणणे सोमिलमाहण कहाणगं
२ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्या । तत्थ णं वाणारसी नयरीए सोमिले नाम माहणे परिवसइ अड्ढे जावअपरिभूए रिउब्वेय- जाव- सुपरिनिट्ठिए । पासे समोसढे । परिसा पज्जुवासइ ।
पासनाहसमीवे सोमिलस्स सावगधम्मगहणं
३ तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए - जाव- संकप्पे समुप्पज्जित्था " एवं पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुव्वि-जाय- अम्बसालवणे विहरइ । तं गच्छामि णं पासस्स अरहओ अन्तिए पाउब्भवामि, इमाई चणं एयारूबाई अट्ठाई हेऊइं०" जहा पण्णत्तीए । सोमिलो निग्गओ खण्डियविहुणो- जाव एवं वयासी- "जत्ता ते, भन्ते ? जवणिज्जं च ते ?” पुच्छा "सरिसवया, मासा, कुलत्था, एगे भवं ? " - जाव-संबुद्धे सावगधम्मं पडिवज्जित्ता पडिगए ।
सोमिलस्स मिच्छत्तं
४ तए णं पासे णं अरहा अन्नया कयाइ वाणारसीओ नयरीओ अम्बसालवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवय-विहारं विहरइ ।
तए णं से सोमिले माहणे अन्नया कयाइ असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणयाए य मिच्छत्तपज्जवह परिवड्ढमाणेह परिवड्ढमाणेह सम्मत्तपज्जवह परिहायमाणेह परिहायमाणेह मिच्छत्तं च पडिवन्ने ॥
सोमिलेण अम्बारामाइ निम्माणं
५ तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिएजाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था -- “ एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणे अच्चन्तमाहणकुलप्पसूए । तए णं मए वयाई चिण्णाई, वेया य अहीया, दारा आहुया, पुत्ता जणिया, इढ्ढीओ समाणीयाओ, पसुबन्धा कया, जन्ना जट्ठा, दक्खिणा विना, अतिही पूइया, अग्गी हूया, जूवा निक्खित्ता । तं सेयं खलु मम इयाणि कल्लं जाव- जलन्ते वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अम्बारामा रोवावित्तए एवं माउलिङ्गा बिल्ला कविट्ठा चिच्चा फुप्फारामा रोवावित्तए" एवं संपेहेइ । संपेहित्ता कल्लं जाव - जलन्ते वाणारसीए नयरीए बहिया अम्बाराम जाव- पुप्फारामे य रोवावेइ । तए णं बहवे अम्बारामा य - जाव - पुप्फारामा य अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवड्ढिज्जमाणा आरामा जाया किव्हा किण्हो भासा - जाव - रम्मा महामेहनिकुरम्बभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणा सस्सिरीया सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठन्ति ॥
नाणाविहता वसवण्णओ सोमिलस्स य दिसापोक्खियतावसत्तं
६ तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए - जाव-संकप्पे समुपज्जित्था -- “ एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नाम माहणे अच्चन्तमाहणकुलप्पसूए । तए णं मए वयाइं चिण्णाई - जाव- जूवा निक्खित्ता । तए णं मए वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अम्बारामा - जाव - पुप्फारामा य रोवाविया ।
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२४४
७
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं - जाव-चलन्ते सुबहु लोहकडाहकडुच्छ्यं तम्बियं तावसभण्डं घडावेत्ता विउलं असणं पाणं खाइम साइमं.... मिलनाइ० आमलेसा तं मिलना-नियन विश्लेगं असण-जाब-संमाणेता तस्सेव मिल जाव मे बेमेता तं मिनाई जाय पुष्ठिता सुबह लोहकडाकण्यं सम्बियं तावस भण्डगं गहाय जे इने गंगाकूला बाणपत्था तावा भवन्ति, तं जहा - होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जन्नई सड्ढई थालई हुम्बउट्ठा दन्तुक्ख लिया उम्मज्जगा संमज्जगा निमज्जगा संपक्खालगा दविणकुला उत्तरकुला संखधमा कुलधमा मिला हरिथतायसा उडंडा दिसापोक्विणो वक्कवासिणो बिलवासियों जलवासिणो
मूलिया अम्मणि वायुभविणो सेवामणि मूलाहारा कन्दाहारा तयाहारा पलाहारा पुष्काहारा फलाहारा बीबाहारा परिसडियकन्दमूलतयपलपुष्पफलाहारा जनाभिसेयकटिनगापभूवा आयावगाहि पंचयितावेहि इङ्गालसोल्लियं रुन्दुसोल्लियं पिव aari करेमाणा विहरन्ति । तत्थ णं जे ते दिसापोक्खिया तावसा तेसि अन्तिए दिसापोक्खियत्ताए पव्वइत्तए, पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिगाहं अभिगिन्हिस्लामि" कप्पड़ मे जावज्जीवाए छट्ठेणं अणिवत्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मे उड़ बाहाओ परिज्झिय परिशिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए" त्ति कट्टु एवं संपेहेइ संपेहित्ता कल्लं- जाव - जलन्ते सुबहु लोह-जाव- दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए । पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं- जाव अभिगिन्हित्ता पढमं छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
दिसापक्खियतावसचरिया
तए णं सोमिले माहणे रिसी पदमछक्यमणपारसि आयावणभूमीओ पच्चीरहद्द पच्चोरुहिता वागलवत्वनियत्वे जेणेव सए उडाए, तेणेव उपागच्छद् उवागन्छिता किडिणसंकाइयं गेण्इ, गिव्हिला पुररिथमं दिसि पुपखेड, "पुरमाए दिसाए सोमे महाराणा पत्याने पत्थियं अभिरक्खउ, सोमिलं माहणरिसि अभिरक्खउ । जाणि य तत्थ कन्दाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य कानि फलानि व बोयाणि य हरियाणि व ताणि अणुजा" ति कट्टु पुरत्थि दिसि पसरड़, पसरिता जाणि च तत्थ कन्दाणि य-जाब-हरियाणि यताई गेव्ह महिला फिडियसंकाय भरे भरिता मे य कुसे य पत्तामोदं च समिहाओ कद्राणि गेह, गहिता जेगेव सए उडए, तेगेव उचावच्छ उबागडिता किटिनसकाइयां उवेद ठविता येई वेद वा उवले संमज्जणं करेइ, करित्ता दब्भकलसहत्थगए जेणेव गंगा महाणई, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महाणई ओगाहइ, ओगाहिता जलमणं करे, करिता जलकिद्धं करे करिता जलामिसे करे, करिता आयन्ते चोक्खे परमतुहम्ए देवपि ककर दमकलसहावगए गंगाओ महागाईओ पथ्युसर, पच्दुसरिता जगेव स उ तेथेच उबागच्छद उपागच्छता ब य कुसे य वालुयाए य वेई रएइ, रइत्ता सरयं करेइ, करिता अरणि करेइ, करिता सरएणं अणि महेइ, महिला अरिंग पाडे, पाडिता रंग संधुष, संधुषिता समिहाद्वाणि पक्व, पश्खिवित्ता अग्ग उज्जाले उज्जलिता अग्गिस्स दाहिने पाये सत्तंगाई समावहे । तं जहा
--
सकथं यक्कलं ठाणं सेज्जभण्डं कमण्डलुं दंडदा सहयाणं अह लाई समावहे || १ ||
महणा व धन तन्दुहि व ग ण तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ ।
1
हणिता च साहे साहिता बलि बहसदेव करे, करिता अतिहियं करे, करिता
लए णं सोमिले माहरिसी बोच्चं छक्वमण उवसंपज्जित्ताणं विहर। तए पं सोमिले माहरिसी दोवे छक्खमणपारणगंसि तं चैव सव्वं भागिव्वं जाव-आहार आहारे नवरे इमं माणसं "दाहिणाए दिखाए जमे महाराया पत्थाणे पत्चियं अभिरक्प सोमिलं माहणरिसि, जागि य तत्थ कल्याणिय- जाव-अणुजाण" ति कट्टु बाहिणं विसि पसर
एवं पच्चत्थिमेणं वरुणे महाराया- जाव- पच्चत्थिमं दिसि पसरइ ।
उत्तरेणं वेसमणे महाराया- जाव- उत्तरं दिसि पसरइ । पुव्वदिसागमेणं चत्तारि वि दिसाओ भाणियव्वाओ - जाव-आहारं आहारेइ ।
सोमिलस्स कट्टमुद्दाए मुहबंधणेण महापत्थाणं
८
तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिच्चजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए -जाव-कप्पे समुपज्जित्वा "एवं खलु अहं बाणारसीए नवरीए सोमिले नाम माहारिसी अवन्तमाहणकुलप्पए । तए ए वयाई विगाई जावजूदा वित्तात णं मम बाणारसीए-जाव-गुल्फारामा रोकिया। तब लोह-जा-घडावेत्ता -जावतं वेला-व- आता सुबह लोहगाव हाय मुंडे जाव-पावहए। पइए विय समा -जाव-बिहरिए। तं तु मर्माणि कल्लं जाव-जलते बहवे तावते दिट्ठाभट्ठे व पुण्यसंगइए व परियायसंगइए य आपुष्ठिता
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पासतित्थे सोमिलमाहणकहाणगं
२४५
आसमसंसियाणि य बहूई सत्तसयाई अणुमाणइत्ता वागलवत्थनियत्थस्स किढिणसंकाइयगहियसभंडोवगरणस्स कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहस्स महापत्थाणं पत्थावेत्तए" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं-जाव-जलन्ते बहवे तावसे य दिट्ठाभळे य पुब्वसंगइए य, तं चेव-जाव-कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ। मुहं बंधित्ता अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ--"जत्थेव णं अम्हं जलंसि वा एवं थलंसि वा दुग्गंसि वा निन्नंसि वा पव्वतंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा पक्खलिज्ज वा पबडिज्ज वा, नो खलु मे कप्पइ पच्चद्वित्तए" त्ति अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हई। उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहपत्थाणं पत्थिए से सोमिले माहणरिसी पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागए, असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेई वड्ढेइ, बड्ढित्ता उवलेवणसंमज्जणं करेइ, करिता दब्भकलसहत्थगए जेणेव गंगा महाणई, जहा सिवो-जाव-गंगाओ महाणईओ पच्चुत्तरइ । जेणेव असोगवरपायवे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दन्भेहि य कुसेहि य बालुयाए वेई रएइ, रयित्ता सरगं करेइ, करिता-जाव-बलिं वइस्सदेवं करेइ, करित्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ। मुहंबंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ॥
'ते पव्वज्जा दुप्पव्वज्जा' इति देवकहणे वि सोमिलस्स असंबोहो । ९ तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयसि एगे देवे अन्तियं पाउन्भूए। तए णं से देवे सोमिलमाहणं एवं
वयासो--"हंभो सोमिलमाहणा! पव्वइया ! दुप्पव्वइयं ते"। तए णं से सोमिले तस्स देवस्स दोच्चं पि तच्चं पि वयमाणस्स एयमद्वं नो आढाइ, नो परिजाणाइ,-जाव-तुसिणीए संचिट्टइ। तए णं से देवे सोमिलेणं माहणरिसिणा अणाढाइज्जमाणे जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव-जाव-पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं -जाव-जलन्ते वागलवत्थनियत्थे किढिणसंकाइयगहियग्गिहोत्तभण्डोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, मुहं बंधित्ता उत्तराभिमुहे संपत्थिए । तए णं से सोमिले बिइयदिवसम्मि पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव सत्तिवण्णे तेणेव उवागए, सत्तिवण्णस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेई वड्ढेइ, वड्ढित्ता जहा असोगवरपायवे-जाव-अग्गि हुणइ, कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं पाउब्भूए। तए णं से देवे अन्तलिक्खपडिवन्ने जहा असोगवरपायवे-जाव-पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं-जाव-जलन्ते वागलवत्थनियत्थे किढिणसंकाइयं गेण्हइ, गिण्हित्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, मुहं बंधित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए । तए णं से सोमिले तइयदिवसम्मि पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेइं वड्ठेइ-जाव-गंगं महाणइं पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेइं रएइ, रयिता कट्ठमुद्दाए महं बन्धइ, मुंह बंधिता तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं तस्स सोमिलस्स पुन्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अन्तियं पाउम्भवित्था, तं चेव भणइ-जाव-पडिगए । तए णं से सोमिले-जाव-जलन्ते वागल-वत्थनियत्थे किढिणसंकाइयं-जाव-कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, मुहं बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए ।
देवेण पुणो पुणो संबोहणे सोमिलेण अणुव्वयाइगहणं तए णं से सोमिले चउत्थदिवसम्मि पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव वडपायवे तेणेव उवागए, वडपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं संठवेइ, संठवित्ता वेई वड्ढेइ, वड्ढेत्ता उवलेवसंमज्जणं करेइ,-जाव-कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरतकाले एगे देवे अन्तियं पाउभवित्था, तं चेव भणइ-जाव-पडिगए । तए णं से सोमिले-जाव-जलन्ते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइयं,-जाव-कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ,... उत्तराए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। तए णं से सोमिले पंचमदिवसम्मि पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव उम्बरपायवे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उम्बरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेइं वड्ढेइ-जाव-कट्टमुद्दाए मुहं बन्धइ-जाव-तुसिणीए संचिटुइ । तए णं तस्स सोमिलमाहणस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे,-जाव-एवं वयासी--"हभो सोमिला ! पव्वइया, दुप्पव्वइयं ते," पढम भणइ, तहेव तुसिणीए संचिट्ठइ । देवो दोच्चं पि तच्चं पि वयइ--"सोमिला! पव्वइया ! दुप्पव्वइयं ते।"
सोमिलस्स संबोहो १० तए णं से सोमिले तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे तं देवं एवं वयासी-"कह णं, देवाणुप्पिया ! मम दुप्पव्वइयं ? " तए णं से
देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी--"एवं खलु, देवाणुप्पिया! तुम पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अन्तियं पंचाणुव्वए सत्तसिक्खावए दुवाल
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
सविहे सावयधम्मे पडिवन्ने । तए णं तव अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडम्बजागरियं...-जाव-पुवचिन्तियं देवो उच्चारेइजाव-जेणेब असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयं-जाव-तुसिणीए संचिट्ठसि । तए णं पुव्वरत्तावरत्तकाले तव अन्तियं पाउन्भवामि, 'हंभो सोमिला ! पव्वइया ! दुप्पव्वइयं ते,' तह चेव देवो नियवयणं भणइ-जाव-पंचमदिवसम्मि पुटवावरण्ह कालसमयंसि जेणेव उम्बरपायवे, तेणेव उवागए किढिणसंकाइयं ठवेसि वेई वड्ढेसि, उवलेवणं करेसि करिता कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइसि, मुहं बंधिता तुसिणीए संचिट्ठसि । तं एवं खलु देवाणुप्पिया, तव दुप्पब्वइयं ।" तए णं से सोमिले तं देवं एवं वयासी-“कहं णं, देवाणुप्पिया, मम सुपव्वइयं ?" तए णं से देवे सोमिलं एवं वयासो-"जइ णं तुम, देवाणुप्पिया, इयाणि पुवपडिवन्नाइं पंच अणुव्वयाई सयमेव उवसंपज्जित्ताणं विहरसि, तो गं तुज्झ इयाणि सुपव्वइयं भवेज्जा ।" तए णं से देवे सोमिलं वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। तए णं सोमिले माहणरिसी तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे पुन्वपडिवन्नाई पंच अणुव्वयाई सयमेव उवसंपज्जित्ताणं विहरई ।।
सोमिलस्स संलेहणा, सुक्कमहागहदेवत्तं ११ तए णं से सोमिले बहुहिं चउत्थछट्ठम-जाव-मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोवहाणेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई समणो
वासगपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसित्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छएइ, छेइत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कन्ते विराहियसम्मत्ते कालमासे कालं किच्चा सुक्कडिसए विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि-जावओगाहणाए सुक्कमहग्गहत्ताए उववन्ने।
सुक्कदेवलोगचवणाणंतरं सोमिलजीवस्स सिद्धिगमणपरूवणं १२ तए णं से सुक्के महग्गहे अहुणोववन्ने समाणे-जाव-भासामणपज्जत्तीए..... । “एवं खलु, गोयमा ! सुक्केणं सा दिव्वा-जाव-अभिसम
नागया। एग पलिओवमं ठिई।" "सुक्के णं, भन्ते, महग्गहे तओ देवलोगाओ आउक्खएणं० कहिं गच्छिहिइ ?” “गोयमा, महाविदेहे बासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिई ॥"
पुफिया अ०३ ।
२. पासतित्थे पएसिकहाणगं
आमलकप्पाए महावीरसमोसरणं १३ तेणं कालेणं, तेणं समएणं आमलकप्पा नाम नयरी होत्था, रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा-जाव-पासादीया, दरिसणिज्जा, अभिरुवा, पडिरूवा ।।
तीसे णं आमलकप्पाए नयरीए बहिया उत्तर-पुरथिमे दिसी-भाए अम्बसालवणे नामं चेइए होत्था, चिरातीते-जाव-पडिरूवे ॥ असोयवरपायवे-पुढविसिलापट्टयवत्तव्वया उववाइय-गमेणं नेया ॥ सेओ राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया-जाव-राया पज्जुवासइ॥
सूरियाभदेवस्स महावीरबंदणत्थं संकप्पो, उचियकज्जकरणट्ठ आभिओगियदेवपेसणं च १४ तेणं कालेणं, तेणं समएणं सूरियाभे देवे सोहम्मे कप्पे, सूरियाभे विमाणे, सभाए सुहम्माए, सूरियाभंसि सिंहासणंसि चहि सामाणिय
साहस्सीहि, चउहि अग्ग-महिसोहि स-परिवाराहि, तिहिं परिसाहि, सत्तहिं अणिएहि, सतहि अणियाहिवईहि, सोलसहि आयरक्खदेव-साहस्सीहि, अन्नेहि बहूहि सूरियाभ-विमाण-वासीहिं वेमाणिएहि देहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडे, महयाऽऽहय-नट्ट-गीय-वाइयतंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडु-प्पवाइय-रवेणं दिव्वाइं भोग-भोगाई भुंजमाणे विहरइ, इमं च णं केवल-कप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे पासइ ।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
तत् समर्ण भगवं महावीरं जंबूद्दीये दीवे, भारहे बासे, आमलकप्पाए नयरीए, बहिया, अम्बसालवणे चेहए अहा-पडिएवं उगा उगता जमेणं तवसा अग्वाणं भावेमार्ग पास पासिता हट्ट - चिलमार्गदिए, पीइ-मणे, परण- सोमणस्सिए, हरितवतविसप्पमाण-हिय, विवसिय वर कमल-जयणे, पर्यालय वरकड तुडिय- केऊर मउड० कुडल-हार- विरायंत रयच्छे, पालंबलंबमाणघोतंत भूसण- घरे ससंभ्रमं तुरिय-बवलं सुरवरे सोहासणाओ अग्नु, अम्मुट्ठिता पायपीटाओ पच्चीरहड पच्चीवहिता, पाठवाल ओमुयह, ओमुइला एग साडियं उत्तरासंग करे, करिता तित्यवराभिमुखतदु-पवाई अनुगच्छद्द, अणुगच्छिता वामं जाणुं अंबे, अंचिता दाहिणं जाणुं धरणि-तलति मिहट्ट तिक्तो मुद्राणं धरणि-तसि निमेह, निमित्ता ईसि पन्चुप्रमद पच्चुनमित्ता कय-डि-भय-भुयाओ साहर साहरिता करवल-परिग्गहियं बस-हं, सिरसावतं मत्वए अंजलि कट्टु एवं बयासी- “गमोत्यु नं अरिहंताणं, जाव-सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोऽत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स- जाव - संपाविउ - कामस्स, वंदामि गं भगवन्तं तत्थगयं इह-गए, पासइ मे भगवं तत्थ गए इह-गयं ति कट्टु वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता, णमंसित्ता सीहासणवरगए पुव्वाभिमुहं सण्णिसण्णे ||
१५ तए णं तस्स सूरियाभस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था ।
'एवं खलु-समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे, दीवे, भारहे वासे, आमलकप्पाणयरीए बहिया, अंबसालवणे उज्जाणे अहापडिरूवं उग्गहं उग्गहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं महाफलं खलु तहा-रूवाणं भगवंताणं णाम- गोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण - णमंसण- पंडिपुच्छण- पज्जुवासणयाए ? ; एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए; किमंग पुण विउलस्स अस्स गहणवाए ? तं गच्छामि, णं समणं भगवं महावीरं वंदामि जाव-पज्जुवासामि एवं मे पेच्चा हियाए-जावआगामियत्ताए भविस्स-सिक एवं संपेहेद एवं संहिता आमि-ओगे देवे सहावेद, सदावित्ता एवं क्यासी
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' एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, आमलकप्पाए नयरीए बहिया, अम्बसालवणे चेइए अहा- परूिवं उग्गहं उग्गिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं गच्छ्ह णं तुमे देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं, भारहं वासं, आमलकप्पं गवर, अंबसालवणं वेदयं समणं भगवं महावीरं तिक्त आयाहिण-ययाहिण करेह, करेता बंदह णमंसह, वंदित्ता गंमसिता साई-साइं नाम गोयाइं साहेह, साहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयण-परिमंडलं जं किंचि तणं या पतं या कटु या सक्करं वा असुई अचोक्यं वा पूइअं दुभिगंधं तं सव्वं आणि अनिय एते एडेह, एडेत्ता पच्चोदगं, इमट्टियं पविरल- पष्फुसियं, रय-रेणु-विणासणं, दिव्वं सुरभिगंधोदयवासं वासह, वासित्ता णिहय-रयं, णट्ट-रयं, भट्ट-रयं, उवसंत-रयं, पसंत-रयं करेह, करिता, जल-थलय भासुर - प्पभूयस्स, बिट-ट्ठाइस्स, दसद्ध-वण्णस्स कुसुमस्स जाणुस्सेह - पमाणमित्तं ओहि वासं वासह, वासिताकालागुरु-पवर-कुंवरक-ध्रुव-मयमघंत-गंधुदुवाभिरामं सुगंध-यर-गंधियं गंधवद्धि-भूयं दिव्यं सुरवराभिगमण जोगा करेह कारनेह य, करिता व कारवेता व खियामेव मम एयमाणत्तियं पञ्चष्पिण' ।
अभिओगियदेवकयं महावीरवंदणाद
कट्टु,
त्ति
१६ एते भिओगिया देवा सूरियागं देवेणं एवं बुत्ता समागा, हद्दु-जाव-हिया, करवल-परिग्गविं दस-हं सिरसावलं मत्ए अंजलि एवं देवो सह ति आणाए विषएवं वपनं पडिनुषंति, 'एवं देवो तह' त्ति आणाए विषएवं वयणं पडिता उत्तर- पुरच्छिमं दिसि भागं अवक्कमंति, उत्तर-पुरण्टिमं दिसिभागं अववकमित्ता वेडब्बिय-समुन्याएणं समोहति समोहणित्ता - ज्जाई जोयणाई दंडं निसिरन्ति तं जहा रयणाणं, वयराणं, वेरुलियाणं, लोहियक्खाणं, मसारगल्लाणं, हंसगब्भाणं, पुलगाणं, सोगंधियाणं, जोइरसाणं, अंजणाणं, अंजणपुलगाणं, रयणाणं, जायख्वाणं, अंकाणं, फलिहाणं, रिट्ठाणं अहा- बायरे पुग्गले परिसाति, परिसाडिता अहा- हमे पुग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चंपि वेडविव्वय- समुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता उत्तर- वेउब्वियाई रुवाई विउव्वंति, विउव्वित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीव-समुद्दाणं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणा वीईवयमाणा जेवायें दो जेणेव भारहे वासे, जेणेव आमलकप्पा गयरी, जेणेव अंबसालवणे बेइए, जेणेव समणे भगवं महाबीरे, तेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपयाहिणं करेंति, करित्ता बंदंति, नमसंति, वंदित्ता, नर्मला एवं बासी
'अम्हे णं भंते यूरियामरस देवरस अभिओगा देवा देवाप्पियानं वंदामो, णर्मसामो, सक्कारेमो, सम्मानेमो, कल्ला, मंगलं, देवयं, चेइयं पज्जुवासामो '॥
१७ देवा ! समणे भगवं महावीरे से देवे एवं बयासी
1
'पोराणमेयं देवा, जीयमे देवा! कियमेयं देवा !, करणिन्नमेयं देवा ! आइप्रमेयं देवा, अम्मगुण्णायमेयं देवा ! जयं भवणवा वाणमंतर जोइसिय-बेमानिया देवा अरहंते भगवंते वदति, नर्मसंति, वंदिता, नमसिता तो साई-साई नामगोयाई साधिति ! तं पोराणमेयं देवा जाय-अग्मन्ायमेयं देवा ।।
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अभिओगियदेवकयं महावीरसमोसरणभूमिसंपमज्जणाइ
१८ तए णं ते आभिओगिया देवा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ता समाणा, हट्ठ- जाव- हियया, समणं भगवं महावीरं वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता, णमंसित्ता उत्तर-पुरत्थिमं दिसी भागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्विय-समुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरंति, तंजहा - रयणाणं- जाव- रिट्ठाणं अहा- बायरे पोग्गले परिसाडंति, परिसाडिता दोच्चं पि afar - समुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता, संवट्टय-वाए विउब्वंति से जहा - नामए भइय-दारए सिया तरुणे, बलवं, जुगवं जुवाणे अप्पायंके, थिर-संघयणे, थिरग्गहत्थे, दढ-पाणि-पाय-पिट्ठ तरोरु-संघाय परिणए, घण-निचिय-वलिय- वट्ट खंधे, चम्मेट्ठग-दुघण-मुट्ठियसमाहय गत्ते, उरस्स-बल- समन्नागए, तल-जमल- जुयल-फलिह-निभ- बाहू, लंघण-पवण-जवण-पमद्दण-समत्थे, छेए, दक्खे, पटु, कुसले, मेहावी, णिउण-सिप्पोवगए एगं महं सलागा - हत्थगं वा दंड-संपुच्छण वा वेणु- सलाइयं वा गहाय, रायंगणं वा रायंतेउरं वा देवकुलं वा सभं वा पर्व वा आरामं वा उज्जाणं वा अतुरियमचवलमसंभंते निरंतरं सुनिउणं सव्वओ समंता संपमज्जेज्जा, एवामेव तेऽवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा संवट्टय-वाए विउव्वंति, विउव्वित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयण-परिमण्डलं जं किंचि तणं वा पत्तं वा तहेव सव्वं आहुणिय आहुणिय एगंते एडेंति एडित्ता खिप्पामेव उवसमंति-उवसमेत्ता दोच्चं पिवेउब्विय- समुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता अब्भ-बद्दलए विउव्वंति ।
धम्मकहाणुओगे चउत्यो बंधो
से जहा - णामए भइग- वारए सिया, तरुणे - जाव-सिप्पोवगए, एगं महं वग-वारगं वादग-कुभगं वा दगथालगं वा दग कलसगं वा गहाय, आरामं वा जाव-पवं वा अतुरिय- जाव-सव्वओ समंता आवरिसेज्जा, एवामेव तेऽवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा अम्भवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायन्ति पतणतणायित्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयायित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयण-परिमंडलं णच्चोदगं, णाइमट्टियं तं पविरल-पप्फुसियं, रय-रेणुविणासणं, दिव्वं, सुरभि-गंधोदगं वासं वासंति, वासेत्ता णिहय-रयं णट्ठरयं, भट्ठरयं, उवसंत-रयं पसंत-रयं करेंति, करिता खिप्पामेव उवसामंति ।
उवसामेत्ता पुप्फच्चरिसणं धूवोद्ध वणं च तच्चं पि बेउब्विय समुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता पुप्फ- बद्दलए विउव्वंति ।
से जहा - णामए मालागार-बारए सिया तरुणे - जाव- सिप्पोबगए, एवं महं पुप्फ-छज्जियं वा पुष्क- पडलगं वा पुप्फ चंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा जाव-सव्वओ समंता कयग्गह-गहिय-करयल-पढभट्ट-विप्यमुक्केणं दसद्ध-वनेणं कुसुमेणं मुक्क- पुप्फ- पुजोवयार कलियं करेज्जा, एवामेव ते सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा पुप्फ-बद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायन्ति- जाव - जोयण-परिमण्डलं जल-थलय भासुर - प्यभूयस्स बिट-ट्ठाइस्स दसद्ध वन्न - कुसुमस्स जाणुस्सेह-प्रमाण-मेति ओहि वासं वासंति वासित्ता कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघंत-गंधुद्धयाभिरामं, सुगंध-वर-गंधियं, गंधविट्ट-भूयं, दिव्वं, सुरवराभिगमण जोग्गं करंति कारयंति, करेत्ता य कारवेत्ता य खिप्पामेव उवसामंति ।
जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो-जाव-वंदित्ता नमसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ अम्बसालवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव-वीइवयमाणा वीडवथमाणा जेणेव सोहम्मे कप्पे, जेणेव सूरियाभे विमाणे, जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव सूरियाभे देवे, तेणेव उवागच्छंति । सूरियाभं देवं करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेति वद्धावित्ता तमाणतियं पञ्चप्पिणंति ।।
सूरियाभदेवावेसेणं तव्विमाणवासिदेव-देवीणं तस्संतियमागमणं
१९ तए णं से सूरियाने देवे तेसि आभिओगियाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा, निसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव- हियए पायत्ताणियाहिवदं देवं सद्दावे सहावेत्ता एवं वयासी
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभे विमाणे, सभाए सुहम्माए, मेघोघ- रसिय-गंभीर-महुर-सद्दं जोयण-परिमंडलं सुसर-घंटं तिक्खुतो उल्लालेमाणे उल्लालेमाणे महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणे उग्घोसेमाणे एवं वयाहि-आणवेद णं भो सूरियाभे देवे, गच्छइ णं मो सूरिया देवे जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, आमलकप्पाए णयरीए, अंबसालवणे बतिए समणं भगवं महावीरं अभिवंदए । तुब्भेऽवि णं भो बेवाणुप्पिया ! सव्विड्ढीए-जाव णाइय-रवेणं, नियग-परिवाल-सद्धि संपरिवुडा, साइं-साइं-जाण-विमाणाई दुरूढा समाणा अकाल-परिहीणं चैव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउब्भवह।"
तए णं से पायत्ताणियाहिवई देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं बुत्ते समाणे हट्टतुट्ट- जाव- हियए 'एवं देवा ! तह त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेs, पडिणित्ता जेणेव सूरियाभे विमाणे, जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव मेघोघ- रसिय-गंभीर-महुर-सद्दा, जोयण-परिमंडला, सु-सरा घंटा, तेणेव उवागच्छद्द उवागच्छित्ता तं मेघोघ रसिय-गंभीर-महर-सद्दं, जोयण-परिमंडलं, सु-स्सरं घंटं तिखुत्तो उल्लालेइ ।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२४९
तए णं तीसे मेघोघ- रसिय-गंभीर-महुर-सद्दाए, जोयण-परिमंडलाए, सु-स्सराए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए से सूरियाभे विमाणे पासायविमाणापि सद्-घंटा पडल्यासय हस्त-संकुले जाए पावि होत्या ।
लए णं तेसि सूरियान- विमाण-वासी बहू बेगावानं देवा व देवोण य एवंत-इ-पसल-नि-यम-विसय-ह-मुडिया मुस्सरतारय-विल-बोल तुरिय-चल-पडिबोहणे कए समाणे, घोसण-कोहल-दिन- एमा-चिस उवउस माणसानं से पायताणयाहिवई देवे स पंटा-वंसित-पतं महया-महया सगं उग्घोसेमाणे उच्घोसेमाणे एवं बयासी
'हंत सुणंतु भवंतो सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सूरियाभ विमाण- वइणो वयणं हिय-सुहत्थं आणवेद णं भो ! सूरियाभे देवे, गच्छइ णं भो सूरियाभे देवे जंबुद्दीवं दीवं, भारहं वासं, आमलकप्पं नयरि, अंबसालवणं चेइयं समणं भगवं महावीरं अभिवंदए । तं तुम्भेऽवि णं देवाणुप्पिया ! सव्विड्ढीए अकाल-परिहीणा चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउन्भवह' ॥ तए णं ते सूरिया-विमान-वासिणो बहने वैमानिया देवा देवीओ य पायलाणियाहिबस्स बेबस्स अंतिए एम्म सोच्चा, जिसम्म, ह--नाय-हिया अप्पेवइया बंदण वलिपाए अप्पेगइया नसण-वलियाए, अप्येगइया सक्कार बतियाए एवं संमाणच लियाए, कोहल बतियाए, अप्पे० 'असुयाई सुणिस्लामो सुपाई अट्ठाई, हेकई, पसिनाई, कारणाई वागरणाई पुण्ठिस्सामो अध्येगइया सूरियाभस्त देवस्स ववणमणुवत्समाणा अप्पेमया अस्सुबाई सुगेस्सामो अप्पेगइया सुधा निस्संकियाई करिस्सामो अप्येगइया अन्नमन्नमणुयत्तमाणा, अप्पेगइया जिण भत्ति-रागेणं, अप्पेगइया धम्मो त्ति अप्पेगइया जीयमेयं ति कट्टु सब्विड्ढीए-जाव- अकालपरिहीणा चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउन्भवंति ।
सूरियाभदेवाएणं अभिओगिपदेवकथं दिव्वजाणविमाणनिम्माणं, दिव्वजाणविमाणवण्णओ य
२०
लए णं से सुरियाने देवे ते सूरियाम-विमान-यासिनो बहने बेमानिये देवे य देवीओ य अकाल-परिहोणे पेव अंतियं पाउन्भवमाणे पास पासिता -- जाव-हिवए अभिवियं देवं सहावे सहायिता एवं बयासी
'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेग-खंभ-सय-संनिविट्ठ, लील-ट्ठिय-सालभंजियागं, ईहामिय-उसभ तुरग-नर-मगर- विहग वालग-किंनररुरु-सरम-चमर-कुंजर-वगलय पउमलय-मति-चितं खंभुग्गगय-बर-बर बेवा परिवपाभिरामं बिज्जाहर-जमल-जुल जंत--पिव अच्ची - सहस्स-मालिणीयं, रूवग-सहस्स - कलियं, मिसमाणं, भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयण-लेसं, सुह-फासं, सस्सिरीय-रूवं, घंटावलि - चलिय-महुर-मणहर-सरं, गुहं तं दरिसणिज्जं णिउपोचिव- मिसिमिसित मणि-रण- घंटिया-जाल-परिक्खितं, जोवन-सय-सहस् वित्विग्गं दिव्यं गमण-सज्जे, सिग्द्यनमनं नाम दिलं जाण-विमाणं विवाह विजविता खियामेव एपमाणतियं पन्चष्पिणाहि ॥ तए णं से आभिओगिए देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टु-जाव- हियए, करयल-परिग्गहियं जाव- पडिसुणेइ, पडिसुणेता उत्तर- पुरच्छिमं दिसी- भागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउव्विय-समुग्धाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई - जाव- अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता अहासुहमे पोग्गले परियाएर परियाइत्ता दोच्चं पि वेउब्विय-समुग्धाएणं समोहणित्ता अणेग-खंभ-सयसनिवि-जाय-दिव्यं जाग-विमागं बिउवि पवले यावि होत्या ।
तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाण - विमाणस्स ति-दिसि ति-सोवाण -पडिरूवए विउव्वइ, तं जहा पुरच्छिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं, तेसि ति-सोवाण- पडिरूवगाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा वइरामया णिम्मा, रिट्ठामया पट्ठाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्ण-रुप्पमया फलगा, लोहियक्खमईओ सूईओ, वयरामया संधी, णाणामणिमया अवलंबणा अवलंबणबाहाओ य पासादीया- जावपडिरुवा ।
तेसि णं ति-सोवाण-परिस्वगाणं पुरओ पत्तेयं यत्ते तोरणं पणतं ।
तेसि णं तोरणा इमे एपावे वगावासे पष्णले तं जहा तोरणा गाणा-मणिमया, णाणा- मणिमए खंभे उपनिवि-संनिविविविह-मुत्तं तरारूवोवचिया, विविह-तारारूवोवचिया- जाव- पडिरूवा ।
तेसि णं तोरणाणं उपि अटु-मंगलगा पण्णत्ता, तं जहासोत्थिय-सिरिचण्ड-मंदिवायत्त यमाणग-महासण-कलस-मन्ट-वप्पणा-जाव पडिरूवा ।
सच तोरणा उपि बहने किष्चामरज्याए- जाव-मुक्किल्लचामरज्झए अच्छे-जाव-परिवेहि।
तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइच्छत्ते, पडागाइपडागे, घंटाजुयले, उप्पलहत्थए, कुमुय णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-महापोंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त हत्थए, सव्व रयणामए, अच्छे-जाव - पडिरुवे विउव्व ।
ध० क० ३२
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२५०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाण-विमाणस्स अंतो बहु-सम-रमणिज्जं भूमि-भागं विउब्वइ । से जहा-णामए आलिंगपुक्खरे इ वा मुइंग-पुक्खरे-इ वा सर-तले इ वा सर-तले इ वा चंद-मंडले इ वा सूर-मंडले इ वा आयंस-मंडले इ वा उरभ-चम्मे इ वा वसह-चम्मे इ वा वराह-चम्मे इ वा सोह-चम्मे इ वा वग्घ-चम्मे इ वा छगल-चम्मे इ वा दीविय-चम्मे इ वा अणेगसंकु-कीलग-सहस्सवियए, णाणाविह-पंच-वन्नेहि मणीहि उवसोभिए, आवड-पच्चावड-सेढि-पसेढि-सोत्थिय-सोवत्थिय-पूसमाणग-वद्धमाणग-मच्छंडग-मगरंडग-जार-मार-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलय-भत्ति-चिहि, सच्छाएहि, सप्पर्हि, समरीइएहि, सउज्जोएहि, णाणाविह-पंचवणेहि मणीहि उवसोभिए, तं जहाकिण्हेहि, णोलेहि, लोहिएहि, हालिद्देहि, सुक्किल्लेहि तत्थ णं जे ते किण्हा मणी तेसि णं मणीणं इमे एयारवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहा-नामए जीमूतए इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गवल-गुलिया इ वा भमरे इ वा भमरावलिया इ वा भमर-पतंग-सारे इ वा जंबू-फले इ वा अद्दारिठे इ वा परहुए इ वा गए इ वा गय-कलभे इ वा किण्ह-सप्पे इ वा किण्ह-केसरे इ वां आगास-थिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्ह-कणवीरे इ वा किण्ह-बंधुजीवे इ बा, भवे एयारूवे सिया? णो इणठे समठे। ओवम्मं समणाउसो! ते णं किण्हा मणी इत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णणं पण्णता । तत्थ णं जे ते नीला मणी तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहा-नामए भिगे इ वा भिंग-पत्ते इ वा सुए इ वा सुय-पिच्छे इ वा चासे इ वा चास-पिच्छे इ वा णीली इ वा णोली-भए इ वा णोली-गुलिया इ वा सामा इ वा उच्चन्तगे इ वा वणराई इ वा हलधर-वसणे इ वा मोरग्गीवा इ वा अयसि-कुसुमे इ वा बाण-कुसुमे इ वा अंजणकेसिया-कुसुमे इ वा नीलुप्पले इ वा णीलासोगे इ वा णील-बंधुजीवे इ वा गोल-कणवीरे इ वा, भवेयारूवे सिया ? णो इण्ठे समझें । ते णं णीला मणी एत्तो इटुतराए चेव-जाव-वण्णेणं पण्णत्ता। तत्य गं जे ते लोहियगा मणी तेसि णं मणीणं इमेयारूवे वण्णाबासे पण्णत्ते, स जहा-णामए उरभ-रुहिरे इ वा सस-रुहिरे इवा नर-रुहिरे इ वा वराह-रुहिरे इ वा महिस-रुहिरे इ वा बालिंदगोवे इ वा बाल-दिवायरे इ वा संझब्भ-रागे इ वा गुंजद्ध-रागे इ वा जासुमण-कुसुमे इ वा किसुय-कुसुमे इ वा पालियाय-कुसुमे इ वा जाइ-हिंगुलए इ वा सिल-प्पवाले इ वा पचाल-अंकुरे इ वा लोहियक्ख-मणी इ वा लक्खा-रसगे इ वा किमि-राग-कंबले इ वा चीण-पिट्ठरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्ता सोगे इ वा रत्त-कणवीरे इ वा रत्त-बंधुजीवे इ वा, भवेयारूवे सिया? णो इणढे समझें। ते णं लोहिया मणी इत्तो इट्ठतराए चेव-जाववण्णेणं पण्णत्ता। तत्थ णं जे ते हालिद्दा मणी तेसि णं मणीणं इमेयारवे वण्णावासे पण्णत्ते-से जहा-णामए चंपए इ वा चंप-छल्ली इ वा चंपगभए इ वा हलिद्दा इ वा हलिद्दा-भेए इ वा हलिद्दा-गुलिया इ वा हरियालिया इ वा हरियाल-भेए इ वा हरियाल-गुलिया इ वा चिउरे इ वा चिउरंगराए इ वा वर-कणगे इ वा वर-कणग-निघसे इ वा [ सुवण्ण-सिप्पाए ३ वा] वर-पुरिस-वसणे इ वा अल्लईकुसुमे इ वा चंपा-कुसुमे इ वा कुहंडिया-कुसुमे इ वा तड-वडा-कुसुमे इ वा घोसेडिया-कुसुमे इ वा सुवण्ण-जूहिया-कुसुमे इ वा सुहिरण्ण-कुसुमे इ वा कोरंटग-वर-मल्ल-दामे इ वा बीयय-कुसुमे इ वा पीयासोगे इ वा पीय-कणवीरे इ वा पीय-बंधुजीवे इ वा, भवेयारूवे सिया? णो इणठे समझें। ते णं हालिद्दा मणी एत्तो इट्टतराए चेव-जाब-वण्णेणं पण्णत्ता। तत्थ णं जे ते सुक्किल्ला मणी तेसि णं मणीणं इमेयारूवे वण्णाबासे पण्णत्ते। से जहा-नामए अंके इ वा संखे इ वा चंदे इ वा कुमुदोदक-दगरय-दहि-घणक्खीर-क्खीरपूरे इ वा कोंचावली इ वा हारावली इ वा हंसावली इ वा बलागावली इ वा चंदावली इ वा सारइय-बलाहए इ वा धंत-धोय-रुप्प-पट्टे इ वा सालि-पिट्ठ-रासी इ वा कुंद-पुप्फ-रासी इ वा कुमुय-रासी इ वा सुक्क-च्छिवाडी इ वा पिहुण-मिजिया इ वा भिसे इ वा मुणालिया इ वा गय-दंते इ वा लवंग-दलए इ वा पोंडरिय-दलए इ वा सेयासोगे इ वा सेय-कणवीरे इ वा सेय-बन्धुजीवे इ वा, भवेयारूवे सिया? णो इणठे समठे । ते णं सुक्किल्ला मणी एत्तो इट्ठतराए चेव-जाव-वन्नेणं पण्णत्ता । तेसि णं मणोणं इमेयारवे गंधे पण्णत्ते, से जहा-नामए कोट्ट-पुडाण वा तगर-पुडाण वा एला-पुडाण वा चोय-पुडाण वा चंपापुडाण वा दमणा-पुडाण वा कुंकुम-पुडाण वा चंदण-पुडाण वा उसीर-पुडाण वा मरुआ-पुडाण वा जाति-पुडाण वा जूहिया-पुडाण वा मल्लिया-पुडाण वा ण्हाण-मल्लिया-पुडाण वा केयइ-पुडाण वा पाडलि-पुडाण वा णोमालिया-पुडाण वा अगुरु-पुडाण वा लवंगपुडाण वा वास-पुडाण वा कप्पूर-पुडाण वा अणुवायंसि वा ओभिज्जमाणाण वा कुट्टिज्जमाणाण वा भंजिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विक्किरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा परिभाइज्जमाणाण वा भंडाओ भंडं साहरिज्जमाणाण वा ओराला,
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२५१
मणुण्णा, मणहरा घाण-मण-निव्वुइ-करा, सव्वओ समंता गंधा अभिनिस्सवंति, भवेयारूवे सिया ? णो इणठे समठे । ते णं मणी एत्तो इट्ठतराए चेव गंधेणं पन्नत्ता । तेसि णं मणीणं इमेयारूवे फासे पण्णत्ते, से जहा-नामए आइणेइ वा रूए इ वा बूरे इ वा णवणीए इ वा हंस-गब्भ-तूलिया इ वा सिरीस-कुसुम-निचए इ वा बाल-कुमुय-पत्त-रासी इ वा, भवेयारूवे सिया? जो इणठे समठे । ते णं मणी एत्तो इट्टतराए
चेव-जाव-फासेणं पन्नत्ता। तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाण-विमाणस्स बहु-मज्म-देस-भागे एत्थ णं महं पिच्छाघर-मंडवं विउब्वइ-अणेगखंभ-सय-संनिविठं अब्भुग्गय-सुकय-वर-वेइया-तोरण-वर-रइय-सालभंजियागं, सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-ल?-संठिय-पसत्थ-वेरुलिय-विमल-खंभ, णाणामणि-कणग-रयण-खचिय-उज्जल-बहु-सम-सुविभत्त-भूमिभाग, ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमरकुंजर-वणलय-पउमलय-भत्ति-चित्तं, खंभुग्गयवरवइरवेइयापरिगयाभिराम, विज्जाहर-जमल-जुयल-जत-जुत्तं पिव अच्चीसहस्स मालणीयं रूवगसहस्स-कलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफास सस्सिरीयरूवं कंचण-मणि-रयण-थुभियागं, णाणाविहपंचवण्ण-घंटा-पडाग-परि-मंडियग्ग-सिहरं, चवलं, मरीइ-कवयं विणिम्मुयंतं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीस-सरस-रत्तचंदण-दद्दर-दिन्नपंचंगुलि-तलं, उवचिय-चंदण-कलसं, चंदण-घड-सुकय-तोरण-पडिदुवार-देस-भाग, आसत्तोसत्त-विउल-वट्ट-वग्धारिय-मल्ल-दाम-कलावं, पंचवण्ण-सरस-सुरभि-मुक्क-पुप्फ-पुंजो वयार-कलियं, कालागुरु-पवर-कुंदरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघंत-गंधुद्धयाभिरामं, सुगंध-वर-गंधियं, गंधवट्टि-भूयं, अच्छर-गण-संघ-संविकिण्णं, दिव्वं, तुडिय-सद्द-संपणाइयं, अच्छं-जाव-पडिरूवं । तस्स णं पिच्छाघर-मंडवस्स अंतो बहु-सम-र-मणिज्ज-भूमिभाग विउव्वइ-जाव-मणीणं फासो । तस्स णं पेच्छाघर-मंडवस्स उल्लोयं विउव्वइ पउमलय-भत्ति-चित्त-जाव-पडिरूवं । तस्स णं बहु-सम-रमणिजस्स भूमिभागस्स बहु-मज्म-देस-भाए एत्थ णं एग महं बइरामयं अक्खाडगं विउव्ववइ । तस्स णं अक्खाडयस्स बहु-मझ-देस-भागे एत्थ णं महेगं मणिपेढियं विउव्वइ--अट्ट जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्व-मणिमयं, अच्छं, सहं-जाव-पडिरूवं । तोसे णं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं महेगं सिंहासणं विउब्वइ, तस्स णं सोहासणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-तवणिज्जमया चक्कला, रययामया सीहा, सोवण्णिया पाया, णाणा-मणिमयाइं पायसीसगाई, जंबूणयमयाइं गत्ताई, बहरामया संधी, णाणा-मणिमए वेच्चे । से णं सीहासणे ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भति-चित्तं [सं ]सार-सारोवचियमणि-रयण-पायवोढे, अहेरग-मिउ-मसूरग-णव-तयकुसंत-लिम्ब-केसर-पच्चत्थुयाभिरामे, आईणग-रूय-बूर-णवणीय-तूल-फास-मउए, सुविरइय-रयत्ताणे, उवचिय-खोम-दुगुल्ल-पट्ट-पडिच्छायणे, रत्तंसुय-संबुए, सुरम्मे, पासाईए-जाव-पडिरूवे। तस्स ण सिंहासणस्स उरि एत्थ णं महेगं विजय-दूसं विउब्बइ-संखक-कुंद-दगरय-अमय- महिय-फेण-पुंज -संनिगासं, सव्व-रयणामयं, अच्छं, सहं, पासादीयं, दरिसणिज्ज, अभिरूवं पडिरूवं । तस्ण णं सोहासणस्स उरि विजय-दूसस्स य बहु-मज्झ-देस-भागे एत्थ णं महं एगं बयरामयं अंकुसं विउव्वइ । तस्सि च णं वयरामयंसि अंकुसंसि कुंभिक्कं मुत्ता-दामं विउव्वइ । से णं कुंभिक्के मुत्ता-दामे अन्नहि चहि अद्ध-कुंभिक्केहि मुत्ता-दामेहि तदद्धच्चत्त-पमाहिं सव्वओ समंता संपरिखित्ते । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा, सुवण्ण-पयरग-मंडियग्गा, णाणा-मणि-रयण विविहहारद्वहार-उवसोभिय-समुदया ईसि अण्णमणमसंपत्ता, वारहिं पुटवावर-दाहिणुतरागएहि मंदायं-मंदायं एइज्जमाणाणि, एइज्जमाणाणि, पलंबमाणाणि पलंबमाणाणि, वंदमाणाणि वंदमाणाणि, उरालेणं, मणुन्नेणं, मणहरेणं, कण्ण-मण-णिव्वुइ-करेणं सद्देणं ते पएसे सव्वओ समंता आपूरेमाणा आपूरेमाणा सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति । तए णं से आभिओगिए देवे तस्स सिंहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तर-पुरच्छिमेणं एत्थ णं सूरियाभस्स-देवस्स चउण्हं सामाणिय-साहस्सोणं चत्तारि भद्दासण-साहस्सीओ विउन्वइ । तस्स णं सीहासणस्स पुरच्छिमेणं एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चउण्हं अग्ग-महिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासण-साहस्सीओ विउव्वइ । तस्स णं सोहासणस्स दाहिण-पुरच्छिमेणं एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स अभितरपरिसाए अट्ठण्हं देव-साहसीणं अट्ठ भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वइ। एवं दाहिणणं मज्झिम-परिसाए दसण्हं देव-साहस्सीणं दस भद्दासण-साहस्सीओ विउव्वइ । दाहिण-पच्चत्थिमेणं बाहिर-परिसाए बारसण्हं देव-साहस्सीणं वारस भद्दासण-साहस्सीओ विउव्वइ ।
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२५२
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधी
पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणियाहिबईणं सत्त भद्दासणे विउव्वइ । तस्स णं सोहासणस्स चउ-दिसि एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सोलसण्हं आयरक्ख-देव-साहस्सीणं सोलस भद्दासण-साहस्सीओ विउव्वइ, तं जहापुरच्छिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, दाहिणणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ। तस्स दिव्वस्स जाण-विमाणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-से जहा-नामए अइरुग्गयस्स वा हेमंतिय-बालिय-सूरियस्स वा खरिगालाण वा रत्ति पज्जलियाण वा जवा-कुसुम-वणस्स वा किंसुय-वणस्स वा पारियाय-वणस्स वा सव्वओ समंता संकुसुमियस्स, भवेयास्वे सिया ? णो इण? सम? ? तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स एत्तो इट्टतराए चेव-जाव-वणेणं पण्णते, गंधो य फासो य जहा मणोणं। तए णं से आभिओगिए देवे दिव्वं जाण-विमाणं विउव्वइ, विउन्वित्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयल-परिग्गहिय-जाव-पच्चप्पिणइ ॥
सरियाभस्स महावीरसमीवमागमणं, दिव्वविमाणारहणाइवण्णओ य २१ तए णं से सूरिया देवे आभिओगस्स देवस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्ठ-जाव-हियए दिव्वं जिणिवाभिगमण-जोग्गं उत्तर
वेउव्विय-रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता चहि अग्ग-महिसोहि सपरिवाराहि, दोहि अणोएहि, तं जहागंधव्वाणीएण य गट्टाणीएण य सद्धि संपरिबुडे तं दिव्वं जाणविमाणं अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं ति-सोवाण-पडिरूवएणं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव सीहासणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासण-वर-गए पुरत्याभिमुहे सण्णिसणे । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणिय-साहस्सीओ तं दिव्वं जाण-विमाणं अणुपयाहिणीकरेमाणा उत्तरिल्लेणं ति-सोवाणपडिरूवएणं दुरूहंति, दुरूहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुन्व-णत्थेहि भद्दासहि णिसीयंति, अवसेसा देवा य देवीओ य तं दिव्वं जाण-विमाणं-जावदाहिणिल्लेणं ति-सोवाण-पडिरूवएणं दुरूहंति, दुरूहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्व-णत्थेहि भद्दासणेहि निसीयंति । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स तं दिव्वं जाण-विमाणं दुरूढस्स समाणस्स अट्ठट्ठ मङ्गलगा पुरओ अहाणुपुवीए संपत्थिया, तं जहासोत्थिय-सिरिवच्छ-जाव--दप्पणा । तयणंतरं च णं पुण्ण-कलस-भिंगारा दिव्या य छत्त-पडागा, सचामरा दंसण-रइया, आलोय-दरिसणिज्जा, वाउद्धय-विजय-वेजयंती-पडागा ऊसिया, गगण-तलमणुलिहन्ती पुरओ अहाणुपुव्वीए संपत्थिया । तयणंतरं च णं वेरुलिय-भिसंत-विमल-दण्डं, पलम्ब-कोरंट-मल्ल-दामोवसोभियं, चंद-मंडल-निभं, समुस्सियं, विमलमायवत्तं पवर-सोहासणं च मणि-रयण-भत्ति-चित्तं, सपायपीढं, सपाउया-जोय-समाउत्तं, बहु-किकरामर-परिग्गहियं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपत्थियं । तयणंतरं च णं वइरामय-वट्ट-लट्ठ-संठिय-सुसिलिट्ठ-परिघट्ठ-मट्ठ-सुपइट्ठिए, विसिट्ठ, अणेग-वर-पंचवण्ण-कुडभीसहस्सुस्सिए, परिमंडियाभिरामे, वाउद्धय-विजय-वेजयंती-पडाग-च्छत्ताइच्छत्त-कलिए, तुंगे, गगणतलमणुलिहंत-सिहरे, जोयण-सहस्समूसिए, महइ-महालए महिंद-ज्झए पुरओ अहाणुपुब्बीए संपत्थिए। तयणंतरं च णं सुरूव-णेवत्थ-परिकच्छिया, सुसज्जा, सव्वालंकार-भूसिया, महया भड-चडगर-पहगरेणं पंच अणीयाहिवइणो पुरओ अहाणपुव्वीए संपत्थिया। तयणंतरं च णं बहवे अभिओगिया देवा देवीओ य सहि-सएहि स्वेहि, सएहि-सएहि विसेसेहि, सहि सएहि विदेहि, सहि सहि
ज्जाएहि, सएहि सएहिं णेवत्थेहिं पुरओ अहाणुपुटवीए संपत्थिया। तयणंतरं च णं सूरियाभ-विमाण-वासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सब्विड्ढीए-जाव-रवेणं सूरियाभं देवं पुरओ पासओ य मग्गओ य समणुगच्छंति ॥ तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीय-परिखित्तणं, वइरामय-वट्ट-ल?-संठिएणं-जाव-जोयण-सहस्समूसिएणं, महइ-महालएणं महिंदज्झएणं पुरओ कड्ढिज्जमाणेणं, चहिं सामाणिय-सहस्सेहि-जाव-सोलसहिं आयरक्ख-देवसाहस्सोहि, अन्नेहि य बहूहि सूरियाभ-विमाण-वासीहि वेमाणिएहि, देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिवुडे, सव्विड्ढीए-जाव-रवेणं, सोहम्मस्स कप्पस्स मज्झमज्झेणं, तं दिव्वं देविड्ढि, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभाव उवलालेमाणे-उवलालेमाणे, उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे, पडिजागरेमाणे-पडिजागरेमाणे, जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले णिज्जाणमग्गे, तेणेव उवागच्छद, जोयण-सय-साहस्सिएहि विग्गहेहिं ओवयमाणे, वीईवयमाणे ताए उक्किट्ठाए-जाव-तिरियं असंखिज्जाणं दीव-समुहाणं मझमझेणं बीइवयमाणे-वीइवयमाणे, जेणेव नंदीसरवरे दीवे, जेणेव दाहिण-पुरथिमिल्ले रतिकर-पव्वए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता तं दिव्वं देविड्ढेि-जाव-दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरेमाणे पडिसाहरेमाणे, पडिसंखेवेमाणे पडिसंखेवेमाणे, जेणेब
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२५३
जम्बुद्दीवे दीवे, जेणेव भारहे वासे, जेणेव आमलकप्पा नयरी, जेणेव अम्बसालवणं चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता समणं भगवन्तं महावीरं तेणं दिव्वेणं जाण-विमाणेणं तिक्खुत्तो आयाहिणं, पयाहिणं करेइ, करित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स उत्तर-पुरथिमे दिसि-भाए तं दिव्वं जाण-विमाणं इसि चउरंगुलमसंपत्तं धरणि-तलंसि ठवेइ, ठवित्ता चहिं अग्ग-महिसोहि सपरिवाराहि, दोहि अणीएहि-तं जहागंधवाणिएण य णट्टाणिएण य, सद्धि संपरिबुडे ताओ दिव्वाओ जाण-विमाणाओ पुरथिमिल्लेणं ति-सोवाण-पडिरूबएणं पच्चोरुहइ । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणिय-साहस्सीओ ताओ दिव्वाओ जाण-विमाणाओ उत्तरिल्लेणं ति-सोवाण-पडिरूवएणं पच्चोरुहंति । अवसेसा देवा या देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाण-विमाणाओ दाहिणिल्लेणं ति-सोवाण-पडिरूबएणं पच्चोरुहन्ति । तए णं से सूरियाभे देवे चहि अग्गमहिसोहि-जाव-सोलसहि आयरक्ख-देव-साहस्सीहि, अण्णेहि य बहूहि सूरियाभ-विमाणवासोहि वेमाणिएहि, देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिवुडे, सम्विड्ढीए-जाव-णाइयरवेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करित्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी--'अहं णं भत्ते ! सुरियाभे देवे देवाणुप्पियाणं वंदामि, नमसामि-जाव-पज्जुवासामि' । सूरियाभा! इ समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासी-'पोराणमेयं सूरियाभा! जीयमेयं सूरियामा ! किच्चमेयं सूरियामा ! करणिज्जमेयं सूरियामा ! आइण्णमेयं सूरियामा ! अब्भुणुण्णायमेयं सूरियामा ! जं णं भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा अरहते भगवंते वंदंति, नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तओ पच्छा साइं-साइं नाम-गोत्ताई साहिति, तं पोराणमेयं सूरियामा !-जाव-अब्भणुण्णायमेयं सूरियामा !' तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठ-जाव-समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासणे, नाइदूरे सुस्सूसमाणे , णमंसमाणे, अभिमुहे, विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ।।
सूरियाभेण नट्टविहिस्स उवदंसणं २२ तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभस्स देवस्स तीसे य महइ-महालियाए परिसाए-जाव-परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव
दिसि पडिगया ॥ तए णं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा, निसम्म-हट्ठ-तुट्ठ-जाव-हयहियए उट्ठाए उट्ठ इ, उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी'अहं णं भत्ते ! सूरियाभे देवे किं भव-सिद्धिए, अभव-सिद्धिए ? सम्म-दिट्ठी, मिच्छा-दिट्ठी ? परित्त-संसारिए, अणंतसंसारिए ? सुलभबोहिए, दुल्लभ-बोहिए ? आराहए विराहए ? चरिमे अचरिमे ?' ॥ सूरियाभाइ समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासीसूरियामा ! तुम णं भव-सिद्धिए, नो अभव-सिद्धिए,-जाव-चरिमे, णो अचरिमे। तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हटु-तुट्ठ-चित्तमाणदिए परम-सोमणस्सिए, समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- 'तुब्भे णं भंते ! सव्वं जाणह, सव्वं पासह, सव्वओ जाणह, सव्वओ पासह, सव्वं कालं जाणह, सव्वं कालं पासह, सव्वे भावे जाणह, सव्वे भावे पासह । जाणंति णं देवाणुप्पिया ! मम पुटिव वा पच्छा वा मम एया-रूवं दिव्वं देविड्डिं, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभावं लद्धं, पत्तं अभिसमण्णागयं ति । तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं-भत्ति-पुव्वगं, गोयमाइयाणं समणाणं, निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढि, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभावं, दिव्वं बत्तीसइ-बद्धं नट्टविहिं उवदंसित्तए' ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे, सूरियाभस्स देवस्स एयमझें णो आढाइ, णो परियाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवंतं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी'तुन्भे णं भंते! सव्वं जाणह-जाव-उवदंसित्तए त्ति कटु समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तर-पुरस्थिमं दिसी-भागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउन्विय-समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाई दण्डं निसिरइ, निसिरिता अहा-बायरे-पुग्गले परिसाडंति परिसाडित्ता-अहासुहमे पुग्गले परियायंति, परियाइत्ता ।
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धम्मकहाणुओगे उत्थोधी
यो पि व्यिय-समुपाएवं जाय बहु-सम-रमणिज्जं भूमिभागं विवद से जहानागए आलिंग-रेवा-जाव-मनी कारो तस्स बहु-राम-रमणिज्जरस भूमि-भागस्स बहु-मा-येस-मागे पिच्छारमण्डवं विम्बइ-अग-भ-सय-संनिवि वग्गज अन्तो बहू समरमणि भूमि-भागं उल्लोयं, अस्खा च मणि-डिपं च विउब
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तोसे थं मणि-पेटिवाए उपरि सोहासणं सपरिवारं जाव-दामा चिट्ठन्ति ।
तए णं से सूरिया देवे समणस्स भगवओ महावीरस्स आलोए पणामं करेइ, करिता 'अणुजाणउ मे भगवं ति' कट्टु सीहासणवरगए तित्राभिमु संणिस ।
तएषं से सुरिया देवे तप्पटमवाए माना- मणिकपण-रवण-विमल-महरिह-निउणोवियमिसिमिसित विरइय- महाभरण- कडग-लुडिय वर-भूसज्जनं, पीवरं, पलम्बं दाहिणं भूयं पसारे, तो सरिसवाणं, सरिलयाणं, सरिव्यवाणं, सरिस लावण्ण-व-जोगगोवा एगाभरण--यस-गहिय-पिणं, संवेलियस्य पित्यानं आविद्ध-विमेागं पिषिद्ध-विजयागं उप्पीलिय-चित्त-पट्ट परियर-सफेणगावत्त- रइय-संगय- पलंब-वत्थंत-चित्त-चिल्ललग-नियंसणाणं, एगावलि-कण्ठ- रइय-सोभंत वच्छ-परिहत्थ भूसणाणं, अट्ठ-सयं णट्ट-सज्जाणं देव कुमाराणं णिग्गच्छइ ।
सपनंतर नाना- मणि-जाव-पीवरं, पलंबे वामं भूयं पसारेद्र तमो नं सरिया, सरितयाणं, सरिव्ययागं सरिस-लावण्यरूव-जोव्वण-गुणोववेयाणं, एगाभरण वसण- गहिअ - णिज्जोआणं, दुहओ संवेल्लियग्गणियत्थाणं आविद्ध-तिलयामेलाणं, पिणद्धगवेज्जकुंचुईणं, नाना- मणि रयण-भूसण-विराइयंगमंगाणं, चंदाणणाणं, चंबद्ध-सम-निलाडाणं, चंदाहिय-सोम दंसणाणं, उक्का इव उज्जोवेमाणीणं, सिगारा-गारचास्वेताणं हसियमणिय-चिट्ठिय-विलास-लियन निउण-जुतोववार कुसलागं गहियाउज्जाणं अट्ठ-सायं न-सज्जा
देव-कुमारियाणं निगद
तए से सूरिया देवे अ-सर्व संचाणं विश्व अ-सर्प संखवायागं विम्ब अस सिंगाणं व अस सगवाया विव्व, असयं संखियाणं विउव्वर, अट्ठसयं संखिय-वायाणं विउव्वइ, अट्ठसयं खरमुहीणं विउव्वइ, अट्ठसयं खरमुहिवायाणं विउब्वद, अस पेयाणं विव्व, अट्ठसयं पेया वायगाणं विउब्वइ, अट्ठसयं पिरिपिरियाणं विउब्वइ, अट्ठसयं पिरिपिरिया- वायगाणं विउव्वद । एवमाइयाई एगूणपण्णं आउज्ज-विहाणाई बिउब्वइ ।
तए से बहने देव-कुमारा व देव-कुमारियाओं व सहावे
तनं ते बहुते देवकुमाराय देव-कुमारीमो व सूरियागं देवेणं सहायिया समागा, दु-जाव-शेवरिया देवे तेच उग तेणेव उपागच्छता सूरिया देवं करयल-परिगहि-जाय बद्धाविता एवं वयासी
'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं अम्हेहि कायव्वं ।
तए गं से सूरिया देवे ते हवे देव-कुमारे व देवकुमारीओ य एवं वासी
'गच्छहणं तु देवाप्पिया! समयं भगवंतं महावीरं तित्तो आवाहि-यवाहिणं करेह, करिता बंदह नगंसह, बंदिता नसता गोमायाणं समगाणं निधानं तं दिव्यं देवि देव दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं बत्तीसह बद्धं गट्ट-विहि उसे ब
सिता खियामेव एवमानत्तियं पञ्चप्पियहं ।
ट्ट विहिष्णओ
२३
तए णं ते बहवे देव कुमारा देव कुमारीओ य सूरियाभेणं देवेणं एवं वृत्ता समाजा हटु-जाव करयल जाव- पडिसुगंति, पडिणित्ता जेणेव समने भगवं महावीरे, तेथेव उवागण्ठति, उपागच्छता समणं भगवं महावीरं जाय-नमंसित्ता जेगेव गोवमाइया समणा निग्गंथा, तेणेव उवागच्छति । तए णं ते बहवे देव कुमारा देव कुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करिता समामेव अवणमंति, अवगमित्ता समामेव उमंति एवं सहियामेव ओनमंति एवं सहियामेव उन्नमंति, सहियामेव उम्गमित्ता संगयामेव ओनमंति, संगयामेव उन्नमंति, उन्नमित्ता थिमियामेव ओणमंति, थिमियामेव उन्नमंति, समामेव पसरंति, पसरिता समामेव आउज्जविहाणा म्हंत, समामेव पचाएं पगाई, पर्णास्व कि ते ?
1
उरेणं मंद, सिरेण तारं, कंठेण वितारं ति-विहं, ति-समय-रेयग-रइयं, गुंजाऽवंक -कुहरोवगूढं, रत्तं ति-ठाण करण-सुद्धं, सकुहर-गुंजतवंस-तंती - तल-ताल-लय-गह सुसंपउत्तं, महुरं, समं, सललियं, मणोहरं, मिउ-रिभिय-पय-संचार, सुरइ-सुणइ वर चारु रूवं दिव्वं णट्टसज्जं गेयं पगीया वि होत्था । कि ते ?
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
उद्धमंताणं संखाणं, सिंगाणं, संखियाणं, खरमुहीणं, पेयाणं, पिरिपिरियाणं; आहम्मंताण पणवाणं, पडहाणं; अप्फालिज्जमाणाणं भंभाणं, होरंभाणं; तालिज्जंताणं भेरीणं, झल्लरोणं, दुंदुहीणं; आलवंताणं मुरयाणं, मुइंगाणं, नंदीमुइंगाणं; उत्तालिज्जताणं आलिगाणं, कुंतुंबाणं, गोमुहीणं, मद्दलाणं; मुच्छिज्जताणं वीणाणं, विपंचीणं, वल्लईणं; कुट्टिजंताणं महंतीणं, कच्छभीणं, चित्तवीणाणं; सारिज्जंताणं बद्धीसाणं, सुघोसाणं; नंदिघोसाणं; कुट्टिज्जंतीणं भामरीणं, छब्भामरीणं, परिवायणीणं; छिप्पंतीणं तूणाणं, तुंबवीणाणं; आमोडिज्जंताणं आमोयाणं, झंझाणं, नउलाणं; अच्छिज्जंतीणं मुगुंदाणं, हुडुक्कोणं, विचिक्कीणं; बाइज्जंताणं करडाणं, डिडिमाणं, किणियाणं, कडम्बाणं; ताडिज्जताणं दद्दरिगाणं, दद्दरगाणं, कुतुंबाणं, कलसियाणं, मडयाणं; आताडिज्जंताणं तलाणं, तालाणं, कंसतालाणं; घट्टिज्जंताणं रिगिरिसियाणं, लत्तियाणं, मगरियाणं, सुंसुमारियाणं; फूमिज्जंताणं वंसाणं, वेलूणं, वालीणं, परिल्लोणं, बद्धगाणं। तए णं से दिव्वे गीए, दिव्वे वाइए, दिवे नट्टे एवं अन्भुए, सिंगारे, उराले, मणुन्ने, मणहरे गीए, मणहरे नट्टे, मणहरे वाइए, उप्पिजलभूए, कहकहभूए दिव्वे, देव-रमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स सोत्थिय-सिरिवच्छ-नंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासणकलस-मच्छ-दप्पण-मंगल्ल-भत्ति-चित्तं णामं दिव्वं नट्ट-विहिं उवदंसेंति ॥१॥ तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारीओ य सममेव समोसरणं करेंति, करित्ता तं चेव भाणियव्वं-जाव-दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड-पच्चावड-सेढि-पसेढि सोत्थिय-सोवत्थियपूसमाणव-वद्धमाणग-मच्छण्ड-मगरंडजार-मार-फुल्लावलि-पउम-पत्त-सागर-तरंग-वसंतलया-पउमलय-भत्तिचित्तं गाम दिव्वं णट्टविहि उवदंसेंति ॥२॥ एवं च एक्किक्कियाए णट्टविहीए समोसरणाइया एसा वत्तव्वया-जाव-दिब्वे देवरमणे पवत्त यावि होत्था। तए णं ते बहवे देव-कुमारा देव-कुमारियाओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-हरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलयपउमलय-भत्ति-चित्तं णामं दिव्वं णट्ट-विहिं उवदंसेंति ॥३॥ एगओ वंकं, दुहओ वंक, एगओ खुह, दुहओ खुह, एगओ चक्कवालं, दुहओ चक्कवालं, चक्कद्धचक्कवालं णामं दिव्वं णट्ट-विहि उवदंसंति ॥४॥ चदावलि-पवित्ति च, सूरावलि-पवित्ति च, बलियावलि-पवित्ति च, हंसावलि-पविर्भात च, एगावलि-पवित्ति च, तारावलिपवित्ति च, मुत्तावलि-पविर्भात च, कणगावलि-पविभत्ति च, रयणावलि-पवित्ति च, णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥५॥ चंदुग्गमण-पवित्ति च, सुरूग्गमण-पवित्ति च, उग्गमणुग्गमण-पवित्तिं च णामं दिव्वं पट्टविहि उवदंसेति ॥६॥ चंदागमण-पवित्तिं च, सूरागमण-पवित्ति च, आगमणागमण-पवित्तिं च णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ॥७॥ चंदावरण-पविभत्ति च, सूरावरण-पवित्ति च, आवरणावरण-पवित्ति च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥८॥ चंदत्थमण-पवित्ति च, सूरत्थमण-पवित्ति च, अस्थमण-उत्थमण-पवित्ति च णामं दिव्वं णट्टविहि उवदंसेंति ॥९॥ चंदमंडल-पवित्ति च, सूरमंडल-पवित्तिं च नागमंडल-पवित्ति च, जक्खमंडल-पवित्ति च, भूतमंडल-पवित्ति च, रक्खस-महोरगगंधव्वमंडल-पवित्तिं च, मंडल-मंडल-पवित्तिं च णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ॥१०॥ उसभमंडल-पवित्ति च, सीहमंडल-पवित्ति च, हय-विलंबियं, गय-विलंबियं, हय-विलसियं, गय-विलसियं मत्तय-विलसियं, मत्तगयविलसियं, मत्तहय-विलंबितं, मत्तगय-विलंबियं, दुय-विलंबियं णामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति ॥११॥ सागर-पवित्ति च, नागर-पवित्ति च, सागर-नागर-पविभत्ति च णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेति ॥१२॥ गंदा-पविभत्ति च, चंपा-पवित्ति च, नंदा-चंपा-पवित्ति च णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ॥१३॥ मच्छंडा-पविभत्ति च, मयरंडा-पविभत्ति च, जार-पविर्भात्त च, मार-पविभत्त च, मच्छंडा-मयरंडा-जारा-मारा-पविभत्ति च णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ॥१४॥ 'क' ति ककार-पवित्ति च, 'ख' ति खकार-पवित्ति च, 'ग' त्ति गकार-पवित्ति च, 'घ' त्ति घकार-पवित्ति च, 'ड' ति
कार-पवित्ति च, ककार-खकार-गकार-घकार-कार-पवित्ति च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥१५॥ एवं चकारवग्गोऽपि ॥१६॥
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
टकार-वग्गोऽपि ॥१७॥ तकार-वग्गोऽपि ॥१८॥ पकार-वग्गोऽपि ॥१९॥ असोय-पल्लव-पविर्भात च, अंब-पल्लव-पविभत्ति च, जंबू-पल्वव-पविभत्ति च, कोसंब-पल्लव-पवित्ति च, पल्लवपविभत्ति च णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ॥२०॥ पउमलया-पविभत्ति च-जाव-सामलया-पविभत्ति च लया-पविभत्ति च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥२१॥ दुय-णामं दिव्वं गट्टविहिं उबदंसेंति ॥२२॥ विलंबिय-णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ॥२३॥ दुय-विलंबियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥२४॥ अंचियं णामं दिव्वं णट्टविहि उवदंसेंति ॥२५॥ रिभियं णाम दिव्वं णट्टविहि उवदंसेंति ॥२६॥ अंचिय-रिभियं णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ॥२७॥ आरभडं णामं दिव्वं गट्टविहि उवदंसेंति ॥२८॥ भसोलं णाम दिव्वं गट्टविहिं उबदंसेंति ॥२९॥ आरभड-भसोलं णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ॥३०॥ उप्पय-निवय-पवत्तं, संकुचियं, पसारियं, रयारइयं भंतं संभंतं णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ॥३१॥ तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति-जाव-दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था। तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स पुब्व-भव-चरिय-णिबद्धं च चवण-चरिय-णिबद्धं च संहरण-चरिय-निबद्धं च जम्मण-चरिय-निबद्धं च अभिसेय-चरिय-निबद्धं च बाल-भाव-चरिय-निबद्धं च जोवण-चरिय-निबद्धं च काम-भोग-चरिय-निबद्धं च निक्खमण-चरिय-निबद्धं च तव-चरण-चरिय-निबद्धं च णाणुप्पाय-चरिय-निबद्धं च तित्थ-पवत्तण-चरियपरिनिव्वाण-चरिय-निबद्धं च चरिम-चरिय-निबद्धं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥३२॥
नाडयस्स समत्ती, सुरियाभस्स पडिगमणं च २४ तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारीओ य चउब्विहं वाइत्तं वाएंति । तं जहा-ततं, विततं, घणं, झुसिरं ।
तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारियाओ य चउन्विहं गेयं गायति । तंजहा-उक्खित्तं, पायतं, मंदाय, रोइयावसाणं च । तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारियाओ य चउम्विहं णट्टविहिं उवदंसंति । तंजहा-अंचियं, रिभियं, आरभडं, भसोलं च । तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारियाओ य चउन्विहं अभिणयं अभिणएंति । तंजहा-दिह्रतियं, पाडितियं, सामन्नोविणिवाइयं, अंतोमज्झावसाणियं च ।। तए णं ते बहवे देव-कुमारा य देव-कुमारियाओ य गोयमाइयाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढि, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभावं, दिव्वं बत्तीसइबद्धं नाडयं उवदंसित्ता, समणं भगवंतं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करित्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सूरियाभे देवे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु, जएणं, विजएणं वद्वाति, बद्धावित्ता एवं आणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ तए णं से सूरिया देवे तं दिव्वं देविडि, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभावंपडिसाहरइ, पडिसाहरेत्ता खणेणं जाए एगे एगभूए। तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवंतं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता नियग-परिवाल-सद्धि संपरिबुडे तमेव दिव्वं जाण-विमाणं दुरुहइ, दुरूहिता जामेव दिसि पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए ॥
सरियाभदेवस्स देविडिढआईणं सरीरंतग्गयत्तनिरूवणं २५ भंते ! त्ति भयवं गोयमे समणं भगवंतं महावीरं बंदइ, नमसइ, बंदित्ता, नमंसित्ता एवं बयासी
'सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स एसा दिव्वा देविढ़ि, दिव्वा देवज्जुइ, दिव्वे देवाणुभावे, कहिं गए, कहिं अणुप्पविठे ?
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पासतित्ये पासिका
गोयमा ! सरीरं गए, सरीरं अणुप्पविट्ठे ।
से केणाट्ठेषां भते ! एवं बुच्चइ सरीरं गए सरीरं अगुप्पविट्ठे ?
गोयमा ! से जहा नामए कूडागार-साला सिया दुहओ लित्ता, गुत्ता, गुत्त-दुवारा, णिवाया, णिवाय गंभीरा । तीसे णं कूडागार - सालाए अदूर-सामंते एत्थ णं महंगे जन-समूह बि तए णं से जन-समूह एवं महं अम्म बद्दल वा वास बद्दल या महान्यायं वा एजमाणं पास पासिता तं कूडागार-साल अंतो अणुप्यविसित्ता णं चि से तेणट्ठेणं गोवमा ! एवं बुच्च शरीरं अणुप्यविट्ठे ।
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सूरियाभविमाणस्स ठाणाईनं विश्वरओ निरूवणं
२६ भिते पूरियामरस देवरस सूरिया नाम विमाने पहते ?
गोमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमि-भागाओ उड्ं चंदिमसूरियगहगणनक्ख ततारारूवाणं बहूइं जोयणाई बहूइं जोयणसयाई एवं सहस्साइं सयसहस्साई बहुईओ जोयणकोडोओ जोयणसयकोडीओ जोयण - सहस्सकोडीओ बहुईओ जोयणसयसहस्सकोडीओ बहुईओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं वीईवइत्ता एत्थ णं सोहम्मे नामं कप्पे पनते पाईपणावर उदीर्णदाहिणवित्वम् अढचंदठाणसंठिए अचिमालिभातराविणारे असंखेज्जाओ जोयणकोटाकोडीओ आयामविवणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्षेणं एत्थ णं सोहम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावातसय सहरसाई भवतीति मक्खायं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा-जाव- पडिरुवा ।
सिणं विमाणाणं बहुमज्झदेसभाए पंच वडिसया पन्नता तंजहा -- असोगर्वाडसए सत्तवण्णर्वाडसए चंपगर्वाडसए चूयर्वाडिसए मझे सोहम्मडए ।
ते णं वडिसगा सव्वरयणामया अच्छा-जाव पडिरूवा । तस्स णं सोहम्मर्वाडसगस्स महाविमाणस्स पुरत्थिमेणं तिरियं असंखेज्जाई जोपणसपसहस्सा बीसा एत्थ णं तुरियामस्स देवस्त सूरियाने जामं विमाणे पण्णले अडतेरसजोयणसयसहस्सा आयामविश्वंभे अउणयालीस च सयसहस्साई बावनं च सहस्साइं अ य अडालजोवणसाए परिवशेवेणं ।
सेणं विमाणे एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खिते । से णं पागारे तिण्णि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले एवं जोयणसयं विक्खंभेणं, मज्झे पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं उप्पि पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं । मूले वित्थिष्णे मज्झे संखिते उप्पि तणुए गोपुच्छ ठाणसंठिए सम्बरणामए अच्छे-जा
से णं पागारे णाणाविहपंचवर्णोह कविसीसएहिं उवसोभिए तं जहा - कण्हेहि य नीलेहि य लोहिएहि हालिदेह सुक्किल्लेहिं कविसीसएहि ।
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ते णं कविसीसगा एगं जोयणं आयामेणं अद्धजोयणं विक्खंभेणं देसूणं जोयणं उद्धं उच्चत्तेणं सव्वरयणामया अच्छा- जाव- पडिरूवा । रियाना णं विमाणस्स एवमेनाए बाहाए दारहरणं दारहस्तं भवतीति मक्वायं ते गं दारा पंच जोवणसवाई उड् उच्चलेणं अढाइलाई जोवनसया विश्वंभे तावद्वयं चैव पवेसेणं सेवा वरकगगबूभियागा हामिय-उस-तुरंग-पर-मगर- विहग वालगकिनर दर सरभ- चमर-कुंजर-लय-मलय अतिचिता बंभुगाय-वर-बयर बेइया-परिगवाभिरामा विन्नाह-जमल-जुलता विव अच्चीसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिन्भिसमाणा चक्बुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा । वन्नो दाराणं लेसि होइ जहा- बद्दरामया गिम्मा रिट्ठामया पट्टाणा वेदलियनया खंभा जायख्योवचियपवरपंचवप्रमणिरयणकोट्टिमतला हंसगन्भमया एलुया गोमेज्जमया इंदकीला लोहियक्खमईओ चेडाओ जोईरसमया उत्तरंगा लोहियक्खमईओ सूईओ वयरामया संधी नाणामणिमया समुग्गया वयरामया अग्गला अग्गलपासाया रययामयाओ आवत्तणपेढियाओ अंकुत्तरपासगा निरंतरियघणकवाडा भित्ती चैव भित्तिगुलिया छप्पन्ना तिष्णि होंति गोमाणसिया तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलोलट्ठियसालभंजियागा वयरामया कूडा रवपामया उस्सेहा सतवज्जिया उल्लोया णाणामणिरवणजातपंजरमणिवंसगलोक्यपडियंसगरयवभोमा अंकामया पक्खा पाहाओ जोईरसमया वंसा वंसकवेयाओ रामईओ पट्टियाओ जापश्यमईओ ओहाणीओ वदरामईओ उपरिणीओ सव्वसेयरययामए छायणे अंकमयकणगकूडतवणिज्जयूभियागा सेया संखतलविमलनिम्मलदहिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासा तिलगरयणचंदचिता नाणामणिदामालंकिया तो वह च सहा तबभिजवायापत्थडा मुहफासा सरिसरीवरुवा पासाईया परिणिना अभिरुवा पडिरूवा ॥
तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस सोलस चंदणकलसपरिवाडोओ पन्नत्ताओ । ते णं चंदणकलसा वरकमलपट्टाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिहाणा सव्वरयणामया अच्छा-जाव- पडिरूवा महया महया इंदकुंभसमाणा पन्नत्ता समणाउसो ||
ध० क० ३३
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस णागदन्तपरिवाडीओ पन्नत्ताओ । ते णं णागदंता मुत्ताजालंतरुसियहेमजालगवक्खजालखिखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता अब्भुग्गया अभिणिसिट्ठा तिरियसुसंपरिग्गहिया अहेपन्नगद्धरूवा पन्नगद्धसंठाणसंठिया सव्ववयरामया अच्छा-जाव-पडिरूवा महया महया गयबंतसमाणा पन्नत्ता समणाउसो ॥ तेसु णं णागदंतएसु बहवे किण्हसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा णील. लोहिय हालिद्द० सुक्किल्लसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा। ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवन्नपयरगमंडिया नाणाविहमणिरयणविविहहारउवसोभियसमुदया-जाव-सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति। तेसि णं णागदंताणं उरि अन्नाओ सोलस सोलस नागदंतपरिवाडीओ पन्नत्ता ते णं णागदंता तं चेव-जाव-गयदंतसमाणा पन्नत्ता समणाउसो ॥ तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पन्नत्ता, तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पन्नत्ताओ। ताओ णं धूवघडीओ कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं घाणमणणिव्वुइकरेणं गंधेणं ते पएसे सव्वओ समंता आपूरेमाणा आपूरेमाणा-जाव-चिट्ठति। तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस सालभंजियापरिवाडीओ पन्नत्ताओ, ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ णाणाविहरागवसणाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगिज्झसुमज्झाओ आमेलगजमलजुयलव ट्टियअब्भुन्नयपीणरइयसंठियपीवरपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसयपसत्थलक्खणसंवेल्लियग्गसिरयाओ ईसि असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थरगाहयग्गसालाओ ईसि अद्धच्छिकडक्खचिट्ठिएणं लूसमाणीओ विव चक्खुल्लोयणलेसेहि य अन्नमन्नं खिज्जमाणीओ विव पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चन्दाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ विज्जुघणमिरियसूरदिप्पंततेयअहिययरसन्निगासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासाइयाओ-जाव-चिट्ठति। तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस जालकडगपरिवाडीओ पन्नत्ताओ। ते णं जालकडगगा सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस सोलस घंटापरिवाडीओ पन्नताओ। तासि णं घंटाणं इमेयारूवे वन्नावासे पन्नत्ते, तंजहा-जंबूणयामईओ घंटाओ वयरामयाओ लालाओ गाणामणिमया घंटापासा तवणिज्जमइयाओ संखलाओ रययामयाओ रज्जूओ। ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कुंचस्सराओ सोहस्सराओ दुंदुहिस्सराओ गंदिस्सराओ गंदिघोसाओ मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरघोसाओ उरालेणं मणुन्नेणं मणहरेणं कन्नमणनिब्युइकरेणं सद्देणं ते पएसे सव्वओ समंता आपूरेमाणाओ आपूरेमाणाओ-जाव-चिट्ठति । तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस वणमालापरिवाडीओ पन्नत्ताओ। ताओ पं वणमालाओ णाणामणिमयदुमलयकिसलयपल्लवसमाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाणसोहंतसस्सिरीयाओ पासाईयाओ। तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस सोलस पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पणवीसं जोयणसयं बाहल्लेणं सव्ववयरामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उरि पत्तेयं पत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता, ते णं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं अन्भुग्गयमूसियपहसिया विव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउद्दयविजयवेजयंतपडागच्छत्ताइच्छत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा जालंतररयणपंजरुम्मिलिय व्व मणिकणगथूभियागा वियसियसयवत्तपोंडरीयतिलगरयणद्धचंदचित्ता णाणामणिदामालंकिया अंतो बहिं च सहा तवणिज्जवालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीयस्वा पासाईया दरिसणिज्जा-जाव-दामा। तेसि णं दाराणं उभओ पासे सोलस सोलस तोरणा पन्नता, णाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविट्ठसन्निविट्ठा-जाव-पउमहत्थगा। तेसि णं तोरणाणं पत्तेयं पुरओ दो दो सालभंजियाओ पन्नत्ताओ, जहा हेट्ठा तहेव । तेसि णं तोरणाणं पुरओ नागदंता पन्नत्ता जहा हेट्ठा -जाव-दामा। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नरसंघाड़ा पुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा, एवं पंतीओ वीही मिहुणाई ।तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पउमलयाओ-जाव-सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ सत्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो दिसासोवत्थिया पन्नत्ता सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो चंदणकलसा पन्नत्ता। ते णं चंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा तहेव । तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो भिगारा पण्णत्ता, ते णं भिगारा वरकमलपइट्ठाणा-जाव-महया मत्तगयमुहागिइसमाणा पन्नत्ता। समणाउसो!। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो आयंसा पन्नत्ता तेसि णं आयंसाणं इमेयारूवे वन्नावासे पन्नते, तंजहातवणिज्जमया पगंठगा अंकमया मंडला अणुग्धसियनिम्मलाए छायाए समणुबद्धा चंदमंडलपडिणिकासा मया महया अद्धकायसमाणा पन्नत्ता समणाउसो! तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो वइरनाभथाला पन्नत्ता अच्छतिच्छडियसालितंदुलणहसंदिट्टपडिपुन्ना इव चिट्ठति सव्व
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
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जंबूणयमया-जाव-पडिरूबा महया महया रहचक्कवालसमाणा पन्नत्ता समणाउसो ! । तेसिं थे तोरणाणं पुरओ दो दो पाईओ पन्नताओ। ताओ णं पाईओ सच्छोदगपरिहत्थाओ गाणाविहस्स फलहरियगस्स बहुपडिपुन्नाओ विव चिट्ठति सव्वरयणामईओ अच्छाओ -जाव-पडिरूवाओ महया महया गोकलिंजरचक्कसमाणीओ पन्नत्ताओ समणाउसो ! । तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सुपइट्ठा पन्नत्ता णाणाविहभंडविरइया इव चिट्ठति सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो मणोगुलियाओ पन्नताओ। तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवन्नरुप्पमया फलगा पन्नत्ता । तेसु णं सुवन्नरुप्पमएसु फलगेसु बहवे वयरामया नागदंतया पन्नत्ता। तेसु णं बयरामएसु णागदंतएसु बहवे वयरामया सिक्कगा पन्नत्ता। तेसु णं वयरामएसु सिक्कगेसु किण्हसुत्तसिक्कगवच्छिया णीलसुत्तसिक्कगबच्छिया लोहियसुत्तसिक्कगवच्छिया हालिहसुत्तसिक्कगवच्छिया सुक्किल्ल-सुत्तसिक्कगवच्छिया बहवे वायकरगा पन्नत्ता सव्ववेरुलियमया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो चित्ता रयणकरंडगा पन्नत्ता, से जहा णामए रनो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणिफलिहपडलपच्चोयडे साए पहाए ते पएसे सव्वओ समंता ओभासइ उज्जोवेइ तवइ पभासइ एवामेव ते वि चित्ता रयणकरंडगा साए पभाए ते पएसे सम्बओ समंता ओभासंति उज्जोति तवंति पभासंति । तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठा गयकंठा नरकंठा किन्नरकंठा किंपुरिसकंठा महोरगकंठा गंधव्वकंठा उसभकंठा सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पुष्फचंगेरीओ मल्लचंगेरीओ चुन्नचंगेरीओ गंधचंगेरीओ वत्थचंगेरीओ आभरणचंगेरीओ सिद्धत्थचंगेरीओ पन्नत्ताओ, सव्वरयणामयाओ अच्छाओ-जाव-पडिरूवाओ । तासु णं पुष्फचंगेरियासु-जाव-सिद्धत्थचंगेरीसु दो दो पुष्फपडलगाई-जाव-सिद्धत्थपडलगाई सव्वरयणामयाई अच्छाई-जाव-पडिरूवाई । तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सोहासणा पण्णत्ता। तेसि णं सीहासणाणं वण्णओ-जाव-दामा। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो रुप्पमया छत्ता पन्नत्ता । ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा जंबूणयकन्निया वइरसंधी मुत्ताजालपरिगया अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा बद्दरमलयसुगंधिसव्वोउयसुरभिसीयलच्छाया मंगलभत्तिचित्ता चंदागारोवमा। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चामराओ पन्नत्ताओ। ताओ णं चामराओ चंदप्पभवेरुलियवयरनानामणिरयणखचियचित्तदण्डाओ सुहुमरययदोहवालाओ संखंककुंददगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगासाओ सव्वरयणामयाओ अच्छाओ-जाव-पडिरुवाओ। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो तेल्लसमुग्गा कोटुसमुग्गा पत्तसमुग्गा चोयगसमुग्गा तगरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलयसमुग्गा मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सम्वरणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा ॥ सूरियाभे णं विमाणे एगमेगे दारे अट्ठसयं चक्कज्झयाणं अट्ठसय मिगज्झयाणं गरूडझयाणं छत्तज्झयाणं पिच्छज्झयाणं सउणिज्झयाणं सोहज्झयाणं उसभज्झयाणं अट्ठसयं सेयाणं चउविसाणाणं नागवरकेऊणं एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे एगमेगे दारे असीयं असीयं केउसहस्सं भवतीति मक्खायं । तेसिं णं दाराणं एगमेगे दारे पट्ठि पट्टि भोमा पन्नत्ता। तेसि णं भोमाणं भूमिभागा उल्लोया य भाणियव्वा । तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं पत्तेयं सोहासणे, सीहासणवन्नओ सपरिवारो, अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं पत्तेयं भद्दासणा पन्नत्ता। तेसि णं दाराणं उत्तमागारा सोलसविहेहि रयणेहिं उवसोहिया, तंजहा-रयहि-जाव-रिहि । तेसि णं दाराणं उष्पि अट्ठट्ठ मंगलगा सज्झया-जाव-छत्ताइछत्ता एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे चत्तारि दारसहस्सा भवंतीति मक्खायं। सूरियाभस्स विमाणस्स चउद्दिसि पंच जोयणसयाई अबाहाए चत्तारि वणसंडा पन्नत्ता, तंजहा-असोगवणे, सत्तिवनवणे, चंपगवणे, चूयगवणे पुरथिमेणं असोगवणे दाहिणेणं सत्तिवन्नवणे पच्चत्थिमेणं चंपगवणे उत्तरेणं चूयगवणे। ते णं वणखंडा साइरेगाई अद्धतेरसजोयणसयसहस्साई आयामेणं पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं पत्तेयं पत्तेयं पागारपरिखित्ता किण्हा किण्होभासा नीला नीलोभासा हरिया हरिओ० सीया सीओ० निद्धा निद्धो० तिव्वा तिव्वो० किण्हा किण्हच्छाया नीला नी० हरिया ह. सीया सी० निद्धा नि० घणकडितडियच्छाया रम्मा महामेहनिउरंबभूया । ते णं पायवा मूलमंतो वन्नओ॥ तेसिं णं वणसंडाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता से जहा नामए आलिंगपुक्खरे इ वा-जाव-णाणाविहपंचवर्णोहिं मणीहि य तणेहि य उवसोहिया, तेसि णं गंधो फासो यब्वो जहक्कम । तेसि णं भंते ! तणाण य मणीण य पुव्वावरदाहिणुत्तरागएहि वाहि मंदायं मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं चालियाणं फंदियाणं घट्टियाणं खोभियाणं उदीरियाणं केरिसए सद्दे भवइ ? गोयमा ! से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंटस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवयचित्ततिणिसकणगणिज्जुत्तदारुयायस्स सुसंपिणद्धचक्कमंडलधुरागस्स कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स आइण्णबरतुरगसुसंपउत्तस्स कुसलणरच्छेयसारहिसुसंपरिग्गहियस्स सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियस्स सकंकडावयंसगस्स सचावसरपहरणआवरणभरियजोहजुज्झसज्जस्स रायंगणंसि वा रायंतेउरंसि वा रम्मंसि वा मणिकुट्टिमतलंसि अभिक्खणं अभिक्खणं अभिघट्टिज्जमाणस्स वा नियट्टिज्जमाणस्स वा ओराला मणुण्णा मणोहरा कण्णमणनिव्वुइकरा सद्दा सव्वओ समंता अभिणिस्सवंति, भवेयारूवेसिया ? णो इणठे समढे । से जहा णामए वेयालियवीणाए उत्तरमंदामुच्छियाए अंके सुपइट्ठियाए कुसलनरनारिसुसंपरिग्गहियाए चंदणसारनिम्मियकोणपरिघट्टियाए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंमि मंदायं मंदायं वेइयाए पवेइयाए चालियाए घट्टियाए खोभियाए उदीरियाए
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो ओराला मणुण्णा मणहरा कण्णमणनिब्बुइकरा सद्दा सव्वओ समंता अभिनिस्सवंति, भवेयारूबे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठ । से जहा नाम किन्नराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भद्दसालवणगयाण वा नंदणवणगयाण वा सोमणसवणगाण वा पंडगवणगयाणं वा हिमवंतमलयमंदरगिरिगुहासमन्नागयाण वा एगओ सन्निहियाणं समागयाणं सन्निसन्नाणं समुवविद्वाणं पमुइयपक्कीलियाणं गीयरधध्वहसियमणाणं गज्जं पर कर गये पवई पाववद्धं उक्तं पातं मंदा रोइयावसाणं सतसरसमन्नागयं छद्दोसविप्पमुक्कं एक्कारसालंकारं अट्ठगुणोववेयं, गुंजाज्वंककुहरोवगूढं रत्तं तिट्टाणकरणसुद्धं पगीयाणं भवेयारूवे ? हंता सिया ।।
सिणं वगडाणं तत् सत्य देसे देसे तह तह हुई छुट्टायाम वाविया पुचारिणोओ दोहियाओ गुंजालियाओं सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्णसुज्झरययवालुयाओ वेरलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ णाणामणितित्थसुबद्धाओ चउक्कोणाओ आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पलकुमुयनलिणसुभगसौगंधियपोंडरीयसयवत्तसहस्सपत्तकेसरफुल्लो
वचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुष्णाओ परिहत्थभमंतमच्छकच्छभअणेगस उणमिहुणगपविचरियाओ पत्तेयं पत्तेयं परमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिखित्ताओ अप्पेगइयाओ आसवोयगाओ अप्पेगइयाओ वारुणोयगाओ अप्पे गइयाओ खीरोयगाओ अप्पेगइयाओ घओयगाओ अप्पेगइयाओ खोदोयगाओ अप्पेगइयाओ पगईए उयगरसेणं पण्णत्ताओ पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ ।
तासि णं वावीणं- जाव- बिलपंतीणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिस चत्तारि तिसोआणपडिरूवगा पण्णत्ता, तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते तंजहा -- वइरामया नेमा०, तोरणाणं झया छत्ताइछत्ता य णेयव्वा । तासि णं खुड्डाखुड्डियाणं वावीणं - जाव - बिलपतियाणं तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहदे उप्पाधपव्वयगा नियइपव्वयगा जगईपव्वयगा दारुइज्जपव्वयगा दगमंडवा दगमंचगा दगमालगा दगपासायगा उसड्डा खुडखुडुगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणामया अच्छा-जाव- पडिरूवा ।
तेगु णं उप्पावपव्य-जाव-चंदोलाए यहई हंसासगाई कोचासणाई गलाताई उम्नवासणाई पणयासमाई दोहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाई उसभासणाई सीहासणाई पउमासणाई दिसासोवत्थियाइं सव्वरयणामयाई अच्छाई-जाव- पडिवाई ।
तेसु णं वणसंडेसु तत्थ तत्थ देसे देसे तहि तहि बहवे आलियघरगा मालियघरगा कयलिघरगा लयाघरगा अच्छणघरगा पिच्छणघरगा मज्जणघरगा पसाहणघरगा गन्भघरगा मोहणघरगा सालघरगा जालघरगा कुसुमघरगा चित्तघरगा गंधव्वघरगा आयंसघरगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।
ते गं आलियघरगेसु जाव-आयंसघर सहि तहि परए वह हंसासनाई जाव- दिसासोत्थि आसणारं सव्वरयणामबाई-जावपरिवाई।
तेसु णं वणसंडेसु तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहि बहवे जाइमंडवगा जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा णवमालियामंडवगा वासंतिमंडवगा दहियापमंडवगा सूरिलियमंडवगा तंबोलिमंडगा मुद्दियामंडवगा नागलवामंडवगा अइमुपलवामंडवना अन्फोपामंडवगा मालयामंडवगा अच्छा सव्वरयणामया- जाव- पडिरूवा ।
तेसु णं जाइमण्डवसु-जाव - मालुयामंडवसु बहवे पुढविसिलापट्टगा हंसासणसंठिया - जाव - दिसासोवत्थियासणसंठिया अण्णे य बहवे - वरसयणासणविसिद्ध ठाणसंठिया पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता समणाउसो ! आईणगरुययूरणवणीतुलफासा सत्वरयामया अच्छा-जाव पहिल्या सत्य णं बहवे बेमाणिया देवा य देवीओ य आसयति सर्पति विट्ठेति निसीपति तुयति रमेति ललति कौलति किति मोति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाण सुपरिक्कंताण सुभाण कडाण कम्माण कल्लाणाण कल्लाणं फलविवागं पच्चणुभवमाणा विहरति ॥ तेसि णं वणडाणं महमज्यसभाए पत्ते पत्तेय पासायचा पण्णत्ता । ते गं पासायचडेसना पंच जोपणसवाई उई उच्चत्तर्ण अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिया इव तहेव बहुसमरमणिज्जभूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं । तत्व णं चत्तारि देवा महिडिया जाय-पतिओमडिया परिवर्तति संहा- असोए सत्तपणे बंपर पूए ।
सूरियाभस्स णं देवविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, तंजहा- वणसंडविहूणे- -जाव-बहवे बेमाणिया देवा य देवीओ य आसयति जाय-विहरति तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसे एत्य णं महेंगे उवगारियालवणे पत्ते एवं जोयणस्यसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिणि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसं जोयणसए तिमि य कोसे अट्ठावीसं च धणुस तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च किचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे-जाव-परूि ||
से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिखित्ते । सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धणुसवाई विश्वंभेणं उपपारिपलेगतमा परिषद्यवेगं तीसे णं पउमवरवेश्याए इमेपादये वण्णावासे पम्पले जहा-वयरामया०
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
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सुवण्णरुप्पमया फलया नाणामणिमया कलेवरा णाणामणिमया कलेवर-संघाडगा णाणामणिमया रूवा णाणामणिमया रूवसंघाडगा अंकामया० उवरिपुञ्छणी सव्वरयणामए अच्छायणे। सा णं पउमवरवेइया एगमेगणं हेमजालेणं, एगमेगेणं गवक्खजालेणं, ए. खिखिणीजालेणं, ए. घंटाजालेणं, ए० मुत्ताजालेणं, ए० मणिजालेणं, ए० कणगजालेणं, ए० रयणजालेणं, ए. पउमजालेणं, सव्वओ समंता संपरिखित्ता। ते णं जाला तवणिज्जलंबूसगा-जाव-चिट्ठति। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे देसे तहि तहिं बहवे हयसंघाडा-जाव-उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा पासाईया-जाव-वीहीओ पंतोओ मिहुणाणि लयाओ। से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया पउमवरवेइया? गोयमा ! पउमवरवेइयाए णं तत्थ तत्थ देसे देसे तहि तहिं वेइयासु वेइयाबाहासु य वेइयाफलएसु य वेइयापुडतरेसु य, खंभेसु खंभबाहासु खंभसीसेसु खंभपुडतरेसु, सूईसु सूईमुहेसु सूईफलएसु सूईपुडंतरेसु, पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडंतरेसु बहुयाइं उप्पलाई पउमाइं कुमुयाई गलिणाई सुभगाई सोगंधियाइं पुंडरीयाई महापुंडरीयाई सयवत्ताइं सहस्सवत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाइं० पडिरूवाई महया वासिक्कछत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो ! से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया पउमबरवेइया । पउमवरवेइया णं भंते ! कि सासया असासया ? गोयमा! सिय सासया सिय असासया। से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सिय सासया सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, वन्नपज्जहिं गंधपज्जर्वेहि रसपज्जहिं फासपज्जहिं असासया, से एएणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सिय सासया सिय असासया । पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि न भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य, धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवरवेइया । सा णं पउमवरबेइया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खिता । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं उवयारियालेणसमे परिक्खेबेणं वणसंडवण्णओ भाणियब्बो-जाव-विहरति । तस्स णं उवयारियालेणस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ, तोरणा झया छत्ताइच्छ्त्ता । तस्स णं उवयारियालयणस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते-जाव-मणीणं फासो॥ तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगे मूलपासायव.सए पण्णत्ते । से णं मूलपासायडिसए पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं अन्भुग्गयमूसिय० वण्णओ, भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं, अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता। से गं मूलपासायवडेंसगे अणेहि चहिं पासायवडेंसएहि तयद्धच्चत्तप्पमाणमेहि सव्वओ समंता संपरिखित्ते। ते णं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं-जाव-वण्णओ। ते णं पासायडिसया अण्णेहि चहिं पासायडिसएहि तयद्धच्चत्तप्पमाणमेहि सव्वओ समंता संपरिखित्ता। ते णं पासायवडेंसया पणवीसं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, बाढि जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय० वण्णओ, भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं भाणियब्वं, अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता । ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहि चहिं पासायवडेंसएहि तयद्धच्चत्तपमाणमेहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसगा बासट्टि जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, वण्णओ, उल्लोओ सोहासणं सपरिवार पासाय० उरि अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता॥ तस्स गंमूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं सभा सुहम्मा पण्णत्ता, एग जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खम्भेणं, बावरि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं अणेगखम्भ-जाव-अच्छरगण० पासाईया। सभाए णं सुहम्माए तिदिसि तओ दारा पण्णता, तंजहा-पुरथिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तणं, अट्ट जोयणाई विक्खम्भेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगभियागा जाव वणमालाओ, तेसि णं दाराणं उरि अटूट मङ्गलगा झया छत्ताइछत्ता) तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मुहभण्डवे पण्णत्ते । ते णं मुहमण्डवा एग जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, वण्णओ, सभाए सरिसो, [तेसि णं मुहमण्डवाणं तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता, तंजहा-पुरथिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं, ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथूभियागा जाव वणमालाओ। तेसि णं मुहमंडवाणं भूमिभागा उल्लोया, तेसि णं मुहमंडवाणं उरि अट्ठ मङ्गलगा झया छत्ताइच्छत्ता।] तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते, मुहमंडववत्तव्वया-जाव-दारा भूमिभागा उल्लोया।
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं वइरामए अक्खाडए पण्णत्ते । तेसि णं वयरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ-जाव-पडिरूवाओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ सपरिवारो, तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उरि अटुट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता। तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णताओ। ताओ णं मणिपेडियाओ अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं पत्तेयं महिंदज्झया पण्णत्ता । ते णं महिंदज्झया सट्टि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामय • सिहरा पासादीया ४ । तेसिं गं महिंदज्झयाणं उरि अटुट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता। तेसि णं महिंदज्झयाण पुरओ पत्तेयं पत्तेयं नंदा पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छाओ-जाव-वण्णओ, एगइयाओ उदगरसेणं पण्णताओ, पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइयापरिखित्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खिताओ। तासि णं णंदाणं पुक्खरिणीणं तिदिसि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, तिसोवाणपडिरूवगाणं वण्णओ, तोरणा झया छत्ताइछत्ता। सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं मणोगुलिया-साहस्सीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-पुरथिमेणं सोलससाहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, दाहिणेणं अट्ठसाहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठसाहस्सीओ। तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवन्नरुप्पमएसु फलगेसु बहवे वइरामया गागदंता पण्णता । तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु किण्हसुत्तवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा चिट्ठति । सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं गोमाणसियासाहस्सीओ पन्नत्ताओ, जहा मणोगुलिया-जाव-णागदंतगा। तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कगेसु बहवे वेरुलियामइयाओ धूवघडियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं धूवघडियाओ कालागुरुपवर-जाव-चिट्ठति। सभाए णं सुहम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते-जाव-मणीहि उवसोभिए, मणिफासो य उल्लोओ य। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमझदेसभाए एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा-जाव-पडिरूवा। तीसे णं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं महेगे सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ सपरिवारो। तीसे णं विदिसाए एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, अदु जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे गं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं महंगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते । तस्स णं देवसणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा-णाणामणिमया पडिपाया सोवन्निया पाया जाणामणिमयाइं पायसीसगाई जंबूणयामयाइं गत्तगाई वइरामया संधी णाणामणिमए विच्चे रययामई तूली लोहियक्खमया विब्बोयणा तवणिज्जमया गंडोवहाणया। से णं सयणिज्जे सालिंगणवट्टिए उभओ बिब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्झे णयगंभीरे गंगापुलिणवालुयाउद्दालसालिसए सुविरइयरयत्ताणे उवचियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे आईणगरूयबूरणवणीय-तूलफासमउए रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे पासादीए० पडिरूव ॥ तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरत्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पण्णता, अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई-जाव-पडिरूवा, तीसे गं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं महेगे खुड्डए महिंदज्झए पण्णत्ते, सढि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जोयणं विक्खंभेणं, वइरामए वट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठ-जाव-पडिरूवे, उरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता । तस्स णं खुड्डागमहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चोप्पाले नाम पहरणकोसे पन्नत्ते सव्ववइरामए अच्छे-जावपडिरूवे। तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स फलिहरयणखग्गगयाधणुप्पमुह। बहवे पहरणरयणा संनिखित्ता चिट्ठति, उज्जला निसिया सुतिक्खधारा पासादीया० सभाए णं सुहम्माए उर्वरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता॥ सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं महेगा उववायसभा पण्णत्ता० जहा सभाए सुहम्माए तहेव-जाव-मणिपेढिया, अट्ठ जोयणाई० देवसयणिज्ज, तहेव सयणिज्जवण्णओ, अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२६३ तोसे णं उववायसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं महंगे हरए पण्णत्ते, एग जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, तहेव। से गं हरए एगाए पउमवरवेइयाए एगेण वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। तस्स णं हरयस्स तिदिसं तिसोवाणपडिरूवगा पन्नत्ता। तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं महेगा अभिसेगसभा पण्णत्ता, सुहम्मागमएणं-जाव-गोमाणसियाओ मणिपेढिया सीहासणं सपरिवार-जाव-दामा चिट्ठति । तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अभिसेयभंडे संनिखित्ते चिट्ठइ, अट्ठट्ठ मंगलगा तहेव । तीसे णं अभिसेगसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं अलंकारियसभा पण्णता, जहा सभा सुहम्मा, मणिपेढिया अट्ट जोयणाई सीहासणं सपरिवारं। तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अलंकारियभंडे संनिखित्ते चिट्ठइ, सेसं तहेव । तीसे गं अलंकारियसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्य णं महेगा ववसायसभा पण्णत्ता, जहा उववायसभा-जाव-सीहासणं सपरिवारं मणिपेढिया अट्ठ मंगलगा० । तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स एत्य महेगे पोत्थयरयणे सन्निक्खित्ते चिट्ठइ। तस्स गं पोत्थयरयणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहारिद्वामईओ कंबियाओ तवणिज्जमए दोरे नाणामणिमए गंठी रयणामयाइं पत्तगाई वेरुलियमए लिप्पासणे रिट्ठामए छादणे तवणिज्जमई संकला रिट्ठामई मसी वइरामई लेहणी रिट्ठामयाइं अक्खराइं धम्मिए लेखे । ववसायसभाए णं उरि अटुट्ठ मंगलगा, तीसे णं ववसायसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं नंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता हरयसरिसा ।
सरियाभदेवस्स वित्थरओ अभिसेयवण्णणाइ २७ तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरिया देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तीभावं गच्छइ, तंजहा-आहार
पज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भासामणपज्जत्तीए। तए णं से सूरिया देवे सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्ठत्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ। जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसो वाणपडिरूवएणं पच्चोरुइइ, पच्चोरुहिता जलावगाहं जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिडं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुईभूए हरयाओ पच्चोत्तरइ, पच्चोरहित्ता जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता अभिसेय-सभं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सोहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने। तए णं सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा आभिओगिए देवे सद्दावेति, सद्दावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणु प्पिया! सूरियाभस्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उबट्ठवेह। तए णं ते आभिओगिया देवा सामाणियपरिसोववहि देहि एवं वुत्ता समाणा हटु-जाव-हियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट ‘एवं देवो! तह त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमंति, उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई-जाव-दोच्चं पि वेउब्बियसमुग्घाएणं समोहणित्ता अटुसहस्सं सोवनियाणं कलसाणं, अटुसहस्सं रुप्पमयाणं कलसाणं, अटुसहस्सं मणिमयाणं कलसाणं, अट्टसहस्सं सुवण्णरुप्पमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं सुवन्नमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अटुसहस्सं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं भोमिज्जाणं कलसाणं, एवं भिगाराणं आयंसाणं थालाणं पाईणं सुपइट्ठाणं वायकरगाणं रयणकरंडगाणं सीहासणाणं छत्ताणं चामराणं तेल्लसमुग्गाणं-जाव-अंजणसमुग्गाणं, प्रयाणं विउव्वंति, बिउब्वित्ता ते साभाविए य वेउविए य कलसे य-जाव-झए य गिण्हंति, गिण्हित्ता सूरियाभाओ विमाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए चवलाए -जाव-तिरियमसंखेज्जाणं-जाव-बीइवयमाणा बीइवयमाणा जेणेब खीरोदयसमुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खीरोयगं गिण्हंति, गिण्हित्ता जाई तत्युप्पलाइं-जाव-सयसहस्सपत्ताई ताइं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुक्खरोदए समुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरोदयं गेण्हंति गिण्हित्ता जाई तत्थुप्पलाइं-जाव-सयसहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव समयखेत्ते जेणेव भरहेरवयाई बासाई जेणेव मागहवरदामपभासाइं तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेहंति, गेण्हेत्ता तित्थमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव गंगासिंधुरतारत्तवईओ महानईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेहंति सलिलोदगं गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेण्हंति, मट्टियं गेण्हित्ता जेणेव चुल्लहिमवंतसिहरीवासहरपव्वया तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता दगं गेहंति० सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पउमपुंडरीयबहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाइं-जाव-सयसहस्सपत्ताई ताई गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव हेमवयएरवयाई वासाई जेणेव रोहियरोहियंसासुवण्णकूलरुप्पकूलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं
रुपमा सुवण्णरुप्पमयाणं कलसहस्सं सोवन्नियाणं कमाएणं समोहणंति,
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२६४
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
गेण्हंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गिव्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सद्दावइवियडावइपरियागा वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेब उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे तहेव जेणेव महाहिमवंतरुप्पिवासहरपव्वया तेणेव उवागच्छन्ति, तहेव जेणेव महापउममहापुंडरीयद्दहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गिण्हन्ति, तहेव जेणेव हरिवासरम्मगवासाई जेणेव हरिकंतनारिकताओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति० तहेव, जेणेव गंधावइमालवंतपरियाया वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव० तहेव, जेणेव णिसढणीलवंतवासधरपव्वया० तहेव, जेणेव तिगिच्छिकेसरिद्दहाओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तहेव जेणेव महाविदेहे वासे जेणेव सीयासीओयाओ महाणईओ तेणेव० तहेव, जेणेव सव्वचक्कबट्टिविजया जेणेव सब्वमागहवरदामपभासाई तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता सव्वंतरणईओ जेणेव सव्ववक्खारपध्वया तेणेव उवागच्छंति० सव्वतूयरे तहेव, जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव भद्दसालवणे तेणेव उवागच्छंति० सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेष्हंति, गेण्हित्ता जेणेव णंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे-जाव-सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसगोसीसचंदणं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति० सब्बतूयरे-जाव-सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसगोसीसचंदणं च दिव्वं च सुमणदामं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सम्बतूयरे-जाव-सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधियगन्धे गिण्हन्ति, गिण्हित्ता एगओ मिलायंति, मिलाइत्ता ताए उक्किट्ठाए-जाव-जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव अभिसेयसभा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धाविति, बद्धावित्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उवट्ठति। तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसोओ सपरिवाराओ, तिन्नि परिसाओ, सत्त अणियाहिवइणो -जाव-अन्ने वि बहवे सूरियाभविमाणवासिणो देवा य देवीओ य तेहिं साभाविएहि य वेउविएहि य वरकमलपइट्ठाणेहि य सुरभिवरवारिपडिपुन्नेहि चंदणकयचच्चिएहिं आविद्धकंठेगुणेहि पउमुप्पलपिहाणेहिं सुकुमालकोमलकरयलपरिग्गहिएहि अट्ठसहस्सेणं सोवनियाणं कलसाणं-जाव-अटुसहस्सेणं भोमिज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहि सव्वमट्टियाहि सव्वतूयरेहि-जाव-सव्वोसहिसिद्धत्थएहि य सव्विड्ढीए-जाव-वाइएणं महया महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स महया महया इंदाभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं नच्चोययं नाइमट्टियं पविरलफुसियरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगन्धोदगं वासं वासंति, अप्पेगइया देवा हयरयं नटूरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं आसियसंमज्जिओवलित्तं सुइसंमट्ठरत्यंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं णाणाबिहरागोसियं झयपडागाइपडागमंडियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं पंचवण्णसुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, सुवण्णवास वासंति, रययवासं वासंति, वइरवासं०, पुप्फवासं०, फलवासं०, मल्लवासं०, गंधवासं०, चुण्णवासं०, आभरणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं सुवन्नविहिं भाएंति, रयणविहि०, पुप्फविहि०, फलविहि०, मल्लविहि०, चण्णविहिं०, वत्थविहि०, गंधविहि०, तत्थ अप्पेगइया देवा आभरणविहिं भाएंति, अप्पेगइया चउन्विहं बाइत्तं वाइंति तं जहा-ततं विततं घणं झुसिरं, अप्पेगइया देवा चउम्विहं गेयं गायंति, तं जहा-उक्खित्तायं पायत्तायं मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगइया देवा दुयं नट्टविहि उवसिति अप्पेगइया विलंबियं पट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा दुयविलंबियं णट्टविहि उवदंसेंति, एवं अप्पेगइया अंचियं नट्टविहि उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा आरभडं भसोलं आरभडभसोलं उप्पायनिवायपवत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतणामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंति, अप्पेगइया देवा चउन्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा-दिह्रतियं पाडंतियं सामंतोवणिवाइयं लोगअंतोमज्झावसाणिय, अप्पेगइया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगइया देवा पोणेति, अप्पेगइया० लासेंति, अप्पेगइया० हक्कारेंति, अप्पेगइया० विणंति, तंडवेंति, अप्पेगइया वग्गंति अप्फोडेंति, अप्पेगइया० अप्फोडेंति वग्गंति, अप्पे० तिवई छिदंति, अप्पेगइया० हयहेसियं करेंति, अप्पेगइया० हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगइया० रहघण-घणाइयं करेंति, अप्पेगइया०, हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयरहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगइया० उच्छलेति, अप्पेगइया० पोच्छलेंति, अप्पेगइया० उक्किट्टियं करेंति, अ० उच्छलैंति पोच्छलेंति, अप्पेगइया० तिन्नि वि, अप्पेगइया० ओवयंति, अप्पेगइया० उप्पयंति, अप्पेगइया० परिवयंति, अप्पेगइया० तिन्नि वि, अप्पेगइया० सोहनायंति, अप्पेगइया० दद्दरयं करेंति, अप्पेगइया० भूमिचवेडं दलयंति, अप्पे० तिन्नि वि, अप्पेगइया० गज्जंति, अप्पेगइया. विज्जुयायंति, अप्पेगइया. वासं वासंति, अप्पेगइया० तिन्नि वि करेंति, अप्पेगइया० जलंति, अप्पेगइया० तवंति, अप्पेगइया० पतति, अप्पेगइया० तिन्नि वि, अप्पेगइया० हक्कारेंति, अप्पेगइया० थुक्कारेंति, अप्पेगइया० धक्कारेंति, अप्पेगइया० साइं साइं नामाई साहेति, अप्पेगइया० चत्तारि वि, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं करेंति, अप्पेगइया० देवुज्जोयं करेंति,
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
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अप्पेगइया० देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया० देवा कहकहगं करेंति, अप्पेगइया देवा दुहदुहगं करेंति, अप्पेगइया० चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया० देवसन्निवायं देवुज्जोयं देवुक्कलियं देवकहकहगं देवदुहदुहगं चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया० उप्पलहत्थगया-जाव-सयसहस्सपत्तहत्थगया, अप्पेगइया० कलसहत्थगया-जाव-झयहत्थगया हट्टतुट्ठ-जाव-हियया सव्वओ समंता आहावंति परिधावंति। तए णं तं सुरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ-जाव-सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे सूरियाभरायहाणिवत्थव्वा देवा य देवीओ य महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंत्ति अभिसिंचिता पत्तेयं पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-"जय जय नंदा! जय जय भद्दा! जय जय नंदा! भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि, जियमज्झे वसाहि इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं, चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, भरहो इव मणुयाणं, बहूई पलिओवमाई बहूई सागरोवमाई बहूई पलिओवम-सागरोवमाई चउण्हं सामाणियसाहस्सोणं-जाव-आयरक्खदेवसाहस्सीणं सूरियाभस्स विमाणस्स अन्नेसिं च बहूणं सूरियाभदिमाणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं-जाव-मया महया कारेमाणे पालेमाणे विहराहि" त्ति कट्ट जय जय सई पउंजंति। तए णं से सूरियाभे देवे मह्या मया इंदाभिसेगेणं अभिसित्ते समाणे अभिसेयसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे अणुप्पयाहिणीकरेमाणे अलंकारियसभं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा अलंकारियभंडं उवट्ठति।। तए णं से सूरिया देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लूहेइ, लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिपइ, अणुलिपित्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालापेलवाइरेगं धवलं कणगखचियन्तकम्मं आगासफालियसमप्पभं दिव्वं देवदूसजुयलं नियंसेइ, नियंसेत्ता हारं पिणद्धेइ, पिणद्धत्ता अद्धहारं पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता एगावलि पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता मुत्तावलि पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता रयणावलि पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता एवं अंगयाइं केऊराई कडगाई तुडियाई कडिसुत्तगं दसमुद्दाणंतगं वच्छसुत्तगं मुरवि कंठमुरवि पालंबं कुंडलाइं चूडामणि मउडं पिणद्धेइ, पिद्धित्ता गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमेणं चउब्विहेणं मल्लेणं कप्परक्खगं पिव अप्पाणं अलंकियविभूसियं करेइ, करित्ता दद्दरमलयसुगंधगंधिहि गायाई भुखंडेइ दिव्वं च सुमणदाम पिणद्धेइ। तए णं से सूरियाभे देवे केसालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं वत्थालंकारेण चउन्विहेण अलंकारेण अलंकियविभूसिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता अलंकारियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ववसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणवरए-जाव-सन्निसन्ने। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोवबन्नगा देवा पोत्थयरयणं उवणेति ।। तए णं से सूरिया देवे पोत्थयरयणं गिण्हइ, गिहित्ता पोत्थयरयणं मुयइ, मुइत्ता पोत्थयरयणं विहाडेइ, विहाडित्ता पोत्थयरयणं वाएइ, पोत्थयरयणं वाएत्ता धम्मियं ववसायं ववसइ, ववसइत्ता पोत्थयरयणं पडिनिक्खिवइ, पडिनिक्खिवित्ता सीहासणाओ अब्भुट्ठइ, अन्भुठेत्ता ववसायसभाओ पुरत्थिमिल्लेण दारेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव नंदा पुक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंदापुक्खरिणि पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता हत्यपादं पक्खालेति, पक्खालित्ता आयंते चोक्खे परमसूइभूए एगं महं सेयं रययामयं विमलं सलिलपुण्णं मत्तगयमुहागितिकुंभसमाणं भिंगारं पगेण्हति, पगेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाइं-जाव-सतसहस्सपत्ताई ताई गेण्हति, गेण्हित्ता गंदातो पुवखरिणीतो पच्चुत्तरति, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ-जाव-सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमाणवासिणो-जावदेवीओ य, अप्पेगतिया देवा उप्पलहत्थगा-जाव-सयसहस्सपत्तहत्थगा सूरियाभं देवं पिट्ठतो पिट्ठतो समणुगच्छंति । तए णं तं सूरियाभं देवं, बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य, अप्पेगतिया कलसहत्थगा-जाव-अप्पेगतिया धूवकडुच्छयहत्थगा हट्ठतुट्ठ-जाव-सूरियाभं देवं पिट्ठतो समणुगच्छंति। तए णं से सूरिया देवे चहिं सामाणियसाहस्सीहि-जाव-अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं देवेहि य देवीहि सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए-जाव-णातियरवेणं जेणेव सिद्धायतणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिद्धायतणं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव देवच्छंदए जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जिणपडिमाणं आलोए पणामं करेति, करेत्ता लोमहत्थगं गिण्हति, गिण्हित्ता जिणपडिमाओ लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता जिणपडिमाओ सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेइ, हाणित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपइ, अणुलिपित्ता सुरभिगंधकासाइएणं गायाण्इं लहेइ, लूहिता जिणपडिमाणं अहयाई देवदूसजुयलाई नियंसेइ,
नियंसित्ता पुष्फारुहणं मल्लारुहणं गंधारुहणं चुण्णारुहणं वन्नारुहणं वत्थारुहणं आभरणारुहणं करेइ, करित्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्याध० क० ३४
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धम्मवाणुओगे चात्यो संधी कुसुमेनं मुक्कपुंजोबार
रिम्लामा करे, मलमला करेला कयग्ममहिरूरयलपविप्यमुषणं दस
कलियं करेति करिता विपरिमाणं पुरतो अन्देहि सम्हेहि रामएहि अभ्रातंहि अद्दु मंगले आहि तं जहा सोविय - जाव- दप्पणं ।
तयणंतरं च णं चंदप्पभ - वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचण-मणि रयणभत्तिचित्तं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघमघंतगं धुत्तमाणुविद्धं वधूव विगम्यं वेसियमयं कन्यं परमपि पत्ते धूवं बाऊण निणयराणं असपविच आत्यहि अहि महावित्तहिं संयुग संबुणिला सत पयाई पच्चीसक्कड़, पच्चोसविकत्ता वानं जाणुं अंबेड, अंचिता दाहिणं जाणं धरणितलंस निह तितो मुद्धा धरणितलंस निवाडे, निवाला पिष्णम, पच्नमित्ता करयपरिगहि सिरसावतं सत्यए अंजलि कट्टु एवं वयासी
"नमोजणं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्वगराणं सयंसंबुदाणं पुरिमुत्तमाणं पुरिससीहा पुरिसवरपुंडरीवाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं लोगपज्जोअगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं बोदियाणं धम्मदवाणं धम्मदेसयागं धम्मनायमाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतकवीणं अपवरनाथ-दंसणधराणं विजट्ट छमाणं जिणाणं जावयाणं तिष्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सच्वन्नृणं सव्वदरिसीणं सिमलमरमतमत्रयमवाग्राहमणरावित्ति सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं।"
वंदनसह, वंदिता नर्मसत्ता जेगेव देवच्छंदए जेमेव सिद्धायतपास बहुमज्जासभाए तेनेव उपागच्छछ, उवागडित लोमहत्व परामुख, परामसित्ता सिद्धायतनस्त बहुमज्झबेसभागं लोमहत्येगं पमज्जह, पमज्जिता दिव्याए बगधाराएं अनुभूि सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचलित मंडल आदि लिहिता कयमहिय जाब-जोवपारकलियं करे, करिता धूर्व बलव बसता जेणेव सिद्धाय हि दारे व उपागच्छद्र, उवागच्छता लोमहत्व परामुग्रह, परामुमिता दारोपसा मंजियाओ व बालवय लोमहत्वपूर्ण पमन्न, पमज्जिता दिव्वाए बगधाराए अम्भुक्छेद, अश्वित्ता, सरसेणं गोसीसमंदणं चच्चए बलयइ, दलइत्ता पुष्फारुहणं मल्ला० - जाव - आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त० - जाव-धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामुसिता बहुमादेस भागं लोमहत्येवं पम, पमज्जिता दिव्वाए दगधाराए अनुक्छे, अक्खिता सरसेणं गोसीसचंद पंचलित मंडल आदि लिहिता कपमहाहिय० जाब-धूवं दल, दत्ता व वाहिणिरस मुहमंडवस्स पत्ि मिल्ल दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए० सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारहणं जाव-आभरणारहणं करेइ, करिता आसत्तोसत्त० कयग्गहगहिय० धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिल्लमुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामसित्ता थंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएवं पमज्जइ, पमज्जित्ता जहा चेव पच्चत्थिमिल्लस्स दारस्स- जाव-धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडीओ० तं चैव सव्वं । जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिपिल्लं दारे व उपागन्छ, उपागच्छता दारचेडीओ व० तं देव सवं जेणेव दाते पेच्छापरमंडवे जेणेव दाहिगिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स महुमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्यगं परामुसद, परामुसित्ता अखाडगं च मणिपेडियं च सीहासणंच लोमहत्या पमम्जद, पमनित्ता दिव्याए बगधाराए०, सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारहणं० आसत्तोसत्त० - जाव-धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे० । उत्तरिल्ले दारे तं चैव जं चेव पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे तं चेव । जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता० थूभं मणिपेढियं च दिव्वाए दगधाराए अब्भु० सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारु० आसत्तो० - जाव-धूवं दलेइ, दलित्ता जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा० तं चैव । जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तं चैव सव्वं । जेणेव पुरत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ० तं चेव । दाहिणिल्ला मणिपेढिया दाहिणिल्ला जिणपडिमा० तं चैव । जेणेव दाहणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ० तं चेव । जेणेव महिंदज्झए जेणेव दाहिणिल्ला नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता लोमहत्यगं परामुसद्द, परामुसिता तोरणे व तिसोवाणपडिरुपए व सालभंजियाओ व बालस्वए य सोमहत्वए मजद पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अन्भु० सरसेणं गोसीसचंदणेणं० पुप्फारहणं० आसत्तोसत्त० धूवं दलयइ, दलइत्ता सिद्धाययणं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति ० तं चेव । जेणेव उत्तरिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छति ० । जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे० तहेव । जेणेव पच्चत्थिमिल्ला पेढिया० । जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा० तं चेव । उत्तरिल्ले पेच्छाघरमंडवे तेणेव उपागच्छति । जा व दाहित्तिवत्तन्वया सा चैव धन्या पुरथिमिले दारे दाहिणिल्ला संमती तं चैव सव्वं । जेणेव
।
०
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२६७
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उत्तरिल्ले मुहमंडवे जेणेव उत्तरिल्लास मुहमंडवस्त बहुमज्जनसभाए तं चैव सव्वं पच्चत्थिमिले दारे तेगेव उत्तरले दारे दाहिला भी तं देवसमेव सिद्धायतनस्स उत्तरिल्ले दारे० तं बेव जेणेव सिद्धावतनास पुरथिमिले हारे लेणेच उवागच्छतं चैव जेणेव पुरथिमिले महमंदवे जेणेव पुरथिमिलरस मुहमंडवस्त बहुमन्सवेसभाए तेगेव उवागड० तं क्षेत्र पुरविमिस मुहमंडयरस वाहिणिले वारे पच्चत्निमिल्ला खंभपती उत्तरिल्ले वारे तं चैव पुरथिमिले दारे० तं देव । जेणेव पुरथिमिल्ले पेच्छाघरमंडवे । एवं थूभे जिणपडिमाओ चेइयरुक्खा महिंदज्झया गंदा पुक्खरिणी० तं चैव जाव-धूवं दलयइ० । जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसद, अणुपविसित्ता जेणेव माणवए चेयवं जेणेव बरामए बोलबट्टसमुग्गे तेणेव उवागन्छ, उपायच्छित्ता लोमहत्व परामुसद, परामुसित्ता वइरामए गोलव समुग्याए पम पमस्जिता बहराए बोलबट्टसमुग्गए विहाडे, विहाडेता जिपसहाओ लोमहत्वपूर्ण पमन्नइ, पमज्जित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता अग्गेहि वरेहिं गंधेहि य मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चइत्ता धूवं दलयइ, दलइत्ता जिणसकहाओ बहरामए गोलवट्टसमुग्गए पडिनिक्खिव पडिनिक्थियित्ता माणकगं चेयनं लोमहत्वएवं पमज्जद, पबज्जित्ता दिव्या बगधाराए० सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलबदलला पुष्कार जाब-धूवं दल, दलइत्ता जेणेव सीहासणे० से चेव । जेणेव देवसयणिज्जे० तं चेव । जेणेव खुड्डागमहंदज्झए० तं चैव । जेणेव पहरणकोसे चोप्पालए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता पहरणकोसं चोप्पालं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए० सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारहणं० आसत्तोसत्त० धूवं दलयइ, दलइत्ता जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता देवसयणिज्जं च मणिपेढियं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता- जाव-धूवं दलय, दलइत्ता जेणेव उववायसभाए दाहिणिल्ले दारे० तहेव अभिसेयसभासरिसं जाव-पुरत्थिमिल्ला णंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तोरणे य तिसोवाणे य सालभंजियाओ य वालरूवए य० तहेव । जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ० तहेव सीहासणं च मणिपेढियं च० सेसं तहेव आययणसरिसं - - जाव - पुरथिमिल्ला गंदा पुक्खरिणी, जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ० जहा अभिसेयसभा तहेव सव्वं । जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ० तहेव लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता पोत्थयरयणं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जिता दिव्वाए दगधाराए० अग्गेहि वरेहि गंधेहि य मल्लेहि य अच्चेति० मणिपेढियं सीहासणं च० सेसं तं चेव । पुरत्थिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता तोरणे य तिसोवाणे य सालभंजियाओ य वालरूबए य० तहेव । जेणेव बलिपीढं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलिवणं करेति, करेला भोगिए देवे सहावे सहावेता एवं बासी-
"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभे विमाणे सिंघाडएसु तिएसु चउक्केसु चच्चरेसु चउमुहेसु महापहेसु पागारेसु अट्टालएसु चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेसु अरामेसु उज्जाणेसु वणेसु वणराईसु काणणेसु वणसंडेसु अच्चणियं करेह, अच्चणियं करेत्ता एवमाणत्तियं विष्यामेव पच्चप्पियह।"
ए सेभिया देवा सूरियामेनं देवेणं एवं बुला समागा- जाव-हिता सूरियाने विमाने सिवाए लिए प चच्चरेसु चउमुहेसु महापहेसु पागारेसु अट्टालएसु चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेसु आरामेसु उज्जाणेसु वणेसु वणराईसु काणणेसु वणसंडेसु अच्चणियं करेंति, अच्चणियं करेत्ता जेणेव सूरियाने देवे- जाव-पच्चप्पिणंति ।
तए णं से सूरियाभे देवे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नंदापुक्खरिणि पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हत्थपाए पक्खालेति, पक्खालेत्ता णंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव पहारेत्व गमगाए ।
तए णं से सूरिया देवं चहिं सामाणियसाहस्सीहि-जाव-सोलसह आयरक्खदेवसाहस्सोहि अन्नेहि य बहूह सूरियाभविमाणवासीहि माणिएहिं वेवेहिय देवीहि यसद्ध संपरिडे सव्विदीए-जाव-नाइयरवेणं जेणेव सभा सुहम्या तेनेव उवानण्छ वाता उवागच्छत्ता सभं सुहम्मं पुरथिमिले वारे अनुपसिह, अणुविसित्ता जंगेव सीहासने तेणेव उवागच्छद्र उबागच्छिता सीहासनवरगए पुरत्याभिमु सिने ।
तणं तस्स मूरियामरस देवरस अवस्तरेण उत्तरपुरत्थिमेवं दिसिभाषणं पत्तारि सामाणिपसाहसीओ चट महासणसाहसी निसीयंति ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स बेबरस पुरथिमिल्लेगं चत्तारि अगामहिसीओ चउसु महासणेसु निसीति ।
लए णं तस्स सूरियामरस देवरस दाहिणपुरत्थिमेनं अग्भितरियपरिसाए अद्दु देवसाहस्सीओ अद्भु भट्टारागसाहस्ती निसीति । तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ दससु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति । तए णं तत्सरियाभरत देवस्स दाहिणपच्चत्थियेणं बाहिरियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ बारससु महासगसाहस्सी
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निसीयंति ।
लए णं तस्स सूरियामस्त देवरस पच्चत्यिमेणं सत्त अणियाहिवइणो सतहि भद्दासह विसीति ।
तए णं तरस सूरियाभस्स देवस्स चउद्दिसि सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ सोलसह भद्दासणसाहस्सीहि णिसीयंति, तंजहा-पुरस्थि मिल्लेगं चत्तारि साहसीओ० ते णं आवरक्वा सववम्मियका उपपीलिपसरासणपट्टिया विषमेविया आविद्वविमलवरचिपट्टा गहियाउहपहरणा तिष्याणि सिंधियाई परायकोडीणि धनू पगिन्स पडिवाइडकाया गीतपाणिणो पीवपाणिगो रत्तपाणिणो चावपाणिणो चारुपाणिणो चम्मपाणिणो दंडपाणिणो खग्गपाणिणो पासपाणिणो नीलपीयरत्तचावचारुचम्मदंडखग्गपासधरा आपरक्या खोबमा गुत्ता गुरपालिया जुत्ता जुत्तपालिया पत्ते पत्ते समय व फिकरभूषा विद्वन्ति ॥
सूरियाभदेव तस्सामाणियदेवद्विद्दपरूवणं
२८ सूरिया णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ।
सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।
धम्मकाओगे त्यो बंध
महिड्दिए महज्जुइए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे सूरियाभे देवे, अहो णं भंते ! सूरिया देवे महिड्डिए-जावमहाणुभागे ।
पए सिराय दडपतिष्णचरियंसुरियाभदेवस्स पुव्यभव-अणंतरभवपरूवणं पए सिराय-सूरियकंता देवी सूरियकंतकुमारचित्तसारहि नामनिरूवणं
२९ " सूरिया भन्ते देणं सा दिव्या देवी सा दिव्या देवजुई से दिल्वे देवाणुभावे किणा तसे किया पसे किया अभि समन्नागए ? पुव्वभवे के आसी ? किनामए वा को वा गोत्तेणं ? कयरंसि वा गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा किच्चा किं वा समायरित्ता ? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अन्तिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवणं सोचा निसम्म जं णं सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्या देवी जावदेवानावेलाई पसे अभिसमझागए ?"।
"गोयमा" इ समण भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमन्तेत्ता एवं बयासी-
" एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं, तेणं समएणं, इहेव जम्बुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, केइयअ नामं जणवए होत्था, रिद्ध-त्थिमियसमिद्धे ।
सज्योउफलसमिद्धं रमे नंदगवण-व्यवासे पालाईए जाये।
तत्थ णं केइयअद्धे जणवए सेयविया नामं नयरी होत्था, रिद्ध-त्थिमिय- समिद्धा - जाव- पडिवा ।
तीसे णं सेवियाए नपरीए बहिया उत्तरपुरस्थि विसोभाए एत्थ में भिगवणे नाम उम्मा होत्था राम्मे, नन्दा सम्बो -फ-फल-समि, सुभ-सुरभि सोयलाए छपाए सच्चओ देव समबडे, पासादीए-जाब प
तत्थ णं सेयवियाए नयरीए पएसी नामं राया होत्या, महया हिमवन्त- जाव विहरइ, अधम्मिए, अधम्मिट्ठे, अधम्म-क्खाई, अधम्मागुए, अधम्म-पलोई, अधम्म- पजणणे, अधम्म-सील-समुदावारे, अधम्मेण चेदिति कप्पेमाने, हम-छिन्द- भिन्द-पवत्तए, पाने, चण्डे, रुद्दे, खुद्दे, लोहियानी, साहसिए, उनकंचण-यंत्रण-माया-निवड-कूड-वड- साई संपलोग बहुले, निस्सीले निश्वर, मिगुणे, निम्मेरे, निप्पनखाण-पोहोचवासे, बहूणं दुपव-वउप्पय मिय-पशु-पक्खि-सिरीसिवाणं पायाए, बहाए, उच्छेषणाए अधम्म-ऊ समुट्टिए, गुरूणं नो अब्भुट्ठेइ, नो विणयं पउञ्जइ, समणमाहणाणं नो विणयं पउज्ञ्जइ, सयस्स वि य णं जणवयस्स नो सम्मं कर भर - विति पवत्तेइ ।
तरस णं पएसिस्स रनो सूरियकन्ता नाथं देवी होत्या सुकुमाल पाणि पाया धारिणीओ पक्षिणा रा स अगुरत्ता, अविरता, इस एवं जाव-विहरद
तस्स णं पएसिस रखो जेपुते, सूरियकन्ताए देवीए अत्तए सूरियन्ते नामं कुमारे होत्या सुकुमाल पानिपाए - जाव-परुिवे। से पं यूरियन्ते कुमारे वराया विहोत्या, पएसिस्स रनो रज्जं च तं च वाहणं च कोर्स व कोट्टागारं पुरं व
अन्तेउरं च जणवयं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहरइ ॥
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२६९
तस्स णं पएसिस्स रन्नो जेठे भाउय-वयंसए चित्ते नाम सारही होत्था, अड्ढे-जाव-बहु-जणस्स अपरिभूए, साम-दण्ड-भेय-उवप्पयाणअत्थसत्थ-ईहा-मइ-बिसारए, उप्पत्तियाए-जाव-पारिणामियाए-चउविहाए बुद्धीए उववेए, पएसिस्स रन्नो बहूसु कज्जेसु य-जावववहारेसु य आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे मेढी, पमाणं-जाव-रज्ज-धुरा-चिन्तए यावि होत्था ॥
पए सिरन्ना जियसत्तुरायसमीवे चित्तसारहिपेसणं ३० तेणं कालेणं, तेणं समएणं कुणाला नाम जणवए होत्था, रिद्ध-त्थि-मिय-समिद्धे-जाव-पडिरूवे ।
तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नाम नयरी होत्था, रिद्ध-त्थि-मिय-समिद्धा-जाव-पडिरूवा। तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तर-पुरथिमे दिसी-भाए कोढए नाम चेईए होत्था, पोराणे-जाव-पडिरूवे। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रन्नो अन्तेवासी जियसत्तू नाम राया होत्था, महया हिमवन्त-जाव-विहरइ। तए णं से पएसी राया अन्नया कयाइ महत्थं महग्धं, महरिहं, विउलं, रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावित्ता चित्तं सारहि सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-- "गच्छ गं चित्ता ! तुम सात्थि नरि । जियसत्तुस्स रन्नो इमं महत्थं-जाव-पाहुडं उवणेहि । जाइं तत्थ राय-कज्जाणि य राय-किच्चाणि य राय-नीईओ य राय-ववहारा य ताई जियसत्तुणा सद्धि सयमेव पच्चुवेक्खमाणे विहराहि" त्ति कटु विसज्जिए । तए णं से चिते सारही पएसिणा रन्ना एवं वुत्ते समाणे, हट्ठ-जाव-पडिसुणेत्ता, तं महत्थं-जाव-पाहुडं गेण्हइ, गिहित्ता पएसिस्स रन्नो-जाव-पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सेयवियं नर मझमज्झणं जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं -जाव-पाहुडं ठवेइ, ठवित्ता कोडुम्बिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सच्छत्तं-जाव-चाउ-ग्घण्टं आसरहं जुत्तामेव उवद्ववेह-जाव-पच्चप्पिणह"। तए णं ते कोडुम्बिय-पुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं-जाव-जुद्ध-सज्ज चाउ-घण्टं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेन्ति, तमाणत्तियं पच्चप्पिणन्ति। तए णं से चित्ते सारही कोडुम्बिय-पुरिसाणं अन्तिए एयमट्ठ-जाव-हियए हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते संनद्ध-बद्धवम्मिय-कवए, उप्पीलिय-सरासण-पट्टिए, पिणद्ध-गेवेज्जे, बद्ध-आविद्ध-विमल-वर-चिध-पट्टे, गहियाउह-पहरणे, तं महत्थं-जाव-पाहुडं गेण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव चाउ-ग्घण्टे आसरहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउ-ग्घष्टं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहि संनद्ध-जाव-गहियाउह-पहरणेहि सद्धि संपरिबुडे, सकोरिण्ट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणणं धरिज्जमाणेणं, महया, भड-चडगररह-पहकर-विन्द-परिक्खित्ते । साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सेयवियं नर मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुहेहि वासेहि, पायरासेहि, नाइविकिठेहि अन्तरावासेहि वसमाणे वसमाणे केइयअद्धस्स जणवयस्स मज्झमज्झेणं, जेणेव कुणाला जणवए, जेणेव सावत्थी नयरी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सावत्थीए नयरीए मज्झमझेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव जियसत्तस्स रन्नो गिहे, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण-साला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिहित्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता तं महत्थं-जाव-पाहुडं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव अब्भन्तरिया उवट्ठाण-साला, जेणेव जियसत्तू राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जियसत्तुं रायं करयल-परिग्गहियं-जाव-कटु, जएणं, विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता तं महत्थंजाव-पाहुडं उवणेह। तए णं से जियसत्त राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं-जाव-पाहडं पडिच्छइ, पडिच्छिता चित्तं सारहिं सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, रायमग्गमोगाढं च से आवासं दलयइ। तए णं से चित्ते सारही विसज्जिए समाणे, जियसत्तुस्स रन्नो अन्तियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव बाहिरिया उबढाण-साला, जेणेव चाउग्घण्टे आस-रहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पडिनिक्खमित्ता चाउ-ग्घण्टं आस-रहं दुरुहइ, दुरुहिता सात्थि नरि मज्झं-मज्झेणं, जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता हाए कयबलिकम्मे, कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते, सुद्ध-प्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर-परिहिए, अप्पमहग्घाभरणालंकिय-सरीरे, जिमिय-भुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे, पुवावरण्ह-काल-समयंसि गन्धब्वेहि य नाडगेहि य उवनच्चिज्जमाणे उवनच्चिज्जमाणे, उवगाइज्जमाणे उवगाइज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे, इठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गन्धे पञ्चविहे माणुस्सए काम-भोए पच्चणुभवमाणे विहरइ।
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२७०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
सावत्थिनयरीए केसिकमारसमणागमणं ३१ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जाइ-संपन्ने, कुल-संपन्ने, बल-संपन्ने, रुव-संपन्ने, विणय-संपन्ने, नाण
संपन्ने, दंसण-संपन्ने, चरित्त-संपन्ने, लज्जा-संपन्ने, लाघव-संपन्ने, लज्जा-लाघव-संपन्ने, ओयंसी, तेयंसी, बच्चसी, जसंसी जिय-कोहे जिय-माणे जिय-माए, जिय-लोहे, जिय-निद्दे, जिइन्दिए, जिय-परीसहे, जीवियास-मरणभय-विप्पमुक्के, तव-प्पहाणे, गुण-प्पहाणे, करण-प्पहाणे, चरण-प्पहाणे, निग्गह-प्पहाणे, निच्छय-प्पहाणे, अज्जव-प्पहाणे, मद्दव-प्पहाणे, लाघव-प्पहाणे, खन्ति-प्पहाणे, गुत्तिप्पहाणे, मुत्ति-प्पहाणे, विज्ज-प्पहाणे, मन्त-प्पहाणे, बम्भ-प्पहाणे, वेय-प्पहाणे, नय-प्पहाणे, नियम-प्पहाणे, सच्च-प्पहाणे, सोय-प्पहाणे, नाण-प्पहाणे, सण-प्पहाणे, चरित्त-प्पहाणे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतबस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से चउदस-पुब्बी, चउ-नाणोवगए, पहिं अणगार-सहि सद्धि संपरिबुडे, पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे, गामाणुगाम दूइज्जमाणे, सुहं-सुहेणं विहरमाणे, जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव कोट्ठए चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्टए चेइए अहा-पडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हइ, उग्गिण्हिता संजमेणं, तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ॥
विन्नायवृत्तंतस्स चित्तसारहिस्स केसिकुमारसमणवंदणट्टा गमणं, धम्मसवणं, गिहत्थधम्मपडिवत्तीय ३२ तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउमुह-महापह-पहेसु महया जण-सद्दे इ वा जण-वूहे इ वा जण-कलकले
इ वा जण-बोले इ वा जण-उम्मी इ वा जण-उक्कलिया इ वा जण-संनिवाए इ वा-जाव-परिसा पज्जुवासइ। तए णं तस्स सारहिस्स तं महा-जण-सदं च जण-कलकलं च सुणेत्ता य पासित्ता य इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था । कि णं अज्ज सावत्थीए नयरीए इन्द-महे इ वा खन्द-महे इ वा रुद्द-महे इ वा मउन्द-महे इ वा सिवमहे इ वा वेसमण-महे इ वा नाग-महे इ वा भूय-महे इ वा जक्ख-महे इ वा धूम-महे इ वा चेइयमहे इ वा रुक्ख-महे इ वा गिरि-महे इ वा दरि-महे इ वा अगड-महे इ वा नई-महे इ वा सर-महे इ वा सागर-महे इ वा, जं णं इमे बहवे उग्गा, भोगा, राइन्ना, इक्खागा, खत्तिया, नाया, कोरव्वा-जाव-इब्भा, इन्भपुत्ता पहाया, जहोववाइए-जाव-अप्पेगइया हय-गया, अप्पेगइया गय-गया, रह-गया सिविया-गया संदमाणिया-गया, अप्पेगइया, पाय-चार-विहारेणं महया महया वन्दावन्दहि निग्गच्छन्ति एवं संपेहेइ, संपेहिता कञ्चुइज्ज-पुरिसं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"कि णं देवाणुप्पिया ! अज्ज सावत्थिीए नयरीए इन्द-महे इ वा-जाव-सागर-महे इ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा-जावनिग्गच्छन्ति"? तए णं से कंचुइज्जपुरिसे केसिस्स कुमार-समणस्स आगमण-गहिय-विणिच्छए चित्तं सारहि करयल-परिग्गहियं-जाव-वद्धावेत्ता एवं वयासी-- "नो खलु देवाणुप्पिया! अज्ज सावत्थीए नयरीए इन्द-महे इ वा-जाव-सागर-महे इ वा, जेणं इमे बहवे-जाव-वन्दावन्दएहि निग्गच्छन्ति । एवं खलु भो देवाणुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जाइ-संपन्ने-जाव-दूइज्जमाणे इहमागए-जाव-विहरइ,
तेणं अज्ज सावत्थीए नयरीए बहवे उग्गा-जाव-इब्भा, इब्भपुत्ता अप्पेगइया वन्दणवत्तियाए-जाव-मया बन्दावन्दएहि निग्गच्छन्ति"। ३३ तए णं से चित्ते सारही कंचुइज्ज-पुरिसस्स अन्तिए एयमह्र सोच्चा, निसम्म हट्ठ-तुट्ठ-जाव-हियए कोडुम्बिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता
एवं बयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउ-घण्टं आस-रहं जुत्तामेव उवटवेह" -जाव-सच्छत्तं उबटुवेन्ति । तए णं से चित्ते सारही व्हाए, सुद्ध-प्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए, अप्प-महग्घाभरणालंकिय-सरीरे, जेणेव चाउ-घण्टे आस-रहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउ-घण्टं आस-रहं दुरुहइ, दुरुहित्ता सकोरिण्ट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, महया भडचडगरविन्दपरिक्खित्ते, सावत्थी-नयरीए मसं-मस्रणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए उज्जाणे, जेणेव केसी कुमार-समणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि-कुमार-समणस्स अदूरसामन्ते तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता जेणेव केसी कुमार-समणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता
वन्दइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, नच्चासन्ने, नाइदूरे सुस्सूसमाणे, नमसमाणे, अभिमुहे, पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासइ। ३४ तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे य महइ-महालियाए महच्च-परिसाए चाउ-ज्जामं धम्म परिकहेइ । तं जहा--
सव्वाओ पाणाइवायाओ बेरमणं, सवाओ मसावायाओ बेरमणं, सव्वाओ अदिनादाणाओ बेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं।
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पासतिस्थे पएसिकहाणगं
२७१
मसिणीसु पडिपुण्णं पाहायपूछणेणं, ओसहमणि य-जाव-राय-वबहार
तए णं सा महइ-महालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमार-समणस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म, जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया। तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अन्तिए धम्म सोच्चा, निसम्म हट्ठ-जाव-हियए उट्ठाए उठेइ, उट्टित्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिणं, पयाहिणं करेइ, करित्ता वन्दइ, नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- “सद्दहामि णं भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं-जाव-सच्चे णं एसमठे जं णं तुम्भे वयह" त्ति कटु वन्दइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, एवं बयासी-- "जहा ण देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे उग्गा, भोगा-जाव-इन्भा, इब्भपुत्ता चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, एवं धन्नं, धणं, बलं, वाहणं, कोसं, कोडागारं, पुरं, अन्तेउरं, चिच्चा, विउलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पदाल-सन्त-सार-सावएज्ज, विच्छहुइत्ता, विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुण्डा भवित्ता, अगाराओ अणगारियं पव्वयन्ति, नो खलु अहं ता संचाएमि चिच्चा हिरण्णं तं चेव-जाव-पन्वइत्तए । अहं णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पंचाणुव्व इयं सत्त-सिक्खावइयं दुवालस-विहं गिहि-धम्म......." पडिवज्जित्तए"। "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धं करेहि"। तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं-जाव-गिहि-धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं वन्दइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, जेणेव चाउ-ग्घण्ट आस-रहे, तेणव पहारेत्थ गमणाए। चाउ-घण्टं आस-रहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए। तए णं से चित्ते सारही समणोवासए जाए अहिगय-जीवाजीवे, उवलद्ध-पुण्ण-पावे, आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बन्ध-मोक्खकुसले, असहिज्जे देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किनर-किंपुरिस-गरुल-गन्धव्व-महोरगाईहिं देवगणेहिं निग्गन्थाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गन्थे पावयणे निस्संकिए, निक्कंखिए, निम्वितिगिच्छे, लद्धठे, गहियठे, पुच्छियो, अहिगयठे, विणिच्छ्यिठे, अट्ठि-मिज-पेम्माणुरागरत्ते, 'अयमाउसो! निग्गन्थे पावयणे अट्टे, अयं परमठे, सेसे अणठे', ऊसिय-फलिहे अवंगुय-दुवारे चियत्तन्तेउर-घर-प्पवेसे, चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे, समणे, निग्गन्थे, फासुएसणिज्जेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं, पीढ-फलग-सेज्जा-संथारेणं, वत्थ-पडिग्गह-कम्बल-पायपुञ्छणणं, ओसहभेसज्जेणं पडिलाभमाणे पडिलाभेमाणे, बहूहि सोलध्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि य अप्पाणं भावमाणे, जाइं तत्थ राय-कज्जाणि य-जाव-राय-ववहाराणि य ताई जियसत्तुणा रन्ना सद्धि सयमेव पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहरइ ॥ सेयवियं नरि गच्छंतेणं चित्तसारहिणा केसिकमारसमणं पइ सेयवियानयरिआगमणपत्थणा, केसिकुमार
समणाणुमई य ३६ तए णं से जियसत्तु-राया अन्नया कयाइ महत्थं-जाव-पाहुडं सज्जेइ, चित्तं साहिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी--"गच्छाहि
णं तुमं चित्ता! सेयवियं नार। पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं-जाव-पाहुडं उवणेहि। मम पाउग्गं च णं जहाभणियं अवितहमसंदिद्धं क्यणं विन्नवेहि" त्ति कटु विसज्जिए। तए णं से चित्ते सारही जियसत्तुणा रन्ना विसज्जिए समाणे, तं महत्थं-जाव-गिण्हइ-जाव-जियसत्तुस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सावत्थी-नयरीए मझं-मज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे, तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं-जाव--ठवेइ । ण्हाए-जाव-सरोरे, सकोरेण्टमल्लदामेणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगरं-विंदपरिक्खित्ते पायचार-विहारेणं, महया पुरिस-वग्गुरा-परिक्खित्ते रायमग्गमोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सावत्थी-नयरीए मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव केसी-कुमार-समणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि-कुमार-समणस्स अन्तिए धम्म सोच्चा-जाव--हट्ठ-जाव-उट्ठाए-जाव एवं वयासी-- "एवं खलु अहं भंते ! जियसत्तुणा रना पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं-जाव-उवणेहि ति कट्ट विसज्जिए। तं गच्छामि णं अहं भंते ! सेयवियं नार। पासादीया णं भंते ! सेयविया नयरी। दरिसणिज्जा णं भंते ! सेयविया नयरी । अभिरूवा गं भंते! सेयविया नयरी। पडिरूवा णं भंते ! सेयविया नयरी। समोसरह णं भंते ! सेयवियं नरिं"। तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिणा एवं वुत्ते समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयमद्वं नो आढाइ, नो परिजाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी--
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
"एवं खल अहं भंते ! जियसत्तुणा रना पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं-जाव-विसज्जिए तं चेव-जाव-समोसरह णं भंते ! तुब्भे सेयवियं नयरिं"। तए णं केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिणा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-- “चित्ता! से जहा-नामए वण-सण्डे सिया किण्हे, किण्होभासे-जाव-पडिहवे । से नूणं चित्ता ! से वण-सण्डे बहूणं दुपय-चउप्पयमिय-पसु-पविख-सरोसिवाणं अभिगमणिज्जे?" "हंता अभिगमणिज्जें"। तंसि च णं चित्ता! वण-संडसि बहवे भिलंगा नाम पाव-सउणा परिवसन्ति, जे णं तेसि बहूर्ण दुपय-च उप्पय-मिय-पसु-पक्खिसिरीसिवाणं ठियाणं चेव मंस-सोणियं आहारेन्ति । से नूणं चित्ता! से वण-संडे तेसि णं बहूणं दुपय-जाव-सिरोसिवाणं अभिगमणिज्जे?" "नो तिणठे समझें।" "कम्हा णं?" "भंते! सोवसम्गे"। "एवामेव चित्ता! तुब्भं पि सेयवियाए नयरीए पएसी नाम राया परिवसइ, अहम्मिए-जाव-नो सम्मं कर-भर-वित्ति पवत्तेइ। तं फहं णं अहं चित्ता! सेयवियाए नयरीए समोसरिस्सामि?" तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं एवं वयासी-- "कि णं भंते! तुब्भं पएसिणा रन्ना कायव्वं? अत्थि णं भंते ! सेयवियाए नयरीए अन्ने बहवे ईसर-तलवर-जाव-सत्थवाह-प्पभिइओ, जे णं देवाणुप्पियं बंदिस्संति-जाव-पज्जुवासिस्संति, विउलं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं पडिलाभेसंति, पाडिहारिएण पोढफलग-सेज्जासंथारेणं उवनिमन्तिस्सन्ति"। तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-- "अवि याइ चित्ता! समोसरिस्सामो” ।
चित्तसारहिस्स सेयवियानगरिआगमणं ३७ तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता केसिस्स कुमार-समणस्स अंतियाओ, कोट्ठयाओ चेइयाओ
पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थि णयरी जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउ-घंटे आस-रहं जुतामेव उवट्टवेह" । जहा सेयवियाए नयरीए निग्गच्छइ तहेव-जाव-वसमाणे वसमाणे कुणालाजणवयस्स मज्झं-मज्झेणं, जेणेव केइयअद्धे जणवए, जेणेव सेयविया नयरी, जेणेव मियवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता उज्जाण-पालए सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-- "जया णं देवाणुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे पुन्वाणुपुब्वि चरमाणे, गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागच्छिज्जा, तया णं तुभे देवाणुप्पिया! केसि कुमार-समणं वंदिज्जाह, नमंसिज्जाह, वंदित्ता नमंसित्ता अहा-पडिरूवं उग्गहं अणुजाणेज्जाह। पाडिहारिएणं पीढ-फलग-जाव-उवनिमंतेज्जाह। एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणेज्जाह"। तए णं ते उज्जाण-पालगा चित्तेण सारहिणा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट-जाव-हियया करयल-परिग्गहियं-जाव-एवं वयासी--"तह"
त्ति। आणाए, विणएणं वयणं पडिसुणंति ॥ ३८ तए णं से चित्ते सारही जेणेव सेयविया नयरी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयवियं नरि मज्झं-मज्झेणं अणुपविसइ, अणु
पविसित्ता जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिहित्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरहइ, पच्चोरुहिता तं महत्थं-जाव-गेव्हइ, गेण्हित्ता जेणेव पएसी राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पएसि रायं करयल-जाव-बद्धावेत्ता तं महत्थं-जाव-उवणेइ। तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं-जाव-पडिच्छइ, पडिच्छित्ता चित्तं सारहिं सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२७३
तए णं से चिते सारही पएसिणा रन्ना विसज्जिए समाणे हट्ट-जाव-हियए, पएसिस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव चाउग्घंटे आस-रहे तेणेव उवागच्छइ, चाउंग्घंटं आस-रहं दुरुहइ सेयवियं नार मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ तुरए निगिण्हइ रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, हाए-जाव-उप्पि पासाय-वर-गए फुट्टमाणेहि मुइंगमत्थरहि बत्तीसइ-बद्धएहिं नाडएहि वर-तरुणी-संपउत्तेहि उवनच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे, उवलालिज्जमाणे, इ8 सद्द-फरिस-जाव-विहरइ।
उज्जाणपालनिवेइयवृत्तताणुसारेणं चित्तसारहिस्स केसिकुमारसमणवंदणट्ठा गमणं धम्मसवणं च ३९ तए णं केसी-कुमार-समणे अन्नया कयाइ पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणइ, पच्चप्पिणित्ता सावत्थीओ नयरीओ,
कोढगाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पहि अणगारसएहि-जाव-विहरमाणे, जेणेव केइयअद्धे जणवए, जेणेव सेयविया नयरी, जेणेव मियवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहा-पडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता, संजमेणं, तवसा अप्पाणं
भावेमाणे विहरइ। ४० तए णं सेयवियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापहेसु महया जणसद्दे इ वा-जाव-परिसा निग्गच्छइ।
तए णं ते उज्जाणपालगा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा, हट्ठतुट्ठ-जाव-हियया, जेणेव केसी कुमार-समणे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसि कुमारसमणं बंदंति, नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता, अहा-पडिरूवं उग्गहं अणुजाणंति, पाडिहारिएणं-जाव-संथारएण उवनिमंतेन्ति, ना गोयं पुच्छंति, ओधारेंति, एगन्तं अवक्कमन्ति, अन्नमन्नं एवं वयासी-- "जस्स णं देवाणुप्पिया! चित्ते सारही दंसणं कंखइ-जाव-दंसणं अभिलसइ जस्स णं नाम-गोयस्स वि सवणयाए हट्ठ-तुटु-जाव-हियएभवइ, से णं एस केसी कुमार-समणे पुब्वाणपुटिव चरमाणे, गामाणुगाम दूइज्जमाणे, इहमागए, इह संपत्ते, इह समोसढे, इहेव सेयवियाए नयरीए बहिया मियवणे उज्जाणे अहा-पडिरूवं-जाव-विहरइ। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! चित्तस्स सारहिस्स एयमझें पियं निवएमो, पियं से भवउ"। अन्नमन्नस्स अन्तिए एयमळं पडिसुणति । जेणेव सेयविया नयरी, जेणेव चित्तस्स सारहिस्स गिहे, जेणेव चित्ते सारही तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चित्तं सारहिं करयल-जाव-बद्धावति, एवं वयासी-- "जस्स णं देवाणुप्पिया! दसणं कंखंति-जाव-अभिलसंति, जस्स णं नाम-गोयस्स वि सवणयाए हटु-जाव-भवह, से णं अयं केसी कुमार-समणे पुवाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहेव मिअवणे उज्जाणे समोसढे-जाव-विहरइ॥" तए णं से चित्ते सारही तेसि उज्जाण-पालगाणं अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुट्ठ-जाव-आसणाओ अब्भुठेइ , पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमयइ, ओमुइत्ता एग-साडियं उत्तरासङ्गं करेइ । अंजलि-मउलियग्गहत्थे केसिकुमारसमणाभिमुहे सत्तट्ट पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-“नमोत्थु णं अरहंताणं -जाव-संपत्ताणं। नमोत्थु णं केसिस्स कुमार-समणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थ-गयं इहगए। पासउ मं भगवं तत्थगए इहगयं" ति कट्ट बंदइ, नमसइ। ते उज्जाण-पालए विउलेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पोइ-दाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जिता कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेद, सद्दावित्ता एवं वयासो-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंट आस-रहं जुत्तामेव उवट्ठवेह-जाव-पच्चप्पिणह"। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-खिप्पामेव सच्छत्तं, सज्झयं-जाव-उवट्ठवित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं से चित्ते सारही कोडुबिय-पुरिसाणं अंतिए एयमढं सोच्चा, निसम्म, हट्ठ-तुटु-जाव-हियए, व्हाए कयबलिकम्मेण सरीरे, जेणेव चाउग्घंटे-जाव-दुरुहित्ता, सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगरेणं तं चेव-चाव-पज्जुवासइ धम्म-कहा-जावतए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ उट्ठाए तहेव एवं वयासी-- "एवं खलु भंते ! अम्हं पएसी राया अधम्मिए-जाव-सयस्स वि णं जणवयस्स नो सम्म कर-भर-वित्ति पवत्तेइ । तं जइ णं देवाणप्पिया! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जा बहुगुणतरं खलु होज्जा पएसिस्स रन्नो, तेसिं च बहूणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खिसिरोसिवाणं, तेसि च बहणं समण-माहण-भिक्खुयाणं । तं जइ णं देवाणुप्पिया ! ० पएसिस्स बहुगुणतरं होज्जा, सयस्स वि य णं जणवयस्स"।
ध० क०३५
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२७४
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
धम्मस्स अलाभ-लाभविसयाइं चत्तारि ठाणाई ४२ तए णं केसी कुमारसमणे चित्तं साहिं एवं बयासी--
"एवं खलु चहि ठाणेहिं चित्ता ! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्जा सवणयाए । तं जहा-आराम-गयं वा उज्जाण-गयं वा समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ, नो वंदइ, नो नमसइ, नो सक्कारेइ, नो संमाणेइ, नो कल्लाणं, मङ्गलं, देवयं, चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाई, हेऊई पसिणाई, कारणाई, वागरणाई पुच्छइ। एएणं ठाणेणं चित्ता! जोवे केवलि-पन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए ॥१॥ उवस्सय-गयं समणं वा तं चेव-जाव-एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलि-पन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए ॥२॥ गोयरग्ग-गयं समणं वा माहणं वा-जाव-नो पज्जुवासइ, नो विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, नो अट्ठाई-जाव-पुच्छइ, एएणं ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलि-पन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए॥३॥ जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ, तत्थ वि य णं हत्येण वा बत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरिता चिट्ठइ, नो अट्ठाई-जाव-पुच्छइ, एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलि-पन्नतं धम्मं नो लभइ सवणयाए ॥४॥ एएहि च णं चित्ता! चउहि ठाणेहि जीवे केवलि-पन्नत्तं धम्म नो लभइ सवणयाए॥ चहिं ठाणेहिं चित्ता! जीवे केवली-पन्नत्तं धम्म लभइ सवणयाए। तं जहा-आराम-गयं वा उज्जाण-गयं वा समणं वा माहणं वा वंदइ, नमसइ,-जाव-पज्जुवासइ, अट्ठाई-जाव-पुच्छइ, एएण-जाव-लभइ सवणयाए । एवं उवस्सय-गयं गोयरग्ग-गयं समणं वा-जाव-पज्जुवासइ विउलेणं-जाव-पडिलाभेइ अट्ठाइं-जाव-पुच्छइ, एएण वि-जाव-लभइ सवणयाए। जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभि-समागच्छइ तत्थ वि य णं नो हत्येण वा-जाव-आवरेत्ता णं चिट्टइ, एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीव केवलिपन्नत्तं धम्म लभइ सवणयाए। तुझं च णं चित्ता! पएसी राया आराम-गयं वा तं चेव सव्वं भाणियव्वं आइल्लएणं गमएणं-जाव-अप्पाणं आवरेत्ता चिट्टइ। तं कहं णं चित्ता! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खिस्सामो?" तए णं से चित्ते सारही केसि कुमारसमणं एवं वयासी-- "एवं खलु भंते ! अन्नया कयाइ कंबोएहि चत्तारि आसा उवणयं उवणीया। ते मए पएसिस्स रन्नो अन्नया चेव उवणेया। तं एएणं खलु भंते! कारणेणं अहं परसिं रायं देवाणुप्पियाणं अंतिए हव्वमाणेस्साभि। तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खमाणा गिलाएज्जाह। अगिलाए णं भंते ! तुम्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जाह, छंदेणं भंते ! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जाह"। तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-- "अवि याइ चित्ता! जाणिस्सामो”॥ तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं बंदइ, नमसइ, बंदित्ता नमसित्ता जेणेव चाउ-घंटे आस-रहे, तेणेव उवागच्छप, उवागच्छित्ता चाउ-घंटं आस-रहं दुरुहइ, दुरुहिता जामेव दिसि पाउन्भूए, तामेव दिसि पडिगए।
आसपरिक्खटुं निग्गयस्स चित्तसारहिसहियस्स पएसिरनो केसिकुमारसमणसमीवागमणं ४३ तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए, फुल्लुप्पल-कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहापण्डुरे पभाए कय-नियमावस्सए
सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलन्ते, साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे, जेणेव पएसी राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पएसि रायं करयल-जाव-कटु जएणं, विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पियाणं कम्बोएहि चत्तारि आसा उवणयं उवणीया। ते य मए देवाणुप्पियाणं अन्नया चेव विणइया। तं एह णं सामी! ते आसे चिठं पासह।" तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं बयासी"गच्छाहि णं तुम चित्ता! तेहिं चेव चाहिं आसेहिं आस-रहं जुत्तामेव उवट्ठवेहि-जाव-पच्चप्पिणाहि" । तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हटतुट्ठ-जाव-हियए उवट्ठवेइ उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयम? सोच्चा, निसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव-अप्प-महग्याभरणालंकिय-सरीरे साओ
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२७५
गिहाओ निगच्छ, निग्गच्छित्ता जेणामेव चाउ - ग्घण्टे आस रहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउ - ग्घण्टं आस रहं दुरुहइ दुरुहिता सेविया नवरी-मणं निम्गन्छ ।
४४
तए णं से चित्ते सारही तं रहं णेगाई जोयणाई उभामेइ । तए णं से पएसी राया उण्हेण य तण्हाए य रह-वाएणं परिकिलंते समाणे चित्तं सारहि एवं क्यासी
"चित्ता परिकिलते मे सरीरे परावतेहि रहं ।"
तए णं से चित्ते सारही रहं परावत्तेइ, जेणेव मियवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पएस रायं एवं वयासी
"एस णं सामी ! मियवणे उज्जाणे, एत्थ णं आसाणं समं, किलामं सम्मं अवणेमो" ।
तए णं से पएसी राया चित्तं साहिं एवं वयासी- "एवं होउ चित्ता ! "
तए णं से चित्ते सारही जेणेव मियवणे उज्जाणे, जेणेव केसिस्स कुमार-समणस्स अदूरसामंते, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हुए निन्दि, निगिहिता रहं वेद, उवेत्ता रहाओ पन्चोरुहह, पच्चोरहिता तुरए मोएद, मोएता पएस रायं एवं बयासी"एह णं सामी ! आसाणं समं, किलामं सम्मं अवणेमो ।”
तए णं से पएसी राया रहाओ पच्चोरुहइ । चित्तेण सारहिणा सद्धि आसाणं समं, किलामं सम्मं अवणेमाणे पासइ जत्थ केसी कुमार - समणे महइ - महालियाए महच्चपरिसाए मज्झ गए महया महया सद्देणं धम्ममाइक्खमाणं । पासित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए -जाव-समुप्यजित्वा-
"जट्टा तु भोज पनुवाति मुंडा खलु भो मुंडं पज्जुवासंति मूढा खलु भो मूढं पज्जुवासंति, अपेडिया खलु भो अप्रेंडियं पज्जुवासंति, निव्विन्नाणा खलु भो निव्वन्नाणं पज्जुवासंति से कीस णं एस पुरिसे जड्डे, मुंडे, मूढे, अपंडिए, निव्विन्नाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे ।
एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेड, कि परिणामेड, कि खाद, कि पियइ कि दल, कि पद, जे गं एमहालियाए मगुस्तपरिसाए मज्झ गए महया मया सद्देणं बुयाए ?"
एवं संपेहेड, संहिता चिसं साराह एवं बयासी
"चित्ता ! जड्डा खलु भो जहुं पज्जुवासंति- जाव-बुयाए । साए वि य णं उज्जाण भूमीए नो संचाएमि सम्मं पकामं पवियरित्तए"।
तए णं से चित्ते सारही पएसी-रायं एवं वयासी
" एस णं सामी ! पासावचिजे केसी नाम कुमार-समणे जाइ संपले जाव-व-नागोवन आहोहिए अन्न-जीवी ।"
तए णं से पएसी राया चित्तं सारहि एवं वयासी
"आहोहियं णं वयासि चित्ता ! अन्न जीवियं च णं वयासि चित्ता ?"
"हन्ता सामी आहोहियं णं वयामि, अन्नजीवियं च णं वयामि " ।
" अभिगमणिज्जे णं चित्ता ! अहं एस पुरिसे ?"
"हंता सामी! अभिगम
" अभिगच्छामो णं चित्ता ! अम्हे एवं पुरिसं ?"
"हंता सामी ! अभिगच्छामो" ॥
पसरापडियो
के सिमुणिपरूवणाए पंचविनाणनिरूवर्ण
तए णं से पएसी राया चित्तेण सारहिणा सद्धि जेणेव केसी कुमार-समणे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता केसिस्स कुमार - समणस्स अदूर सामन्ते ठिच्चा एवं वयासी
“तुम्भे णं भन्ते ! आहोहिया, अन्न-जीविया ?"
नए णं केसी कुमार-समणे पसरावं एवं क्यासी
"पएसी ! से जहा - नामए अंकवाणिया इ वा संख-वाणिया इवा दन्त-वाणिया इ वा सुकं भंसिउं-कामा नो सम्मं पंथं पुच्छर, एवमेव पएसी ! तुम्भेवि विणयं भंसेज- कामो नो सम्मं पुच्छसि । से नूणं तव पएसी ! ममं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए -जाव- समुपज्जत्वा "जडा खलु भोज परजवासंति- जावयविवरितए" से नूणं पएसी! असम ?" "हंता अ"ि । तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी
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२७६
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
“से केणठेणं भंते ! तुज्झ नाणे वा दंसणे वा जेणं तुम्भे मम एया-रूवं अज्झत्थियं-जाव-संकप्पं समुप्पन्नं जाणह, पासह ?" तए णं से केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी"एवं खलु पएसी ! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे नाणे प० तं जहा-आभिणिबोहिय-नाणे, सुय-नाणे, ओहि-नाणे, मणपज्जवनाणे, केवल-नाणे। से कि तं आभिणिबोहिय-नाणे? आभिणिबोहिय-नाणे चउ-बिहे पन्नत्ते, तं जहा-उग्गहो, ईहा, अवाए, धारणा। से कि तं उग्गहे ? उग्गहे दु-विहे पन्नत्ते जहा नंदीए-जाव-से तं आभिणिबोहियनाणे । से किं तं सुय-नागे? सुय-नाणे दु-विहे पण्णत्ते तं जहा-अङ्गपविठं च अङ्ग-बाहिरं च, सव्वं भाणियव्वं-जाव-दिदिवाओ।
ओहि-नाणं भव-पच्चइयं खओदसमियं जहा नंदीए । मणपज्जव-नाणे दु-विहे पण्णते तं जहा-उज्जुमई य विउलमई य। तहेव केवल-नाणं सव्वं भाणियध्वं । तत्थ णं जे से आभिणिबोहियनाणे से णं ममं अत्थि। तत्थ णं से जे सुय-नाणे से वि य ममं अत्थि । तत्थ णं जे से ओहि-नाणे से वि य ममं अस्थि । तत्थ णं जे से मणपज्जव-नाणे से वि य ममं अत्थि। तत्थ णं जे से केवल-नाणे से णं मम नत्थि, से णं अरिहंताणं भगवन्ताणं। इच्चेएणं पएसी! अहं तव चउ-विहेणं छउमत्थेणं णाणेण इमेयारूवं अज्झत्थियं-जाव-समप्पन्नं जाणामि पासामि"।
केसिकुमारसमणवत्तव्वे जीव-सरीराणं अन्नत्तपरूवणं
१. अहुणोववन्न मेरइयस्स मणुस्सलोगागमणविसए निसेहपरूवगाइं चत्तारि ठाणाई ४५ तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी
"अहं णं भंते ! इहं उवविसामि?" "पएसी ! एयाए उज्जाण-भूमीए तुम सि चेव जाणए”। तए णं से पएसी राया चित्तणं सारहिणा सद्धि केसिस्स कुमार-समणस्स अदूर-सामन्ते उवविसइ, उवविसित्ता केसि कुमार-समणं एवं वयाती"तुम्भं णं भंते ! समणाणं निग्गन्थाणं एसा सन्ना, एसा पइन्ना, एसा दिट्ठी, एसा रई, एस हेऊ, एस उवएसे, एस संकप्पे, एसा तुला, एस माणे, एस पमाणे, एस समोसरणे, जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जोवो तं सरीरं?" तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी"पएसी! अम्हं समणाणं निग्गन्थाणं एसा सन्ना-जाव-एस समोसरणे, जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं नो, तं जीवो नो, तं सरीरं"। तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी"जइ णं भंते! तुम्भं समणाणं, निग्गंथाणं एसा सन्ना-जाव-समोसरणे, जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जीवो, नो तं सरीरं। एवं खलु ममं अज्जए होत्था, इहेव जम्बुद्दीवे दीवे, सेयवियाए नयरीए, अधम्मिए-जाव-सयस्स वि य णं जणवयस्स नो सम्मं करभर-वित्ति पवत्तेइ । से णं तुम्भं वत्तव्वयाए सुबहुं पावं कम्मं कलि-कलुसं समज्जिणित्ता, काल-मासे कालं किच्चा, अन्नयरेसु नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। तस्स णं अज्जगस्स अहं नत्तुए होत्था इट्टे, कंते, पिए, मणुन्ने, थेज्जे, वेसासिए, संपए, बहुमए, अणुमए, रयण-करण्डग-समाणे, जीविउस्सविए, हियय-नन्दि-जणणे, उंबरपुष्फ पिव दुल्लभे, सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए। तं जइ णं से अज्जए ममं आगंतु वएज्जा-एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए-जावनो सम्मं कर-भर-वित्ति पवत्तेमि। तए णं अहं सुबहुं पावं कम्मं कलि-कलुसं समज्जिणित्ता नरएसु उदबन्ने। तं मा णं नत्तुया ! तुम पि भवाहि अधम्मिए-जाव-नो सम्मं कर-भर-वित्ति पवतेहि। मा णं तुम पि एवं चेव सुबहुं पाव-कम्म-जाव-उववज्जिहिसि। तं जइ णं से अज्जए ममं आगन्तं एवं वएज्जा, तो णं अहं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा, जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जीवो, तं सरीरं। जम्हा णं से अज्जए ममं आगन्तुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइडिया मम पइन्ना समणाउसो! जहा तं जीवो, तं सरीरं"।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२७७
तए णं केसी कुमारसमणे पसि रायं एवं वयासी'अत्थि णं पएसी! तव सूरियकता नामं देवी ?" "हंता अस्थि"। "जइ णं तुमं पएसी ! तं सूरियकन्तं देवि व्हायं-जाव-सव्वालंकार-विभूसियं केणइ पुरिसेणं सव्वालंकार-विभूसिएणं सद्धि इठे सह-फरिस-रस-रूव-गंधे पञ्चविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणि पासिज्जसि, तस्स णं तुम पएसी! पुरिसस्स के डंडं निव्वतेज्जासि?" "अहं णं भन्ते ! तं पुरिसं हत्थ-च्छिन्नगं वा पायच्छिन्नगं वा सूलाइयं वा सूल-भिन्नगं वा एगाहच्छ, कुडाहच्चं जीवियाओ ववरोवएज्जा"। "अह णं पएसो! से पुरिसे तुम एवं वएज्जा--"मा ताव मे सामी! मुहत्तगं हत्थ-च्छिन्नगं-जाव-जीवियाओ ववरोवेहि-जाव-तावाहं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबन्धि-परिजणं एवं वयामि-"एवं खलु देवाणुप्पिया! पावाई कम्माइं समायरित्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणुप्पिया! तुम्भे वि केइ पावाई कम्माइं समायरउ, भा णं से वि एवं चेव आवई पाविज्जिहिइ जहा गं अहं"। तस्स णं तुमं पएसी! पुरिसस्त खणमवि एयमट्ठ पडिसुणेज्जासि ?" "नो इणठे समझें"। "कम्हा णं?" "जम्हा णं भन्ते ! अवराही णं से पुरिसे"। "एवामेव पएसी! तव वि अज्जए होत्था इहेव सेववियाए नयरीए अधम्मिए-जाव-नो सम्म कर-भर-वित्ति पवत्तेइ। से णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहुं-जाव-उववन्नो। तस्स णं अज्जगस्स तुम नत्तुए होत्था इठे, कन्ते-जाव-पासणयाए । से णं इच्छइ माणुसं लोग हन्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। चहि ठाणेहि पएसी ! अहुणोववन्नए नरएसु, नेरइए इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए-से णं तत्थ महब्भूयं वेयणं वेएमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए नो चेव णं संचाइए हव्वमागच्छित्तए१ । अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए नरय-पालेहि भुज्जो भुज्जो समहिट्ठिज्जमाणे इच्छइ माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए २। अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जसि कम्मंसि अक्खीणसि, अवेइयंसि, अनिज्जिण्णसि इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए ३ । एवं नरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि, अवेइयंसि, अनिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए ४। इहिं चहि ठाणेहि पएसी ! अहुणोववन्ने नरएसु नेरइए इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। तं सद्दहाहि णं पएसी ! जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जीवो, तं सरीरं" ॥१॥
२.अहुगोववनदेवस्स मणुस्सलोनागमणविसए निसेहनिरू वगाइं चत्तारि ठाणाई ४६ तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी
"अत्थि णं भंते ! एसा पन्ना उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइ एवं खलु भंते ! मम अज्जिया होत्था इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया-जाव-वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया अभिगय-जीवाजीवा सव्वो वण्णओ-जाव-अप्पाणं भावमाणी विहरइ। सा णं तुझं वत्तव्वयाए सुबहुं पुण्णोव वयं समज्जिणित्ता काल-मासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ना। तीसे णं अज्जियाए अहं नत्तुए होत्था इठे, कंते०-जाव-पासणयाए। तं जइ णं सा अज्जिया ममं आगन्तुं एवं वएज्जा-'एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जिया होत्था इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया-जाव-वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया-जाव-विहरामि। तए णं अहं सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता-जाव-देवलोएसु उववन्ना। तं तुमं पि नत्तुया! भवाहि धम्मिए-जाव-विहराहि । तए णं तुमं पि एवं चेव सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता-जाव-उववज्जिहिसि । तं जइ णं सा अज्जिया मम आगंतुं एवं वएज्जा, तो णं अहं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा, जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जीवो, तं सरीरं। जम्हा सा अज्जिया ममं आगंतुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइन्ना, जहा तं जीवो, तं सरीरं, नो अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं"।
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२७८
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं केसी कुमार-समणे पएसी-रायं एवं वयासी"जइ णं तुमं पएसी! व्हायं, कयबलिकम्मं कयकोउगमंगलपायच्छित्तं उल्ल-पड-साडग, भिंगार-कडुच्छ्य-हत्थ-गय, देवकुलमणुपविसमाणं केइ पुरिसे वच्च-घरंसि ठिच्चा एवं वएज्जा-एह ताव सामी ! इह मुहुत्तगं आसयह वा चिट्ठह वा निसीयह वा तुयह वा। तस्स णं तुम पएसी! पुरिसस्स खणमवि एयमझें पडिसुणिज्जासि ?" "नो तिणठे समठे।" "कम्हा गं?" "भंते! असुइ असुइ सामन्तो"। "एवामेव पएसी! तव वि अज्जिया होत्था इहेव सेयवियाए नयरोए धम्मिया-जाव-विहरइ। सा णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहु-जावउववन्ना, तोसे णं अज्जियाए तुम नत्तुए होत्था इठे-जाव-किमंगपुण पासणयाए। सा णं इच्छइ माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हन्वमागच्छित्तए। चहि ठाणेहि पएसी! अहुणोववन्ने देवे देव-लोएसु इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए अहणोववन्ने देवे देव-लोएस दिहिं काम-भोहि मुच्छिए, गिद्धे, गढिए, अज्झोववन्ने, से णं माणुसे भोगे नो आढाइ, नो परिजाणाइ, से णं इच्छिज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए १। अहणोववन्नए देवे देव-लोएसु दिर्वेहि काम-भोहि मुच्छिए-जाव-अज्झोववन्ने, तस्स णं माणुस्से पेम्मे वोच्छिन्नए भवइ, दिवे पेम्मे संकते भवइ, से णं इच्छेज्जा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छितए २। अहणोववन्ने देवे दिवेहि काम-भोगेहि मुच्छिए-जाव-अज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवइ-इयाणि गच्छं, मुहुत्तं गच्छं-जाव-इह अप्पाउया नरा काल-धम्मुणा संजुत्ता भवंति, से गं इच्छेज्जा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए ३ । अहणोववन्ने देवे दिवेहि-जाव-अज्झोववन्ने तस्स माणुस्सए उराले, दुग्गंधे, पडिकूले, पडिलोमे भवइ, उड्ड पि य णं चत्तारि पंच जोयण-सयाई असुभे माणुस्सए गंधे अभिसमागच्छइ, से णं इच्छेज्जा माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए ४। इच्चएहि चहि ठाणेहि पएसी! अहुणोववन्ने देवे देव-लोएसु इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हन्वमागच्छित्तए। तं सद्दहाहि णं तुम पएसी! जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जीवो, तं सरीरं" ॥२॥
३-४. फेसिकुमारसमणवत्तब्वे जीवस्स अप्पडियहयगईए समत्थणं ४७ तए णं से पएसो राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी
"अत्थि णं भंते! एसा पन्ना उवमा। इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ। एवं खलु भंते ! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाण-सालाए अणेग-गणनायग-दण्डनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-मंति-महामंति-गणग-दोवारियअमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-दूय-संधिवालेहिं सद्धि संपरिवुडे विहरामि । तए णं मम नगर-गुत्तिया ससक्खं सलोइं सगेवेज्जं अवओडय-बन्धण-बद्धं चोरं उवर्णन्ति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य आयामि, आय-पच्चइयएहि पुरिसेहिं रक्खामि । तए णं अहं अन्नया कयाइ जेणामेव सा अओकुंभी, तेणामेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकुंभ उग्गलच्छामि, उग्गलच्छावित्ता, तं पुरिसं सयमेव पासामि । नो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई इ वा जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया निग्गए। जइ णं भंते ! तीसे अओकुंभीए होज्जा केइ छिड्डे वा-जाव-राई वा जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया निग्गए, तो णं अहं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा, जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं, नो तं जीवो, तं सरीरं । जम्हा णं भंते ! तीसे अओकुंभीए नत्थि केइ छिड्डे वा-जाव-निग्गए, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइन्ना, जहा तं जीवो, तं सरीरं, नो अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं"। तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-- "पएसी! से जहा-नामए कूडा-गार-साला सिया, दुहओ-लित्ता गुत्ता गुत्त-दुवारा निवाय-गम्भीरा । अह णं केइ पुरिसे र च दंडं च गहाय कूडागार-सालाए अंतो अंतो अणुपविसइ, अणुपविसित्ता तीसे कूडागार-सालाए सव्वओ, समन्ता घण-निचिय-निरन्तरनिच्छिड्डाई दुवार-वयणाई पिहेइ। तीसे कूडागार-सालाए बहु-मज्झ-देस-भाए ठिच्चा तं भेरि दंडएणं महया महया सद्देणं तालेज्जा।।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
से नृणं पएसी ! से णं हे अंतोहित बहिया छ?"
"हंता निगच्छ"।
"अपिएसी तीसे कूडागारसाला के छिडे बाजाराई वा जल से सतह बहिया निए ?"
"नो इद्र सम" ।
" एवामेव पएसी ! जीवे वि अप्पडिय-गई पुढवि भिच्चा, सिलं भिच्चा, पव्वयं भिच्चा, अंतोहितो बहिया निग्गच्छइ । तं साहि णं तुमं पएसी ! अन्नो जीवो, तं चेव" ॥३॥
४८ तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी
"अत्थि णं भंते! एसा पन्ना उवमा इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइ । एवं खलु भंते ! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उट्ठाण - सालाए - जाव- विहरामि । तए णं ममं नगर-गुत्तिया ससक्खं जाव उवर्णेति । तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि, बबरोवेत्ता अकुंभी पक्वानि अमएणं पिहाणएवं पिहावेभि-जाव-पच्चइएहि पुरिसेहि रक्खामि त अन्या कपाइ जेणेव सा कुंभी तेणेव उवागच्छामि, तं अउ कुंभि उग्गलच्छावेमि । तं अउकुंभि किमि कुंभि पिव पासामि | नो चेव णं तीसे अठ-कुंभीए बाजा-राई वा जओ से जीवा बहियाहितो अंतो अणुपविट्ठा न ती अ-कुंभीए होज्ज केद छिड्डे जाव अणुपविट्ठा, तए णं अहं सहहेज्जा जहा अन्नो जीवो तं चेव । जम्हा णं तीसे अउ कुंभीए नत्थि केइ छिड्डे वा जावअणुपविट्ठा तम्हा सुपट्टिया मे पड़ना, जहा तं जीवो, तं सरीरं तं देव" ॥
तए णं केसी कुमार-समणे पएस रामं एवं वयासी-
" अत्थि णं तुमे पएसी ! कयाइ अए धंत-पुव्वे वा धमाविय-पुब्वे वा ?"
"हंता अस्थि"।
"से नूणं पएसी ! अए धंते समाणे सव्वे अगणि-परिणए भवइ ?"
"हंता भवइ" ।
"अत्थि णं पएसी ! तस्स अयस्स केइ छिड्डे वा जाव राई इ वा, जेणं से जोई बहियाहितो अंतो अणुपविट्ठे ?"
"नो
सम"।
२७९
--
" एवामेव परसी जीवो बिअप गई विभिया सिले बिहिपाहतो तो अपचिस तं सद्दहाहि षं तुमं पएसी ! तहेव" ॥४॥
५६. केसि कुमारसमजवतव्ये जीव-सरीराणं अन्नत समत्यणे अपज्जतोवगरण हे उनिवर्ण
४९ तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-
" अत्थि णं भंते! एसा पन्ना उवमा । इमेण पुण मे कारणेणं नो उवागच्छइ । अत्थि णं भंते! से जहा - नामए केइ पुरिसे- तरुणे - जाव - सिप्पोवगए पभू पंच-कंडगं निसित्तिए ?"
"हंता पभू" ।
"जइ णं भंते! सो चेव पुरिसे बाले जाव मंद-विन्नाणे पभू होज्जा पंच-कुंडगं निसिरित्तए, तो णं अहं सद्दहेज्जा, जहा अन्नो जीवो तं चैव । जम्हा णं भंते! स चेव से पुरिसे जाव-मंद-विन्नाणे नो पभू पंच-कंडगं निसिरितए, तम्हा सुपइट्टिया में पइन्ना, जहा तं जीवो तं चेव" ॥
तए केसी कुमार-समर्थ पएस रामं एवं बवासी-
" से जहा - नामए केइ पुरिसे तरुणे - जाव- सिप्पोवगए नवएणं धणुणा, नवियाए जीवाए, नवएणं उसुणा पभू पंच-कंडगं निसिरित्तए ?" "हंता पभू" ।
"सो चेव णं पुरिसे तरुणे - जाव - निउण- सिप्पोवगए कोरिल्लिएणं धणुणा, कोरिल्लियाए जीवाए, कोरिलिएणं उसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ?"
"जो इसम "कम्हा?"
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
५०
"भंते! तस्स पुरिसस्स अपज्जताई उवगरणाइं हवंति"। "एवामेव पएसी! से चेव पुरिसे बाले-जाव-मंद-विन्नाणे अपज्जत्तोवगरणे, नो पभू पंच-कंडगं निसिरित्तए। तं सद्दहाहि णं तुम पएसो! जहा अन्नो जीवो तं चेव" ॥५॥ तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी"अस्थि णं भंते ! एसा पन्ना उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइ। भंते ! से जहा-नामए केइ पुरिसे तरुणे-जाव-सिप्पोवगए पभू एगं महं अय-भारगं वा तउय-भारगं वा सीसग-भारगं वा परिवहित्तए ?" "हंता पभू"। "सो चेव णं भंते ! पुरिसे जुण्णे, जरा-जज्जरिय-देहे, सिढिल-वलित-यावि-ण?-गत्ते, दण्ड-परिग्गहियग्गहत्थे, पविरल-परिसडिय-दंत-सेढी, आउरे, किसिए, पिवासिए, दुब्बले, किलंते, नो पभू एगं महं अय-भारगं वा-जाव-परिवहित्तए। जइ णं भंते ! से चेव पुरिसे जुण्णे जरा-जज्जरिय-देहे-जाव-परिकिलते पभू एगं महं अय-भारं वा-जाव-परिवहितए, तो णं अहं सद्दहेज्जा०, तहेव । जम्हा णं भंते । से चेव पुरिसे जुण्णे-जाव-किलंते नो पभू एगं महं अय-भारं वा-जाव-परिवहित्तए, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइन्ना०, तहेव" ॥ तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासो-- "से जहा-नामए केइ पुरिसे तरुणे-जाव-सिप्पोवगए, नवियाए विहंगियाए, नवहि सिक्करहिं नवहिं पत्थिय-पिडाह पह एगं महं अय-भारं-जाव-परिवहित्तए?" "हंता पभू"। "पएसी ! से चेव णं पुरिसे तरुणे-जाव-सिप्पोवगए, जुण्णियाए, दुब्बलियाए, घुण-क्खइयाए विहंगियाए, दुखलएहि, जुण्णएहि, घुण्ण-क्खइएहि, सिढिल-तया-पिणद्धहि सिक्करहि. जुग्णएहि, दुब्बलएहि, घुगक्खइएहि, पत्थिय-पिडएहि पभू एगं महं अय-भारं वा-जाव-परिवहित्तए ?" "नो इणठे समठे"। "कम्हा गं?" "भंते ! तस्स पुरिसस्स जुण्णाई उवगरणाई हवंति"। "पएसो! से चेव से पुरिसे जुन्ने-जाव-किलंते जुण्णोवगरणे नो पभू एगं महं अय-भारं वा-जाव-परिवहित्तए। तं सद्दहाहि णं तुम पएसो! जहा अन्नो जीवो, अन्नं सरोरं" ॥६॥
पुरिस जीवंतगं चेव तुमि वा तुलियस्स केइ आणते वा नालयस केइ अन्नते वा-जावलायआणते वा लहुयत्ते वा तम्हा
७. केसिकुमारसमणवत्तवे जीवस्स अगुरुलहुयत्तं ५१ तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी--
"अत्थि णं भंते ! -जाव-नो उवागच्छइ। एवं खलु भंते ! -जाव-विहरामि। तए णं मम नगर-गुत्तिया चोरं उवणेति । तए णं अहं तं परिसं जीवंतगं चेव तुलेमि। तुलेत्ता छवि-च्छेयं अकुब्वमाणे जीवियाओ ववरोवेमि, मयं तुलेमि। नो चेव णं तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ आणत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गुरुयत्ते वा लहुयत्ते वा। जइ णं भंते! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स मुयस्स वा तुलियस्स केइ अन्नते वा-जाव-लहुयत्ते वा तो गं अहं सद्दहेज्जा, तं चेव । जम्हा णं भंते ! तस्स पुरिसस्स जीवं-तस्स वा तुलियस्स मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ आणते वा लहुयत्ते वा तम्हा सुपइट्ठिया मे पइन्ना जहा तं जीवो, तं चेव"। तए णं केसी कुमार-समणे पसि रायं एवं बयासी"अत्थि गं पएसी! तुमे कयाइ बत्थी धंत-पुव्वे वा धमाविय-पुव्वे वा?" "हंता अत्थि"। "अत्थि णं पएसी! तस्स बत्थिस्स पुण्णस्स वा तुलियस्स अपुण्णस्स वा तुलियस्स केइ अन्नत्ते वा-जाव-लहुयत्ते वा?" "नो इणठे समलैं"। "एवामेव पएसी ! जीवस्स अगुरु-लघुयत्तं पडुच्च जीवंतस्स वा तुलियस्स मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ आणते वा-जाव-लहयत्ते वा। तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी! तं चेव" ॥७॥
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पासपिसिहाणगं
८. के सिकुमारसमण वत्तखे कट्टगय अगणिविट्ठलेण जीवरस असणीवतं
५२ एएसी राया केसि कुमार-सम एवं वासी
"अत्थि णं भंते! एसा जाव-नो उवागच्छइ । एवं खलु भंते ! अहं अन्नया जाव चोरं उवर्णेति । तए णं अहं तं पुरिसं सव्वओ, समन्ता समभिलोएमि । नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । तए णं अहं तं पुरिसं दुहा- फालियं करेमि करिता सव्वओ, समन्ता समभिलोएमि । नो चेव णं तत्थ जीव पासामि । एवं तिहा, चउहा संखेज्जकालियं करोमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । जणं भंते! अहं तम्मि पुरिसम्मि हा वा लिहा वा चउहा या संज्जा वा फालियन जीवं पासंतो, तो अहं सहेजा नो० तं चेव । जम्हा णं भंते! अहं तंसि दुहा वा तिहा वा चउहा वा संखेज्जहा वा फालियम्मि जीवं न पासामि, तम्हा सुपट्टिया में पन्ना, जहा तं जीवो तं सरीरं०, तं चेव" ।।
तए णं केसी कुमार-सम
पसरावं एवं बी--]]
"तरा तु पएसी ताओ तुच्छतराओ" ।
"के णं भंते! तुच्छतराए ?"
"पएसी से जहानामा केई पुरिसा वचत्थी बनवजीवो यण-याए जो दो भावणं न गाव द्वाणं अवि अणुपविट्ठा। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए- जाव-किचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं पुरिसं एवं वयासी-"अम्हे देवागुपिया! काणं अनि पविसामो एलो गं तुझं जोह-मायणाओ जोई गहाय अहं असणं साहेज्जासि अह तं जो भाव जोई बावेजा एतो गं तुमं कट्टाओ जोई हाय म्हं अवनं साहेज्जासि त कट्टु का
अणुविट्ठा तएषं से पुरिसे तो महत्तरस्स तेसि पुरिसाणं असणं साहेनि ति कट्ट जेणेव जोड़ भागे व उपागच्छ जोड़-भाइ जो विज्झायमेव पास। तए णं से पुरिसे जेणेव से कट्ठेतेणेव उवागच्छ्इ, उवागच्छिता तं कट्ठे सव्वओ समंता समभिलोएइ, नो चेव णं तत्थ जो पासइ ।
लए पं से पुरिसे परियरं बंध, फरसं हि तं कहा फालि करे सव्य समन्ता समो नई पासइ । एवं जाव-संखेज्ज- फालियं करेइ, सव्वओ समंता समभिलोएइ नो चेव णं तत्थ जोई पासइ । तए णं से पुरिसे तंसि फालिए वा जोई अपासमा संते, संते पतितेन समाने पर एवं एडेड परिय
सहा फालिए बाजा
मुप, एवं पयासी-
"अहो मए तेसि पुरिसाणं असणे मो साहिए" त्ति कट्टु ओहय-मण-संकल्पे, चिन्तासोग-सागर - संपविट्ठे करयल- पल्हत्य-मुहे, अट्टपोवार, भूमि-गय-विट्टिए सियाह ।
२८१
तए णं ते पुरिसा कट्टाई छिवंति, जेणेव से पुरिसे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता तं पुरिसं ओहय-मण-संकल्पं जाव-झियायमाणं पासंति, एवं वयासी-
"कणं तुमं देवादिया! ओह-मण-संकाय ?"
एणं से पुरिसे एवं बयासी
"सुन्ने थं देवासुविधा कट्टाणं अडवि अणुपविसमाया ममं एवं वयासी-
“अम्हे णं देवाशुप्पिया ! कट्ठाणं अडव-जाव- पविट्ठा। तए णं अहं तत्तो मुहुत्तंतरस्स तुज्झं असणं साहेमि त्ति कट्टु जेणेव जोई - जाव- झियामि" ।
तए णं तेसि पुरिसाणं एगे पुरिसे छेए, दक्खे पत्तट्ठे जाव उवएसलद्धे, ते पुरिसे एवं व्यासी-
"गच्छतु देवागुथिया ! व्हाया हव्यमा जाणं अहं असणं साहेनि । "
४० क० ३६
ति कट्ट् परियधा, बंधिता परसुं गिव्हद, सरं करे, सरेण अणि महेद, जो पाडे, जोईसि पुरिसागं असणं साहेत पुरिसा व्हावा, जेणेव से रिले, तेच उगच्छति । तए से रिले तेति पुरिसाणं गृहावर गयागं तं विलं असणं, पाणं, खाइमं साइमं उवणेइ । तए णं ते पुरिसा तं विउलं असणं जाव- साइमं आसाएमाणा, बीसाएमाणा- जाव-विहति । जिमिया वि य णं समाणा आता, चोक्खा, परम-मुद्द-भूवा तं पुरिसं एवं ववासी-
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२८२
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो 'अहो णं तुम देवाणुप्पिया! जड्डे मूढे, अपंडिए निम्विन्नाणे, अणुवएस-लद्धे, जे णं तुम इच्छसि कट्ठसि दुहा-फालियंसि वा० जोई पासित्तए। से एएण→णं पएसी! एवं बुच्चइ मूढतराए णं तुमं पएसो ताओ तुच्छतराओ" ॥८॥
केसिकुमारसमणनिद्दिनें पएसिरन्नो ववहारित्तणं ५३ तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं बयासी
"जुत्तए णं भंते! तुम्हं इय छयाणं, दक्खाणं, बुद्धाणं, कुसलाणं, महा-मईणं, विणीयाणं, विन्नाण-पत्ताणं, उवएसलद्धाणं अहं इमीसाए महालियाए महच्चपरिसाए मज्झे उच्चावहि आउसेहि आउसित्तए, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसित्तए, एवं उच्चावयाहि निभंछणाहि निभच्छित्तए उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडित्तए?" तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं बयासी-- "जाणासि णं तुमं पएसी! कइ परिसाओ पन्नत्ताओ?" "भंते! जाणामि, चत्तारि परिसाओ पन्नत्ता। तं जहा-खत्तिय-परिसा, गाहावइ-परिसा, माहण-परिसा, इसि-परिसा"। "जाणासि णं तुम पएसी राया ! एयासि चउण्हं परिसाणं कस्स का दण्ड-नोई पन्नत्ता?" "हंता जाणामि । जेणं खत्तिय-परिसाए अवरज्झइ से णं हत्थ-च्छिन्नए वा पाय-च्छिन्नए वा सीस-च्छिन्नए वा सूलाइए वा एगाहच्चे कुडाहच्चे जीवियाओ ववरोविज्जइ । जे गं गाहावइ-परिसाए अवरज्झइ से गं तएण वा वेढेण वा पलालेण वा वेढित्ता अगणि-काएणं झामिज्जइ। जे गं माहण-परिसाए अवरज्झइ से णं अणिवाहि अर्कताहि-जाव-अमणामाहि, वहिं उवालंभित्ता कुंडिया-लंछणए वा सुणग-लंछणए वा कोरइ, निव्विसए वा आणविज्जइ।। जे णं इसि-परिसाए अवरज्झइ से णं नाइ-अणिवाहि-जाव-नाइ-अमणामाहि, वहिं उबालब्भई"। "एवं च ताव पएसी ! तुम जाणासि, तहा वि णं तुम ममं वाम-वामेणं दंड-दंडेणं, पडिकूल-पडिकूलेणं, पडिलोम-पडिलोमेणं विवच्चासं-विवच्चासेणं बट्टसि"। तए णं पएसो राया केसि कुमार-समणं एवं बयासी-- "एवं खलु अहं देवाणुप्पिएहि पढमिल्लएणं चेव वागरणेणं संलते। तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्थाजहा-जहा णं एयस्स पुरिसस्स वाम-वामेणं-जाव-विवच्चासं-विवच्चासेणं वट्टिस्सामि, तहा-तहा णं अहं नाणं च नाणोवलम्भं च करणं च करणोवलम्भं च दंसणं च सणोवलम्भं च जीवं च जीवोवलम्भं च उवलभिस्सामि । तं एएणं कारणेणं अहं देवाणुप्पियाणं वामवामेणं-जाव-विवच्चा-संविवच्चासेणं बट्टिए"। तए णं केसी कुमार-समणे पएसोरायं एवं वयासी-- "जाणासि णं तुमं पएसी। कइ ववहारगा पन्नत्ता?" "हंता जाणामि, चत्तारि ववहारगा पन्नत्ता-देइ नामेगे, नो सन्नवेइ; सन्नवेइ, नामेगे नो देइ; एगे देइ वि, सन्नवेइ वि; एगे नो देइ, नो सन्नवेई"। "जाणासि णं तुमं पएसी! एएसि चउण्हं पुरिसाणं के बवहारी, के अव्ववहारी ?" "हंता जाणामि, तत्थ णं जे से पुरिसे देइ, नो सन्नवेइ, से णं पुरिसे ववहारी; तत्थ णं जे से पुरिसे नो देइ, सन्नवेइ, से णं पुरिसे ववहारी; तत्थ णं जे से पुरिसे देइ वि, सन्नवेइ वि से णं पुरिसे ववहारी; तत्थ णं जे से पुरिसे नो देइ, नो सन्नवेइ, से णं अववहारो"। "एवामेव तुमं पि ववहारी, नो चेव णं तुम पएसी! अववहारी" ॥
केसिकमारनिहिठं जीवस्य अंदसणीयत्तं ५४ तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी
"तुब्भ णं भंते ! इय छया, दक्खा-जाव-उवएसलद्धा। समत्था णं भंते ! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिनिवट्टिताणं उवदंसित्तए?"
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
२८३
तेणं कालेणं, तेणं समएणं पएसिस्स रन्नो अदूर-सामंते बाउ-काए संवत्ते, तण-वणस्सइ-काए एयइ, वेयइ, चलइ, फंदइ, घट्टइ, उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ। तए णं केसी कुमारसमणे पसि रायं एवं वयासी-- "पाससि णं तुम पएसी राया! एवं तण-वणस्सई एयंत-जाव-तं तं भावं परिणमंते ?" "हंता पासामि"। "जाणासि णं तुमं पएसी! एयं तण-वणस्सइ-कायं कि देवो चालेइ, असुरो वा चालेइ, नागो वा किन्नरो वा चालेइ, किंपुरिसो वा चालेइ, महोरगो वा चालेइ, गंधव्वो वा चालेइ ?" "हंता जाणामि, नो देवो चालेइ-जाव-नो गंधव्वो वा चालेइ, वाउ-काए चालेइ"। "पाससि गं तुम पएसी! एयस्स वाउ-कायस्स सरूविस्स, सकामस्स सरागस्स, समोहस्स, सवेयस्स सलेसस्स, ससरीरस्स एवं" ? "नो इणठे समलैं"। "जइ णं तुमं पएसी राया ! एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स-जाव-ससरीरस्स रूवं न पाससि, तं कहं णं पएसी! तव करयलंसि वा आमलगं जीवं उवदंसिस्सामि?" एवं खलु पएसी! दस-ठाणाई छउमत्थे मणुस्से सव्व-भावेणं न जाणइ, न पासइ, तं जहा-धम्मत्थिकायं १, अधम्मत्थिकायं २, आगासत्थिकायं ३, जीवं असरीरबद्धं ४, परमाणुपोग्गलं ५, सई ६, गन्धं ७, वायं ८, अयं जिणे भविस्सइ नो वा भविस्सइ ९, अयं सव्व-दुक्खाणं अंतं करिस्सइ वा नो वा करिस्सइ १०।। एयाणि चेव उप्पन्न-नाण-दसण-धरे अरहा जिणे केवली सव्व-भावेणं जाणइ, पासइ। तं जहा-धम्मत्थिकायं-जाव-नो वा करिस्सइ। तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी! जहा अन्नो जीवो०, तं चेव" ॥
केसिकुमारसमणनिद्दिव जीवपएसाणं सरीरपमाणावगाहित्तं ५५ तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी--
"से नूणं भंते ! हत्थिस्स कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?" "हंता पएसी! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे" । “से नूणं भंते! हत्थीओ कुंथू अप्प-कम्मतराए चेव अप्प-किरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव, एवं आहार-निहार-उस्सासनीसासइड्ढीए अप्पतराए चेव, एवं च कुंथुओ हत्थी महा-कम्मतराए चेव महाकिरिय० तराए चेव ?" "हंता पएसी! हत्थीओ कुंथू अप्प-कम्मतराए चेव०, कुंथुओ वा हत्थी महा-कम्मतराए चेव० तं चेव" । "कम्हा णं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे?" "पएसी से जहा-नामए कूडागार-साला सिया-जाव-गम्भीरा। अह णं केइ पुरिसे जोई वा दीवं वा गहाय तं कूडागार-सालं अंतो अंतो अणुपविसइ। तीसे कूडागार-सालाए सव्वओ समंता घण-निचिय-निरंतर-निच्छिड्डाई दुवार-वयणाई पिहेइ, पिहेत्ता तीसे कूडागार-सालाए बहु-मज्झ-देस-भाए तं पईवं पलीवेज्जा। तए णं से पईवे तं कडागार-सालं अंतो अंतो ओभासइ, उज्जोवेइ, तवइ, पभासेइ, नो चेव णं बाहिं। अह णं से पुरिसे तं पईवं इड्डरएणं पिहेज्जा, तए णं से पईवे तं इड्डरयं अंतो अंतो ओभासेइ -जाव-पभासइ, नो चेव णं इड्डरगस्स बाहि, नो चेव णं कूडागार-सालाए बाहिं । एवं किलिजेणं, गंडमाणियाए, पत्थिय-पिडएणं, आढएणं, अद्धाढएणं, पत्थएणं, अद्ध-पत्थएणं, कुलवणं, अद्ध-कुलवेणं, चाउ-भाइयाए, अट्ठ-भाइयाए, सोलसियाए अंतो बत्तीसियाए. चउसट्ठियाए, दीव-चंपएणं। तए णं से पईवे दीव-चंपगस्स अंतो अंतो ओभासइ-जाव-पभासइ, नो चेव णं दीव-चंपगस्स बाहिं, नो चेव णं चउसट्ठियाए बाहि, नो चेव णं कूडागार-सालं, नो चेव णं कूडागार-सालाए बाहिं। एवामेव पएसी! जीवे वि जं जारिसयं पुव्व-कम्म-निबद्धं बोंदि निव्वत्तेइ, तं असंखेहिं जीव-पएसेहिं सचित्तं करेइ खुड्डियं वा महालियं वा। तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! जहा अन्नो जीवो०, तं चेव" ॥
केसिकुमारसमणवत्तवे अयहारयदिळंतेण पच्छाणुतावनिसहपरूवणं ५६ तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी--
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
"एवं खलु भंते ! मम अज्जगस्स एसा सन्ना-जाव-समोसरणे, जहा तं जीवो, तं सरीरं, नो अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं । तयणंतरं च णं ममं पिउणो वि एसा सन्ना। तयणंतरं मम वि एसा सन्ना-जाव-समोसरणे । तं नो खलु अहं बहु-पुरिस-परंपरागयं कुलनिस्सियं दिट्टि छंडस्सामि"। तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी"मा तुम पएसी! पच्छाणुताविए भवेज्जासि जहा व से पुरिसे अय-हारए"। "के णं भंते ! से अय-हारए ?" "पएसी! से जहा-नामए केई पुरिसा अत्थत्थी, अत्थ-गवेसी, अत्थ-लुद्धगा, अत्थ-कंखिया, अत्थ-पिवासिया, अत्थ-गवेसणयाए विउलं पणिय-भंडमायाए सुबहुं भत्त-पाण-पत्थयणं गहाय, एगं महं अगामियं, छिन्नावायं, दीहमद्धं अडवि अणु-पविटा। तए णं ते पुरिसा तोसे अगामियाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा, एगं महं अयागरं पासंति, अएणं सव्वओ समंता आइण्णं, विस्थिग्णं, सच्छडं, उवच्छडं, फुडं, गाढं, अवगाढं, पासंति, पासित्ता हट्ठ-तुट्ठ-जाव-हियया अन्नमन्नं सहावेति, सहावित्ता एवं वयासी-- "एस णं देवाणुप्पिया! अय-भंडे इट्टे, कंते-जाव-मणामे। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं अय-भारए बंधित्तए" त्ति कट्ट अन्नमन्नस्स एयमळं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता अय-भारं बंधंति, बंधित्ता अहाणुपुवीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए-जाव-अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं महं तउआगरं पासंति, तउएणं आइण्णं तं चेव-जाव-सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "एस णं देवाणु प्पिया! तउय-भंडे-जाव-मणामे। अप्पेणं चेव तउएणं सुबहु अए लम्भइ। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अय-भारए छड्डेत्ता तउय-भारए बंधित्तए"। त्ति कटु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमढें पडिसुणेति, अय-भारं छड्डेन्ति, तज्य-भारं बंधति । तत्थ णं एगे पुरिसे नो संचाएइ अय-भारं छड्डित्तए, तउय-भारं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं एवं वयासी-- "एस णं देवाणुप्पिया! तउय-भंडे-जाव-सुबहुं अए लब्भइ। तं छहेहि णं देवाणप्पिया! अय-भारगं, तउप-भारगं बंधाहि। तए णं से पुरिसे एवं वयासो-- 'दूराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए; चिराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए; अइ-गाढ-बंधण-बद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए; असिलिट्ठ-बंधणबद्ध मे देवाणुप्पिया ! अए; धणिय-बंधण-बद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए; नो संचाएमि अय-भारगं छड्डेत्ता, तउय-भारगं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य आघवित्तए वा पनवित्तए वा, तया अहाणुपुवीए संपत्थिया। एवं तंबागरं, रुप्पागरं, सुवण्णागरं, रयणागरं, बइरागरं । तए ण ते पुरिसा जेणेव सया सया जणवया, जेणेव साइं साई नयराइं, तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता बइर-विक्कयणं करेंति, करेत्ता सुबहु-दासी-दास-गो-महिस-गवेलगं गिव्हंति, गेण्हित्ता अट्ठ-तलमूसिय-बडिसगे कारावेति । व्हाया कयबलिकम्मा उप्पि पासायवर-गया, फुट्टमार्णोह मुइंग-मत्थएहि, बत्तीसइ-बद्धहि नाडएहि बर-तरुणी-संपउत्तेहि उवनच्चिज्जमाणा, उबलालिज्जमाणा, इट्टे सद्दफरिस-जाव-विहरंति॥ तए णं से पुरिसे अय-भारेण जेणेव सए नयरे तेणेव उवागच्छद। अय-विक्किगणं करेइ, करेत्ता तंसि अप्प-मोल्लंसि निहियंसि झीण-परिवए ते पुरिसे उप्पि पासाय-वर-गए-जाव-विहरमाणे पासइ, पासित्ता एवं वयासी-- 'अहो णं अहं अधन्ने, अपुण्णे, अकयत्थे अकय-लक्खणे, हिरि-सिरि-वज्जिए, होण-पुण्ण-चाउद्दसे, दुरंत-पंत-लक्खणे । जइ णं अहं मित्ताण वा नाईण वा नियगाण वा सुणेतओ, तो गं अहं पि एवं चेव उप्पि पासाय-वर-गए-जाव-विहरंतो'। से तेणठेणं पएसी! एवं वुच्चइ-“मा णं तुमं पएसो! पच्छाणुताविए भवेज्जासि जहा व से पुरिसे अय-हारए"।
पएसिरन्नो गिहिधम्मपडिवत्ती, रमणिज्ज-अरमणिज्जविसए वणसंडाइदिट्ठता य ५७ एत्थ णं से पएसी राया संबुद्धे केसि कुमार-समणं बंदइ एवं वयासी--
"नो खलु भंते! अहं पच्छाणुताविए भविस्सामि जहा व से पुरिसे अयहारए । तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं अंतिए केवलि-पन्नत्तं धम्म निसामित्तए"।
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
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"अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेहि"। धम्मकहा जहा चित्तस्स, तहेव गिहि-धम्म पडिवज्जइ, पडिबज्जित्ता जेणेव सेयविया नयरी, तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं केसी कुमार-समणे परसि रायं एवं वयासी"जाणसि तुमं पएसी! कइ आयरिया पन्नत्ता?" "हंता जाणाभि, तओ आयरिया पन्नता। तं जहा-कलायरिए, सिप्पायरिए, धम्मायरिए।" "जाणासि णं तुम पएसी! तेसि तिण्हं आयरियाणं कस्स का विणय-पडिवत्ती पउंज्जियव्वा ?" "हंता जाणामि, कलायरियस्स सिप्पायरियस्स उवलेवणं संमज्जणं वा करेज्जा, पुरओ पुप्फाणि वा आणवेज्जा, मज्जावेज्जा, मंडावेज्जा, भोयावेज्जा वा, विउलं जीवियारिहं पोइ-दाणं दलएज्जा, पुत्ताणुपुत्तियं वित्ति कप्पेज्जा। जत्थेव धम्मायरियं पासिज्जा, तत्थेव वंदेज्जा, नमसेज्जा, सक्कारेज्जा, संभाणेज्जा, कल्लाणं, मङ्गलं, देवयं, चेइयं पज्जुवासेज्जा, फासुएसणिज्जणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेज्जा, पाडिहारिएणं पीढफलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतेज्जा ।" "एवं च ताव तुमं पएसी! एवं जाणासि, तहा विणं तुम ममं वाम-वामेणं-जाव-बट्टित्ता ममं एयम8 अक्खामित्ता जेणेव सेयविया नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाएं"। तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी"एवं खलु भंते ! मम एया-रूबे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था"एवं खलु अहं देवाणुप्पियाणं वाम-वामेणं-जाव-वट्टिए, तं सेयं खलु मे कल्लं पाउ-प्यभायाए रयणीए-जाव-तेयसा जलते, अंतेउरपरियाल-सद्धि संपरिवडस्स देवाणुप्पिए वंदित्तए, नमंसित्तए, एयमट्ठ भुज्जो भुज्जो सम्मं विगएणं खामित्तए"
त्ति कटु जामेव दिसि पाउन्भए, तामेव दिसि पडिगए। ५८ तए णं से पएसी राया कल्लं पाउ-प्पभायाए रयणीए-जाव-तेयसा जलंते, हतुट्ट-जाव-हियए, जहेव कूणिए तहेव निग्गच्छइ,
अंतेउर-परियाल-सद्धि संपरिबुडे पंचविहेणं अभिगमेणं वंदइ, नमसइ, एयम भुज्जो भुज्जो सम्मं विणएणं खामेइ ॥ तए णं केसी कुमार-समणे पएसिस्स रन्नो, सूरियकन्त-प्पमुहाणं देवीणं, तीसे य महइमहालियाए महच्चपरिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । तए णं पएसी राया धम्म सोच्चा, निसम्म उट्टाए उठेइ, उद्वित्ता केसि कुमार-समणं बंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सेयविया नयरी, तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं केसी कुमार-समणे पसि रायं एवं वयासी"मा णं तुम पएसी ! पुचि रमणिज्जे भवित्ता, पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा से वण-संडे इ वा नट्ट-साला इ वा इक्खुवाडए इ वा खल-वाडए इ वा”। "कहं णं भंते ?" 'जया णं वण-संडे पत्तिए, पुप्पिए, फलिए, हरियग-रेरिज्जमाणे, सिरीए अईव अईव अवसोभेमाणे चिटुइ, तया णं वण-संडे रमणिज्जे भवइ । जया णं वग-संडे नो पत्तिए, नो पुफिए, नो फलिए, नो हरियग-रेरिज्जमाणे, नो सिरीए अईय अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तया णं जुण्णे, झडे, परिसडिय-पंडु-पत्ते, सुक्क-रुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ, तया णं वण-संडे नो रमणिज्जे भवइ । जया णं नट्ट-साला वि गिज्जइ, वाइज्जइ, नच्चिज्जइ, हसिज्जइ, रमिज्जइ, तया णं नट्ट-साला रमणिज्जा भवइ । जया णं नट्टसाला नो गिज्जइ-जाव-नो रमिज्जइ, तया णं नट्ट-साला अरभणिज्जा भवइ । जया णं इक्खु-वाडे छिज्जइ, भिज्जइ, सिज्जइ, पिज्जइ, दिज्जइ. तया णं इक्खु-वाडे रमणिज्जे भवइ। जया णं इक्खु-वाडे नो छिज्जइ-जाव-तया णं इक्खु-वाडे अरमणिज्जे भव। जया णं खल-वाडे उच्छुउभइ, उडुइज्जइ, मलइज्जइ, मुणिज्जइ, खज्जइ, पिज्जइ दिज्जइ, तया णं खल-वाडे रमणिज्जे भवइ । जया णं खल-बाडे नो उच्छुकभइ-जाव-अरमणिज्जे भवइ । से तेणठेणं पएसी! एवं वुच्चइ, मा णं तुमं पएसी ! पुद्वि रमणिज्जे भवित्ता, पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा से वणसंडे इ वा।" तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं बयासी
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
"नो खलु भंते! अहं पुब्धि रमणिज्जे भवित्ता, पच्छा अरमणिज्जे भविस्सामि, जहा से वण-संडे इ वा-जाव-खल-वाडे इ वा। अहं णं सेयविया-नयरी-पामोक्खाई सत्त गाम-सहस्साई चत्तारि भागे करिस्सामि । एगं भागं बलवाहणस्स दलइस्सामि, एगं भागं कोट्ठागारे छुभिस्सामि, एवं भागं अंते-उरस्स दलइस्सामि, एगेणं भागेणं महइ-महालयं कूडागार-सालं करिस्सामि । तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहि दिन्न-भइ-भत्त-वेयहि विउलं असणं-जाव-साइम-उबक्खडावेत्ता, बहूणं, समण-माहण-भिक्खुयाणं पन्थिय-पहियाणं परिभाएमाणे परिभाएमाणे बहूहि सोलन्वय-गुणन्वय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासस्स-जाव-विहरिस्सामि"। त्ति कटु जामेव दिसि, पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए॥ तए णं से पएसी राया कल्लं-जाव-तेयसा जलते सेयविया-पामोक्खाई सत्त गाम-सहस्साई चत्तारि भाए करेइ । एगं भागं बलवाहणस्स दलइ-जाव-कूडागार-सालं करेइ, तत्थ णं बहूहि पुरसेहि-जाब-उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-जाव-परिभाएमाणे विहरइ । सूरियताकयविसप्पओगो, पएसिस्स समाहिमरणं, सरियाभदेवत्तेण उववाओ य तए णं से पएसी राया समणोवासए जाए अभिगय-जीवाजीवे-जाव-विहरइ । जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिई च णं रज्जं च रटुं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च जणवयं च अणाढायमाणे यावि विहरइ । तए णं तीसे सूरियकताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था"जप्पभिदं च णं पएसी राया समणोवासए जाए, तप्पभिई च णं रज्जं च रटुं च -जाव-अंतेउरं च ममं च जणवयं च अणाढायमाणे विहरइ। तं सेयं खलु मे पसि रायं केण वि सत्थ-पओगेण वा अग्गि-पओगेण वा मन्त-प्पओगेण वा विस-प्पओगेण वा उद्दवेत्ता, सूरियकंत कुमारं रज्जे ठवित्ता, सयमेव रज्ज-सिरि कारेमाणीए, पालेमाणीए विहरित्तए"त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी"जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए, तप्पभिई च णं रज्जं च -जाब-अंतेउरं च ममं च जणवयं च माणुस्सए य कामभोगे अणाढायमाणे विहरइ । तं सेयं खलु तव पुत्ता ! परसि रायं केणइ सत्थ-प्पओगेण वा-जाव-उद्दवित्ता सयमेव रज्ज-सिरि कारेमाणे, पालेमाणे विहरित्तए" । तए णं सूरियकंते कुमारे सूरियकताए देवीए एवं वुत्ते समाणे सूरियकताए देवीए एयम8 नो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तोसे सूरियकताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए-जाव- समुप्पज्जित्था"मा णं सूरियकंते कुमारे पएसिस्स रन्नो इमं ममं रहस्स-भेयं करिस्सई" त्ति कटु पएसिस्स रन्नो छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य अंतरराणि य पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ । तए णं सूरियकता देवी अन्नया कयाइ पएसिस्स रन्नो अंतरं जाणइ, जाणित्ता असणं-जाव-साइमं सव्व-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं विसप्पओगं पउज्जइ। पएसिस्स रन्नो हायस्स, सुहासण-वर-गयस्स तं विस-संजुत्तं असणं-जाव-साइमं वत्थं -जाव-अलंकारं निसिरेइ, घायइ। तए णं तस्स पएसिस्स रन्नो तं विस-संजुत्तं असणं-जाव-साइमं आहारेमाणस्स सरीरगम्मि वेयणा पाउन्भूया उज्जला, विउला पगाढा, कक्कसा. कडुया, फरुसा, गिठ्ठरा, चंडा, तिव्वा, दुक्खा, दुग्गा, दुरहियासा, पित्त-जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कन्तिए
यावि विहरइ॥ ६० तए णं से पएसी राया सूरियकताए देवीए अत्ताणं संपलद्धं जाणित्ता, सूरियकताए देवीए मगसा वि अण्पदुस्समाणे जेणेव पोसह
साला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसह-सालं पमज्जइ, पमज्जिता उच्चारपा-सवण-भूमि पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता दन्भ-संथारगं संयरेइ, संयरेत्ता दन्भ-संथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलिय-निसणे, करयल-परिग्गहियं सिरसावतं अञ्जलि मत्थए कट्ट एवं क्यासी-- 'नमोत्थु णं अरहंताणं-जाव-संपत्ताणं। नमोत्थु णं केसिस्स कुमार-समणस्स मम धम्मोवएसगस्स, धम्मायरियस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थ-गयं इहगए। पासउ मं भगवं तत्थ-गए इह-गयं" ति कटु वंदइ, नमसइ। "पुदिव पि णं मए केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए थूल-पाणाइवाए पच्चक्खाए-जाव-परिग्गहे । तं इयाणि पिणं तस्सेव भगवओ अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि-जाव-परिग्गहं, सव्वं कोहं-जाव-मिच्छा-दंसण-सल्लं, अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामि, चउविहं पि आहारं जावज्जीवाए पच्चक्खामि, जं पि य मे सरीरं इ8-जाव-फुसंतु ति एवं पि य णं चरिमेहि ऊसास-निस्सासेहि वोसिरामि"
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पासतित्थे पएसिकहाणगं
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त्ति कटु आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, काल-मासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे, सूरियाभे विमाणे उववाय-सभाए-जाव-उबवण्णो । तए णं से सूरियाभे देवे अहुणोववन्नए चेव समाणे पञ्चविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ । तं जहा-आहार-पज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इन्दिय-पज्जत्तीए आण-पाण-पज्जत्तीए भासा-मण पज्जत्तीए। तं एवं खलु भो सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी, दिव्वा देव-जुई, दिव्वे देवाणुभावे लद्धे, पत्ते, अभिसमन्नागए" ।
सूरियाभदेवभवाणंतरं पएसिरायजीवस्स दढपइन्नभवे मोक्खगमणनिरूवणं "सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ?" "गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पन्नता"। "से णं सूरिया देव ताओ देव-लोगाओ आउ-क्खएणं, भव-क्खएणं, ठिइ-क्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ?" गोयमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति, तं जहा-अड्ढाई, दित्ताई, विउलाई, वित्थिण्ण-विपुल-भवण-सयगासणजाण-वाहणाई, बहुधण-बहुजायरूव-रययाई, आओग-पओग-संपउत्ताई, विच्छड्डिय-पउर-भत्त-पाणाई, बहु-दासी-दास-गो-महिसगवेलग-प्पभूयाई, बहु-जगस्स अपरिभूयाई, तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ। तए णं तंसि दारगंसि गभगयंसि चेव समाणंसि अम्मा-पिऊणं धम्मे दढा पइन्ना भविस्सइ। तए णं तस्स दारगस्स नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं, अट्ठमाण राइंदियागं, वीइक्कंताणं, सुकुमाल-पाणिपाय, अहीण-पडिपुण्णपंचिदिय-सरोरं, लक्खण-वंजण-गुणोववेयं, मागुम्माण-पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वङ्ग-सुंदरं, ससि-सोमाकारं, कंतं, पिय-दंसणं, सुरुवं दारयं पयाहिइ। तए ण तस्स दारगस्स अम्मा-पियरो पढमे दिवसे ठिइ-वडियं करेहिति । तइय-दिवसे चंद-सूर-दसणगं करिस्सन्ति । छठे दिवसे जागरियं जागरिस्तति । एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते, संपत्ते, बारसाहे दिवसे, निवित्ते, असुइ-जाय-कम्म-करणे, चोक्खे, संमज्जिओवलिते, विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडा वेस्पति, मित्त-नाइ-नियग-सबग-संबंधि-परियणं आमंतेत्ता, तओ पच्छा व्हाया कयबलिकम्मा-जाव-अलंकिया, भोयण-मंडवंसि सुहासण-वर-गया, तेण मित्त-नाइ-जाव-परिजणेण सद्धि विउलं असणं-जाव-साइमं आसाएमाणा, विसाएमाणा, परिभुजेमाणा, परिभाएमाणा एवं चेव णं विहरिस्संति । जिमिय-भुत्तत्तरागया वि य णं समाणा आयंता, चोक्खा, परम-सुइ-भूया तं मित्त-नाइ-जाव-परियणं विउलेणं वत्थ-गन्ध-मल्लालंकारेणं सक्कारेस्संति, संमाणिस्सन्ति, तस्सेव मित्त -जाव-परियणस्स पुरओ एवं वइस्संतिजम्हा णं देवाणुप्पिया ! इमंसि दारगंसि गम्भगयंसि चेव समाणंसि धम्मे दढा पइन्ना जाया, तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स दढपइन्ने नामेणं । तए णं तस्स दढपइन्नस्स दारगस्स अम्मा-पियरो नामधेज्ज करिस्संति-दढपइन्नो य दढपइन्नो य । तए णं तस्स अम्मा-पियरो अणुपुव्वेणं ठिइ-वडियं च चंद-सूरिय-दरिसणं च धम्म-जागरियं च नामधेज्ज-करणं च पजेमणगं च पजपणगं च पडिवद्धावणगं च पचंकमणगं च कण्ण-वेहणं च संवच्छर-पडिलेहणगं च चूलोवणयं च अन्नाणि य बहूणि गन्भाहाणजम्मणाइयाइं महया इड्ढीसक्कार-समुदएणं करिस्संति ॥ तए णं से दढपइन्ने दारए पंच-धाई-परिक्खिते-खीर-धाईए, मज्जण-धाईए, मंडण-धाईए, अंक-धाईए, कीलावणधाईए, अन्नाहि य बहूहि खुज्जाहि, चिलाइयाहिं, वामणियाहिं, वडभियाहि, बबरीहि, बउसियाहि, जोण्हियाहिं, पग्णवियाहि, ईसिगिणियाहिं, वारुणियाहिं, लासियाहि, लउसियाहिं, दमिलीहि, सिंहलीहि, आरबोहि, पुलिदोहि, पक्कणीहि, बहलोहिं, मुरंडोहि, सबरीहि, पारसीहि, नाणादेसी-विदेस-परिमंडियाहिं, सदेस-नेवत्थ-गहिय-वेसाहि, इंगिय-चितिय-पत्थिय-वियाणाहि, निउण-कुसलाहिं, विणीयाहिं चेडिया-चक्कवाल-तरुणि-बंद-परियाल-परिवुडे, वरिसधर-कंचुइ-महयर-वंदपरिक्खित्ते, हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे, साहरिज्जमाणे उवनच्चिज्जमाणे उवनच्चिज्जमाणे अंकाओ अंक परिभुज्जमाणे परिभुज्जमाणे उवगिज्झमाणे उवगिज्झमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवगहिज्जमाणे उवगृहिज्जमाणे, अवयासिज्जमाणे अवयासिज्जमागे परियंदिज्जमाणे परियंदिज्जमाणे, परिचुंबिज्जमाणे परिचुंबिज्जमाणे, रम्मेसु मणि-कोट्टिम-तलेसु परंगमाणे परंगमाणे, गिरि-कंदरमल्लीणे विव चंपग-वर-पायवे, निवाय-निव्वाघायंसि सुह-सुहेणं परिवढिस्सइ। तए णं तं दढपइन्नं दारगं अम्मा-पियरो साइरेग-अट्ठ-वास-जायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि हायं सव्वालंकार-विभूसियं करेत्ता, महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं कलायरियस्स उवणेहिति ।
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधी
तए णं से कलायरिए तं दढपइन्नं दारगं लेहाइयाओ गणिय- पहाणाओ सउणस्य- पज्जवसाणाओ बावर्त्तार कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य गंथओ य करणओ य पसिक्खावेहिइ य सेहावेहिइ य । तं जहा --
हंगणी वारंवं पोक्खर गयं सम-ताल, सूर्य, अगवायें पास, अट्ठावयं पोरेकचं गमयं अग्रविहि पाण-विहि बत्य-विहि विशेषणविहि-विहि अन्नं, पहेलियं, मानहि [निदाइ] मा गइयं सिलोग हिरा सुण-गुलि, ष्ण-जुत आभरण-विहि तरुणी-पडिरूम्मं इस्थि-सवणं, पुरिस-सवणं, लखन-लक्खणं, योग-लवर्ण, कुकुडवणं छत्त-सवर्ण दण्ड- लक्खणं, असि-लक्खणं, मणि-लवणं, कार्याणि सवणं, बरव-विरजं नगर-माणं, बन्धावारं, चारं परिवार व पविगर्ह जुनि जुदा --- सवा-जु ईसाचं, रुप्यवार्थ, धव्यं, हिरण्या-पा, सुवरण-पागं सुखे खे नालिया-खे पत्तो की निजी सउण रुयमिति ।
तणं से कलारिए तं दढपन्नं दारगं लेहाइयाओ गणिय-प्पहाणाओ सउणरुय पज्जवसाणाओ बावर्त्तार कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य गंथओ य करणओ य सिक्खावेत्ता, सेहावेत्ता अम्मा-पिऊणं उवणेहि ।
तए णं तस्स दढपन्नस्स दारगस्स अम्मा- पियरो तं कलायरियं विजलेणं असण-पाण- खाइम - साइमेणं वत्य-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारिसंति, संमाणिरसंति जीवारिहं पोइवाणं दलइस्संति, पडिसिन्हति ॥
तएषं से पदार उन्मुक्कामाने विप्रयपरिणय- मेते, जोवण-गमनुष्यते, बाबर कला-पण्डिए अद्वारस- बिदेसि पगारभासा-विसार, नवङ्ग-मुत्त-पडियोहए, गीय-रई, गंधव्य-नट्ट-कुसले, सिनारागार चारावेसे संगय-गय- सिय-गिय-चिट्ठिय-विलाससंवाद-नि-तोववार-कुरुले, जोही-जोहो रह-मोही, बाहुजीही, बाहु-यमदी, अलं-भोग-समस्ये, साहसिए, वाल-वारी यावि भविस्सs |
तए णं तं दढपन्नं दारगं अम्मा-पिथरो उम्मुक्क-बालभावं जाव-वियाल चारि च वियाणित्ता, विउलेहि अन्न-भोगेहि य पाण- भोगेहि य लेग बीहिय वत्व-भोगेहि समभोगेहि व उपनि मतहिति । तए से बढदार तेहि विलेहि महिनाक सोहि मो सज्जिहि नो गहिरो डिनो असोज
।
से जहा - नाम पमुप्पले इ वा पउमे इ वा जाव-सय-सहस्य - पत्ते इ वा पंके जाए, जले संबुड्ढे नोवलिप्पर पंकरएणं, नोवलिप्पइ जल-रएणं, एवामेव दढपन्ने वि दारए कामेह जाए, भोगेहि संवड्दिए, नोवलिप्पिहिइ कामरएणं० मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधिपरिजणेणं । से णं तहा-ख्वाणं येराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिइ, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता, अगाराओ अनगारियं पव्वइस्सइ । से णं अणगारे भविस्सइ, इरियासमिए-जाव- सुहुय-हुयासणे इव तेयसा जलते । तस्य णं भगय अनुत्तरेणं नाणं एवं दंसणं, चरिलेणं, आलएणं, विहारेणं अत्तरेणं सध्य-संब-नामगे अप्पा भावेमाणस्स, अनंते केवल-वर-नाण-दंसणे समुप्पज्जिहिइ ।
तए णं से अगवं अरहा, जिणे, केवली भविस्सइ, सदेव मणुयासुरस्स लोगस्स परियागं जाणिहि । तं जहा - आगई गई, ठिई, aaj, उवा, तर्क, कई, मगोमागतियं खयं भुतं, पहिलेदियं, आवोकम्मं, रहोकम्मं अरहा अरहरसनायी, तं तं मय-वयकाय-जोगे वट्टमाणाणं सव्य- लोए सव्व जीवाणं सव्व-भावे जाणमाणे, पासमाने विहरिस्सइ ।
वेगं मध्ये लावेगं बंतीए, गुत्तीए, मुतीए, अणुतरे, कसिणे, पडणे, निरावरणे, धाए
2
एकेवली एया-येणं विहारेणं विहरमाणे बहूई बालाई केवल परियागं पाणिता, अपनो उसे आभोएला, बहूई मलाई पचखाइरसद, बहूई भलाई अगसगाए छेइस्सद, जस्साए कोरड जिग-कप-नाये पेर-कप-ना-मुडभावे, केस-लोए, बम्भचेर-वासे अण्हाणगं, अदंतवणं, अणुवहाणगं, भूमि-सज्जा, फलह-सेज्जा, परघर-पवेसो, लढावलद्वाई, माणावमाणाई, परेसि होलणाओ, निरगाओ, सिजाओ, तज्जणाओ ताडणाओ, वरहगाओ, उच्चावया विरुवस्वा बावीस पोरगा, गाम-कंटगा अहिपासिति तम आहे आहेता परिमेहिं उस्तास निस्सासहि सिज्झिहिद, बुवा, मुस्बिहि परिनिष्यादि सामंत करेहिह" ।।
"सेवं भंते! सेवं भंते " त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ ॥
रायप० ।
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३. महावीरतित्ये तुंगियाणगरीनिवासिणो समणोवासगा
समणोवासगवण्णओ
६२ तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नयरी होत्या- वण्णओ ।
तीसे णं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवतिए नामं चेइए होत्था-वण्णओ ।
तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति-अड्ढा दित्ता वित्यिण्णविपुलभवण-सयणासण- जागवाहणादण्णा बहुधणबहुजायरूव- रयया आयोग-पयोगसंपत्ता विच्छडियविपुलभत्तपाणा बहुदासी दास-गो-महिस-गवेल यप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा उवलद्वपुण्ण-पावा आसव-संवर-निज्जर-किरिवाहिकरणबंध - मोक्खकुसला अस हेज्ज देवासुर-नाग सुवण्ण-जक्ख-रक्खसfree fayरिस गरुल-गंधव्व-महोरगादिएहिं देवगणेह निगयाओ पावयणाओ अणतिक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया निव्वितिमिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिजपेम्माणुरागरत्ता 'अयमाउसो ! निग्गंथे पावणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे', ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउर-घरप्पवेसा चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा, समणे निग्गंथे फासू-एसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम- साइमेणं वत्थ पडिग्गह-कंबल - पायपुंछणेणं पीढ-फल-सज्जा-संथारएणं ओसह-भे सज्जेणं पडिलाभमाणा बहूहि सीलव्वय-गुण- वेरमण- पचनक्खाण-पोसहोववासेहि अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणा विहति ।
तु गियाए पासावञ्चिज्जथेरागमणं
६३
तेनं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा येरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना स्वसंपन्ना विजयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियास-मरण-भयविप्यमुक्का तवप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा मद्दवप्पहाणा अज्जवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जापहाणा संतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयाणा नियमपहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा चारुपण्णा सोही अणियाणा अप्पुस्सुया अबहिल्लेसा सुसामण्णरया अच्छिद्दप सिवागरणा कुत्तियावणभूया बहुस्सुया बहुपरिवारा पंचह अणगारसएहि सद्ध संपरिवुडा अहाणुपुव्वि चरमाणा गामाणुगामं दृइज्जमागा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव तुंगिया नगरी जेजेव पुष्फवइए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिव्हित्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहति ।
थेराणं समणोवासगेहं पज्जुवासणा
६४ तए णं तुंगियाए नयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह- पहेसु जाव एगदिसाभिमुहा निज्जायंति ।
तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठचित्तगाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविप्पमाणहिया अण्णमण्णं सद्दावेति, सहावेत्ता एवं वयासी -- “ एवं खलु देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना -जाव - अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिव्हित्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणां विहरति ।
तं महाफलं खलु देवगुप्पिया ! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विजलस्य अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाप्पिया ! थेरे भगवंते वंदामो नमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो । एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति" इति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता जेणेव सयाई-सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगललाई वत्थाई पवर-परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सहि सह गिहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता एगयओ
भक० ३७
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२९०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
मेलायंति, मेलायिता पायविहार-चारेणं तुंगियाए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुप्फवतिए चेइए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति, तं जहा-- १. सच्चित्ताणं दध्वाणं विओसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए ३. एगसाडिएणं उत्तरासंग करणेणं ४. चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं ५. मणसो एगत्तीकरणेणं; जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आग्राहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति ।
४. महावीर तित्थे नंदमणियारकहाणगं ।
दद्दुरदेवेण महावीरसमोसरणे नट्टविही
६५ तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। समोसरणं । परिसा निग्गया ।
ते काणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे ददुरवाडसए विमाणे सभाए सुहम्माए ददुरंसि सीहासणंसि दद्दुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहि चह अग्गमहिसीहि सपरिसाहि एवं जहा सूरियाम जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे - जाव-नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगए, जहा सूरियाभे ।
गोमस्स पुच्छाए भगवंमहावीरपरूवियं दद्दुरदेवपुव्व भवनिबद्धं नंदमणियारकहाणयं
६६ 'भंते! ' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - "अहो णं भंते! दद्दुरे देवे महिढिए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे ।
भग० स० २ उ०५.
दद्दुरस्त णं भंते! देवरस या दिव्या देविड्ढिी दिव्वा देवज्जुती दिव्बे देवाणुभावे कहि गए ? कहि अणुपविट्ठे ?" "गोयमा ! सरीरं गए सरीरं अणुपविट्ठे । कूडागारदिट्ठतो ।”
६७ " ददुरेण भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी दिव्या देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे किणा लद्ध ? किणा पत्ते ? किणा अभिसमण्णागए ?" "एवं खलु गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया ॥
तत्थ णं रायगिहे नंदे नामं मणियारसेट्ठी -- अड्ढे दित्ते जाव अपरिभूए ।
नंदस्स धम्मपडिवत्ती
६८ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! समोसढे । परिसा निग्गया । सेणिए वि निग्गए । तणं से मंदे मणियारसेट्ठी इमोसे कहाए लट्ठे समाणे पायविहारचारेणं जाव-पज्जुवासह । नंदे मणियारसेट्ठी धम्मं सोच्चा समणोवासए जाए ।
तए णं अहं रायगिहाओ पडिनिक्खते बहिया जणवयविहारेणं विहरामि ।
मंदस्स मिच्छत्तपडिवत्ती
६९ तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी अण्णया कयाइ असाहवंसणेण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जहिं परिहायमाणेहि परिहाय-माणेह मिच्छत्तपज्जवह परिवड्ढमाणेहि परिवदमाणेह मिच्छत्तं विपडिवणे जाए यावि होत्था । तए णं नंदे मणियारसेट्ठी अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलंसि मासंसि अट्ठमभत्तं परिगेन्हइ, परिगेण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी उमुक्क-मणि- सुवण्णे ववगयमाला वण्णग- विलेवणे निक्खित्तसत्थ-मुसले एगे अबीए दन्मसंथारोवगए विहरइ । १. तुंगियासमणोवासागाणं पासवञ्चिज्जेहि थेरेहि सह पण्हुत्तराई संजाताई । तदट्ठ दव्वो चरणाणुयोगो ददुब्वा य भगवई स०२, ३०५.
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महावीरतित्थे नंदमणियारकहाणगं
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नंदे पोक्खरिणी-निम्माण
लए णं नंदस्स अममसंसि परिणममासि तम्हाए हाए य अभिभूयस्स समाणस्स इमेवाख्ये अपिए-जब संकपे समयज्जित्था 'पणा णं तेईसरभि सं णं ते ईसरपभियत्र कयत्वा गं ते ईसरभित्र कयपुन्ना से ईसपि कलक्खमा णं ते ईसत्पभियओ कदविभवा णं ते ईसरपनि जेल में रामगिरस बहिया बहूओ बावीओ पोषखरिणीओ दीहियाओ गुंजालाओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ, जत्य णं बहुजनो व्हाइ य पिय व पाणि च संहतं सेयं खलु मम कल् पापमापाए रणीए भाव उद्वियम्मि सूरे सहसारस्सिम्मि विजवरे तेजसा जलते सेणिवं रावं आयुच्छित्ता रामहिस्स बहिया उत्तरपुत्थिये दिसीमागे बेवारपन्चपास अदूरसामंते वत्युपाग रोडसि भूमिमासि नंद पोरिणि खणावेलए' ति कट्टु एवं संपेरू, संत्ता कल्लं पाउप्यनापाए रपथीए-जाव-उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिगवरे तपसा जलते पोसहं पारेद्र पारेला हाए कलिकम्मे मिलना-न-सय-संधि-परियणं सद्धि संपरिवु महत्वं महत्वं महहिं हं पाहता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ जाव पाहुडं उवदुवेइ, उबटुवेत्ता एवं वयासी- 'इच्छामि णं सामो ! तुमेहिं अब्भणुष्णाए समाणे रायगिहस्त बहिया उत्तरपुरत्विमे दिसोमाने के चारपन्या अदूरसामंते बत्बुपाढग रोहयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्चरिंग मालए।
२९१
'महागुह देवागुपिया !"
तएषं से नंदे मणियारसेट्ठी लिए रण्णा अमाए समाये हर रामहिं नगरं मम निम्नगा वत्युपाय रोइयंसि भूमिनागंसि नंदं पोक्चरिंग गावे पप बानि होत्या ।।
तए णं सा नंदा पोक्खरणी अणुपुव्वेणं खम्ममाणा खम्ममाणा पोक्खरणी जाया यावि होत्था -- चाउक्कोणा समतीरा अणुपुव्वं सुजायवप्प सीयलजला संछन्न-पत्त-भिसमुगाला बहुउप्पल-पउम- कुमुद-नलिण-सुभग-सोगंधिय- पुंडरीय महापुंडरीय सयपत्त- सहस्तपत्त - पम्फुल्ल केसरोववेया परिहत्थ भमंत-मत्तछप्पय अगेग सउगगण-मिहुण-वियरिय- सद्दुन्नइय- महरसरनाइया पासाईया - जाव पडिवा ।
नंदेण वणसंडनिम्माणं
७१ लए से नंदे मणियारसेट्ठी नंदाए पोक्खरिणीए चउदिसि चलारि वणसं रोवावे ।
लए गं ते वणसंडा अगुपुवेणं सारविनमाणा गोविनमाणा संवद्दिन्नमाना बगडा जाना किन्हा- जाव-महामेह-निरंबभूषा पत्तिया पुफिया फलिया हरियग-ररिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभमाणा चिट्ठति ।
मंदेश चित्तसभा निम्माणं
७२ लए णं नंदे मणियारसेट्ठी पुरत्थिमिल्ले वणसंडे एवं महं चित्तसमं कारावेइ- अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे पासाईयं जाव-परुिवं । तत्थ बहूनि किव्हाण व जाद-विरुलागि य कटुकम्माणि य पोत्मकम्माणि य चित्त-व्य-मि-बेडिम पूरिम संघाइमाई उपसि मानाई-उबसिन्जाई चिट्ठेति ।
सत्य णं महणि आसनानि य सयगाणि य अत्यधन्चनुमाई चिट्ठेति ।
सत्य णं बहवे नडाय हाय जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-येतंयग-म-प-लाल-आइ क्ख-ख-मं-गुणइल बोणिया विश्रम-भतबेधया तालावर काम करेमाना-हरेमाणा विहरति ।
रायगिविणिग्गओ एत्थ णं बहुजगो तेसु पुव्वन्नत्थेसु आसण-सयणेसु सष्णि-सण्णो य संतुयट्टो य सुयमाणो य पेच्छमाणो य साहेमाणो व मुहं विहरण
नंदेणं महाणससाला निम्माणं
७२ एनं मनियारले दाहिने
एवं महं महाणससाल कारावेह--अगेगभयसाहित्य में बहुये पुरिसा विप्रभ-भत-वेपणा दिउल असण-बाण- खाइम- साइमं उपखति बहू समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमाणं परि भाषमाणा - परिभाषमाणा विहति।
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धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंघो
नंदेण तिगिच्छियसालानिम्माणं ७४ तए णं नंदे मणियारसेट्ठी पच्चथिमिल्ले वणसंडे एग महं तिगिच्छियसालं कारावेइ--अणेगखंभसयसग्णिविठ्ठ-जाव-पडिरूवं! तत्थ
णं बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य दिन्नभइ-भत्त-वेयणा बहूणं वाहियाण जय गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य तेइच्छकम करेमाणा-करेमाणा विहरंति । अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिनभइ-भत्त-वेयणा तेसि बहणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं पडियारकम्मं करेमाणा विहरति ।।
नंदेण अलंकारियसभानिम्माणं ७५ तए णं नंदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वणसंडे एगं महं अलंकारियसभं कारावेइ-अणेगखंभसयसण्णिविर्से-जाव-पडिरूवं । तत्थ
बहवे अलंकारिय-मणुस्सा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य अणाहाण य गिलाणाण 4 रोगियाण य दुब्बलाण य अलंकारियकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरति ।
बहजणकया नंदस्स पसंसा नंदस्स पमोओ य ७६ तए णं तोए नंदाए पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पंथिया य पहिया य करोडिया य तणहारा य पत्तहारा य कट्टहारा
य-अप्पेगइया व्हायंति अप्पेगइया पाणियं पियंति अप्पेगइया पाणियं संवहंति अप्पेगइया विसज्जियसेय-जल्ल-मल-परिस्सम-निट्टखुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरति । रायगिहविणिग्गओ वि यत्य बहुजणो 'किं ते जलरमण-विविहमज्जण-कयलिलयाहरय-कुसुम-सत्थरयअणेगसउणगण-रुयरिभियसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो-अभिरममाणो विहरइ। तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवं वयासो-'घण्णे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियार-सेट्ठी, कयत्थे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेटठी, कयपुण्णे, णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कया णं लोया! सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स? जस्स गं इमेयारूवा नंदा पोक्खरिणी चाउक्कोणा-जाव-पडिरूवा-जाव-रायगिहविणिग्गओ जत्थ बहुजणो आसणेसु य सयणेसु य सण्णिसण्णो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ । तं धन्ने णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयत्थे णं देवाणप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कया णं लोया! सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स'। तए णं रायगिहे सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परवेइ धन्ने णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी सो चेव गमओ-जाव-सुहंसुहेणं विहरइ। तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे धाराहत-कलंबगं विव समूसवियरोमकूवे परं सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ।
नंदस्स रोगप्पत्ती ७७ तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउन्भूया। तं जहा
सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदरे। अरिसा अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले अकारए॥ अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू बउदरे कोढे ॥१॥
नंदरोगाणं वेज्जकयतिगिच्छाए वि निष्फलतं ७८ तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सोलसहि रोयायंकेहि अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं
तुम्भे देवाणुप्पिया! रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! नंदस्स मणियारस्स सरीरगंसि सोलस रोयायंका पाउन्भूया । तं जहा-सासे-जाव-कोढे । तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया! विज्जो था विज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुअपुत्तो वा कुसलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसि च णं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायक उवसामित्तए, तस्स णं नंदे मणियारसेट्ठी विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि तहेव पच्चप्पिणंति।
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महावीरतित्थे नंदमणियारकहाणगं
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तए णं रायगिहे नगरे इमेयारूवं घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाण्यपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य सत्यकोसहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य ओसह-भेसज्जहत्थगया य सरहिंसएहिं गिहेहितो निक्खमंति, निक्खमित्ता रायगिह मज्झमझेणं जेणेव नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नंदस्स मणियारसेद्विस्स सरीरं पासंति, पासित्ता तेसि रोगायंकाणं नियाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स बहूहिं उव्वलणेहि य उव्वट्टणेहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवदहणेहि य अवण्हावणेहि य अणुवासणाहि य वत्थिकम्मेहि य निरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणाहि य पच्छणाहि य सिरावत्थीहि य तप्पणाहि य पुडवाएहि य छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायक उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामेत्तए। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समागा जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया।
नंदमणियारस्स ददुरभवो ७९ तए णं नंदे मणियारसेट्ठी तेहिं सोलसेहि रोगायकेहि अभिभूए समाणे नंदाए पुक्खरिणीए मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे
तिरिक्खजोणिएहि निबद्धाउए बद्धपए सिए अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए पोक्खरिणीए ददुरीए कुच्छिसि दद्दुरत्ताए उववण्णे। तए णं नंदे दद्दुरे गब्भाओ विणिमुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ। तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो व्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ--धन्न णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारे, जस्स णं इमेयारूवा नंदा पुक्खरिणी-चाउक्कोणा-जाव-पडिस्वा।
बदुरस्स जाइस्सरणं सावगवयपालणं च ८० तए णं तस्स ददुरस्स तं अभिक्खणं-अभिक्खणं बहुजणस्स अंतिए एयमलै सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे
समुप्पज्जित्था-'कहिं मन्ने मए इमेयारूबे सद्दे निसंतपुठवें ति कट्ट सुभेणं परिणामेणं पसत्येणं अज्ञवसाणेणं लेसाहिं विसुज्जमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुव्वे जाईसरणे समुप्पण्णे, पुव्वजाई सम्म समागच्छइ। तए णं तस्स दद्दुरस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-'एवं खलु अहं इहेव रायगिहे नयरे नंदे नाम मणियारेअड्ढे-जाव-अपरिभू ए, तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । तए णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए-दुवालसविहे गिहिधम्मे पडिवण्णे । तए णं अहं अण्णया कयाइ असाहुदंसणेण य-जाव-मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे। 'तए णं अहं अण्णया कयाई गिम्हकालसमयंसि-जाव-पोसह उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । एवं जहेव चिता। आपुच्छणा । नंदापुक्खरिणी। वणसंडा। सभाओ। तं चेव सव्वं-जाव-नंदाए दबुदुरत्ताए उववष्णे । तं अहो णं अहं अधण्णे अपुण्णे अकयपुण्णे निग्गंथाओ पावयणाओ नछे भट्ठे परिभट्ठे। तं सेयं खलु मम सयमेव पुवपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाई उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।' एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पुव्वपडिवण्णाई पंचाणुटवयाई आरुहेइ, आल्हेत्ता इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे जावज्जीवं छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए, छटुस्स वि य णं पारणगंसि कप्पड़ मे नंदाए पोक्खरिणीए परिपेरतेसु फासुएणं ण्हागोदएणं उम्मद्दणालोलियाहि य वित्ति कप्पेमागस्स विहरित्तए--इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ, जावज्जीवाए छठेंछठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। भगवओ रायगिहे समवसरणं तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! गुणसिलए समोसढे । परिसा निग्गया। तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवमाइक्खइ-एवं खलु समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसिलए चेइए समोसढे। तं गच्छामो गं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जवासामो। एयं णे इहभवे परभवे य हियाए-जाव-आणुगामियत्ताए भविस्सइ ।
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२९४
धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
८२
ददुरस्स समवसरणं पइ गमणं तए णं तस्स दद्दुरस्स बहुजणस्स अंतिए एयमझें सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु, समणे भगवं महावीरे समोसढे । तं गच्छामि गं समणं भगवं महावीरं वदामि'। एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता नंदाओ पोक्खरिणीओ सणियंसणियं पच्चुत्तरेइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए ददुरगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। इमं च ण सेणिए राया भंभसारे ण्हाए-जाव-सव्वालंकारविभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उ ब्वमाणेहिं मयाहय-गय-रह-भड-चडगर-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुड़े मम पायवंदए हव्वमागच्छइ ।
ददुरस्स महव्वयगहणसंकप्पो ८३ तए णं से दद्दुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं आसकिसोरएणं वामपारएणं अक्कंते समाणे अंतनिग्घाइए कए यावि होत्था ।
तए णं से ददुरे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी--"नमोत्थु णं अरहंताणं-जाव-सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपाविउकामस्स । पुब्वि पि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए-जाव-थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए। तं इयाणि पि तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि-जाव-सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवं, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं पच्चक्खामि जावज्जीवं। जं पि य इमं सरीर कंतं-जाव-मा णं विविहा रोगायंका परोसहोवसग्गा फुसंतु एवं पि य णं चरिमेहिं ऊसासेहि वोसिरामि त्ति कटु । ददुरस्स देवत्तं तए णं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा-जाव-सोहम्मे कप्पे ददुरडिसए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववण्णे । एवं खलु गोयमा! दद्दुरेणं सा दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया"। दद्दुरस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। से गं दद्दुरे देवे ताओ देवलोगाओ कहिं गए ? कहिं उववन्ने ?
गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिवाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ ।। १. वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
संपन्नगुणो वि जओ, सुसाहु-संसग्गवज्जिओ पायं । पावइ गुणपरिहाणि, ददुरजीवो व्व मणियारो ॥१॥ अथवातित्थयर-वंदणत्थं, चलिओ भावेग पावर सग्गं । जह ददुरदेवेणं, पत्तं वेमाणिय-सुरत्तं ।।२।।
णाया० सु-१ अ०१३।
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५. महावीरतित्थे आणंदगाहावइकहाणगं ।
संगहणी गाहा
आणंदे कामदेवे य, गाहावति चुलगीपिता। सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावइकुंडकोलिए ॥ सद्दालपुत्ते महासतए, नंदिणीपिया लेइयापिता ॥१॥
वाणियगामे आणंदो गाहावई ८४ तेणं कालेगं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था-वण्णओ।
तस्स वागियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, एत्थ णं दूइपलासए नामं चेइए होत्था । तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसतू राया होत्था--वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नयरे आणंदे नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे-जाव-अपरिभूए। तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वढिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं आगंदे गाहावई बहूणं राईसर तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ॥ तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स सिवणंदा नाम भारिया होत्था-अहीण-जाव-सुरूवा, आणंदस्स गाहावइस्स इट्ठा, आणंदेणं गाहावइणा सद्धि अणुरता अविरत्ता, इठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ॥ तस्स णं वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरित्यमे दिसौभाए, एत्थ णं कोल्लाए नाम सण्णिवेसे होत्था--रिद्धत्थिमिए-जावपासादिए-जाव-पडिरूवे। तत्थ णं कोल्लाए सण्णिवेसे आणंदस्स गाहावइस्स बहवे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणे परिवसइ-अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए।
महावीर-समवसरणं तेणं कालेगं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-जेणेव वाणियगामे नयरे जेणेव दूइपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासह ॥
- आणंदस्स समवसरणे गमणं धम्मसवणं च ८६ तए णं से आणंदे गाहावई इमोसे कहाए लढे समाणे-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुन्वाणुपुचि चरमाणे गामागुगाम
दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणियगामस्स नयरस्स बहिया दूइपलासए चेइए अहापडिरूव ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं-जाव-तं गच्छामि णं देवाणुपिप्या! समणं भगवं महावीरं वंदामि-जावपज्जुवासामि"--एवं संपेहेइ, संपेहित्ता व्हाए-जाव-सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घा-भरणालंकियसरीरे
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं वाणियगाम नयरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव दूइपलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ-जाव-पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे आणंदस्स गाहावइस्स तोसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ। परिसा पडिगया, राया य गए। आणंदस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हदुतुटु-चित्तमाणंदिए-जाव-एवं वयासी-- "सद्दहामि गं भंते ! निरगंथं पावयणं-जाव-जहेयं तुम्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-मांडबिय-कोडुंबियइन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खुलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं--दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि"। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि।
आणंदगाहावइगहियस्स सावगधम्मस्स विवरणं ८८ तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तपढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं
तिविहेणं-न फरेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा। तयाणंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं-न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा । तयाणंतरं च णं थूलय अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं--न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा । तयागंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेड-जन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ। तयाणंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे-- (१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्य चउहि हिरण्णकोडीहिं निहाणपउत्ताहि, चउहि वुड्ढिपउत्ताहि, चहिं पवित्थर
पउत्ताहि अवसेसं सव्वं हिरण्ण-सुवण्णविहिं पच्चक्खाइ। (२) तयाणंतरं च णं चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य चउहि वहि दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहि
पच्चक्खाइ। (३) तयाणंतरं च णं खेत्त-वत्थुविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य पंचहि हलसहि नियत्तणसतिएणं हलेणं, अवसेसं सव्वं खेत्त
वत्युविहिं पच्चक्खाइ। (४) तयाणंतरं च णं सगडविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ पंचहि सगडसहि दिसायत्तिएहि, पंचहि सगडसएहि संवहणिएहि, अवसेसं
सव्वं सगडविहिं पच्चक्खाइ। (५) तयाणंतरं च णं वाहणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य चहि वाहणेहिं दिसायत्तिएहि, चहि वाहणेहि संवहणिएहि, अवसेसं
सव्वं वाहणविहिं पच्चक्खाइ। तयागंतरं च णं उवभोग-परिभोगविहिं पच्चक्खायमाणे(१) उल्लणियाविहिपरिमाणं करेइनन्नत्य एगाए गंधकासाईए, अवसेसं सव्वं उल्लणियाविहिं पच्चक्खाइ। (२) तयाणंतरं च णं दंतवणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगणं अल्ललठ्ठीमहुएणं, अवसेसं सव्वं दंतवणविहिं पच्चक्खाइ। (३) तयाणंतरं च णं फलविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगेणं खीरामलएणं, अवसेसं सव्वं फलविहिं पच्चक्खाइ। (४) तयाणंतरं च णं अभंगविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ सयपागसहस्स-पाहि तेल्लेहि, अवसेसं सव्वं अन्भंगणविहिं पच्चक्खाइ। (५) तयाणंतरं च णं उन्वट्टणाविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्य एगेणं सुरभिणा गंधट्टएणं, अवसेसं सव्वं उन्वट्टणाविहिं पच्चक्खाइ। (६) तयाणंतरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ अहि उट्टिएहि उदगस्स घडेहि, अवसेसं सव्वं मज्जणविहिं पच्चक्खाइ।
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महावीरतित्थे आणंदगाहावइकहाणगं
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(७) तयाणंतरं च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ एगणं खोमजुयलेणं, अवसेसं सव्वं वत्थविहि पच्चक्खाइ । (८) तयाणंतरं च णं विलेवणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य अगरु-कुंकुम-चंदणमादिएहि, अवसेसं सव्वं विलेवणविहिं पच्चक्खाइ। (९) तयाणंतरं च णं पुष्फविहिपरिमाणं करेइनन्नत्य एगेणं सुद्धपउमेणं मालइकुसुमदामेण वा, अवसेसं सव्वं पुष्फविहि
पच्चक्खाइ। (१०) तयाणंतरं च णं आभरणविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्य मट्ठकण्णेज्जएहिं नाममुद्दाए य, अवसेसं सव्वं आभरणविहिं पच्चक्खाइ। (११) तयाणंतरं च गं धूवणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य अगरु-तुरुक्क-धूवमादिएहि, अवसेस सव्वं धूवणविहिं पच्चक्खाइ। (१२) तयाणंतरं च णं भोयणविहिपरिमाणं करेमाणे
(क) पेज्ज-विहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगाए कटुपेज्जाए, अवसेसं सव्वं पेज्जविहिं पच्चक्खाइ। (ख) तयाणंतरं च णं भक्खविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ एगेहि धयपुण्णेहि खंडखज्जएहि वा, अवसेसं सव्वं भक्खविहिं
पच्चक्खाइ। (ग) तयाणंतरं च णं ओदणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य कलमसालिओदणेणं, अवसेसं सव्वं ओदणविहिं पच्चक्खाइ। (घ) तयाणंतरं च णं सूवविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्य कलायसूत्रेण वा मुग्गसूवेण वा माससूवेण वा, अवसेसं सव्वं
सूवविहिं पच्चक्खाइ। (ङ) तयाणंतरं च गं घयविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्य सारदिएणं गोधय-मंडेणं, अवसेसं सव्वं धयविहिं पच्चक्खाइ। (च) तयाणंतरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य वत्थुसाएण वा तुंबसाएण वा सुत्थियसाएण वा मंडुक्कियसाएण वा,
अवसेसं सव्वं सागविहिं पच्चक्खाइ। (छ) तयाणंतरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्य एगेणं पालंकामाहुरएणं, अवसेसं सव्वं माहुरयविहिं पच्चक्खाइ। (ज) तयाणंतरं च णं तेमणविहिपरिमाणं करेइ--जन्नत्थ सेहंबदालियंह अवसेसं सव्वं तेमणविहिं पच्चक्खाइ । (झ) तयाणंतरं च णं पाणियविहिपरिमाणं करेइनन्नत्य एगेणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं सव्वं पाणियविहिं पच्चक्खाइ। (ज) तयाणंतरं च णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्य पंचसोगंधिएणं तंबोलेणं, अवसेसं सव्वं मुहवासविहिं पच्चक्खाइ ।
तयाणंतरं च णं चउम्विहं अणट्ठादंडं पच्चक्खाइ, तं जहा-१. अवज्झाणाचरितं २. पमायाचरितं ३. हिंसप्पयाणं ४. पाव-कम्मोवदेसे।
८.
सम्मत्ताईणं अइयारा आणंदा ! इ समणे भगवं महावीरे आणंदं सभणोवासगं एवं क्यासी"एवं खलु आणंदा! समणोवासएणं अभिगयजीवाजीवेणं उवलद्धपुण्णपावणं आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसलेणं असहेज्जेणं, देवासुर-णाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पाक्यणाओ अणइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पंच अतियारा पेयाला जाणियन्वा, न समायरियव्वा तं जहा-१. संका २. कंखा ३. वितिगिच्छा ४. परपासंडपसंसा ५. परपासंडसंथवो।। तयाणंतरं च णं थूलयस्स पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा पेयाला जाणियब्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-१. बंधे २. वहे ३. छविच्छेदे ४. अतिभारे ५. भत्तपाणवोच्छेदे। तयाणंतरं च ण थूलयस्स मुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियन्वा न समायरियव्वा, तं जहा--१. सहसाभक्खाणे २. रहस्सब्भक्खाणे ३. सदारमंतभए ४. मोसोवएसे ५. कूडलेहकरणे । तयाणंतरं च णं थूलयस्स अदिण्णादाणवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियावा, तं जहा-१. तेणाहड़े
२. तक्करप्पओगे ३. विरुद्धरज्जातिक्कमे ४. कूडतुल-कूडमाणे ५. तप्पडिरूवगववहारे। ... तयाणतरं च णं सदारसंतोसीए समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा--१. इत्तरियपरिग्गहियागमणे
२. अपरिग्गहियागमणे ३. अणंगकिड्डा ४. परवीवाहकरणे ५. कामभोगे तिव्वाभिलासे।
घ० क०३८
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धम्मकहाणुओग चउत्थो खंधो
तयाणंतरं च णं इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियन्वा, तं जहा-१. खेत्तवत्थुपमाणातिक्कमे २. हिरण्ण-सुवण्ण-पमाणातिक्कमे ३. धण-धण्णपमाणातिक्कमे ४. दुपयचउप्पयपमाणातिक्कमे ५. कुवियपमाणातिक्कमे । तयाणंतरं च णं दिसिवयस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियन्वा, तं जहा--१. उड्ढदिसिपमाणातिक्कमे २. अहोदिसिपमाणातिक्कमे ३. तिरिदिसिपमाणातिक्कमे ४. खेत्तवुड्ढी ५. सतिअंतरद्धा। तयाणंतरं च णं उवभोगपरिभोगे दुविहे पण्णते, तं जहा--भोयणओ कम्मओ य। भोयणओ समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा--१. सचित्ताहारे २. सचित्तपडिबद्धाहारे ३. अप्पउलिओसहिमक्खणया ४. दुप्पउलिओसहिभक्खणया ५. तुच्छोसहिभक्खणया। कम्मओ णं समणोवासएणं पण्णरस कम्मादाणाई जाणियब्वाइं, न समायरियब्वाइं, तं जहा--१. इंगालकम्मे २. वणकम्मे ३. साडीकम्मे ४.भाडीकम्मे ५. फोडीकम्मे ६. दंतवाणिज्जे ७. लक्खवाणिज्जे ८. रसवाणिज्जे ९. विसवाणिज्जे १०. केसवाणिज्जे ११. जंतपोलणकम्मे १२. निल्लंछणकम्मे १३. दवग्गिदावणया १४. सरदहतलागपरिसोसणया १५. असतीजणपोसणया । तयाणंतरं च णं अणद्वादंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियन्वा, तं जहा--१. कंदप्पे २. कुक्कुइए ३. मोहरिए ४. संजुत्ताहिकरणे ५. उवभोगपरिभोगातिरित्ते। तयागंतरं च णं सामाइयस्स समणोवासएगं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा--१. मणदुप्पणिहाणे २. वइदुप्पणिहाणे ३. कायदुप्पणिहाणे ४. सामाइयस्स सतिअकरणया ५. सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया। तयाणंतरं च णं देसावगासियस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियब्वा, न समायरियन्वा, तं जहा-१. आणवणप्पओगे २. पेसवगप्पओगे ३. सद्दाणुवाए ४. रूवाणुवाए ५. बहियापोग्गलपक्खेवे। तयाणंतरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा---१. अप्पडिलेहिय-दुष्पडिलेहिय-सिज्जासंथारे २. अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारे ३. अप्पडिलेहिय-दुष्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमी ४. अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमी ५. पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया । तयाणंतरं च णं अहासंविभागस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियन्वा, तं जहा--१. सचित्तनिक्खेवणया २. सचित्तपिहणया ३. कालातिक्कमे ४. परववदेसे ५. मच्छरियया । तयाणंतरं च णं अपच्छिममारणंतियसलेहणाझूसणाराहणाए, पंच अतियारा जाणियब्वा, न समायरियव्वा, तं जहा--१. इहलोगासंसप्पओगे २. परलोगासंसप्पओगे ३. जीवियासंसप्पओगे ४. मरणासंसप्पओगे ५. कामभोगासंसप्पओगे।
आणंदस्स अभिग्गहे, सिवणंदं पइ गिहिधम्माणपालणाविसइया पेरणा य तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं--दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जति, पडिज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी"नो खलु मे भंते ! कप्पइ अज्जप्पभिई अण्णउत्थिए वा अण्णउत्थिय-देवयाणि वा अण्णउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंतचेइयाई बंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुब्धि अणालतेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसि असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकतारेणं । कप्पइ मे समणे निग्गये फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं ओसह-भेसज्जेण य पडिलाभमाणस्स विहरित्तए"--त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, अभिगिण्हित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठाई आदियइ, आदित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दूइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाणियगामे नयरे, जेणेव सए गिहे जेणेव सिवणंदा भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिवर्णदं भारियं एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिए ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते। से वि य धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं वंदाहि णमंसाहि सक्कारेहि सम्माणेहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि ।
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महावीरतित्वे आनंदगाहाब कहाण
सिवणंदाए भगवंतवंदणट्ठगमणं धम्मसवणं च
९१ तए णं सा सिवनंदा भारिया आणंदेणं समणोवासएवं एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया- जाव-हियया करयल परिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलि कट्टु 'एवं सामि !' त्ति आनंदस्स समणोवासगस्स एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेइ ।
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तए णं से आनंदे समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेद, सहावेत्ता एवं वयासी-
" खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त- जोइयं समखुरवालिहाण सम - लिहिर्यासंगएहि जंबूणयामयकलावजु त्तपइविसिद्व ह रामघंट-मुरज्जु-परकंचनचचियत्यय माहोमाहियएहि नीलुष्पलाल पवरगोयवाणएहिं नागामणिकणन-इंडियाजालपरियं जायत-म्-यसत्वमुविरइय-निम्मियं पवरलब्धगोयवेयं जुत्तामेव धम्मियं जागण्यवरं उबवेह उन्डुबेला मम एवमागतयं पञ्चविह" ।
तर ते कोरिसा आनंदेणं समगोवास एवं बुत्ता समाया हुनुहु-चिसमादिया पोमणा परमसोममस्सिया हरिसबसनियमाहिया कालपरिहि सिरसावतं मत्यए अंजलि कट्टु एवं सामि ति आनाए बिगए वर्ण परिमुति, पडिनेता विष्यामेव करण जोहना-मयं जाणण्यवरं उदद्ववेत्ता तमामति पञ्चव्विति ।
गए गं सा सिगंद भारिया व्हाया कपबलिकम्मा कसकोउपमंगलपापच्छित्ता सुप्यावेसाई मंगलाई कत्थाई पवरपरिहिया अप्पमहन्याभरणायिसरीरा पेडियाचरस्वानपरिकिन्मा धम्मियं जागपवरं पुर, दुरहिता वाणियगामं नगरं मम निम्नन्छ, निगडिता जेणेव पलासए बेडए लेणेय उपागच्छद उपागता धम्मियाओ जाणण्यवराओ पच्चरुह, पचचीरुहित्ता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आग्राहिण-पयाहिणं करेइ, करेला बंद गर्मस, दत्ता नर्मसिता पण्यास पाइरे सुसमाना पर्मसमाणा अभिमुहे विगएवं पंजलिवडा पज्जुवास । तए णं समणे भगवं महावीरे सिवणंदाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्मं परिकहेइ ।
सिवदाए गिम्मि पडिवती
९२ तए णं सा सिवणंदा भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हदुतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीडमणा परमसोमणस्त्रिया हरिसव-विसम्यमाणहिया उगाए उट्ठे, उता समनं भगवं महावीर तिक्युतो आपाहणपवाहिणं करेह, करेला बंद गर्मस, वंदिता गर्मतित्ता एवं बपाती
" सहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते ! निगं पावय। एवमेवं भंते सहमेवं भंते! अवितमेवं भवियंमंते ! इण्डियमेवं भंते! पडियमेयं भंते ! इच्छि-पsिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय कोडुंबिय इन्भ-सेट्ठिसेणावद-सत्ववाहयभिया मुंडा भविता अगाराओ अगवारियं पय्वइया मो खलु अहं हा संचामि मुंडा भवित्ता अनाराजी अगगारिचं पत्तए अहं नं देवावियाणं अंतिए पंचागुब्वइवं सतसियावासविहं विधिम्मं पडिवज्जिस्ामि । 'अहासुदेवाणुपिया ! मा परिबंध करेहि'।
तए णं सिवणंदा भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं बंदs णमंसद, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव विसं पाउन्भूया, तामेव दिसं पडिगया।
आनंदपवागणविसए गोयमपुच्छाए भगवओ समाहाणं
९३ ''वियं गोपमे समर्थ भगवं महावीरं बंद णमंसद, बंदिता नर्मसत्ता एवं बवासी" पहू में भंते! आनंदे समणोवासए देवाविवाणं अंतिए मुंडे भविता अवाराजी अणगारियं पम्बत्लए?
नो इणट्ठे समट्ठे ।
गोधमा ! आणंदेणं समोवास बहरे पासा
समगोवासनपरियागं पाउगिहिति पाणिता-जा-सोहन कप्पे अरणामे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्येगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओदमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं आणंदस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।
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३००
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
भगवओ जणवयविहारो ९४ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणियगामाओ नयराओ दूइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया
जणवयविहारं विहरइ।
आणंदस्स समणोवासग-चरिया ९५ तए णं से आणंदे समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ।
सिवणंदाए समणोवासिय-चरिया ९६ तए णं सा सिवणंदा भारिया समगोवासिया जाया-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह. कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पोढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ ।
रत्तए" एवार सण्णिवेसे नायकुलमिलाइमं उवक्खडावत्ता सेयं खल मम कल्ल संबंधि-परिजणह, संपेहेत्ता कल्ल जाहसालं पडिलेहिता, महापरणो-जाव-जेदुपुत्त का उद्वियम्मि सूरे सामणस्त भगवओ मह
आणंदस्स धम्मजागरिया गिहिवावारचागो य तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स उच्चावहिं सोल-व्वय-गुण-बैरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर-जाव-सयस्स वि य गं कुडुंबस्स-जाव-आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए सव्वकज्जवड्ढावए. तं एतेणं वक्खेवणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । तं सेयं खलु ममं कल्लं-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता, जहापूरणो-जाव-जेट्टपुतं कुडुबे ठवेत्ता, तं मित्त-जाव-जेट्ठपुतं च आपुच्छित्ता, कोल्लाए सण्णिवेसे नायकुलंसि पोसहसालं पडिलेहिता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए" एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं-जाव-जलते विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परिजणं आमतेइ, आमंतेत्ता ततो पच्छा व्हाए-जाव-अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए, तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं सद्धि तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसादेमाणे विसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए णं आयंते चोक्ख परमसुइन्भूए, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपुलेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरओ जेटुपुत्तं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "एवं खलु पुत्ता! अहं वाणियगामे नयरे बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म-पण्णत्ति उवसंपज्जित्ता गं विहरित्तए । तं सेयं खलु मम इदाणि तुमं सयस्स कुडुंबरस मेढि पमाणं आहारं आलंबणं चक्खुंठावेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं तुमं च आपुच्छित्ता कोल्लाए सण्णिवेसे नायकुलंसि पोसहसालं पडिलेहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए"।
तए णं से जेट्टपुत्ते आणंदस्स समणोवासगस्स 'तह' त्ति एयमलै विणएणं पडिसुणेति । ९८ तए णं से आणंदे समणोबासए तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेति, ठावेत्ता एवं वयासी
--"मा णं देवाणुप्पिया! तुब्भे अज्जप्पभिई केइ ममं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य कुडुंबेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा, ममं अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेउ वा
उवक्करेउ वा"। ९९ तए णं से आणंदे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडि
णिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणियगामं नयरं मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे, जेणेव नायकुले, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दम्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्यमुसले एगे अबीए दम्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरह।
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महावीरतित्थे आणंदगाहावइकहाणगं
आणंदस्स उवासगपडिमा पडिवत्ती १०० तए णं से आणंदे समणोवासए पदम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरह। पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं
अहातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से आणंदे समणोवासए दोच्च उवासगपडिम, एवं तच्चं चउत्थं, पंचम, छठें, सत्तमं, अटुमं, नवमं, दसम, एक्कारसम उवासगपडिम अहासुत्तं अहाकप्पं अहामगं अहातच्चं सम्मं काएणं कासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से आणंदे समणोवासए इमेणं एयारवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभए किसे धमणिसंतए जाए।
१०१
आणंदस्स अणसणं तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेणं एयारवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अटुिचम्मावणधे कडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए । तं अस्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वौरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले बोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे-जावय मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जावउट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा-जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए" --एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-सिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ।
पारसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइम भगवं महावीरे जिणे सुहत्या नियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स म
१०२
आणंदस्स ओहिनाणुप्पत्ती तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ सुभेणं अज्झक्साणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेसाहिं विसुज्झमाणीहि, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिणाणे समुप्पण्णे--पुरथिमेणं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेतं जाणइ पासइ। दक्खिणेणं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ । पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्त जाणइ पासइ । उत्तरेणं-जाव-चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणइ पासइ । उड्ढं-जाव-सोहम्मं कप्पं जाणड पासइ । अहे-जाव-इमीसे रयणप्पभाइ पुढवीए लोलुयचुतं नरयं चउरासीतिवाससहस्सद्वितियं जाणइ पासइ।
गोयरचरियानिग्गयस्स गोयमस्स आणंदसमक्खं गमणं १०३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए।
परिसा निग्गया-जाव-पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे गोयमसगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से छळंछट्टेणं अणिक्खितेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाई, पडिलेहेइ पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं बयासी--"इच्छामि णं भंते! तुर्भेहिं अब्भणुण्णाए [समाणे?] छट्ठक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीच-मझिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए"। "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह"। तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दुइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अड्ड।
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जतं भत्तपाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाओ नयराओ पडिणिग्गच्छइ, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजणसई निसामेइ । बहुजगो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूबेइ--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसिए, भत्तपाणपडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ"। तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अंतिए एयमळं सोच्चा निसम्म अयमेयारूव अज्झथिए चितिए पत्थिर मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"तं गच्छामि णं आणंदं समणोवासयं पासामि"। एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे जेणेव पोसहसाला, जेणेव आणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ। तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण-हियए भगवं गोयमं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-“एवं खलु भंते ! अहं इमेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणः किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए, णो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतियं पाउभविताणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे अभिवंदित्तए । तुन्भे णं भंते! इच्छाक्कारेणं अणभिओएणं इओ चेव एह, जेणं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वदामि णमंसामि"। तए णं से भगवं गोयमे जेणेव आणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ ।
पासइ, पासित्ता हस एवं खलु भतेमसंतए जाए, जो गोयम वंदइ णमसइनसे अट्टिचम्मावणवत्तए । तुब्भे गं
अवहिविसए आणंद-गोयम-संवादो १०४ तए णं से आणंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसिता एवं वयासी-"अत्यि
णं भंते ! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ ? " "हंता अत्थि।" "जइ णं भंते ! गिहिणो गिहमझावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते ! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पण्णे--पुरथिमेणं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई-जाव-लोलुयच्चुतं नरयं जाणामि पासामि"। तए णं से भगवं गोयमे आणंद समणोवासयं एवं वयासी--"अत्यि णं आणंदा ! गिहिणो गिहमज्झावसंत ओहिणाणे समुस्सपज्जइ । नो चेव णं एमहालए। तं गं तुम आणंदा ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणाए अभट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि"। तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयम एवं वयासी--"अत्थि णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सन्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ निदिज्जइ गरिहिज्जइ विउट्टिज्जइ विसोहिज्जइ अकरणयाए अन्भुट्ठिज्जइ पडिक्कमिज्जइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जिज्जइ? "नो इण→ समठे"। "जइ णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सम्भूयाणं भावाणं नो आलोइज्जइ-जाव-तवोकम्मं नो पडिज्जिज्जइ, तं गं भंते ! तुम्भ चेव एयस्स ठाणस्स आलोएह पडिक्कमेह निदेह गरिहेह विउद्देह विसोहेह अकरणाए अब्भुठेह अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेह" ।
भगवया गोयमस्स संकानिराकरणं १०५ तए णं से भगवं गोयमे आणंदेणं समगोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे आणंदस्स समणोवासगस्स
अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव दूइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता, भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-- "एवं खलु भंते! अहं तुम्भेहिं अम्भणुण्णाए समाणे वाणियगामे नयरे भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जतं भत्तपाणं पडिग्गाहेमि, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाओ नयराओ पडिणिग्गच्छामि, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजणसह निसामेमि। बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ--'एवं खल देवाणुप्पिया ! समणस्म
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महावीरतित्थे आणंदगाहावइकहाणगं
३०३
भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए-भत्तपाण-पडियाइक्खिए काल अणवकंखमाणे विहरई'। तए णं मम बहुजणस्स अंतिए एयमझें सोच्चा निसम्म अयमेयारूवं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुष्पज्जित्था-- तं गच्छामि णं आणंद समणोवासयं पासामि-एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे, जेणेव पोसहसाला, जेणेव आणंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छामि। तए णं से आणंदे समणोवासए मम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए ममं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अहं इमेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए, णो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतियं पाउन्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे अभिवंदित्तए। तुम्भे गं भंते ! इच्छक्कारेणं अभिओगेणं इओ चेव एह, जेणं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदामि णमंसामि'। तए णं अहं जेणेव आणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छामि । तए णं से आणंदे समणोवासए ममं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-'अत्थि णं भंते ! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ ?' 'हंता अत्थि'। 'जइ णं भंते ! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते ! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पण्णे--पुरथिमेणं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । दक्खिणेणं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्यिमेणं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । उत्तरेणं-जाव-चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं-जाव-सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि । अहे-जाव-इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीतिवाससहस्सट्ठितियं जाणामि पासामि। तए णं अहं आणंदं समणोवासयं एवं वइत्था-'अत्थि णं आणंदा! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ । नो चेव णं एमहालए। तं गं तुमं आणंदा! एयस्स ठाणस्स आलोएहि-जाव-अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहिं'।
तए णं से आणंदे ममं एवं वयासी-'अत्थि णं भंते ! जिणवयरण संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ-जावअहारिहं पायच्छित्तं तबोकम्म पडिवज्जिज्जइ ?' 'नो इण? सम?' । 'जइ णं भंते! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सन्भूयाणं भावाणं नो आलोइज्जइ-जाव-अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं गं भंते! तुब्भे चेव एयस्स ठाणस्स आलोएह-जाव-अहारिहं पायच्छित्तं तवोकर्म पडिवज्जेह' ।
तए णं अहं आणंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे आणंदस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिणिक्खमामि, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए। तं गं भंते ! कि आणंदेणं समणोवासएणं तस्स ठाणस्स आलोएयव्वं पडिक्कमेयव्वं निदेवव्वं गरिहेयव्वं विउट्टेयव्वं विसोहेयव्वं अकरणयाए अन्भुट्ट्यव्वं अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जयव्वं? उदाहु मए ? गोयमा ! इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एव वयासो--"गोयमा ! तुम चेव णं तस्स ठाणस्स आलोएहि-जाव-अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि, आणंदं च समणोवासयं एयमट्ठ खामेहि ।"
गोयमस्स खमणा
तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तह' ति एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स ओलाएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहइ अकरणयाए अब्भुटुइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ, आणंदं च समणोवासयं एयमढें खामेइ ।
भगवओ जणवयविहारो
१०७ तए णं समणे भगवं महाबीरे अण्णदा कदाइ बहिया जणवयविहार विहर।।
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आनंदस्स समाहिमरणं देवलोमुत्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमण निरूवणं च
१०८ तए णं से आणंदे समणोवासए बहूहिं सील-व्यय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण -पोसहोववासहि अप्पाणं भावेता, वीसं वासाई समणोवास - परियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सह भत्ताई अगसनाए छदेता आलोइय-पडिस्कंते समाहिपते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थिमे णं अरुणाभ विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्येगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओदमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं आनंदस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओदमाई ठिई पण्णत्ता ।
आनंदे णं भंते! देवे ताओ देवलगाओ आउनखणं भवखणं ठिएवं अनंतरं वयं वहता कहि पछि ? कहि उपजिहि ?
गोषमा! महाविदेहे बाले सिसिहि शिहिद मुच्चिहि सामंत काह
उवासगदसाओ अ० १ ।
६. कामदेवगाहावइकहाणगं ।
चंपाए कामदेवे गाहावई
१०९ ते काले तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया ।
तत्थ णं चंपाए नयरीए कामदेवे नामं गाहावई परिवसइ -- अड्ढे जाव - बहुजणस्स अपरिभूए ।
तरणं कामदेवस गाहाबहस्स छ हिरणकोडोली निहाय उत्ताओ छ हिरण्यकोडीओ वडिउत्ताओ, छ हिरण्णकोडोओ पवित्यउता पाइसगोसाहसिए वएर्ण होत्या ।
धम्मरुहाणुओगे चउत्यो बंधो
से णं कामदेवे गाहावई बहूणं- जाव- आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी - जाव- सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्या ।
तरस णं कामदेवरस गाहाबदस्त भद्दा नाम भारिया होत्या- अहीण-परिपुष्प- पाँचदियसरीरा जाव-मास्सए काममोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।
महावीरसमवसरणं
११० तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं अहापरूिवं ओग्यहं ओगिता मे परिसा निग्गया ।
कूणियराया जहा तहा जियसत्तू निम्न्छ-आब-पज्जुवासद
महावीरे - जाव- जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बसा अप्पा भावेमा बिहरह
कामदेवरस समवसरणे गमणं धम्मसवणं च
१११लए से कामदेवे महावई इमीसे कहाए लट्ठे समाने "एवं खलु समने भगवं महावीरे पुवाणुपुदि चरमाणे गामानुगाम इज्जमाणे इहमा गए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पानं भावेमाणे विहरइ । तं महष्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयल्स वि सवगया, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-वंसग पढिपुच्छण- पज्जुवासणयाए ? एगल्स वि आरिवत्स धम्बिपस्स सुवयणस्स सवणपाए, किमंग पुण बिलल्स अस्स गहणवाए ? तं गच्छामि गं येवाणुष्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामि गर्मसामि सरकारेमि
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कामदेवगाहावइकहाणगं
३०५
सम्माणमि कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामि"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पहाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं चंपं नार मज्झमझेणं निगच्छइ निग्गच्छित्ता जेणामेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । परिसा पडिगया, राया य गए ।
भगवं महामणस्सवगुरापरिखिमरणालंकियसरीरे माता हाए कयबाला
कामदेवस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती ११२ तए गं कामदेवे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटतुट्ठ-चित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए
हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-- "सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुटेमि गं भंते! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबियइन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं गं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि"। "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि"। तए णं से कामदेवे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्म पडिवज्जइ ।
भगवओ जणवयविहारो ११३ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ चंपाए नयरीए पुण्णभद्दाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय
विहारं विहरइ।
कामदेवस्स समणोवासग-चरिया ११४ तए णं से कामदेवे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीव-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ।
भद्दाए समणोवासियाचरिया ११५ तए णं सा भद्दा भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जणं असण-पाण-खाइम
साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभमाणी विहरइ।
कामदेवस्स धम्मजागरिया गिहिवावारचागो य ११६ तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स उच्चावहि सील-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस
संवच्छराई वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुन्वरतावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं चंपाए नयरीए बहूणं-जावआपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए"। तए णं से कामदेवे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छह, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडि
ध०क०३६
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
णिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चंपं नार मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणि-सुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दम्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
कामदेवस्स पिसायरूव-कय-मारणंतिय-उवसग्गस्स सम्म अहियासणं ११७ तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छदिट्ठी अंतियं पाउन्भूए।
तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ । तस्स णं दिव्वस्स पिसायरुवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-सीसं से गोकिलंजसंठाण-संठियं, सालिभसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा उट्टिया, कभल्ल-संठाण-संठियं निडालं, मंगुसपुच्छं व तस्स भुमकाओ फुग्गफुग्गाओ विगय-बीभच्छ-दसणाओ, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभच्छ-दंसणाई, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभच्छ-दंसणिज्जा, उरब्भपुडसंनिभा से नासा, झुसिरा जमल-चुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासापुडया, घोडयपुच्छं व तस्स मंसूई कविल-कविलाई विगय-बीभच्छ-दसणाइ, उट्ठा उट्टस्स चेव लंबा, फालसरिसा से दंता, जिन्भा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभत्स-दसणिज्जा, हल-कुड्डाल-संठिया से हणुया, गल्ल-कडिल्लं व तस्स खड्डे फुटुं कविलं फरूसं महल्लं, मुइंगाकारोवमे से खंधे, पुरवरकवाडोवमे से वच्छे, कोट्टिया-संठाण-संठिया दो वि तस्स बाहा, निसापाहाण-संठाण-संठिया दो वि तस्स अग्गहत्था, निसालोढसंठाण-संठियाओ हत्थेसु अंगुलीओ, सिप्पि-पुडग-संठिया से नखा, हाविय-पसेवओ व्व उरम्मि लंबंति दो वि तस्स थणया, पोट्टे अयकोट्टओ व बटुं, पाण-कलंद-सरिसा से नाही, सिक्कग-संठाण-संठिए से नेत्ते, किण्णपुड-संठाण-संठिया दो वि तस्स बसणा, जमलकोट्टिया-संठाण-संठिया दो वि तस्स ऊरू, अज्जुण-गुठं व तस्स जाणूई कुडिल-कुडिलाई विगय-बीभत्स-दसणाई, जंघाओ कक्खडीओ लोमेहि उवचियाओ , अहरी-संठाण-संठिया दो वि तस्स पाया, अहरी-लोढ-संठाण-संठियाओ पाएसु अंगुलीओ, सिप्पि-पुडसंठिया से नखा। लडह-मडह-जाणुए, विगय-भग्ग-भुग्ग-भुमए, अवदालिय-वयण-विवर-निल्लालियग्गजीहे, सरड-कयमालियाए उंदुरमाला-परिणद्धसुकर्याचधे, नउल-कयकण्णपूरे, सप्प-कयवेगच्छे, अप्फोडते, अभिगज्जते, भीम-मुक्कट्टहासे, नाणाविह-पंचवणेहि लोमेहि उवचिए, एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरत्ते रु? कुवियचंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासायं एवं वयासी"हंभो! कामदेवा! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! होणपुण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तब देवाणुप्पिया ! सोलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाइ पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि"। तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुम्बिग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्माणोवगए विहरइ। तए णं से दिवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुविरगं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं, पासइ, पासिता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-"हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया! -जावजइ णं तुमं अज्ज सोलाइं वयाई वेरमणाई, पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नोलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।" तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं पिसायरवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ। तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तिवलियं भिडि निडाले साहट्ट कामदेवं समणोवासयं नीलप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
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कामदेवगाहाबइकहाणगं
३०७
कामदेवस्स हत्थिरूव-कय-उवसग्गस्स सम्म अहियासणं ११८ तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं
विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसविकत्ता, पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ-सत्तंगपइट्ठियं सम्म संठियं सुजातं पुरतो उदग्गं पिट्ठतो वराहं अयाच्छि अलंबकुच्छि पलंब-लंबोदराधरकर अन्भुग्गय-मउल-मल्लिया-विमल-धवलदंतं कंचणकोसी-पविठ्ठदंतं आणामिय-चाव-ललियसंवेल्लियग्ग-सोंडं कुम्म-पडिपुण्णचलणं वीसतिनखं अल्लीण-पमाणजुत्तपुच्छं मत्तं मेहमिव गुलुगुलेतं मण-पवण-जइणवेगं, दिव्वं हत्यिरूवं विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-- "हंभो! कामदेवा ! समणोवासगा!-जाव-न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज सोंडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालाओ नीणेमि, नोणेत्ता उड्ढं वेहास उम्विहामि, उन्विहिता तिर्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।" तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ।। तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता, दोच्चपि तच्च पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी--"हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! -जावजइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं सोंडाए गेण्हामि, गेण्हेत्ता पोसहसालाओ नोमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहास उम्विहामि, उविहित्ता तिखेहि दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छेत्ता अहे धरणितलंसि तिखुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।" तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाण कामदेवं समणोवासयं सोंडाए गेण्हेति, गेण्हित्ता, उड्ढं बेहासं उम्विहइ, उविहिता तिर्खहं दंतमुसलेहि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
कामदेवस्स सप्परूव-कय-उवसग्गस्स सम्म अहियासणं ११९ तए णं से दिवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुश्विग्गं अखभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं
विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ-जाव-सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहिता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ-- उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाकायं मसीमूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयलचंचलचलंतजीहं धरणीयलवेणिभूयं उक्कड-फुड-कुडिल-जडिल-कक्कस-वियड-फडाडोवकरणदच्छं लोहागर-धम्ममाण-धमधमेंतघोसं अणागलियदिव्वपचंडरोसं दिव्वं सप्परूवं विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-- "हंभो! कामदेवा ! -जाव-न भंजेसि, तो ते अज्जेव अहं सरसरस्स कायं दुरुहामि, दुरुहिता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुतो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकुठूमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।" तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं सप्परूदेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाब-विहरइ। तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुग्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-- "हभो ! कामदेवा! समणोवासया! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई बेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोबवासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अज्जेव अहं सरस रस्स कार्य दुरुहामि, दुरुहिता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकट्टेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ बवरोविज्जसि।"
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं सप्परूबेणं दोच्चं पि एवं वृत्त समाण अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से दिवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं -जाव- पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवस्स सरसरस्स कायं दुरुहइ, दुरुहिता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गौवं वेढेइ, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहिं दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरयिासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
कयसाभावियरूवदेवकया कामदेवस्स पसंसा खामणा य १२० तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ
पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ. पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिन्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइहार-विराइय-वच्छं कडग-तुडिय-थंभियभुयं अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंड-कण्णपीढधारि विचित्तहत्थाभरणं विचित्तमाला-मउलि-मउड कल्लाणगपवरवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं भासुरबोंदि पलंबवणमालधरं दिन्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दसदिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं, दिव्वं देवरूवं विउन्वित्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिए कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी"हंभो! कामदेवा समणोवासया! धण्णे सि णं तुम देवाणुप्पिया ! पुण्णे सि णं तुम देवाणुप्पिया! कयत्थे सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयलक्खणे सि णं तुम देवाणुप्पिया! सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । एवं खलु देवाणुप्पिया! सक्के देविदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाण-सयसहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबर-वत्यधरे आलइय-मालमउडे नव-हेम-चारु-चित्त-चंचल-कुंडल-विलिहिज्जमाणगंडे भासुरबोंदी पलंबवणमाले सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सोहम्माए सक्कंसि सीहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं चउरासोणं आयरक्ख-देवसाहस्सोणं, अण्णेसि च बहूणं देवाण य देवीण य मज्झगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ--'एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी उम्मुक्क-मणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दम्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । नो खलु से सक्के कणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा'। तए णं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमलै असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हव्वमागए। "तं अहो णं देवाणुप्पियाणं इड्ढी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए"। तं विट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्ढी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! खमंतु णं देवाणुप्पिया! खंतुमरिहंति णं देवाणुप्पिया ! नाई भुज्जो करणयाए" त्ति कटु पायवडिए पंजलिउडे एयमट्ठे भुज्जो-भुज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए।
कामदेवस्स पडिमा-पारणं १२१ तए णं से कामदेवे समणोवासए निरुवसग्गमिति कट्ट पडिम पारेइ।
कामदेवकयं भगवओ पज्जुवासणं १२२ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-जेणेव चंपा नयरी, जेणव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहर।।
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कामदेवगाहावइकहाणगं
तए णं से कामदेवे समणोवासए इमीसे कहाए लद्धठे समाणे-'एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुटिव चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।' तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिए मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चंपं नरि मझमज्मेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स समणोवासयस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ ।
भगवया कामदेवस्स उवसग्ग-वागरणं १२३ कामदेवा! इ समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी
"से नूणं कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउन्भूए। तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउब्वइ, विउव्वित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय तुमं एवं वयासी-'हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलियअयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडा«ड करेमि, जहा गं तुम देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव, जीवियाओ ववरोविज्जसि।' तुमं तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरसि । तए णं से दिव्वे पिसायस्वे तुमं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तुम एवं वयासी-'हंभो! कामदेवा ! समणोवासया! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सोलाइं वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंड करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं पिसायरवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरसि । तए ण से दिव्वे पिसायरूबे तुम अभीयं-जाव-पासइ,. पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तिवलियं भिडि निडाले साहट्ट तुमं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेइ। तए णं तुमे तं उज्जल-जाव-बेयणं सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि । तए णं से दिवे पिसायरूवे तुमं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ तुमं निग्गंथाओ पावयगाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव तुमे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं एवं वयासी-- 'हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज सोंडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालाओ नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहासं उम्विहामि, उव्विहिता तिखेंहिं दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।' तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरसि। तए णं से दिव्वे हत्थित्वे तुम अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तुमं एवं वयासी'हंभो! कामदेवा! समणोवासया! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं सोंडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालाओ नीमि, निणित्ता उड्ढं वेहासं उम्विहामि, उविहिता तिहिं दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।'
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३१०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरसि। तए णं से दिव्वे हत्थिरूव तुम अभीयं-जाव- पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तुम सोंडाए गेण्हति, गेण्हित्ता उड्ढं वेहासं उव्विहइ, उविहित्ता तिखेहि दंतमुसलेहि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ। तए णं तुमे तं उज्जल -जाव- वेयणं सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि । तए णं से दिव्बे हथिरुवे तुम अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएति निग्गंयाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमिता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विष्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउब्वइ, विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव तुम, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं एवं वयासी-हंभो! कामदेवा! समणोवासया! -जाब- जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अज्जेव अहं सरसरस्स कायं दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गौवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकुदृमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया! अट्टदुहट्ट-बसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।' तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए -जाव- विहरसि । तए णं से दिव्वे सप्परूवे तुमं अभीयं -जाव- पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तुम एवं वासी-हंभो! कामदेवा! समणोवासया! -जाव- जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अज्जव अहं सरसरस्स कार्य दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहिं विसपरिगताहि दाढाहि उरंसि चेव निकुदृमि, जहा गं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।' तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं सप्परूवणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए -जाव-विहरसि। तए णं से दिव्वे सप्परूवे तुम अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तुम्भं सरसरस्स कायं दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गोवं वेढेइ, वेढेत्ता तिक्खाहिं विसपरिगताहि दादाहिं उरंसि चेव निकुट्टेइ । तए णं तुमे तं उज्जलं-जाव-वेयणं सम्म सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि। तए णं से दिव्वे सप्परूवे तुम अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ तुमं निग्गंथाओ पावयणाओ चालितए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-संणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विष्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउब्वइ, विउवित्ता पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसिता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तुम एवं वयासो-'हभो! कामदेवा ! समणोवासया ! धण्णे सि णं तुम देवाणुप्पिया ! पुण्णे सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थे सि णं तुम देवाणुप्पिया ! कयलक्खणे सि णं तुम देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिबत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविदे देवराया-जाव-एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पग्णवेइ, एवं परूवेइ ‘एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरोए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी उम्मुक्कमणि-सुवण्णे वगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दन्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उपसंपज्जित्ताणं विहरइ। नो खलु से सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा।' तए णं अहं सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो एयमझें असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हव्वमागए। तं अहो णं देवाणुप्पियाणं इड्ढी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए । तं दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्ढी जुई जसो बलं बीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तं खामेमि णं देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरिहंति णं देवाणुप्पिया ! नाइं भुज्जो करणयाए त्ति कटु पायवडिए पंजलिउडे एयमठं भुज्जो-भुज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए। से नूणं कामदेवा ! अढे समठे ?" "हंता अत्थि" ॥
भगवया कामदेवस्स पसंसा १२४ अज्जो ! ति समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गंथे य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी--"ज ताव अज्जो! समणोवासगा
गिहिणो गिहमज्झावसंता दिव्व-माणुस-तिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्मं सहंति खमंति तितिक्खंति अहियासेंति, सक्का पुणाई अज्जो!
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कामदेवगा हा कहाण
समग्रहं निम्ह दुवासंगं गणिपिडगं अहिज्जमानहि दिव्य माणूस-तिरिक्खजोगिए उसमे सम्मं सहित्तए खमितए तितिक्लिए अहियासित्तए ।"
ततो ते बहने समणा निबंधा व निमंबीओ व समणस्स भगवओ महावीरस्स तह ति एवमट्ठे नए पति । कामदेवस्स पडिगमणं
१२५ ए से कामदेवं समोवास टुटुचित्तमामंदिए पीदमणे परमसोमल्लिए हरिसबस-वित्तप्पमागहिवर समर्थ भगवं महावीर पसिना पुछद अमादिव समनं भगवं महावीरं तिक्चुतो आपाहिण पाहणं करे, करेता बंद णमंसह बंदिता गर्मसत्ता जामेव दिसं पाए, तामेव दिसं पडिगए। भगवओ जणवयविहारो
१२६ ए णं समणे भगवं महावीरे अन्यदा कदाइ चंपाओ नवरीओ परिणित्वम, पडिणिक्खमित्ता दहिया जगवयविहारं विहरद्द । कामदेवरस उवास गपडिमा पवित्ती
१२७त
से कामदेव समगोवालए पढमं उवासगपडिमं उवसंपविताणं विहरद ।
तए से कामदेव समगोवासए पदमं उदासगपडिमं अहासुतं अहाकणं अहामणं अहातचं सम्मं कारणं फासेद पाले सोहेड तीरेड किलेड आराहे ।
१२८
३११
J
तए णं से कामदेव समगोचासए दोच्च उवासगपडिमं एवं तवं चत्वं पंचमं छ, सत्तमं अद्रुमं नवमं उसमें एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ ।
तए गं से कामदेवे समणोवासए इमेणं एपावेगं ओरालेणं विलेणं पयलेणं पहिएणं तवोकम्मेणं सबके लुक्छे निम्मंसे अद्रिचम्माण किडकिडियाभूए किसे धर्माणिसंतए जाए।
कामदेयस्स अणसणं
तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासयस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकष्ये समुज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं एयाणं ओरालेयं विलेणं पयले पहिएगंलोकम्मे के क्ले निम्मंसे अम्माण किडकिडिपाए किसे धर्माणिसंतए जाए तं अत्थिता मे उद्वाणे कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्वा-सिंवेगे तं जावता मे अस्थि उडाने कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सडा-धि-संवेगे जायन्य मे धमारिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जि हत्थी विहरद, तावता मे सेयं बल्ल पाउप्पभावाए गए-जाव-उद्विपम्म सूरे लहस्स रस्सिम्मि दिगयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतिय संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण -पडियाइक्खियस्स कालं अणवकख प्राणस्स हिरिए एवं संपे, संपेसा कल्लं पाउपभाषाए रखनीए-जाब- उद्वियम्मि सूरे सहसरस्सिम्मि दिगयरे तेयसा जलते अपछिममारणंतियसलेहणा-सणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिइ कालं अणवकंखमाणे विहरइ । कामदेवस्त समाहिमरणं देवलोगुप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगणनिरूपणं च
१२९ एषं से कामदेवे समोरासए बहूहि सोल-य-गुण- वेरमण-पच्चक्लान- पोसहोचवासेहि अप्पानं भावेला जीव वासाई समगोवासपरियागं पाणिता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं कासिता, मासिवाए संलेहणाए अत्तानं ब्रूहिता स भत्ताई अगसणाएवेत्ता आलोय-पडिक्कते, समाहिपते, कालमासे काले किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मसस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थि मे णं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उबवण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । कामदेवस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।
" से णं भंते! कामदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहि गमिहिइ ? कहि उववरिज?"
"गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।"
उवासगदसाओ अ० २ !
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७. चुलणीपियगाहावइकहाणगं
वाराणसीए चुलणीपिया गाहावई १३० तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी । कोट्ठए चेइए । जियसत्तू राया ।
तत्य णं वाणारसीए नयरीए चुलणीपिता नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए । तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ वढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडोओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । से णं चुलणीपिता गाहावई बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था । तस्स गं चुलणीपियस्स गाहावइस्स सामा नाम भारिया होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा-जाव-माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ।
भगवओ महावीरस्स समवसरणं १३१ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-जेणेव वाणारसी नयरी जेणेव कोदए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासइ ।
चुलणीपियस्स गाहावइस्स समवसरण गमणं धम्मसवणं च १३२ तए णं से चुलणीपिया गाहावई इमोसे कहाए लढे समाणे-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुष्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं
दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमणवंदण-णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखिते पादविहारचारेणं वाणारसि नरि मझमझेणं निगच्छइ , निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे चुलणीपियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । परिसा पडिगया, राया य गए ।
चुलणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती १३३ तए णं से चुलणोपिता गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परम
सोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठइ उद्रुत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-“सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि
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चलणीपियगाहावइ कहाणगं
३१३
णं मंते । निर्णवं पावपर्ण, अब्भुट्ठेम णं भंते! निग्गंथ पावणं । एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितमेयं भत ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा णं देवापिया अंतिए बहवे राईसर- सलवर माविय को विध-य-सेट्ठि सेगाव-सत्चवाहपमिइया मुंडा भविता अयाराज अनगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाय्यं सत्तसिक्खा बहालहिं सावगधम्मं पडिवज्जिस्ामि ।"
"अहं देवाप्पिया मा पडिबंधं करेहि "
गए ण से चुलगीपिता महावई समस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावध पविन्न ।
भगवओ जणवयविहारो
१३४ तए णं समणे भवयं महाबीरे अण्णदा दाह वाणारसीए नयरीए कोपाल वेदयाओ पडिणिक्खमद, पडिणिमत्ता बहिया जगदविहारं विहर।
चुलणीपियरस समणोवासग-बरिया
१२५ तए णं से चुलगीपिता समणोवासए जाए- अभिगयजीवाजीये- जाव- समणे निम्गंचे फामु-एसणिज्जेणं असणयाण- खाहमसाहमे यत्व पहि-कंबल पाय ओसह सज्जेण पाडिहारिएण य पीड़-फल-सज्जा-संचारएणं पहिलामेमाणे विहरः ।
सामाए समणोवासिया-चरिया
१२६ लए सा सामा मारिया समनोवासिया जाया- अभिगयजीवाजीवा जाय-समणे निग्गे फासू-एसपिज्जेणं असण-पाय-खाइम साइमेणं वत्थ पडिग्गह- कंबल - पायपु छणेणं आसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ ।
चुलगी पियस्त धम्मजागरिया गिहिवाबारचागो य
१३७ तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासगस्स उच्चावहिं सील-व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहो ववासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइक्कताई । पण्णरसमस्त संवच्छरस्स अंतरा पट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वस्तावत्त- कालसमयंसि धम्मजागरिवं जागरमागस्स इमेयावे अशविए चितिए पत्चिए मगोग संकने समुप्यज्जिया एवं अहं वाणारसीए नयरीए बहू-जाब आणि परिपृच्छणिज्जे, सस्स वि य णं कुटुंबस्स मेडी- जाव- सव्यज्जवहावए तं एते वक्वेणं अहं नो संचामि समस्त भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उचतंपजिताणं विहरितए । ' तए णं से चुलणीपिता समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणासि नयर मज्झमज्झेणं निग्गच्छ, निग्गछित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल' पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार- पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दम्भसंथारयं दुध, दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंगवारी उम्मुक्कमणिवणे वगयमातावणमविलेवणे निक्तिसत्यमुसले एगे अबीए दसंवाए समस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नति उवसपज्जित्ताणं विहरद ।
चलनीपियरस देवकयनियजेदृपुत्तमारण हव उवसग्गस्स सम्म अहियासणं
१३८ तए णं तस्स चुलणीषियस्स समगोवाख्यस्त पुव्वरत्तावरसकालसमसि एगे देवे अंतिय पाउए ।
गए णां से येथे एवं महं नीपल लगुलिप-अपसकुसुमभ्यगासं खुरधारं असि महाय चुलगीपयं समणोवास एवं क्यासी'हो ! लोपिता ! समणोवासा ! अपरिवरिया जान मंजे तो ते हं अन्न जेदुतं साम हिम नीम, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहसि अहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ वबरोविज्जसि ।'
१. एत्थसंबंधाणुसंधाणं आणंदगाहावइकहाणयाओ गेयं ।
२. जाव' सद्दनिद्दिट्ठ अणुसंधाणं कामदेवकहाणगाओ णेयं ।
६० क० ४०
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंघो
तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरह । तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुलगीपियं समणोवासयं एवं वयासी--'हंभो! चुलणीपिया ! समणीवासया ! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई-जाव-जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ। तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुलीणीपियस्स समणोवासयस्स जेट्टपुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता अम्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
चुलणीपियस्स देवकयनियमज्झिमपुत्तमारणरूवउवसग्गस्स सम्म अहियासणं १३९ तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी--'हंभो ! चुलणीपिता!
समणोवासया !-जाव-जइ णं तुम अज्ज सोलाइं वेयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छुड्डेसि न भंजसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नोमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता-जाव-(सु. १३८) जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ। तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी'हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया !-जाव-(सु. १३९) जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं से चुलणोपिया समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुलणीपियस्स समणोवासयस्स मज्झिमं पुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अइहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं-जाव-वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
चलणीपियस्स देवकयनियकणीयसपुत्तमारणरूवउवसग्गस्स सम्म अहियासणं १४० तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासो--'हंभो ! चुलणीपिता !
समणोवासया !-जाव-जइ णं तुम अज्ज सोलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासो-'हंभो! चुलणीपिता ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सोलाइं वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नोमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा गं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।' तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं बोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटै कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुलणीपियस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुतं गिहाओ नीणेइ, नीणेता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आईचइ । तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं-जाव-वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
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चुलणीपियगाहावइकहाणगं
३१५
१४१
चुलणीपियरस देवकहियनियमायाभद्दामारणवयणसवण उवसग्गस्स असहणे कोलाहलकरणं, मायाविकुन्वयदेवस्स आगासे उप्पयणं च तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता चउत्थं पि चुलणोपियं समणोवासयं एवं वयासी--'हंभो! चुलणीपिया ! समणोवासया!-जाव-जइ णं तुम-जाव-न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा माया भद्दा सत्थवाही देवतं गुरुजणणी दुक्कर-दुक्करकारिया तं साओ गिहाओ नोमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेणं य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।' तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ। तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-- 'हभो! चुलणीपिता! समणोवासया ! -जाव-ववरोविज्जसि ।' तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुत्पज्जित्था--"अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माइं समाचरति, जे णं मम जेठं पुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाण-भरियंसि, कडायंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं मम कणीयसं पुतं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मसेण य सोणिएण य आइंचइ, जा वि यणं इमा ममं माया भद्दा सत्थवाही देवतं गुरु-जणणी दुक्कर-दुक्करकारिया, तं पि य णं इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गओ घाएत्तए-तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिण्हित्तए" ति कटु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, तेणं च खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए।
भदाए पसिणो १४२ तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं कोलाहलसइं सोच्चा निसम्म जेणेव चुलणीपिया समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी--"किण्णं पुत्ता! तुमे महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ?"
१४३
चुलणीपियस्स उत्तरं तए णं से चुलणोपिया समणोवासए अम्मयं भई सत्थवाहि एवं वयासो-'एवं खलु अम्मो! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुर-धारं असिं गहाय ममं एवं वयासी-- 'हंभो! चुलणीपिया ! समणोवासया! -जाव-जइ णं तुम-जाव-बवरोविज्जसि।' । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं बुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्च पि एवं बयासी--हंभो ! चुलणीपिया! समणोवासया ! -जाव-ववरोविज्जसि। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्ठपुत्तं गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंच।। तए णं अहं तं उज्जलं-जाव-वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं मज्झिम पुत्तं-जाव-वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि।
. एवं कणीयसं पुत्तं-जाव-वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता, ममं चउत्थं पि एवं वयासी--हंभो! चुलणीपिया ! समणोवासया !-जाव-न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा माया देवतं गुरु-जणणी-जाव-ववरोविज्जसि ।
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३१६
तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए - जाव- विहरामि ।
तए गं से पुरिसे ममं अभीयं जाय-पास पासिता दोण्वं पि तच्च पि ममं एवं बयासी भो। गोपिया ! समवाया ! - जाव-ववरोविज्जसि ।
धम्मका उपबंधो
तएषं तेगं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्च पि ममं एवं बुत्तस्स समाणस्स इमेवार अगमविए चितिए पत्थिए मणोगए संकष्ये समुष्यज्जित्था 'अहो णं हमे पुरिले अनारिए-जाब- समाचरति में णं ममं तं साओ गिहाओ जाब-आइंच, तुम्भे वि व गं इच्छइ साओ गिहाओ नोणेत्ता मम अग्गओ घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिव्हित्तए" त्ति कट्टु उद्धाविए । सेविय आगासे उप्पइए मए वि य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ।'
चलणीपियरस पायच्छितकरणं
१४४ तए णं सा भद्दा सत्यवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी -- "नो खलु केइ पुरिसे तव जेट्ठपुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, भोत्ता तव अन्य धाए नो चलु केइ पुरिसे तय ममं तं साओ गिहाजो नीगेड, नीषेत्ता तब अग्गओ धाए, गोखल केद्र पुरिसे तब कणीयतं पुतं साओ गिहाओ नोणेइ, नोणेसा तव अग्गओ पाएड एस णं केंद्र पुरिसे तब उचलणं करे, एस णं तुमे विदरिसणे दिट्ठे । तं णं तुमं इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं णं तुमं पुत्ता ! एयस्स ठाण आलोएहि पक्किमाहि निदाहि गरिहाहि बिउट्टाहि विलोहेहि अकरणयाए अन्नद्राहि अहारिहं पापच्छितं तवोकम्मं पाहि ।" तए णं से चुलणीपिता समणोवासए अम्माए भहाए सत्यवाहीए 'तह' त्ति एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स टाणस्स आलोए पडिक्कम निवइ गरिहद विउट्टद विसोहेड अकरणयाए जय हारिहं पाठितं तयोकम्मं परिवञ्ज ।
चलणीपियस्स उवास गपडिमा पडिवी
१४५ तए णं से चुलणीपिता समणोवासए पढमं उदासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
तए णं से चुलनीपिता समणोबातए पढमं उवासमपत्रिमं अहासुतं अहाकप्पं महामार्ग अहातचं सम्मं कारणं फासे पाले सोहे तीरेइ कित्तेह आराहेद ।
लए से चुलपिता समणोवासए दोच्यं उदासगपडिमं एवं तच्यं चत्यं पंचमं छ, सत्तमं अद्रुमं नवमं, इसमें एक्कारसमं उबालगपडिमं अहा अहाकप्पं अहामगं अहातच्यं सम्मं कारणं फासे पाले सोहेइ तोरे किलेद आहे ।
सरणं से घुलगीपिता समणोवास ते ओराले दिउनेणं पयतेणं पम्महिएणं तवोकम्येणं सुक्के लुक्छे निम्मंसे अम्बावण feffeडियाए किसे धमणिसंतए जाए ।
चुलणीपियस्स असणं
१४६ तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए परिवए मगोगए संकध्ये समुप्यज्जित्था एवं अहं येणं एारुवेगं ओरालेयं विलेणं पयले पाथहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के निम्मंसे अट्टम्मादम किडिकडियाए किसे धमणिसंतए जाए तं मत्थिता मे उट्टा कम्मे बल बीरिए पुरिसरकार- परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे तं जावता मे अस्थि उड्डाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, जाव-य मे धम्मारिए धम्मीयएसए समणे भगवं महावीरे जिसे मुहत्यी विहरद, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उडियस सूरे सहस्सरस्सिम्मि विषय तेवसा जलते अपच्छिममारणंतियसनेना-भूसणा-सूसियस भत्तपाण-पडियाइविजयत्स, कालं अणवखमाणस्स विहरिए"। एवं संपेहेड, संदेहेता कल्लं पाउप्पभाषाए रमणीए - जाव-उद्वियम्मि पूरे सहस्सरस्सिम्मि दियरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण -पडियाइक्खिए कालं अणवकखमाणे विहरइ ।
चुलजी पियस्स समाहिमरणं देवलोगुप्पत्ती तयणंतरं च सिद्धिगमणनिरूवणं
१४७ तए णं से चुलणीपिता समणोवासए बहूहि सील-ध्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसह ववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोबासगपरियागं पाणिता, एक्कारस व उच्चासनपहिमाओ सम्भं कारणं फासिता, मासिवाए संतेहमाए अत्ताणं सित्ता, राद्वि भत्ताई अणसणाए देता आलोहपडिक्कते समाहिपते कालमासे कालं किन्वा सोहम्मे कप्पे सोहम्मदडिसगल्स महाविमाणस्त उत्तर
.
पुरत्थिमेणं अरुणप्पमे विमाणे देवताए उववणे चत्तारि पलिशोषनाई ठिई पण्णत्ता महाविदेहे वासे सिज्महि मुज्झिहिद मुि हिद सव्वाणमंत काहि ।
उवासगदसाओ अ० ३ ।
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८. सुरादेवगाहावइकहाणगं
वाराणसीए सुरादेवे गाहावई
१४८ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी । कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया ।
तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सुरादेवे नामं गाहावइ परिसवड -- अड्ढे जाव - बहुजणस्स अपरिभूए ।
तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडोओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वढिपत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।
से णं सुरादेवे गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी- जाव-सध्दकज्जवड्ढावए यावि होस्था।
तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स धन्ना नामं भारिया होत्या -- अहीण- पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव - माणुस्सए कामभोए पच्चणुभव - माणी विहरइ ।
भगवओ महावीरस्स समवसरणं
१४९ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाथ जेणेव वाणारसी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अहापडिवं ओग्यहं ओमिहिता संजमेणं तवसा अप्पार्ण भावेमाणे विहर।
परिसा निग्गया ।
कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ - जाव - पज्जुवास ।
सुरादेवस्स गाहावइस्स समवसरणे गमणं धम्मसवणं च
१५० लए गं से गुरादेवं गाहावई इमोसे बहाए लट्ठे समाने एवं खलु समने भगवं महावीरे पुरुषापुवि चरमाणे गामाशुगाम माणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ ।
तं महत्फलं खलु भो! देवानुप्पिया तहाख्यानं अरहंताणं भगवंताणं गामवोयरस वि सवणपाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदनमंसण- पडिपुच्छण - पज्जुवा सणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहण्याए ? तं गच्छामि णं देवाणुपिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं वेदवं पज्जुवासामि" । एवं संपेहेइ संपेता व्हाए कघबलिरुम्मे कयकोउव-मंगलपायच्छते सुष्पावेसाई मंगस्लाई बत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्याभरणासकिय शरीरे सयाओ मिहाओ पडिणिश्वमद, पडिणिक्यमिता सकोरेंटमल्लदामेणं उत्तणं धरिमाणं परिचिते पादविहार-वारेणं वाणारसि नयर ममशेषं नियच्छ, निम्यच्छिता जंणामेव कोहुए बेइए, जेणेव सम भगवं महावीरे तेणेव उपागच्छद, उनागच्छिता समनं भगवं महावीरं तिक्युत्तो आपाहिण-याहिणं करेड, करेता बंद गर्म पंडिता मंसिता गण्यासणे गाइदूरे सुस्सुसमाणे नर्मसमाने अभिमु दिनएवं पंजलि पास।
राए णं समये भगवं महावीरे मुरादेवस्त माहाबहस तोसे व महहमहालियाए परिसाए-जाव-धम्मं परिक
परिसा पडिगया, राया य गए।
सुरादेवस्त मिहिधम्मपडिवती
१५१लए से सुरा गाहावई समणस्स भगपओ महावीरस्ता अंतिए धम्मं सोचा निसम्म
दु-वित्तनादिए पोमणे परमसोमण
लिए हरिसवल विसप्यमान- हियए उडाए उई उट्ठेला समणं भगवं महावीरं तिम्बुत्तो आग्राहिण-पयाहिणं करे करेता बह
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धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी--"सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अग्भुठेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते। इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुभ वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं-- दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि"। "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेहि" । तए णं से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्म पडिवज्जइ।
भगवओ जणवयविहारो १५२ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणारसीए नयरोए कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया
जणवयविहारं विहरइ।
सुरादेवस्स समणोवासगरिया १५३ तए णं से सुरादेव समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीव-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ।
धन्नाए समणोवासियाचरिया १५४ तए णं सा धन्ना भारिया समणोवासिया जाया--अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं
वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ।
१५५ तान
सुरादेवस्स धम्मजागरिया गिहिवावारचागो य तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स उच्चावहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वोइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरतावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए बहूर्णजाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए०'। तए णं सुरादेवे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणारसि नरि मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जिता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहिता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
सुरादेवस्स देवकयनियजेट्ठपुत्तमारणरूवउवसग्गस्स सम्म अहियासणं १५६ तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउभविस्था।
तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पलगवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासो--"हंभो ! सुरादेवा! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्म कामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया! मोक्ख कामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सोलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ
णं तुम अज्ज सोलाइं-जाव-न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेटुपुतं साओ गिहाओ नोणेमि, नीणेत्ता तव अग्गाओ घाएमि, १. एत्थ संबंधाणुसंधाणं आणंदगाहावइकहाणगाओ णेयं ।
खिया ! पुण्णावा तव देवाणवा परिच्चाओ
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सुरादेवगाहाव कहाणगं
पाएला पंचमंसलोल्ले करेमि करेला आदाणरियंसि कासि अहेमि, अहेता तय गावं मंसेन व सोगिएण व आईचामि जहा णं तुमं अट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि" ।
तए गं से सुरादेवं समणोवास ते देवेगं एवं मुझे समाने अभीए असत्वे अगव्य असुनिए लिए असं सीएमबिह
३१९
तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी -- “हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! -जाव- जइ णं तुमं अज्ज सोलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्ठपुत्तं साओ गिहाओ नीम नोला तब अगली धाएमि, पाएसा पंच मंससोल्ले करेमि करेला आदाणमरियति कडाहसि अहेमि, अहेत्ता तथ गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट दुहट्ट बसट्टे अकाले चैव जीवियाओ ववरोविज्जसि" ।
तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए - जाव विहरइ ।
लए गं से देवे सुरादेवं समनोवासयं अभीयं- जाब-पासह पासिता आसुर रु कुविए डिस्किए मिलिमितीयमाणे सुरावस समणोवासयस्स जेट्ठपुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएड घाएता पंच मंससोल्ले करेइ, करेसा आदाणभरियंसि कडाहसि आहे, असा सुरादेवस्स समोवायरस गावं मंवेग व सोणिएन आईच
तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासे ।
सुरादेवस्स देवकयनियमज्झिमपुत्तम। रणरूनउवसग्सगस्स सम्मं अहियासणं
१५७ लए से ये सुरादेवं समणोवासयं अभीयं- जाव पास पासिता सुरादेवं समगोवासयं एवं बासी भो ! सुरादेवा ! समणीवासया ! - जाव- जइ णं तुमं अज्ज सोलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मतिमं तं साओ गिहाओ नीर्णेमि नीता तब अग्गज पाएमि पाएता पंच मंसलोल्ले करेमि करेता आयाणमरियसि कडाहसिला तब गायं मंसेण य सोगिएण व आईचामि जहा अट्टहास बबदिनति" ।
तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ ।
तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव- पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी - "हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! -जाव- जइ गं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भजेसि, तो ते अहं अन्न मज्झिमं पुत्तं साओ बिहाओ नीर्णेमि नीषेसा तब अग्लो पामि पाएसा पंच मंसलोल्ले करेमि करेला आदाणरियंसि कायंसि अहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चैव जीवियाओ ववरोविज्जसि" ।
लए गं से सुरादेवे समणोवासए तेगं देवेणं दोन्यं पि तत्वं पि एवं इसे समाने अभीए-जाय-विहरद्द ।।
तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं- जाव- पासइ, पासिता आसुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सुरादेवस्स समणीवास्स ममं तं गिहाओ नीगंड, नोणेसा अन्गओ पाएड पाएता पंच मंसलोल्ले करेड करेला आदाणनरियंसि सिद अता मुरादेवता समगोवासयस्स गावं मंसेण व सोणिएण आईच । तए गं से सुरादेव समणीयासए तं उज्जलं - जाव-वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
सुरादेवस्स देवकयनियकणीयसपुत्तमारणरूवउवसग्गस्स सम्मं अहियासणं
१५८ तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं- जाव- पासइ, पासित्ता सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी -- "हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! - जाव- जइ गं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीसं तं साओ गिहाओ नौमि नीता तब अन्गओ धामि घाता पंचमंससोल्ले करेमि करेत्ता आदाणरिति कडाहस अहेमि अता तव पार्थ मण व सोगिएण व आईचामि जहा षं तुमं अट्टह-बट्टे अकाले वेब जीविओवरो विज्जसि " ।
तए गं से सुरादेव समणोबा तेणं देवेणं एवं ते समाणे अभीए-जाय-विहरह।
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धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-"हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सोलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नोमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।" तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ। तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंच।। तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं-जाव-वयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
१५९
सुरादेवस्स देवकहियरोगायंकउवसग्गस्स असहणे कोलाहलकरणं, मायाविकुम्वयदेवस्स य आगासे उप्पयणं तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता चउत्थं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी--"हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंके पक्खिवामि, तं जहा--१. सासे २. कासे ३. जरे ४. दाहे ५. कुच्छिसूले ६. भगंदरे ७. अरिसए ८. अजीरए ९. दिद्विसूले १०. मुद्धसूले ११. अकारिए १२. अच्छिवेयणा १३. कण्णवेयणा १४. कडुए १५. उदरे १६. कोढे । जहा गं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।" तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-"हंभो! सुरादेवा ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सोलाइं वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंके पक्खिवामि-जाव-जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि " तए णं तस्स सुरादेवस्स समगोवासयस तेणं देवेणं दोच्च पि तच्च पि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मगोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जे णं मम जेटुपुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जेणं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अन्गओ घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ जे णं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएता पंच मंस सोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि, अइहे इ, अइहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे वि य इमे सोलस रोगायंका, ते वि य इच्छइ मम सरोरंसि पक्खिवितए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिण्हित्तए"त्ति कट्ट उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, तेण य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ।
धन्नाए पसिणो १६० तए णं सा धन्ना भारिया कोलाहलसई सोच्चा निसम्म जेणेव सुरादेवे समणोवासए, तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी
"किण्णं देवाणुप्पिया ! तुन्भे गं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ? " सुरादवस्स उत्तरं तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नं भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्कए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय ममं एवं वयासी--"हंभो! सुरादेवा ! समणोवासया !-जॉब-जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई न पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नाणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता
१६१
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सुरादेवगाहावइकहाणगं
३२१
आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा गं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि"। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं धुत्ते समाणे अभीए-जाव-बिहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! -जाव-न छडेसि न भंजेसि, तो-जाव-तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि" । तए णं अहं तेण पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाध-विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेटुपुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए णं अहं तं उज्जलं-जाव-वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं मज्झिमं पुत्त-जाव-वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयस्सं पुत्त-जाव-वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासी--"हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सोलाइं-जाव-न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंके पक्खिवामि-जावजहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि"। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वयासी-"हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुम अन्ज सोलाइं-जाव-न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंके पक्खिवामि -जाव-जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।" तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्च पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--अहो णं इमे पुरिसे अणारिए-जाव-तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तए त्ति कट्ट उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे आसाइए, मया-महया सद्देणं कोलाहले कए ।
सुरादेवस्स पायच्छित्तकरणं १६२ तए णं सा धन्ना भारिया सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासो-"नो खलु केइ पुरिसे तव जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता
तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिम पुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणोयसं पुतं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु देवाणुप्पिया ! तुम्भं के वि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगं सोलस रोगायंके पक्खिवइ, एस णं के वि पुरिसे तुम्भं उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिळें । तं गं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं णं तुम देवाणुप्पिया! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि"। तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नाए भारियाए 'तह ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अन्भुठेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ ।
सुरादेवस्स उवासगपडिमापडिवत्ती १६३ तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।
तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । तए णं से सुरादेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छठें, सत्तम, अट्ठम, नवमं, दसम, एक्कारसं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए ।
ध० क०४१
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३२२
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
सुरादेवस्स अणसणं तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोषासगस्स अण्णदा कदाइ पुन्वरत्तावरत्तकाल-समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेणं एयारवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्यि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे. तं जावता मे अस्थि उट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जावय मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जावउट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-भूसणा-भूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणधखमाणे विहरइ ।
सुरादेवस्स समाहिमरणं देवलोगप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमणनिरूवणं च १६५ तए णं से सुरादेवे समणोवासए बहूहि सील-ध्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं मावेत्ता, वोसं वासाई समणोवास
गपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरणकंते विमाणे उववण्णे । चत्तारि पलिओवमाइं ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिह ।
उवासगदसाओ अ०४।
६. चुल्लसययगाहावईकहाणगं
आलभियाए चुल्लसयए गाहावई १६६ तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया माम मयरी । संखवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया ।
तत्थ णं आलभियाए नयरोए चुल्लसयए नाम गाहावई परिवसइ-अढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए। तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोसीओ बढिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया वसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्या । से गं चुल्लसयए गाहावई बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे परिपुच्छणिज्जे, मयस्स वि य गं कुडंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स बहुला नाम भारिया होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा-जाव-माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।
भगवओ महावीरस्स-समवसरणं १६७ तेणं कालेणं तेणं समाएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-जेणेव आलभिया नयरी जेणेव संखवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवाग
च्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा निग्गया। कुणिए राया जहा, सहा जियसत्तू निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासइ ।
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खुल्लसययगाहवईकहाणगं
चुल्लसययस्स समवसरणे गमणं धम्मसवणं च १६८ तए णं से चुल्लसयए गाहावई इमीसे कहाए लद्धढे समाणे-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम
दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव आलभियाए नयरीए बहिया संखवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदण-णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अटुस्स गहणयाए ? तं गच्छामि गं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि--एवं संपेहेइ, सपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्प-महग्धाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पादविहारचारेणं आलभियं मरि मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छिता जणामेव संखवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे चुल्लसययस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । परिसा पडिगया, राया य गए ।
१६९
चुल्लसययस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती तए णं चुल्लसयए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उढाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासी--"सद्दहामि गं भंते ! निग्गंथं पाक्यणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भ ठेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भत्ते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भत्ते ! पडिच्छियमेयं भत्ते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भत्ते ! से जहेयं तुभ वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्टि-सेणावइ सत्यवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं, पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अहं गं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि" । "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि" । तए णं से चुल्लसयए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्म पडिवज्जइ ।
भगवओ जणवयविहारो १७० तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ आलभियाए नयरीए संखवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया .
जणवयविहारं विहरइ ।
चुल्लसययस्स समणोवासग-चरिया १७१ तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणे विहरइ ।
बहुलाए समणोवासिया-चरिया १७२ तए णं सा बहुला भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम
साइमेणं वत्य-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरह ।
चुल्लसयय-धम्मजागरिया १७३ तए णं तस्स चुल्लसययस्स समणोवासगस्स उच्चावहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स
चोद्दस संवच्छराई वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं
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३२४
जागरण मेवा जनात्थिए चितिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुप्यजित्वा एवं जाणिजे परिपुण्ठणिजे समस्त विपणं कुटुंबस मेढी- जाव- सज्जडावए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपर्णात्त उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । १७४ तए णं से बुलाए समणोबासए जेदुतं मिल-माइ-नियण-सयण-संबंधि-परिजणं च आयुच्छ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता आलभियं नयर मज्झमज्झेणं निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव ज्वागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जिता उच्चार पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेता दम्भसंथारयं हद, पुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंगदारी उम्मुक्कमणिसुवने वनगपमा लावण्यगविणे सत्यमले ए जीए संथारो गए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपर्णात उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।
आपूरिता सयाओ गिहाओ
धम्महाणुओगे चत्थ खंधो अहं आभियाए मरीए बहुएतेन संघाएम
चुल्लसयगस्स देवकयनियजेद्रुवुत्तमारणरुवउवसग्गस्स सम्म अहियासणं
१७५ तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरतकालसमर्थसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए ।
तए से देवे एवं महंगी-लय-अयसिकुसुमपाखुरधारं असि महान एवं समगोवासा जाब-सीना-ए-जा-परिव्वत वा तं जणं तु अन सीलाइन अज्ज जेट्ठपुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कासि अमिता व गार्य मंसेन व सोचिएग व आईचामि जहा पं तुमं
बस
अका
ववरोविज्जसि ।
तए णं से चुल्लसयए समणोदासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव- धम्मज्झाणोवगए विहरइ ।
तए णं से देवे चुल्लस्यगं समणोवासयं अभीयं- जाव- धम्मज्झाणोवगदं विहरमाणं पासइ, पासिता दोघचं पि तच्चं पि चुल्लसययं समणोवासय एवं वासी-हंगी | ला ! समगोवाया जाय- पं तुमं जन्म सीलाई जव ! अन्ज जेदृत्तं सानो गिहाओ नीम- जानवरोबिज्जति ।
तो हं
!
लगा ! तोते ( ? )
चुल्लसय
लए गं से चुल्लसवर समणोवासए लेणं देवेणं योग्यं पित पि एवं पुत्ते नाथे अभीए-जाय-विहर । तए गं से देने चुलतय समणोजास अभी-गाव-पास पासिता आतुरते उट्ठे कुलिए किए मिसिमिसीयमा गस्स समणोवासयस्स जेटुपुत्तं गिहाओ नीणेइ नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि astrife अes, अद्दहेत्ता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तसेच समणोवासए तं उज्जलं बिलं कक्कसं गाडं चं छं दुरहियास वेधणं सन्मं सहइ खमइ सिलिक्ख अहिया ।
चुल्ल सययस्स देवकवनियमज्झिमपुत्तमा रणरूवउवसग्गस्स सम्म अहियासणं
तए से देवे समास अभीवं-जावयासद, पासिता जुलतयगं समगोवास एवं वसीम! तमगाया जायज सीलाई जाय मंजेस तो ते अहं जमतं साओ विहानीमनीसा तव अग्गओ घाएमि, जाव-जीवियाओ ववरोविज्जसि ।
,
लए गं से चुलत
समजास ते देवे एवं बसे समाने अभीए-जाव-विहर।
तणं से देवे जलमय समणोवास अमी-पापासिता दोष्यं पित पित्त समास एवं वासीहंभो ! चुल्लसयया ! समणोवासया ! - जाव-जह णं तुमं अज्ज सीलाई जाव-नीर्णेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, जाव-जीविधाओ ववरोविज्जसि ।
तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव- विहरइ ।
तए से देवेगं समणोबास अभीपंजाब-पास पासिता आरसे कुलिए चंदिक्किए मतिमतीयमाणे लसयगस्स समणोवासवस्य ममं तं महाओ नी, नीता अगओ पाएद पाएला सल मंससोल्ले करे, करेला आणभरिति
डास अहे अत्ता चुल्लतयगरस समणोवायरस गायं मसेन व सोगिएन म आइंच | तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तं उज्जलं जाव-वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खड अहियासेइ ।
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हा कहाण
चुल्ल सययस्स देवकपनियकणीय सपुत्तमारणरूबउवसग्गस्स सम्म अहिपासणं
१०७ तणं से देवे सर्व समणोवास अमी-जय-पास पासिता पुल्लयागं समणोवासवं एवं वयासी हंनो ! गुलसया ! समणोवासना ! जाय-जय पं तुमं अज ! सीलाई जान्न भनेसि तो ते अहं नीगेत्ता तव अग्गओ घाएमि जाव-जीवियाओ ववरोविज्जसि ।
जीवपुलं साओ गिहाओ नीगेमि
तसेच समोवास ते देवेनं एवं यसे समाणे अभीए-जाय-विहर। समाजमनादासह पासिता बोरवं पि तवं पि चुल्लसवर्ग समणोवास एवं क्यासीहंभो ! चुल्लसगा ! समणोवासथा ! जाव-जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं-जाब-न भंजेसि तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नोणेमि नोणेत्ता तव अग्गओ घाएमि-जाव-जीवियाओ वक्रोविज्जसि ।
एणं से देवे
३२५
तए णं से चुल्ललए समणोवासए तेणं देवेगं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ ।
एणं से देवे जुसमा अमान्यात पासिता आतुरते रुट्ठे कुलिए चंडिक्किए मिसीमितीयमाणे चुल्लसयगस्स sara hits पुगिहाओ भीगे नीता अगओ पाए पाएता सत्त मंससोल्ले करे, करेला आदाणमरियति कासि आहे, असा बुल्ल यस्स समोवायरस गार्य मंग व सोणिएण व आ
तएषं से
समणोवास तं उज्जल-आब-वेषणं सम्म सहइ खमइ तितिक्य अहियासे ।
चल्लसपस्स देवकहिनिय सम्वहिरण्यकोडि विष्पकीरणरूयउवसग्गरस असणे कोलाहलकरणं मायाविकुव्ययदेवरस य आगासे उप्पयणं
१०० लए से देवे व समोवासवं अमी-ज-पास पासिता च पि चुल्लसवर्ग समनोजासर्व एवं श्वास ! चुल्लतयगा ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुमं अज्ज सीलाई जाव-न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जाओ इमाओ छ हिरण कोडीओ सिंहाणउताओ छ हिरणकोडीओ वाओ, छहिरम्पकोडीओ पवित्रयउत्ताओ, ताओ साओ गिहाली मोमिनीता आल भियाए नए सिंघाडग-तिय- चउक्क- चच्चर-चउम्मुह- महापह-पहेसु सच्चओ समंता विप्वइरामि, जहा णं तुमं अट्ट दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।
तए से ललए समोवास तेगं देवेणं एवं कुत्ते समागे अभीए-जाब-बिहार
तसे देवेगं समोश अनी जब पास पासिला योग्यं पितवं पि एवं दवासी-हंगो ! जुल्लसपणा ! समोसा जाब- गं तुमं जन्म सीलाई जान्न मंसि तो ते अहं जाओ इमाओ छ हिराकोडीओ निहाणपत्ताओ छ हिरण्यकोडीओ पाओ, छ हिरण्यकोडोओ पवित्रपउत्तानो तसा हाओ भीगेमि, नीता आलभिपाए गए विघाड-तिय-बक्क बच्चर-उम्मुह महासओ समता विप्पहरामि जहा पं तुमं अट्ट-सुहट्ट बसट्टे अकाले चेव जीवियाओ बबरोविज्जसि ।
-
तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेणं देवणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थए मगोगए संकष्ये समुपरिजाया"अहो हमे पुरिसे अजारिए अनारियबुद्धी अणारियाई पचाई कम्मा समाचरति, जे ममं जेट्ठे पुतं साओ गिहाओ नीद भीगेत्ता मम अगओ धाएड धाएता सत्त मंससोले करेड करेता आदाणभरियंसि sife अes, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेत्ता- जावसोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं कणीयसं पुतं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता, सोणिएण य आइंचइ, जाओ वि य णं इमाओ ममं छ हिरण्णकोडोओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ व ढिपउताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, ताओ वि
गं इन्छनमं साओ मिहाओ नीता आभियाए नगरीए सिघाडग-तिय-घडनक चण्चर बम्मूह-महामहे समजो समंता विप्पइरित्तए, तं सेवं खलु ममं एयं पुरिस गिव्हित्तए" त्ति कट्टु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, तेण य खंभे आसाइए, महा-महयास कोलाहले कए ।
बहुलाए पसियो
१७९ तबहुला भारिया तं कोलाहलस सोच्या मिसम्म जेणेव लसए समणीवासए तेगेव उदागच्छद् उजागता चुल्लसप समणोवास एवं बयासी किष्णं देवागुपिया ! तुम्भे षं महया-महया सगं कोलाहले कए ?
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धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
चुल्लसयगस्स उत्तरं १८० तए णं चुल्लसयए समणोवासए बहुलं भारियं एवं क्यासी--एवं खलु बहुले ! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुठे कुविए चंडि
क्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय ममं एवं बयासी-"हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई-जाव-न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, नीता-जाव-जीवियाओ ववरोविज्जसि । "तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । "तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी--हभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाइं-जाव-न भंजेसि, तो-जाव-तुम अट्ट-दुहट्ट-चसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । "तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । "तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्टपुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, धाएता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । "तए ण अहं तं उज्जलं-जाव-वेवणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । "एवं मज्झिम पुत्त-जाव-वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयसं पुत्त-जाव-वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं क्यासी-हंभो ! चुल्लसयगा! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाइं-जाव-न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जाओ इमाओ छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वढिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, ताओ साओ गिहाओ नीमि, नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापहपहेसु सव्वओ समंता विप्पइरामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । "तए णं अहं तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । "तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं क्यासी--हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई-जाव-न भंजेसि तो-जाव-तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । "तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अशथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-'अहो णं इमे पुरिसे-जाव-एयं पुरिसं गिण्हित्तए' त्ति कटु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए" ।
चुल्लसयगकयपायच्छित्तं १८१ तए णं सा बहुला भारिया चुल्लसयगं समणोवासयं एवं क्यासी-“नो खलु केइ पुरिसे तव जेट्ठपुत्तं साओ गिहाओ नीणइ,
नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेई, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु देवाण प्पिया ! तुम्भं के वि पुरिसे तब छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउताओ, छ हिरण्णकोडोओ पवित्थरपउत्ताओ, साओ गिहाओ नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्भुह-महापहपहेसु सन्चओ समंता विप्पइरइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिठे, तं गं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं गं तुम देवाणुप्पिया! एयरस ठाणस्ण आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि" । तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलाए भारियाए 'तह' ति एयमठें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अन्भुट्ठई अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ।
चुल्लसयगस्स उवासगपडिमा पडिवत्ती १८२ तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता गं विहरइ ।
तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तइ आराहेइ।
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'डकोलिय गाहावई कहाणयं
तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बोच्चं उवा सगपडिमं, एवं तच्चं चउत्थं, पंचमं, छट्ठ, सत्तमं, अट्टमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामग्गं अहातन्वं सम्मं कारणं फासेइ पालेद सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहे ।
तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे fafsfofserभूए किसे धमणिसंतए जाए । चुल्लसयगस्स अणसणं
१८३ तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासगस्स क्षण्णवा कवाइ पुग्वरत्तावरतकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्या -- "एवं खलु अहं इमेणं एथारुवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्ठियम्मावण फिडिफिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्का र परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, जावय मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरद्द, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जावउम्म सूरे सहस्सरस्तिम्मि विणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा असणा-हूसियस्स भत्तपाण -पडिया इक्खियस्स कालं rajaमाणस विहरितए" एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि वियरे तेयसा जलते अपच्छिममा रणंतियसंलेहणा असणा-सिए मत्तपाण-पडिया इक्खिए कालं अणवकखमाणे विहरद्द |
३२७
चुल्लसययस्स समाहिमरणं देवलोगुप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमण निरूवणं च
१८४ तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहूह सील-व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ, सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्वि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओक्माई ठिई पण्णत्ता । चुल्लसयगस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । "से णं भंते ! चुल्लसयए ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चत्ता कहि गमिहिइ ? कहि ज्ववज्जिeिs ?"
"गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिद बुज्झिहि मुच्चिहि सव्वदुक्खाणमंतं काहि ॥
१०. कुंड कोलियगाहावई कहाण यं
कंपिल्लपुरे कुंडकोलिए गाहावाई
१८५ तेणं कालेणं तेणं समएणं कंपिल्लपुरे नयरे । सहस्संबवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया
तत्थ णं कंपिल्लपुरे नयरे कुंडकोलिए नाम गाहावई परिवसद्द - अट्ठे-जाव- बहुजणस्स अपरिभूए ।
तस्स णं कुंडकोलियस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वढिपत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्रपउत्ताओ, छन्दया वसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्या ।"
उवासगदसाओ अ० ५ ।
से णं कुंडकोलिए गाहावई बहूणं- जाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी-जाव सव्वकज्जव ड्ढावए यावि होत्या ।
तस्स णं फुंडकोलियस्स गाहाबहस्स पूसा नाम भारिया होत्था - अहीणपरिपुण्ण-पचिवियसरीरा जाव - माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरह ।
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
भगवओ महावीरस्स समवसरणं १८६ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छद, उवाग
च्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओग्गण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा निग्गया । कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासइ ।
१८७
कुडकोलियस्स गाहावइस्स समवसरणे गमणं धम्मसवणं च तए णं से कुंडकोलिए गाहावई इमीसे कहाए लद्धठे समाणे--"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुटिव चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं
ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदणणमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुक्यणस्स सवणयाए. किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं-महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्धा-भरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेटमल्लयामेणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवगुरापरिक्खित्ते पादविहारचारेणं कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव, समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदिता मंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । परिसा पडिगया, राया य गए।
१८८
कुंडकोलियस्स गिहिधम्मपडिवत्ती तए णं कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटुतुटु-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेता वंदइ णमसइ, बंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी--"सहामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावणं, रोएमि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भुठेमि णं भते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं, भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुम्भ वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाशओ अगगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओं अगगारियं पब्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुब्वइयं सत्तसिक्खाव इयं--दुवालसविहं सावग-धम्म पडिवज्जिस्सामि ।" "अहासुहं देवणुाप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि"। तए णं से कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्म पडिवज्जइ ।
भगवओ जणवयविहारो १८९ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ कंपिल्लपुराओ नयराओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता
बहिया जणक्यविहारं विहरइ ।
कुंडकोलियस्स समणोवासग-चरिया १९० तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायछणणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ।
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कुंडकोलियगाहावईकहाणयं
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पूसाए समणोवासिया-चरिया १९१ तए णं सा पूसा भारिया समणोवासिया जाया--अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं
क्थपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ ।
देवेण नियतिवाद-समत्थणं १९२ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अण्णदा कदाइ पच्चावरणहकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव
उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगे च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउभविस्था । तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी-"हभो ! कुंडकोलिया ! समणोवासया ! सुंदरी णं देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती--नत्थि उढाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, नियता सव्वभावा; मंगली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उटाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा बोरिए इ वा पुरिसक्कार--परक्कमे इ वा, अणियता सब्वभावा"।
कुडकोलिएण नियतिवाद-निरसणं १९३ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं क्यासी--"जइ णं देवाणुप्पिया ! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती
'नथि उट्ठाणे इ वा कम्भे, इ वा बले इ वा वोरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, नियता सव्वभावा'; मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपरणत्ती 'अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इवा बले इ वा बीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, अणियता सवभावा'; तुमे गं देवाणुप्पिया ! इमा एयारूवा दिव्या देविढ्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे किणा लद्धे ? किणा पत्ते ? किणा अभिसमण्णागए ? कि उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार-परक्कमेणं ? उदाहु अणुट्टाणणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ?"
देवेण नियतिवाद-समत्थणं १९४ तए णं से देवे कुडकोलिय समणोवासयं एवं वयासी--" एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमा एयारूवा दिवा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई
दिग्वे देवाणुभावे अगुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरि सक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमष्णागए" ॥ .
कंडकोलिएण नियतिवाद-निरसणं १९५ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं क्यासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुमे इमा एयारूवा दिव्या देविड्ढी दिल्या देवज्जुई
दिव्वे देवाणुभावे अणुट्टाणणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, जेसि णं जीवाणं नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, ते कि न देवा ? 'अह तुम्भे इमा एयारुवा दिव्या देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे उट्टाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि, सुदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-मत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, णियता सव्वभावा, मंगुली गं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती अस्थि उटाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा; तं ते मिच्छा।
देवस्स पडिगमणं १९६ तए णं देवे कुंडकोलिएणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छासमावण्णे कलुससमावण्णे नो संचाएइ कुंडकोलियस्स
समणोवासयस्स किंचि पमोक्खमाइक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए ।
ध० क०४२
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३३०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधों महावीर-समवसरणे कुडकोलियस्स गमणं धम्मसवणं च १९७ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ।
तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए इमीसे कहाए लद्ध? समाणे--"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।" तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता णमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता [पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता ?] सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए मणुस्सवगुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कपिल्लपुरं नयरं मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छद, उवागपिछत्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ ।
महावीरेण पुववृत्तंत-परूवणं १९८ कुंडकोलिया ! इ समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं क्यासी--"से नूणं कुंडकोलिया ! कल्लं तुम्भं पच्चावरह
कालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था । "तए णं से देवे नाममु दृगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई पंचवण्णाइ वत्थाई पवरपरिहिए तुम एवं वयासी 'हंभो ! कुंडकोलिया ! समणोवासया ! सुदरी णं देवाणु प्पिया ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उटाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इवा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती--अस्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा' । "तए णं तुमं तं देवं एवं क्यासी-'जइ णं देवाणुप्पिया ! सुदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती--नत्थि उदाणे इ वा -जाव-पुरिसक्कार-परकम्मे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती अस्थि उढाणे इ वाजाव-पूरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्धभावा, तुमे णं देवाणुप्पिया ! इमा एयारुवा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवज्जुई दिव्वे देवाणभावे किणा लधे ? किणा पते ? किणा अभिसमण्णागए ? किं उट्ठाणेणं-जाध-पुरिसक्कार-परक्कमेणं ? उदाहु अणुट्ठाणणं-जाव-अपुरिसक्कार-परकम्मेणं ?' "तए णं से देवे तुम एवं क्यासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमा एयारुवा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवज्जुई दिब्बे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं-जाव-अयुरिसक्कार-परक्कमेणं लधे पत्ते अभिसमण्णागए'। "तए णं तुमं तं देवं एवं वयासी 'जइ णं देवाणुप्पिया ! तुमे इमा एयाख्या दिव्या देविड्ढी दिव्या देविज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्राणेणं-जाव-अपुरिसक्कार-परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, जेसि णं जीवाणं नत्थि उट्टाणे इ वा-जाव-परक्कमे इवा, ते कि न देवा ? अह तुम्भे इमा एयारूवा दिव्या देविड्ढि दिव्या देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे उठाणणं-जाव-परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि सुदरी गं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती नत्थि उट्ठाणे इ वा-जाव-नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती अत्थि उट्ठाणे इ वा-जाव-अणियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा'। "तए णं से देवे तुमं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छासमावण्णे कलुससमावण्णे नो संचाएइ तुब्भे किंचि पमोक्खमाइक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव विसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए । से नूणं कुंडकोलिया ! अद्वै समठे ?" "हंता अत्थि" ॥ महावीरेण कुंडकोलियस्स पसंसा अज्जो ! समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेता एवं वयासी-"जइ ताव अज्जो ! गिहिणो गिहिमज्झावसंता अण्णउत्थिए अठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पट्ट-पसिणवागरणे करेंति, सक्का पुणाई अज्जो ! समहं निग्गंथेहि दुवालसंग गणिपिडगं अहिज्जमाणेहि अण्णउत्थिया भट्ठहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पटु-पसिणवागरणा करेत्तए" ।
१९९
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कुंडकोलियगाहावईकहाणयं
तए णं समणा निग्गंथा य निग्गंधीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तह' ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेति । तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठमादिवइ, अट्ठमादित्ता जामेव दिसं पाउम्भूए तामेव दिसं पडिगए ।
भगवओ जणवयविहारो २०० सामी बहिया जणक्यविहारं विहरइ ।
कुंडकोलियस्स धम्मजागरिया २०१ तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स बहूहि सोल-चय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोपवासेहि अप्पाणं भावेमाणरस चोइस
संवच्छराई बीइक्कताई । पण्णरसमस संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुखरतावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं कंपिल्लपुरे नयरे बहूणं-जावआपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सबस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी -जाव- सच्चफज्जवड्ढाधए, तं एतेणं वक्खवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए" । तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-माइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छा, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कंपल्लिपुरं नयरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ उवागिच्छत्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दत्भसंथारयं दुरूहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणि-सुवणे अवगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दम्भसंथा रोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।
कुडकोलियस्स उवासगपडिमापडिवत्ती २०२ तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जिताणं विहरइ ।
तए णं से कुंडकोलिए समगोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छट्ट, सत्तम, अट्ठम, नवम, बसम, एक्कारसम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तइ आराहेइ । तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए इमेणं एयारवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए ।
कुंडकोलियस्स अणसणं २०३ तए णं तस्स कुंडकोलियस समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुज्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झस्थिए
चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेणं एयारवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्ध किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सदा-धिइ-संवेगे, -जाव- य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महाविरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि विणयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झू सिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरह। कंडकोलियस्स समाहिमरणं देवलोगुप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमणनिरूवणं च . तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए बहूहि सील-व्यय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अताणं झूसित्ता, सर्द्वि भत्ताई अणसणाए छेदेता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरथिमेणं अरुणज्झए विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्येगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । "से णं भंते ! कुंडकोलिए ताओ देवलागाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहि ?" गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुचिचाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।
उवास गदसाओ अ०६।
परिए धमाकमे सद्धा-धि-समावण किडिकिडिया
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११. सद्दालपुत्ते-कुंभकारकहाणगं
पोलासपुरे सद्दालपुतो २०५ तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरं मामं नयरं । सहस्संबवणं उज्जाणं । जियसत्तू राया ।
तत्थ णं पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुंभकारे आजीविओवासए परिवसइ। आजीविषसमयंसि लठे गहियट्ठ पुच्छियठे विणिच्छियछे अभिगयठे अट्ठिमिजपेमाणुरागरते । “अवमाउसो ! आजीवियसमए अढे अयं परमठे सेसे अणटें" ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी निहाणपउत्ताओ एक्का हिरण्णकोडी वड्ढिपउत्ताओ, एक्का हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ताओ, एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं । तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नाम भारिया होत्था । तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पंच कुंभारावणसया होत्था । तस्स णं बहवे पुरिसा दिग्ण-भइ-भत्तवेयणा कल्लाकल्लिं बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्धघडए य कलसए य अलिजरए य जंबूलए य उट्टियाओ य करेंति । अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्ण-भइ-भत्तवेयणा कल्लाकलि तेहि बहूहि करएहि य वारएहि य पिहडएहि य घडएहि य अद्धघडएहि य कलसएहि य अलिंजरएहि य जंबूलएहि य उट्टियाहि य रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति ।
सद्दालपुत्तपुरओ देवकया महावीरपसंसा २०६ तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अण्णदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, तेणेव उवागच्छइ, उवाग
च्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपत्ति उपसंपज्जिता णं विहरइ । तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्के देवे अंतियं पाउन्भवित्था । तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी-- "एहिइ णं देवाणुप्पिया! कल्लं इहं महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सवण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूणिज्जे वंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसंपयासंपउत्ते । तं गं तुमं वंदेज्जाहि णमंसेज्जाहि सक्कारेज्जाहि सम्माणेज्जाहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतेज्जाहि" । दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए ।
सद्दालपुत्तस्स गोसालयवंदणसंकप्पो . २०७ तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तेणं .देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए
संकप्पे समुप्पण्णे--"एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते, से णं महामाहणे उप्पण्ण-णाणसणधरे तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते, से णं कल्लं इह हव्वमागच्छिस्सति । तए णं तं अहं बंदिस्सामि णमंसिस्मामि सक्कारेस्सामि सम्माणस्सामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासिस्सामि पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतिस्सामि ।"
भगवओ महावीरस्स समवसरणं सद्दालपुत्तस्स धम्मसवणं च २०८ तए णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुजद्धरागसरिसे
कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणे भगवं महावीरे-जाव-जेणेव पोलासपूरे
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सद्दालपुत्ते-कुंभकारकहाणगं
नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया । कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासइ । तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए इमोसे कहाए लट्ठ समाणे--"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुदि चरमाण गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव पोलापुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं गच्छामि गं समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामि--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे मणुस्सवग्गुरापरिगए साओ गिहाओ पडिणिक्ख मइ, पडिणिक्ख मित्ता पोलासपुरं नयरं मज्झमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमंसित्ता पच्चासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिम हे विणएणं पंजलिउडे पज्ज वासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आज विओवासगस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धरमं परिकहेइ ।
महावीरेण देवकयपसंसानिरूवणं २०९ सद्दालपुत्ता ! इ समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं क्यासी--"से नूणं सद्दालपुत्ता ! कल्लं तुम पच्चावरण्ह
कालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जिताणं० विहरसि । तए णं तुभं एगे देवे अंतियं पाउभवित्था । "तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तुम एवं क्यासी--हंभो ! सद्दालपुत्ता ! एहिइ णं देवाणुप्पिया ! कल्लं इहं महामाहणे-जाव-तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते । तं गं तुम वंदेज्जाहि णमंसेज्जाहि सक्कारे जाहि सम्माज्जाहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुधासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमतेज्जाहि' । दोच्चं पि. तच्चं पि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए । "तए णं तुभं तेणं देवेणं एवं बुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-"एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते, से णं महामाहणे-जाव-तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते, से गं कल्लं इह हव्वमागच्छिस्सति । तए णं तं अहं बंदिस्सामि णमंसिस्सामि सक्कारेस्सामि सम्माणस्सामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासिस्सामि, पाडिहारिएण पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतिस्सामि' । से नणं सद्दालपुत्ता ! अट्ठ सम??" "हंता अत्थि" । तं नो खलु सद्दालपुत्ता ! तेणं देवेणं गोसालं मंखलिपुत्तं पणिहाय एवं वुत्ते । सद्दालपुत्तस्स निवेदणं तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्तस्स समाणस्स इमायारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पणे-“एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे रेवली सव्वष्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते । तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं बंबित्ता णमंसित्ता पाडिहारिएणं पीत-फलग-सेज्जा-संथा एणं उवनिमंतेत्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता समणं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी--"एवं खलु भंते ! मम पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पंच कुंभारावणसया । तत्थ णं तुम्भे पाडिहारियं पीढ-फलग-सज्जा-संथारयं ओगिहित्ताणं विहरह" ॥
महावीरेण सद्दालपुत्त-संबोधणं २११ तए णं से समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स अजीविओवासगस्स एयम पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स
पंचसु कुंभारावणसएसु फासु-एसणिज्जं पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं ओगिण्हित्ताणं विहरइ । :
२१०
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अण्णदा कदाइ वाताहतयं कोलालभंडं अंतो सालहितो बहिया नीणेइ, नीणेत्ता आयसि दलयइ । तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं क्यासी-"सद्दालपुत्ता ! एस णं कोलालभंडो कहं कतो ?" तए णं से सद्दालपुत्त आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं क्यासी--"एस णं भंते ! पुचि मट्टिया आसी, तओ पच्छा उदएणं तिम्मिज्जइ, तिम्मिज्जित्ता छारेण य करिसेण य एगयओ मीसिज्जइ, मीसिज्जित्ता चक्के आरुभिज्जति, तओ बहवे करगा य वारणा य पिहडगा य घडगा य अद्धघडगा य कलसगा य अलिजरगा य जंबूलगा य उट्टियाओ य कज्ज्जति" । तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं क्यासी--"सद्दालपुत्ता ! एस णं कोलालभंडे कि उद्राणेणं कम्मेण बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार-परक्कमेणं कज्जंति, उदाहु अणुट्टाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपरिसक्कारपरक्कमेणं कति ?" तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासो--"भंते ! अणुटाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं । मत्यि उटाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परकम्मे इ वा, नियता सव्वभावा । तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं क्यासी--"सद्दालपुत्ता ! जइ णं तुम्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरेज्ज वा विक्खि रेज्ज वा भिदेज्ज वा अच्छिदेज्ज वा परिवेज्ज वा, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स कं दंडं वत्तेज्जासि ?" "भंते ! अहं णं तं पुरिसं आओसेज्ज वा हणेज्ज वा बंधेज्ज वा महेज्ज वा तज्जेज्ज वा तालेज्ज वा निच्छोडेज्ज वा निन्भच्छेज्ज वा, अकाले चेव जीवियाओ क्वरोवेज्जा" ॥ "सद्दालपुत्ता ! नो खलु तुन्भं के पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरइ वा विक्खिरइ वा भिदइ वा अच्छिदइ वा परिट्रवेइ वा; अग्गिमित्ताए मारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहर; नो वा तुमं तं पुरिसं आओसेसि वा हणेसि वा बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडेसि वा निब्भच्छेसि वा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेसि, जइ नथि उठाणे इ वा कम्मे इवा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, नियता सव्वभावा । अह णं तुम्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरेइ वा विक्खिरेइ वा भिदेइ वा अच्छिदेइ वा परिट्टवेइ वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरइ, तुम वा तं पुरिसं आओसेसि वा हणेसि वा बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडेसि वा निम्भच्छेसि वा, अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेसि, तो जं वदसि नथि उठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इवा पुरिसक्कार-परक्कमे इवा, नियता सय्वभावा, तं ते मिच्छा"। एस्थ णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए संबुद्धे ।
सद्दालपुत्तस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती २१२ तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासी-इच्छामि णं भंते !
तुभ अंतिए धम्म निसामेत्तए । तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्टाए, उ8 इ, उर्दुत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी--"सद्दहामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भुमि णं भंते ! निग्गंथं पाचयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए । अहं गं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुम्वइयं सत्तसिक्खावइयं-बुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि" ।
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सद्दालपुत्ते - कुंभकारकहाणगं
"अहामुहं देवापिया मा पडियंध करेहि" ।
तए गं से सद्दालले समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचागुब्वइयं सत्तसियावालसविहं सावगधम्मं परिवज्ज पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमित्ता भारिया, तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी -- "एवं खलु देवाणुपिए ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धन से धमे मे इच्छिए पडिन्छिए अभिरुइए। तं गच्छाहिणं तुमं समयं भगवं महावीरं वंदाहि साहि सकारेहि सम्माहि कल्ताणं मंगलं देवयं चेयं पचासाहि समणस्स भगाओ महावीररस अंतिए पंचाग सलमा ati - दुवालसहिं गिहिधम्मं परिवज्जाहि ।
1
तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवा सगस्त 'तह' त्ति एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेइ ।
अग्गिमिलाए महावीरवंदणट्टा गमणं धम्मसवणं च
२१३ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोड बियपुरिसे सद्दावेद, सद्दावेत्ता एवं क्यासी- “खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त-जोइयं सम वालिहाण - समलिहि संगएहिं जंबूणया मयकलाव जुत्त-पइविसिट्टएहि रययामयघंट- सुत्तरज्जुग वरकं चणख चिय-नत्थदग्गहोग्गाहियएहि नीलुष्पलकथा मेलहि परगणनुवाणएहि नाणामणिरुण- घंटियाजालपरियं जायत उगाच विर जुत्तामेव धम्मियं जाणवरं उदुवेह उबवेत्ता मम एयमानतियं पचविह" ।
परखो
तएषं ते कोपुरिसा सहालपुरोगं समणोवासएवं एवं बुला समाणा हट्टतुगु-चित्तमाणंदिया पीहमणा परमसोमण किया हरिसयत विसप्पमा महिया करपरिहि सिरसावतं मत्थए अंजलि कट एवं सामिति आणाए बिग पत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त- जोइयं जाव- धम्मियं नागप्पवरं उबटूवेत्ता तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति ।
बणं परिसुति
३३५
तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया व्हाया कयबलिकम्मा कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिया अप्पमहग्घा भरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं सुबहइ, दुरुहिता पोलासपुरं नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता वेडियाचकालपरिशिषणा जेणेव समभवं माहावीरे, तेगेव उपागच्छड, उबागपिछला तिक्युतो याहिणारे करेला बणमंस, वंदिता सिता पण्यासणे णाहतूरे सुस्सुसमाणा णमंसमाणा अभिमु विगएवं पंजलियाडा ठिया देव पज्जवासइ ।
तणं समणे भगवं महावीरे अग्निमित्ताए तीसे य महइमहालियाए परिसाए- जाव धम्मं परिकहेइ ॥
अग्निमित्ताए महिधम्म- पडिवत्ती
२१४ तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाणहियया उट्ठाए उट्ठइ, उट्ठेता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता बंद मंग्रह, बंदिता नसता एवं क्यासी" सहामि भंते नववाहे तुम्मे वदह जहा पं देवापियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई अण्णे य बहवे राईसरतलवर-माइंबिय - कोडुंबिय इन्भ सेट्टि सेणावइ- सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगरियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचारमि देवाप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अगगारियं पव्वइत्तए । अहं गं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयंबालहिं गिम्मिं परिवज्जामि" ।
"अहासू देवापिया मा पडियंधं करेहि" ।
तए गं सा अग्निमित्ता भारिया समणरस भगवजो महावीरस्स अंतिए पंचाध्वइयं सत्तसिखावइयं विधिमं परिवज्जइ, पडिवज्जिता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहद्द, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया, तामेव दिसं पडिगया ।
भगवओ जणवयविहारो
२१५ तणं समणे भगवं महावीरे अध्यक्षा रुदाइ पोलासपुराओ नगराओ सहस्ववगाओ उज्जाणाओ पडिणियम परिणिता बहिया विहारं विहर।
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धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
सद्दालपुत्तरस समणोवासग चरिया । २१६ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सज्जा-संथारएणं परिलाभेमाणे विहरइ ।
अग्गिमित्ताए समणोवासिय-चरिया २१७ तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समोवासिया जाया--अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम
साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ ।
गोसालस्स आगमणं २१८ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-“एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं
दिट्टि पवण्णे, तं गच्छामि णं सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं निग्गंथाणं दिट्टि वामेता पुणरवि आजीवियदिट्टि गेण्हावित्तए" ति कटु--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आजीवियसंघ-परिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव आजीवियसभा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता कतिवहि आजीविएहि सद्धि जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ । तए णं से सद्दालयुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाति नो परिजाणति, अणाढामाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ । गोसालेण महावीरस्स गुणकित्तणं तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तणं समणोवासएणं अणाढिज्जमाणे अपरिजाणिज्जमाणे पीढ-फलग-सेज्जा-संथारट्टयाए समणस्स भगवओ महावीरस्स गुणकित्तणं करेइ--"आगएणं देवाणुप्पिया ! इहं महामाहणे ?" तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं क्यासी-“के देवाणु प्पिया ! महामाहणे ?" तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं क्यासी--"समणे भगवं महावीरे महामाहणे ।” “से केणटुणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महामाहणणे ?" एवं खलु सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्क-चहिय-महिय-पूइए सदेवमणयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसंषया-संपउत्ते । से तेण?णं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ--समणे भगवं महावीरे महामाहणे" । "आगए णं देवाणु प्पिया ! इहं महागोवे ?" “के गं देवाणुप्पिया ! महागोवे ?" "समणे भगवं महावीरे महागोवे" । से वेण?णं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महागोवे ? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे धम्ममएणं दंडेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे निव्वाणमहावाडं साहत्थि संपावेइ । से तेण?णं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ--समणे भगवं महावीरे महागोवे" । "आगए णं देवाणु प्पिया ! इहं महासत्थवाहे ?" "के गं देवाणु प्पिया ! महासत्थवाहे ?" "सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे" । से फेण?णं देवाणु प्पिया ! एवं दुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिधण्णे धम्ममएणं पंथेणं सारक्खमाणे निवाणमहापट्टणे साहत्थि संपावेइ । से तेण?णं सद्दालपुत्ता ! एवं बुच्चइ--समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे"। "आगए णं देवाणुप्पिया ! इहं महाधम्मकही ?" "के गं देवाणु प्पिया ! महाधम्मकही ?"
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सद्दालपुले - कुंभकारकहाणगं
"समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ।"
"से केणटुणं देवाणुप्पिया ! एवं वच्चइ- समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ?"
" एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे सप्पहविप्पणट्ठे मिच्छत्तबलाभिभूए अट्टविहकम्म-तमपडल-पडोच्छण्णे बहूहि अहि य ऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पटु-पसिणवागरणेहि य चाउरंताओ संसारकंताराओ साहत्थि नित्यारे । से तेण णं देवाणु पिया ! एवं बुच्चइ- समणे भगवं महावीरे महाधम्मकहीं" ।
"आगए णं देवाप्पिया ! इहं महानिज्जामए ?"
"के णं देवाणुप्पिया ! महानिज्जामए ?"
" समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए " ।
"से केणट्ठेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ- समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए ?”
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" एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे बुहुमाणे निबुडुमाणे उप्पियमाणे धम्ममईए नावाए निव्वाणतीराभिमुहे साहित्थि संपावेइ । से तेण ेण देवाणुपिया ! एवं बुच्चइ -- समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए” ।
महावीरेण सह विवादकरणे गोसालस्स असामत्थं पडिगमणं च
- २२० तए गं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी — "तुन्भे णं देवाणुप्पिया ! इयच्छ्या इयदच्छा इयपट्टा इयनिउणा इयनयवादी इयउवएसलद्धा इयविण्णाणपत्ता । पभू णं तुम्मे मम धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए ?"
"नो इट्ठे समट्टे" ।
"से केणट्टणं देवाप्पिया ! एवं बुच्चइ - "नो खलु पभू तुम्मे मम धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए ? "
"सद्दालपुत्ता ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जुगवं बलवं अध्यायंके थिरग्गहत्थे पडिपुण्णपाणि पाए पिट्ठत रोरुसंघाय परिणए घणनिचियवट्टवलियखंधे लंघण वग्गण-जयण-वायाम-समत्थे चम्मेदृ-दुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सबलसमन्नागए तालजमलजुयलबाहू छेए दक्खे पत्तट्ठे निउणसिप्पोवगए एगं महं अयं वा एलयं वा सूयरं वा कुक्कुडं वा तित्तरं था वट्टयं वा लावयं वा कोयं वा कविजलं वा वायसं वा सेणयं वा, हत्यंसि वा पायंसि वा खुरंसि वा पुच्छंसि वा पिच्छंसि वा सिंगंसि वा विसाणंसि वा रोमंसि वा जहि-जह गिरह, तह-तह निञ्चलं निष्कंद करेइ, एवामेव समणे भगवं महावीरे ममं बहूहि अट्ठेहि य हेकहि य परिहि य कारणेहि य वागरणेहि य जहि जहि गिण्हs, ताह-ताह निप्पटू-पसिणवागरणं करेइ । से तेणटुणं सद्दालपुत्ता ! एवं बुच्चइनो खलु पभू अहं तव धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणे णं भगवया महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए " ।
तए णं से सद्दालपुत्ते ! समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी -- "जम्हा णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे मम धम्मायरिस्स धम्मो - वएसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स संतेहि तच्चेहि तहिएहि सन्मएहि भावेहि गुणकित्तणं करेह, तम्हा णं अहं तुम्मे पाडिहारिएणं पीढ-फलग - सेज्जा- संथारएणं उवनिमंतेमि, नो चेव णं 'धम्मो ति वा तवो त्ति वा । तं गच्छह णं तुब्भे मम कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ-फलग सेज्जा- संथारयं ओगिव्हित्ता णं विहरह" ।
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कुंभारावणेसु पाडिहारियं पोढ-फलगसेज्जा - संथारयं ओगिण्हित्ताणं विहरद्द ।
तए णं से गोसाले मंखलिपुते सद्दालपुत्तं समणोवासयं जाहे नो संचाएइ बहूहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विवाह य निथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेतए वा, ताहे संते तंते परितंते पोलासपुराओ नयराओ पडिणिक्खम, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।
० क० ४३
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३३८
धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
२२१
सद्दालपुत्तस्स धम्मजागरिया तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहहिं सौलव्यय-गुण-वैरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्य चोइस संवच्छरा वीइक्कता । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्यरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अमथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य गं कुटुंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणसस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उक्संपज्जिता गं विहरित्तए"। तए णं से सद्दालपुत्ते समणोधासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता पोलासपुरं नयरं मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता, दम्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दन्भसंथारयं दुरहइ, दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमाला-वण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दम्भसंथारोक्गए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
सहालपुत्तस्स वेवरूवकयनियजेट्टपत्तमारणोवसग्गस्स सम्म अहियासणं २२२ तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउभवित्था ।
तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पागासं खुरधारं असि गहाय सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी"हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिपरिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालितए वा खोमित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुम अज्ज सीलाई-जाव-पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नीर्णमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि"। तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्माणोवगए विहरह। तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मझाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-"हंभो! सद्दालपुत्ता! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई-जाव-पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि-जाव-चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ । तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स जेट्टपुत्तं गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडायंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समणीवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।
सद्दालपुत्तस्स देवकयनियमज्झिमपुत्तमारणरूवउवसग्गस्स सम्म अहियासणं २२३ तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं क्यासी--"हंभो ! सद्दालपुत्ता!
समणोवासया !-जाव-जइ णं तुम अज्ज सीलाई-जाव-न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि-जाव-जीवियाओ ववरोविज्जसि" । तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं बुत्तं समाणे अभीए-जाव-विहरइ ।
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सद्दालपुत्ते - कुंभकारकहाणगं
लए णं से देवे सहालपुत्तं समगोवासयं अभीयं जाव-यासह पासिता होवं पि तवं वि सहालपुतं समणोवासवं एवं क्यासी-"हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! - जाब-जइ णं तुमं अज्ज सीलाई-जाव-न छड्डेसि न भजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुतं साओ मिहाओ नीम, नीता तब अगली पाएमि-जाय जीविधाओ बहरोविज्जसि" ।
तणं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव विहरइ ।
तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समोवालयं अमीयं- जावयासह पासिता हारते रुटु कुविए चंडिस्किए मिसिमिसीयमाणे सद्दालपुत्तरस समणोवासयस्स मज्झिमं पुत्तं गिहाओ नीणेइ, नोणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि शिअद अहेता सहालपुत्तस्स समोवारायस्त गायं मंसेण व सोपिएन प आईच ।
तए से सहालले समगोवास से उज्ज-जाव-वेद सम्म सह खमइ तितिक्खद अहियासे
३३९
सद्दालपुत्तस्स देवकयनियकणीसपुत्तमारणरूवउवसमास्स सम्मं अहियासणं
२२४ तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं- जाव- पासइ, पासिसा सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी--"हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! - जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाई-जाव-न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, नोसा तव अगओ पाएमिजाजीविया पयरोवियसि ।
तए णं से साल मोवा ते देवेनं एवं खुले समाने अभीए-जाय-बिहरह
तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं- जाब-पासइ, पासिताः दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी— “भो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! - जाव-जद ण तुमं अज्ज सीलाई-जाव-न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुतं साओ गिहाओ नोणेमि, नोणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, -जाव-जीवियाओ ववरोविज्जसि" ।
तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चपि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरइ ।
तए णं से देवे सहाल मोवास अभीयं- जावयासह पासिता आतुरते व कुलिए पंडिविक मिलीमिलीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासवस्त कणीयसं पुतं गिहाओ नी नीता जगलो पाए पाएता नव मंससोल्ले करे, करेता आदाणभरियंसि
seife अes, अत्ता सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स गोयं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ ।
तएषं से सद्दातपुते समणोवासए तं उज्जलं जाव-वेपणं सम्म सहह खमह तितिक्य अहियासे ।
सद्दालपुत्तस्स देवकयिनियभज्जामारणरूवउवसग्गस्स असणे कोलाहल करणं, मायाविकुब्बियवेवरस य आगासे उप्पयणं
२२५ तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं- जाव- पासइ, पासित्ता चउत्थं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी - "हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! -जाव-जइ णं तुमं अज्ज सीलाई-जावन छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा अग्गिमित्ता मारिया धम्मसहाइया धम्मविदज्जिया धम्मापुरावरता सममुहदुक्खसाइया तं सानो गिहामी नीमि नीषेत्ता तव अग्गओ धामि जाव - जीवियाओ ववरोविज्जसि ।
तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए- जाव-विहरइ ।
लए से देवे सहालपुतं समणोवासवं अमीपं जाव-यासह पातिता बोचं पि तच्वं पि सहालपुतं समणोवासवं एवं बवासी "हंगो ! सहालपुला ! समणोवासपा जायज गं तुमं जसोलाई जान्न छसि न भजेसि, तो ते अहं अन्न जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरता समसुहदुक्खसहाइया, तं साओ गिहाओ, नीर्णेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि- जाव-जीवियाओ धवरोविज्जसि ।
तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं वोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्तस्स समाणस्स अयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मगोगए संकष्ये समुप्यज्जित्था - "अहो णं इमे पुरिसे मारिए गारिपबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जेणं ममं जे पुणं ममं मम पुत्तं, जे ममं कणीयसं पुतं साओ गिहाओ मीणेद, नीता मम अमानो धाएर पाएसा न सोल्ले करे, करेता आदाणरिति कडा हे अता ममं गायं मंसेन व सोणिएग व आई, जाविध ममं इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मबिइज्जिया धम्माणुरागरता समसुहदुक्खसहाइया, तं पि य इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता ममं अग्गओ घाएत्तए । तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिव्हित्तए" ति कट्टु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, साइए, महया मया सह कोलाहले कए।
ते
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३४०
धम्मकहाणुओगे चउत्यो बंधी
अग्गिमित्ताए पसिणो २२६ तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया तं कोलाहलसदं सोच्चा निसम्म जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी--"किण्णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे गं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ?"
सद्दालपुत्तस्स उत्तरं २२७ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अग्गिमितं भारियं एवं क्यासी-"एवं खलु देवाणुप्पिए ! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते
रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगास खुरधारं असि गहाय ममं एवं वयासीहंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सोलाइं-जाव-न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नोमि नोणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि करेता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-सट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । सए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं क्यासी-"हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सीलाई-जाव-न छड्डेसि न भंजसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नोमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-पासइ, पासित्ता आसुरत्ते ? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्टपुत्तं गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता नब मंससोल्ले करेड, करेसा आदाणभारियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए णं अहं तं उज्जलं-जाव-वेपणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं मज्झिमं पुत्तं-जाव-वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयसं पुत्तं-जाव-वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए णं से पुरिसे मसं अभीयं-जाव-प्रासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं क्यासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता! समणोवासया !-जाव-जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं-जाव-न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मबिइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया तं साओ गिहाओ नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा गं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए-जाव-विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं-जाव-दोच्चं पि तच्चं पि ममं क्यासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता! समणोवासया!-जाव-जइणं तुम अज्ज सीलाइं-जाव-न छड्डेसि न भंजेसि, तो-जाव-तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।। तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्च पि मम एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो गं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माइं समाचरति, जे णं ममं जेट्टपुत्तं, जे गं मम मज्झिमयं पुत्तं जे णं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ मीणइ नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अइहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, तुमं पि य णं इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गओ धाएत्तए, तं सेयं खल ममं एवं पुरिसं गिण्हित्तए ति कट्ट उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ।
सद्दालपुत्तकयपायच्छित्तं २२८ तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालतं समणोवासयं एवं पयासी-"नो खल केइ पुरिसे तव जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ, नीणेइ,
नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मजिामयं पुतं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तव अम्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तब अग्गओ घाएइ, एस गं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस गं तुमं विदरिसणे दि? । तं गं तुम इयाणि भगवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं गं तुम पिया ! एयरस ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अन्भुटाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि" ।
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सद्दालपुत्ते-कुंभकारकहाणगं
तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अग्गिमित्ताए भारियाए 'तह' ति एयम? विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अभट्ठई अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ ।
सद्दालपुत्तस्स उवासगपडिमापडिवत्ती २२९ तए णं से सद्दालपुते समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरह।
तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए पढम उवासगपडिम अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेह सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्टम, नवम, वसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ अराहेइ । तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्टिचम्मावणवे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए।
सद्दालपुत्तस्स अणसणं २३० तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स अण्णदा कदाइ, पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अजमथिए
चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहर इ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-मूसियस्स भत्तपाणपडियाइविखयस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए"। एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि विणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरई ।
सहालपुत्तस्स समाहिमरणं देवलोगप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमणनिरूवणं च २३१ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए बहूहि सील-व्यय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता-वीसं वासाई-समणोवासग
परियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, टैि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणच्चए विमाणे देवत्ताए उबवण्णे । चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । महाविवेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ सव्यदुक्खाणमंतं काहिद ।
उवासगदसाओ अ०७।
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१२. महासतयगाहावइकहाणगं
रायगिहे महासतए गाहावई २३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया ।
तत्थ णं रायगिहे नयरे महासतए नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभए । तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडोओ सकंसाओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ बढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ क्या दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । से णं महासतए गाहावई बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स रेवतीपामोक्खाओ तेरस भारियाओ होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीराओ-जाव-माणुस्सए काममोए पच्चणुभक्माणीओ विहरंति । तस्स णं महासतयस्स रेवतीए भारियाए कोलहरियाओ अट्ट हिरण्णकोडीओ, अट्ठ क्या दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्या । अवसेसाणं दुवालसण्हं भारियाणं कोलहरिया एगमेगा हिरण्णकोडी, एगमेगे य वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।
भगवओ महावीरस्स समवसरणं २३३ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ।
परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा सेणिओ निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासइ ।
२३४
महासतयस्स समवसरणे गमणं धम्मसवणं च तए णं से महासतए गाहावई इमोसे कहाए ल समाण-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुष्वाणुपुन्धि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव रायगिहस्य नयरस्स बहिया गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" "तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदण-णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि गं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि"-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्या भरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवगुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं रायगिह नयरं मझमज्झेणं निग्गच्छा, निग्गच्छित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर, तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ गमंसइ, वंदित्ता मंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जवासइ । तए गं समणे भगवं महावीरे महासतयस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ । परिसा पडिगया, राया य गए।
महासतयस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती २३५ तए णं महासतए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटतुट्ठ-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए
हरिसवस-विसप्पमाण-हियए उट्ठाए उर्दुइ, उट्ठत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसद,
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महासहायहकामगं
३४३
वंदिता गमसिला एवं वासी "सहामि गं भंते ! निगांवं पावयणं पत्तियामि भं भं । निग्यंयं पाववणं, रोएम पं भंते! नि पावयमिमं निदान एवमेयं भंते । सहमेयं भंते । अवितहमे संविद्धमेयं भंते! इयमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इय-पडियमेयं भंते! से जहेयं तुग्ने वदह । जहा णं देवागुप्पिया अंतिए बहवे राईसर-तलव र मावि कोबियम-मेट्रिसेणाय सत्यवाप्यभिइया मुंडा भविता अवाराओ अणवारिय पव्बइया, मोख अहं हा संचाएमि मुंडे भविता अंगाराम अनगारियं पचहत्तर देविया अंतिए पंचाव्ययं सत्तविया asi -- दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि" ।
"हादेवापिया ! मा पहिमं करेहि" ।
हिरण्यकोडीओ सकंसाओ।
तएप से महासतए माहा समणस्स भगव महावीरस्स अंतिए सादयधम्मं परिवज्जा, नवरं अट्ठ वया । रेवतीपामोक्खाहि तेरसह भारियाहि अक्सेसं मेहणविहिं पञ्चकखाइ । इमं च णं एयारूवं अभिग्गहं अभिहतिकल्ला कल्लि चणं कप्पड़ मे बेदोणियाए कंसपाईए हिरण्णमरियाए संववहतिए ।
महासतयस्स समणोवासग चरिया
२३६ त महासतए समगोवासए जाए अभिगयजीवाजीव जाय-समने निगांचे फासू-एसपिज्जेणं असण-पान-मसाहमेणं सत्यपहिला ओसहमे सज्जे पारिहारिएण य पोड-फल-सेवा-संभारएवं परिलाभंगा बिह
भोगाभिलासिणीए रेवतीए चिंता
२३७ रेवतीए माहाबदणीए अग्गदा कदाइ पुण्यरत्तावरतकालसमसि कुनादरिवं जावरमाणीए इमेपास्ये अथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- "एवं खलु अहं इमासि दुवालसहं सपत्तीणं विघातेणं नो संचाएमि महासतएणं समणोवासएवं सद्धि ओयलाई माणुसवाई भोगमोनाई भुंजमाणी विहरिलए तं सेयं खलु ममं एयाओ कलस वि सबसीओ अग्गियोगेण वा सत्यययोगेण वा विसप्पओगेण वा जीवियाओ ववशेवित्ता एतासि एगमेगं हिमकोटि एगमेगं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ताणं महासतएणं समणोवासएणं सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणीए विहरित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेता तासि वालसहं सवत्तीणं अंतराणि ये छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ ।
२३८
भगवओ जणवयविहारो
तर णं समणे भगवं महावीरे बहिया जणवयविहारं विहरइ ।
२४०
रेवतीए सवत्ती उद्दवणं
तए णं सा रेवती गाहावइणी अण्णवा कदाइ तासि दुवालसण्हं सवत्तीणं अंतरं जाणित्ता छ सवत्तीओ सत्यप्पओगेणं उद्दवेध, छ ससीओ विसप्पओयेणं उदवेद्द उबेला तासि बालसन्हं सक्षसीणं कोलधरियं एगमेगं हिरण्यकोडि, एगमेगं वयं सयमेव परिवज्जिता महासतएवं समणोबास सद्धि ओरालाई माणुस्तवाई भोग भोगाई मुंजमाणी विहरद्र ।
रेवतीए मंस-मज्जाऽऽसेवणं
२३९ एसा रेवती गाहाबी लोया मंसमुच्छिया सगडिया मंसगिद्धा मंसअशोचवण्णा बहुविहितेहि सोहि हि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च मज्जं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरद
अमाघायघोसणाए वि रेवतीए मंस-मज्जाऽऽसेवणं
तए णं रायगिहे नयरे अण्णदा कबाइ अमाघाए घुट्ठ यावि होत्या ।
तए णं सा रेवती गाहावइणी मंसलोलुया मंसमुच्छिया मंसगढिया मंसगिद्धा मंसअज्झोववण्णा कोलघरिए पुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं वयासी -- "तुभे देवाणुपिया ! ममं कोलहरिएहितो वएहितो कल्ला कल्लि दुवे-हुवे गोणपोयए, उद्दवेह. उद्दवेत्ता ममं उषणेह" । तएषं ते कोपरिया पुरिसा रेवतीए वाहावइणीए 'तह' लि एवम विगएणं परिणति, परिमुनिला रेवतीए गाहाबहणीए कोलहरिएहितो वहितो कल्ला कल्लि दुवे-दुबे गोणपोयए बर्हेति, वहेत्ता रेवतीए गाहाबइणीए उवर्णेति ।
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३४४
धम्मकहाणुओगे चउत्थो बंधो
तए णं सा रेवती गाहावइणी तेहि गोणमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य मज्जिएहि सुरं च महुं च मेरगं च मज्जं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिमंजेमाणी विहरइ ।
महासतगस्स धम्मजागरिया तए गं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स बहूहि सोल-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था--"एवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुड़बस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए"। तए णं से महासतए समणोवासए जेटुपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खिमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मसंमज्मणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दत्मसंथारयं संथरेइ, संपरेता दन्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहिता, पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणि-सुक्ण्णे क्वगयमाला-वण्णग-विलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उपसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
महासतगस्स अणुकलो रेवतीकओ उवसग्गो २४२ तर णं सा रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकटमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला जणव महासतए
समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्मायजणणाई सिंगारिणई इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं क्यासी-"हंभो ! महासतया ! समणोवासया ! धम्मकामया ! पुष्णकामया ! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! कि णं तुम्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णण वा सग्गेण वा मोक्खण वा, जं णं तुम मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाइं भुजमाणे नो विहरसि ?" तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमटुं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियामाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ । तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-"हंभो ! महासतया ! समणोवासया ! कि णं तुम्भं देवाणु प्पिया ! धम्मेण वा पुण्णण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धि ओगलाई माणुस्सयाई भोगभोगाइं भुजमाणे नो विहरसि ?" तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए वोच्चं पि तच्चं पि एवं बुत्ते समाणे एयमट्ठनो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे विहरइ । तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतएणं समणोवासएणं अणाढाइज्जमाणी अपरियाणिज्जमाणी जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव विसं पडिगया।
महासतगस्स उवासगपडिमा-पडिवत्ती २४३ तए णं से महासतए समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
तए णं से महासतए समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाफप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से महासतए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्ठमं, नवम, वसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । तए णं से महासतए समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयतणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावण किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए।
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महासतयमाहावइकहाणगं
महासतगस्स अणसणं २४४ तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासयगस्स अण्णदा कदाइ पुव्यरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पथिए
मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अस्थि ता मे उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परकम्मे सद्धाधिइ-संवेगे, तं जावता में अस्थि उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे,-जाव-य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणालसणा-मुसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि विणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झसणामूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरह।
महासतगस्स ओहिनाणुप्पत्ती २४५ तए गं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स सुभेणं अजमवसाणणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहि, तदावरणिज्जाणं कम्माणं
खोपसमेणं ओहिणाणे समुप्पण्णे पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणइ पासइ, दक्खिणणं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेतं जाणइ पासइ, पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणइ पासइ उत्तरेणं-जाव-चुल्लहिमवंतं वासहरपव्वयं पव्वयं जाणइ, पासइ [उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ ?] अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सद्विइयं जाणइपास।
महासतगस्स पुणरवि रेवतीकओ अणुकूलो उवसग्गो २४६ तए णं सा रेवती गाहावाणी अण्णदा कदाइ मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला,
जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासतयं समणोवासयं एवं बयासी--"हंभो ! महासतया ! समणोवासया ! किं गं तुम्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भंजमाणे नो विहरसि ?" तए णं सेमहासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयम8 नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्माणोवगए विहरइ । तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं बोच्चं पि तच्चं पि एवं क्यासी-"हमो ! महासतया ! समणोवासया"! किंजं तुब्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुग्मेण या सग्गेण वा मोक्खण था, जं गं तुम मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगमोमाई भुजमाणे नो विहरसि ?" ।
महासतगस्स विक्खेवो तेण य रेवतीए मरणाणंतरं नरयगमण कहणं २४७ तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए
मिसिमिसीयमाणे ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ओहिणा आमोएइ, आभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी-"हंभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! तुरंत-पंत-लक्खणे ! होणपुग्णचाउद्दतिए ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए ! एवं खलु तुम अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-चसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु नेरइएसु नेर इयत्ताए उववज्जिहिसि"। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतएणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणी-"रु? णं ममं महासतए समणोवासए ! होणे गं मम महासतए समणोवासए ! अवझाया गं अहं महासतएणं समयोवासएणं, न नज्जइ णं अहं केणावि कु-मारेणं मारिज्जिस्सामि"-त्ति कटु भीया तत्था तसिया उचिग्गा संजायभया सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरसंपविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठिया झियाइ । तए णं सा रेवती गाहावइणी अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलु यच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सदिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा ।
पक०४
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३४६
धम्मकहाणुओगे चउत्यो बंधो
भगवओ महावीरस्स समवसरणं २४८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए ।
परिसा पडिगया ।
२४९
महासतगस्स अंतिए गोतम-पेसणं गोयमा ! इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं क्यासी--"एवं खलु गोयमा ! इहेष रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासतए नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसलेहणाए झूसियसरीरे भत्तपाण-पडियाइक्खिए, कालं अणवकखमाणे विहरइ। तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहम्मायजणणाई सिंगारियाई इत्थिभावाई उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! महासतया ! समणोवासया ! कि णं तुभं देवाणुप्पिया । धम्मेण वा पुण्णण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं गं तुम मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि ? तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमटुंनो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्माणोवगए विहरइ ।। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं क्यासी० ।। तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणोए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी--हंभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! पुरंत-पंत-लक्खणे ! हीणपुण्णचाउद्दसिए ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए ! एवं खलु तुमं अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि । नो खलु कप्पद गोयमा ! समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसलेहणा-सूसणा-सूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहि तहिएहि सन्भूएहि अणि?हिं अकंतेहि अप्पिएहि अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहि वागरित्तए । तं गच्छ णं देवाणु प्पिया ! तुम महासतयं समणोवासयं एवं वयाहि-नो खलु देवाणुप्पिया ! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम मारणंतिय-संलेहणा-सूसणा-मुसियस्स मत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं तच्चेहि तहिरहिं सम्भूएहि अणि? हिं अकंतेहि अप्पिएहि अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहि वागरित्तए तुमे य णं देवाणुप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहि तहिएहि सम्भएहि अणि?हि अकतेहिं अप्पिएहिं अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहि वागरिया । तं गं तुम एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अन्भट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ।"
गोतमस्स महासतयपुरओ आगमणं २५० तए णं से भगवं गोयमे समगस्स भगवओ महावीरस्स 'तह ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तओ पडिणिक्खमइ,
पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छद ।
महासतयकयं गोयमवंदणं २५१ तए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हटू-तुद्र-चित्तमाणदिए पीहमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस
विसप्पमाण-हियए भगवं गोयमं वंदह नमसइ ।
महासतयपुरओ गोयमस्स पायच्छित्तकरणरूवं भगवंतकहणनिरूवणं २५२ तए णं से भगवं गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं क्यासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खाइ
भासइ पण्णवेइ परूवेइ--नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणोवासगस्स अपच्छिममारणंतियसलेहणा-यूसणा-मूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स परो संतेहि तच्चेहि तहिएहि सम्भूएहि, अणिहि अकंतेहिं अप्पिएहि अमणुणेहि अमणामेहि वागरणेहं वागरि
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महासतयगाहावइकहाणगं
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तए । तुमे गं देवाणुप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहि तहिएहि सन्भूएहिं अणिहिं अकतेहि अप्पिएहि अमणुोह अमणामेहिं वागरणेहि वागरिया। तं गं तुम देवाणुप्पिया। एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अन्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि" ॥
महासतगस्स पायच्छित्तकरणं २५३ तए णं से महासतए समणोवासए भगवओ गोयमस्स 'तह' त्ति एयमढें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ
पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुट्टेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ।
गोयमस्स पडिणिक्खमणं २५४ तए णं से भगवं गोयमे महासतगस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझमज्झेणं
निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
भगवओ जणवयविहारो २५५ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।
महासतगस्स देवलोगप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमणनिरूवणं च २५६ तए णं से महासतए समणोवासए बहूहि सील-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोयवासेहि अप्पाणं भावेत्ता बोसं वासाई समणो
वासगपरियायं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणव.सए विमाणे देवत्ताए उववण्णे । चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
उवासगदसाओ अ०८.
१३. नंदिणीपियागाहावइकहाणगं
सावत्थीए नन्दिणीपिया गाहावई २५७ तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया।
तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नाम गाहापाई परिक्सइ--अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए । तस्स णं नंदिणीपियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वढिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं नंदिणीपिया गाहावई बहूणं-जाव-आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। तस्स गं नंदिणीपियस्स गाहावइस्स अस्सिणी नामं भारिया होत्था-अहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा-जाव-माणुस्सए कामभोए पच्चगुभवमाणी विहरइ।
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धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
महावीर तिक्ख तो आप्पाजलउड पज्जवासइ । परिकहेड।
भगवओ महावीरस्स समवसरणं २५८ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे।
परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ-जाव-पज्जुवासइ।
मंदिणीपियस्स समवसरणे गमणं धम्मसवणं च २५९ तए णं से नंदिणीपिया गाहावई इमीसे कहाए लद्धठे समाणे--"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुयि चरमाणे गामाणुगामं
दुइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदणणमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुक्यणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि गं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेता व्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंट-मल्लदामेणं छत्तणं धरिज्जमाणणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं सात्थि नरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पच्चासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे नंदिणीपियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए-जाव-धम्म परिकहेइ। परिसा पडिगया, राया य गए।
मंदिणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ती २६० तए णं से नंदिणीपिया गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पोइमणे परम
सोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उढाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासी-“सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते। इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि"। "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि"। तए णं से नंदिणीपिया गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्म पडिवज्जह ।
भगवओ जणवयविहारो २६१ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थीए नयरोए कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जण
वयविहारं विहरइ ।
मंदिणोपियस्स समणोवासगचरिया २६२ तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं
वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरई ।
अस्सिणीए समणोवासियाचरिया २६३ तए णं सा अस्सिणी भारिया समणोवासिया जाया--अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम
साइमेणं वत्य-पडिग्गह-कंबल-पायपुछणेणं ओसह-मेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीट-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरह ।
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नंदिणीपियगाहावइकहाणगं
३४९
नंदिणीपियस्स धम्मजागरिया २६४ तए णं तस्स नंदिणीपियस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस
संवच्छराई वोइक्कंताई, पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए बहूणं-जावआपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेण वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि
समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। २६५ तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ
पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सात्थि नरि मज्झमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दन्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उपसंपज्जित्ता गं विहरड़ ।
२६६
मंदिणीपियस्स उवासगपडिमापडिवत्ती तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए पढम उवासगपडिम अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटु, सत्तम, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणदे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए ।
नंदणोपियस्स अणसणं २६७ तए णं तस्स नंदिणीपियस्स समणोबासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणसस्स अयं अज्झत्यिए
चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुष्पज्जित्था-"एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे,-जाव-य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-असणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।
२६८
मंदणीपियस्स समाहिमरणं देवलोगुप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमणनिरूवणं च तए णं नंदिणीपिया समणोवासए बहुहिं सील-व्यय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियायं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म कारण फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणगवे विमाणे देवताए उववणे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता । नंदिणीपियस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । "से णं भंते ! नंदिणीपिया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ?" "गोयमा ! महाविदेहे दासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।
उवासगदसाओ अ०९।
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१४. गाणगं
सावत्थीए लेतियापिया गाहावई
२६९ काले लेणं समएवं सात्वी नवरी कोए वेदए । निवसतू राया।
तत्य णं सात्वी नवरीए लेतियापिता नाम माहाव परिवराह अड्ढे नाव बहुजणस्स अपरिए ।
तस्स
वापिस पाहावइस्स चत्तारि हिरण्यकोडीओ निहाणपत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडोओ बताओ, पत्ता, हिरण्नकोडीओ पथिरपडत्ताओ, चत्तारि क्या दसमोसाहस्सिए वर्ण होत्या ।
से णं लेइयापिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्भ पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्या ।
तस्स णं लेतियापियस्स गाहावइस्स फग्गुणी नामं भारिया होत्या -- अहीण- पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा - जाव - माणुस्सए कामभोए पञ्चणुभवमाणी विहरs |
भगवओ महावीरस्स समवसरणं
२७० तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ।
परिसा निग्गया ।
कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ - जाव- पज्जुवासइ ।
सेतियापियस्स समवसरणे गमणं धम्मसवर्ण च
२७१ लए से लेतिवापिता वाहावई इमीसे कहाए लढ समाने एवं खलु समने भगवं महावीर पुण्याचि चरमाणे गामाणुमा इजमाणे मागए इह संपले इह समोसढे हेच सावत्बीए नयरीए बहिया कोटुए चेहए अहापडियं ओग्यहं ओमिहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।"
तं महाफलं तु भो देवाप्पिया ! लहाख्यानं अरहंताणं भगवंतानं नामगोपस्स वि सणयाए, किमंग गुण अभिगमन-वंदणनमंत्रण-पण-पज्जुबाणपाए ? एगल्स वि आरिया पम्मियस्स सुबयणास रावणपाए, किमंग पुण विउलस्स अस्त ग्रहणयाए ? तं गच्छामि गं देवापिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामि णमसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगल देव चेहर पज्जवासामि -- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय- कोउय-मंगल- पायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहन्याभरणानंकियसरीरे सवाल गिहाओ पनि पडिणिक्यमिता सफोरेंट मल्लदा मेगं गं परिज्जमानं मणुस्स म्युरापरिचित्ते पादविहारचारेण सावत्थि नयर मन्मयोगं निग्नन्छ, निग्मन्छिता जेणामेव कोए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेगेव उपागच्छ, उपागता समयं भगवं महावीरं तिक्त आयाहि पाहि करे, करेता बंद णमंसद, वंदिता मंखित्ता पचास पाइरे सुस्समाणे पर्मसमाने अभिमुहे विषएवं पंजलिउडे पज्जुवास ।
लणं समने भगवं महाबीरे लेतियाचियस्स गाहावइस्स तीसे व महदमहालियाए परिसाए-जाय धम्मं परिको ।
परिसा पडिगया, राया य गए ।
लेतियापियस्स मिहिधम्म-पडिवत्ती
२७२ तए णं से लेतियापिया गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमण परमसोमणस्सिए हरिससवितप्यमाणहिए उट्ठाए उट्ठदे, उता, समणं भगवं महाबीरं तित्तो पाहिण-याहि करे, करेला वंद णमंसद, वंदिता नवंसित्ता एवं बधासी" सहामि णं मंते ! निम्गंचं पावयणं पत्तियामि णं मंते ! निग्यं पाचपर्ण रोएमि णं भत्ते ! निग्गंथं पावयणं, अन्भुट्ठमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं
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लेतियापियागाहावइकहाणगं
३५१
भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिपिछयमेयं भंते ! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा गं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि" । "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि" । तए णं से लेतियापिता गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्म पडिवज्जइ ।
भगवओ जणवयविहारो २७३ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थोए नयरीए कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणव
यविहारं विहरइ ।
लेतियापियस्स सामणोवासग-चरिया २७४ तए णं से लेतियापिता समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ
पडिग्गह-कंबल-पायपुछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएणं य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ।
फग्गुणीए समणोवासिया-चरिया २७५ तए णं सा फग्गुणी भारिया समणोवासिया जाया--अभिगयजीवाजीवा-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम
साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ ।
२७६
लेतियापियस्स धम्मजागरिया तए णं तस्स लेतियापियस्स समणोवासगस्स बहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कंताई पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुटवरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए बहूणं-जावआपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी-जाव-सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए"० । तए णं से लेतियापिता समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सात्थि नरि मझमज्ञणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमन्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दन्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमाला-वण्णग-विलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
लेतियापियस्स उवासगपडिमापडिवत्ती २७७ तए णं से लेतियापिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
तए णं से लेतियापिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तइ आराहेइ ।। तए णं से लेतियापिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छट्ट', सत्तम, अट्ठमं, नवम, दसम, एक्कारसम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ आराहेइ ।। तए णं से लेतियापिता समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडि-किडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए।
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३५२
धम्मकहाणुमोये चउत्यो बंधी
लेतियापियस्स अणसणं २७८ तए णं तस्स लेतियापियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अजास्थिए
चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पगहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्के निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले बोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे,-जाव-य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जावउट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स, विहरित्तए" । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-भूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।
लेतियापियस्स समाहिमरणं देवलोगप्पत्ती तयणंतरं च सिद्धिगमणनिरूवणं २७९ तए णं से लेतियापिता समणोवासए बहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, बोसं वासाई समणो
वासगपरियायं पाउणिता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उववणे । तत्य णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । लेतियापियस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। "से णं भंते ! लेतियापिता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गिमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ?" "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्निहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सुव्वदुक्खाणमंतं काहिइ" ।
उवा. अ०१० ।
१५. इसिभद्दपुत्ताइणो समणोवासगा
आलभियाए इसिभद्दपुत्ताई समणोवासगा २८० तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होत्या--यण्णओ । संखवणे चेइए-वण्णओ । तत्थ णं आलभियाए नगरीए
बहवे इसिभद्दपुतपामोक्खा समणोवासया परिवसंति--अड्ढा-जाव-बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवा जीवा-जाव-अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणा विहरति ।
देवठिइविसए विवादो २८१ तए णं तेसि समणोवासयाणं अण्णया कयाइ एगयओ समुवागयाणं सहियाणं सण्णिविट्ठाणं सणिसण्णाणं अयमेयारवे मिहोकहास
मुल्लावे समुप्पज्जित्था--"देवलोगेसु णं अज्जो ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?" तए णं से इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवट्टिती-गहिय? ते समणोवासए एवं क्यासी"देवलोएसु णं अज्जो ! देवाणं जहणणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया, तिसमयाहिया-जावदससमयाहिया, संखेज्जसमयाहिया, असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णता । तेण परं बोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य" । तए णं ते समणोवासया इसिमद्दपुत्तस्स समणोवासगस्स एवमाइक्खमाणस्स-जाव-एवं पल्वेमाणस्स एयम8 नो सद्दहंति नो पत्तियंति नो रोयंति, एयम8 असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोयमाणा जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।
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इसिभद्दपुत्ताइणो समणोवासना
३५३
भगवओ महावीरस्स समोसरणं २८२ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे-जाव-समोसढे-जाव-परिसा पज्जुवासइ । तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए
लट्ठा समाणा, हट्ठतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं धयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया समणे भगवं महावीरे-जाव-आलभियाए नगरीए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।" तं महप्फलं खलु भो देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदणनमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुषयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गणयाए? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो सक्कारेमो सम्माणमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयम8 पडिसुणति, पडिसुणेत्ता, जेणेव सयाई-सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उधागच्छित्ता बहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सएहिं सएहि गिहेंहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्ख मित्ता एगयओ मेलायंति, मेलायित्ता पायविहारचारेणं आलभियाए नगरीए मज्झमज्झणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव संखवणे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं-जाव-तिविहाए पज्जुवासणाए एवं जहा तुंगि उद्देसए (भग. श. २, उ. ५)-जाव-पज्जुवासंति । तए णं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ-जाव-आणाए आराहए भवइ ।
महावीरेण समाहाणं २८३ तए णं ते समणोवासया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हहतुट्ठा उढाए उट्ठति, उट्ठत्ता समणं भगवं
महावीरं वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी-- "एवं खलु भंते ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए अम्हं एवमाइक्खइ-जाध-परूवेइ--देवलोएसु णे अन्जो ! देवाणं जहणणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता, तेणं परं समयाहिया-जाव-तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य । से कहमेयं भंते ! एवं ?" अज्जो ! ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं क्यासी-- "जणं अज्जो ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तुम्भं एवमाइक्खइ-जाव-परवेइ--देवलोएसु णं देवाणं जहणणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णता, तेण परं समयाहिया-जाव-तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य-सच्चे गं एसमट्ठ । अहं पि णं अज्जो ! एवमाइक्खामि-जाव-परूवेमि-देवलोएसु णं अज्जो ! देवाणं जहणणं दस वाससहस्साइं ठिती पण्णता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया, तिससमयाहिया-जाव-दससमियाहिया, संखेज्जसमयाहिया, असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता । तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य-सच्चे णं एसमट्ठ । तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इसिभद्दपुत्तं समणोवासगं वंदंति मंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एयमट्ठसम्म विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति । तए णं ते समणोवासया पसिणाई पुच्छंति, पुच्छित्ता अट्ठाइं परियादियंति, परियादियित्ता समगं भगवं महावीरं वदति नमसंति, बंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।
इसिभरपुत्तविसए गोयमपण्हो महावीरस्स उत्तरं य . २८४ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी
___ “पभू णं भंते ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिये मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पच्वइत्तए ?" ध० क. ४५
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३५४
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
“नो इण? सम8 गोयमा ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए बहहि सीलव्यय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अपाणं भावेनाणे बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झुसेहिति, झूसेता सट्ठि भत्ताई अगसणाए छेदेहिति, छदेत्ता आलोइय-पडिक्कते-समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्यंगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता । तत्थ णं इसिभद्दपुत्तस्स वि देवस्त चत्तारि पलिओवमाई ठिती भविस्सति । "से गं भंते ! इसिभद्दपुत्ते देवे ताओ देव लोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अगंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उपवज्जिहिति ?" गोयमा ! महाविदेहे चासे सिज्झिहिति-जाव-सव्यदुक्खाणं अंतं काहिति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे-जाव-अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ आलभियाओ नगरीओ संखघणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवाविहारं विहरइ।
भग० स०११, उ०१२ ।
१६. संखे पोक्खली य समणोवासया
सावत्थीए संखे, पोक्खली य २८५ तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नगरी होत्था--पण्णओ। कोट्ठए चेइए-वण्णओ।
तत्थ णं सावत्थीए नगरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोधासया परिषसंति-अड्ढा-जाव-बहुजणस्स अपरिभूया, अभिगयजीवाजीया -जाव-अहापरिगहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरति ।। तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया-जाव-सुरुवा, समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा -जाव-अहापरिग्गहिएहि तवोकहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खली नाम समणोवासए परिवसइ-अड्ढे, अभिगयजीवाजीवे-जाव-अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
भगवओ महावीरस्स समोसरणं २८६ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा-जाव-पज्जवासइ । तए णं ते समणोवासगा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जहा
आलभियाए-(भग० स०११-उ० १२)-जाव-पज्जवासंति । तए णं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ-जाव-परिसा पडिगया। तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हडतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छंति, पुच्छित्ता अट्राइं परियादियंति, परियादियित्ता उट्ठाए, उठ्टेंति, उठेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
संखस्स पोसहो २८७ तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं धयासी
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संखे पोक्खली य समणोवासाय
३५५
"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह । तए णं अम्हे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाः विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुजंगाणा पक्वियं पोसहं पडिजागरमाला विहारस्सामो ।
तए णं ते समणोपासना संच समगोवासगल्स एवमट्ठे विषएणं पडिति ।
तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए - जाव - संकप्पे समुप्पज्जित्था -- "नो खलु मे सेयं तं विपुलं असणं -जाब-साइमं अस्साएमाणस्स बिस्साएमाणस्स परिभाएमाणस्स परिभुंजे माणस पत्वियं पोर डिजागरमाणस्स बिहारिए, सेयं खलु मे पोरसालाए पोसिस भचारिला ओमुक्तमणि-सुषण्णत्सवमान-ब-दिलेषणस्स निक्खिससत्य-मुसलस्स एयरस अबिइयस्स दभसंथा रोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए" त्ति कट्टु एवं संपेहेइ संपेहेत्ता जेणेव सावत्थी नगरी, जेणेव सए गिहे, जेणेव उप्पला समणोवासिया, तेणेव उघागच्छ्इ, उवागच्छित्ता उप्पलं समणोवासियं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जेणेव पोरासाला तेथ उवागन्छ, प्राधिता पोसहसा अणुपविलह, अणुपविसिता पोसहसा मज्ज, पमनिता उच्चारण भूमि पडिले पडलेला दग्भसंचार संवरद, संचरिता संचारणं पुरुहृद, दुरुहिता पोस्टहसाला पोसाहिए बंभचारी -जा- पोसहं पहिजागरम से विहरद्द।
संखकहणाणुसारेणं सावत्थीसमणोवासएहि पोसहत्यं विउलअसणाईणं करणं
२८८ ए से समोसा जेणेव सावत्वी नगरी जंगेव साई-सहा ते साइमं उपखडात उपखडावेत्ता अण्णमण सहावेति सहायता एवं बयासी-
"एवं खलु देवाणुपिया ! अम्हेहि से विउले असण- पाण- खाइम- साइमे उवक्खडाविए, संखे य णं समणोवासए नो हव्वमागच्छ, तं सेवं खलु देवाणुपिया ! अम्हं संखं समगोदास सहावेत्तए ।
असणाइभोगत्वं पोक्खलिणा संखनिमंतणं
२८९ तए णं से पोक्खली समणोवासए ते समणोवासए एवं क्यासी-
"अगं तु देवाणुपिया! सुनि-बोसत्या अहं णं संवं समगोवास सहावेमि" ति कट्टु तेसि समगोवासवाणं अंतिवाओ पsिनिक्खम, पडिनिक्खमित्ता सावत्थोए नगरीए मज्संमज्झेणं जेणेव संखस्स समणोवासगस्स गिहे, तेणेव उचागच्छ, उवागच्छित्ता संखस्स समणोवासगस्स गिहं अणुपविट्ठे ।
तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्र्खाल समणोवासयं एज्जमाणं पासइ, पासिता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठपयाई अनुगच्छ्इ, अणुगच्छित्ता पोक्र्खाल समणोवासगं वंदति नम॑सति, वंदित्ता नमसित्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतेत्ता एवं वयासी
उपागच्छति उपागच्छता विपुलं असणं पानं चाइम
――
"संदिस्तु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणप्पयोयणं ?"
तए णं से पोक्खली समणोपासए उप्पलं समणोवासियं एवं वयासी-
"कहिणं देवाणुप्पिया ! संखे समणोवासए ?"
तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्र्खाल समणोवासयं एवं वयासी-
"एवं देवाया। संचे समगोवालए पोसहशालाए पोसाहिए बंभचारी-जा-विहर।
तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला, जेणेव संखे समणोवासए, तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता गमणागमणाए पक्किम, पडिक्कमित्ता संखं समणोवासगं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी
"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हेहि से विउले असणे जाव- साइमे उचक्खडाविए, तं गच्छामो णं देवाणुपिया ! तं विलं असणं-जा-साइमं अस्सामाणा-जाद परिचय पोसहं पडिजागरमाना हिरामो
संखेण निवारणं
२९० तए णं से संखे समणोवासए पोक्खलि समणोवासगं एवं व्यासी-
"नो खलु कपs देवाणुप्पिया ! तं विउलं असणं- जाव- साइमं अस्साएमाणस्स - जाव पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरितए, कम्प मे पोसहसालाए पोसहियरस जाय-पक्खियं पोसहं पडिलारमामास विहरिए तं संवेगं देवापिया तुमचे तं बलं असणंजाव- साइमं अस्साएमाणा- जाव- पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरह।
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धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
अण्णे हि समणोवासएहि पोसह असणाईणं भोगो २९१ तए णं से पोक्खली समणोवासए संखस्स समणोधासगस्स अंतियाओ पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्वमित्ता सात्थि नर
मझमझेणं जेणेष ते समणोपासणा तेणेष उधागच्छइ, उवापच्छित्ता ते समणोवासए एवं पयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समणोपासए पोसहसालाए पोसहिए-जाव-विहरइ, तं छंदेणं देवाणुप्पिया ! तुम्भे विउलं असणं-जाथसाइमं अस्साएमाणा-जाव-पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरह, संखे णं समणोधासए नो हव्धमागग्छई"। तए णं ते समणोधासगा तं विउलं असणं-जाध-साइमं अस्साएमाणा-जाव-विहरंति।
संखेण पारणट्ठ महावीरपज्जुवासणं २९२ तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुव्वरतापरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारवे-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--
"सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसिता-जाव-पज्जुवासिता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए" त्ति फटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायए रयणोए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं सात्थि नरि मज्झमज्ञणं निग्गग्छइ, निग्गच्छिता जेणेव कोटुए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेष उवागग्छइ, उवागच्छिता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुधासणाए पज्जुवासति। तए णं ते समगोवासगा कल्लं पाउप्पमायाए रयणीए-जाघ-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते व्हाया कयबलिकम्मा-जाच-अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सएहि-सएहि गिहेहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता एगयओ मेलायंति, मेलायित्ता पायविहारचारेणं सावत्थीए नगरीए मझमज्झणं निगच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए, चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता समणं भगवं महावीर-जाव-तिधिहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति। तए णं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोधासगाणं तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ-जाघ-आणाए आराहए भषइ ।
समणोवासएहि संखहीलणा २९३ तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्त अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हद्वतुट्टा उट्ठाए उट्ठति, उद्वेता समणं भगवं
महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए, तेणेव उवागच्छंति, उवामच्छित्ता संखं समणोवासयं एवं वयासो"तुमं णं देवाणुपिया! हिज्जो अम्हे अप्पणा चेव एवं वयासी-तुम्हे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं-जाव-साइमं उवक्खडावेह-जावपरिभुजेमाण। पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो । तए णं तुमं पोसहसालाए-जाव-पक्षियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरिए, तं सुट्ठ णं तुम देवाणप्पिया! अम्हे होलसि।"
२९४
महावीरेण संखहीलणानिवारणं अज्जो ! ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं क्यासी-- “मा णं अज्जो! तुम्भे संखं समणोवासगं होलह निदह खिसह गरहह अवमण्णह । संखे णं समणोवासए पियधम्मे चेव, दधम्मे चेव, सुदक्खुजागरियं जागरिए।"
महावीरकयं जागरियाविवरणं २९५ भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--“कतिविहा णं भंते ! जागरिया
पण्णता?" "गोयमा! तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तं जहा--बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया। "केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ-तिविहा जागरिया पण्णता, तं जहा--बुद्ध जागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खु जागरिया ?" .
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संखे पोक्खली य समणोवासाया
"गोयमा! जे इमे अरहंता भगवंतो उप्पग्णनाणदसणधरा अरहा जिणे केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागयवियाणए सव्वष्णू सव्वदरिसी एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति । “जे इमे अणगारा भगवंतो रियासमिया-जाव-गुत्तबंभचारी-- एए णं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति। "ज इमे समणोवासगा अभिगयजीवाजीवा-जाध-अहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणा विहरंति--एए णं सुदक्खुजागरियं जागरंति । से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-तिविहा जागरियापण्णत्ता, तं जहा-बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया।"
कसायफलं कम्मबंधणं जाणित्ता समणोवासयाणं संखं पइ खमावणी २९६ तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी
कोहवस? णं भंते ! जीवे कि बंधइ ? कि पकरेइ ? कि चिणाइ ? कि उचिणाइ ?" . ''संखा! कोहवसट्टेणं जीवे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ हस्सकालठिइयाओ दोहकालठिइयाओ पकरेइ मंदाणुभावाओ तिव्वाणुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्पायावेयणिज्जं च णं कम्मं भज्जो-भज्जो उचिणाइ, अणाइयं च णं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टई"। "माणवसट्टे णं भंते ! जीवे कि बंधइ? कि पकरेइ ? कि चिणाइ ? कि उवचिणाई" ? "एवं चेव -जाव- अणुपरियट्टई"," "मायक्सट्टे णं भंते ! जीवे कि बंधइ ? किं पकरेइ ? किं चिणाइ? कि उवचिणाई"? एवं चेव-जाव-अगुपरियट्टई"। "लोभवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधइ ? कि पकरेइ ? किं चिणाइ ? कि उवचिणाई" ? "एवं चेव-जाव-अणुपरियट्टई"। तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमट्ट सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउव्विग्गा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसंइ, बंदिता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता संखं समणोवासगं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एयम8 सम्मं विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेति । तए गं ते समणोवासगा पसिणाई पुच्छंति, पुच्छित्ता अढाई परियादियंति, परियादियित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया।
संखस्स देवगई सिद्धी य२९७ भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगव महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता ममंसित्ता एवं पयासी
"पभू णं भंते ! संखे रामणोचासए देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? सेसं जहा (भग० स०११ उ० १३) इसिभद्दपुत्तस्स -जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ।" सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति-जाव-विहरइ।"
भग० स० १२, उ०१।
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१७. वरुणे नागनत्तुए समणोवासए
संगामे मरणे देवत्तविसए गोयमपण्हो २९८ "बहुजणे णं भंते ! अण्णमण्णस्स एषमाइक्खइ-जाव-परूवेइ-एवं खलु बहवे मणुस्सा अण्णयरेसु उच्चायएसु संगामेसु अभिमुहा
चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उबवत्तारो भवंति, से कहमेयं भंते ! एवं ?"
महावीरस्स उत्तरे वरुणकहाणयं "गोयमा ! जणं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परुवेइ-एवं खलु बहवे मणुस्सा-जाध-देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छ ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि-जाव-परूवेमिएवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बेसाली नाम नगरी होत्या-वण्णओ। तत्थ णं वेसालीए नगरीए वरूणे नामं नागनत्तुए परवसइ-अड्ढे-जाव-अपरिभूए, समणोवासए, अभिगयजीवाजीवे-जाव-समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल-पायपुछणेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं ओसह-भेसज्जेणं पडिलाभेमाणे छट्टण्टेणं अणिखित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।
वरुणस्स रहमुसलसंगामे गमणं तए णं से वरुणे नागनत्तुए अण्णया फयाइ रायाभिओगणं, गणाभिओगेणं, बलाभिओगेणं रहमुसले संगामे आणत्ते समाणे छट्ठभत्तिए अममतं अणुवट्टेति, अणुवट्टत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासो-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवदावेह, हय-गय-रह-पवर-जोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" तए णं ते कोडंबियपुरिसा-जाव-पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं-जाव-चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेति, हय-य-रहपवरजोहफलियं चाउरं गिणि सेणं सण्णाति, सण्णाहेत्ता जेणेव वरुणे नागनत्तुए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता-जाव-तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवए सकोरेटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, अणेगगगनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाह-दूय-संधिपालसद्धि संपरिवुडे मज्जणघराओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उधागरिछत्ता चाउग्घंटे आसरहं दुरुहइ, दुरुहिता हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवडे, महयाभडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसलं संगाम ओयाए।
संगामे वरुणस्स अभिग्गहो तए णं से वरुणे नागनत्तुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ--"कप्पति मे रहमुसलं संगाम संगामेमाणस्स जे पुब्धि पहणइ से पडिहणित्तए, अवसेसे नो कप्पतीति; अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ अभिगेण्हेत्ता रहमुसलं संगामं . संगामेति। तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसलं संगाम संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए सरित्तए सरिन्वए सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरहं हव्वमागए।
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वरूणे नागनत्तुए समणोवासाए
३५९ तए णं से पुरिसे वरुणं नागनत्तुयं एवं वदासी-पहण भो वरूणा! नागनत्तुया ! पहण भो धरुणा ! नागनत्तुया ! तए णं से वरुणे नागनत्तुए तं पुरिसं एवं वदासो-नो खलु मे कप्पइ देवाणुप्पिया ! पुन्धि अयस्स पहणित्तए, तुम चेव णं पुब्धि पहणाहि। तए णं से पुरिसे वरूणणं नागनत्तुएणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुते रुष्टु कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे धणू परामुसइ, परामसित्ता उसु परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठिच्चा आययकण्णाययं उसं करेइ, करेत्ता घरुणं नागनत्तुयं गाढप्पहारीकरेइ।। तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते छुट्टै कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुतइ, परामुसित्ता आययकण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ।
वरुणकयं संलेहणं तए णं से वरुणे नागनतुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अधुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु तुरए निगिण्हइ, निगिणिहत्ता रहं पराक्त्तेइ परावत्तेत्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमति, पडिनिवखमित्ता एगंतमंतं अवक्कमइ अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हइ निगिहिता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरहइ, पच्चोरुहित्ता तुरए मोएइ, मोएत्ता तुरए विसज्जेइ, विसज्जेत्ता दभसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसणे करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं व्यासी-"मोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं-जाव-सिद्धिगतिकामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स-जाव-सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, वंदामि गं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे से भगवं तत्थगए इहगयं" ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता कमंसित्ता एवं क्यासी--"पुवि पि णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, एवं-जाव-थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणि पिणं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए-जाव-मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि जायज्जीवाए । सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं--चव्यिहं पि आहारं पच्चक्खामिजायज्जीवाए। जं पि य इमं सरीरं इ8 कंतं पियं-जाव-मा णं वाइयपित्तिय-सभिय-सण्णिवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कटु एयं पिणं चरिमेहि ऊसास-नीसासेहिं वोसिरिस्सामि"त्ति कट्ट सण्णाहपढें मयइ, मुइत्ता सल्लद्धरणं करेइ, करेत्ता आलोइथ-पडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगए।
वरुणनागनत्तुय-मित्तस्स वि वरुणानुसरणं तए णं तस्स वरुणस्स दागनतुयस्स एगे पियबालवयंसए रहमुसलं संगाम संगामेमाणे एगणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्यामे अबले अवीरिए अयुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्ट वरुणं भागनत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ, पासित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिहित्ता जहा वरुणे-जाव-तुरए विसजेति, पडसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं बवासी-"जाई गं भंते ! मम पियबालवयंसस्स वरुणस्स नागनत्तयस्स सीलाई वयाई गुणाई बेरमणाई पच्चक्खाण-पोसहोववासाई, ताइ णं मम पि भवंतु" त्ति कटु सण्णाहपढें मुयइ, मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ, करेत्ता आणुपुग्वीए कालगए।
वरुणमरणे देवकयवुठटं तए णं तं वरुणं नागनत्तुयं कालगयं जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरहिं देहि दिव्वे सुरभिगंधोदगवासे वुठे, दसवण्णे कुसुमे निवातिए, दिवे य गोय-गंधव्वनिनाद कए यावि होत्था। तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स तं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवज्जुति दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता य पासित्ता य बहुमणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ -जाव- परवेइ--एवं खलु देवाणुप्पिया ! बहवे मणुस्सा अण्णयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति।"
वरुणस्स देवलोगुप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगइनिरूवणं च . २९९ “वरुणे णं भंते! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहि उववन्ने ?" "गोयमा! सोहम्मे कप्पे, अरुणाभे विमाणे
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३६०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
देवताए ज्ववन्ने । तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता । तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता"। "से गं भंते ! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भषक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहि उववज्जिहिति ?" "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिवाहिति सव्यदुक्खाणं अंतं करेहिति ।
३००
वरुणमित्तस्सवि सुकुलुप्पत्तिआइ वरुणस्स गं भंते ! नागनत्तयस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहि उववन्ने ? गोयमा! सुकुले पच्चायाते । से णं भंते ! तओहितो अणंतरं उब्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-अंतं काहिति। सेवं भंते! सेवं भंते! ति।
भग० श०७, उ०९।
१८. सोमिलमाहणे समणोवासए
वाणियगामे सोमिलमाहणे भ. महावीरस्स समोसरणं च तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नगरे होस्था-वण्णओ। दूतिपलासए चेइए-वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद-जाव-सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स य कुडंबस्स आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे-जाव-समोसढे-जाव-परिसा पज्जुवासति ।
सोमिलमाहणस्स समवसरणे गमणं ३०२ तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूबे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्प
ज्जित्था--"एवं खल समणे नायपुत्ते पुज्वाणुपुब्धि परमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इहमागए इहसंपत्ते इहसमोसढे इहेव वाणियगामे नगरे दूतिपलासए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं गच्छामि णं समणस्स नायपुत्तस्स अंतियं पाउन्भवामि, इमाइं च णं एयारवाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामि, तं जइ मे से इमाई एयारवाई अट्ठाई-जाव-वागरणाई वागरेहिति ततो णं वंदीहामि नमसीहामि-जाव-पज्जुवासीहामि, अह मे से इमाइं अट्ठाई जाव वागरणाई नो वागरेहिति तो गं एएहि चेव अट्ठहि य-जाव-वागरणेहि य निप्पटुपसिणवागरणं करेस्सामि" ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता बहाए-जाव-अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं एगणं खंडियसएणं सद्धि संपरिवुड़े वाणियगामं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव दूतिपलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी--
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सोमिलमाहणे समणोवासए
३६१
सोमिलस्स जत्ताइपण्हाणं भगवओ समाहाणं ३०३ जता ते भंते ? जबणिज्ज (ते भंते ?) ? अव्वाबाहं (ते भंते ? ) ? फासुयविहारं (ते भंते ?)
सोमिला! जत्ता वि मे, जवणिज पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे। कि ते भंते ! जत्ता? सोमिला! जं मे तव-नियम-संजय-सज्झाय-माणावस्सगमादीएसु जोगेसु जयणा, सेत्तं जत्ता। किं ते भंते! जवणिज्जं? सोमिला! जवणिज्जे दुबिहे पण्णते, तं जहा-इंदियजवणिज्जे य, नोइंदिय-जवणिज्जे य। से किं तं इंदियजवणिज्जे ? इंदियजवणिज्जे--जं मे सोइंदिय-क्खिदिय-धाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाई निरुवहयाई वसे वटुंति, सेत्तं इंदियजवणिज्जे। से कि तं नोइंदियजवणिज्जे? नोइंदियजवणिज्जे-जं में कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिण्णा नो उदीरेंति, सेत्तं नोइंदियजवणिज्जे । सेत्तं जवणिज्जे । कि ते भंते ! अव्वाबाहं ? सोमिला! जं मे वातिय-पित्तिय-संभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका सरीरगया दोसा उवसंता नो उदीरेंति सेत्तं अव्वाबाहं । कि ते भंते ! फासुयविहारं? सोमिला ! जण्णं आरामेसु उज्जाणेसु देवकुलेसु सभासु पवासु इत्थी-पसु-पंडगविवज्जियासु वसहीसु फासु-एसणिज्जं पीढ-फलगसज्जा-संथारगं उपसंपज्जित्ताणं विहरामि, सेत्तं फासुयविहारं। सरिसवा ते भंते ! कि भक्खेया ? अभक्खया ? सोमिला ! सरिसवा में भक्खया वि अभक्खया वि । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-सरिसवा में भक्खेया वि अभक्खया वि? से नणं भे सोमिला! बंभण्णएसु नएसु दुविहा सरिसवा पण्णत्ता तं जहा--मित्तसरिसवा य, धन्नसरिसवा य। तस्थ णं जे ते मित्तसरिसवा ते तिविहा पण्णत्ता तं जहा--सहजायया, सहवढियया, सहपंसुकीलियया, ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते धन्नसरिसवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सत्थपरिणया य, असत्थपरिणया य। तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--एसणिज्जा य, अणेसणिज्जा य । तत्य णं जे ते अणेसणिज्जा ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जाइया य, अजाइया य । तत्थ पं जे ते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया। तत्थ णं जे ते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--लद्धा य, अलद्धा य तत्थ णं जे ते अलद्वा ते णं समणाणं निग्गंथागं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खया। से तेणठेणं सोमिला ! एवं वुच्चइ--सरिसवा मे भक्खया वि अभक्खेया वि। मासा ते भंते ! कि भक्खया? अभक्खया? सोमिला ! मासा मे भक्खया वि, अभक्खया वि। से फेणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ--मासा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि? से नूणं भे सोमिला ! बंभण्णएसु नएसु दुविहा मासा पण्णत्ता, तं जहा--दव्वमासा य, कालमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं सावणादीया आसाढपज्जवसाणा दुवालस पण्णत्ता, तं जहा--सावणे, भद्दवए, आसोए, कत्तिए, मग्गसिरे, पोसे, माहे, फग्गुणे, चेत्ते, वइसाहे, जटामूले, आसाढे। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया। तत्थ गं जे ते दधमासा ते दुविहा पण्णता, तं जहा--अस्थमासा य, धण्णमासा य ।
ध०क० ४६
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३६२
धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
तत्थ णं जे ते अस्थमासा ते दुविहा पण्णता, तं जहा--सुवण्णमासा य, रुप्पमासा य। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया। तत्थ णं जे ते धण्णमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सत्थपरिणया य, असत्थपरिणया य । एवं जहा धण्णसरिसवा-जाव-से तेणठेणं-जाव-अभक्खया वि। कुलत्था ते भंते ! कि भक्खया ? अभक्खया ? सोमिला ! कुलत्था मे भक्खेया वि अभक्खेया वि। से केणढेणं-जाव-अभक्खेया वि? से नूणं भे सोमिला! बंभण्णएसु नएसु दुविहा कुलत्था पण्णत्ता, तं जहा--इत्थिकुलत्था य, धण्णकुलत्था य। तत्थ णं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कुलवधुया इ वा, कुलमाउया इ वा, कुलधुया इ वा। ते णं समणाणं निग्गंथागं अभक्खया। तत्य णं जे ते धण्णकुलस्था, एवं जहा धण्णसरिसवा । से तेणठेणं-जाव-अभक्खेया वि। एगे भवं ? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं ? अवट्ठिए भवं? अणेगभूयभाव-भविए भवं ? सोमिला! एगे वि अहं-जाव-अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ --एगे वि अहं---जाव-अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं ? सोमिला ! दबट्टयाए एगे अहं, माणदंसणट्टयाए दुविहे अहं, पएसट्टयाए अक्खए वि अहं, अव्यए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से तेणठेणं-जाव-अगभूय-भाव-भविए वि अहं ।
सोमिलस्स सावगधम्मपडिवत्ती एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी--जहा खंदओ-जाव-से जहेयं तुब्भेवदह । जहा णं देवाणुपियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भसेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितओ मुंडा भवित्ताणं अगाराओ अणगारियं पच्वयंति, नो खलु अहं तहा संचाएमि, अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए दुवालसविहं सावगधम्म पडिज्जिस्सामिजाव-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जति, पडिवज्जिता समणं भगवं महावीरं वदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। तए णं से सोमिले माहणे समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे-जाव-अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।
सोमिलस्स देवगइ-सिद्धिगमणनिद्देसो ३०४ भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-पभू णं भंते ! सोमिले माहणे
देवाणुप्पियाणं अंतिए मुडे भवित्ता आगाराओं अणगारियं पव्वइत्तए ? नो इणठे समढे जहेव संखे तहेव निरवसेसं-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति-जाव-विहरइ।
भग० स०१८, उ०१०।
१६. भगवओ महावीरस्स समणोवासगाणं देवलोगट्ठिईए परूवणं
समणोवासगाणं सोहम्मे कप्पे ठिई ३०५ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स समणोवासगाणं सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे चत्तारि पलिओवमाइं ठिई १०॥
ठाण अ०४ उ०३।
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२०. कूणियस्स महावीरसमवसरणगमण-धम्मसवणपसंगो
चंपानयरी ३०६ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था रिद्धत्यिमियसमिद्धा पमुइयजणजाणवया आइष्णजणमणूसा हलसयसहस्ससंकिट्टविकिट्र
लट्ठपण्णत्तसेउसीमा कुक्कुडसंडेयगामपउरा उच्छुजवसालिकलिया गो-महिस-गवेलग-प्पभूया आयारवंतचेइयजुवइविविहसण्णिविट्ठबहुला उक्कोडियगायगठिभेयग-भड-तक्कर-खंडरक्खरहिया खेमा णिस्वदवा सुभिक्खा वीसत्थसुहावासा अणेगकोडिकुटुंबियाइण्णणिध्वयसुहा णड-णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्टिय-वेलंबग-कहग-पवग-लासग-आइक्खग-मंख-लंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिय-अगतालायराणुचरिया आरामज्जाणअगड-तलाग-दीहिय-वप्पिणगुणोक्वेया नंदणवणसन्निभप्पगासा उन्विद्धविउलगंभीरखायफलिहा चक्क-गय-मुसु ढि-ओरोह-सयग्घि-जमलकवाड-घणदुष्पवेता धगुकुडिलवंकपागारपरिक्खित्ता कविसीसगवट्टरइयसंठियविरायमाणा अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-तोरण-समण्णयसुविभत्त-रायमग्गा छेयायरियरइयदढफलिहइंदकीला विवणिवणिछित्तसिप्पियाइण्णणिव्वुयसुहा सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-पणियावणविविहवत्युपरिमंडिया सुरम्मा मरवइपविइण्णमहिवइपहा अणेगवरतुरग-मत्तकुंजर-रहपहकर-सीय-संदमाणी-आइण्ण-जाण-जग्गा विमउल-णवणलिणिसोभियजला पंडरवरभवणसण्णिमहिया उत्ताणणयणपेच्छणिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
पुण्णभद्दे चेइए ३०७ तोसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए पुष्णभद्दे नाम चेइए होत्था, चिराईए पुवपुरिसपण्णत्ते पोराणे सहिए
वित्तिए (पाठान्तरे-'कित्तिए') णाए सच्छत्ते सज्झए सघंटे सपडागे पडागाइपडागमंडिए सलोमहत्थे कयवेयड्डिए लाजल्लोइयमहिए गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितले उवचियचंदणकलसे चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्तविउलवट्टवाघारियमल्लदामकलावे पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुष्फपुजोक्यारकलिए कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए णड-गट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-पवग-कहग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिय-भुयग-मागहपरिगए बहुजणजाणवयस्त विस्सुयकित्तिए बहुजणस्स आहुस्स आहुणिज्जे पाहुणिज्जे अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सणिहियपाडिहेरे जागसहस्सभागपडिच्छए बहुजगो अच्चेइ आगम्म पुण्णभद्दचेइयं पुण्णभद्दचेइयं ।
वणसंडो ३०८ से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्वाणं महया वणसंडेणं सव्वओ समता परिक्खित्ते, से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए
हरिओभासे सीए सीओभासे गिद्धे गिद्धोभासे तिब्वे तिब्बोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयन्छाए णिद्धे णिद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडिअकडिच्छाए रम्मे महामेहणिकुरंबभूए। ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फर्मतो फलमंतो बीयमंतो अणुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधा अगसाला अगसाहप्पसाहविडिमा अणेगनरवामसुप्पसारियअग्गेज्झघणविउलबद्धखंधा [वाचनान्तरे अधिकानि पदानि-पाईणपडीणाययसाला उदीणदाहिणविच्छिण्णा ओणयनयपणयविप्पहाइयओलंबपलंबलंबसाहप्पसाहविडिमा अवाईणपत्ता अणुइण्णपत्ता ] अच्छिद्दपत्ता अवाईणपत्ता अवाईयपत्ता नियजरढपंडुपत्ता णवहरियभिसंतपत्तभारंधयारगंभीरदरिसणिज्जा उवणिग्गयणवतरुणपत्तपल्लवकोमलउज्जलचलंतकिसलयसुकुमालपवालसोहियवरंकुरग्गसिहरा णिच्चं कुसुमिया णिच्चं माइया णिच्चं लवइया णिचं थवइया णिच्चं गुलइया णिच्वं गोच्छिया णिच्चं जमलिया णिच्चं जुवलिया णिच्चं विणमिया णिच्चं पणमिया णिच्चं कुसुमियमाइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविणमियपणमियसुविभत्तपिंडमंजरिवडिसयधरा सुय-बरहिण--मयणसाल-कोइल कोभगक-भिगारग-कोंडलग--जीवंजीवग-णंदीमुह-कविल-पिंगलक्खग-कारंड-चक्कवाय--कलहंस--सारस- अणेगसउणगणमिहुणविरइयसहुण्णइयहरसरणाइए सुरम्मे संपिडियदरियभमरमहुयरिपहकरपरिलितमत्तछप्पयकुसुमासक्लोलमहुरगुमगुमंतगुंजतदेसभाए अभितर पुफ्फहले बाहिरपत्तोच्छण्णे पत्तेहि य पुष्फेहि य ओछन्नपडिवलिच्छते साउफले निरोयए अकंटए णाणाविहगुच्छ-गुम्म-मंडवग-रम्मसो.
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३६४
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो हिए विचित्तसुहकेउभूए वावी-पुक्खरिणी-दीहियासु य सुनिवेसियरम्मजालहरए पिडिमणीहारिमं सुगंधि सुहसुराभिमणहरं च महया गंधद्धाणि मुयंता णाणाविहगुच्छ-गुम्म-मंडक्गघरगसुहसेउकेउबहुला अगरहजाणजुग्गसिबियपविमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
असोगवरपायवे ३०९ तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पण्णत्ते, [वाचनान्तरे अधिकः पाठः --दूरोवगयकंदमूलवट्टल
टुसंठियसिलिट्ठ-घणमसिणनिद्धसुजायनिरुवहयुध्विद्धपवरखंधी अणेगनरपवरभुयागेज्झे कुसुमभरसमोणमंतपत्तलविसालसाले महुयरिभमरगणगुमगुमाइयनिलितडितसस्सिरीए णाणासउणगणमिहुणसुमहुरकण्णसुहपलत्तसहमहुरे ] कुस-विकुसविसुद्ध रुक्खमूले मूलमंते कंदमंते -जाव-परिमोयणे सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरुवे पडिरूवे। से णं असोगवरपायवे अणेहि बहूहिं तिलएहि लउहि छत्तोवेहि सिरीसेसि सत्तवणेहि दहिवणेहि लोहि धवेहि चंद
हिं अज्जणेहिं णोवेहि कुडएहि कलंहिं सन्वेहि फणसेहि दालिमेहिं सालेहि तालेहिं तमालेहि पियएहि पियंगूहिं पुरोवहि रायरोहिं गंदिरोहिं सवओ समंता संपरिक्खिते । ते णं तिलया लउया-जाव-णंदिरुक्खा कुसचिकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो, एएसि वण्णओ भाणियन्वो-जाव-सिवियपरिमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । ते णं तिलया-जाव-णंदिरुख्खा अण्णेहिं बहूहि पउमलयाहिं णागलयाहि असोअलयाहि चंपगलयाहिं चूयलयाहिं वणलयाहि वासंतियलयाहिं अइमुत्तयलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ-जाव-वडिसयधराओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ। [पुस्तकान्तरगतोऽधिकः पाटः-तस्स णं असोगवरपायवस्स उरि बहवे अट्ट अट्ठ मंगलया पण्णत्ता । तं जहा-१. सोत्थिय-२. सिरिवच्छ-३. नंदियावत्त-४. बद्धमाणग-५. भद्दासण-६. कलस-७. मच्छ-८ दप्पणा सन्धरयणामया अच्छा सण्हा मण्हा घट्ठा मट्ठा नोरया निम्मला निप्पंका निक्कंक डच्छाया सप्पहा समिरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूषा पडिरूवा। तस्स णं असोगवरपायवस्स उरि बहवे किण्हचामरज्या नोलचामरज्झया लोहियचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया हालिद्दचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वयरामयदंडा जलयामलगंधिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा। तस्स णं असोगवरपायवस्स उरि बहवे छत्ताइच्छत्ता पडामाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा पउमहत्थगा कुमुयहत्थगा कुसुमहत्थगा नलिगहत्थगा सुभगहत्थगा सोगंधिवहत्थगा पुंडरीयहत्थगा महापुंडरीयहत्था सयवत्तहत्था सहस्सपत्तहत्था सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा।]
पुढविसिलापट्टओ ३१० तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसि खंधसमल्लोणे एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णते, विक्खंभायामउस्सेहसुप्पमाणे किण्हे
अंजणग-घण-कुवलय हलहरकोसेज्जा-ऽऽगास--केस-कज्जलंगो-खंजण--सिंगभेद-रिट्ठय-जंबूफलअसणग-सणबंधणणीलुप्पलपत्तनिकर-अयसिकुसुमप्पगासे मरणय-मसार-कलित-णयणकोयरासिवण्णे णिद्धघणे अट्ठसिरे आयंसयतलोवमे सुरम्मे ईहामिय-उसभ-तुरग-गर-मगरविहग-वालगकिण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्ते आईणगरूय-बूर-णवणीय-तूल-फरिसे सोहासणसंठिए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरुवे पडिरूवे। [वाचनान्तरपाठ:--अंजणग-घण-कुवलय-हलहरकोसेज्ज-सरिसे आगास-केस-कज्जल-कक्केयण-इंदणील-अयसिकुसुम-प्पगासे भिगंजणसिंगभेय-रिटुग-नोल-गुलिया-गवलाइरेग-भमर-निकुरूंबभूए जंबूफल-सण--कुसुमबंधननोलुम्पलपत्त-निगरमरगया-ऽऽसासग-नयणकोयारासिवण्णे निद्धे घणे अझुसिरे रूवगपडिरूवदरिसणिज्जे आयंसगतलोवमे सुरम्मे सोहासणसंठिए सुरूवे मुत्ताजालखइयंतकम्मे आईणगरूय-बूर-नवणीयतूलकासे सव्वरयणामए अच्छे-जाव-पडिरूवे ।।
चंपाए कोणिए राया ३११ तत्थ णं चंपाए णयरीए कोणिए णाम राया परिवसइ, महयाहिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे अच्चंतविसुद्धदोहरायकुलवंससुप्पसूए
पिरंतरं राथलक्खणविराइयंगमंगे बहुजगबहुमाणपूइए सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे
Jain-Education-international
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कूणियस्स महावीर समवसरणगमण-धम्मसवणपसंगो
३६५
सोमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे णरपवरे पुरिसवरे पुरिससोहे पुरिसबग्घे पुरिसासौविसे पुरिसपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्त वित्थिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइण्णे बहुधण-बहुजायस्व-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासो-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूए पडिपुण्णजंतकोसकोट्ठागाराउधागारे बलवं दुब्बलपच्चामित्ते ओहयकंटयं निहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं ओहयसत्तुं निहयसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं निज्जियसतुं पराइयसत्तं धवगयदुभिक्खं मारि-भयविप्पमुक्कं खेमं सिर्व सुभिक्खं पसंतडिब-इमर रज्जं पसासेमाणे विहरह।
कोणियस्स धारिणी देवी ।
३१२ तस्स णं कोणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था, सुकमालपाणिपाया अहोणपडिपुण्णपंचिदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया
माणु माणप्पमाणपडिपुण्गसुजायसव्बंगसंदरंगी ससिसोमांकारकंतपियदंसणा सुरूवा करयलपरिमियपसत्थतिवलीवलियमज्शा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइयरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलास-सललियसलावणिउणजुत्तोषवारकुसला प्रत्यन्तरपाठः-सुंदरथण-जघण-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्ण-विलासकलिया] पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिस्वा, कोणिएणं रण्णा भंभसारपुत्तेण सद्धि अगुरत्ता अविरत्ता इट्टे सदफरिसरसरूवगधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विधड।
कोणियस्स निरंतरं भगवतपवित्तिनिवेययपुरिसे ३१३ तस्स णं कोणियस्त रणो एक्के पुरिसे विउलकयवित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेइ ।
तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्णभतिभत्तवेदणा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेति ।
कोणियस्स सुहविहरणं ३१४ तेणं कालेणं तेणं समएणं कोणिए राया भंभसारपुत्ते बाहिरियाए उवठाणसालाए अणेगगणणायग-दंडणायग-राईसर-तलवर-माडंबिय
कोडुबिध-मंति-महामंति-गणग दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाह-दूयसंधिवालसद्धि संपरिवुडे विहरइ ।
३१५
भगवंतपवित्तिवावडपुरिसेण कोणियसमक्खं महावीरस्स चंपाए आगमणनिवेयणं । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे-जाव'-धम्मज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं चउद्दसहि समणसाहस्सोहि छत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहि सद्धि संपरिबुडे पुव्वाणुपुब्धि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए नयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंपं नारं पुण्णभदं चेइयं समोसरिउकामे। तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लढे समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए
हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायछित्ते सुद्धप्पावसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्ख मइ, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चपाए णयरीए मझमज्झेणं जेणेव कोणियस्त रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कोणिए राया भिभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं क्यासी"जस्स णं देवाणुप्पिया सणं कंखंति, जस्स णं देवाण प्पिया दंसणं पीहंति, जस्स देवाणप्पिया सणं पत्थंति, जस्स णं देवाणुप्पिया दसणं अभिलसंति जस्त णं देवाणप्पिया णामगोयस्स वि सवणयाए हद्रतद्र-जाव-हियया भवति, से णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणवि चरमाणे गामाणग्गामं दूइज्जमाणे चंपाए णयरीए उवणगरग्गामं उवागए चंपं णरि पुण्णभद्दे चेइयं समोसारउकामे। तं एवं देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पियं णिवेदेमि, पियं ते भवउ ।
भगवंतं पइ कोणियस्स नमोक्काराइ ३१६ तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते तस्स पवित्तिवाउयस्स अंतिए एयमट्ट सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ-जाव-हियए धाराहयनीव
सुरहिकुसुमं व चंचुमालइयऊसवियरोमकूर्व वियसियवरकमलणयण-क्यणे पयलियवरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हार-विरायंतरइ१. यावत्करणात् सूचितः पाठ औपपातिकसूत्रादवगन्तव्यः ।
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३६६
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
यवच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिदे सोहासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता वेरुलियवरिटुरिटुअंजणनिउणोवियमिसिमिसितमणिरयणमंडियाओ पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता अवहट्ट पंच रायककुहाई तंजहा--१ खग्गं २ छत्तं ३ उप्फेसं ४ वाहणाओ ५ वालबीयणं, एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तटु पयाई अणुगच्छइ, सत्तट्ठ पयाइ अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, वामं जाएं अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडियथंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल-जाव-कटु एवं बयासी"मोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थोणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा अप्पडिहयवरनाण-दंसणधराणं वियदृछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं, नमोऽत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स-जाव-संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, बंदामि गं भगवंतं तत्थ गयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं" ति कट्ट वंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमंसित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अठ्ठत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ सक्कारिता सम्माणित्ता एवं वयासी"जया णं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे इहमागच्छेज्जा, इह समोसरिज्जा, इहेव चंपाए गयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता अरहा जिणे केवली समणगणपरिवुडे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरेज्जा तया गं तुम मम एयमट्ठ निवेदिज्जासि"त्ति कटु विसज्जिए।
चंपाए भ० महावीरस्स समोसरणं ३१७ तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रतासोगप्पगास-किसुय
सुय मुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते आगासगएणं चक्केणं-जाव-सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा गयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव वणसंडे, जेणेव असोगवरपायवे, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्टगंसि पुरत्थाभिमुहे पलियंकनिसन्ने अरहा जिणे केवली समणगणपरिवुडे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।'
चंपानयरीनिवासिजणाणं समवसरणगमणं पज्जवासणा य ३१८ तए णं चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा [क्वदित्-बहुजणसद्दे इ वा जणवाए
इ वा जगुल्लावे इ वा] जणवूहे इ वा जणबोले इवा जणकलकले इ वा जणुम्मीइ वा जणुक्कलिया इ वा जणसष्णिवाए इ वा बहुजगो अण्णमण्णस्त एव माइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-"एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सयंसंबुद्धे पुरिसुत्तमे-जाव-संपाविउकामे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे इहमागए, इह संपत्ते, इह समोसढे, इहेव चंपाए णयरीए बहि पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो देवाणु प्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णाम-गोयस्स वि सवणयाए, किमंग उण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवा सणपाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अदुस्स गहणयाए? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणे मो कल्लाणं मंगल्लं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासामो, एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ"त्ति कट्ट बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोधारेणं राइण्णा [क्वचित्-इक्खागा नाया कोरव्वा] खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईयुता अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितयो, अपेगइया वंदणवित्तयं, अप्पेगइया पूषणवत्तियं, एवं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं, अप्पेगइया अट्ठविणिच्छयहेउं-अस्सुयाइं सुणस्सामो, सुयाई निस्संकियाई करिस्तामो; अप्पेगइया अट्ठाई हेऊई कारणाई वागरणाइं पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइस्सामो, पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागणं,
अप्पेगइया जीयमेयंति कट्ट बहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता क्विचित्-उच्छोलणपघोया] सिरसा कंठे मालकडा १. एतदनन्तरगतो विस्तृतो ग्रन्थसन्दर्भ औपपातिकसूत्रादवगन्तव्यः ।
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कूणियस्स महावीर समवसरणगमण-धम्मसवणपसंगो
आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहार-द्धहार-तिसर-पालब-पलबमाणकडिसुत्तसुकयसोहाभरणा पयर वत्थपरिहिया [वाचनान्तरे-जाणगया जुग्गगया गिल्लिगया थिल्लिगया पवहणगया चंदणोलितगायसरीरा , अप्पेगइया हयगया, एवं गयगया रहगया सिबियागया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवगुरापरिक्खित्ता [क्वचित्-वग्गाधग्गि गुम्मागुम्मि] महया उक्किट्ठिसीहणायबोलकलकलरवेणं पक्खुब्भियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणा [क्विचित्-पायदद्दरेण भूमि कंपेमाणा, अंबरतलं पिव फोडेमाणा एगदिसि एगाभिमुहा] चंपाए णयरीए मज्झमज्झणं णिग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थयराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठावयंति, [क्वचित्-विट्ठभंति], ठावइत्ता जाण-वाहणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता [वाचनान्तरे-जाणाई मयंति, वाहणाई विसज्जेति, पुप्फ-तबोलाइयं आउहमाइयं सचित्तालंकारं पाहणाओ य विसर्जेति, एगसाडियं उत्तरासंगं करेंति, आयंता चोक्खा परसुइभूया अभिगमेणं अभिगच्छंति, चक्खुफासे एगत्तीभावकरणेणं] जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करिता वंदंति णमस्संति, वंदित्ता णमस्सित्ता पच्चासणे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति । वाचनान्तरे-तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति, काइयाए सुसमाहियपसंतसाहरियपाणि पाया अंजलिमउलिबहत्था, वाइयाए एवमेयं भंते, अवितहमेयं असंदिद्धमेयं, इच्छियमेयं, पडिच्छियमेयं इच्छियपडिच्छियमेयं, सच्चे णं एस अछे, माणसियाए--तच्चित्ता तम्मणा तल्लेसा तदझवसिया तत्तिव्यज्झवसाणा तदप्पियकरणा तट्ठोवउत्ता तब्भावणाभाविया एगमणा अविमणा अणण्णमणा जिणवयणधम्माणुरागरत्तमणा वियसियवरकमलनयण-वयणा पज्जुवासंति । समोसरणाई गवेसह आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा आएसणेसु वा आवसहेसु वा पणियगेहेसु वा पणियसालासु वा जाणगिहेसु वा जाणसालासु वा कोट्ठागारेसु वा सुसाणेसु वा सुण्णागारेसु वा परिहिंडमाणा परिघोलेमाणा।]
भगवंतपवित्तिवावडपुरिसेण कोणियस्स पुरओ भगवओ आगमणस्स निवेयणं ३१९ तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हद्वतुट्ठ-जाव-हियए हाए-जाव-अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ
पडिणिक्खमइ, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चंपाणयरि मसंमज्झेणं ०, जेणेव बाहिरिया, सा चेव हेट्ठिल्ला बत्तन्वया-जाथणिसीयइ, णिसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अद्धत्तेरस सयसहस्साई पीइदाणं दलयह, दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेड, सक्कारिता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ।
कोणियस्स महावीरदसणठं संकप्पो सविडिढए समवसरणे गमणं पत्थाणं च ३२० तए णं से कूणिए राया भभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ आमंतेत्ता एवं वयासि--"खिप्पामव भो देवाणप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थि
रयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रहपवरजोहकलियं च चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवट्टवेहि, चं च णरि सब्भितरबाहिरियं [फवचित्--आसियसम्मज्जिओवलितं सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु] आसित्त-सित्त-सुइसम्मट्ठरत्यंतरा-ऽऽवण-वीहियं मंचा मंचकलियं णाणाविहरागउच्छियज्झयपडागाइपडागमंडियं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदण-जाव-गंधवट्टिभूयं करेहि य कारवेहि य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि । णिज्जाहिस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदिए।" तए णं से बलवाउए कूणिएणं रणा एवं वृत्ते समाणे हद्दतुट्ठ-जाव-हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ‘एवं सामि'त्ति आणाए विगएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता एवं हत्थिवाउयं आमंतेइ आमंतेत्ता एवं क्यासि--"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि हय-य-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेहि सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि"। तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एपमह्र सोच्चा आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ पडिसुणित्ता छेयापरियउवए-समइकप्पणाविकप्पेहि सुणिउणेहिं उज्जलगेवत्थहत्थपरिवत्थियं सुसज्जं धम्मियसण्णद्धबद्धकवइयउपोलियकच्छवच्छगेवेयबद्धगलवरभूसणविरायंतं अग्गिननेयजुत्तं सललियवरकण्णपूरविराइयं पलंबओचूलमयर कयंधयारं चित्तपरिच्छेयपच्छ्यं पहरणावरणभरियजुद्धसज्जं सच्छत्तं सज्झयं सघंटे सपडागं पंचामेलयपरिमंडियाभिरामं ओसारियजमलजुयलघंट, विज्जुपिणद्धं व कालमेह, उप्पाइयपव्ययं व चंकमंतं, मत्तं गुलगुलंतं मणपवणजइणवेगं भीमं संगामियाओज्जं आभिसेक्कं हस्थिरयणं पडिकप्पे, पडिकप्पेत्ता हय-य-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णा हेइ, सण्णाहित्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ । तए णं से बलबाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्कपाडियक्काइं जत्ताभिमुहाईजुत्ताईजाणाई उचट्टवेहि, उबट्टवेत्ता एयमाणत्तियं परचप्पिणाहि।"
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३६८
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमळ आणाए विणएणं धयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्तो जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खित्ता जाणाई संपमज्जेइ, संपमज्जित्ता जाणाई संवई, संवट्ठित्ता जाणाइं जीणेइ, णीणेत्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ, पवीणइत्ता जाणाई समलंकरेइं, समलंकरिता जाणाई वरभंडगमंडियाई करेइ करेत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खित्ता वाहणाई संपमज्जइ, संपमज्जित्ता वाहणाई णोणेइ, णोणेत्ता वाहणाई, अप्फालेइ, अप्फालेता दूसे पवीणेइ, पवीणइत्ता वाहणाई समलंकरेइ, समलंकरित्ता वाहणाई वरभंडमंडियाई करेइ, करेत्ता वाहणाई जाणाई जोएइ, जोएत्ता पओयलट्ठि पओयधरए य समं आडहइ, आडहेत्ता वट्टमग्गं गाहेइ; गाहेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चपिष्णइ । तए णं से बलवाउए णयरगुत्तियं आमतेइ, अमंतेत्ता एवं वयासी--'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चंपं णरि सब्भितरबाहिरियं आसित्त-जाव-कारवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि"। तए णं से णयरगुत्तिए बलवाउयस्स एयमढं आणाए विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता चंपं णरि सभितरबाहिरियं आसित्त-जावकारवेत्ता य जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ हयगय-जाव-सण्णाहियं पासइ, सुभद्दापमुहाणं देवोणं पडिजाणाइं उबट्टवियाइं पासइ, चंपं णरि सम्भितर-जाव-गंधवट्टिभूयं कयं पासह, पासित्ता हतुद्धचित्तमाणं दिए दिए पोइमणे-जाव-हिए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-जाव-एवं पयासी--"कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसेक्के हत्थिरयणे, हयगय-जाव-पवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया, सुभद्दापमुहाणं च देवीणं बाहिरियाए उवाणसालाए पाडियक्कपाडियक्काइं जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवटावियाई चंपाणयरी सब्भितरबाहिरिया आसित्त-जाव-गंध-वट्टिभूया कया, तं णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया। तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयभट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुटु-जाव-हियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपषिसित्ता अणेगवायामजोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते । सयपागसहस्सपाहिं सुगंधतेल्लमाइएहि पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिजेहि सविदियगायपल्हायणिज्जेहि अभिहिं अभंगिए समाणे तेल्लचम्मंसि पडिपुण्णपाणि-पायसुउमालकोमलतलेहि पुरिसेहिं छेएहिं दखेहिं पठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहि अब्भंगण-परिमद्दणुव्वलण-करणगुणणिम्माएहि अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउविहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगयखेयपरिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाउलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमयले रमणिज्जे हाणमंडवंसि णाणामणि-रयणभत्तिचित्तंसि व्हाणपोढंसि सुहणिसण्णे सुद्धोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहि सुहोदएहि पुणो पुणो कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए । तत्थ कोउयसहि बहुविहेहि कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगते अह्यसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमालावण्णगविलेवणे य आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारहार-तिसरय-पालब-पलंबमाणकडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्धगेविज्ज-अंगुलिज्जग-ललियंगयललियकयाभरणे वरकडग-तुडियथंभियभुए अहियरुवसस्सिगेए मुद्दियपिंगलंगुलोए कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलंबमाणपडसुकयउत्तरिज्जे णाणामणि-कणग-रयणविमलमहरिहणिउणोवियमिसिमिसंतविरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठल?आविद्धवीरवलए, कि बहुणा ? कप्परक्खए चेव अलंकियविभूसिए णरवई सकोरंटमल्लदामेणं [वाचनान्तरे-"अब्भपडलपिंगलुज्जलेणं अविरलसमसहियचंदमंडलसमप्पभेणं मंगलसयभत्तिच्छेयचित्ति यखिखिणिमणिहेमजालविर इयपरिगयपेरंतकणगघंटियपयलिय किणिकिणितसुइसुहसुमहुरसद्दालसोहिएणं सप्पयरवरमुत्तदामलंबंतभूसणणं नरिंदवामप्पमाणरूंदपरिमंडलेण सोयायववायवरिसविसदोसनासणणं हमरयमलबहलपडलवाडणपभाकरेणं उडुसुहसिवछायसमणुबद्धणं वेरूलियदंडसज्जिएणं वइरामयवस्थिनिउणजोइयअट्टसहस्सवरचणसलागनिम्मिएणं सुणिम्मलरययसुच्छएणं निउणोवियमिसिमिसंतमणिरयणसूरमंडलवितिमिरकरनिग्गयग्गपडिहयपुणरविपच्चापडतचंचलमिरिइकवयं विणिमयं. तेणं सपडिदंडेणं घरिज्जमाणेणं आयवतणं विरायते"] छत्तणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे [वाचनान्तरे-“चउहि य पवरगिरिकुहरविचरणसमुइयनिरूवहयचमरपच्छिमसरीरसंजायसंगयाहि अमलियसियकमलविमलुज्जलियरययगिरिसिहरविमलससिकिरण--सरिस कलधोनिम्मलाहिं पवगायचवलललियतरंगहत्थनच्चतवीइपसरियखीरोदगपवरसागरुप्पूरचंचलाहि माणससरपरिसरपरिचियावासविसयवेसाहिं कणगगिरिसिहरसंसियाहिं ओवइयउप्पइयतुरियचवलजइणसिग्धवेगाहिं हंसवधूयाहिं चेव कलिए, णाणामणिकणगरवणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाहिं चिल्लियाहिं नरवइसिरिसमुदयपगासणकरोहिं वरपट्टणुग्गयाहिं समिद्धरायकुलसेवियाहिं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कवरवण्णवासगन्धुद्धयाभिरामाहिं सललियाहिं उभओपासं उक्खिप्पमाणाहि चामराहिं कलिए सुहसीयलवाय
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कूणियस्स महावीरसमवसरणगमण-धम्मसवणपसंगो
वीइयंगे] मंगलजयसहकयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माइंबियकोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेहाणिग्गए इव गहगणदिप्पंतरिक्खतारागणाण मज्झे ससि व्व पिअदंसणे णरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवइं गरवई दुरूठे।
कुणियस्स समवसरणं पइ पयाणं ३२१ तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठट्ठ मंगलया पुरओ अहाणुपुढवीए
संपट्टिया। तं जहा-सोवत्थिय-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणा। तयाणंतरं च णं पुण्णकलसभिगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा दसणरइयआलोयदरिसणिज्जा वाउद्घयविजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुटवीए संपट्टिया। तयाणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमण्डलणिभं समूसियं विमलं आयक्तं पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकरकम्मकर-पुरिसपायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं । तयाणंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गाहा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्गाहा हडप्पयग्गाहा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया। तयाणंतरं च णं बहवे दंडिणो मंडियो सिंहडिणो जडिणो पिच्छिणो हासकरा डमरकरा चाडकरा वादकरा कंदप्पकरा बवकरा कोक्कुइया किडुकरा य वायंता य गायंता य हसंता य णच्चंता य भासंता य सावेंता य रक्खंता य [क्वचित्-"रता य"] आलोयं च करेमाणा जयसदं पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया। [संग्रहगाथाश्च क्वचित्-- असिलट्रिकुंतचावे चामरपासे य फलगपोत्थे य। वीणाकूयग्गाहे तत्तो य हडप्पगाहे य॥१॥ दंडी मुंडि सिहंडी पिच्छी जडिणो य हासकिड्डा य । दवकारा चडुकारा कंदप्पियकुक्कुईगा य ॥२॥ गायंता वायंता नच्चंता तह हसंत हासेंता । साता रावेता आलोयजयं पउंजंति ॥३॥] तयाणंतरं च णं जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं हरिमेलामउल-मल्लियच्छाणं चंचुच्चियललिपपुलियचलचवलचंचलगईणं लंघणवग्गणधावण-घोरण-तिवई-जइणसिक्खियगईणं ललंत-लाम-गललाय-वरभूसणाणं मुहभंडग-ओचूलग-थासमिहिलाणचामरगंडपरिमंडियकडीणं किंकरवरतरुणपरिग्गहियाणं अट्ठसय वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं । तयाणंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्ताणं ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंगविसालधवलदंताणं कंचणकोसीपविट्ठदंताणं कंचणमणि-रयणभूसियाणं वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं अट्ठसयं गयाणं पुरओ अहाणुपुष्वीए संपट्टियं । तयाणंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं संणदिघोसाणं सखिखिणीजाल-परिक्खित्ताणं हेमवयचित्ततिणिसकणगणिज्जुत्तदारुयाणं कालयससुकयणेमिजंतकम्माणं सुसिलिट्रवत्तमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसुसंपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्गाहियाणं (क्वचित्-"हेमजालगवक्खजाखिखिणीघंटजालपरिक्खत्ताणं"] बत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरणभरियजुद्धसज्जाणं अट्ठसघं रहाणं पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्टियं । तयाणंतरं च णं असिसतिकुंत-तोमर-सूल-लउल-भिडिमाल-धणुपाणिसज्जं पायत्ताणीयं ["सन्नद्धवद्धवम्मियकबयाणं उप्पीलियसरासणवट्टियाणं पिणद्धगेवेज्जविमलवरबद्धचिंधपताणं गहिया उहप्पहरणाणं"] पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं ।] तए णं से कूणिए राया हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे गरवई रिदे णरवसहे मणुयरायवसभकप्पे अन्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे हत्थिक्खंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धृव्वमाणीहिं उद्ध व्वमाणीहिं वेसमणे चेव णरवई अमरवइसण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स पुरओ महंआसा आसवरा उभओ पासि जागा णागवरा पिटुओ रहसंगल्लि । तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्त अब्भुग्गभिंगारे पग्गहियतालयंटे ऊसवियसेयच्छत्ते पवीइयवालवीयणीए सव्विड्ढीए सव्वजुतीए
सव्वबलेणं सम्बसमुदएणं सम्वादरेणं सव्वविभूईए सम्वविभूसाए सब संभमेगं [क्वचित्-"पगईहि णायहि तलायरेहि सव्वोरोहेहि") ध० क०७
में से कूणिए राया हारोत्थयसुकपरइयान हत्थक्वंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं
हयगय-रह-पवरजोहकलियार
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३७०
धम्मकहाणुओगे चउत्थो खंधो
सव्व पुष्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडियसद्दसणिणाएणं महया इड्ढोए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमगप्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हडुक्क-मुरव-मुअंग-दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए णयरीए मज्झमज्झणं णिग्गच्छइ। तए णं तस्त कूणियस्त रणो चंपाए णयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किदिवसिया करोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया बद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहि इटाहि कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि मणाभिरामाहि [वाचनान्तरे-“उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहि धण्णाहि मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहि हिययपल्हायणिज्जाहि मियमहरगंभीरगाहियाहि अट्टसइयाहिं अपुणरुत्ताहि"] हिययगमणिज्जाहि वाहि जयविजयमंगल पएहि अणवरयं अभिणंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी-"जय जय गंदा! जय जय भद्दा! भदं ते अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि, जिपमझे वसाहि। इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मण पाणं बहूईवासाई बहूई वाससयाई बहूई वाससहस्साई बहुई वाससयसहस्साई अणहसमग्गो हट्ठतु? परमाउं पालयाहि इट्ठजणसंपरिवुडो चंपाए णयरीए अणसिं च बहूणं गामा गर-णयर-खेड-कब्बड-दोणमह-मडब-पट्टण-आसम-निगम-संवाह-संनिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणभुंइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहराहि" ति कट्ट, जय जय सद्दे पउंजंति ।
३२२
कुणियस्स समोसरणे आगमणं पज्जुवासणा य तए णं से कुणिए राया भंभपारपुत्ते नयणमालासहस्पेहि पेच्छिज्जमाणे पेच्छिज्जमाणे हिययमालासहस्सेहि अभिणंदिज्जमाणे अभिनंदिज्जमाणे [क्वचित्-"उन्नइज्जमाणे"मणोरहन्मालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहि अभिथुव्वमाणे अभिथुव्वभाणे कंतिसोहगगुर्जाहं पत्थिज्जमाणे पत्थिज्जमाणे बहूणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे मंजुमंजुणा धोसेणं पडिबुरझमाणे पडिवुज्झमाणे भवगपंतिसहस्साई समइच्छमाणे समइच्छमाणे [वाचनान्तरे "संतीतलतालतुडिपगीयवाइयरवेणं महरेणं महरेणं जयपद्दघोसविसएणं मंजमंजुणा धोसेणं पडिबुज्झपाणे पडिबुज्नमाणे कंदरगिरिविवरकुहरगिरिवरपासादुड्ढघणभवणेदेव-कुलसिंघाडगतिगचच्चरचउक्कआरामुज्जाणकाणणसमप्पवप्पदेसभागे पडियासयसहस्ससंकुलं करते हयहेपिय-हत्थिगुलगलाइय-रहघण-घणसहमीसएणं महया कलकलरवेण य जणस्स महुरेणं पूर पंते सुगंधवरकुसुमचुण्णउन्विद्धवासरेणुकविलं नभं करते कालागुरुकुंदुरूक्कतुरुक्कधूवनिवहेणं जीवलोगमिव वासयंते समंतओ खुभियचक्कवालं पउरजणबालवुड्ढयपमुइयतुरियपहावियविउलाउलबोलबहलं नभं करते"] चंपाए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छिता जेणेव पुण्णभदे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समणस्स भगवो महावीरस्त अदूरसामंते छताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासिता आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ, ठविता आभि सेकफाओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता अवहट्ट, पंच रायकउहाई, तं जहा-खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयर्याण, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महाबोरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छड, तं जहा-१ सचिताणं दवाणं विभोसरणयाए २ अचित्ताणं दवाणं अविओसरणयाए ३ एकसाडियं उत्तरासंगकरणेणं ४ चक्खुएफासे अंजलिपग्गहेणं [हत्थिखंधविछंभणयाए] ५ मणसो एगतभावकरणेणं; समणं भगवं महात्रोरं तिक्खुत्तो आचाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसिता तिविहाए पज्जुवासणयाए पज्जुवापइ, तं जहा-काइयाए वाइयाए माणसियाए। काइयाए-ताव संकुइयग्नहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवा पइ। वाइपाए-जं जं भगवं वागरेइ 'एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते। असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुन्भे वदह अपडिकूलमाणे पज्जुवासइ। माणसियाए-महयासंवेगं जणइत्ता तिव्वधम्माणुरागरते पज्जुवासइ ।
: सुभद्दाइकणियभज्जाणं समोसरणे आगमणं पज्जवासणा य ३२३ तए णं ताओ सुभद्दामराओ देवीओ अंतोअंतेउरंसि व्हायाओ-जाव-पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ [वाचनान्तरे-“वाहु
यसुभगसोवत्थि बद्धमाणगपूपमाणगजय विजयमंगलसएहि अभियन्वमाणाओ कप्पाछेयायरियरइयसिरसाओ महयागंधद्धणि मुयंतीओ] बहुर्हि खुज्जाहिं चिलाईहिं वामणीहि वडभीहिं बब्बरीहिं पउसियाहि जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं चारुइणियाहिं लासियाहिं ललियाहि हिलोहि दमिलीहि आरबीहिं पुलिंदीहि पक्कणीहिं बहलाहिं मरुंडीहिं सबरोहिं पारसीहि णाणादेसीहि विदेसपरिमंडियाहि इंगिम्लियपत्थि विवाणियाहिं सदेसणवत्थग्गहियवसाहि चेडियाचक्कवालवरिसधरकं चुइज्जमहत्तरबंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ णिग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई
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कूणियस्स महावीरसमवसरणगमण-धम्मसवणपसंगो
३७१
छत्ता समणं भगवं महावाणयाए गायलट्ठीए ४ चक्लुप्फासे म
त
मंसित्ता कूणियरायं
दुरुहंति, दुरूहित्ता णियगपरियालसद्धि संपरिबुडाओ चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थयराइसेसे पासंति, पासित्ता पाडियक्कपाडियक्काइं जाणाई ठवेति, ठवित्ता जाहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता बहूहिं खुज्जाहि-जाव-परिक्खित्ताओ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति । तं जहा-१ सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए २ अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए ३ विणओणयाए गायलट्ठीए ४ चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं ५ मणसो एंगत्तिभावकरणेणं; समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आदाहिणपयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओकटु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिकडाओ पज्जुवासंति ।
भगवओ महावीरस्स धम्मदेसणा ३२४ तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स्स सुभद्दापमुहाणं देवीणं तोसे य महतिमहालियाए परिसाए इसि
परिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए अणेगसयवंदाए अणेग सयवंदपरिवाराए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमियबलबोरियतेयमाहप्पतिजुत्ते सारयणवत्थणियमहुरगंभोरकोंचणिग्घोसदुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खरसण्णिवाइयाए पुण्णरताए सव्वभासाणुगामिणोए सरस्सईए जोयणगोहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ अरिहा धम्म परिकहेइ। तेसि सम्वेसि आरियमणारियाणं अगिलाए धम्म आइक्खइ। सावि य णं अद्धमागहा भासा तेसि सव्वेसि आरियमणारियाणं अपणो सभासाए परिणामेणं परिणमइ । तं जहा-अत्थि लोए, अत्थि अलोए, एवं जीवा अजीवा बंधे मोक्खे पुण्णे पावे आसवे संवरे वेयणा णिज्जरा अरिहंता चक्कवट्टो बलदेवा वासुदेवा नरगा रइया तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ माया पिया रिसओ देवा देवलोया सिद्धी सिद्धा परिणिन्वाणे परिणिन्वया अस्थि पाणाइवाए-जाव-'आणाए आराहए भवति ।
परिसाए धम्मपडिवत्ती, सगिहगमणं च ३२५ तए णं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ-जाव-हियया उट्ठाए
उ8 इ, उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवण्णा । अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ गमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासी-"सुअक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पाक्यणे एवं सुपण्णत्ते सुभासिए सुविणीए सुभाचिए, अगुत्तरे ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, धम्म णं आइक्खमाणा तुन्भे उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह, णत्थि णं अण्णे केइ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं?" एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया।
कणियकयधम्मदेसणपसंसा सगिहगमणं च ३२६ तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव-हियए उट्ठाए उठेइ,
उट्टित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-"सुयक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे-जाव-किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं?" एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए।
सुभद्दाईणं कुणियभज्जाणं धम्मदेसणापसंसा सगिहगमणं च ३२७ तए णं ताओ सुभद्दापमुहाओ देवीओ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हवतुद्व-जाव-हिययाओ उढाए उठेति
उठेत्ता समणं भगवं नहावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासी"सुयक्खाए णं भंते ! निग्गंथे पावयणे-जाब-किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ?,” एवं वदित्ता जामेव दिसि पाउन्भूयाओ तामेव दिसि पडिगयाओ।
ओव० सु० १-३७ । १. यावत्करणानिर्दिष्टो ग्रन्थसन्दर्भ औपपातिकसूत्रादवगन्तव्यः ।
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२१. अम्मडपरिव्वायगकहाणयं
भगवइसुत्तम्मि अम्मडपरिवायगनिहेसो ३२८ तेगं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासीसया गिम्हकालसमयंसि एवं जहा उववाइए-जाव-आराहगा ।
बहुजणे णं भंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ-जाव-एवं परवेइ-“एवं खलु अम्मडे परिव्वायगे कंपिल्लपुरे नयरे घरसए० एवं जहा उववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया-जाब-बढप्पइण्णो अंतं काहह।
भगवई श०१४ उ०८।
को चेव णं अवहमाणे, से विनर
बहुप्पसणे णो चेव णं अबहप्पणा
दिण णो चेवणं अदिणे,
अम्बड-अन्तेवासिकहाणयं तेसि णं परिवायगाणं कप्पइ मागहए पत्थए जलस्त पडिग्गाहित्तए से वि य बहमाणे णो चेव णं अवहमाणे, से वि य थिमि
ओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से विय बहप्पसणे णो चेव णं अबहप्पसणे, से विय परिपूए णो चेव णं अपरिपए, से विय गं दिण्णे णो चेवणं अदिण्णे, से वि य विवितए णो चेव णं हत्थपायचरुचमसपक्खालणठाए सिणाइत्तए वा । तेसि गं परिव्वायगाणं कप्पा मगहए आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणे णो चेव णं अवहमाणे-जावणं अदिण्णे, से वि य हत्थपायचस्चमसपक्खालणठ्याए णो चेव णं पिबित्तए सिणाइत्तए था। ते णं परिचायगा एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाई परियाय पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे देवत्ताए उक्वतारो भवंति, तहि तेसिं गई तहि तेसि ठिई दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, सेसं तं चेव ।
सत्तण्हं सयाणं अम्मडसिस्साणं अडवीए संगहियउदगक्खओ ३२९ तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिवायगस्त सत्त अंतेवासिसयाई गिम्हकालप्तमयंसि जेट्ठामलमासंमि गंगाए महानईए उभओ
कूलेणं कंपिल्लपुराओ जयराओ पुरिमतालं जयरं संपट्ठिया विहाराए । तए णं तेसि परिव्वाचगाणं तीसे अगामियाए छिण्णोवायाए दोहमद्वाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुजमाणे झोणे ।
अदत्तअगहणवयं पालयाणं सत्तसयाणं परिव्वायगाणं संलहणापुव्वं समाहिमरणं देवलोगप्पत्ती य ३३० तए णं ते परिवाया झोणोदगा समाणा तण्हाए पारम्भमाणा पारब्भमाणा उदगदातारमपस्तमाणा अण्णमण्णं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं
वयासी"एवं खलु देवणुप्पिया! अम्ह इमीसे अगामि.ए-जाव-अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से उदए-जाव-झोणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमीले अगामियाए-जाव-अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए"त्ति कट्ट अरणमण्णस्स अंतिए एयमझें पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तीसे अगामियाए-जाव-अडवीए उदगदाता रस्स सवओ समंता मग्गणगवेसणं करेंति करेता उदगदाता मलभनाणा दोच्चंपि अण्णमण्णं सद्दवेत्ति रूदावेत्ता एवं क्यासी"इहण्णं देवाणुप्पिया! उदगदातारो णत्थि, तं णो खल कप्पइ, अम्ह अदिण्णं गिण्हित्तए, [क्वचित्-अदिण्णं भुंजितए] अदिण्णं साइज्जितए, तं मा णं अम्हे इणि आवइकालं पि अदिपणं गिण्हामो अदिण्णं साइज्जामो, मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सइ। तं सेयं खल अम्हं देवाणुप्पि ! दिंडयं पुडि ओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ छण्णालए य अंकुसए य केसरियाओ य पवितए य गणेत्ति ओ य छत्तए य वाहणाओ य पाउयाओ य धाउरत्ताओ एगते एडित्ता गंगं महाणइं ओगाहित्ता वालुयासंथा ए संयत्तिा संलेहणाझूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणवकखमाणाणं विहरित्तए"त्ति कटु, अण्णमण्णस्स अंलिए एन्टुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तिदंडए य-जाव-एगंते एडेति, एडेता गंगं महाणई ओगाहेंति ओगाहित्ता वालुआसंथारए संथरंति, सर्था त्ता वालु-संथा यं दुहिति, दुरुहित्ता पुरत्याभिमुहा संपलियंकनिसण्णा करयल -जाव-कटु एवं क्यासी--
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अम्मडपरिवाया कहाणयं
३७३
"नमो त्यु णं अरहंताणं-जाव-संपत्ताणं, नमो त्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-संपाविउकामस्स, नमो स्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। पुचि णं अम्हेहि अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए थूलगपाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, मुसावाए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणि अम्हे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामो जावज्जीवए, एवं-जाव-सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं कोहं माणं मायं लोहं पेज्जं दोसं कलहं अभक्खाणं पेसुण्णं परपरिवायं अरइरई मायामोसं मिच्छादसणसल्लं अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउम्विहं पि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए। जं पि य इमं सरीरं इठे कंतं पियं मणुण्णं मणाणं पेज्जं थेज्जं वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उन्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं बंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तियसिभियसंनिवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु-त्ति कटु एयंपि णं चरमेहिं ऊसासणीसासहि वोसिरामि" त्ति कटु संलेहणाझूसणाझूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकखमाणा विहरंति।। तए णं ते परिवाया बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेति छेदित्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तहि तेसि गई दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, परलोगस्स आराहगा, सेसं तं चेव ।
अम्मडस्स घरसयवसहि-आहारनिरूवणं ३३१ बहुजणे णं भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं परूवेइ--
"एवं खलु अम्मडे परिवायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ, से कहमेयं भंते ! एवं"! "गोयमा! जं णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-एवं परुवेइ-‘एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे-जाव-घरसए वसहि उवेई, सच्चे णं एसमठे अहं पिणं गोयमा! एवमाइक्खामि-जाव-एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए-जाव-वसहि उवेइ।" "से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए-जाव-वसहि उवेइ ?" "गोयमा! अम्मडस्स गं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए-जाव-विणीययाए छठंछंठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्निय पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहि अज्झवसाणेहि पसत्याहिं लेसाहि विसुजममाणीहि अन्नया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेवियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे णगरे घरसए-जाव-वसहि उवेइ, से तेणठेणं गोयमा! एवं वृच्चाईअम्मडे परिवायए कपिल्लपुरे णयरे घरसए-जाव-वसहि उवेइ"।
अम्मडस्स समणोवासयत्तं ३३२ पह णं भंते ! अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ?
णो इणठे समठे, गोयमा ! अम्मडे णं परिवायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे-जाव-अप्पाणं भावमाणे विहरइ, णवरं 'ऊसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी [क्वचित्-चियत्तघरतेउरपवेसो]' एयं णं वुच्चइ। अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए-जाव-परिग्गहे गवरं सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवए। अम्मडस्स णं परिवायगस्स णो कप्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं पि जलं सयराहं उत्तरित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं । अम्मडस्स णं णो कप्पइ सगडं वा, एवं तं चेव भाणियव्वं-जाव-णण्णत्थ एगाए गंगामट्टियाए । अम्मडस्स गं परिवायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इ वा अज्झोयरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिच्चे इ वा अणिसिट्टे इ वा अभिहडे इ वा ठइत्तए वा रइत्तए वा कंतारभत्ते इ वा दुन्भिक्खभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा। अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा-जाव-बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा। अम्मडस्स गं परिब्वायगस्स चउब्धिहे अणटादंडे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । तं जहा--अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे।
अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए-से वि य वहमाणए, णो चेव णं अवहमाणए-जाव-से वि य परिपूए, जो - चेव णं अपरिपूए; से वि य 'सावज्जे' त्ति काऊं णो चेव णं अणवज्जे, से वि ये 'जीवा' ति काउं णो चेव णं अजीव, से वि - य "दिण्णे' णो चेव णं अविष्णे, से वि य हत्थपायचरुचमसपक्खालणटयाए पिबित्तए वा, णो चेव णं सिणाइत्तए। अम्मडस्स कप्पड़
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३७४
धम्मकहाणुओगे चउत्यो खंधो
मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए-जाव-णो चेव णं अदिष्णे, से विय सिणाइत्तए णो चेवणं हत्यपायचरुचमसपक्खालणट्ठयाए पिवित्तए वा। अम्मडस्स णो कप्पइ अण्णउस्थिया वा अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाई बंदित्तए वा णभंसित्तए वा -जाव-पज्जुवासित्तए वा, णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाई वा।
अम्मडस्स देवभवो ३३३ "अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गरिछहिति ? कहि उववज्जिहिति ?"
"गोयमा! अम्मडे णं परिव्वायए उच्चावहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणे बहूई वासाई समणोवासयपरियायं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता संढि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उक्वज्जिहिति । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं अम्मडस्स वि देवस्स दस सागरोवमाई ठिई।
अम्मडस्स दढप्पइण्णभवनिरूवणे दढप्पइण्णस्स जम्मो ३३४ “से णं भंते ! अम्मडे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चहत्ता कहि गच्छिहिति कहि उव
वज्जिहिति ?"
अम्मडस्स दढपइण्णभवो गोयमा ! महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति अढाई दित्ताई वित्ताई वित्थिग्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणजायरूवरययाई आओगपओगंसपउत्ताई विच्छड्डियपउरभत्तपाणाई बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाई तहप्पगोरसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति । तए णं तस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अम्मापिईणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ। से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धमाणं राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमालपाणिपाए-जाव-ससिसोमाकारे ते पियदसणे सुरुवे दारए पयाहिति । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं काहिति, बिइयदिवसे चंदसूरदंसणियं काहिंति, छठे दिवसे जागरियं काहिति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते णिवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे दिवसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोणं गुणणि(फण्णं णामधेज्ज काहिति--'जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भत्थंसि चेव समाणंसि धम्मे दढपइण्णा तं होउ णं अम्हं दारए दढपइण्णे गामेणं'। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज करेहिति 'दढपइण्णे' ति। [पुस्तकान्तरगतोऽधिकः पाठः-तए णं तस्स दढपइण्णस्स अम्मापियरो अणुपुवेणं ठिइवडियं चंदसूरदरिसणं च जागरियं नामधेज्जकरणं परंगमणं च पचंकमणगं च पच्चक्खाणगं च जेमणगं च पिंडवद्धावणं च पजंपावणं च कण्णवेहणगं च संवच्छरपडिलेहणगं च चोलोवणयणं च उवणयणं च अण्णाणि य बहूणि गब्भादाणजम्मणमाइयाइं कोउयाई महया इड्ढिसक्कारसमुदएणं करिस्संति। तए णं से दढपइण्णे दारए पंचधाइपरिक्खित्ते, तं जहा--खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए अण्णाहि य बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहि विदेसपरिमंडियाहिं सदेसनेवच्छगहियवेसाहि विणीयाहिं इंगियचितियपत्थियक्यिाणियाहिं निउणकुसलाहिं चेडियाचक्कावालवरतरुणिवंदपरियालसंपरिवुडे वरिसधरकंचुइज्जमहत्तरगवंदपरिक्खिते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे साहरिज्जमाणे, अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे परिभुज्जमाणे उवनच्चिज्जमाणे उवनच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे उवगाइज्जमाणे उक्लालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवगहिज्जमाणे उवगहिज्जमाणे अवयासिज्जमाणे अवयासिज्जमाणे परियंदिज्जमाणे परियंदिज्जमाणे परिचु बिज्जमाणे परिचुंबिज्जमाणे रम्मसु मणिकुट्टिमतलेसु परंगिज्जमाणे परंगिज्जमाणे गिरिकंदरमल्लीणे विव चंपगवरपायवे निवायनिव्वाधायं सुहंसुहेणं परिवढिस्सइ।]
वढप्पइन्नस्स कलागहणं ३३५ तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं जाणिता सोभगंसि तिहिकरणदिवसणक्खत्तमुहत्तंप्ति कलायरियस्स उवहिति ।
तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ वावत्तरिकलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहाविहिति सिक्खाविहिति, तं जहा--लेहं गणियं रूवं णटुं गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं जूयं जणवायं
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अम्गडपरिव्वायग कहाणयं
पासगं अट्ठाक्यं पोरेकच्चं दगमट्टियं अण्णविहिं पाणविहिं [वत्थविहिं विलेवणविहिं] सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं गीइयं सिलोयं हिरण्णजुत्ती सुवण्णजुत्ती गंधजुत्ती चुण्णजुत्ती आभरणविही तरुणीपडिकम्म इथिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्खणं चक्कलक्खणं छत्तलक्खणं चम्मलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं वत्थुविज्जं खंधारमाणं नगरमाणं वत्थुनिवेसणं वूहं पडिवूहं चारं पडिचारं चक्कवहं गरुलवूहं सगडवूहं जुद्धं निजुद्धं जुद्धाइजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं ईसत्थं छरुप्पवाहं धणुव्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं वट्टखेड्ड मुत्ताखेडं णालियाखेडं पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सउणश्यमिति बावत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति। तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेहिति सम्माहिति, सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति, दलइत्ता पडिविसहिति ।
पत्तजुब्वणस्स दढपइन्नस्स वेरग्गं ३३६ तए णं से दढपइण्णे दारए बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्टारसदेसीभासाविसारए गीयर ई गंधव्वणट्टकुसले हयजोही गय
जोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए अलंभोगसमत्थे यावि भविस्सइ । तए णं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो बावत्तरिकलापंडियं-जाव-अलंभोगसमत्थं वियाणित्ता विउलेहि अण्णभोहि पाणभोर्गोह लेणभोहिं वत्थभोगेहि सयणभोहिं कामभोहिं उवणिमंतेहिति । तए णं से दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहि अण्णभोहि-जाव-सयणभोहि णो सज्जिहिति णो रज्जिहिति णो गिझिहिति णो मुज्झिहिति णो अज्झोक्वज्जिहिति । से जहा णामए उप्पले इ वा पउमे इ वा कुसुमे इ वा नलिणे इ वा सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरीए इ वा महापोंडरीए इ वा सयपत्ते इ वा सहस्सपत्ते इ वा सयसहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संवुड्ढे गोवलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपइण्णे विदारए कामेहि जाए भोहि संवुड्ढे णोवलिप्पिहिति कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिपिहिति मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं।
३३७
दढप्पइन्नस्स पव्वज्जा-सिद्धिगमणनिरूवणं से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहि बुझिहिति, बुझिहित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए-जाव-गुत्तबंभयारी। तस्स णं भगवंतस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स अणते अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जहिति। तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियागं जाणिहिति पासिहिति, तं जहा--आगई गई ठिई चवणं उववायं तक्कं पच्छाकडं पुरेकडं मणो माणसियं खइयं भुत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणोक्यकायजोग वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाण सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ । तए णं से दढपइण्णे केवली बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सटाए कोरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्ठसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं [वित्तीए माणावमाणणाओ] परेहि हीलणाओ खिसणाओ निंदणाओ गरहणाओ तालणाओ तज्जणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहि उस्सासणिस्सासेहि सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहिति परिणिव्याहिति सम्वदुवखाणमंतं करेहिति ।
ओव० सु० ३९-४०।
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२२. उदायी हस्थिराया भूयाणंदे य
रायगिहे उदायी, हत्थिराया भूयाणंदे य ३३८ रायगिहे-जाव-एवं क्यासी---उदायी णं भंते ! हस्थिराया कओहितो अणंतरं उव्वद्वित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने?
गोयमा ! असुरकुमारेहितो देवेहितो अणंतरं उव्वट्टिता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने । उदायी णं भंते ! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहि उववज्जिहिति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमद्वितियंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से गं भंते ! तओहितो अणंतरं उब्वट्टित्ता कहि गच्छिहिति ? कहि उक्वज्जिहिति ? गोयमा ! महाविबेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति । हत्थिराया भूयाणंदे भूयाणंदे णं भंते ! हत्थिराया कओहितो अणंतरं उध्वट्टित्ता भूयाणंदे हत्थिरायत्ताए उववन्ने ? एवं जहेव उदायी-जाव-अंतं काहिति।
२३. मददुयसमणोवासयकहा
रायगिहे अन्नउत्थिया मदुओ समणोवासओ य ३४० तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था-वण्णओ गुणसिलए चेइए, वन्नओ-जाव-पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स
चेतियस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा-कालोदाई सेलोदाई एवं जहा सत्तमसए अन्नउत्थिउद्देसए-जाव-से कहमेयं मन्ने एवं?
भगवओ महावीरस्स रायगिहे समोसरणं ३४१ तत्थ गं रायगिहे नयरे मद्द ए नाम समोवासए परिवसइ, अड्ढे-जाव-अपरिभूए अभिगयजीवाजीवे-जाव-विहरइ । तए णं समणे
भगवं महावीरे अन्नया कयाइ । पुष्वाणुपुचि चरमाणे-जाव-समोसढे, परिसा-जाव-पज्जुवासइ ।
समवसरणे गच्छमाणस्स मयस्स अन्नउत्थिएहि सह अस्थिकायविसओ संलावो ३४२ तए णं मदुदुए समणोवासए इमोसे कहाए लद्धठे समाणे हद्वतुह-जाव-हियए हाए-जाव-सरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, सओ
गिहाओ पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं रायगिहं नयरं-जाव-निग्गच्छइ, निगच्छित्ता तेसि अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं ते अन्नउत्थिया मदुयं सममोवासयं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासंति, पासित्ता अन्नमन्नं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी"एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमा कहा अविउप्पकडा इमं च णं मददुए समणोवासए अम्हं अदूरसामंतेणं वीईवयइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं मदुयं समणोवासगं एयमलैं पुच्छित्तए" त्ति कट्ट अन्नमन्नस्स अंतियं एयमलैं पडिसुणेति, अन्नमन्नस्स एयमढें पडिसुणेत्ता जेणेव मढुए समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मददुयं समणोवासगं एवं वयासी-- एवं खलु मदुया ! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे णायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेइ जहा सत्तमे सए अन्नउत्थियउद्देसए-जावसे कहमेयं मया ! एवं ? तए णं से मददुए समणोवासए ते अन्नउत्थिए एवं क्यासी-जइ कज्ज कज्जइ जाणामो पासामो, अह कज्जं न कज्जइ न जाणामो न पासामो।
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मद्यसमणोवासयकहा
तए णं ते अन्नउत्थिया मद्यं समणोवासयं एवं क्यासी-केस णं तुम मदया! समणोवासगाणं भवसि, जे गं तुम एयमढें न जाणसि न पाससि? तए णं से मददुए समणोवासए ते अन्नउत्थिए एवं क्यासी--अस्थि णं आउसो! बाउयाए वाइ? हंता मदुआ! वाइ । तुम्भे णं आउसो! वाउयायस्स वायमाणस्स रूवं पासह ? णो इणठे समझें। अस्थि णं आउसो! घाणसहगया पोग्गला? हंता अस्थि, तुब्भ णं आउसो! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रूवं पासह ? णो इणठे समठे। अस्थि णं आउसो! अरणिसहगए अगणिकाए ? हंता अस्थि, तुम्भ णं आउसो ! अरणिसहगयस्स अगणिकायस्स एवं पासह ? णो इणठे समठे। अस्थि णं आउसो! समुदस्स पारगयाई रुवाई? हंता अत्थि, तुम्भे णं आउसो! समुहस्स पारगयाई रूवाइं पासह ? णो इणढे समठे, अस्थि णं आउसो! देवलोगगयाई रूवाई? हंता अस्थि, तुब्भ णं आउसो। देवलोगगयाई रुवाई पासह ? णो इणठे समठे, एवामेव आउसो। अहं वा तुम्भ वा अन्नो वा छउमत्थो जइ जो जं न जाणइन पासइ तं सव्वं में भवइ एवं भे सुबहए लोए ण भविस्सतीति कट्ट ते अन्नउत्थिए एवं पडिहणइ, एवं पडिहणिता जेणेव गुणसिलए उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं-जाव-पज्जुवासइ।
भगवया महावीरण मद्दयपसंसाकरणाइ ३४३ महया ! 'दि समणे भगवं महावीरे मह यं समणोवासयं एवं बयासी-सुठ्ठ णं मद्दया ! तुमं ते अन्नउस्थिए एवं क्यासी, साहुणं
मह या! तुमं ते अन्नउत्थिए एवं क्यासी, जे णं मद्द या। अह्र वा हेवा पसिणं वा वागरणं वा अन्नायं अदिळें अस्सुयं अमयं अविण्णायं बहुजणमझे आघवेइ पनवेइ-जाव-उवदंसेइ, से णं अरिहंताणं आसायणाए वट्टइ, अरिहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए वट्टइ, केवलीणं आसायणाए वट्टइ, केवलिपन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए वट्टइ, तं सुठ्ठ णं तुमं मवदुया ! ते अन्नउत्थिए एवं क्यासी, साहु णं तुम मदुया ! -जाव-एवं क्यासी। तए णं मददुए समणोवासए समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, बंदित्ता
नमंसित्ता णच्चासन्ने-जाव-पज्जुवासइ। ३४४ तए णं समणे भगवं महावीरे मयस्स समणोवासगस्स तीसे य -जाव-परिसा पडिगया। ३४५ तए णं मददुए समणोवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स-जाव-निसम्म हट्ठतुठे पसिणाई पुच्छइ, पसिणाई पुच्छित्ता अट्ठाइं परियादियह,
परियादिइत्ता उट्ठाए उठेइ उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदिता नमसित्ता-जाव-पडिगए ।
मयस्स अणंतरभवनिरूवणं ३४६ 'भंते !'त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-पभू णं भंते । मदुए समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं-जाव-पव्व इत्तए? णो इणठे, समठे एवं जहेव संखे तहेव अरुणाभे-जाव-अंतं काहिइ ।
भगवई० श०१८ उ०७ ।
घ.क. ४८
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पंचमी खंधो frugaकहाणगाणि
अज्झयणा
१. सत्तहं पवयण निण्हवाणं नाम-धम्मायरिय-नगरनिद्देसो
२. जमालिनिण्हव कहा णयं
३. आजीवियतित्थयर - गोसालय निण्हव कहाणयं
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१. सत्तण्हं पवयणनिण्हवाणं नाम-धम्मायरिय-नगरनिद्देसो
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थंसि सस पवयणनिण्हवा पन्नत्ता, तं जहा-१ बहुरता २ जीवपएसिया ३ अवत्तिता ४ सामुच्छेहता ५ दोकिरिता ६ तेरासिता ७ अबद्धिता । एएसि णं सत्तण्हं पवयणनिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तं जहा- १ जमाली २ तीसगुत्ते ३ आसाढे ४ आसमिते ५ गंगे ६ छलुए ७ गोट्ठामाहिले। एएसि णं सत्तण्हं पवयणनिण्हगाणं सत्तुप्पत्तिनगरा होत्था, तं जहा१ सावत्थी २ उसमपुर ३ सेतविता ४-५ मिहिलमुल्लगातीरं ६ पुरिमंतरंजि ७ वसपुर णिहगउप्पत्तिनगराई ॥१॥
(ठाणंगसुत्त-सत्तमं ठाणं)
२. जमालिनिण्हवकहाणयं
खत्तियकुंडे जमालिकुमारो २ तस्स गं माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स पच्चत्थिमे गं एत्थ गं खत्तियकुंडग्गामे नामं नयरे होत्था-वणओ । तत्थ णं खत्तिवकुंडग्गामे
नयरे जमाली नाम खत्तियकुमारे परिवसइ--अड्ढे दित्ते-जाव-बहुजणस्स अपरिभूते, उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमस्थरहि बत्तीसतिबद्धेहि णाडएहि वरतरुणीसंपउत्तेहि उवनच्चिज्जमाणे-उवनच्चिज्जमाणे, उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे, उवलालिज्जमाणेउवलालिज्जमाणे, पाउस-वासारत्त-सरद-हेमंत-वसंत-गिम्हपज्जते छप्पि उ जहाविभवेणं माणेमाणे, कालं गालेमाणे, इट्ठ सद्द-फरिसरस-रूब-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ।
माहणकुंडे महावीरविहारो। ३ तए णं खत्तियकुण्डग्गामे नयरे सिंघाडग-तिक-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु [महया जणसद्दे इ वा जणवहे इ वा जणबोले
इ वा जणकलकले इ वा जगुम्मी इ वा जणुक्कलिया इ वा जणसश्णिवाए इ वा] बहुजगो अग्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ०, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ, एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे-जाव-सब्वष्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।
तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया ! तहाल्वाणं अरहताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए जहा ओक्वाइए-जाव-एगाभिमुहे खत्तियकुण्डग्गामं नयरं मझमज्झणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए, तेणेव उवागच्छंति एवं जहा ओववाइए-जाव-तिविहाए पज्जुवासणयाए पज्जुवासंति ।
४ तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स तं महया जणसई वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अपमेयाहवे
अज्मथिए-जाय-संकप्पे समुप्पज्जित्था--किपणं अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे । वा, खंदमहे इवा, मुमुबमहेषा , नागमहे
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
इवा, जक्खमहे इ वा, भूयमहे इ वा, कूवमहे इ वा, तडागमहे इ वा , नईमहे इ वा, दहमहे इ वा, पब्वयमहे इ वा, रूक्खमहे इवा, चेइयमहे इक, थूभमहे इ वा, जग्णं एते बहवे, उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, णाया, कोरवा, खत्तिया, खत्तियपुत्ता, भडा, भडपुत्ता, जोहा पसत्यारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अग्गे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेगावइसेणावइपुत्ता-सत्यवाहप्पभितयो व्हाया करबलिकम्मा जहा ओक्वाइए-जाव-खत्तियकुंडग्गामे नयरे मझमझेणं निग्गछंति ?-एवं संपेहेइ, संपेहेता कंचुइ-पुरसं सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वदासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा -जाव-निग्गच्छति ?
- तए णं से कंचुइ-पुरिसे जमालिगा खत्तियकुमारेणं एवं बुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अलि कट्ट जमालि खत्तियकुमारं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेता एवं वधासीनो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नवरे इंदमहे इ वा-जाव-निग्गच्छति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे आदिगरे-जाव-सव्वग्णू सवदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नपरस्प बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गह ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा, भोगा-जाव-निग्गच्छति ।
जमालिकुमारस्स महावीरपज्जुवासणा .. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइ-पुरिसस्स अंतियं एयमढें सोच्चा निसम्म हट्ठतुळे कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासीखिप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! चाउरघंट आसरहं जुत्तामेव उवढवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पचप्पिणह ।। तए णं ते कोडंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठति, उवट्ठवेता तमाणत्तिय पच्चप्पिणंति। तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मज्जगधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता व्हाए कयबलिकम्मे-जाव-चंदणुक्खित्तगायसरीरे सवालंकारविभूपिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिमित्ता जेगेत्र बाहिरिया उबढाणसाला, जेमेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं दुरु हइ, दुरुहिता सकोरेंटमल्लदा नेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, महया भडचडकरपहकरबंदपरिक्खित्ते खत्तिरकुंडग्गाम नगरं मझममेणं निग्गन्छइ, निगच्छिता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे, जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागरिछत्ता तुरए निगिण्हेइ, निगिण्हेता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहिता पुप्फतंबोलाउहमादियं पाहणाओ य विसज्जेति, विसज्जेता एगलाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेता आयंते चोक्खे परमसुइन्भूए अंजलिमउलियहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सणं भावं महाबोरं तितो आपाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नम इ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्ज वासणाए पज्जुवासइ ।
महावीरस्स धम्मकहा तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्प खत्तियकुमारस्स, तोसे य महतिमहालियाए इसिप रसाए [मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अगसयाए अणेगसबवंदाए अणेगस पवंदपरियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमियबलवीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवयणिय-प्रहरगंभीर-कोचणिग्धोस-दंदुभिस्सर उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे सना इग्गाए अगरलाए अमम्मणाए सुबत्तक्खरसण्णिवाइयाए पुण्ण रत्ताए सवभासाणगामिणीए सरस्सईए जोयणणोहारिणा सरणं अद्धभागहाए भासाए भासइ) धम्म परिकहेइ -जाव-परिसा पडिगया ।
पा
जमालिकमारस्स पब्वज्जासंकप्पो तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्प अंतिए धाम सोच्चा निसम्म हटुतुचितमाणंदिए [गंदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसबसविसप्पमाण] हियए उट्ठाए उदुइ, उर्दुत्ता समगं भगवं महावीरं तिबुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्त। वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसिता एवं वधासी--"सहामि णं भंते ! यिं पावणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयगं, रोएमि गं भते ! निग्गंथं पावणं, अब्भुमि गं भंते ! निगंथं पावयणं, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अक्तिहमेयं भंते ! असंदिद्वमेयं भंते ! इच्छिपमेयं भंते ! पडिमिछपमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छिपमेयं भंते ! ]--से जहेयं तुन्भे वदह, जं नवरं--देवाणुपिया ! अम्मापियरी आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुपियाणं अंतियं मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।।
भते ! यि
पण, अब्भुमि गं भंते
द्वमेयं भंते !
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जमालिनिण्हवकहाणगं
तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ते समाणे हद्रतटू समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंट आसरहं दुरुहइ, दुरुहिता समणस्स भगवओं महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदा मेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगरपहकरवंद परिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागन्छइ, उवागविछत्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मझमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिहइ, निगिहित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरु हद, पच्चोरुहित्ता जेणेव अभितरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मा पियरो जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु अम्मताओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते, से वि ५ मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए अभिरुइए।
तए णं तं जमालि खत्तियकुमार अम्मापियरो एवं क्यासी-धन्ने सि णं तुम जाया ! कयत्थे सि णं तुम जाया ! कयपुण्णे सि गं तुम जाया ! कयलक्खणे सि णं तुम जाया ! जण तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्त अंतियं धम्मे निसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए अभिरुइए ।
तए ण से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो दोच्वं पि एवं क्यासी--एवं खलु मए अम्मताओ ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए । तए णं अहं अम्मताओ ! संसारभउविग्गे, भीते जम्मण-मरणेणं, तं इच्छामि णं अम्मताओ ! तुब्र्भेहिं अब्भगुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
अम्मापियरेहि पव्वज्जागहणणिवारणं जमालिणा य समत्थणं तए णं सा जमालिस खत्तियकुमारस्स माता तं अणिठें अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं अस्सुयपुत्वं गिरं सोच्चा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलंतचिलिणगत्ता, सोगभरपवेदियंगमंगी नित्तया दोणविमणवयणा, करयलमलिय व्व कमलमाला, तक्खणओलुग्गदुब्बल सरीरलायण्णसुन्ननिच्छाया, गसिरीया पसिढिल मूसापडं खुष्णियसंवृष्णियधवलवलय-पब्भ?उत्तरिज्जा, मुज्छावसण?चेतगरुई, सुकुमालविकिण्णकेसहत्था, परसुणियत्त व चंपगलया, निव्वत्तमहे व इंदलट्ठी, विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि धसत्ति सव्वंहिं संनिवडिया । तए ण सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचभिंगारमुहविणिग्गय-सीयलजल-विमलधार-परिसिच्चमाणनिव्वावियगायलट्ठी, उक्खेवय-तालियंट-वीयणगजणियवाएणं, सफुसिएणं अंतउरपरपरिजण आसासिया समाणी रोयमाणी कंदमाणी सोयमाणी विलवमाणी जमालिखत्तियकुमारं एवं वयासी--"तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इठे कंते पिए मणुणे मणामे थेज वेसासिए संमए बहुमए अगुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणन्भूए जीविऊसविए हिययनंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग ! पुण पासणयाए ? तं नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो तुभं खणमवि विप्पयोगं, तं अच्छाहि ताव जाया ! -जाव-ताव अम्हे जीवामो तओ पच्छा अम्मेहि कालगहि समाणेहि परिणयवए वढियकुलवंसतंतुकज्जम्मि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओं अणगारियं पव्वइहिसि । तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं व्यासी--"तहा वि णं तं अम्मताओ ! जणं तुब्भे मम एवं ववह-तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इठे कते तं चेव-जाव-पव्वइहिसि, एवं खल अम्मताओ ! माणुस्सए भवे अणेगजाइ-जरा-मरण-रोगसारीरमाणसपकामदुक्खवेयण-वसणसतोक्दवाभिभूए अधुवे अणितिए असासए संझन्भरागसरिसे जलबुब्बुदसमाणे कुसग्गजबिंदुसन्निभे सुविणदसणोवमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडण-पडण-विद्धसणधम्मे, पुचि वा पच्छा वा अवस्तवियजहियव्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मताओ ! के पुब्धि गमणयाए, के पच्छा गमणयाए ? तं इच्छामि णं अम्मताओ ! तुहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पच्वइत्तए । तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरी एवं क्यासी--"इमं च ते जाया ! सुरीरगं पविसिटुरूवं लक्खण-वंजण-गुणोववेयं उत्तमबल-बोरियसत्तजुत्त विष्णाणवियक्खणं ससोहग्गगुणसमूसियं अभिजायमहक्खमं विविहवाहि-रोगरहियं, निरुवय-उदत्त-लट्ठपंचिंदियपडु पढमजोवणत्थं अणेग उत्तमगुर्लाह संजुत्तं, तं अगहोहि ताव जाया ! नियगसरोररूव-सोहग्ग-जोधणगुणे, तओ पच्छा अणुभूय नियगसरीररूव-सोहग्ग-जोवणगुण अम्हेहि कालगएहि समाहिं परिणयवए वढियकुलवंसतंतुकज्जम्मि निरक्यक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भक्त्तिा अगाराओ अणगारियं पव्व इहिसि ।
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं व्यासी--तहा वि णं तं अम्मताओ ! जणं तुम्भे ममं एवं वदह---इमं च गं ते जाया ! सरीरगं तं चैव-जाव-पव्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ ! माणुस्सगं सरीरं दुक्खाययणं, विविहवाहिसयसंनिकेतं, अट्ठियकट्टियं, छिराण्हारुजाल-ओणद्धसंपिणद्धं, मट्टियभंडं व दुब्बलं, असुइसंकिलिटुं, अणिटुक्यि-सव्व कालसंठप्पयं, जरा कुणिमजज्जरघरं व सडण-पडण-विद्धंसणधम्म, पुटिव वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियध्वं भविस्सइ । से केस ण जाणइ अम्मताओ ! के पुवि गमणयाए, के पच्छा गमणयाए ? तं इच्छामि गं अम्मताओ ! तुब्भेहि अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्य इत्तए ।
१० तए गं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी--इमाओ य ते जाया ! विपुलकुलबालियाओ कलाकुसल-सव्य काललालिय-सुहोचियाओ, मद्दवगुणजुत्त-निउणविणओवयारपंडिय-दियक्खणाओ, मंजुलमियमहुरभणिय-विहसिय-विप्पेक्खिय-गति-विलास
शाओ मजलामियमहरभणयमवहाँसय विपक्षिय-मातभवलासचिट्ठियविसारदाओ, अविकलकुल-सीलसालिणीओ, विसुद्धकुलवंससंताणतंतुवद्धण-पगब्भवयभाविणीओ, मणाणुकूलहियइच्छियाओ, अट्ठ तुज्झ गुणवल्लहाओ उत्तमाओ, निच्चं भावाणुरत्तसव्वंगसुंदरीओ। तं भुंजाहि ताव जाया ! एताहिं सद्धि विउले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा भुत्तभोगी विसय-विगयवोच्छिष्ण-कोउहल्ले अम्हेहिं कालगएहिं समाहिं परिणयवए वढियकुलवंसतंतुकज्जम्मि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भक्त्तिा अगाराओ अणगारियं पव्व इहिसि ।
तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी--तहा वि णं तं अम्मताओ ! जण्णं तुब्भे मम एयं बदह--इमाओ ते जाया ! विपुलकुलबालियाओ-जाव-पव्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ ! माणुस्सगा कामभोगा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणगवंत-पित्त-यूय-सुक्क-सोणिय-समुन्भवा, अमणुण्णदुरुय-मुत्त-पूइय-पुरीसपुण्णा, मयगंधुस्सास-असुभनिस्सासउब्वेयणगा, बीभच्छा, अप्पकालिया, लहुसगा, कलमलाहिवासदुक्खा बहुजणसाहारणा, परिकिलेसकिच्छदुक्खसज्झा, अबुहजणणिसेविया, सदा साहुगरहणिज्जा, अणंतसंसारवद्धणा, कडुगफलविवागा चुडल्लि व्व अमुच्चमाणा, दुक्खाणुबंधिणो, सिद्धिगमणविग्घा । से केस णं जाणइ अम्मताओ! के पुवि गमणयाए ? के पच्छा गमण याए ? तं इच्छामि णं अम्मलाओ ! तुर्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पच्वइत्तए ।
हए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं क्यासी--इमे य ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य, सुवणे य, कंसे य, दूसे य, विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्ज, अलाहित-जाव-आसतमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं, पकाम भोत्तु पकामं परिभाएउं, तं अणुहोहि ताव जाया ! विउले माणुस्सए इड्ढि-सक्कारसमुदए, तओ पच्छा अणहयकल्लाणे, वढियकुलवंस तंतुकज्जम्मि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिसि ।
हए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी-तहा वि णं तं अम्मताओ ! जण्णं तुम्भे ममं एवं वदह--इमं च ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जया गए-जाव-पध्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ ! हिरण्णे य, सुवष्णे य-जाव-सावएज्जे अग्गिसाहिए, चोरसाहिए, रायसाहिए, मच्च साहिए, दाइयसाहिए, अग्गिसामणे, चोरसाणे, रायसामण्णे, मच्चसामण्णे, दाइयसामण्णे, अधुवे, अणितिए, असासए, पुब्वि वा पच्छा वा अवस्सविष्पजहियवे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मताओ ! के पुव्वि गमणयाए, के पच्छा गमणयाए ? तं इच्छामि गं अम्मताओ ! तुहि अन्भणुष्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंनियं म भक्त्तिा अगाराओ अणगारियं पध्वइत्तए ।
१२ तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मताओ जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि बहूहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि
य विण्णवणाहि य, आधवेत्तए वा पण्णवेत्तए वा सण्णवेत्तए वा विण्णवेत्तए वा, ताहे विसय पडिकूलाहि संजमभयुब्वेषणकरोहिं पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं क्यासी--
एवं खलु जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अम्तिहे अविसंधि सम्बदुक्खप्पहीणमग्गे, एत्यं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति ।
अहीव एगंतबिट्ठीए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निस्साए, गंगा वा महानदी पडिसोय. गमणयाए, महासमुद्दो वा भुयाहि दुत्तरो, तिक्खं कमियव्वं, गरुयं लंबेयस्वं, असिधारगं वयं चरियव्वं ।
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जमालिनिण्हवकहाणगं
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नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं आहाकम्मिए इ वा, उद्देसिए इ वा, मिस्सजाए इवा, अझोयरए इवा, पूइए इ वा, कोते इ दा, पामिच्चे इ वा, अच्छेज्जे, इवा, अणिस? इ वा, अभिहलेइ वा, कतारभत्ते इ वा, दुडिभक्खभत्ते इ वा, गिलाणभत्ते इ वा, वद्दलियाभत्ते इ वा, पाहुणगभत्ते इ वा, सेज्जायरपिंडे इ वा, रायपिडे इवा, मूलभोयणे इ वा, कंदभोयणे इ वा, फलभोयणे इ वा, बीयभोयणे इ वा, हरियभोयणे इवा, भोत्तए वा पायए वा । तुम सि च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेद णं दुहसमुचिए, नालं सीयं, नालं उण्हं, नालं खुहा, नालं पिवासा, नालं चोरा, नालं कला, नालंदंसा, नालं मसगा, नालं वाइय-पित्तिय-सेभिय-सन्निवाइए विविहे रोगायंके, परिस्सहोवसग्गे उदिष्णे अहियासेत्तए । तं नो खल जाया ! अग्हे इच्छामो तुम्भं खणमवि विपयोगं तं अच्छाहि ताव जाया !-जाव-ताव अम्हे जीवामो तओ पच्छा अम्हेहि कालगएहि समाहिं परिणयवए, वढियकुलवंसतंतुकज्जभिम निरक्यक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिसि । तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी--तहा वि णं तं अम्मताओ ! जणं तुम्भे ममं एवं वदह-एवं खलु जाया ! निग्गंथे पावणे सच्चे अणुत्तरे केवले तं चेत-जाव-पव्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ ! निग्गंथे पाक्यणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगपरंमुहाणं विसयतिसियाणं दुरणुचरे पागयजणस्स, धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो खलु एत्थं किंचि वि दुक्करं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्मताओ ! तुब्र्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
अम्मापियरेहि पव्वज्जाणुमोयणं १३ तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य, विमयपडिकूलाहि य बहूहि आघवणाहि य
पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य आघवेत्तए वा पण्णवेत्तए वा सण्णवेत्तए वा विष्णवेत्तए वा, ताहे अकामाई चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमण्णित्था ।
पव्वज्जापुवकिच्चं १४ तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया !
खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भितरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओलितं जहा ओवकाइए-जाव-सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति । तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह । तए णं ते कोडुबियपुरिसा तहेव -जाव-उवट्ठति । तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो सोहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहं निसीयाति, निसीयावेत्ता अट्ठसएणं सोवणियाणं कलसाणं, अटुसएणं राष्पमयाणं कलसाणं, अट्टसएणं मणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसएणं सुवण्णरुप्पामयाणं कलसाणं, अट्ठसएणं सुवण्णमणियमयाणं कलसाणं, अट्ठसएणं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसएणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसएणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सर्वविभूईए सवविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुष्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडियसद्द-सण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरिखरमुहिहडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं महया-महया निक्खमणाभिसेगेणं अभिसिचंति अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धाति, वदावेत्ता एवं क्यासी-भण जाया ! किं देमो ? किं पय
च्छामो ? किणा व ते अट्ठो ? १५ तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी--इच्छामि णं अम्मताओ ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च
आणिय, कासवगं च सद्दावियं । ... तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया !
सिरिघराओ तिणि सयसहस्साई गहाय दोहिं सबसहस्सेहि कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणेह, सयसहस्सेणं कासवगं ... सद्दावेह । ५० क०४६
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धम्मकाणुओगे पंचमी धो
तए णं ते कोडु बियपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिकट्टू एवं सामी तहसाणाए बिनएवं चपणं पडिसुणेति परिसुता खियामेव सिरिधराजो तिष्णि सयसहस्साई हिंति, गिहिता दोहि सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणेंति, सयसहस्सेणं कासवर्ग सहावेति ।
१६ तए णं से कासव जमालिस प्रतियकुमारस्स पिठणा कोयिपुरिसेहि सहाविए समागे न हाए कलिकम्मे कय-कोयमंगलाष्पदेसाई मंगलाई स्थाई पर परिहिए अप्यमहन्याभरणाकिटसरी, जेणेव जातियकुमारस्स पिया तेव बाग उजागतिकरसपरिमहि दसनहं सिरसावलं सत्य अंक मालिस प्रतियकुमारस्त विवरं जएग विजएणं वद्धावे, वद्धावत्ता एवं व्यासी--संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए करणिज्जं ?
तए णं से जमालिस प्रतिकुमाररस पिया तं कासव एवं क्यासी तुमं देवाविया ! जमालिस प्रतियकुमारस्स परे जसे चउरंगुतवज्जे मिणपाओगे अगकेसे कप्पेहि ।
तए गं से कासव
प्रतिकुमाररस पिणा एवं वृत्तं समाणे हतु करयपरिमाहियं इस सिरसा मत्चए अंजलि कट्टु एवं सामी ! तहत्तरणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्थपादे पक्खालेs, पक्खालेता गुडाए अपनाए पोली हंबंध बंधित जमालिस खतियकुमारसा परे असे
रंग
कप्पेड़ |
१७ तए णं सा जमालिस्म खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गके से परिच्छइ, पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदणं पक्खालेs, पखाला अहं वह गंधेहि मल्लेहि अच्चेति, अच्वेता सुद्धे वरचे बंध बंधिता रमणकरंडतिपरित परिवविता हारवारिधार - सिंदुवार छिष्णमुत्ता वलिप्पगासाई सुयवियोगदूसहाई अंसूइं विणिम्मुयमाणी - विणिम्मुयमाणी एवं क्यासी -- एस णं अम्हं जमालिस खत्तियकुमारस्स बहूसु तिहीसु य पव्वणीसु य उस्सवेसु य जण्णेसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्ततीति कद्दू कससगमूले हवेति ।
१८ तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मापियरो दोच्चं पि उत्तरावक्कमणं सोहासणं रयावैति, रावेत्ता जमालिस खत्तिय - कुमारस्तवापहि फलतेहि व्हावेत व्हावेत्ता पहलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गाया हेति तता सर गोसीसचंदणं गायाई अणुलिपति, कर्णालपित्ता नासा निस्सासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्ण- फरिमजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कम्मं महरिहं हंसणपाडगं परिहिति परिहिता हार निति पिणदेसा अहारं पिति पिता एमाल पिद्धति, पित्ता मुत्तार्वाल पिणोंति, पिणद्धेत्ता रयणावलि पिणद्धेति, पिणद्धेता एवं अंगथाई केयूराई कडगाई तुडियाई कडित्तगं दत्तमुद्दातयं छतमं मुवि कंठमुवि पालवं कुंडला चूडामणि चितं रयणसंकटं मउ पद्धति कि बहुणा ? - वेदिम यूरिन संघातिनेणं चणिं मल्ले कम्पeer [fer अलंकिय-विभूतियं करेति ।
१९ तए से अमालिस खलियकुमारस्स पिया को बियपुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं उदासी खियामेव भो देवापिया ! अखंभसयस णिविट्ठ, लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रायप्पसेणइज्जे विमाणवण्णओ-जाव-मणिरयणघंटियाजा परिक्खित्तं पुरिससहस्वाणि सीयं उट्ठबेह, उववेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चचणिह । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा- जाव-पच्चपिनंति ।
२० से जाली खत्तियकुमारे केसालंकारेनं बस्थालंकारेणं, मल्लालंकारेणं, आभरणालंकारेणं-चडलिहे अलंकारेण अलंकारिए समापणिकारे सीहासाओं अन् असा सीपं अगुप्पदा हिणीकरेमाणे सीयं दुरुह दुरुहिता सीहासवरंसि पुरत्याभिमु ससि ।
२१ स णं तस्स जमा सिस्स खत्तिक्कुमारस्त माता व्हाया कययलिकम्मा-साय-अध्यमहन्याभरणाकिवरी हंसलवणं पडसाद गहाय सीयं अणुग्भ्यः हिणीकरेमाणी सीयं पुरुहद, दुरुहिता जमा सिस्स खलियकुमारस्त दाहिणे पासे भद्दातववरंसि सग्विण्णा । लए णं सरस नास्ति वत्तियकुमारस्त अन्यधाती व्हाया कथयनिकम्मा-सा-नयाभरणालकियतरीश त्यहरणं पडि चाप सो अगुप्पदा हिणीकरमाणी सोयं दुध दुहिता जमालिस खतियकुमारस्स वाले पासे महासवरंसि सब्सिमा ।
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जमालिनिष्काणर्य
२२ तर तस जमालिस्म पत्तियकुमारस्स पिटुओ एमा वतरुणी सिंगारागारचासा संगय-गय- हसिय-भणिय बेट्टिय-विलास सललिय संला निउणजुत्तोव यार कुसला सुंदरथण-जघण-वयण-कर-चरण-नयण- लावण्ण-रूव-जोन्वण-विलासकलिया सरदम्भ-हिम- रयय-कुमुदकुठेपणा सोरेंटमल्लदा घवनं आवत्तं महाय सलीलं ओधरेमाणी-ओधरेमाणी विद्वति ।
तए णं तस्स जमालिस्त [खत्तिकुमारस्स] उमओ पासि दुर्व वरतरणीओ सिंगारागारचारवेसाओ संगय-गय- हसिय-भणिय- बेट्ठियविलास - सललिय--संलाव - निउणजुत्तोवयारकुसलाओ सुंदरथण- जघण-वयण-कर-चरण- नयण- लावण्ण-रूत्र जोव्वण--विलास- कलियाओ गाणामणि कणम रयण-विमल महरिहणिविडिओ चलाओ, संक-कुंद-डगर-अय-महि-कंग समिकासाओ धनाओ चामराज गहाव सलील बीयमाणमी-बीयमाणीओ चिति । तए णं तस्स जमानित्स पतिपकुमारसा उत्तरपुरत्यिमे एवा aerent fieारागारवाला संग-गय-- हसिय-मणिय वेट्ठिय-विलास-लय-ताय-उतार कुसला सुंदरवणजघण-वण-कर-चरण-नयण- लावण्ण-रूव जोव्वण- विलास कलिया सेतं रययामयं विमलसलिलपुष्णं मत्तगयमहामु हाकितिसमाणं भिगारं गहाय चिट्ठइ ।
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तणं तस जमालिस प्रतियकुमारस्स दाहिणपुरविमेणं एगा करसरणी सिगारागारचारयेता संगय-गय-हरिय-मणिय-वेद्रिय-विलाससलिलाव - निउ जुत्तोवयारकुसला सुदरथण-जघण-त्रयण-कर-चरण-नयण-लावरण-रूव-जोन्वण-विलास कलिया चित्तकणगदंड तालवेंट गहाय चिट्ठइ ।
३८७
तणं तस्य जमालिस खयिकुमारस्स पिया को बियपुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं क्यासी विव्यामेट भो देशप्पिया ! सरिसवं सरिलयं सरि सरि-व-ज-गोवे एगाभरणरण महिपनिज्जीवं कोड बिलरतरुण सहर सहावेह तए णं ते कोड बियपुरिसा- जाव पडिसु-णेत्ता खिप्पामेव सरिसयं सरितयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव-जोग्वण- गुणोयवेयं एगाभरणसण- गहियनिज्जोयं कोड बियवरतरुणसहस्सं सद्दावेति ।
"
तएषं से कोई पितरुणपुरिसा जमालिरस पत्तियकुमारस्त पिउणा को वियपुरिसेहि सहाविया समाणा हा व्हाया कपलि कम्मा कोय-मंगल-पायच्छिता एक भरणराण- महिपनिज्जोया गेय जमानिस खत्तियकुमारस्त पिया ते उपागच्छति, उदाण्डित्ता करयपरिगहियं दसनहं सिरसावतं मत्यए अंजलि कट्टु जए विजएवं बद्धावेति बढावेता एवं क्यासी-संदि संतुणं देवापिया | अम्हेहि करणिज्जं ।
एणं से अनालिकुमार पिया तं को वितरणसहस्से एवं ववासीरने देशविवा। महाया कपबलिकम्मा कवको मंगल यति एवामरणवसण-महिपनिज्जोया जमालिस वत्तियकुमारस्स सीयं परिह ।
तए णं ते कोडुंबियवरतरुणपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वृत्ता समाणा जाव पडिसुणेत्ता व्हाया जाव-एगाभरणवसण- गहिनिज्जोगा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयं परिवहति ।
२४ त णं तस्स जमालिस्स खतियकुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणि सोयं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिया, तं जहा -- सोत्थिय सिरिवच्छ-णंदियावत वद्धमाणग-भद्दा सण- कलस-मच्छ दप्पणा । तदणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्याय छत्तपडागा सचामरा दंसण-र-आलोय-दरिमणिज्जा, वाउय विजयश्यतीय ऊसिया महिती पुरनो अहाणुपुवीए संपट्टिया |
तं परं सहासनं
तदनंतरच वेलव-भत-विमल पवकोरंडमल्लवा मोक्सोभयं चंदमंडलमिर्च समुखियं विमलं वरमणिरमणपादपीठं सपापाजवसमा बहुककर कम्मकर-परिस-पात-परिखिलं पुरनो अहाणुपुब्बीए संपट्टि । तदनंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा चावग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गाहा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्याहा हप्परगाहा पुरओ अहाणपुवीए संपट्टिया ।
तदनंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो जडिणो पिंछिणो हासकरा उमरकरा दवकरा चाडुकरा कंदप्पिया कोक्कुइया किडुकरा य वायंता य गायंता य णच्वंता य हसंता य भासता य सासंता य सावेंता य रक्खता य आलोयं च करेमाणा जय जयसद्दं पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिया ।
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
तदणंतरं च णं बहवे उग्गा भोगा खत्तिया इक्खागा नाया कोरव्वा जहा ओववाइए-जाव-महापुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ य मग्गतो य पासओ य अहाणुपुब्बीए संपद्विया ।
२५ तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकार विभुसिए हस्थिक्खंधवरगए
सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उद्धव्वमाणीहि-उद्धब्धमाणीहि हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडे महया भडचडगरविंदपरिक्खित्ते जमालि खत्तियकुमारं पिटुओ अणुगच्छइ । तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ महं आसा आसवरा, उभओ पासिं नागा नागवरा, पिट्ठओ रहा, रहसंगेल्ली।
तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अब्भुग्गभिंगारे परिग्गहियतालियंटे असवियसेतछत्ते पवीइयसेतचामरबालवीयणीए, सविड्ढोए -जाव-दुदहि-णिग्घोसणादितरवेणं खत्तियकुंडग्गामं नयरं मझमझेणं जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे, जेणेव बहुसालए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पाहारेत्थ गमणाए।
तए णं तस्स जमालिस्त खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापहपहेसु बहवे अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किविसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया बद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इटाहि कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहि मणामाहि मणाभिरामाहि हिययगमणिज्जाहि वहिं जयविजयमंगलसएहि अणवरयं अभिनंदंता य अभित्थुणंता य एवं क्यासी-जय-जय नंदा ! धम्मेणं, जय-जय नंदा! तवेणं, जय-जय नंदा! भई ते अभग्गेहिं नाण-दंसण-चरित्तेहिमुत्तमेहि, अजियाई जिणाहि इंदियाई, जियं पालेहि समणधम्म, जियविग्यो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्झे, निहणाहि य रागदोसमल्ले तवेणं धितिधणियबद्धकच्छे, महाहि य अट्ठ कम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च धीर ! तेलोक्करंगमज्झे, पाक्य वितिमिरमणुत्तरं केवलं च नाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिङेणं सिद्धिमग्गेणं अकुडिलेणं हंता परीसहचमू , अभिभविय' गामकंटकोक्सग्गा णं, धम्मे ते अविग्धमत्थु त्ति कटु अभिनंदंति य अभिथुणंति य ।
तए णं से जमाली खत्तियकुमारे नयणमालासहस्सेहि पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे, हिययमालासहस्सेहि अभिणंदिज्जमाणे-अभिणंदिज्जमाणे, मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे, वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे, कंतिमोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणेपत्थिज्जमाणे, बहूणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-मंजु-मंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणेआपडिपुच्छमाणे, भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे-समइच्छमाणे खत्तियकुंडग्गामे नयरे मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थगरातिसए पासइ, पासित्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं ठवेइ, पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ पच्चोरुहइ।
२६
अम्मापियरेहि भगवओ महावीरस्स सिस्सभिक्खादाणं तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति नभंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासो-एवं खलु भंते ! जमाली खत्तियकुमारे अम्हं एगे पुत्ते इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविऊसदिए हिययनंदिजणणे उंबरपुष्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग ! पुण पासणयाए ? से जहानामए उप्पले इ वा पउमे इ वा-जाव-सहस्सपत्ते इ वा पंके आए जले संवुडे नोवलिप्पति पंकरएणं, नोवलिप्पति जलरएणं, एवामेव जमाली वि खत्तियकुमारे कामेहिं जाए, भोहिं संवुड्ढे नोवलिप्पति कामरएणं, नोवलिप्पति भोगरएणं, नोवलिप्पति मित्त-णाइ-णियग-सयणसंबंधि-परिजगणं । एस णं देवाणु प्पिया ! संसारभयुधिग्गे भीए जम्मण-मरणेणं, इच्छइ देवाणुपियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । तं एयं णं देवाणुप्पियाणं अम्हे सीसभिक्खं दलयामो, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सीसभिक्खं ।
जमालिस्स पब्वज्जा २७ तए णं समणे भगवं महावीरे जमालि खत्तियकुमारं एवं क्यासी--अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध ।
तए णं से जमाली खत्तियफुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतु? समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण
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जमालिनिण्हवकहाणयं
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पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ, अवक्कमिता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ। तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार छिन्नमुत्तावलिप्पग्गासाई अंसूणि विणिम्म यमाणी-विणिम्मुयमाणी जमालि खत्तियफुमारं एवं बयासी-जइयव्वं जाया ! घडियव्वं जाया ! परक्कमियध्वं जाया ! अस्सि च णं अट्ठ णो पमाएतव्वं ति कटु जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मापियरो समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया । तए णं से जमाली खत्तियकुमारे सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्क्षुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी--"आलित्ते णं भंते ! लोए, पलिते णं भंते ! लोए, आलित्त-पलिते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य । से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए, तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ । एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ । एवामेव देवाणुप्पिया ! मज्झवि आया एगे भंडे इठे कंते पिए मणुष्णे मणामे येज्जे वेस्सासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे, मा णं सीयं, मा णं उण्ह, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं चोरा, मा णं वाला, मा णं दंसा, मा णं मसया, मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सन्निवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु ति कटु एस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नौसेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सयमेव सेहावियं, सयमेव सिक्खावियं, सयमेव आयारगोयरं विणय-वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं ।
२८ तए णं भगवं महावीरे जमालि खत्तियकुमारं पंचर्चाह पुरिससहि सद्धि सयमेव पव्वाबेइ-जाव-सामा इयमाइयाई एक्कारस अंगाई
अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्ध-मासखमणेहि विचितहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
जमालिणा जणपयविहारपत्थणा भगवओ महावीरस्स मोणं २९ तए णं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर
वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसिता एवं वासी-इच्छामि णं भंते ! तुहि अब्भणुण्णाए समाणे पंचर्चाह अणगारसहिं सद्धि बहिया जणवविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स एयमढें नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं क्यासी-इच्छामि णं भंते ! तुहि अब्भणुण्णाए समाणे पंचहि अणगारसहि सद्धि बहिया जगवयविहारं विहरित्तए । तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोच्चं पि, तच्चं पि, एयमट्ठ नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ ।
जमालिस्स जणवयविहारो सावत्थी-आगमणं च ३० तए णं से जमाली अणगारे समगं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ
बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पंचहि अणगारसहिं सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नयरी होत्या-वण्णओ, कोटुए चेइए--वग्णओ -जाव-वणसंडस्स। तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था--वण्णओ । पुण्णभद्दे चेइए--वष्णओ-जाव-पुढविसिलापट्टओ । तए णं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडे पुन्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुग्गाम दुइज्जमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोटुए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
भगवओ महावीरस्स चंपाए आगमणं ३१ तए णं समणे भगवं महावीरे अग्णया कयाइ पुव्वाणु पुब्धि चरमाणे गामाणुग्गामं दुइज्जमाणे सुहंसुहेणं बिहरमाणे जेणेव चंपा
नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
जमालिस्स रोगातंकपोडा सेज्जासंथरणे आणा य ३२ तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स तेहि अरसेहि य, विरसेहि य अंतेहि य, पंतेहि य, लूहेहि य, तुच्छेहि य, कालाइक्कतेहि य,
पमाणाइक्कतेहि य पाणभोयणेहि अण्णया कयाइ सरीरगसि विउले रोगातके पाउन्भूए--उज्जले बिउले पगाढे कक्कसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे तिब्वे दुरहियासे । पित्तज्जरपरिगतसरीरे, दाहवक्कंतिए यावि विहरइ । तए णं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--तुम्भे गं देवणुिप्पिया ! मम सेज्जा-संथारगं संथरह । तए ण ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एतमटुं विणएणं पडिसुति, पडिसुणेत्ता जमालिस्स अणगारस्स सेज्जा-संथारगं संथरंति ।
जमालि-तस्सिस्साणं सेज्जाकरणे 'कड-कज्जमाण'-विसए पाहत्तरं ३३ तए णं से जमाली अणगारे बलियतरं वेदणाए अभिभूए समाणे दोच्चं पि समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--ममं
णं देवाणु प्पिया ! सेज्जासंथारए कि कडे ? कज्जा ? तते णं ते समणा निग्गंथा जमालि अणगारं एवं वयासी--नो खलु देवाणुप्पियाणं सेज्जा-संथारए कडे, कज्जइ ।
'चलमाणे चलिए' इच्चाइभगवंतपरूवणाए जमालिस्स विपरिणामणा ३४ तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--जण्णं समणे भगवं
महावीरे एवमाइक्खइ-जाव-एवं परूवेइ--एवं खलु चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेदिज्जमाणे वेदिए, पहिज्जमाणे पहीणे, छिज्जमाणे छिण्णे, भिज्जमाणे भिण्णे, डज्झमाणे डड्ढे, मिज्जमाणे मए, निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे, तण्णं मिच्छा । इमं च णं पच्चक्खमेव दोसइ सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए । जम्हा णं सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणे वि अचलिए-जाव-निज्जरिज्जमाणे वि अनिज्जिण्णे--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--जण्णं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ-जाव-पस्वेइ--एवं खलु चलमाणे चलिए-जाव-निजरिज्जमाणे निज्जिण्णे, तण्णं मिच्छा । इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए । जम्हा णं सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे , संथरिज्जमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणे वि अचलिए-जाबनिज्जरिज्जमाणे वि अनिज्जिण्णे ।
जमालिपरूवणं असद्दहमाणाणं केसिंचि समणाणं भगवंतसमीवागमणं ३५ तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स एवमाइक्खमाणस्स-जाब-परूवेमाणस्स अंत्थेगतिया समणा निगंथा एयम सद्दहति पत्तियंति रोयंति,
अत्थेगतिया समणा निग्गंथा एयमढें नो सद्दहति नो पत्तियंति नो रोयंति । तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमलैं सद्दहति पत्तियंति रोयंति, ते णं जमालि चेव अणगारं उवसंपज्जित्ता णं विहरति । तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमठें नो सद्दहति नो पत्तियंति नो रोयंति, ते णं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओ कोटगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुग्वि चरमाणा गामाणुग्गामं दूइज्माणा जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता बंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणं भगवं महावीरं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति ।
जमालिणा चंपाए महावीरसमक्ख अप्पणो केवलित्तघोसणं ३६ तए णं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के ह? जाए, अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ
कोढगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुष्वाणुपुटिव चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा गयरी, जेणेव
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जमालिनिण्हवकहाणय
पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्त अदुरसामंते ठिच्चा समगं भगवं महावीरं एवं वासी--जहा पं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्थावक्कमणेणं अवकंता, नो खलु अहं तहा छउमत्थावक्कमणेणं अवक्कते, अहं णं उप्पन्ननाण-दसणधर अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणणं अवक्कते ।
गोयमकए लोग-जीवविसए पण्हे जमालिस्स तसिणीयत्तं
३७ तए णं भगवं गोयमे जमालि अगगारं एवं क्यासी-नो खलु जमाली ! केवलिस्स नाणे वा दसणे वा सेलसि वा थंभंसि वा
थूभंसि वा आवरिज्जइ वा निवारिज्जइ वा, जदि णं तुमं जमाली ! उप्पन्ननाण-दसणधरे अरहा जिणे केवलि भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कते, तो णं इमाई दो वागरणाई वागरेहि-सासए लोए जमाली ! असासए लोए जमाली ? सासए जीवे जमाली ! असासए जीवे जमाली ? तए णं से जमाली अगगारे भगवया गोपमेणं एवं बुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावणे कलुससमावण्णे जाए यावि होत्या, नो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचि वि पभोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीए संचिट्ठइ ।
३८
भगवंतपरूवियं लोग-जीवाणं सासयत्त-असासयत्तं जमालीति ! समणे भगवं महावीरे जमालि अगगारं एवं बवासी--"अस्थि णं जमाली ! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था, जे णं पभू एवं वागरणं वागरित्तए, जहा णं अहं, नो चेव णं एतप्पगारं भासं भासितए, जहा गं तुमं । “सासए लोए जमाली ! जं, कयाइ नासि, , कयाए में भवइ, न कयाइ न भविस्सइ-भुवि च, भवइ य, भविस्सइ यधुवे, नितिए सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए निच्चे ।" "असासए लोए जमाली ! जं ओसप्पिणी भविता उस्सप्पिणी भवइ, उस्सप्पिणी भक्त्तिा ओसप्पिणी भवइ ।" सासए जीवे जमाली ! जं , कयाइ मासि, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ--भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य-- धुबे, नितिए, सासए, अक्खए, अब्बए, अवट्ठिए निच्चे । "असासए जीवे जमाली ! जण्णं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोगिए भवइ, तिरिक्खजोगिए भविता मगुस्से भवइ, मगुस्से भवित्ता देवे भवइ ।"
जमालिस्स असद्धहणं, मरणंते य लंतए देवकिब्बिसियत्तं ३९ तए णं से जमालो अणगारे समगस्स भगदओ महावीरस्स एवमाइक्खमाणस्प्त-जाव-एवं परूवेमाणस्स एतमट्ठनो सद्दहइ नो पत्तयइ नो रोएइ,
एतमट्ठ असहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोच्चं पि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बहूहि असब्भावुभावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अपाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अतागं झूसेइ, झूसेत्ता तीसं भत्ताई अगसणाए छेदेइ, छेदेत्ता तस्स ठाणस्त अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितीएसु देवकिब्बिसिएसु देवेसु देवकिब्बिसियत्ताए उववन्ने ।
४० तए णं भगवं गोयमे जमालि अगगारं कालग ज.णित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता समणं
भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसिता एवं क्यासो--एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नाम अगगारे से गं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए ? कहि उववन्ने ?
गोयमा! दो समणे भगवं महावीरे भगवं गोयनं एवं क्यासी-एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नाम अगगारे, से णं तदा ममं एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स एवं पण्णवेमाणस्स एवं परूवेमाणस्त एतमढें नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एतमढं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे, दोच्चं पि ममं अंतियाओ आपाए अवक्कमइ, अवक्कमिता बहूहि असब्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासिवाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता, तीसं भत्ताई अगसणाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा
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३९२
धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो बुप्पाएमाणा बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कता कालमाते कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितीएसु देवकिबिसिएसु देवेसु देवकिबिसियत्ताए उववने।
देवकिदिवसियभेयाइनिरूवर्ण ४१ कतिविहा णं भंते ! देवकिम्बिसिया पण्णता ?
गोयमा ! तिविहा देवकिग्विसिया पण्णत्ता, तं जहा-तिपलिओवमट्टिइया, तिसागरोंवमट्ठिइया, तेरससागरोवमट्टिइया । कहि णं भंते ? तिपलिओवमट्टिइया देवकिन्विसिया परिवसंति । गोयमा ! उप्पि जोइसियाणं, हेट्ठि सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्टिइया देवकिब्बिसिया परिवसति । कहि णं भंते ! तिसागरोवमट्ठिइया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? गोयमा ! उप्पि सोहम्मोसाणाणं कप्पाणं, हेट्ठि सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्टिइया देवकिब्बिसिया परिवसति । कहिं णं भंते ! तेरससागरोवमट्टिइया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? गोयमा ! उप्पि बंभलोगस्स कप्पस्स, हेट्ठि लंतए कप्पे, एत्थ णं तेरससागरोवमट्टिइया देवकिब्बिसिया देवा परिवसंति । देवकिब्बिसिया णं भंते ! केसु कम्मादाणेसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति ? गोयमा ! जे इमे जीवा आयरियपडिणीया, उवज्झायपडिणीया, कुलपडिणीया, गणपडिणीया, संघपडिणीया, आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारा अवण्णकारा अकित्तिकारा, बहूहि असन्भावुब्भावणाहि, मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा--तिपलिओवमट्टितिएसु वा, तिसागरोवमट्टितिएसु वा, तेरससागरोवमट्ठितिएसु वा । देवकिब्बिसिया णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छंति ? कहि उववज्जंति ? गोयमा !-जाव-चत्तारि पंच नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता ताओ पच्छा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति, अत्थेगतिया अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकतारं अणुपरियटृति ॥
४२ जमाली णं भंते ! अगगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे तुच्छाहारे अरसजीवी विरसजीवी अंतजीवी पंतजीवी
लूहजीवी तुच्छजीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी ? हता गोयमा ! जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे-जाव-विवित्तजीवी । जति णं भंते ! जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे-जाव-विवित्तजीवी कम्हा णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमट्ठितिएसु देवकिब्बिसिएसु देवेसु देवकिब्बिसियत्ताए उववन्ने ? गोयमा ! जमाली गं अणगारे आयरियपडिणीए, उवज्झायपडिगोए, आयरियउवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए, बहहिं असम्भावुम्भावणाहि मिचछत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अगसणाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमट्ठितिएसु देवकिब्बिसिएसु देवेसु देवकिदिबसियत्ताए उववन्ने ।
जमालिस्स अण्णे भवा सिद्धी य ४३ जमाली गं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं
उववज्जिहिति ? गोयमा ! चत्तारि पंच तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहिति परिणिवाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ।
भग० स० ९, उ० ३३ ।
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३. आजीवियतित्थयर-गोसालयकहाणयं
सावत्थीए हालाहलाए कुंभकारावणंसि गोसालो ४ तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नगरी होत्था--वण्णओ।
तीसे णं सावत्थीए नगरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, तत्थ णं कोट्ठए नाम चेइए होत्था--वण्णओ । तत्थ णं सावत्योए नगरीए हालाहला नाम कुंभकारी आजीविओवासिया परिवसति--अड्ढा-जाव-बहुजणस्स अपरिभूया, आजीवियसमयंसि लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छ्यिट्ठा अद्धिमिजपेम्माणुरागरत्ता, अयमाउसो ! आजीवियसमये अढे, अयं परमठे, सेसे अणे? त्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं गोसाले मंखलिपुत्ते चउव्वीसवासपरियाए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघसंपरिबुडे आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
दिसाचराणं पुव्वगयनिज्जूहणं ४५ तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अण्णदः कदायि इमे छ दिसाचरा अंतियं पाउन्भवित्था, तं जहा-साणे, कलंदे, कणियारे,
अच्छिदे, अग्गिवेसायणे अज्जुणे गोमायुपुत्ते । तए णं ते छ दिसाचरा अट्टविहं पुवगयं मग्गदसमं सएहि-सएहिं मतिदसणेहिं निज्जूहंति, निज्जूहित्ता गोसालं मखलिपुत्तं उवट्ठाईसु।
गोसालकयं छ अणइक्कमणाईणं परूवणं ४६ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अलैंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सव्वेसि पाणाणं, सव्वेसि भूयाणं, सव्वेसि जीवाणं, सन्वेसि सत्ताणं इमाई छ अणइक्कमणिज्जाई वागरणाई वागरेति, तं जहा--
लाभं अलाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा ॥ गोसालस्स जिणतं ४७ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अलैंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सावत्थीए नगरीए अजिणे जिणप्पलावी, अणरहा
अरहप्पलावी, अकेवली केवलिप्पलावी, असवण्णू सव्वण्णुप्पलावी, अजिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ । तए णं सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वष्णू सन्त्रण्णुप्पलावी, जिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ । से कहमेयं मन्ने एवं ?"
भगवओ महावीरसमोसरणं, गोयमस्स गोयरचरियागमणं च ४८ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे-जाव-परिसा पडिगया ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती नाम अणगारे गोयमे गोतेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छठंछद्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तक्सा अपाणं भावेमाणे विहर।
व०क० ५०
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
तए णं भगवं गोयमे छ?क्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाई, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भावणवत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जिता भावणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"इच्छामि गं भंते ! तुहिं अभणुग्णाए समाणे छटुक्खमणपारणगंसि सावत्थीए नगरीए उच्च-नीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए" । "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ।"
तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणु ण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव सावत्थी नगरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता सावत्थीए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ । नए णं भगवं गोयमे सावत्थीए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसई निसामेड, बहुजणो अण्णमप्णस्स एवमाइवखइ एवं भासइ-जाव-परूवेइ--एवं खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी-जावजिणे जिणसदं पगासेमाणे विहरइ । से कहमेयं मन्ने एवं ?
४९
गोयमस्स गोसालचरियजाणणत्थं पत्थणा तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमझें सोच्चा निसम्म जायसड्ढे-जाव-समुप्पन्नकोउहल्ले अहापज्जत्तं समुदाणं गेण्हइ, गेण्हित्ता -जाव-जेणेव समणे भगवं महावीरे तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिसेइ, पडिसेत्ता समणं भगवं महावीरं बंबइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे ममंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे, पज्जुवासमाणे एवं क्यासी--एवं खलु अहं भंते! छटुक्खमणपारणगंसि तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे सावत्थीए नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाणि कुलाणि घरसमुदाणस्स भिक्खयरियाए अडमाणे बहुजणस निसामेमि, बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ-जाव-परूवेइ--एवं खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी-जाब-जिणे जिणसदं पगासेमाणे विहरइ । से कहमेयं भंते ! एवं ? तं इच्छामि गं भंते ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स उट्ठाणपारियाणियं परिकहियं ।
महावीरेण गोयमचरियवण्णणं, गोसालचरियपुव्वभागो, मंखलिस्स भद्दाए भारियाए गुन्विणितं ५० गोयमा ! दी समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं क्यासी--जणं गोयमा ! से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं
भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ--एवं खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी-जाव-जिणे जिगसई पगासमाणे विहरइ । तण्णं मिच्छा । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि-जाव-परवेमि--एवं खलु एयस्स गोसालस्स मंखलीपुत्तस्स मंखली नाम मंखे पिता होत्था । तस्स गं मंखलिस्स मखस्स भद्दा नाम भारिया होत्था--सुकुमालपाणिपाया-जाव-पडिरूवा । तए णं सा भट्टा भारिया अण्णदा कदायि गुन्विणी यावि होत्था ।
मंखलि-भद्दाणं गोसालाए निवासो ५१ तेणं कालेणं तेणं समएणं सरवणे नामं सण्णिवेसे होत्था--रिस्थिमियसमिद्धे-जाव-नंदणवण-सन्निभप्पगासे, पासादोए दरिसणिज्जे
अभिरूवे पडिरूवे । तत्थ णं सरवणे सण्णिवेसे गौबहुले नाम माणे परिवसइ--अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभए, रिउम्वेद-जावबंभण्णएसु परिन्वायएसु य नयेसु सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था । तस्स णं गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला यावि होत्था ।
तए णं से मंखली मंखे अण्णया कदायि भद्दाए भारियाए गुन्विणाए सद्धि चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे पुवाणुपुब्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव सरवणे सण्णिवेसे जेणेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता सरवणे सण्णिवेसे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसहीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, वसहीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणे अणत्थ वसहि अलभमाणे तस्सेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए।
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आजीवियतित्थयर-गोसालयकहाणयं
३९५ मंखलि-भदाहि नियपुत्तस्स 'गोसाल'नामकरणं ५२ तए णं सा भद्दा भारिया मवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वीतिक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं-जाव-पडिरूवर्ग
दारगं पयाया। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे बीतिक्कते-जाव-बारसमे दिवसे अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेजं करेंति--जम्हा णं अम्हं इमे दारए गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए जाए तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं गोसालेगोसाले त्ति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापितरो नामधेज्ज करेंति गोसाले त्ति ।
गोसालस्स मंखचरिया ५३ तए णं से गोसाले दारए उम्मक्कबालभावे विग्णय-परिणयमेत्ते जोवणगमणुप्पत्ते सयमेव पाडिएक्कं चित्तफलगं करेइ, करेत्ता
चित्तफलगहत्थगए मखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
भगवओ नालंदाए तंतुसालाए विहरणं ५४ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता अम्मा-पिईहिं देवत्तगएहि समत्तपइण्णे एवं जहा
भावणाए-जाव-एगं देवदूसमादाय मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए। तए णं अहं गोयमा ! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेणं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासंमासेणं खममाणे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणु गामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए। तए णं अहं गोयमा ! पढम मासखमणं उवसंपज्जिताणं विहरामि ।
गोसलस्स वि तंतुसालाए आगमणं तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे पुवाणुपुब्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ, करेता रायगिहे नगरे उच्चनीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसहीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, वसहीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणे अण्णत्थ कत्थ वि वसहिं अलभमाणे तीसे य तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए, जत्थेव णं अहं गोयमा !
भगवओ पढममासखमणपारणे पंच दिव्वाइं ५६ तए णं अहं गोयमा ! पढम-मासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, पडिनिक्ख मित्ता नालंदं बाहिरियं मझमझेणं
निग्गच्छामि, निग्गच्छित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता रायगिहे नगरे उच्च-नीय-घर-जाव-अडमाणे विजयस्स गाहावइस्स गिहं अणुपविछे । तए णं से विजए गाहावई मम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-जाव-हियए खिप्पामेव आसणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुटेता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पाउयाओ ओमुयइ, ओमइत्ता एगसाडियं उत्तरासंग, करेड, करेता अंजलिमउलियहत्थे ममं सत्तटपयाई अणु गच्छइ, अणुगच्छित्ता ममं तिक्खु त्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता ममं बंदइ नमसइ, बंदित्ता नमसित्ता ममं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेस्सामित्ति तुठे, पडिलाभेमाणे वि तुझे, पडिलाभिते वि तुठे। तए णं तस्स विजयस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धणं दायगसुद्धणं पडिगाहगसुद्धणं तिविहेणं तिकरणसुद्धणं दाणेणं मए पडिलाभिए समाणे देवाउए निबद्धे, संसारे परित्तीकए, गिहंसि य से इमाई पंच दिव्वाई पाउन्भूयाई, तं जहा--वसुधारा वुढा, दसद्धवणे कुसुमे निवातिए, चेलुक्खेवे कए, आयाओ देवदुंदुभीओ, अंतरा वि य गं आगासे 'अहो दाणे अहो दाणे' त्ति घुठे।
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धम्मकहाणुओग पंचमो खंधो
तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग -जाव-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-पण्णवेइ एवं परवेइ--धन्ने णं देवाणुप्पिया ! विजये गाहावई, कयत्थे णं वेवाणु प्पिया ! विजये गाहावई कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया ! विजये गाहावई कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! विजये गाहावई, कया णं लोया देवाणुप्पिया! विजयस्स गाहावइस्स, सुलद्धे गं देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्स गाहावइस्स, जस्स गिहंसि तहारूवे साधू साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाई, पंच दिव्वाइं पाउन्भूयाई, तं जहा-- वसुधारा वुढा-जाव-अहो 'दाणे अहो दाणे' ति घुठे, तं धन्ने कयत्थे कयपुग्णे कयलक्खणे, कया णं लोया, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्स गाहावइस्स, विजयस्स गाहावइस्स।
गोसालकयाए सिस्सत्तपत्थणाए भगवओ उदासीणया तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले जेणेव विजयस्स गाहावइस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासइ विजयस्स गाहावइस्स गिहंसि वसुहारं वुठं, दसद्धवणं कुसुमं निवडियं, ममं च ण विजयस्स गाहावइस्स गिहाओ पडिनिक्खममाणं पासइ, पासित्ता हटुतुळे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता ममं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता ममं एवं वयासी--तुब्भे गं भंते! मम धम्मायरिया, अहण्णं तुम्भं धम्मंतेवासी। तए णं अहं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमढें नो आढामि, नो परिजाणामि, तुसिणीए संचिट्ठामि ।
५८
भगवओ दोच्चमासखमणपारणे पंचदिव्वाई तए णं अहं गोयमा! रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्खमामि, पडिनिक्खमित्ता नालंदं बाहिरियं मज्झमझंण निग्गच्छामि, निग्गच्छित्ता जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता दोच्चं मासखमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । तए णं अहं गोयमा! दोच्च-मासखमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, पडिनिक्खमित्ता नालंदं बाहिरियं मझमझणं निग्गच्छामि, निग्गच्छित्ता जेणेव रायगिहे नगरे-जाव--अडमाणे आणंदस्स गाहावइस्स गिहं अणुप्पविठे। तए णं से आणंदे गाहावई ममं एज्जमाणं पासइ, एवं जहेव विजयस्स (सु. ५६)-जाव-वंदित्ता नमंसित्ता ममं विउलाए खज्जगविहीए पडिलाभेस्सामित्ति तुडे, पडिलाभेमाणे वि तुठे, पडिलाभित्ते वि तुठे। तए णं तस्स आणंदस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धणं-जाव-(सु.५६) परूबेइ-धन्ने णं देवाणुप्पिया! आणंदे गाहावई, कयत्थे णं देवाणप्पिया! आणंदे गाहावई, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया! आणंदे गाहावई, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! आणंदे गाहावई, कया णं लोया देवाणुप्पिया! आणंदस्स गाहावइस्स, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले आणंदस्स गाहावइस्स, जस्स णं गिहंसि तहारूवे साधू साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाइं पंच दिव्वाइं पाउन्भूयाई, तं जहा वसुधारा वुट्ठा-जाव-अहो दाणे, अहो दाणे त्ति घुळे, तं धन्ने कयत्थे कयपुण्ण कयलक्खणे, कया णं लोया, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले आणंदस्स गाहावइस्स, अणंदस्स गाहावइस्स।
पुणो वि गोसालकयाए सिस्सत्तपत्थगाए भगवओ उदासीणया ५९ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते-जाव-(सु. ५७) जेणेव आणंदस्स गाहावइस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासइ आणंदस्स
गाहावइस्स गिहंसि वसुहारं वुझें दसद्धवणं कुसुमं निवडियं, ममं च णं आणंदस्स गाहावइस्स-जाव-(सु. ५७) तुसिणीए संचिट्ठामि ।
भगवओ तच्चमासखमणपारणे पंचदिव्वाई ६० तए णं अहं गोयमा ! रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्खमामि,-जाव-(सु.५८) उवागख्छित्ता तच्चं मासखमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । . तए णं अहं गोयमा! तच्च-मासखमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, पडिनिक्खमित्ता-जाव-(सु.५६) भिक्खायरियाए
अडमाणे सुणंदस्स गाहावइस्स गिहं अणुपविठे। तए णं से सुणंदे गाहावई ममं एज्जमाणं पासइ, एवं जहेव विजयस्स (सु. ५६)-जाव-वंदित्ता नमंसित्ता ममं विउलेणं सव्वकामगुणिएणं भोयणेणं पडिलाभेस्सामित्ति तुझें, पडिलाभेमाणे वि तुझें, पडिलाभिते वि तुझें। तए णं तस्स सुणंदस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धेणं-जाव-(सु. ५६) परूवेइ--धन्ने णं देवाणुप्पिया ! सुणंदे गाहावई, कयत्थे णं देवाणुप्पिया! सुणंदे गाहावई, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया! सुणंदे गाहावई, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया ! सुणंदे गाहावई, कया णं लोया देवाणुप्पिया! सुणंदस्स गाहावइस्स, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले सुणंदस्स गाहावइस्स, जस्स णं
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आजीवियतित्थर-गोसालकहाणयं
गिहंसि तहारवे साधू साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाई पंच दिव्वाइं पाउन्भूयाई, तं जहा--वसुधारा बुढा-जाव-अहो दाणे, अहो दाणे ति घुठे, तं धन्ने कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे, कया णं लोया, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले सुणंदस्स गाहावइस्स, सुणंदस्स गाहावइस्स।
६१
पुणो वि गोसालकयाए सिस्सत्तपत्थणाए भगवओ उदासीणया तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते-जाव-(सु. ५७) जेणेव सुणंदस्स गाहावइस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासइ--सुणंदस्स गाहावइस्स गिहंसि वसुहारं बुढ़े दसद्ध कुसुमं निवडियं, ममं च णं सुणंदस्स गाहावइस्स गिहाओ पडिनिक्खममाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुठे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता ममं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता ममं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता मम एवं बयासी तुब्भे णं भंते। ममं धम्मायरिया, अहण्णं तुब्भं धम्मंतेवासी-जाव- (सु. ५७) तुसिणीए संचिट्ठामि ।
भगवओ चउत्थमासखमण पारणे पंचदिव्वाइं ६२ तए णं अहं गोयमा! रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्खमामि-जाव-(सु. ५८) उवागच्छिता चउत्थं मासखमणं उवसंपज्जित्ताणं
विहरामि। तीसे गं नालंदाए बाहिरियाए अदूरसामंते, एत्थ णं कोल्लाए नामं सण्णिवेसे होत्था--सण्णिवेसवण्णओ। तत्थ णं कोल्लाए सण्णिवेसे बहुले नामं माहणे परिवसइ--अड्ढे-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए, रिउब्वेय-जाव-बंभण्णएसु परिब्वायएसु य नयेसु सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था। तए णं से बहुले माहणे कत्तियचाउम्मासियपाडिवगंसि विउलेणं महुघयसंजुत्तेणं परमण्णेणं माहणे आयामेत्था। तए णं अहं गोयमा! चउत्थ-मासखमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खिमामि, पडिनिक्खमित्ता नालंदं बाहिरियं मझमज्झेणं निग्गच्छामि, निग्गच्छित्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता कोल्लाए सण्णिवेसे उच्च-नीय-जाव-(सु.५६) अडमाणे बहुलस्स माहणस्स गिहं अणुप्पबिठे। तए णं से बहुले माहणे ममं एज्जमाणं पासइ तहेव (सु.५६)-जाव-वंदिता नमंसित्ता ममं विउलेणं महुघयसंजुत्तेणं परमण्णणं पडिलाभेस्सामित्ति तुट्टे, पडिलाभेमाणे वि तु ठे, पडिलाभिते वि तुठे। तए णं तस्स बहुलस्स माहणस्स तेणं दव्वसुद्धेणं-जाव-(सु. ५६) परवेइ-धन्ने णं देवाणुप्पिया! बहुले माहणे, कयत्थे णं देवाणुपिप्या! बहुले माहणे, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया! बहुले माहणे, कयलक्खणे गं देवाणुप्पिया! बहुले माहणे, का गं लोया, दवाणुप्पिया! बहुलस्स माहणस्स, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले बहुलस्स माहणस्स, जस्स गं गिहंसि तहाल्व माधू साधुस्वे पडिलाभिए समाणे इमाइं पंच दिव्वाई पाउन्भूयाई, तं जहा-वसुधारा बुढा-जाव-अहो दाणे, अहो दाणे ति घुठे, तं धन्ने कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे, कया णं लोया, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले बहुलस्स माहणस्स, बहुलस्स माहणस्स।
पुणो वि गोसालकयाए सिस्सत्तपत्थणाए भगवओ अणमई, गोसालेण य सह विहरणं ६३ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं तंतुवायसालाए अपासमाणे रायगिहे नगरे सब्भितरबाहिरियाए ममं सव्वओ समंता मग्गण
गवसणं करेइ। ममं कत्थ वि सुति वा खुति वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता साडियाओ य पाडियाओ य कुंडियाओ य वाहणाओ य चित्तफलगं च माहण आयामेइ, आयामेत्ता सउत्तरोठं भंडं कारेइ, कारेत्ता तंतुवायसालाओ पडिनिवखमइ, पडिनिक्खमित्ता नालंद बाहिरियं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छा। तए णं तस्स कोल्लागस्स सण्णिवेसस्स बहिया बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ--धन्ने णं देवाणुप्पिया! बहुले माहणे, -जाव-(सु. ६२) जीवियफले बहुलस्स माहणस्स, बहुलस्स माहणस्स। तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स बहुजणस्स अंतियं एयमढं सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था"जारिसिया णं ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स इड्ढी जुती जसे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, नो खलु अत्थि तारिसिया अण्णस्स कस्सइ तहारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्ढी जुती जसे बले वोरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं निस्संदिद्धं णं एत्थ ममं धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
भविस्सतीति कटु कोल्लाए सण्णिवेसे सबिभतरबाहिरिए ममं सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, ममं सब्वओ समंता मग्गणगवसणं करेमाणे कोल्लागस्स सण्णिवेसस्स बहिया पणियभूमीए मए सद्धि अभिसमण्णागए। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हट्टतुठे मम तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता ममं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"तुन्भे गं भंते ! मम धम्मायरिया, अहण्णं तुब्भं अंतेवासी"। तए णं अहं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमह्र पडिसुणेमि। तए णं अहं गोयमा! गोसालेणं मखलिपुत्तेणं सद्धि पणियभूमीए छव्वासाई लाभं अलाभं सुहं दुक्खं सक्कारमसक्कारं पच्चणुब्भवमाणे अणिच्चजागरियं विहरित्था ।
तिलथंभयनिष्फत्तिविसए भगवओ वयणे गोसालस्स अस्सद्धा ६४ तए णं अहं गोयमा! अण्णया कदायि पढमसरदकालसमयंसि अप्पट्टिकायंसि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धि सिद्धत्थगामाओ नगराओ
कुम्मगाम नगरं संपट्ठिए विहाराए। तस्स णं मिद्धत्थगामस्स नगरस्स कुम्मगामस्स नगरस्स य अंतरा, एत्थ णं महं एगे तिलथंभए पत्तिए पुप्फिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्टइ। तए गं से गोसाले मंखलिपुत्ते तं तिलथंभग पासइ, पासित्ता ममं वंद्रइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयाती--"एस णं भंते ! तिलथंभए कि निप्फज्जिस्सइ नो निप्फज्जिस्सइ ? एए य सत्त तिलपुष्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता कहि गछिहिति ? कहि उववजिहिति?" तए णं अहं गोयमा! गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी--"गोसाला! एस णं तिलथंभए निप्फज्जिस्सइ, नो न निप्फज्जिस्सइ। एते य सत्ततिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं आइक्खमाणस्स एयमढें नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, एयमठें असद्दहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे, ममं पणिहाए 'अयं णं मिच्छावादी भव' त्ति कटु ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं तिलथंभगं सलेट्ठयायं चेव उप्पाडेइ, उप्पाडेत्ता एगते एडेइ। तक्खणमेत्तं च गं गोयमा! दिब्वे अब्भवद्दलए पाउन्भए। तए णं से दिव्वे अभवद्दलए खिप्पामेव पतणतणाति, खिप्पामेव पविज्जयाति, खिप्पामेव नच्चोदगं णातिमट्टियं पविरलपफुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सलिलोदगं वासं वासति, जेण से तिलयंभए आसत्थे पच्चायाते बद्धमूले, तत्थेव पतिट्टिए। ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तस्सेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाता।
गोसालवयणकुद्धण वेसियायणबालतवस्सिणा गोसालस्सुवरि तेयलेस्सानिसिरणं ६५ तए णं अहं गोयमा! गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धि जेणेव कुम्मग्गामे नगरे तेणेव उवागच्छामि ।
तए णं तस्स कुम्मग्गामस्स नगरस्स बहिया वेसियायणे नामं बालतवस्सी छळंद्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिजिमय पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। आइच्चतेयतवियाओ य से छप्पदीओ सत्वओ समंता अभिनिस्सवंति, पाण-भूय-जीव-सत्तदयट्ठयाए च णं पडियाओ-पडियाओ तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चोरूभेइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते बेसियायणं बालतस्सि पासइ, पासित्ता ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेसियायणं बालतस्सि एवं वयासी--"कि भवं मुणी? मणिए ? उदाहु जयासेज्जायरए?" तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमठें नो आढाति, नो परियाणति, तुसिणीए संचिह। तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सि दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी-"किं भवं मुणी? मुणिए ? उदाह जयासेज्जायरए ?" तए णं से बेसियायणे बालतबस्सी गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं बुत्ते समाणे आसुरुत्ते ग्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता तेयासमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहपिणत्ता सत्तटुपयाई पच्चोसक्कइ, पच्चीसक्कित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरइ।
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आजीवियतित्थर-गोसालवकहाणयं
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महावीरेण गोसालरक्खणत्थं सीयलेस्सानिसिरणं तए ण अहं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्टयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणतेयपडिसाहरणट्ठयाए एत्थ गं अंतरा सोयलियं तेयलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सोयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणा तेयलेस्सा पडिहया। नए गं से देसियायणे बालतवस्सी ममं सोयलियाए तेयलेस्साए साउसिणं तेयलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स किचि आबादं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता साउसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरइ, पडिसाहरिता ममं एवं
ण ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीर.
वय वा अकीरमाणं पासित्ता साSA
वयासी-“से गतमेयं भगवं!
मुणिए ? उदाह माला ! वेसियामा तुम दोच्चं पिता! तव अणुकपणाए तेयलेस्साए वायलेस्सं पडिहर
आाति, ना व वय
तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी--"किं णं भंते ! एस जयासिज्जायरए तुन्भे एवं वयासी--से गतमेयं भगवं! गतगतमेयं भगवं?" तए णं अहं गोयमा! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी--'तुमं णं गोसाला! वेसियायणं बालतवस्सि पाससि, पासित्ता ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कसि, जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता वेसियायणं बालतस्सि एवं वयासीकिं भवं मुणी? मुणिए? उदाहु जयासेज्जायरए? तए णं से बेसियायणे बालतवस्सी तव एयमझें नो आढाति, नो परिजाणति, तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं तुम गोसाला ! वेसियायणं बालतवस्सि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी--किं भवं मणी? मुणिए ? उदाहु जयासेज्जायरए? तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी तुम दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते-जाव-पच्चोसक्कति, पच्चीसक्कित्ता तव वहाए सरीरगंसि तेयलेस्सं निस्सिरइ। तए णं अहं गोसाला ! तव अणुकंपणट्टयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणतेयपडिसाहरणट्टयाए एत्थ णं अंतरा सोयलियं तेयलेस्स निसिरामि, जाए सा ममं सोयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणा तेयलेस्सा पडिहया। तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सोयलियाए तेयलेस्साए साउसिणं तेयलेस्सं पडिहयं जाणित्ता तव य सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता साउसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरति, पडिसाहरित्ता ममं एवं वयासी--से गतमेयं भगवं! गत-गतमयं भगवं!"
अहं गोसाय पि एवं वृत्त एवं वयासी
तेउलेस्सासंपादणोवाया ६७ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं अंतियाओ एयम सोच्चा निसम्म भीए तत्थे तसिए उद्विग्गे संजायभए ममं वंदइ नमसइ,
वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"कहण्णं भंते ! संखित्तविउलतेयलेस्से भवति ?" तए णं अहं गोयमा! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी--जेणं गोसाला! एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं ठळंछठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिजिमय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरई। से णं अंतो छह मासाणं संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्त ममं एयमढं सम्मं विणएणं पडिसुणेति ।
महावीरकहियं तिलथंभय-नित्ति जाणिऊण गोसालस्स अवक्कमणं तए णं अहं गोयमा ! अण्णदा कदायि गोसालेणं मखलिपुत्तेणं सद्धि कुम्मग्गामाओ नगराओ सिद्धत्थग्गामं नगरं संपढिए विहाराए । जाहे य मो तं देसं हन्वमागया जत्थ णं से तिलर्थभए, तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी--"तुब्भे गं भंते ! तदा मम एवमाइक्खह-जाव-परूवेह--'गोसाला! एस णं तिलथंभए निष्फज्जिस्सइ, नो न निप्फज्जिस्सइ । एते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति' तण्णं मिच्छा। इमं च णं पच्चक्खमेव दीसह--एस णं से तिलथंभए नो निप्फन्ने, अन्निप्फन्नमेव । ते य सत्त तिलपुष्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता नो एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया।" तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी--"तुम णं गोसाला ! तदा मम एवमाइक्खमाणस्स-जाव-परूवमाणस्स एयमझें नो सद्दहसि, नो पत्तियसि, नो रोएसि, एयमढें असद्दहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे, ममं पणिहाए 'अयण्णं मिच्छावादी भवउ' त्ति कटु ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कसि, पच्चोसक्कित्ता जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तं तिलथंभगं सलेट्ठयायं चेव उप्पाडेसि, उप्पाडेत्ता एगंतमंते एडेसि । तक्खणमेत्तं गोसाला ! दिव्वे अब्भवद्दलए पाउन्भूए । तए णं से दिवे अब्भवलए खिप्पामेव पतणतणाति, खिप्पामेव पविज्जयाति, खिप्पामेव नच्चोदगं णातिमट्टियं पविरलपफुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सलिलोदगं वासं वासंति, जेण से तिलथंभए आसत्थे पच्चायाते बद्धभूले, तत्थेव पतिदिए । ते य सत्त तिलपुष्फजीवा उद्दाइत्ता
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो उद्दाइत्ता तस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया। तं एस णं गोसाला ! से तिलर्थभए निष्फन्ने, नो अनिष्फन्नमेव । ते य सत्त तिलपुष्फजीवा उदाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभयस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया। एवं खलु गोसाला! वणस्सइकाइया पउट्टपरिहारं परिहरंति"। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते मम एवमाइक्खमाणस्स-जाव-परूवेमाणस्स एयमझें नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, एयमढें असहहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताओ तिलथंभयाओ तं तिलसंगलियं खुड्डा, खुडित्ता करयलंसि सत्त तिले पप्फोडे । तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ते सत्त तिले गणमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खल सव्वजीवा वि पउट्टपरिहारं परिहरंति--एस गं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स पउने, एस णं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ममं अंतियाओ आयाए अवक्कमणे पण्णत्ते ।
गोसालस्स तेयलेस्सासंपत्ती तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं छठेछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झियपगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे बिहरइ । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते अंतों छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयलेसे जाए।
सव्येसि भूयाणं, सबात उबढाइंसु। तए दिसाचरा अविहं में
महावीरकहियं गोसालस्स अजिणत्तं तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अण्णदा कदायि इमे छ दिसाचरा अंतियं पाउभवित्था, तं जहा-साणे, कलंदे, कणियारे, अच्छिदे, अग्गिवेसायणे, अज्जुणे, गोमायुपुत्ते । तए णं तं छ दिसाचरा अट्टविहं पुव्वगयं मग्गदसमं सहि-सएहि मतिदसणेहिं निज्जूहंति, निज्जूहित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं उबढाइंसु । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अलैंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सम्वेसि पाणाणं, सङ्केसि भूयाणं, सर्वेसि जीवाणं, ससि सत्ताणं इमाई छ अणइक्कमणिज्जाइं वागरणाई वागरेति, तं जहा--
लाभं अलाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सावत्थीए नगरीए अजिणे जिणप्पलाबी, अणरहा अरहप्पलावी, अकेवली केवलिप्पलावी, असव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, अजिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ, तं नो खलु गोयमा! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्ण सव्वण्णुप्पलावी, जिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ, गोसाले णं मंखलिपुत्ते अजिणे जिणप्पलावी, अणरहा अरहप्पलावी, अकेवली केवलिप्पलावी, असवण्णू सव्वण्णुप्पलावी, अजिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ। तए णं सा महतिमहालया महच्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया।
हप्पलावी, अकेवलप्पलावी, अरहा जिणप्पलावी,
गोसालस्स अमरिसो ७१. तए णं सावत्थोए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ--
जण्णं देवाणुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी-जाव-जिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ तं मिच्छा । समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ-जाव-परवेइ--एवं खलु तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स मंखलो नाम मंखे पिता होत्था। तए णं तस्स मंखस्स एवं चेव तं सव्वं भाणियव्वं-जाव-अजिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ, तं नो खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी-जावविहरइ, गोसाले मंखलिपुत्ते अजिणे जिणप्पलावी-जाव-विहरइ, समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी-जाव-जिणसई पगासेमाणे विहर। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अंतियं एयमढें सोच्चा निसम्म आसुरुते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सात्थि नर मज्झमझेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघसंपरिबुडे महया अमरिसं वहमाणे एवं वावि विहरइ ।
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आजीवियतित्थर-गोसालवकहाणयं
४०१
गोसालस्स आणंदथेरसमक्खं अत्यलद्धवणियदितकहणपुवं अक्कोसपदंसणं तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवाओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नाम थेरे पगइभद्दए-जाव-विणीए छठंछट्टेणं अणिक्खितेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से आणंदे थेरे छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेब आपुच्छइ, तहेव-जाव-उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते बोइवयइ । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आणंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-"एहि ताव आणंदा ! इओ एगं महं ओवमियं निसामेहि। तए णं से आणंदे थेरे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ ।
७३ तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते आणंदं थेरं एवं वयासी-एवं खलु आणंदा !
इत्तो चिरातीयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया अत्थत्थी अत्थलुद्धा अत्यगवेसी अत्यकंखिया अथपिवासा अत्थगवेसणयाए नाणाविहविउलपणियभंडमायाए सगडीसागडेणं सुबहुं भत्तपाणं पत्थयणं गहाय एगं महं अगामियं अणोहियं छिन्नावायं दोहमद्धं अडवि अणुप्पविट्ठा। तए णं तेसि वणियाणं तीसे अगामियाए अणोहियाए छिन्नावायाए दोहमद्धाए अडवीए किंचि देसं अणुप्पत्ताणं समाणाणं से पुव्वगहिए उदए अणुपुब्वेणं परिभुज्जमाणे-परिभुज्जमाणे झीणे । तए णं ते वणिया झीणोदगा समाणा तहाए परन्भममाणा अण्णमण्णे सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमोसे अगामियाए अणोहियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए किंचि देसं अणुप्पत्ताणं समाणाणं से पुवगहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुज्जमाणे-परिभुज्जमाणे झोणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए-जाव-अडवीए उदगस्स सव्वओ
वा का देसाणपत्ताणं समाणाणं से पुव्वगहिए उबए अणुसमंता मग्गण-गवेसणं करेत्तए' त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तोसे णं अगामियाए-जाव-अडवीए उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेंति, उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा एगं महं वणसंडं आसाति-किण्हं किण्होभासं-जाव-महामेहनिकुरंबभूयं पासादीयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं । "तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महंगं वम्मीयं आसादेति । तस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पूओ अन्भुग्गयाओ, अभिनिसढाओ, तिरियं सुसंपग्गहियाओ, अहे पन्नगद्धरूवाओ, पन्नगद्धसंठाणसंठियाओ, पासादियाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूबाओ। "तए णं ते वणिया हट्ठतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी--‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमीसे अगामियाए -जाव-अडवीए उदगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाहि इमे वणसंडे आसादिए--किण्हे किण्होभासे । इमस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए इमे वम्मीए आसादिए। इमस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पूओ अब्भुग्गयाओ, अभिनिसढाओ-जाव-पडिरूवाओ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमस्स बम्मीयस्स पढमं वप्पु भिंदित्तए, अवि याई ओरालं उदगरयणं अस्सादेस्सामो।' "तए णं ते वणिया अण्णमण्णस्स अंतियं एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स पढमं वप्पं भिदंति। ते णं तत्थ अच्छे पत्थं जच्च तणुयं फालियवण्णाभं ओरालं उदगरयणं आसाति। तए णं ते वणिया हद्वतुवा पाणियं पिबंति, पिबित्ता वाहणाई पज्जेंति पज्जेत्ता भायणाई भरेति, भरेत्ता दोच्चं पि अण्णमण्णं एवं वदासी--'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हेहि इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पए भिन्नाए ओराले उदगरणये अस्सादीए, तं सेयं खलु देवाणप्पिया! अम्हं इमस्स बम्मीयस्स दोच्चं पि वप्पु भिदित्तए, अवि याई एत्थ ओरालं सवण्णरयणं अस्सादेस्सामो।' "तए णं ते वणिया अण्णमण्णस्स अंतियं एयमढं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स दोच्चं पि वप्पु भिदंति । ते णं तत्थ अच्छं जच्चं तावणिज्जं महत्थं महग्धं महरिहं ओराल सुवण्णरयणं अस्सादेति । तए णं ते वणिया हट्टतुट्ठा भायणाई भरेंति, भरेत्ता पवहणाई भरेंति, भरेत्ता तच्चं पि अण्णमणं एवं वयासी--एवं खलु देवाण
प्पिया ! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए बप्पूए भिन्नाए ओराले सुवण्णघ. क०५१
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४०२
धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो रयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स तच्च पि वप्पु भिदित्तए, अवि याई एत्थं ओरालं मणिरयणं अस्सादेस्सामो। तए णं ते वणिया अण्णमण्णस्स अंतियं एयमझें पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पं भिदंति । ते णं तत्थ विमलं निम्मलं नित्तलं निक्कलं महत्थं महग्धं महरिहं ओरालं मणिरयणं अस्सादेति । तए णं ते वणिया हट्टतुट्टा भायणाइं भरेंति, भरेत्ता पवहणाइं भरेंति, भरेत्ता चउत्थं पि अण्णमण्णं एवं वयासी--‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले मणिरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवाणुप्पि! अम्हं इमस्स वम्मीयस्स या चउत्थं पि वप्पु भिदित्तए, अवि याई उत्तमं महग्धं महरिहं ओरालं वइररयणं अस्सादेस्सामो।' "तए णं तेसि वणियाणं एगे वणिए हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेसिए हिय-सुह-निस्सेसकामए ते वणिए एवं वयासी--'एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पूए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तच्चाए वप्पूए भिन्नाए ओराले मणिरयणे अस्लादिए, तं होउ अलाहि पज्जतं णे एसा चउत्थी वप्पू मा भिज्जउ, चउत्थी णं वप्पू सउवसग्गा याबि होत्था ।' "तए णं ते वणिया तस्स वणियस्स हियकामगस्स सुहकामगस्स पत्थकामगस्स आणुकंपियस्त निस्सेसियस्स हिय-सुह-निस्सेसकामगस्स एवमाइक्खमाणस्स-जाव-परूवेमाणस्स एयम8 नो सद्दहंति, नो पत्तियंति, नो रोयंति, एषमट्ठ असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोएमाणा तस्स वम्मीयस्स चउत्थं पि वप्पु भिदंति । ते णं तत्थ उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाविसं अतिकायं महाकायं मसिमूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छे जमलजुयलचंचलचलंतजीहं धरणितलवेणिभूयं उक्कड-फुड-कुडिल-जडुल-कक्खड-विकड-फडाडोवकरणदच्छं लोहागर-धम्ममाणधमधमेतघोसं अणागलियचंडतिव्वरोसं समुहं तुरियं चवलं धर्मतं दिट्ठीविसं सप्पं संघटेति । "तए णं से दिट्ठीविसे सप्पे तेहिं बणिहि संघट्टिए समाणे आसुरुते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सणियं-सणियं उद्वेइ, उठेत्ता सरसरसरस्स वम्मीयस्स सिहरतलं दुहति, द्रुहिता आदिच्चं निज्झाति, निज्झाइत्ता ते वणिए अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंता समभिलोएति। तए णं ते बणिया तेणं दिट्ठीविसेणं सप्पेणं अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंता समभिलोइया समाणा खिप्पामेव सभंडमत्तोवगरणमायाए एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासी कया यावि होत्था। तत्थ णं जे से वणिए तैसि वणियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेसिए हिय-सुह-निस्सेसकामए से णं आणुकंपियाए देवयाए सभंडमत्तोवगरणमायाए नियगं नगरं साहिए।
७४ "एवामेव आणंदा! तव वि धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं नायपुत्तेणं ओराले परियाए अस्सादिए, ओराला कित्ति-वण्ण-सह
सिलोगा सदेवमणुयासुरे लोए पुव्बंति, गुव्वंति, थुव्वंति--इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे । तं जदि मे से अज्ज किंचि वि वदति तो णं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेमि, जहा वा वालेणं ते वणिया। तुमं च णं आणंदा! सारक्खामि संगोवामि जहा वा से वणिए तेसि वणियाणं हियकामए-जाव-निस्सेसकामए आणुकंपियाए देवयाए सभंड मत्तोबगरणमायाए नियगं नगरं साहिए । तं गच्छ गं तुम आणंदा ! तव धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्त समणस्स नायपुत्तस्स एयमट्ठ परिकहेहि"।
आणंदथेरस्स भगवओ समक्खं गोसालवयणनिवेदणं भगवओ य समाहाणं तए णं से आणंदे थेरे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वृत्त समाणे भीए-जाव-संजायभए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता सिग्धं तुरियं सात्थि नर मज्झमजमेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसिता एवं बयासी--"एवं खलु अहं भंते ! छट्टक्खमणपारणगंसि तुर्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे सावत्थीए नगरीए उच्च-नीय-जाव-अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइवयामि, तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासित्ता एवं वयासी--एहि ताव आणंदा ! इओ एगं महं ओवमियं निसामेहि ।"
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४०३
आजीवियतित्थर - गोसालकहाणीयं
"लए णं अहं बोललेणं मंखलिलेणं एवं वृत्तं समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे जेणेव मोसाले मंखलिते तेव उवागच्छामि ।
"तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी -- एवं खलु आणंदा ! इओ चिरातीयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया एवं तं चैव सव्वं निरवसेसं भाणियव्वं जाव-नियगं नगरं साहिए। तं गच्छ णं तुमं आणंदा ! तव धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समपरस नायपुत्तस्स एवम परिकहि "
७७
"तं पभू णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेत्तए ? विसए णं भंते ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेगं तेएगं एवाहवं कूडावं भासराति करेल ? समस्ये णं भंते! गोसाले मंडल तवेणं एवं एमाहवं कु भासरासि करेत्तए" ?
"वणं आनंदा! गोसाले पनि तवेर्ण एवं एात्वं कूडाहवं भासरासि करेलए। बिसए णं आनंदा गोसालस मंडलि पुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरास करेत्तए । समत्थे णं आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेत्तए, नो चेव णं अरहंते भगवंते, पारियावणियं पुण करेज्जा" ।
"जावतिए णं आनंदा! गोताला मंलिपुत्तरस सबे तेए, एतो अनंतगुणविसितराए वेब तवे तेए अणगारागं भगवंताणं, खंतिखमा पुण अणगारा भगवंतो" ।
"जावइए णं आणंदा ! अणगाराणं भगवंताण तवे तेए एतो अनंतगुणविसिट्टतराए चैव तवे तेए थेराणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण थेरा भगवंतो" ।
"जावतिए णं आनंदा भगवंत ए एतो अनंतगुणविसितराए चैव तवे तेए अरहंताणं भगवंतागं प्रतियमा पुन अरहंता भगवंतो” ।
"तं पभू णं आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेत्तए, विसए णं आणंदा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएवं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेत्तए समत्थे णं आणंदा ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएवं एगाहच्च कूडाहच्चं भासरासि करेत्तए, नो चेव णं अरहंते भगवंते, पारियादविंग करेज्जा"।
"तं गच्छ णं तुमं आनंदा! गोयमाईणं समणाणं निभाणं एयम परिकहि--' मा णं अज्जो ! तुमं केई गोसालं मंखलितं धम्मियाए पडिचोवणाए पटिचोएउ, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेउ, धम्मिए पढोपारेणं पडोयारेउ गोसाले णं मंखलिपुले समणेह निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ने" ।
महावीरसइओ गोसालपटिपपणानि हो
७६ "तए णं से आणंदे थेरे समणेणं भगव्या महावीरेणं एवं वृत्ते समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमादी समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोयमा दी समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं बयासी -- "एवं खलु अमो ! छट्ठक्खमणपारणमंसि समणेण भगवया महाबीरेणं अम्मगुण्णाए समाने सावत्मी नगरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई सं चैव सव्वं जाव-गोयमाणं सममाणं निधानं एवम परिकहि तं मा णं असो ! तुम केई गोसाल मंडल मियाए पि बोए पडिए धम्मियाए परिसारणयाए पडिसारेउ, धम्मिएवं पडोयारे पडोयारेड, गोसाले णं मंचलिते समणेहि निग् हम विप्यवि" ।
गोसालस्स भगवंतं पह अपकोपुयं ससिद्धंतनिवर्ण
जावंच आनंदे मेरे गोयमाणं समणाणं निर्णचाणं एयम परिकता से गोसाले मंखलिते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीवियसंघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्धं तुरियं सार्वात्थ नगर मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्य अदूरसामंते ठिस्वा समणं भगवं महाबोरं एवं बदासी—मु णं आउसो कासया ! ममं एवं वयासी, साहू आउसो कालवा ! ममं एवं बयासी" गोसाले मंखलिते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिले ममं धम्मंतेवासी" ।
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४०४
धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
"जे णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तव धम्मंतेवासी से णं सुक्के सुक्काभिजाइए भवित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ने, अहणं उदाई नामं कुंडियायणीए अज्जुणस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं विष्पजहामि, विप्पजहित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता इमं सत्तमं पउट्टपरिहारं परिहरामि" । "जे वि आई आउसो कासवा ! अम्हं समयंसि केइ सिझिंसु वा सिझंति वा सिज्झिस्संति वा सव्वे ते चउरासीति महाकप्पसय
अहसास का सहस्साइं, सत्त दिब्वे, सत्त संजूहे, सत्त सण्णिगब्भे, सत्त पट्टपरिहारे, पंच कम्मणिसयसहस्साई सढि च सहस्साई छच्च सए तिण्णि य कम्मंसे अणुपुव्वेणं खवइत्ता तओ पच्छा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिब्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा"। "से जहा वा गंगा महानदी जओ पवूठा, जहि वा पज्जुवत्थिया, एस णं अद्धा पंचजोयणसयाई आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, पंच धणुसयाई उव्वेहेणं । एएणं गंगापमाणेणं सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा। सत्त महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा । सत्त सादीणगंगाओ सा एगा मदुगंगा। सत्त मदुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा। सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा । सत्त आवतीगंगाओ सा एगा परमावती। एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासयसहस्सं सत्तरस य सहस्सा छच्च अगुणपन्नं गंगासया भवंतीति मक्खाया।" "तासि दुविहे उद्धारे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमबोंदिकलेवरे चेव, बायरबोंदिकलेवरे चेव"। "तत्थ णं जे से सुहमबोंदिकलेवरे से ठप्पे" । "तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तओ णं वाससए गए, वाससए गए एगमेगं गंगावालयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोठे खीणे णीरए निल्लेवे निट्ठिए भवति सेत्तं सरे सरप्पमाणे" । एएणं सरप्पमाणेणं तिण्णि सरसयसाहस्सोओ से एगे महाकप्पे, चउरासीति महाकप्पसयसहस्साई से एगे महामाणसे । "१. अणंताओ संजहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जति । से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता पढमे सण्णिगन्भे जीवे पच्चायाति"। "२. से णं तओहितो अणंतरं उन्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, विहरिता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता दोच्चे सण्णिगब्भे जोवे पच्चायाति ।" "३. से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता हेट्ठिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्य दिव्वाइं भोगभोगाई-जाव-चइत्ता तच्चे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति"। "४. से णं तओहितो-जाव-उव्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाई-जाव-चइत्ता चउत्थे सण्णिगन्भे जीवे पच्चायाति"। "५. से णं तओहितो अणंतरं उध्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाई-जावचइत्ता पंचमे सण्णिगन्भे जीवे पच्चायाति"। "६. से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता हिट्ठिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाई-जाव-चइत्ता छठे सण्णिगन्भे जीवे पच्चायाति"। "७. से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता--बंभलोगे नाम से कप्पे पण्णत्ते--पाईणपडीणायते उदोणदाहिणविच्छिण्णे, जहा ठाणपदे -जाव-पंच वडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा--असोगवडेंसए-जाव-पडिरूवा--से णं तत्थ देवे उववज्जइ । से णं तत्थ दस सागरोवमाई दिव्वाई भोगभोगाई-जाव-चइत्ता सत्तमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति" । "से गं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं वोतिक्कंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउ-कुंडलकुंचिय-केसए मट्ठगंडतल-कण्णपीढए देवकुमारसप्पभए दारए पयाति" । "से णं अहं कासवा! तए णं अहं आउसो कासवा! कोमारियपव्वज्जाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकण्णए चेव संखाणं पडिलभामि, पडिलभित्ता इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि, तं जहा--१. एणज्जस्स २. मल्लरामस्स ३. मंडियस्स ४. रोहस्स ५. भारद्दाइस्स ६. अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स ७. गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स" । "तत्थ णं जे से पढमे पउट्टपरिहारे से णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया मंडिकुच्छिसि चेइयंसि उदाइस्स कुंडियायणस्स सरोरं विष्पजहामि, विप्पजहिता एणेज्जगस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता बावीसं वासाई पढम पउट्टपरिहारं परिहरामि"।
दिन्वाई भोग पच्चायाति"।
रचयं चइता
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आजीवियतित्थर-गोसालकहाणयं
४०५
"तत्थ णं जे से दोच्चे पउट्टपरिहारे से णं उद्दडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयंसि एणेज्जगस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता मल्लरामस्स सरोरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता एकवीसं वासाइं दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि"। "तत्थ णं जे से तच्चे पउट्टपरिहारे से णं चंपाए नगरीए बहिया अंगमंदिरंसि चेइयंसि मल्लरामस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहिता मंडियस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता वीसं वासाइं तच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि"। "तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे से णं वाणारसीए नगरीए बहिया काममहावणंसि चेइयंसि मंडियस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहिता रोहस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता एकूणवीसं वासाई चउत्थं पउट्टपरिहारं परिहरामि"। "तत्थ णं जे से पंचमे पउट्टपरिहारे से णं आलभियाए नगरीए बहिया पत्तकालगंसि चेइयंसि रोहस्स सरोरगं विप्पजहामि, विप्पजहिता भारद्दाइस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता अट्ठारस वासाइं पंचमं पउट्टपरिहारं परिहरामि"। "तत्थ णं जे से छठे पउट्टपरिहारे से णं वेसालीए नगरीए बहिया कोंडियायणंसि चेइयंसि भारद्दाइस्स सरीरं विप्पजहामि, विप्पजहिता अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता सत्तरस वासाइं छठें पउट्टपरिहारं परिहरामि" । "तत्थ णं जे से सत्तमे पउट्टपरिहारे से णं इहेव सावत्थीए नगरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरोरगं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं सीयसहं उण्हसहं खुहासह विविहदंसमसगपरीसहोवसग्गसहं थिरसंघयणं ति कट्ट तं अणुप्पविसामि, अणुप्पविसित्ता सोलस वासाई इमं सत्तमं पउट्टपरिहारं परिहरामि"। "एवामेव आउसो कासवा! एगेणं तेत्तीसेणं वाससएणं सत्त पउट्टपरिहारा परिहरिया भवंतीति मक्खाया" । "तं सुठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी--साहू णं आउसो कासवा ! ममं एवं वयासी--गोसाले मंखलिपुत्ते मम धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी"।
भगवया गोसालगवयणस्स पडियारो ७८ तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं बयासी--"गोसाला ! से जहानामए तेणए सिया, गामेल्लएहि परब्भमाणे
परब्भमाणे कथयि गड्डं वा दरि वा दुग्गं वा णिण्णं वा पव्वयं विसमं वा अणस्सादेमाणे एगेणं महं उण्णालोमेण वा सणलोमेण वा कप्पासपम्हेण वा तणसूएण वा अत्ताणं आवरेताणं चिट्ठज्जा, से णं अणावरिए आवरियमिति अप्पाणं मण्णइ, अप्पच्छण्णे य पच्छण्णमिति अप्पाणं मण्णइ अणिलुक्के णिलुक्कमिति अप्पाणं मण्णइ, अपलाए पलायमिति अप्पाणं मण्णइ, एवामेव तुमं पि गोसाला! अणण्णे संते अण्णमिति अप्पाणं उपलभसि, तं मा एवं गोसाला! नारिहसि गोसाला! सच्चेव ते सा छाया नो अण्णा"।
भगवंतं पइ गोसालस्स पुणो वि अक्कोसो ७९ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे समणं
भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेति, उच्चावयाहि निम्भच्छणाहिं निम्भच्छेति, उच्चावयाहि निच्छोडणाहि निच्छोडेति, निच्छोडेत्ता एवं वयासी-"नढे सि कदाइ, विणठे सि कदाइ, भट्ठे सि कदाइ, नट्ठ-विण?-भट्ठे सि कदाइ, अज्ज न भवसि, नाहि ते ममाहितो सुहमत्थि"।
गोसालेण सव्वाणुभूतिमणिस्स भासरासीकरणं ८० तेणं कालेणं तेण समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नाम अणगारे पगइभद्दए पगइउवसंते
पगइपयणुकोह-माण-माया-लोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विणीए धम्मायरियाणुरागणं एयमढें असद्दहमाणे उट्ठाए उठेइ, उद्वेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्ते एवं वयासो-“जे वि ताव गोसाला! तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति, से वि ताव वंदति नमंसति सक्कारेति सम्माति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति, किमंग पुण तुमं गोसाला ! भगवया चेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए, भगवया चेव सेहाविए, भगवया चेव सिक्खाविए, भगवया चेव बहुस्सुतीकए, भगवओ चेव मिच्छं विप्पडिवन्ने? तं मा एवं गोसाला! नारिहसि गोसाला!
सच्चेव ते सा छाया नो अण्णा"। ८१ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सव्वाणुभूतिणा अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सव्वाणु
भूति अणगारं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्च भासरासि करेति ।
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सव्वाणुभूति अणगारं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेत्ता दोच्चं पि समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ,-जाव-(सु.७९) सुहमत्थि ।
गोसालेण सुनक्खत्तमणिस्स परितावणं ८२ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी कोसलजाणवए सुनक्खत्ते नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए
धम्मायरियाणुरागेणं-जाव-(सु. ८०) सच्चेव ते सा छाया नो अण्णा। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्त सुनक्खत्तेणं अणगारेणं एवं बुत्ते समाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सुनक्खत्तं अणगारं तेवेणं तेएणं परितावेइ। तए णं से सुनक्खत्ते अणगारे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं परिताविए समाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ, नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महन्वयाई आरभेति, आरुभत्ता समणा य समणीओ य खामेइ, खामेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगए।
गोसालं पइ भगवओ अणुसट्ठी, पडिकुद्धगोसालमुक्केण य निष्फलेण तेएण गोसालस्सेव अणुडहणं ८३ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सुनक्खत्तं अणगारं तवेणं तेएणं परितावेत्ता तच्चं पि समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहि आओस
णाहि आओसइ,-जाव-(सु. ७९) सुहमत्थि। तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी--"जे वि ताव गोसाला! तहारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति, से वि ताव वंदति नमंसति सक्कारेति सम्माणेति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति, किमंग पुण गोसाला! तुम मए चेब पव्वाविए, मए चेव मुंडाविए, मए चेव सेहाविए, मए चेव सिक्खाविए, मए चेव बहुस्सुतीकए, ममं चेव मिच्छं विप्पडिवन्ने? तं मा एवं गोसाला! नारिहसि गोसाला! सच्चेव ते सा छाया नो अण्णा"। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तेयासमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणिता सत्तटु पयाई पच्चीसक्कइ; पच्चोसक्कित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरति--से जहानामए वाक्कलिया इ वा वायमंडलिया इ वा सेलसि वा कुटुंसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवारिज्जमाणी वा निवारिज्जमाणी वा सा णं तत्थ नो कमति नो पक्कमति एवामेव गोसालस्स वि मंखलिपुत्तस्स तवे तेए समणस्स भगवओ महावीरस्स वहाए सरीरगंसि निसिठे समाणे से णं तत्थ नो कमति नो पक्कमति अंचियंचि करेति, करेत्ता आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेत्ता उड्ढं वेहासं उप्पइए, से णं तओ पडिहए पडिनियत्तमाणे तमेव गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अणुडहमाणेअणुडहमाणे अंतो-अंतो अणुप्पविठे।
तं मा एवं गोमा चैव मुंडाविए, मए चबमाणेति कल्लाणं मंगल दास वा
गोसाल-महावीराणं परोप्पर मरणकालमज्जायानिरूवणं ८४ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सएणं तेएणं अण्णाइट्ठे समाणे समणं भगवं महावीरं एवं वयासी--तुमं णं आउसो कासवा! मम
तवेणं तेएणं अण्णाइ8 समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्ससि । तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी-नो खलु अहं गोसाला! तब तवेणं तेएणं अण्णाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्सामि, अहं ण्णं अण्णाई सोलस वासाई जिणे सुहत्थी विहरिस्सामि। तुमं णं गोसाला! अप्पणा चेव सएणं तेएणं अण्णाइट्ठे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्ससि ।
सावत्थीए जणपवादो तए णं सावत्थीए नगरोए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव-एवं परूवेइ-- "एवं खलु देवाणुप्पिया! सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए दुवे जिणा संलवंति--एगे वदति तुमं पुब्धि कालं करेस्ससि, एगे वदति तुमं पुब्बि कालं करेस्ससि । तत्थ णं के पुण सम्मावादी? के मिच्छावादी ?" तत्थ णं जे से अहप्पहाणे जणे से वदति--"समणे भगवं महावीरे सम्मावादी, गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छावादी"।
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आजीवियतित्थयर-गोसालकहाणयं
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भावंताऽऽदिदुनिग्गथेहिं गोसालं पइ पडिचोयणा अज्जो ! ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी--"अज्जो ! से जहानामए तणरासी इ वा कटुरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगणिझामिए अगणिझूसिए अगणिपरिणामिए हयतेए गयतेए नटुतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणद्वतेए जाए, एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरित्ता हयतेए गयतेए नट्टतेए भट्ठतेए लुत्ततेए, विणट्ठतेए जाए, तं छंदेणं अज्जो ! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, अछेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि य निप्पट्टपसिणवागरणं करेह"। तए णं ते समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएंति, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेति, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेति, अद्वेहि य हेऊहि य कारणेहि य निप्पटुपसिणवागरणं करेंति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेहि निरगंथेहि धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोइज्जमाणे, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारिज्ज- . माणे, धम्मिएणं पडोयारेण य पडोयारेज्जमाणे, अठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि य निष्पट्टपसिणवागरणे कोरमाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे नो संचाएति समणाणं निग्गंथाणं सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएत्तए, छविच्छेदं वा करेत्तए।
गोसालसंघस्स भेदो ८७ तए णं ते आजीविया थेरा गोसालं मखलिपुत्तं समर्णेहि निग्गंथेहि धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएज्जमाणं, धम्मियाए पडिसारणाए
पडिसारिज्जमाणं, धम्मिएणं पडोयारेण य पडोयारेज्जमाणं, अद्वेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि य निप्पटपसिणवागरणं कीरमाणं, आसुरुत्तं रुळं कुवियं चंडिक्कियं मिसिमिसेमाणं समणाणं निग्गंथाणं सरीरगस्स किचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकरेमाणं पासंति, पासित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमंति, अवक्कमित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणं भगवं महावीरं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति। अत्थेगतिया आजीविया थेरा गोसालं चेव मंखलिपुत्तं उवसंपज्जित्ताणं बिहरंति ।
अंतोसमभूयडाहस्स गोसालस्स मज्जपाणाइयाओ चेठाओ ८८ तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्सट्टाए हव्वमागए तमळं असाहेमाणे, रुंदाई पलोएमाण, दोहुण्हाइं नीससमाणे, दाडियाए लोमाई
लुंचमाणे अवडं कंडूयमाणे, पुलि पप्फोडेमाणे, हत्थे विणिद्धणमाणे, दोहि वि पाएहि भूमि कोट्टेमाणे हा हा अहो ! हओहमस्सि ति कटु समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नगरी, जेणेव हालाहलाए कुंभकारोए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए, मज्जपाणगं पियमाणे, अभिक्खणं गायमाणे, अभिक्खणं नच्चमाणे, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे, सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचिण-उदएणं गायाइं परिसिंचमाणे विहरइ ।
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भगवंतपरूवियं गोसालतेयलेस्सासामथपव्वं गोसालसिद्धतसरूवं अज्जोति ! ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासो-"जावतिए णं अज्जो ! गोसालेणं मखलिपुत्तेणं ममं वहाए सरीरगंसि तेये निसट्टे से णं अलाहि पज्जते सोलसण्हं जणवयाणं, तं जहा--१. अंगाणं २. वंगाणं ३. मगहाणं ४. मलयाणं ५. मालवगाणं ६. अच्छाणं ७. वच्छाणं ८. कोट्ठाणं ९. पाढाणं १०. लाढाणं ११. वज्जीणं १२. मोलीणं १३. कासीणं १४. कोसलाणं १५. अवाहाणं १६. सुंभुत्तराणं घाताए वहाए उच्छादणयाए भासीकरणयाए"। "ज पि य अज्जो! गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारोए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए, मज्जपाणं पियमाणे, अभिक्खणं गायमाणे, अभिक्खणं नच्चमाणे, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे विहरइ, तस्स वि य णं वज्जस्स पच्छादणट्टयाए इमाइं अट्ठ चरिमाइं पण्णवेइ, तं जहा--१. चरिमे पाणे २. चरिमे गेये ३. चरिमे नट्टे ४. चरिमे अंजलिकम्मे
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
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५. चरिमे पोक्खलसंवट्टए महामेहे ६. चरिमे सेयणए गंधहत्थी ७. चरिमे महासिलाकंटए संगामे ८. अहं च णं इमीसे ओसप्पिणिसमाए चउबीसाए तित्थगराणं चरिमे तित्थगरे सिज्झिस्सं-जाव-अंतं करेस्स"। "जं पि य अज्जो! गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचणि उदएणं गायाइं परिसिंचमाणे विहरइ, तस्स वि णं बज्जस्स पच्छादणट्टयाए इमाइं चत्तारि पाणगाइं चत्तारि अपाणगाइं पण्णवेति"। "से कि तं पाणए" ? "पाणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--१. गोपुटुए २. हत्थमद्दियए ३. आतवतत्तए ४. सिलापब्भट्टए । सेत्तं पाणए"। "से कि तं अपाणए" ? “अपाणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--१. थालपाणए २. तथापाणए ३. सिबलिपाणए ४. सुद्धपाणए"। से कि तं थालपाणए"? "थालपाणए--जे णं दाथालगं वा दावारगं वा दाकुंभगं वा दाकलसं वा सीतलगं उल्लगं हत्थेहि परामुसइ, न य पाणियं पियइ । सेत्तं थालपाणए"। “से कि तं तयापाणए" ? "तयापाणए-जे गं अंबं वा अंबाडगं वा जहा पओगपदे-जाव-बोरं वा तेंदुरुयं वा तरुणगं आमगं आसगंसि आवीलेति वा पवीलेति वा, न य पाणियं पियइ। सेत्तं तयापाणए"। "से कि तं सिबलिपाणए" ? "सिबलिपाणए-जे णं कलसंगलियं वा मुग्गसंगलियं वा माससंगलियं वा सिबलिसंगलियं वा तरुणियं आमियं आसगंसि आवीलेति वा पवीलेति वा, न य पाणियं पियति । सेत्तं सिंबलिपाणए"। “से कि तं सुद्धपाणए" ? "सुद्धपाणए--जे णं छम्मासे सुद्धखाइमं खाइ-दो मासे पुढविसंथारोवगए, दो मासे कट्टसंथारोवगए, दो मासे दब्भसंथारोवगए; तस्स णं बहुपडिपुण्णाणं छण्हं मासाणं अंतिमराईए इमे दो देवा महिड्ढिया-जाब-महेसक्खा अंतियं पाउब्भवंति, तं जहा--पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य। तए णं ते देवा सीयलएहि उल्लएहि हत्येहि गायाई परामसंति, जे णं ते देवे साइज्जति, से णं आसीविसत्ताए, कम्म पकरेति, जे णं ते देवे नो साइज्जति तस्स णं संसि सरीरगंसि अगणिकाए संभवति, से णं सएणं तेएणं सरोरगं झामेति, झामेत्ता तओ पच्छा सिज्झति-जाव-अंतं करेति । सेत्तं सुद्धपाणए"।
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आजीवियथेरेहि अयंपुलस्स आजीवियउवासगत्ते थिरीकरणं अयंपुले-आजीविओवासए तत्थ णं सावत्थीए नयरीए अयंपुले नाम आजीविओवासए परिवसइ--अड्ढे, जहा हालाहला-जाव-आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं तस्स अयं पुलस्स आजीविओवासगस्स अण्णया कदायि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अजमथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"किसंठिया णं हल्ला पण्णत्ता?" तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविओवासगस्स दोच्चं पि अयमेयारवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था-"एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते उप्पन्नना पदसणधरे जिणे अरहा केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी इहेब सावत्थीए नगरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघसंपरिबुडे आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते गोसालं मंखलिपुत्तं वंदित्ता-जाब-पज्जुवासित्ता इमं एयारूवं वागरणं वागरित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पहाए कयबलिकम्मे-जाव-अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं सात्थि नरि मझमज्झणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगयं मज्जपाणगं पीयमाणं अभिक्खणं गायमाणं, अभिक्खणं नच्चमाणं, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणं सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचणि-उदएणं गायाई परिसिंचमाणं पासइ, पासित्ता लज्जिए विलिए विड्डे सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ" ॥
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आजीवियतित्थयर-गोसालक हाण यं
९१ एते आजीविया बेराजपूतं आजीवियोवासगं लज्जियं जाव-पच्चीसवकमार्ग पासंति, पासिता एवं क्यासी "एहि ताव अपुला ! इस"।
लए णं' से अपुले आजीवियोवास आजीवि एवं वृत्तं समाणे जेणेव आजीविया बेरा तेगेव उवागन्छ, उवागडिता आजीविए मेरे दनमंस, वंदिता नमसिता नचासने जाव-पज्जुवास ।
अयंपुला ति आजीविया मेरा अपुलं आजीवियोवासगं एवं क्यासी "से नूणं ते अपुला ! पुच्चरत्तावरतकालसमति कुटुंबजागरिवं जागरमाणस्स अयमेयास्वे अज्मत्लिए वितिए पत्थिए मणोगए संकष्ये समुप्यज्जित्था किसठिया णं हल्ला पण्णत्ता" ?
"तए णं तव अयंपुला ! दोच्चं पि अयमेयारूवे तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाव सावरंथ नगर मज्झमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए। से नूणं ते अयंपुला ! अट्ठे समट्ठे" ?
"हंता अस्थि"।
"जं पि य अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए- जावकरेमाणे विहर, तत्थ विषं भगवं इमाई अट्ट चरिमाई पण्णवेति तं जहा -- चरिमे पाणे जाव अंतं करेस्सति" । "पि य अपुला तब धम्मावरिए धम्मोपदेस गोसाले मंखलिते सीयलएर्ण मट्टिया पाणए आणि उदए गावा परिसिंचमाणे विहर, तत्थ वि णं भगवं इमाई चत्तारि पाणगाई, चत्तारि अपाणगाइं पण्णवेति" ।
"से किं तं पाणए ? पाणए-जाव-तओ पच्छा सिज्झति- - जाव अंतं करेति" ।
"तं गच्छ णं तुमं अयंपुला ! एस चैव तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते इमं एयारूवं वागरणं वागरेहिति" । तए णं से अयंपुले आजीविओवासए आजीविएहि थेरेहिं एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
तए पं ते आजीविया बेरा मोसाल
मंलिपुत्तस्स अंग-एडायनपाए एतमंते संगारं कुव्वंति ।
तणं से गोसाले मंखलिपुत्ते आजीवियाणं थेराणं संगारं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अंबकूणगं एगंतमंते एडेइ ।
९२ तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए जेणेव गोसाले मंखलिपुत्तं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं तिक्खुत्तो- जावपज्जुवासति ।
पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि - जाव- जेणेव
अयंगुला ! दिगोसाले मंखलिपुत्ते अयंपुलं आजीवियोवासगं एवं वयासी - " से नूणं अयंपुला ! ममं अंतियं तेणेव हव्वमागए। से नूणं अयंपुला ! अट्ठे समट्ठे " ?
"हंता अस्थि"।
"तं नो खलु एस अंबकूणए, अंबचोयए णं एसे । किंसंठिया हल्ला पण्णत्ता ? वंसीमूलसंठिया हल्ला पण्णत्ता । वीणं वाएहि रे वीरगा ! बीणं वाएहि रे वीरगा " !
९३
तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं इमं एयारूवं वागरणं वागरिए समाणे हट्टतुट्ठ वे चित्तमानंदिए मंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए गोसालं मंखलिपुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता परिणां पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठाई परियादियs, परियादिइत्ता उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता गोसालं मंखलिपुत्तं वंदइ नमस, वंदित्ता नमसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिपडिगए"।
गोसालरस अपणो मरणानंतर मोहरणनिहंसो
९४ सेमोसाले मंखलिते अप्पणी मरणं आभोएड, आभोला आजीविए मेरे सहावे सहावेत्ता एवं क्यासी"तुभे देवागुपिया ! ममं कालवं जाणिता सुरभिणा मधोबहाणे व्हावेता पम्हलसुकुमालाए गंधकासाईए गायाई सूह, सा सरसेणं मोसीसबंदणं गायाई अलि अलिपिता महरिहं हंसलखणं पडसादयं नियंसेह नियंता सवालंकारविमूसियं करेह करेला पुरिससहरसवाहिणि सीयं दुरहेह रहेसा सावत्बीए नयरीए सिंघाड-गतिग-च-चच्चर- उम्मुह-महाप-पहे महया महया समं उघोसेमाणा उपोलेमाना एवं वह एवं खलु देवाडिया ! गोसाले मंजलिपुत्ते जिथे णिप्पलाबी, अरहा अरणलाबी,
४० क० ५२
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधा
केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिणे जिणसई पगासेमाणे विहरिता इमीसे ओसप्पिणीए चउबीसाए तित्यगराणं चरिमे तित्थगरे, सिद्धे-जाव-सव्वदुक्खप्पहीणे--इड्ढिसक्कारसमुदएणं मम सरीरगस्स नीहरणं करेह" । तए णं ते आजीविया थेरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमटठं विणएणं पडिसुणेति ।
गोसालस्स सम्मत्तपरिणामव्वं कालधम्मे ९५ तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सत्तरतंसि परिणममाणंसि पडिलद्ध-सम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्प
ज्जित्था--"नो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिणे जिणसई पगासेमाणे विहरिते अहं णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए समणमारए समणपडिणीए आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहि असन्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहरित्ता सएणं तेएणं अण्णाइट्ठे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्सं । समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी, अरहा अरहप्पलादी, केवली केबलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी जिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ।"
एवं संपेहेति, संपेहेत्ता आजीविए थेरे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता उच्चावय-सवह-सावियए पकरेति, पकरेत्ता एवं वयासी-"नो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी-जाव-पगासेमाणे विहरिए । अहं गं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए-जाव-दाहवक्कतोए छउमत्थे चेव कालं करेस्सं । समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी-जाव-जिणसह पगासेमाण विहरइ, तं तुम्भं णं देवाणुप्पिया ! ममं कालगयं जाणित्ता वामे पाए सुंबेणं बंधेह, बंधेत्ता तिक्खुत्तो मुहे उठुभेह, उट्ठभेता सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापह-पहेसु आकड्ढ-विर्काड्ढ करेमाणा महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेभाणा एवं वदह--'नो खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी-जाव-बिहरिए। एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणधायए-जाव-छउमत्थे चेव कालगए । समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी-जाव-विहरई'। महया अणिड्ढी-असक्कारसमुदएणं मम सरीरगस्स नीहरणं करेज्जाह"--एवं वदित्ता कालगए।
गोसालसरीरस्स नीहरणं ९६ तए णं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराई पिहेंति, पिहेत्ता
हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्रदेसभाए सात्थि नर आलिहंति, आलिहित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं बामे पदे संबेणं बंधंति, बंधित्ता तिक्खुत्तो मुहे उट्ठभंति, उट्ठभित्ता सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापह-पहेसु आकड्ढविड्ढि करेमाणा णीयं-णीयं सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्धोसेमाणा एवं वयासी--"नो खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्त जिणे जिणप्पलावी-जाव-विहरिए । एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए-जाव-छउमत्थे चेव कालगए । समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी-जाव-विहरइ " सवह-पडिमोक्खणगं करेंति, करेत्ता दोच्चं पि पूया-सक्कार-थिरीकरणट्टयाए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वामाओ पादाओ सुंबं मुयंति, मुइत्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवार-वयणाई अवगुणंति, अवंगुणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेति, तं चेव-जाव-महया इड्डि सक्कारसमुदएणं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स नोहरणं करेंति ।
भगवओ देहे रोगायंक-पाउब्भवो ९७ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कदायि सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता वहिया
जणवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियागामे नाम नगरे होत्था--वण्णओ। तस्स णं मेंढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, एत्थ णं साणकोट्ठए नाम चेइए होत्था--वण्णओ-जाव-पुढविसिलापट्टओ। तस्स गं साणकोढगस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था-किण्हें किण्होभासे-जाव-महामेहनिकुरंबभए पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उबसोभेमाणे चिट्ठति । तत्थ णं मेंढियागामे नगरे रेवती नाम गाहावइणी परिवसति--अड्ढा-जाव-बहुजणस्स अपरिभूया।
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आजीवियतित्थयर-गोसालकहाणयं
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तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदायि पुब्वाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव मेंढियगामे नगरे जेणेव साणकोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ-जाव-परिसा पडिगया। तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायके पाउब्भूए--उज्जले विउले पगाढे कक्कसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे तिव्वे, दुरहियासे, पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कतिए यावि विहरति, अवि याइं लोहिय-बच्चाई पि पकरेइ, चाउवण्णं च णं वागरेति--"एवं खलु समणे भगवं महावीरे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अण्णाइट्ठे समाणे अंतों छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए छउमत्थे चेव कालं करेस्सति ।"
सोहमुणिस्स माणसियं दुक्खं ९८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहे नाम अणगारे--पगइभद्दए-जाव-विणीए मालुयाकच्छगस्स
अदूरसामंते छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरति। तए णं तस्स सोहस्स अणगारस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउन्भूए--उज्जले-जाव-छउमत्थे चेव कालं करेस्सति, वदिस्संति य णं अण्णतिथिया--छउमत्थे चेव कालगए"। इमेणं एयारवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो-अंतो अणुपविसइ, अणुपविसित्ता मया-मया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुष्णे ।
भगवया सोहस्स आसासणं ९९ अज्जो ! ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं वयासी-“एवं खलु अज्जो! ममं अंतेवासी सीहे नामं अणगारे
पगइभद्दए -जाव-विणीए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामंते छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरति । तए णं तस्स सीहस्स अणगारस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए -जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो-अंतो-जाव-कुहुकुहुस्स परुण्णे । तं गच्छह णं अज्जो ! तुब्भे सीहं अणगारं सद्दाह"। तए णं ते समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति, बंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ साणकोटगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव मालुयाकच्छए, जेणेव सीहे अणगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सोहं अणगारं एवं वयासो--"सीहा! धम्मायरिया सद्दावेंति"। तए णं से सीहे अणगारे समणेहि निग्गंथेहिं सद्धि मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव साणकोटुए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं-जाव-पज्जुवासति ।
१००
सीहा ! दि समणे भगवं महावीरे सोहं अणगारं एवं वयासी--"से नूणं ते सोहा ! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए -जाव-कुहकुहस्स परुण्णे । से नूणं ते सीहा! अछे समठे?" "हंता अत्थि ।"
"तं नो खलु अहं सोहा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अण्णाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कतिए छउमत्थे चेव कालं करेस्सं अहं गं अद्ध सोलस वासाइं जिणे सुहत्थी विहरिस्सामि, तं गच्छ णं तुमं सीहा! मेंढियगाम नगरं, रेवतीए गाहावतिणीए गिह, तत्थ णं रेवतीए गाहावतिणीए ममं अट्ठाए दुवे कवोय-सरीरा उवक्खडिया, ते हि नो अठो; अत्थि से अण्णे पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए, तमाहराहि, एएणं अट्ठो"।
सोहमणिणा रेवइसयाओ भेसज्जाणयणं १०१ तए णं से सोहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-जाव-हियए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ,
बंदित्ता नमंसित्ता अतुरियमचवलमसंभंतं मुहपोतियं पडिलेहेति, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेति, पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पर्माज्जता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं बंदइ
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
म अणमाहस्स अंतियं णयमवासोच्चा, चितममा हसता शेणेव भत्तापरे तेणे महागड
नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ साणकोढगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंतं जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव मंदियगामे नगरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मेंढियगाम नगरं मझमझेणं जेणेव रेवतीए गाहावइणीए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता रेवतीए गाहावतिणीए गिहं
अणुप्पविट्टे । १०२ तए णं सा रेवती गाहावतिणी सीहं अणगारं एज्जमाणं पासति, पासित्ता हट्ठतुट्ठा खिप्पामेव आसणाओ अब्भुट्टेड, अम्भुठेत्ता सोहं
अणगारं सत्तट्ट पयाइं अणुगच्छड, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेता बंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी--"संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणप्पयोयणं?" तए णं से सोहे अणगारे रेवति गाहावइणि एवं वयासी--"एवं खलु तुमे देवाणुप्पिए ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्टाए दुवे कवोय-सरीरा उवखडिया, तेहि नो अट्ठो, अत्थि ते अण्णे पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए एयमाहराहि, तेणं अट्ठो"। तए णं सा रेवती गाहावइणी सीहं अणगारं एवं वयासी--"केस णं सोहा। से नाणी वा तवस्सी वा, जेणं तब एस अछे मम ताब रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं तुमं जाणासि" ? तए णं से सीहे अणगारे रेवई गाहावइणि एवं वयासो-"एवं खलु रेवई ! ममं धम्मारिए धम्मोबदेसए समणे भगवं महावीरे उप्पण्णनाण-दंसणधरे अरहा जिणे केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागवियाणए सब्वण्णू सव्वदरिसी जेणं मम एस अट्टे तब ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं अहं जाणामि । तए णं सा रेवती गाहावतिणी सीहस्स अणगारस्स अंतियं एयमलैं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पत्तगं मोएति, मोएत्ता जेणेव सोहे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहस्स अणगारस्स पडिग्गहगंसि तं सव्वं सम्म निसिरति। तए णं तोए रेवतीए गाहावतिणीए तेणं दव्वसुद्धेणं दायगसुद्धणं पडिगाहगसुद्धणं तिविहेणं तिकरणसुद्धणं दाणेणं सीहे अणगारे पडि. लाभिए समाणे देवाउए निबद्धे, संसारे परित्तीकए, गिहंसि य से इमाई पंच दिव्वाई पाउम्भूयाई, तं जहा--वसुधारा बुढा दसद्धवणे कुसुमे निवातिए, चेलुक्खेवे कए, आहयाओ देवदुंदुभीओ, अंतरा वि प णं आगासे अहो दाणे, अहो दाणे त्ति घटठे । तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ--"धन्ना णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कयत्था णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कयपुण्णा णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कयलक्खणा णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी, कया णं लोया देवाणुप्पिया ! रेवतीए गाहावतिणीए सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले रेवतीए गाहावतिणीए, जस्स णं गिहंसि तहारूवे साधू साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाई पंच दिव्वाई पाउन्भूयाई, तं जहा--वसुधारा वुढा-जाव-अहो दाणे, अहो दाणे ति घुठे, तं धन्ना कयत्था कयपुण्णा कयलक्खणा,
कया णं लोया, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले रेवतीए गाहावतिणीए, रेवतीए गाहावतिणीए"। १०४ तए णं से सीहे अणगारे रेवतीए गाहावतिणीए गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता मेंढियगाम नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ,
निग्गच्छित्ता जहा गोयमसामी-जाव-भत्तपाणं पडिदंसेति, पडिदंसेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स पाणिसि तं सव्वं सम्म निस्सिरति ॥
भगवओ आरोग्गं १०५ तए णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं तमाहारं सरीरकोटुगंसि
पक्खिवति। तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स से विपुले रोगायके खिप्पामेव उवसंते, हठे जाए, अरोगे, बलियसरीरे । तुट्ठा समणा, तुट्ठाओ समणीओ, तुट्ठा सावया, तुट्ठाओ सावियाओ, तुट्ठा देवा, तुट्ठाओ देवीओ, सदेवमणुयासुरे लोए तुठे-हठे जाए समणे भगवं महावीरे, हढे जाए समणे भगवं महावीरे। सव्वाणभति-सुनक्खत्तमणीणं देवलोगप्पत्ती तयणंतरं सिद्धिगमणनिरूवणं च भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभती नामं अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए, से गं भंते ! तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए? कहिं उववन्ने ?”
नागने जि देवाणुपिया ! रेवई गाहात्ववाहावइणी, कया णं लोया देहाय साधू साधुरूवे पडिल
१०६
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आजीवियतित्थयर-गोसालकहाणय
४१३
"एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी पाईगजाणवए सव्वाणुभूती नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए, से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे उड्ढं चंदिम-सूरिय-जाव-बंभ-लंतक-महासुक्के कप्पे वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उवबन्ने । तत्थ णं अत्यंगतियाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता । तत्थ णं सव्वाणुभूतिस्स वि देवस्स अट्ठारस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता"। "से णं भंते ! सव्वाणुभूती देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति" ?
"गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति" । १०७ “एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कोसलजाणवए सुनक्खत्ते नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणोए। से णं भंते ! तदा गोसालेणं
मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं परिताविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहि गए ? कहिं उववन्ने?" "एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी सुनक्खत्ते नाम अणगारे पगइभद्दए-जाव-विणीए, से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं परिताविए समाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदति, नमंसति बंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महव्वयाई आरुभेति, आरुभेत्ता समणा य समणीओ य खामेति, खामेता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिमसूरिय-जाव-आणय-पाणयारणे कप्पे वीइवइत्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्यंगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तत्थ णं सुनक्खत्तस्स वि देवस्स बाबीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णता"। “से णं भंते ! सुनक्खत्ते देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं च चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति" ? "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति"।
गोसालजीवस्स देवलोगप्पत्ती १०८ "एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नाम मंखलिपुत्ते से णं भंते ! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं
गए? कहि उववन्ने"? "एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नाम मंखलिपुत्ते समणघायए-जाव-छउमत्थे चेव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय-जाव-अच्चुए कप्पे देवताए उवबन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाई ठिती पण्णता"।
गोसालस्स महापउमभवे-जम्मो रज्जाभिसेओ य १०९ “से णं भंते ! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहि
उववज्जिहिति" ? “गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विझगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे संमुतिस्स रण्णो भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति । से णं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धटुमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं-जाव-सुरूवे दारए पयाहिति"। . जं रर्याण च णं से दारए जाइहिति, तं रणि च णं सयदुवारे नगरे सभितरबाहिरिए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते निव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसमे दिबसे अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेनं काहिति-जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि जायंसि समाणंसि सयदुवारे नगरे सभितरबाहिरिए भारगस्सो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे वुठे, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्त नामधेनं महापउमे-महापउमे । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेहिति महापउमे त्ति । तए णं तं महापउमं दारगं अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासजायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त-महत्तंसि महया-महया रायाभिसेगेणं अभिसिचेहिति । से णं तत्य राया भविस्सति-महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वष्णओ-जाव-विहरिस्सइ।
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धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो
महापउमस्स देवसेण-विमलवाहणाभिधाणं नामदुगं ११० तए णं तस्स महापउमस्स रण्णो अण्णदा कदायि दो देवा महिड्ढिया-जाव-महेसक्खा सेणाकम्मं काहिति, तं जहा--पुण्णभद्दे य
माणिभद्दे य। तए णं सयदुवारे नगरे बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितओ अण्णमणं सद्दावेहिति, सद्दावेत्ता एवं वदेहिति - "जम्हा णं देवाणुप्पिया! महापउमस्स रण्णो दो देवा महिड्ढिया-जाव-महेसक्खा सेणाकम्मं करेंति, तंजहा--पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य, तं होउ णं देवाणुप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दोच्चे नामधेज्जे वि देवसेणे-देवसेणे । तए णं तस्स महापउमस्स रण्णो दोच्चे वि नामधेज्जे भविस्सति देवसेणे ति।
१११ तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो अण्णया कयाइ सेते संखतल-विमल-सन्निगासे चउड़ते हत्थिरयणे समुप्पज्जिस्सइ । तए णं से देवसेणे
राया तं सेयं संखतल-विमल-सन्निगासं चउद्दतं हत्थिरयणं ढूँढे समाणे सयदुवारं नगरं मझमज्झेणं अभिक्खणं-अभिक्खणं अतिजाहिति य निज्जाहिति य । तए णं सयदुवारे नगरे बहवे राईसर-तलवर-मांडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-पेणावइ, सत्यवाहप्पभितओ अण्णमण्णं सद्दाहिति, सहावेत्ता वहिति--जम्हा णं देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्य रणो सेते संखतल-विमल-सन्निगामे चउड़ते हत्थिरयणे समुप्पन्ने, तं होउ णं देवाणुप्पिया | अम्हं देवसेणस्स रण्णो तच्चे वि नामधेज्जे विमलवाहणे विमलवाहणे । तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो तच्चे वि नामधेज्जे भविस्सति विमलवाहणे ति॥
११२
विमलवाहणस्स निग्गंथ-पडिकलाचरणं तए णं से विमलवाहणे राया अण्णया कदायि समहं निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवज्जिहिति-अप्पेगतिए आओसेहिति, अप्पेगतिए अवहसिहिति, अप्पेगतिए निच्छोडेहिति, अप्पेगतिए निन्भच्छेहिति, अप्पेगतिए बंधेहिति, अप्पेगतिए निरंभेहिति, अप्पेगतियाणं छविच्छेदं करेहिति, अप्पेगतिए पमारेहिति, अप्पगतिए उद्दवेहिति, अप्पेगतियाणं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं आच्छिंदिहिति विच्छिदिहिति भिदिहिति अवहरिहिति, अप्पेगतियाणं भत्तपाणं वोच्छिदिहिति, अप्पेगतिए निन्नगरे करेहिति, अप्पेगतिए निविसए करेहिति। तए णं सयदुवारे नगरे बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितओ अण्णमण्णं सद्दावेहिति, सद्दावेत्ता एवं वदिहिति-"एवं खलु देवाणुप्पिया! विमलवाहणे राया सम!ह निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ने-अप्पेगतिए आओसति-जाव-निव्विसए करेति, तं नो खलु देवाणुप्पिया! एवं अम्हं सेयं, नो खलु एवं विमलवाहणस्स रण्णो सेयं, नो खलु एवं रज्जस्स वा रटुस्स वा बलस्स वा वाहणस्स वा पुरस्स वा अंतेउरस्स वा जणवयस्स वा सेयं, जण्णं विमलवाहणे राया समर्हि निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ने । त सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं विमलवाहणं रायं एयमद्वं विष्णवेत्तए" तिकटु अण्णमण्णस्स अंतियं एयमढें पडिसुलुहिति, पडिसुणेत्ता जेणेव विमलवाहणे राया तेणेव उवागछिहिति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु विमलवाहणं रायं जएणं विजएणं वदाहिति, वदावेत्ता एवं वदिहिति--एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणेहि निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ना अप्पेगतिए आओसंति-जाव-अप्पेगतिए निविसए करेंति, तं नो खलु एवं देवाणुप्पियाणं सेयं, नो खलु एवं अम्हं सेयं, नो खलु एयं रज्जस्स वा-जाव-जणवयस्स वा सेयं, जण्णं देवाणुप्पिया! समणेहिं निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ना, तं विरमंतु णं देवाणुप्पिया! एयस्स अट्ठस्स अकरणयाए"। तए णं से बिमलवाहणे राया तेहिं बहूहि राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभिईहिं एयमट्ठ विण्णत्ते समाणे नो धम्मो त्ति नो तवो त्ति, मिच्छा-विणएणं एयमलैं पडिसुणेहिति ।
विमलवाहणकओ सुमंगलअणगारउवसग्गो ११३ तस्स णं सयदुवारस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभागे, एत्थ णं सुभूमिभागे नाम उज्जाणे भविस्तइ--सव्वोउय-पुष्क
फलसमिद्धे, वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए सुमंगले नाम अणगारे जाइसंपन्ने, जहा धम्मघोसस्स बण्णओ-जाव-संखित्तविउलतेयलेस्से तिन्नाणोवगए सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छठेंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरिस्सति । तए णं से विमलवाहणे राया अण्णदा कदायि रहचरियं काउंनिज्जाहिति ।
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आजीवियतित्थर-गोसालवकहाणयं
४१५
तए णं से विमलवाहणे राया सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते रहचरियं करेमाणे सुमंगलं अणगारं छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहं आयावणभूमीए आयावेमाणं पासिहिति, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सुमंगलं अणगारं रहसिरेणं नोल्लावेहिति। तए णं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे सणियं-सणियं उठेहेति, उठेत्ता दोच्चं पि उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरिस्सति । तए णं से विमलवाहणे राया सुमंगलं अणगारं दोच्चं पि रहसिरेणं नोल्लावेहिति । तए णं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा दोच्चं पि रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे सणियं-सणियं उठेहिति, उठेत्ता ओहि पजेहिति, पउंजित्ता विमलवाहणस्स रण्णो तीतद्धं आभोएहिति, आभोएत्ता विमलवाहणं रायं एवं वइहिति--"नो खलु तुमं विमलवाहणे राया, नो खलु तुमं देवसेणे राया, नो खलु तुमं महापउमे राया, तुमं णं इओ तच्चे भवग्गहणे गोसाले नामं मंखलिपुत्ते होत्था--समणघायए-जाव-छउमत्थे चेव कालगए, तं जइ ते तदा सव्वाणुभूतिणा अणगारेणं पभुणा वि होऊणं सम्म सहियं खमियं तितिक्खियं अहियासियं, जइ ते तदा सुनक्खत्तेणं अणगारेणं पभुणा वि होऊणं सम्म सहियं खमियं तितिक्खियं अहियासियं, जइ ते तदा समणेणं भगवया महावीरेणं पभुणा वि होऊणं सम्मं सहियं खमियं तितिक्खियं अहियासियं, तं नो खलु ते अहं तहा सम्मं सहिस्सं खमिस्सं तितिक्खिस्सं, अहियासिस्सं अहं ते नवरं--सहयं सरहं ससारहियं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेज्जामि। तए णं से विमलवाहणे राया सुमंगलेणं अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुते रुट्ठ कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सुमंगलं अणगारं तच्चं पि रहसिरेणं नोल्लाहिति ।
सुमंगलमुणितेएण विमलवाहणस्स मरण ११४ तए णं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा तच्चं पि रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे आयावण
भूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता तेयासमुग्घाएणं समोहणिहिति, समोहण्णित्ता सत्तट्ट पयाई पच्चोसक्किहिति, पच्चोसक्कित्ता विमलवाहणं रायं सहयं सरहं ससारहियं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेहिति ।
सुमंगलमणिस्स देवलोग-सिद्धिगमणनिरूवणं ११५ "सुमंगले णं भंते ! अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं-जाव-भासरासि करेता कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति" ?
'गोयमा ! सुमंगले अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं-जाव-भासरासिं करेत्ता बहूहि छटट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमहि, विचितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणेहिति, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं असित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपते उड्दं चंदिम-जाव-विज्जविमाणावाससयं वीइवइत्ता सव्वटुसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं देवाणं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णता । तत्थ णं सुमंगलस्स वि देवस्स अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता" । "से णं भंते ! सुमंगले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खगणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइता कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति"? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ।
गोसालजीवस्स विमलवाहणस्स अणगा दुक्खपउरा भवा, तयणंतरं देवभवा य विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये-जाव-भासरासीकए समाणे कहि गच्छिहिति ? कहिं उववज्जिहिति" ? गोयमा! विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये-जाव-भासरासीकए समाण अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालदिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उबबज्जिहिति । से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झ दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढ़वीए उक्कोसकालट्टिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उवबज्जिहिति ।
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४१६
धम्मकहाणुओगे पंचमो खंधो से णं तओणंतरं उब्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे कालं किच्चा छटाए तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता इत्थियासु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाह वक्रतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि छट्ठाए तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उबवज्जिहिति । से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि इत्थियासु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता उरएसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कतोए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि उरएसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सोहेसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति। से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि सोहेसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्यवझे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं ततो अणंतरं उबट्टित्ता पक्खीसु उबवज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवझे दाहबक्कतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओणंतरं उध्वट्टित्ता दोच्चं पि पक्खीसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवझे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं तओणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि सिरीसवेसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उबवज्जिहिति। से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सण्णीसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवझे दाहवक्कतीए कालमासे कालं किच्चा असण्णीसु उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्स असंखेज्जइभागढिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता जाई इमाई खहयरविहाणाई भवंति, तं जहा--चम्मपक्खीणं, लोमपक्खीणं, समुग्गपक्खीणं, विययपक्खीणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सन्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाई भुयपरिसप्पविहाणाई भवंति, तं जहा--गोहाणं, नउलाणं, जहा पण्णवणापए-जाव-जाहगाणं चउप्पाइयाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उदाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्येव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाइं इमाइं उरपरिसप्पविहाणाई भवंति, तं जहा--अहीणं, अयगराणं, आसालियाणं, महोरगाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाइं इमाइं चउप्पदविहाणाई भवंति, तं जहा--एगखुराणं, दुखुराणं, गंडीपदाणं, सणहप्पदाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेब-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाइं जलयरविहाणाई भवंति, तं जहा--मच्छाणं, कच्छभाणं-जावसुंसुमाराणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाइं इमाइं चरिदियविहाणाई भवंति, तं जहा--अंधियाणं, पोत्तियाणं, जहा पण्णवणापदे-जाव-गोमयकीडाणं, तेसु अणेगसय सहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति ।
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पाजीवियतिस्थयर-गोसालकहाणय
४१७
सम्वत्थ वि णं सत्थवज्झे वाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाई तेइंदियविहाणाई भवंति, तं जहा--उवचियाणं-जावहत्थिसोंडाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाई बेइंदियविहाणाई भवंति, तं जहा--पुलाकिमियाणं-जावसमुद्दलिक्खाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सन्वत्थ वि णं सत्थवज्मे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाई वणस्सइविहाणाई भवंति, तं जहा--रुक्खाणं, गुच्छाणं -जाव-कुहणाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ--उस्सन्नं च णं कडुयरुक्खेसु, कडुयवल्लीसु। सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाइं वाउक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा--पाईणवायाणं -जाव-सुद्धवायाणं तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्य वि णं सत्थवज्झे वाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाई तेउक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा-इंगालाणं -जाव-सूरकंतमणिनिस्सियाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति। सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाइं इमाइं आउक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा-ओसाणं-जावखातोदगाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चाया इस्सइ--उस्सन्नं च णं खारोदएसु खत्तोदएसु। सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाइं पुढविक्काइयविहाणाइं भवंति, तं जहा--पुढवीणं, सक्कराणं-जाव-सूरकंताणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति--उस्सन्नं च णं खरबायरपुढविक्काइएसु। सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा रायगिहे नगरे बाहिं खरियत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ विणं सत्थवझे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि रायगिहे नगरे अंतो खरियताए उववज्जिहिति । तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विझगिरिपायमले बेभेले सण्णिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति । तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुकेणं, पडिरूवएणं विणएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्संति । सा णं तस्स भारिया भविस्सति--इट्ठा कंता-जाव-अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं-जाव-परिसहोवसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अण्णदा कदायि गुठिवणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति ।। से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहि बुझिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति । से णं तओहितो अणंतरं उध्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहि बुज्मिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहितो अणंतरं एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवण्णकुमारेसु, एवं विज्जुकुमारेसु, एवं अग्गिकुमारवज्ज-जाव-दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु। से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहिं बुझिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे जोइसिएसु देवेसु उववजिहिति । से णं तओहितो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ
अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि य णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति । ध० क० ५३
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४१८
धम्मकहाणुओगे पंचमों खंधों
से णं तओहितो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति । तत्थ वि णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओहितो एवं जहा सणंकुमारे तहा बंभलोए, महासुक्के, आणए, आरणे । से णं तओहितो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता केवलं बोहि बुझिहिति, बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति । तत्थ वि य णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सम्बटुसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति ।
गोसालजीवस्स दढपइण्णभवे सिद्धिगमणनिरूवणं ११७ से णं तओहितो अणंतरं चयं चइता महाविदेहे वासे जाई इमाई कुलाई भवंति--अड्ढाई-जाव-अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेसु
पुत्तत्ताए पच्चायाहिति, एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तथ्वया सच्चेव वत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा-जाव-केवलवरनाण-दसणे समुप्पज्जिहिति। तए णं से दढप्पइण्णे केवली अप्पणो तीतद्धं आभोएहिइ, आभोएत्ता समणे निग्गथे सद्दावेहिति, सद्दावेत्ता एवं वदिहिइ--एवं खलु अहं अज्जो! इओ चिरातीयाए अद्धाए गोसाले नाम मंखलिपुत्ते होत्था--समणघायए-जाव-छउमत्थे चेव कालगए, तम्मूलगं च णं अहं अज्जो अणादीयं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियट्टिए, तं मा णं अज्जो ! तुब्भं केयि भवतु आयरि पडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए, मा णं से वि एवं चेव अणादीयं अण-य दग्गं बीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियट्टिहिति, जहा णं अहं । तए णं ते समणा निग्गंथा दढप्पइण्णस्स केवलिस्स अंतियं एयमढं सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउविग्गा दढप्पइण्णं केलि वंदिहिंति नमंसिहिति, वंदित्ता नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोएहिति पडिक्कमिहिंति निदिहिति-जाव-अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवजिहिति। तए णं से दढप्पइण्णे केवली बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पच्चक्खाहिति, एवं जहा ओववाइए-जाव-सव्वदुक्खाणमंतं काहिति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति-जाव-विहरइ ।
भग० श०१५ ।
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छट्ठो खंधो
धम्मकहाणुओगे
पइण्णयकहाणगाणि
१ महावीरतित्थे २ महावीरतित्थे ३ महावीरतित्थे ४. महावीरतित्थे ५. महावीरतित्थे ६. महावीरतित्थे ७. महावीरतित्थे ८. महावीरतित्थे ९. महावीरतित्थे १०. महावीरतित्थे ११. महावीरतित्थे १२. महावीरतित्थे १३. महावीरतित्थे १४. महावीरतित्थे १५. महावीरतित्थे १६. महावीरतित्थे १७. महावीरतित्थे १८. महावीरतित्थे १९. महावीरतित्थे २०. महावीरतित्थे २१. महावीरतित्थे
सेणिय-चेल्लणावलोयणेण साहु-साहुणीकयनियाणपसंगो रहमुसलसंगामो रहमसलसंगामे कालाइ मरणकहा महासिलाकंटयसंगामकहाणय विजयतक्करणायं मयूरीअंडणायं कुम्मणायं रोहिणीणायं आसणायं मियापुत्तकहाणयं उज्झिययकहाणयं अभग्गसेणकहाणयं सगडकहाणयं बहस्सइदत्तकहाणयं नंदिवद्धणकुमारकहाणयं उबरदत्तकहाणयं सोरियदत्तकहाणयं देवदत्ताकहाणयं अंजूकहाणयं पूरणबालतवस्सिकहाणयं महासुक्कदेवाणं भगवओ महावीरस्स समीवे आगमणपसंगो
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१. सेणिय-चेल्लणावलोयणेण साहु-साहुणीकयनियाणकरणपसंगो
रायगिहे सेणियराया १ तेणं कालेणं, तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था । वण्णओ । गुणसिलए चेइए । वण्णओ। रायगिहे नयरे सेणिए राया होत्या।
रायवण्णओ जहा उववाइए-जाव-चेलणाए सद्धि० [भोगे भुंजमाणे] विहरइ ।
भगवंतमहावीरागमणवुत्तंतजाणणट्ठा सेणियस्स कोडुबियपुरिसे पइ आएसो तए णं से सेणिए राया अण्णया कयाइ व्हाए, कय-बलिकम्मे, कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते, सिरसा व्हाए, कंठे मालकडे, आविद्धमणिसुवण्णे, कविय-हारद्धहार-तिसरय-पालब-पलंबमाण-कडिसुत्तय-सुकयसोभे, पिणद्ध-गवेज्ज-अंगुलिज्जगे-जाव-कप्परुक्खए चेव सुअलंकियविभूसिए रिदे। सकोरंट-मल्ल-दामेणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं-जाव-ससि व्व पियदसणे नरवई जेणेव वहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव सिंहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-- "गच्छह णं तुम्हे देवाणुप्पिया! जाइं इमाई रायगिहस्स णयरस्स बहिया आरामाणि य, उज्जाणाणि य आएसणाणि य, आयतणाणि य देवकुलाणि य, सभाओ य पवाओ य पणियगिहाणि य, पणियसालाओ य छुहा-कम्मंताणि य, वणियकम्मंताणि य कटकम्मंताणि य, इंगालकमंताणि य वणकम्मंताणि य, दम्भकम्मंताणि य जे तत्थेव महत्तरगा आणत्ता चिट्ठति ते एवं वदह--एवं खलु देवाणुप्पिया ! सेणिए राया भंभसारे आणवेइ-जदा णं समणे भगवं महावीरे, आदिगरे, तित्थयरे-जाव-संपाविउकामे पुव्वाणुपुद्वि चरेमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहं सुहेण विहरमाणे, संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे इहमागच्छेज्जा, तया णं तुम्हे भगवओ महावीरस्स अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणह, अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणेत्ता सेणियस्स रण्णो भंभसारस्स एयमठें पियं णिवेदह ।" तए णं ते कोडुबिय-पुरिसे सेणिएणं रन्ना भंभसारेणं एवं वृत्ता समाणा हद्वतुट्ठ-जाव-हियया-जाव-"एवं सामी! तह" त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता सेणियस्स रनो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्मेण निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जाई इमाइं रायगिहस्स बहिया आरामाणि वा-जाव-जे तत्थ महत्तरगा आणत्ता चिट्ठति, ते एवं वयंति-जाव-'सेणियस्स रन्नो एयमझें पियं निवेदेज्जा, पियं भे भवतु' दोच्चंपि तच्चपि एवं वदंति, वइत्ता-जावजामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया।
भगवाओ महावीरस्स समोसरणं । ४ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे-जाव-गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे-जाव-अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।
तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-एवं-जाव-परिसा निग्गया,-जाव-पज्जुवासइ ।
महत्तरएहिं सेणियसमक्खं भगवंतआगमणनिवेयणं ५ तए णं महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदति नमसंति,
वंदित्ता, नमंसित्ता नाम-गोयं पुच्छंति, नाम-गोयं पुच्छित्ता नाम-गोयं पधारेंति, पधारित्ता एगओ मिलंति, एगओ मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, एगंतमवक्कमित्ता एवं वयासी-- "जस्स णं वेवाणुप्पिया! सेणिए राया भंभसारे दंसणं कंखति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया बंसणं पीहेति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया सणं पत्थेति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया सणं अभिलसति, जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया नामगोत्तस्स वि सवणयाए हद्वतुठे-जाव-भवति, से णं समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थयरे-जाव-सव्वण्णू सव्वदंसी, पुव्वाणुपुन्वि चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेण विहरमाणे इह आगए, इह समोसढे, इह संपत्ते-जाव-अप्पाणं भावेमाणे सम्म विहरति । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सेणियस्स रण्णो एयमढें निवेदेमो--पियं भे भवतु" ति कटु अण्णमन्नस्स वयणं
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४२२
धम्मकहाणुओग छट्ठो खंधो
पडिसुणंति, पडिसुणित्ता जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिह-नगरं मज्झमाझेण जेणेव सेणियस्स रनो गिहे, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति। उधागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिग्गहियं-जाव-जएणं विजएणं वद्धावेति। बद्धावित्ता एवं वयासी-- "जस्स णं सामी! दंसणं कंखति-जाव-से णं समण भगवं महावीरे गुणसिले चेइए-जाव-विहरति । तस्स णं देवाणुप्पिया! पियं निवेदेमो। पियं भे भवतु ।"
सेणियस्स रायगिहनगरसोभाकरणाऽऽएसो, जाणाइआणयणाएसोय ६ तए णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमलैं सोच्चा निसम्म हद्वतुट्ठ-जाव-हियए सीहासणाओ अब्भुट्टेड, अन्भुट्टित्ता
वंदति नमसइ; वंदित्ता नमंसित्ता- ते पुरिसे सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइ, दलइत्ता पडिविसज्जेति । पडिविसज्जित्ता नगरगुत्तियं सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायगिहं नगरं सम्भितर-बाहिरियं आसिय-संमज्जियोवलितं"-जाव-करित्ता पच्चप्पिणंतितए णं से सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ-सद्दावेत्ता एवं वयासी-- "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रह-जोह कलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेह।" -जाव--से वि पच्चप्पिणइ। तए णं से सेणिए राया जाण-सालियं सद्दावेइ-जाव-जाण-सालियं सद्दावित्ता एवं वयासी-- "भो देवाणुप्पिया! खिप्पामेव धम्मियं जाण-पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उबटुवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।" तए णं से जाणसालिए सेणियरम्ना एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ-जाव-हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ; उवागच्छित्ता जाण-सालं अणुप्पविसइ; अणुप्पविसित्ता जाणगं पच्चुवेक्खइ; पच्चुवेक्खित्ता जाणं पच्चोरुभति, पच्चोरुभित्ता जाणगं संपमज्जति, संपमज्जित्ता जाणगं णोणेइ, णीणेत्ता जाणगं संवटेति, संवट्टत्ता दूसं पवीणेति, पवीणेत्ता जाणगं समलंकरेइ, जाणगं समलंकरिता जाणगं वरमंडियं करेइ, करित्ता जेणेव वाहण-साला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहण-सालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खइ, पच्चुवेक्खित्ता वाहणाई संपमज्जइ, संपमज्जित्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता वाहणाई णोणेइ, णोणेइत्ता दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता वाहणाइं समलंकरेइ, समलंकरित्ता वराभरणमंडियाई करेइ, करेत्ता वाहणाई जाणगं जोएइ, जोएत्ता वट्टमग्गं गाहेइ, गाहित्ता पओद-लट्ठि पओद-धरे अ सम्मं आरोहेइ, आरोहइत्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता तए णं करयलं जाव एवं वयासी-- "जुत्ते ते सामी! धम्मिए जाण-पवरे आदिढें, भदं तव, आरुहाहि ।"
चेल्लणासहियस्स सेणियस्स समवसरणे गमणं भगवंतपज्जुवासणा य ७ तए णं सेणिए राया भंभसारे जाणसालियस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ठतुठे-जाव-मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता
-जाव-कप्परुक्खे चेव अलंकिए विभूसिए परिदे-जाब-मज्जण-घराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणादेवि एवं वयासी-- "एवं खलु देवाणुप्पिए! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे-जाव-पुव्वाणुव्धि चरेमाणे-जाव-संजमेण तवसा अण्पाणं भावे माणे विहरइ । तं महप्फलं देवाणुप्पिए! तहारूवाणं अरहंताणं जाव-तं गच्छामो देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं वंदामो,
नमसामो, सक्कारेमो, सम्माणेमो, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं पज्जुवासामो । एतं गं इहभवे य परभवे य हियाए, सुहाए, खमाए निस्सेयसाए-जाव-अणुगामियत्ताए भविस्सति ।" ८ तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रनो अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हतुवा-जाव-पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव मज्जण
घरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता व्हाया, कयबलिकम्मा, कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता, कि ते ? वर-पाय-पत्त-नेउरा, मणिमेखला-हार-रइय-उवचिय-कड़ग-खड्डुग-एगावलि-कंठसुत्त-मरगय-तिसरय-वरवलय-हेमसुत्तय-कुंडल-उज्जोइयाणणा, रयण-विभूसियंगी, चीणंसुय-वत्थ-पवरपरिहिया, दुगुल्ल-सुकुमाल-कंत-रमणिज्ज-उत्तरिज्जा, सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-सुंदर-रचित-पलंब-सोहण-कंत-विकसंतचित्तमाला, वर-चंदण-चच्चिया, वराभरण-विभूसियंगी, कालागुरु-धूव-धविया, सिरि-समाण-वेसा, बहुहिं खुज्जाहि चिलातियाहि-जावमहत्तर-गविंदपरिक्खित्ता, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण-साला, जेणेव सेणियराया, तेणेव उवागच्छइ ।
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सेणिय-चेल्लणावलोयणेण साह-साठणोकयनियाणकरणपसंगो
४२३
९ तए णं से सेणिए राया चेल्लणादेवीए सद्धि धम्मियं जाणपवरं दुरुहइ, दुरहित्ता सकोरेंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, उबवाइग
मेणं णेयव्यं-जाव-पज्जुवासइ। एवं चेल्लणादेवी-जाव-महत्तरग-परिक्खित्ता, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति-नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव-जाव-पज्जुवासति ।
भगवओ धम्मदेसणा सेणियाइपरिसापडिगमणं च १० तए णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रण्णो भंभसारस्स, चेल्लणादेवीए, तीसे महइ-महालयाए परिसाए, इसि-परिसाए,
जइ-परिसाए, मुणि-परिसाए, मणुस्स-परिसाए, देवपरिसाए, अणेग-सयाए-जाव-धम्मो कहिओ । परिसा पडिगया । सेणियराया पडिगओ।
साहु-साहुणीणं नियाणकरणं
११ तत्थेगइयाणं निग्गंथाणं निग्गंथीणं य सेणियं रायं चेल्लणं च देवि पासित्ता णं इमे एयारूवे अज्झथिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था
"अहो णं सेणिए राया महड्ढिए जाव--महासुक्खे जं णं ण्हाए, कयबलि-कम्मे, कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते, सव्वालंकारविभूसिए, चेल्लणा देवीए सद्धि उरालाई माणुसगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति। न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि, सक्खं खलु अयं देवे। जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेर-गुत्तिवासस्स कल्लाणे फल-वित्ति-विसेसे अस्थि, तया वयमवि आगमेस्साई इमाई ताई उरालाई एयारूवाई माणुसगाई भोगभोगाई भुंजमाणा बिहरामो।" से तं साहू । "अहो णं चेल्लणादेवी महिड्ढिया जाव-महासुक्खा जा णं व्हाया, कय-बलिकम्मा-जाव-कयकोउय-मंगलपायच्छित्ता-जावसव्वालंकार विभूसिया, सेणिएणं रण्णा सद्धि उरालाई-जाव-माणुसगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ। न मे विट्ठाओ देवीओ देवलोगंसि, सक्खा खल इमा देवी । जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्ति-विसेसे अस्थि, वयमवि आगमिस्साई इमाइं एयारवाई उरालाई-जाव-विहरामो।" से तं साहुणी ।
भगवओ निदाणकरणनिसेहरूवं उवएसं सोच्चा साहु-साहूणोणं पायच्छित्ताइकरणं १२ 'अज्जो' त्ति समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी--
"सेणियं रायं चेल्लणादेवि पासित्ता इमेयारवे अज्झथिए-जाव-समुपज्जित्या-अहो णं सेणिए राया महिड्ढिए-जाव-से तं साहू; अहो णं चेल्लणा देवी महिड्ढिया सुंदरा-जाव-साहूणी। से णूणं अज्जो! अत्थे समठे ?" "हंता, अत्थि।" "एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नते, तं जहा--'जाव-एवं खलु समणाउसो! तस्स अणिदाणस्स इमेयारूवे कल्लाणफलविवागे
जं तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति-जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ।" १३ तए णं ते बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवओ अंतिए एयमझें सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं बंदति नमसंति, वंदित्ता, नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोएंति पडिक्कमंति-जाव-अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जंति ॥
दसासुय १० । १ 'जाव' इच्चेएण निहिठं नियाणभेयाइनिरूवगं भगवंतवयणं दसासुयक्खंधाओ अवगंतव्वं, एत्थ आगमअणुओगगतचरणाणुओगे वि
निदाणभेयाइ जाणियव्वं ।
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२. रहमुसलसंगामो
रहमुसले बज्जीणं 'जओ' त्ति निरूवणं १४ नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया--रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे के जइत्था ?
के पराजइत्था? गोयमा ! वज्जी, विदेहपुत्ते, चमरे असुरिने असुरकुमारराया जइत्था; नव मल्लई, नव लेच्छई पराजइत्था।
कूणियस्स जुद्धपत्थाणं १५ तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगाम उवट्ठियं जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-"खिप्पामेव भो देवाणु
प्पिया! भूयाणंदं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेणं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तिय खिप्पामेव पच्चप्पिणह।"
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हुदतुचित्तमाणंदिया-जाव-मत्थए अंजलि कटु ‘एवं सामी ! तह' त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता खिप्पामेव छेयायरियोबएस-मति-कप्पणा-विकप्पेहि सुनिउहि उज्जलणेवत्थहव्वपरिवच्छियं सुसज्ज-जाव-भीमं सिंगामियं अओझं भूयाणंदं हत्थिरायं पडिकप्पेंति, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाति, सण्णाहेत्ता जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट कूणियस्स रणो तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।
ए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छणापारखित्ते जेणेव रहमुसले संगामे वणवत्ताण चिटइ। मग्गओ
तए णं से कूणिए राया जेणेव मज्जणघरं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्ज-विमलवरबद्धचिधपट्टे गहियाउहप्पहरणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालबीजियंगे, मंगलजयसद्दकयालोए-जाव-जेणेव भूयाणंदे हत्थिराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भूयाणंदं हत्थिरायं दुरूठे।
कूणियस्स इंदसाहेज्ज १६ तए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे-जाव-सेयवरचामराहि उद्ध्वमाणीहि-उद्धवमाणीहि हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए
चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाए । पुरओ य से सक्के देविदे देवराया एगं महं अभेज्जकबयं वइरपडिख्वगं विउन्वित्ताणं चिट्ठइ। मग्गओ य से चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया एगं महं आयस किढिणपडिरूपगं विउव्वित्ताणं चिट्ठइ । एवं खलु तओ इंदा संगामं संगामेंति, तं जहा-- देविदे य, मणुईदे य, असुरिंदे य। एगहत्थिणा वि णं पभू कणिए राया पराजिणित्तए।
कूणियजयो १७ तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगाम संगामेमाणे नव मल्लई, नव लेच्छई-कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो हय
महिय-पबरवीर-धाइय-विवडियचिधद्धयपडागे किच्छपाणगए दिसोदिसि पडिसेहित्था।
रहमुसलसंगामसरूवं १८ से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ--रहमुसले संगामे, रहमुसले संगामे ?
गोयमा! रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए, असारहिए, अणारोहए, समुसले महया जणक्खयं, जणवहं, जणप्पमई, जणसंबट्टकप्पं रुहिरकद्दमं करेमाणे सव्वओ समंता परिधावित्था। से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-रहमुसले संगामे० ।
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रहमुमलसंगामो
४२५
संगामे मणुयाणं मरणसंखा गई य १९ रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ? गोयमा! छण्णउति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ।
ते णं भंते ! मणुया निस्सीला निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा रुट्टा परिकुविया समरवहिया अणुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया? कहि उववन्ना? गोयमा ! तत्थ णं दससाहस्सीओ एगाए मच्छियाए कुच्छिसि उववन्नाओ। एगे देवलोगेसु उववन्ने। एगे सुकुले पच्चायाए। अवसेसा उस्सण्णं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववन्ना।
कूणियस्स इंदसाहेज्जे हेऊ २० कम्हा णं भंते ! सक्के देविदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रण्णो साहेण्जं दलइत्था ?
गोयमा! सक्के देविदे देवराया पुव्वसंगतिए, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया परियायसंगतिए। एवं खलु गोयमा! सक्के देविदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रण्णो साहेज्ज दलइत्था।
भगवई श० ७ उ०९।
३. रहमुसलसंगामे कालाइमरणकहा
कालाईणं दसण्हं नामुद्देसो २१ काले सुकाले महाकाले कण्हे सुकण्हे तहा महाकण्हे वीरकण्हे य बोद्धग्वे ।
रामकण्हे तहेव य पिउसेणकण्हे नवमे, दसमे महासेणकण्हे उ" ॥ | चंपाए सेणियपुत्ते काले २२ तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बु होवे दीवे भारहे वासे चम्पा नाम नयरी होत्था, रिद्ध०। पुण्णभद्दे चेहए।
तत्थ गं चम्पाए नयरीए सेणियस्स रन्नो पुत्त चेल्लणाए देवीए अत्तए कूणिए नामं राया होत्था, महया। तस्स णं कूणियस्स रनो पउमावई नामं देवी होत्था, सोमाल-जाव-विहरइ। तत्थ णं चम्पाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रनो चुल्लमाउया काली नाम देवी होत्था, सोमाल जाव-सुरूवा। तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले नामं कुमारे होत्था, सोमाल-जाव-सुरुवे । ।
कूणियसहियस्स कालस्स रहमुसलसंगामगमणं २३ तए णं से काले कुमारे अन्नया कयाइ तिहिं दंतिसहस्सेहि, तिहि रहसहस्सेहि, तिहि आससहस्सेहि, तिहि मणुयकोडीहि, गरुलवूहे
एक्कारसमेणं खंडेणं कणिएणं रन्ना सद्धि रहमुसलं संगाम ओयाए।
महावीरसमोसरणे कालीए पुच्छा २४ तए णं तीसे कालीए देवीए अन्नया कयाइ कुटुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्मस्थिए-जाव-समुप्पज्जित्था--"एवं खलु मम
पुत्ते कालकुमारे तिहि वंतिसहस्सेहि-जाव-ओयाए। से, मन्ने, कि जइस्सइ ? नो जइस्सइ? जीविस्सइ? नो जीविस्सह? पराजिणिस्सइ ? नो पराजिणिस्सइ ? काले णं कुमारे अहं जीवमाणं पासिज्जा?" ओहयमण-जाव-झियाइ।
ध० क०५४
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४२६
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो २५ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए । परिसा निग्गया।
तए णं तीसे कालीए देवीए इमीसे कहाए लट्ठाए समाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए,-जाव-समुप्पज्जित्था-"एवं खलु, समणे भगवं० पुव्वाणुपुव्वि-जाव-विहरइ। तं महाफलं खलु तहारूवणं-जाव-विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए। तं गच्छामि णं समणं-जाव-पज्जुवासामि, इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामि" ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया, धम्मियं, जाणप्पवरं जुतामेव उवट्ठवेह"। उवट्ठवित्ता-जाव-पच्चप्पिणंति । तए णं सा काली देवी व्हाया कयबलिकम्मा-जाव-अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा बहूहि खुज्जाहि-जाव-महत्तरविंदपरिक्खित्ता अंतेउराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहिता, नियगपरियालसंपरिवुडा चंपं नर मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ । छत्ताईए-जाव-धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता बहूहि खुज्जाहिं -जाव-विंदपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो बंदइ। ठिया चेव
सपरिवारा सुस्सूसमाणा नमसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासइ। २६ तए णं समणे भगवं-जाव-कालीए देवीए तीसे य महइमहालियाए०, धम्मकहा भाणियव्वा, जाव-समणोवासए वा समणोवासिया वा
विहरमाणा आणाए आराहए भवइ।
कालिपुच्छाए भगवया निरूवियं कालीपुत्त-कालकुमारस्स मरणं, कालीए सट्ठाणगमणं च २७ तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म-जाव-हियया समणं भगवं० तिक्खुत्तो-जाव-एवं
वयासी--"एवं खलु, भंते, मम पुत्ते काले कुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहि-जाव-रहमुसलं संमाम ओयाए, से णं, भंते, किं जइस्सइ ? नो
मा तिक्खुत्तो-जाव-एवं
दान्तसहस्सेहि-जाव-रहमुसलं संमाम
१९९इजाव-काले णं कुमारे अहं जीवमापा
२७ "कालो" इ समणे भगवं कालि देवि एवं वयासी--"एवं खलु काली! तव पुत्ते काले कुमारे तिहि दन्तिसहस्सेहि-जाव-कृणिएणं
रना सद्धि रहमसलं संगामं संगामेमाणे हयमहियपवरवीरघाइयणिवडिर्याचधज्झयपडागे निरालोयाओ दिसाओ करेमाणे चेडगस्स रन्नो सपक्खं सपडिदिसि रहेणं पडिरहं हव्वमागए। तए णं से चेडए राया कालं कुमारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसुरूतेजाव-मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुसइ, परामुसित्ता वइसाहं ठाणं ठाइ, ठाइत्ता, आययकण्णाययं उसुं करेइ, करित्ता कालं कुमारं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ। तं कालगए णं, काली, काले कुमारे, नो चेव णं तुमं कालं
कुमारं जीवमाणं पासिहिसि"।। २८ तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ अंतियं एयमट्ट सोच्चा निसम्म महया पुत्तसोएणं अप्फुन्ना समाणी परसुनियत्ता विव
चम्पगलया धस ति धरणीयलंसि सव्वंहिं संनिवडिया। तए णं सा काली देवी मुहत्तंतरेण आसत्था समाणी उडाए उट्ठ'इ, उट्ठत्ता समणं भगवं वंदइ, नमसइ, वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी"एवमेयं भंते, तहमेयं भंते, अवितहमेयं भंते, असंदिद्धमेय भंते, सच्चे गं भंते, एसम8, जहेय तुम्भे वयह" त्ति कटु समणं भगवं वंबइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहिता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।
२९
कालस्स नरयगई
भंते" ! ति भगवं गोयमे-जाव-बंदइ नमसइ, बंदिता नमंसित्ता एवं बयासी--"काले णं, भंते, कुमारे तिहि दंतिसहस्सेहि-जावरहमुसलं संगामं संगामेमाणे वेडएणं रन्ना एगाहच्च कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववन्ने?"। "गोयमा !" इसमणे भगवं महावीरे गोयम एवं बयासी--"एवं खलु, गोयमा, काले कुमारे तिहि दन्तिसहस्सेहि जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढबीए हेमाभे नरगे दससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने"। "काले णं, भन्ते, कुमारे केरिसएहि भोहिं केरिसएहि आरम्भेहि केरिसएहि समारम्भेहि केरिसएहि आरम्भसमारम्भेहि केरिसएहि संभोहि केरिसएहि भोगसंभोहि केरिसेण वा असुभकडकम्मपम्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए-जावनेरइयत्ताए उववन्ने?" "एवं खलु, गोयमा !
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रहमुसलसंगामे का लाइम रणकहा
कालकुमारनरयगगमण हेउ निरूव कूणियचरियंतभ्गयं भगवओ परूवणं
३० तेणं काले तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था, रिद्धत्थि मियसमिद्धे ० । तत्थ णं रायगिहे नयरे सेजिए नाम राया होत्था, महया० ।
तस्स णं सेणियस्स रनो नंदा नामं देवी होत्था, सोमाला ० - जाव- विहरइ ।
"
तरस णं सेगियस्स रनो नंदाए देवीए असए अभए नाम कुमारे होत्या, सोमाले जाव सुरूबे, साम-दाम-प-चण्ड० महा-चिलो-जाब- रज्जपुराए चितए यादि होत्या
तस्स णं सेणियस्स रनो चेल्लणा नामं देवी होत्या, सोमाला जाव-विहरइ ।
चेल्लणाए सेणियमंसभक्खणदोहले सेणियस्स चिंता
३१ तए णं सा चेल्लणा देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसयसि वासघरंसि जाव सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, सुमिणपाढगा पडिविसज्जिया - जाव- चेल्लणा से वयणं पडिच्छित्ता जेणेव सए भवणे, तेणेव अणुपविट्ठा ।
तए णं तोसे बेल्लाए देवीए अनया क्याइ तिष्टं मासाणं बहुपडिपुणाणं अयमेयारूये बोले पाए अम्मयाओ- जाव- जम्मजीविले जालो णं सेणियस्स रनो उपरवतीमंसेहि सोल्लेहि व तलिएहि व भजिएहि पन्च आसाएमाणीओ-जाव- परिभाएमाणीओ दोहलं पविणेति" ।
४२७
जहा पभावई, जाव
तणं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमानंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा यही मंचियनयणवयणकमला जहोचियं पुष्फक्ल्यगन्धमालंकार अपरिभुजमाणी करतलमलिय य्य कमलमाला ओह्मणसंकप्पा - जाव- झियाइ ।
"नाओ गं ताओ मुरं च जाय
लए णं तीसे बेल्लणाए देवीए अंगपडियारियाओं के देवि सुबकं भुखं जाय-झियायमाणि पासंति, पासिता जेणेव सेगिए राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु सेणियं रायं एवं वयासी -- "एवं खलु, सामी, चेरणा देवी, न याणामो केणइ कारणेणं सुक्का भुवखा जाव-लिया" ।
तए णं से सेणिए राया तासि अंगपडियारियाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे जेणेव चेल्लणा देवी, तेणेव उवागच्छता बेल्लणं देवि सुबकं भूषणं जाव-मियायमाणि पासिता एवं वयासी कि गं तुमं देवापिए, मुक्का व-झियासि ?"
वाग
भुक्खा - जाव
तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्ना एयमट्ठ नो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीया संचिट्ठइ ।
तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देवि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी- 'किं णं अहं देवाणुप्पिए, एयमट्ठस्स नो अरिहे सवणयाए, जं गं तुमं एयमट्ठ रहस्सी करेसि ? "
तए णं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रन्ना बोच्चं पि तच्चं पि एवं बुत्ता समाणी सेणियं रायं एवं वयासी- 'नत्थि णं, सामी ! से hs अट्ठ, जस्स णं तुम्भे अणरिहा सवणयाए, नो चेव णं इमस्स अट्ठस्स सवणयाए । एवं खलु सामी ! ममं तस्स ओरालस्स नाव- महामुमिणस्स तिष्टं मासा बहुपणानं अवमेवाहले दोहले पाउएनाओ णं ताओ अम्मयाओ, जाओ णं तुम् उपरवलिमहि सोएहि बजाय दोहतं विशेति तए णं अहं सामी संसि मोहति अभिमानंसि मुक्का मुक्खा-जाबझियामि' ।
तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देवि एवं वयासी--' मा णं तुमं, देवाणुप्पिए, ओहय० - जाव-झियाहि । अहं णं तहा जत्तिहामि जहा णं तब दोहनरस संपत्ती भवरस' तल देवि ताहि इद्वाहि कन्ताहि विवाह मणुग्राहि मगामाहि ओरालाहि कल्लाहिं सिवाह धन्नाहिं मंगल्लाहि मियमहुरसस्सिरीयाहि वग्गूहि समासासेइ, समासासेत्ता चेल्लणाए देवीए अंतियाओ डिणिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला, जेणेव सीहासणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्यामिहे निसीय, तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्तं बहूहि आएहि उवाएहि य, उपपत्तियाए प वेणहयाए व कम्मियाए य पारिणामिवाए य परिणामेमाणे परिणामेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिडं वा अविंदमाणे ओहयमणसंकप्पे - जाव-झियाइ ।
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४२८
अभयकुमारजुतीए चेल्लणादोहवपूरणं
२२ मंच अभए कुमारे व्हाए-जाव- सरीरे सयाओ गिहाओ पडिमियम, पडिनिमित्ता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहय जाव-झियायमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी -- 'अन्नया णं, ताओ तुम्भे ममं पासिता हट्ट जाव-हिवया भवह, कि पं ताओ, अन्ज तुग्ने ओह-जाव- मियाह ? तं ज णं अहं ताओ ! एयमस्त अरिसाए, तो तुम्भे मम एवम जहाभूयमवित संविद्धं परित जाणं अहं तस्स अस्स अंतगमणं करेमि ।
धम्महाओगे छो बंधी
तए णं से सेणिए राया अभयं कुमारं एवं वयासी- 'नत्थि णं, पुत्ता, से केइ अट्ठ, जस्स णं तुमं अणरिहे सवणयाए। एवं खलु, पुता । तब लमापाए बेलगाए देबीए तस्स ओराला जाव महामुमिणरस तिन्हं मासानं बहु-पडिपुष्याणं जाव जामो नं मम उपरक्लीमंसेहि सोहि जादहलं विमेति तए णं सा चेल्लमा देवी तंसि दोहति अविणिज्जमानंसि सुनका जाबलिए अहं पुसा! तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्त बहह आएहि य-जाय दिई वा विदमाणे अहव० जाव शिवामि । तणं से अभए कुमारे सेणियं रायं एवं वयासी'मा णं, ताओ ! तुब्मे ओहह्य० - जाव-झियाह, अहं णं, तहा जत्तिहामि, जहा णं मम चुल्लमाउपाए लगाए देवीए तरस दोहलस्स संपत्ती भविस्स सि कट्टु सेणियं रायं ताहि इद्वाहि-जावसमासासेइ, समासासेला जेणेव सए मिहे, ते उगच्छद उवागता अमितरए रहस्यए हामिले पुरिये सहावेद, सहावेत्ता एवं वासी'गच्छह णं तुम्भे, देवाणुप्पिया, सूणाओ अल्लं मंसं रुहिरं बत्थिपुडगं च गिन्हह ।
तए णं ते ठाणिज्जा पुरिसा अभएणं कुमारेणं एवं बुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ-जाव- पडिसुणेत्ता अभयस्स कुमारस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति, परिनिमित्ता जेणेव गुणा तेणेव उपागच्छति उवागच्छिता अल्लं मंसं रुहिरं बत्चिपुदवं च हित मेहता जेव अमर कुमारे, तेणेव उपागच्छति, उपागच्छत्ता करवल से अल्लं मंसं हि उयति ।
तए णं से अभए कुमारे तं अल्लं मंसं रुहिरं अप्पकप्पियं करेइ, करेत्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता सेणियं रावं रहस्सिमयं समपिसि उत्तापयं निवज्जावेद, निवन्नावइत्ता सेणियस्स उबरवतीसुतं अल्लं मंसं रुहिरं विरवेद, विरविता एवं वेद, बेठेला सर्वतीकरण करेड़, करेला चेल्लणं देवि उपि पासाए अबलोवणवरणयं ठवावेद, उवावित्ता चेल्लणाए देवीए अहे सपक्खं सपडिदिसि सेणियं रायं सयणिज्जंसि उत्ताणगं निवज्जावेद, सेणियस्स रनो उयरवलिमसाई कप्पणिकप्पियाई करेs, करेत्ता से य भायणंसि पक्खिवइ ।
ए से सेनिए राया अलियमुच्छ्यिं करेद्र, करेता मुततरेण अन्नमने सदि संवमाणे चि ।
21
तएण से अभयकुमारे सेनियस्स रनो उपरचलिसाई मिन्हेड, गेहिता जेणेव वेल्लणा देवी, तेणेव उवागच्छन, उनागच्छिता चेल्लणाए देवीए उवणेइ ।
एणं सा चेल्लमा देवी सेनियस रम्रो तेहि उपरवलिमंसेहि सोल्लेहि-जाव-दोहलं विमेद तसा चेल्लमा देवी संपुष्पदोहला एवं संमाणिपहला विविहला तंग हंसुणं परिवहद।
चेल्लणाए गम्भ पाडणपयते निष्फलाध्यासो
३३
तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ पुध्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे - जाव-समुप्पज्जित्था - " जइ ताव इमेणं दारएणं गभगएणं चैव पिउनो उपरबनिमंसानि खादयामि तं सेयं खलु भए एवं गन्धं साहित्तए वा पाडितए वा गातिए वा विसिलए वा" एवं संपेद संहिता बहू गम्मतायगेहि गमपाडणेहि गम्यमाणेहि य गम्मविद्धसहि
गर्भ साडितए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसितए वा, नो चेव णं से गढभे सडइ वा पडइ वा गलइ वा विद्धंसइ वा । तए गं सा बेल्लमा देवी तंग जाहे तो संचाएद बहूहि गम्मसाइएहि बजाव-गमविदंसहि व साहितए वा जाय-विद्धसिए वा, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणी अकामिया अवसवसा अट्टबसट्टदुहट्टा तं गन्धं परिवहह ।
चेल्लणाए उक्कुरुडियाए दारय-उज्झणं
३४ तए णं सा चेल्लणा देवी नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव-सोमालं सुरूवं दारगं पयाया ।
तए णं तीसे चेल्लाए देवीए इमे एयारूवे - जाव- समुप्पज्जित्था - "जह ताव इमेणं दारएणं गन्भगएणं चेव पिउणो उपरवलिमसाइं खाइयाई, तं न नज्जइ णं एस बारए संवढमाणे अम्हं कुलस्स अंतकरे भविस्सइ । तं सेयं खलु अम्हं एयं दारगं एगंते उक्कुरुड
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रहमुसलसंगामे कालाइमरणकहा
४२९
याए उज्झावित्तए" एवं सपेहेइ संपेहित्ता दासचेडिं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी--"गच्छह णं तुमं, देवाणुप्पिए, एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि"। तए णं सा दासचेडी चेल्लणाए देवीए एवं वुत्ता समाणी करयल०-जाव-कटु चेल्लणाए देवीए एयम8 विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाइ। तए णं तेणं दारगेणं एगते उक्कुरुडियाए उज्झिएणं समाणेणं सा असोगवणिया उज्जोविया यावि होत्था।
सेणियउवालंभियाए चेल्लणाए नियपुत्तसारक्खणं ३५ तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लद्ध? समाणे, जेणेव श्रसोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए
उज्झियं पासेइ, पासित्ता आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चेल्लणा देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणं देवि उच्चावयाहि आओसणाहिं आओसइ, आओसेत्ता उच्चावयाहिं निभच्छणाहि निब्भच्छेइ, एवं उद्धंसणाहिं उद्धंसेइ, उद्धंसेत्ता एवं वयासी--"किस्स गं तुम मम पुत्तं एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेसि ?" त्ति कट्ट चेल्लणं देवि उच्चावयसवहसावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी--"तुमं णं, देवाणुप्पिए ! एवं दारगं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणो संगोवेमाणी संवड्ढेहि"। तए णं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी लज्जिया विलिया विड्डा करयलपरिग्गहियं सेणियस्स रन्नो विणएणं एयमट्ट पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेइ ।
सेणिएणदारयस्स वेयणानिवारणं ३६ तए णं तस्स दारगस्स एगते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अग्गंगुलिया कुक्कुडपिच्छएण दूमिया यावि होत्था, अभिक्खणं अभिक्खणं
पूयं च सोणियं च अभिनिस्सावेइ। तए णं से दारए वेयणाभिभूए समाणे महया महया सद्देण आरसइ। तए णं सेणिए राया तस्स दारगस्स आरसियसह सोच्चा निसम्म जेणेव से दारए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता अग्गंगुलियं आसयंसि पक्खिवइ, पक्खिवित्ता पूयं च सोणियं च आसएणं आमुसेइ।। तए णं से दारए निव्वुए निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्टइ। जाहे वि य णं से दारए वेयणाए अभिभूए समाणे महया महया सद्देणं आरसइ, ताहे वि य णं सेणिए राया, जेणेव से दारए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, तं चेव-जाव-निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ ।
दारयस्स 'कूणिय' नामकरणं, कूणियस्स तारुण्णाइ य ३७ तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो तइए दिवसे चन्दसूरदरिसणियं कारेंति-जाव-संपत्ते बारसाहे दिवसे अयमेयारूवं गुणनिप्फन्नं
नामधेनं करेंति--"जहा णं अम्हं इमस्स दारगस्स एगते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अंगुलिया कुक्कुडपिच्छएणं दूमिया, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं कूणिए कूणिए"। तए णं तस्स बारगस्स अम्मापियरो नामधेज्ज करेंति 'कुणिय' ति। तए णं तस्स कुणियस्स आणुपुव्वेणं ठिइवडियं च, जहा मेहस्स-जाव-उप्पि पासायवरगए विहरइ। अटुओ दाओ।
सेणियं गुत्तिबंधणं करेत्ता कणियस्स रज्जसिरीसंपत्ती ३८ तए णं तस्स कूणियस्स कुमारस्स अन्नया पुव्वरत्ता-जाव-समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं सेणियस्स रन्नो वाघाएणं नो संचाएमि
सयमेव रज्जसिरि करेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, तं सेयं खलु मम सेणियं रायं नियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए" त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सेणियस्स रनो अंतराणि य छिड्डाणि य विरहाणि य पडिजागरमाण विहरइ। तए णं से कूणिए कुमारे सेणियस्स रन्नो अंतरं वा-जाव-मम्म वा अलभमाणं अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे नियघरे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु, देवाणुप्पिया ! अम्हे सेणियस्स रन्नो वाघाएणं नो संचाएमो सयमेव रज्जसरि करेमाणा पालेमाणा विहरित्तए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सेणियं रायं नियलबंधणं करेत्ता रज्जं च रट्ट च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च जणवयं च एक्कारसभाए विरचित्ता सयमेव रज्जसिरि करेमाणाणं पालेमाणाणं-जाव-विहरित्तए"।
अम्हे सेणियस्स रन्नो वाण करता रज्जं च नाव-विहरितए" ।
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४३०
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं ते कालाईया दस कुमारा कुणियस्स कुमारस्स एयम→ विणएणं पडिसुगंति । तए णं से कूणिए कुमारे अन्नया कयाइ सेगियस्स रनो अन्तरं जाणइ, जाणित्ता सेणियं रायं नियलबंधणं करेइ, करेता अप्पाणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावेइ । तए णं से कुणिए कुमारे राया जाए मया मया ।
कुणियस्स चेल्लणासयासाओ अप्पाणं पइ सेणियस्स सिणेहावगमो ३९ तए णं से कूणिए राया अन्नया कयाइ व्हाए-जाव-सव्वालंकारविभूसिए चेल्लगाए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ तए णं से कूणिए
राय, चेल्लणं देवि ओहय-जाव-झियायमाणि पासइ, पासिता चेल्लणस्ए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता चेल्लणं देवि एवं बयासी"किं णं, अम्मो ! तुम्हं न तुट्ठी वा न ऊसए वा न हरिसे वा न आणंदे वा, जं णं अहं सयमेव रज्जसिरि-जाव-विहरामि ?" तए णं सा चेल्लणा देवी कुणियं राय एवं वयासी--"कहं णं, पुत्ता! ममं तुट्टी वा ऊसए वा हरिसे वा आणंदे वा भविस्सइ, जं गं तुमं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अच्चंतनेहाणुरागरतं नियलबंधणं करित्ता अप्पाणं महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावेसि ?" तए णं से कुणिए राया चेल्लणं देवि वयासो-"धाएउकामे णं, अम्मो? मम सेणिए राया, एवं मारेउ० बंधिउ० निच्छुभिउकाभे णं अम्मो ! ममं सेणिए राया। तं कहं णं, अम्मो ! ममं सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरत्ते?" तए णं सा चेल्लणा देवी कुणियं कुमार एवं वयासी--"एवं खल, पुत्ता । तुमंसि ममं गम्भे आभूए समाणे तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं ममं अयमेयारूवे दोहले पाउम्भए "धन्नाओ जं ताओ अम्मयाओ-जाव-अंकपडिचारियाओ, निरवसेसं भाणियव्वं-जाव-जाहे वि य णं तुम वेयणाए अभिभूए, महया-जाव-तुसिणीए संचिट्ठसि । एवं खलु, पुत्ता! सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरते।"
कणियस्स सेणियबंधणछेयणत्थं गमणं ४० तए णं से कूणिए राया चेल्लणाए देवीए अंतिए एयमलै सोच्चा निसम्म चेल्लणं देवि एवं वयासी-"दुटु णं, अम्मो! मए कयं
सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अच्चंतनेहाणुरागरत्तं नियलबंधणं करतेणं । तं गच्छामि णं सेणियस्स रनो सयमेव नियलाणि छिन्दामि" ति कट्ट परसुहत्थगए जेणेव चारगसाला तेणेष पहारेत्थ गमणाए।
सेणियस्स तालपडविसभक्खणं मरणं च ४१ तए णं सेणिए राया कूणियं कुमारं परसुहत्थगयं एज्जमाणं पासइ, एवं बयासी--"एस णं कणिए कुमारे अपत्थियपत्थिए-जावा
सिरिहिरिपरिवज्जिए परसुहत्थगए इह हव्वमागच्छइ । तं न नज्जइ णं ममं केणइ कुमारेणं मारिस्सई" त्ति कटु भीए-जावसंजायभए तालपुडगं विसं आसगंसि पक्खिवइ । तए णं से सेणिए राया तालपुडगविसंसि आसगंसि पक्खित्ते समाणे मुहुत्तंतरेण परिणममाणंसि निप्पाणे निच्चेठे जीवविप्पजढे ओइण्णे ।
कुणियस्स सोगो सोगावगमो नियभाउएसु रज्जविभयणं च ४२ तए णं से कृणिए कुमारे जेणेव चारगसाला तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता सेणियं रायं निप्पाणं निच्चेटु जीवविप्पजढं ओइण्ण
पासइ, पासित्ता महया पिइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धस ति धरणीयलंसि सव्वंहिं संनिवडिए । तए णं से कृणिए कुमारे महत्तंतरेण आसत्ये समाणे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलवमाणे एवं वयासो--"अहो णं मए अधन्नेणं अपुण्णणं अकयपुग्णणं दुठ्ठकयं सेणियं रायं पियं देवयं अच्चंतनेहाणुरागरतं नियलबंधणं करतेणं । मममूलागं चेव णं सेणिए राया कालगए" त्ति कटु ईसरतलवर-जाव-संधिवालसद्धि संपरिवुडे रोयमाणे ३ महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं सेणियस्स रन्नो नीहरणं करेइ। तए णं से कूणिए कुमारे एएणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अन्नया कयाइ अंतेउरपरियालसंपरिवुड़े सभंडमतोवगरणमायाए रायगिहाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चंपानयरी, तेणेव उवागच्छइ, तत्थ वि णं विउलभोगप्तमिइसमन्नाए गए कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था ।
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रहमुसलसंगामे कालाइमरणकहा
४३१
तए णं से कूणिए राया अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता रज्जं च-जाव-जणवयं च एक्कारसभाए विरिंचइ, विरिचित्ता सयमेव रज्जसिरि करेमाणे पालेमाणे विहरइ।
कूणियसहोयरस्स वेहल्लस्स सेयणयगंधहत्यिकोलाए वण्णवाओ ४३ तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रनो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कूणियस्स रन्नो सहोयरे कणीयसे भाया वेहल्ले नाम कुमारे
होत्था, सोमाले-जाव-सुरूवे। तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स सेणिएणं रन्ना जीवंतएणं चेव सेयणए गन्धहत्थी अट्ठारसवंके हारे पुवदिन्ने । तए णं से बेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा अंतेउरपरियालसंपरिवुडे चंपं नरि मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छिता अभिक्खणं अभिक्खणं गंगं महाणई मज्जणयं ओयरइ। तए णं सेयणए गंधहत्थी देवीओ सोंडाए गिण्हइ, गेण्हित्ता अप्पेगइयाओ पुढे ठवेइ, अप्पेगइयाओ खंधे ठवेइ, एवं कुम्भे ठवेइ, सोसे ठवेइ, दंतमुसले ठवेइ, अप्पेगइयाओ सोंडागयाओ अंदोलावेइ, अप्पेगइयाओ दंतंतरेसु नीणेड, अप्पेगइयाओ सीभरेणं ण्हाणेइ, अप्पेगइयाओ अणे!ह कोलावणेहि कोलावेइ । तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडगतिगचउपकचरचरमहापहपहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ-जाव-परूवेइ--"एवं खलु, देवाणुप्पिया! वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा अन्तेउर० तं चेव-जाव-अणेहि कोलावणएहि कीलावेइ। तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्जसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरड, नो कूणिए राया।" ।
नियभज्जापउमावइअणुरोहण कणियस्स वेहल्लसमक्खं पुणो पुणो हत्थीमगरणं हारमग्गणं च ४४ तए णं तीसे पउमावईए देवीए इमोसे कहाए लट्ठाए समाणीए अयमेयारूबे-जाव-समुप्पज्जित्था--"एवं खलु वेहल्ले कुमारे
सेयणएणं गंधहत्थिणा-जाव-अणेगेहि कोलावणएहि कोलावेइ । तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्जसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरइ, नो कूणिए राया। तं किं णं अम्हं रज्जेण वा-जाव-जणवएण वा, जई णं अम्हं सेयणगे गंधहत्थी नत्थि, तं सेयं खलु ममं कुणियं रायं एयमटुं विनवित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ संपेहेत्ता जेणेव कणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-जाव-एवं वयासी--"एवं खल, सामी! वेहल्ले कुमारे सेयणएण गंधहत्थिणा-जाव-अणेहिं कोलावणएहिं कीलावेइ। तं कि णं अम्हं रज्जण वा-जाव-जणवएण वा, जइ णं अम्हं सेयणए गंधहत्थी नत्थि ?' तए णं से कूणिए राया पउमावईए एयमढें नो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं सा पउमावई देवी अभिक्खणं अभिक्खणं कृणियं रायं एयमझें विनवेइ। तए णं से कूणिए राया पउमावईए देवीए अभिक्खणं अभिक्खणं एयमट्ठ विघ्नविज्जमाणे अन्नया कयाइ वेहल्लं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता सेयणगं गंधहत्यि अट्ठारसर्वकं च हारं जायइ । तए णं से वेहल्ले कुमारे कुणियं रायं एवं वयासी--"एवं खलु सामी ! सेणिएणं रन्ना जीवंतेणं चेव सेयणए गंधहत्थी अट्टारसर्वके य हारे दिन्ने । तं जइ णं, सामी ! तुम्भे ममं रज्जस्स य-जाव-जणवयस्स य अद्धं दलयह, तो णं अहं तुन्भं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं दलयामि ।" तए णं से कुणिए राया वेहल्लस्स कुमारस्स एपमठें नो आढाइ, नो परिजाणइ, अभिक्खणं अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं जायइ ।
कणियभीयस्स वेहल्लस्स चेड़गनिस्साए वेसालीए अवत्थाणं ४५ तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स कणिएणं रन्ना अभिक्खणं अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थि अट्टारसवंकं च हारं० । एवं अक्खिविउ
कामे णं, गिहिउकामे णं, उद्दालेउकामे णं ममं कणिए राया सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं । तं-जाव-न उद्दालेइ ममं कूणिए राया, ताव सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडस्स सभंडमत्तोवगरणमायाए चंपाओ
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधों
नयरीओ पडिनिक्खमित्ता बेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जिताणं विहरित्तए- एवं संपेहेइ, संपेहेता कूणियस्स रन्नो अंतराणि-जाव-पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरइ । तए णं से वेहल्ले कुमारे अन्नया कयाइ कूणियस्स रन्नो अंतरं जाणइ, सेयणगं गंधहत्यि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए चंपाओ नयरीओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जणेव वेसाली नपरी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
कुणिऐण चेडगसमीवे सेयणयगंधहथिआइपेसणत्थं दयपेसणं ४६ तए णं से कूणिए राया इमोसे कहाए लद्धठे समाणे "एवं खलु वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिएणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वक
च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडे-जाव-अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तं सेयं खलु सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं आणे दूयं पेसित्तए" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता दूयं सद्दावेद, सद्दावित्ता एवं वयासो--"गच्छह णं तुम, देवाणुप्पिया, वेसालि नर्यारं । तत्थ णं तुम मम अज्ज चेडग रायं करयल० वद्धावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु, सामी ! कूणिए राया विनवेइ-एस णं वेहल्ले कुमारे कूणियस्स रन्नो असंविदिएणं सेयणगं अट्ठारसर्वकं च हारं गहाय हव्वमागए। तए गं तुब्भ सामी! कूणियं रायं अणुगिण्हमाणा सेयणगं अट्ठारसर्वकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणह, वेहल्लं कुमारं च पेसह ।"
४७ तए णं से दूए कणिएणं० करयल-जाव-पडिसुणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जहा-चित्तो-जाव-वद्धावेत्ता एवं
वयासी--"एवं खलु, सामी! कुणिए राया विन्नवेइ--"एस गं वेहल्ले कुमारे, तहेव भाणियव्वं-जाव-वेहल्लं कुमारं पेसह ।"
चेडएण वहेल्लट्ठ अद्धरज्जमग्गणं ४८ तए णं से चेडए राया तं यं एवं वयासी--"जह चेव णं, देवाणुप्पिया ! कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए
अत्तए मम नत्तुए, तहेव णं वेहल्ले वि कुमारे सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए। सेणिएणं रन्ना जीवंतेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसर्वके य हारे पुष्वविइण्णे । तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य जणवयस्स य अद्ध दलयइ, तो णं अहं सेयणगं अट्ठारसर्वक हारं च कणियस्स रनो पच्चप्पिणामि, वेहल्लं च कुमारं पेसेमि।" तं दूयं सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेइ । तए णं से दूए चेडएणं रना पडिविसज्जिए समाणे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं दुरुहइ, दुरुहिता बेसालि नारं मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुहिं वसहोहिं पायरासेहि-जाव-वद्धावेत्ता एवं वयासी-- “एवं खलु, सामी! चेडए राया आणवेइ-'जह चेव णं कणिए राया। सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, तं चेव भाणियव्वं-जाव-वेहल्लं च कुमारं पेसिमि'।तं न देइ णं सामी ! चेडए राया सेयणगं अट्ठारसर्वक हारं च, वेहल्लं च नो पेसेइ"।
कूणिएण पूणो दूयपेसणं तए णं से कूणिए राया दोच्वं पि दूयं सद्दावेत्ता एवं बयासी-“गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! वेसालि नर्यारं । तत्थ णं तुम मम अज्जगं चेडगं रायं-जाव-एवं वयासी--"एवं खलु सामी! कणिए राया विनवेइ--"जाणि काणि रयणाणि समुप्पज्जन्ति, सव्वाणि ताणि रायकुलगामीणि । सेणियस्स रन्नो रज्जसिरि करेमाणस्स पालेमाणस्स दुवे रयणा समुप्पन्ना, तं जहा--सेयणए गंधहत्थी, अट्ठारसवंके य हारे। तं गं तुम्भे, सामी! रायकुलपरंपरागयं ठिइयं अलोवेमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं कणियस्स रनो पच्चप्पिणह, वेहल्लं च कुमारं पेसेह"।
५०
चेडगेण पुणो वि अद्धरज्जमग्गणं तए णं से दूए कुणियस्स रनो, तहेव-जाव-वद्धावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु सामी! कूणिए राया विनवेइ-जाणि काणि-जाववेहल्लं कुमारं पेसेह"। तए णं से चेडए राया तं दूयं एवं वयासी--"जह चेव णं, देवाणुप्पिया, कणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए, जहा पढम-जाव-वेहल्लं च कुमारं पेसेमि"। तं दूयं सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेइ। तए णं से दूए-जाव-कूणियस्स रनो बद्धावेत्ता एवं बयासी--"चेडए राया आणवेइ-'जह चेव णं, देवाणुप्पिया ! कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए-जाव-वेहल्लं कुमारं पेसेमि ।' तं न दे णं, सामी! चेडए राया सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं, बेहल्लं कुमारं नो पेसेइ"।
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रहमुसलसंगामे कालाइमरणकहा
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संगामत्थं कूणिएण पुणो दूयपेसणं तए णं से कुणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमलै सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे तच्चं दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! बेसालीए नयरीए चेडगस्स रनो वामेण पाएणं पायवीढं अक्कमाहि, अक्कमेत्ता कुंतग्गेणं लेहं पणावेहि, पणावित्ता आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे तिवलिये भिडि निडाले साहट्ट चेडगं रायं एवं वयासी--'हंभो! चेडगराया! अपत्थियपत्थिया, दुरन्त जाव-परिवज्जिया एस णं कुणिए राया आणवेइ-पच्चप्पिणाहि णं कुणियस्स रन्नो सेयणगं अट्ठारसवंक च हारं, बेहल्लं च कुमारं पेसेहि, अहब जुद्धसज्जो चिट्ठाहि । एस णं कुणिए राया सबले सवाहणे सखंधावारे णं जुद्धसज्जे हब्वमागच्छई"। तए णं से दूए करयल० तहेव-जाव-जेणेव चेडए तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता करयल०-जाव-वद्धावेत्ता एवं बयासी--"एस णं, सामी! ममं विणयपडिवत्ती। 'इयाणि कणियस्स रन्नो आण' ति चेडगस्स रन्नो वामेणं पाएणं पायवीढं अक्कमइ, अक्कमित्ता आसुरुत्ते कुंतग्गेण लेहं पणावेइ, तं चेव सबलखंधावारे णं इह हव्वमागच्छई"।
चेडयस्स जुज्झसज्जत्तं तए णं से चेडए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमढें सोच्चा निमस्स आसुरुत्ते-जाव-साहट्ट एवं वयासी-"न अप्पिणामि गं कुणियस्स रनो सेयणगं अट्ठारसर्वक हार, बेहल्लं च कुमारं नो पेसेमि, एस णं जुद्धसज्जे चिट्ठामि" तं दूयं असक्कारियं असमाणियं अवद्दारेणं निच्छुहावेइ।
कणियाइवाणं कालाइकमाराणं संगामत्थं सम्मीलणं ५३ तए णं से कणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमह्र सोच्चा निसम्म आसरुत्ते कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिएण सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंक हारं अंतेउर सभण्डं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालि अज्जगं-जाव-उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तए णं मए सेयणगस्स गन्धहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स अट्टाए दूया पेसिया । ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असंमाणिए अबदारेणं निच्छुहावेइ । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए"। तए णं कालईया दस कुमारा कुणियस्स रन्नो एयमलै विणएणं पडिसुणेति।। तए णं से कुणिए राया कालाईए दस कुमारे एवं वयासो-"गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिया! सएसु सएसु रज्जेसु पत्तेयं पत्तेयं व्हाया -जाव-पायच्छित्ता हत्थिखंधवरगया पत्तेयं पत्तेयं तिहि दंतिसहस्सेहिं एवं तिहि रहसहस्सेहिं तिहि आससहस्सेहि तिहि मणुस्सकोडीहि सद्धि संपरिवुडा सव्वीड्ढिए-जाव-रवेणं सहितो सहितो नयरहितो पडिनिक्खमह, पडिनिक्खमित्ता ममं अंतियं पाउब्भवह"। तए णं ते कालाईया दस कुमारा कुणियस्स रन्नो एयमट्ठ सोच्चा सएसु सएसु रज्जेसु पत्तेयं पत्तेयं व्हाया-जाव-तिहि मणुस्सकोडोहिं सद्धि संपरिबुडा सव्विड्ढीए-जाव-रवेणं सहितो सहितों नयरेहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंगा जणवए, जेणेव चंपा नयरी, जेणेव कुणिए राया, तेणेव उवागया करयल-जाव-बद्धाति ।
कालाइकुमारसहियस्म कूणियस्स जुज्झ8 वेसालि पइ पत्थाणं ५५ तए णं से कुणिए राया कौटुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं
पडिकप्पेह, हय-गय-रह-जोह-चाउरंगिण सेणं संनाहेह, संनाहइत्ता ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह,"-जाव-पच्चप्पिणंत्ति । तए णं से कणिए राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ,-जाव-पडिनिग्गच्छिता जेणेव बाहिरिया उबढाणसाला-जाव-नरवई दुरूढे । तए णं से कूणिए राया तिहि दंतिसहस्सेहि-जाव-रवेणं चंपं नार मझमझणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कालाईया दस कुमारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कालाईएहि दसहि कुमारहिं सद्धि एगओ मेलायति । तए णं से कुणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहि, तेत्तीसाए आसतहस्तेहि, तेतीसाए रहसहस्सेहि, तेत्तीसाए मगुस्सकोडीहि सद्धि संपरिबुडे सव्विड्ढीए-जाव-रवेणं सु हँ बसहीहि सुहं पायरासेहिं नाइविगिहिं अंतरावासेहिं बसमाणे वसमाणे अंगजणवयस्स मझमझेणं जेणेव विदेहे जणवए, जेणेव वेसाली नयरी तेगेव पहारेत्य गमगाए।
ध० के० ५५
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४३४
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
मल्लइ-लेच्छइआइसहियस्स चेडयस्स जुज्झट्ठ नीयदेससीमाए अवस्थाणं' ५६ तए णं से चेडए राया इमीसे कहाए लठे समाणे नव मल्लई नव लेच्छई कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो सद्दावेइ,
एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे कुणियस्स रन्नो असंविदिएणं सेयणगं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय इहं हव्वमागए । तए णं कुणिएणं सेयणगस्स अट्ठारसवंकस्स य अट्ठाए तओ दूया पेसिया । ते य मए इमेणं कारणेणं पडिसेहिया। तए णं से कुणिए ममं एयमझें अपडिसुणमाणे चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिडे जुद्धसज्जे इहं हव्वमागच्छ । तं कि णं देवाणु
प्पिया! सेयणगं अट्ठारसर्वकं कुणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामो? वेहल्लं कुमारं पेसेमो? उदाहु जुज्झित्था ?" । ५७ तए णं नव मल्लई नव लेच्छई कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो चेडगं रायं एवं वयासी--"न एयं, सामी ! जुत्तं वा पत्तं
वा रायसरिसं वा, जं णं सेयणगं अट्ठारसवंक कुणियस्स रन्नो पञ्चप्पिणिज्जइ, वेहल्ले य कुमारे सरणागए पेसिज्जइ । तं जइ कूणिए राया चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे जुद्धसज्जे इहं हव्वमागच्छइ, तए णं अम्हे कुणिएणं रन्ना सद्धि जुज्झामो ।” तए णं से चेडए राया ते नव मल्लई नव लेच्छई कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो एवं वयासी--"जइ णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे कूणिएणं रम्ना सद्धि जुज्झह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! सएसु सएसु रज्जेसु व्हाया, जहा कालाईया-जाव-जएणं विजएणं वद्धाति ।
तए णं से चेडए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--आभिसेक्कं, जहा कूणिए-जाव-दुरुढे । ५८ तए णं से चेडए राया तिहिं दंतिसहस्सेहि, जहा कुणिए-जाव-वेसालि नरि मझमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते नव
मल्लई नव लेच्छई कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो, तेणेव उवागच्छई।
तए णं से चेडए राया सत्ताबनाए वंतिसहस्सेहि, सत्तावनाए आससहस्सेहि, सत्तावनाए रहस्सेहि, सत्तावनाए मणुस्सकोडोहिं सद्धि संपरिवडे सविड्ढीए-जाव-रवेणं सुभेहि वसहीहिं पायरासेहिं नाइविगिठेहि अंतरेहि वसमाणे वसमाणे विदेहं जणवयं मज्झमजणं जेणेव देसपंते, तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता खंधावार-निवेसणं करेइ, करेत्ता कुणियं रायं पडिवालेमाणे जुद्धसज्जे चिटुइ।
कुणिय-चेडगाणं संगामो
५९ तए णं से कणिए राया सब्बिड्ढीए-जाव-रवेणं जेणेव देसपंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेडयस्स रन्नो जोयणंतरियं खंधावार
निवेसं करेइ । तए णं ते दोन्नि वि रायाणो रणभूमि सज्जावेन्ति, सज्जावित्ता रणभूमि जयंति । तए णं से कणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहि-जाव-मणुस्सकोडीहिं गरुलवूहं रएइ, रइत्ता गरुलवूहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए । तए णं से चेडगे राया सत्तावन्नाए दंतिसहस्सेहि-जाव-सत्तावन्नाए मणुस्सकोडीहिं सगडवूहं रएइ, रइत्ता सगडवूहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए। तए णं से दोण्ह वि राईणं अणीया संनद्ध-जाव-गहियाउहपहरणा मंगतिएहि फलएहि निकट्टाहि असोहि अंसागहि तोणेहि सजीवेहि धहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहिं डावाहि ओसारियाहिं ऊरुघंटाहिं छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किटसोहनायबोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सव्विड्ढीए-जाव-रवेण हयगया हयगएहि, गयगया गयगएहि, रहगया रहगएहि, पायत्तिया पायत्तिएहि, अन्नमहिं सद्धि संपलग्गा यावि होत्था । तए णं ते दोण्ह वि रायाणं अणीया नियगसामीसासणाणुरत्ता महया जणक्खयं जणवहं जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं नच्चंतकबंधवारभीम रुहिरकद्दमं करेमाणा अन्नमन्नणं सद्धि जुझंति ।
संगामे कालमरणं ६१ तए णं से काले कुमारे तिहि दंतिसहस्सेहि-जाव-मणूसकोडीहिं गरुलवूहेणं एक्कारसमेणं खंधेणं कृणिएणं रन्ना सद्धि रहमुसलं संगाम
संगामेमाणे हयमहिय०, जहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं-जाव-जीवियाओ ववरोवेइ ।
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.महासिलाकंटयसंगाम कहाणयं
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६२
नरयभवाणंतरं कालस्स सिद्धिगमणनिरूवणं "तं एवं खलु गोयमा, ! काले कुमारे एरिसएहि आरम्भेहि-जाव-एरिसएणं असुभकडकम्मपन्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरए नेरइयत्ताए उववन्ने"। "काले णं भन्ते ! कुमारे चउत्थीए पुढवीए...अणंतर उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ?"। "गोयमा, महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवन्ति अड्ढाइं, जहा दढपइन्नो-जाव-सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ -जाव-अन्तं काहिइ"।
कालाणुसारेणं सुकालाईणं णवण्हं वत्तव्वयानिद्देसो ६३ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए । कणिए राया। पउमावई देवी।
तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कुणियस्स रन्नो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था, सुकुमाला । तीसे णं सुकालीए देवीए पुत्ते सुकाले नाम कुमारे होत्था सुकुमाले० । तए णं से सुकाले कुमारे अन्नया कयाइ तिहि वंतिसहस्सेहि. जहा कालो कुमारी, निरवसेसं तं चेव भाणियव्वं-जाव-महाविदेहे
वासे.....अंतं काहिइ। ६४ एवं सेसा वि अट्ठ अज्झयणा नेयव्वा पढमसरिसा, णवरं मायाओ सरिसनामाओ।
निर० अ० २-१० ।
४. महासिलाकंटयसंगामकहाणयं
भगवया परूविओ क्रूणियस्स जओ ६५ नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया--महासिलाकंटए संगामे । महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे वट्टमाणे के
जइत्था ? के पराजइत्था ? गोयमा ! वज्जी विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई, नव लेच्छई--कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था ।
सक्कसहियस्स कणियस्स संगामे आगमणं ६६ तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगाम उवट्ठियं जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो
देवाणुप्पिया! उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया-जाव-मत्थए अंजलि 'कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणिता खिप्पामेव छयायरियोवएस-मति-कप्पणा-विकप्पेहि सुनिउणेहि उज्जलणेवत्थ-हव्वपरिवच्छियं सुसज्ज-जाव-भीमं संगामियं अओझं उदाइं हत्थिरायं पडिकप्येति, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाति, सण्णाहेत्ता जेणेव कूणिए राया तेणेब उवागच्छंति, उवागच्छिता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु कूणियस्स रण्णो तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं से कृणिए राया जेणेव मज्जणघरं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता बहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-भंगलपायच्छित्ते सब्बालंकारविभूसिए सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्ज-विमलवरबचिधपट्टे गहियाउहप्पहरणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीजियंगे मंगलजयसद्दकयालोए-जाव-जेणेव उदाई हत्थिराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदाइं हत्थिरायं दुरुढे ।
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे-जाव-सेयवरचामराहि उम्बमाणीहि-उखुश्वमाणीहि हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिडे महयाभडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेब महासिलाकंटए संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासिलाकंटगं संगामं ओयाए। पुरओ य से सक्के देविदे देवराया एगं महं अभेज्जकवयं वइरपडिरूवगं विउव्वित्ताणं चिटुइ । एवं खलु दो इंदा संगाम संगामेंति, तं जहा-देविदे य, मणुइंदे य । एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया जइत्तए, एगहत्थिणा वि णं पभू कुणिए राया पराजिणित्तए ।
मल्लई-लेच्छ ईणं पराजयो ६८ तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटगं संगाम संगामेमाणे नव मल्लई नव लेच्छई-कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो
हय-महिय-पवरवीर-घाइए-विवडिचिध-द्धयपडागे किच्छपाणगए दिसोदिसि पडिसेहित्था।
महासिलाकंटयसंगामस्स सहत्थो, संगामनिहयमणुस्साणं गई य ६९ से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ--महासिलाकंटए संगामे, महासिलाकंटए संगामे ? गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे जे
तत्थ आसे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा कट्टण वा पत्तेण वा सक्कराए वा अभिहम्मति, सव्वे से जाणेइ
महासिलाए अहं अभिहए। से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ--महासिलाकंटए संगामे । ७० महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे बद्रमाणे कति जणसयसाहस्सीओ बहियाओ? गोयमा ! चउरासोई जणसयसाहस्सीओ बहियाओ।
ते णं भंते ! मणुया निस्सीला निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा रुट्ठा परिकुविया समरवहिया अणुबसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया ? कहि उबवण्णा ? गोयमा ! उस्सण्णं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उबवण्णा ।
भगवई श० ७ उ० ९ ।
५. विजयतक्करणायं
रायगिहे धणसत्यवाहे भद्दा य भारिया ७१ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे होत्था-वण्णओ।
तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए गुणसिलए नाम चेइए होत्था--वण्णओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगं जिण्णुज्जाणे यावि होत्था-विणटुदेवउल-परिसडियतोरणघरे नाणाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-वच्छच्छाइए अणेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था। तस्स णं जिण्णुज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भग्गकूवे यावि होत्था। तस्स णं भग्गकवस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए यावि होत्था-किण्हे किण्होभासे-जाव-रम्मे महामेहनिउरुंबभूए बहहिं रुक्खेहि य गुच्छेहि य गुम्मेहि य लयाहि य वल्लीहि य तणेहि य कुसेहि य खाणुएहि य संछण्णे पलिच्छण्णे अंतो झुसिरे बाहिं गंभीरे अणेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था।
७२ तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्थवाहे--अड्ढे दित्ते वित्थिण्ण-विउल-भवण-सपणासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुदासी-दास-गो__महिस-गबेलगप्पभूए बहुधण-बहुजावरूवरयए आओग-पओग-संपउते विच्छड्डिम-विउल-भत्तपाणे ।
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विजयतक्क रणाय
तस्स णं धणस्स सस्थवाहस्स भद्दा नाम भारिया होत्या-मुकुमालपाणिपाया अहाणपण पंचिदिवसरोरा लवण-वंजण-गुणोववेया मागुम्माण-प्यमाण-परिपुष्ण-सुजाव सवंगसुंदरंगी ससिसोमागार कंत-पियदंसणा मुख्या करयल-परिमिय-तियलिय-यसिया कुंडलिगंडा कोमुह-रणियर-परिपुष्ण-सोमवयणा-सिंगारागार-चारुवेसा संगय-गय- हसिय-मणिय-विहिय-विलास-सललिय संलाबनिशुतोववार-कुसला पासादीया परिसणिज्मा अभिख्या पडिल्वा वंशा अधियाउरी जाणुकोप्परमाया यावि होत्या । तरसणं धनस्त सत्यवहस्त पंचए नाम दासवेडे होत्या सवंगसुंदरंगे मंसोचिए बालीला या होत्या । तए णं से धणे सत्यवाहे रायगिहे नयरे बहूणं नगर-निगम-सेट्ठि-सत्यवाहाणं अट्ठारसह य सेणिप्यसेणीणं बहूसु कज्जेसु य कुडुंबेसु यमंते व जाव-चम्भूए यानि होत्या नियगरस विणं कुटुंबास बहु कन्ले प-जाब-वक्चुए याचि होत्या ।
७३
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राहगिहे विजयतक्करे
सत्य णं रामगिहे नपरे विजए नाम तक्करे होत्या-पावचंडाल वे भीमतर रुट्कम्मे आरुसिय- दिस रसनवण खरफरस-महल्ल-विगयश्रीमच्छदादिए असंपुणितंसमुख नमर-राहूयणं निरणुक्कोसे निरणुतावे वागणे पदभए निसंसइए निरणुकंपे अहो एवं सुरेख एवंतधारा निमितल, अग्निमिव सम्भवखी, जलमिव सव्वग्वाही उपचणचण मायानियति-कूट-कव-सह-संपभोग-बहुले चिरनगरविणट्ट -टुसीलावारचरिते यपसंगी मज्जप्पसंगी भोज्नप्यसंगी मंसपसंगी दारुणे हिमवदारए साहसिए संधिण्डेयए उबहिए वित्संबधाई आलीबग नित्यमेव-लहहत्यसंपले परस्स दव्वहरणमि नित्वं अणुबडे, तिब्बवेरे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि अइगमणाणि य निग्गमणाणि य बाराणि य अवबाराणि य छिंडीओ य खंडीओ य नगरनिमणाणि य संक्णानि व निष्पट्टणाणि व जूयखलवाणि व पाणागाराणि य बेसावाराणि व तस्करद्वाणाणि य तक्रधराणि य सिंघाडगाणि य तिगाणि य चउक्काणि य चच्चराणि य नागघराणि य भूयघराणि य जक्खदेउलाणि य सभाणि य पवाणि य पणियसालाणि य सुनधराणि य आमोएमाणे मामाणे पवेसमाणे, बहुजणस्स हिन्देगु य बिसमेतु य बिहरे व बसणे व अभुदएसु य उत्सवेसु य पसवेसु य तिहीसु य छणेसु य जण्णेसु य पव्वणीसु य मत्तपमसस्स य वक्खित्तस्स य वाउलस्स य सुहियस्स य दुहियस्स
विदेत्यस्य विवसियस्स य मग्गं च छिद्दं च विरहं च अंतरं च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ । बहिया विय णं रायगिहस्स नगरस्स आरामेसु व उज्माणे व वावियोक्वारिणि दहिय गुंजालिय- सर-सरपंतिय- सरसरपंतिवा व जिज्जाणेसु भग्नदेव मानुवाच्छ व सुसाने य गिरिकंदरे व लेणे व उबद्वाणेगु य बहुजणस्स छितु बनाव-अंतच मग्यमाणे गवेसमाणे एवं चणं विहरइ ।
४३७
भद्दाए संताण संपत्तिमणोरहो
७४
तए णं तोसे भद्दाए भारियाए अन्गया कयाह पुम्बरत्तावरतकालसमर्थसि कुटुंबजागरियं जागरमानीए अवमेवास्ये अथिए चिलिए पत्चिए मनोगए संकये समुपज्जत्वा-
"अहं धमेणं सत्यबाहेणं सद्धि बहूणि वासाणि सह-फरिस-रस-गंध-वाणि माथुरलगाई कामभोगाई पन्वणुभवमापी बिहामि, मो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि । तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताजी अम्मयाओ पाओ लामो अम्मपाल, कपलवखणाओ णं ताओ अम्मयाओं, रूपविहवाओ में ताओ अम्मा, तुल माणुस्सए जन्मनीवियफले तासि अम्मयाणं जासि मण्णे नियगकुच्छिभ्याई भणदृद्ध-लुटयाई महरसमुल्लाबाई मम्मपपियाई यणमूला कक्वदेसभा अभिसरमागाई मुढयाई वणर्य पिर्यति त य कोमलकमलोवमेहिं त्येहि गन्डिंग-निवेखियाणि देति समुल्लावए पिए सुमहुरे पुणो- पुणो मंजुलप्पभणिए । तं णं अहं अधण्णा अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता । तं सेयं मम कल्लं पाउप्पभाए रमणीए-जाव-उद्वियम्मि सूरे सहस्सर स्विम्मि विषय तेपसा जलते धणं सत्यवाहं पुच्छित्ता ध सत्यवाहेणं अम्मगुष्णाया समाजी सुबह विपुलं असणं पानं बाहमं साइमं उबक्खडावेत्ता सुबह पुण्फ-वत्य-गंध-मल्लालंकारं महाय बहूहिं मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियण-महिलाहिं सद्धि संपरिवुडा जाई इमाई रायगिहस्स नयरस्स बहिया नागाणि य भूयाणि य जक्खाणि य इंदाणि य खंदाणि य रुद्दाणि य सिवाणि य वेसमणाणि य, तत्थ णं बहूणं नागपडिमाण य-जाव-वेसमणपडिमा य महरिहं पुष्करुचयिं करेता जनुपाधपडियाए एवं वइत्तए-जहं देवाव्यिया ! वारनं वा दारि वा पाि तो णं अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयहिं च अणुवड्ढेमि त्ति कट्टु उवाइयं उवाइत्तए । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल पाउप्पभाए रखनोए-जाव-उद्वियमि पूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेवसा जलते जेणामेव धणे सत्यवाहे लेणामेव उवागण्डद उवागच्छित्ता एवं वयासी-
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४३८
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! तुहिं सद्धि बहूई वासाइं-जाव-देति समुल्लावए सुमहुरे पिए पुणो-पुणो मंजुलप्पणिए। तं णं अहं अहण्णा अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता। तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया! तुर्भेहि अब्भणुण्णाया समाणी विपुलं असणं -जाव-अणुवड्ढेमि उवाइयं करित्तए । तए णं धणे सत्यवाहे भदं भारियं एवं वयासी--मम पि य णं देवाणुप्पिए ! एस चेव मणोरहे--"कहं गं तुम दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि ?"-भद्दाए सत्थवाहीए एयम४ अणुजाणइ।
भद्दाकया नागाईणं पूया ७५ तए णं सा भद्दा सत्यवाही धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणुष्णाया समाणी हतचित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाण-हियया विपुलं
असण-पाण-खाइम-साइम उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुक्खरिणीए तीरे सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुक्खरिणि ओगाहेइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकोडं करेइ, करेत्ता व्हाया कयबलिकम्मा उल्लपडसाडिगा जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई कुमुयाई गलिणाई सुभगाइं सोगंधियाई पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताई सहस्सपत्ताई ताई गिण्हइ, गिण्हित्ता पुक्खरिणीओ पच्चोरहइ, पच्चोरहित्ता तं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणामेव नागधरए य-जाव-वेसमणघरए य तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ णं नागपडिमाण य-जाव-वेसमणपडिमाण य आलोए पणामं करेइ, ईसि पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता नागपडिमाओ य-जाव-वेसमणपडिमाओ य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता उदगधाराए अन्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता पम्हल-सूमालाए गंधकासाईए गायाई लूहेइ, लूहेत्ता महरिहं वत्थारुहणं च मल्लारुहणं च गंधारहणं च वण्णारहणं च करेइ, करेत्ता धूवं डहइ, डहित्ता जन्नुपायपडिया पंजलिउडा एवं वयासी"जइ णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि तो णं अहं जायं च दायं च भायं च अवखयणिहि च अणुवड्ढ मि" त्ति कटु उवाइयं करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी एवं च णं विहरइ । जिमिय भुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परम-सुइभूया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया। अदुत्तरं च ण भद्दा सत्थवाही चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, उवक्खडेता बहवे नागा य-जाव-वेसमणा य उवायमाणी नमसमाणी-जाव-एवं च णं विहरइ ।
भद्दाए दोहलपूरणं ७६ तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ केणइ कालंतरेणं आवष्णसत्ता जाया यावि होथा।
तए णं तोसे भद्दाए सत्थवाहीए दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारवे दोहले पाउन्भूए-- धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ -जाव-कयलक्खणाओ णं साओ अम्मयाओ, जाओ णं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुबहुयं पुप्फबत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-महिलियाहि सद्धि संपरिबुडाओ रायगिहं नयरं मझमझेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणि ओगाहेति, ओगाहित्ता बहायाओ कयबलिकम्माओ सव्वालंकार-विभूसियाओ विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुजेमाणीओ दोहलं विति।" एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए-"धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ-जाव-दोहलं विणेति । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! तुम्भेहि अन्भणुण्णाया समाणी विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुबहयं पुप्फ-वस्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय-जाब-दोहलं विणित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं करेहि।"
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विजयतक्करणायं
४३९
७७ तए णं सा भद्दा धणेणं सत्यवाहेणं अब्भगुण्णाया समाणी हट्टतुटु-चितमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया विपुलं असणं
पाणं खाइमं साइमं उवक्खडाबेइ, उवक्खडावेत्ता-जाव-धूवं करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ । तए णं ताओ मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-नगरमहिलाओ भदं सत्यवाहिं सब्बालंकारविभूसियं करेंति । तए णं सा भद्दा सत्थवाही ताहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-नगरमहिलियाहि सद्धि तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं विणेइ, विणेत्ता जामेव दिस पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं सा भद्दा सत्थवाही संपुण्णदोहल्ला-जाव-तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।
पुत्तजम्मणं देवदिन्ने ति नामकरणं य
७८ तए णं सा भद्दा सत्यवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमालपाणिपाय-जाव-दारगं
पयाया। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति, तहेव-जाव-विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडाति, तहेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं भोयावेत्ता अयमेयारूवं गोणं गुणनिप्फण्णं नामधेज करेंति--जम्हा णं अम्हं इमे दारए बहूणं नागपडिमाण य-जाव-वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे, तं होउ णं अम्हं इमे दारए देवदिन्ने नामेणं । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्ज करेंति देवदिन्ने ति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवड्डेति ।
देवदिन्नस्स कीडा ७९ तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स बालग्गाही जाए, देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता बहूहि डिभएहि य डिभि
याहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे अभिरमइ। तए गं सा भद्दा सस्थवाही अण्णया कयाइ देवदिन्नं दारयं व्हायं कयबलिकम्मं कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभुसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासवेडगस्स हत्थयंसि दलयइ । तए णं से पंथए दासचेडए भद्दाए सत्यवाहीए हत्याओ देवदिन्नं दारगं कडीए गेहइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, बहि डिभएहि य-जाव-कुमारियाहि य सद्धि संपरिबुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगते ठावेइ, ठावेत्ता बहूहि डिभएहि य-जाव-कुमारियाहि य सद्धि संपरिबुडे पमत्ते यावि विहरइ ।
८०
देवदिन्नस्स अपहारो विजयतक्करण इमं च णं विजए तक्करे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि [अइगमणाणि य निग्गमणाणि य?] वाराणि य अववाराणि य तहेव -जाव-सुन्नघराणि य आभोएमाणे मग्गेमाणे गवेसमाणे जेणेव देवदिन्ने दारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता देवदिन्नं दारगं सव्वालंकारविभूसियं पासइ, पासित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणालंकारेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे पंथयं दासचेडयं पमत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता देवदिन्नं दारगं गेण्हइ, गेण्हिता कक्खंसि अल्लियावेइ, अल्लियावेत्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहेत्ता सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं रायगिहस्स नगरस्स अवद्दारेण निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव जिष्णुज्जाणे जेणेव भग्गकवए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवविन्नं वारयं जीवियाओ ववरोवेइ, ववरोवेत्ता आभरणालंकारं गेण्हइ, गेण्हित्ता देवविन्नस्स दारगस्स सरीरं निष्पाणं निच्चे? जीवविप्पजढं भग्गकूवए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालयाकच्छयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता निच्चले निप्फंदे तुसिणीए दिवस खवेमाणे चिद्रह।
देवदिन्नस्स गवेसणा ८१ तए णं से पंथए दासचेडए तओ मुहत्तंतरस्स जेणेव देवदिने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि
ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ । देवविन्नस्स दारगस्स
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૪૪૦
धम्मंशाणुओगे हो बंधी कत्थई सुई वा दुई वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्यवाहं एवं बयासी" एवं सामी चहा सत्यवाही देवदिनं वारयं पंजाब-सत्यालंकारविभसियं मम हृत्यंसि बल अहं देववि बार कडीए गिव्हाम, महिला सवाओ गिहाओ पनिमानि बहूहि डिएहि य डिभिवाहि व बारह बारयाहि य कुमारएहि व कुमारियाहि व सद्धि संपरिवृढे जेणेव रायमाणे तेणेव उवागच्छामि, उवागडिता देवनिं दारणं ए ठावेमि, ठावेता हिडिमएहि बजाय कुमारिवाहि सह संपरिबुडे पमते यानि विहरामि ।
तए णं
८३
तए णं अहं तओ मुहुतंतरस्स जेणेव देवदिने दारए ठविए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिनं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमि । तं न नज्जइ णं सामी ! देवदिने दारए केणइ नीते वा अवहिते वा अक्खित्ते वा " -- पायवडिए धणस्स सत्यवाहस्स एयमट्ठ निवेदेइ ।
तए णं से धणे सत्थवाहे पंथयस्स दासचेडगस्स एयमट्ठ सोच्चा निसम्म तेण य महया पुत्तसोएणाभिभूए समाणे परसु-नियत्ते [व] पाय घसल धरणीयसि सम्बंहि सविए ।
८२ तए णं से धणे सत्थवाहे तओ महत्तंतरस्स आसत्थे पश्चागयपाणे देवविनरस दारगरस सदओ समंता मग्गण-गवेरुणं करे देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुई वा पत वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता महत्थं पाहुडं महिला नगरमुत्तिया तेनेव उबागच्छ, उवागच्छिता तं महार्थ पाहणे, उबणेत्ता एवं वयासी- "एवं देवायिया मम पुसे भद्दाए भारिया असए देवदिधे नाम दारए -जा-बर दुल्हे सणवार, किमंग पुण पासवाए ? तएषं सा भद्दा देवदिनं व्हावं सव्यालंकारविभूतियं बंधगस्त हत्येला जावायवडिए तं मम निवेदे तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! देवदिन्नस्स दारगरस सदओ समता मग्गण-गवेसणं कथं ।"
!
1
तए णं ते नगरगोत्तिया धणेणं सत्यवाहेणं एवं वृत्ता समाणा सणद्ध-बद्ध-वग्मिय कवया उप्पीलिय- सरासण-पट्टिया पिणद्ध-गविज्जा आविद्ध-विमल-धि-पट्टा गहियाउह-पहरणा धर्षणं सत्यवाहेणं सद्धि रायगिहस्स नगरस्स बासु अइगमणे व जाव-पवासु व मगण-गवेसणं करेमाना रामगिहा नगराओ पडिनिस्वमंति, पडिनिमित्त जेणेव पुराणे जेणेव भग्यरूपए मेव उनागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेट्ठ जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो ! अकज्जमिति । कट्टु देवदिनं दारगं भग्गकूवाओ उत्तारति धस्स सत्यवाहस्स हत्थे बलयंति ।
विजयलक्करस्स निग्गहो
८४ तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तवकरस्स पयमग्गमणुगच्छ माणा जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाअयविति, अनुयवितिता विजय सोसवे जीवग्याष्ट्रति, पेहिता अहि-मुट्ठि-जाकोप्परपहार-संभाग- महिय यति करेला करेति, करेला देवविझरस दारमरस आभरणं मेहति व्हित्ता विजयत्स तक्करस्स गोबाए बंधंति, बंधित्ता मालुयाकच्छगाओ पडिणिवखमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव शयगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागपिछला रायनियर अणुण्यविसंति, अणुष्यविसिता रायगि नपरे सिधा-लिए-उनक-चच्चर-जम्मू-महागुरुसहारे व डिवापहारे व सवापहारे व निवामाना-निवाएमाणा हारं च धूलि च रूपवरं च उपरि परिमाणा-पकिरमाणा महया-महवा सणं उद्योसेमाणा एवं वयंति-"एस णं देवायिया विजर नाम तक्करे पाचचंडालश्वे भीमतट्रकम्मे आरुसियदित्तरतनयन खरफरूस-महत्ल-विगय-बीमारिए असंपुत्रियउ उदयपण-संतमु भमर-राहुवन्गे निरनुक्कोसे निरणुतावे दारुणे पइए निसंसइए निरशुकंपे अही एतदिट्ठीए बुरेब एगंतधाराए गिद्धेब आमिसलिछे अग्निमिव सत्यभक्खी बालपाए बाल-मारए । तं नो खलु देवाणुप्पिया! एयस्स केइ राया वा रायमच्चे वा अवरज्झइ, नम्नत्थ अप्पणो सयाई कम्माई अवरज्यंति" त्ति कट्टु जेणामेव पारगसाला तेषामेव उपागच्छति उपागच्छता हरिबंध करेति, करेला भतपाणनिरोहं करेति, करेला तिसप्पहारे य छिवापहारे य लयापहारे य निवाएमाणा विहरति ।
देवदिन्नस्स मोहरणं
८५ तए णं से धणे सत्यवाहे मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं सद्धि रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरस्स महया इद्दीसवकार-समुदणं मीहरणं करेति, करेला बहुई लोइयाई मयगकिस्लाई करेति, करेला केगड कालंतरेणं अवगयसीए जाए याfव होत्या ।
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विजयतषकरणार्य
धणस्स निम्गहो
८६
तए णं से धणे सत्थवाहे अष्णया क्याई लहस्यंसि रायावराहंसि संपलित्ते जाए यावि होत्था ।
तए णं ते नगरगुत्तिया धणं सत्यवाहं गेव्हंति, गण्हिता जेणेव चारए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चारगं अणुष्पवेसंति, अणुप्पवेसित्ता विजएणं तवकरेणं सद्धि एगयओ हडिबंधणं करेंति ।
धणस्स घराओ आहाराणयणं
८७ तणं सा भद्दा भारिया कहलं पाउयभाए रमणीए-जाब- उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि विजयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाण साइमं साइमं उपभोग करेड, करेला, भोयणा पश्चिवड, डियमुद करे, करेता एवं च सुरभि[वर]वारिपsिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेद, सहावेत्ता एवं वयासी- - " गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धणस्स सत्यवाहस्स उवणेहि ।”
८८
४४१
तए णं से पंथए भद्दाए सत्यवाहीए एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्ह, सियाओ महापरिणमम परिणिवखमिला राहणं व चारगताला जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छङ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेव्हित्ता भायणाइं ठावेड, ठाfवत्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धणं सत्यवाहं तेणं दिपुलेणं असण पाणखाइम साइमेणं परिवेसेड ।
विजयतक्करेण संविभागमानं
तए णं से विजए तक्करे धणं सत्यवाहं एवं वयासी -- “तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं एयाओ विपुलाओ असण- पाणखाइम साइमाओ संविभागं करेहि।"
धणस्स तम्निषेधो
८९
तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तवकरं एवं वयासी -- “ अवि याइं अहं विजया ! एवं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं कायाण वा सुणगाण वा बलएज्जा, उक्कुरुडियाए वा णं छड़डेज्जा, नो चेव णं तव पुत्तधायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स पच्चामित्तस्स एलो विपुलाओ असण- पाणखाइम साइमाओ संविभागं करेज्जामि । "
तए णं से धणे सत्थवाहे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारेइ, तं पंथयं पडिविसज्जेइ ।
तए णं से पंथए दासचेडए तं भोयणपिडगं गिण्हइ, गिव्हित्ता जामेव दिसि पाउडभूए तामेव विसि पडिगए ।
आबाधितस्स धणस्स विजयतक्करावेक्या
९०
तए णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारियस्स समाणस्स उच्चार पासवणे णं उब्वाहित्था । तणं से धणे सत्यवाहे विजयं लवकर एवं क्यासी "एहि ताव विजया एतमयकमाम अहं उपचार पासव ! जेणं परिवेमि" ।
विजयतक्करेण तन्निसेधो
!
९१लए जिए करे धणं सत्यवाहं एवं बयासी "तु देवाणुप्पिया विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारियास अतिथ उच्चारे वा पासवणे वा ममं णं देवापिया इमेहि बहुहि सम्पहारेहि व शिवापहारेहि य समापहारेहि य तम्हाए य परज्झमाणस्स नत्थि केइ उच्चारे वा पासवणे वा । तं छंदेणं तुमं देवाणुप्पिया ! एगंते अवक्कमित्ता उच्चार पासवणं परिद्ववेहि ।" तणं से धणे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं बुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ।
हाए
धणेण पुणो कथिते विजएण संविभागमागणं
लए णं से धर्म सत्यवाहे मुहततरस्स बलियतरागं उच्चार पासवणेणं उज्याहिम्नमाणे विजयं तस्करं एवं बयासी" एहि ताब विजया ! एर्णतमवकमाम जेणं अहं उपचार पासवनं परिमि" ।
[ष० क० ५६
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासो--"जइ णं तुम देवाणुप्पिया! ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभाग करेहि, तओ हं तुमहिं सद्धि एगंत अवक्कमामि"। तए णं से धणे सत्यवाहे विजयं तक्करं एवं वयासो-"अहं णं तुभं ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करिस्सामि"। तए णं से विजए तक्करे धणस्स सत्थवाहस्स एयम पडिसुणेइ । तए णं से धणे सत्थवाहे विजएण तक्करेण सद्धि एगते अवक्कमइ, उच्चारपासवणं परिवेइ, आयंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ताणं विहरइ ।
धणेण विजयस्स संविभागदाणं ९३ तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं पाणं खाइम
साइमं उवक्खडेइ, जाव-धणं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं परिवेसेइ। तए णं से धणे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ।
पंथगण भद्दाए तन्निवेदणं ९४ तए णं से धणे सत्थवाहे पंथगं दासचेडयं विसज्जेइ ।
तए णं से पंथए भोयणपिडयं गहाय चारगाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भट्टा सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भई [सत्यवाहि ?] एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिए! धणे सत्थवाहे तव पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ । भद्दाए कोवो तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयम8 सोच्चा आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणी धणस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ।
९६
धणस्स चारमुत्तो तए णं से धणे सस्थवाहे अण्णया कयाइ मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सएण य अस्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्म कारवेइ, कारवेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्खरिणीं ओगाहइ, ओगाहिता जलमज्जणं करेइ, करेता पहाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए रायगिहं नगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता रायगिहस्स नगरस्स मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेब पहारेत्य गमणाए ।
धणस्स सम्माणं ९७ तए णं तं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासित्ता रायगिहे नयरे बहवे नगर-निगम-सेट्ठि-सत्थवाह-पभिइओ आदति परिजाणंति सक्कारेंति
सम्माणेति अब्भुट्ठति सरीरकुसलं पुच्छति । तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ । जा वि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तंजहा--दासा इ वा पेस्सा इ वा भयगा इ वा भाइल्लगा इ वा, सा वि य गं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पायवडिया खेमकुसलं पुच्छ। जा वि य से तत्थ अभंतरिया परिसा भवइ, तंजहा--माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भइणी इ वा, सा वि य णं धणं सत्यवाहं एज्जमाण पासइ, आसणाओ अब्भुट्ठ इ, कंठाकंठियं अवयासिय बाह-प्पमोक्खणं करेइ ।
भहाए कोवोवसमपुव्वं सम्माणं ९८ तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ ।
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विजयतकरणाय
४४३
तए णं सा भद्दा धणं सस्थवाह एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया
परम्मुही संचिट्टइ। ९९ तए णं से धणे सत्थवाहे भई भारिय एवं वयासी--"किष्णं तुझं देवाणुप्पिए ! न तुट्टी वा न हरिसो वा नाणंदो वा, जं मए
सएणं अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पा विमोइए"। तए णं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एवं वयासी--"कहं णं देवाणुप्पिया! मम तुट्ठी वा हरिसो वा आणंदो वा भविस्सइ? जणं तुमं मम पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेसि"। तए णं से धणे सत्थवाहे भई भारियं एवं वयासी-"नो खलु देवाणुप्पिए ! धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा कय-पडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इवा सुहि त्ति वा [विजयस्स तक्करस्स? ] ताओ बिपुलाओ असणपाण-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नष्णत्थ सरीरचिताए। तए णं सा भद्दा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया-जाव-हरिसवस-विसप्पमाणहियया आसणाओ अब्भुटठेड, अब्भुत्ता कंठाकंठि अवयासेइ खेमकुसलं पुच्छइ, पुच्छित्ता पहाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता विपुलाइं भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ ।
१००
विजय-णायस्स निगमणं तए णं से विजए तबकरे चारगसालाए तेहि बंधहि य बहेहि य कसप्पहारेहि य छिवापहारेहि य लयापहारेहि य तण्हाए य छहाए य परज्झमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उबवणे । से गं तत्थ नेरइए जाए काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकण्हे वण्णेणं । से णं तत्थ निच्चं भीए निच्चं तत्थे निच्चं तसिए निच्चं परमऽसुहसंबद्ध नरगगतिवेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। से गं ताओ उट्टित्ता अणादीयं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकतारं अणुपरियट्टिस्सइ।
धणनायस्स निगमणं १०१ एवामेव जंबू ! जो णं अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए
समाणे विपुलमणिमोत्तिय-धण-कणग-रयणसारेणं लुम्भइ, सो वि एवं चेष ।
१०२
रायगिहे थेरागमणं तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा-जाव-पुष्वाणुपुटिव चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा, जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया धम्मो कहिओ।
धणस्स पव्वज्जा
. . १०३ तए णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स बहुजणस्स अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे
समुप्पज्जित्था--"एवं खल थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा इहमागया इहसंपत्ता। तं गच्छामि? णं थेरे भगवंते वदामि नमसामि" [एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता? ] हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए पायविहारचारेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ। तए णं थेरा भगवंतो धणस्स विचित्तं धम्ममाइक्खंति । तए णं से धणे सत्यवाहे धम्म सोच्चा एवं वयासी-- "सहहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं। रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । अन्भुटेमि णं भंते! निगंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडि
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
च्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुम्भे वयह" ति कट्ट थेरे भगवते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता-जाव-पव्वइए-जाव-बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खाइत्ता, मासियाए संलेहणाए [अप्पाणं झोसेत्ता? ], सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उबवण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तस्स णं धणस्स देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई।
धणस्स महाविदेहे सिद्धी १०४ से गं धणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ-जाव-सव्व
दुक्खाणमंत करेहिइ।
धणणायस्स पुणोनिगमणं १०५ जहा णं जंबू ! धणेण सत्थवाहेणं नो धम्मो ति बा तवो ति बा कयपडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए
इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्टाए । एवामेव जंबू ! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पम्वइए समाणे ववगय-हाणुमद्दण-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहे वा नो रूबहेड वा नो बलहेउवा नो विसयहेउं वा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नण्णत्थ नाणदसणचरिताणं वहणट्ठयाए, से गं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ ।। परलोए वि य शं नो बहूणि हत्यच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हियय उप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकतारं वोईवइस्सइ-जहा व से धणे सत्यवाहे ।'
णायाधम्मकहाओ सु० १, अ० २ ।
६. मयूरीअंडणायं
चंपाए मयूरीए अंडसेवणं १०६ तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था--वण्णओ।
तोसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नाम उज्जाणे--सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे सुरम्मे नंदणवणे इव सुह-सुरभिसीयलच्छायाए समणुबद्ध। तस्स णं सुभूमिभागस्त उज्जाणस्स उत्तरओ एगदेसम्मि मालुयाकच्छए होत्था--वग्णओ। तस्थ णं एगा बणमयूरी दो पुट्ठ परियागए पिटुंडी-पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्टिप्पमाणे मयूरी-अंडए पसवइ, पसवित्ता सएणं
पक्खवाएणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संविट्ठ माणी विहरह। १ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा सिवसाहणेसु आहार-विरहियो जं न वट्टए देहो । तम्हा धणो ब्व विजयं, साहू तं तेण पोसेज्जा ॥१॥
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ० २।
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मयूरीअंडणायं
४४५
चंपाए जिणदत्तसागरदत्ता सत्थवाहदारगा १०७ तत्थ णं चंपाए नयरीए दुवे सत्थवाहदारगा परिवसंति, तं जहा--जिणदत्तपुत्ते य सागरदत्तपुत्ते य-सहजायया सहवड्ढियया
सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्तया अण्णमण्णमणुव्वयया अण्णमण्णच्छंदाणुवत्तया अण्णमण्णहिय-इच्छियकारया अण्णमण्णेसु गिहेसु किक्षचाई करर्णा ज्जाई पच्चणुभवमाणा विहरंति । तए णं तेसि सत्थवाहदारगाणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सण्णिविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था--'जण्णं देवाणुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तणं अम्हेहि एगयओ समेच्चा नित्थरियव्वं' ति कटु अण्णमण्णमेयास्वं संगारं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था।
चंपाए देवदत्ता गणिया १०८ तत्थं णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ--अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणा बहुधण
जायस्व-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसटिकलापंडिया चउसट्टि-गणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रहगुणप्पहाणा बत्तीस-पुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारा गारचारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलाससलावुल्लाव-निउण-जुत्तोवयारकुसला ऊसियज्झया सहस्सलमा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत आणा-ईसर-सेणाबच्चं कारेमाणी पालेमाणी महयाऽहय-नट्टगीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ ।
१०९
डेह, उबालते कोबियापम पडिसुजाताए गणियाए
सत्थवाहदारगाणं गणियाए सह उज्जाणकीडा तए णं तेसि सत्थवाहदारगाणं अण्णया कयाइ पुव्यावरण्हकालसमयंसि जिमियभुत्तत्तरागयाणं समाणाणं आयंताणं चोक्खाणं परमसुइभूयाणं सुहासणवरगयाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्त्यिा --'सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए -जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणाणं विहरित्तए' ति कट्ट अण्णमण्णस्स एयमढे पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्ससरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलं कोडंबियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासो--"गच्छह णं देवाणुप्पिया! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेह, उवक्खडेता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धूव-पुष्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता नंदाए, पोक्खरिणीए अदूरसामते थूणामंडवं आहणहआसियसम्मज्जिओवलितं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डझंत-सुरभि-मघमत
गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर-गंधगंधिय गंधवट्टि भूयं करेह, करेत्ता अम्हे पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्टह"-जाव-चिट्ठति। ११० तए गं ते सत्यवाहदारगा दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावति, सहावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव [भो देवाणुप्पिया! ?] लहुकरण
जुत्त-जोइयं समखुर-वालिहाण-समलिहिय-तिक्खग्गसिंगहि रययामय-घंट-सुत्तरज्जु-पवरकंचण-खचिय-नत्थपग्गहोग्गहियएहि नीलुप्पलकयामेलएहि पवर-गोण-जुवाणएहिं नाना-मणि-रयण-कंचण-घंटियाजालपरिक्खित्तं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव पवहणं उवणेह । ते वि तहेव उवणेति । तए गं ते सत्यवाहदारणा व्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा पवहणं दुरुहंति, दुरुहिता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिहं
अणुप्पविसंति । १११ तए णं सा देवदत्ता गणिया ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता सत्तटुपयाई
अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता ते सत्यवाहदारए एवं बयासी-“संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमिहागमणप्पओयणं?" तए णं ते सत्यवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी--"इच्छामो गं देवाणुप्पिए ! तुमे सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणा विहरित्तए।"
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं सा देवदत्ता तेसि सत्यवाहदारगाणं एयमटुं पडिसुई, पडिसुगेता व्हाया कपलिकम्मा-जाव-सिरी-समाणवेसा जेणेव सत्य
वाहदारगा तेणेव उवागया। ११२ तए णं ते सत्यवाहदारगा देवत्ताए गणियाए सद्धि जाणं दुरुहंति, दुरुहिता चंपाए नयरीए मज्झमझेणं जेणेव सुभूमिभागे
उज्जाणे जेणेव नंदा पोखरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता पवहणाओ पचोरुइंति, पन्चोरुहिता नंदं पोक्खरिणि ओगाति ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेता जलकिड्डं करेंति, करेत्ता हाया देवदत्ताए सद्धि [नंदाओ पोक्खरिणीओ?] पन्चुत्तरंति, जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता [थणामंडवं ? ] अणुप्पविसंति, अणुप्पविसिता सव्वालंकारभूसिया आसत्था वीसस्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धि तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धृव-पुप्फ-वस्थ-गंध-मल्लालंकारं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परि जेमाणा एवं च णं विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा देवदत्ताए सद्धि विपुलाई काममोगाई भुंजमाणा विहरति । तए णं ते सत्यवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धि थगामंडवाओ पडिमिक्खमंति, पडिणिक्खमिता हत्थसंगल्लीए सुभूमिभागे उज्जाणे बहसु आलिघरएसु य कयलिघरएसु य लताधरएसु य अच्छगवरएसु य पेच्छणधरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघरएसु य कुसुमधरएसु य उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणा विहरंति । सत्थवाहदारहिं मयूरीअंडगाणयणं तए णं ते सत्थवाहदारगा जेणेव से मालुयाकच्छए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं सा वणमयूरी ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता भीया तत्था महया-महया सद्देणं केकारवं विणिम्मुयमाणीविणिम्मुयमाणी मालुयाकच्छाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता एगंसि रक्खडालयंसि ठिच्चा ते सत्थवाहदारए मालुयाकच्छगं च अणिमिसाए दिट्टीए पेच्छमाणी चिट्ठइ। तए णं ते सत्थवाहदारगा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासो--"जहा णं देवाणुप्पिया! एसा वणमयूरी अम्हे एज्जमाणे पासित्ता भीया तत्था तसिया उबिग्गा पलाया महया-महया सद्देणं केकारव-जाव-रुक्खडालयंसि ठिच्चा अम्हे मालुयाकच्छयं च [ अणिमिसाए दिढोए ? ] पेच्छमाणी चिट्ठइ, तं भवियन्वमेत्य कारणेणं" ति कटु मालुयाकच्छयं अंतो अणुप्पविसंति । तत्य गं दो पुढे परियागए-जाव-मयूरी-अंडए पासित्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सहावेत्ता एवं बयासी--"सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमे वणमयूरी-अंडए साणं जातिमंताणं कुक्कुडियाणं अंडएसु पक्खिवावित्तए। तए णं ताओ जातिमंताओ कुक्कुडियाओ एए अंडए सए य अंडए सएणं पंखवाएणं सारक्खमाणीओ संगोवेमाणीओ विहरिस्संति । तए णं अम्हं एत्थं दो कोलावणगा मयूरी-पोयगा भविस्संति" त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयम पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सए सए दासचेडए सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं बयासी--"गच्छह णं तुब्भे
देवाणुप्पिया! इमे अंडए गहाय सगाणं जातिमंताणं कुक्कुडीणं अंडएसु पक्खियह"-जाव-ते वि पक्खिवेति ।। ११४
तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभुमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुभवमाणा विहरित्ता तमेव जाणं दुरूढा समाणा जेणेव चंपा नयरी जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदत्ताए गिहं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दलइत्ता सक्कारेंति सम्माणेति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता देवदत्ताए गिहाओ पडिमिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव साई साइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपत्ता जाया यावि होत्था।
सागरदत्तपत्तेण संदेहेवसेण अंडयविणासो उवणओ य ११५ तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्यवाहदारए से गं कल्लं पाउप्पभायाए रयगीए-जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा
जलते जेणेव से वणमयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिछसमावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कोलावणए मयूरी-पोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ ? ति कटु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणंअभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेड चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे परियत्तिज्जमाणे आसारिज्जमाणे संसारिज्जमाणे चालिज्जमाणे फैदिज्जमाणे घट्टिज्जमाणे खोभिज्जमाणे अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेज्जमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था। तए णं से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए अण्णया कयाइ जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता तं मयूरी-अंडयं पोच्चडमेव पासइ, 'अहो णं मम एत्थ कीलावणए मयूरी-पोयए न जाए' त्ति कटु ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियाइ।
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मयूरी अंडणायं
११७ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचमहत्वएसु छज्जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे संकिए कंखिए वितिगिछसमावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावणे, से णं इहभवे देव समगा बहू समणी बहु सावगाणं बहूणं सावियाण व हल गिरहणिजे परिभवणिज् परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य बहूणि मुंडणाणि य बहूणि तज्जणाणि य बहूणि तालणाणि य बहूणि अंदुबंधणाणि य बहूणि घोलणाणि य बहूणि माइमरणाणि य बहूणि पिइमरणाणि य बहूणि भाइमरणाणि य बहूणि भगिणीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य बहूनि पुलमरणानि व बहणि धूयमरणाणि व बहूणि सुण्हामरणाणि म बहूणं वारिहाणं महणं दोहगाणं बहूणं अपियसंवासा बहूणं पिपविण्यओगाणं बहूणं दुख-दोमणरसाणं अभागी भविस्सति, अनादियं च अणययगं वोहम चाउरंत संसारकंतारं भुज्जो - भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ ।
साजुतस्स जिणदत्त पुत्तस्स मयूरसंपत्ती उवणओ य
११८ तए णं से जिणदत्तपुते जेणेव से मयूरी अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी अंडयंसि निस्संकिए [ निक्कंखिए निव्वितिविछे ?] मुख्यत्तए मम एत्थ कीलावणए मयूरीय भविस्स सि मयूरी-अंड अभि-अभगो उत्ते नो परियते नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ तो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं अभिक्खणं कण्णमूलंसि नो टिट्टियावेइ । तएषं से मपूरी-अंडयम- जाव-अटिट्टिया विजमाणे काले समएणं उम्मि मयूरी पोय एत्थ जाए। लए से जिनदत्तपु तं मयूरी-यो पास पासिता हट्ट योमएस सहायता एवं बयासी "देवाणुपिया ! हम मयूर-यो मयूर-पोसण- पाओहि दहि अपुणं सारवखमाणा संगमाणा संवह नटुल्स सिखा"। तए णं ते मयूर - पोसगा जिणदत्तपुत्तस्स एयमट्ठ पडिसुर्णेति तं मयूर - पोयगं गण्हंति, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, तं मयूरपोय बहूहि मपूर-पोसण-याहि दहि अणुपुष्येणं सारयमाणा संगोवेमाणा संबद्देति दुल्लच सिखात
तए णं से मयूर - पोयए उम्मुवकबालभावे विष्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते लक्खण- वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्णपक्खपेणकलावे विचित्तपिच्छसतचंदए नीलकंठए नच्चणसिीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अणेगाई नटुल्लगसयाई केकाइयसयाणि य करेमाणे विहरद्द ।
लए णं ते मयूरपोसनातं मपूर-योगं उम्मुनकालभाव-जाब के काइयवाणिय करेमानं पासितानं तं मयूर-योगं गति जिणदत्तपुत्तस्स उवर्णेति ।
११९ तसे निगदत्तपुते सत्यवाहवारए मयूर-योगं उम्मुक्कबालभाव के काइयसपाणि य करेमाणं पालिसा हट्टराई लेखि विपुलं जीवियारिहं पोइदाणं दस बसत्ता पडिविसले ।
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तए से मपूर-पोषणे नगरसपुर्ण एगाए पुडियाए पाए समानीए मंगोला-भंग-सिरोधरे सेवावंगे भवारिय-पणपखे उक्लिदकाइय-कलावे केवकाइयसवाणि मुंचमाणे मच्च ।
लए गं से दत्तपुत्तं ते मयूरोएन पाए नवरीए सिंघाडग-तिग-चउनक-चच्चर-चउम्मूह महापपहे सएहि य साहस्सिएहि यसयताहत्तिएहि पनि जयं करेमाने विहर।
१२१ एवामेव समणाउसो ! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंधी वा आयरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पठाइए समाणे पंचमहत्वसु छज्जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे निस्सकिए निक्कंखिए निव्वितिगिछे से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूर्याणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेयं विषएवं पज्जुवासणिज्मे भव
परलोए विपनं नो बहूणि हत्यच्छेयाणि य कन्गच्छेप्रमाणि य नासायाणि य एवं हिययउप्पावणाणि व बसणुष्वायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत संसारकंतारं बीईवइस्सइ । "
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ० ३ ।
१. वृत्तिता समुद्धता निगमनगाथा
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जिणवरभासियभावे भावसच्चे भावओ मदमं नो कुल्मा संदेहं संदेहोऽ णरथहेउ ति ।। १ ।। निस्संदेहतं पुण, गुणहेडं जं तत्र तयं कज्जं । एवं द सेट्ठिया, अंडयाही उदाहरणं ।। २ ।। सत्य महदुव्यलेण तविहायरियविरहओ वा वि नेवमहणतर्पण माणावरणोदयेणं च ॥ ३ ॥ ऊदाहरणासंभवे व सदसु न युज्ज्जा सव्वमयमति तहानि इ चितए मह ॥४॥ अणुवक पराणुग्गह-परायणा जं जिणा जगप्पवरा जिय-राग-दोस- मोहा, य नन्नहा वाइणो तेण ||५||
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७. कुम्मणायं
वाराणसीए मयंगतीरद्दहसमीवे मालयाकच्छतोरे पावसियालगा १२२ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्था--वण्णओ ।
तीसे णं वाणारसीए नयरोए उत्तरपुरथिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंग-तीरद्दहे नाम दहे होत्था---अणुपुष्वसुजायवप्प-गंभीरसीयलजले अच्छ-विमल-सलिल-पलिच्छण्णे संछण्ण-पत्त-पुप्फ-पलासे बहुउप्पल-पउम-कुमुय-नलिण-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय-महापुंडरीय सयपत्त-सहस्सपत्त-केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे । तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छमाण य गाहाण य मगराण य संसुमाराण य सयाणि य सहस्साणि य सयसहस्साणि य जूहाई निम्भयाई निरुव्विग्गाइं सुहंसुहेणं अभिरममाणाई-अभिरममाणाई विहरंति। तस्स णं मयंगतीरद्दहस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था--वण्णओ। तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवसंति--पावा चंडा रुद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गबेसमाणा रत्तिवियालचारिणो विया पच्छन्नं चावि चिट्ठति ।
मयंगतीरे कुम्म १२४ तए णं साओ मपंगतीरद्दहाओ अण्णया कयाई सूरियसि चिरत्यमियंसि लुलियाए संमभाए पविरलमाणुसंसि निसंत-पडिनिसंतसि
समाणंसि दुवे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं-सणियं उत्तरंति, तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं सव्वओ समंता परिघोलमाणा-परिघोलमाणा वित्ति कप्पेमाणा विहरंति ।
१२३
पावसियालगाणं आहारगवेसणं १२५ तयाणंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा मालुयाकच्छगाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मयंगती
रद्दहे तेणव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरतेणं परिघोलमाणा-परिघोलमाणा वित्ति कप्पेमाणा विहरति । तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए पासंति, पासित्ता जेणेव ते कुम्मए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
सियालगं दट्टणं कुम्माणं कायसंहरणं १२६ तए णं ते कुम्मगा ते पावसियालए एज्जमाणे पासंति, पासित्ता भीया तत्था तसिया उम्विग्गा संजायभया हत्थे य पाए य
गोवाओ य सहि-सएहि काएहि साहरंति, साहरित्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति । तए णं ते पाबसियालगा जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते कुम्मए सव्वओ समंता उव्वत्तेति परियतेंति आसारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेति फंदेति खो ति नहेहि आलुपंति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसि कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि आबाहं वा बाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए । तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए दोच्चं पि तच्चं पि सबओ समंता उब्वत्तेति-जाव-करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कंति, एगतमवक्कमंति, निच्चला निष्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति ।
सियालहि अगुत्त-कुम्मस्स मारणं १२७ तए णं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं-सणियं एगं पायं निच्छुभइ ।
तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं सणिय-सणियं एगं पायं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्धं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छति, उवागरिछत्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नोहि आलुपंति बंतेहि अवखो.ति, तओ पच्छा मंसं
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कुम्मणायं
४४९
१२८
च सोणियं च आहारैति, आहारेत्ता तं कुम्मगं सव्वओ समंता उब्वति-जाव-नो चेव णं संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए। तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मयं दोच्चं पि पच्च पि सव्वओ समंता उव्वत्तेति-जाव-छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कंति, दोच्चं पि एगंतमबक्कमंति। एवं चत्तारि वि पाया। तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं-सणियं गौवं नीणेइ। तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं [सणियं सणियं] गोवं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स गं कुम्मगस्स तं गीवं नहेहि [आलुंपंति], दंतेहि कवालं विहाडेंति, विहाडेता तं कुम्मगं जीवियाओ ववरोति, ववरोवेत्ता मंसं च सोणियं च आहारेति । अगुत्ताम्म पडुच्च उवणओ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे, पंच य से इंदिया अगुत्ता भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य होलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ--बहूणि दंडणाणि य बहूणि मुंडणाणि य बहुणि तज्जणाणि य बहूणि तालणाणि य बहूणि अंदुबंधणाणि य बहूणि घोलणाणि य बहूणि माइमरणाणि य बहूणि पिइमरणाणि य बहूणि भाइमरणाणि य बहूणि भगिणीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य बहूणि पुत्तमरणाणि य बहूणि धूयमरणाणि य बहूणि सुण्हामरणाणि य, बहूणं दारिदाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पियविप्पओगाणं बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं आभागी भविस्सति, अणादियं च णं अणवयग्गं दोहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा व से कुम्मए अगुत्तिदिए।
गुत्तकुम्मस्स सोक्खं १३० तए णं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चे कुम्मए तेणेव उवागछंति, उवागच्छित्ता तं कुम्मगं सव्वओ समंता उव्वत्तेति-जाव
छविच्छेयं वा करेत्तए। तए गं ते पावसियालगा तं कुम्मगं दोच्च पि तच्चं पि उव्वसेंति-जाव-नो चेव णं संचायति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा बाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउन्भया तामेव दिसं पडिगया। तए णं से कुम्मए ते पाबसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणिय-सणियं गोवं नोणेइ, नीणेत्ता विसावलोयं करेइ, करेत्ता जमगसमग चत्तारि वि पाए नीणेई, नीणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्धाए उद्धृयाए जइणाए छयाए कुम्मगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि अभिसमण्णागए यावि होत्था।
गुत्तकुम्म पडुच्च उवणओ १३१ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं समणो वा समणी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए
समाणे पंच य से इंदियाइं गुत्ताई भवंति, से णं इहभवे चेव बहूर्ण समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहणं सावियाण य अच्चणिज्जे बंदणिज्जे नमसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हिययउप्पायणाणि य बसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दोहमद्धं चाउरतं संसारकतारं वीईवइस्सइ-जहा व से कुम्मए गुत्तिदिए ।'
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ० ४ । १. वृत्तिकृता समद्धता निगमनगाथा
विसएसु इदियाई, रुभंता राग-दोस-निम्मुक्का । पावेंति निव्वुइसुह, कुम्मोव्व मयंगदहसोक्खं ॥१॥ इहरे उ अणत्थ-परंपराओ पावेंति पावकम्मवसा । संसार-सागरगया, गोमाउग्गसियकुम्मोव्व ॥२॥
ध००५७
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८. रोहिणीणायं
राहगिहे धणसत्थवाहो १३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था। सुभूमिमागे उज्जाणे ।
तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्यवाहे परिवसइ--अड्ढे-जाव-अपरिभूए। भद्दा भारिया-अहीणपंचिदियसरीरा-जावसुरुवा। तस्स णं धणस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा--धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धणस्स सत्यवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्या, तं जहा--उज्झिया भोगवइया रक्खिया रोहिणिया।
धणसत्यवाकया च उण्हं सुण्हाण परिक्खा १३३ तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरतावरत्तकालसमयंसि इमेयारवे अज्झत्यिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्ये
समुप्पज्जित्था--"एवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सस्थवाहपभितीणं सयस्स य कुडुंबस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कोडुबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं आहारे आलंबणे चक्खू, मेढीभूते पमाणभूते आहारभूते आलंबणभूते चक्खूभूए सव्वकज्जवड्ढावए, तं न नज्जइ णं मए गयंसि वा चुयंसि वा मयंसि वा भग्गंसि वा लुग्गंसि वा सडियंसि वा पडियंसि वा विदेसत्थंसि वा विप्पवसियंसि वा इमस्स कुडुंबस्स के मन्ने आहारे वा आलंबे वा पडिबंधे वा भविस्सइ?, तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्स-रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं, चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवगं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं धूव-पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स, चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणट्ठयाए पंच-पंच सालिअक्खए दलइत्ता जाणामि ताव का किह वा सारक्खेइ वा? संगोवेइ वा ? संवड्ढेइ वा? एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं, चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेइ, तओ पच्छा व्हाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गेणं सद्धि तं विपुलं असणं पागं खाइमं साइम आसादेमाणे जाव-सक्कारेइ, सकारेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेठं सुण्डं उज्झियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"तुमं गं पुत्ता! मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि" ति कटु सुण्हाए हत्थे दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ ।
उज्झियाए सालीणं उज्झणं १३४ तए णं सा उझिया धणस्स 'तह त्ति एयमलै पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता धणस्स सत्थवाहस्स हत्थाओ ते पंच सालिअक्खए गेहई'
गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"एवं खलु तायाणं कोट्रागारंसि बहवे पल्ला सालोणं पडिपुण्णा चिठ्ठति, तं जया णं मम ताओ इमे पंच सालिअक्खए जाएसइ, तया णं अहं पल्लंतराओ अण्णे पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ते पंच सालिअक्खए एगंते एडेइ, सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था।
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रोहिणीणार्य
भोगवाए सालीणं भोगो
१३५ एवं भोगवाए वि नवरं-सा होने, छोल्लेत्ता अनिल, अणुगिलिता सम्मसंजुत्ता जाया यानि होत्या ।
रक्खियाए सालीरक्खणं
!
१३६ एवं रविवाए वि नवरं न्हिता एवंतमवमह, एतमवक्कमियाए हमेपावे अन्यात्थिए चितिए पत्थिए मनोगए संकल्ये समुण्यत्वा एवं खलु ममं ताज इमस मिल-नाइ-नियम- सण-संबंधि-परियगरस चउन्ह व सुष्हाणं कुलधरवग्वस्त पुरओ सहावेत्ता एवं बयासी तुमं मं पुता मम हत्याओ इमे पंच सालिक्वए गेष्हाहि, अणुपुवेणं सारन्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया में अहं पुता! तुमं इथे पंच सालिक्वए जाएजा तया णं तु मम इमे पंच सालिमस्याए परिनिज्जानासि ति कट्टु मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयइ । तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं" ति कट्टु एवं संपेहेइ संपेहेत्ता ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वस्थे बंध, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिबइ, पक्खिवित्ता उसीसामूले ठावेइ, ठावेत्ता तिसंज्ञं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरद ।
रोहिणीए सालीरोहणं वढणं च
णं !
१३७ से धणे सत्यवाहे तब मित्त-नाइ-नियम-सन-संबंधि-परियणस्स चन्ह प मुण्हाणं कुलघरवास पुरओ पंच सालिए हर गेष्टिता, चत्वं रोहिणीयं सुष्टं सहावे सहावेत्ता एवं वासो तुमं पुत्ता! मम हत्याओं इमे पंच सालिए महाहि जायगेष्टिता एवंतमचम एवंतमवनिवाए मेवालये असथिए चिलिए परिवाए मणोगए संकल्पे समुपज्जित्था "एवं खलु न ताओ इमरस मिस-नाद-नि-संबंधि-परिवणस्स उन्ह व सुव्हाणं कुलधरवास्स पुरम सहावेता एवं बयासी तु पुता मम हत्याओ इमे पंच सालिक्खा हाहि अपुर्ण सारखखमाणी संगोमागी बिहराहि जया अहं पुत्ता ! तुमं इमे पंच सालिअवखए जाएज्जा, तया णं तुमं भ्रम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जारज्जासि' त्ति कट्टु मम हत्यंसि पंच सालिअक्खए दलइ । तं भवियत्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संबद्देमाणी" सिक एवं संपेपेला कुलधर-पुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं ववासी " तुम्मे णं देवाणुपिया ! एए पंच सालिए गेष्टद, गेव्हित्ता पदमपाउसंसि महाबुद्विकासि निषयंसि समाति पट्टा केवाएं सुपरिकम्मियं करे, करेता इमे च सालिए यावेह, वावेत्ता दोच्यं पि राज्यं पिक्चय-निहाए करेह, करेला वापि करेह, करेता सारक्खमाणा संगोवेमाणा आणुपुवेणं संवड्ढेह
--
१३८
——
कोबिया रोहिणीए एवम
परिर्णेति ते पंच सालिक्यए गेव्हंत, अणुपुष्येणं सारक्यति, संगोयिति ।
लए
कोबिया पदमपाउससि महाबुद्विकास निवइति समास खाणं केयारं सुपरिकम्मियं करेति ते पंच सालिए वंत, दो पिपि उक्य-निहाए करेति बाडिपरिक्वेवं करेति, अणुपुब्वेगं सारप्रेमाणा संगोवेमाणा संबद्देमाणा बिहरति । १२९ साली अणुपुत्रेण सारखिन्नमाणा संगोविज्जमाना संबदिनमाणा साली जाया किन्हा किल्हो माता नीला नौलोमासा हरिया हरिलोभासा सीया सीओोभासा गिद्धा णिडोमासा तिस्वा तिब्बोमासा किल्हा किन्हच्छाया मला मीलच्छाया हरिया हरिया सीमा सीमच्छाया मिद्धा पिच्छाया तिव्वा तिब्वच्छाया घण-कडियकविच्छाया रम्मा महामेहनिउरंबभूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिहवा ।
तए
१४०
४५१
तणं ते साली पत्तिया बत्तिया गन्भिया पसूइया आगयगंधा खीराइया बद्धफला पक्का परियागया सल्लइय- पत्तइया हरिय-फेरंडा जाया यावि होत्था ।
तसे बिया ते साली पलिए बलिए गनिए पसूइए आगयगंधे खीराइए बहकले पक्के परियागए सत्य-त्सइए जानता तिक्खहि नवपज्जणएहि असिएहि लुणंति, लुणित्ता करयलमलिए करेंति, करेता पुर्णति । तत्थ णं चोक्खाणं सूइयाणं अखंडानं अफुडियाणं छडछडापूयाण सालीणं मागहए पत्थए जाए ।
तए णं ते कोडुंबिया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति पक्खिवित्ता ओलिंपति, ओलिंपित्ता लछिय-मुद्दिए करेंत्ति, करेता कोट्ठागारस्स एगदेसंसि ठावेंति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहरंति ।
लए णं ते या दोन्यंसि वासारतसि पदमपाउसि महाबुद्विकार्यसि निवइयंसि (समासि ? बुट्टा केयारं सुपरिकम्मियं कति ते सालीत, दोस्त्वं पि उक्वाय-पिहए करेति जाब-असिएहि लुणंति लुगिता चलणतलमलिए करेति करेला पुर्णति । तत्थ णं सालीणं बहवे कुडवा जाया ।
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४५२
धम्महागु छो धो
लए णं ते कोबिया से साली नव पडए विंति परिवत्ता ओलियंति ओलिंपित्ता मंएि-मुहिए करेंति, करेता कोट्टागारस्स एगदेसंसि ठावेति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहति ।
१४१ बिया तपसि बासारसि महाबुद्विकास नियंत[समासि ?] केवारे सुपरिकम्मिए करेंति-जाति, तुला संहिता खल करेति मति, पुर्णति तत्य णं सालीणं बहने कुंभा जाया ।
१४२
तणं ते कोटुंबिया ते साली कोट्ठागारंसि पल्लंसि पक्खिवंति, पक्खिवित्ता ओलिंपति, ओलिपित्ता लंछिय मुद्दिए करेंति, करेता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहति ।
चउत्थे वासारते बहवे कुंभसया जाया ।
पंचवराणंतरं धणेण सालीमग्गणं
तए णं तस्स धणस्स पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकाल - समयंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकल्ये समुष्यज्जित्वा -- "एवं खल भए हओ अतीते पंचमे संवरे उन्हं सुहाणं परिश्खपाए ते पंच-पंच सालिक्खया हत्ये दिना । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पंच सालिअक्खए परिजाइत्तए-जाव-जाणामि ताव काए किह सारक्खिया वा संगोविया वा संवड्ढिया व” त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए - जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता मिस नाइ-नियम- सण-संबंधि-परिवर्ण च य मुष्हाणं कुलधरवणं जाव- सम्माणिता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सवण-संबंधि-परियणस्स वह यमुपहाणं कुलधररसपुर उज्झि सहावे सहावेता एवं बयासी एवं खलु अहं पुत्ता इमो अ पंचमम्मि संवच्छरे इमस्स मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तव हत्यंसि पंच सालिअक्खए दलयामि । जया णं अहं पुत्ता ! एए पंच सालिअक्खए जाएज्जा तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जासि । से नूणं पुत्ता ! अट्ठ े समट्ठ ?"
"हंता अत्थि " ।
"तं णं तुमं पुत्ता ! मम ते सालिअक्खए पडिनिज्जाएसि" ॥
उझियाए बाहिर पेसणकज्जकरणाएसो
१४३ तए णं सा उज्झिया एयमट्ठ धणस्स सत्यवाहस्स पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जंणेव कोट्ठागारं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पल्लाओ पंच साहिद, गहिला जेणेव धणे सत्यबाहे तेणेव उपागच्छड, उबागडिता धनं सत्यवाह एवं क्यासी- " एए णं ताओ ! पंच सालिअक्खए" ति कट्टु धणस्स हत्यंसि ते पंच सालिअक्खए दलयइ ।
लए धणे सत्यवाहे उज्जियं सवह सावियं करेइ, करेला एवं ववासी- "किष्णं पुला! ते चैव पंच सालिक्यए उदाह अगे ?" तए णं उशिया धणं सत्यवाहं एवं बयासी एवं खलु तुम्मे ताओ हम अतीए पंचमे संबन्छरे इमस्स मिल-नाह-नियमसण-संबंधि-परिजणस्स उष्ह व सुव्हाणं कुलघरव गस्स पुरओ पंच सालिक्खए वेष्टह, गेष्टिता ममं सदाविह सहायता एवं वयासी -- तुमं णं पुत्ता ! मम हत्याओ इमे पंच सालिअक्खए गेहाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । तए गं अहं तुम्भं एयमट्ठ पडिसुणेमि ते पंच सालिअक्खए गेण्हामि, एगंतमवक्कमामि ।
-
तए णं मम इमेाह अज्झथिए-जावकये समुत्पतित्था एवं खलु ताताणं कोट्टागारंसि बहवे पल्ला सालीणं पठिष्णा विति तं जया णं मम ताओ इमे पंच सालिअक्खए जाएसइ, तया णं अहं पल्लंतराओ अण्णे पंच सालिअक्खए गहाय दाहामिति कट्टु एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता ते पंच सालिअक्खए एगंते एडेमि, सकम्मसंजुत्ता यावि भवामि । तं नो खलु ताओ ! ते चेव पंच सालिए एए णं अनो।"
१४४ तए से धणे सत्यवाहे उझियाए अंतिए एयम सोच्या निसम्मा आसुस्त- जाव- मिसिमिसेमाणे उहि तरस मित्त-नाइ-नियमसयण संबंधि-परियणस्स उष्टं सुण्हाणं कुलघरवास्स व पुरओ तस्त कुलधरस्स छानिछानि च यवरुज्यं च संधियं सम्मज्जियं च पाओबदाइयं चव्हाणोबा चबाहिर-पेसणकारियं च वेद ।
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रोहिणीणाय
४५३
उज्झियं पडुच्च उवणओ १४५ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं
पव्वइए, पंच य से महव्वयाई उज्झियाई भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे-जाव-चाउरंत-संसार-कतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा सा उज्झिया।
१४६
भोगवइए अभिंतरपेसणकज्जकरणाएसो एवं भोगवइया वि, नवरं--छोल्लेमि, छोल्लित्ता अणुगिलेमि, अणुगिलित्ता सकम्मसंजुत्ता यावि भवामि । तं नो खलु ताओ ! ते चेव पंच सालिअक्खए, एए णं अण्णे । तए णं से धणे सत्थवाहे भोगवइयाए अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे भोगवई तस्स मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणस्स चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तस्स कुलघरस्स कंडितियं च कोटेंतियं च पीसंतियं च एवं-- रुंधतियं रंधतियं परिवेसंतियं परिभायंतियं अभितरिय पेसणकारि महाणसिणि ठवेइ।
भोगवई पडुच्च उवणओ १४७ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए,
पंच य से महव्वयाई फालियाई भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य होलणिज्जे-जाव-चाउरंत-संसार-कतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ--जहा व सा भोगवइया ।
रक्खियाए भंडागाररक्खणाएसो १४८ एवं रविखयावि, नवरं-जेणेव वासघरे तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता मंजूसं विहाडेइ, बिहाडेता रयणकरंडगाओ ते पंच सालि
अक्खए गेहइ, गेण्हित्ता जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पंच सालिअक्खए धणस्स हत्थे दलयइ। तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियं एवं वयासी--"कि णं पुत्ता! ते चेव एए पंच सालिअक्खए उदाह अण्णे ?" तए णं रक्खिया धणं सत्थवाहं एवं वयासी-"ते चेव ताओ! एए पंच सालिअक्खए, नो अण्णे"। "कहण्णं? पुत्ता!" एवं खल ताओ! तुम्भे इओ अतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता ममं एवं बयासी-'तुम णं पुत्ता! मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गिहाहि, अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि। जया णं अहं पुत्ता! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि' त्ति कटु मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयह। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं ति कट्ट ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वत्थे बंधेमि, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवेमि, पक्खिवित्ता उसीसामले ठावेमि, ठावेत्ता तिसंझं पडिजागरमाणी यावि बिहरामि। तओ एएणं कारणेणं ताओ! ते चेव पंच
सालिअक्खए, नो अण्णे"। १४९ तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियाए अंतियं एयमठे सोच्चा हट्ठतुठे तस्स कुल-घरस्स हिरण्णस्स य कंस-दूस-विपुल-धण-कणग
रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जस्स य भंडागारिणी ठवेइ।
रक्खियं पडुच्च उवणओ १५० एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए,
पंच य से महव्वयाई रक्खियाइं भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे-जाव-चाउरतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ--जहा व सा रक्खिया।
रोहिणीए सव्वाहिगारकरणाएसो १५१ रोहिणीया वि एवं चेव, नवरं--तुब्भे ताओ! मम सुबहुयं सगडि-सागडं दलाह, जा णं अहं तुम्भ ते पंच सालिअक्खए पडि
निज्जाएमि।
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणि एवं वयासी-"कहं गं तुम पुत्ता ! ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाइस्ससि ?" तए णं सा रोहिणी धणं सत्थवाहं एवं वयासी-"एवं खलु ताओ ! तुम्भे इओ अतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं बयासी-- 'तुमं णं पुत्ता मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुब्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि। जया णं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि' त्ति कटु मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयह। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए-जाव-बहवे कुंभसया जाया तेणेव कमेण । एवं खलु ताओ! तुब्भे ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाएमि । तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडि-सागडं दलाति। तए णं से रोहिणी सुबहु सगडि-सागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोट्ठागारे विहाडेइ, विहाडित्ता पल्ले उभिदइ, उभिदित्ता सगडि-सागडं भरेइ, भरेता रायगिह नगरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ। तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मूह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णं एवमाइक्खइ--धण्णे णं देवाणुप्पिया!
धणे सत्यवाहे, जस्स णं रोहिणीया सुण्हा पंच सालिअक्खए सागडि-सागडेणं निज्जाएइ। १५२ तए णं से धणे सत्यवाहे ते पंच सालिअक्खए सगडि-सागडेणं निज्जाइए पासइ, पासित्ता हतुढे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तस्सेव
मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवम्गस्स पुरओ रोहिणीयं सुण्हं तस्स कुलघरस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य आपुच्छणिज्जं पडिपुच्छणिज्ज मेढि पमाणं आहारं आलंबणं चक्खू, मेढीभूयं पमाणभूयं आहारभूयं आलंबणभूयं चक्खुभूयं सव्वकज्ज वड्ढावियं पमाणभूयं ठवेइ।
रोहिणि पडुच्च उवणओ १५३ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवमायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए,
पंच से महव्वया संवढिया भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जेजाव-चाउरतं संसारकतारं वीईवइस्सइ--जहा व सा रोहिणीया ।'
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ०७ । १ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह नाइ-जणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह बयाई॥१॥ उज्झिया
जह सा उज्झियनामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया ॥२॥ तह भवो जो कोई, संघसमक्खं [च] गुरु-विदिण्णाई। पडिबज्जिउं समुज्झइ, महब्बयाई महामोहा ॥३॥
सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कार-भायणं होइ। परलोए उ दुहत्तो, नाणा-जोणीसु संचरइ ॥४॥ भोगवती
जह वा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारित्तणेण पत्ता दुहं चेव ॥५॥ तह जो महव्वयाई, उवभुंजइ जीविय त्ति पालितो। आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए ॥६॥
सो एत्य जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ता। बिउसाण नाइपुज्जो, परलोयंसी दुही चेव ॥७॥ रक्खिया
जह वा रक्खियवहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता ॥८॥ तह जो जीवो सम्मं, पडिवज्जित्ता महव्वए पंच । पालेइ निरइयारे, पमाय-लेसं पि वज्जतो॥९॥
सो अप्पहिएक्करई, इहलोयम्मि वि विहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खं पि पावेइ ॥१०॥ रोहिणी
जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वढित्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥११॥ तह जो भब्वो पाविय, वयाइ पालेइ अप्पणा सम्म। अण्णेसि वि भव्वाणं, देइ अणेगेसि हियहेउं ॥१२॥ सो इस संघपहाणो, जुगप्पहाणो ति लहइ संसदं । अप्पपरेंसि कल्लाण-कारओ गोयमपहु व्व ॥१३॥ तित्थस्स बुड्ढिकारी, अक्खेवणओ कुतित्थियाईणं। विउस-नरसेविय-कमो, कमेण सिद्धि पि पावेइ ॥१४॥
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ०७ ।
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६. आसणायं
हत्यिसीसनगरे संजता नावावणिया
१५४ तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था-- वण्णओ ।
तत्थ णं कणगकेऊ नामं राया होत्था--वण्णओ ।
तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता नावावाणियगा परिवसंति-- अड्ढा - जाव - बहुजणस्स अपरिभूया यावि होत्या । संजता नावावणियाणं समुद्दमज्झे उबद्दयो
१५५ लए पंसि संजता नावावाणियगाणं अष्णया कमाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूये मिहोकहा-समुल्लाचे समुप्यज्जित्था - "सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दे पोयवहणेणं ओगाहेत्तए" त्ति कट्टु जहा अरहन्नए- जाब- लवणसमुद्द अणेगाई जोयणसयाई ओगाढा यावि होत्था ।
तए पंसि संजता नावावाणियगाणं लवणसमुहं अगंगाई जोवणतपाई ओगाडानं समाजाणं बहूणि उप्पायसमाई पाउब्वाई, तं जहा-अकाले गजिए अकाले बिज्जुए अकाले पणियस कालियवाए व समुत्थिए ।
लए सा नावा तेणं कालियवाएणं आणिज्यमाणी आतुगिज्नमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जमाणी संखोजिमाची संखोहिन माणी तत्थेव परिभमइ ।
नावानिज्जामयरस मूढलं लसन्तं च
१५६ तए णं से निज्जामए नटुमईए नट्टसुईए नटुसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था--न जाणइ कयर देसं वा दिसं वा विदिसं वा पोयवहणे अवहिए ति कट्टु ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियायइ ।
तए गं से बहने कुच्छधारा व कष्णधारा व गाय संजतानावा याणियगा य जेणेव से निम्नामए तेथेच उपागच्छति, उवागच्छित्ता एवं वयासी -- “किण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकरपे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए झियायसि ? "
तए णं से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य एवं वयासी - "एवं खलु अहं बेवाणुपिया नडुमईए नई नसणे मूढदिसामाए जाए यावि होत्या जागामि परदेसवा दिया विदिसं वा पोहणे अवहिए कि त ओमणरूप्ये करतलपत्यमुहे अट्टानोवगएशियामि।"
तए णं से कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य तस्स निज्जामयत्संतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म भीया तथा उव्विग्गा उब्विग्गमणा व्हाया कयबलिकम्मा करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु बहूणं इंदाण य खंधाण य रुद्दाण य सिवाण य वेसमणाण य नागाण य भूयाण य जक्खाण य अज्ज कोट्टकिरियाण य बहूणि उवाइय-सयाणि वायमाणा उवायमाणा चिट्ठति ।
लए णं से निज्जामए तो मुहतरस्स लमईएसईए लहसने अमूढदिसामाए जाए यादि होत्या ।
१५७ तएण से निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कष्णधारा य गभेल्लगा य संजत्तानावावाणियगा य एवं वयासी -- “ एवं खलु अहं देवाप्पिया ! लद्धमईए लद्धसुईए लद्धसण्णे अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कालियदीवंतेणं संबूढा । एस णं कालियदोवे आल"।
संजतानावावणियाणं कालियदीवे आस-पेच्छर्ण
१५८ तए णं ते कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य तस्स निज्जामगस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा हट्टा पक्खिणाणुकूलेणं वाणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता एगट्टियाहि कालियदीव उत्तरति । तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासंति, किं ते ?.
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धम्मकहाणुओगे छ8ो खंधो
हरिरेणु-सोणिसुत्तग-सकविल-मज्जार-पायकुक्कुड-वोंडसमुग्गयसामवण्णा । गोहूमगोरंग-गोरपाडल-गोरा, पवालवण्णा य धूमवण्णा य केइ। तलपत्त-रिट्ठवण्णा य, सालिवण्णा य भासवण्णा य केइ । जंपिय-तिल-कोडगा य, सोलोय-रिटुगा य पुंड-पइया य कणगपिट्टा य केइ । चक्कागपिट्ठवण्णा, सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ। केइत्थ अम्भवण्णा, पक्कतल-मेघवण्णा य बाहुवण्णा केइ। संझाणुरागसरिसा, सुयमुह-गुंजद्धराग-सरिसत्थ केइ । एलापाडल-गोरा, सामलया गवलसामला पुणो केइ। बहवे अण्णे अणिद्देसा, सामा कासीसरत्तपीया, अच्चंतविसुद्धा वि य णं आइण्णग-जाइ-कुल-विणीय-गयमच्छरा । हयवरा जहोवएस-कम्मवाहिणो वि य णं। सिक्खा विणीयविणया, लंघण-वग्गण-धावण-धोरण-तिवई जईण-सिक्खिय-गई ॥१॥
कि ते? मणसा वि उव्विहंताई अणेगाइं आससयाई पासंति । १५९ तए णं ते आसा वाणियए पासंति, तेसि गंध आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उब्बिग्गा उबिरगमणा तओ अणगाई जोयणाई
उन्भमंति। ते णं तस्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निन्भया निरुन्विग्गा सुहंसुहेणं विहरंति ।
१६०
संजत्तियाणं वणियाणं पुणरागमणं तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा अण्णमण्णं एवं बयासी-"किण्णं अम्हं देवाणुप्पिया! आसेहि ? इमे गं बहवे हिरण्णागरा य सवण्णागरा य रयणागरा य वइरागरा य । तं सेयं खल अम्हं हिरणस्स य सवण्णस्स य रयणस्स य वडरस्स य पोयवहणं भरित्तए" त्ति कट्ट अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता हिरण्णस्स य सुवण्णस्स य रयणस्स य वइरस्स य तणस्स य कट्ठस्स य अन्नस्स य पाणियस्स य पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता पयक्खिणाणुकूलेणं बाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तं हिरण्णं च सुवणं च रयणं च वरं च एगट्ठियाहिं पोयवहणाओ संचारैति, संचारेत्ता सगडी-सागडं संजोएंति, जेणेव हत्थिसीसए नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हथिसीसयस्स नयरस्स बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवसं करेंति, करेत्ता सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता हत्थिसीसयं नयरं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव से कणगऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेति ।
कणगकेउआएसेण आसाण आणयणं १६१ तए णं से कणगकेऊ राया तेसि संजत्ता-नाबावाणियगाणं तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता
ते संजत्ता-नावा-वाणियगे एवं वयासी--"तुम्भे गं देवाणुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाहसण्णिवेसाई आहिंडह, लवणसमुदं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह । तं अत्थि याई च केइ भे कहिचि अच्छेरए विट्ठपुवे?" तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कणगकेउं एवं वयासी-“एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया ! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव-जाव-कालियदीवंतेणं संबूढा । तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। कि ते? हरिरेणु-जाव-अम्हं गंध आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उब्विग्गा उब्विग्गमणा तओ अणेगाई जोयणाई उम्भमंति । तए णं
सामी! अम्हेहि कालियदीवे ते आसा अच्छेरए दिट्ठपुखें"। १६२ तए णं से कणगकेऊ तेसि संजता-नावावाणियगाणं अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म ते संजत्ता-नावावाणियए एवं वयासी--“गच्छह
णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडुंबियपुरिसेहि सद्धि कालियदीवाओ ते आसे आणेह"।। तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा ‘एवं सामि!' ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति । तए णं से कणगकेऊ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी--"गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! संजत्ता-नावावाणियएहि सद्धि कालियदीवाओ मम आसे आणेह । ते वि पडिसुणेति । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जता तत्थ णं बहूणं वीणाण य बल्लकोण य भामरोण य कच्छभीण य भंभाण य छम्भामरीण य चित्तवीणाण य अण्णेसि च बहूणं सोइंदिय-पाउग्गाणं दवाणं सगडी-सागडं भरेंति । बहूणं किण्हाण य नीलाण य लोहियाण य हालिहाण य सुक्किलाण य कट्टकम्माण य चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य गंथिमाण य वेढिमाण य पूरिमाण य संघाइमाण य अणेसि च बहूणं चक्खिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति। बहूर्ण कोट्टपुडाण य पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगरपुडाण य एलापुडाण य हिरिवेरपुडाण य उसीरपुडाण य चंपगपुडाण य मरुयगपुडाण य दमगपुडाण य जातिपुडाण य जुहियापुडाण य मल्लियापुडाण य वासंतियापुडाण य केयइपुडाण य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य
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आसणाय
अण्णेसि च बहणं घाणिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति । बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छंडियाए य पुप्फुत्तरपउमुत्तराए अण्णेसि च जिभिदिय-पाउग्गाणं दब्वाणं सगडी-सागडं भरेति । बहूणं कोयवाण य कंबलाण य पावाराण य नवतयाण य मलयाण य मसूराण य सिलावट्टाण य-जाव-हंसगन्माण य अनुसि च फासिदिय-पाउग्गाणं दवाणं सगडी-सांगडं भरेंति, भरेत्ता सगडी-सागडं जोयंति, जोइत्ता जणेव गभोरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जेत्ता तेसि उविकट्ठाणं सद्द-फरिस-रस-रूव गंधाणं कठुस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियरस य गोरसस्स य-जाव-अनुसि च बहूणं पोयवहणपाउगाणं पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता दक्खिणाणुकलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागछित्ता पोयवहणं लंबेति, लंबेत्ता ताई उक्किट्ठाई सद्द-फरिस-रस-रूब-गंधाई, एट्टियाहि कालियदीवं उत्तरेंति।। हि-हि च णं ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा तुयटुंति वा तहि-तहि च णं ते कोडुंबियपुरिसा ताओ वीणाओ य-जाव-चित्तवीणाओ य अण्णाणि य बहूणि सोइंदिय-पाउग्गाणि य दव्वाणि समुदीरमाणा-समुदीरेमाणा ठति, तेसि च परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया चिट्ठति। जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा तुयट्टति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुबियपुरिसा बहूणि किण्हाणि य नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य सुक्किलाणि य कट्टकम्माणि य-जाव-संघाइमाणि य अण्णाणि य बहूणि चक्खिदिय-पाउग्गाणि य दव्वाणि ठति, तेसि परिपेरंतेणं पासए ठवेति, ठवेत्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा तुयटुंति वा तत्थ-तत्य गं ते कोडुबियपुरिसा तेसि बहूणं कोटपुडाण य -जाव-पाडलपुडाण य अण्णेसि च बहूणं धाणिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता तेसि परिपेरंतेणं पासए ठति, ठवेत्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया चिट्ठति।। जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा तुयटुंति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा गुलस्स-जाव-पुप्फुत्तरपउमत्तराए अण्णेसि च बहणं जिभिदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता वियरए खणंति, खणित्ता गलपाणगस्स खंडपाणगस्स बोरपाणगस्स अणेसि च बहूणं पाणगाणं वियरए भरेति, भरेत्ता तेसि परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति।
हि-जहि च णं ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा तुयटृति वा तहि-तहि च णं ते कोडुंबियपुरिसा बहवे कोयवया -जाव-सिलावट्टया अण्णाणि य फासिदिय-पाउग्गाई अत्थय-पच्चत्थुयाई ठति, ठवेत्ता तेसि परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । तए णं ते आसा जेणेव ते उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रुव-गंधा तेणेव उवागच्छति ।
अमच्छिय-आसाणं सायत्त-विहारो १६४ तत्थ णं अत्थेगइया आसा अपुव्वा णं इमे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध त्ति कट्ट तेसु उक्किट्ठ सु सद्द-फरिस-रस-रुव-गंधेसु अमुच्छिया
अगढिया अगिद्धा अणज्झोववण्णा तेसि उक्किट्टाणं सद्द-फरिस-रस-रुव-गंधाणं दूरंदूरेणं अवक्कमंति । ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउरतणपाणिया निन्भया निरुव्यिग्गा सुहसुहेणं विहरति ।
। अमुच्छियआसे पडुच्च उवणओ १६५ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए
समाणे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण 7 अच्चणिज्जे-जाव-चाउरतं संसारकतारं वीईवइस्सइ ।
मुच्छिय-आसाणं परायत्त विहारो १६६ तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूब-गंधा तेणेव उवागच्छंति। तेसु उक्किट्ठसु सद्द-फरिस-रस-रूब-गंधेसु
मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा आसेविडं पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा ते उक्किट्ठ सद्द-फरिस-रस-स्व-गंधे आसेवमाणा तेहिं बहूहि कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु व बझंति । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा ते आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति, कटुस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य-जाव-असि च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेति ।
ध० क० ५८
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४५८
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
१६७ तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं बाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं
लंबेति, लंबेत्ता ते आसे उत्तारेति, उत्तारेत्ता जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल
परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धाति ते आसे उवणेति। १६८ तए णं से कणगकेऊ राया तेसि संजत्ता-नाबावाणियगाणं उस्सुकं वियरइ, सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ।
तए णं से कणगकेऊ राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । १६९ तए णं से कणगकेऊ राया आसमद्दए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--"तुम्भे णं देवाणुप्पिया! मम आसे विणएह"।
तए णं ते आसमद्दगा 'तह' ति पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ते आसे बहूहि मुहबंधेहि य कण्णबंधेहि य नासाबंधेहि य वालबंधेहि य खुरबंधेहि य कडगबंधेहि य खलिणबंधेहि य ओवीलणाहि य पडयाणेहि य अंकणाहि य वेत्तप्पहारेहि य लयप्पहारेहि य कसप्पहारेहि य छिवप्पहारेहि य विणयंति, विणइत्ता कणगकेउस्स रणो उवणेति ।
तए णं से कणगकेऊ राया ते आसमद्दए सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । १७० तए णं ते आसा बाहिं मुहबंधेहि य-जाव-छिवप्पहारेहि य बहूणि सारीर-माणसाई दुक्खाइं पार्वति ।
मुच्छियआसे पडुच्च उवणओ १७१ एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइए
समाणे इ8सु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु सज्जइ रज्जइ गिज्मइ मुज्झइ अझोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य होलणिज्जे-जाव-चाउरंतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ ।
समग्गदिदंतस्स उवणयगाहाओ १७२ कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु। सद्देसु रज्जमाणा, रमंति सोइंबिय-वसट्टा ॥१॥
सोइंदिय-दुद्दतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। दीविग-रुयमसहतो, वहबंधं तित्तिरो पत्तो ॥२॥ यण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गव्विय-विलासियगईसु । रुवेसु रज्जमाणा, रमंति चक्खिदिय-वसट्टा ॥३॥ चक्खिंदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं जलशूमि जलते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ ॥४॥ अगरुवर-पवरधूवण-उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु रज्जमाणा, रमंति, धाणिदिय-वसट्टा ॥५॥ घाणिदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं ओसहिगंधेणं, बिलाओ निद्धावई उरगो॥६॥ तित्त-कडुयं कसायं, महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्मेसु । आसायंमि उ गिद्धा, रमंति जिभिदिय-वसट्टा ॥७॥ जिभिदिय-दुइंतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं गललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरेल्लिओ मच्छो ॥८॥ उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु रज्जमाणा, रमंति फासिदिय-वसट्टा ॥९॥ फासिदिय-दुद्दतत्तणस्स अह एतिओ हवइ दोसो। जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो॥१०॥ कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु । सद्देसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥११॥ थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गब्बिय-विलासियगईसु । रुवेसु जे न रत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१२॥ अगरुवर-पवर-धूवण-उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१३॥ तित्त-कडुयं कसायं महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेझेसु। आसायंमि न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१४॥ उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१५॥ सद्देसु य भद्दय-पावएसु सोयविसयमुवगएसु। तुट्ठण व रु?ण व, समणेण सया न होयव्वं ॥१६॥ रुबेसु य भद्दय-पावएसु चक्खुविसयमवगएसु। तु?ण व रु?ण व, समणेण सया न होयब्वं ॥१७॥
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मियापुत्तकहाणयं
गंधेसु य भय-पावएसु घाणविसयमवगएसु । तुट्ठण व रु?ण व, समणेण सया न होयध्वं ॥१८॥ रसेसु य भद्दय-पावएसु जिभविसयमुवगए। तु?ण व रु?ण ब, समणेण सया न होयध्वं ॥१९॥
फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमवगएसु । तु?ण व रु?ण ब, समणेण सया न होयव्वं ॥२०॥ १७३ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं-जाव-संपत्तेणं सत्तरसमस नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ।'
---त्ति बेमि॥
णायाधम्मकहाओ सु० १ अ० १७ । १. वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथाजह सो कालियदीवो, अणुवमसोक्खो तहेव जइ-धम्मो। जह आसा तह साहू, बणिय व्वऽणुकलकारिजणा ॥१॥ जह सद्दाइ-अगिद्धा, पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा, बझंति न कम्मणा साहू ॥२॥ जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह इहं वरमुणीणं । जर-मरणाइ-विवज्जिय सायत्ताणंदनिव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया । पार्वेति कम्मबंध, परमासुह-कारणं घोरं ॥४॥ जह ते कालियदीवा, णीया अण्णस्थ दुहगणं पत्ता । तह धम्म-परिन्भट्ठा, अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥५॥ पार्वेति कम्म-नरवइ-वसया संसारवाहियालीए । आसप्पमद्दएहि व, नेरड्याईहि दुक्खाई ॥६॥
१०. मियापुत्तकहाणयं
मियग्गामे विजयराजपुत्ते मियापुत्ते १७४ समणेणं भगवया महावीरेणं-जाब-संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णसा, तं जहा--
संगहणी-गाहा
१. मियउत्ते य २. उज्झियए, ३. अभग्ग ४. सगडे ५. बहस्सई ६. मंदी। ७. उबर ८. सोरियदत्ते य, ९. देवदत्ता य १०. अंजू य ॥१॥ १७५ तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी--एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं मियग्गामे नामं नयरे होत्था--
वण्णओ। तस्स णं मियग्गामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए चंदणषायवे नाम उज्जाणे होत्था--सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे-- वण्णओ। तत्थ णं सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था--चिराइए जहा पुण्णभद्दे । तत्थ णं मियग्गामे नयरे विजए नाम खत्तिए राया परिवसइ--वण्णओ। तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स मिया नाम देवी होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा--वण्णओ।
मियापुत्तस्स जातिअंधआइत्तं १७६ तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियाए देवीए अत्तए मियापुत्ते नाम बारए होत्था--जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले
हंडे य वायब्वे । नस्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी बा नासा वा। केवलं से तेसि अंगोबंगाणं आगिती आगितिमेत्ते।
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं सा मियादेवी तं मियापुत्तं दारगं रहस्सियंसि भूमिधरंसि रहस्सिएणं भत्तापाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरई ।
महावीरसमोसरणे गोयमस्स जाइअंधपुरिसविसए पुच्छा १७७ तत्थ णं मियग्गामे नयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ । से णं एगेणं सचक्खुएणं पुरिसेणं पुरओ दंडएणं पकढिज्जमाणे-पकढिज्ज
माणे फुट्ट-हडाहड-सीसे मच्छिया-चडगर-पहकरेणं अणिज्जमाणमग्गे मियग्गामें नयरे गेहे-गेहे कोलुण-वडियाए वित्ति कप्पेमाणे विहरइ। १७८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे मियग्गामे नयरे
चंदणपायवे उज्जाणे समोसरिए। परिसा निग्गया।
तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लट्ठ समाणे जहा कूणिए तहा निग्गए-जाव-पज्जुवासइ । १७९ तए णं से जाइअंधे पुरिसे तं महयाजणसदं च जणवूह ए जणबोलं च जणकलकलं च सुणेत्ता तं पुरिसं एवं वयासी--"किण्णं
देवाणुप्पिया! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा उज्जाण-गिरिजत्ता इ वा, जओ णं बहवे उग्गा भोगा एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छंति ?" तए णं से पुरिसे तं जाइअंधं पुरिसं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहे इ वा-जाव-गिरिजत्ता इ वा, जओ णं बहवे उग्गा भोगा एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव मियग्गामे नयरे चंदणपायवे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं
तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तए णं एए-जाव-निग्गच्छति । १८० तए णं से अंधे पुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी-गच्छामो णं देवाणुप्पिया! अम्हे वि समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्का
रेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामो । तए णं से जाइअंधे पुरिसे तेणं पुरओ दंडएणं पुरिसेणं पकढिज्जमाणे-पकड्ढिज्जमाणे जेणेब समणे भगवं महावीरे तेणेव उवा-'
गच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ-जाव-पज्जुवासइ । १८१ तए णं समणे भगवं महावीरे विजयस्स रण्णो तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ । परिसा पडिगया
विजए वि गए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे-जाव-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंधं पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जाय-संसए जायकोउहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोउहल्ले उट्ठाए उट्ठ इ, उट्ठत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी"अत्थि णं भंते ! केइ पुरिसे जाइअंधे जायअंधारूवे ?" "हंता अत्थि"॥
भगवया मियापुत्तसरूवनिरूवणं १८२ "कह णं भंते ! से पुरिसे जाइअंधे जायअंधारूवे?"
"एवं खलु गोयमा ! इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियापुत्ते नाम दारए जाइअंधे जायअंधारूवे । नत्थि णं तस्स बारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी बा नासा वा केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती आगितिमेते। तए णं सा मियादेवी तं मियापुत्तं बारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ।
गोयमस्स मियापुत्तदसणं, १८३ तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-“इच्छामि णं भंते ! अहं तुर्भेहि
अब्भणुण्णाए समाणे मियापुत्तं दारगं पासित्तए।"
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मियापुत्तकहाणयं
४६१
"अहासुहं देवाणुप्पिया !" १८४ तए णं से भगवं गोयमे समणेण भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हदुतुटु समणस्स भगबओ महावीरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता अतुरिय मचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे नयरे तेणेव
उवागच्छड, उवागच्छित्ता मियग्गामं नयरं मझमज्झेणं जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ । १८५ तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिया पोइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण
हियया आसणाओ अब्भु? इ, अब्भुट्टत्ता सत्तटुपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणप्पगओयणं?" तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी--"अहं णं देवाणुप्पिए! तव पुत्तं पासिउ हव्वमागए।" तए णं सा मियादेवी मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेइ, करेत्ता भगवओ गोयमस्स
पाएसु पाडेइ, पाडेत्ता एवं वयासी--"एए णं भंते ! मम पुत्ते पासह"। १८६ तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी--"नो खलु देवाणुप्पिए ! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हव्वमागए। तत्थ णं जे से तब
जेठे पुत्ते मियापुत्ते दारए जाइअंधे जायअंधारूवे, जं णं तुम रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरसि, तं णं अहं पासिउ हब्बमागए।" तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी--"से के णं गोयमा ! से तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं एसमढे मम ताव
रहस्सीकए तुब्भं हव्वमक्खाए, जओ गं तुम्भे जाणह ?" १८७ तए णं भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिए ! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे तहारूवे नाणी
वा तबस्सी वा, जेणं एसमठे तव ताव रहस्सीकए मम हव्वमक्खाते, जओ णं अहं जाणामि"। जावं च णं मियादेवी भगवया
गोयमेण सद्धि एयमढें संलवइ, तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था । १८८ तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं बयासी-"तुब्भे णं भंते ! 'एहं चेव' चिट्ठह, जा णं अहं तुभं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि"
त्ति कट्ट जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वत्थपरियट्टयं करेइ, करेत्ता कटुसगडियं गिण्हइ, गिण्हित्ता विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स भरेइ, भरेता तं कट्टसगडिय अणुकड्ढमाणी-अणुकड्ढमाणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयम एवं वयासी-“एह णं भंते ! तुब्भे मए सद्धि अणुगच्छइ , जा णं अहं तुम्भं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि" । तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि पिट्टओ समणुगच्छइ। तए णं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अणुकड्ढमाणी-अणुकड्ढमाणी जेणेव भूमिघरए तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोयमं एवं वयासी--"तुब्भे वि णं भंते ! मुहपोत्तियाए मुहं बंधइ"। तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ । तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेइ । तए णं गंधे निग्गच्छइ । जहानामए--अहिमडे इ वा गोमडे इ वा सुणमडे इ वा मज्जारमडे वा मणुस्समडे इ वा महिसमडेइ वा मूसगमडे इ वा आसमडे इ वा हत्थिमडे इ वा सोहमडे इ वा वग्घमडे इ वा विगमडे इ वा दीविगमडे इ वा मय-कुहिय-विण?-दुरभिवावण्ण-दुभिगंधे किमिजालाउलसंसत्ते । असुइ-विलीण-वगयबीभत्सदरिसणिज्जे भवेयार वे सिया?
नो इणठे समठे । एत्तो अणि?तराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चैव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव गंधे पण्णत्ते । १९० तए णं से मियापुत्ते दारए तस्स विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स गंधणं अभिभूए समाणे तंसि विउलंसि असण-पाण-खाइम
साइमंसि मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसएणं आहारेइ, आहारेत्ता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसेत्ता तओ पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य पारिणामेइ, तं पि य णं पूर्य च सोणियं च आहारेछ ।
गोयमेण मियापुत्तस्स पुन्वभवपुच्छा १९१ तए णं भगवओ गोयमस्स तं मियापुत्तं दारगं पासित्ता अयमेयाख्वे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्प
ज्जित्था--"अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ । न मे विट्ठा नरगा वा नेरइया था। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेदिति'
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६२
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
त्ति कट्ट मियं देवि आपुच्छइ, आपुच्छित्ता मियाए देवीए गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता मियग्गामं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- "एवं खलु अहं तुम्भेहि अन्भणुण्णाए समाणे मियग्गामं नयरं मजामझेणं अणुप्पविसामि, जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागए । तए णं सा मियादेवी मम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठा, तं चेव सव्व-जाव-पूयं च सोणियं च आहारेइ । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्या--अहो णं इमे दारए पुरा पोराणागं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्मागं पावगं फलवितिसं पच्वगुभवमाणे विहरइ। से गं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि ? किं नामए वा किं गोते वा ? कपरंसि गामंसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा कि वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणागं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंतागं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिबिसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ?"
मियापुत्तस्स एक्काइनामरटुकडकहा १९२ गोयमा ! इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासो--"एवं खलु गोयमा ! तेगं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे
भारहे वासे सयदुवारे नामं नयरे होत्था--रिस्थिमियसमिद्धे वण्णओ। तत्थ णं सयदुवारे नयरे धणवई नाम राया होत्था--वण्णओ। तस्स णं सयदुवारस्प्त नयरस्स अदूरसामते दाहिणपुरस्थिमे दिसोभाए विजयवद्धमाणे नामं खेडे होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धे । तस्त णं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई आभोए यावि होत्था। तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई नाम रटुकडे होत्या-अहम्मिए अधम्माणुए अधम्मिटू अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुव्वए दुप्पडियाणंदे । से गं एक्काई रटुकडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसयाणं आहेवच्छ पोरेवच्वं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा-ईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।
इक्काइनामस्स रट्टकडस्स पयापोडणं १९३ तए णं से एक्काई रटुकडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई बहहि करेहि य भरेहि य विद्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि
य देज्जेहि य भेज्जेहि य कुंतेहि य लंछपोसेहि य आलोवणेहि य पंथकोद्देहि य ओवीलेमाणे-ओबोलेमाणे विहम्मेमाणे-विहम्म्मेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाणे तालेमाणे-तालेमाणे निद्धणे करेमाणे-करेमाणे विहरइ। तए णं से एक्काई रट्टकडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स बहूणं राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेगावइ-सत्थवाहाणं, अणेस च बहूणं गामेल्लगपुरिसाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य गुज्झएसु य निच्छएसु य ववहारेसु य सुणमाणे भणइ 'न सुणेमि', असुणमाणे भणइ 'सुणेमि', पस्समाणे भणइ 'न पासेमि', अपस्समाणे भणइ 'पासेमि', भासमाणे भणइ 'न भासेमि ।' अभासमाणे भणइ 'भासेमि', गिण्हमाणे, भगइ 'न गिण्हेमि', अगिण्हमाणे भणइ 'गिण्हेमि', जाणमाणे भणइ 'न जाणेमि', अजाणमाणे भणइ 'जाणेमि'। तए णं से एक्काई रट्टकडे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावं कम्म कलिकलुसं समज्जिणमाणे विहरइ ।
इक्काइस्स असज्झरोगायंका १९४ तए णं तस्स एक्काइस्स रटुकूडस्स अण्णया कथाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउन्भूया, तं जहा--
सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदले । अरिसा अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले अकारए । अच्छिवेषणा कण्णवेयणा कंडू उदरे कोटे ॥१॥ तए णं से एक्काई रटुकडे सोलसहि रोगायंकेहि अभिभूए समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-"गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्रोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह--इहं खलु देवाणुप्पिया ! एक्काइस्स रटुकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउम्भूया, तं जहा---सासे-जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया! वेज्जो वा बेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छ्यिपुत्तो वा एक्काइस्स
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मियापुत्तकहाणयं
रटुकडस्स तेसि सोलसाह रोगायंकाणं एगमवि रोगायक उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रटुकडे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ। दोच्च पि तच्चं पि उग्धोसेह, उग्घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । १९५ तए णं विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगि
च्छिया य तेगिच्छयपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया सएहि-सएहि गिहेहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव एक्काई-टुकडस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एक्काई-रटुकडस्स सरीरगं परामुसंति, परामुसित्ता तेसि रोगायंकाणं निदाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता एक्काई-रटुकूडस्स बहूहिं अब्भंगेहि य उव्वट्टणाहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवद्दहणाहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणाहि य बत्थिकम्मेहि य निरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणेहि य पच्छणेहि य सिरबत्थीहि य तप्पणाहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायकं उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामित्तए। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्ताए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।
१९६ तए ण
इक्काइस्स निरयगमणं तए णं एक्काई रटुकडे बेज्ज-पडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निविण्णोसहभेसज्जे सोलसरोगायंकेहि अभिभूए समाणे रज्जे य र? य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य, पुरे य अंतउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे रज्जं च रटुं च कोसं च कोटागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च आसाएमाणे पत्थेमाणे पीहेमाणे अभिलसमाणे अट्टदुहट्टवसट्टे अड्ढाइज्जाइं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं सागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ।
मियापुत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णणे मियाएदेवीए वेयणा गब्भसाडणवियारणा य १९७ से णं तओ अणंतरं उन्वट्टित्ता इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबवण्णे।
तए णं तीसे मियाए देवीए सरीरे वेयणा पाउन्भूया उज्जला विउला कक्कसा पगाढा चंडा दुक्खा तिव्वा दुरयिासा, जप्पभिई च गं मियापुत्ते दारए मियाए देवीए कुच्छिसि गब्भत्ताए उववण्णे, तप्पभिई च णं मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स अणिट्ठा अकंता
अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया यावि होत्था । १९८ तए णं तीसे मियाए देवीए अण्णया कयाइ पु.वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियाए जागरमाणीए इमे एयारूवे अज्झथिए चिंतिए
कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--"एवं खलु अहं विजयस्स खत्तियस्स पुदिव इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा धेज्जा वेसासिया अणुमया आसि । जप्पभिई च णं मम इमे गम्भे कुच्छिसि गम्भत्ताए उववण्णे तप्पभिई च णं अहं विजयस्स खत्तियस्स अणिट्टा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया यावि होत्था। नेच्छइ णं विजए खत्तिए मम नाम वा गोयं वा गिण्हित्तए, किमंग पुण दंसणं वा परिभोग वा? तं सेयं खलु मम एयं गम्भं बहूहि गम्भसाडणाहि य पाडणाहि य गालणाहि य मारणाहि य साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता बहूणि खाराणि य कडुयाणि य तूवराणि य गन्भसाडणाणि य पाडणाणि य गालणाणि य मारणाणि य खायमाणी य पियमाणी य इच्छइ तं गम्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा, नो चेव णं से गन्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा मरइ वा । तए णं सा मियादेवी जाहे नो संचाएइ तं गम्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा ताहे संता तंता परितंता अकामिया असयंवसा तं गम्भं दुहंदुहेणं परिवहह ।
१९९
गब्भगयस्स मियापुत्तस्स रोगायंका तस्स णं दारगस्स गम्भगयस्स चेव अट्ठ नालीओ अभितरप्पवहाओ, अट्ठ नालोओ बाहिरप्पवहाओ, अट्ठ पूयप्पवहाओ, अट्ठ सोणियप्पवहाओ, दुवे दुवे कण्णंतरेसु, दुवे दुवे अपिछअंतरेसु, दुबे दुवे नक्कंतरेसु, दुबे दुवे धमणिअंतरेसु अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयं च सोणियं च परिसवमाणीओ-परिसवमाणीओ चेव चिट्ठति ।
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४६४
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तस्स णं दारगस्स गम्भगयस्स चेव अग्गिए नाम वाही पाउन्भए। जेणं से दारए आहारेड, से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ, पूयत्ताए ५ सोणियत्ताए य परिणमड, तं पि य से पूयं च सोणियं च आहारे ।
२००
मियापुत्तस्स जातिअंधाइरूवं पासित्ता मियावईए उक्कुरु डियाए उज्मण-संकप्पो तए णं सा मियादेवी अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया--जातिअंधे जातिमए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा। केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती आगितिमत्ते। तए णं सा मियादेवी तं दारगं हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया अम्मधाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं देवाणुप्पिया! तुम एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि। तए णं सा अम्मधाई मियादेवीए 'तहत्ति एयम पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव विजए खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट एवं वयासी--"एवं खलु सामी! मियादेवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया--जातिअंधे जातिमए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा। केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती आगितिमेते।। तए णं सा मियादेवी तं दारगं हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उब्विगा संजायभया ममं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि। तं संदिसह णं सामी! तं दारगं अहं एगते उज्झामि, उदाहु मा?"
२०१
मियापुत्तस्स भूमिघरे ठावणं २०२ तए णं से विजए खत्तिए तीसे अम्मधाईए अंतिए एयम सोच्चा तहेव संभंते उट्टाए उट्ठइ, उट्ठता जेणेव मियादेवी तेणेव
उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियं देवि एवं वयासी-"देवाणुप्पिए! तुम्भं पढमे गम्भे। तं जइ णं तुमं एवं एगते उक्कुरुडियाए उज्झसि, तो णं तुभं पया नो थिरा भविस्सइ, तो णं तुम एवं दारगं रहस्सिगंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहराहि, तो णं तुम्भं पया थिरा भविस्सइ। तए णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स 'तह' ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि
रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ। २०३ एवं खलु गोयमा ! मियापुत्ते दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्ति
विसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ।
२०४
मियापुत्तस्स आगामिभव-वण्णणं "मियापुत्ते णं भंते ! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ?" "गोयमा! मियापुत्ते दारए छब्बीस वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले सोहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिए। से णं तत्थ सीहे भविस्सइ-अहम्मिए बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणइ, समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से गं तओं' अणंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ। तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं तिणि सागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइत्ताए उववज्जिहिइ । से गं तओ अणंतरं उध्वट्टित्ता पक्खीसु उवज्जिहिइ। तत्थ वि कालं किच्चा तच्चाए पुटवीए सत्त सागरोवम दिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ सीहेसु तुयाणंतरं चोत्थीए, उरगो, पंचमीए, इत्थीओ, छठीए, मणुओ, अहेसत्तमाए । तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता से जाइं इमाइं जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छ-कच्छभ-गाह-मगर-सुंसुमाराईणं अड्ढतेरस जाइकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्साइं, तत्थ णं एगमेगंसि जोणिविहाणंसि अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ।
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उज्झिययकहाणयं
४६५
से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता चउपएसु उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेसु खहयरेसु चरिदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु वणप्फइ-कडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ-तेउ-आउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ।। से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्ठपुरे नयरे गोणत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मकबालभावे अण्णया कयाइ पढमपाउससि गंगाए महानईए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइट्ठपुरे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ। से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ--इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेलसिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी। से णं तत्थ बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उव्ववज्जिहिइ। से गं तओ अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति--अड्ढाई अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति । जहा बढपइण्णे-जाव-सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।
विवाग० अ० १
११. उज्झिययकहाणयं
वाणियगामे सत्थवाहपत्तो उज्झियओ २०५ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तस्स णं वाणियगामस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभाए दूइपलासे नाम उज्जाणे होत्था। तत्थ णं दूइपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था। तत्थ णं वाणियगामे नयरे मित्त नाम राया होत्था--वण्णओ।
तस्स णं मित्तस्स रण्णो सिरी नामं देवी होत्था--वण्णओ। २०६ तत्थ णं बाणियगामे कामज्नया नाम गणिया होत्था--अहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-प्पमाण
पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार-कंत-पिय-दसणा सुरूवा बावत्तरिकलापंडिया चउसट्टिगणियागुणोववेया एगणतीसविसेसे रममाणी एक्कवीसरइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा गीयरइगंधव्वणट्टकुसला संगय-गय-भणिय-हसिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव-निउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथण-जहण-वयण-करचरण-नयण-लावण्ण-विलासकलिया ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणीया कण्णीरहप्पयाया यावि होत्था। बहूणं
गणियासहस्साणं आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्त भट्टित्तं महत्तरगतं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणी पालेमाणी विहरइ। २०७ तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नाम सत्थवाहे परिवसइ--अड्ढे ।
तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नाम भारिया होत्था । तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदिय-सरीरे लक्खण
वंजण-गुणोववेए माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदसणे सुरुवे । ध.क. ५६
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४६६
धम्मकहाणुओगे छट्ठो बंधो
२०८
भगवओ महावीरस्स समोसरणं तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। राया निग्गओ, जहा कूणिओ निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया राया य गओ।
२०९
गोयमेण उज्झिययस्स पुन्वभवपुच्छा तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे गोयमगोत्तेणं-जाव-संखित्तविउलतेयलेसे छट्टछट्टणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहर तए णं भगवं गोयमे छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बोयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"इच्छामि णं भंते ! तुहं अन्भणुण्णाए समाणे छट्टक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए"। "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा परिबंधं"। तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दुइपलासाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्टीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्त भिक्खायरियाए अडमाणे जेणेव रायमग्गे तेणेव ओगाढे । तत्थ णं बहवे हत्थी पासइ--सण्णद्ध-बद्धवम्मिय-गुडिए उप्पीलियकच्छे उद्दामियघंटे नाणामणिरयण-विविह-गेवेज्जउत्तरकुंचुइज्ज पडिकप्पिए झयपडागवर-पंचामेल-आरूढहत्यारोहे गहियाउहप्पहरणे । अण्णे य तत्थ बहवे आसे पासइ-सण्णद्ध-बद्धवम्मिय-गुडिए आविद्धगुडे ओसारियपक्खरे उत्तरकंचुइय-ओचूलामुहचंडाधर-चामरथासग-परिमंडिय-कडीए आरूढअस्सारोहे गहियाउहप्पहरणे। अण्णे य तत्थ बहवे पुरिसे पासइ-सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टीए पिणद्धगेवेज्जे विमलवरबद्ध-चिधपट्टे गहियाउहप्पहरणे । तेसि च णं पुरिसाणं मज्झगयं एगं पुरिसं पासइ अवओडयबंधणं उक्खित्तकण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झ-करकडि-जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वज्झपाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमसाई खावियंत पावं खक्खरगसएहि हम्ममाणं अणेगनर-नारी-संपरिवर्ड चच्चरे-चच्चरे खंडपडहएणं उग्धोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ--नो खलु देवाणुप्पिया! उज्झियगस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माई अबरमंति। तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-- "अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ" ति कटु वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिम-कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हिता वाणियगामे नयरे मझमज्झेणं पडिनिक्खमइ, अतुरियमचवलमसं भंते जुगंतरपयलोयणाए दिट्टीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव दूइपलासए उज्जाणे बेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--"एवं खलु अहं भंते ! तुहिं अब्भणुण्णाए समाणे बाणियगामे नयरे-जाव-तहेव सव्वं निवेएइ। से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि? कि नामए वा कि गोत्ते वा? कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा कि वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ?"
२११
उज्झिययस्स गोत्तासभवकहाणगं २१२ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे नाम नयरे होत्था-रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे सुनंदे नाम राया होत्था--महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे।
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उजिमययकहाणयं
४६७
तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे गोमंडवे होत्था--अणेगखंभसयसनिबिटु पासाईए दरिसणिज्जे अभिरुवे पडिरूवे। तत्थ णं बहवे नगरगोरुवा सणाहा य अणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवहा य नगरपड्डियाओ य नगरवसभा य पउरतणपाणिया निब्भया निरुविभ्गा सुहंसुहेणं परिवसंति ।
हत्थिणाउरे भीमे कूडग्गाहे २१३ तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे भीमे नाम कूडग्गाहे होत्था--अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे । २१४ तस्स णं भीमस्स कूडग्गाहस्स उप्पला नाम भारिया होत्था--अहोण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा।
तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णदा कयाइ आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था ।
नगरगोरूवाण सणाताओ
हि य ओट्टाहाण य ऊतेहि य व
भीमस्स भारियाए उप्पलाए मंसभक्खणदोहलो २१५ तए णं तीसे उप्पलाए कूडग्गाहिणीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए--"धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ,
संपुण्णाओ गं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ गं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि माणुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं बहूणं नगरगोरूवाणं सणाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कण्णेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य ओठेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्ण च आसाएमाणीओ वीसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुजेमाणीओ दोहलं विणेति । तं जइ णं अहमवि बहूणं नगरगोरूवाणं-जाव-च पसणं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी दोहलं विणिज्जामि" त्ति कट्ट तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा नित्तया दीणविमणवयणा पंडुल्लइयमही ओमंथिय-नयणवदणकमला जहोइयं पुष्फ-बत्थ-गंध-मल्लालंकाराहारं अपरि
भुंजमाणी करयलमलिय ब्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा करतलपल्लहत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियाइ। २१६ इमं च णं भीमे कूडग्गाहे जेणेव उप्पला कूडग्गाहिणी जेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता [उप्पलं कूडग्गाहिणि ?] ओहयमणसंकप्पं
करतलपल्हस्थमुहि अट्टज्झाणोबगयं भूमिगयदिट्ठीयं झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं बयासी--"कि णं तुम देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया मियासि ?" सए णं सा उप्पला भारिया भीमं कूडग्गाहं एवं वयासी-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! ममं तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउम्भू ए--धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ-जाव-परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसणं च आसाएमाणीओ वीसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ दोहलं विणेति । तए णं अहं देवाणुप्पिया! तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलग्गसरीरा नित्तया दीणविमणवयणा पंडुल्लइयमही ओमंथिय-नयणवदणकमला जहोइयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकाराहारं अपरिभंजमाणी करयलमलिय व्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयबिट्ठीया झियामि ।"
भीमेण दोहलपूरणं २१७ तए णं से भीमे कूडग्गाहे उप्पलं भारियं एवं वयासी--"मा णं तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्मा
णोवगया भूमिगयबिट्ठीया झियाहि । अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ"। ताहि इटाहि कंताहि पियाहि मणुण्णाहि मणामाहि वहि समासासेइ। तए णं से भीमे क डग्गाहे अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टीए पिणद्धगेवेज्जे विमलवरबद्ध-चिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता हत्थिणारं नयरं मझमझणं जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागए बहूणं नगरगोरूवाणं सगाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवहाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य-अप्पेगइयाणं ऊहे छिदइ, अप्पेगइयाणं थणे छिदइ, अप्पेगइयाणं वसणे छिदइ, अप्पेगइयाणं छप्पा छिवइ, अप्पेगइयाणं ककुहे छिदइ, वहे अप्पेगइयाणं छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णे छिदइ, अप्पेगइयाणं नासा छिदइ, अप्पेगइयाणं जिम्मा छिदइ, अप्पेगइयाणं ओढे
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४६८
धम्भकहाणुओगे छट्ठो खंधो
छिदइ, अप्पेगइयाणं कंबलए छिदइ, अप्पेगइयाणं अण्णमण्णाई अंगोवंगाई वियंगेइ, वियंगेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उप्पलाए कडग्गाहिणीए उवणेइ। तए णं सा उपला भारिया तेहिं बहहिं गोमंसेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महं च मेरगं च जाई च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभजेाणी तं दोहलं विणेइ । तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी संपुग्णदोहल्ला संमाणियदोहला विणीयदोहला विच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गम्भं सूहसूहेणं परिवहइ ।
दारयस्स जम्मो २१८ तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पायाया।
तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया [चिच्ची ?] सद्देणं विघ? विस्सरे आरसिए । तए णं तस्स दारगस्स आरसियसई सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरुवा सणाहा य अणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियाओ य नगरवसभा य भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता विपलाइत्था।
दारयस्स गोत्तासनामकरणं २१९ तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेनं करेंति--जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महय।
चिच्चीसद्देणं विधु? विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स दारगस्स आरसियसई सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरुवा -जाव-नगरवसभा य भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया सब्बओ समंता विपलाइत्था, तम्हा णं होउ अम्हं दारए गोत्तासे नामेणं ।
तए णं से गोत्तासे दारए उम्मुक्कबालभावे जाए यावि होत्था।
भीममरणाणंतरं गोत्तासस्स कूडग्गाहत्तं २२० तए णं से भीमे कूडग्गाहे अण्णया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते।
तए णं से गोत्तासे दारए बहूणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुड़े रोयमाणे कंदमाणे बिलबमाणे भीमस्स कूडग्गाहस्स नीहरणं करेइ, करेता बहूई लोइयमयकिच्चाई करेइ। तए णं से सुनंदे राया गोत्तासं दारयं अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहत्ताए ठवेइ। तए णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे जाए यावि होत्था--अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे।
गोत्तासस्स मंसासणं नरयाइभवा य २२१ तए णं से गोत्तासे कडग्गाहे कल्लाकल्लि अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए-जाव-गहियाउहप्पहरणे साओ
गिहाओ निज्जाइ, निज्जाइत्ता जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छिता बहूणं नगरगोरूवाणं सणाहाण य अणाहाण य-जाववियंगेइ, वियंगेत्ता जेणेव सए गेहे तेणेव उवागए। तए णं गोत्तासे कूडग्गाहे तेहिं बहूहिं गोमंसेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभंजेमाणे विहरइ। तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबह पावकम्मं समज्जिगित्ता पंचवाससयाई परमाउं पालइत्ता अदुहबोवगए कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसं तिसागरोवमदिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववणे ।
उज्झिययस्स वत्तमाणभव-वण्णणं २२२ तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा नाम भारिया जार्यानदुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणिहायमाबजंति ।
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उज्झिययकहाणयं
४६९
तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोच्चाए पुढवीए अणंतरं उवट्टित्ता इहेव वाणियगामे नयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे। तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया।
दारयस्स उज्झियय नामकरणं २२३ तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चं पि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता
अणुपुवेणं सारक्खमाणी संगोमाणी संवड्ढेइ। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं च चंदसूरदसणं च जागरियं च महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं करेंति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते बारसाहे अयमेयारूवं गोणं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंतिजम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झिए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं। तए णं से उज्झियए दारए पंचधाईपरिग्गहिए, तं जहा--खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंकधाईए, जहा दढपइण्णे-जाव-निव्वाय-निव्वाघाय-गिरिकंदरमल्लीणे व्व चंपगपायवे सुहंसुहेणं विहरइ।
विजयमित्तस्स लवणसमुद्दे मरणं २२४ तए णं से विजयमित्ते सत्यवाहे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च-चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुई
पोयवहणेण उवागए। तए णं से विजयमित्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए निम्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मणा संजुत्ते । तए णं तं विजयमित्तं सत्थवाहं जे जहा बहवे ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सत्थवाहा लवणसमुद्दपोयबिवत्तियं निम्बुडुभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेति, ते तहा हत्यनिक्खेवं च बाहिरभंडसारं च गहाय एगंतं अवक्कमंति। तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही विजयमित्तं सत्थवाहं लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुडभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेइ, सुणेत्ता महया पइसोएणं अप्फुण्णा समाणी परसुनियत्ता इव चंपगलया 'धस' त्ति धरणीयलंसि सव्वंहिं सन्निवडिया। तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही मुहत्तंतरेणं आसत्था समाणी बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेहि सद्धि परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलबमाणी विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ । तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्यविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचितेमाणीअणुचितेमाणी कालधम्मुणा संजुत्ता।
सुमहासत्यवाही मरणे उज्झिययस्स गिहाओ निक्कासणं २२५ तए णं ते नगरगुत्तिया सुभदं सत्यवाहि कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं साओ गिहाओ निच्छु:ति, निच्छुभेत्ता तं गिहं अण्णस्स
दलयंति । तए णं से उज्झियए दारए साओ गिहाओ निच्छुढे समाणे वाणियगामे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु जयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्ढइ । तए णं से उज्झियए दारए अणोहट्टए अणिबारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगो चोर-जूय-बस-दारप्पसंगी आए यावि होत्था।
उज्झियस्स गणियासहवासो २२६ तए णं से उज्झियए अण्णया कयाइ कामज्झयाए गणियाए सद्धि संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई
माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । तए णं तस्स मित्तस्स रणो अण्णया कयाइ सिरीए देवीए जोणिसूले पाउन्मए याबि होत्था, नो संचाएइ मिते राया सिरीए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए।
गणियासत्तेणं मित्तनामेणं रण्णा कया उज्झिययविडंबणा २२७ तए णं से मित्ते राया अण्णया कयाइ उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता कामज्झयं गणियं
अभितरियं ठवेइ ठवेत्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ।
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४७०
धम्महाओगे छठो बो तए णं से उज्झिए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाओ निच्छुभेमाणे कामज्झयाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे torte कत्थई सुई च रडं च धिई च अविदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदज्झवसरणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए कामज्वाए गणियाए बहूनि अंतराणि यछिद्राणि य विवराणि य पडिजागरमाणे डिजागरमाने विहरह।
तए गं से उलिए बारए अष्णया कयाइ कामया गणिया अंतरं लमेह लभेता कामया गणियाए हिं रहसि अमुष्यविस, अणुविसिता कामाया गणिया सह उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमा बिहरह
इमं ण णं मिले राया हाए कम्मे ककोड-मंगल-वान्छितं सव्यालंकारविभूलिए मनुरसवपुरापरिचिले जे कमाए गिहे लेणेव प्रजागच्छड, उनागष्ठिता तत्व उसियगं दारगं कामयवाए गणियाए सांड उरालाई मालुस्तगाई भोग भोगाई भुजमाणं पास पासिता आनुरुले स्टट्ठे कुथिए चंडिक्किए मिसिमिसेमा निर्वाल मिनिडाले साह उज्मियगं बार पुरिसेहि दिव्हावे, विषहाता अद्वि-बुद्धि-जागु-कोप्परपहार-भय-महियगतं करे, करेला अबलोड करे, करेता एएवं बिहा
वझं आणवेइ ।
उपसंहारो
२२८ एवं खलु गोयमा ! उज्झियए दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पचनुभवमाणे विहर।
उयियस्स आगामिभव-त्रगणं
२२९ उ णं भंते! दारए इस कालमासे कालं किया कहि गछिहिद ? कहि उम?
गोमा उ बारए पशुचीसं बाताई परमाउं पालता अव तिभागावसेसे दिवसे मूलमिष्णे कए समाणे कालमा काल fever इमीसे रयणष्पभाए पुढवीए नेरइएस नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ ।
से णं तओ अनंतरं उन्बट्टित्ता इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ ।
२३०
से णं तस्थ म्युक्बालभावे तिरियो मुछिए गिद्धे पडिए अवणे जाए जाए वाणरपेल्लए बहेद । तं एवकम्मे एयप्पहाणे एववि एवसमायारे कालमासे कालं फिल्या इहेब जंबुद्वी दीवे भारहे वासे इंदपुरे नपरे नियति पुत्ताए पञ्चाग्राहिह लए णं तं वा अम्मायरो जायमेकं वहिति नपुंसकम् सिक्खाहिति
तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेहिति होउ णं अहं इमे दारए पियसेणे नाम नपुंसए ।
तए णं से पियसेणे नपुंसए उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते रूवेण य जोव्त्रणेण य लावण्णेण व उक्किट्ठे उक्कसरीरे भवि
तए णं से पियसेणे नपुंसए इंदपुरे नयरे बहवे राईसर-तलवर- माडंबिय कोडूंबिय इब्भ-सेट्ठि-सेगावइ- सत्यवाहपभियओ बहूहि य विज्जापओहि य मंतपओहि य चुण्णपओगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएह आभियोगिता उरालाई मागुरुसवाई भोग भोगाईमा बिहरिस्स
२३१ तए गं से पियसे नपुंसए एक एप्पहाणं एववि एयसमायारे सुबहं पावकम्मं समज्जिनित्ता एक्कवीस वाससवं परमा पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहि । ततो सिरीसिवेसु, संसारो तहेब जहा पटावा-ले-आउ-पुडवी अनंग तो उदाइता उदाइसा तत्येव भुजी भुज्जो पचायाइस्स
से गं तो अनंत जन्महिता हे जंबी दीवे भार वाले पाए नमरीए महिसत्ताए पच्चामादि
से णं तरथ अण्णया का लिए जीविधाओ यवरोविए समाने तत्व पाए नवरीए मेट्रिकुलसि पुत्तताए पश्चावाहि
से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिइ, अणगारे भविस्सइ, सोहम्मे कप्पे, जहा पढमे - जावअंतं काहि ।
विवागसुयं सु० १ ० २ ।
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१२. अभग्गसेणकहाणयं
पुरिमताले चोरसेणावई-विजयपत्ते अभग्गसणे २३२ तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरिमताले नाम नयरे होत्था--रिद्धथिमियसमिद्धे।
तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं अमोहदंसी उज्जाणे । तत्थ णं अमोहदंसिस्स जक्खस्स आययणे होत्था । तत्थ णं पुरिमताले नयरे महब्बले नाम राया होत्था। तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्यिमे दिसीभाए देसप्पंते अडवि-संसिया, एस्थ णं सालाडवी नामं चोरपल्ली होत्था-- विसमगिरिकंदर-कोलंब-संनिविट्ठा बंसीकलंक-पागारपरिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगढा अभितरपाणीया सुदुल्लभजल
पेरंता अणेगखंडी विदियजणदिन-निग्गमप्पवेसा सुबहुस्स वि कुवियजणस्स दुप्पहंसा यावि होत्था। २३३ तत्थ णं सालाडवीए चोरपल्लीए विजए नाम चोरसेणावई परिवसइ--अहम्मिए अहम्मिट्ठे अहम्मक्खाई अधम्माणुए अधम्मपलोइ
अधम्मपलज्जणे अधम्मसील-समुदायारे अधम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ--हण-छिद-भिद-वियत्तए लोहियपाणी बहुनयर निग्गयजसे सूरे दढप्पहारे साहसिए सहवेही असि-लट्ठि-पढममल्ले। से णं तत्थ सालाडवीए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ।। तए णं से विजए चोरसेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खंडपट्टाण य, अण्णेसि च बहूणं छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहियाणं कुडंगे यावि होत्था। तए णं से विजए चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरथिमिल्लं जणवयं बहूहि गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकोट्टेहि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे-ओवीलेमाणे विहम्मेमाणे-विहम्मेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाणे तालेमाणे
तालेमाणे नित्थाणे निद्धणे निक्कणे करेमाणे विहरइ, महब्बलस्स रण्णो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पायं गेण्हइ । २३४ तरस णं विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरी नाम भारिया होत्था--अहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा।
तस्स णं विजयस्स चोरसेणावइस्स पुत्ते खंदसिरीए भारियाए अत्तए अभग्गसेणे नामं दारए होत्था--अहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे । २३५ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमताले नयरे समोसढे। परिसा निग्गया। राया निग्गओ। धम्मो कहिओ।
परिसा राया य गओ।
महावीरसमोसरणे गोयमेण अभग्गसेणस्स पुव्वभवपुच्छा २३६ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी गोयमे-जाव-रायमगंसि ओगाढे, तत्थ गं बहवे हत्थी
पासइ, अण्णे य तत्थ बहवे आसे पासइ, अण्णे य तत्थ बहवे पुरिसे पासइ-सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए। तेसि च णं पुरिसाणं मशगयं एगं पुरिसं पासइ--अवओडय बंधणं उविखत्त-कण्ण-नासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झकरकडि-जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदाम चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वज्झपाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमसाई खावियंतं पावं खक्खरसहि हम्ममाणं अणेगनर-नारी-संपरिवुडं चच्चरे-चच्चरे खंडपडहएणं उग्धोसिज्जमाणं [इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ--नो खलु देवाणुप्पिया! अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माइं अवरज्झंति ?] । तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि निसियाति, निसियावेत्ता अट्ट चुलप्पिउए अग्गओ धाएंति, घाएत्ता कसप्पहारेहि तासेमाणा-तासेमाणा कलुणं काकणिमसाई खावेति, रुहिरपाणं च पाएंति । तयाणंतरं च णं दोच्चंसि चच्चरंसि अट्ट चुल्लमाउयाओ अग्गओ घाएंति, घाएत्ता कसप्पहारेहि तासेमाणा तासेमाणा-कलुणं काकणिमंसाई खावेति, रुहिरपाणं च पाएंति ।
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो एवं तच्चे चच्चरे अट्ठ महापिउए, चउत्थे अट्ठ महामाउथाओ, पंचमे पुत्ते, छठे सुहाओ, सत्तमे जाम.उया, अट्टमे धूयाओ, नवमे नलया, दसमे नत्तु ईओ, एक्कारसमे नत्तुयावई, बारसमे नत्तुइगीओ, तेरसमे पिउस्सियपइया, चोद्दसमे पिउस्सियाओ, पण्णरसमे माउस्सियापइया, सोलसमे माउस्सियाओ, सत्तरसमे मामियाओ, अट्ठारसमे अवसेसं मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं अग्गओ
घाएंति, घाएत्ता कसप्पहारेहि तासेमाणा-तासेमाणा कलुणं काकणिमसाई खाति, रुहिरपाणं च पाएंति । २३७ तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--"अहो णं
इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे हिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ" त्ति कटु पुरिमताले नयरे उच्च-नीय-मज्झिम-कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झमझेणं पडिनिक्खमइ-जाव-समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--एवं खलु अहं भंते ! तुहि अब्भणुण्णाए समाणे पुरिमताले नयरे -जाव-तहेव सव्वं निवेएइ।
अभग्गसेणस निन्नयभवकहा २३८ से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसी? कि नामए वा कि गोत्ते वा? कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा कि
वा भोच्चा कि वा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं
फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ?" २३९ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पुरिमताले नाम नयरे होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्धे।
तत्थ णं पुरिमताले नयरे उदिओदिए नाम राया होत्था--मयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे। तत्थ णं पुरिमताले निम्नए नाम अंडय-वाणियए होत्था--अड्ढे-जाव-अपरिभए, अहम्मिए अधम्माणुए अधम्मिटठे अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुव्वए दुप्पडियाणंदे ।
२४०
निन्नयस्स अंडवाणिज्ज अंडाइअसणं निरयोववाओ य तस्स णं निन्नयस्स अंडय-वाणियस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाल्लि कुहालियाओ य पत्थियपिडए य गिण्हंति, गिण्हित्ता पुरिमतालस्स नयरस्स परिपेरंतेसु बहवे काइअंडए य घुइअंडए य पारेवइअंडए य टिट्टिभिअंडए य बगिअंडए य मयूरिअंडए य कुक्कुडिअंडए य, अण्णेसि च बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं अंडाइं गेहंति, गेण्हित्ता पत्थियपिडगाई भति, भरेत्ता जेणेव निन्नए अंडवाणियए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता निम्नयस्स अंडवाणियस्स उवणेति । तए णं तस्स निन्नयस्स अंडवाणियगस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे काइअंडए य-जाव-कुक्कुडिअंडए य, अण्णेसि च बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं अंडए तबएसु य कबल्लीसु य कंडसु य भज्जणएमु य इंगालेसु य तलति भजेति सोल्लेति, तलेता भज्जेता सोल्लेत्ता य रायमग्गे अंतरावर्णसि अंडयपणिएणं वित्ति कप्पेमाणा विहरंति। अप्पणा वि णं से निन्नयए अंडवाणिवए तेहि बहि काइअंडएहि य-जाव-कुक्कुडिअंडएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे बीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ । तए णं से निन्नए अंडवाणियए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिगित्ता एगं वाससहस्स परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तसागरोवमठिइएसु नरएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ।
अभग्गसेगस्स वत्तमाणभव-बण्णणं २४१ से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेब सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्त चोरसेणावइस्त खंदसिरीए भारियाए कुच्छिसि पुतताए
उववण्णे ।
२४२
खंदसिरीए दोहलो तए णं तोसे खंदसिरोए भारियाए अण्णया कयाइ तिहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउन्भूए-“धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं, अण्णाहि य चोरमहिलाहिं सद्धि संपरिबुडा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छिता सव्वालंकारविभसिया विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाई
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अमग्गसेणकहाणयं
४७३
च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था सण्णद्धबद्धवम्मियकवइया उप्पीलियसरासणपट्टीया पिणद्धगेवेज्जा विमलवरबद्ध-चिधपट्टा गहियाउहप्प हरणावरणा भरिएहि, फलरहि, निक्कदाहिं असीहि, अंसागएहि तोणेहि, सज्जीवेहि अंसागरहि धहि, समुक्खिहिं सरेहि, समुल्लालियाहि दामाहि, ओसारियाहिं ऊरुघंटाहि, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्टिसोहणाय-बोल-कलकल-रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणीओ सालाडवीए चोरपल्लीए सव्वओ समंता ओलोएमाणीओ-ओलोएमाणीओ आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणेति । तं जइ अहं पि-जावदोहल विगिएज्जामि" त्ति कटु तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा-जाव-अट्टज्झाणोवगया भूमिगदिट्ठीया झियाइ।
विजएण दोहलपूरणं २४३ तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरिभारियं ओहयमणसंकप्पं-जाव-झियाय माणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी--कि णं तुम
देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा-जाव-भूमिगयदिट्ठीया झियासि ? तए णं सा खंदसिरी विजयं चोरसेणावई एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउन्भए -जाव-भूमिगयदिट्ठीया झियामि । तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरीए भारियाए अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म खंदसिरिभारियं एवं वयासी--'अहासुहं देवाणुप्पिए !' ति एयमझें पडिसुणेइ । तए णं सा खंदसिरिभारिया विजएणं चोरसेणावइणा अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठतुट्टा बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं, अण्णाहि य बहूहि चोरमहिलाहिं सद्धि संपरिवुडा व्हाया-जाव-विभूसिया विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरइ । जिमियभुत्तत्तरागया पुरिसनेवत्था सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवइया-जाव-आहिंडमाणी दोहलं विणेइ ।।
तए णं सा खंदसिरिभारिया संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला विच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गम्भं सुहंसुहेणं परिवहइ । २४४ तए णं खंदसिरी चोरसेणावइणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया ।
तए णं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं दसरत्तं ठिइवडियं करेइ ।
दारयस्स अभग्गसेण-नामकरणं जोव्वणं च २४५ तए णं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स एक्कारसमे दिवसे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता
मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणं आमंतेइ, आमंतेत्ता-जाव-तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ एवं वयासी-- जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गभगयंसि समाणंसि इमे एयारूवे दोहले पाउन्भूए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए अभग्गसेणे नामेणं । तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए-जाव-परिवड्ढइ । तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था । अढ दारियाओ-जाव-अट्ठओ दाओ । उप्पि० भुजइ ।
विजयमरणे अभग्गसेणस्स चोरसेणावइत्तं २४६ तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते ।
तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंहि चोरसएहि सद्धि संपरिण्डे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नोहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था । तए णं ताई पंच चोरसयाई अण्णया कयाइ अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचति । तए णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए अहम्मिए-जाव-महब्बलस्स रण्णो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पायं गिण्हइ । तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहुगामघायणाहि ताविया समाणा अण्णमण्णं सहाति, सद्दावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरिल्लं जणवयं बहूहि गामघाएहि-जाव-निद्धणं
करेमाणे विहरइ । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो एयमट्ट विण्णवित्तए" । ध० का ६०
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४७४
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
विगाहं गेण्हाहि, गेच्छिह गं तुम देवाणघडिक्किए मिसिमिसे
महब्बलरण्णो अभग्गसेणजीवग्गाहगहणे आणा ४७ तए णं ते जाणवया पुरिसा एयमलै अण्णमण्णणं पडिसुणेति, पडिसुणेता महत्थं महन्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हंति, गिण्हित्ता
जेणेव पुरिमताले नयरे तेणेव उवागया महब्बलस्स रणो तं महत्थं-जाव-पाहुडं उवणेति. उवणेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ठ महब्बलं रायं एवं वयासी-"एवं खलु सामो ! सालाडवोए चोरपल्लीए अभग्गसेणे चोरसेणाबई अम्हे बहूहि गामघाएहि य-जाव-निद्धणे करमाणे विहरइ । तं इच्छामो णं सामी! तुझं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुश्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसित्तए" त्ति कटु पायवडिया पंजलिउडा महब्बलं रायं एयमठें विण्णवेति । तए णं से महब्बले राया तेसि जाणवयाणं पुरिसाणं अंतिए एयमझें सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिलिय भिडि निडाले साहटु दंडं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-"गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! सालाडवि चोरपल्लि विलुपाहि, विलुपित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीव-गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि"।
तए णं से दंडे 'तह' त्ति एयमढें पडिसुणेइ । २४८ तए णं से दंडे बहूहि पुरिसेहि सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवहि-जाव-गहियाउह-पहरहिं सद्धि संपरिबुडे मगइहि फलरहि, निक्कट्ठाहि
असीहि, अंसागह तोहिं, सज्जीवेहि अंसागएहिं धर्हि, समुक्खिहि सरेहि, समुल्लालियाहिं दामाहि, ओसारियाहिं ऊरुघंटाहि, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि-सीहणाय-बोल-कलकल-रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे पुरिमतालं नयरं
मझमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्य गमणाए। २४९ तए णं तस्स अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमोसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली, जेणेव अभग्गसेणे
चोरसेणावई तेणेव उवागया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु अभग्गसेणं चोरसेणावई एवं वयासो--"एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं दंडे आणते--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! सालाडवि चोरपल्लि विलंपाहि, अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेल्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि तए णं से दंडे महयाभडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए"। तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसि चारपुरिसाणं अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म पंच चोरसयाई सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-"एवं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं बंडे आणत्ते-जाव-तेणेब पहारेत्थ गमणाए। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तं दंडं सालावि चोरपल्लि असंपत्तं अंतरा चेव पडिसेहित्तए"।
तए णं ताई पंच चोरसयाई अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स 'तहत्ति एयमढें पडिसुणेति।। २५० तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता पंचहि चोरसएहि सद्धि व्हाए
कयबलिक्कमे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते भोयणमंडवंसि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जमाणे बिहरई। जिमियभुत्तुरागए विय समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए पंहि चोरसहि सद्धि अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरुहित्ता सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवह उप्पीलियसरासणपट्टीएहि पिणद्धगेवेज्जेहिं विमलवरबद्ध-चिधपट्टेहि गहियाउहपहरणेहं मगइएहि-जाव-उक्किट्ठि-सोहनाय-बोल-कलकलरवेणं पच्चावरण्हकालसमयंसि सालाडवीओ चोरपल्लीओ निगच्छइ, निग्गच्छित्ता विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए तं दंडं पडिवालेमाणे-पडिवालेमाणे चिट्टइ।
अभग्गसेणेण रायसेणानिवारणं २५१ तए णं से दंडे जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गे यावि
होत्था। तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तं दंडं खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचधधयपडागं दिसोदिसि पडिसेहेति ।। तए णं से दंडे अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिधधयपडागे दिसोदिसि पडिसेहिए समाणे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेब महब्बले राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु महब्बलं रायं एवं बयासी--"एवं खलु सामी ! अभग्गसेणे चोरसेणावई विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए, नो खलु से सक्का केण वि सुबहुएण वि आसबलेण वा हथिबलेण वा जोहबलेण वा रहबलेण वा चाउरंगणं पि [सेण्णबलेणं?] उरंउरेणं गिण्हित्तए । ताहे सामेण य भएण य उवप्पयाणेण य विस्संभमाणे
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अभग्ग से कहाrयं
पवत्ते यावि होत्या । जे वि य से अभितरगा सीसगभमा, मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परियणं च विउलेणं धण-कणग-रयणसंतसार-सावर्ण भिवद, अभग्गणस्स य चोरमेणावइरस अभिवणं अभिरक्षणं महत्वाद महत्वाई महरिहाई रावारिहाई पाहुडाई पेसेइ, अभग्गसेणं चोरसेणावई वीसंभमाणेइ " ।
४७५
तए गं से महम्बले राया अष्णया कयाइ पुरिमताले नमरे एवं महं महद्दमहालियं कूडागारसाल कारे--अणेगखं भसवसनिवि पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरुवं पडिवं ।
रण्णा इसरतपमोयघोसणं
२५२ से महम्बले राया अण्णया कयाइ पुश्मिताले नपरे उस्सुक्कं उक्कर अभय अमिमं अधरिमं अधारणिनं अडमुग अमितायमालदामं गणियावरनाइज्नकलिये अगतालाच राणुचरियं पमुइयपरकौलिया भिरामं जहारिहं दसरतं मी उन्घोसाने, उपोसावेला कोपुरिसे सहावे सहावेता एवं क्यासी" गछह णं तुम्मे देवागुपिया ! सालाडवीए चोरपल्लोए । तत्य णं तु अभासेणं चोरसेणावई करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थाए अंजलि कट्टु एवं वयहएवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नय मम्बलरसरणी उस्सुबके जाव-इसरते मोए उम्पोखिए तं कि णं देवाप्पिया । विलं असणं पाणं खाद साइमं पुष्क-बाय-गंध-मालालंकारे य इहं हन्यमाज्जि उदाह सबमेव गाथा ?"
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा महब्बलस्स रण्णो करयलपरिग्ाहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि !' ति आणाए विणएणं वयणं पडणेंति, पडिसुणेत्ता पुरिमतालाओ नयराओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता नाइविकिट्ठेहि अद्धाणेहिं सुहेहिं बस हिपायरासहि जेणेव सालाडवी बोरवली तेणेव उपागच्छति, उनागरिता अभग्यलेणं बोरसेणाय करयलपरिमाहियं विरसावतं मत्यए अंजलि कट्टु एवं क्यासी -- “ एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो उस्सुक्के-जाव-दसरत्ते पमोए उग्घोसिए । से कि देवाविया बिल असणं पाणं खाहमं साइमं पुष्क-स्व-गंध-महलालंकारे मागि उदाहरूयमेव गच्छत्था ?" तए गं से अभय
चोरसेगाव ते कोटुंबियपुरिसे एवं व्यासी--"अहं णं देवान्यिया ! पुरिमताल नवरं सवमेव गच्छामि। ते कोपुरिसक्कारेड सम्माणे पवि
अभयसेणस्स पुरिमताले रायअतिहिलेण गमणं
२५३ ए से अभोसे चोरसेगाव हि वित्त-लाइन-सवण-संबंधि-परिवह स परिवृढे पहाए कपल कोमंगल-पापछि सव्यालंकारविभूसिए सालाबीओ चोरपल्लीओ पडिनियम, परिनिमित्ता जेणेव पुरिमताले नवरे, जेव महब्बले राया, तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु महब्बलं रायं जएणं विजएणं बढावे, बढावेत्ता महत्वं महत्वं महरिहं रामारिहं पाहू उवणे ।
लए गं से महत्वले राम्रा अभयवेगस्स बोरसेणावइस्स तं महत्यं महत्वं महरिहं वारिहं पाह पछि अभागसेनं चोरसेपावई सक्कारेड सम्माने बिसज्जे, कूडागारसा च से जावसहि बलप
तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई महब्बलेणं रण्णा विसज्जिए समाणे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ ।
लए णं से महब्बले राया कोबियरिसे सहावे सहावेत्ता एवं ववासी "गच्छहणं तुम्ने देवाशुप्पिया ! बिजलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसणं
सुबह पुण्यस्थ-गंध-मल्लासकार व अभग्यलेणास्स चोरसेणावइस कूडागारसालाए उवणेह।"
तए णं ते कोटुंबिय पुरिसा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्यए अंजलि कट्टु जाव उवर्णेति ।
तए गं से अभागे चोरगाव बहू मिलना-नियम-वन-संबंधि-परिवर्णाहि सद्धि संपरि हाए-जावकारविभूसिए तं वसानं बार साह मुरं च महं च मे व जाई व सीधुं व पसण्णं व आसाएमाणे बीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमागे पमसे बिह
रण्णा जीवग्गाहं अभग्गसेणगहणं
२५४ सए से महम्बले राम्रा कोषपुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं व्यासी "गणं तुम्भे देवाविया ! पुरिमतालस्स नवरस्स दुवारा हि पित्ता अभासे चोरणावई जीवम्याहं गिन्ह, गिव्हिला ममं उपह" ॥
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं ते कोडुबियपुरिसा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु 'एवं सामि !' ति आणाए विणएणं बयणं पडिसुणेति,
पडिसुणेत्ता पुरिमतालस्स नयरस्स दुवाराई पिहेंति, अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गिण्हंति, गिण्हित्ता महब्बलस्स रणो उवणेति । २५५ तए णं से महब्बले राया अभग्गसेणं चोरसेणावई एएणं विहाणेणं वझं आणवेइ ।
उवसंहारो २५६ एवं खलु गोयमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं
फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ।
अभग्गसेणस्स आगामिभवकहा २५७ अभग्गसेणे णं भंते ! चोरसेणावई कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छहिइ ? कहि उववाजहिइ ?
गोयमा! अमागणे चोरसेणावई सत्ततीसं वासाई परमाउं पाल इत्ता अज्जेव तिभागावसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ अणंतरं उबट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे-जाव-वाउ-तेउ-आउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । तओ उन्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए सूयरत्ताए पच्चायाहिई। से णं तत्थ सोयरिएहिं जीवियाओ ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । से गं तत्थ उम्मुक्कबालभावो, एवं जहा पढमे-जाव-अंतं काहिइ ।
विवागसुयं अ० ३।
१३. सगडकहाणयं
साहंजणीए सत्थवाहपुत्तो सगडो २५८ तेणं कालेणं तेणं समएण साहंजणी नाम नयरी होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्धा।
तीसे णं साहंजणीए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए देवरमणे नामं उज्जाणे होत्था । तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था--पोराणे।। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे नाम राया होत्था--महया हिमयंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे । तस्स णं महचंदस्स रण्णो सुसेणे नामं अमच्चे होत्था--साम-भेय-दंड-उवप्पयाणनीति-सुप्पउत्त-नयविहिण्णू । तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुदरिसणा नाम गणिया होत्था--वण्णओ। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुभद्दे नामं सत्थवाहे होत्था--अड्ढे । तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा नाम भारिया होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा०। तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगडे नामं दारए होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ।
महावीरसमोसरणे सगडस्स पुन्वभवकहा २५९ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा राया य निग्गए। धम्मो कहिओ। परिसा गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी-जाव-रायमग्गं ओगाढे। तत्थ णं हत्थी, आसे, अण्ण य
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सगडकहाणयं
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बहवे पुरिसे पासइ । तेसि च णं पुरिसाणं मझगयं पासइ एगं सइत्थियं पुरिसं अवओडयबंधणं उक्खित्त-कण्णनासं-जाव-खंडपडहेण उग्घोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ--नो खलु देवाणुप्पिया! सगडस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्मइ, अप्पणो से सयाई कम्माई अवरझंति ।
सगडस्स छन्नियछागलियभववण्णणं २६० तए णं भगवओ गोयमस्स चिता तहेव-जाव-भगवं वागरेइ--एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे
भारहे वासे छगलपुरे नामं नयरे होत्था।
तत्थ णं सीहगिरी नामं राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे । २६१ तत्थ णं छगलपुरे नयरे छनिए नाम छागलिए परिवसइ--अड्ढे-जाव-अपरिभए, अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे । _तस्स णं छन्नियस्स छागलियस्स बहवे अयाण य एलयाण य रोज्झाण य वसभाण य ससयाण य सूयराण य पसयाण य सिंहाण
य हरिणाण य मयूराण य महिसाण य सयबद्धाणि सहस्सबद्धाणि य जूहाणि बाडगंसि संनिरुद्धाइं चिट्ठति। .. अण्णे य तत्थ बहबे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे अए य-जाव-महिसे य सारक्खमाणा संगोवेमाणा चिट्ठति ।
छन्नियस्स मंसासणं, मंसवाणिज्य अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे अए य-जाव-महिसे य जीवियाओ बवरोवेति, ववरोवेत्ता मंसाई कप्पणीकप्पियाइं करेंति, करेत्ता छन्नियस्स छागलियस्स उवणेति । अण्णे य से बहवे पुरिसा ताई बहुयाई अयमंसाई-जाव-महिसमसाइ य तवएसु य कवल्लीसु य कंदुसु य भज्जणेसु य इंगालेसु य तलेंति य भज्जेंति य सोल्लेंति य, तलेता य भज्जेत्ता य सोल्लेत्ता य तओ रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणा वि य णं से छनिए छागलिए तेहि बहि अयमंसेहि य-जाव-महिस-मंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ ।
छन्नयस्स मरणं निरयोववाओ य २६३ तए ण से छन्निए छागलिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता सत्त वाससयाई
परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा चोत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उबवण्णे ।
सगडस्स वत्तमाणभवकहा। २६४ तए णं सा सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जार्यानदुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणिहायमावजंति।
तए णं से छन्निए छागलिए चोत्थीए पुढ़वीए अणंतरं उच्चट्टित्ता इहेव साहंजणीए नयरीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबवण्णे । तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया।
दारयस्स सगडनामकरणं गिहाओ निद्धाडणं वेसाइ वसणित्तं च २६५ तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेटुओ ठवेति, दोच्चं पि गिण्हावेति, अणुपुव्वेणं सारक्खंति
संगोति संवड्डेति, जहा उज्झियए-जाव-जम्हा गं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेटुओ ठविए, तम्हा णं होउ अम्हं
दारए सगडे नामेणं । सेसं जहा उज्झियए। सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए, माया वि कालगया। से वि साओ गिहाओ निच्छूढे । २६६ तए णं से सगडे दारए साओ गिहाओ निच्छुढे समाणे साहंजणीए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु जूय
खलएस वेसघरएसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्ढइ ।। तए णं से सगडे दारए अणोहट्टए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी चोर-जय-वेस-दारप्पसंगी जाए यावि होत्था । तए णं से सगडे अण्णया कयाइ सुरिसणाए गणियाए सद्धि संपलग्गे यावि होत्था ।
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता सुदरिसणं गणियं अभितरियं ठवेइ, ठवेत्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ।
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गणियागिहाओ निद्धाडियस्स सगडस्स अमच्चकया विडंबणा २६७ तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभेमाणे सुदरिसणाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढ़िए अज्झोबवण्णे अण्णत्थ
कत्थइ सुई च रइंच धिइंच अलभमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तवज्यवसाणे तबट्टोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए सुवरिसणाए गणियाए बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरह। तए णं से सगडे बारए अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए अंतरं लभेइ, लभेत्ता सुवरिसणाए गणियाए गिह रहसियं अणुप्प
विसइ, अणुप्पविसित्ता सुदरिसणाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरह। २६८ इमं च णं सुसेणे अमच्चे ण्हाए-जाव-विभूसिए मणुस्सवणुरापरिक्खित्ते जेणेव सुदरिसणाए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छइ. उवाग
च्छित्ता सगडं दारयं सुदरिसणाए गुणियाए सद्धि उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते-जाव-मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडि निडाले साहट्ट सगड दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेई, गिण्हावेत्ता अट्ठि-मुट्ठि-जाणु-कोप्पर-पहारसंभग्गं महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवओडयबंधणं करेइ, करेता जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए
अंजलि कट्ट महचंदं रायं एवं वयासी--"एवं खलु सामी! सगडे दारए ममं अंतेउरंसि अवर?"। २६९ तए णं से महचंदे राया सुसेणं अमच्चं एवं वयासी--तुम चेव णं देवाणुप्पिया! सगडस्स दारगस्स दंडं बत्तेहि ।
तए णं से सुसेणे अमच्चे महचंदेणं रण्णा अब्भणुष्णाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं बिहाणेणं वज्झं आणवेइ ।
उवसंहारो २७० तं एवं खलु गोयमा! सगडे दारए पुरा पोराणाणं दुचिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्ति
बिसेस एच्चणुभवमाणे विहरइ ।
२७१
सगडस्स आगामिभवकहा सगडे णं भंते ! दारए कालगए कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा! सगडे णं दारए सतावण्णं वासाई परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं अयोमयं तत्तं समजोइभयं इत्थिपडिम अवतासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से गं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे नयरे मातंगकुलंसि जमलत्ताए पच्चायाहिए । तए णं तस्स दारगस्त अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्त इमं एयारूवं नामधेज्जं करिस्संति--तं होउ णं दारए सगडे नामेणं, होउ णं दारिया सुडरिसणा नामेणं । तए णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे विष्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते भविस्सइ । तए णं सा सुदरिसणा वि दारिया उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुप्पत्ता स्वेण य जोव्वर्णण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा भविस्सइ । तए णं से सगड़े दारए सुदरिसणाए स्वेण य जोव्वर्णण य लावण्णेण य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे सुदरिसणाए भइणीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ । तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्सइ ।। तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ-अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे, एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्म समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ, संसारो तहेव-जाव-वाउ-तेउआउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्स-खुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ। से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ मच्छबंधिएहि वहिए तत्येव वाणारसीए नयरीए सेट्रिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । बोहि, पव्वज्जा, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।
विवागसुयं सु० १ ० ४ ।
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१४. बहस्सइदत्तकहाणयं
कोसंबीए पुरोहियपुत्ते बहस्सइदत्ते २७२ तेणं कालेण तेणं समएणं कोसंबी नाम नयरी होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धा०। बाहिं चंदोतरणे उज्जाणे । सेयभद्दे जवखे ।
तत्थ णं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नाम राया होत्था--महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे। मियावई देवी। तस्स णं सयाणियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए उदयणे नामं कुमारे होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-चिंदियसरीरे जुवराया। तस्स णं उदयणस्स कुमारस्स पउमावई नामं देवी होत्था । तस्स णं सयाणियस्स सोमदत्ते नाम पुरोहिए होत्था--रिउन्वेय-यज्जुग्वेय-सामवेय-अथव्वणवेयकुसले। तस्स णं सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता नाम भारिया होत्था । तस्स णं सोमदत्तस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए बहस्सइदत्ते नामं दारए होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-चिंदियसरीरे ।
'महावीरसमोरसणे गोयमेण बहस्सइदत्तस्स पुत्वभवपुच्छा २७३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव-जाब-रायमग्गमोगाढे तहेव पासइ हत्थी, आसे, पुरिसमज्झे पुरिसं । चित्ता। तहेव पुच्छइ पुथ्वभवं । भगवं वागरेइ--
बहस्सइदत्तस्स महेसरदत्तभवकहा २७४ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दोवे भारहेवासे सव्वओभद्दे नामं नयरे होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्ध०।
तत्य णं सब्बओभद्दे नयरे जियसत्तू नाम राया होत्था। तस्स णं जियसत्तस्स रणो महेसरदत्ते नाम पुरोहिए होत्था--रिउव्वेय-यज्जुव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेयकुसले यावि होत्था।
महेसरदत्तकया संतिहोमे माहणादिदारयाणं हिंसा २७५ तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए जियसत्तुस्स रणो रज्जबलविवड्ढणटुयाए कल्लाकल्लि एगमेगं माहणदारयं, एगमेगं खत्तियदारयं,
एगमेगं वइस्सदारयं, एगमेगं सुद्ददारयं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता तेसि जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ ।। तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए अटुमोचाउद्दसीसु दुवे-दुबे माहण-खत्तिय-वइस्स-सुद्दे, चउण्हं मासाणं चत्तारि-चत्तारि, छह मासाणं अट्ठ-अट्ठ, संवच्छरस्स सोलस-सोलस । जाहे-जाहे वि य णं जियसत्त राया परबलेणं अभिजज्जइ, ताहे-ताहे वि य णं से महेसरदते पुरोहिए अट्ठसयं माहणदारगाणं, अट्ठसयं खत्तियदारगाणं, अट्ठसयं वइस्सदारगाणं, अटुसयं सुद्ददारगाणं पुरिसेहि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता तेसि जीवंतगाणं चेव हिययउंडियाओ गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोम करेई । तए णं से परबले खिप्पामेव विद्धंसेइ वा पडिसेहिज्जइ वा।
महेसरदत्तस्स निरयउववाओ २७६ तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायरे सुबहुं पावकम्म समज्जिणित्ता तीसं वाससयाइं परमाउं
पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए नरगे उववण्णे ।
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४८०
बहस्सद्वत्तस्स वत्तमाणभववण्णणं
२७७ से णं तओ अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उबवण्णे ।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति--जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं ।
तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए- जाव-परिवड्ढइ ।
२७८
तए णं से बहस्सइत्ते दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते होत्था से णं उदयणस्स कुमारस्स पियबालवयंसए यावि होत्या सहजायए सहवड्ढियए सहपंसुकीलियए ।
धम्मक्राणुओगे धो
तए णं से सयाणिए राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते ।
तए णं से उदयणे कुमारे बहूहि राईसर तलवर-माइंबिय कोटुंबिय इन्भ सेट्ठि सेणावइ-सत्थवाहप्पभिईहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे faran साणियस्स रण्णो महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नोहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ । तए णं ते बहवे राईसर-तलवर-माइंबिय कोटुंबिय इन्भ-सेट्ठि सेणावइ-सत्थवाहप्पभितओ उदयणं कुमारं महया मया रायाभिसेएणं अभिसिचंति ।
सणं से उदय कुमारे राया जाए महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिदसारे० ।
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बहस्सइदत्तस्स उदयणराण्णो रायमहिसीए भोगभुजणं
तए णं से बहस्सइदत्तं दारए उदयणस्स रण्णो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्बट्ठाणेसु सव्वभूमियासु अंतेउरे य दिण्णवियारे जाए यावि होत्या ।
लए णं से बहसले पुरोहिए उदयणस्स रष्णो अंडर वेला व अवेला व काले व अाले पराजय विआने व पविसमाणे अण्णया कमाइ पउमावईए देवीए सद्धि संपलणे यानि होत्या । पउमावईए देवीए सांड उरालाई मास्साई भोगभोगाई भुजमाणे विहर।
रायकया बहस्सइदत्त विडंबना
२७९ इमं च णं उदयणे राया हाए जाव-विभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावईए देवीए सद्धि उरालाई माणुसमा भोग भोगाई भुजमाणं पासह, पासिता आमुस्ते तिलिय मिनिडाले साह महत्सइदलं पुरोहिय पुरिसेहि गिव्हावे, गिष्हावेत्ता अट्ठ- मुट्ठि-जाणु कोप्परपहार संभव-महियगतं करेह, करेला अवओडगबंधणं करेs, करेता एएणं विहाणेणं बज्झं आणवेइ ।
उवसंहारो
२८० एवं खलु गोयमा ! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्प डिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवितिविधि परभवमाणे बिहरह
बहस्तइवत्तस्स आगामिभवकहा
२८१ बहसइत्ते णं भंते! पुरोहिए इस कालगाए समा कहि गछिहि ? कहि उपज ?
गोयमा ! बहस्सइदले गं पुरोहिए चोस वासाई परमाउं पालता अव तिमाणावसेसे दिवसे मूलभिण्णे कए समाने कालमासे कालं कि इमीसेरवणप्यभाए पुडवीए उक्कोससागरोवमदृइएस नेरइएस नेरइयलाए उवजिहिद ।
से णं तओ अनंतरं उब्वट्टित्ता एवं संसारो जहा पढमे-जा व वाउ-तेउ आउ - पुढवीसु अणेगसयस हस्सबुत्तो उद्दाइत्ता- उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो - भुज्जो पच्चायाइस्सइ ।
तओ हत्थिणाउरे नयरे मियत्ताए पच्चायाइस्सर । से णं तत्थ वाउरिएहि बहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्ठिकुलसि पुलला पञ्चायाहिर कोहि सोहम्मे महाविदेहे वासे सिदि
विवाग ० ० ५ ।
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१५. नंदिवद्धणकुमारकहाणयं
महराए नंदिवद्धणे कुमारे २८२ तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नाम नयरी। भंडीरे उज्जाणे । सुदरिसणे जक्खे । सिरिदामे राया। बंधुसिरी भारिया। पुत्ते
नंदिबद्धणे कुमारे--अहीणपडि-पुण्ण-चिदियसरीरे जुवराया। तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नाम अमच्चे होत्या--साम-दंड-भेय-उवप्पयाणनीति-सुप्पउत्त-नयविहिण्णू । तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नाम दारए होत्था--अहीण-पडिपुण्ण पंचिदियसरीरे । तस्स णं सिरिदामस्स रणो चित्त नाम अलंकारिए होत्था--सिरिदामस्स रणो चित्तं बहुविहं अलंकारियकम्मं करेमाणे सन्वट्ठाणेसु य सव्व भूमियासु य अंतेउरे य दिण्णवियारे यावि होत्था ।
भगवओ महावीरस्स समवसरणे गोयमण नंदिवद्धणस्स पुत्वभवपुच्छा २८३ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा निग्गया, राया निग्गओ जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेगं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी-जाव-रायमग्गमोगाढे। तहेव हत्थी, आसे, पुरिसे पासइ । तेसि च णं पुरिसाणं मज्झगयं एगं पुरिसं पासइ-जाव-नर-नारीसंपरिवुडं । तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा चच्चरंसि तत्तसि अयोमयंसि समजोइभयंसि सीहासणंसि निवेसावेति । तयाणंतरं च णं पुरिसाणं मज्झगयं बहि अयकलसेहि तहि समजोइभूएहि, अप्पेगइया तंबभरिएहि, अप्पेगइया तउयभरिएहि, अप्पेगइया सोसगभरिएपहि, अप्पेगइया कलकलभरिएहि, अप्पेगइया खारतेल्लभरिएहि महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति । तयाणंतरं च तत्तं अयोमयं समजोइभयं अयोमयं संडासगं गहाय हारं पिणद्धति । तयाणंतरं च णं अद्धहारं पिणद्धति, तिसरियं पिण«ति, पालंबं पिणद्धति, कडिसुत्तयं पिणद्धति, पढें पिणद्धति, मउड पिणद्वंति। चिता तहेव-जाव-वागरेइ--
नंदिवद्धणस्स दुज्जोहणभवकहा २८४ एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोहपुरे नाम नयरे होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तत्थ णं सीहपुरे नयरे सीहरहे नामं राया होत्था । तस्स णं सोहरहस्स रण्णो दुज्जोहणे नामं चारगपाले होत्था--अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे ।
चारगपालो दुज्जोहणो २८५ तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स इमेयारवे चारगभंडे होत्था--
तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे अयकुंडीओ--अप्पेगइयाओ तंबभरियाओ, अप्पेगइयाओ तउयभरियाओ, अप्पेगइयाओ सोसगभरियाओ, अप्पेगइयाओ कलकलभरियाओ, अप्पेगइयाओ खारतेल्लभरियाओ--अगणिकायंसि अद्दहियाओ चिट्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्त चारगपालस्स बहवे उट्टियाओ--अप्पेगइयाओ आसमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ हत्यिमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ उट्टमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ गोमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ महिसमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ अयमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयाओ एलमुत्तरियाओ--बहुपडिपुण्णाओ चिट्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे हत्थंडुयाण य पायंडुयाण य हडीण य नियलाण य संकलाण य पुंजा य निगरा य संनि
क्खित्ता चिट्ठति । ध० ० ६१
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४८२
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे वेणुलयाण य वेत्तलयाण य चिचालयाण य छियाण य कसाण य वायरासीण य पंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सिलाण य लउडाण य मोग्गराण य कणंगराण य पंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे तंतीण य वरत्ताण य वागरज्जूण य वालयसुत्तरज्जूण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे असिपत्ताण य करपत्ताण य खुरपत्ताण य कलंबचीरपत्ताण य पुंजा य निगरा य संनिक्खिता चिठ्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे लोहखोलाण य कडसक्कराण य चम्मपट्टाण य अलीपट्टाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति । तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सूईण य डंभणाण य कोट्टिल्लाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति । तस्स गं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सत्थाण य पिप्पलाण य कुहाडाण य नहच्छेयणाण य दब्भाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिठ्ठति ।
दुज्जोहणस्स चरिया २८६ तए णं से दुज्जोहणे चारगपाले सोहहस्स रण्णो बहवे चोरे य पारदारिए य गंठिभए य रायावकारी य अणहारए य बालघायए य
विस्संभघायए य जूइगरे य संडपट्टे य पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता उताणए पाडेइ, लोहदंडेणं मुहं विहाडेइ, विहाडेत्ता अप्पेगइए तत्ततंबं पज्जेइ, अप्पेगइए तउयं पज्जेइ, अप्पेगइए सीसगं पज्जेइ, अप्पेगइए कलकलं पज्जेइ, अप्पेगइए खारतेल्लं पज्जेइ, अप्पेगइयाणं तेणं चेव अभिसेगं करेइ । अप्पेगइए उत्ताणए पाडेइ, पाडेत्ता आसमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए हत्यिमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए उट्टमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए गोमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए महिसमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए अयमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए एलमुत्तं पज्जेइ । अप्पेगइए हेढामुहए पाडेइ छडछडस्स वम्मावेइ, वम्मावेत्ता अप्पेगइए तेणं चेव ओवीलं दलयइ । अप्पेगइए हत्थंयाई बंधावेइ, अप्पेगइए पायंडुए बंधावेइ, अप्पेगइए हरिबंधणं करेइ, अप्पेगइए नियलबंधणं करेइ, अप्पेगइए संकोडियमोडियए करेइ, अप्पेगइए संकलबंधणं करेइ, अप्पेगइए हत्थच्छिण्णए करेइ, अप्पेगइए पायच्छिण्णए करेइ, अप्पेगइए नक्कछिण्णए करेइ, अप्पेगइए उछिण्णए करेइ, अप्येगइए जिब्भछिण्णए करेइ, अप्पेगइए सीसछिण्णए करेइ, अप्पेगइए सत्थोवाडियए करे । अप्पेगइए वेणुलयाहि य, अप्पेगइए वेत्तलयाहि य, अप्पेगइए चिचालयाहि य, अप्पेगइए छियाहि य, अप्पेगइए कसाहि य, अप्पेगइए वायरासोहि य हणावेइ । अप्पेगइए उत्ताणए कारवेइ, कारवेत्ता उरे सिलं दलावेइ, दलावेत्ता तओ लउडं छुहावेइ, छुहावेत्ता पुरिसेहि उक्कंपावेइ०।। अप्पेगइए तंतीहि य, अप्पेगइए वरत्ताहि य, अप्पेगइए वागरज्जूहि य, अप्पेगइए वालयसुत्तरज्जूहि य हत्थेसु य पाएसु य बंधावेइ, अगडंसि ओचूलं बोलग पज्जेइ। अप्पेगइए असिपत्तेहि य, अप्पेगइए करपत्तेहि य, अप्पेगइए खुरपत्तेहि य अप्पेगइए कलंबचीरपत्तेहि य पच्छावेद, पच्छावेत्ता खारतेल्लेणं अभंगावेइ । अप्पेगइयाणं निलाडेसु य अवसु य कोप्परेसु य जाणूसु य खलुएसु य लोहकीलए य कडसक्कराओ य बवावेइ अलिए भंजावेइ । अप्पेगइए सूईओ य डंभणाणि य हत्थंगुलियासु य पायंगुलियासु य कोट्टिल्लएहि आउडावेइ, आउडावेत्ता भूमि कंडुयावेइ। अप्पेगइए सत्थेहि य, अप्पेगइए पिप्पलेहि य, अप्पेगइए कुहाडेहि य, अप्पेगइए नहच्छेयणेहि य अंग पच्छावेइ, दम्भेहि य कुसुहि य उल्लवद्धेहि य वेढावेइ, आयवंसि दलयइ, दलइत्ता सुक्के समाणे चडचडस्स उप्पाडेइ । तए णं से दुज्जोहणे चारगपाले एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता एगतीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ।
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नंदिवखणकुसारकहाणयं
४८३
नंदिवद्धणस्स वत्तमाणभवकहा २८७ से गं तओ अणंतरं उम्वट्टित्ता इहेव महुराए नयरीए सिरिदामस्स रण्णो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उबवण्णे ।
तए णं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं-जाव-दारगं पयाया। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति--होउ णं अम्हं वारगे नदिबद्धणे नामेणं । तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे पंचधाईपरिवुडे-जाव-परिवड्ढइ। तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोब्वणगमणुप्पत्ते विहरइ-जाव-जुवराया जाए यावि होत्था।
नंदिवद्धणस्स पिउमारणे संकप्पो २८८ तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे रज्जे य-जाव-अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अझोववण्णे इच्छइ सिरिदाम राय जीवियाओ ववरोवेत्ता
सयमेव रज्जसरि कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए। तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे विहरइ।। तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रणो अंतरं अलभमाणे अण्णया कयाइ चित्तं अलंकारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी"तुमं णं देवाणुप्पिया! सिरिदामस्स रण्णो सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे य दिण्णवियारे सिरिदामस्स रणो अभिक्खणं अभिक्खणं अलंकारियं कम्मं करेमाणे विहरसि, तं गं तुम देवाणुप्पिया ! सिरिदामस्स रण्णो अलंकारियं कम्मं करेमाणे गोवाए खुरं निवेसेहि। तो णं अहं तुम अद्धरज्जियं करिस्सामि। तुम अम्हेहिं सद्धि उरालाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरिस्ससि"। तए णं से चित्ते अलंकारिए नंदिवद्धणस्स कुमारस्स वयणं एयमट्ठ पडिसुणेइ। तए णं तस्स चित्तस्स अलंकारियस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पस्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"जइ णं मम सिरिदामे राया एयमट्ठ आगमेइ, तए णं मम न नज्जइ केणइ असुभेणं कु-मारेणं मारिस्सई" ति कट्ट भीए तत्थे तसिए उठिवर्ग संजायभए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-"एवं खलु सामी! नंदिवद्धणे कुमारे रज्जे य जाव-अंतेउरे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छाइ, तुम्भे जीवियाओ ववरोवित्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे बिहरित्तए"।
रण्णा जंदिवद्धणस्स दंडो २८९ तए णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारियस्स अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते स्ढे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे
तिलि भिडिं निडाले साह१ नंदिवद्धणं कुमार पुरिसेहि गिण्हावेइ, गिव्हावेत्ता एएणं विहाणेणं वनं आणवेइ।
उवसंहारो २९० तं एवं खलु गोयमा! नंदिवद्धणे कुमारे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल
वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ।
मंदिवद्धणस्स आगामिभवपरूवणं २९१ नंदिवद्धणे कुमारे इओ चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ? .
गोयमा! नंदिवद्धणे कुमारे सट्टि वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोषमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारों तहेव । तओ हस्थिणाउरे नयरे मच्छताए उववज्जिहिए। से णं तत्थ मच्छिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सेट्टिकुले पुतत्ताए पच्चायाहिइ। बोही, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिह बुमिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ ।
विपाक० अ०६।
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१६. उम्बरदत्तकहाणयं
पाडलिसंडे उंबरदत्तो २९२ तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाणे । 'उबरदत्त जक्खें'।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया। तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थबाहे होत्था--अड्ढे । गंगदत्ता भारिया। तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नाम दारए होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ।
भगवओ महावीरस्स समोसरणे गोयमेण उंबरदत्तस्स पुवभवपुच्छा ... २९३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं-जाब-परिसा पडिगया ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव जेणेव पाडलिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पालिसंडं नयरं पुरत्थिमिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तत्थ णं पासइ एगं पुरिसं--कच्छुल्ल कोढियं दाओरियं भगंदलियं अरिसिल्लं कासिल्लं सासिल्लं सोगिलं सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं सडियहत्थंगुलियं सडियपायंगुलियं सडियकण्णनासियं रसियाए य पूएण य थिविििवतं वणमुहकिमिउत्तुयंत-पगलंततपूयरुहिरं लालापगलंतकण्णनासं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूवमाणं मच्छियाचडगरपहकरेणं अण्णिज्जमाणमग्गं फुट्टहडाहडसीसं दंडिखंडवसणं खंडमल्लखंडघडहत्थगयं गेहे-गेहे देहबलियाए वित्ति कप्पेमाणं पासइ । तया भगवं गोयमे ! उच्च-नीय-मज्झिम-कुलाई अडमाणे अहापज्जतं समुदाणं गिण्हइ पाडलिसंडाओ नयराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं आलोएइ, भत्तपाणं पडिदंसेइ, समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे अमच्छिए अगिद्धे अगढिए
अणज्झोववणे बिलमिव पण्णगभूते अप्पाणणं आहारमाहारेइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। २९४ तए णं से भगवं गोयमे दोच्चं पि छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ-जाव-पाडलिसंडं नयरं दाहिणिल्लेणं
दुवारेणं अगुष्पविसइ, तं चेव पुरिसं पासइ--कच्छुल्लं तहेव-जाव-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । २९५ तए णं से भगवं गोयमे तच्चं पि छटुक्खमणपारणगंसि तहेव-जाव-पाडलिसंडं नयर पच्चथिमिल्लेणं दुवारेणं अशुपविसमाणे तं चेव
पुरिसं पासइ--कच्छुल्लं० । २९६ तए णं से गोयमे चउत्थं पिछट्टक्खमणपारणगंसि तहेव-जाव-पाडलिसंडं नयरं उत्तरेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चैव पुरिसं पासइ
कच्छुल्लं०। २९७ तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासिता इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--अहोणं इमे
पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेस पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कटु-जाव-समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासो--"एवं खलु अहं भंते ! छटुक्खमणपारणगंसि-जाव-रियंते जेणेव पाडलिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छिता पालिसंडं नयरं पुरथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविठे। तत्थ णं एगं पुरिसं पासामि कच्छुल्लं-जाव-देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणं । तए णं अहं दोच्चछटुक्खमणपारणगंसि दाहिणिल्लेणं दुबारेणं तहेव । तच्च टुक्खमणपारणगंसि पच्चथिमिल्लेणं दुवारेणं तहेव।। तए णं अहं चोत्थछट्टक्खमणपारणगंसि उत्तरदुवारेणं अणुप्पविसामि, तं चैव पुरिसं पासामि कच्छुल्ल-जाव-देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणं । चिता ममं ।
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उम्बरदत्तकहाणयं
४८५ से णं भंते ! पुरिसे पुश्वभवे के आसि ? कि नामए वा किं गोत्ते वा ? कयरंसि गामसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा कि वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ?"
२९८
उबरदत्तस्स धण्णंतरिवेज्जभवकहा गोयमा ! इसमणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी--एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे बासे विजयपुरे नाम नयरे होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धे० । तत्थ णं विजयपुरे नयरे कणगरहे नामं राया होत्था। तस्स णं कणगरहस्स रण्णो धण्णंतरी नामं वेज्जे होत्था--अटुंगाउन्वेयपाढए, तं जहा--१. कुमारभिच्चं २. सालागे ३. सल्लहत्ते ४. कायतिगिच्छा ५. जंगोले ६. भूविज्जे ७. रसायणे ८. वाजीकरणे, सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे।
२९९
धण्णंतरिवेज्जेण मंसासणतेगिच्छ । तए णं से धण्णंतरी वेज्जे विजयपुरे नयरे कणगरहस्स रण्णो अंतउरे य, अणेस च बहूणं राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुबिय-इन्भसेटि-सेणावइ-सत्थवाहाणं, अण्णेसि च बहूणं दुबलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य सणाहाण य अणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खगाण य करोडियाण य कप्पडियाण य आउराण य--अप्पेगइयाणं मच्छमंसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं कच्छभमंसाई, अप्पेगइयाणं गाहमंसाई, अप्पेगइयाणं मगरमसाई, अप्पेगइयाणं सुंसुमारमंसाई, अप्पेगइयाणं अयमंसाइं, एवं--एलय-रोज्झसूयर-मिग-ससय-गो-महिसमसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं तित्तिरमंसाई उवदिसइ, अप्पेगइयाणं वट्टक-लावक-कवोय-कुक्कुड-मयूरमंसाइं उबदिसइ, अण्णेसि च बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं मंसाई उदिसइ। अप्पणा वि णं से धणंतरी वेज्जे तेहि बहि मच्छमंसेहि य-जाव-मयूरमंसेहि य, अण्णेहि य बहूहि जलयर-थलयर-खहयर-मंसेहि य, मच्छरसएहि य-जाव-मयूररसएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ।
निरयोववाओ ३०० तए णं से धण्णंतरी वेज्जे एयकम्मे एयप्पहाणे एवविज्जे एवसमायारे सुबहं पावं कम्म समज्जिगित्ता बत्तीसं वाससयाई परमाउं
पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ।
३०१
उंबरदत्तस्स वत्तमाणभवकहा तए णं सा गंगदत्ता भारिया जानिबुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणिघायमावति । तए णं तीसे गंगदत्ताए सत्थवाहीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुंडुबजागरियं जागरमाणीए अयं अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पणे---"एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धि बहूई वासाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारग वा दारियं वा पयामि। तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ गं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयगाई थणवुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाई मम्मणपजंपियाई थणमूला कक्खदेसभागं अभिसरमाणयाई मुद्धयाई पुणो य कोमलकमलोबमेहि हह गिव्हिऊण उल्छंगे निवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पणिए। अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपूण्णा एसो एगतरमविन पसा। तं सेयं खल मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्टियाम्म सूर सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सागरदत्तं सत्थवाहं आपुच्छित्ता सुबह पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि पाडलिसंडाओ नपराओ पडिनिक्खमित्ता बहिया जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणव उवागच्छित्ता, तत्थ णं उंबरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणं करेत्ता जाणुपायपडियाए ओयाइत्तए--जइ णं अहं देवाणुप्पिया। दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं अहं तुम्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवढिस्सामि त्ति कटु ओवाइयं ओवाइणित्तए"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव-उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते
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४८६
धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी--"एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! तुम्भेहि सद्धि बहई वासाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी-जाव-एत्तो एगमवि न पत्ता। तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाया-जाव-ओवाइणित्तए।। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे गंगदत्तं भारियं एवं बयासी-मम पि णं देवाणुप्पिए! एस चेव मणोरहे कहं गं तुम दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि ? गंगदत्ताए भारियाए एयमझें अणुजाणइ ।
गंगदत्ताए उबरदत्तजक्खपूया ३०२ तए णं सा गंगदत्ता भारिया सागरदत्तसत्थवाहेणं एयमझें अब्भणुण्णाया समाणी सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि
मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पालिसंडं नयरं मझमझेणं, निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पुक्खरिणीए तोरे सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुक्खरिणि ओगाहेइ, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डे करेइ, करेत्ता व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडिया पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता तं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकार गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उंबरदत्तस्स जक्खस्स आलोए पणामं करेइ, करेत्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता उंबरदत्तं जक्खं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुखेत्ता पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाइयाए गायलट्ठी ओल हइ, ओलूहित्ता सेयाई वत्थाई परिहेइ, परिहेत्ता महरिहं पुप्फारुहणं मल्लारुहणं गंधारहणं चुण्णारहणं करेइ, करेत्ता धूवं डहइ, डहित्ता जण्णुपायवडिया एवं वयइ--"जइ णं अहं देवाणुप्पिया! दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं अहं तुम्भं जायं च दार्य च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवढिस्सामि" ति कट्ट ओवाइयं ओवाइणइ, ओवाइणित्ता जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं से धण्णंतरी वेज्जे तओ नरयाओ अणंतरं उव्वद्वित्ता इहेव जंबददीवे दीवे पाडलिसंडे नयरे गंगदताए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे।
गंगदत्ताए दोहलो ३०३ तए णं तीसे गंगदत्ताए भारियाए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउम्भूए--"धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ,
संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं विउलं असणं पाणं खाइइं साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहि सद्धि परिवुडाओ तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसणं च पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय पाडलिसंडं नयरं मझंमज्झेणं पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुखरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरिणि ओगाहेंति, ओगाहेत्ता व्हायाओ कयबलिकम्माओ कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ताओ तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहि सद्धि आसाएंति वीसाएंति परिभाएंति परिभुजेंति, दोहलं विणेति"--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पयभायाए रयणीए -जाव-उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छद, उवागरिछत्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी--"धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ-जाव-दोहलं विणेति, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुहि अन्भणुण्णाया -जाव-दोहलं विणित्तए"। तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे गंगबताए भारियाए एयमट्ठ अणुजाणइ । तए सा गंगदत्ता सागरवत्तेणं सत्यवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेद, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च सुबहुं पुप्फ-वस्थ-गंध-मल्लालंकारं परिगेण्डावेइ, परिगेण्हावेत्ता बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता जेणेव उंबरवत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ-जाव-धूवं डहेइ, डहेत्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ । तए णं ताओ मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाओ गंगदत्तं सत्थवाहि सव्वालंकारविभूसियं करेंति । तए णं सा गंगदत्ता भारिया ताहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-महिलाहिं, अण्णाहि य बहूहि नगरमहिलाहि सद्धि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजमाणी दोहलं विणेइ, विणेत्ता जामेव दिसं पाउन्भया तामेव दिसं पडिगया।
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उम्बरदत्तकहाणयं
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तए णं सा गंगदत्ता सत्थवाही संपुण्णदोहला तं गम्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।
दारयस्स उंबरदत्त-नामकरणं जोव्वणं च ३०५ तए णं सा गंगदत्ता भारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। ठिइवडिया-जाव-जम्हा णं अम्हं इमे दारए उंबरदत्तस्स
जक्खस्स ओवाइयलद्धए तं होउ णं दारए उंबरदत्ते नामेणं । तए णं से उबरदत्ते पंचधाईपरिग्गहिए परिवडढ़ए ।
३०६
पिइ-माइमरणाणंतरं उबरदत्तस्स गिहाओ निद्धाडणं तए णं से सागरदत्ते सत्यवाहे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च-चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुई पोयवहणेण उवागए। तए णं से सागरदत्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए निम्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं सा गंगदत्ता सत्थवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्थविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचितेमाणीअणुचितेमाणी कालधम्मणा संजुत्ता । तए गं ते नगरगुत्तिया गंगदत्तं सत्यवाहि कालगयं जाणित्ता उंबरदत्तं दारगं साओ गिहाओ निच्छु.ति, निच्छुभेत्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति । तए णं तस्स उंबरदत्तस्स दारगस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेब सोलस रोगायंका पाउम्भूया, तं जहा--सासे कासे -जाब-कोढे । तए णं से उबरदत्ते दारए सोलसहि रोगायकेहि अभिभूए समाणे कच्छुल्ले-जाव-देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणे विहरइ।
उवसंहारो ३०७ एवं खलु गोयमा ! उबरदत्ते दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिष्णाणं दुप्पडिवकताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल
वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ।
उबरदत्तस्स आगामिभवपरूवणं ३०८ उंबरदत्ते णं भंते ! दारए कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिइ? कहि उबवज्जिहिइ ?
गोयमा ! उंबरदत्ते दारए बावरतरि वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए नेरइयत्ताए उबवज्जिहिइ । संसारो तहेव । तओ हत्थिणाउरे नयरे कुक्कुडत्ताए पच्चायाहिइ । से णं गोहिल्लएहि बहिए तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्टिकुलंसि उववज्जिहिइ। बोही। सोहम्मे कप्पे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।
विवागसुयं सु० १ अ०७।
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१७. सोरियदत्तकहाणयं
सोरियपुरे सोरियदत्ते ३०९ तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं । सोरियव.सगं उज्जाणं । सोरिओ जक्खो। सोरियदत्ते राय. .
तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था । तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ--अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे । तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नाम भारिया होत्था--अहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा०।। तस्स ण समुद्ददत्तस्स मच्छंधस्स पुत्ते समुद्ददत्ताए भारियाए अत्तए सोरियदत्ते नाम दारए होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे० ।
भगवओ महावीरस्स समोसरणे गोयमेण सोरियदत्तस्स पुस्वभवपुच्छा ३१० तेण कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे-जाव-परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? सोसे-जाव-सोरियपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई [अडमाणे ?] अहापज्जतं समुदाणं गहाय सोरियपुराओ नयराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता तस्स मच्छंधपाडगस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे महइमहालियाए मणुस्सपरिसाए मझगयं पासइ एगं पुरिसं--सुक्क भुक्खं निम्मंसं अद्विचम्मावणद्धं किडिकिडियाभयं नीलसाडगनियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाई कलुणाई वीसराई उक्कूवमाणं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--"अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरई'-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ । पुव्वभवपुच्छा-जाव-वागरणं ।
सोरियदत्तस्स सिरीयभवकहा ३११ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे नंदिपुरे नाम नयरे होत्था। मित्ते राया ।
तस्स णं मित्तस्स रण्णो सिरीए नाम महाणसिए होत्या-अहम्मिए-जाव-दुप्पडियाणंदे। ३१२ तस्स गं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया य दिण्णभइ-भत्त-बेयणा कल्लाकल्लि बहवे सोहमच्छा
य-जाव-पडागाइपडागे य, अए य-जाव-महिसे य, तित्तिरे य-जाव-मयूरे य जीवयाओ ववरोति, ववरोवेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति, अण्णे य से बहवे तित्तिरा य-जाव-मयूरा य पंजरंसि संनिरद्धा चिट्ठति, अण्णे य बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त
वेयणा ते बहवे तित्तिरे य-जाव-मयूरे य जीवंतए चेव निप्पक्छेति, निप्पक्खेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति । ३१३ तए णं से सिरीए महाणसिए बहूणं जलयर-थलयर-खहयराणं मंसाई कप्पणी-कप्पियाई करेइ, तं जहा--सण्हखंडियाणि य वट्टखंडि
याणि य दीहखंडियाणि य रहस्सखंडियाणि य, हिमपक्काणि य जम्मपक्काणि य धम्मपक्काणि य मारुयपक्काणि य कालाणि य हेरंगाणि य महिट्ठाणि य आमलरसियाणि य मुद्दियारसियाणि य कविटरसियाणि य दालिमरसियाणि य मच्छरसियाणि य तलियाणि य भज्जियाणि य सोल्लियाणि य उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता अण्णे य बहवे मच्छरसए य एणेज्जरसए य तित्तिररसए य-जावमयूररसए य, अण्णं च विउलं हरियसागं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्तस्स रण्णो भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए उवणेति। अप्पणा वि णं से सिरीए महाणसिए तेसि च बहूहि जलयर-थलयर-खहयरमंसेहिं च रसिएहि य हरियसागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजे
माणे विहरइ । ३१४ तए णं से सिरीए महाणसिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावं कम्म कलिकलुसं समज्जिणित्ता तेत्तीसं बास
सयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छठ्ठीए पुढवीए उबवण्णे ।
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सोरियवत्तकहाणय
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सोरियदत्तस्स वत्तमाणभवकहा ३१५ तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया निदू यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणि घायमावति । जहा गंगदत्ताए चिता, आपुच्छणा,
ओवाइयं, दोहलो-जाव-दारगं पयाया-जाव-जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते नामेणं। तए णं से सोरियवत्त वारए पंचधाईपरिग्गहिए-जाव-उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेत्ते जोठवणगमणुप्पत्ते यावि होत्था। तए णं से समुद्दबत्ते अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से सोरियदत्ते दारए बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे समुद्ददत्तस्स नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, अण्णया कयाइ सयमेव मच्छंधमहत्तरगत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए-जाव-दुष्पडियाणंदे।
सोरियदत्तस्स दुच्चरिया ३१६ तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि एगट्टियाहिं जउणं महाणई ओगाहेंति, ओगा
हेत्ता बहूहि दहगलणेहि य दहमलणेहि य दहमद्दणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य मच्छंधुलेहि य पयंचुलेहि य पंचपुलेहि य जंभाहि य तिसराहि य भिसराहि य घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य भिल्लिरीहि य गिल्लिरीहि य झिल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य बालबंधेहि य बहवे सहमच्छे-जाव-पडागाइपडागे य गेण्हंति एगट्ठियाओ भरेंति, भरेत्ता कूलं गाहेति, गाहेत्ता मच्छखलए करेंति, करेत्ता आयवंसि दलयंति। अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा आयव-तत्तएहि मछेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणा वि णं से सोरियदत्ते बहूहि सोहमच्छेहि य-जाव-पडागाइपडागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरह।
३१७ तए णं तस्स सोरियवत्तस्स मच्छंधस्स अण्णया कयाइ ते मच्छे सोल्ले य तलिए य भज्जिए य आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए
लग्गे यावि होत्था। तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभए समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह गं तुम्भे देवाणुप्पिया! सोरियपुरे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु य महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयह"एवं खलु देवाणुप्पिया! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे । तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा सोरियवत्तस्स मच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अस्थसंपयाणं दलयई"। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-उग्घोसंति । तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घोसणं निसामेंति, निसामेत्ता जेणेव सोरियदत्तस्स गेहे जेणेव सोरियदत्त मच्छंधे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहि उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहि परिणामेमाणा-परिणामेमाणा बमणेहि य छड्डणेहि य ओवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, नो संचाएंति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति सोरियवत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटगं गलाओ नीहरित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव विसं पाउम्भूया तामेव दिसं पडिगया।
ध. क. ६२
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे वेज्जपडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निविण्णोसहभेसज्जे तेणं दुक्खणं अभिभए समाणे सुक्के भुक्खे -जाव-किमियकवले य वममाणे विहरइ ।
उवसंहारो
३१८ एवं खलु गोयमा सोरियदत्ते पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्पडिक्कताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं
पच्चणुभवमाणे विहरइ।
सोरियदत्तस्स आगामिभवपरूवणं ३१९ सोरियदत्ते णं भंते ! मच्छंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ?
गोयमा! सत्तर वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । संसारो तहेव । हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ मच्छिएहि जीवियाओ ववरोविए तत्थेव सेट्ठिकुलसि उववज्जिहिइ । बोही। सोहम्मे कप्पे। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ।
विवागसुयं सु०१ अ० ८।
१८. देवदत्ताकहाणयं
रोहीडए देवदत्ता ३२० तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए नाम नयरे होत्था-रिद्धत्यिमियसमिद्धे । पुढवीवडेंसए उज्जाणे । धरणो जक्खो। वेसमणदत्ते
राया। सिरी देवी । पूसनंदी कुमारे जुवराया। तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे । कण्हसिरी भारिया। तस्स गं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नाम दारिया होत्था--अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा० ।
भगवओ महावीरस्स समोसरणे गोयमेण देवदत्ताए पुव्वभवपुच्छा ३२१ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामो समोसढे-जाव-परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महाबीरस्स जेठे अंतेवासी छ?क्खमणपारणगंसि तहेव-जाव-रायमग्गमोगाढे हत्थी आसे पुरिसे पासइ । तेसि पुरिसाणं मझगयं पासइ एग इत्थियं--अवओडयबंधणं उक्खित्त-कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं बज्म-करकडि-जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वझपाणपोयं सूले भिज्जमाणं पासइ, पासित्ता भगवओ गोयमस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, तहेव निग्गए-जाव-एवं वयासी--"एस णं भंते ! इत्थिया पुण्यभवे का आसि.?"
देवदत्ताए सीहसेणभवकहा३२२ एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सुपइ8 नामं नयरे होत्था--रिद्धस्थिमियसमिद्धे।
महासेणे राया।
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वेषदत्साकहाणयं
४९१
तस्स णं महासेणस्म रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था । तस्स णं महासेणस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए सोहसेणे नामं कुमारे होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे जुवराया। तए णं तस्स सोहसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ पंच पासायवडेंसयसयाई करेंति--अब्भुग्गयमूसियाई० । तए णं तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ सामापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं एगदिवसे पाणि गिण्हावसु । पंचसओ दाओ। तए णं से सोहसेणे कुमारे सामापामो?हि पंचहि देवीसएहि सद्धि उप्पि पासायवरगए-जाव-विहरइ । तए णं से महासेणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते । नोहरणं। राया जाए।
सीहसेणरायस्स सामाए मुच्छा ३२३ तए णं से सोहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्ध गढिए अज्झोववण्णे अवसेसाओ देवीओ नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे
अपरिजाणमाणे विहरइ । तए णं तासि एगणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगणाइं पंचमाइसयाइं इमीसे कहाए लद्धट्ठाइसवणयाए--"एवं खलु सीहेसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे वहरइ । तं सेयं खलु अम्हं सामं देवि अग्गिपओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए"-एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ-पडिजागरमाणीओ विहरति ।
३२४
सामाए कोवघर-पवेसो तए णं सा सामा देवी इमीसे कहाए लट्ठा सवणयाए--"एवं खलु ममं [एगूणगाणं ?] पंचण्हं सवत्तीसयाणं [एगूणाई?] पंचमाइसयाई इमोसे कहाए लट्ठाइं सवणयाए अण्णमण्णं एवं वयासी--एवं खलु सोहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए-जावपडिजागरमाणीओ विहरंति" तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्संती ति कट्ट भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियाइ । तए णं से सोहसेणे राया इमीसे कहाए लद्धठे समाणे जेणेव कोवघरए, जेणेव सामा देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामं देवि
ओहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहि अट्टज्झाणोवगयं भूमिगयदिट्ठी झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी--कि णं तुम देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियासि ? तए णं सा सामा देवी सोहसेणेणं रण्णा एवं बुत्ता समाणा उप्फेणउप्फेणियं सोहसेणं रायं एवं वयासी--एवं खलु सामी ! ममं एगणगाणं पंच सवत्तीसयाणं एगणाई पंच माइंसयाई इमीसे कहाए लद्धट्ठाई सवणयाए अण्णमण्णं सद्दावेत्ता एवं वयासी--"एवं खलु सोहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परिजाणइ-जाव-अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ-पडिजागरमाणीओ विहरति । तं न नज्जइ णं सामी ! ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्संति कट्ट भीया-जाव-झियामि ।"
सोहसेणेण सामासवत्तीसयमाईणं अग्गिणा वहो ३२५ तए णं से सोहसेणे राया सामं देवि एवं वयासी-"मा णं तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पा-जाव-झियाहि । अहं गं तह
घत्तिहामि जहा णं तव नस्थि कत्तो वि सरीरस्स आबाहे वा पबाहे वा भविस्सई" त्ति कटु ताहि इटाहि कंताहि पियाहि मणुण्णाहिं मणामाहि वहि समासासेइ, समासासेत्ता तओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! सुपइट्ठस्स नयरस्स बहिया एगं महं कूडागारसालं--अणेगक्खंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं करेह ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।। तए णं से कोडुबियपुरिसा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामि !' त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सुपइट्ठनयरस्स बहिया पच्चत्थिमे दिसीभाए एणं महं कूडागारसालं--अणेगक्खंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं करेंति, जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं से सीहसेणे राया अण्णया कयाइ एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंच माइसयाई आमतेइ ।
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४९२
धम्मकहाणुओगे छट्ठो धो
तए णं तासि एगूजगाणं पंच देवीसयाणं एगूणाई पंच माइसयाई सोहसेणेणं रण्णा आमंतियाइ समाणाई सब्वालंकारविभूसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपट्ट े नयरे, जेणेव सोहसेणे राया तेणेव उवेंति ।
तए गं से सीहमेने राया एगूणपंचन्हं देवीसवाणं एवनगाणं पंच माइसयाणं कूडागारसालं आवासं दलब
तए णं से सीहसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! विडलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवणेह, सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च कूडागारसालं साहरह ।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव- साहरति ।
तए णं तासि एगुणगाणं पंचन्हं देवीसयाणं एगूणाई पंच माइसयाई सव्वालंकारविभूसियाइं तं विडलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणाई वीसाएमाणाई परिभाएमाणाइं परिभुंजेमाणाई गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगीयमाणाइं-उवगीयमाणाइं विहरति ।
तए णं से सीहसेणे राया अदरतकालसमयसि बहूहि पुरिसेहि सद्धि संपरिबुडे जेणेव कूडागारसाला तेनेव उपागच्छह, उपागच्छता कूडागारसाला दुधाराई पिहेड, पिता कुडागारसालाए सच्ची समंता अगणिकार्यदल
लए णं तासि एगुणगाणं पंचतं देवीसपाणं एगुणगाई पंच माइसयाई सीहमेनं रन्मा आलीबियाई समागाई रोयमाणाई कंदनालाई दिमागाई भत्तालाई असरगाई कालधम्मुना संजुताई।
सीहसेणस्स निरयोजनाओ
३२६ तए
से सोहनेणे राया एवकम्मे एवप्पहाणं एयविज्जे एयसमापारे सुबह पावं कम्म कलिकसं समज्जनित्ता चोत्ती बा सयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्ठिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववण्णे ।
देवदत्तावेण बत्तमाण भवो
३२७ से णं तओ अनंतरं उब्वट्टित्ता इहेव रोहीडए नयरे दत्तस्त सत्थवाहस्स कव्हसिरीए भारियाए कुच्छिसि वारियताए उबवण्णे । तए णं सा कण्हसिरी नवग्रहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया-सुमाल सुरूवं० ।
लए तीसे दारियाए सम्माविव निव्यसवारसाहियाए विउ असणं पानं चाइमं साइमं उखडायत, उखडावेत्ता जाबमित्त-नाइ - नियग-सयण संबंधि- परियणस्स पुरओ नामधेज्जं करेंति --होउ णं बारिया देवदत्ता नामेणं ।
तए णं सा देवदत्ता दारिया पंचधाईपरिग्गहिया- जाव-परिवड्ढइ ।
लए सा देवदत्त दारिया उम्मुरूवालभावा विष्णय-परिणयमेत्ता जोखणगमनुष्यत्ता रूपेण जोम्यणेण लावम्मेण अव-अईव उक्किट्ठा उदुसरीरा जावा यावि होत्या ।
तणं सा देवदत्ता दारिया अण्णया कयाइ व्हाया - जाव-विभूसिया बहूहि खुज्जाहि-जाव-परिक्खित्ता उप्पि आगासतलगंसि कणर्गातदूसएणं कीलमाणी विहरइ ।
वेसमणदत्तरण्णा जुवराजत्वं देवदत्तामग्गणं
३२८ इमं णं समनसे राया व्हाए- जाव-विभूलिए आसं दुहति दुहिता महि पुरिसेहि सद्धि संपरिबुडे आसवाहानियाए निम्नाय माणे दत्तस्स महावइस्स हिस्सा अनुरसामंत बीईय
तए णं से वेसमणे राया दत्तस्स गाहावइस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं बीईवयमाणे देवदत्तं दारियं उप्पि आगासतलगंसि कणगतंसएणं कीलमणि पासs, पासिता देवदत्ताए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुंबियपुरिसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं बयासी कस्स णं देवाणुब्विया । एसा दारिया ? कि च नाम
?
--
तएषं से कोवियपुरिया बेसमणरा करयतपरिगहियं सिरसावत्तं मत्वए अंजलि कतु एवं बयासी एस सामी दसरस सत्यवाह घूया कन्हसिरीए नारियाए अलवा देवता नाम दारिया रूपेण य जोखणे व लावण्गेण य उनिकट्ठा दुसरीरा ३२९ तए से बेसमणे राया आसवाहणियाओ पडिनियले समानेगे अमितराभिज्ने पुरिसे सहावे सहावेत्ता एवं बयासी गच्छ गं तुम्भे देवाणुप्पिया ! दत्तस्स धूयं कण्हसिरोए भारियाए अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसनंदिस्स जुवरण्णो भारियत्ताए वरेह, जइ विय सा सयरज्जका ।
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देववत्ताकहाणयं
तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा वेसमणेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि !' ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता व्हाया-जाव-सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिया संपरिबुडा जेणेव दत्तस्स गिहे तेणेव उवागया। तए णं से दत्ते सत्यवाहे ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुठे आसणाओ अब्भुट्ट्इ अब्भत्ता सत्तद्र पयाई पच्चग्गए आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतेत्ता ते पुरिसे आसत्थे बीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी-संविसंतु णं देवाणप्पिया। कि आगमणप्पओयणं? तए णं ते रायपुरिसा दत्तं सत्थवाह एवं वयासी--"अम्हे णं देवाणुप्पिया ! तव धूर्य कण्हसिरीए अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसनंदिस्स जुवरणो भारियत्ताए वरेमो। तं जइ णं जाणसि देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा, सरिसो वा संजोगो, दिज्जउ णं देवदत्ता वारिया पूसनंदिस्स जुवरण्णो । भण देवाणुप्पिया ! कि दलयामो सुकं?" तए णं से दत्ते ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एवं बयासी--एवं चेव णं देवाणुप्पिया ! ममं सुकं जं णं वेसमणे राया मम बारियानिमित्तणं अणगिण्हइ । ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं ते भितरठाणिज्जा पुरिसा जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छंति, वेसमणस्स रण्णो एयमझें निवेति । तए णं से दत्ते गाहावई अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त-महत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेड, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ, हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सुहासणवरगएणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुडे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जमाणे एवं च णं विहरह। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं आयंते चोक्खे परमसुइभए तं मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि परियणं विउलेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता देवदत्तं दारियं व्हायं-जावसव्वालंकारविभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुहेइ, दुरुहेत्ता सुबहुमित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए-जाव-दुंदुहिनिग्योस-नाइयरवेणं रोहीडयं नयरं मज्झं-मज्झेणं जेणेव वेसमणरण्णो गिहे, जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु वेसमणं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता वेसमणस्स रण्णो देववत्तं वारियं उवणेइ ।
देवदत्ता-पूसनंदिजुवरायाणं पाणिग्गहणं ३३१ तए णं से बेसमणे राया देवदत्तं दारियं उवणीयं पासइ, पासित्ता हदुतुठे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडा
वेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ-जाव-सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पूसनंदि कुमारं देवदत्तं च दारियं पट्टयं दुरुहेइ, दुरुहेत्ता सेयापीएहि कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावेत्ता वरनेवत्थाई करेइ, करेत्ता अग्गिहोमं करेइ, करेत्ता पूसनंदि कुमार देवदत्ताए दारियाए पाणि गिण्हावेइ । तए णं से वेसमणदत्ते राया पूसनंदिकुमारस्स देवदत्तं दारियं सव्विड्ढीए-जाव-दुंदुहिनिग्घोस-नाइयरवेणं महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं पाणिग्गहणं कारेइ, कारेत्ता देवदत्ताए दारियाए अम्मापियरो मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं च विउलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । तए णं से पूसनंदी कुमारे देवदत्ताए भारियाए सद्धि उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थरहिं बत्तीसइबद्धनाडएहि उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उबलालिज्जमाणे उबलालिज्जमाणे इठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे बिउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ।
पिउणो मरणं पूसनंदिणो य रज्जं ३३२ तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते । नीहरणं-जाब-राया जाए पूसनंदी।
तए णं से पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते यावि होत्था । कल्लाकल्लि जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए पायवडणं करेइ, करेत्ता सयपाग-सहस्सपाहि तेल्लेहि अब्भंगावेइ, अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए-- चउविहाए संवाहणाए संवाहावेइ, संवाहावेत्ता सुरभिणा गंधट्टएणं उब्वट्टावेइ, उव्वट्टावेत्ता तिहि उदएहि मज्जावेइ, तं जहा-उसिणो
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४९४
धम्मकहाणुओग छट्ठो खंधो
नाणं तोसे
नए संकप्पे सारालाई माणुस्ती ववरोवे
दएणं सीओदएणं गंधोदएणं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेइ, भोयावेत्ता सिरीए देवीए पहायाए कयबलिकम्माए कयकोउय-मंगलं-पायच्छित्ताए जिमियभुत्तुत्तरागयाए तओ पच्छा पहाइ वा भुंजइ वा, उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरई।
देवदत्ताए पूसनंदिमाउणो मारणं ३३३ तए णं तोसे देवदत्ताए देवीए अण्णया कयाइ पुव्यरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए इमेयारूबे अज्झथिए चितिए
कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे--“एवं खलु पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते-जाव-विहरइ। तं एएणं वक्खेवेणं नो संचाएमि अहं पूसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए । तं सेयं खलु ममं सिरिदेविं अग्गिपओगेण वा सत्थप्पओगेण वा विसप्पओगेण बा जीवियाओ ववरोवेत्ता पूसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणीए विहरित्तए"-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सिरीए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरइ। तए णं सा सिरी देवी अण्णया कयाइ मज्जाइया विरहियसयणिज्जंसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था। इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरि देवि मज्जाइयं विरहियसणिज्जंसि सुहपसुत्तं पासइ, पासिता दिसालोयं करेइ, करेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोहदंड परामसइ, परामसित्ता लोहदंड तावेइ, तत्तं समजोइभूयं फुल्लकिसुयसमाणं संडासएणं गहाय जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए अवाणसि पक्खिवइ। तए णं सा सिरी देवी महया-महया सद्देणं आरसित्ता कालधम्मणा संजुत्ता। तए णं तीसे सिरीए देवीए दासचेडीओ आरसियसई सोच्चा निसम्म जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छंति, उवाच्छित्ता देवदत्तं देवि तओ अवक्कममाणि पासंति, पासित्ता जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छंति, उवागनिछत्ता सिरि देवि निप्पाणं निच्चेजें जीवियविप्पजढं पासंति, पासित्ता, हा हा! अहो! अकज्जमिति कटु रोयमाणीओ कंदमाणीओ विलबमाणीओ जेणेव पूसनंदी राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पूसनंदि रायं एवं बयासी--एवं खलु सामी! सिरी देवी देवदत्ताए देवीए अकाले चेव जीवियाओ ववरोविया। तए णं से पूसनंदी राया तासि दासचेडीणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म महया माइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धस त्ति धरणीयलंसि सव्वंहि संनिवडिए । पूसनंदिकओ देवदत्तादंडो तए णं से पूसनंदी राया मुहत्तंतरेण आसत्थे समाणे बहूहि राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहेहि मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेण य सद्धि रोयमाणे कंदमाणे बिलवमाणे सिरीए देवीए महया इड्ढीए नोहरणं करेइ, करेत्ता आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे देवदत्तं देवि पुरिसेहि गिव्हावेइ, एएणं विहाणेणं वनं आणवेइ।
उवसंहारो ३३५ तं एवं खलु गोयमा! देवदत्ता देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल
वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी विहरह।
देवदत्ताए आगामिभव परूवणं ३३६ देवदत्ता णं भंते ! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहिं उवबज्जिहिह।
गोयमा ! असीई वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो [तहेव-जाव-?] वणस्सई । तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता गंगपुरे नयरे हंसत्ताए पच्चायाहिह । से णं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे नयरे सेट्टिकुलंसि उवज्जिहिइ। बोही। सोहम्मे । महाविदेहे वासे सिजिमहिइ ।
विवागसुयं सु० १ अ० ९।
३३४
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१६. अंजूकहाणयं
वड्ढमाणपुरे अंजू ३३७ तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाणे । माणिभद्दे जक्खे । बिजयमित्त राया।
तत्थ णं धणदेवे नाम सत्थवाहे होत्था--अड्ढे । पियंगू नाम भारिया। अंजू दारिया-जाव उक्किट्ठसरीरा । समोसरणं परिसा-जावगया।
अंजूए पुन्वभवपुच्छा ३३८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी-जाव-अडमाणे विजयमित्तस्स रण्णो गिहस्स असोगवणियाए
अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे पासइ एगं इत्थियं--सुक्कं भुक्खं निम्मंस किडिकिडियाभूयं अट्ठिचम्मावणद्धं नीलसाडगनियत्थं कटाई कलुणाई वीसराई कूवमाणि पासइ, पासित्ता चिता तहेव-जाव-एवं वयासी--सा णं भंते ! इत्थिया पुत्वभवे का आसि? वागरणं ।
अंजूए पुढविसिरीभवकहा ३३९ एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे बासे। इंदपुरे मामं नयरे होल्था ।
तत्थ णं इंववत्त राया। पुढविसिरी नामं गणिया होस्था-वण्णओ। तए णं सा पुढविसिरी गणिया इंदपुरे नयरे बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियओ बहहि य विज्जापओगेहि य मंतपओगेहि य चुण्णप्पओगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएहि आभिओगित्ता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ। तए णं सा पुढविसिरी गणिया एयकम्मा एयप्पहाणा एयविज्जा एयसमायारा सुबहु पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता पणवीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमट्ठिएसु नेर इएसु नेरइयत्ताए उववण्णा ।
अंजए वत्तमाणसवकहा ३४० साणं तओ अणंतरं उबट्टित्ता इहेव घड्ढमाणपुरे नयरे धणदेवस्स सस्थवाहस्स पियंगुभारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए उववण्णा।
तए णं सा पियंगुभारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया। नाम अंजू । सेसं जहा देवदत्ताए। तए णं से विजए राया आसवाहणियाए निज्जायमाणे जहा वेसमणदत्ते तहा अंजु पासइ, नवरं--अप्पणो अट्टाए वरेइ जहा तेयली
-जाव-अंजूए भारियाए सद्धि उप्पि पासायवरगए-जाव-विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ । ३४१ तए णं तीसे अंजूए देवीए अण्णया कयाइ जोणिसूले पाउन्भूए यावि होत्था ।
तए णं से विजए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दादेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-"गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया! वड्ढमाणपुरे नयरे सिंघाडगतिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु मया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह--एवं खलु देवाणुप्पिया! विजयस्स रणो अंजूए देवीए जोणिसूले पाउन्भूए। तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा बेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा अंजूए देबीए जोणीसूले उवसामित्तए तस्स णं वेसमणदत्ते राया विउलं अत्थसंपयाणं दलयई"। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा-जाव-उग्धोसेति । तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा निसम्म जेणेव विजए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उप्पत्तियाहि वेणइयाहि कम्मियाहि पारिणामियाहि बुद्धीहिं परिणामेमाणा इच्छंति अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तए, नो संचाएंति उवसामित्तए ।
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति अंजूए देवीए जोणिसूल उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं सा अंजू देवी ताए वेयणाए अभिभूया समाणी सुक्का भुक्खा निम्मंसा कट्ठाई कलुणाई वीसराई विलवइ ।
उवसंहारो ३४२ एवं खलु गोयमा ! अंजू देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवितिविसेसं
पच्चणुभवमाणी विहरइ।।
अंजए आगामिभवपरूवणं ! ३४३ अंजू णं भंते ! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ?
गोयमा ! अंजू णं देवी नउई वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं-जाव-वणस्सई । सा णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वओभद्दे नयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिए। से णं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तस्थेव सव्वओभद्दे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभाव तहारूवाणं थेराणं अंतिए पव्वइस्सइ । केवलं बोहि बुज्झिहिइ। पव्वज्जा। सोहम्मे । से णं तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहि गच्छिहिइ ? कहि उवजिहिइ ? गोयमा! महाविदेहे वासे जहा पढमे-जाव-सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सम्बदुक्खाणमंतं काहिइ ।
विवा० अ०१०।
२०. पूरणबालतवस्सिकहाणयं
बेमेलसण्णिवेसे पूरणे गाहावई ३४४ चमरेणं भंते ! असुरिदेणं असुररप्णा सा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किणा लद्धे ? पत्ते ? अभिसमण्णागए ?
एवं खल गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुदीवे दीवे भारहे वासे विझगिरिपायमले बेभेले नामं सण्णिवेसे होत्था-- वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सण्णिवेसे पूरणे नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे दित्ते-जाव-बहुजणस्स अपरिभूए यावि होत्था।
परणस्स दाणामा पवज्जा . ३४५ तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अण्णया कयाइ पुष्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए
चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणे फलवित्तिविसेसे, जेणाहं हिरण्णणं वड्ढामि, सुवण्णेणं वड्ढामि, धणेणं वड्ढामि, धण्णेणं वड्ढामि, पुहि बड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्जेणं अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, तं कि णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं-जाव-कडाणं कम्माणं एगंतसोक्खयं उवेहमाणे विहरामि? तं जाव ताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि-जाव-अतीव-अतीव अभिवड्ढामि, जावं च णं मे मित्त-नाति-नियग-सयण-संबंधि-परियणो आढाति परियाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जाव
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पुरणबालकिणयं
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उद्वियम्मिसुरे सहस्रस्सिम्मिदियरेतेयसा जलते सबमेव उदयं दाराम परिह करेत्ता, बिलं असण-पान-खाइम- साइमं उवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असण-पाण खाइम- साइमेणं, वाच-गंध-मालालंकारेण य सरकारेला सम्माणेता, तस्सेव मिल-नाइ-नि-य-संबंध-परियणस्स पुरओ केंद्रपुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता, तं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छित्ता०, सयमेव चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहगं गहाय मुंडे भविता दाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए । पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि-- कप्पड़ मे जावज्जीवाएग अणिखिणं तवोकम्मे उई बाहाओ पनिलिय-पगियि सुराभिहस्स आवावणभूमीए आवावेमाणस्स बिहारलए, छस्स विवणं पारणंसि आयावणभूमीओ पश्चोरभित्ता सयमेव पश्यं दारुमयं पविगह गहाय बेमेले सज्गिवेसे उच्चनीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता जं मे पहमे पुडए पडइ, कप्पइ मे तं पंथे पहियाणं दलइत्तए । जं मे दोच्चे पुडए पडइ, कप्पइ मे तं काग-सुणयाणं दलइत्तए । जं मे तच्चे पुडए पडइ, कप्पड़ मे तं मच्छ- कच्छभाणं बल इत्तए । जं मे उपद्र, रुप्प मे तं अपना आहार आहारेलए कट्टु एवं संपेल कर पाउयभायाए रमणीए तं चैव निरवसेस जाव-जं से चउत्थे वुडए पडइ, तं अप्पणा आहारं आहारेइ ।
तए णं से पूरणे बालतवस्ती तेगं ओरालेणं विलेन पचणं पग्मलिएणं बालकम्मे के निम्मंसे अचम्मायण faisiefsuraए किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्या ।
--
पूरणस्स संलेहणा
३४६ तए णं तस्स पूरणस्स बालतवस्सिस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिच्चजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धनेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के भुक्खे- जाव-धमणिसंतए जाए, तं अत्थि जा मे उट्ठा कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए - जाव- उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि विजयरे तेयसा जलते बेभेलस्स सण्णिवेसस्स दिट्ठा भट्ठ य पासंडत्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिए य परियायसंगतिए य आपुच्छित्ता बेभेलस्स सवेर मज्म निगडिता, पाग-कुडिय मादीयं उबगरणं पप्पुष्यं च दाम पडिमा एगंले एडिला बेमेलस्स सणवेसर शहिणपुरत्यये दिसीमा अनियतजिय-मंडलं आलिहिता संहना असणा-सुसियस भत्तपाणपडियाक्खियस्स पाओचगयस्स कालं अणवरुंखमाणस्स बिहरिलए लिक एवं संपे संपेला कल्लं पाजप्य भाषाए रयणीए जाय-उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्म दिrयरे तेयसा जलते बेभेले सण्णिवेसे विट्टाभट्ट य पासंस्थे य गिहत्थे य पुव्वसंगतिए य परियायसंगतिए य आपुच्छइ, आपुच्छित्ता बेभेलस्स सण्णिवेसल्स मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पादुग-कुंडिय माबीयं उवगरणं दारुमयं च पडिग्गहगं एंगते एडेड एलाभेर सष्णिवेसल्स ग्राहिणपुरस्थि विसौभागे अनियत्तयिमंडलं आलिहिता संहना-मूस नाभूसिए भत्तपाणपहियाइए पामवगमणं निवणे |
महावीरस्स छउमत्थकाले सुंसुमारपुरे विहारो
३४७ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! छउमत्थकालियाए एक्कारसवासपरियाए छटु छटुणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं इज्जमाणे जेणेव सुंसुमारपुरे नगरे जेणेव असोयवणसंडे उज्जाणे जेणेव असोयवरपायवे जेणेव पुढवीसिलावट्टए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स हेट्ठा पुढवीसिलावट्टयंसि अट्ठमभतं परिहामि, दो वि पाए साहट्टु वग्घारियपाणी एगपोग्गलनिविट्ठदिट्ठी अणिमिसणयणे ईसिपम्भारगएण काएणं, अहापणिहिएहि गतेहि, सव्वदिहि गुह एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जेत्ताणं विहरामि ।
पूरणस्स चमरचंचाए असुरिदत्ताए उववाओ
३४८ ले लेते समए चमरवंचा रामहावो अगिदा अपुरोहिया बानि होत्या ।
तएषं से पूरणे बालतवस्ती बहुपरिपुणाई बालसवालाई परियागं पाणिता, मासिया संनेहगाए अत्तानं भूता स भत्ताई अणसगाए देता कालमासे कालं किच्चा बमरपंचाए रामहानीए उववायसभाए जाव-वताए
।
लए गं से चमरे असुरिदे असुरराया अनुभववणे पंचविहाए पज्जतीए पज्जत्तिभावं वच्छ, तं जहा महारपन्नत्तोए-नायभास-मणपज्जीत्तीए ।
छ० क० ०६२
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धम्मकहाणुओगे छट्ठो खंधो
चरिदस्स सक्किदभोगदंसणेण अमरिसो ३४९ तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गए समाणे उड्ढं वीससाए ओहिणा आभोएइ-जाव-सोहम्मो
कप्पो, पासइ य तत्थ--सक्कं देविदं देवराय, मघवं पाकसासणं । सयक्कतुं सहस्सक्खं, वज्जपाणि पुरंदरं-जाव-दस दिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं सोहम्मे कप्पे सोहम्मव.सए विमाणे सभाए सुहम्माए सक्कंसि सोहासणंसि-जाव-दिव्वाई भोगभोगाइं भुजमाणं पासइ, पासित्ता इमेयारवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जित्था--केस णं एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हिरिसिरिपरिवज्जिए होणपुण्णचाउद्दसे ज णं ममं इमाए एयारवाए दिव्वाए देविड्ढीए दिव्वाए देवज्जुतीए दिव्वे देवाणुभावे लद्ध पत्ते अभिसमण्णागए उप्पि अप्पुस्सुए दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सामाणियपरिसोववण्णए देवे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी"केस णं एस देवाणुप्पिया! अपत्थियपत्थए-जाव-दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ?" तए ण ते सामाणियपरिसोबवण्णगा देवा चमरेणं असुरिदेणं असुररण्णा एवं बुत्ता समाणा हटुतुटुचित्तमाणंदिया शंदिया पोइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता एवं वयासी--एस ण देवाणुप्पिया! सक्के देविदे देवराया-जाव-विव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहर।। तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया तेसि सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ते सामाणियपरिसोबवण्णो देबे एवं बयासी-- अण्णे खलु भो! से सक्के देविदे देवराया, अण्णे खलु भो! से चमरे असुरिंदे असुरराया, महिड्डीए खलु भो! से सक्के देविदे देवराया, अप्पिड्ढीए खलु भो! से चमरे असुरिवे असुरराया, तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया! सक्कं विदं देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए ति कटु उसिणे उसिणम्भए जाए यावि होत्था ।
चरिदस्स महावीरनिस्साए सक्किन्दअच्चासायणाकरणं ३५० तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया ओहि पउंजइ, पउंजित्ता ममं ओहिणा आभोएइ, आभोएता इमेयारूवे अज्झथिए-जाव
समुप्पज्जित्था--एवं खलु समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे सुसुमारपुरे नयरे असोगवणसंडे उज्जाणे असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्टयंसि अट्ठमभत्तं पगिहित्ता एगराइयं महापडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरति, तं सेयं खलु मे समणं भगव महावीरं णीसाए सक्कं देविद देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सयणिज्जाओ अम्भुट्टई, अम्भुट्ठता देवदूसं परिहेइ, परिहेता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेब चोप्पाले पहरणकोसे तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता फलिहरयणं परामुसइ, परामुसित्ता एगे अबीए फलिहरयणमायाए महया अमरिसं वहमाणे चमरचंचाए रायहाणीए मज्झमझेणं णिग्गच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव तिगिछिकूडे उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता-जाव-उत्तरवेउव्वियं रूवं विकुव्वइ, विकुवित्ता ताए उक्किट्ठाए-जाव-जेणेव पुढविसिलावट्टए जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ममं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता-जाव-नमंसित्ता एवं वयासी--इच्छामि णं भंते ! तुम्भं नीसाए सक्कं देविदं देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए त्ति कट्ट उत्तरपुरत्थिमं दिसौभागं अवक्कमेइ, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णति, समोहणिता-जावदोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ एगं महं घोरं घोरागारं भीमं भीमागारं भासुरं भयाणीयं गंभीरं उत्तासणयं कालड्ढरत्तमास-रासिसंकामं जोयणसय-साहस्सीयं महाबोंदि विउब्बइ, विउव्वित्ता अप्फोडेइ वग्गइ गज्जइ, हयहेसियं करेइ, हत्थिगुलगुलाइयं करेइ, रहघणघणाइयं करेइ, पायदद्दरगं करेइ, भूमिचवेडयं दलयइ, सीहणादं नदइ, उच्छोलेइ पच्छोलेइ, तिति छिदइ, वाम भुयं ऊसवेइ, दाहिणहत्थपदेसिणीए अंगुट्ठणहेण य वितिरिच्छं मुहं विडंवेइ, महया-महया सद्देण कलकलरवं करेइ एगे अबीए फलिहरयणमायाए उड्ढं बेहासं उप्पइए-खोभंते चेव अहेलोयं कंपेमाणे व मेइणीतलं साकड्ढ़ते व तिरियलोयं, फोडेमाणे व अंबरतलं, कत्थइ गज्जते, कत्थइ विज्जुयायंते, कत्थइ वासं वासमाणे, कत्थइ, रयुग्घायं पकरेमाणे, कत्थइ तमुक्कायं पकरेमाणे, वाणमंतरे देवे वित्तासेमाणे-वित्तासेमाणे, जोइसिए देवे दुहा विभयमाणे-विभयमाणे, आयरक्खे देवे विपलायमाणे-विपलायमाणे, फलिहरयणं अंबरतलंसि वियट्टमाणे-वियट्टमाणे. विउम्भाएमाणे-विउम्भाएमाणे ताए उक्किट्ठाए-जाव-दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीव-समुद्दाणं मझमज्झणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव सोहम्मे कप्पे, जेणेव सोहम्मव.सए विमाणे, जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छइ, एग पायं पउमवरवेइयाए करेइ, एग पायं सभाए सुहम्माए करेइ, फलिहरयणेणं महया-महया सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकोलं आउडेइ, आउडेता एवं वयासी-- "कहि णं भो! सक्के देविदे वेवराया?
फसवेइ, दाहित्यिहास उप्पइए-बोभते वैवास बासमाणे, कत्था, आयरवले देव विपलायमाणे वितरियमसंखेज्जाणं बीच-समझाड,
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पूरणबालतवस्मिकहणयं
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कहि णं ताओ चउरासोइसामाणियसाहस्सीओ? कहि णं ते तायत्तीसयतावत्तीसगा ? कहिणं ते चत्तारि लोगपाला? कहि ण ताओ अटू अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ? कहि णं ताओ तिण्णि परिसाओ ? कहि णं ते सत्स अणिया? कहि णं ते सत्त अणियाहिबई ? कहि णं ताओ चत्तारि चउरासीईओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ? कहि णं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ ? अज्ज हणामि, अज्ज महेमि, अज्ज वहेमि, अज्ज ममं अवसाओ अच्छराओ वसमुवणमंतु"त्ति कटु तं अणिळं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं फरुसं गिरं निसिरइ।
३५१
जाव चमर असुरिदं असुरराम पुणचाउद्दसा ! अन्य विणिम्मुयमाण-विविदिद्वि
सक्केण वज्ज-णिसिरणं तए णं से सक्के देविदे देवराया तं अणि8-जाव-अमणामं अस्सुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसस्स आसुरुत्ते रु8 कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडि निडाले साहट्ट चमरं असुरिद असुररायं एवं वदासि--"हं भो ! चमरा! असुरिंदा! असुरराया! अपत्थियपत्थया! दुरंतपंतलक्खणा! हिरिसिरिपरिवज्जिया! हीणपुण्णचाउद्दसा! अज्ज न भवसि, नाहि ते सुहमत्थीति कटु तत्थेव सीहासणवरगए बज्ज परामुसइ, परामुसित्ता तं जलंतं फुडतं तडतडतं उक्कासहस्साई विणिम्मुयमाणं-विणिम्मुयमाणं, जालासहस्साई प{चमाणं-पमुंचमाणं, इंगालसहस्साई पविक्खिरमाणं-पविक्खिरमाणं, फुलिंगजालामालासहस्सेहि चक्खुविक्खेवदिट्ठिपडिघात पि पकरेमाणं हयवहअइरेगतेयदिपंत जइणवेगं फुल्लकिसुयसमाणं महम्भयं भयंकर चमरस्स असुरिंदस्स असुरण्णो वहाए वज निसिरइ।
चरिदस्स भगवंतमहावीरपादपडणं ३५२ तए णं से चमरे असुरिदे असुरराया तं जलतं-जाव-भयंकर वज्जमभिमुहं आवयमाणं पासइं, पासित्ता झियाइ .पिहाइ, पिहाइ मियाइ,
झियायित्ता पिहाइत्ता तहेव संभग्गमउडविड़वे सालंबहत्याभरणे उड्ढपाए अहोसिरे कक्खागयसेयं पिव विणिम्मुयमाणे-विणिम्मयमाणे ताए उक्किट्ठाए-जाव-तिरियमसंखेज्जाणं दीव-समुद्दाणं मझमझेणं बीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव जंबुदीवे दीवे-जाव-जेणेव असोगवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भीए भयगग्गरसरे 'भगवं सरणं' इति बुयमाणे ममं दोण्ह वि पायाणं अंतरंसि झत्ति वेगेणं समोडिए।
सक्किदस्स वि भयवंतमहावीरसमीवे आगमणं वज्जपडिसाहरणं य ३५३ तए णं तस्स सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो इमेयारूवे अज्झत्यिए-जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था--"नो खलु पभू चमरे असुरिदे असुर
राया, नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु विसए चमरस्स असुरिदस्स असुररणो अप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पइत्ता-जाव-सोहम्मो कप्पो, नऽण्णत्थ अरहंते वा, अरहंतचेइयाणि वा, अणगारे वा भाविअप्पणो नीसाए उड्ढे उप्पयइ-जावसोहम्मो कप्पो, तं महादुक्खं खलु तहास्वाणं अरहंताणं भगवंताणं अणगाराण य अच्चासायणाए" ति कटु ओहि पउंजइ, मम ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता 'हा! हा! अहो ! हतो अहमंसि' त्ति कट्ठ ताए उक्किट्ठाए-जाव-दिव्वाए देवगईए वज्जस्स वीहि अणुगच्छमाणे-अणुगच्छमाणे तिरियमसंखेज्जाणं दीव-समुद्दाणं मझमझेणं-जाव-जेणेव असोगवरपायवे, जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छद', उवागच्छिता ममं चउरंगुलमसंपत्तं वज्जं पडिसाहरइ, अवि याइं मे गोयमा ! मुट्ठिवाएणं केसग्गे वीइत्था ।
सक्किदेण खमाजायणं असुरिंदनिब्भयकरणं य ३५४ तए णं से सक्के देविदे देवराया वज्ज पडिसाहरित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता
एवं वयासि--एवं खलु भंते ! अहं तुम्भं नीसाए चमरेणं असुरिदेणं असुररणा सयमेव अच्चासाइए। तए णं मए परिकुविएणं समाणेणं चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो बहाए वज्जे निसठे। तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे
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५००
धम्मकहाणुओग छट्ठी बंधो
! !
समुपज्जत्था - नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु समत्थे चमरे असुरिवे असुरराया, नो खलु विसए चमरस्स असुरिदस्स असुररणो अप्यणो निस्साए उ उपहत्ता-जाय सोहम्मो रूप्पो, मन्मथ अरहंते या अरहंतचेयाणि वा अणगारे वा भाविअप्पाणी नीसाए उड्ढं उप्पइत्ता- जाव-सोहम्मो कप्पो, तं महादुक्खं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं अणगाराण य अच्चासायणाए लि कट्ट ओहि पजामि, देवापिए ओहिणा आमोएमि, आभोएत्ता हा हा अहो तो अहमसि ति कट्टु लाए उक्किए - जाव- जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागच्छामि, देवाणुप्पियाणं चउरंगुलमसंपत्तं वज्जं पडिसाहरामि, वज्जपडिसाहरणट्टयाए णं इहमागए इह समोसढे इह संपत्ते इहेब अज्ज उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । तं खामेमि णं देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरिहंति गं देवागुथिया नाइमुज्जो एवं करणवाए ति ममं बंद नर्मसह बंदिता नमसित्ता उत्तरपुरत्थि दिसीमार्ग अव reas, वामेणं पादेणं तिक्खुत्तो भूमिं विदलेइ, विदलेत्ता चमरं असुरिदं असुररायं एवं वदासि -- भुक्को सि णं भो चमरा ! अमुरिदा ! अमुरराया! समणस्स भगवओ महावीरस्य पचावेणं नाहि ते दाणि ममातो भयमस्थि ति कट्ट जामेव विि पाए सामेव दिति पडिगए।
!
सक्काइगह विसयाणं गोयमपहाणं भगवया समाहाणं
३५५ भंते भिग गोयमे समणं भगवं महाबीर बंद, नस, बंदिता नमसत्ता एवं बदासी -देवेनं ते महिडीए-जाबमहाणुभागे पुग्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेवं अणुपरियट्टित्ताणं हित्तए ?
हंता पभू ।
सेकेणट्ठणं भंते! एवं बुच्चइ - - देवे णं महिड्ढीए- जाव- महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ता जं ए?
गोमा पोलेणं खिसे समाणे पुण्यामेव सिन्धगई भविता ततो पच्छा मंदगती भवति देवे णं महिद्दीए-जा-महाणुभागे पुधि पि पच्छा वि सीहे सोहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव । से तेण णं- जाव- पभू गेव्हित्तए ।
जइ णं भंते! देवे महिढीए- जाव-पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हितए, कम्हा णं भंते! सक्केणं वेविवेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया तो संचाइए साहत्य लिए?
गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं आहे गइविसए सीहे-सीहे चैव तुरिए-तुरिए चेव, उड्ढं, गइविसए अप्पे अप्पे चेव मंद-मंदे चेव ।
बेमाणियाणं देवाणं उड्ढं गइविसए सीहे-सीहे चेव तुरिए-तुरिए चेव, अहे गइविसए अप्पे अप्पे चेव मंदे-मंवे चैव ।
जावति समके देवि देवराया उटं उप्पम एक्केणं समए सक्करस देविदरस देवरणो उड्हलोपडए, अहेलोयकंड संखेगे ।
जावतियं खेतं चमरे असुरिवे असुरराया अहे ओवयइ एक्केणं समएणं, तं सक्के दोहि, जं सबके दोहि, तं वज्जे तीहि । सव्वत्योवे
चमरस्स असुविस्स असुररण्णो अहेलोयकंडए, उड्ढलोयकंडए संखेज्जुगुणे ।
एवं खलु गोपमा ! सक्केणं देविदेणं देवरच्या चमरे असुवेि असुरराया नो संचाइ साहिए।
ने दो बजे चमरे तिहि सव्वत्थोवे
सक्स णं भंते! साहिए था?
गोषमा ! सम्वत्योवं सबके देविदे देवराया आहे जोवय एक्केणं समए तिरियं संखेने भागे गच्छद उड़ भागे
गच्छइ ।
देविंदस्स देवरण्णो उड्टं अहे तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा ? बहुए वा ? तुल्ले वा ?
चमरस्स णं भंते! असुरिदस्स असुररण्णो उड् अहे तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा ? बहुए वा ? तुल्ले या ? बिसेसाहिए बा ?
गोयमा सम्वत्वं खे चमरे अरिदे असुररामा उ उपपद एक्केणं समएर्ण तिरियं भागे आहे
भागे गच्छइ ।
अहे तिरियं च
बज्जल्स णं भंते! विसयस कमरे कमरेहितो अप्पे वा ? बहुए वा ? तुल्ले या ? विसेसाहिए था? गोयमा ! सव्वत्थोवं खेत्तं वज्जे अहे ओवयइ एक्केणं समएणं, तिरियं विसेसाहिए भागे गच्छइ, उड़ढं विसेसाहिए भागे गच्छइ । सक्कल्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो ओवयणकालस्स य, उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा ? बहुए वा ? तुल्ले वा ? विसेसाहिए वा ?
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पूरण बासवस्तिकाणयं
गोपमा ! सम्बत्यो सक्कर देविदस्य देवरज्यो उपयनकाते, ओवपगकाले संखेज्जगणे। चमरस व जहा सक्कस्स, नवरं - - सव्वत्थोवे ओवयणकाले, उप्पयणकाले संखेज्जगुणे । वज्जस्स पुच्छा ।
गोयमा ! सव्वत्थोवे उप्पयणकाले, ओवयणकाले विसेसाहिए ।
एयस्स णं भंते! वज्जस्स, वज्जाहिवइस्स, चमरस्स य असुरिवस्स असुररण्णो ओवयणकालस्स य, उप्पयणकालस्स य कयरे रूपरेहितो अये या? बहुए बा ? तुल्ले वा ? बिसेसाहिए वा ?
गोयमा ! सक्क्कस्स य उप्पयणकाले, चमरस्स य ओवयणकाले-- एए णं दोण्णि वि तुल्ला सव्वत्थोवा । सक्करस य ओवयणकाले, वज्जस्स य उप्पणकाले --एस णं दोण्ह वि तुल्ले संखेज्जगुणे । चमरस्स य उप्पयणकाले, वज्जस्स य ओवयणकाले-- एस णं दोन्ह विल्ले विसेसाहिए।
चमरबस्स भगवंतमहावीरसमीवे पुनरागमणं
३५६ तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया वज्जभयविप्यमुक्के, सक्केणं देविदेणं, वेवरण्णा महया अवमाणेणं अवमाणिए समाणे चमरपंचाए राहाणीए समाए मुहम्माए चमरंति सोहासवंति ओमणसंकष्ये वितासोयसागरसंपवि कवलपत्त्यमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिणयविएशियाति ।
५०१
लए चमरं असुर असुररायं सामाणियपरिसोवा देवा ओह्मणसंक- जाव-शियायमाणं पासंति, पासिता करमलपरिमहि दसनहं सिरसावतं मत्वए अंजलि कट्टु जएणं बिजए बहावेति बढावेता एवं बयासी कि गं देवाविया ! ओहयमणसंकप्पा चितासोयसागरसंपविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगपदिट्ठीया झियायह ?
तणं से चमरे असुरिये असुरराया ते सामाणियपरिसोववरण देवे एवं बयासी- "एवं खलु देवाचिया मए समर्ण भगवं महावीरं नीसाए सक्के देविंदे देवराया सयमेव अच्चासाइए । तए णं तेणं परिकुविएणं समाणेणं ममं बहाए वज्जे निसट्ठे । तं भट्टणं भवतु देवापिया! समगस्स भगवओो महावीरस्स जरसम्हि पभावेण अफिटट्ठे अम्यहिए अपरितारिए इमागए दह समोस इह संपत्ते इहेव अज्ज उवसंपिज्जत्ताणं विहरामि । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया । समणं भगवं महावीरं वंदामो नम॑सामो-जावपज्जुवासामो" ति कट्टु चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव- सम्बिड्ढीए- जाव- जेणेव असोगवरपायवे, जेणेव ममं अंतिए तेणेव उयागन्छ, उपागच्छत्ता ममं तिक्युतो याहि वाहि करेला वंदेता नमसिता एवं बयासि एवं खभते भए तुमसाए सक्के देवि देवराया रूपमेव अच्चासाइए लए गं तेणं परिकुविएणं समानेनं ममं बहाए वजे निस तं भट्टष्णं भवतु देवाणुपियाणं जस्सम्हि पभावेणं अकिट्ठे अव्वहिए अपरिताविर इहमागए इह समोसढे इह संपत्ते इह अज्ज उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । तं खामिनं देवापिया ! खमंतु देवानुयिया । संतुमरिहंति णं देवानुप्पिया ! नाइमुन्जो एवं करणवाए" लिक मर्म बंद नस, बंदिता नर्मसत्ता उत्तरपुरत्यिमं दिसीमार्ग अवस्कमर, अवक्कमिला- जाव- बत्तीसब नविहि उनसे उसे जामेव बिसि पाउए तामेव दिसि पडिगए।
३५७ एवं खलु गोयमा ! चमरेणं असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्या देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे लढे पत्ते अभिसमण्णागए । ठिई सागरोवमं महाविदेहे वाले साहिद-जावतं काहि ।
२५८
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भंते असुरकुमारा देवा उ उपयंति-जा-सोहम्मो रूप्पो ? गोपमा तेसि मे देवाणं अणोपया या चरिम भवत्याग या इमेमाeये अमथिए-जाव-संकपणे समुप्यश्जद अहो म्हेहि दिव्या देवी जाव-अभिसमयागए, जारिसियाणं अम्हे दिवा दी जाव अभिसमम्मागए, तारिसिया में सबके देविवेगं देवरण्णा दिव्या देवड्डी-जाय-अभिसमन्नागए। जारिसिया सबके देविदेणं देवरणा-जाव-अभिसमण्णागए, तारिसिया णं अम्हेहि विजाय अभिसमण्णागएतं गच्छामो सक्करस देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउन्भवामो पासामो ताव सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविड्ढि जाव अभिसमण्णागयं, पासउ ताव अम्ह वि सक्के देविंदे देवराया दिव्वं वेविड्ढि जाव-अभिसमण्णागयं । तं जाणामो ताव सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिवं देवता-अभिमन्यागणं, जागर ताव अम्ह वि सबके देविदे देवराया दिवं देवत-जाव-अभिरामण्णागयं । एवं खलु गोयमा असुरकुमारा देवा उ उपयंति-जा-सोहम्मो कपो सेवं भंते! सेवं भंते! ति ।
भगवई स० ३ उ० २ ।
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२१. महासुक्कदेवाणं भगवओ महावीरस्स समीवे आगमणपसंगो
३६०
देवाणं मणसा पण्हो महावीरेण य मणसा उसरं ३५९ तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ महासामाणा विमाणाओ दो देवा महिड्ढिया-जाव-महाणुभागा समणस्स भगवओ
महावीरस्स अंतियं पाउम्भूया, तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं मणसा चेव बंदंति नमसंति वंदिता नमंसित्ता मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंतिकइ णं भंते! देवाणुप्पियाणं अंतेवासिसयाई सिज्झिहिति-जाव-अंतं करेहिति? तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहि मणसा पुढे तेसिं देवाणं मणसा चेव इमं एयारवं वागरणं वागइरे-एवं खलु देवाणुप्पिया! मम सत्त अंतेवासिसयाई सिमिहिति-जाव-अंतं करेहिति, तए णं ते देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मणसा पुढेणं मणसा चेव इमं एयारुवं वागरणं वागरिया समाणा हट्टतुट्ठा-जावहयहियया समणं भगवं महावीरं वदंति णमंसंति वंदित्ता णमंसित्ता मणसा चेव सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा-जाव-पज्जुवासंति । तेणं कालेणं तेणं समएणं गोयमकोऊहलं समगस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभई णामं अणगारे-जाव-अदूरसामंते उड्ढंजाणू-जाव-विहरह, तए णं तस्स भगवओ गोयमस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारवे अज्झथिए-जाव-समुप्पज्जिस्था--"एवं खलु दो देवा महिड्ढिया -जाव-महाणुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउम्भूया तं नो खलु अहं ते देवे जाणामि कयराओ कप्पाओ वा सग्गाओ वा विमाणाओ वा कस्स वा अत्थस्स अट्टाए इहं हव्वमागया? तं गच्छामि णं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि-जाव-पज्जुवासामि इमाइं च णं एयाख्वाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामि" ति कटु एवं संपेहेइ संपेहिता उट्ठाए उट्ठइ उद्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे-जाव-पज्जुवासइ । महावीरेण गोयममणो गयकहणं समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वदासी-से णणं तव गोयमा! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए-जाव-जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए से पूर्ण गोयमा! अत्थे समत्थे ? हता! अत्थि, तं गच्छाहि णं गोयमा ! एए चेव देवा इमाई एयारवाई वागरणाई वागरेहिति ।
गोयमस्स देवसमीवे गमणं ३६१ तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुनाए समाणे समणं भगवं महावीरं बंदइ णमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव
ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं ते देवा भगवं गोयम एज्जमाणं पासंति पासित्ता हट्ठा-जाव-हयहियया खिप्पामेव अब्भुट्ठति अब्भुट्टित्ता खिप्पामेव पच्चुवागच्छंति पच्चुवागच्छित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता-जाव-णमंसित्ता एवं बयासी-एवं खल भंते! अम्हे महासुक्काओ कप्पाओ महासामाणाओ विमाणाओ दो देवा महिड्ढियया-जाव-पाउम्भूआ तए णं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो णमसामो वंदित्ता नमंसित्ता मणसा चेव इमाई एयारूवाई वागरणाई पुच्छामोकइ णं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासिसयाई सिलिहिति-जाव-अंतं करेहिति ? तए णं समण भगवं महावीरे अम्हेहि मणसा पुढे अम्हं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम सत अंतेवासिसयाई-जाव-अंतं करोहिति तए णं अम्हे समर्णणं भगवया महावीरेणं मणस। चेव पुढेणं मणसा चेव इमं एयास्वं वागरणं वागरिया समाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो वंवित्ता नमंसित्ता-जाव-पज्जवासामो त्ति कटु भगवं गोयमं वदति नमसंति बंबित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भया तामेव दिसि पडिगया ।
भगवई श० ५ उ०४ ।
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परिशिष्ट
(शब्द सूची)
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शब्द - सूची
(अ) अइबल १.१३८,१.१४३ अइमुत्त २.६६, २.६७, २.६८ अइमुत्तयलयामंडबग ४.२६० अइर १.१३९ अइरा १.९५ अउज्झा १.१३९ अओकुंभी ४.२७८,४.२७९ अंकधाई १.६७,४.२८७, ४.३७४ अंकवाणिय ४.२७५ अंकावई १.१३८ अंकुस १.११४ अंग १.३०, २.७८,५.४०७, ६.४३३ अंगजणवय ६.४३३ अंगमंदिर ५.४०५ अंगराय १.२७, १.२८, १.३१, १.३४, १.१०१, ३.१९१ अंगलोय १.१२२ अंगवंस २.१६४ अंगारक १.७९ अंचिय १.१७ अंजणगपव्वय १.२५ अंजणगिरि १.११६, १.१९१ अंजणगिरिक्ड १.१२३, १.१३२, १.१३३, १.१३५, १.१३६ अंजू १.१०२, ६.४५९, ६.४९५-४९६ अंडअ १.९० अंतकाडभूमी १.५०, १.५३, १.८८ अंतकरभूमी १.२३, १.४८ अंतकुल १.५७, १.५८ अंतगड १.८५, १.८६ अंतजीवी ५.३९२ अंतरंजि १.८८ अंताहार ५.३९२ अंतोसल्लमरण २.१२६ अंदोलग ४.२६० अंधगवण्हि २.२०,२.२१, २.४८ अंबड १.१०४ अंबयरुक्ख १.१०१ अंबसालवण ३.२२०, ३.२२१, ३.२२३, ३.२२८, ३.२४३,
४.२४६, ४.२४८, ४.२४९, ४.२५३
अकंपिय १.१११, १.११२, १.११३ अक्खीणमहाणसिय १.८२ अक्खेवणी १.८४ अक्खोभ २.२०, २.२१ अगडददुर १.४० अगडमह ४.२७० अगणिकाय १२४, १.२५,२.१६६, ३.२१७, ३.२१८ अगारधम्म १.७४ अग्गमहिसी १.१०, १.१२, १.१३, १.१५, १.५६, १.८०, ४.२४६
४.२५१.४.२५२.४.२५३, ४.२६४, ४.२६७ अग्गि १.११४ अग्गिउत्त १.९४ अग्गिकुमार १.२४, १.२५, ५.४१७ अग्गिदत्त २.१७२ अग्गिप्पओग १.१२६, १.१२८ अग्गिभूई १.१११, १.११२, १.११३ अग्गिभूती १.१११ अग्गिमाणब ३.२२४ अग्गिमित्ता ४.३३२, ४.३३५, ४.३३६
४.३३९, ४.३४० अग्गिवेस १.८६, २.१७५ अग्गिवेसायण १.१११, १.११३, ५.३९३ अग्गिवेसायणगोत्त २.१७१ अग्गिसप्पभ १.१०० अग्गिसिह १.१४२, ३.२२४ अग्गिसेण १.९४ अग्गी १.१५, १.७९ अग्गुज्जाण ६.४५६ अग्गुज्जाण ६.३४५ अघाकम्मिअ १.९१ अङ्गई २.४९, २.५० अङ्गपविट्ठ ४.२७६ अङ्गबाहिर ४.२७६ अचल १.२१ अचेल १.७२, १.७५ अचेलअ १.२०,१.९१ अचेलग १.९१ अच्च १.८६
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धर्मकथानुयोग
अच्चिमाली ३.२२५ अच्चुइंद १.१७ अच्चुय १.१६, १.२४, १.६८,२.९२, २.९७, २.१०९, २.१३०,
२.१३१, ५.४१३ अच्चुयग १.१५ अच्चयवई १.७९ अच्छ ५.४०७ अच्छणघरग ४.२६० अच्छर १.८० अच्छिद ५.३९३ अच्छज्ज १.९१ ५.३८५ अच्छेरग १.११३ अजिण १.२२, १५०, १५२,१८३, १८७,११०६ अजित १९६-९७ अजितसेण १.४ अजिय १.९४-९५, १.९८, १.१०७-११० जजियसेण १.९४,२.२२ अजीवकाय २.१६४-१६५ अजीवत्थिकाय २.१६५ अज्ज २.६१, २.७८, ४.३७५ अज्जइसिपालिय २.१७३ अज्जकुबेर २.१७३ अज्जकोट्टकिरिय १.३२ अज्जघोस १.५२, १.१११ अज्जचेडय २.१७२ अज्जजयंती २.१७१ अज्जतावसी २.१७१ अज्जदिष्ण १.५२ अज्जनाइल २.१७१ अज्जपोगिल २.१७१ अज्जवहर २.१७३ अज्जसेणिय २.१७३ अज्जसंपया १.१०५ अज्जियासंपदा १.५२ अज्जियासंपया १.२२, १.४७,१.८७ अज्जुण २.९४, २.१०८, ३.१९१, ५.३९३, ५.४०४ अजुणग ५.४०४-४०५ अज्जुणय २.९३-८६ अज्झोयरय १.९१, ४.३७३, ५.३८५ अट्टणसाला १.६२, १.६६,२६ अळंगमहानिमित्त २.६ अट्ठकम्मपगडी २-३९ अट्ठकम्मसत्तू २-८४
अट्ठचक्कवालेपतिट्ठाण १.१३१, १.१४१ अट्ठमंगल १-४६ अट्टट्ठमंगलग ४-२४९ अट्ठणसाला २.८, ४.३६८ अट्ठभत्त १४९,१११७ अट्ठमंगल १.११६, १.१२३, १-१३५ अट्ठमंगलग १-१३२, १.१३६ अट्ठमभत्त १-२१-२२, १.४७, १,११८, १.१२०-१२३
१.१२६, १.१२८-१३१, १.१३३-१३४ १.१३६
२.२६, २.७५, २.१०६, ३.१९६, ३.१९९ अट्ठमभत्ति १.१३४ अट्ठमभत्तिय २.१०६ अट्ठावय १.१३७ २.७८ ४.३७५ अट्ठाहिय १.२५ १.४७-४८. १.११५-११६, १.११८
१.१२०-१२१, १.१२९. १.१३१ अट्ठाहिया १.११९-१२१, १.१२९-१३१ अट्ठिजुद्ध अट्ठियगाम १.८५ अट्ठिसुह १.६२ अड्ढभरह २.१७५ अणंगसेण २.१७-१८, २.२० अणंत १.९४-९६, १.९८-१००, १.१०९-११० अणंतय १.९४ अणंतविजय १.९४, १.१०४ अणंतसेण १.४ २.२२ अणगारचिइगा १.२४-२५ अणगारधम्म १.७४ अणवण्णिय १.७९ अणाढिय २.४९-५० अणाहिट्ठी २.२२ अणिदिय १.६-७ अणिय १.१०, १.१५-१६, १.४५, १.५६, १.८०,
४.२४६ अणियट्टी १.१०४ अणियण १.४ अणियाहिवइ १.६, १.१०, १.१३, १.१५-१६, १.४५,
१.५६, ३.२१९, ४.२४६, ४.२५२, ४.२६४, ४.२६८,
६.४९९ अणिरुद्ध ३.२०८ अणिसिट्ठ १.९१ ४.३७३, ५.३८५ अणिहयरिउ २.२२ अर्णयस २.२२ अणुत्तर १.८८
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शब्द-सूची
अबद्धिय १.८८ अभितरपरिसा ४.२५१ अभक्खेय २.४१-४२ अभग्ग ६.४५९ अभग्गसेण ६.४७१-४७६ अभय २.६९, २.७६-७७, २.९७,-९८, ६.४२७ अभयकर १.१०० अभयकुमार २.७४-७५, ६.४२८ अभयदय १.१०, १.५६, १.८०, १.११२, ३.२२०, ८.२६६,
अणुत्तरविमाण २.१३१ अणुत्तरोववाइयं १.२२, १.४७, १.५०, १.५३, १.८८,
१.१०८ अणुत्तरोववा इयसंपया १.२२, १.१०८ अणुद्धरी १.८७ अणुराहा १.१०० अणुलोम १.२०, १.५२ अणुव्वय १,९१,२.३९, २.६४, ४.२४६ अणोज्जकोज्जय १.२८ अणोज्जा १.६८ अण्णलिंग १.१०० अण्णविहि २७८, ४.३७५ अतिपास १.९४ अतिमुत्त २.६६, २.९२ अतियार ४.२९७-२९८ अतिराणी १.१०२ अतिसेस १.१०२ अत्थिकाय २.१६४-१६५ अथव्वणवेद २.५७ अथव्वणवेय १.५५, २.३८, ३.१७९ ६.४७९ अदिण्णदाण १.१०३-१०४ अदोणसत्तु १.२७-२८ १-३७-३९ १.९५, १.१०१,
२.५१, २,५५, २.१०५-१०६ अग २-६४-६६ अद्धभरह २.२०, ३.१९८ अद्धमागह ४.३७१ अद्धमागही १.१०२ अधम्मत्थिकाय २.१६४-१६५ अनिरुद्ध २.३४, ३.१९५ अनीहारिम २.१२७ अन्तरिज्जिया २.१७३ अन्नउत्थिय २.१६४-१६५ अन्नवालय २.१६४ अपइट्टाण १.१४०,१.१४४ अपराइय १.१४२-१४३ अपराइया १.१४२, ३.२२५ ।। अपराजिय १.४८, १.१०१, २.९८ अपराजिया १.७,१.१००,१.१३८-१३९ अपुटुवागरण १.८६ अप्पडिहयवरनाणदसणधर १.१०, १.५६, १.८०, १.११२,
अभिइ १.२३ अभिग्गह १.७३, १.९० अभिचन्द १.४, १.२१, १.२६ अभिजसंत २.१७३ अभिणंदण १.१०८ अभिणय १.१७, ४.२५६, ४.२६४ अभिनंदण १.९४-९६, १.९८, १.१०९ अभिसेगसभा ४.२६३ अभिसेय १.५५, १.५९ अभिसेयसभा ४.२६४-२६५, ४.२६७ अभिहड १.९१, ४.३७३, ५.३८५ अभीइ १.५ अभीयिकुमार २.१३८, २.१४० अभीयी २.१३७ अभीयीदेव २.१४० अमच्च ४.२७८,४.३६५ अमम १.१०४, ३.२०९ अमयरस १.१०१ अमरवइ १.४७ अमरसेण १.४७ अमलकप्पा ३.२२१ अमितवाहण ३.२२४ अमियगति ३.२२४ अभियणाणि १.९४ अमोह ६.४७६ अमोहदंसी ६.४७१ अम्बुभक्खी ४.२४४ अम्मड ४.३७२-३७४ अम्मया १.१४२ अयंपुल ५.४०७ अयल १.२६, १.१४२-१४३, २.२०-२९ अयलपुर २.१७५ अयलभाया १.१११-११३
अप्फोयामंडवग ४.२६० अबद्धित ४.३८१
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धर्मकथानुयोग
अर १.९४-९६ १.९८-१००,११०९,१.१३९-१४० अरक्खुरीय ३.२२५ अरया १.१३८ अरसजीवी ५.३९२ अरसाहार ५.३९२ अरहंत १.२७, १.३२, १.४४-४५, १.५६-५८, १.६४, १.९३,,
१.१०३, २.५७, २.९१, २.९५, २.१२९, २.१३२, २.१३६,
२.१७०, ३.१८०, ३.२०३, ३२१९, ४.२६६, ४.३६६ अरहंतमातर १.६४ अरहंतवंस १.९२ अरहण्णग १.३१, १.३३-३४ अरहण्णय १३२-३३ अरहदत्त २.१७३ अरहदत्ता २.११०८ अरहदिन्न २.१७३ अरिट्ठ १.१०१ अरिट्ठणेमि २.१८-१९,२.२३-२७,२.३०-३३, २.४७,३.२०८
२०९ भरिट्टनेमि १.४९-५०, १.९५, १.९७-९८, १.१०५-१०६,
१.११०, २.१५, २,१७-२३, २.२५, २.२७-३७, २.४०,
२.४७-४८, ३,१७९, ३.२०६, ३.२०८, ३.२१० अरिट्टनेमिचरिय १.४८ अरिटवरणेमि १.१०० अरिहंत १.३, १.१०, ४.२४७. ४.३७१ अरुणकील ४.३५२ अरुणज्झअ ४.३३१ अरुणप्पभ १.१००, ४.३१६ अरुणवडेंसअ ४.३४७ अरुणाभ ४.३०४, ४.३११, ४.३५४, ४.३५९, ४.३६२, ४.३७७ अरुविकाय २.१६४-१६५ अलंकारियसभा ४.२६३, ४.२६५, ४.२६७ अलंबुसा १.८ अलकापुरी २.२० अलक्क २.६९, २.९२ अलसंड १.१२२ अलसिरी ३.२२४ अला ३.२२४ अलावडेंसथ ३.२२४ अवज्झा १.१३९ अवतित्त ४.३८१ अवत्तिय १.८८ अवधिनाणी १.१०७
अवरकंका १.११३, ३.१९५, ३.१९९-२००.३.२०२-२०३,
३.२०५ अवरविदेहवास १.४३ अवराजिता १.१३८ अवाय ४.२७६ अवाह ५.४०७ अव्वत्तरूबपुरिस २.६५ अव्वाबाह २.४०, २.४५ असंजअ १.११३ असंजल १.९४ असह १.२३ असिणी १.९९ असिरयण १.१२६, १.१३२,१.१३६, १.१४१ असिलक्खण २.७८, ४.३७५ असिलोगभय १.९१ असुतिजातकम्म १.६६ असुर १.१५, १.४५, १.७०, १.१००, १.१३३, २.३०, २.८२,
२.८२, २.१४, ४.२८३ असुरकन्ना १.३४, १.३७, १.४१ असुरकुमार १.७८, २.६२-६३, २.१४०, ३.२१९, ३.२२२,
५.४१७, ६.४२४-४२५, ६.५००-५०१ असुरवज्ज १.१५ असुरिंद १.१५, १.२५, १.४६, १.७९, ३.२१९, ६.४२४-४२५,
६.४९९-५०० असोग १.१७, १.२०, १.२८, १.४७, १.४९, १.५२, १.६०,
१.७२, १.१०१-१०२, २.२०, २.३५, २.३७, २.१०८,
४.२४५-२४६, ४.३६४, ४.३६६ असोगललिय १.१४२ असोगडिसय ४.२५७ असोगवण ४.२५९ असोगवणसंड ६.४९८ असोगवणिया १.२८, २.१६९, ३.१९७, ३.२१७, ४.३२९,
४.३३२, ६.४२९, ६.४९५ असोय ४.२४६, ६.४९७ असोयवणसंड ६.४९७ असोया १.१३८ अस्सगीव १.१४३ अस्ससेण १.१३९ अस्सिणी १.२८, १.४७, ४.३४७ अस्सीयबहुल १.४९ अहव्वणवेद १.३९, २.१२३ अहाछंद ३.२२२
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शब्द-सूची
अहिच्छत्ता २.१५६, २.१५८ अहिभड १.२९, १.४३, २.५१-५२, २.१४३, ६.४६१ अहेसत्तमा १.१४०, ३.१८२
(आ) आइगर १.१०-११, १.५६, १.८०, १.११२, २.१८, २.३५,
२.४९, २.६७, २.७९, २.९०, ३.२२०, ४.३६६ आइच्च १.४५, १.११४ आइच्चजस १.१३८ आउकाय १.७५, १.१६६ आउहघरसाला १.११४-११६, १.११९-१२१, १.१२८-१३१,
१.१३६ आगंतगार २.६४ आगंतार १.७६ आगर ६.४५६ आगारभाव १.३९ आगासत्थिकाय' २.१६४-१६५ आणंद १.१०१, १.१४२-१४३, २.१०८, ४.२९५-३०४,
५.३९६, ५.४०१-४०३ आणंदा १.७ आणय १.७९, २.९२, २.९७, २.१०७, ५.४१८ आणयपाणकप्प १.१४ आणुओगिय २.१७५ आदिकर २.२१, २.९२ आदिगर १.५७,२.१२,२.१४, २.५७,२.१३२,२.१३६, ३.२३७,
४.२६६, ५.३८१ आवाड १.१२४ आभरणविहि २.७८,४.३७५ आभिओग १.१६, १.१८-१९, १.२४, १.१३५ आभिओगिअ १.६, १.११, १.१३, १.४६, १.१३४, २.४९,
३.१८७, ३.२१४, ३.२१९, ४.२४७-२५२, ४.२६७ आभिणिबोयिनाण ४.२७६ आभियोग १.६, १.९, २.१२, ३.२२८ आमलकप्प४.२४९ आमलकप्पा ३.२२०, ३.२२३, ४.२४६-२४८, ४.२५३ आभोसहि १.८२ आयंबिल २.१०० आयंबिलवड्ढमाण ३.२३६ आयंबिलवद्धमाण १.८३ आयंसघर १.१३७ आयंसधरग ४.२६० आयरकूव १.१०, १.५६, १.८०, ३.२२२, ४.२५२ आयरक्खदेव १.६, १.१३, १.१५-१६, १.२४, १.४५, ३.२१९,
४.२४६, ४.२५२-२५३, ४.२६५, ४.२६७-२६८, ६.४९९
आयरक्खा १.१५ आयरिय १.३, १.८३, १.८५, २.१७० आयवा ३.२२५ आयाणभंडमत्तणिक्खेणासमिय २.९९ आयार १.७३ आयारघर १.८४ आयावणभूमि २.६१, २.१३१, २.१३३-१३५, ४.२४४ आयावणा ४.२४४ आयावाअसुरकुमार २.१४० आयावाय १.८३ आरण १.७९, २.९२, २.९७, २.१०७, ५.४१८ आरणिया २.१५३ आरब १.१२२ आरबी १.११५ आरभड १.१७ आरामगार १.७६, २.६४ आलंभिया १,८५, २.१३१-१३२ आलमिया ४.३२२-३२४, ४.३५२-३५४, ५.४०५ आलियधरग ४.२६० आवत्त १.१३८ आवसहिया २.१५३ आवाडचिलाय १.१२५-१२६, १.१२८ आवीकम्म १.९० आवेसणसभापव १.७६ आसकिसोरी २.१४१ आसपुर १.१३८ आसम ६.४५६ आसमड १.२९, ६.४६१ आसमपथ १.५२ आसभित्त १.८८, ५.३८१ आसरयण १.१२५, १.१३७, १.१४१ आसरह २.१९, २.७९-८०, २.१०५, ३.१९०, ३.१९३-१९४,
४.२६९-२७५ आसव ४.२७१ आससेण १.५१, १.९५ आसा १.८ आसाढ १.५०, १.५४-५५, १.८८, २.४२, ४.३६१, ४.३८१ आसाढपुण्णिमा २.४ आसाढबहुल १.५ आसाढा १.५ १.२० १.२२ १.१०० आसातणा १.९१ आसिणी १.१०० आसोत्थ १.१०१
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६
आसोय २.४२, ४.३६१
आसोय बहुल १.५७ १.५९
आहाकम्मिय २.२९ २.८२, ४.३७३, ९.३८५
आहायकम्म २.६४
(ड)
इंद १.१५, १.३२, १.४४, १.१०२.१.१३३, २.३०, २.६१,
२.८२, २.१३४, ३.२२४ इंदकुंभ १.२६
इंदज्झय १.१०२, १.११४
इंददत्त १.९५, १.१०१, ६.४९५
इंददिन २.१७१ २.१७३
इंदपुरा २.१०८
इंदपुर २.१७३, ६.४७०,६.४९५
इंदभूइ १.८६–८७, १.१११, १.११३,२.१०३, २.१०५, २.१३५, २.१६४, २.१७१, ४.३०१, ६.४६०, ६.५०२,
इंदभूति १.१०२, १.१११-११२, २.६६, ५.३९३
इंदमह २.१०-११, २.९९, ४.२७०, ५.३८१, ६.४६०
इक्खाग ४.२७०, ५.३८२, ५.३८८
इक्खागकुल १.५५, १.५७
इक्खागभूमि १.५
इक्खागराय १.२७-३०, १.१०१, २.१२०
इक्खुवाड ४.२८५
इङ्गलसोल्लिय ४.२४४
इतिहास १.३९, १.५५, २.१२३
इत्थिनामगोय १.२७
इत्थिरयण १.१३२, १.१३९, १.१४१
इथिलक्खण २.७८, ४.३७५ इत्थीतित्थ १.११३
इनामी १.४३
इत्थीरयण १.१२९, १.१३४-१३५, १.१३७ इब्भ २.६१, २.१०५-१०६, २.१३३, २.१३७-१३९, ३.१८७, ३.१९०, ३.१९६, २.२१६, ४.२७८, ४.२९५ - २९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२३, ४.३२८, ४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१, ४.३५८, ४.३६२, ४.३६९, ५.३८२, ५.४१४, ६.४५०, ६.४६९ - ४७०, ६.४८०, ६.४९४-४९५ इरियासमिइ १.५२, १.७२, १.९० इरियासमिय १.८३, २.१३, २.१९-२०, २.२२, २.३०, २.३७, २.६७, २.८९, २.९२, २.१०४, २.१०७, २.१०९, २.१२८, ३.१८८, ३.२१०, ३.२१४, ३.२२२, ३.२२७, ३.२२९,
३.२३०, ३.२३२-२३३, ४.२८८
इलादेवी १.८ ३.२२६
इस २.१७३
सिगुत्त २.१७२ इसिगोत्तिय २.१७३ इसिदत्त २.१७३
इसिदत्तिय २.१७३
इसिदास २.९८ २.१०४
इसिदिण्ण १.९४
इसिरिसा ४.२८२, ६.४२३
इसिपालित २.१७३
इसिभद्दपुत्त ४.३५२-३५४ इसिवादिय १.७९
इसिवान १.१४२
होम
१.९१
इहापूह १.४४
(ई)
ईरियासहि १.२०, २.९९ ईसत्थ २.७८
ईसर २.६१, ४.२७२, ४.३७५, ६.४५०, ६.४६९
ईसाण १.१४, १.१८, १.२४-२५, १.४६, १.७९, २.११-१२,
२.२०, २.६०, २.६२-६३, २.९२, २.९७, २.१०९, २.१३१, ३.१८९, ३.२१९, ३.२२६, ५.३९२
ईसाणकप्प २.६३
ईसाग १.१५
ईसाणदेविंद २.६२
ईसाणवडेंसय २.६०, २.६२
ईसादि २.६२-६३
ईसिणिय १. ११५ ईहा ४.२७६
(उ)
उंबर ६.४५९
उंबरदत्त ६.४८४ - ४८७ उक्खित्त १.१७
उग्ग ४.२७० - २७१, ५.३८२, ५.३८८, ६.४६० उग्गकुल १.५७
उग्गसेण २.१७, २.२० ३.१९०, ३.१९३ उग्गह ४.२७६ उग्गहअ १.९० उच्चानागरी २.१७३ उच्च
धर्मवानुयोग
२.९९
उज्जुवालिया १.७८
उसेसर ३२०६-२०७ उज्जालिय ३ २०९
पाणज जलपरिद्वावमि१.७२
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शब्द-सूची
उज्जितसेल सिहर १.४९-५० उज्जुमइ १.८२, ४.२७६ उज्जुमति २.१७२ उज्झियअ६.४५९, ६.४६५-४६६, ६.४६८-४७० उज्झिया ६.४५० ६.४५२-४५४ उडुकल्लाणिय १.१३२, १.१३५, १.१३७ उडुवाडियगण २.१७३ उग्णयासण ४.२६० उत्तमपुरिस १.९३ उत्तमा ३.२२५ उत्तर १.९४, १.१७२ उत्तरकुरा १.४९, १.१०० उत्तरकुरु १.१६, ३.२२५ उत्तरकुरुउज्जाण २.१०८ उत्तरकुल ४.२४४ उत्तरखत्तियकुंडपुरसन्निवेस १.५७, १.६९-७० उत्तरड्ढमरह १.१२४, १.१२६ उत्तरठलोगाहिबइ १.१४,१.२४ उत्तरबलिस्सगण २.१७२ उत्तरभद्दव १.१०० उत्तरवेउव्विय १.१३, १.३३, १.४५, १.५८, १.१३६, २.६२,
४.२४७ उत्तरवेयड्ठ १.१२२ उत्तरा१.८ उत्तराभद्दवया १.९९ उत्तरासंग ४.२४७ उत्तरासाढा १.५, १.२१,१.१०० उदग २.१४८, २.१५५,२.१६३ उदगरयण २.५४ उदगसाला २.१४८ उदय १.१०४, २.१४८-१५०, २.१५५-१५६, २.१६४ उदयण ३.२३६-२३७, ६.४७९-४८० उदह १.७९ उदही १.१५ उदाइ १.८८, ५.४०४, ६.४३५ उदायण २.१२० उदापि ४.३७६ उदिओदिय ६.४७२ उदितोदितकुलवंस १.९५, १.१०२ उदुंबरिज्जिया २.१७२ उदंड ४.२४४ उदंडपुर ५.४०५
उद्दवाइयगण १.१११ उद्दायण १.८८, २.१४-१५, २.६९, २.१३७-३९ उद्देसिय १.९१, २.२९, २.८२, २.११४, ४.३७३, ५.३८५ उद्देहगण १.१११, २.१७२ उन्ना २.२० उप्पत्तिणगर १.८८ उप्पय निबय १.१७ उप्पल १.६० उप्पला ३.२२५, ४.३५४-३५५, ६.४६७-४६८ उप्पायपव्वयग ४.२६० उमा १.१४२ उम्बरपायव ४.२४५ उम्मग्गजला १.१२४ उम्मग्गनिमग्गजला १.१३० उम्मुय ३.१९५ उल्लगच्छ २.१७२ उल्लगा १.८८ उल्लगातीर ५.३८१ उवज्झाय १.३, १.८५ उवट्ठाणसाला १.११४, १.११६-११९, १.१२१, १.१२९-१३०,
१.१३४,१.१३६, २.६-७,२.२५,२.४३, २.५८,२.७०-७१, २.७४, २.७७, २.१३८, ३.१९०, ३.१९३, ३.२०९, ३.२२०-२२१, ३.२२६, ३.२३७, ४.२६९, ४.२७२, ४.३५८, ४.३६५, ४.३६७, ४.३६८-६९, ५.३८३, ६.४२१, ६.४२६
४२८, ६.४३३ उवनंदभद्द २.१७२ उवयालि २.३४,२.९७ उवलद्धपुव्व ३.१८७ उववायसभा २.१५, ३.२२३, २.२२८, ३.२३१, ४.२४६, ४.२६३,
४.२६७, ४.२८७, ४.२९४, ६.४९७ उवसंतजीवी ५.३९२ उवसग्ग १.२०, १.३२, १.५२, १.७६-७७, १.९०, १.११३,
२.१२७ उवहाणपडिमा १.८३ उवासगपडिमा २.३९ उसड्ड ४.२६० उसभ १.४-५, १.१९-२०, १.२२-२३, १.९४, १.९७-९८,
१.१००-१०१, १.१०५, १.१०७-१०८, १.११०, १.१३९ उसभदत्त १.५५-५९, २.३, २.११ २.५६. २.५८-५९, २.१०७,
२.१३२, २.१३९, ३.२३७ उसभपुर १.८८,२.१०७, ५३८१ उसभसिरि १.१०८ उसभसेण १.१०१ १.१०५
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धर्मकथानुयोग
उसभासण ४.२६० उसह १.५ उसहकूड १.१२९ उसहचरिय १.५ उसहतित्थयर १.४८ उसहदत्त २.५७ उसुयार २.१०७ २.१२० उस्सपिणी १.३-४, उस्सप्पिणी १.५७-५८, १.८९, १.९२-९४, १.१०४, १.१३९,
१.१४३, ३.२०९
एगसेलग २.१६७ एगिदियरतण १.१४१ एगिदियरयण १.१३२, १.१३६, १.१४१ एणिज्य १.८८ एणेज्ज ५.४०४ एरवय १.४, १.९२-९३, १.९४, १.१०३, १.१३८-३९, १.१४३,
४.२६३ एरावण १.१०, १.५६ एरावणवाहण ४.३०८ एलावच्च २.१७५ । एलावच्छ २.१७१-१७२ एमणासमिइ १.७२, २.९९
(ओ) ओधस्सर १.१५ ओववाइय २.१३२ ओसत्त १.७० ओसधी १.१३८ ओसन्न ३.२२२ ओसप्पिणी १.३-४,१.२२ १.५०, १.५३-५५१.५७-५८,१.८५
-८६ १.९२-९५, १.१०२, १.१२९, १.१३९, १.१४२ ओसह ३.१८७, ३.२१४, ३.२२९ ओहिणाणि १.२२ ओहिणाणि संपया १.२२ ओहिनाण ४.२७६ ीहिनाणि १.४७, १.५०, १.५२, १.८७, १.१०७ ओहिनाणिय १.१०७ ओहिनाणिय १.१०७ ओहिनाणिसंपया १.१०७
कंडरीउ २.१७० कंडरीय १.१६७-६९ कंतारभत्त १.९१, २.२९, २.८२, ४.३७३, ५.३८५ कंद ३.१८७, ३.२१४ कंदभोयण १.९१, २.२९, २.८२, ३.८५ कंदिय १.७९ कंपिल्ल १.१४०, २.१५, २.२०-२१, २.११८ कंपिल्लपुर १.३९-४०, ३.१८९-१९४, ३.२२६, ४.३२७-३२८,
४.३३०, ४.३७२-३७३ कंसकार १.१३२ कक्कसेण १.४ कच्चायण १.११३, २.१२३-१२५, २.१२७-१२८, २.१७१,
२.१७५ कच्छ १.१२२, १.१३८ कच्छकर १.१३२ कच्छगावती १.१३८ कच्छुल्लनारय ३.१९५-१९६, ३.१९९ कठूमुद्दा ४.२४५-२४६ कडगछेज्ज ४.३७५ कडच्छेज्ज २.७८ कणगकेऊ २.१५६, २.१५८, ६.४५५-४५६, ६.४५८ कणगजाल ४.२६१ कणगज्झय ३.२१६-२१८ कणगपुर २.१०८ कणगप्पभा ३.२२५ कणगरह १.९२, ३.२११-२१६, ६.४८५ कणगवत्थु १.१४२ कणगा ३.२२५ कणगावलितवोकम्म १.७३ कणवीर १.१७, १.११६ कणियार ५.३९३ कणियारवण १.७० कण्ण ३.१९१ कण्ह १.१०४, १.११३, १.१४२-१४४, २.१७-१८, २.२०,२.२४
२७, २.२९, २.३१-३७, ३.१९०-१९१, ३.१९७-२०५,
३.२०८-२११, ३.२२६, ६.४२५ कण्हराइ ३.२२६ कण्हवडेंसय ३.२२६ कण्हसह २.१७२ कण्हसिरि १.१३९ ६.४९० ६.४९२-४९३ कण्हा २.१०८ ३.२२६ ३.२३४-२३५ कण्हइरहस्सिया २.१५३
कंचुइज्जपुरिस ४.२७० कंचुइपुरिस २.९९
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________________
शब्द-सूची
कत्तवरिय १.१३९
कत्तिय १.१०४ २.१२-१३, २.४२, ४.३६१
१.४८ १.८६
कत्तिया १.९९-१००
कन्दाहार ४.२४४
कन्दुसोल्लिय ४.२४४
कप्परुक्ख १.४ १.६३, १.७०, १.११५
कप्परुक्खग १.१७
कब्बड ६.४५६
कमल १.६०, ३.२२५
कमलप्पभा ३.२२५
कमलवडेंसय ३.२२५
कमलसिरी ३.२२५
कमला ३.२२५
कलावइ २.१२०
कमा ३.२२४
कम्म १.१९
कम्मजोय ३.१८७
कम्मणजोय ३. १८७, ३.२१४
कम्मेभू१.६९
कम्मार १.७३
पुत्तिय २.१४८
कमंगल २.१२८ कयंगला २.१२३ - १२४ कयमाल १.१२१-१२२
कयमालग १.१३० कलिधरग ४.२६०
हर १.९ araणमालपिय २.१०५ traणमालपियजक्खायण २.११६
कयवम्मा १.९५
करकंड २.१२०
कलंद ५.३९३
कलस १.११६, ४.२६३
कलहंस १.६०
कला १.१९, २.७८, २.९९, २.११५
कलापंडिय २.७८
कलाय ३.२११-२१२
कलायरिय २.८, २.२२, २.७८ ३.२०५, ४.२८५, ४.२८७-२८८
कलिंग २.१२०
कल्लाण ४.२४७, ४.२७४, ४.२८५ कल्लाणफलविवाग १.८६
कविल १.५४, ३.२०२-२०३
कसाय १.९१
कहण्ण ३.२३८
कहा १.८४
काउड्डावण ३.१८७, ३.२१४ काउसग्ग २.४५
काउस्सग्ग २.९१, २.९७
काकंद २.१७३
काकंद २.१७१
काकंदय २.१७३
काकंदिया २.१७३
काकंदी २.९८ - १००, २.५०, २.१०४
काक २.६१
काकणिरयण १.१२४, १.१४१
कागंदय २.१४४
कागणिरयण १.१२४, १.१२९, १.१३२, १.१३७
कागणिलक्खण २.८७, ४.३७५
कादंबग १.६०
कामगम १.१४, १.७९-८०
कामगुण १.९१
कामज्झया ६.४६५, ६.४६९-४७० कामड्ढय २.१७३
कामण १-१११
कामदेव ४.२९५, ४.३०४-३११
काममहावण २.६९, ३.२२४, ५.४०५
कामिढी २.१७२ - १७३
कायंदी १.१४२, २.९७, २.१०३
कायगुत्त १.२० १.७२, १.८३, २.४८, २.११०
कायदंड १.९१
काय लिय १.८२
कायसमिइ १.२० १.७२, २.९९
कारुraण्ण १.१३२
काल १.१३१, २.३, २.१०८ - १०९, ३.२२०-२२१, ३.२२५, ६.४२५-४२६, ६.४२९-४३१, ६.४३३, ६.४३५
कालकुमार ६.४२५, ६.४२७
कालकूड २.११४
कालग २.१७४
कालमुह १.१२२ कालसिरि ३.३२०
कालायित २.१४७ २.१६६ कालिंजर २.१५
कालियदीव ६.४५५-४५६, ६.४५९ काल २.१७५
३.२१९, ३.२२२
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________________
धर्मकथानुयोग
कालिवडेंसग ३.२१९, ३.२२२ काली २.१०८, ३.२१९-२२६, ३.२३४-२३५, ६.४२५-४२६,
६.४३४ कालोदाई २.१६४-१६६, ४.३७६ कामव १.५, १.५५, १.५६-५९, १.६८, १.७६-७७, १.१११,
१.११३, २.८३, २.९२, २.९७, २.१७१-१७५ कासव २.८३ कासवग १.१३२ काससिज्जिया २.१७३ कासवी १.१०२ कासिभूमि २.१५ कासिराय १.२७-२८ कासिवद्धण १.८८ कासिराय २.१२० कासी १.३६, १.८६, ५.४०७, ६.६२४, ६.४३४-४३६ कासीराय १.३६, १.१०१ किंकम २.९२ किंपुरिस १.३२, १.३९, १.७९, १.१०३, १.१२६, ३.१९७-१९८,
४.२६०, ४.२७१, ४.२८३, ४.३०८ किंसुय १.६० किड्डिविया ३.१९३ विढिणसंकाइय ४.२४६ किढिणसंकाइयग ४.२४४ किडिणसंकाइयग ४.२४४ किढिणसंकाइयगहियसभंडोवगरण ४.२४५ किण्णर १.१२६, ३.१९७-१९८ कित्तविरय १.१३८ कित्ती ३.२२६ किन्नर १.३२-३३, १.३९, १.७९, १.१०३, ४.२६०, ४.२७१,
४.२८३, ४.३०८ किविणकुल १.५७ किसुय १.६२ की १.९१ कीत ५.३८५ कीयग ३.१९१ कीयगड २.२९, २.८२, २.११४,४.३७३ कीलावणधाइ ४.२८७, ४.३७४ कीव ३.१९१ कुंजर १.११४ कुंडकोलिक ४.२९५ कुंडकोलिय ४.३२७-३३१ कुंडग्गाम १.५४, १.६३ कुंडपुर १.६६, १.७२
कुंडल १.११४ कुंडला १.१३८ कुंडियायण ५.४०४ कुंडिल २.१७३ कुंती ३.१९५ कुथु १.८७, १.९४-१००, १.१०७-११०, १.१३९-१४०,
२.१२० कुंद १.१७, १.११६ कुंदाइमुत्त १.६० कुंभ १.२८, १.३४, १.३६-३७, १.४१, १.४४, १.४५-४७, १.५५,
१.५९, १.९५, १.१०१-१०२, १.११४ कुंभकारवण ५.४०७, ५.४०९-४१० कुंभग १.३४-३५, १.३७-३९, १.४१-४४, १.४६-४७ कुंभगाम ५.३९८ कुंभय १.३० कुंभार १.१३२ कुक्कुडलक्खण २.७८, ४.३७५ कुचर १.७६ कुज्जक १.१७ कूडागारसाला ३.२२८ कुणाला १.३५, ४.२६९, ४.२७२ कुणालाधिपति १.१०१ कुणालाहिवइ १.२७-२८, १.३५ कुत्तियावण २.३०, २.८२-८३, २.१३९ कुबेर १.१३६, २.१७३ कुमारधम्म २.१७४ कुमारसमण ४.२७०-२८६ कुमुअ१.१३८
कुरुजणवय १.३८,३.१९८ कुरुमइ १.१३९ कुरुराय १.२७-२८, १.१०१ कुलकर १.४, १.८९ कुलगर १.३-५ कुलगरइत्थी १.४ कुलधर ६.४५४ कुलत्थ २.४१-४२ कुवदेवया १.१२६ कुलधम ४.२४४ कूलिग १.१०० कुवलय १.६० कुसील ३.२२२ कुसुमघरग ४.२६०
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________________
शब्द-सूची
१.७९ कुडागार २.१२
कूडागारसाला २.४९-५०. २.६०, ३.२२०, ४.२४३, ४.२५७, ४.२७८-७९, ४.२८३, ४.२८६६.४७५, ६.४९१-७९२ कूणिय २.१८, २.१०५, २१०८ - १०९, २.१३९, २,१४०, ४.२९५,
४.३०४, ४.३१७, ४.३२२, ४.३२८, ४.३३३, ४.३४२, ४.३५०, ४.३६३, ४.३६९-३७१, ६.४२४-४२५, ६.४२९४३६, ६.४६६ कुवद्ददुर १.४०
कुवमह ५.३८२
कूवय २.२२, २.३३
के अद्ध ४.२६८- २६९, ४.२७२ - २७३
केमइ ३.२२५
केकड़ १.१४२
केलास १.१३६, २.९२, २.९७
केवल १.४७, २.६६, २.८४
केवलकप्प १.५६, १.११८, १.१२०, १.१३१, १.१३४, १.१३७,
२.४९, ३.२१९, ३.२२८, ४.२९०
केवलणाण १.७८
केवलणाणी १.८२
केवलनाण १.५२, १.९०, १.१०२, ४.२७६
केवलनाणिसंपया १.८७
केवलनाणी १.४७, १.५०, १.५२, १.८७
केवल वरणाणदंसण १.७८, २.२१-२२, २.३१-३२
केवलवरना णदंसण १.५, १.२१,१.४७, १.५१-५२, १.५४, १.७४, १.८६, १.९०-९१, १९९-१००, १.१०२, १.१३७, २.४३, २.४६, ३.२०७, ३.२१८
केवलि १.३ १.२१, १.७४, १.७८, १.८१, १.९०-९१ १.९४, १.१०४, १.१३७-१३८, २.२९ २.४८, २.६६, २.८२, २.१२४, ३.२१८, ४.२८३, ४.२८८, ४.३५७, ४.३६६, ४.३७५, ४.३९१, ४.३९३, ५.४०८, ५.४१०, ५.४१२, ५.४१८
केवलिनाण १.१०८
केवलिपण्णत्त २.११ २.४२, २.५४, २.१२७, ३.१८७, ३.२१४
२१६, ३.२२९
केवलिपन्नत्त ३.२३२, ४.२७४, ४.२८४
केवलिपरियाग १.५० १.८६, १.९२, ३.२०९, ४.२८८, ४.३७५
केवलिपरियाय १.२३, १.५३, १.१३८
केवलिय २.१५० - १५१
केसर २.११८
केसरि १.१४३, ४.२६४
केसलोय १.९१, २.२० २.११६, २.१४७, ४.२८८, ४.३७५ केसव १.१४३, २.४७, ३.१९५
केसि २.१०-११, २.१८, २.१३७, ४.२७०-२८६ कोंडियायण ५.४०५
को १.६६
कोकम् ३. १८८, ३.२१४
कोउयमंगल २.४७
कोउयमंगलपायच्छत्त १.४२ १.४३
१.६३, १.६५, १.६७, १.१२१,१.१२३, १.१२८ २.३ २.९, २.२५, २.२६, २.६१, २.७२, २.७४, २.७६ - ७७, २.८३, २.१३४, ३.१८५, ३.१९३ - १९४, ३.२१६, ३.२२०, ४.२६९, ४.२७८ कोंचस्सर १.१५
कोंचासण ४.२६०
कोंत १.११४
कोंती ३.१९५, ३.१९८, ३.२०५
कोच्छि २.१७४
११
कोज्ज १.६०
कोज्जय १.११६ कोर २.६१
कोणी १.११९
कोट्ठ ५.४०७
कोण ४.२७३ को १.८२
कोट्ठय २.४९, ३.२२४, ४.२६९, ४.२७१, ४.३१२ - ३१३, ४.३१७ - ३१८, ४.३४७-३४८, ४.३५०, ४.३५४ ४.३५६, ४.३८९, ५.३९३, ५.४०२, ५.४०६-४०७
कोट्ठागार २.१६८ ३.१९५-१९६, ३.२०८, ३.२१२-२१३,
३.२१६, ४.२६८, ४.२७१, ४.२८६ कोडवाणी २.१७२
कोडाल १.५५-५९
कोडिण्ण १.६८, ३.१९१
कोडिन १.१११ १.११३, २.१७२ कोडिय २.१७१
कोडियगण १.१११, २.१७३
कोडिवरिसिया २.१७२
कोडुंबिय २.६१, २.१०५ - १०६, २.१३३, २.१३७-१३९, ३.१८७, ३.१९०, ३.१९६, ३.२१६, ४.२८७, ४.२९५-२९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२३, ४.३२८, ४.३३४, ४.३४८, ४.३५१, ४.३५८, ४.३६२, ४.३६५, ४.३६९, ५.३८२, ५.४१४, ६.४५०, ६.४७०, ६.४८०, ६.४९४-४९५ कोणिय २.६९, २.९९, ३.२३४-२३५, ४.२६४-२६५, ४.२६७
२६८ कोत्तिय ४.२४४
कोरंटक १.१७
कोरव्व १.१३९, ४.२७०, ५.३८२, ५.३८८
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________________
धर्मकथानुयोग
खीरासव १.८२ खीरोदगसमुद्द १.२४ खीरोदयसमुद्द ४.२६३ खीरोयसायर १.७१ खुज्जा १.११५ खुड्डग ४.२६० खुडाग सीहनिक्कीलिय १.८३ खेड ६.४५६ खेमंकर १.४ खेमंधर १.४ खेमपुरी १.१३८ खेमय २.९२, २.९७ खेमलिज्जिया २.१७३ खेमा १.१३८ खेलोसहि १.८२ खेल्लावणधाइ १.६७ खीयरस १.१०१
कोरिट १.६०, १.६३ कोल्ल १.६० कोल्लाअ ४.२९५,४.३०३, ५.३९७-३९८ कोसंबवण ३.२०९ कोसंबिया २.१७२ कोसंबी १.१४०, १.१४२, २.१०८, २.११३, ३.२२६, ३.२३६
२३७, ६.४७९-४८० कोसल १.८६, ५.४०७, ६.४२४, ६.४३४-४३६ कोसलजणवअ ५.४०६, ५.४१३ कोसला १.२९ कोसलिय १.१९, १.२२-२३, १.९७-९८, १.१०५, १.१०८,
१.११०-१११ कोसिय १.६८, २.१७१-१७५ कोहकसाय १.९१
(ख) खंडप्पवायगृहा १.१३० खंद १.३२, २.६१ खंदग २.९२, २.९७ खंदमह ४.२७०, ५.३८१, ६.४६० खंदय २.९७-९८, २.१०३, २.१२३-१३०, २.१३७
२.१६५, ३.१८१, ३.२३६ खंदसिरी ६.४७१-४७३ खंदिल २.१७५ खंदिलाययरिय २.१७५ खंधारमाण २.७८,४.३७५ खग्गपाणि ४.२६८ खग्गपुर १.१३९ खग्गरयण १.१२५ खग्गी १.१३८ खत्तिय १.६, १.२०, १.४७-५९, १.६१-६३, १.६६, १.९५,
१.१०१, २.६६, ४.२७०, ५.३८२ खत्तियकुंड ५.३८१ खत्तिय कुंडग्गाम १.५७-५९, १.६३, ५.३८१-३८३, ५.३८५,
५.३८८ खत्तियपुत्त ५.३८२ खत्तियकुल १.५७ खत्तियपरिसा ४.२८२ खत्तियाणी१.५७-५९,१.६१, १.६३-६७ खलवाड ४.२८५ खिखिणीजाल ४.२६१ खीणरथ १.९४ खीरधाइ १.६७. ४.२८७, ४.३७४
गइकल्याण १.२२ गंग १.८८ गंगदत्त १.१४२, २.१४-१५, २.९२ गंगदत्ता ६.४८४-४८७, ६.४८९ गंगपुर ६.४९४ गंगा १.५९, १.११६, १.१३०-१३१, २.२९, २.८२, २.८७-८८,
२.१३४, ३.१९२, ३.२०४-२०५, ४.२४४-२४५, ४.२६३,
४.३७२, ५.३८१, ५.३८४, ५.४०४, ६.४४८, ६.४६५ गंगादेवीभवण १.१३० गंगेय ३.१९१ गंछिय १.१३२ गंधजुत्ती ४.३७५ गंधदेवी ३.२२६ गंधव १.३९ गंधव्व १.३२-३३, १.१०३, १.१२६, १.१३२, ३.१९७-१९८,
४.२६० ४.२७१, ४.२८३, ४.३०८ गंधव्वकन्ना १.३४, १.३७, १.४१ गंधव्वधरग ४.२६० गंधव्वणिकायगण १.७९ गधार २.१२० गंधारी ३.२०८ गंधावइ ४.२६४ गंधिलावती १.१३८ गंधिल्ल १.१३८ . गंभीर २.२०-२१
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________________
शब्द-सूची
गङ्गदत्त २.४९-५० गज ३.१९५ गजसुकुमाल २.२३
गण १.४७, १.५२,१.१११,२.२० गणग ४.२७८, ४.३६५ गणधर १.९२ गणनायग २.१३३, २.१३९, ४.२७८, ४.३५८, ४.३६५, ४.३६९ गणराय १.८६, ६.४२४, ६.४३४, ६.४३६ गणहर १.२२,२.२४-२५, १.४७, १.४९, १.५२,१.८५,१.१११
११३, २.१७१ गणिपिंडगधारग १.११३ गणिय २.७८,२.१७३, ४.३७४ गद्दतोया १.४५ गद्दभाल २.१२३-१२४ गद्दभालि २.११८-११९ गन्धव्वाणी १.१३ गन्धारी ३.१११ गब्भघर १.२९ गब्भघरग ४.२६० गब्भहरण १.११३ गय १.५५, १.५९, २.२२ गयलक्खण २.७८, ४.३७५ गयसुकुमार २.२६-३३ गरुल १.७०, १.१००, १.१०३, ४.२७१ गरुलवूह २.७८,४.३७५ गरुलासण ४.२६० गवक्खजाल ४.२६१ गवेधूया २.१७२ गह १.७९, २.११, २.२०, २.९२, २.९७-९८ गहग्गंह ४.२४६ गागर १.११४ गाम ६.४५६ गामंतिय २.१५३ गाचितग १.५४ गामरक्ख १.७६ गाह २.७८, २.१०३, ४.३७५ गाहावइ २.१६४ गाहावइपरिसा ४.२८२ गाहावइरयण १.१२७,१.१३२, १.१३४, १.१३७ गाहावति १.१०४ गाहावतिरयण १.१४१ गिद्धपट्ठ २.१२६ गिरिपडण २.१२६
गिरिमह ४.२७० गिरिवर १.११४ गिलाणभत्त १.९१,२.२९, २.८२, ४.३७३, ५.३८५ गिहत्थधम्म १.५२, १.७१ गिहिधम्म ४.२८५, ४.२९३, ४.३६६, ४.३७१ गिहिलिंग १.१०० गीइय २.७८,४.३७५ गीथ २.७८,४.३७४ गुआर १.१३२ गणरयण २.२१ गुणसिल ६.४२२ गुणसिलय १.११२, २.४९, २.६९, २.७९, २.८४, २.८९,-९८,
२.१०२, २.१०४, २.१२३, २.१६३-१६५, ३.२१९, ३.२२३-२२४, ३.२२६-२२८, ३.२३३, ४.२४३, ४.२९०,
४.३४२, ४.३७६, ६.४२१, ६.४३६, ६.४४३ गुणहमड ६.४६१ गुणिपरिसा ६.४२३ गुत्त १.२०, १.७२, १.८३, २.९९, २.११०, ४.२६८ गुत्तपालिय ४.२६८ गुत्तबंभचारिणी ३.१८७, ३.२१४, ३.२२७ गुत्तबंभयारि १.२०, १.७२, १.८३. १.९०, २.१३, २.१८-२०,
२.३०, २.३७, २.४९-५०, २.६७, २.९९, २.१०४, २.१०७,
२.१०९, २.१२८ गुत्तबंभयारिणी ३.१८८, ३.२१०, ३.२२२, ३.२२९-२३०,
३.२३३ गुत्तिदिय १.७२, १.८३, २.९९ गुत्ति १.२१, १.७३, १.९० मुत्तिसेण १.९४ गुलिया ३.१८७, ३.२१४ गूढढंत १.१३९, २.९८ गेय १.१७, ४.२५६, ४.२६४ गेवेज्जविभाण २.२०, २.९२, २.९७, २.१०३, २.१३१ गोट्ठामाहिल १.८८ ५.३८१ गोणलक्खण २.७८, ४.३७५ गोतम १.५५, २.१७४, ४.३४६ गोथुम १.१०१ गोदास २.१७२ गोदासगण १.१११,२.१७२ गोदोहिया १.७८ गोबहुल ५.३९४ गोमड १.२९, २.५१, ६.४६१ गोमायुपुत्त ५.३९३
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१४
गोयम १.८६ १.१११-११३, ११३९, १.१४१, २.५, २,१२, २.१४-१५, २.२० २२ २.३३-३४, २.४९-५०, २.५८, २.६०, २.६६-६७, २.९१-९२, २.९८, २.१००, २.१०३-१०६, २.१०९ २.११९, २.१२४, २.१३०-१३२, २.१३५, २.१४०, २.१४८-१५०, २.१५५-१५६, २.१६४ १६५, २.१७१-१७५, ३.१८०, ३.२०६, ३.२२०, ३.२२२-२२३, ३.२२८, ३.२३१, ४.२४६, ४.२५३, ४.२५६, ४.२५७, ४.२६१, ४.२६८, ४.२८७-२८८, ४.२९०, ४.२९३ २९४, ४.२९९, ४.३०१, ४.३०२, ४.३०४, ४.३४६-३४७, ४.३५३, ४.३५६३६०, ४.३७४, ४.३७६-३७७, ५.३९१-३९५, ५.३९७३९८, ५.४०० ४०१, ५.४१३, ६.४२४, ६.४२६, ६.४३५, ६.४६०-४६३, ६.४६६, ६.४७१-७२, ६.४७६-७७, ६.४७९८०, ६.४८४, ६.४८८, ६.४९० ६.४९४-९६, ६.५००५०२,
गोयमगोत्तकुमार २.१७४ गोमत ५.४०४-४०५
गोयमिज्जिया २.१७३
गोरी ३.२०८, ३.२१०
गोवग्ग १.७३-७४ गोवालिया ३.९८६-१८९
गोविंद २.१७५
गोसाल ३.१८२० ४.३२९-३३०, ४.३३२-३३३, ४.३३६, ३३७, ३-३९३० ५.४०४, ५.४०६-४११, ५.४१३, ५.४१५, ५.४१८ गोसालग २.६४
(घ) घंटा ३.२२८, ४.२४९, ४.२५८
घंटाजाल ४.२६१
घण १.१७
३.२२४ घणिला १.१०२ शुद्ध १.९२
घण्टा १.१४-१५, २.४९
घोस ३.२२४
(च)
१.२२.१.११३
सव्विसंपया १.२२, १.१०६
चउरंगिणी २.४७
चंद १.७९, १.८६, १.११३, १.११४, २.३०, २.४९-५०, २.८२,
२.१३४, ३.२१९, ३.२२५, ४.३७०
चंदकता १.४
चंदकलस १.१६
चंदच्छाय १.२७-२८, १.३०, १.३४-३५, १.१०१
चंदजस १.४
चंदणकलस ४.२५७
चंदणपायव ६.४५९-४६०
चंदना १.८७ ११०२, २.५०, २.५९, ३.२३४-२३६ चंदनागरी २.१७२
चंदपडिमा १.८३
चंदप्पभ १.९६, १.९८-१००, ३.२२५ चंदप्पा १.७०-७१, १.१००, ३.२२५ चंदप्पह १.९५, १.१०९-११० चंदप्पा १.७० चंदवडसय २.४९ चंदवडेंसय ३.२२५ चंदाणण १.९४ चंदाय १.४
चंदसिरी ३.२२५
चंदिम २.११ २.१९, २.९२, २.९७ ९८ २.१०३, २.१०९
चंदिमा २.९८
चंदोतरण ६.४७९
चंदोवतरण ३.२३६-२३७
चंदोचरण ५.४०५
धर्मकथानुयोग
चंपग १.१७, १.२८, १.६० १.११६, २.२२
चंपगवडसय ४.२५७
चंपगवण १.७०, ४.२५९
चंपय १.१०१
चंपा १.३०-३१, १.३३-३४, १.८५, १.१४०, २.५१, २.१०८१०९, २.११४, २.१३७-१३८, २.१४०, २.१४२, २.१४५१४६, २.१५६-१५८, ३.१७९-१८३, ३.१८६-१८८, ३.१९१, ३.२०२, ३.२२४, ३.२३४-२३५, ४.३०४-३०५, ४.३०८, ४.३१०-३११, ४.३६३-३६८, ४.३७० ३७१, ५.३८९३९०, ५.४०५, ६.४२५, ६.४३०-४३३, ६.४३५, ६.४४४४४७, ६.४७० चंपिज्जिया २.१७३ चक्क १.११४ चक्कपुर १.१३९
चक्करयण १.११४-१२१, १.१२३-१२५, १.१२८-१३३, १.१३६,
१.१४१
चक्कलक्खण ४.३७५
चक्कवट्टि १.५७, १.९३, १.९५, १.१२४, १.१३१, १.१३९, १४१, २.१५, २.१२०, ३.२०३, ३.२०५, ४.३७१
१.१३९ चक्कवट्टिमायर १.६३, १.१३९
१.९२
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________________
शब्द-सूची
चक्कवट्टिविजय १.१६, १.१३८ चक्कवह ४.३७५ चक्कवूह २.७८ चक्कहर १.६४ चक्काउह १.१०१ चक्काग १.६० चक्कित्त १.५४ चक्खुकंता १.४ चक्खु दय १.१०, १.५६, १.८०,१.११२, ३.२२०, ४.३६६ चक्ख म १.४ चमर १.१५, १.२५, १.४६, १.१०१, १.१३३, २.३०, २.८२,
२.१३४, ३.२१९, ४.२६५, ४.३७०, ६.४२४-४२५,
६.४९७-५०१ चमरचंचा १:१५, ३.२१९, ३.२२२-२२३, ६.४९७, ६.५०१ चमरुप्पाअ१.११३ चम्मापाणि ४.२६८ चम्मयर १.१३२ चम्मरयण १.१२७, १.१३०, १.१३२,१.१३७,१.१४१ चम्मलक्खण ४.३७५ चरणाणुओग ३.२३४ चरमतित्थयर १.५७,१.८५ चाउज्जाम १.१०३-१०४, २.२७,२.४२, २.५४, २.१६९-१७०,
२.२०८, ४.२७० चाउज्जामधम्म २.१४७, २.१५६ चाउरंत १.७४ चाउरंत चक्कवट्टि १.६४, १.११४, १.११८, १.१२०, १.१२४,
१.१२६-१२७, १.१२९, १.१३१, १.१३८, १.१४०-१४१ चाउब्वण्ण १.७४ चाउस्साल १.९ चाउस्सालग १.९ चामरूक्ख १.१८ चार २.७८,४.३७५ चारअ१.४ चारगसाला ६.४३० ६.४४०-४४३ चारण १.८२ चारणगण १.१११ २.१७२ चारित्तबलिय १.८२ चारुपाणि ४.२६८ चावपाणि ४.२६८ चित्त १.१०० २.१५-१६, २.१७४, ४.२६९, ४.२७०-२७६,
४.२८५, ६.४८१, ६.४८३ चित्तउत्त १.१०४
चित्तंग १.४ चित्तकणगा १.८ चित्तगर सेणि १.३७-३८ चित्तगुत्ता १.८ चित्तधरग ४.२६० चित्तबहुल १.५, १.१९, १.५१-६२ चित्तरस १.४ चित्ता १.८, १.४९-५०, १.९९-१०० चित्ताहि १.४९ चिलाइपुत्त २.१६४ चिलाय १.१२४,२.१५९,२.१६०-१६३ चिल्लणा १.११२ चुअमंजरि १.१७ चुण्णजुत्ति २.७८, ४.३७५ चुण्णजोय ३.१८७, ३.२१४ चुलणी १.१३९, २.१५, ३.१८९-१९२, ३.१८६ चुलणीपिता ४.३१३-३१६ कुलणीपिया ४.२९५, ४.३१२ चुल्लसयग ४.३२४, ४.३२६-३२७ चुल्लसयय ४.२९५, ४.३२२-३२३, ४.३२५ चुल्लहिमवंतगिरि १.१२९, १.१३३-१३४, १.१३७ चुल्लहिमसंतगिरिकुमार १.१२८-१२९ चुल्लाहिमवंत पव्वय १.१२८ चूअमंजरी १.११६ चूयगवण ५.२५९ चूयडिसय ४.२५७ चेइय १.७८ चेइयमह ४.२७०, ५.३८२ चेइय रूक्ख १.१०१,१.१०४ चेड ४.२७८,४.३६५ चेडग ३.२३६, ६.४३३ चेडय ६.४२६, ६.४३२, ६.४३४ चेत्त १.५९, २.४२,२.४८, ४.३६१ चेत्तसुद्ध २.१७४ चेत्तासोयपुण्णिमा २.४ चेलणा ६.४२१ चेल्लणा २.९३, २.९८, ३.२१९, ६.४२२-४२३, ६.४२५,
६.४२७-४३२ चोक्खा १.३९-४० चोद्दसपुव २.२२, २.३७, ३.२१८
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धर्मकथानुयोग
चोद्दसपुब्वि १.४७, १.५०, १.५२, १.८३, १.८७ १.१०६-१०७,
१.२१२, २.१७१ चोद्दसमयत्त १.२३ चोद्दसरयणीसर १.१२८ चोप्पाल ४.२६२ चोरपल्ली २.१६०-१६२, ६.४७१, ६.४७३, -४७५ चोरसेणावइ २.१६०-१६२
(छ) छउमत्थपरियाग १.५०,१.८६, १.९२ छउमत्थपरियाय १.२३, १.५३ छंद २.१२३ छगलपुर ६.४७७ छट्ठक्खमण ४.२४४ छट्टभत्त १.२०, १.४९, १.५२, १.७०, १.७२, १.७८, १.८६ छत्त १.११४ छत्तग्गा १.५४ छत्तपलास २.१२८ छत्तपलासय २.१२३-१२४ छत्तरयण १.१२७, १.१३२, १.१३६, १.१४१ छत्तलक्खण २.७८,४.३७५ छत्ताह १.१०१ छन्निय ६.४७७ छरूप्पवाय २.७८ छलुय १.८८, २.१७२, ५.३८१ छल्ली ३.१८७, ३.२१४ छविच्छेद १.४ छिप १.१३२
३.१९९-२००, ३.२०२-२०३, ३.२०९, ३.२१८-२२०, ३.२२८, ३.२३१, ४.२४६-२४९, ४.२५३, ४.२५७, ४.२६८, ४.२७६, ४.२९०, ४.३०८, ४.३१०, ५.४१३, ५.४१७, ६.४२५, ६.४६२, ६.४६४, ६.४६६, ६.४७०, ६.४७२, ६.४७७, ६.४७९, ६.४८१, ६.४८५, ६.४८८, ६-४९०,
६.४९५-९६, ६.४९८ जंबसिरी ६.४८३ जंभग १.१९, १.४५-४६ जंभियगाम १.७८ जक्ख १.३२-३३, १.३९, १.७९, १.१०३, २.१७-१८, २.३५,
२.३७, २.९३-९५, २.१०५, २.१०७-१०८, २.११०-११२,
२.१४४-१४६, ४२७१, ४.३०८ जक्खकन्ना १३४,१३७.१४१ जक्खदिन्ना २.१७२ जखमह ४.२७०, ५.३८२ जक्खा २.१७२ जक्खायतण २.२० जक्खाययण २.१७, २.१८, २.३४-३५, २.३७, २.९३, २.९५, २.१०५,२.१०७,२.१४४ जक्खसिरी ३.१७९ जक्षिणी १.५०,१.१०२, ३.२१० जगईपब्वयग ४.२६० जजुब्वेद २.५७, २.१२३, २.१३१ जजब्वेय२.३८ जट्ठामूल ४.३६१ जणवयकल्लाणिय १.१३२,१.१३५, १.१३७ जणवाय २.७८, ४.३७४ जण्ण ५.३८२ जण्णदत्त २.१७२ जत्ता २.४० जन्नई ४.२४४ जम १.१४०, २.१३४, ४.२४४ जमालि १.८८, २.१०-११, २.१८-१९, २.९९, २.१०५, २.१३९
३.२२७, ५.३८१,-३८७,५.३८९-३९२ जयंत १.२७, १.१४३, २.२९८, २.१७१ जयंति १.७, १.१००, १.१३९, १.१४२, २.१७४, ३.२३६-२३९ जय १.१०१, १.१३९, २.१२० जयद्दह ३.१९१ जया १.९५, १.१३९ जरासंध १.१४३ जरासंघसुय ३.१९१ जलकंत ३.२२४
जइपरिसा ६.४२३ जउव्वेंय १.५५,३.१७९ जंतपीलग १.१३२ जंबवई २.३४, ३.२०८, ३.२११ जंबु १.१०१, १.११३, २.१६३-१६४, २.१७१-१७२, २.१७४
१७५, ६.४५९, ६.४४३-४४४ जंबुद्दीव १.३-६, १.११,१.२३, १.२६-२८,१.३३, १.४३-४५१.४८
१.५१, १.५४-५८ १.६९, १.८९, १.९२-९५, १.१०२, १.१०४, १.११८, १.१२०, १.१२६, १.१२९, १.१३८१४३, २.१२, २.१४, २.१८, २.२०, २.४९, २.५०, २.६०, २.६२, २.६९, २.७५, २.८७, २.८९, २.१०५, २.१३६, २.१४४-१४५, २.१६७, ३.१८२, ३.१८९, ३.१९६-१९७,
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शब्द-सूची
जलणप्पवेस २.१२६ जलप्पभ ३.२२४ जलवासी ४.२४४ जलवीरिय १.१३८ जलाभिसेयकठिणगाभूय ४.२४४ जल्लोसहि १.८२ जवणदीव १.१२२ जवणिज्ज २.४० जसंस१.६८ जस १.५२, १.१०१ १.१११ जसम १.४ जगभट्ट १.११३, २.१७१-१७३, २.१७५ जसवंस२.१७५ जमवती १.६८,१.१३९ जसा २.१२० जसोया १.६८ जसोहरा १.८ जाइ१.६० जाइमंडवग ४.२६० जाइसरण १.४४, २.८९ जाइस्सर २.१७१, २.१७३ जाईसरण २.८७,२.११५, २.१२० जाणविमाण ४.२४९-२५३, ४.२५६ जाणसाला २.४४, २.१६८, ४.३६८, ६.४२२ जातकम्में ३.२३० जातीसरण २.११ जायकम्में १.२८ जालंधर १.५५-५९ जालंधरायण १.५५, १.५७ जलधरग ४.२६० जालघरय १.२९ जाला १.१३९ जालि २.३४, २.९७-९८, ३.२०८ जालीकुमार २.९८ जावय ४.२६६ जिण १.१०, १.२१-२२, १.५०, १.५२, १.५४, १.५६, १.७८,
१.८०-८१, १.८३, १.८७, १.९०, १.९८, १.१०१, १.१०४, १.१०६, १.१०८, १.१११, १.११२, २.१२४, ४.२६६,
४.२८८ जिणधर ३.१९३ जिणधदत्त ३.१८२-१८५
जिणदत्तपुत्त ६.४४५, ६.४४७ जिणदास २.१०४, २.१०८ जिणपडिमा ४.२६५-२६७ जिणपालिय २.१४०, २.१४६-१४७ जिणमाया १.९५ जिणरक्खिय २.१४०, २.१४५-१४६ जिणवर १.६९-७०, १.९५, १.१००-१०२ जिणवरिंद १.१००-१०१, १.१०८ जिणवसह १.९४ जिणसासण २.११९ जिणिद १.९८, १.१००, १.१०८ जिणिदपण्णत २.१४७ जिण्ज्जाण ६.४३६, ४.४३९-४४० जिणेसर १.१०९ जियकप्पिय १.५१, १.७१ जियभय १.१०.१.५६ जियशग १.९४ जियसत्तु १.२७-२८, १.३९-४४, १.४७, १.९५, १.१०१, २.२२,
२.५१-५५, २.९८,-९९,२.१०४, २.१०८, २.१५६, ३.२२०, ३.२३३-२२४, ३.२२६, ४.२६९, ४.२७१-२७२, ४.२९५, ४.३०४, ४.३१२, .३१७, ४.३२२, ४.३२७-३२८, ४.३३२
३३३, ४.३४७-३४८, ४.३५०, ६.४७९ जियारी १.९५ जीयकप्पित १.९० जीयकप्पिय १.४९ जियधर २.१७५ जीव २.१२५, ३.२३८-२३९ जीवकाय २.१६४ जीवणिकाय १.२२, २.१६४ जीवदय १.१०, १.५६, १.८०, ३.२२०, ४.३६६ जीवनिकाय १.६८, १.९१ जीवनिकाय धम्म १.९१ जीवपएसिय १.८८, ५.३८१ जुग १.११४ जुगंतकडभूमि १.५०, १.८८ जुगंतकरभूमि १.२३, १.४८ जुगबाहु १.९५, २.१०७ जुण्णकुमारी ३.२२०, ३.२२६ जुत्त ४.२६८ जुतपालिय ४.२६८ जुत्तिसेण १.९४ जुत्ती २.१७
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धर्मकथानुयोग
जुद्ध २.७८, ४.३७५ जुद्धाइजुद्ध २.७८, ४.३७५ जुयंतकडभूमि १.५३ जुहिठिल्ल ३.१९१, ३.१९८, ३.२००, ३.२०६-२०७, ३.२०९,
जूय १.११४, २.७८, ४.३७४ जूहिय १.६० जूहियामंडवग ४.२६० जेट्ठामूल २.४२, २.८६-८८ जेहिल २.१७४ जोइस १.१४, १.१९, १.२८, ४.२५३ जोइसराय २.४९ जोइसिय १.१५, १.१८, १.२४, १.४७, १.६५-६६, १.६९, १.७८-७९, २.२४७ जोणय १.१२२ जोणिय १.११५ जोतिसामयण २.१२३ जोतिसिय १.७४ जोह ५.३८२
झय १.५५, १.५९ झस १.११४ झुसिर १.१७
णंदुत्तरा १.७ णक्ख २.१७४ णक्खत्तदेवगण १.७९ णग्गोह १.१०१ णट्ट १.१७, ४.३७४ णट्टमालग १.१३० णडाविहि १.१७,१.१३१, ४.२५४-२५६, ४.२६४ णन्दावत्ता १.१७ णमि १.९५, १.९७, १.९९, १.१२९ णमोकार १.३ परिंदचंद १.११९ णलिण १.९२, १.१३८ गलिणगुम्म १.९२ णवणिहि १.१३० णवणि हिवद १.१३१ णवमालिय १.१७, १.६०, १.११६, १.१२५ णवमालियामंडवग ४.२६०। गवमिया १.८ णाग १.१५, १.७० णागकुमार १.१२६-१२८ णागजुणायरिय २.१७५ णागदंत ४.२५८ णागदत्ता १.१०० णागपह१.७९ णागरुक्ख १.१०१ णागलयामंडवग ४.२६० णागासुर १.११७ णाणिद १.७० णाडग १.१३२,११३५, १.१३७ णाडगविहि १.१३१ णाणबलिय १.८२ णाभि १.४, १.५, १.९, १.९५ णामंकियस र १.११८ णामेंहियंक १.११८,१.१२० णायकुलविणिक्वत्त १.६८ णायपुत्त १.६८, २.६४, २.१६५ णायसंड १.७० णायसंडवण १.७२ णाया ५.३८२ णायाधम् कहा ६.४४४, ६.४४७, ६.४४९, ६.४५९ णालंदा २.१४८ णालियाखेड्डु ४.३७५
ठइत्तय ४.३७३ ठविय २.२९, २.८२ ठिकल्लाण १.२२
(ण) णंगल १.११४ णंदण १.१४२ णंदणवण १.१६, १.२४, ४.२६४ णंदा १.७,४.२६२ णंदापुक्खरिणि ४.२६५ णंदावत्त १.११४, १.११९ णंदिघोस १.१५ णंदियावत्त १.१४,१.७९, १.११६ णदिवद्धण १.६८ णंदिवद्धणा १.७ णंदिस्सर १.१५ गंदीसक्ख १.१०१ गंदीसखर १.१३, १.२५
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शब्द-सूची
णिक्कसा १.१०४ णिग्गोह १.२१ णिण्हग १.८८ णिमेग्मजला १.१२४ णियंठ १.१०४ णियंठीपुत्त १.१०४ णिव्वत्तिकरा १.१०० णिव्वेयणी १.८४ णिसठ २.२०, ४.२६४ णिस्संग १.१७ णिहिरयण १.१३०-१३१, १.१४१ णीरय १.१७ णीलपाणि ४.२६८ णीलवंत ४.२६४ मिपास १.११९
में १.९७-९९ सप्प १.१३१-१३२
(त) तंतुवायसाला ५.३९५-३९७ तंबोलिमंडवग ४.२६० तंबोलिय १.१३२ तच्चा ६.४६४ तडागमेंह ५.३८२ तत १.१७ तत्तवइ २.१०८ तमें। १.१४४ तथासुहा १.६२ तयाहार ४.२४४ तरुणीपडिकम्में २.७८, ४.३७५ तरुणपडण २.१२६ तलवर २.६१, २.१०५-१०६, २.१३३, २.१३७-१३९, ३.१८७,
३.१९०, ३.१९६, ३.२१६, ४.२७२, ४.२७८, ४.२९५, ४.२९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२३, ४.३२८, ४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३५१, ४.३५८ ४.३६२, ४.३६५, ४.३६९ ५.३८२ ५.४१४ ६.४५० ६.४६९-४७०
६.४८०, ६.४९४-४९५ तवभवमेंरण २.१२६ तवसीलव्वयगुणवेरमेणपच्चक्खाण १.३३ तस २.६४-६५, २.११३, २.११८, २.१४८-१५०, २.१५२, २.१५४-१५५ तसकाइय १.९१ तसकाय १.७५, २.१५३, २.१६६
तसजीव १.७५ तामरस १.६० तामलि २.६०-६३ तामलित्तिया २.१७२ तामलित्ती २.६०-६३ तायत्तीस १.१५-१६, १.२४, ४.३०८, ६.४९९ तायत्तीसग १.१०,१.५६ तारय १.१०, १.५६, १.८०, १.१४३, ४.२६६ तारा १.७९, १.१३९, २.११, २.२०, २.३०, २.८२, २.९२,
२.९७-९८,२.१०३,२.१३४ ताराइण २.५० तालपिसाय १.३१, १.७३ तालपिसायरूव १.३२ तालपुडविस ६.४३० तावत्तीस १.८० तावस २.१७१,२.१७३ तिगिच्छ ४.२६४ तिगिछी २.१०८ तिगुत्तिगुत्त २.११४, २.११८ तिष्ण १.१०, १.८०, ४.२६६ तितालाउय ३.१७९-१८२ तित्थ १.६९, १.८८, १.९५ तित्थंकर १.९२ तित्थकर १.५५, १.९३-९५, १.१०० तित्थकरातिसय २.५८ तित्थगर १.६-७, १.२४, १.५४, १.५६, १.८०, १.८५, १.९४
९५, १.१०१-१०२, १.१०४, १.११२, २.३५, २.७९.
२.९०, २.१३२, २.१३६, ३.२१९, ३.२२०, ४.२६६ तित्थगरचिइगा १.२४-२५ तित्थगरणामगोत्त १.८८ तित्थगराइसय २.१४,२.१३९, ३.२२१, ३.२२७ तित्थप्पवत्तय १.१०२ तित्थयर १.६-११, १.१३-१४, १.१८-१९, १.२३, १.२४,
१.२७-२८, १.५५-५६, १.६९, १.९२, १.९४, १.९८, १.१००, १.१०२-१०३, १.१०८, १.१४०, २.१०७-१०८,
तित्थयारजन्माभिसेयमहिमा १.२८ तित्थयरजम्मणाभिसेय १.६६ तित्थयरनामगोथ १.२७ तित्थयारनामबंध १.४८ तित्थयरमाया १.६-९, १.१३, १.६१ तित्थय रामिमुह ४.२४७, ४.२५४ तित्थयराभिसेय १.१६, १.१८, १.४६, १.६६
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२०
धर्मकथानुयोग
थावच्चापुत्त २.३४, २.४०, २.४२-४३, २.९९, २.१०४ थावर १.७५, २.६४-६५, २.११३, २.११८, २.१४८-१५०,
२.१५४-१५५ थिमि २.२० विरगुत्तखमासखमण २.१७४ थूभमह २.९९, ५.३८२ थूभकरंडउज्जाण २.१०७ थूलभद्द २.१७१-१७२, २.१७५ थेरावली २.१७१-१७२ थोव १.८६
तित्थाभिसेय १.३९-४० तित्थाहिवत्त १.५४ तिदंडिवय १.५४ तिन्न १.५६ तिमिसगुहा १.१२१-१२५, १.१३० तिरिक्खजोणिय १.५२,१.९० तिरिथजंभग १.६४ तिलग १.११६ तिलय १.१७, १.६०,१.१०१,१.१४३ तिविट्ठ १.१४४ तिविठ्ठ १.१४२-१४३ तिसला १.५७-५९, १.६१, १.६३-६८, १.९५ तीसगुत्त १.८८, ५.३८१ तीसभ६ २.१७२ तुगिय २.१७५, ४.२८९-२९० तुंगियायण १.११३, २.१७१ तुच्छकुल १.५७ तुच्छजीवी ५.३९२ तुच्छाहार ५.३९२ तुरगवर १.११४ तुसिया १.४५ तेउकाय १.७५, २.१६६ तेउलेस्सा ५.३९९ तेंदुग १.१०१ तेथलि ३.२१३, ३.२१६, ६.४९५ तेयलिपुत्त ३.२१२-२१८ तेयलिपुर ३.२११-२१२, ३.२१४, ३.२१७-२१८ तेथलेस्सा २.१६६ तेयवीरिय १.१३८ तेरासित ५.३८१ तेरासिय १.८८ तेलियापिया ४.३५० तोअधारा १.१८ तोयधारा १.६-७,१.१८ तोरण ४.२४९, ४.२५८-२५९ थणिय १.१५, १.७९
दंड १.२९, १.९१, १.११४, ४.२६९, ६.४२७, ६.४८१ दंडनायग २.१३३, २.१३९, ४.२७८, ४.३५८, ४.३६५, ४.३६९ दंडनीति १.४ दंडपाणि ४.२६८ दंडरयण १.१२३, १.१३२, १.१३६, १.१४१ दंडलक्खण २.७८, ४.३७५ दंडवीरिय १.१३८ दसणबलिय १.८२ दक्ख १.१५ दक्खिणकुल ४.२४४ दगपासायग ४.२६० दगमंचग४.२६० दगमंडव ४.२६० दगमट्रिय २.७८, ४.३७५ दगमालग ४.२६० दट्टी विससप्प २.१४३ दबधणु १.४ दढनेमि २.३४, ३.२०८ दढपइन्न ४.२८८ दढरह १.४,१.९५, २.१७ दढाऊ १.१०४ दत्त १.४, १.१४२, १.१४४.२.४९-५०, २.१०८, ६.४९०,
६.४९२-४९३
थमिअ २.२१ थवई रयण १.११९ थारुगिणिया १.११५ थालाई ४.२४४ थावच्चा २.३५, २.३६-३७
दद्रदुखडिसय ४.२९०, ४.२९४ दधिवण्ण १.१०१ दन्तवाणिय ४.२७५ दन्तुक्खालिय ४.२४४ दप्पण १.१७, १.११६ दम गपुरिस ३.१८५-१८६ दमघोससुय ३.१९१
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शब्द-सूची
दमणग १.१७, १.२८ दमणय १.६० दमदत ३.१९१ दमिली १.११५ दरिद्रदकुल १.५७ दरिमह ४.२७० दवसोय २.३८ दसण्ण २.१५, २.१२० दसण्णभद्द २.१२० दसधणु १.४, २.१७ दसपुर १.८८, ५.३८१ दसरह १.४, २.१७ दसार २.१७, २.२०, २.३४-३५, २.४७, ३.१९०, ३.१९१,
३.१९३, ३.१९५, ३.१९९ दसारचक्क २.४७ दसारमडल १.१४२-१४३ दसारवंस १.९२ दहमह ५.३८२ दहिमुहग १.२५ दहिमुहगपव्वय १.२५ दहिवासुयमंडवग ४.२६० दाणधम्म १.३९-४०, २.३८ दाणव १.३२-३३, १.३९, १.४५, १.१२६, ३.१९७-१९८,
दिण्ण १.९५, १.१०१-१०२ दिन्न २.१७१, २.१७३ दिव्ब २.५२, १.९० दिसा १.१५ दिसाकुमार १.७९ दिसाकुमारी १.६-१०, १.१४, १.२८ दिसापोक्खियतावस ४.२४३ दिसापोक्खी ४.२४४ दिसासोवत्थिय १.५४ दीव १.१५, १.७९ दीवायण १.१०४, ३.२०९ दीविगमड १.२९, ६.४६१ दीहदंत ११३९, २.९७-९८ दीहबाहु १.९५ दीहमद्द २.१७२ दीहसेण २.९८ दीहासण ४.२६० दुआउक्ख १.१०४ दुज्जोहण ३१९१, ६.४८१-४८२ दुतितिक्ख १.१०४ दुपय ३.१९६ दुपस्स १.१०४ दुब्भिक्खभत्त १.९१, २.२९, २.८२, ४.३७३, ५.३८५ दुम २.९८ दुमसेण १.१४२, २.९८ दुम्मुह २.२२, २.३३, २.१२०, ३.१९५ दुय १.१७ दुरणुचर १.१०४ दुवय ३.१८९-१९४. ३.२०७ दुविठ्ठ १.१४२-१४३ दुब्विभज्ज १.१०४ दुसमदुसमा १.५०, १.८६ दुसमसुसमा १.५४ दुस्समसुसमा १.५५ दूइपलासय २.९७, २.९५'४.२९९, ४.३००, ६.४६५ दूतिपलास २.३, ४.३६० दूय २.१३३, ४.२७८, ४.३५८, ४.३६९ दूयसधिवाल ४.३६५ दूसगणि २.१७५ दूसमसूसमा १.१५३ देव १.३२, १.३९, १.४५, १.१००, १.१२६, १.१२८, ३.१९७
१९८, ४.२८३, ४.३०८
दाणविद १.४६, १.९५, १.१४३ दाणसाला ३.१८६ दाम ६.४२७ दामदुग १.७३-७४ दारुअ१.१०४, २.२२, २.३३ दारुइज्जपव्वयग ४.२६० दारुमड १.१०४ दासीखव्वडिया २.१७२ दाहिड्ढभरह २.६९, २.८७ दाहिणड्ढभरह १.५४, १.५६, १.१३५, २.१७, २.३४, २.७५,
दाहिणड्ढभरहवास ३.१९५, ३.१९९ दाहिड्ढलोगाहिबइ १.१०, १.५६, ४.३०८ दाहिणधभरह १.५५ दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेस १.५४, १.५७ दाहिणवेयावलि ३.२०९ दिळंतिय १.१७ दिणयर १.५५, १.५९, १.७३-७४
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धर्मकथानुयोग
देवई १.१०४, १.१४२, २.२३-२६, २.२८, २.४७, ३.२०८ देवउत्त १.९४, १.१०४ देवकन्ना १.३४, १.३७, १.४१ देवकुमार ३.२२८,४.२५४-२५६ देवकुमारिया ४.२५४ देवकुमारी ४.२५५-२५६ देवगुरू १.१०० देवकूल १.६४ देवढिरवमासमण २.१७४, २.१७५ देवणिकाय १.६९ देवदत्ता ३.१८८, ६.४४५-४४६, ६.४५९, ६.४९०, ६.४९२
४९४ देवदिन्न ६.४३९-४४० देवदूस १.२०, १.२४, १.४९, १.५२,१.७२, १.९०,२.१३, २.४९,
२.६२, ३.२२२-२२३, ३.२३१, ४.२६५ देवपरिसा १.७१५६.४२३ देवरमण २.१०८, ६.४७६ देवसम्म १.९४ देवसरिस २.५० देवसेण १.८९-९०,२.२२, ५.४१४ देवाणंद १.९४ देवाणदा १.५५-५९,१.८६,२.२४, २.५७-५९, ३.२१५, ३.२२७,
३.२३७, ३.२३९ देवासुर १.१०३, ४.२७१ देविंद १.४६, १.८०, ६.४२५, ६.४३६ देवी १.९५ देवेसर १.९४ देवोववाय १.१०४ देसणा १.९१ देसावगासिय २.१५३ देसिगणिखमासमण २.१७४ देकिरित ५.३८१ दोकिरिय १.८८ दोच्चा ६.४६४, ६.४६९ दोण ३.१९१ दोणमुह ६.४५६ दोवई ३.१७९, ३.१८९-१९६, ३.१९८-२००, ३.२०२-२०३,
३.२०५-२०७ दोवारिय ४.२७८, ४.३६५ दोसबंधण १.९१ दोसिणाभा ३.२२५
(ध) धटुज्जुण ३.१९९, ३.१९२, ३.१९४ घट्टज्जुणकुमार ३.१९०-१९१
धण २.१५६-१५९, २.१६१-१६४, ६.४३६, ६.४३८-४४४,
६.४५०, ६.४५२, ६.४५४ धणगिरि २.१७३-१७४ धणगोव २.१५९, ६.४५० धणडूढ २.१७२ धणदेत्त १.१४२ धणदेव २.१५९, ६.४५०, ६.४९५ धणपाल २.१०८, २.१५९, ६.४५० धणरक्खिय १.१५९, ६.४५० धणवइ २.१०४, २.१०८, ६.३६२ धणावह २.१०७ धण १.११४ धणुवेय २.७८ धणव्वेय ४.३७५ धण्ण २.९८-१०४, २.१०६ धण्णंतरी ६.४८५ धन्न १.१०१ धन्ना ४.३१७-३१८,४.३२०-३२१ धम्म १.३ १.२२ १.९४-९६ १.९८-१०० १.१०३-१०४
१.११२ २.३ २.११-१२ २.१६ २.१८ २.२१, २.२४ २.२७, २.३५-३६, २.३८-४०, २.४२-४३, २.४८४९, २.५४-५५, २.५९, २.६४-६८, २.८०, २.९६, २.९९, २.१०२, २.१०५, २.१०७-१११, २.११४, २.१२१, २.१२७, २.१३१-१३२, २.१३५, २.१३७, २.१५०-१५१, २.१५८, २.१६३, २.१६५, २.१६७-१६९, २.१७४,-१७५, ३.२१४
२१६, ३.२२९, ३.२३२, ४.२७०, ४.२७४, ४.२८४,-२८५ धम्मकहा २.११, २.६९, २.८०, २.१०२, २.१०४, २.१२७,
२.१३८, ३.२१९, ३.२२७-२२८, ४.२८५ धम्मघोस २.१०-११, २.१०५, २.१०८, ३.१७९-१८१ धम्मज्झय १.९४ धम्मणायग १.१० धश्मतित्थ १.४६, १.७१, १.१०४ धम्मत्थिकाय २.१६४-१६५ धम्मदय १.१०, १.५६, ४.२६६, ४.३६६ धम्मदेसय १.१०,१.५६, १.११२, ४.२६६, ४.३६६ . धम्मनायग १.५६, ४.२६६, ४.३६६ धम्ममित्त १.९५, १.१०१ धम्मरयण १.१२२ धम्मरुद २.१०८, ३.१७९-१८१ धम्मवरचक्कवट्टि १.६४ धम्मवरचाउरतचक्कवट्टि १.१०,१.१७, १.५६ १.८०, १.११२,
३.२२०, ४.२६६, ४.३६६ धम्मवीरिय २.१०८
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शब्द-सूची
धम्मसारहि १.१०, १.५६, १.११२, ४.२६६, ४.३६६ धम्मसीह १.९५, १-०१, २.१०८ धम्मसेण १.१४२ धम्मा ३.२२६ धम्मायरिय १.८८, १.१४२-१४३, २.१६५, २.१७०, ४.२७३,
४.२८५-२८६ धम्मिया ३.२३७ धर १.९४-९५, ३.१९१ धरण १२६, ११३३, २.२१, २.३०, ३.२२४, ४.२६५ ४.३७०,
६.४९० धरणि १.१०२, २.८२, २.१३४ धरणिधरा १.१०२ धाइयऊक्ख १.१०१ धायइसंड १.९३, २.१३६. ३.१९५, ३.२००, ३.२०२-२.३ धायइसंडदीव १.१३९, ३.१९९ धायति १.५२ धारणा ४.२८६ धारिणी १.२६, १.३९, १.१०२.२.२०-२१, २.३३-३४, २.५१,
२-६९-७७, २.८०, २.८५, २.८९, २.९७-९८, २.१०५.
१०६, २.१३३ ४.२४६, ४.३६५, ६.४९१ धिइ ३.२२६ धिडहर २.९२, २.९७ धिक्कार १.४ धीवर १.१३२ धमकेतु १.७९ धूमप्पभा ५.४१६ धूममह ४.२७०
नंदिपुर ६.४८८ नंदिफल २.१५७-१५८ नंदिमित्त १:४७ नंदियावद १.८० नंदियावत्त २.८४ नंदिगय ३.१८१ नंदिलखवण २.१७५ नंदिल्ल २.१७५ नंदिवद्धण १.८६, ६.४८१, ६.४८३ नंदिसुत्त २.१८५ नंदिसेण १.९४ नंदिसेणिया ३.२३३ नंदी ४.२७६, ६.४५९ नंदीसर १.४७-४८ नंदीसरवर १.२५, ४.२५२ नंदीसरवरदीव १.२८ नंदुत्तर ३.२३३ नक्खत्त २.११, २.२०, २.९२, २.९७-९८, १.१०३, २.१७४-१७५ नगर ४.२७८, ४.३६५, ६.४४२ नगरगुत्तिय २.१६२, ४.२७८-२८०, ६.४४०-४४१ नगरमाण २.७८, ४.३७५ नग्गई २.१२० नग्गोह १.२२ नट्ट २.७८ नट्टविहि २.१२, २.४९, २.५०, २.२६०. २.६२. ३.२२६, ३.२२८,
४.२४३, ४.२५३, ४.१६४, ६.५०१ नट्टसाला ४.२८५ नमि १.९४, १.१००, १.१०५ १.१०७, १.११०, २.५५-५७,
२.१२० नमिनाह १.१०९ नम्मुदय २.१६४ नरनाहत्त १.५४ नरिंद १.४५, १.६३ नलवण १.८३ नलिणिवण २.१६७-१६८ नलिणीगुम्म २.१०८ नलियाखेड्डु २.७८ नवमिया ३.२२५ नाइल २.१७१ माइलकूल २.१७५ नाइली २.१७४ नाग१.२८, १.३२, १.६०, १.८६, १.१००, १.१०३, १.१३३,
२.२२, २.२४, २.२५, २.३०, २.८२, २.१३४, २.१७२, २.१७४, ४.२७१, ४.२८३
नईमह ४.२७०, ५.३८२ नउल ३.१९१ नंद १.४७, १.५०, १.१०४, १.१४३, ४.२९०, ४.२९२-२९३ नंदण १.५४, १.९५, १.१४३-१४४, २.६०, २.१०८, २.११३ नंदणभद्द २.१७२ नंदणवण २.१७, २.१९, २.२०-२१, २.३४-३५, २.३७, २.१०८,
३.२१०-२११, ४२६०, ४२६८ नंद,मन १.१४३ नंदवई ३.२३३ नंदा १.९५, २.६९, २.९८,३.२३३-२३४, ४.२६२-२६३, ४.२६६,
४.२९१-२९४, ६.४२७, ६.४४५-४४६ नंदापुक्खरिणि ४.२६७ नंदिज्ज २.१७२ नंदिणीपिया ४.२९५, ४,३४७-३४९
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२४
धर्मकथानुयोग
नियाणभूमि १.१४२-१४३ निरंभा ३.२२४ निरुत्त २.१२३ निवयउप्पय १.१७ निसढ १.२६, २.१७-१९, ३.१९५ निसुंभ १.१४३ निसुंभा ३.२२४ नीति १.२९ नीलवंत २.१६७ नीलासोग २.१०८ नीलासोय २.३८, २.४०, २.४३ नीहारिम २.१२७ नेमि १.९४, १.१००, १.१०९
नागकन्ना १.३४, १.३७, १.४१ नागघर १.२९-३० नागजणय १.२९ नागज्जुण २.१७५ नागदत्त २.१०८ नागपुर ३.२२५ नागभूय २.१७२ नागमह ४.२७०, ५.३८१ नागमित्त २.१७२ नागसिरी ३.१७९-१८२, ३.२०७ नागहत्थि २.१७५ नागिद १.४६ नाभि १.४-५ नामकरण १.२८ नामुदय २.१६४ नाय ४.२७०, ५.३८८ नायकुमार १.४७ नायकुल १.६४-६५ नायकुलचंद १.७१ नायपुत्त १.७१, २.१६४, ४.३६०, ५.४०३ नारय १.१०४ नारायण १.१४२ नारिकता ४.२६४ नारूअ १.१३२ नालंदा १.८५, ५.३९५-९७ निक्खित्तसत्थ १.९४ निगम ४.२७८,४.३६५, ६.४४२ निगंथ १.२२, १.२६, १.३२-३३, १.८२, १.८५, १.८७, १.९०
९२ निग्गंथा १.२२, १.८७ निघंट १.३९, १.५५, २.१२३ निजुद्ध २.७८,४.३७५ निज्जर ४.२७१ निज्जीव २.७८, ४.३७५ निन्नय ६.४७२ निप्पुला १.१०४ निब्बुहुभंडसार ६.४६९ निमज्जग ४.२४४ निम्मम १.१०४ नियइपव्वयग ४.२६० नियतिवाद ४.३२९ नियाग २.११४ नियाणकारण १.१४२-१४३
पइट्ट १.९५ पईव ३.१९५ पउम १.९१, १.९८, १.१०१, १.११४, १.१३९, १.१४२, -१४३,
२.१०८-१०९, २.१७४, ३.२२६, ४.२६३ पउमगम्म १.९२, २.१०८ पउमजाल ४.२६१ पउमद्धय १-९२ पउमनाभ ३.१९५, ३.१९६-१९७, ३.१९९-२०३ पउमनाह ३.२०४ पउमपभ १.९५-९६, १.१००,१.१०९ पउमप्पह १.९८ पउमभट्ट २.१०८ पउमवडेसय ३.२२५ पउमसर १.५५, १.५९, १.७०, १.७३-७४ पउमसिरी १.१३९ पउमसेण २.१०८ पउमा १.९५, १.१०२, २.१७४, ३.२२५ पउमावई १.८, १.२९-३०, २.१८, २.३८, २.१०८-१०९,
२.१६७, ३.२०८-२११, ३.२१३, ३.२१६, ३.२२५, ३.२३३,
६.४२५, ६.४३१, ६.४३५, ६.४७९-४८० पउमावती २.४४, २.१३७-१३९ पउमासण ४.२६० पउमुत्तर १.१३९ पउमुप्पल १.६० पउमप्पलपिहाणा १.२९, १.४३ पउर १.२८ पए सि ४.२६८-२६९, ४.२७१-२८६ पओप्पअ ५.४१४ पंकप्पभा ५.४१६, ६.४२६, ६.४३५
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शब्द-सूची
पंचजम २.३८ पंचतिथकाय २.१६५ पंचनियम २.३८ पंचमहव्वय २.९२, २.११५, २.११८, २.१४७, २.१५६, ६.४४७ पंचमट्टि लोय १.७० पंचवण्ण १.१०० पंचसमिअ २.११८ पंचाणुब्बय २.३८, २.५४, २.१०५-१०६, ३.१८७, ३.२१५,
३.२१८, ४.२४५, ४.२९३, ४.२९६, ४.२९८, ४.३१३, ४.३२३, ४.३२८, ४.३३४-३३५, ४.३४८, ४.३५१, ४.३६६,
४.३७१ पंचाल १.३९, २.१६,२.१२०, ३.१८९ पंचालजणवय ३.१९०-१९१ पंचालराय १.१०१, २.१६ पंचालाहिवइ १.२७-२८, १.३९ पंचासव २.६४ पंचिदियरयण १.१३७ पंड ३.२०९ पंडगवण १.१६, १.१३५, ४.२६० पंडव ३.१९३-१९६, ३.१९९-२०७, ३.२०९ पंडियमरण २.१२६ पंडु ३.१९४, ३.१९५, ३.१९७-१९८, ३.१९९, ३.२०३ पंडुभद्द २.१७२ पंडुमहर ३.२०९ पंडुमहरा ३.२०५-२०६ पंडुय १.३१, १.१३२ पंडुराय ३.१९१, ३.२०५ पंडुरायपुत्त ३२०९ पंडुसेण ३.२०५-२०६ पंतकुल १.५७ पंतजीवी ५.३९२ पंताहार ५.३९२ पंथग २.३८, २.४३-४६ पथय २.४५-४६, ६.४३७, ६.४३९-४१ पक्कणि १.११५ पक्खंदोलग ४.२६० पक्खासण ४.२६० पगय २.१७ पगास १.६०, १.६२ पज्जती ४.२६३ पज्जत्ती २.१५, २.४९, ४.२८७ पज्जुषण २१७, २.२०, ३.२०८ पज्जुन्न २.३४, ३.१९०, ३.१९५
पइल्ल १.१३२ पट्टण ६.४५६ पडबुद्धि १.८२ पडाग १.११४ पडिचार २.७८,४.३७५ पडिबंध १.२१, १.७२, १.८३, १.९० पडिबुद्ध १.२७ पडिबुद्धि १.२८, १.३०, १.१०१ पडिमा १.४३, १.८३, २.९५ पडिरूव १.४ पडिलोम १२०, १५२ पडिवूह २,७८, ४-३७५ पडिसंलोणपडिमा १८३ पडिसत्तु १.१४३ पडिसुत १.४ पडिसूइ १.४ पडिस्सुइ १.४ पढमकेवलि १.५ ढिमयजण १.५ पढमणरीसर १.१२८ पढमतित्थयर १.५ पढमधम्मवरचाउरतचक्कवट्टि १.५ पढमभिक्खा १.१०१ पढमभिक्खाचर १.५ पढमभिक्खादायार १.१०१ पढमराय १.५, १.१२९ पढमसिस्सिणी १.१०२, १.१०४ पढमसीस १.१०१ पढमसीसा १.१०४ पणयासण ४.२६० पणवण्णिय १.७९ पणियसाला १.७६ पणीयभूमि १.८५ पत्त १.१७, १.६० पत्तच्छेज्ज २.७८, ४,३७५ पत्ताहार ४.२४४ पत्थिवगुण १.११४ पधाण १.८६ पत्नवाहणय २.१७३ पभंकरा १.१३८, ३.२२५ पभंजण ३.२२४ पभव १.११३, २.१७१, २.१७५
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धर्मकथानुयोग
पभावई १.२८, १.३०,१.३५-३६, १.३७, १.३८, १.४१, १.४४
४५, १.४७, १.९५, २.५-६ पभावती १.२८, २.५-८, २.१३७, २.१३९ पभास १.१११, ४.२६३ पभासतित्थ १.१२० पभासतित्थोदग १.१२० पमयवण ३.२११, ३.२१८ पम्ह १.१३८ पम्हगावती १.१३८ पम्हावई १.१३८ पयाणुमारी १.८२ पयावती १.१४२ परवाय १.८३ परिणिव्वण १.२५, १.४८ परिनिव्वाणमहिम १.२४ परिभास १.४ परियाअंतकरभूमि १.२३ परियांतकडभूमि १.८८ परियायंतकडभूमि १.५०, १.५३ परियायतकरभूमि १.४८ परियायधम्म २.११५ परिव्वाइग १.३९ परिव्वझ्य १.३९-४० परिव्वायगधम्म २.३८ परिसडियकन्दमूलतयपत्तपुप्फफलाहार ४.२४४ परिसा १.१५, १.१६, १.२०, १.२६, १.४५, १.४७-४९, १.५२,
१.५६, १.७०-७१, १.८०, १.८८, १.११२, २.३, २.१०, २.१२, २.१४, २.१८-१९, २.२२, २.२७, २.३८, २.३९, २.४३-४४, २.४७, २.४९-५०, २.५७, २.६०, २.६७, २.६९, २.८०,२.९२, २.९६, २.९९, २.१०२-१०५,२.१०७, २.१०९, २.१२३, २.१२७, २.१२९, २.१३१, -१३२, २.१३५, २.१३७, २.१६४, २.१७९, ३.२०५, ३.२१०, ३.२१७-२२०, ३.२२३-२२६, ३.२२८, ३.२३३, ३.२३७, ४.२४३, ४.२४६, ४.२५३, ४.२६७, ४.२७०-२७१, ४.२७५, ४.२८२, ४.२८५, ६.४२३, ६.४२६, ६.४४२, ६.४६०,
६.४७६, ६.४८४, ६.४९५ परीसह १.२०, १.५४, १.७६-७७, २.११५, २.१२७ पलालपुंज १.७६ पलास १.६० पलियट्ठाण १.७६ पल्हविया १.११५ पण १.७९
पवयणणिण्हग १.८८ पवयणनिण्हवअ ५.३८१ पवर १.५४-५५ पब्ववयमह ५.३८२ पव्वयअ १.१४२ पसंतजीवी ५.३९२ पसत्थार ५.३८२ पसाहणघरग ४.२६० पसिसा १.१०, ४.२४६ पसेणइ १.४, २.२०-२१ पहराय १.१४३ पहेलिय २.७८, ४.३७५ पाइण २.१७१-१७२ पाइत्तअ ४.३७३ पाइन्न २.१७५ पाओवगमन २.१२७ पाकसासण १.५६ पागसासण १.१० पागहिय १.९० पाडल १.१७, १.२८, १.६०, १.१०१,१.११६ पाडलिसंड ६.४८४ पाडिबुद्धि १.२९ पाडिस्सुइय १.१७ पाढ ४.४०७ पाण २.६१ पाणग १.१५ पाणय १.७९, २.९२, २.९७, २.१०९ पाणयकप्प १.५४ पाणविहि २.७८,४.३७५ पाणाइवाय १.३९ पाणातिवाय १.१०३-१०४ पाणामा २.६१ पाणु १.८६ पामिच्च १.९१, ४.३७३, ५.३८५ पायअ ५.३८५ पायत्त १.१७ पायत्ताणिया हिवइ १.१४, १.५८, ४.२४८-२४९ पायत्ताणीयाहिवइ १.११,१.१५ पारसी १.११५ पारिट्ठावणिआसमिइ १.२०,१.८३ पारिहासिय २.१७२ पालग १.७९-८० पालय १.१४
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शब्द-सूची
२७
पीतिवद्धण १.८६ पीयपाणि ४.२६८
पालयदेव १.१२
पालि २.११९ पालिय २.११४ पावफलविवाग १.८६ पावा १.८५-८६ पास १.५१-५३, १.९४-९५, १.९७-१०१, १.१०५-१११,
२.४९-५०, ३.२०९, ३.२२०-२२३, ३.२२५-२२८,
४.२४३, ४.२४५ पासग ४.३७५ पासचरिय १.५१ पासतथ ४.२६८ पासपाणि ४.२६८ पासमिअ २.१०८ पासय २.७८ पासायव.सग ४.२६१ पासावच्चिज्ज १.६८, १.१०४, ४.२८९ पाहणगमत्त १.९१, ४.३७३, ४.३८५ पिउसेणकण्ह ६.४२५ पिउसेणकण्हा ३.२३४, ३.२३६ पिंगल १.१३१७ पिंगलय २.१२३, २.१२५ पिक्खुर १.१२२ पिच्छणधरग ४.२६० पिचिंपा १.८५ पिठिमा २.९८ पियअ१.१०१ पियंगु १.६०, १.१०१, ६.४९५ पियकारिणी १.६८ पियगंथ २.१७३ पियचंद २.१०८ पियदसणा १-६८ पियमित्त १.५४,१.१४२ पिया ३.२२६ पिलखुरुक्ख १.१०१ पिलंगु १.४८ पिसाय १.७९ पिसायकुमारिंद ३.२२५ पिसायरूव १.३३ पीइगम १.१४, १.७९ पीइदाण २.९-१०,३.१९४ पीठभद्द ४.३६५ पीठमह ४.२७८ पीतिगम १.८०
पुंड १.८९,५.४१३ पुंडरिगिणी २.१०७ पुंडरीगिणी १.१३८, २.१६७, २.१६९ पुंडरीय १.५४-५५, १.६०, २.४३, २.१६७-१७०, ४.२६३ पुंडरीयपव्वय २.४४,२.४६ पुसकोइलग १.७३ पुक्खरगय ४.३७४ पुक्खरोदय ४.२६३ पुक्खल १.१३८ पुक्खलावई २.१६७ पुक्खलावती १.१३८ पुक्खरवरदीव १.९२-९३, १.१३९ पुग्गल १.५७, १.१३४, ४.२४७, ४.२५३ पुट्टिल १.१०४ पुढवि १.७५ पुढविकाइय १.९१ पुढविकाय २.१६६ पुढविसिरी ६.४९५ पुढविसिलापट्ट १.४७,१.१३७ पुढवी १.८९ पुढवीवडेंसय ६.४९० पुणब्वसु १.१००-१०१, १.१४२ पुण्डरीया १.८ पुण्ण ३.२२४ पुण्णघोस १.९४ पुण्णचंद १.१०१ पुण्णजण २.६५ पुण्णभद्द १.८९, २.१७, २.४९-५१, २.९२-९३, २.९७, २.१०८
१०९, २.१३७-१३८, २.१४०, २.१५६, ३.२०२, ३.२२४, ३.२३५, ४.३०४-३०५, ४.३०८, ४.३६३, ४.३६५-३६७,
४.३७१, ५.३८९-३९१, ५.४१४, ६.४२५-४२६, ६.४३५ पुण्णभद्ददेव २.५० पुण्णभद्दा ३.२३४ पुण्णसेण २.९८ पुण्णा ३.२२५ पुण्णाग १.६०, १.११६ पुन्न २.४९ पुन्नभद्द २.१७२ पुन्नाग १.१७,१.२८ पुप्फ १.१४
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२८
पुप्फकरंडय २.१०४, २.१०६
उ
पुष्प १.९४
पुप्फग १.७९-८०
पुप्फचूला १.५२, १.१०२, २.१०५ ३.२२२-२२३, ३.२२६--२२८ पुष्पदंत १९४, १.९६, १९८-१०० २ १०७-१०९
फलकम् १.३१
२.१०१-१०७
पुप्फमाला १.६-७ पुप्फवतिअ ४.२८९-२९०
पुप्फाराम २.९३
पुप्फाहार ४.२४४
पुष्सर १.५४-५५
पुरंदर १.१०.१.५६, २.१२, २.४८
पुति
५.३८१
पुष्मिताल १.२१-२२ २.१५, ४.३७२, ६.४७१–४७५
पुरिसपुंडरीय १.१४२
पुरिसलक्खण २.७८, ४.३७५
पुरिसवरगंधहत्थि १.१० १.५६, १.८० १.११२, ३.२२०,
४.२६६, ४.३६६
पुरिसवरपुंडरीय १.१० १.५६, १.८०, १.११२, ३.२२०, ४.२६६, ४.३६६
पुरिससीह ११०, १.५६, १.८०, १.१४२, १.१४४, ३.२२०, ४.२६६
पुरिससेण २.३४, २.९७, ३.२०८
पुरिमादाणीय १.५१-५३ १.९९, १.१०५, १.१०७, १.१११,
२.४९
1
पुरिसुत्तम १.१० १.५६, १.८० १.१२२, १४२, ४.२६६, ४.३६६ पुरिसोत्तम १.१४४ २.२२०
पुरोहितरयण १.१४१
पुरोहियरयण १.१३२, १.१३४, १.१३६- ३७
पुरिसोत्तम १.१४४, ३.२२०
पुलिंदी १.११५
पुष १.११०
पुव्वतित्ययर १.५७ पुष्पविदेह २.१६७
पुव्वासाढा १.९९
पुस १.१००-१०१
पुट्टी १.८, १.४२, १.९५, १.११४
पूइअ १.९१, ५.३८५
पुरण १.२६, २.२१, ६.४९६-४९७
पूस १.९९-१००
पूसनंदि ६.४९०, ६.४९३-४९४
गिरि २.१७४
२-१७२
पूसा ४.३२७, ४.३२९
पेच्छाघरमंडव ४.२६१-२६२, ४.२६६
पेज्जबंधण १.८६, १.९१
पेढालपुत्त १.१०४, २.९८, २.१४८-१५०, २.२१५५-१५६
पेल्लयं २९८
पेस २.६६
पोडरिगी १.८
पोंडरीगिणी २.१६८, ३.२१८
पोंडरी २.१६९
पोंडवद्धिणिया २.१७२
पोक्खरगये २.७८
पोक्खलावई ३.२१८
पोक्खली ४.३५४-३५६
पोलि २.१०१
पोग्गल १.५८, १.५९, १.६९ २.५२, २.५५, ४.२४९, ४.३७७ पोग्गलत्थकाय २.१६४-१६५
पोग्गल परिणाम १.४३
पोट्टल १.५४, १.८८, १.१०४, २.९८, ३.२१८
पोट्टिला ३.२११-२१५
पोट्टिल्ल १.१०४ ३.२१६
पोत्तिय ४.२४४
पोयज १.९०
पोषण १.१४२
१.५४ पोरेकच्च ४.३७५ पोरे २.७८
धर्मकथानुयोग
पोलासपुर २.२४-२५, २.६६-६७, ४.३३२-३३३, ४.३३५, ४.३३८ पोस १.४७, २.४२, ४.३६१
२.४
पोल १.५१-५२
पोसहसाला १.११७ १.१२०-१२३, १.१२९, १.१३१, १.१३३
१३४, २.१९ २.२६ २.७५, २.७७, २.१०६, २.१३८, ३.१९६, ३.१९९, ४.३०३, ४.३०६, ४.३०८-३१०, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२४, ४.३३८, ४.३४४, ४.३४६, ४.३४९, ४.३५१, ४.३५५-३५६ पीसोपवास १.३२-३३, १.८६
(फ)
फग्गु १.१०२
फग्गुण १.२८, २.४२, ४.२६१ फग्गुण बहल १.२१-२२
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शब्द-सूची
फग्गुणी ४.३५०-३५१ फग्गुमित्त २.१७४ फरिहोदग २.५२ २.५५ फरिहोदय २.५१-५२ फलभोयण १.९१, २.२९, २.८२, ५.३८५ फलाहार ४.२४४ फास १.९१
बउल १.१७,१.१०१ बंध ४.२७१ बंधण १.९१ बंधुमई १.४७, २.९३ बंधुसिरी ६.४८१ बंधू पुप्फवती १.१०२ बंम १.७९ १.१४२२.९२, २.९७, २.१७२ बंमचारी १.१११ बंमचेरगुत्ति १.१९१ बंमदत्त १.१०१,१.१३९, -१४०, २.१५-१६ बंमदेवीथा २.१७३ बंमद्दीवग २.१७५ बंमयारि १.५२, १.१११ बंमलिज्ज २.१७३ बंमलोग २.११९, ५.३९२ बंमलोय १.४५, २.११, २.१८-१९, २.१०७, २.१०९, २.१३१,
बलसिरी २.१०७, २.११५ बलायालोय १.१२२ बलाहग १.६० बलाहगा १.६-७ बलि १.१५, १.२५, १.४६, १.१४३, ३.२१९ बलिकम्म १.४२-४३, १.६५, १.६७, १.१२०-१२१, १.१२३,
१.१२८, २.३, २.८-९, २.१४, २.२५-२६, २.५१, २.६१, २.७२, २.७४, २.७६-७७, २.८३-८४, २.१३४, २.१६१, ३.१८५, ३.१९३-१९४, ३.१९८, ३.२१६, ३.२२०, ३.२३७,
४.२६९, ४.२७३, ४.२७८, ४.२८४, ४.२८७ बलि चंचा २.६२-६३, ३.२२४ बलिस्सह २.१७२ २.१७५ बहलि १.११५ बहस्सइ ६.४५९ बहस्सइदत्त ६.४७९-४८० बहिद्धादाण १.१०४ बहपुत्तिय २.४९ ३.२२८ बहुपुत्तिया ३.२२५.३.२२८.३.२३१ बहुमित्तपुत्त ६.४८१ बहुरत १.८८,५.३८१ बहुरूवा ३.२२५ बहुल १.१०१,१.१७५, ५.३९७ बहुला ४.३२२-३२३, ४.३२५ बहुसालय २.५७-५८, ५.३८२, ५.३८८ बहुसाला ५.३८३ बाणमंतर १.२८ बाणमंतरिद ३.२२५ बारमा २.४७ बारगापुरि २.४७ बारवई १.४९, १.१००, २.१७-२५, २.२७, २.२९, २.३०-३१,
२.३३-३६, ३.१९०-१९१, ३.१९७-१९९, ३.२०४-२०५,
३.२०८-२११ बारवती २.३४-३५, २.३७ बालतवस्सि २.६०-६३, ६.४९७ बालतवोकम्म २.६१ बालमरण २.१२६ बावत्तरिकला ४.३७५ बावत्तरिकलापंडिय २.१०५ बाहिरपरिसा ४.२५१ बाहुजुद्ध २.७८, ४.३७५ बाहबलि १.१४० बिलवासि ४.२४४ बीयमोयण १.९१, २.२९, २.८२, ५.३८५
बंमलोंयग १.१५ बंमी १.२२, १.१०२, १.१४० बकुल १.११६ बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवाइ १.१० बब्बर १.१२२ बब्बरी १.११५ बम्ह १.१३९ बल १.२६ १.१२१ २.५-६, २.८, २.११ २.४९ २.१०८ बलदेव १.५७ १.६४ १.९३, १.१०४ १.१३९, १.१४३-१४४,
२.१७, २.१९-२०, २.३३, ३.१९०, ३.२०३, ३.२०५,
३.२०९, ४.३७१ बलदेवमाउ १.१४२-१४३ बलदेवमायर १.६४ बलदेवबासुदेवपिउ १.१४२-१४३ बलभद्द १.२६, १.१४३, २.११५ बलमित्त १४७ बलवाहण ४.२८६
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धर्मकथानुयोग
बीयाहार ४.२४४ बुडढकुमारी ३.२२६ बुद्ध १.१०, १.१७, १.२३, १.५६, १.८०, १.८५-८६, १.९४,
१.१०४, १.११२, २.६६, ४.२६६ बुद्धभिक्खु २.६५ बुद्धवरण १.८२ बुद्धाइसेस १.१०२ बुद्धि ३.२२६ बुह १.७९ बेमेल ५.४१७, ६.४९६-४९७ बोहय १.१०, १.५६, १.८०,१.११२,४.२६६ बोहिदय १.१०, ४.२६६, ४.३६६
(भ) भंडीर ६.४८१ भंभसार ६.४२१ भंभसारपुत्त ४.३६५,४.३६७-३६९,४.३७१ भक्खेय २.४१-४२ भगवई ६.४३६ भगवत १.१०, १.३२, १.५६, २.१२९, २.१३२, २.१३६, २.१७०,
३.१८१, ४.२६६, ४.३६६ भड ५.३८२ भडपुत्त ५.३८२ भत्त १.२७, १.३२, १.६८ भत्तघर २.२३-२४.२.१०६, ३.१८० भत्तपच्चक्खाण २.१२७ भत्तसाला १.११९ भद्द १.१४२-१४३.२.१०८,३.२२८-२३० भद्दगुत्त २.१७५ भद्दगुत्तिय २.१७३ भद्दगुत्तिय २.१७३ भद्दजस १.१११, २.१७२ भद्दजसिय २.१७३ भद्दतरपडिमा १.८३ भद्दनंदि २.१०४, २.१०७-१०८ भद्दपडिमा १.८३ भद्दबाहु २.१७१-७२,२.१७५ भद्दय २.१७४ भद्दवय २.४२, ४.३६१ भद्दवया १.१०० भद्दसण्णिवेस १.११९ भद्दसालवण १.१६,४.२६०,४.२६४, भंद्दसेण १.१५
भद्दा १.८, १.८९, १.१३९, १.१४२, २.९९, २.१०४, २.१०८,
२.१११, २.१४०, २.१५९, २.१६१, ३.१८२-१८४, ३.१८६, ३.२११-२१२, ३.२१८, ३.२२३, ४.३०५, ४.३१५-३१६, ५.३९४-३९५, ५.४१३, ५.४३७-४४३, ६.४५०, ६.४७६--
४७७ भद्दासण १.१७, १.११४,१.११६,४.२६० भद्दिज्जिया २.१७३ भद्दिया १.८५ भद्दिलपुर २.२२, २.२४-२५ भद्दोत्तरपडिमा ३.२३५ भयाण १.९१ भयाली ११०४ भरणि १.४८ १.९९-१०० भरह १.२३ १.९२-९३,१.१०३-१०४, १.१११४-११७, १.११९
१३१, १.१३३-१४०, १.१४२, २.२४, २.३०, २८२,
२.१२०, २.१३४, ४.२६५, ४.३७० भरचक्कवष्टि १.५४, १.११४ भरहचक्कवट्टिचरिय १.११४ भरहवास १.१४९, २.१२० भरहवासपढमवइ १.१२८ भरहाहिव १.१२३, १.१२९,१.१३३, १.१३७, १.१३९ भरहाहिवचक्कट्टि १.१३१ भवणवइ १.६, १.१४, १.१८-१९, १.२४-२५, १.२८, १.४७,
१.६५-६६, १.६९,१.७८,४.२४७,४.२५३ भवणवासि १.२४, १.७४, १.७९, ३.२१९, ३.२२२ भवणवासिइंद १.१५ भवगविमाण १.११४ भसोल १.१७ भाणु १.९५ भाणुमित्त १.४७ भारत १.२७ भारदाय १.१११, १.११३, २.१७२, ५.४०४-४०५ भारह १.३-५, १.२८, १.३३, १.४४-४५, १.४८, १.५१, १.५४,
१.५५-५८, १.८९, १.९४-९५, १.१०२, १.११८, १.१२९, १.१४३, २.१२, २.१४, २.१८, २.५०, २.६०, २.६२-६३, २.६९, २.७५, २.८७, २.८९, २.१०५, २.१२०, २.१४४, २.१४५, ३.१८२, ३.१८९, ३.१९६-९७, ३.१९९-२००, ३.२०२-२०३, ३.२०९, ३.२१९-२०, ४.२४७-४९, ४.२५३, ४.२६८, ४.३०८, ४३१०, ५.४१७, ६.४२५, ६.४६२, ६.४६४, ६.४६६, ६.४७०, ६.४७२, ६ ४७७, ६ ४८१, ६.४८५, ६.४८८, ६.४९०, ६.४९५,-४९६, ६.४९८
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शब्द-सूची
भोगवती ६.४५४ भोत्ता ४.३७३, ५.३८५
भारहवास १.५७-५८, ६.४७९ भावसोय २.३८ भावियप्पा १.१०२ भासासमिइ १.७२.१.९०.२९९ भिगा१४ भिंगार १.११४ भिभिसार १.८९ भिक्खायकुल १.५७-५८ भिक्खुपडिमा १.८३, २.२१, २.९०, २.९२, २.१२८, ३.२३५ भिलंगा ४.२७२ भिल्ल १.१३२ भिसग १.४७ भिसय १.१०२ भिसिया १.३६, १.३९-४० भीम १.१४३, ६.४६७-४६८ भीमसेण १.४, ३.१९१ भुत्तावलि ३.२३६ भयगपइ १.७९ भुयगवइ ३.२२५ भुयगवरकन्नगा २.१४१ भुयगा ३.२२५ भुसल १.११४ भइकम्म १.९,३.१८७, ३.२१४ भूमिघर ६.४६१ भूय १.३२, १.७९ भूय दिण्णा ३.२३३ भूयार्दन्न २.१७५ भूयार्दन्ना २.१७२ भूयमह ४.२७०, ५.३८२ भूयवादिय १.७९ भूयसिरी ३.१७९ भूया २.१७२, ३.२२६-२२७ भूयाणंद ४.३७६, ६.४२४ भेय १.२९, ४.२६९, ६.४२७, ६.४८१ भेरी २.१८,२.३५ भेसगसुय ३.१९१ भेसज्ज ३.१८७, ३.२१४, ३.२२९ भोग ४.२७०-२७१, ५.३८२, ५.३८८, ६.४६० भोगंकरा १.६ भोगकुल १.५७ भोगमालिणी १.६ भोगवइया ६.४५०-५१ भोगवई १.६, ६.४५३
मदमह ४.२७० मंरवलि ५.३९५, ५.४०० मंखलिपुत्त ४.३२९-३३०, ४.३३२-३३३, ४.३३६-३३७,
५.३९३-४०४, ५.४०६, ५.४०८-४११, ५.४१३, ५.४१५.
५.४१८ मंगलग १.१७, ४.२५२, ४.२६१-२६२ मंगलसुत्त १.३ मंगला १.९५ मंगलावती १.१३८ मंगलावत १.१३८ मंगलोवयार १.६३ मंगु २.१७५ मंजुघोस २.१५ मंजुम्मर १.१५ मंजूमा १.१३८ मंडणधाई ४.२८७, ४.३७४ मंडलबंध १.४ मंडलिय १.६४,२.७ मंडलियमायर १.६४,२.७ मंडलियराय १.९५,१.१३८ मंडावणधाई १.६७ मंडिकच्छ १.१११ मंडिय १.१११, ५.४०४-४०५ मंडियपुत्त १.११२-११३ मंडुय २.३८,२.४३-४६ मंतजोग ३.१८७, ३.२१४ मंतप्पओग१.१२६ मंतप्पओय ३.२२९ मंति ४.२७८, ४.३६५ मंदर १.१४-१७, १.७३-७४, १.९३, १.१०१, १.१३८, २.२०,
२.४३, २.६९, २.८२, २.१०५, २.११६ २१३३-१३४, २.१३७, २.१३९, ३.१८७, ३.१९५, ३.२०२, ३.२१६,
४.२५७,४.२६४ मंदार १.६० मंससुहा १.६२ मकाइ २.९२,२.९७ मक्कार १.४ मगरासण ४.२६० मगह ५.४०७ मगहाहिव २११२
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धर्मकथानयोग
मग्गदय १.१०,१.५६, १.८०, १.११२, ३,२२०,४.२६६, ४.३६६० मग्गसर १.२८ मग्गसिर २.४२, ४.३६१ मग्गसिरबहुल १.६९-७१ मघव १.१०, १.५६, १.१३९, १४०; २.१२० मच्छ १.१७, २.११६ मज्जणधर १.११५-१२१, १.१२३, १.१२९, १.१३१, १.१३४
१३७, २.१८, २.७१, २.७६, ३.१९१, ३.१९३, ६.४२२,
६.४२४, ६.४३३, ६.४३५ मज्जणघरग ४.२६० मज्जणधाई १.६७, ४.२८७,४.३७४ मज्जारमड १.२९, ६.४६१ मज्झमिया २.१०८ मज्झिमरिसा ४.२५१ मज्झिमा १.८५-८६ मज्झि मिल्ला २.१७३ मडंब ६.४५६ मणग २.१७१ मणगपिया १-११३ मणगुत्त १२०, १.७२,१.८३,२.४८, २.९९, २.११० मणदंड १.९१ मणपज्जवणाण १.४७, १.७२ मणपज्जवनाण ४.२७६ मणपज्जवनाणि १.४७, १.१०७ मणबलिय१.८२ मणसमिइ १.२०,१.७२, २.९९ मणि ४.२५० मणिजाल ४.२६१ मणिपुर २.१०८ मणिपेढिय १.२९ मणिभद्द २.१७२ मणियंग १.४ मणिरक्षण १.१२३,१.१२७.१.१३२१.१३७,१.१४१ मणिलक्खण २.७८,४.३७५ मणिवइया २.५०,२.१०८ मणुइंद ६.४२४, ६.४३६ मणुयपरिसा १.७१ मणुवरयण १.१३७ मणुस्सपरिसा ६.४२३ मणुस्समड १.२९, ६.४६१ मणो म १.७९-८० मणोरम १.१४,२.१९,२.१०७ मणोरमा १.१००
मणोहरा १.१०० मतंगय १.४ मतिपत्तिया २.१७२
मदुय ४.३७६-३७७ मननाणि १.१०७ मयंग २.१५ मयंगतीरद्दह ६.४४८-४९ मयणा ३.२२४ मयालि २.३४, २.९७, ३.२०८ मरण २.१२६ मरुता ३.२२३ मरुदेव १.४,१.९४ मरुदेवा १.९५,३.२३३ मरुदेवी १.४-५ मम्यग १.२८ मलय १.१६, २.२०, २.४३, २.६९, २.८२, २.१०५, २.१३३
१३४, २.१३७, २.१३९, ३.१९५, ३.२०२, ३.२१६, ५.४०७ मल्ल १.३०, १.६३, १.७०,१.११६ मल्लई १.८६, ५.३८२, ६.४२४. ६.४३४-४३६ मल्लदिन्न १.३७ मल्लराम ५४०४-४०५ मल्लि १.२८, १.३०, १.३४-४५, १.४७-४८, १.९४-९५,
१.९७, १.९९, १.१०१, १.१०७, १.१०९-११० मल्लिचरिय १.२६ मल्लिदिन्न १.३८-३९ मल्लिय १.१७, १.२८, १.११६ मल्लिया १.६० मल्लियामंडवग ४.२६० महंत ३.२१६ महरगह ४.२४३ महचंद २.१०८, ६.४७६ महच्चंद २.१०४ महाउम १.१३१ महब्ब्ब ल १.२६-२८,१.४३-४४, २.३, २.७-११, २.१८,२.२०, महब्बल १.२६-२८, १.४३-४४, २.३, २.७-११, २.१८, २.२०,
२.२२, २.३०, २.६८, २.९९, २.१०४-१०५, २.१०८,
२.१२०,६.४७१, ६.४७३-४७६ महब्बलकहा २.५ महमरुता ३.२३३ महव्वय १.२२, १.९१, २.६४, २.९०-९१, २.११३, २.११६,
२.१२९-१३०, ५.४१३, ६.४५३-४५४ महसिह १.१४२ महसेण १.४७, १.९५
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शब्द-सूची
४.३४७, ४.३४९, ४.३५२, ४.४५४, ४.३६०, ४.३७४, ४.३७६, ५.४१३, ५.४१५, ६.४४४ ६.४६५, ६.४७८, ६.४८०, ६.४८३, ६.४८७, ६.४८०, ६.४९४, ६.४९६,
महसेणकण्हा ३.२३४ महा १.१०० महाओहस्सर १.१५ महाकंदिय १.७९ महाकच्छ १.१३८,३.२२५ महाकण्ह ६.४२५ महाकण्हा ३.२३४-२३५ महाकाल १.१३१, २.३०-३१, ३.२२५, ६.४२५ महाकाली ३.२३४-२३५ महागिरि २.१७१-१७२, २.१७५ महाघोस १.३.१.१४,१.९४,२.१०८, ३.२२४ महाचंद १.१९४ महाजस १.९४ महाणससाला १.४५ महाणिहअ १.१३३, १.१३७ महाणिहि १.१३१, १.१३२, १.१३७, १.१४१ महादुमसेण २.९८ महाधणु २.१७ महाप उम १.८९-८२, १.१०४, १.१३१, १.१३९, २.१०८, २.१२०, २.१६७, ३.२१८, ४.२६४, ५.४१४,५.४१५ महापउमचरिय १.८९ महापउमा २.१०९ महापम्ह १.१३८ महापालि २.११९ महापुंडरीय ४.२६४ महापुर १.१३८, २.१०८ महाबल १.४८, १.९४, १.१३८, १.१४३, २.१७-१८, २.१०९,
२.१६७ महाबाहु १.१४३ महाभद्धपडिमा १.८३ महामीम १.१४३ महाभीमसेण १.४ महामंति ४.२७८,४.३६५ महायस २.४७ महावच्छ १.१३८ महावप्प १.१३८ महाविजय १.५४-५५ महाविदेह १.२६, १.९३, १.१०४,१.१३८, २.१५, २.२०, २.४८--
५०, २.६३, २.९२,२.९८,२.१०३, २.१०४, २.१०७-१०९, २.१३०,२.१४०, २.१४७, २.१६३, २.१६७, २.१७०, ३.१८१,३.२०७, ३.२१८, ३.२२२, ३.२२५-२२६, ३.२२८, ३.२३३, ४.२४६, ४.२६४ ४.२८७, ४.३०४, ४.३११, ४.३१३, ४.३१६, ४.३२७, ४.३३१, ४.३३५, ४,३४१,
महाविदेहवास १.६८ महावीर १.५४-५९, १.६४--७४, १.७७-८०, १.८२-८८,
१.९१-९२, १.९७, १.९९-१००, १.१०५-१११ २.३, २.५, २.११-१२, २.१४, २.४९, २.५७-६०, २.६६-६९, २.७९-८२, २.८४-८६, २.८९-१००, २.१०२-१०९, २.११२-११५, २.१२०, २.१२३-१२५, २.१२७-१३३, २.१३६-१३८, २.१४०, २.१४७-१४८, २.१५६, २.१६३१६६, २.१७१, ३.२१९-२२०, ३.२२३, ३.२२८, ३.२३७, ४.२४७-२४९, ४.२५३-२५६, ४.२६८, ४.२८८, ४.२९०, ४.२९३-२९६, ४.२९८-३०१, ४.३०३-३०५, ४.३०८३१२, ४.३१७-३१८, ४.३२२-३२४, ४.३२७-३३८, ४.३४२-३४४, ४.३४६-३५१, ४.३५३-३५४, ४.३५६३६०, ४.२६२-३६३, ४.३६५-३६६, ४.३६८, ४.३७०३७१, ४.३७३, ४.३७६-३७७, ५.३८१-३८५, ५.३८८३९१, ५.३९३-३९४, ५.३९७, ५.३९९-४०३, ५.४०५४०७, ५.४१०-४१२, ६.४२१, ६.४२३, ६.४२५-४२६, ६.४५९-४६२, ६.४६६, ६.४७१, ६.४७६, ६.४७९, ६.४८४,
६.४८८, ६.४९०, ६.४९५, ६.४९७-५००, ६.५०२ महावीरचरिय १.५४, २.६४ महावीरतिथ्थ ४.२८९-२९०, ४.२९५ महावीरवद्धमाण १.१०८ महावीरसमवसरण २.७९ महावीरसमोसरण २.१२, २.६०, २.१२३, २.१३१, २.१३५,
२.१३७, ३.२२६, ३.२२८, ४.२४६, ४.२४८ महावीरसच्च १.१३८ । महासतग ४.३४४-३४७ महासतय ४.२९५, ४.३४२-४४३ महासतयपुर ४.३४६ महासामाण २.१५ महासिलासंकटसंगाम ६.४३५ महासीहनिक्कीलिय ३.२३५ महासीहसेण २.९८ महासुक्क १.७९,२.१५, २.९२, २.९७, २.१०७, २.१०९, ३.२१८,
५.४१८ महासुक्कय १.१५ महासुमिण १.२८, १.५५, १.५९, १.६१-६४, १.७३ महासुव्वया १.५० महासेण १.९४, २.१७, २.२०, २.९८, २.१३७, ३.१९०, ६.४९०
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धर्मकथानुयोग
महासेणकण्ह ६.४२५ महासेणकण्हा ३.२३६, महाहरि १.१३९ महाहिमंत ४.२६४ महिंदज्झअ २.४९ महिंदज्य १.१५, ४.२६२, ४.२६६-२६७ महिंददत्त १.१०१ महिंदसार २.२०, २.४३, २.६९, २.८२, २.१०५, २.१३३-१३४,
२.१३७, २.१३९, २.१९५, ३.२०२, ३.२१६ महिय १.८० महिलागुण १.१९ महिसमड १.२९, ६.४६१ महकेढव १.१४३ महुँयासव १.८२ महुरस्सर १.१५ महुरा १.१४०, १.१४२, ३.१९१, ३.२२५, ६.४८१, ६.४८३ महेसरदत्त ६.४७९ महेसि १.७६-७७ महोरग १.३२-३३, १.३९, १.१०३, १.१२६, ३.१९७-१९८,
४.२६०, ४.२७१, ४.२८३, ४.३०८ माअणि २.१७ माकंदियदारग २.१४१-१४२, २.१४४ मागंदियदारय २.१४३, २.१४५ मागह १.४५, ४.२६३-२६४, ४.३७२, ४.३७४ मागहतित्य १.११६-११८, १.१२८ मागहतित्थकुमार १.११७-११९ मागहतित्थाहिवड १.११७-११८ मागहतित्थोदग १.११९ मागहिय २.७८,४.३७५ माइंबिय २.६१,२.१०५-१०६, २.१३३,२.१३७-१३९, ३.१८७,
३.१९०, ३.१९६, ३.२१६, ४.२७८,४.२९५-२९६,४.२९९, ४.३१३, ४.३१८,४.३२३, ४.३२८,४.३३४-३३५, ४.३४२, ४.३४८,४.३५१, ४.३५८-३५९,४.३६२,४३६५,५३८२,
५.४१४, ६.४५०, ६.४६९-४७०, ६.४८०, ६.४९४-४९५ माटर २.१७१-१७५ माणवग १.१३१ माणवगण १.१११,१.१७३ मणिदत्त २.१८ माणिमद्द १.८९, २.४९-५०, ५.४१४, ६.४९५ माणिमद्ददेव २.५० माणुस १.५२, १.९० माणुसधम्म १.४७
माणुसत्तुर १.७३-७४ मातंगकुल ६.४७८ मायंदी २.१४० मारूय १.७६ मालवंत ४.२६४ मालवग ५.४०७ मालाकार १.१३२ मालागार १.२९, २.९३-९६ मालायार २.९३ मालिज्ज २.१७२ मालियघरग ४.२६० माली १.१०१ मालुयाकच्छ ६.४४८ मालुयाकच्छय ५.४११, ६.४३६, ६.४३९-४४०, ६.४४४-४४६ माशयामैडवग ४.२६० मास २.४२ मासखमणपारणग २.१०५ मासद्धमासखमण १.२६-२७, २.११, २.१३, २.२०-२१, २.३७, २.४४, २.५९, २.८९-९०, २.१२८, ३.१८८, ३.२०६, ३.२१०,
३.२२२, ३.२३४-२३६, ४.२४६ मासपरियाय १.२३ मासपूरिया २.१७२ मासिअभत्त १.२६ माह २.४२, ४.३६१ माहण १.५५-५९, १.६७, १.७६-७७, २.२७, २.३१, २.५७
माहणकुंड ५.३८१ माहणकुंडग्गाम १.५५, १.५६-५९, २.५७-५८, ५.३८१-३८२,
५.३८८ माहणकुल १.५७, ५.४१७ माहणपरिसा ४.२८२ माहणरिसि ४.२४५-२४६ माहणी १.५५-५९, २.२७, २.५७-५८, ३.१८०-१८२ माहबहुल १.२३ माहिंद १.१५, १.७९, २.११, २.९२, २.९७, २.१०९, ५.३९२ माहिंदर १.९५ मिगाली १.१०४ मिगावती ३.२३६-२३७ मिच्छादसणसल्ल १.३९, १.७२ मितकेसी १.८ मित्त ६.४६५, ६.४८८ मित्तदाम १.३ मित्तनंदि १.१०८
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शब्द-सूची
मित्तवाहण १.४ मित्ती २.१०८ मियउत्त ६.४५९ मियग्गाम ६.४५९-४६३ मियलुद्धय ४.२४४ मियवण २.१३७-१३८,४.२७२-२७३, ४.२७५ मियसीस १.१०० मिया ६.४५९ मियादेवी ६.४६०-४६४ मियापुत्त २.११५-११८,६.४५९-४६४ मियावई १.१४२, ६.४७९ मिरिइ १.५४ मिस्सकेसि १.८ मिस्सजाअ ५.३८५ मिहिलपुरी १.१४२ मिहिला १.२८, १.३०, १.३४, १.३६-४३, १.४५-४६, १.८५,
१.८८, १.१४०, २.५०, २.५५-५६, ५.३८१ मीसजअ ४.३७३ मीसज्जाय १.९१ भुगुदमह ५.३८१ मुट्ठिजुद्ध २.७८, ४.३७५ मुणिसुव्वय १.९४-९५, १.९७, १.९९-१००, १.१०४-१०५,
१.११०, २.१२-१५, ३.२०२-२०३ मुत्त १.१०, १.५६, १.८०, १.८५-८६, १.११२, ४.२६६ मुत्तखंड ४.३७५ मुत्ताजाल ४.२६१ मुत्ति १.२१, १.९० मुद्द २.२० मुद्दियामंडवग ४.२६० मुरूंडी १.११५ मुसावाप १.१०३ मुहमंडव ४.२६१, ४.२६६-२६७ मूया १.५४ मूल १.९९-१००, ३.१८७, ३.२१४ भूलदत्ता ३.२०८ मूलभोयण १.९१, २.२९,२.८२, ५.३८५ भूलसिसिर ३.२०८, ३.२११ मूलाहार ४.२४४ मूसगमड १.२९, ६.४६१ मूसियार ३.१११, ३.२१२ मेंढियगाम ५.४१०-४१२ मेघमालिणी १.७
मेघस्सर १.१५ मेच्छजाई १.१२२ मेतज्ज १.१११ मेरथ १.१४३ मेरू २.७५ मेरू गिरि १.६०-६१ मेरुप्पभ २.८७-८८ मेह १.९५, २.२१, १.३६-३७, २.४४, २.७७-८४, २.८६-९२,
२.९७, २.१०५, २.१०९, ३.२२३ मेहंकरा १.७ मेहकुमार १.२५-२६, २.६९, २.८५ मेहगणि २.१७२ मेहमालिणी १.७ मेहमुह १.१२६-१२८ मेहरह १.९५, २.१०८ मेहलिज्जिया २.१७३ मेहवई १.७ मेहवाण २.१८ मेहसिरी ३.२२३ मेहा ३.२२३ मेहिय २.१७३ योक्खमग्ग १.२२ मोग्गरग १.६० मोग्गरपाणि २.९२-९५ मोग्गल २.१३१-१३२ मोत्ति १.७३ मोयग १.१०,१.५६,४.२६६ मोयपडिमा १.८३ मोयय १.८०,१.११२ मोया २.६० मोरियपुत्त १.१११-११३, २.६०-६२ . मोलि ५.४०७ मोहणधर १.२८ मोहणधरग ४.२६०
यजुववेद १.३९ यज्जुब्वेय ६.४७९ रइ १.१०२ रइकरगपव्वय १.१४-१५ रइत्तअ ४.३७३ रइप्पिया ३.२२५ रइय २.२९, २.८२
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धर्मकथानुयोग
रभा ३.२२४ रक्ख २.१७४ रक्खस १.३२-३३, १.३९, १.७९, १.१०३, ४.१७१ रक्खसेण ४.३०८ रक्खिय २.१७२,२.१७५ रक्खिया २.१०२, ६.४५०-४५१, ६.४५३-४५४ रक्खोवग ४.२६८ रज्जपालिय २.१७३ रज्जपालिय २.१७३ रज्जुगसभा १.८६ रज्जुगसहा १.८५ रटुकूड ३.२३२-२३३, ६.४६२-४६३ रतिकरपव्वय ४.२५२ रत्तपाअ २.१०८ रत्तपणि ४.२६८ रत्तरयण १.१३१ रत्तवई २.१०८ ४.२६३ रत्तवती २.१०८ रत्ता ४.२६३ रत्तासोग १.६० २.१०८ रत्तासोय १-६२ रमणिज्ज १.१३८ रम्म १.१३८ रभ्मग १-१३८ रयण ३.२२३ रयणजाल ४.२६१ रयणदीव २.१४१ २.१४४ रयणदीवदेवया २.१४२-१४६ रयणदीवदेवी २.१४७ रयणप्पभा १.८९ २.१४० ३.१८२. ४.२५७, ५.४१६, ६.४६४,
६.४७०, ६.४७६, ६.४७८, ६.४८०, ६.४८३, ६.४८७,
६.४९०, ६.४९४, ६.४९६ रयणसंचया १.१३८ रयणसिरी ३.२२३ रयणी ३.२२३ रयणुच्चय १.५५, १.५९ रययकूड २.७० रययगिरि २.८९ रसदेवी ३.२२६ रह १.११४, २.१७४ रहनेमि २.४७-४८
रहमसल ६.४३८ रहमुहलसंगाम ४.३५८, ६.४२४-४२५ रहोकम्म १.९० राइण्ण ५.३८२ राइण्णकुल १.५७ राइन्न ४.२७० राइसिरी ३.२२३ राई ३.२२३ राईमई २.४७-४८ राईसर २.१०५--१०६, २.१३३, २.१३७-१३९, ३.१८७, ३.१९०,
३.१९६, ३.२१६, ४.२७८, ४.२९५-२९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२८, ४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१ ४.३५८, ४.३६२, ४.३६५, ४.३६९, ५.३८२,
५.४१४, ६.४७०, ६.४८०, ६.४९४-४९५ राजीमई २.४७ राढामणि २.११४ राम १.१०४, १.१४२-१४४, २.२४७, ३.१९५, ३.२०९, ३.२२६ रामकण्ह ६.४२५ रामकण्हा ३.२३४-२३५ रामपुत्त २.९८ रामरक्खिया ३.२२६ रामा १.९५,३.२२६ राय १.९५, २.६१ रायकन्ना १.३४, १.३७, १.४१ रायकूल १.२७ रायगिह १.८५, १.११२-११३, १.१४०, १.१४२, २.४९-५०,
२.६०, २.६९, २.७१, २.७५-७७, २.७९, २.८२, २.८४, २.८९-९०, २.९२-९५, २.९७-९८, २.१०२, २.१०४, २.१२३, २.१२९, २.१४८, २.१५९-१६५, २.१७१, ३.१९१, ३.२१९, ३.२२३-२२८, ३.२३३, ४.२४३, ४.२९०-२९३, ४.३४२-३४४, ४.३४६-३४७, ४.३७६, ५.३९५-३९६, ५.४०४, ५.४१७, ६.४२१-४२२, ६.४२७, ६.४३०, ६.४३६,
६.४३८-४४०, ६.४४२-४४३, ६.४५०, ६.४५४, ६.४७८ रायग्गिह १.५४ रायपसेणइज्ज २.८, २.१२ रायप्पसेणइ १.१२ रायपिड १.९२, ५.३८५ रायमइ २.४७ रायरिसि १.८८ रायललिय १.१४२ रायडिसय ३.२२३ रावण १.१४३ राहु १.७९
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शब्द-सूची
रिउमई १.५३ रिउववेद २.१३१, ५.३९४ रिउव्वेय १.३९, १.५५, २.२७, २.३८, ३.१७९, ४.२४३, ५.३९७,
रेवतगपप्वय २.३५, २.३७ रेवती १.८८,१.९९, ४.३४२--३८७, ५.४१०-४१२ रेवय २.१७ रेवय उज्जाण १.४९ रेवयव २.२०, २.४७-४८, ३.२१०-२११ रोड्यावणसाण १.१७ राह१.१४२ रोमय १.१२२ रोमसुहा १.६२ रोह ५.४०४-४०५ रोहगुत्त २.१७२ रोहण २.१७२ रोहिणिय। ६.४५० रोहिणी १.१००, १.१०४, १.१४२, २.४७, ३.२२५, ६४५१,
६.४५३-३५४ रोहिय ४.२६३ रोहियंसा ४.२६३ रोहीडअ २.१८, ६.४९०, ६.४९२
रिक्खा १.१०० रिट्ठ १.४५, १.१३९ रिठ्ठपुरी १.१३८ रिट्ठा १.४५, १.१३८ रिव्वेद २.५७,२.१२३ रुक्खमह ४.२७०, ५.३८२ रुक्खमूल १.७६ रुक्खमूलिय ४.२४४ रुद्द १.३२, २.६१ रुद्दमह ४.२७० रुद्दसमुद २.१४७ रुप्पकूला ४.२६३ रुप्पि १.२७, १.२८, १.३५, १.९५, १.१०१.३.१९१, ४.२६४ रुप्पिणि २.१७, २.२०, २.३४, ३.२०८, ३.२११ रुयग१.७-२० रुयोगद २.६२ रूआसिया १.९ रूय ४.३७५ रूयंसा ३.२२४ ख्यकता ३.२२४ रूयग ३.२२४ रूयगसिरी ३.२२४ रूयविई १.९ ख्यप्पभा ३.२२४ स्यवडेंसय ३.२२४ ख्या १.९, ३.२२४ रूयाणंदा ३.२२४ रूव २.७८, ४.३७४ रूवंसा १.९ १.९ ख्वकता १.९ रूवप्पभा १.९ स्ववई १.९, ३.२२५ रूवा १.२ रूविकाय २.१६४-१६५ रेणा २.१७२ रेवइया १.१०० रेवई १.८७,१.१००, १.१०४, २.१७, २.१९, २.१७५ रेवतग २.३४
लउसिय १.११५ लंतअ २.१०९, ५.३९१-३९२ लंतग १.१५, १.७९, २.९२,२.९७ लक्खणा १.९५, ३.२०८, ३.२११ लच्छिमई १.८, १.१३९ लच्छिमती १.१४२ लच्छी ३.२२६ लदंत २.९७-९८ लट्ठबाहु १.९५ लपाधरग ४.२६० लयाजुद्ध २.७८, ४.३७५ ललियमित्त १.१४२ ललिया २.९३, ३.१८८ लवणसमुद्द १.१.२६, १.३१, १.३३-३४, १.११७-११८, १.१२०,
२.१३६, २.१४०-१४५, ३.१९५, ३.१९७, ३.१९९-२००,
३.२०२-२०५, ६.४५५-३५६, ६.४६९, ६.४७७, ६.४८७ लवणाहिवइ २.१४२-१४३, ३.२०४-२०५ लाद १.७६-७७, ५.४०७ लासिय १.११५ लिच्छई १.८६ लूहजीवी ५.३९२ लहाहार ५.३९२ लेइयापिता ४.२९५
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३८
धर्मकथानुयोग
लेच्छई ५.३८२, ६.४२४, ६.४३४-४३६ लेच्छईपुत्त ५.३८२ लेतियापिता ४.३५१-३५२ लेव २.१४८ लेह १.१९, २.७८, ४.३७४ लोगंतिय १.४५-४६, १.६९, १.७१, १.९० लोगणाह १.१०,१.५६ लोगनाह १.११२, ४.२६६, ४.३६६ लोगपईव १.१०, १.५६, ४.२६६, ४.३६६ लोगपज्जोअगर ४.२६६ लोगपज्जोयगर १.१०, १.५६,१.११२, ४.३६६, लोगपाल १.१०, १.१५-१६, १.२४-२५, १.५६, १.८०, ४.३०८.
लोगप्पदीव १.११२ लोगमज्झावसाणिय १.१७ लोगहिय १.१०, १.५६, ४.२६६, ४.३६६ लोगुत्तम १.३, १.६, १.१०, १.५६, १.११२, ४,२६६, ४.३६६ लोय १.२०, १.४७, १.४९, १.५२, १.७०-७२, १.१३७, २.१५
२.३७, २.४४, २.५९, २.८५, २.९६, २.९९, २.१२५, २.१३२, २.१३७, २.१३९, २.१६९, ३.२१०, ३.२१५, ३.२२१,
३.२३० लोयंत १.८० लोयंतिय १.४९, १.५१ लोहकसाय १.९१ लोहजंघ १.१४३ लोहिच्च २.१७५
वक्कवासी ४.२४४ वग्ग १.१३८ वग्घमड १.२९, ६.४६१ वग्यावच्च २.१७१, २.१७३ वच्छ १.११३, १.१३८, २.१७१, २.१७५, ५.४०७ वच्ठगावती १.१३८ बच्छमित्ता १.६-७ वच्छलिज्ज २.१७२--१७३ वज्ज १.१७ वज्जणाभ १.१०१ वज्जनागरी २.१७२ वज्जपाणि १.१०, १.१८, १.५६, २.१२ वज्जभूमि १.७६-७७ वजरिसहनारायणसंघयण १.२३, १.४८, १.८१, १.११२,
३.२२० वज्जरिसहसंघवण २.४७ बज्जसूलपाणि १.१६ वज्जी ५.४०७, ६.४२४ वट ४.२६४ वट्टखेड्डु २.७८ वडपादप १.४९ पडपाथव ४.२४५ वडमी १.११५ वडैसा ३.२२५ वडुकुमारी ३.२२० वड्ढइरयण १.११७,१.१२४, १.१३३-१३४, १.१४१ वड्ढमाण १.१०१ वड्ढमाणपरिसा २.५० वड्माणपुर ६.४९५ वड्ढमाणसमोसरण २.५० वड्ढरयण १.१३२, १.१३७ वणमाला ४.२५८ वणसंड १.७०, ६.४८४ वणस्सइकाय २.१६६ वणियगाम १.८५ वणियग्गाम २.१०४ वहि १.४५ वत्थविहि २.७८, ४.३७५ वत्थुनिवेसण ४.३७५ वत्थुविज्ज २.७८,४.३७५ वद्दलियाभत्त १.९१, २.२९, २.८२, ४.३७३, ५.३८५ वद्धमाण १.१७, १.५४, १.६७-६८, १.९०, १.९४,-९५
१.९८,१.११९
वइगुत्त २.९९ वइर २.१७१, २.१७३-१७५ वइरजंभ १.१४३ वारणाभ १.९५ वइरसेणा ३.२२५ वडरसेणिय २.१७४ वइरी २.१७३ वइरोयण ३.२१९ वइरोयणिद ३.२१९ वइरोसभणारायणसंघयण २.१३२ वइसमिड २.९९ वइसाह १.७८, १.१००, २.४२, ४.३६१ वउल १.६० वउब्विय १.५३ वउसिया १.११५ बंग ५.४०७
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शब्द-सूची
वद्धमाणग १.११४, १.११६ वप्प १.१३८ वप्पगावती १.१३८ वप्पा १.९५, १.१३९ वमण ३.२२९ वम्मा १.५१ वयगुत्त १.७२, १.८३, २.४८, २.११० वयबलिय १.८२ वयसमिइ १.२०, १.७२ वयहारि १.९४ वरकलस १.१७ बरदत्त १.४९, १.१०१-१०२, २.१८-१९, २.१०४. २.१०८ वरदाम ४.२६३-३६४ वरदामतित्थकुमार १.१२० वरदामतित्थ १.११९-१२० वरमउड १.११४ वरिसघर १.३५ वरुण १.४५, २.१३५, ४.२४४, ४.३५८--३६० वलयमरण २.१२६ वल्ली ३.१८७, ३.२१४ ववसायसभा ४.२६३, ४.२६७ ववहाराग ४.२८२ वसट्टमरण २.१२६ वसह १.५५, १.५९ वसिट्ट १.५२,१.१११ वसीकरण ३.१८७, ३.२१४ वसु १.२६ वसुधरा १.८,१.१३९,३.२६६ वसुगुत्ता ३.२२६ वसुदत्ता ६.४७९-४८० वसुदेव १.१४२, २.२२-२४, २.३३-३४ २.४७ वसुपुज्ज १.९५, १.९८, १.१०९ वसुमती ३.२२५ वसुमित्ता ३.२२६ वसूया ३.२२५ वह २.१७
वाउकुमार १.२५ वाउक्काय १.२५ वाउभूइ १.१११, १.११३ वागरण २.१२३ वागलवत्थनियत्थ ४.२४५ वाणपत्थ ४.२४४ वाणमंतर १.६, १.१४-१५, १.१८, १.१९, १.२४-२५, १.४७,
१.६५-६६, १.६९, १.७४, १.७८-७९, ३.२१९, ४.२४७,
४.२५३ बाणारसी १.३६, १.५१, १.५२,२.६९, ३.२२४,३.२२६,३.२२८
२३०, ४.२४३-२४४, ५.४०५, ६.४७६, ६.४७८. वाणिज्य २.१७३ वाणियगाम ४.२९५, ४.२९९-३०२, ४.३६०, ६.४६५-४६६,
६.४६९ वाणियग्गाम २.३, २.११, २.९७ वामणि १.११५ बामा १.९५ वायगवंसी २.१७५ वायुभक्खी ४.२४४ वायुमति १.१११ वारत्त २.९२ वारत्तअ २.९७ वाराणसी १.१४०, ४.३१२-३१३, ३४.३१७-३१८, ६.४४८ वाराह १.१०१, १.१४२ वारिणी १.३५ वारिसेण १.९४, २.३४, २.९७, ३.२०८ वारिसेणा १.६-७ वासणि १.८,१.१०२ बालुयप्पभा १.१४४, ३.२०९, ५.४१६ वासंतिमंडवग ४.२६०-२ वासंतिय १.६० वासधर १.११९ वासवदत्त २.१०८ वासिट्ठ १.५६-५९, १.६८, १.१११, १.११३ २.१२२, २.१७१,
२.१७२-१७४ वासिठिया २.१७३ वासुदेव १.५७, १.६४, १.९३-९४, १.१०४, १.१३९, १.१४३
१४४, २.१७-१८, २.२०, २.२४-२७, २.२९, २.३१--३७, २.४७, ३.१९०-१९५, ३.१९७-२०५, ३.२०८-२११, ४.३७१ वासुदेवत्त १.५४ वासुदेवमाउ १.१४२-१४३३ वासुदेवमायर १.६४ वासुपुज्ज १.९४-९७, १.१०१, १.१०९-११०
वाइ १.४७, १.५०, १.५३, १.८८.१.१०६ वाइत्त ४.२५६, ४.२६४ वाइय २.७८, ४.३७४ वाइसंपया १.८८,१.१०६ वाउ १.२५ वाउकाय १.७५, २.३६, २.१६६
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४०
वाहणसाला ६.४२२
अट्टम ४.२६६
विअत्त १.१११
विउलमइ १.२२, १.५३, १.८२, १.८७, ४.२७६
विउलम संपया १.८७
विउलमति १.५०
१.८१
farariपडिमा १.८३
विझगिरि २.८७-८८, ५.४१३
विशगिरिपाय ५.४१७, ६.४९६
विक्खेवणी १.८४
बिगमड १.२९, ६.४६१
विचित्ता १.६-७
विजय १.७०-७१, १.७८, १.१०१. १.१०४, १.१३५-१३६, १.१३९, १.१४२-१४३, २.६६, २.९८, २.१०७, २.१२०, २.१६०, ५.३९५-३९६, ६.४३६, ६.४३९, ६.४३७, ६.४३९४४४, ६.४५९-४६० ६.४६३-४६४ ६.४७१-४७३, ६.४९५ विजयपुत्त ६.४७१
विजयपुर २.१०८, २.१३८, ६.४८५
विजयमित्त ६.४६५, ६.४६९, ६.४९५
विजयमाण ६.४९५
विजयवद्धमाण ६.४६२-४६३
विजयविमाण २.९७
विजया १.७, १.९५, १.१००, ११३९, १.१४२, ३.२२६
विज्जकुमार ५.४१७
२.२२९ विज्जाहर १.८२ २.१७ विज्जाहरकन्नगा २.१४१
विज्जाहरगइ १.१२९
विज्राहरगोवाल २.१७३
विज्जाहरचारण २.३५, २.३७, २.८०
विज्जाहरराइ १.१२९
विज्जाहरराय १.१२९
वाहर सेठि १.१२७
विज्जाहरी २.१७३, ३.१९५ विज्जु १.७९, ३.२२३
विण १.१५
विज्जू सिरी ३.२२३
विगमि १.१२९
विषय २.३९
२.४०
विणीया १.२० १.१००, १.११४- ११६. १.१२३, १.१३१,
१.१३३-१३७
विष्ण १.१०१
विह १.९५, २.२० २१ २.१७४
वितत १.१७
विदन्भ १.१०१
विदिशा ४.२६२
विदुर ३.१९१
विदेह १.३८, १.६८, १.७१, ६.४३३-४३४
१.६८ १.७१
वेण १.३०, १.४२
विदेहविण १.६८
विदेहविगा १.६८
विदे१ि.७१
विदेहपुत्त ६.४२४, ६.४३५ विदेहरकरणमा १.१०१
विदेहरायवरकन्ना १.२८, १.३०, १.३५, १.३७-४४
विदेहवर रायन्ना १.३४,१.३६
१.६८
१.७१ १.१२९
विप्पोसहि १.८२
विभंगनाण २.१३१-१३२, २.१३५
विमल १.१४, १.७९-८०, १९४-९६ १.९८ १.१००, १.१०४१०५ १.१०९-११०, २.३ २.१०-११, ५.४१४ विमलोस १.३
विमलवाहण १.४ १.९०, १.९५, ११३९, २.१०८, ५.४१४ - ४१५
विमला १.१००, ३.२२५
विमाणकारि १.१४-१५ विमाणभवण १.५५,१.५९ विमाणवासि १.६६, १.६९,१.८० विमाणवासिदेव १.६५,१.६८
१.१० १.५६ १.८० १.११२
विडावइ ४.२६४
वित्त १.११३
विरमजीवी ५.३९२
विरसाहार ५.३९२
विराट ३.१९१
विरेण ३.२२९
विलाइ १.११५
विलेवणविहि २.७८, ४.३७५
१.८४
विवित्तजीवी ५.३९२ विवेगपडिमा १.८३ विमनंदि १.९४२
धर्मको
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शब्द-सूची
विसभक्खण २.१२६ विसाल १.१०० विसालकित्ति २.१२० विसाहा १.५१-५३, १.९९-१००, २.. विसाहु १.१०० विसिट्र ३.२२४ विसुद्धजातिकुलवंस १.५७-५८ विसुद्धपिइमाईवंस १.२७ विसुद्धवंस १.९५, १.१०२ विस्तभूइ १.५४,१.१४२ विस्सवाइयगण १.१११ विस्ससेण १.९५, १.१३९ विहार २.४०-४१ वीचिधम्मक २.१७२ वीतसोगा १.१३८ वीतीभय २.१३७-१३९ वीयणि १.११४ वीयबुद्धि १.८२ वीवसोगा १.२६ वीयीत्रय २.१३९ वीर १.६९, १.७६-७७, १.९७,१.१००, १.१०८-१०९, १.१११ वीरंगय १.८८,२.१८-१९ वीरकण्ह ६.४२५ वीरकण्हमित्त २.१०७ वीरकण्हा ३.२३४-२३५ वीरजस१.८८ वीरपुर २.१०७ वीरभद्द १.५२,१.१११, २.१०८ वीरसेण २.१७,२.२०, २.१०८ वीरिय १.१११ वीसतिम १.१०१ वीसयोगा १.४३ वीससेण १.१०१ वुड्ढ २.१७४ वह २.७८,४.३७५ वेउविज्ज १.१६ वेउव्विय १.२२, १.४७, १.५०, १.१०६ वेउब्वियसंपया १.२२, १.१०६ वेउब्बियसमग्धाय १.७, १.१२, १.१६, १.४५-४६, १.५८, १.६९
-७०, १.१२६, १.१३४-१३५, २.६२, २.७५, २.१४३ .
-१४४, ३.२०२, ४.२४७-२४९, ४.२५३-२५४, ४.२६३ . वेउव्विसपया १.८७ वेजयत २.९८
वेजयती १.७, १.१००, १.१३८, १.१४२ वेडसिरुक्ख १.१०१ वेणा २.१७२ वेणुदालि ३.२२४ वेणुदेव ३.२२४ वेद २.१२३ वेदब्भी २.३४ वेत्रारागिरि २.७३-७६ वेमाणिय १.१०, १.१४, १.१८-१९, १.२४-२५, १.२८, १.४७,
१.५६, १.६६, १.७४, ४.२४६-२४७, ४.२४९,
४.२५२-२५३, ४.२६०, ४.२६७ वेमाणियदेव १.११ वेयड्ढ १.१२१, ४.२६४ वेयडढगिरि १.८९, १.१३७, २.१७, २.३४, २.८६-८७, ६.४६४ वेयड्ढगिरिकुमार १.१२१ वेयड्ढपव्वय १.१२१, १.१२९ वेयणिज्जाउयनामगोत्त १.५०,१.५३ वेयवाइ २.६५ वेयावत्त १.७८ वेलंव ३.२२४ वेस २.६६ वेसमण १.१८-१९,१.२६, १.३२,१.४५, २.६१, २.१०८,२.१३५,
२.२४४, ६.४९३ वेसमणकुंडधारी १.६४ वेसमणकुंडलधर १.६९ वेसमणदत्त ६.४९०, ६.४९२-४९३, ६.४९५ वेममणभद्द २.१०८ वेसमणमह ४.२७० वेसवाडियगण २.१७३ वेसालियसावय २.१२३-१२५ वेसाली १.८५, ४.३५८,५.४०५, ६.४३१-४३४ वेसियायण ५.३९८-३९९ वेहल्ल २.९७-९८,२.१०४, ६.४३१-४३४ वेहाणस २.१२६ वेहायस २.९७-९८ । वेहास २.१४५ वोक्कासियदोस १.९४
सउण ४.३७५ सउणरूत २.७८ सउणि ३.१९१ सएरा १.८ संकरिण १.१४३
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धर्मकथानुयोग
संकुचियपसारिय १.१७ संख १.२७-२८, १.३६-३७, १.८७-८८, १.९५, १.१०१,
१.१०४, १.११४, १.१३१-१३२, १.१३८, २.३८,
२.१२३, २.१३८, ४.३५४-३५७ संखधम ४.२४४ संखपरिव्वायग २.६५ संखवण २.१३१-१३२, ४.३२२-३२३, ४.३५२-३५४ संखवाणिय ४.२७५ संखवालय २.१६४ संखसमय २.३८ संघपालिय २.१७४ संघवालिय २.१७४ संजय १.८८, २.१११-११२, २.११८-११९ संडिल्ल २.१७४-१७५ संति १.९४, १.९५-९७, १.९८-१००, १.१०५-१०६, १.१०८, १.१०९-११०, १.१३९-१४०, २.११२, २.१२० संतिकम्प २.९ संतिसेणिय २.१७३ संधिपाल २.१३३, ४.३५८ संधिवाल ४.२७८,४.३६९ संपक्खालग ४.२४४ संब२.१७, २.२०, २.३४, ३.१९५, ३.२०८, ३.२११ संबाह ६४५६ संभव १.९४-९८, १.१०८-१०९ संभिन्नसोय १.८२ संभूत १.१४२ सभूतिविजय २.१०८ संभूय २.१५, २.१७५ संभूयविजय २.१७१-१७२ संमुइ १.४, १.८९ संमुति १.४, ५.४१३ संलेहणा १.२७, १.१३७, २.११, २.१३, २.१५, २.१९-२२,
२.४३, २.४६, २.४९-५०, २.५५, २.५९, २.६२, २.९०९२, २.९६, २.१०३-१०४, २.१०७, २.१०९, २.१२९१३०, २.१४०, २.१४७,२.१५३, २.१६३, ३.१८९, ३२०७, ३.२१५, ३.२१८, ३.२२२, ३.२३०, ३.२३३-३२३६, ४.२४६, ४.३०४, ४.३१६, ४.३२२, ४.३२७, ४.३३१, ४.३४१, ४.३४७, ४.३४९, ४.३५२, ४.३५४ ४.३७२,
४.३७४-३७५, ५.३९१, ५.४१५, ६.४४४, ६.४९७ संवर १.९५, १.१०४,२.६४, ४.२७१ संवेयणी १.८४ संसत्त३.२२२ संसारकतार १.७४
सक्क १.१०,१.१५,१.१८-१९, १.२३-२५, १.३२-३३, १.४४
४६, १.५६-५९, १.६४, १.६९, १.७१, १.१२६, २.१२-१३, २.३६,२.५५, २.७५, २.१२०, ३.३.२१९, ३.२२६, ३.२३१,
३.२३३, ४.३०८, ६.४२५, ६.४९९, ६.५०१ सक्करप्पभा ५.४१६ सक्कवज्जा १.१५ सक्किद ६.४९८ सगड ६.४५९, ६.४७६-४७८ सगडमुह १.२१-२२ सगडवह २.७८,४.३७५ मगर १.१३९-१४० सचित्तकम्म १.५९ मच्चइ १.१०४ सच्चमि २.३४,३.२०८ सच्चभामा ३.२०८,३.२११ सच्चवयणाइसेस १.१०३ सच्चसेण १.९४ सज्जीव २.७८, ४.३७५ सठितंत २.३८, २.१२३ सडंग २.१२३ सड्ढई ४.२४४ सणंकुमार १.७९, १.१३९-१४०, २.११, २.९२, २.९७, २.१०७,
२.१०९, २.१२०, ५.३९२, ५.४१८ सणंकुमारग १.१५ मणिच्छर १.७९ सण्णिवेस ६.४५६ सतअ १.८८, १.१०४ सतक्कतु १.५६ सतदुवार १.८९-९० सतधणु १.४ सतेरा १.८, ३.२२४ सत्तधणु २.१७ सत्तवण्णवडिसय ४.२५७ सत्तसिक्खावय २.५४, २.१०५-१०६, ३.१८७, ३.२१५, ३.२१८,
४.२४५, ४.२९३, ४.२९६, ४.२९८, ४.३०५, ४.३१३, ४.३२३, ४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१, ४.३६६,
४.३७१ सत्तिवष्ण १.१०१ सत्तिवन्नवण ४.२५९ सत्तिहत्थ १.९६ मत्तसेण २.२२ सत्थनायग १.८२ मत्थप्पओग १.१२६
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शब्द-सूची
सत्थवाह २.६१, २.१०५-१०६, २.१३३, २.१३७-१४०, ३.१८७,
३.१९०, ३.१९६, ३.२१६, ४.२७२, ४.२७८,४.२९५-२९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२३, ४.३२८, ४.३३४-४३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१, ४.३५८, ४.३६२, ४.३६५, ४.३६९, ५.३८२, ५.४१४, ६.४४२, ६.४५०, ६.४६९
४७०, ६.४८०, ६.४९४--४९५ मत्थवाहपुत्त २.९८ सत्यवाही २.९९, २.१०४ सद्द १.९१ मद्दालपुत्त ४.२९५, ४.३३२-३४१ सदावह ४.२६४ सप्पलय २.१७४ सप्पियासव१.८२ सबरी १.११५ समज्जग ४.२४४ समण१.१७, १.२०, १.२२-२३, १.६७-६८, १.७४, १.७७,
१.८७, १.९०-९२ समणधम्म १.७१, १.९१, २.८४ समणपइ १.८० समणसंघ १.७४ समणसंपया १.२२, १.४७, १.४९, १.५२, १.८७,१.१०५ समणोवासग १.२२, १.३३, १.५०, १.५२, १.६८, १.८७ समणोवासगपरियाग १.६८, २.१४०, ४.२४६ समणोवासगसंपया १.२२, १.५०, १.५२ समणोवासय १.३१-३३, १.४७ समणोवासिगा १.५२ समणोवासिया १.२२, १.८७ समणोवासियासंपया १.२२ समताल २७.८,४.३७४ समवसरण २.३५, ४.३१७, ४.३२२-३२३, ४.३२८, ४.३३०,
४.३४२, ४.३४६, ४.३४८, ४.३५०, ४.३६३, ४.३६९ समाणिअ १.३१ समाहार १.८ ममाहि १.१०४ समाहिमरण ३.१८०-१८१, ४.३२७, ४.३३१, ४.३४१, ४.३४९.
४.३७२ समिइ १.७३ समिय २.१७३ समुद्द १.१४२, २.२१, २.२२, २.१७५ समुद्ददत्त १.१४२, ६.४८८-४८९ समुद्ददत्ता ६.४८८-४८९ समुद्दपाल २.११४-११५
समुद्दविजय १.४८, १.९५, १.१३९, २.१७-१८, २.२०, २.३४
३५, २.४७-४८, ३.१९०-१९१ समोसरण १.१५, २.५०, २.९४, २.१०४, २.१०७, २.१२३,
२.१२९, २.१३१, ४.२५४-२५५, ४.२८४, ४.३५३-३५४, ४.३६०, ४.३६६, ४.३७०, ४.३७६, ५.३९३, ६.४२१, ६.४२५, ६.४६०, ६.४६६, ६.४७१, ६.४७६, ६.४७९,
६.४७९, ६.४८४, ६.४८८, ६.४९० मम्मा १.१०२ सम्मेय १.४८ सम्मेयसेलसिहर १.५३ सयजल १.४ सयपभ १.३-४,१.१०४ सयंभू १.१०१, १.१४२, १.१४४ सयंभूरमणसमुह २.१३६ सयंसंबुद्ध १.१०, १.५६, ४.२६६ सयणविहि २.७८,४.३७५ सयदुवार २.१०८, ३.२०९, ५.४१३-४१४, ६.४६२ सयधणु १.४,२.१७ सयय १.९४ सय रह १.४ सयाउ १.४ सयाणीय ३.२३६, ६.४७९-४८० सरगय २.७८,४.३७४ सरण १.३ मरणदय १.१०,१.५६, १.८०, १.११२, ३.२२०, ४.२६६, .
सरमह ४.२७० सरवण ५.३९४ सरस्सई २.१०७, ३.२२५ सरिस १.७९, ३.२२८ सरीरसंलेहणा १.६८ सलिलावई १.२६ सलिलावती १.४३, १.१३८ सल्ल ३.१९१ सवट्ठ १.५४ सवण १.९९, १.१३८ सवणी १.१०० सव्वओभद्द १.१४, १.७९-८०, ३.२२५, ६.४७९, ६.४९६ अव्वओभद्दपडिभा १.८३ मव्वक्खरसन्निवाइ १.८७, १.११२ सव्वगा १.८ मन्वट्ठसिद्ध १.५, १.८६, २.९८, २.१०३-१०४,२.१०७,
३.१८१.५.४१८
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धर्मकथानुयोग
सव्वट्ठसिद्धविमाण २.२० सव्वण्णू १.१०, १.८७, १.८०,१.९०-९१, २.१४, २.५७,२.१२४,
२.१३२, २.१३६, ३.२२०, ३.२३७, ४.३६६ सव्वदरिसी १.१०, १.२१, १.५६, १.८०, १.९०-९१, १.११२,
२.१४, २.५७, २.१२४, २.१३२, २.१३६, ३.२२०, ३.२३७,
सामज्ज २.१७५ सामग्णपरियाग १.२७, १.५४, १.९२, २.११, २.१३, २.२०-२१,
२.४३, २.४६, २.४९, २.५५, २.५९, २.६८, २.९१-९२, २.९६-९७, २.१०७, २.१४७, २.१५८, २.१६७, ३.१८९, ३.२०७, ३.२१०, ३.२१५, ३.२१८, ३.२२२, ३.२३०,
३.२३३, ३.२३५, ५.३९२, ५.४१५, ६.४६४ सामग्णपरियाय १.२३, १.११२, १.१३८, २.२७, २.५०, २.९८,
सव्वन्नू १.२१, १.५६, १.११२, ४.२६६ सव्वभावदरिसी १.७८ सव्वरयण १.१३१ सव्वाणंद १.९४ सव्वाणुभूइ १.१०४ सव्वाणुभूति ५.४०५, ५.४१२-४१३ सध्वोसहि १.८२ ससि १.५५, १.५९, १.९४ ससिप्पह १.९८ सहकार १.६० सहदेव ३.१९१ सहदेवी १.१३९ तहसंबवण २.१० -१२, २.१४, २.२३, २.२७,२.३०, २.९८-१००,
२.१०३, २.१३३, २.१३६-१३७, ३.२१०, ३.२२५ सहसंबुद्ध १.८०, १.११२, ३.२२० सहस्संबवण १.४७, २.५, २.१०५, ३.२०६-२०७, ४.३२७
३२८, ४.३३०, ४.३३२-३३३, ४.३३५ सहस्सक्ख १.१०, १.५६ सहस्साणीय ३.२३६ सहस्सार १.१५, १.५४, १.७८, २.९२, २.९७, २.१०९, ५.४१३ साइ १.८६, १.१०४, २.१७५ साएय १.१४०, २.९७,२.१०८, ३.२२६ साकेत २.१०४ सागर १.५५, १.५९, १.७३-७४, १.११४, १.१४२, २.२०-२१ सागरदत्त ३.१८२-१८८, ६.४४५, ६.४८४-४८६ सागरदत्तपत्त ६.४४५-४४६ सागरदत्ता १.१०० सागरमह ४.२७० सागरय ३.१८३-१८५, ३.१८७ सागार १.३२, १.७५ सागेय१.२९-३०, ३.२२५ साण २.६१,५.३९३ साणको?अ ५.४१०-४११ साणकोट्टग ५.४१२ साम १.२९, ४.२६९, ६.४२७, ६.४८१ मामकोट्ठ १.९४ सामचंद १.९४
सामणोवणिवाइय १.१७ सामन्नपरियाग १.५०, १.८६ सामन्नपरियाय १.५३ सामवेद १.३९, २.५७, २.१२३ सामवेय १.५५, २.३८, ३.१७९, ६.४७९ सामा १.९५, ४.३१२,६.४९१ सामाइय १.७१-७२, २.११, २.१३, २.१९, २.२१-२२, २.३७,
२.४२, २.४४, २.४९-५०, २.५९. २.६८, २.८९, २.९१९२,२.१००, २.१०७, २.१०९, २.१२८,२.१५३, २.१५८,
३.२०७, ३.२१०, ३.२१८, ३.२२२-२२३, ३.२३३-२३६ सामाश्य चरित्त १.४७, १.७१ सामाग १.७८ सामाणिय १.६-७, १.१०, १.१२-१६, १.१८, १.२४, १.४५,
१.५६, १.८०, २.४९-५०, ३.२१९, ३.२२२, ३.२२६, ३.२२८,३.२३३, ४.२४३, ४.२४६, ४.२५१-२५३, ४.२६४
२६५, ४.२६७, ४.२९०, ४.३०८, ६.४९८-४९९ मामाणियपरिसोववण्णग ४.२६८ मामाणियपरिपोववन्नग ८.२६५ सामुच्छेइत ५.३८१ मामच्छेइय १.८८ मामुद्दददुर १.४० सामविजय ३.१९९ मारण २.२२, ३.१९५ सारस १.६० सारस्सय १.४५ सारहि ४.२७१ साल १.१०१ सालधरग ४.२६० सालभंजिया ४.२५८ सालरुक्ख १.७८ सालाडवी ६.४७१, ६.४७३-४७५ सावगधम्म १.९१, २.१८, २.१०७-१०९, ३.२१८, ४.२४३,
४.२९६, ४.२९८, ४.३०५, ४.३१३, ४.३२३, ४.३२८,
४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१, ४.३६२ सावज्ज ४.३७३
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शब्द-सूची
सावण १.४९, १.५३, २.४२, ४.३६१ सावत्थिया २ २.१७३
सावत्थी १.३५ १.८५, १.८८, १.१४०, १.१४२, २.४९-५०, २.९७, २.१२३-१२५, ३.२२४, ३.२२६, ४.२६९-२७०, ४.२७२-२७३, ४.३४७-३५१, ४.३५४-३५६, ५.३८१, ५.३८९, ५.३९३-३९४, ५.४००, ५.४०५-४०८, ५.४१० सावय १.४७
मावयधम्म २.१८, २.५४, ४.२४६
१.१०४
साविया १.७४, १.८८
सावियासंपया १.१०६
सासर्याभिसा १.१००
साहंजण ६.४७६
साहंजणी ६.४८४ माहू १.३
सिंधु १.१२०-१२२, १.१२४, १.१२६, १.१२८, १.१३०, ४.२६३
सिंधु देवीभवण १.१२०
सिंधु सागरंत १.१२२
सिंधु सोवीर २.१३७-१३९ हिल १.१२२
१.११५
सिक्खाकप्प २.१२३
सिखावय १.९१, २.२.३९, ४.३२८
सिज्जंभव १.११३, २.१७५
सिज्जंस १.९८
सिणायग २.६५
सिद्ध १.३, १.१७, १.२३, १.२७, १.४७, १.७१, १.८५८६, २.११२, २.१२६
सिद्धत्थ १.१६ १.५४, १.५७- ५९, १.६१-६४, १.६६, १.६८, १.९४-९५, १.१००, २.१८, ६.४८४
सिद्धत्थगाम ५.३९८
१.५४ सिद्धत्थवण १.२० १.७० सिद्धत्था १.९५
सिद्धायतण ४.२६६-२६७
सिद्धायतन ४.२६५
सिद्धि २.१२६
सिप्प १.१९ सिप्पायरय ४.२८५ सिबिया ३.२१० सिबियारयण २.४७ सिया २.६० सियाणगभोयण २.६५
सिरि १.८, २.१०७, ३.२२६
सिरिउत्त १.१३९
सिरिकता १.४ १.१०८ २.१७२
सिरिघर १.१३७ सिरिचंद १.९४
सिरिदाम ६.४८१, ६.४८३
सिरिदेवी १.१३९, २.१०७-१०८ ३.२२६
मिरिघर १.१११
समूह १.१३९
मिरिया १.९५
सिरिवच्छ १.१४ १.७९-८० १.११६, १.१२३, २.२३-२४, २.८४
मिति १.१०
सिविडिस ३.२२६, ३.२२८
सिरिवण २.२२, २.६६-६७
सिरिस १.१०१
सिरिसोम १.१३९
सिरिहर १.५२
सिरी २.६६, ६.४६५, ६.४६९, ६.४८८, ६.४९०, ६.४९३-४९४
सिरीस १.६०
सिलिया ३.१८७, ३.२१४
सिलोय २.७८, ४.३७५
सिव १.३२, १.८८, १.१४२, २.४९-५०, २.६१, २.१३३-१३७
सिवणंदा ४.२९५, ४.२९९-३००
सिद्द २.११ २.१३३-१३४
विइ २.१७४
सिवमह ४.२७०
सिवसेण १.९४
४५
सिवा १.४८, १.९५, १.१०२, २.३४, २.४७
सिविया १.२४ ९.५२ १.७० २.३७
सिसुपाल ३. १९१
सिंह १.५५
सिहरी ४.२६३
सिहि १.५९
सीअल १.९८
सीओदा १.२६
सीओया ४.२६४
सीतल १.९५ १.९७
सीता १.९३ १.१३८
सीतोया १.१३८
सीत्थिय १.११४ सीकर १.४
सीमत १.८९
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४६
धर्मकथानुयोग
सीमंधर १.४ सीयल १.९४ १.९६ १.९९-१०० १.१०९-११० सीया १.८ १.२० १.२६ १.४६-४७ १.४९ १.५२ १.७०-७२
१.१०० १.१४२, २.१३-१४, २.२.३७ २.४३-४४, २.४७, २.५५, २.८३-८४, २.९२, २.१६७,
३.१८३, ३.२०६, ३.२१०, ३.२१२, ३.२१५, ३.२३० सीयामह २.१६७ सीलव्वय गुणवेरमणपच्चक्खाण १.३२-३३ सीवग १.१३२ सीह १.५५, १.५९, १.९८, २.१७४-१७५, ५.४११-४१२ सीहगिरि १.९५, २.१७१, २.१७३, ६.४७७ मीहगुहा २.१६०-१६२ सीहनिककीलिय १.२७, १.८३, ३.२३५ वीहपुर १.१३८, ६.४८१ सीहमड १.२९, ६.४६१ सीहरह १.९५, ६.४८१ सीहसेण १.९५, १.१०१, २.९८, ६.४९१-४९२ सीहासण ९.११४, ४.२६० सुआइक्ख १.१०४ सुई १.१०२ सुंदर १.९५ सुंदरबाहु १.९५ सुंदरी १.२२, १.१४० सुंभ १.५२, ३.२२४ सुंभवडेंसय ३.२२४ सुंभसरी ३.२२४ सुंभा ३.२२३-२२४ सुंभुत्तर ५.४०७ सुसुम २.१६४ सुंसुमा २.१५९, २.१६१-१६३ सुसुमारपुर ६.४९७-४९८ सुकच्छ १.१३८ सुकण्णा २.१०८ सुकण्ह ६.४२५ सुक हा ३.२३४-२३५ सुकाल २.१०८-१०९, ६.४२५, ६.४३५ सुकाली २.१०१,३.२३४-२३५, ६.४३५ सुकोसल १.९४ सुक्क १.७९,२.४९, ४.२४३, ४.२४६ सुक्कवडिसय ४.२४३, ४.२४६ सुग्गीव १.९५, १.१४३,२.११५ सुघोस १.३, १.१५, २.१०८ सुषोमा ३.२२५
सुचंद १.९४ सुजणतुलकन्नगा २.१४१ सुजसा १.९५ सुजाय २.१०४, २.१०७ सुजाया ३.२३३ सुट्टिय २.१७१-१७३, ३.२०० सुट्ठियदेव ३.१९९ सुणंद १.१०१, ५.३९६-३९७ सुणदा १.१३९ सुणक्खत्त २.९८,२.१०४ सुणह्मड १.२९ सुण्णगार १.७६ सुतितिक्ख १.१०४ सुत्त २.७८ सुत्तखंड २.७८ सुदंसण १.१६, १.९५, १.११९, १.१३९, १.१४२-१४३, २.३,
२.५, २.११-१२, २.३८-४०, २.९२, २.९४-९७, ३.३.२२७,
२२७ सुदंसणा १.२०, १.६८,१.१००, १.१४२, ३.२२५ सुदत्त २.१०५-१०६ सूदरिसण ६.४८१ सुदरिमणा ६.४७६, ६.४७८ सुदाम १.३ सुद्धदंत १.१३९, २.९८ सुधन्म २.१०८ सुनंद १.५२,१.१०४, ६.४६६, ६.४६८ सुनंदा १.५२ सुनवखत्त ५.४०६, ५.४१२-१३ सुनाभ ३.१९५ सुपइट्ठ २.४९-५०, २.९२, २.९७, ६.४९०, ६.४९२ सुपइट्टपुर ६.४६५ सुपडिबद्ध २.१७१ सुपम्ह १.१३८ सुपस्स १.१०४ सुपास १.३, १.६८, १.८८, १.९४-९६, १.९८, १.१०४, १.१०६,
१.१०९-११० सुप्पइष्णा १.८ सुप्पडिबुद्ध २.१७२-१७३ मुप्पबुद्धा १.८ सुप्पभ १.४, १.९४, १.१४२-१४३ सुप्पभा १.१००, १.१४२ सुप्पसिद्धा १.१०० सुबंधु १.४, १.१४२, ६.४८१
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शब्द-सूची
सुबाहु १.३५, २.१०८ सुबाहकुमार २.१०४-१०७ मुबुद्धि १.२९, १.३०, २.५१-५५ सुब्भभूमि १.७६ . सुभ १.१११ सुभगा ३.२२५ सुभघोस १.१११ सुभद्द १.१४२, २.१०८, ६.४७६-४७७ सुभद्दपडिमा १.८३ सुभद्दा १.२२, १.१३७, १.१३९, १.१४२, २.१०८, ३.२२७,
२३०, ३.२३३, ४.३६८, ४.३७०-३७१, ६.४६५, ६.४६८
सुभा १.१३८ सुभूम १.४, १.१३९-१४० सुभूमिभाग १.९०, २.३८, २.४३-४४, ३.१७९-१८१, ३.१८८,
५.४१४-४१५, ६.४४४-४४६, ६.४५० सुभोगा १.६ सुमइ १.४, १.९६, १.९८, १.१०१, १.१०८-१०९ सुमंगल १.९४, ५.४१४-४१५ सुमंगला १.१३९ सुमणदाम १.१६ सुमणभद्द २.९२, २.९७ सुमणा १.१०२ सुमणाइया ३.२३३ सुमति १.९४-९५, १.१०८ सुमरुता ३.२३३ सुमिणभद्द २.१७२ सुमित्त १.४७, १.९५, १.१०१ । सुमित्तविजय १.९५, १.१३९ सुमुह २.३३, २.१०५-१०६, ३.१९५ सुमेघा १.७ सुमेरुप्पभ २.८६-८७ सुमेह। १.७ सुय २.३८-४०, २.४२-४३ सुयनाण ४.२७६ सुयसागर १.९४ सुर १.४५, १.७०, १.९५ सुरग्गि ३.२०९ सुरद्वाजणवय ३.१९०-१९१, ३.१९८, ३.२०६ सुरणुचर १.१०४ सुरप्पिय २.१७, २.२०, २.३४-३५, २.३७ सुरादेव ४.२९५,४.३१७-३२१ सुरादेवी १.८, ३.२२६
सुरिद १.१०,१.१४, १.२४, १.४६, १.५६, २.४९ सुरिंददत्त १.१०१ सुरिंदवज्जिय १.१५ सुरियाभ २.१८, ४.२९० सुरूआ १.९ सुरूव १.४ सुरूवा १.९, ३.२२५ सुलसा १.८७-८८, १.१०२, १.१०४, २.२२, २.२४-२५ सुलसाचरिय २.२५ सुवग्गु १.१३८ सुवच्छ १.१३८ सुवच्छा १.६-७ सुवण्ण १.१५, १.७९, १.१०३, १.११७, ४.२७१ सुवष्णकार १.१३२ सुवष्णकुमार ५.४१७ सुवण्णकूल। ४.२६३ सुवणगारसेणि १.३५-३६ सुवष्णजुत्ति २.७८, ४.३७५ सुवण्णपाग २.७८, ४.३७५ सुवन्नपत्तिया २.१७२ सुवप्प १.१३८ सुवासव २.१०४, २.१०८ सुविभज्ज १.१०४ सुविहि १.९५-९६, १.१०८-११० सुन्वत १.१०१ सुचय १.९४, १.९८,१.१०९,२.१७४ सुब्धया १.९५ सुसमदुसमा १.२३, १.५४ सुसमसुसमा १.५४-५५ सुसमा १.५५ सुसरघंटा ४.२४८ सुसाण १.७६ सुसाण १.७६ सुसीमा १.९५, १.१३८, ३.२०८, ३.२११ सुसेण १.१२१-१२३, १.१२६, १.१२८, १.१३०-१३१, ६.४७६,
सुस्सर १.१५, ३.२२५ सुस्सरणिग्घोस १.१५ सुहत्थि २.१६४, २.१७१, २.१७५ सुहपरिकम्मणा १.६२ सुहम्म १.१०१, १.१११, १.११३, २.१७१, २.१७५, ६.४५९
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४८
धर्मकथानुयोग
सेणावइ २.६१, २.१०५-१०६, २.१३३, २.१३७ १३९, ३.१८७,
३.१९०, ३.१९६, ३.२१६, ४.२७८, ४.२९५-२९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२३, ४.३२८,४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१, ४.३५८, ४.३६२, ४.३६५, ४.३६९, ५.३८२, ५.४१४, ६.४५०, ६.४७०, ६.४८०, ६.४९४,
सेणावइपुत्त ५.३८२ सेणावइरयण १.१३१,१.१३४-१३७ सेणावतिरयण १.१४१ सेणि १.३५-३८ सेणिपसेणि १.१३२ सेणिप्पसेणि १.४६, १.११६, १.१२०, १.११८, १.१३२, १.१३४,
१.१३६-१३७, २.७७ सेणिय १.८८-८९ १.१०४ १.११२ २.४९-५०, २.६९-७७,
२.८२-८५, २.८९, २.९२-९४, २.९७--९८,२.१०२-१०४, २.१०८-१०९, २.११२-११४, २.१७३, ३.२१९, ३.२२६, ३.२२८, ३.२३३, ३.२३५, ४.२४३, ४.२९०:२९१, ४.२९४, ४.३४२, ६.४२१-४२३, ६.४२५, ६.४२७, ६.४२७, ६.४३०
सुहम्मा १.१०-११, १.१५, १.२५, १.३३, १.५६, २.१८, २.३५,
२.४९-५०, ३.१९०, ३.२२५-२२६, ३.२२८, ४.२४६,
४.२४८,४.२६१-२६३, ४.२६७,४.२९०, ६.४९८, ६.५०१ सुहावह १.२६ सुहम १.४ सूमालिया ३.१८२-१८९, ३.२०७ सूय १.१३२, १.१३६ सूयगड १.७३ सूयार१.१३७ सूर १.७९, १.११३, १.१३९, २.४९-५०, २.९२, २.९७-९८,
२.१०३, ३.२१९, ३.२२५ सूरदेव १.१०४ सूरप्पभ ३.२२५ सुरप्पभा ३.२२५ सूरप्पह १.१०० सूरसिरी १.१३९, ३.२२५ सूरसेण १.९४ . सूरिय २.११, २.२० सूरियकंत ४.२६८, ४.२८६ सूरियकता ४.२६८, ४.२७७, ४.२८५-२८६ सुरियाभ २.४९-५०, ३.२००, ३.२२८,४.२४६-२४९, ४.२५१
२५४, ४.२५६-२५७, ४.२५९-२६०, ४.२६२-२६५,
४.२६७-२६८, ४.२८७ सूरियाभविमाणवासि ४.२५२, ४.२६४, ४.२६७ सूरियाभरायहाणि ४.२६५ सूरिल्लियमंडवग ४.२६० सूलपाणि १.१४, १.१८, १.२४ सूवकार १.१३२ सुसरा २.४९, ३.२२८ सेचणय ६.४३१ सेज्जस १.२२, १.६८, १.९४-९६ १.९८, १.१०१, १.१०९
११०, २.१७१ सेज्जायरपिंड १.९२, ५.३८५ सेट्टि २.६१, २.१०५-१०६, २.१३३, २.१३७-१३९, ३.१८७,
३.१९०, ३.१९६, ३.२१६, ४.२७८, ४.२९५-२९६, ४.२९९, ४.३१३, ४.३१८, ४.३२३, ४.३२८, ४.३३४-३३५, ४.३४३, ४.३४८, ४.३५१, ४.३५८, ४.३६२, ४.३६५, ४.३६९, ५.३८२, ५.४१४, ६.४४२, ६.४५०, ६.४६९, ६.४७०,
६.४८०, ६.४९४-४९५ मेणा १.३०, १.३५, १.४१, १.९५, १.११६-११७, १.११९,
१.१२१-१२२, २.३५-३६,२.४७,२.७६, २.१७२, ३.१९११९४, ३.१९९-२०१, ३.२०५, ३.२१८
सेतवित ५.३८१ सेत्तंज २.२१-२२, २.३३-३४, ३.२०७ सेना १.४२ सेय १.८८ सेयंस १.१०९, १.१४२ सेयणग ६.४३२, ६.४३४ सेयभद्द६.४७९ सेलग २.४३, २.४५-४६, २.१४४-१४७ सेलगपुर २.३८, २.४३-४४ सेलय २.३८, २.४३-४६, २.१४४ सेलवालय २.१६४ सेलोदाइ २.१६४, ४.३७६ सेवालभक्खि ४.२४४ सेवालोदाइ २.१६४ सेसदविया २.१४८ सेसवई १.८ सेसवती १.६८,१.१४२ सेसविया १.८८, ४.२६८-२६९, ४.२७१-२७३, ४.२७५-७८,
४.२८५-२८६ सोगंधिया २.३८-४०,२.४३,२.१०८ सोतित्तिया २.१७२ सोत्तिमई ३.१९१ सोत्थिय १.१७, १.११६, १.१२३ सोदामिणि १.८
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शब्द-सूची
सोम १.५२, १.१११, १.१४२, २.३१, २.१३४, १.१७२, २.१७९ सोमणवण ४.२६४ सोमणस १.१४, १.१६, १.७९-८० सोमणसवण ४.२६० सोमदत्त १.१०१, २.१७२, ३.१७९, ६.४७९-४८० मोमदेव १.१०१ सोमभूइ ३.१७९ सोमभूइय २.१७२ सोमसिरी २.२७, २.३१ सोमा १.१०२, २.२७, ३.२३१-२३३ सोमिल २.२७, २.३१, २.३३, ४.२४३-२४६, ४.३६०-३६२ सोय २.३८ सोयधम्य १.३९-४०, २.३८--३९ सोयमूलय २.३८-३९ सोयामणि १.८, ३.२२४ सोयासोय २.१०८ सोरठिया २.१७३ सोरिय ६.४८८ सोरियदत ६.४५९, ६.४८८-४९० सोरियपुर १.४८, २.४७, ६.४८८ सोरियवडसग ६.४८८ सोवग्णियकलस १.१६ सोवागकुल २.११० सोवीरराय २.१२० सोसलिअ १.२० सोहम्म १.१०-११, १.१३, १.३३, १.५९, १.७९, २.११, २.१३,
२.२०, २.५०, २.९२, २.९७, २.१०७, २.१०९, २.१३१, २.१४७, २.१६३, ३.२२५-२२६, ३.२२८, ३.२३१, ४.२४६, ४.२४८, ४.२५२, ४.२६४, ४.२८७, ४.२९०, ४.२९४, ४.३०४, ४.३०८, ४.३११, ४.३१६, ४:३२२, ४.३३१, ४.३४७, ४.३५२, ४.३५४, ४.३५९, ४.३६२, ५.३९२, ५.४१७, ६.४६५, ६.४७०, ६.४८०, ६.४८३, ६.४८७,
६.४९०, ६.४९४, ६.४९६, ६.४९८, ६.५०० सोहम्मकप्प १.५६, २.७५ सोहम्मकप्पवासि १.१०,१.२४, १.५६, २.७६ सोहम्मग १.१५ सोहम्मबडिसग ४.३११, ४.३१६, ४.३३१ सोहम्मवडिसय १.१०, १.३३, १.५६, ४.२५७ सोहम्मवडेंसग ४.३०४ सोहम्मवडेंसय २.१३, ४.३०८, ६.४९८ सोहम्मविडिस १.५९
इंसलक्खण १.४७, १.७०, २.३७, २.८३, २.८५२.१३९ इंसस्सर १.१५ इंसासण ४.२६० हक्कार १.४ हत्थ २.१७४ हत्थकप्प३.२०६-२०७ हत्थि २.१७४ हत्थिजाय २.१४८ हत्थिणउर १.१४० हत्थिणपुर १.१४२, २.७, २.१५-१६, २.५०, २.१०४ हत्थिणाउर १.३७-३८, २.१०५-१०६, ३.१९१, ३.१८३-१९५,
३.१९७-२००, ३.२०३-२०५, ३.२२६, ६.४६६-६.४८०,
६.४८३, ६.४८७, ६.४९० हत्थिणापुर २.५, २.८, २.१०-१४, २.१३३-१३७ हत्थितावस ४.२४४ हत्थिमड १.२९, ६.४६१ हत्थिरयण १.८९-९०, १.११६-११७, १.११९, १.१२१-१२३,
१.१३०, १.१३२-१३३, १.१३५-१३७, १.१४१, २.२७,
२.३३, २.३६, २.८७, ३.१९१, ३.२०१ हत्थिराय २.८६-८७, ४.३७६ हत्थिलिज्ज २.१७२ हत्थिवाल १.८५-८६ हत्थिसीस २.१०४-१०६, २.१०७, ३.१९१, ६.४५५-४५६,
६.४५८ हत्युत्तरा १.५४-५५, १.५७, १.५९, १.६५, १.६९-७०, १.७२,
१.७८, १.१०० हम्बउट्ट ४.२४४ हयलक्खण २.७८,४.३७५ हरि ३.२२४ हरिएस २.११० हरिएसबल २.११० हरिकता ४.२६४ हरिचंदण २.९२, २.९७ हरिणेगमेसि १.११, १.१५, १.५९, १.५९, २.२५-२६ हरियभोयण १.९१.२.२९, २.८२, ५.३८५ हरियायण १.१११, १.११३ हरिवंसकुल १.५५, १.५७-५८,१.११३ हरिसेण १.१३९-१४०, २.१२० हरिस्सह ३.२२४ हल्ल २.९८ हारिय २.१७२, २.१७५ हारियमागलारी २.१७२
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५०
हालाहला ५.३९३, ५.४००-४०३, ५.४०५, ५.४०७-४१० हालिज्ज २.१७२
हासा १.८
हिमव २.१७५
हिमवंत २.२० - २१ २.४३, २.६९, २.८२, २.१०५, २.१३३१३४, २.१३७, २. १३९, ३.१९५, ३.२०२, ३.२१६, ४.२६०, ४.२६८-२६९ हिमवाय १.७६
हिउड्डावण ३.१८७, ३.२१४ हिरण्णजुत्ति २.७८, ४.३७५ हिरण्णपाग २.७८, ४.३७५ हिरि १.८, ३.२२६ हिरिपुप्फवती ३.२२५ हेमजाल ४.२६१ हेमवय ४.२६३ होत्तिय ४.२४४
धर्मकथानुयोग
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________________ D धर्मकथानुयोग--उन विशिष्ट पुरुषों की जीवन-कथा, चरित्र तथा साधना का वर्णना त्मक संकलन है, जिनके जीवन में धर्म साकार रूप में प्रतिष्ठित हुआ। तप, त्याग, ध्यान, तितिक्षा, सेवा, समता, करुणा एवं निष्पृहता आदि उत्तम गुण जिनके चरित्र में प्रतिबिम्बित थे। 0 जैन आगमों में यत्र-तत्र विकीर्ण रूप से ऐसे सैकड़ों चरित्र अंकित हैं, जिनका अध्ययन-अनुशीलन करने के लिए पाठक को अनेक आगमों का अनुसंधान करना पड़ता है, जो बहुत ही दुरूह और दुःशक्य कार्य है। 0 आगम-गत उन समस्त चरित्रों का वर्गीकरण कर एकत्रपुस्तकाकार प्रकाशित करने की यह योजना-धर्मकथानुयोग नाम से पाठकों के हाथों में प्रस्तुत है। o आगम अनुयोग का यह दुरूह, अत्यधिक श्रमसाध्य, मानसिक एकाग्रता तथा बौद्धिक परिश्रम का कार्य करने में संकल्पशील है— ज्ञानयोगी मुनि श्री कन्हैया लाल जी म० "कमल" / 9 मनि श्री जैन आगम, टीका, चणि भाष्य, आदि के गहन अभ्यासी, शोधन तथा विवेचना में अत्यन्त सदक्ष हैं। सम्यग् ज्ञानाराधना ही आपके जीवन का विशिष्ट एक लक्ष्य है / आगमों की प्राचीन अनुयोग शैली को वर्तमान में सर्व सुलभ करने हेतु आप श्री धर्मकथानुयोग (प्रस्तुत,) गणितानुयोग (प्रकाशित), द्रव्यानुयोग (कार्याधीन) एवं चरणानुयोग (कार्याधीन) में क्रमशः समस्त आगम साहित्य को नवीन शैली में प्रस्तुत करने हेतु अहर्निश संलग्न हैं / इस महान् कार्य में सहयोगी हैं-सुप्रसिद्ध मनीषी, भारतीय तत्वविद्या के गहन अभ्यासी श्री दलसुखभाई मालवणिया, जिनको विद्वत्ता, तटस्थ दृष्टि तथा मौलिक सूझ-बूझ देश-विदेश में सुविख्यात है। 0 आगम अनुयोग ट्रस्ट, अहमदाबाद (पंजीकृत) इस महान ज्ञानराशि को प्रकाशित, मुद्रित कर अल्प मूल्य में जिज्ञासुजनों को सुलभ कराने के लिए प्रयत्नशील है / 0 यदि पाठक एक-एक स्वतन्त्र ग्रन्थ खरीदे तो सम्भवतः यह पूरा सेट १२००/-रुपये या १५००/-रुपये मूल्य से भी मंहगा पड़ेगा। किन्तु आगम अनुयोग ट्रस्ट ने उन जिज्ञासुओं को कम मूल्य में सुलभता से प्राप्त कराने के लिए अग्रिम सदस्यता योजना बनाई है। ५००/-रुपए देकर जो व्यक्ति सदस्यता ग्रहण करेंगे उनको क्रमश: प्रकाशित होने वाले सभी आगम ग्रन्थ नि:शुल्क दिये जायेंगे / हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी-तीन भाषाओं में अलग-अलग अनुवाद के साथ प्रकाशित होने वाले किसी भी भाषा का एक सेट, आप अपनी रुचि के अनुसार सरक्षित कर सकते हैं। सम्पर्क करें:आगम अनुयोग ट्रस्ट मन्त्री-श्री हिम्मतलाल एस० शाह अमर निवास, सोहराबजी कम्पाउण्ड वाड़ज, अहमदाबाद--१३ कलांक एवं आवरण पृष्ठ के मुद्रकः 'कुलदीप प्रेस' आगरा