SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 १९ २० कृषिक सहोदर हल्लने सेचनक गंध हस्ति-कीड़ा की प्रशंसा की २१ अपनी भार्या पद्मावती के आग्रह से कूणिक काल से पुनः पुनः हाथी और हार मांगना २२ कूणिक के भय से वेहल्ल का चेड़ा राजा के शरण में वैशाली जाना २३ कूणिक ने चेडा के समीप सेचनक गंध हस्ति आदि को लौटाने के लिए दूत भेजा २४ २५ २६ चेडा ने फिर भी आधा राज्य मांगा २७ कूमिका ने युद्ध के लिए पुनः दूत भेजा धर्मकयानुयोग-विषय-सूची को मुक्ति और अपने भाइयों में राज्य का विभाजन चेडा ने वेहल्ल के लिए आधा राज्य मांगा पुनः दूत भेजा 1 ने २८ ने युद्ध के लिए सुसज्जित होना चेडाका २९ कूणिक आदि के लिए काल आदिकुमारों का युद्ध के लिए मिलना ३० काल आदि कुमारों सहित कूणिक का युद्ध के लिए वैशाली की ओर प्रस्थान ३१ मल्लकी नेकी सहित पेडा का युद्ध के लिए अपने देश की सीमा पर स्थित होना ३२ कूक और नेहा का बुद्ध ५ ६ ३३ युद्ध में कालकुमार का मरण ३४ नारक भव के बाद कालकुमार की सिद्धगति का निरूपण ३५ कालकुमार के अनुसार सुकाल आदि नो कुमारों के कथन का निर्देश ४ महाशिलाकंटक संग्राम का कथानक (४३) १ भगवान् महावीर प्ररूपित कूणिक की जय २ शक सहित कूणिक का युद्ध में आना ३ मल्लकी और लेच्छकीयों की पराजय ४ महाशिलाकंटक संग्राम का शब्दार्थ और संग्राम में मरे मनुष्यों की गति ५ विजय चौर का उदाहरण १ राजगृह में धन सार्थवाह और भद्राभार्या २ राजगृह में विजय तस्कर ३ ४ भद्रा का संतान प्राप्ति मनोरथ भद्रा ने नाग आदि की 'पूजा की भद्रा के दोहद (गर्भ की इच्छा पूर्ण पुत्र जन्म और देवदिन्न नामकरण ७ देवदिन की बालीडा ८ देवदिन्न का विजय चौर ने अपहरण किया ९ देवदिन की गवेषणा विजय चौर का पकड़ा जाना Jain Education International १० ११ देवदिन्न की मृत्यु १२ धनसार्थवाह का पकड़ा जाना १२ धनसार्थवाह केलिए भोजन घर से जाता था १४ विजय चौर ने आहार का भाग मांगा १५ धन सार्थवाह ने आहार का भाग नहीं दिया १६ मल-मूत्र के मेग से पीड़ित धनसार्थवाह को विजय चीर के सहयोग की अपेक्षा हुई १७ विजय चौर ने सहयोग देने के लिए मना कर दिया For Private & Personal Use Only सूत्रांक ४२ ४३ ४४ ४५ ४६-४७ ४८ ४९ ५० ५१ ५२ ५३-५४ ५५. ५६-५८ ५९-६० ६१ ६२ ६३-६४ ६५-७० ६५ ६६-६२० ६८ ६९-७० ७१-१०५ ७१-७२ ७३ ७४ ७५ ७६-७७ ७८ ७९ ८० ८१-८३ ८४ ८५. ८६ ८७ ८८ ८९ ९० ९१ पृष्ठ ४३० ४३१ ४३१ ४३१-४३२ ४३२ ४३२ ४३२ ४३२ ४३३ ४३३ ४३३ ४३३ ४३४ ४३४ ४३४ ४३५ ४३५ ४३५-४३६ ४३५ ४३५-४३६ ४३६ ४३६ ४३६-४४४ ४३६-४३७ ४३७ ४३७-४३८ ४३८ ४३८-४३९ ४३९ ४३९ ४३९ ४३९-४४० ४४० ૪૪૦ ४४१ ४४१ ४४१ ४४१ ४४१ ४४१ www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy