SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४२) पृष्ठांक ४२१-५०२ ४२१-४२३ ४२१ ४२१ ४२१ ४२१-४२२ ४२२ ४२२-४२३ ४२३ ४२३ ४२३ ४२४-४२५ ११ ४२४ ४२४ ४२४ ४२४ ४२४ ४२५ धर्मकथानुयोग-विषय सूची सूत्रांक छटा स्कन्ध १-३६१ प्रकीर्णक कथानक अध्ययन १-२१ १ भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिक और चेलना के अवलोकन से साधु-साध्वियों के निदान करने का प्रसंग १-१३ १ राजगृह में श्रेणिक राजा २ भ. महावीर का आगमन -वृत्तान्त जानने के लिए श्रेणिक का कोटुम्बिक पुरुष को आदेश ३ भ. महावीर का समवसरण ४ महत्तर (नियुक्त कौटुम्बिक) पुरुषों ने श्रेणिक के समक्ष भगवान् के आगमन का निवेदन किया ५ श्रेणिक का राजगृह नगर को सुशोभित करने का आदेश और यान आदि लाने का आदेश ६ चेलना सहित श्रेणिक का समवसरण में जाना और भगवान् की पर्युपासना करना ७ भगवान् की धर्मदेशना और बाद में श्रेणिक आदि की परिषद् का लौटना ८ साधु-साध्वियों का निदान करना ९ भगवान का निदान करने का निषेध रूप उपदेश सुनकर साधु-साध्वियों का प्रायश्चित्तादि करना १२-१३ रथ-मुशल संग्राम १४-२० १ रथ-मुशल-संग्राम में वज्जियों की विजय हुई-इसका निरूपण २ कूणिक का युद्ध के लिए प्रस्थान ३ कूणिक को इन्द्र की सहायता ४ कृणिक की विजय ५ रथ-मशल संग्राम का स्वरूप ६ संग्राम में मृत मनुष्यों की संख्या ७ कूणिक की सहायता के लिए इन्द्र के आने का हेतु ३ रथ-मुशल संग्राम में काल आदि कुमारों के मरण की कथा २१-६४ ... १ काल आदि दस कुमारों के नामों का कथन २१ २ चम्पानगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र कालकुमार ३ कुणिक सहित कालकुमार का रथ-मुशल संग्राम में जाना ४ भ. महावीर के समवसरण में काली रानी का प्रश्न २४-२६ ५ काली रानी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कालीरानी के पुत्र कालकुमार का मरण कहा ___और कालीरानी स्वस्थान गई २७-२८ ६ कालकुमार की नरक गति ७ कूणिक चरित्र के अन्तर्गत कालकुमार के नरक गमन के हेतु का भगवान् द्वारा निरूपण ८ चेलणा के श्रेणिक मांस-भक्षण दोहद से श्रेणिक की चिन्ता ९ अभयकुमार की युक्ति से चेलणा के दोहद की पूर्ति १० चेलणा के गर्भ-पात प्रयत्न की निष्फलता ११ चेलणा ने उकरडि पर शिशु को डलवा दिया १२ श्रेणिक के उपालम्भ से चेलणा ने अपने पुत्र का संरक्षण किया १३ श्रेणिक ने पुत्र की वेदना का निवारण किया १४ पुत्र का कूणिक नाम दिया और कूणिक का तारुण्य आदि १५ श्रेणिक को कारागृह में बन्द करके कूणिक ने राज्य श्री प्राप्त की १६ कूणिक ने अपने पर श्रेणिक का स्नेह चेलणा से जाना १७ श्रेणिक का बंधन छेदन करने के लिए कूणिक का जाना १८ श्रेणिक का तालपुट विषभक्षण और मरण ४२५ ४२५-४३५ ४२५ ४२५ ४२५ ४२५-४२६ ४२६ ४२६ ४२७ ४२७ ४२८ ४२८ ४२८ ४२९ ४२९ ४२९ ४२९-४३० mmm Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy