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________________ (४४) सूत्रांक पृष्ठांक ४४१-४४२ ४४२ - २० २२ or mour V० ० ० ० ० ४४२ ४४२-४४३ ९८-९९ २५ १०१ ४४३ ४४३ ४४३-४४४ ४४४ १०६-१२१ ४४४-४४७ ४४४ ४४५-४४६ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची १८ धनसार्थवाह के पुनः कहने पर विजय चौर ने अपने लिए आहार का भाग मांगा १९ धनसार्थवाह ने विजय चौर को आहार का भाग दिया पंथक ने भद्रा से विजय चौर को आहार का भाग देने की बात कही २१ भद्रा कुपित हो गई धनसार्थवाह की कारागृह से मुक्ति २३ धनसार्थवाह का सन्मान २४ भद्रा ने कोप उपशान्त होने पर सन्मान किया विजय चौर के उदाहरण का निष्कर्श २६ धनसार्थवाह के उदाहरण का निष्कर्ष २७ राजगृह में स्थविरों का आगमन २८ धनसार्थवाह की प्रव्रज्या २१ धनसार्थवाह की महाविदेह से मुक्ति ३० धनसार्थवाह के उदाहरण का पुनः निष्कर्ष मयूरी के अण्डे का उदाहरण चम्पानगरी में मयूरी के अण्डे का संरक्षण स्थान २ चम्पानगरी में सार्थवाह सुपुत्र जिनदत्त और सागरदत्त ३ चम्पा नगरी में देवदत्ता गणिका ४ सार्थवाह पुत्रों की गणिका के साथ उद्यान क्रीड़ा ५ सार्थवाह पुत्र मयूरी के अण्डे लाये ६ सागरदत्त के संदेह से अण्डा नष्ट हो गया और इस उदाहरण से शंका अतिचार की सिद्धि ७ श्रद्धालु जिनदत्त को मयूर की प्राप्ति हुई और इस उदाहरण से सम्यक्त्व की सिद्धि ७ कूर्म का उदाहरण १ वाराणसी से कुछ दूर मृतांगद्रह के समीप मालुका कच्छ के किनारे दो पापी शृगाल २ मृतंगद्रह के किनारे पर दो कछुए ३ पापी शृगाल शिकार खोजने लगे । ४ शृगालों को देखकर कछुओं ने अपने अंगों को संकुचित कर लिए ५ शृगालों ने अंग संकुचित न करने वाले कछुये को मार डाला ६ अंग संकोचन न करने वाले कछुये के उदाहरण से अगुप्तेन्द्रिय के फल का सूचन ७ गुप्तेन्द्रिय कूर्म का सुख ८ गुप्तेन्द्रिय कूर्म के उदाहरण से गुप्तेन्द्रिय के फल का सूचन रोहिणी का उदाहरण १ राजगृह में धनसार्थवाह २ धन सार्थवाह ने चारों पुत्रवधुओं की परीक्षा की ३ उज्झिता ने शाली के ५ दाणे फेंक दिये ४ भोगवति का ने शाली के ५ दाणे खालिये ५ रक्षिता ने शाली के ५ दाणे सुरक्षित रख दिये ६ रोहिणी ने शाली के ५ दाणे बढ़ाये ७ पांच संवत्सर के बाद धनसार्थवाह ने (चारों पुत्रवधुओं से) शाली के ५-५ दाणे मांगे ८ उज्झिता को बाहर डालने के कार्य करने का आदेश दिया ९ उज्झिता के उदाहरण से महाव्रत परित्याग के फल का निर्देश १०७ १०८ १०९-११२ ११३-११४ ११५-११७ ११८-१२१ १२२-१३१ १२२-१२३ ४४६-४४७ ४४८-४४९ १२५ १२६ १२७-१२८ ४४८ ४४८ ४४८ ४४८ ४४८-४४९ ४४९ ४४९ ४४९ १३१ १३२-१५३ ४५०-४५४ १३२ ४५० ४५० १३४ १३५ ४५१ ४५१ १३७-१४१ १४२ १४३-१४४ ४५१-४५२ ४५२ ४५२ ४५३ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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