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________________ (७) सूत्रांक ४६९ ४७० पृष्ठांक १०८ १०८ १०८-११० ११०-१११ १११ १११-११२ ११२ ४७२ ४७३ ४७४ ४७५ ११२ ११२ ११२-११३ ४७७-४७९ ४८०-४८१ ४९३ ४९४-५८५ ४९४ ११४-१३८ ११४ ११४ ११४-११५ ४९५ ४९६-४९७ ४९८-५०१ ५०२ ११६ ११७ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ५२ अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले श्रमणों की सम्पदा ५३ तीर्थंकरों का अन्तर काल ५४ ऋषभादि तीर्थंकरों से पर्युषण-कल्प-स्थापन-समय-निरूपण ५५ गण और गणधर ५६ भ. महावीर के गणधरों से प्राप्त वाचनावाले श्रमणों की संख्या ५७ भ. महावीर के गणधरों का गृहवास काल ५८ मण्डितपुत्र गणधर का श्रमणपर्याय काल ५९ भ. महावीर के गणधरों का सर्वायु ६० राजगृह में भ. महावीर का आगमन ६१ इन्द्रभूती गौतम ____ आश्चर्य (दस) भरत चक्रवर्ती-चरित्र १ भरतचक्रवर्ती का वर्णक २ राजा का वर्णक (द्वितीय वर्णक) ३ चक्ररत्न की उत्पत्ति ४ चक्ररत्न का अष्टाह्निका महोत्सव ५ चक्ररत्न का मागधतीर्थ की ओर प्रयाण अभिषिक्त-हस्तिरत्न-आरूढ-भरत का चक्ररत्नानुगमन ७ मागधतीर्थ में भरत ने अष्टमभक्त पौषध किया ८ अश्वरथारूढ भरत का लवण समुद्र-स्पर्श ९ भरत द्वारा चलाये हुए बाण का मागधतीर्थाधिपति देव के भवन में गिरना १० नामांकित बाण को देखकर मागधतीर्थाधिपति का भरत के सन्मुख आना ११ भरत के अष्ठम भक्त का पारणा और मागधतीर्थाधिपदेव का प्रसन्न होकर अष्टाह्निक महोत्सव का आदेश देना १२ चक्ररत्न का वरदाम तीर्थ की ओर प्रयाण १३ भरत का वरदाम तीर्थ की ओर गमन । १४ भरत का प्रभास तीर्थदेव पर विजय प्राप्त करना १५ भरत का सिन्धुदेवीकृत भेंट ग्रहण १६ भरत का वैताढ्यगिरिकुमार देवकृत भेंट ग्रहण करना १७ भरत का तिमिसगुफाधिप-कृतमालदेव द्वारा अर्पित भेंट ग्रहण करना १८ नौकारूप चर्मरत्न द्वारा ससैन्य सुसेण-सेनापति के साथ भरत का सिन्धु नदी पार करना १९ सुसेण सेनापति द्वारा सिंहल आदि देशों पर विजय प्राप्त करना विजय प्राप्त कर आये हुए सुसेण सेनापति द्वारा भरत के सन्मुख भेंट अर्पण करना सुसेण सेनापति कृत तिमिसगुफा-द्वार का उद्घाटन २२ मणिरत्न सहित भरत का तिमिसगुफा-द्वार की ओर प्रयाण काकिणी रत्न सहित भरत का तिमिसगुफा में प्रवेश २४ तिमिसगुफा के मध्यभाग में उन्मग्न-जलानिमग्न-जला महानदियां उन्मग्न-जला और निमग्न-जला महानदियों में वर्धकी रत्न द्वारा सेतु का निर्माण तथा ससैन्य भरत का (नदियों को) पार करना १ क-पृष्ठ ११३ पर सूत्रांक ४८२ से ४९२ पर्यन्त इसी शीर्षक के अन्तर्गत समझें । ख. पृष्ठ १११ पर सूत्रांक ४७३ का सारा मूलपाठ पृष्ठ ११३ पर सूत्रांक ४८४ में आ गया है। ५०३-५०४ ५०५ ५०६-५०७ ५०८ ५०९-५११ ११७ ११७ ११८ ५१२ ११८ ११९-१२० १२० ५१४-५१६ ५१७ ५१८-५१९ ५२० ५२१ ५२२-५२३ ५२४ ५२५ ५२६-५२७ ५२८-५२९ ५३० १२१ १२१ १२२ १२२ २० १२२ १२३ १२४ १२४ २५ ५३२ १२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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