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________________ (८) सूत्रांक पृष्ठांक १२४ ५३४-५३७ ५३८-५४१ ५४२ १२४-१२६ १२६ १२७ १२७ १२७ १२८ १२८-१२९ १२९ ५४४ ५४५-५४८ ५४९-५५० ५५१ ५५२-५५३ ३५ १२९ ५५४ १२९ १३० ५५८ ५५९-५६० ५६१-५६८ १३० १३०-१३१ १३१-१३३ १३३-१३४ ५७०-५७१ ५७२-५७३ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २६ तिमिसगुफा के उत्तर द्वार के कपाटों द्वारा स्वयमेव मार्गदान २७ उत्तरार्ध भरत में सुसेन सेनापति कृत आपात-चिलात-पराजय २८ आपात-चिलातों की प्रार्थना से भरत की सेना पर नागकुमार देव कृत महामेघ वर्षा २९ भरत द्वारा छत्र रत्न से आच्छादन ३० गाथापतिरत्न कृत भरत-सेना की सप्त दिवशीय व्यवस्था ३१ हजारों देवों ने नागकुमार को भरत की शरण में जाने के लिए कहा ३२ नागकुमार के कहने से चिलात भरत की शरण में गये ३३ क्षुद्र हिमवान् गिरिकुमार देव पर विजय प्राप्त किया ३४ भरत चक्रवर्ती ने काकिणी रत्न से ऋषभकूट पर्वत के पूर्वी किनारे पर अपना नाम लिखा चक्र का अनुगमन करते हुए भरत का वैताढ्यगिरि के उत्तरापार्श्व की ओर गमन ३६ विद्याधरों के राजा नमि-विनमि ने भरत को स्त्री रत्न आदि समर्पित किये ३७ भरत को गंगादेवी ने दो स्वर्ण-सिंहासन समर्पित किये ३८ खण्डप्रपातगुफा में नृत्यमालदेव ने भरत को पारितोषिक दिया ३९ भरत ने सुसेन सेनापति का सत्कार किया ४० जिस मार्ग से भरत का आगमन हआ उसी मार्ग से वह वापिस गया ४१ नवनिधियों की उत्पत्ति ४२ विनिता राजधानी की ओर लौटना । ४३ भरतने देवादिका सत्कार किया और उनका विसर्जन किया ४४ भरत का राज्याभिषेक संकल्प ४५ देवों द्वारा अभिषेक मण्डप की रचना ४६ सिंहासन की रचना ४७ भरत ने अभिषेक मण्डप में प्रवेश किया ४८ भरत का महाराज्याभिषेक ४९ नगर में द्वादश वर्षीय महोत्सव की घोषणा ५० प्रासाद प्रवेश ५१ रत्नमहानिधियों का उत्पत्ति स्थान ५२ भरत का शासन ५३ भरत को आदर्श घर में केवलज्ञान ५४ भरत का अष्टापदगमन और वहाँ निर्वाण चक्रवर्ती-सामान्य १ अढाईद्वीप में चक्रवर्ती-विजय २ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में बारह चक्रवतियों के और उनके माता-पिता तथा स्त्री रत्नों के नाम ३ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले चक्रवर्तियों के नाम ४ जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले चक्रवर्ती आदि की संख्या ५ जम्बूद्वीप में चक्रवर्ती आदि ६ तीन तीर्थकर चक्रवर्ती हुये ७ सुभूम और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नरक में गये ८ दस चक्रवर्ती मुक्त हुए ९ सगर चक्रवर्ती मुक्त हुआ १० हरिषेण चक्रवर्ती मुक्त हुआ ११ भरतादिके शरीर की ऊंचाई ५७४ १३४-१३५ १३५ १३५ ५७५-५७६ ५७७ १३६ ५७९-५८० ५८१ ५८२ ५८३ १३७ ५८४-५८५ ५८६-६१४ ५८६-५९१ ५९२-५९४ ५९५-५९६ ५९७ १३७-१३८ १३८-१४१ १३८-१३९ १३९ १३९ ५९८ ० १४० ० ० १४० ० ६०१-६०२ ६०३ ६०४ ६०५ ० १४० १४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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