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________________ पासत्थाए समणीसुभद्दाए कहाणयं २३१ तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कन्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तियाविमाणे उक्वायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसन्तरिया अंगुलस्स असंखेज्जभागमेत्ताए ओगाहणाए बहुपुत्तियदेवित्ताए उववन्ना। तए णं सा बहुपुत्तिया देवी अहुणोववन्नमेत्ता समाणी पञ्चविहाए पज्जत्तोए..."-जाव-भासामणपज्जतीए । एवं खलु, गोयमा ! बहुपुत्तिदाए देवीए सा दिल्या देविड्ढी-जाव-अभिसमन्नागया। बहपुत्तियत्ति णामरहस्सं २५४ “से केणट्ठणं, भन्ते, एवं बुच्चइ बहुपुत्तिया देवी २?" गोयमा! बहुपुत्तिया णं देवी जाहे जाहे सक्कस्स देविन्दस्स देवरनो उवत्थाणियणं करेइ, ताहे २ बहवे दारए यवारियाओ य डिम्भए डिम्भियाओ य विउव्वइ, विउव्धित्ता जेणेव सक्के देविन्दे देवराया, तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविन्दस्स देवरनो रिव्वं देविड्डि दिव्वं देवज्जुई दिव्वं देवाणुभावं उवदसेइ । से तेणठेणं, गोयमा! एवं वुच्चइ बहुपुत्तिया देवी २"॥ बहुपुत्तिया देवीठिइकहणं भावीजम्मकहणं य २५५ बहुपुत्तियाणं, भन्ते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नता?" "गोयमा चतारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता"। "बहुपुत्तिया गं भन्ते ! देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणन्तरं चयं चइत्ता कहि गच्छिहिह, कहि उववज्जिहिइ?" "गोयमा, इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे विगिरिपायमले वेभेलसंनिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिई"। बहुपुत्तियादेवीए सोमाभवो २५६ तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो एक्कारसमे विवसे वीइक्कते-जाव-बारसेहि दिवसेहिं वीइक्कतेहि अयमेयारूवं नामधेनं करेंति-- "होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सोमा" ॥ तए णं सोमा उम्मुकबालभावा विनयपरिणयमेत्ता जोव्वणगमणुफ्ता रूवेण य जोवणेण य लावण्णण य उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा-जाव-भविस्सइ। तए णं तं सोमं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विनयपरिणयमेत्तं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूविएणं सुंकेणं पडिरूवएण नियगस्स भाइणेज्जस्स रटुकुडस्स भारियत्ताए दलयिस्सइ। सा गं तस्स भारिया भविस्सइ इट्ठा कन्ता-जाव-भंडकरण्डगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिहिया रयणकरण्डगो विय सुसारक्खिया सुसंगोविया, मा णं सीयं-जाव-विविहा रोगातका फुसंतु॥ बत्तीसदारगकारणा सोमाए मणोपीडा २५७ तए णं सा सोमा माहणी रटुकडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी संवच्छरे २ जुयलगं पयायमाणी सोलसेहि संवच्छरेहि बत्तीसं दारगरूवे पयायइ। तए णं सोमा माहणी तेहि बहुहिं दारगेहि य दारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि य डिम्भएहि य डिम्भियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि य अप्पेगइएहि थणियाएहि, अप्पेगइएहिं पोहगपाएहि अप्पेगइएहि परंगणएहि, अप्पगइएहि परक्कममार्गोह, अप्पेगइएहि पक्खोलणहि अप्पेगइएहि थणं मग्गमार्गोह, अप्पेगइएहि खीरं मग्गमाहिं, अप्पेगइएहि खेल्लणयं मग्गमार्गोह, अप्पेगइएहि खज्जगं मग्गमाहि अप्पेगइएहि कूरं मग्गमाह, एवं पाणियं मग्गमाणेहि हसमाहिं रूसमाणेहि अक्कोसमाणेहिं अक्कुस्समाह हणमार्गोह विप्पलायमाहि अणुगम्ममाणेहि रोवमाणेहि कंदमार्गोह विलवमाणेहिं कूदमाणेहि उक्कूवमाहि निदायमाणेहि पलवमाहि दहमाणेहि वममाणेहिं छरमार्णोहि सुत्तमाहिं मुत्तपुरीसवमियसुलित्तोवलित्ता मइलवसणपुटवडा-जाव-अइसुबीभच्छा परमदुग्गन्धा नो संचाएइ रटुकुडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरितए। सोमाए वझत्तपसंसा २५८ तए गं तीसे सोमाए माहणीए अन्नया कयाइ पुष्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरियमाणीए अयमेयारूवे-जाव-समुप्प ज्जित्था--"एवं खलु अहं इमेहि बहुहि वारगेहि य-जाव-डिम्भियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि य-जाव-अप्पेगइएहि सुत्तमाहिं दुज्जाएहि दुज्जम्मएहि हयविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहि जेणं मुत्तपुरीसवमियसुलितोवलिता-जाव-परमदुभिगन्धा नो संचाएमि रटुकडेणं सद्धि-जाव-भुंजमाणी विहरित्तए । तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ-जाव-जीवियफले जाओ णं वंझाओ अवियाउरीओ जाणुकोप्परमायाओ सुरभिसुगंधगंधियाओ विउलाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणीओ विहरंति । अहं गं अधन्ना अपुण्णा अकयपुण्णा नो संचाएमि रटुकूडेणं सद्धि विउलाई-जाव-विहरित्तए" ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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