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________________ (१८) सूत्रांक पृष्ठांक ३९८ ३९९-४०० ३९९ ४०० ४०१-४१६ ९८-१०३ ४०२ ४०३-४०४ ४०५-४०८ ४०९-४१२ १००-१०२ १०२-१०३ ४१३ ४१४ ४१५ १०३ १०४ ४१७-४२० ४१७-४१९ १०४ ४२० ४२१-४३२ १०४-१०७ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ३ मयाली आदि श्रमण भ. महावीर के तीर्थ में दीर्घसेन आदि श्रमण १ संग्रहणीगाथायें २ दीर्घसेन श्रमण' भ. महावीर के तीर्थ में सार्थवाह पुत्र धन्य अणगार १ संग्रहणी गाथायें २ धन्य का गृहवास ३ धन्य की प्रव्रज्या ४ धन्य की तपश्चर्या ५ धन्य का तपजनित शरीर लावण्य श्रेणिक ने महान् दुष्कर तप करने वाले के सम्बन्ध में पूछा' ७ भगवान का उत्तर ८ श्रेणिक ने धन्य अणगार की स्तुति की ९ धन्य अणगार का सर्वार्थ सिद्धगमन और महाविदेह में उत्पत्ति तथा सिद्धगति २७ भ. महावीर के तीर्थ में सुनक्षत्र आदि श्रमण १ सुनक्षत्र श्रमण ५ २ ऋषिदास आदि की कथानकों का निर्देश २८ भ. महावीर के तीर्थ में सुबाहुकुमार श्रमण १ संग्रहणी गाथा २ सुबाहुकुमार का जन्म और परिणय ३ सुबाहुकुमार का गृहस्थ धर्म स्वीकार करना सुबाहुकुमार के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न सुबाहुकुमार के 'सुमुखभव' का कथानक __ अणगार की भिक्षा वेला में पांच दिव्यों का प्रादुर्भाव ७ सुमुख का सुबाहु भव ८ सुबाहकूमार की प्रव्रज्या ९ सुबाहुकुमार के आगामी भव और महाविदेह में सिद्धि २९ भ. महावीर के तीर्थ में भद्रनंदी आदि श्रमणों के कथानक १ भद्रनंदी 'श्रमण' २ सुजात 'श्रमण' ३ सुवासव 'श्रमण' ४ जिनदास 'श्रमण' ५ धनपति 'श्रमण १. अध्ययन का क्रमांक और अध्ययन का शीर्षक लिखना छूट गया है। यहां केवल अध्ययन के शीर्षक का हिन्दी अनुवाद दिया है । २. मूल 'गाहा' एकवचन है किन्तु गाथायें हैं-इसलिये "गाथायें" बहुवचन दिया है। ३. यहां शीर्षक छुट गया है। ४: यहां शीर्षक में "भगवओ समाहाणं च" अनावश्यक है। ५. शीर्षक छुट गया है ४२१ ४२२-४२३ ४२४ ४२५ १०४-१०५ १०५ १०५ १०५-१०६ ४२६ ४२७ ४२८ ४२९-४३० १०६-१०७ १०७ ४३३-४४१ १०७-१०८ १०७ ४३४ ४३५ १०८ ८३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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