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________________ (१९) सूत्रांक ४३८ ४३९ ४४० पृष्ठांक १०८ १०८ १०८ १०८ १०८-१०९ ४४२-४४५ ४४२ १०८ १०८-१०९ ४४६-४५५ ११०-११२ ४४७ ११० ४४८ ४४९ ११० ११० ४५१ ४५२ ४५३ ४५४ १११ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची ६ महबल 'श्रमण' ७ भद्रनंदी 'श्रमण ८ महचन्द 'थमण' ९ वरदत्त 'श्रमण' ३० भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिक का पौत्र पद्म श्रमण और महापद्म श्रमण १ संग्रहणीगाथा २ पद्मकुमार का जन्म ३ पद्मकुमार की प्रव्रज्या ४ भ. महावीर के तीर्थ में श्रेणिक के पोते महापद्म आदि श्रमण ३१ भ. महावीर के तीर्थ में हरिकेशबल श्रमण १ यज्ञवाडे में भिक्षार्थ गमन २ हरिकेशी को देखकर ब्राह्मणों को रोस आया ३ यक्ष ने हरिकेशी की प्रशंसा की ४ यक्ष का ब्राह्मणों से संवाद । ५ कुमारों ने हरिकेशी को पीटा ६ भद्रा (राजकुमारी) ने उनको रोका और मुनि की प्रशंसा की ७ यक्षों ने भी उनको रोका और असुरों ने कुमारों को पीटा ८ भद्रा ने मुनि की पुनः प्रशंसा की ९ ब्राह्मणों ने क्षमायाचना की १० मुनि ने यज्ञ स्वरूप का प्ररूपण किया ३२ भ. महावीर के तीर्थ में अनाथो महा निर्ग्रन्थ १ श्रेणिक ने मुनि-दर्शन किया २ मुनि ने अपना अनाथत्व प्ररूपित किया ३ अनाथपने को जानकर प्रव्रज्या का संकल्प किया और इससे वेदना का क्षय हुआ ४ प्रव्रज्याग्रहण करने से सनाथत्व प्राप्त हुआ ५ कुशीलाचरण निरूपण पूर्वक संयम पालन का उपदेश दिया ६ श्रेणिक का प्रसन्न होना और क्षमायाचना करना ३३ भ. महावीर के तीर्थ में समुद्रपालीय का कथानक १ पालित श्रावक २ समुद्र में जन्म और परिणय आदि ३ वध्य पुरुष के दर्शन से वैराग्य और प्रव्रज्या ४ परीषह-सहन और सिद्धी ३४ भ. महावीर के तीर्थ में मृगापुत्र बलश्री श्रमण १ बलश्री मृगापुत्र २ श्रमण को देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ ३ मृगापुत्र का प्रव्रज्या-संकल्प और माता-पिता से निवेदन ४ माता-पिता ने श्रमण जीवन दुष्कर कहा और प्रवज्या लेने से रोका ५ मृगापुत्र ने नरक के दुखों का वर्णन किया और श्रमण जीवन की दुष्करता का निराकरण किया ६ माता-पिता ने कहा-श्रमण जीवन में चिकित्सा निषिद्ध है ४५६-४६१ १११-११४ ११२ ४५६ ४५७ ४५८ ११३ ४५९ ४६० ११३ ११३-११४ ११४ ४६१ ४६२-४६५ ११४-११५ ४६२ ११४ ११४-११५ ४६४ ४६६-४७३ ११५-११८ ११५ 9 ४६८ ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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