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________________ (३०) पृष्ठांक ११ २४६-२८८ १३ २४६ २४६-२४७ २४७ २४८ २४८-२४९ २४९-२५२ २५२-२५३ २५३-२५४ २५४-२५६ २५६-२५७ २५७-२६३ २६३-२६८ २६८ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची सूत्रांक १२ सोमिल का संलेखना करना और शुक्र महाग्रह देवरूप में होना १३ शुक्र देवलोक से च्यवन के अनन्तर सोमिल के जीव की सिद्ध गति का प्ररूपण २ भ. पार्श्वनाथ के तीर्थ में राजा प्रदेशी का कथानक १३-६१ १ आमलकप्पा में भ. महावीर का समवसरण २ सूर्याभदेव का महावीर वंदन के लिए संकल्प. और उचित कार्य करने के लिए आभियोगिक देव को भेजना ३ आभियोगिक देव ने महावीर वंदन आदि किये ४ आभियोगक देव ने भ. महावीर के समवसरण की भूमिका का संप्रमार्जन किया ५ सूर्याभदेव के आदेश से उसके विमानवासी देव-देवियों का उसके समीप आगमन ६ सूर्याभदेव के आदेश से आभियोगिक देव ने दिव्ययान विमान का निर्माण किया और दिव्ययान विमान का वर्णक ७ सूर्याभ का भ. महावीर के समीप आगमन. और दिव्य विमान आरोहण का वर्णक ८ सूर्याभ ने नृत्य-विधि का आयोजन किया . ९ नृत्य-विधि का वर्णक १० नृत्य की समाप्ति और सूर्याभ का गमन ११ सूर्याभदेव की देव ऋद्धि आदि का शरीरान्तर्गत होने का निरूपण १२ सूर्याभविमान के स्थान आदि का विस्तार से निरूपण १३ सूर्याभदेव का विस्तार से अभिषेक वर्णन. १४ सूर्याभदेव और उसके सामानिक देवों की स्थिति का प्ररूपण. १५ प्रदेशी राजा का दृढ़ प्रतिज्ञ चरित्र. सूर्याभदेव का पूर्वभव और अनन्तरभव का प्ररूपण, प्रदेशी राजा, सूर्यकतादेवी, सूर्यकान्त कुमार, चित्तसारथि आदि के नामों का निरूपण १६ प्रदेशी राजा ने जितशत्रु राजा के समीप चित्तसारथि को भेजना १७ श्रावस्ति नगरी में केशिकुमार श्रमण का आगमन. केशिकुमार श्रमण के आगमन का वृत्तान्त ज्ञात होने पर चित्तसारथि का केशिकुमार श्रमण की चंदना के लिये जाना, धर्म-श्रवण करना और गृहस्थ धर्म स्वीकार करना. ३२-३५ श्वेताम्बिका नगरी जाते हुए चित्त सारथि ने केशिकुमार श्रमण को श्वेताम्बिका नगरी आने के लिए प्रार्थना की और केशिकुमार श्रमण ने स्वीकृति दी २० चित्त सारथि का श्वेताम्बिका नगरी में आगमन ३७-३८ उद्यान पालक के कहे अनुसार चित्त सारथि का केशिकुमार श्रमण को वंदन करने के लिए जाना और धर्म-श्रवण करना धर्म के अलाभ एवं लाभ के संबंध में चार निर्देश. अश्व परीक्षा के लिए निकले हुए चित्त सारथि सहित प्रदेशी राजा का केशिकुमार श्रमण के समीप आना-१ प्रदेशी राजा को प्रतिबोध देने के लिए केशिमुनि के प्ररूपण में पांच प्रकार के ज्ञान का निरूपण ४४ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में जीव और शरीर का अन्यत्व प्ररूपण "आजकल में उत्पन्न नैरयिक का मनुष्यलोक आगमन विषयक निषेध-प्ररूपक चार निर्देश" २६ "आजकल में उत्पन्न देव का मनुष्य लोक आगमन विषयक निषेध निरूपक चार निर्देश" २७ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में “जीव की अप्रतिहत गति का समर्थन" ४७-४८ १. मूलपाठ पर दिये गये शीर्षक का यह अनुवाद है किन्तु आगम पाठ के भावानुसार शीर्षक भिन्न होना चाहिए और उसका अनुवाद इस प्रकार होना चाहिए-“अश्व परीक्षा के बहाने चित्त सारथि का प्रदेशी राजा को केशिकुमार श्रमण के समीप लाना । २६८-२६९ २७० २७०-२७१ ३६ २७१-२७२ २७२-२७३ २२ २७३ २७४ २७४-२७५ २७५-२७६ २५ २७६-२७७ २७७-२७८ २७८-२७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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