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________________ ५ धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २८ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में - "जीव और शरीर के अन्यत्व समर्थन में अपर्याप्त उपकरण हेतु का निरूपण" २९ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में "जीव का अगुरुलघुत्व" ३० केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में - "काष्ठगत अग्नि के दृष्टान्त से जीव का अदर्शन" ३१ केशिकुमार श्रमण निर्दिष्ट - "प्रदेशी राजा का व्यावहारिक जीवन" ३२ केशिकुमार निर्दिष्ट "जीव की अदृश्यता" ३३ केशिकुमार श्रमण निर्दिष्ट - "जीव प्रदेशों की शरीर प्रमाण अवस्थिति" ३४ केशिकुमार श्रमण के वक्तव्य में - "लोह (धातु) धारक का दृष्टान्त पश्चात्ताप के निषेध का प्ररूपण ३५ प्रदेशी राजा का गृहस्थ धर्म स्वीकार करना और रमणीय अमरणीय होने के सम्बन्ध में वन खण्ड आदि के दृष्टान्त. ३६ सूरीकन्ता ने विष प्रयोग किया, प्रदेशी राजा का समाधिमरण और सूर्याभदेव के रूप में उपपात ३७ सूर्याभदेव के भव के बाद प्रदेशी राजा को जीव दृढ़प्रतिज्ञ के भव में मोक्ष गमन का निरूपण भ. महावीर के तीर्थ में लुंगिया नगरी निवासी श्रमणोपासक ३ १ श्रमणोपासक वर्णक २ तुंगिया नगरी में पार्श्वपत्य स्थविरों का आगमन ३ श्रमणोपासकों ने स्थविरों की पर्युपासना की भ. महावीर के तीर्थ में नन्द मणियार का कथानक (३१) १ भ. महावीर के समवसरण में दर्दुर देव ने नृत्यविधि की २ गौतम के पूछने पर भ. महावीर ने दर्दुरदेव के पूर्व भव का नन्द मणियार का कथानक कहा ३ नन्द का धर्म ग्रहण करना ४ नन्द का मिथ्यात्व ग्रहण करना ५ ६ ७ ८ ९ नन्द ने पुष्करणी का निर्माण करवाया नन्द ने वनखण्ड का निर्माण करवाया नन्द ने चित्र सभा का निर्माण करवाय। नन्द ने महानसशाला का निर्माण करवाया नन्द ने चिकित्साशाला का निर्माण करवाया १० नन्द ने आलंकारिक सभा का निर्माण करवाया ११ अनेक लोगों ने नन्द की प्रशंसा की और वह हर्षित हुआ १२ नन्द के रोगोत्पति नन्द के रोगों की वैद्यों द्वारा की गई चिकित्सा निष्फल गई १३ १४ नन्द मणियार का दुर्दर भव १५ दर्दुर का जातिस्मरण और श्रावक व्रतों का पालन १६ भ. महावीर का राजगृह में समवसरण १७ दर्दर का समवसरण में जाना १८ दर्दर का महाव्रत ग्रहण-संकल्प १९ दर्दर का देव होना भ. महावीर के तीर्थ में आनन्द गाथापति का कथानक १ संग्रहणी गाथा २ वाणिज्य ग्राम में आनन्द गाथापति Jain Education International For Private & Personal Use Only सूत्रांक Free ४९-५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७-५८ ५९-६० ६१ ६२-६४ ६२ ६३ ६४ ६५-८३ ६५ ६६-६७ ६८ ६९ ७० ७१ ७२ ७३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ ७९ ८० ८१ ८२ ८३ ८४-१०८ ८४ पुष्ठांक २७९-२८० २८० २८१-२८२ २८२ २८२-२८३ २८३ २८३-२८४ २८४-२८६ २८६-२८७ २८७-२८८ २८९-२९० २८९ २८९ २८९-२९० २९०-२९४ २९० २९० २९० २९० २९१ २९१ २९१ २९१ २९२ २९२ २९२ २९२ २९२-२९३ २९३ २९३ २९३ २९४ २९४ २९४ २९५-३०४ २९५ २९५ www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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