________________
१६
१२ सुबुद्धि ने उत्तर दिया
१३ जितशत्रु ने जल शोधन करवाया १४ जितशत्रु का प्रश्न
धर्मकयानुयोग-विषय-सूची
१५ सुबुद्धि का उत्तर
१६ जना श्रमणोपासक होना
१७ जिस और बुद्धि की प्रवज्या १८ वृत्तिकार उद्धृत निगमन गाथा
१५ नमिराजर्षि
१
२
मिथिला के राजा नमी और उसका अभिनिष्क्रमण
शक्र के साथ नमिराजर्षि का संवाद
भ. महावीर के तीर्थ में ऋषभदत्त और देवानन्दा का चरित्र
ब्राह्मण कुण्डग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण
ऋषभदत्त की भार्या देवानन्दा १
ऋषभदत्त और देवानंदा की महावीर दर्शनाभिलाषा
ऋषभदत्त और देवानन्दा का दर्शनार्थ आगमन
५
पूर्वपुत्र भ. महावीर के दर्शन स्नेह एवं राग से देवानन्दा के स्तनों में दूध आ गया
६ देवानन्दा का यह रूप देखकर गौतमस्वामी ने प्रश्न किया और भ. महावीर ने समाधान किया
७
भ. महावीर ने धर्म कहा
८
ऋषभदत्त की प्रव्रज्याभिलाषा
९
१
२
३
४
भ. महावीर ने ऋषभदत्त को प्रव्रज्या दी ऋषभदत्त की सिद्धगति
१०
११ देवानन्दा की भी प्रव्रज्या और सिद्धगति
१७ बालतपस्वी मौर्यपुत्र तामली अणगार
(१४)
१
भ. महावीर के समवसरण में ईशान देवेन्द्र ने नृत्य किया
२ देवद्युति के प्रवेश के सम्बन्ध में प्रश्न और समाधान
३. ईशान देवेन्द्र का पूर्वभव
४ मौर्यपुत्र तामली गाथापति और उसकी प्रव्रज्या ग्रहणाभिलाषा
५ तामली ने प्रणामा प्रव्रज्या ग्रहण की
६
प्रणामा प्रव्रज्या का विवरण
७
तामली ने पादोपगमन संलेखना ग्रहण की
८ बलिचंचा राजधानिवासी असुरकुमार देवों ने इन्द्र होने के लिए प्रार्थना की और तामली का निदान
न करना
९ तामली का ईशानेन्द्र के रूप में उत्पन्न होना
१०
ईशानेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ जानकर असुर कुमार देवों को रोष आया और तामली के शरीर की हीलन की
११ तामली के शरीर की हीलना जानकर ईशानेन्द्र ने बलिचंचा राजधानी को भस्मीभूत कर दिया १२ असुर कुमार देवों ने ईशानेन्द्र से प्रार्थना की और क्षमायाचना की
१. सूत्रांक देना छूट गया है।
२. सूत्रांक पृष्ठ ५८ पर दिया है; किन्तु इस शीर्षक के नीचे देना उचित था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
सूत्रांक
२३८
२३९
२४०
२४१ २४२.
२४३-२४५
२४६
२४७-२४९
२४७
२४८-२४९
२५० २५९
२५०
२५१
२५२
२५३
२५४
२५५
२५६
२५७
२५८
२५९
२६०-२७५
२६०
२६१
२६२
२६३
२६४
२६५
२६६
२६७-२६८
२६९-२७०
२७१
२७१
२७२
२७३
पृष्ठांक
५३
५४
५४ ५४ ५४ ५४-५५ ५५
22226
५५-५७
५५
५५-५६
५७-५९
५७
५७
५७
५८
५८
५८
५९
५९
५९
५९
५९
६०-६३ ६०
६०
६०
६०-६१
६१
६१
६१-६२
६२
६२
६२-६३
६२-६३
६३
६३
www.jainelibrary.org