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________________ १४४ महाणुओगे दुतीय खंधो उदारता से सुलाइ पुरिस एवं बसी-एस देवाशुपिया ! करसाघव ? तुमंच के ? कम या दहं हयम गए? वा इमेरूवं आवई पाविए ? ५५१ लए सेलाइए पुरिसे से मार्गवियर एवं बयासी एस णं देवाश्यिय ! श्वणदीवदेव्याए आधपणे अहं यं देवाशुप्पिया ! जंबूहवाओ] दवाओं भारहओ वासाओकाद आसवाभिए विपुलं पणियमंड मायाए पोपवहणं समु ओधाए एवं अहं पोषण-विवसीए बिट्ट-भंडारे एवं फलगवंडे आताएमि तए अहं ओबुज्झमाणे ओवनमाणे रणदीवंसेन संवृढे ए सारयणदीवदेवया ममं ओहिणा पासइ, पासित्ता ममं गेण्हइ, गेण्हित्ता मए सद्धि विजलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ । तए णं सा रणदीव-देव अन्यया कयाइ अहालसस अवराहंसि परिकृविया समाणी मर्म एवायं आवई पावेद तं न नजइ णं देवापिः ! तुब्भं पि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्स ? । मायंदियदारगेहि नित्थारपुच्छा तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सूलाइगस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म बलियतरं भीया तत्था तसिया उध्विग्गा संजायभया सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी- "कहणं देवाणुपिया ! अम्हे रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थि नित्थरेज्जामो ?" तए णं से सुलाइए पुरिसे ते मागंदिय दारगे एवं वयासी -- "एस णं देवाणुप्पिया ! पुरत्थिमिल्ले वणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नाम आसरूवधारी जक्खे परिवसइ । तए णं से सेलए जचाउसमद्धिपृष्णमासिनी आगयसमए पत्तसमए महया मया स एवं दकं तारयामि ? पालयामि ? तं देवाप्पिया ! पुरथिमिल्लं वयसं सेलगस्स क्स महरिहं पुष्करचणियं करेह, करेला जन्नुपायवडिया पंजलिउडा विणणं पज्जुवासमाणा विहरह । जाहे णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वएज्जाकं तारयामि ? कं पालयामि ? ताहे एवं वदह--अम्हे तारवाहि अम्हे पालपाहि सेलए में जले परं रणदीवदेवयाए हत्याओ साहत्य नित्याज्या अहा भेन याणामि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ? " मादिय दारएहि सेलगजखजुवासणा ५५२ स ते भादिवारणा तरत लाइयर पुरिसरस अंतिए एयम सोच्चा निसम्म सिन्धं चंडवलं तुरियं वेदयं जेणेव पुरस्थि मिले पोक्यरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागन्छित्ता पोक्खरिणि ओगार्हति ओवाला जलमज्जगं करेति, करेला जाई तत्थ उप्पलाई जाव-ताई गेोहंति, गेव्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेंति, करेला महहिं पुष्पचगि कति करेता जन्नुपायवडिया मुसमाना नमसमाना पजुवाति ।। तए णं से सेलए जक्खे आगय समए पत्तसमए एवं व्यासी-कं तारयामि ? कं पालयामि ? तए णं ते मागंदिय-दारगा उट्ठाए उट्ठति, उट्ठता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं व्यासी -- "अम्हे तारयाहि अम्हे पालपाहि ।।" सेलगजवण रक्खणोवाकणं ५५२ लए गं से सेलाए जव ते मार्गदिय दारए एवं क्यासी- "एवं खलु देवाप्पिया! तुमं मए सदि लवणसमुदं मन्दमन्दणं बीईयमाणाणं सा रयणदीवदेवया पाया पंडा रहा खुद्दा साहसिया बहूहि रहिय महिय अनुलोमेहि प पडिलोमेहि य लिंगा रेहिय कहि उबल उचल करेहि तं व देवापिया ! रयणदीवदेवया ए एयन आढाह वा परियागह वा अवयवह या तो मे यहं पट्टाओ विषामि। अह णं मदोवाए एट्ट नो आवाहनो परिवाह तो अवयवह तो में रमणदीवदेवपाए हत्याओ साहत्य नित्यामि ।। तए णं ते मार्गदिय दारंगा सेलगं जक्खं एवं वयासी--जं णं देवाणुप्पिया वइस्संति तस्स णं आणा उववाय वयण- निद्दे से चिट्ठिस्सामो । तए से सेलए जनले उत्तरपुरथिनं दिसीमार्ग अवक्कमद, अवरमिता देउव्वियसमुन्याएणं समोहण समोहणिता संग्रेनाई जाडसर, दोस्तं पिलपिन्समुग्धागं समोहन, समोहणिता एवं महं आसवं विश्व विविता मागंदिव दारए एवं वयासी--हं भो मागंदिय-दारया ! आरुहह णं देवाणुप्पिया ! मम पिट्ठसि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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