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________________ (१५) बहुश्रुतों से सविनय प्रार्थना है--वे वर्गीकरण में रही हुई असावधानियाँ कहाँ-कहाँ हैं ? और उनका संशोधन किस प्रकार किया जाय? यह सूचित करने की कृपा करें। आपके इस सहयोग के लिए संकलनकर्ता सदैव कृतज्ञ रहेंगे। अविस्ममरणीय सहयोग : __पं० मुनिश्री मिश्रीमलजी म० "मुमुक्षु" तथा सेवाभावी मुनि श्री चांदमलजी ने राजस्थान में विचरण करते हुए भी मेरे स्वास्थ्य के लिए शुभ-कामना की है और अनुयोग का कार्य शीघ्र पूर्ण करने के लिए सदा उत्साहित किया है एवं प्रेरणा दी है। पं० मुनिश्री रोशनलालजी "सिद्धान्तशास्त्री ने अहमदाबाद और हैदराबाद में संयुक्त चातुर्मास करके प्रत्येक सेवा कार्य में तथा शासन सेवा के व्याख्यानादि कार्यों में सहयोगी बनकर अगुयोग संकलन के कार्य में अनुकरणीय योगदान किया है। अन्तेवासी श्री विनयमुनि "व.गीश" ने अनुयोग संकलन एवं वर्गीकरण के प्रत्येक कार्य में विवेकपूर्वक सक्रिय सहयोग देकर तथा मेरे स्वास्थ्य लाभ के लिए सतत जागरुक रह कर अनिर्वचनीय आत्म-समर्पण किया है। __ श्री मुक्तिप्रभाजी श्री दिव्यप्रभाजी एवं उनकी सभी शिष्याओं ने दादर में हुई शल्यचिकित्सा के समय आत्मीय भाव से सेवा-सुश्रूषा करके तथा बालकेश्वर बम्बई और नासिक रोड़ में हुए चातुर्मास में अनुयोग संकलन एवं वर्गीकरण से सम्बन्धित अनेक कार्यों में चिन्तन मननपूर्वक लेखन दि कार्य कर के अविस्मरणीय सहयोग किया है। पं० श्री दलसुखभाई मालवणिया ने धर्मकथानुयोग के संकलन एवं वर्गीकरण के कार्य का दिशा-निर्देशन करके तथा सुत्तागमे और अंगसुत्ताणि के कटिंगों को क्रमबद्ध करके महान् योगदान किया है। पं० श्री अमृतभाई भोजक ने अनेक संदिग्ध पाठों को संशोधित करने का श्रम करके श्रुतसेवा का अपूर्व लाभ लिया है। श्री रमेशभाई मालवणिया ने समय-समय पर आवश्यक कार्यों की सफलता के लिए उत्साहपूर्वक प्रयत्न किया है। श्री लालभाई दलपतभाई विद्या मन्दिर के प्रबन्धकों ने आवश्यक आगमादिग्रन्थ उदारतापूर्वक अवलोकनार्थ प्रदान करके श्रुतसेवा का महान् पुण्योपार्जन किया है। वैरागिन उषाबेन ने वर्णानुक्रम के कार्ड लिखने का कार्य विद्युत् गति से करके तथा कांदाबाड़ी जैन चिकित्सालय में हुई शल्यचिकित्सा के समय स्वास्थ्य समृद्धि के लिए अनुकूल व्यवस्थाएँ करके आदर्श सेवा कार्य किया है। इन सब मुनिजनों, महासतियों एवं विद्वानों आदि के हार्दिक सश्रम योगदान से ही यह धर्मकथानुयोग सम्पन्न हुआ है। अतः इन सबका मैं आजीवन आभारी हूँ। अनुयोगप्रवर्तक मुनि कन्हैयालाल "कमल" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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