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अरिटुनेमितित्थे दोवईकहाणयं
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तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाई बहई रायसहस्साई पंडुएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साई-साई रज्जाई जेणेव साइं-साई नगराइं तेणेव पडिगयाइं। तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धि कल्लाकल्लि वारंवारेणं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति ॥
नारदस्स आगमणं ८४ तए णं से पंडू राया अण्णया कयाई पंचहिं पंडवेहि कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धि अंतो अंतेउरपरियालसद्धि संपरिबुडे सोहासण
वरगए यावि विहरइ। इमं च णं कच्छुल्लनारए-दसणेणं अइभद्दए विणीए अंतों-अंतो य कलुसहियए मज्झत्थ उवस्थिए य अल्लीण-सोमपियदंसणे सुरुवे अमइल-सगलपरिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउडदित्तसिरए जन्नोवइय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-बागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-ओवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकामणि-आभिओगि-पण्णत्ति-गमणियंभिणीसु य बहूसु विज्जाहरीसु विज्जासु विस्सुयजसे इठे रामस्स य केसवस्स य पज्जुम्न-पईव-संब-अनिरुद्ध-निसढ-उम्मय-सारणगय-सुमुह-दुम्मुहाईण जायवाणं अद्भुट्ठाण व कुमारकोडीणं हियय-दइए संथवए कलह-जुद्ध-कोलाहलप्पिए भंडणाभिलासी बहूसु य समरसयसंपराएसु दंसणरए समंतओ कलहं सदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवई पक्कणि गगणगमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टण-संबाह-सहस्समंडियं थिमियमेइणीयं निब्भर-जणपदं वसुहं ओलोइंते रम्मं हत्थिणारं उवागए पंडुरायभवणंसि झत्ति-बेगेण समोवइए। तए णं से पंडू राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहि पंडवेहि कुंतीए य देवीए सद्धि आसणाओ अब्भुट्ठई, अन्भु
ठेत्ता कच्छुल्लनारयं सत्तटुपयाई पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता निमंसित्ता महरिहेणं अग्घेणं पज्जेणं आसणेण य उवनिमंतेइ । तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दबभोवरिपच्चत्युयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पंडुरायं रज्जे य रठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। तए णं से पंडू राया कोंती देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लनारयं आढ़ति परियाणंति अब्भुति पज्जुवासंति ।
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दोवईए नारयं पइ अणायरो ८६ तए णं सा दोवई देवी कच्छुल्लनारयं अस्संजयं अविरयं अप्पडिहयपच्चखाय-पावकम्मति कटु नो आढाइ नो परियाणइ नो
अब्भुट्टे नो पज्जवासइ। तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अपझथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-"अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहि पंडवेहि अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्टेड नो पज्जुवासइ, तं सेयं खल मन दोबईए देवीए विप्पियं करेत्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पणि विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिन्धाए उद्ध्याए जइणाए छयाए विज्जाहरगईए लवणसमुई मझमस्रणं पुरत्याभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था।
नारदस्स अवरकंका-गमणं पउमनाभरण्णा मिलणं च ८७ तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरस्थिमद्ध-दाहिणड्ड-भरहवासे अवरकका नाम रायहाणी होत्था ।
तत्थ णं अवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभे नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाई ओरोहे होत्था। तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवराया वि होत्था।
तए णं से पउमनाभे राया अंतोअंतेउरंसि ओरोह-संपरिवुडे सीहासणवरगए विहरइ ॥ ८८ तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव अवरकका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स
रणो भवणंसि झत्ति-वेगेण समोवइए।
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