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सूत्रांक ४८
५०
पृष्ठांक १८७ १८७-१८८ १८८ १८८ १८८-१८९ १८९ १८९
५१-५२
५५-५६ ५७-५८ ५९
१८९
६२-६३
१९१
६४-६५
१९१
१९१ १९१-१९२
१९२
१९२-१९३ १९३-१९४
धर्मकथानुयोग-विषय-सूची २६ सुकुमालिका का श्रमणोपासिका होना २७ सुकुमालिका का प्रव्रज्या स्वीकार करना २८ सुकुमालिका का चम्पा नगरी के बाहर आतापना लेना २९ सुकुमालिका ने गणिका के भोगमय. जीवन को देखकर नियाणा किया ३० सुकुमालिका का बाकुशिक (सदोष) निर्ग्रन्थित्व ३१ सुकुमालिका का पृथक् विहार और देवलोक में उपपात ३२ द्रौपदी-भव के कथानक में द्रौपदी का तारुण्य भाव ३३ द्रुपद राजा ने द्रौपदी के स्वयम्बर का संकल्प किया ३४ द्वारिका को दूत भेजा ३५ श्रीकृष्ण का प्रस्थान ३६ हस्तिनापुर को दूत भेजा ३७ चम्पानगरी को दूत भेजा ३८ हजारों राजाओं का प्रस्थान ३९ द्रुपद राजा ने वासुदेव आदि का सत्कार किया ४० द्रौपदी का स्वयम्वर
द्रौपदी का पाण्डवों को वरण करना ४२ पाणि-ग्रहण ४३ पण्डु राजा ने वासुदेव आदि को निमन्त्रण दिया ४४ पण्डु राजा ने वासुदेव आदि का सत्कार किया ४५ कल्याण कारक उत्सव किया ४६ नारद का आगमन ४७ द्रौपदी ने नारद का अनादर किया ४८ नारद का अपरकंका जाना और पद्मनाभ राजा से मिलना ४९ पद्मनाभ का अपने अन्तःपुर के सम्बन्ध में गर्व ५० कूपदर्दुर का दृष्टान्त कहकर नारद ने द्रौपदी के रूप की प्रशंसा की ५१ पद्मनाभ के लिये द्रौपदी का देवता ने अपहरण किया ५२ द्रौपदी को चिन्ता ५३ पद्मनाभ ने आश्वासन दिया ५४ युधिष्ठिर ने पण्डुराजा को द्रौपदी के अपहरण की सूचना दी ५५ पण्डुराजा ने कुन्ती को श्रीकृष्ण के पास भेजा और द्रौपदी अन्वेषण के लिए कहा ५६ श्रीकृष्ण का द्रौपदी की गवेषणा के लिये आदेश ५७ नारद से द्रौपदी का वृत्तान्त मिलना ५८ पाण्डव सहित श्रीकृष्ण का द्रौपदी को लाने के लिये धातकी खण्ड की ओर प्रयाण ५९ श्रीकृष्ण का देव आराधन
श्रीकृष्ण की आजा से सुस्थित देव ने लवण समुद्र के मध्य में मार्ग बनाया ६१ पद्मनाभ के समीप श्रीकृष्ण ने दूत भेजा ६२ पद्मनाभ ने दूत का अपमान किया ६३ दुत का श्रीकृष्ण के समीप आना ६४ पद्मनाभ का पाण्डवों से युद्ध ६५ पाण्डवों का पराजय
श्रीकृष्ण ने पराजय कारण कहा और युद्ध किया ६७ पद्मनाभ का पलायन
७८ ७९-८० ८१-८२ ८३ ८४-८५ ८६ ८७-८८
१९४ १९४-१५ १८५
१९५-१९६
८९
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९२-९४
१९६-१९७ १९७
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९९-१०१
१९७ १९८ १९८
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१९९ १९९-२०० २००
१०५ १०६-१०७ १०८-१०९ ११० १११ ११२-११३ ११४ ११५-११७ ११८
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२०१ २०१-२०२
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