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________________ ४७० धम्महाओगे छठो बो तए णं से उज्झिए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाओ निच्छुभेमाणे कामज्झयाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे torte कत्थई सुई च रडं च धिई च अविदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदज्झवसरणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए कामज्वाए गणियाए बहूनि अंतराणि यछिद्राणि य विवराणि य पडिजागरमाणे डिजागरमाने विहरह। तए गं से उलिए बारए अष्णया कयाइ कामया गणिया अंतरं लमेह लभेता कामया गणियाए हिं रहसि अमुष्यविस, अणुविसिता कामाया गणिया सह उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमा बिहरह इमं ण णं मिले राया हाए कम्मे ककोड-मंगल-वान्छितं सव्यालंकारविभूलिए मनुरसवपुरापरिचिले जे कमाए गिहे लेणेव प्रजागच्छड, उनागष्ठिता तत्व उसियगं दारगं कामयवाए गणियाए सांड उरालाई मालुस्तगाई भोग भोगाई भुजमाणं पास पासिता आनुरुले स्टट्ठे कुथिए चंडिक्किए मिसिमिसेमा निर्वाल मिनिडाले साह उज्मियगं बार पुरिसेहि दिव्हावे, विषहाता अद्वि-बुद्धि-जागु-कोप्परपहार-भय-महियगतं करे, करेला अबलोड करे, करेता एएवं बिहा वझं आणवेइ । उपसंहारो २२८ एवं खलु गोयमा ! उज्झियए दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पचनुभवमाणे विहर। उयियस्स आगामिभव-त्रगणं २२९ उ णं भंते! दारए इस कालमासे कालं किया कहि गछिहिद ? कहि उम? गोमा उ बारए पशुचीसं बाताई परमाउं पालता अव तिभागावसेसे दिवसे मूलमिष्णे कए समाणे कालमा काल fever इमीसे रयणष्पभाए पुढवीए नेरइएस नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ अनंतरं उन्बट्टित्ता इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ । २३० से णं तस्थ म्युक्बालभावे तिरियो मुछिए गिद्धे पडिए अवणे जाए जाए वाणरपेल्लए बहेद । तं एवकम्मे एयप्पहाणे एववि एवसमायारे कालमासे कालं फिल्या इहेब जंबुद्वी दीवे भारहे वासे इंदपुरे नपरे नियति पुत्ताए पञ्चाग्राहिह लए णं तं वा अम्मायरो जायमेकं वहिति नपुंसकम् सिक्खाहिति तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेहिति होउ णं अहं इमे दारए पियसेणे नाम नपुंसए । तए णं से पियसेणे नपुंसए उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते रूवेण य जोव्त्रणेण य लावण्णेण व उक्किट्ठे उक्कसरीरे भवि तए णं से पियसेणे नपुंसए इंदपुरे नयरे बहवे राईसर-तलवर- माडंबिय कोडूंबिय इब्भ-सेट्ठि-सेगावइ- सत्यवाहपभियओ बहूहि य विज्जापओहि य मंतपओहि य चुण्णपओगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएह आभियोगिता उरालाई मागुरुसवाई भोग भोगाईमा बिहरिस्स २३१ तए गं से पियसे नपुंसए एक एप्पहाणं एववि एयसमायारे सुबहं पावकम्मं समज्जिनित्ता एक्कवीस वाससवं परमा पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहि । ततो सिरीसिवेसु, संसारो तहेब जहा पटावा-ले-आउ-पुडवी अनंग तो उदाइता उदाइसा तत्येव भुजी भुज्जो पचायाइस्स से गं तो अनंत जन्महिता हे जंबी दीवे भार वाले पाए नमरीए महिसत्ताए पच्चामादि से णं तरथ अण्णया का लिए जीविधाओ यवरोविए समाने तत्व पाए नवरीए मेट्रिकुलसि पुत्तताए पश्चावाहि से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिइ, अणगारे भविस्सइ, सोहम्मे कप्पे, जहा पढमे - जावअंतं काहि । विवागसुयं सु० १ ० २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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