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________________ अहमदाबाद में अनुयोग ट्रस्ट : आगम अनुयोग प्रकाशन परिषद् सांडेराव राजस्थान की ओर से गणितानुयोग का प्रकाशन सम्पन्न होने के बाद पं० दलसुखभाई मालवणिया एवं अमृतभाई भोजक आदि विद्वानों से सम्पर्क साधने के लिए अहमदाबाद आना पड़ा। धर्मकथानुयोग के संकलन के सम्बन्ध में विद्वानों से कई दिनों तक विचार-विमर्श होता रहा। पं० दलसुखभाई मालवणिया का मन्तव्य यह था कि 'सभी आगमों के मूलपाठ व्यवस्थित करने का कार्य अनेक वर्षों तक निरन्तर करते रहने पर भी यथेष्ट पद्धति के अनुसार सम्पन्न नहीं हो सकेगा। क्योंकि योग्य विद्वानों का पर्याप्त सहयोग मिलने की सम्भावना नहीं है। मेरा भी स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है। मोतिया बन रहा है, रक्तचाप भी रहता है । इसलिए पर्याप्त श्रम करने में तथा पर्याप्त समय देने में सर्वथा असमर्थ हूँ। यदि अल्प समय में धर्मकथानुयोग का संकलन एवं वर्गीकरण करना चाहें तो सुत्तागमे तथा अंगसुत्ताणि के कटिंग बनाकर कर सकते हैं। दोनों प्रकाशनों की प्रतियाँ सुलभ हैं।' __ मैंने कहा- 'सुत्तागमे के सम्पादक श्री पुप्फभिक्खु ने अपनी मान्यता से विपरीत पाठों को सुत्तागमे में स्थान नहीं दिया है। किन्तु यही एक ऐसा संस्करण है जिसमें पूरे बत्तीस आगम केवल दो पुस्तकों में उपलब्ध हैं। अंगसुत्ताणि की तीन पुस्तकें हैं । सम्पादकों की निर्धारित नीति के अनुसार इग्यारह अंग आगमों के मूल पाठ हैं। अन्यान्य प्रकाशनों से प्रकाशित आगमों के मूल पाठों से इन संस्करणों के मूलपाठ अक्षरशः नहीं मिलते हैं'--यह सब कुछ होते हुए भी धर्मकथानुयोग का संकलन सुत्तागमे एवं अंगसुत्ताणि के कटिंग बनाकर ही किया गया है। धर्मकथानुयोग का संक्षिप्त परिचय : इंग्लिश में लिखी हुई भूमिका में लेखक ने इस धर्मकथानुयोग का विस्तृत परिचय दिया है किन्तु हिन्दी भाषी पाठकों को इस मूल मात्र संस्करण का विषयबोध सरलतापूर्वक हो इसलिए हिन्दो में भी संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। धर्मकथानुयोग के छह स्कन्ध है पृष्ठ ६४६ ।' विषय प्रारम्भ पृष्ठ स्कन्ध समाप्त पृष्ठ स्कन्ध पृष्ठ १४४ ~ १७६२२३९ पहला स्कन्ध दूसरा स्कन्ध तीसरा स्कन्ध चौथा स्कन्ध पाँचवाँ स्कन्ध छठा स्कन्ध उत्तमपुरुषकथानक श्रमण कथानक श्रमणी कथानक श्रमणोपासक कथानक निन्हव कथानक प्रकीर्णक कथानक ० ३७८४ ४१९ ४१८ ५०२ १ . पहला स्कन्ध राजरत्न प्रेस, अहमदाबाद में मुद्रित हुआ है । इसकी पृष्ठ संख्या १४४ है। __ ख. दूसरे स्कन्ध से छठे स्कन्ध पर्यन्त नईदुनिया प्रिंटरी, इन्दौर में छपे हैं । इनकी पृष्ठ संख्या ५०२ है। ग. छहों स्कन्धों की संयुक्त पृष्ठ संख्या ६४६ है। २, ३,४ पृष्ठ १७६, २४० और ३७८ सर्वथा रिक्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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