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________________ महावीरतित्थे घणसत्यवाहकहाणयं १६१ चोरनिगडीओ य सिक्खाबिए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! चिलायं तक्करं सोहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचित्तए" त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता चिलायं सोहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए--अहम्मिए अहम्मिठे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरनायगे बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसि च बहूणं छिण्णभिण्ण-बाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था॥ से णं तत्थ सोहगहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टिसं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई रायगिहस्स नयरस्स दाहिणपुरथिमिल्ल जणवयं बहूहि गामघाएहि य नगरधाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे-ओवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहर।। चिलायस्स धणसत्यवाहगिहविलुंपणं सुन्सुमदारियाहरणं च ६०७ तए णं से चिलाए चोरसेणावई अण्णया कयाइ विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ । तओ पच्छा व्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंहि चोरसएहि सद्धि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं चं मंसं च सीधं च पसन्नं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूवपुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासो-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! 'रायगिहे नयरे धणे नाम सत्थवाहे अड्ढे । तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया---अहोणा-जाव-सुरूवा। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! धणस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुपामो । तुम्भं विपुले धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाले ममं सुसुमा दारिया ॥" तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स [एयमलैं?] पडिसुर्णेति ॥ ६०८ तए णं ते चिलाए चोरसेणावई तेहिं पंचहि चोरसएहि सद्धि अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरहित्ता पश्चावरण्ह-कालसमयंसि पंचहि चोर सहि सद्धि सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए उप्पोलिय-सरासणपट्टिए पिणद्ध-विज्जे आविद्ध-विमलवचिधपट्टे गहियाउह-पहरणे माइयगोमुहिएहि फलएहि, निक्किट्ठाहि असिलट्ठीहि, अंसगएहि तोह, सज्जोहिं धहिं, समुक्खिहिं सरेहिं, समुल्लालियाहिं दाहाहि, ओसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहिं वज्जमाहिं महया-महया उक्किट्ठ-सीहनाय-बोल-कलकलरवणं पक्खुभिय-महासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे सोहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता रायगिहस्स अदूरसामंते एगं महं गहणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता दिवसं खवेमाणे चिट्ठति ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्त-कालसमयंसि निसंत-पडिनिसंतसि पंचहि चोरसहि सद्धि माइय-गोमुहिएहि फलएहि -जाव-मुइयाहिं ऊरुघंटियाहि जेणेव रायगिहे नयरे पुरथिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उदगवत्थि परामुसइ आयंते चोक्खे परम सुइभूए तालुग्घाडणि विज्ज आवाहेइ, आवाहेत्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडेत्ता कवाडं विहाडेइ, विहाडेता रायगिह अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी--"एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! चिलाए नामं चोरसेणावई पंचहि चोरसएहिं सद्धि सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागए धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे। तं जे णं नवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से गं निग्गच्छउ" ति कट्ट जेणेव धणस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणस्स गिहं विहाडेइ ॥ ६०९ तए णं से धणे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहि चोरसएहिं सद्धि गिहं घाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए पंचहि पुत्तेहिं सद्धि एगंतं अवक्कमइ ॥ तए णं से चिलाए चोरसेणावई धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाएइ, घाएत्ता सुबई धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालरत्तरयण-संत-सार-सावएज्ज सुसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ पडिनिक्खमई, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सोहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ध० क० २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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